भारत में चुनावी प्रक्रिया पर निबंध

 

Hindi Essay and Paragraph Writing – Election (चुनाव) for classes 1 to 12

 

चुनाव पर निबंध – इस लेख में हम चुनाव क्या है, इसका क्या महत्व है, भारत में चुनाव कैसे होते हैं, चुनाव कौन करवाता है के बारे में जानेंगे। चुनाव लोकतंत्र का एक अहम हिस्सा है और इसके बिना तो लोकतंत्र की परिकल्पना करना भी मुश्किल है। चुनाव के द्वारा जनता (लोग) अपने प्रतिनिधियों को चुनती है।  भारत में निर्वाचन आयोग लोक सभा, राज्य सभा, राज्य विधान सभाओं, देश के राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के पदों के लिए निर्वाचनों का संचालन करता है। अक्सर स्टूडेंट्स से असाइनमेंट के तौर या परीक्षाओं में चुनाव पर निबंध पूछ लिया जाता है। इस पोस्ट में चुनाव  पर कक्षा 1 से 12 के स्टूडेंट्स के लिए 100, 150, 200, 250 से 350 शब्दों में अनुच्छेद दिए गए हैं।

 

 

चुनाव पर 10 लाइन 10 lines on Election in Hindi

 

  1. चुनाव, लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जिसके द्वारा लोग अपने राजनीतिक प्रतिनिधियों को चुनते हैं।
  2. चुनाव को लोकतंत्र की रीढ़ की हड्डी या लोकतंत्र का मुख्य आधार माना जाता है।
  3. चुनाव निष्पक्ष हो इसके लिए एक संस्था बनाया जाती है जिसे चुनाव आयोग कहा जाता हैं।
  4. किसी भी देश के स्वस्थ लोकतंत्र की पहचान वहाँ होने वाले निष्पक्ष चुनाव से  होती है।
  5. चुनाव में विभिन्न राजनीतिक दलों के उम्मीदवार भाग लेकर मतदाताओं का विश्वास और समर्थन जीतने के लिए एक-दूसरे के खिलाफ प्रतिस्पर्धा करते हैं।
  6. चुनाव में प्रत्येक मतदाता को अपनी पसंद के किसी भी उम्मीदवार को स्वतंत्र रूप से वोट देने का अधिकार है।
  7. चुनाव देश के नागरिक को यह शक्ति देता है कि वह अपने नेता को चुन सके तथा आवश्यकता पड़ने पर सत्ता परिवर्तन भी कर सके। 
  8. देश में समय-समय पर चुनाव राजनेताओं में इस बात का भय पैदा करता है कि यदि वह जनता का दमन या शोषण करेंगे तो चुनाव के समय जनता अपनी वोटों के ताकत द्वारा उन्हें सत्ता से बाहर कर सकती है।
  9. चुनाव सरकार और उसके नागरिकों के बीच सार्वजनिक भागीदारी, जागरूकता और विश्वास को बढ़ावा देते हैं।
  10. चुनाव किसी राष्ट्र की नियति को आकार देने, उसके नेतृत्व को निर्धारित करने और नीतियों और शासन को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 

Short Essay on Election in Hindi चुनाव पर अनुच्छेद 100, 150, 200, 250 से 350 शब्दों में

 

चुनाव पर निबंध – चुनाव लोकतंत्र की आधारशिला है, जो नागरिकों को अपने देश के भविष्य को आकार देने की शक्ति प्रदान करते हैं। वे व्यक्तियों को अपने नेता चुनने, निर्णय लेने में भाग लेने और सत्ता का शांतिपूर्ण परिवर्तन सुनिश्चित करने में सक्षम बनाते हैं। चुनाव सरकार और उसके नागरिकों के बीच सार्वजनिक भागीदारी, जागरूकता और विश्वास को बढ़ावा देते हैं। इस प्रक्रिया के माध्यम से लोकतांत्रिक समाज एक निष्पक्ष, न्यायपूर्ण और समावेशी समाज प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।

