रहीम के दोहे पाठ सार
CBSE Class 9 Hindi Chapter 7 “रहीम के दोहे”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Sparsh Bhag 1 Book
रहीम के दोहे सार– Here is the CBSE Class 9 Hindi Sparsh Bhag 1 Chapter 7 Rahim ke Dohe Summary with detailed explanation of the lesson ‘Rahim ke Dohe’ along with meanings of difficult words.
यहाँ हम हिंदी कक्षा 9 ”स्पर्श – भाग 1” के काव्य खण्ड पाठ 7 “दोहे” के पाठ प्रवेश, पाठ सार, पाठ व्याख्या, कठिन शब्दों के अर्थ, अतिरिक्त प्रश्न और NCERT पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर इन सभी बारे में जानेंगे –
- दोहे पाठ प्रवेश
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- रहीम के दोहे पाठ सार
- रहीम के दोहे पाठ की व्याख्या
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कक्षा 9 स्पर्श भाग 1 पाठ 7 “रहीम के दोहे”
कवि परिचय
कवि – रहीम
जन्म – 1556
रहीम के दोहे पाठ प्रवेश
प्रस्तुत पाठ में रहीम के नीतिपरक दोहे दिए गए हैं। यहाँ दिया गया हर एक दोहा हमारे जीवन की किसी न किसी स्थिति से जुड़ा हुआ है। ये दोहे जहाँ एक ओर इन्हें पढ़ने वालों को औरों के साथ कैसा बरताव करना चाहिए, कैसा व्यवहार करना चाहिए, इसकी शिक्षा देते हैं, वहीं मानव मात्र को करणीय अर्थात करने योग्य और अकरणीय अर्थात न करने योग्य आचरण या व्यवहार की भी नसीहत यानि सीख देते हैं। इन दोहों को एक बार पढ़ लेने के बाद भूल पाना संभव नहीं है और हमारे जीवन की विभिन्न स्थितियों का सामना होते ही इनका किसी को भी याद आना लाज़िमी है, जिनका इनमें चित्रण है।
Rahim ke Dohe Class 9 Video Explanation
रहीम के दोहे पाठ सार
प्रस्तुत पाठ में रहीम के ग्यारह दोहे दिए गए हैं, जो हमारे जीवन की किसी न किसी परिस्थिति से जुड़े हुए हैं। पहले दोहे में रहीम जी कहते हैं कि प्रेम का बंधन किसी धागे के समान होता है, जिसे कभी भी झटके से नहीं तोड़ना चाहिए क्योंकि जब कोई धागा एक बार टूट जाता है तो फिर उसे जोड़ा नहीं जा सकता। उसी प्रकार किसी से रिश्ता जब एक बार टूट जाता है तो फिर उस रिश्ते को दोबारा पहले की तरह जोड़ा नहीं जा सकता।
दूसरे दोहे में रहीम जी कहते हैं कि अपने मन की पीड़ा या दर्द को दूसरों से छुपा कर ही रखना चाहिए। क्योंकि जब आपका दर्द किसी अन्य व्यक्ति को पता चलता है तो वे लोग उसका मजाक ही उड़ाते हैं। तीसरे दोहे में रहीम जी कहते हैं कि एक बार में केवल एक कार्य ही करना चाहिए। एक ही साथ आप कई लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश करेंगे तो कुछ भी हाथ नहीं आता। यह वैसे ही है जैसे किसी पौधे में फूल और फल तभी आते हैं जब उस पौधे की जड़ में उसे तृप्त कर देने जितना पानी डाला जाता है। चौथे दोहे में रहीम जी कहते हैं कि जब राम को बनवास मिला था तो वे चित्रकूट में रहने गये थे। ऐसी जगह पर वही रहने जाता है जिस पर कोई भारी विपत्ति आती है। पाँचवे दोहे में रहीम जी का कहना है कि उनके दोहों में भले ही कम अक्षर या शब्द हैं, परंतु उनके अर्थ बड़े ही गहरे और बहुत कुछ कह देने में समर्थ हैं। छठे दोहे में रहीम जी कहते हैं कि कीचड़ में पाया जाने वाला वह थोडा सा पानी ही धन्य है क्योंकि उस पानी से न जाने कितने छोटे-छोटे जीवों की प्यास बुझती है। लेकिन वह सागर का जल बहुत अधिक मात्रा में होते हुए भी व्यर्थ होता है क्योंकि उस जल से कोई भी जीव अपनी प्यास नहीं बुझा पता। सातवें दोहे में रहीम जी कहते हैं कि यदि कोई आपको कुछ दे रहा है तो आपका भी फ़र्ज़ बनता है कि आप उसे बदले में कुछ न कुछ दें। आठवें दोहे में रहीम जी कहते हैं कि कोई बात जब एक बार बिग़ड़ जाती है तो लाख कोशिश करने के बावजूद उसे ठीक नहीं किया जा सकता। यह वैसे ही है जैसे जब दूध एक बार फट जाये तो फिर उसको मथने से मक्खन नहीं निकलता। नवें दोहे में रहीम जी कहते हैं कि बड़ी चीज़ के होने पर किसी छोटी चीज़ को कम नहीं समझना चाहिए। क्योंकि जहाँ छोटी चीज की जरूरत होती है वहाँ पर बड़ी चीज बेकार हो जाती है। जैसे जहाँ सुई की जरूरत होती है वहाँ तलवार का कोई काम नहीं होता। दसवें दोहे में रहीम जी कहते हैं कि आपका धन ही आपको आपकी मुसीबतों से निकाल सकता है क्योंकि मुसीबत में कोई किसी का साथ नहीं देता। अंतिम दोहे में रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है। रहीम का कहना है कि जिस तरह आटे का अस्तित्व पानी के बिना नम्र नहीं हो सकता और मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है, उसी तरह मनुष्य को भी अपने व्यवहार में हमेशा पानी (विनम्रता) रखना चाहिए जिसके बिना उसका जीवन जीना व्यर्थ हो जाता है।
