By Shiksha Sambra
शुक्रतारे के समानपाठ सार
CBSE Class 9 Hindi Chapter 5 “शुक्रतारे के समान”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Sparsh Bhag 1 Book
शुक्रतारे के समान सार– Here is the CBSE Class 9 Hindi Sparsh Bhag 1 Chapter 5 Shukra Tare Ke Saman Summary with detailed explanation of the lesson ‘Shukra Tare Ke Saman’ along with meanings of difficult words.
यहाँ हम हिंदी कक्षा 9 ”स्पर्श – भाग 1” के पाठ 5 “शुक्रतारे के समान” के पाठ प्रवेश, पाठ सार, पाठ व्याख्या, कठिन शब्दों के अर्थ और NCERT पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर इन सभी बारे में जानेंगे |
- शुक्रतारे के समान पाठ प्रवेश
- See Video Explanation of Shukra Tare Ke Saman
- शुक्रतारे के समान पाठ सार
- शुक्रतारे के समान पाठ व्याख्या
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कक्षा 9 स्पर्श भाग 1 पाठ 5 “शुक्रतारे के समान”
लेखक परिचय
लेखक – स्वामी आनंद
जन्म – 1887
शुक्रतारे के समान पाठ प्रवेश
प्रस्तुत पाठ ‘शुक्रतारे के समान’ में लेखक ने गांधीजी के निजी सचिव महादेव भाई देसाई की बेजोड़ प्रतिभा और व्यस्ततम दिनचर्या को उकेरा है। लेखक अपने इस रेखाचित्र के नायक के व्यक्तित्व और उसकी ऊर्जा, उनकी लगन और प्रतिभा से अभिभूत है। लेखक के अनुसार कोई भी महान व्यक्ति, महानतम कार्य तभी कर पाता है, जब उसके साथ ऐसे सहयोगी हों जो उसकी तमाम चिंताओं और उलझनों को अपने सिर ले लें। गांधीजी के लिए महादेव भाई और भाई प्यारेलाल जी ऐसी ही शख्सियत थे।
Shukra Tare Ke Saman Class 9 Video Explanation
शुक्रतारे के समान पाठ सार
लेखक कहता है कि आकाश के तारों में शुक्र का कोई जोड़ नहीं है कहने का तात्पर्य यह है कि शुक्र तारा सबसे अनोखा है। भाई महादेव जी आधुनिक भारत की स्वतंत्रता के उषा काल में अपनी वैसी ही चमक से हमारे आकाश को जगमगाकर, देश और दुनिया को मुग्ध करके, शुक्र तारे की तरह ही अचानक अस्त हो गए अर्थात उनका निधन हो गया। लेखक यह भी कहता है
कि सेवा-धर्म का पालन करने के लिए इस धरती पर जन्मे स्वर्गीय महादेव देसाई गांधीजी के मंत्री थे। गांधीजी के लिए महादेव पुत्र से भी अधिक थे। लेखक कहता है कि सन् 1919 में जलियाँवाला बाग के हत्याकांड के दिनों में पंजाब जाते हुए गांधीजी को पलवल स्टेशन पर गिरफ़तार किया गया था। गांधीजी ने उसी समय महादेव भाई को अपना वारिस कहा था।
लाहौर के मुख्य राष्ट्रीय अंग्रेज़ी दैनिक पत्र ‘ट्रिब्यून’के संपादक श्री कालीनाथ राय को 10 साल की जेल की सज़ा मिली। लेखक कहता है कि गांधीजी के सामने ज़ुल्मों और अत्याचारों की कहानियाँ पेश करने के लिए आने वाले पीड़ितों के दल-के-दल गामदेवी के मणिभवन पर इकट्ठे आते रहते थे। महादेव उनकी बातों को विस्तार से सुनकर छोटे रूप में तैयार करके उनको गांधीजी के सामने पेश करते थे और आने वालों के साथ गांधीजी की आमने-सामने मुलाकातें भी करवाते थे।
लेखक कहता है कि शंकर लाल बैंकर, उम्मर सोबानी और जमनादास द्वारकादास उन दिनों बंबई के तीन नए नेता थे। इनमें अंतिम जमनादास द्वारकादास श्रीमती बेसेंट के अनुयायी थे। ये नेता ‘यंग इंडिया’ नाम का एक अंग्रेज़ी पत्रिका भी निकालते थे। ये पत्रिका सप्ताह में एक बार निकाली जाती थी।
शंकर लाल बैंकर, उम्मर सोबानी और जमनादास द्वारकादास तीनों नेता गांधीजी को बहुत मानते थे और उनके सत्याग्रह-आंदोलन में मुंबई के बेजोड़ नेता भी थे। जो पूरे आंदोलन के दौरान गांधीजी के साथ ही रहे। इन्होंने गांधीजी से विनती की कि वे ‘यंग इंडिया’ के संपादक बन जाएँ। गांधीजी को तो इसकी सख्त ज़रूरत थी ही। उन्होंने विनती तुरंत स्वीकार कर ली।
लेखक कहता है कि गांधीजी का काम इतना बढ़ गया कि साप्ताहिक पत्र भी कम पड़ने लगा। लेखक कहता है कि गांधीजी और महादेव का सारा समय देश घूमने में बीतने लगा। गांधीजी और महादेव जहाँ भी होते, वहाँ से कामों और कार्यक्रमों की भारी भीड़ के बीच भी समय निकालकर लेख लिखते और भेजते थे। लेखक कहता है
कि, भरपूर चैकसाई, ऊँचे-से-ऊँचे ब्रिटिश समाचार-पत्रों की परंपराओं को अपनाकर चलने का गांधीजी का आग्रह और कट्टर से कट्टर विरोधियों के साथ भी पूरी-पूरी सत्यनिष्ठा में से उत्पन्न होने वाली विनय-विवेक-युक्त विवाद करने की गांधीजी की शिक्षा इन सब गुणों ने तीव्र मतभेदों और विरोधी प्रचार के बीच भी देश-विदेश के सारे समाचार-पत्रों की दुनिया में और एंग्लो-इंडियन समाचार-पत्रों के बीच भी व्यक्तिगत रूप से महादेव को सबका लाड़ला बना दिया था।
