Dharm Ki Aad Class 9 Hindi Chapter 5 Notes, Explanation, Summary and Question Answers

 

Dharm Ki Aad Class 9

 

Dharm ki Aad Class 9 NCERT Hindi Sparsh Chapter 5

धर्म की आड़ Class 9 Hindi Sparsh Lesson 5 summary with a detailed explanation of the lesson ‘Dharm Ki Aad’ along with meanings of difficult words.
 
Given here is the complete explanation of the lesson, along with a summary and all the exercises, Question and Answers given at the back of the lesson

धर्म की आड़ कक्षा 9 स्पर्श भाग 1 पाठ 5 

यहाँ हम हिंदी कक्षा 9 ”स्पर्श – भाग 1” के पाठ 5 “धर्म की आड़” के पाठ प्रवेश, पाठ सार, पाठ व्याख्या, कठिन शब्दों के अर्थ और NCERT पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर इन सभी बारे में जानेंगे |

 

लेखक परिचय

लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी
जन्म – 1880

धर्म की आड़ पाठ प्रवेश

प्रस्तुत पाठ ‘धर्म की आड़’ में लेखक ने उन लोगों के इरादों और कुटिल चालों को बेनकाब किया है, जो धर्म की आड़ लेकर जनसामान्य को आपस में लड़ाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करने की फिराक में रहते हैं। धर्म की आड़ में अपना स्वार्थ सिद्ध करने वाले हमारे ही देश में हों, ऐसा नहीं है। लेखक ने इस पाठ में दूर देशों में भी धर्म की आड़ में कैसे-कैसे कुकर्म हुए हैं, कैसी-कैसी अनीतियाँ हुई हैं, कौन-कौन लोग, वर्ग और समाज उनके शिकार हुए हैं, इसका खुलासा करते चलते हैं।

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धर्म की आड़ पाठ सार Summary

लेखक कहता है कि आज देश में ऐसा समय आ गया है कि हर तरफ केवल धर्म की ही धूम है। अनपढ़ और मन्दबुद्धि लोग धर्म और सच्चाई को जानें, या न जानें, परंतु उनके नाम पर किसी पर भी गुस्सा कर जाते हैं और जान लेने और जान देने के लिए भी तैयार हो जाते हैं।
गलती उन कुछ चलते-पुरज़ों अर्थात पढे़-लिखे लोगों का, जो मूर्ख लोगों की शक्तियों और उत्साह का गलत उपयोग इसलिए कर रहे हैं ताकि उन मूर्खों के बल के आधार पर पढे़-लिखे लोगों का नेतृत्व और बड़प्पन कायम रहे।
इसके लिए धर्म और सच्चाई की बुराइयों से काम लेना उन्हें सबसे आसान लगता है। हमारे देश के साधारण से साधारण आदमी तक के दिल में यह बात अच्छी तरह बैठी हुई है कि धर्म और सच्चाई की रक्षा के लिए प्राण तक दे देना बिलकुल सही है। पाश्चात्य देशों में, धनी लोगों की, गरीब मज़दूरों की झोंपड़ी का मज़ाक उड़ाते ऊँचे-ऊँचे मकान आकाश से बातें करते हैं!
गरीबों की कमाई ही से वे अमीर से अमीर होते जा रहे हैं, और उन ग़रीब मजदूरों के बल से ही वे हमेशा इस बात का प्रयास करते हैं कि गरीब सदा चूसे जाते रहें। ताकि वे हमेशा अमीर बने रहें। गरीबों का धनवान लोगों के द्वारा शोषण किया जाना इतना बुरा नहीं है, जितना बुरा धनवान लोगो का मजदूरों की बुद्धि पर वार करना है।
धर्म और सच्चाई के नाम पर किए जाने वाले इस भीषण व्यापार को रोकने के लिए, साहस और दृढ़ता के साथ, उद्योग होना चाहिए। जब तक ऐसा नहीं होगा, तब तक भारतवर्ष में हमेशा बढ़ते जाने वाले झगडे़ कम नहीं होंगे। चाहे धर्म की कोई भी भावना हो, किसी दशा में भी वह किसी दूसरे व्यक्ति की स्वतंत्रता को छीनने या नष्ट करने का साधन नहीं बननी चाहिए।
आपका मन चाहे जिस तरह चाहे उस तरह का धर्म मानें, और दूसरों का मन चाहे, उस प्रकार का धर्म वह माने। लेखक कहता है कि दो भिन्न धर्मों के मानने वालों के टकरा जाने के लिए इस देश में कोई भी स्थान न हो। देश की स्वतंत्रता के लिए जो उद्योग किया जा रहा था, उसका वह दिन बिना किसी शक के कहा जा सकता है
कि बहुत बुरा था, जिस दिन, स्वतंत्रता के क्षेत्र में पैगंबर या बादशाह का प्रतिनिधि, मुल्ला, मौलवियों और धर्माचारियों को स्थान दिया जाना आवश्यक समझा गया। लेखक कहता है कि एक प्रकार से उस दिन हमने स्वतंत्रता के क्षेत्र में, एक कदम पीछे हटकर रखा था। अपने उसी पाप का फल आज हमें भोगना पड़ रहा है। क्योंकि आज धर्म और ईमान का ही बोल-बाला है।
लेखक कहता है कि महात्मा गांधी धर्म को सर्वत्र स्थान देते हैं। वे एक कदम भी धर्म के बिना चलने के लिए तैयार नहीं। परंतु गाँधी जी की बात पर अम्ल करने के पहले, प्रत्येक आदमी का कर्तव्य यह है कि वह भली-भाँति समझ ले कि महात्माजी के ‘धर्म’ का स्वरूप क्या है? गांधी कहते हैं कि अजाँ देने, शंख बजाने, नाक दाबने और नमाज़ पढ़ने का नाम धर्म नहीं है।
शुद्ध आचरण और अच्छा व्यवहार ही धर्म के स्पष्ट चिह्न हैं। दो घंटे तक बैठकर पूजा कीजिए और पंच-वक्ता नमाज़ भी अदा कीजिए, परन्तु ईश्वर को इस प्रकार रिश्वत के दे चुकने के पश्चात्, यदि आप अपने को दिन-भर बेईमानी करने और दूसरों को तकलीफ पहुँचाने के लिए आज़ाद समझते हैं तो, इस धर्म को, आगे आने वाला समय कदापि नहीं टिकने देगा।
कहने का तात्पर्य यह है कि यदि आपका आचरण दूसरों के लिए सही नहीं है तो आप चाहे कितनी भी पूजा अर्चना नमाज़ आदि पढ़ लें कोई फ़ायदा नहीं होगा। ईश्वर इन नास्तिकों जिनका कोई धर्म नहीं होता ऐसे लोगों को अधिक प्यार करेगा, और वह अपने पवित्र नाम पर अपवित्र काम करने वालों से यही कहना पसंद करेगा। ईश्वर है और हमेशा रहेगा। लेखक सभी से प्रार्थना करता है कि सभी मनुष्य हैं, मनुष्य ही बने रहें पशु न बने।