चुनाव पर निबंध/अनुच्छेद कक्षा 1, 2, 3 के छात्रों के लिए 100 शब्दों में

चुनाव, लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो व्यक्तियों को मतदान के माध्यम से अपने राजनीतिक प्रतिनिधियों का चयन करने की अनुमति देता है। चुनाव में विभिन्न राजनीतिक दलों के उम्मीदवार भाग लेकर मतदाताओं का विश्वास और समर्थन जीतने के लिए एक-दूसरे के खिलाफ प्रतिस्पर्धा करते हैं। चुनाव से पहले, राजनीतिक उम्मीदवार देश के नागरिकों का विश्वास जीतने करने के लिए रैलियां करते हैं, विभिन्न स्थानों पर भाषण देते हैं और अपने विचार और नीतियां पेश करते हैं। अंततः, चुनाव के नतीजे यह निर्धारित करते हैं कि कौन सा उम्मीदवार सत्ता के पदों पर रहेगा और देश को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण निर्णय लेगा।

चुनाव पर निबंध/अनुच्छेद कक्षा 4, 5 के छात्रों के लिए 150 शब्दों में

चुनाव, जिसे निर्वाचन प्रक्रिया भी कहा जाता है, लोकतंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं क्योंकि चुनाव देश की भलाई के लिए किसी व्यक्ति विशेष के चयन में योगदान करते हैं। इस व्यक्ति को नागरिकों द्वारा मतदान की प्रक्रिया के माध्यम से चुना जाता है और इसकी निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोग की जिम्मेदार होती है। चुनाव किसी भी लोकतांत्रिक देश के नागरिक को यह शक्ति देता है कि वह अपने नेता को चुन सके तथा आवश्यकता पड़ने पर सत्ता परिवर्तन भी कर सके। एक देश के विकास के लिए चुनाव बहुत अहम प्रक्रिया है क्योंकि यह देश के राजनेताओं में इस बात का भय पैदा करता है कि यदि वह जनता का दमन या शोषण करेंगे तो चुनाव के समय जनता अपनी वोटों के ताकत द्वारा उन्हें सत्ता से बाहर कर सकती है। इसलिए नेता चुनाव होने से पहले जनता का विश्वास जीतने के लिए रैलियां करते है, विभिन्न स्थानों पर भाषण देते हैं और अपने विचार और नीतियां पेश करते हैं। 

चुनाव पर निबंध/अनुच्छेद कक्षा 6, 7, 8 के छात्रों के लिए 200 शब्दों में

चुनाव या निर्वाचन, लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जिसके द्वारा जनता अपनी रुचि के प्रतिनिधियों को निर्वाचित करने का अधिकार और अवसर मिलता है। अत: चुनाव लोकतंत्र की रीढ़ की हड्डी हैं। चुनाव में देश के विभिन्न राजनीतिक दल और कोई भी व्यक्ति व्यक्तिगत रूप में भाग ले सकता है। इसके लिए निर्वाचन अधिकारी चुनाव तिथि की घोषणा करता है और नामांकन पत्र प्रविष्ट कराने का दिन निश्चित करता है। इसके पश्चात विभिन्न दलों के प्रत्याशी या स्वतंत्र प्रत्याशी अपना नामांकन पत्र भरते है। फिर निर्दिष्ट तिथि को उनकी जांच होती है। तब दल के प्रत्याशियों को उनके दलों के लिए निश्चित चुनाव चिन्ह और स्वतंत्र प्रत्याशियों को अन्य चिन्ह दे दिए जाते है। इसके पश्चात चुनाव प्रचार प्रारम्भ होता है। इसके लिए विभिन्न दलों और प्रत्याशियों की ओर से छोटी-बड़ी चुनाव सभाएं की जाती हैं, जिनमें वे मतदाताओं से अपने दल को या अपने को मत देने के लिए आग्रह करते है। मतदान से छतीस घंटे पूर्व चुनाव प्रचार बंद हो जाता है। चुनाव के दिन, मतदाता अपने पसंदीदा प्रत्याशी को वोट देता है। जिस प्रत्याशी को  सबसे अधिक वोट मिलते है, वह विजयी माना जाता है। इसके बाद, विजयी दल का नेता मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, या पालिका अध्यक्ष बनता है और वह अपने सहयोगियों का चयन कर शासन करता है। यही प्रक्रिया नगर पालिका, विधान सभा तथा लोकसभा के निर्वाचन में भी अपनाई जाती है।

