Usha Summary

 

CBSE Class 12 Hindi Aroh Bhag 2 Book Chapter 5 उषा Summary, Explanation 

 

इस पोस्ट में हम आपके लिए CBSE Class 12 Hindi Aroh Bhag 2 Book के Chapter 5 में शमशेर बहादुर सिंह द्वारा रचित कविता उषा का पाठ सार, व्याख्या और  कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं। यह सारांश और व्याख्या आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे आप जान सकते हैं कि इस कविता का विषय क्या है। इसे पढ़कर आपको मदद मिलेगी ताकि आप इस कविता के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। Shamsher Bahadur Singh Poem Usha Summary, Explanation, Difficult word meanings of CBSE Class 12 Hindi Aroh Bhag-2 Chapter 5.

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उषा कविता का पाठ सार (Summary) 

‘उषा’ कविता कवि ‘शमशेर बहादुर सिंह’ द्वारा लिखित सुंदर कविता है। इस कविता में कवि ने सूर्योदय से ठीक पहले आकाश में होने वाले परिवर्तनों को सुंदर शब्दों में उकेरा है। कवि ने नए बिंब, नए उपमान, नए प्रतीकों का प्रयोग किया है। कवि कहता है कि प्रातः कालीन अर्थात सुबह सूर्योदय से पहले के समय का आकाश बहुत गहरा नीला दिखाई दे रहा है। जो कवि को किसी नीले शंख के समान प्रतीत हो रहा है कहने का आशय यह है कि कवि को सूर्योदय से पहले का आकाश किसी नील शंख के सामान पवित्र व सुंदर दिखाई दे रहा हैं। धीरे-धीरे सुबह का आसमान कवि को ऐसा लगने लगता है जैसे किसी ने राख से चौका लीपा हो अर्थात आसमान धीरे-धीरे गहरे नीले रंग से राख के रंग यानी गहरा स्लेटी होने लगता है। प्रात:काल में ओस की नमी होती है। गीले चौके में भी नमी होती है। अत: नीले नभ को गीला बताया गया है। साथ ही प्रातः कालीन वातावरण की नमी ने सुबह के वातावरण को किसी शंख की भांति और भी सुंदर, निर्मल व पवित्र बना दिया है। धीरे-धीरे जैसे-जैसे सूर्योदय होने लगता है तो हलकी लालिमा आकाश में फैल जाती है। उस दृश्य को देखकर ऐसा लगता है जैसे काली रंग की सिल अर्थात मसाला पीसने के काले पत्थर को लाल केसर से धो दिया गया है। सुबह के समय आकाश ऐसा लगता है मानो किसी बच्चे की काली स्लेट पर किसी ने लाल खड़िया मिट्टी (चिह्न बनाने के काम आने वाली मिट्टी) मल दी हो। सूरज की किरणें सूर्योदय के समय ऐसे प्रतीत हो रही है जैसे किसी युवती की सुंदर गोरी काया अर्थात शरीर साफ़ नीले जल में झिलमिला रहा हो। कुछ समय बाद जब सूर्योदय हो जाता है अर्थात जब सूर्य पूरी तरह से आकाश में निकल आता है तब उषा यानी ब्रह्म वेला का हर पल बदलता सौंदर्य एकदम समाप्त हो जाता है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे प्रात: कालीन आकाश का जादू भी धीरे-धीरे खत्म हो रहा हैं।

 

उषा कविता की व्याख्या (Explanation)

काव्यांश 1 –
प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ
राख से लिपा चौका
(अभी गिला पडा है)

कठिन शब्द –
प्रात – सुबह
भोर – प्रभात
नभ – आकाश
चौका – रसोई बनाने का स्थान

व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियाँ ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘कवि शमशेर बहादुर सिंह’ द्वारा रचित ‘उषा’ कविता से उद्धृत है। इन पंक्तियों में कवि सूर्योदय का मनोहारी वर्णन करते हुए कहता है कि प्रातः कालीन अर्थात सुबह सूर्योदय से पहले के समय का आकाश बहुत गहरा नीला दिखाई दे रहा है। जो कवि को किसी नीले शंख के समान प्रतीत हो रहा है कहने का आशय यह है कि कवि को सूर्योदय से पहले का आकाश किसी नील शंख के सामान पवित्र व सुंदर दिखाई दे रहा हैं।
धीरे-धीरे सुबह का आसमान कवि को ऐसा लगने लगता है जैसे किसी ने राख से चौका लीपा हो अर्थात आसमान धीरे-धीरे गहरे नीले रंग से राख के रंग यानी गहरा स्लेटी होने लगता है। और सुबह वातावरण में नमी होने के कारण कवि को वह गहरे स्लेटी रंग का आकाश ऐसा प्रतीत होता है जैसे राख से किसी ने चौके यानी खाना बनाने की जगह को लीप दिया हो, जिस कारण वो अभी भी गीला है। कहने का अभिप्राय यह है कि प्रात:काल में ओस की नमी होती है। गीले चौके में भी नमी होती है। अत: नीले नभ को गीला बताया गया है। साथ ही प्रातः कालीन वातावरण की नमी ने सुबह के वातावरण को किसी शंख की भांति और भी सुंदर, निर्मल व पवित्र बना दिया है।