क्योंकि महादेव ने सभी कामों को बड़े सही ढंग से सम्भाल रखा था।
लेखक कहता है कि भारत में महदेव के अक्षरों का कोई सानी नहीं था, कोई भी महादेव की तरह सुन्दर लिखावट में नहीं लिख सकता था। यहाँ तक कि वाइसराय के नाम जाने वाले गांधीजी के पत्र हमेशा महादेव की लिखावट में जाते थे। उन पत्रों को देख-देखकर दिल्ली और शिमला में बैठे वाइसराय लंबी साँस-उसाँस लेते रहते थे।
भले ही उन दिनों भारत पर ब्रिटिश सल्तनत की पूरी हुक़ूमत थी, लेकिन उस सल्तनत के ‘छोटे’ बादशाह को भी गाँधीजी के सेक्रेटरी यानि महादेव के समान सुन्दर अक्षर लिखने वाला लेखक कहाँ मिलता था? बड़े-बड़े सिविलियन और गवर्नर कहा करते थे कि सारी ब्रिटिश सर्विसों में महादेव के समान अक्षर लिखने वाला कहीं खोजने पर भी मिलता नहीं था। लेखक कहता है कि महादेव का शुद्ध और सुंदर लेखन पढ़ने वाले को मंत्र मुग्ध कर देता था।
लेखक कहता है कि महादेव एक कोने में बैठे-बैठे अपनी लम्बी लिखावट में सारी चर्चा को लिखते रहते थे। मुलाकात के लिए आए हुए लोग अपनी मंज़िल पर जाकर सारी बातचीत को टाइप करके जब उसे गाँधीजी के पास ‘ओके’ करवाने के लिए पहुँचते, तो भले ही उनमें कुछ भूलें या कमियाँ-ख़ामियाँ मिल जाएँ, लेकिन महादेव की डायरी में या नोट-बही में कोई भी गलती नहीं होती थी यहाँ तक कि कॉमा मात्र की भी भूल नहीं मिलती थी।
लेखक कहता है कि गाँधीजी हमेशा मुलाकात के लिए आए हुए लोगों से कहते थे कि उन्हें अपना लेख तैयार करने से पहले महादेव के लिखे ‘नोट’ के साथ थोड़ा मिलान कर लेना था, इतना सुनते ही लोग दाँतों अँगुली दबाकर रह जाते थे। लेखक कहता है कि जिस तरह बिहार और उत्तर प्रदेश के हजारों मील लंबे मैदान गंगा, यमुना और दूसरी नदियों के परम उपकारी, सोने की कीमत वाले कीचड़ के बने हैं।
यदि कोई इन मैदानों के किनारे सौ-सौ कोस भी चल लेगा तो भी रास्ते में सुपारी फोड़ने लायक एक पत्थर भी कहीं नहीं मिलेगा। इसी तरह महादेव के संपर्क में आने वाले किसी भी व्यक्ति को ठेस या ठोकर की बात तो दूर रही, खुरदरी मिट्टी या कंकरी भी कभी नहीं चुभती थी, यह उनके कोमल स्वभाव का ही परिणाम था। लेखक कहता है कि उनका यह स्वच्छ स्वभाव उनके संपर्क में आने वाले व्यक्ति को चन्द्रमा और शुक्र की चमक की तरह मानो दूध से नहला देती थी।
लेखक कहता है कि उनके स्वाभाव में डूबने वाले के मन से उनकी इस मोहिनी का नशा कई-कई दिन तक नहीं उतरता था। महादेव का पूरा जीवन और उनके सारे कामकाज गांधीजी के साथ इस तरह से मिल गए थे कि गांधीजी से अलग करके अकेले उनकी कोई कल्पना ही नहीं की जा सकती थी। लेखक कहता है कि सन् 1934-35 में गांधीजी वर्धा के महिला आश्रम में और मगनवाड़ी में रहने के बाद अचानक मगनवाड़ी से चलकर सेगाँव की सरहद पर लगे एक पेड़ के नीचे जा बैठे।
उसके बाद वहाँ एक-दो झोंपड़े बने और फिर धीरे-धीरे मकान बनकर तैयार हुए, जब तक यह काम हो रहा था तब तक महादेव भाई, दुर्गा बहन और चि. नारायण के साथ मगनवाड़ी में ही रहे। वहीं से वे वर्धा की सहन न की जाने वाली गर्मी में रोज़ सुबह पैदल चलकर सेवाग्राम पहुँचते थे। वहाँ दिनभर काम करके शाम को वापस पैदल आते थे।
लेखक कहता है कि वे लोग हर रोज़ जाते-आते पूरे 11 मील चलते थे। रोज़-रोज़का यह क्रम लंबे समय तक चला। कुल मिलाकर इसका जो प्रतिकूल प्रभाव पड़ा, उनकी बिना समय की मृत्यु के कारणों में वह एक कारण माना जा सकता है। लेखक कहता है कि महादेव की मौत का घाव गांधीजी के दिल में उनके जीते जी बना ही रहा।
वे भर्तृहरि के भजन की यह पंक्ति हमेशा दोहराते रहे: ‘ए रे ज़ख्म जोगे नहि जशे’- यह घाव कभी योग से भरेगा नहीं। बहुत सालों के बाद भी जब गांधीजी को प्यारेलाल जी से कुछ कहना होता, तो उस समय भी अचानक उनके मुँह से ‘महादेव’ ही निकलता।
शुक्रतारे के समान पाठ व्याख्या
पाठ – आकाश के तारों में शुक्र की कोई जोड़ नहीं। शुक्र चंद्र का साथी माना गया है। उसकी आभा-प्रभा का वर्णन करने में संसार के कवि थके नहीं। फिर भी नक्षत्र मंडल में कलगी-रूप इस तेजस्वी तारे को दुनिया या तो ऐन शाम के समय, बडे़ सवेरे घंटे-दो घंटे से अधिक देख नहीं पाती।
इसी तरह भाई महादेव जी आधुनिक भारत की स्वतंत्रता के उषाकाल में अपनी वैसी ही आभा से हमारे आकाश को जगमगाकर, देश और दुनिया को मुग्ध करके, शुक्रतारे की तरह ही अचानक अस्त हो गए।