चुनाव पर निबंध/अनुच्छेद कक्षा 9, 10, 11, 12 के छात्रों के लिए 300 शब्दों में

चुनाव किसी भी लोकतांत्रिक समाज का अभिन्न अंग हैं, क्योंकि वे व्यक्तियों को अपने पसंद के नेता चुनने का अवसर प्रदान करता हैं। चुनावों के माध्यम से, नागरिक वोट देने के अपने अधिकार का प्रयोग करते हैं और भविष्य के लिए मूल्यों, विश्वासों और आकांक्षाओं के आधार पर सूचित विकल्प चुनते हैं। दूसरे शब्दों में, नागरिक अपने वोट की शक्ति के माध्यम से, ऐसे प्रतिनिधियों का चुनाव कर सकते हैं जो उनके हितों और चिंताओं को स्पष्ट करेंगे। लोकतांत्रिक चुनावों की एक विशिष्ट विशेषता सत्ता का शांतिपूर्ण परिवर्तन है। नियमित रूप से चुनाव आयोजित करके, राष्ट्र यह सुनिश्चित करते हैं कि हिंसा या नागरिक अशांति का सहारा लिए बिना नेतृत्व परिवर्तन हो। यह अभ्यास स्थिरता बनाए रखने और सत्तावाद को रोकने में मदद करता है। चुनाव नागरिकों को सत्ताधारियों के प्रति अपना असंतोष व्यक्त करने और राजनीतिक परिदृश्य में नए दृष्टिकोण और विचार लाने का अवसर प्रदान करते हैं। चुनाव लोकतांत्रिक प्रक्रिया में जनता की भागीदारी को प्रोत्साहित करते हैं। जैसे-जैसे चुनाव अभियान शुरू होते हैं, व्यक्ति अपने राष्ट्र के सामने आने वाले मुद्दों और चुनौतियों के बारे में अधिक जागरूक हो जाते हैं। राजनीतिक बहसें, अभियान और रैलियाँ एक ऐसा वातावरण बनाती हैं जहाँ नागरिक विभिन्न दृष्टिकोणों पर चर्चा और बहस कर सकते हैं। यह जुड़ाव मतदाताओं को अधिक जागरूक बनाता है, जिम्मेदारी और सक्रिय नागरिकता की भावना को बढ़ावा देता है। साथ ही चुनाव सरकार की वैधता में योगदान करते हैं और राज्य और उसके नागरिकों के बीच विश्वास बनाने में मदद करते हैं। जब नेताओं को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के माध्यम से चुना जाता है, तो नागरिकों को राजनीतिक व्यवस्था और उनके प्रतिनिधियों द्वारा लिए गए निर्णयों पर भरोसा होने की अधिक संभावना होती है। चुनावों से प्राप्त वैधता सरकार की नीतियों को लागू करने और सुधारों को प्रभावी ढंग से लागू करने की क्षमता को मजबूत करती है। अत: चुनाव किसी राष्ट्र की नियति को आकार देने, उसके नेतृत्व को निर्धारित करने और नीतियों और शासन को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

Hindi Essay Writing Topic – भारत में चुनावी प्रक्रिया (Elections in India)

 

आज के लेख में हम भारत में चुनावी प्रक्रिया पर निबंध लिखेंगेभारत में चुनावी प्रक्रिया के विभिन्न चरण, स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनावी प्रक्रिया का महत्व के बारे में जानेगे |

