Hamid Khan Class 9 Hindi Lesson Explanation, Summary, Question Answers

 
Hamid Khan
 

CBSE Class 9 Hindi Sanchayan Book Lesson 5 ‘हामिद खाँ’ Explanation, Summary, Question and Answers and Difficult word meaning

‘हामिद खाँ’ CBSE Class 9 Hindi Sanchayan Book Lesson 5 summary with detailed explanation of the Lesson along with the meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the Lesson ‘Hamid Khan’ along with a summary and all the exercises, Question and Answers given at the back of the lesson.

यहाँ हम हिंदी कक्षा 9 ”संचयन – भाग 1” के पाठ 5 “हामिद खाँ” के पाठ प्रवेश, पाठ सार, पाठ व्याख्या, कठिन शब्दों के अर्थ, अतिरिक्त प्रश्न और NCERT पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर इन सभी बारे में जानेंगे|

कक्षा 9 संचयन भाग 1 पाठ 5 “हामिद खाँ”

 

लेखक परिचय

लेखक – एस. के. पोट्टेकाट
जन्म – 1913

 

हामिद खाँ पाठ प्रवेश

इस पाठ में लेखक को जब (पाकिस्तान) तक्षशिला में किन्हीं शरारती तत्वों के द्वारा आग लगाए जाने का समाचार मिलता है तो लेखक वहाँ के अपने एक मित्र और उसकी दूकान की चिंता होने लगती है क्योंकि उस मित्र की दूकान तक्षशिला के काफी नजदीक थी। इस पाठ में लेखक अपने उस अनुभव को हम सभी के साथ साँझा कर रहा है जब वह (पाकिस्तान) तक्षशिला के खण्डरों को देखने गया था और भूख और कड़कड़ाती धुप से बचने के लिए कोई होटल खोज रहा था। होटल को खोजते हुए लेखक जब हामिद खाँ नाम के व्यक्ति की दूकान में कुछ खाने के लिए रुकता है तो जो भी वहाँ घटा लेखक ने उसे एक लेख के रूप में हमारे सामने प्रस्तुत किया है।
 
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Hamid Khan Class 9 Video Explanation