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धर्म की आड़ पाठ व्याख्या Explanation

पाठ – इस समय, देश में धर्म की धूम है। उत्पात किए जाते हैं, तो धर्म और ईमान के नाम पर, और जिद की जाती है, तो धर्म और ईमान के नाम पर। रमुआ और बुद्धुमियाँ धर्म और ईमान को जानें, या न जानें, परंतु उनके नाम पर उबल पड़ते हैं और जान लेने और जान देने के लिए तैयार हो जाते हैं।
देश के सभी शहरों का यही हाल है। उबल पड़ने वाले साधारण आदमी का इसमें केवल इतना ही दोष है कि वह कुछ भी नहीं समझता-बूझता, और दूसरे लोग उसे जिधर जोत देते हैं, उधर जुत जाता है।
यथार्थ दोष है, कुछ चलते-पुरज़े, पढे़-लिखे लोगों का, जो मूर्ख लोगों की शक्तियों और उत्साह का दुरूपयोग इसलिए कर रहे हैं कि इस प्रकार, जाहिलों के बल के आधार पर उनका नेतृत्व और बड़प्पन कायम रहे। इसके लिए धर्म और ईमान की बुराइयों से काम लेना उन्हें सबसे सुगम मालूम पड़ता है। सुगम है भी।

शब्दार्थ
उत्पात –
खुरापात
ईमान –
सच्चाई
दोष –
गलती
जाहिल –
मूर्ख
सुगम –
आसान

व्याख्या – लेखक कहता है कि आज देश में ऐसा समय आ गया है कि हर तरफ केवल धर्म की ही धूम है। कही पर तो धर्म और सच्चाई के नाम पर खुरापात किए जाते हैं और कही पर तो धर्म और सच्चाई के नाम पर जिद भी की जाती है।
लेखक कहता है कि अनपढ़ और मन्दबुद्धि लोग धर्म और सच्चाई को जानें, या न जानें, परंतु उनके नाम पर किसी पर भी गुस्सा कर जाते हैं और जान लेने और जान देने के लिए भी तैयार हो जाते हैं। लेखक कहता है कि देश के सभी शहरों का यही हाल है। गुस्सा करने वाले साधारण आदमी की इसमें केवल इतनी ही गलती है
कि वह कुछ भी नहीं समझता-बूझता, और दूसरे लोग उसे जैसा भी कहते हैं, वह उनकी बातों पर विश्वास कर लेता है। लेखक कहता है कि इसका अर्थ यह है कि गलती उन कुछ चलते-पुरज़ों अर्थात पढे़-लिखे लोगों का, जो मूर्ख लोगों की शक्तियों और उत्साह का गलत उपयोग इसलिए कर रहे हैं
ताकि उन मूर्खों के बल के आधार पर पढे़-लिखे लोगों का नेतृत्व और बड़प्पन कायम रहे। इसके लिए धर्म और सच्चाई की बुराइयों से काम लेना उन्हें सबसे आसान लगता है। लेखक कहता है कि इस तरह से आसान है भी।

पाठ – साधारण से साधारण आदमी तक के दिल में यह बात अच्छी तरह बैठी हुई है कि धर्म और ईमान की रक्षा के लिए प्राण तक दे देना वाजिब है। बेचारा साधारण आदमी धर्म के तत्त्वों को क्या जाने? लकीर पीटते रहना ही वह अपना धर्म समझता है। उसकी इस अवस्था से चालाक लोग इस समय बहुत बेजा फ़ायदा उठा रहे हैं।