 

चुनाव किसी भी लोकतंत्र व्यवस्था की प्रथम जरूरत होती है। चुनाव जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि, जनता चुनाव नामक प्रक्रिया द्वारा अपने मनपसंद राजनीतिज्ञ को चुनती है। सही शब्दो में, चुनाव ही लोकतंत्र की रीढ़ है, क्योंकि चुनाव के माध्यम से जनता अपना शासन चलाती है। 

 

क्योंकि लोकतंत्र की परिभाषा ही जनता का शासन है, जैसा कि अमेरिका के सबसे प्रख्यात राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने लोकतंत्र की परिभाषा को स्पष्ट करते हुए कहा है कि, “लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए और जनता के द्वारा किया गया शासन है” इसलिए लोकतंत्र जैसी गौरवशाली शासन पद्यति की प्रतिष्ठा को बनाए रखने हेतु चुनाव का साफ और भ्रष्टाचार मुक्त रहना आवश्यक हो जाता है, लेकिन क्या हो अगर चुनावी प्रक्रिया ही भ्रष्टाचार से युक्त हो? इसके कितने बुरे परिणाम हो सकते हैं, यह भारतीय प्रायद्वीप के कुछ देशों की स्थितियों को देखकर पता ही चलता है। 

 

इस लेख में हम भारत में चुनावी प्रक्रिया के विभिन्न चरण, नोटा क्या है, स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनावी प्रक्रिया के लिए आवश्यक कदम, लोकतंत्र में चुनाव का महत्व और पंचायती राज व्यवस्था के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। 

 

संकेत सूची (Contents)

प्रस्तावना

भारत में मुख्यत: निम्नलिखित प्रकार के चुनाव होते हैं। 

  • लोकसभा का चुनाव
  • राज्यसभा का चुनाव
  • राष्ट्रपति का चुनाव
  • पंचायती चुनाव
  • विधानसभा चुनाव 

 

भारत में प्रथम चुनाव

भारत में पहली बार चुनाव 1951-52 में हुए, उस समय यह चुनाव आयोग के लिए काफी कठिन काम था क्योंकि एक देश के रूप में हम अपने पैरों पर खड़े हो रहे थे। 

परिवहन व्यवस्था भी खराब थी और साक्षरता दर लगभग 16% थी।  इसके अलावा, यह पहली बार था कि भारत में इतने बड़े पैमाने पर चुनाव कराए जा रहे थे। फिर भी चुनाव आयोग ने जबरदस्त काम किया।

 

भारत में पहली बार चुनाव निम्नलिखित नियमों के आधार पर हुए। 

 

  • 21 साल से ऊपर के सभी लोगों को मतदान का अधिकार दिया गया। 
  • निरक्षरता का मुकाबला करने के लिए राजनीतिक पार्टी को प्रतीक चिन्ह उपलब्ध कराए गए।  
  • मतदाताओं को मतपत्र सौंपे गए। 
  • प्रत्येक मतदाता एक कमरे में जायेंगे जहां पर प्रत्येक उम्मीदवार के लिए अलग-अलग बॉक्स होंगे और मतदाता मतपत्र को अपनी पसंद के बॉक्स में डालेगा।
  • भारतीय चुनाव आयोग ने लोगों के आवास के 3 मील के भीतर चुनावी बूथों की व्यवस्था की। सिर्फ 9 वोटरों के लिए एक बूथ बनाया गया था। 

भारत में चुनावी प्रक्रिया के विभिन्न चरण

भारत में निम्नलिखित तरीके से चुनावी प्रक्रिया होती है। 

निर्वाचन क्षेत्रों का गठन

संविधान में कहा गया है कि प्रत्येक जनगणना के पूरा होने के बाद राज्यों को लोकसभा में सीटों के आवंटन का पुन: समायोजन किया जाएगा।  इसी तरह, विधानसभाओं के चुनाव के लिए निर्वाचन क्षेत्रों को भी पुन: समायोजित किया जाता है।