सेवाधर्म का पालन करने के लिए इस धरती पर जन्मे स्वर्गीय महादेव देसाई गांधीजी के मंत्री थे। मित्रों के बीच विनोद में अपने को गांधीजी का ‘हम्माल’ कहने में और कभी-कभी अपना परिचय उनके ‘पीर-बावर्ची-भिश्ती-खर’ के रूप में देने में वे गौरव का अनुभव किया करते थे।
शब्दार्थ
आभा-प्रभा – चमक
नक्षत्र मंडल – तारा समूह
विनोद – मज़ाक
हम्माल – बोझ उठाने वाला, कुली
पीर – महात्मा, सिद्ध
बावर्ची – खाना पकानेवाला, रसोइया
भिश्ती – मशक से पानी ढोनेवाला व्यक्ति
खर – गधा, घास
व्याख्या – लेखक कहता है कि आकाश के तारों में शुक्र का कोई जोड़ नहीं है कहने का तात्पर्य यह है कि शुक्र तारा सबसे अनोखा है। शुक्र तारे को चन्द्रमा का साथी माना गया है। चन्द्रमा की चमक का वर्णन करने में संसार के कवि थकते नहीं, वे तरह-तरह से उसकी चमक का वर्णन करते रहे हैं।
लेखक महादेव जी की तुलना शुक्र तारे के साथ करते हुए कहते हैं कि वे भी शुक्र तारे की तरह थोड़ी देर के लिए इस संसार रुपी आकाश को अपने सेवा भाव से चमका कर शुक्र तारे की तरह ही अचानक अस्त हो गए अर्थात उनका निधन हो गया।
लेखक यह भी कहता है कि सेवा-धर्म का पालन करने के लिए इस धरती पर जन्मे स्वर्गीय महादेव देसाई गांधीजी के मंत्री थे। मित्रों के बीच मज़ाक में अपने को गांधीजी का कुली कहने में और कभी-कभी अपना परिचय उनके खाना पकाने वाले, मशक से पानी ढोने वाले व्यक्ति अथवा गधे के रूप में देने में भी वे गौरव का अनुभव किया करते थे।
पाठ – गांधीजी के लिए वे पुत्र से भी अधिक थे। जब सन् 1917 में वे गांधीजी के पास पहुँचे थे, तभी गांधीजी ने उनको तत्काल पहचान लिया और उनको अपने उत्तराधिकारी का पद सौंप दिया।
सन् 1919 में जलियाँवाला बाग के हत्याकांड के दिनों में पंजाब जाते हुए गांधीजी को पलवल स्टेशन पर गिरफ़तार किया गया था। गांधीजी ने उसी समय महादेव भाई को अपना वारिस कहा था। सन् 1929 में महादेव भाई आसेतुहिमाचल, देश के चारों कोनों में, समूचे देश के दुलारे बन चुके थे।
इसी बीच पंजाब में फौजी शासन के कारण जो कहर बरसाया गया था, उसका ब्योरा रोज़-रोज़ आने लगा। पंजाब के अधिकतर नेताओं को गिरफ़तार करके फौजी कानून के तहत जन्म-कैद की सज़ाएँ देकर कालापानी भेज दिया गया। लाहौर के मुख्य राष्ट्रीय अंग्रेज़ी दैनिक पत्र ‘ट्रिब्यून’ के संपादक श्री कालीनाथ राय को 10 साल की जेल की सज़ा मिली।
शब्दार्थ –
आसेतुहिमाचल – सेतुबंध रामेश्वर से हिमाचल तक विस्तीर्ण
व्याख्या – लेखक कहता है कि गांधीजी के लिए महादेव पुत्र से भी अधिक थे। जब सन् 1917 में महादेव गांधीजी के पास पहुँचे थे, तभी गांधीजी ने उनको तत्काल पहचान लिया और उनको अपने उत्तराधिकारी का पद सौंप दिया।
लेखक कहता है कि सन् 1919 में जलियाँवाला बाग के हत्याकांड के दिनों में पंजाब जाते हुए गांधीजी को पलवल स्टेशन पर गिरफ़तार किया गया था। गांधीजी ने उसी समय महादेव भाई को अपना वारिस कहा था।
लेखक कहता है कि सन् 1929 में महादेव भाई सेतुबंध रामेश्वर से हिमाचल तक देश के चारों कोनों में, पूरे देश के दुलारे बन चुके थे। सभी उनसे प्यार व् अपनापन रखने लगे थे। लेखक कहता है कि इसी बीच पंजाब में फौजी शासन के कारण जो कहर बरसाया गया था, उसके बारे में ख़बरें रोज़-रोज़ आने लगी थी।
पंजाब के ज्यादातर नेताओं को गिरफ़तार करके फौजी कानून के तहत उम्र-कैद की सज़ाएँ देकर कालापानी भेज दिया गया। लाहौर के मुख्य राष्ट्रीय अंग्रेज़ी दैनिक पत्र ‘ट्रिब्यून’के संपादक श्री कालीनाथ राय को 10 साल की जेल की सज़ा मिली।
पाठ – गांधीजी के सामने ज़ुल्मों और अत्याचारों की कहानियाँ पेश करने के लिए आने वाले पीड़ितों के दल-के-दल गामदेवी के मणिभवन पर उमड़ते रहते थे। महादेव उनकी बातों की संक्षिप्त टिप्पणियाँ तैयार करके उनको गांधीजी के सामने पेश करते थे,
और आने वालों के साथ उनकी रूबरू मुलाकातें भी करवाते थे। गांधीजी बंबई’के मुख्य राष्ट्रीय अंग्रेज़ी दैनिक ‘बाम्बे क्रानिकल’में इन सब विषयों पर लेख लिखा करते थे। क्रानिकल में जगह की तंगी बनी रहती थी।
कुछ ही दिनों में ‘क्रानिकल’के निडर अंग्रेज़ संपादक हार्नीमैन को सरकार ने देश-निकाले की सज़ा देकर इंग्लैंड भेज दिया। उन दिनों बंबई के तीन नए नेता थे। शंकर लाल बैंकर, उम्मर सोबानी और जमनादास द्वारकादास। इनमें अंतिम श्रीमती बेसेंट के अनुयायी थे।