पाश्चात्य देशों में, धनी लोगों की, गरीब मज़दूरों की झोंपड़ी का मज़ाक उड़ाती हुई अट्टालिकाएँ आकाश से बातें करती हैं! गरीबों की कमाई ही से वे मोटे पड़ते हैं, और उसी के बल से, वे सदा इस बात का प्रयत्न करते हैं कि गरीब सदा चूसे जाते रहें। यह भयंकर अवस्था है! इसी के कारण, साम्यवाद, बोल्शेविज़्म आदि का जन्म हुआ।

शब्दार्थ
वाजिब –
सही, उचित
बेजा –
गलत
अट्टालिकाएँ –
ऊँचे-ऊँचे मकान
साम्यवाद –
कार्ल मार्क्स द्वारा प्रतिपादित राजनीतिक सिद्धांत जिसका उद्देश्य विश्व में वर्गहीन समाज की स्थापना करना है
बोल्शेविज़्म –
सोवियत क्रांति के बाद लेनिन के नेतृत्व में स्थापित व्यवस्था

व्याख्या – लेखक कहता है कि धर्म और सच्चाई की बुराइयों से काम लेना इसलिए आसान है क्योंकि हमारे देश के साधारण से साधारण आदमी तक के दिल में यह बात अच्छी तरह बैठी हुई है कि धर्म और सच्चाई की रक्षा के लिए प्राण तक दे देना बिलकुल सही है। बेचारा साधारण आदमी धर्म के तत्त्वों को क्या जाने?
किस्मत के सहारे चलते रहना ही वह अपना धर्म समझता है। साधारण लोगों की इस अवस्था से चालाक लोग इस समय उन साधारण लोगों का बहुत गलत फ़ायदा उठा रहे हैं। लेखक कहता है कि पाश्चात्य देशों में, धनी लोगों की, गरीब मज़दूरों की झोंपड़ी का मज़ाक उड़ाते ऊँचे-ऊँचे मकान आकाश से बातें करते हैं!

गरीबों की कमाई ही से वे अमीर से अमीर होते जा रहे हैं, और उन ग़रीब मजदूरों के बल से ही वे हमेशा इस बात का प्रयास करते हैं कि गरीब सदा चूसे जाते रहें। ताकि वे हमेशा अमीर बने रहें। लेखक कहता है कि यह एक भयंकर अवस्था है। इसी के कारण, साम्यवाद, बोल्शेविज़्म आदि का जन्म हुआ।

पाठ – हमारे देश में, इस समय, धनपतियों का इतना शोर नहीं है। यहाँ, धर्म के नाम पर, कुछ इने-गिने आदमी अपने हीन स्वार्थों की सिद्धि के लिए, करोड़ों आदमियों की शक्ति का दुरुपयोग किया करते हैं। गरीबों का धनाढ्यों द्वारा चूसा जाना इतना बुरा नहीं है, जितना बुरा यह है कि वहाँ है धन की मार, यहाँ है बुद्धि पर मार। वहाँ धन दिखाकर करोड़ों को वश में किया जाता है,
और फिर मन-माना धन पैदा करने के लिए जोत दिया जाता है। यहाँ है बुद्धि पर परदा डालकर पहले ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए लेना, और फिर, धर्म, ईमान, ईश्वर और आत्मा के नाम पर अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए लोगों को लड़ाना-भिड़ाना।
मूर्ख बेचारे धर्म की दुहाइयाँ देते और दीन-दीन चिल्लाते हैं, अपने प्राणों की बाजियाँ खेलते और थोडे़-से अनियंत्रित और धूर्त आदमियों का आसन ऊँचा करते और उनका बल बढ़ाते हैं। धर्म और ईमान के नाम पर किए जाने वाले इस भीषण व्यापार को रोकने के लिए, साहस और दृढ़ता के साथ, उद्योग होना चाहिए। जब तक ऐसा नहीं होगा, तब तक भारतवर्ष में नित्य-प्रति बढ़ते जाने वाले झगडे़ कम न होंगे।

