CBSE Class 12 Hindi Aroh Bhag 2 Book Chapter 2 पतंग Summary, Explanation
इस पोस्ट में हम आपके लिए CBSE Class 12 Hindi Aroh Bhag 2 Book के Chapter 2 में आलोक धन्वा द्वारा रचित कविता पतंग का पाठ सार, व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं। यह सारांश और व्याख्या आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे आप जान सकते हैं कि इस कविता का विषय क्या है। इसे पढ़कर आपको को मदद मिलेगी ताकि आप इस कविता के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। Alok Dhanwa Poem Patang Summary, Explanation, Difficult word meanings of CBSE Class 12 Hindi Aroh Bhag-2 Chapter 2.
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पतंग कविता का सार (पतंग Summary)
कविता पतंग आलोक धन्वा के एकमात्र संग्रह का हिस्सा है। यह एक लंबी कविता है जिसके तीसरे भाग को आपको पाठ्यपुस्तक में शामिल किया गया है। पतंग के बहाने इस कविता में बालसुलभ इच्छाओं एवं उमंगों का सुंदर चित्रण किया गया है। कवि कहते हैं कि सावन के महीने में आने वाली तेज़ बारिशें भी चली गई हैं और भादो का महीना भी बीत गया है। सावन और भादो के महीनों में आसमान में बादल छाये रहते हैं। लेकिन शरद ऋतु के आते ही आसमान एकदम साफ, स्वच्छ व निर्मल हो जाता हैं। शरद ऋतु में सुबह के समय आकाश में छाई हुई लालिमा कवि को खरगोश की आँखों की भांति लाल दिखाई दे रही हैं। शरद ऋतु कई पुलों को पार करते हुए आई है अर्थात पिछले साल की शरद ऋतु के जाने से इस साल की शरद ऋतु के आने तक कई ऋतुएँ बीती हैं, इन्हीं ऋतुओं को कवि ने पुल का नाम दिया है। शरद ऋतु में मौसम एकदम सुहाना हो जाता है जिसे देखकर बच्चों के समूह पतंग उड़ाने के लिए अपने घरों से बाहर निकल आते हैं। कवि शरद ऋतु को बालक की संज्ञा देते हुए कहता है कि बालक शरद अपने चमकीले इशारों से बच्चों के समूह को पतंग उड़ाने के लिए बुलाता है। उसने आकाश को मुलायम बना दिया हैं ताकि बच्चों की पतंग आसमान में आसानी से बहुत ऊंची उड़ सके। शरद ऋतु में आसमान में पतंगों के साथ-साथ बच्चों की अपनी कल्पनाएं भी आसमान में उड़ती हैं। कवि बच्चों की तुलना कपास से करते हुए कहते हैं कि जिस तरह कपास मुलायम, शुद्ध और सफेद होती हैं। ठीक उसी प्रकार बच्चे भी जन्म से ही अपने साथ निर्मलता, कोमलता लेकर आते हैं अर्थात बच्चों का मन व भावनाएं भी स्वच्छ, कोमल और पवित्र होती हैं। जब बच्चे पतंग को आकाश में उड़ता हुआ देखकर उसके पीछे भागते हैं तो उन्हें उस वक्त कठोर जमीन भी नरम ही महसूस होती हैं। पतंग उड़ाते हुए बच्चे इतने उत्साहित होते हैं कि वे चारों दिशाओं ने ऐसे दौड़ते-भागते हैं जैसे कोई ढोल-नगाड़ों पर झूमकर नाचता हो। दौड़ते हुए बच्चे इधर-उधर ऐसे भागते हैं जैसे किसी पेड़ की लचीली डाल हो। बच्चे पतंग के पीछे दौड़ते-भागते ऊँचे छतों के जोखिमभरे किनारों तक पहुंच जाते हैं। दौड़ते हुए बच्चे उन छतों से गिर भी सकते हैं लेकिन पतंग उड़ाते