 
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हामिद खाँ पाठ सार

लेखक यहाँ अपने एक अनुभव को बताता हुआ कहता है कि जब लेखक ने तक्षशिला जो की पाकिस्तान में है वहाँ पर शरारती लोगों द्वारा आग लगाने के बारे में समाचार पत्र में खबर पढ़ी तो खबर पढ़ते ही लेखक को हामिद खाँ याद आया। लेखक ने भगवान से प्रार्थना की कि हे भगवान! उसके हामिद खाँ की दुकान को इस शरारती लोगों द्वारा लगाई गई आग से बचा लेना। अब लेखक अपने और हामिद खाँ के रिश्ते के बारे में बताता हुआ कहता है कि एक ओर कड़कड़ाती धूप थी और दूसरी ओर भूख और प्यास के मारे लेखक का बुरा हाल हो रहा था। परेशान हो कर लेखक रेलवे स्टेशन से करीब पौन मील की दूरी पर बसे एक गाँव की ओर निकल पड़ा। जब वह उस गाँव में होटल ढूंढ रहा था तब अचानक एक दुकान लेखक को नजर आई जहाँ चपातियाँ पकाई जा रही थीं। चपातियों की सोंधी महक से लेखक के पाँव अपने आप उस दुकान की ओर मुड़ गए। दूकान में लेखक ने देखा कि एक ढलती उम्र का पठान अँगीठी के पास सिर झुकाए चपातियाँ बना रहा था। लेखक ने जैसे ही दुकान में प्रवेश किया, वह अपनी हथेली पर रखे आटे को बेलना छोड़कर लेखक की ओर घूर-घूरकर देखने लगा। उसे घूरता हुआ देख कर भी लेखक उसकी तरफ देखकर मुसकरा दिया। लेखक बताता है कि लेखक के उसकी ओर मुस्कुराने के बाद भी उसके चेहरे के हाव-भाव में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। लेखक ने बहुत ही धीमी आवाज में उस चपाती बनाने वाले पठान से पूछा कि खाने को कुछ मिलेगा? उस पठान ने लेखक से कहा कि चपाती और गोश्त या सब्जी का मसालेदार शोरबा है, ये कह के उस पठान ने लेखक को एक बेंच की तरफ इशारा करते हुए कहा कि वहाँ बैठ जाइए। उस दूकान के एक कोने में एक खाट पड़ी हुई थी जिस पर एक दाढ़ी वाला बुड्ढा गंदे तकिए पर कोहनी टेके हुए हुक्का पी रहा था। जब वह दूकान में बैठा हुआ अपने खाने का इंतज़ार कर रहा था तब चपाती को अंगारों पर रखते हुए उस अधेड़ उम्र के पठान ने लेखक से पूछा कि लेखक कहाँ का रहने वाला है? लेखक ने उसे जवाब दिया कि लेखक मालाबार का रहने वाला है। उस पठान ने मालाबार नाम नहीं सुना था। आटे को हाथ में लेकर गोलाकार बनाते हुए पठान ने फिर लेखक से मालाबार के बारे में पूछा कि क्या यह हिंदुस्तान में ही है ? लेखक ने हाँ में उत्तर देते हुए कहा कि यह भारत के दक्षिणी छोर-मद्रास के आगे है। पठान ने फिर लेखक से पूछा कि क्या लेखक हिंदू हैं? लेखक ने फिर हाँ में उत्तर दिया और कहा कि उसका जन्म एक हिंदू घर में हुआ है। लेखक से यह सुनने पर कि वह एक हिन्दू है उस पठान ने एक फीकी मुसकराहट के साथ फिर पूछा कि क्या लेखक एक हिन्दू होते हुए मुसलमानी होटल में खाना खाएगा? इस पर लेखक ने कहा कि क्यों नहीं? लेखक वहाँ खाना जरूर खाएगा और लेखक ने उस पठान से कहा कि जहाँ लेखक रहता है वहाँ तो अगर किसी को बढ़िया चाय पीनी हो, या बढ़िया पुलाव खाना हो तो वे लोग बिना किसी हिचकिचाहट के मुसलमानी होटल में जाया करते हैं। पठान लेखक की इस बात पर विश्वास नहीं कर पाया था। लेखक कहता है कि लेखक ने उसे बड़े गर्व के साथ बताया था कि लेखक के शहर में हिंदू-मुसलमान में कोई फर्क नहीं है। सब मिल-जुलकर रहते हैं। लेखक ने पठान को यह भी बताया था कि भारत में मुसलमानों ने जिस पहली मस्जिद का निर्माण किया था, वह लेखक के ही राज्य के एक स्थान ‘कोडुंगल्लूर’ में है। लेखक ने पठान से बात करते हुए उसका शुभ नाम पूछा। उस पठान ने अपना नाम हामिद खाँ बताया और यह भी बताया कि वो जो चारपाई पर बैठे हैं, वो उसके पिता हैं। पठान ने लेखक को दस मिनट तक इंतजार करने के लिए कहा क्योंकि गोश्त या सब्जी का मसालेदार शोरमा अभी पक रहा था। लेखक भी इंतजार करने लगा। लेखक कहता है कि हामिद खाँ ने जोर से किसी अब्दुल को आवाज लगाई। उसके आवाज लगते ही एक छोकरा दौड़ता हुआ आया जो आँगन में चटाई बिछाकर लाल मिर्च सुखा रहा था। हामिद ने उनकी किसी प्राचीन भाषा में उसे कुछ आदेश दिया। वह दुकान के पिछवाड़े की तरफ भागा। उसने एक थाली में चावल लाकर लेखक के सामने रख दिया, हामिद खाँ ने तीन-चार चपातियाँ उसमें रख दीं, फिर लोहे की प्लेट में गोश्त या सब्जी का शोरमा परोसा। छोकरा साफ पानी से भरा एक कटोरा मेज पर रखकर चला गया। लेखक ने बड़े शौक से भरपेट खाना खाया। खाना खाने के बाद जेब में हाथ डालते हुए लेखक ने हामिद खाँ से पूछा कि भोजन के कितने पैसे हुए? हामिद खाँ ने मुसकराते हुए लेखक का हाथ पकड़ लिया और बोला कि लेखक उसे माफ कर दें क्योंकि वह भोजन के पैसा नहीं लेगा क्योंकि लेखक हामिद खाँ का मेहमान हैं। हामिद खाँ की इस बात को सुन कर लेखक ने बड़े प्यार से हामिद खाँ से कहा कि मेहमाननवाजी की बात अलग है। एक दुकानदार के नाते हामिद खाँ को खाने के पैसे लेने पड़ेंगे। लेखक ने हामिद खाँ को लेखक की मुहब्बत की कसम भी दी। लेखक ने एक रुपये के नोट को हामिद खाँ की ओर बढ़ाया। वह उन पैसों को लेने में हिचकिचा रहा था। उसने वह रूपया लेखक से लेकर फिर से लेखक के ही हाथ में रख दिया। रूपए को लेखक के हाथों में रखते हुए हामिद खाँ ने लेखक से कहा कि उस ने लेखक से खाने के पैसे ले लिए हैं, मगर वह चाहता है कि यह एक रूपया लेखक के ही हाथों में रहे और जब लेखक अपने देश वापिस पहुँचें तो किसी मुसलमानी होटल में जाकर इस पैसे से पुलाव खाएँ और तक्षशिला के भाई हामिद खाँ को याद करें। लेखक कहता है कि हामिद की दूकान से लौटकर लेखक तक्षशिला के खंडहरों की तरफ चला आया। उसके बाद लेखक ने फिर कभी हामिद खाँ को नहीं देखा। पर हामिद खाँ की वह आवाज, उसके साथ बिताए क्षणों की यादें आज भी लेखक के मन में बिलकुल ताजा हैं। उसकी वह मुसकान आज भी लेखक के दिल में बसी है। आज वर्तमान में जब लेखक ने तक्षशिला के सांप्रदायिक दंगों की चिंगारियों की आग के बारे में सुना तो लेखक भगवान् से यही प्रार्थना कर रहा है कि हामिद और उसकी वह दुकान जिसने लेखक को उस कड़कड़ाती दोपहर में छाया और खाना देकर लेखक की भूख को संतोष प्रदान किया था, बाह सही-सलामत बची रहे।
 