रहीम के दोहे पाठ की व्याख्या
दोहा
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय॥
शब्दार्थ
चटकाय – झटके से
परि जाय – पड़ जाती है
व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि प्रेम का बंधन किसी धागे के समान होता है, जिसे कभी भी झटके से नहीं तोड़ना चाहिए बल्कि उसकी हिफ़ाज़त करनी चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है कि प्रेम का बंधन बहुत नाज़ुक होता है, उसे कभी भी बिना किसी मज़बूत कारण के नहीं तोड़ना चाहिए। क्योंकि जब कोई धागा एक बार टूट जाता है तो फिर उसे जोड़ा नहीं जा सकता। टूटे हुए धागे को जोड़ने की कोशिश में उस धागे में गाँठ पड़ जाती है। उसी प्रकार किसी से रिश्ता जब एक बार टूट जाता है तो फिर उस रिश्ते को दोबारा पहले की तरह जोड़ा नहीं जा सकता।
दोहा
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहै कोय॥
शब्दार्थ
निज – अपने
बिथा – दर्द
अठिलैहैं – मज़ाक उड़ाना
बाँटि – बाँटना
कोय – कोई
व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि अपने मन की पीड़ा या दर्द को दूसरों से छुपा कर ही रखना चाहिए। क्योंकि जब आपका दर्द किसी अन्य व्यक्ति को पता चलता है तो वे लोग उसका मज़ाक ही उड़ाते हैं। कोई भी आपके दर्द को बाँट नहीं सकता। अर्थात कोई भी व्यक्ति आपके दर्द को कम नहीं कर सकता।
दोहा
एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय॥
शब्दार्थ
मूलहिं – जड़ में
सींचिबो – सिंचाई करना
अघाय – तृप्त
व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि एक बार में केवल एक कार्य ही करना चाहिए। क्योंकि एक काम के पूरा होने से कई और काम अपने आप पूरे हो जाते हैं। यदि एक ही साथ आप कई लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश करेंगे तो कुछ भी हाथ नहीं आता। क्योंकि आप एक साथ बहुत कार्यों में अपना शत-प्रतिशत नहीं दे सकते। रहीम कहते हैं कि यह वैसे ही है जैसे किसी पौधे में फूल और फल तभी आते हैं जब उस पौधे की जड़ में उसे तृप्त कर देने जितना पानी डाला जाता है। अर्थात जब पौधे में पर्याप्त पानी डाला जाएगा तभी पौधे में फल और फूल आएँगे।
दोहा
चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध-नरेस।
जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस॥
शब्दार्थ –
अवध – रहने लायक न होना
बिपदा – विपत्ति
व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि जब राम को बनवास मिला था तो वे चित्रकूट में रहने गये थे। रहीम यह भी कहते हैं कि चित्रकूट बहुत घना व् अँधेरा वन होने के कारण रहने लायक जगह नहीं थी। परन्तु रहीम कहते हैं कि ऐसी जगह पर वही रहने जाता है जिस पर कोई भारी विपत्ति आती है। कहने का अभिप्राय यह है कि विपत्ति में व्यक्ति कोई भी कठिन-से-कठिन काम कर लेता है।
दोहा
दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।
ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिटि कूदि चढ़ि जाहिं॥
शब्दार्थ
अरथ – अर्थ
आखर- अक्षर, शब्द
थोरे – थोड़े, कम
व्याख्या – रहीम जी का कहना है कि उनके दोहों में भले ही कम अक्षर या शब्द हैं, परंतु उनके अर्थ बड़े ही गहरे और बहुत कुछ कह देने में समर्थ हैं। ठीक उसी प्रकार जैसे कोई नट अपने करतब के दौरान अपने बड़े शरीर को सिमटा कर कुंडली मार लेने के बाद छोटा लगने लगने लगता है। कहने का तात्पर्य यह है कि किसी के आकार को देख कर उसकी प्रतिभा का अंदाज़ा नहीं लगाना चाहिए।
दोहा
धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पियत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय॥
शब्दार्थ –
धनि – धन्य
पंक – कीचड़
लघु – छोटा
उदधि – सागर
पिआसो – प्यासा