ये नेता ‘यंग इंडिया’नाम का एक अंग्रेज़ी साप्ताहिक भी निकालते थे। लेकिन उसमें ‘क्रानिकल’वाले हार्नीमैन ही मुख्य रूप से लिखते थे। उनको देश निकाला मिलने के बाद इन लोगों को हर हफ़ते साप्ताहिक के लिए लिखने वालों की कमी रहने लगी।
ये तीनों नेता गांधीजी के परम प्रशंसक थे और उनके सत्याग्रह-आंदोलन में बंबई के बेजोड़ नेता भी थे। इन्होंने गांधीजी से विनती की कि वे ‘यंग इंडिया’ के संपादक बन जाएँ। गांधीजी को तो इसकी सख्त ज़रूरत थी ही। उन्होंने विनती तुरंत स्वीकार कर ली।
गांधीजी का काम इतना बढ़ गया कि साप्ताहिक पत्र भी कम पड़ने लगा। गांधीजी ने ‘यंग इंडिया’ को हफ़ते में दो बार प्रकाशित करने का निश्चय किया। हर रोज़ का पत्र-व्यवहार और मुलाकातें, आम सभाएँ आदि कामों के अलावा ‘यंग इंडिया’ साप्ताहिक में छापने के लेख, टिप्पणियाँ, पंजाब के मामलों का सारसंक्षेप और गांधीजी के लेख यह सारी सामग्री हम तीन दिन में तैयार करते।
शब्दार्थ
रूबरू – आमने-सामने
व्याख्या – लेखक कहता है कि गांधीजी के सामने ज़ुल्मों और अत्याचारों की कहानियाँ पेश करने के लिए आने वाले पीड़ितों के दल-के-दल गामदेवी के मणिभवन पर इकट्ठे आते रहते थे। महादेव उनकी बातों को विस्तार से सुनकर छोटे रूप में तैयार करके उनको गांधीजी के सामने पेश करते थे और आने वालों के साथ गांधीजी की आमने-सामने मुलाकातें भी करवाते थे।
लेखक कहता है कि गांधीजी मुंबई के मुख्य राष्ट्रीय अंग्रेज़ी दैनिक ‘बाम्बे क्रानिकल’ में इन सब विषयों पर लेख लिखा करते थे। क्रानिकल में लोग काफी लेख लिखा करते थे जिस कारण उसमे जगह की तंगी बनी रहती थी। लेखक कहता है कि कुछ ही दिनों में ‘क्रानिकल’ के निडर अंग्रेज़ संपादक हार्नीमैन को सरकार ने देश-निकाले की सज़ा देकर इंग्लैंड भेज दिया।
क्योंकि वह सभी के लेखों को निडरता से छापा करता था चाहे कोई लेख अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध ही क्यों न हो। लेखक कहता है कि शंकर लाल बैंकर, उम्मर सोबानी और जमनादास द्वारकादास उन दिनों बंबई के तीन नए नेता थे।
इनमें अंतिम जमनादास द्वारकादास श्रीमती बेसेंट के अनुयायी थे। ये नेता ‘यंग इंडिया’ नाम का एक अंग्रेज़ी पत्रिका भी निकालते थे।
ये पत्रिका सप्ताह में एक बार निकाली जाती थी। लेकिन उसमें ‘क्रानिकल’ वाले हार्नीमैन ही मुख्य रूप से लिखते थे। उनको देश निकाला मिलने के बाद इन लोगों को हर हफ्ते साप्ताहिक के लिए लिखने वालों की कमी रहने लगी।
क्योंकि अब कुछ लोगों के लेखों को छापा ही नहीं जाता था। शंकर लाल बैंकर, उम्मर सोबानी और जमनादास द्वारकादास तीनों नेता गांधीजी को बहुत मानते थे और उनके सत्याग्रह-आंदोलन में मुंबई के बेजोड़ नेता भी थे। जो पुरे आंदोलन के दौरान गांधीजी के साथ ही रहे। इन्होंने गांधीजी से विनती की कि वे ‘यंग इंडिया’ के संपादक बन जाएँ। गांधीजी को तो इसकी सख्त ज़रूरत थी ही।
उन्होंने विनती तुरंत स्वीकार कर ली। लेखक कहता है कि गांधीजी का काम इतना बढ़ गया कि साप्ताहिक पत्र भी कम पड़ने लगा। इसी कारण गांधीजी ने ‘यंग इंडिया’ को हफ्ते में दो बार प्रकाशित करने का निश्चय किया।
हर रोज़ का पत्र-व्यवहार और मुलाकातें, आम सभाएँ आदि कामों के अलावा ‘यंग इंडिया’ साप्ताहिक में छापने के लेख, टिप्पणियाँ, पंजाब के मामलों का सार-संक्षेप और गांधीजी के लेख यह सारी सामग्री तीन दिन में तैयार करते।
पाठ – ‘यंग इंडिया’ के पीछे-पीछे ‘नवजीवन’ भी गांधीजी के पास आया और दोनों साप्ताहिक अहमदाबाद से निकलने लगे। छह महीनों के लिए मैं भी साबरमती आश्रम में रहने पहुँचा। शुरू में ग्राहकों के हिसाब-किताब की और साप्ताहिकों को डाक में डलवाने की व्यवस्था मेरे जिम्मे रही।
लेकिन कुछ ही दिनों के बाद संपादन सहित दोनों साप्ताहिकों की और छापाखाने की सारी व्यवस्था मेरे जिम्मे आ गई। गांधीजी और महादेव का सारा समय देश भ्रमण में बीतने लगा। ये जहाँ भी होते, वहाँ से कामों और कार्यक्रमों की भारी भीड़ के बीच भी समय निकालकर लेख लिखते और भेजते।
सब प्रांतों के उग्र और उदार देशभक्त, क्रांतिकारी और देश-विदेश के धुरंधर लोग, संवाददाता आदि गांधीजी को पत्र लिखते और गांधीजी ‘यंग इंडिया’ के काॅलमों में उनकी चर्चा किया करते। महादेव गांधीजी की यात्राओं के और प्रतिदिन की उनकी गतिविधियों के साप्ताहिक विवरण भेजा करते।
इसके अलावा महादेव, देश-विदेश के अग्रगण्य समाचार-पत्र, जो आँखों में तेल डालकर गांधीजी की प्रतिदिन की गतिविधियों को देखा करते थे और उन पर बराबर टीका-टिप्पणी करते रहते थे, उनको आडे़ हाथों लेने वाले लेख भी समय-समय पर लिखा करते थे।