शब्दार्थ
धनाढ्य –
धनवान
स्वार्थ सिद्धि –
अपना स्वार्थ सिद्ध करना
अनियंत्रित –
जो नियंत्राण में न हो, मनमाना
धूर्त –
छली, पाखंड

व्याख्या – लेखक कहता है कि हमारे देश में, इस समय, धनवान लोगों का इतना बोल-बाला नहीं है। हमारे देश में धर्म के नाम पर कुछ गिने-चुने लोग हैं जो अपने गलत इरादों की पूर्ति के लिए, करोड़ों आदमियों की शक्ति का गलत उपयोग किया करते हैं।
लेखक कहता है कि गरीबों का धनवान लोगों के द्वारा शोषण किया जाना इतना बुरा नहीं है, जितना बुरा धनवान लोगो का मजदूरों की बुद्धि पर वार करना है। लेखक कहता है कि वहाँ धन दिखाकर करोड़ों को वश में किया जाता है, और फिर मन-माना धन पैदा करने के लिए उन्हें अपने तरीकों से चला दिया जाता है।

लेखक कहता है कि यहाँ बुद्धि पर परदा डालकर धन दिखाकर पहले ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए लेना, और फिर, धर्म, सच्चाई, ईश्वर और आत्मा के नाम पर अपने गलत इरादों की पूर्ति के लिए लोगों को आपस में लड़ाना-भिड़ाना। लेखक कहता है कि बेचारे मूर्ख अनपढ़ मज़दूर धर्म की दुहाइयाँ देते और दीन-दीन चिल्लाते हैं।
वे अपने प्राणों की बाजियाँ लगा देते हैंऔर थोडे़-से अनियंत्रित और धूर्त आदमियों के इरादों को पूरा करते और उनका बल बढ़ाते हैं। धर्म और सच्चाई के नाम पर किए जाने वाले इस भीषण व्यापार को रोकने के लिए, साहस और दृढ़ता के साथ, उद्योग होना चाहिए। जब तक ऐसा नहीं होगा, तब तक भारतवर्ष में हमेशा बढ़ते जाने वाले झगडे़ कम नहीं होंगे।

पाठ – धर्म की उपासना के मार्ग में कोई भी रुकावट न हो। जिसका मन जिस प्रकार चाहे, उसी प्रकार धर्म की भावना को अपने मन में जगावे। धर्म और ईमान, मन का सौदा हो, ईश्वर और आत्मा के बीच का संबंध हो, आत्मा को शुद्ध करने और ऊँचे उठाने का साधन हो।
वह, किसी दशा में भी, किसी दूसरे व्यक्ति की स्वाधीनता को छीनने या कुचलने का साधन न बने। आपका मन चाहे, उस तरह का धर्म आप मानें, और दूसरों का मन चाहे, उस प्रकार का धर्म वह माने।
दो भिन्न धर्मों के मानने वालों के टकरा जाने के लिए कोई भी स्थान न हो। यदि किसी धर्म के मानने वाले कहीं ज़बरदस्ती टाँग अड़ाते हों, तो उनका इस प्रकार का कार्य देश की स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाए।

शब्दार्थ
स्वाधीनता –
स्वतंत्रता

व्याख्या – लेखक कहता है कि सभी जानते है कि धर्म की उपासना के रास्ते में कोई भी रुकावट नहीं आती। इसका फ़ायदा उठाते हुए लोग जिसका मन जिस प्रकार चाहे, उसी प्रकार धर्म की भावना को अपने मन में जगाते हैं जैसे धर्म और सच्चाई, मन का सौदा हो, ईश्वर और आत्मा के बीच का संबंध हो, आत्मा को शुद्ध करने और ऊँचे उठाने का साधन हो।
लेखक कहता है कि चाहे धर्म की कोई भी भावना हो, किसी दशा में भी वह किसी दूसरे व्यक्ति की स्वतंत्रता को छीनने या नष्ट करने का साधन नहीं बननी चाहिए। व्यक्तिओं को अपने मनोभाव के अनुसार धर्म मानने की स्वतंत्रता होनी चाहिए । लेखक कहता है कि दो भिन्न धर्मों के मानने वालों के टकरा जाने के लिए इस देश में कोई भी स्थान न हो। यदि किसी धर्म के मानने वाले कहीं ज़बरदस्ती टाँग अड़ाते हों, तो उनका इस प्रकार का कार्य देश की स्वतंत्रता के विरुद्ध समझा जाना चाहिए।