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हामिद खाँ पाठ व्याख्या

पाठ – ‘तक्षशिला (पाकिस्तान) में आगजनी’-समाचार पत्र की यह खबर पढ़ते ही मुझे हामिद खाँ याद आया। मैंने भगवान से विनती की, “हे भगवान! मेरे हामिद खाँ की दुकान को इस आगजनी से बचा लेना।”
अभी दो साल ही तो बीते हैं जब मैं तक्षशिला के पौराणिक खंडहर देखने गया था। एक ओर कड़कड़ाती धूप, दूसरी ओर भूख और प्यास के मारे बुरा हाल हो रहा था। रेलवे स्टेशन से करीब पौन मील की दूरी पर बसे एक गाँव की ओर निकल पड़ा।

शब्दार्थ
आगजनी – उपद्रवियों द्वारा लगाई गई आग
विनती – प्रार्थना
पौराणिक – जिसका उल्लेख पुराणों में हुआ हो

व्याख्या – लेखक यहाँ अपने एक अनुभव को बताता हुआ कहता है कि जब लेखक ने तक्षशिला जो की पाकिस्तान में है वहाँ पर उपद्रवियों यानी शरारती लोगों द्वारा आग लगाने के बारे में समाचार पत्र में खबर पढ़ी तो खबर पढ़ते ही लेखक को हामिद खाँ याद आया। लेखक ने भगवान से प्रार्थना की कि हे भगवान! उसके हामिद खाँ की दुकान को इस शरारती लोगों द्वारा लगाई गई आग से बचा लेना। अब लेखक अपने और हामिद खाँ के रिश्ते के बारे में बताता हुआ कहता है कि अभी दो साल ही तो बीते हैं जब लेखक तक्षशिला के उन खंडहरों को देखने गया था जिनका उल्लेख पुराणों में किया गया है। लेखक बताता है कि एक ओर कड़कड़ाती धूप थी और दूसरी ओर भूख और प्यास के मारे लेखक का बुरा हाल हो रहा था। परेशान हो कर लेखक रेलवे स्टेशन से करीब पौन मील की दूरी पर बसे एक गाँव की ओर निकल पड़ा।

पाठ –  हस्तरेखाओं के समान फैली गलियों से भरा तंग बाजार। जहाँ कहीं नज़र पड़ी धुआँ, मच्छर और गंदगी से भरी जगहें ही दिखीं। कहीं-कहीं तो सड़े हुए चमड़े की बदबू ने स्वागत किया। लंबे कद के पठान अपनी सहज अलमस्त चाल में चलते नज़र आ रहे थे।
चारों तरफ चक्कर लगा लिया, पर अभी तक कोई होटल नज़र नहीं आया। मन में विचार आया, इस गाँव में होटल की जरूरत ही क्या होगी?

शब्दार्थ 
हस्तरेखा – हाथ की रेखाएँ
अलमस्त – मस्त

व्याख्या – लेखक बताता है कि जैसे-जैसे लेखक गाँव में बढ़ता जा रहा था लेखक ने देखा की गाँव में हाथ की रेखाओं की तरह फैली गलियों से भरा तंग बाजार था। जहाँ कहीं भी लेखक की नज़र पड़ रही थी हर तरफ धुआँ, मच्छर और गंदगी से भरी जगहें ही दिख रही थी। कहीं-कहीं तो लेखक का स्वागत सड़े हुए चमड़े की बदबू ने किया। लेखक को वहाँ लंबे कद के पठान उनकी हमेशा की तरह मस्त चाल में चलते नज़र आ रहे थे। लेखक ने उस बाजार के चारों तरफ चक्कर लगा लिया था, पर अभी तक लेखक को कोई होटल नज़र नहीं आया था। होटल न दिखने पर लेखक के मन में विचार आया कि इस गाँव में होटल की जरूरत ही क्या होगी? लेखक यहाँ सोच रहा था कि रेलवे स्टेशन से इतनी दूर इस गाँव में होटल की क्या जरूरत होगी क्योंकि उस गाँव में देखने के लिए कोई सुंदर जगह तो थी नहीं जो लोग वहाँ आते और लोगों के न आने पर गाँव वाले भला होटल किसके लिए खोलेंगे?