बेजोड़ काॅलम, भरपूर चैकसाई, ऊँचे-से-ऊँचे ब्रिटिश समाचार-पत्रों की परंपराओं को अपनाकर चलने का गांधीजी का आग्रह और कट्टर से कट्टर विरोधियों के साथ भी पूरी-पूरी सत्यनिष्ठा में से उत्पन्न होने वाली विनय-विवेक-युक्त विवाद करने की गांधीजी की तालीम इन सब गुणों ने तीव्र मतभेदों और विरोधी प्रचार के बीच भी देश-विदेश के सारे समाचार-पत्रों की दुनिया में और एंग्लो-इंडियन समाचार-पत्रों के बीच भी व्यक्तिगत रूप से एम.डी. को सबका लाडला बना दिया था।
शब्दार्थ
तालीम – शिक्षा
व्याख्या – लेखक कहता है कि ‘यंग इंडिया’ की सफलता को देखते हुए ‘नवजीवन’ के संपादक भी गांधीजी के पास आए और दोनों पत्रिकाएँ अहमदाबाद से साप्ताहिक निकलने लगे। लेखक कहता है कि छह महीनों के लिए वह भी साबरमती आश्रम में रहने पहुँचे।
शुरू में ग्राहकों के हिसाब-किताब की और साप्ताहिकों को डाक में डलवाने की व्यवस्था लेखक के जिम्मे रही। लेकिन कुछ ही दिनों के बाद संपादन सहित दोनों साप्ताहिकों की और छापाखाने की सारी व्यवस्था लेखक के जिम्मे आ गई। लेखक कहता है कि गांधीजी और महादेव का सारा समय देश घूमने में बीतने लगा।
गांधीजी और महादेव जहाँ भी होते, वहाँ से कामों और कार्यक्रमों की भारी भीड़ के बीच भी समय निकालकर लेख लिखते और भेजते थे। लेखक कहता है कि सब प्रांतों के उग्र और उदार देशभक्त, क्रांतिकारी और देश-विदेश के उत्तम गुणों से युक्त लोग, संवाददाता आदि गांधीजी को पत्र लिखते और गांधीजी ‘यंग इंडिया’में उनकी चर्चा किया करते थे।
लेखक कहता है कि महादेव गांधीजी की सारी यात्राओं के और प्रतिदिन की उनकी गतिविधियों के साप्ताहिक विवरण भेजा करते। इसके अलावा महादेव, देश-विदेश के मुख्य समाचार-पत्र, जो आँखों में तेल डालकर गांधीजी की प्रतिदिन की गतिविधियों पर नज़र बनाए रखते थे और उन पर बराबर टीका-टिप्पणी करते रहते थे, महादेव उनको आडे़ हाथों लेने वाले लेख भी समय-समय पर लिखा करते थे।
लेखक कहता है कि भरपूर चौकसाई, ऊँचे-से-ऊँचे ब्रिटिश समाचार-पत्रों की परंपराओं को अपनाकर चलने का गांधीजी का आग्रह और कट्टर से कट्टर विरोधियों के साथ भी पूरी-पूरी सत्यनिष्ठा में से उत्पन्न होने वाली विनय-विवेक-युक्त विवाद करने की गांधीजी की शिक्षा इन सब गुणों ने तीव्र मतभेदों और विरोधी प्रचार के बीच भी देश-विदेश के सारे समाचार-पत्रों की दुनिया में और एंग्लो-इंडियन समाचार-पत्रों के बीच भी व्यक्तिगत रूप से महादेव को सबका लाडला बना दिया था। क्योंकि महादेव ने सभी कामों को बड़े सही ढंग से सम्भाल रखा था।
पाठ – गांधीजी के पास आने के पहले अपनी विद्यार्थी अवस्था में महादेव ने सरकार के अनुवाद-विभाग में नौकरी की थी। नरहरि भाई उनके जिगरी दोस्त थे। दोनों एक साथ वकालत पढे़ थे। दोनों ने अहमदाबाद में वकालत भी साथ-साथ ही शुरू की थी।
इस पेशे में आमतौर पर स्याह को सफेद और सफेद को स्याह करना होता है। साहित्य और संस्कार के साथ इसका कोई संबंध नहीं रहता। लेकिन इन दोनों ने तो उसी समय से टैगोर, शरदचंद्र आदि के साहित्य को उलटना-पुलटना शुरू कर दिया था।
‘चित्रांगदा’ कच-देवयानी की कथा पर टैगोर द्वारा रचित ‘विदाई का अभिशाप’ शीर्षक नाटिका, ‘शरद बाबू की कहानियाँ’ आदि अनुवाद उस समय की उनकी साहित्यिक गतिविधियों की देन हैं।
भारत में उनके अक्षरों का कोई सानी नहीं था। वाइसराय के नाम जाने वाले गांधीजी के पत्र हमेशा महादेव की लिखावट में जाते थे। उन पत्रों को देख-देखकर दिल्ली और शिमला में बैठे वाइसराय लंबी साँस-उसाँस लेते रहते थे।
भले ही उन दिनों ब्रिटिश सल्तनत पर कहीं सूरज न डूबता हो, लेकिन उस सल्तनत के ‘छोटे’ बादशाह को भी गांधीजी के सेक्रेटरी के समान खुशनवीश (सुन्दर अक्षर लिखने वाला लेखक) कहाँ मिलता था? बड़े-बड़े सिविलियन और गवर्नर कहा करते थे
कि सारी ब्रिटिश सर्विसों में महादेव के समान अक्षर लिखने वाला कहीं खोजने पर भी मिलता नहीं था। पढ़ने वाले को मंत्रमुग्ध करने वाला शुद्ध और सुंदर लेखन।
शब्दार्थ
जिगरी दोस्त – घनिष्ट मित्र
व्याख्या – लेखक कहता है कि गांधीजी के पास आने के पहले महादेव ने -अपने विद्यार्थी जीवन में सरकार के अनुवाद-विभाग में नौकरी की थी। नरहरि भाई उनके घनिष्ट मित्र थे। दोनों ने एक साथ वकालत की पढ़ाई की थी। दोनों ने अहमदाबाद में वकालत भी साथ-साथ ही शुरू की थी।