पाठ – देश की स्वाधीनता के लिए जो उद्योग किया जा रहा था, उसका वह दिन निःसंदेह, अत्यंत बुरा था, जिस दिन, स्वाधीनता के क्षेत्र में खिलाफत, मुल्ला, मौलवियों और धर्माचारियों को स्थान दिया जाना आवश्यक समझा गया। एक प्रकार से उस दिन हमने स्वाधीनता के क्षेत्र में, एक कदम पीछे हटकर रखा था। अपने उसी पाप का फल आज हमें भोगना पड़ रहा है।
देश को स्वाधीनता के संग्राम ही ने मौलाना अब्दुल बारी और शंकराचार्य को देश के सामने दूसरे रूप में पेश किया, उन्हें अधिक शक्तिशाली बना दिया और हमारे इस काम का फल यह हुआ है कि इस समय, हमारे हाथों ही से बढ़ाई इनकी और इनके से लोगों की शक्तियाँ हमारी जड़ उखाड़ने और देश में मज़हबी पागलपन, प्रपंच और उत्पात का राज्य स्थापित कर रही हैं।

शब्दार्थ
निःसंदेह –
बिना किसी शक के
खिलाफत –
पैगंबर या बादशाह का प्रतिनिधि होना
मज़हबी –
धर्म विशेष से संबंध रखने वाला
प्रपंच –
छल, धोखा

व्याख्या – लेखक कहता है कि देश की स्वतंत्रता के लिए जो उद्योग किया जा रहा था, उसका वह दिन बिना किसी शक के कहा जा सकता है कि बहुत बुरा था, जिस दिन, स्वतंत्रता के क्षेत्र में पैगंबर या बादशाह का प्रतिनिधि, मुल्ला, मौलवियों और धर्माचारियों को स्थान दिया जाना आवश्यक समझा गया।
लेखक कहता है कि एक प्रकार से उस दिन हमने स्वतंत्रता के क्षेत्र में, एक कदम पीछे हटकर रखा था। अपने उसी पाप का फल आज हमें भोगना पड़ रहा है। क्योंकि आज धर्म और ईमान का ही बोल-बाला है।
देश को स्वतंत्रता के संग्राम ही ने मौलाना अब्दुल बारी और शंकराचार्य को देश के सामने दूसरे रूप में पेश किया, उन्हें अधिक शक्तिशाली बना दिया और हमारे इस काम का फल यह हुआ है कि इस समय, हमारे हाथों ही से बढ़ाई इनकी और इनके से लोगों की शक्तियाँ हमारी जड़ उखाड़ने और देश में धर्म विशेष से संबंध रखने वाला पागलपन, धोखा और ख़ुरापात का राज्य स्थापित कर रही हैं।

पाठ – महात्मा गांधी धर्म को सर्वत्र स्थान देते हैं। वे एक पग भी धर्म के बिना चलने के लिए तैयार नहीं। परंतु उनकी बात ले उड़ने के पहले, प्रत्येक आदमी का कर्तव्य यह है कि वह भली-भाँति समझ ले कि महात्माजी के ‘धर्म’का स्वरूप क्या है? धर्म से महात्माजी का मतलब धर्म ऊँचे और उदार तत्त्वों ही का हुआ करता है। उनके मानने में किसे एतराज़ हो सकता है।
अजाँ देने, शंख बजाने, नाक दाबने और नमाज़ पढ़ने का नाम धर्म नहीं है। शुद्धाचरण और सदाचार ही धर्म के स्पष्ट चिह्न हैं। दो घंटे तक बैठकर पूजा कीजिए और पंच-वक्ता नमाज़ भी अदा कीजिए, परन्तु इश्वर को इस प्रकार रिश्वत के दे चुकने के पश्चात्, यदि आप अपने को दिन-भर बेईमानी करने और दूसरों को तकलीफ पहुँचाने के लिए आज़ाद समझते हैं
तो, इस धर्म को, अब आगे आने वाला समय कदापि नहीं टिकने देगा। अब तो, आपका पूजा-पाठ न देखा जाएगा, आपकी भलमनसाहत की कसौटी केवल आपका आचरण होगी। सबके कल्याण की दृष्टि से, आपको अपने आचरण को सुधारना पडे़गा और यदि आप अपने आचरण को नहीं सुधारेंगे तो नमाज़ और रोज़े, पूजा और गायत्री आपको देश के अन्य लोगों की आज़ादी को रौंदने और देश-भर में उत्पातों का कीचड़ उछालने के लिए आज़ाद न छोड़ सकेगी।