नामांकन भरना

उम्मीदवारों का नामांकन चुनाव प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। नियमों के अनुसार उम्मीदवार या अपना नाम प्रस्तावित करने वाला व्यक्ति रिटर्निंग ऑफिसर के पास नामांकन पत्र दाखिल करता है। 

 

राज्य सभा या राज्य विधान परिषद का सदस्य चुने जाने के लिए, एक व्यक्ति की आयु 30 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए।  लोकसभा या राज्य विधान सभा के चुनाव के लिए, एक व्यक्ति को 25 वर्ष की आयु प्राप्त करनी चाहिए।  एक व्यक्ति को किसी सदन के सदस्य के रूप में चुने जाने के लिए अयोग्य घोषित किया जाता है, यही वह; 

  • भारत सरकार या किसी राज्य के अधीन लाभ का कोई पद धारण करता है (मंत्रियों या उप मंत्रियों के पदों को इस प्रयोजन के लिए लाभ के पद के रूप में नहीं माना जाता है)
  • मानसिक रूप से अक्षम है और न्यायालय द्वारा उसको मानसिक रूप से कमजोर घोषित किया गया हो
  • दिवालिया हो
  • अगर वह भारत का नागरिक नहीं हो।
  • अगर वह संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून के तहत अयोग्य घोषित किया गया हो।

 

नामांकन की जांच

रिटर्निंग ऑफिसर नामांकन पत्रों की बहुत सावधानी से जांच करता है।  जब वह ऑफिसर कुछ गड़बड़ी पाता है, तो उस व्यक्ति को आधिकारिक तौर पर छह साल के लिए चुनाव लड़ने से रोक दिया जाता है। उम्मीदवार सही पाए जाने के बाद भी अपना नामांकन पत्र वापस ले सकते हैं। यदि उम्मीदवार किसी अनुसूचित जाति या जनजाति का है तो जमानत राशि आधी कर दी जाती है।

चुनाव प्रचार

नामांकन की जांच में सब सही होने पर चुनावी प्रत्याशी चुनावी प्रचार करना शुरू कर देता है, जहां से वह चुनाव लड़ रहा होता है। 

मतदान प्रक्रिया

मतदान के दिन मतदान समाप्त होने के समय से 48 घंटे पहले चुनाव प्रचार रोक दिया जाना चाहिए। पीठासीन अधिकारी पूरी मतदान प्रक्रिया का पर्यवेक्षण करता है और यह सुनिश्चित करता है कि उसके अधीन काम करने वाले सभी व्यक्ति चुनावी मानदंडों और प्रथाओं का पालन करें।

मतदाता अपना वोट या तो जिस उम्मीदवार को वोट देना चाहता है उसके नाम के आगे मुहर लगाकर या वोटिंग मशीन के बटन को दबाकर रिकॉर्ड करता है। 

मतों की गिनती

मतदान समाप्त होने के बाद मतपेटियों या वोटिंग मशीनों को सील कर दिया जाता है और उन्हें मतगणना केंद्रों तक पुलिस हिरासत में ले जाया जाता है। इसके बाद मतगणना की प्रक्रिया शुरू होती है। भारत में पहली बार मतों की गिनती सन् 1979 में हुई थी। 

चुनाव खर्च से संबंधित लेखा प्रस्तुत करना

कानून अपने चुनाव में विभिन्न दावेदारों द्वारा किए जाने वाले खर्च की अधिकतम सीमा तय करता है।  उम्मीदवारों को चुनाव खर्च का लेखा-जोखा दाखिल करना होता है। एक उम्मीदवार के लिए अपने चुनाव पर निर्धारित राशि से अधिक पैसा खर्च करना भ्रष्टाचार माना जाता है, और उसकी जांच भी हो सकती है। 

नोटा क्या है

NOTA का पूरा नाम “none of the above” है। 

 