समय उनके रोमांचित शरीर का लचीलापन ही उनको छतों से नीचे गिरने से बचाता हैं। बच्चे अपनी कल्पनाओं व् भावनाओं को पतंग के सहारे ऊंचाइयों तक पहुंचा देते हैं। पतंग उड़ाते हुए कभी – कभी ये बच्चे छतों के भयानक किनारों से नीचे गिर भी जाते हैं और लचीले शरीर के कारण ज्यादा चोट न लगने पर बच भी जाते हैं। इस तरह बच जाने से वे और भी ज्यादा भय-हीन हो जाते हैं अर्थात उनके अंदर आत्मविश्वास और अधिक बढ़ जाता है। उनके अंदर से गिरने का डर बिलकुल खत्म हो जाता हैं और वो अत्यधिक उत्साह, साहस व निडरता के साथ फिर से छत पर आकर पतंग उड़ाने लगते हैं। उनका यह दोगुना जोश देखकर फिर तो ऐसा लगने लगता है कि जैसे दौड़ते-भागते बच्चों के पैरों के चारों ओर पृथ्वी और अधिक तेजी से घूम रही हो।
पतंग कविता की व्याख्या (Patang Explanation)
काव्यांश 1 –
सबसे तेज़ बौछारें गयीं भादों गया
सवेरा हुआ
ख़रगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा
शरद आया पुलों को पार करते हुए
अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज़ चलाते हुए
घंटी बजाते हुए ज़ोर–ज़ोर से
चमकीले इशारों से बुलाते हुए
पतंग उड़ाने वाले बच्चों के झुंड को
कठिन शब्द –
बौछार – झड़ी, हवा के झोंके से तिरछी होकर गिरने वाली बूँदे
भादों – भाद्र मास, सावन के बाद आने वाला महीना
सवेरा – सुबह, प्रातःकाल, प्रभात
शरद – पतझड़
पुल – सेतु
चमकीला – चमकदार
इशारा – संकेत
पतंग – कनकैया
झुंड – भीड़, दल, जमघट
व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि सावन के महीने में आने वाली तेज़ बारिशें भी चली गई हैं और भादो का महीना भी बीत गया है। कवि कहता है कि अंधेरी रात बीत गई है और सुहानी सुबह हो गयी हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि सावन और भादो के महीनों में आसमान में बादल छाये रहते हैं। लेकिन शरद ऋतु के आते ही आसमान एकदम साफ, स्वच्छ व निर्मल हो जाता हैं। इसी कारण कवि सवेरा होने की बात करता है। शरद ऋतु की सुबह का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि शरद ऋतु की सुबह आकाश में जो लालिमा होती है उसको देखकर कवि को प्रतीत हो रहा है जैसे वो खरगोश की लाल–लाल आंखें हों कहने का तात्पर्य यह है कि शरद ऋतु में सुबह के समय आकाश में छाई हुई लालिमा कवि को खरगोश की आँखों की भांति लाल दिखाई दे रही हैं।
कवि कहता है कि शरद ऋतु कई पुलों को पार करते हुए आई है अर्थात पिछले साल की शरद ऋतु के जाने से इस साल की शरद ऋतु के आने तक कई ऋतुएँ बीती हैं, इन्हीं ऋतुओं को कवि ने पुल का नाम दिया है।
कवि कहता है कि ऐसा प्रतीत होता है कि शरद ऋतु में दोपहर का समय किसी चमकीली साइकिल पर सवार होकर तेज़ी से गुज़र रहा हो और ज़ोर–ज़ोर से घंटी बजाते हुए बच्चों को इशारे से पतंग उड़ाने के लिए बुला रहा हो। कहने का तात्पर्य यह है कि शरद ऋतु में मौसम एकदम सुहाना हो जाता है जिसे देखकर बच्चों के समूह पतंग उड़ाने के लिए अपने घरों से बाहर निकल आते हैं।