शब्दार्थ
पग –
कदम
भलमनसाहत –
सज्जनता, शराफत
कसौटी –
परख, जाँच

व्याख्या – लेखक कहता है कि महात्मा गांधी धर्म को सब से ऊंचा स्थान स्थान देते हैं। वे एक कदम भी धर्म के बिना चलने के लिए तैयार नहीं। परंतु गाँधी जी की बात पर अम्ल करने के पहले, प्रत्येक आदमी का कर्तव्य यह है कि वह भली-भाँति समझ ले कि महात्माजी के धर्म और उसके मायने क्या है? लेखक समझाते हुए कहता है
कि धर्म से महात्माजी का मतलब धर्म ऊँचे और उदार तत्त्वों ही का हुआ करता है। और लेखक कहता है कि उनके मानने में किसे एतराज़ हो सकता है। गांधी कहते हैं कि अजाँ देने, शंख बजाने, नाक दाबने और नमाज़ पढ़ने का नाम धर्म नहीं है (भाव कि धर्म बाहरी पाखंडो याआडंबरो का नाम नहीं)। शुद्ध आचरण और अच्छा व्यवहार ही धर्म के स्पष्ट चिह्न हैं।
दो घंटे तक बैठकर पूजा कीजिए और पंच-वक्ता नमाज़ भी अदा कीजिए, परन्तु ईश्वर को इस प्रकार रिश्वत के दे चुकने के पश्चात्, यदि आप अपने को दिन-भर बेईमानी करने और दूसरों को तकलीफ पहुँचाने के लिए आज़ाद समझते हैं तो, इस धर्म को, आगे आने वाला समय कदापि नहीं टिकने देगा।
अब तो, आपका पूजा-पाठ न देखा जाएगा, आपकी शराफ़त की परख केवल आपका आचरण होगी। लेखक कहता है कि सबके कल्याण की दृष्टि से, आपको अपने आचरण को सुधारना पडे़गा और यदि आप अपने आचरण को नहीं सुधारेंगे तो नमाज़ और रोज़े, पूजा और गायत्री आपको देश के अन्य लोगों की आज़ादी को रौंदने और देश-भर में खुरापातों का कीचड़ उछालने के लिए आज़ाद न छोड़ सकेगी।

पाठ – कहने का तात्पर्य यह है कि यदि आपका आचरण दूसरों के लिए सही नहीं है तो आप चाहे कितनी भी पूजा अर्चना नमाज़ आदि पढ़ लें कोई फ़ायदा नहीं होगा।
ऐसे धार्मिक और दीनदार आदमियों से तो, वे ला-मज़हब और नास्तिक आदमी कहीं अधिक अच्छे और ऊँचे हैं, जिनका आचरण अच्छा है, जो दूसरों के सुख-दुःख का खयाल रखते हैं और जो मूर्खों को किसी स्वार्थ-सिद्धि के लिए उकसाना बहुत बुरा समझते हैं।
ईश्वर इन नास्तिकों और ला-मज़हब लोगों को अधिक प्यार करेगा, और वह अपने पवित्र नाम पर अपवित्र काम करने वालों से यही कहना पसंद करेगा, मुझे मानो या न मानो, तुम्हारे मानने ही से मेरा ईश्वरत्व कायम नहीं रहेगा, दया करके, मनुष्यत्व को मानो, पशु बनना छोड़ो और आदमी बनो!