नोटा का इस्तेमाल पहली बार 2013 में चार राज्यों – छत्तीसगढ़, मिजोरम, राजस्थान और मध्य प्रदेश और केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली के विधानसभा चुनावों में किया गया था। भारत के अलावा कोलंबिया, यूक्रेन, ब्राजील, बांग्लादेश, फिनलैंड, स्पेन, स्वीडन, चिली, फ्रांस, बेल्जियम और ग्रीस अपने मतदाताओं को नोटा वोट डालने की अनुमति देते हैं। अमेरिका भी कुछ मामलों में इसकी अनुमति देता है। 

 

नोटा नामक प्रक्रिया जनता को किसी भी राजनीतिक पार्टी में वोट न देने का एक अतिरिक्त विकल्प प्रदान करता है। यह प्रक्रिया इसलिए भी जरूरी है क्योंकि लोकतंत्र में अपने मनपसंद प्रत्याशी को चुना जाता है, अगर जनता को कोई भी प्रत्याशी नहीं पसंद तो वह नोटा बटन को दबाकर अयोग्य प्रत्याशी को जीतने से रोक सकता है। 

27 सितंबर 2013 को, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि चुनाव में “नोटा” वोट दर्ज करने का अधिकार लागू नहीं होना चाहिए, जबकि चुनाव आयोग को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में नोटा के लिए एक बटन प्रदान करने का आदेश दिया गया है। 

नोटा के लाभ

  • नोटा के प्रमुख लाभों में से एक यह है कि यह भारत के सभी नागरिकों को किसी भी उम्मीदवार को वोट न देने का विशेषाधिकार देता है।  यह स्वतंत्रता का अधिकार देता है।
  • यह संभव हो सकता है कि सबसे योग्य और ईमानदार उम्मीदवार चुने जाएं।

नोटा से हानि

  • नोटा के नुकसानों में से एक यह है कि यदि कोई व्यक्ति नोटा के रूप में मतदान करना चुनता है, तो नोटा के लिए उनका चयन गुप्त नहीं रहेगा। जैसे किसी राजनीतिक दल को वोट देने के दौरान मतदान अधिकारी से भी गुप्त रहता है। लेकिन नोटा के मामले में मतदान अधिकारी को सूचित करना होगा और फिर वे नोटा विकल्प के लिए जा सकते हैं।
  • बहुत से लोग कहते हैं कि नोटा विकल्प वोट की बर्बादी और समय की बर्बादी है।
  • लोग अपने ज्ञान और पसंद के आधार पर तय करते हैं कि किसे वोट देना है।  लेकिन अगर वे देखते हैं कि हर कोई नोटा के लिए जा रहा है, तो यह किसी न किसी तरह से उनके आसपास के अन्य लोगों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा। वे अपनी पसंद पर संदेह करना शुरू कर देंगे नोटा का एक और नुकसान है। 

स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनावी प्रक्रिया का महत्व

स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की अवधारणा मुख्य रूप से राजनीतिक स्वतंत्रता और समानता से संबंधित है। 

 

वोट देते समय यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई व्यक्ति किसी पार्टी, प्रशासन, धर्म, जाति, पंथ, आदि के दबाव या डर से और साथ ही वह भ्रष्ट आचरण आदि के दबाव में तो आकर अपने इच्छा के विपरीत मत नहीं दे रहा है। इस प्रकार, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सरकार के लोकतांत्रिक स्वरूप की नींव हैं।

स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनावी प्रक्रिया हेतु आवश्यक कदम