लेखक कहता है कि वकालत के पेशे में आमतौर पर काले को सफेद और सफेद को काला करना होता है। कहने का तात्पर्य है कि वकालत ने झूठ को सच और सच को झूठ करना होता है। साहित्य और संस्कार के साथ इसका कोई संबंध नहीं रहता। लेकिन इन दोनों ने तो उसी समय से टैगोर, शरदचंद्र आदि के साहित्य को उलटना-पुलटना शुरू कर दिया था।
‘चित्रांगदा’ कच-देवयानी की कथा पर टैगोर द्वारा रचित ‘विदाई का अभिशाप’ शीर्षक नाटिका, ‘शरद बाबू की कहानियाँ’ आदि अनुवाद उस समय की उनकी साहित्यिक गतिविधियों की देन हैं। लेखक कहता है कि भारत में महादेव के अक्षरों का कोई मुकाबला नहीं कर सकता था, कोई भी महादेव की तरह सुन्दर लिखावट में नहीं लिख सकता था।
यहाँ तक कि वाइसराय के नाम जाने वाले गांधीजी के पत्र हमेशा महादेव की लिखावट में जाते थे। उन पत्रों को देख-देखकर दिल्ली और शिमला में बैठे वाईस रॉय भी ईर्ष्या के शिकार होते थे। भले ही उन दिनों भारत पर ब्रिटिश सल्तनत की पूरी हुकूमत थी,
लेकिन उस सल्तनत के ‘छोटे’ बादशाह को भी गांधीजी के सेक्रेटरी यानि महादेव के समान सुन्दर अक्षर लिखने वाला लेखक कहाँ मिलता था? बड़े-बड़े सिविलियन और गवर्नर कहा करते थे कि सारी ब्रिटिश सर्विसों में महादेव के समान अक्षर लिखने वाला कहीं खोजने पर भी मिलता नहीं था। लेखक कहता है कि महादेव का शुद्ध और सुंदर लेखन पढ़ने वाले को मंत्रमुग्ध कर देता था।
पाठ – महादेव के हाथों के लिखे गए लेख, टिप्पणियाँ, पत्र, गांधीजी के व्याख्यान, प्रार्थना-प्रवचन, मुलाकातें, वार्तालापों पर लिखी गई टिप्पणियाँ, सब कुछ फुलस्केप चैथाई आकारवाली मोटी अभ्यास पुस्तकों में, लंबी लिखावट के साथ, जेट की सी गति से लिखा जाता था। वे ‘शॅार्टहैंड’जानते नहीं थे।
बडे़-बडे़ देशी-विदेशी राजपुरुष, राजनीतिज्ञ, देश-विदेश के अग्रगण्य समाचार-पत्रों के प्रतिनिधि, अंतरष्ट्रीय संगठनों के संचालक, पादरी, ग्रंथकार आदि गांधीजी से मिलने के लिए आते थे। ये लोग खुद या इनके साथी-संगी भी गांधीजी के साथ बातचीत को ‘शाॅर्टहैंड’ में लिखा करते थे।
महादेव एक कोने में बैठे-बैठे अपनी लम्बी लिखावट में सारी चर्चा को लिखते रहते थे। मुलाकात के लिए आए हुए लोग अपनी मुकाम पर जाकर सारी बातचीत को टाइप करके जब उसे गांधीजी के पास ‘ओके’ करवाने के लिए पहुँचते, तो भले ही उनमें कुछ भूलें या कमियाँ-खामियाँ मिल जाएँ, लेकिन महादेव की डायरी में या नोट-बही में मजाल है कि कॉमा मात्र की भी भूल मिल जाए।
शब्दार्थ
व्याख्यान – भाषण
फुलस्केप – कागज़ का एक आकार
चैथाई – चौथा भाग
व्याख्या – लेखक कहता है कि महादेव के हाथों के लिखे गए लेख, टिप्पणियाँ, पत्र, गांधीजी के भाषण, प्रार्थना-प्रवचन, मुलाकातें, वार्तालापों पर लिखी गई टिप्पणियाँ, सब कुछ कागज़ के एक आकार के चौथे भाग के आकार वाली मोटी अभ्यास पुस्तकों में, लंबी लिखावट के साथ, जेट की सी गति से लिखा जाता था। वे ‘शॅार्टहैंड’ नहीं जानते थे।
लेखक कहता है कि बडे़-बडे़ देशी-विदेशी राजपुरुष, राजनीतिज्ञ, देश-विदेश के सबसे आगे रहने वाले समाचार-पत्रों के प्रतिनिधि, अंतरष्ट्रीय संगठनों के संचालक, पादरी, ग्रंथकार आदि गांधीजी से मिलने के लिए आते थे।
ये लोग खुद या इनके साथी-संगी भी गांधीजी के साथ बातचीत को ‘शॅार्टहैंड’ में लिखा करते थे। क्योंकि पूरी की पूरी बातचीत को हु-ब-हु लिखना हर किसी के बस की बात नहीं। लेखक कहता है कि महादेव एक कोने में बैठे-बैठे अपनी लम्बी लिखावट में सारी चर्चा को लिखते रहते थे। महादेव जी का कार्य सम्पूर्ण रूप से निपुण होता था उनके कार्य में भूल का कोई स्थान नहीं होता था।
पाठ – गांधीजी कहते: महादेव के लिखे ‘नोट’ के साथ थोड़ा मिलान कर लेना था न। और लोग दाँतों अँगुली दबाकर रह जाते।
लुई फिशर और गुंथर के समान धुरंधर लेखक अपनी टिप्पणियों का मिलान महादेव की टिप्पणियों के साथ करके उन्हें सुधारे बिना गांधीजी के पास ले जाने में हिचकिचाते थे।
साहित्यिक पुस्तकों की तरह ही महादेव वर्तमान राजनीतिकन प्रवाहों और घटनाओं से संबंधित अद्यतन जानकारी वाली पुस्तके भी पढ़ते रहते थे। हिंदुस्तान से संबंधित देश-विदेश की ताज़ी-से-ताज़ी राजनीतिक गतिविधियों और चर्चाओं की नयी-से-नयी जानकारी उनके पास मिल सकती थी।
सभाओं में, कमेटियों की बैठकों में या दौड़ती रेलगाड़ियों के डिब्बों में ऊपर की बर्थ पर बैठकर, ठूँस-ठूँसकर भरे अपने बडे़-बडे़ झोलों में रखे ताज़े-से-ताज़े समाचार-पत्र, मासिक-पत्र और पुस्तके वे पढ़ते रहते, अथवा ‘यंग इंडिया’ और ‘नवजीवन’ के लिए लेख लिखते रहते।