काव्यांश 2 –
चमकीले इशारों से बुलाते हुए और
आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए
कि पतंग ऊपर उठ सके–
दुनिया की सबसे हलकी और रंगीन चीज़ उड़ सके
दुनिया का सबसे पतला काग़ज़ उड़ सके–
बाँस की सबसे पतली कमानी उड़ सके–
कि शुरू हो सके सीटियों , किलकारियों और
तितलियों की इतनी नाज़ुक दुनिया
कठिन शब्द –
मुलायम – कोमल
कमानी – लचीली एवं झुकाई गई लोहे की कीली, स्प्रिंग
किलकारियाँ – बच्चों का खुशी से चिल्लाना
नाज़ुक – कोमल, सुकुमार, मृदु
व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहता है कि शरद ऋतु में आकाश एकदम साफ, स्वच्छ और मौसम सुहाना हो जाता है और ऐसा निर्मल आकाश कवि को मुलायम प्रतीत होता है। कवि शरद ऋतु को बालक की संज्ञा देते हुए कहता है कि बालक शरद अपने चमकीले इशारों से बच्चों के समूह को पतंग उड़ाने के लिए बुलाता है। उसने आकाश को मुलायम बना दिया हैं ताकि बच्चों की पतंग आसमान में आसानी से बहुत ऊंची उड़ सके। ऐसा लगता है जैसे शरद ऋतु भी खुद यही चाहती हैं कि दुनिया की सबसे हल्की और रंगीन पतंग आसमान में ऊंची उड़ सके, दुनिया के सबसे पतले काग़ज़ और बाँस की सबसे पतली लचीली एवं झुकाई गई लोहे की कीली से बनी पतंग आसमान में ऊंची उड़ सके और पतंग उड़ाते, प्रसन्नता से इधर उधर भागते हुए, खुशियों से चिल्लाते हुए और खुशी से सीटियां बजाते हुए तितलियों की तरह कोमल बच्चों की एक नई दुनिया शुरू हो सके। कहने का तात्पर्य यह है कि शरद ऋतु में आसमान में पतंगों के साथ–साथ बच्चों की अपनी कल्पनाएं भी आसमान में उड़ती हैं।
काव्यांश 3 –
जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास
पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास
जब वे दौड़ते हैं बेसुध
छतों को भी नरम बनाते हुए
दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए
जब वे पेंग भरते हुए चले आते हैं
डाल की तरह लचीले वेग से अक्सर
कठिन शब्द –
कपास – एक प्रसिद्ध पौधा जिसके फल से रूई निकलती है
बेचैन – व्याकुल, बेकल
बेसुध – अचेत, बेहोश
नरम – मुलायम, कोमल, मृदुल
मृदंग – तबला, ढोलक, तम्बूरा
लचीला – मुड़नेवाला
वेग – गति, संवेग, चाल, तेज़ी, रफ़्तार
अक्सर – प्रायः
व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियों में कवि बच्चों की तुलना कपास से करते हुए कहते हैं कि जिस तरह कपास मुलायम, शुद्ध और सफेद होती हैं। ठीक उसी प्रकार बच्चे भी जन्म से ही अपने साथ निर्मलता, कोमलता लेकर आते हैं अर्थात बच्चों का मन व भावनाएं भी स्वच्छ, कोमल और पवित्र होती हैं। कवि कहते हैं कि जब बच्चे व्याकुलता के साथ पतंग के पीछे भागते हैं तो ऐसा लगता हैं जैसे कि पृथ्वी भी घूम–घूमकर उनके आस–पास आ रही है। कवि आगे कहते हैं कि बच्चे जब बेसुध होकर पतंग के पीछे भागते हैं तो उन्हें भागते हुए छत की कठोरता अर्थात कठोर जमीन का एहसास भी नहीं होता हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि जब बच्चे पतंग को आकाश में उड़ता हुआ देखकर