शब्दार्थ
ला-मज़हब –
जिसका कोई धर्म, मज़हब न हो, नास्तिक

व्याख्या – लेखक कहता है कि ऐसे धार्मिक और दीनदार आदमी जो हर वक्त ईश्वर को तो याद करते हैं परन्तु जिनका आचरण अच्छा नहीं है, उन ऐसे धार्मिक और दीनदार आदमियों वह नास्तिक आदमी कहीं अधिक अच्छे और ऊँचे हैं,
जिनका आचरण अच्छा है, जो दूसरों के सुख-दुःख का खयाल रखते हैं और जो मूर्खों को किसी स्वार्थ-सिद्धि के लिए उकसाना बहुत बुरा समझते हैं।
लेखक कहता है कि ईश्वर इन नास्तिकों जिनका कोई धर्म नहीं होता ऐसे लोगों को अधिक प्यार करेगा, और वह अपने पवित्र नाम पर अपवित्र काम करने वालों से यही कहना पसंद करेगा, कि मुझे मानो या न मानो, तुम्हारे मानने ही से मेरा ईश्वरत्व कायम नहीं रहेगा, दया करके, मनुष्यत्व को मानो, पशु बनना छोड़ो और आदमी बनो! यहाँ लेखक कहना चाहता है कि ईश्वर को मानो या न मानो कोई फ़र्क नहीं पड़ता। ईश्वर है और हमेशा रहेगा। लेखक सभी से प्रार्थना करता है कि सभी मनुष्य हैं, मनुष्य ही बने रहें पशु न बने।

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धर्म की आड़ प्रश्न अभ्यास – Dharam ki Aad Question Answers

धर्म की आड़ NCERT Solutions (महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर )

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 25-30 शब्दों में लिखिए –

प्रश्न 1 – चलते-पुरजे लोग धर्म के नाम पर क्या करते हैं?
उत्तर – चलते-पुरजे लोग धर्म के नाम पर मूर्ख और सीधे लोगों के उत्साह और शक्ति का दुरुपयोग करते हैं। वे ऐसा इसलिए करते हैं ताकि आसानी से अपना बड़प्पन और नेतृत्व कायम रख सकें।

प्रश्न 2 – चालाक लोग साधारण आदमी की किस अवस्था का लाभ उठाते हैं?
उत्तर – साधारण आदमी को धर्म का मतलब लगता है लकीर पीटते रहना। चालाक लोग इसी मनोदशा का लाभ उठाते हैं।

प्रश्न 3 – आनेवाला समय किस प्रकार के धर्म को नहीं टिकने देगा?
उत्तर – आनेवाले समय में लोगों के शुद्ध आचरण को बल मिलेगा। ऐसे लोग जो नमाज या पूजा के बहाने दूसरे की आज़ादी को छीनते हैं और देश भर में उत्पात फैलाते हैं; उन्हें आनेवाला समय टिकने नहीं देगा।

प्रश्न 4 – कौन सा कार्य देश की स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाएगा?
उत्तर – धर्म के नाम पर एक दूसरे को लड़वाना, धर्म के नाम पर दूसरे संप्रदाय के लोगों की आज़ादी छीनना, देश भर में उत्पात मचाना, आदि कार्यों को देश की स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाएगा।

प्रश्न 5 – पाश्चात्य देशों में धनी और निर्धन लोगों में क्या अंतर है?
उत्तर – पाश्चात्य देशों में धनी लोगों के आलीशान महल गरीबों के पसीने की कमाई का नतीजा होते हैं। धनी लोग हमेशा गरीबों का खून चूसते हैं। इसके परिणामस्वरूप अमीरों और गरीबों के बीच लड़ाई का जन्म होता है।

प्रश्न 6 – कौन से लोग धार्मिक लोगों से अधिक अच्छे हैं?
उत्तर – वैसे नास्तिक लोग जो किसी पर अत्याचार नहीं करते, किसी को एक दूसरे के खिलाफ नहीं लड़वाते हैं। ऐसे लोग अक्सर निस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद भी करते हैं।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 50-60 शब्दों में लिखिए –

प्रश्न 1 – धर्म और ईमान के नाम पर किए जाने वाले भीषण व्यापर को कैसे रोका जा सकता है?
उत्तर – धर्म और ईमान के नाम पर किए जाने वाले भीषण व्यापार को रोकने के लिए धर्म की उपासना सही तरीके से करनी होगी। धर्म की उपासना के मार्ग में कोई खलल न हो। हर व्यक्ति को अपने ढ़ंग से धर्म का आचरण करने की आज़ादी हो। धर्म को एक ऐसा ज़रिया बनाना होगा जिससे आप ईश्वर से साक्षात्कार कर सकें, आत्मा को शुद्ध कर सकें और उसे ऊँचा उठा सकें। आप दूसरे किसी को भी उसका धर्मपालन करने से न रोकें।

प्रश्न 2 – ‘बुद्धि की मार’ के संबंध में लेखक के क्या विचार हैं?
उत्तर – जब कोई व्यक्ति साधारण मनुष्य को धर्म की आड़ में लड़वाता है तो यह बुद्धि की मार होती है। इस स्थिति में लोगों की बुद्धि पर परदा डालकर पहले ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए ले लिया जाता है। उसके बाद धर्म, ईमान, ईश्वर और आत्मा के नाम पर लोगों को लड़वाया जाता है ताकि अपनी स्वार्थ सिद्धि हो सके।