  • फंडिंग के संबंध में कोई भी गंभीर सुधार चुनाव आयोग से ही आना चाहिए, चुनाव आयोग को सभी हितधारकों का एक सम्मेलन बुलाना चाहिए, जिसमें निश्चित रूप से सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल, केंद्र और राज्य दोनों शामिल हैं।
  • चुनावी प्रक्रिया में खर्च फंडिंग के साधनों की भी गहनता से जांच होना चाहिए। 
  • चुनाव में खड़े सभी प्रत्याशियों की संपूर्ण संपत्ति की जांच होनी चाहिए।
  • जिस प्रकार एक सरकारी नौकरी प्राप्त करने से पहले व्यक्ति के निकटतम थाने में पूरी जानकारी ली जाती है यह देखा जाता है कि इसके खिलाफ कोई एफआईआर तो नहीं दर्ज है एफआईआर होने पर उस व्यक्ति की सरकारी नौकरी निरस्त कर दी जाती है ठीक उसी प्रकार चुनाव में खड़े प्रत्याशियों की भी निकटतम थाने में पूरी जानकारी लेनी चाहिए और आपराधिक रिकॉर्ड होने पर संबंधित प्रत्याशी का चुनाव लडने का अधिकार खत्म कर दिया जाना चाहिए। 
  • चुनाव आयोग को आदर्श आचार संहिता का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिए। 
  • लोकतंत्र का प्रहरी होने के नाते, मीडिया को लोगों को प्रभावित करने वाले वास्तविक मुद्दों को कवर करने वाली घटनाओं की नैतिक रिपोर्टिंग का पालन करना चाहिए और पेड न्यूज और प्रचार की राजनीति में शामिल नहीं होना चाहिए।
  • राजनीति में अपराधियों के प्रवेश से संबंधित चुनाव कानून के प्रावधानों में मौजूद कानूनी खामियों पर संसद को विचार करना चाहिए।  
  • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 के तहत सामान्य अपराधियों और मौजूदा सदस्य अपराधियों के बीच वर्गीकरण को हटा दिया जाना चाहिए।

लोकतंत्र में चुनाव का महत्व

चुनाव दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र – भारत का आधार हैं।  आजादी के बाद से, चुनावों के माध्यम से 15 लोकसभा का गठन किया गया है, पहली बार 1951-52 में हुई थी।   चुनाव की पद्धति सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के माध्यम से है, जिसके तहत 18 वर्ष से अधिक आयु का भारत का प्रत्येक नागरिक संविधान की नजर में एक योग्य मतदाता है। 

 

लोकतंत्र में चुनाव के महत्व को हम निम्नलिखित बिंदुओ द्वारा समझ सकते हैं। 

  • चुनाव नागरिकों को अपने नेता चुनने का एक तरीका प्रदान करते हैं।
  • अन्य पार्टियों को वोट देकर और एक अलग सरकार चुनने में मदद करके, नागरिक प्रदर्शित करते हैं कि उनके पास अंतिम अधिकार है। 
  • यदि कोई नागरिक कुछ विशिष्ट सुधारों को लागू करना चाहता है जो किसी भी दल का एजेंडा नहीं हैं, तो वह स्वतंत्र रूप से या एक नई राजनीतिक पार्टी बनाकर चुनाव लड़ने के लिए स्वतंत्र है।
  • चुनाव एक स्व-सुधारात्मक प्रणाली है, जिसके द्वारा राजनीतिक दल अपने प्रदर्शन की समीक्षा करते हैं और अगले पांच साल बाद जनता के बचे कार्यों को पूरा करने का प्रयास करते है जिससे विकास होता है। 

पंचायती राज व्यवस्था

प्रारंभ में, राजीव गांधी की सरकार के दौरान पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक बनाने के लिए जुलाई 1989 में लोकसभा में 64वां संविधान संशोधन विधेयक राज्यसभा द्वारा पारित नहीं किया जा सका। 

 

देश में पहली बार राजस्थान में पंचायती राज व्यवस्था को लागू किया गया। 

इस योजना का उद्घाटन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 2 अक्टूबर, 1959 को नागौर जिले में किया था।

73वा संवैधानिक संशोधन, 1992

पी.वी. नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्रित्व काल में यही 64वां संविधान संशोधन विधेयक 73वें संविधान संशोधन अधिनियम के रूप में 1992 पारित हुआ और 24 अप्रैल, 1993 को लागू हुआ।