काव्यांश 2 –

बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से
कि जैसे धुल गई हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने

कठिन शब्द –
सिल – मसाला पीसने के लिए बनाया गया पत्थर
केसर – विशेष फूल, एक सुगंध देनेवाला पौधा
खड़िया – सफ़ेद रंग की चिकनी मुलायम मिट्टी जो पुताई और लिखने के काम आती है, चिह्न बनाने के काम आने वाली मिट्टी
मल देना – लगा देना

व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियाँ ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘कवि शमशेर बहादुर सिंह’ द्वारा रचित ‘उषा’ कविता से उद्धृत है। इन पंक्तियों में कवि सूर्योदय का मनोहारी वर्णन करते हुए कहता है कि धीरे-धीरे जैसे-जैसे सूर्योदय होने लगता है तो हलकी लालिमा आकाश में फैल जाती है। उस दृश्य को देखकर ऐसा लगता है जैसे काली रंग की सिल अर्थात मसाला पीसने के काले पत्थर को लाल केसर से धो दिया गया है। यहाँ कवि ने काली सिल को अँधेरे के समान तथा सूरज की लालिमा को केसर के समान बताया है। एक और उदाहरण देते हुए कवि कहते हैं कि सुबह के समय आकाश ऐसा लगता है मानो किसी बच्चे की काली स्लेट पर किसी ने लाल खड़िया मिट्टी (चिह्न बनाने के काम आने वाली मिट्टी) मल दी हो। यहाँ कवि ने अँधेरे को काली स्लेट के समान व सुबह की लालिमा को लाल खड़िया मिट्टी के समान बताया है।

काव्यांश 1 –

नील जल में या किसी की
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो।
और …….
जादू टूटता हैं इस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा हैं।

कठिन शब्द –
गौर – गोरी
झिलमिल – मचलती हुई, रह-रह कर घटता-बढ़ता हुआ प्रकाश
देह – शरीर, काया, तन
जादू – आकर्षण, सौंदर्य, हाथ की सफ़ाई
उषा – सुबह होने के कुछ पहले का मंद प्रकाश, भोर, प्रभात, तड़का, ब्रह्म वेला, प्रात:काल
सूर्योदय – सूर्य का उदित होना या निकलना, सूर्य के उगने का समय, प्रातःकाल, सवेरा

व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियाँ ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘कवि शमशेर बहादुर सिंह’ द्वारा रचित ‘उषा’ कविता से उद्धृत है। इन पंक्तियों में कवि सूर्योदय के बाद का वर्णन कर रहे है। कवि कहते है कि सूरज की किरणें सूर्योदय के समय ऐसे प्रतीत हो रही है जैसे किसी युवती की सुंदर गोरी काया अर्थात शरीर साफ़ नीले जल में झिलमिला रहा हो। कहने का अभिप्राय यह है कि धीमी हवा व नमी के कारण सूर्य का प्रतिबिंब नील आकाश में हिलता-सा प्रतीत होता है। यहाँ पर कवि ने नीले आकाश की तुलना नीले जल से और सूरज की किरणों की तुलना युवती की सुंदर गोरी काया अर्थात शरीर से की है। कवि आगे कहते हैं कि कुछ समय बाद जब सूर्योदय हो जाता है अर्थात जब सूर्य पूरी तरह से आकाश में निकल आता है तब उषा यानी ब्रह्म वेला का हर पल बदलता सौंदर्य एकदम समाप्त हो जाता है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे प्रात: कालीन आकाश का जादू भी धीरे-धीरे खत्म हो रहा हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि सूर्योदय से पहले आकाश में जो बदलाव होते हैं वे सूर्योदय होने पर समाप्त हो जाते हैं।

 

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