उसके पीछे भागते हैं तो उन्हें उस वक्त कठोर जमीन भी नरम ही महसूस होती हैं। पतंग उड़ाते हुए बच्चे इतने उत्साहित होते हैं कि वे चारों दिशाओं ने ऐसे दौड़ते–भागते हैं जैसे कोई ढोल–नगाड़ों पर झूमकर नाचता हो। दौड़ते हुए बच्चे इधर–उधर ऐसे भागते हैं जैसे किसी पेड़ की लचीली डाल हो। क्योंकि जिस तरह पेड़ की डाल लचीली होने के कारण जोर से खींचने पर भी वापिस अपनी जगह पर सही सलामत आ जाती है उसी प्रकार दौड़ते–भागते बच्चों का लचीला शरीर फुर्ती से इधर–उधर भागते हुए भी एक जगह से दूसरी जगह और फिर पुनः अपनी पहली वाली अवस्था में सुरक्षित आ जाता है।
काव्यांश 4 –
छतों के खतरनाक किनारों तक–
उस समय गिरने से बचाता है उन्हें
सिर्फ़ उनके ही रोमांचित शरीर का संगीत
पतंगों की धड़कती ऊचाइयाँ उन्हें थाम लेती हैं महज़ एक धागे के सहारे
पतंगों के साथ–साथ वे भी उड़ रहे हैं
अपने रंध्रों के सहारे
अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से
और बच जाते हैं तब तो
और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं
पृथ्वी और भी तेज घूमती हुई आती है
उनके बेचैन पैरों के पास
कठिन शब्द –
खतरनाक – संकटमय, जोखिमभरा, जोखिम वाला
रोमांचित – जिसे रोमांच हो आया हो, पुलकित
थाम – विराम, रोक, अवरोध, पकड़
महज़ – केवल, निरा, सिर्फ़, मात्र
रंध्र – सूराख, छेद
निडर – भय–हीन
सुनहले – स्वर्णिम, सोने के रंग का, सोने का सा, पीला
व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि बच्चे पतंग के पीछे दौड़ते–भागते ऊँचे छतों के जोखिमभरे किनारों तक पहुंच जाते हैं। दौड़ते हुए बच्चे उन छतों से गिर भी सकते हैं लेकिन पतंग उड़ाते समय उनके रोमांचित शरीर का लचीलापन ही उनको छतों से नीचे गिरने से बचाता हैं। किसी की भी धड़कन बढ़ा देने वाली ऊंचाईयों तक बच्चे पतंगों की डोर अपने हाथों में थाम कर पतंग उड़ाते हैं। और बच्चे सिर्फ एक धागे के सहारे उस पतंग को और अपने आप को संतुलित कर लेते हैं। अर्थात बच्चे अपने आप को भी उसी डोर के सहारे गिरने से बचा लेते हैं। कवि कहते हैं कि पतंग उड़ाते इन बच्चों को देखकर ऐसा लगता है जैसे पतंग के साथ–साथ वो भी खुद भी उड़ रहे हो। कहने का अभिप्राय यह है कि बच्चे अपनी कल्पनाओं व् भावनाओं को पतंग के सहारे ऊंचाइयों तक पहुंचा देते हैं।
आगे कवि कहते हैं कि पतंग उड़ाते हुए कभी – कभी ये बच्चे छतों के भयानक किनारों से नीचे गिर भी जाते हैं और लचीले शरीर के कारण ज्यादा चोट न लगने पर बच भी जाते हैं। इस तरह बच जाने से वे और भी ज्यादा भय–हीन हो जाते हैं अर्थात उनके अंदर आत्मविश्वास और अधिक बढ़ जाता है। उनके अंदर से गिरने का डर बिलकुल खत्म हो जाता हैं और वो अत्यधिक उत्साह, साहस व निडरता के साथ फिर से छत पर आकर पतंग उड़ाने लगते हैं। उनका यह दोगुना जोश देखकर फिर तो ऐसा लगने लगता है कि जैसे दौड़ते–भागते बच्चों के पैरों के चारों ओर पृथ्वी और अधिक तेजी से घूम रही हो।
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