73वें संवैधानिक संशोधन, 1992 की विशेषताएं

  • ग्राम सभा (243ए): पंचायत क्षेत्र के सभी पंजीकृत मतदाताओं से मिलकर एक ग्राम सभा का निर्माण होगा। 
  • त्रिस्तरीय प्रणाली: गांव, मध्यवर्ती और जिला स्तर पर एक त्रिस्तरीय पंचायत प्रणाली होगी। 20 लाख से कम आबादी वाले राज्य मध्यवर्ती स्तर का गठन नहीं कर सकते हैं।
  • सदस्यों और अध्यक्ष का चुनाव (243 के): पंचायती राज के सभी स्तरों के सदस्य प्रत्यक्ष रूप से चुने जाएंगे, मध्यवर्ती तथा जिला स्तर के अध्यक्ष चुने गए सदस्यों में से अप्रत्यक्ष रूप से चुने जाएंगे और ग्राम स्तर पर अध्यक्ष का चुनाव राज्य सरकार द्वारा निर्धारित किया जाएंगे। 
    • पंचायत के सभी स्तरों में चुनाव लडने हेतु महिलाओं को ⅓ का आरक्षण मिला (कुल सीटों में से ⅓ सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित)। 
  • पंचायत की अवधि (243 ई): पंचायत के सभी स्तरों के लिए पांच साल का कार्यकाल होगा। पंचायत को उसका कार्यकाल पूरा होने से पहले भंग किया जा सकता है, लेकिन भंग होने के 6 माह के अंदर पंचायत चुनाव होने चाहिए। 
  • अयोग्यता (243 एफ): एक व्यक्ति पंचायत के सदस्य के रूप में चुने जाने या होने के लिए अयोग्य घोषित किया जाएगा यदि वह संबंधित राज्य के विधानमंडल के चुनाव के उद्देश्य से वर्तमान में लागू किसी भी कानून के तहत और राज्य विधायिका द्वारा बनाए गए किसी भी कानून के तहत अयोग्य घोषित है। 
  • शक्तियां और कार्य (243 जी): आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजनाएँ तैयार करना और ग्यारहवीं अनुसूची में सूचीबद्ध 29 मामले पंचायत के अधिकार में दे दिए गए हैं। 
  • वित्त आयोग (243 आई) : किसी राज्य का राज्यपाल, प्रत्येक पांच वर्ष के बाद, पंचायतों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा करने और उसकी सिफारिशें करने के लिए एक वित्त आयोग का गठन करेगा। 

उपसंहार

भारत का लोकतंत्र और संविधान दुनिया के लिए एक मिसाल है, लेकिन पिछले कुछ दशकों से भारत की चुनावी प्रक्रिया भ्रष्टाचार और अपराध के हत्थे चढ़ गई है, जो भारत के विकास, गरिमा, एकता और अखंडता के लिए खतरा है। 

 

लोकतंत्र की रीढ़ होने के नाते चुनावी प्रक्रिया को बेहद ही निष्पक्ष और स्वतंत्र होना चाहिए जिससे कि योग्य और उचित उम्मीदवार को चुना जाए।  एक अयोग्य प्रत्याशी का चुनाव लोकतंत्र की पीठ पर वार है, क्योंकि इससे लोकतंत्र होते हुए भी अराजकता फैलेगी जो समाज, कानून और देश के लिए बिलकुल भी हितकर नहीं है। 

 

न्यायालय के बाद चुनाव आयोग को सबसे ज्यादा शक्तिशाली बनाया जाना चाहिए जिससे की कार्यपालिका और विधायिका का कोई जोर न रहे और चुनावी प्रक्रिया बिना किसी दबाव और भ्रष्टाचार के स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से हो। चुनाव आयोग को पारदर्शी बनाया जाना चाहिए जिससे भ्रष्टाचार, पैसे और अपराध से रहित चुनाव हो।


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