लगातार चलने वाली यात्राओं, हर स्टेशन पर दर्शनों के लिए इकट्ठा हुई जनता के विशाल समुदायों, सभाओं, मुलाकातों, बैठकों, चर्चाओं और बातचीतों के बीच वे स्वयं कब खाते, कब नहाते, कब सोते या कब अपनी हाज़तें रफ़ा करते, किसी को इसका कोई पता नहीं चल पाता। वे एक घंटे में चार घंटों के काम निपटा देते।
काम में रात और दिन के बीच कोई फर्क शायद ही कभी रहता हो। वे सूत भी बहुत सुंदर कातते थे। अपनी इतनी सारी व्यस्तताओं के बीच भी वे कातना कभी चूकते नहीं थे।
व्याख्या – लेखक कहता है कि गांधीजी हमेशा मुलाकात के लिए आए हुए लोगों से कहते थे कि उन्हें अपना लेख तैयार करने से पहले महादेव के लिखे ‘नोट’ के साथ थोड़ा मिलान कर लेना था, इतना सुनते ही लोग दाँतों अँगुली दबाकर रह जाते थे।
लुई फिशर और गुंथर के समान उत्तम गुणों से युक्त लेखक अपनी टिप्पणियों का मिलान पहले महादेव की टिप्पणियों के साथ करके उन्हें सुधार लेते थे उसके बाद ही गांधीजी के पास ले जाते थे। लेखक कहता है कि साहित्यिक पुस्तकों की तरह ही महादेव वर्तमान राजनीतिकन प्रवाहों और घटनाओं से संबंधित अब तक की जानकारी वाली पुस्तके भी पढ़ते रहते थे।
हिंदुस्तान से संबंधित देश-विदेश की ताज़ी-से-ताज़ी राजनीतिक गतिविधियों और चर्चाओं की नयी-से-नयी जानकारी उनके पास मिल सकती थी। लेखक कहता है कि या तो महादेव सभाओं में, कमेटियों की बैठकों में या दौड़ती रेलगाड़ियों के डिब्बों में ऊपर की बर्थ पर बैठकर, ठूँस-ठूँसकर भरे अपने बडे़-बडे़ झोलों में रखे ताज़े-से-ताज़े समाचार-पत्र, मासिक-पत्र और पुस्तके पढ़ते रहते, अथवा ‘यंग इंडिया’ और ‘नवजीवन’ के लिए लेख लिखते रहते। लगातार चलने वाली यात्राओं, हर स्टेशन पर दर्शनों के लिए इकट्ठा हुई जनता के विशाल समुदायों, सभाओं, मुलाकातों, बैठकों, चर्चाओं और बातचीतों के बीच वे स्वयं कब खाते, कब नहाते, कब सोते या कब अपनी हाज़तें रफ़ा करते, किसी को इसका कोई पता नहीं चल पाता।
लेखक कहता है कि महादेव की एक ख़ास बात यह थी कि वे एक घंटे में चार घंटों के काम निपटा देते थे। काम में रात और दिन के बीच कोई फर्क शायद ही कभी रहता हो। उनकी एक और खासियत यह थी कि वे सूत भी बहुत सुंदर कातते थे। अपनी इतनी सारी व्यस्तताओं के बीच भी वे कातना कभी चूकते नहीं थे। सूत कातने के लिए वे समय निकाल ही लेते थे।
पाठ – बिहार और उत्तर प्रदेश के हजारों मील लंबे मैदान गंगा, यमुना और दूसरी नदियों के परम उपकारी, सोने की कीमत वाले ‘गाद’ के बने हैं। आप सौ-सौ कोस चल लीजिए रास्ते में सुपारी फोड़ने लायक एक पत्थर भी कहीं मिलेगा नहीं।
इसी तरह महादेव के संपर्क में आने वाले किसी को भी ठेस या ठोकर की बात तो दूर रही, खुरदरी मिट्टी या कंकरी भी कभी चुभती नहीं थी। उनकी निर्मल प्रतिभा उनके संपर्क में आने वाले व्यक्ति को चंद्र-शुक्र की प्रभा के साथ दूधों नहला देती थी। उसमें सराबोर होने वाले के मन से उनकी इस मोहिनी का नशा कई-कई दिन तक उतरता न था।
महादेव का समूचा जीवन और उनके सारे कामकाज गांधीजी के साथ एकरूप होकर इस तरह गुँथ गए थे कि गांधीजी से अलग करके अकेले उनकी कोई कल्पना की ही नहीं जा सकती थी।
कामकाज की अनवरत व्यस्तताओं के बीच कोई कल्पना भी न कर सके, इस तरह समय निकालकर लिखी गई दिन-प्रतिदिन की उनकी डायरी की वे अनगिनत अभ्यास पुस्तके, आज भी मौजूद हैं।
शब्दार्थ
गाद – गाढ़ी चीज़, कीचड़
सराबोर – डूबा हुआ
अनवरत – लगातार
अनगिनत – जिसे गिना न जा सके
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Class 9th Hindi Lessons | Class 9th Hindi Mcq | Take Class 9 MCQs |
Class 9th Science Lessons | Class 9th Science Mcq |
व्याख्या – लेखक कहता है कि जिस तरह बिहार और उत्तर प्रदेश के हजारों मील लंबे मैदान गंगा, यमुना और दूसरी नदियों के परम उपकारी, सोने की कीमत वाले कीचड़ के बने हैं। यदि कोई इन मैदानों के किनारे सौ-सौ कोस भी चल लेगा तो भी रास्ते में सुपारी फोड़ने लायक एक पत्थर भी कहीं नहीं मिलेगा।
इसी तरह महादेव के संपर्क में आने वाले किसी भी व्यक्ति को ठेस या ठोकर की बात तो दूर रही, खुरदरी मिट्टी या कंकरी भी कभी नहीं चुभती थी, यह उनके कोमल स्वभाव का ही परिणाम था। लेखक कहता है कि महादेव जी के स्वभाव के कारण उनसे मिलने वाले व्यक्ति उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाते थे।