प्रश्न 3 – लेखक की दृष्टि में धर्म की भावना कैसी होनी चाहिए?
उत्तर – लेखक के हिसाब से धर्म की उपासना के मार्ग में कोई रुकावट न हो। हर व्यक्ति को अपने हिसाब से धर्म की भावना को जगाने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। धर्म एक साधन हो जिससे मन का सौदा हो, ईश्वर और आत्मा के बीच संबंध स्थापित हो, और जिससे आत्मा शुद्ध हो। कोई भी व्यक्ति दूसरे के धर्म में खलल न डाले। विभिन्न धर्मों के लोगों को आपस में टकराव से बचना चाहिए।

प्रश्न 4 – महात्मा गांधी के धर्म संबंधी विचारों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – महात्मा गांधी धर्म को हर जगह स्थान देते थे। वे बिना धर्म के एक कदम भी चलने को तैयार नहीं होते थे। महात्मा गांधी के लिए धर्म का मतलब ऊँचे और उदार आदर्श हुआ करते थे। वे सभी धर्म को समान भाव से देखते थे।

प्रश्न 5 – सबके कल्याण हेतु अपने आचरण को सुधारना क्यों आवश्यक है?
उत्तर – यदि कोई आदमी सुबह दो घंटे पूजा करता है या दिन में पाँचों वक्त नमाज पढ़ता है, लेकिन उसके बाद पूरे दिन बेईमानी और धूर्तता में लिप्त रहता है तो उसे धार्मिक नहीं कहा जाएगा। यदि आप अपने आचरण को सुधार लें और किसी के साथ गलत ना करें तभी आप धार्मिक कहलाएँगे। समाज में सुख शांति और सबके कल्याण के लिए जरूरी है कि हर व्यक्ति अपना आचरण सुधार ले।

(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए –

प्रश्न 1 – उबल पड़ने वाले साधारण आदमी का इसमें केवल इतना ही दोष है कि वह कुछ भी नहीं समझता-बूझता, और दूसरे लोग जिधर जोत देते हैं, उधर जुत जाता है।
उत्तर – साधारण आदमी को इतना पता होता है कि धर्म और ईमान के लिए जान भी देनी पड़े तो उचित है। उसे धर्म का असली मर्म नहीं पता होता है। इसलिए उसे आसानी से बहकाया जा सकता है और जिधर चाहे हाँका जा सकता है।

प्रश्न 2 – यहाँ है बुद्धि पर परदा डालकर पहले ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए लेना, और फिर धर्म, ईमान, ईश्वर और आत्मा के नाम पर अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए लोगों को लड़ाना भिड़ाना।
उत्तर – लेखक ने धर्म के नाम पर बहकाए जाने को बुद्धि की मार बताया है। धर्म के नाम पर पहले तो लोगों की बुद्धि पर परदा डाल दिया जाता है। उसके बाद चालाक लोग ऐसे लोगों के दिमाग में से ईश्वर और आत्मा को हटाकर अपना स्थान बना लेते हैं। फिर अपना उल्लू सीधा करने के लिए ये धर्म के नाम पर लोगों को आपस में लड़वाते हैं।

प्रश्न 3 – अब तो, आपका पूजा पाठ न देखा जाएगा, आपकी भलमनसाहत की कसौटी केवल आपका आचरण होगी।
उत्तर – लेखक का मानना है कि आने वाले समय में आपकी पूजा पाठ से यह तय नहीं होगा कि आप कितने धार्मिक हैं। बल्कि आपके आचरण से यह तय होगा कि आप कितने धार्मिक हैं। यदि कोई नास्तिक मनुष्य भी इमानदार है और दूसरों को कष्ट नहीं पहुँचाता है तो उसे एक धार्मिक मनुष्य माना जाएगा।

प्रश्न 4 – तुम्हारे मानने ही से मेरा ईश्वरत्व कायम नहीं रहेगा, दया करके, मनुष्यत्व को मानो, पशु बनना छोड़ो, और आदमी बनो।
उत्तर – ईश्वर भी ऐसे लोगों से अपने आप को अलग कर लेगा जो धर्म के नाम पर दूसरों को प्रताड़ित करते हैं, या समाज में उत्पात मचाते हैं। ईश्वर का अस्तित्व किसी की पूजा अर्चना पर नहीं टिका है। इसलिए ईश्वर ऐसे व्यक्ति का ही साथ देगा जो सही मायने में मनुष्य है और दूसरे मनुष्यों का आदर करता है।

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