व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि कीचड़ में पाया जाने वाला वह थोडा सा पानी ही धन्य है क्योंकि उस पानी से न जाने कितने छोटे-छोटे जीवों की प्यास बुझती है। लेकिन वह सागर का जल बहुत अधिक मात्रा में होते हुए भी व्यर्थ होता है क्योंकि उस जल से कोई भी जीव अपनी प्यास नहीं बुझा पता। कहने का तात्पर्य यह है कि बड़ा होने का कोई अर्थ नहीं रह जाता यदि आप किसी की सहायता न कर सको।
दोहा
नाद रीझि तन देत मृग, नर धन देत समेत।
ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछू न देत॥
शब्दार्थ –
नाद – संगीत की ध्वनि
रीझि – मोहित हो कर, खुश हो कर
व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि जिस प्रकार हिरण किसी के संगीत की ध्वनि से खुश होकर अपना शरीर न्योछावर कर देता है अर्थात अपने शरीर को उसे सौंप देता है। इसी तरह से कुछ लोग दूसरे के प्रेम से खुश होकर अपना धन इत्यादि सब कुछ उन्हें दे देते हैं। लेकिन रहीम कहते हैं कि कुछ लोग पशु से भी बदतर होते हैं जो दूसरों से तो बहुत कुछ ले लेते हैं लेकिन बदले में कुछ भी नहीं देते। कहने का अभिप्राय यह है कि यदि कोई आपको कुछ दे रहा है तो आपका भी फ़र्ज़ बनता है कि आप उसे बदले में कुछ न कुछ दें।
दोहा
बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय॥
शब्दार्थ
बिगरी – बिगड़ी
फाटे दूध – फटा हुआ दूध
मथे – मथना
व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि कोई बात जब एक बार बिग़ड़ जाती है तो लाख कोशिश करने के बावजूद उसे ठीक नहीं किया जा सकता। यह वैसे ही है जैसे जब दूध एक बार फट जाये तो फिर उसको मथने से मक्खन नहीं निकलता। कहने का तात्पर्य यह है कि हमें किसी भी बात को करने से पहले सौ बार सोचना चाहिए क्योंकि एक बार कोई बात बिगड़ जाए तो उसे सुलझाना बहुत मुश्किल हो जाता है।
दोहा
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि॥
शब्दार्थ
बड़ेन – बड़ा
लघु – छोटा
आवे – आना
व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि किसी बड़ी चीज को देखकर किसी छोटी चीज की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए अर्थात बड़ी चीज़ के होने पर किसी छोटी चीज़ को कम नहीं समझना चाहिए। क्योंकि जहाँ छोटी चीज की जरूरत होती है वहाँ पर बड़ी चीज बेकार हो जाती है। जैसे जहाँ सुई की जरूरत होती है वहाँ तलवार का कोई काम नहीं होता। कहने का अभिप्राय यह है कि किसी भी चीज़ को कम नहीं समझना चाहिए क्योंकि हर एक चीज़ का अपनी-अपनी जगह महत्त्व होता है।
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दोहा
रहिमन निज संपति बिन, कौ न बिपति सहाय।
बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सके बचाय॥
शब्दार्थ
निज – अपना
बिपति – विपत्ति
सहाय – सहायता
जलज – कमल
रवि – सूर्य
व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि जब आपके पास धन नहीं होता है तो कोई भी विपत्ति में आपकी सहायता नहीं करता। यह वैसे ही है जैसे यदि तालाब सूख जाता है तो कमल को सूर्य जैसा प्रतापी भी नहीं बचा पाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि आपका धन ही आपको आपकी मुसीबतों से निकाल सकता है क्योंकि मुसीबत में कोई किसी का साथ नहीं देता।
दोहा
रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून॥
शब्दार्थ
बिनु – बगैर, बिना
सून – असंभव
व्याख्या – इस दोहे में रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है। पानी का पहला अर्थ मनुष्य के के लिए लिया गया है जब इसका मतलब विनम्रता से है। रहीम कह रहे हैं कि मनुष्य में हमेशा विनम्र (पानी) होना चाहिए। पानी का दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है जिसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं। पानी का तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे (चून) से जोड़कर दर्शाया गया है। रहीम का कहना है कि जिस तरह आटे का अस्तित्व पानी के बिना नम्र नहीं हो सकता और मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है, उसी तरह मनुष्य को भी अपने व्यवहार में हमेशा पानी (विनम्रता) रखना चाहिए जिसके बिना उसका जीवन जीना व्यर्थ हो जाता है।
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