लेखक कहता है कि उनके स्वाभाव प्रभावित हुए व्यक्ति कई दिनों तक उनके बारे में ही बातें करते रहते थे। महादेव का पूरा जीवन और उनके सारे कामकाज गांधीजी के साथ इस तरह से मिल गए थे कि गांधीजी से अलग करके अकेले उनकी कोई कल्पना ही नहीं की जा सकती थी।
महादेव और गांधीजी इस तरह हो गए थे जैसे सिक्के के दो पहलु। कामकाज की लगातार व्यस्त रहते हुए भी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता, कि वे किस तरह समय निकालकर वे अपनी डायरी लिखते थे। दिन-प्रतिदिन की उनकी डायरी की वे अनगिनत अभ्यास पुस्तके आज भी मौजूद हैं।
पाठ – प्रथम श्रेणी की शिष्ट, संस्कार-संपन्न भाषा और मनोहारी लेखनशैली की ईश्वरीय देन महादेव को मिली थी। यद्यपि गांधीजी के पास पहुँचने के बाद घमासान लड़ाइयों, आंदोलनों और समाचार-पत्रों की चर्चाओं के भीड़-भरे प्रसंगों के बीच केवल साहित्यिक गतिविधियों के लिए उन्हें कभी समय नहीं मिला, फिर भी गांधीजी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ का अंग्रेज़ी अनुवाद उन्होंने किया, जो ‘नवजीवन’ में प्रकाशित होनेवाले मूल गुजराती की तरह हर हफ़ते ‘यंग इंडिया’ में छपता रहा। बाद में पुस्तक के रूप में उसके अनगिनत संस्करण सारी दुनिया के देशों में प्रकाशित हुए और बिके।
व्याख्या – लेखक कहता है कि प्रथम श्रेणी की शिष्ट, संस्कार से संपन्न भाषा और मन को लुभाने वाली लेखनशैली महादेव को ईश्वर की अहम कृपा से मिली थी। यद्यपि गांधीजी के पास पहुँचने के बाद घमासान लड़ाइयों, आंदोलनों और समाचार-पत्रों की चर्चाओं के भीड़-भरे प्रसंगों के बीच केवल साहित्यिक गतिविधियों के लिए उन्हें कभी समय नहीं मिला, फिर भी गांधीजी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ का अंग्रेज़ी अनुवाद उन्होंने किया, जो ‘नवजीवन’ में प्रकाशित होने वाले मूल गुजराती की तरह हर हफ्ते ‘यंग इंडिया’ में छपता रहा। लेखक कहता है कि लेख की तरह छपने के बाद, पुस्तक के रूप में उसके अनगिनत संस्करण सारी दुनिया के देशों में प्रकाशित हुए और बिके।
पाठ – सन् 1934-35 में गांधीजी वर्धा के महिला आश्रम में और मगनवाड़ी में रहने के बाद अचानक मगनवाड़ी से चलकर से गाँव की सरहद पर एक पेड़ के नीचे जा बैठे। उसके बाद वहाँ एक-दो झोंपड़े बने और फिर धीरे-धीरे मकान बनकर तैयार हुए, तब तक महादेव भाई दुर्गा बहन और चि. नारायण के साथ मगनवाड़ी में रहे।
वहीं से वे वर्धा की असह्य गरमी में रोज़ सुबह पैदल चलकर सेवाग्राम पहुँचते थे। वहाँ दिनभर काम करके शाम को वापस पैदल आते थे। जाते-आते पूरे 11 मील चलते थे। रोज़-रोज़का यह सिलसिला लंबे समय तक चला। कुल मिलाकर इसका जो प्रतिकूल प्रभाव पड़ा, उनकी अकाल मृत्यु के कारणों में वह एक कारण माना जा सकता है।
इस मौत का घाव गांधीजी के दिल में उनके जीते जी बना ही रहा। वे भर्तृहरि के भजन की यह पंक्ति हमेशा दोहराते रहे:
‘ए रे जखम जोगे नहि जशे’- यह घाव कभी योग से भरेगा नहीं।
बाद के सालों में प्यारेलाल जी से कुछ कहना होता, और गांधीजी उनको बुलाते तो उस समय भी अनायास उनके मुँह से ‘महादेव’ ही निकलता।
शब्दार्थ
असह्य – सहन न की जाने वाली
सिलसिला – क्रम
अनायास – अचानक
व्याख्या – लेखक कहता है कि सन् 1934-35 में गांधीजी वर्धा के महिला आश्रम में और मगनवाड़ी में रहने के बाद अचानक मगनवाड़ी से चलकर सेगाँव की सरहद पर लगे एक पेड़ के नीचे जा बैठे। उसके बाद वहाँ एक-दो झोंपड़े बने और फिर धीरे-धीरे मकान बनकर तैयार हुए, जब तक यह काम हो रहा था तब तक महादेव भाई, दुर्गा बहन और चि. नारायण के साथ मगनवाड़ी में ही रहे।
वहीं से वे वर्धा की सहन न की जाने वाली गर्मी में रोज़ सुबह पैदल चलकर सेवाग्राम पहुँचते थे। वहाँ दिनभर काम करके शाम को वापस पैदल आते थे। लेखक कहता है कि वे लोग हर रोज जाते-आते पूरे 11 मील चलते थे। रोज़-रोज़का यह क्रम लंबे समय तक चला।
कुल मिलाकर इसका जो प्रतिकूल प्रभाव पड़ा, उनकी बिना समय की मृत्यु के कारणों में वह एक कारण माना जा सकता है। लेखक कहता है कि महादेव की मौत का घाव गांधीजी के दिल में उनके जीते जी बना ही रहा। वे भर्तृहरि के भजन की यह पंक्ति हमेशा दोहराते रहे: ‘ए रे जखम जोगे नहि जशे’- यह घाव कभी योग से भरेगा नहीं।
बहुत सालों के बाद भी जब गांधीजी को प्यारेलाल जी से कुछ कहना होता, और गांधीजी उनको बुलाते तो उस समय भी अचानक उनके मुँह से ‘महादेव’ ही निकलता।
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