पाठ –  अचानक एक दुकान नजर आई जहाँ चपातियाँ सेंकी जा रही थीं। चपातियों की सोंधी महक से मेरे पाँव अपने आप उस दुकान की ओर मुड़ गए। अपने अनुभवों से मैंने जान लिया था कि परदेश में मुसकराहट ही रक्षक और सहायक होती है। सो मुसकराते हुए मैं दुकान के अंदर घुस गया।
एक अधेड़ उम्र का पठान अँगीठी के पास सिर झुकाए चपातियाँ बना रहा था। मैंने ज्योंही दुकान में प्रवेश किया, वह अपनी हथेली पर रखे आटे को बेलना छोड़कर मेरी ओर घूर-घूरकर देखने लगा। मैं उसकी तरफ देखकर मुसकरा दिया।
फिर भी उसके चेहरे के हाव-भाव में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। वह बेपरवाही के साथ तीखी नजर से मुझे निहारे जा रहा था।

शब्दार्थ 
सेंकना – पकाना
परदेश – दूसरे देश
अधेड़ उम्र – ढलती उम्र
ज्योंही – जैसे ही
बेपरवाही – बिना किसी परवाह के

व्याख्या – लेखक बताता है कि जब वह उस गाँव में होटल ढूंढ रहा था तब अचानक एक दुकान लेखक को नजर आई जहाँ चपातियाँ पकाई जा रही थीं। चपातियों की सोंधी महक से लेखक के पाँव अपने आप उस दुकान की ओर मुड़ गए। लेखक ने जीवन के अपने अनुभवों से यह जान लिया था कि दूसरे देश में मुसकराहट ही आपकी रक्षा करती है और हर काम में आपकी सहायक सिद्ध होती है। यहाँ लेखक के कहने का तात्पर्य यह है कि जब आप दूसरे देश में होते हैं और आप सभी के साथ ख़ुशी से रहते हैं तो वे लोग भी आपके साथ अच्छा व्यवहार करते हैं और दूर देश में भी आपका काम आसान हो जाता है। इसीलिए मुसकराते हुए लेखक दुकान के अंदर चला गया। दूकान में लेखक ने देखा कि एक ढलती उम्र का पठान अँगीठी के पास सिर झुकाए चपातियाँ बना रहा था। लेखक ने जैसे ही दुकान में प्रवेश किया, वह अपनी हथेली पर रखे आटे को बेलना छोड़कर लेखक की ओर घूर-घूरकर देखने लगा। उसे घूरता हुआ देख कर भी लेखक उसकी तरफ देखकर मुसकरा दिया। लेखक बताता है कि लेखक के उसकी ओर मुस्कुराने के बाद भी उसके चेहरे के हाव-भाव में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। वह लेखक को बिना किसी की परवाह के साथ तीखी नजर से निहारे जा रहा था।

पाठ – “खाने को कुछ मिलेगा?” मैंने धीमी आवाज में पूछा।
“चपाती और सालन है…वहाँ बैठ जाइए।” उसने एक बेंच की तरफ इशारा करते हुए कहा।
मैं बेंच पर बैठकर रूमाल से हवा करने लगा! मैंने दुकान के भीतर झाँककर देखा। बेतरतीबी से लीपा हुआ आँगन, धूल से सनी दीवारें। एक कोने में खाट पड़ी हुई थी जिस पर एक दढ़ियल बुड्ढा गंदे तकिए पर कोहनी टेके हुए हुक्का पी रहा था। हुक्के की गुड़गुड़ाहट में उसने अपने आपको ही नहीं, बल्कि सारे जहान को भुला रखा था।

शब्दार्थ 
सालन – गोश्त या सब्जी का मसालेदार शोरबा
बेतरतीबी – बिना किसी तरीके के
दढ़ियल – दाढ़ी वाला
जहान – संसार

व्याख्या – लेखक जब दूकान में गया तो लेखक ने बहुत ही धीमी आवाज में उस चपाती बनाने वाले पठान से पूछा कि खाने को कुछ मिलेगा? उस पठान ने लेखक से कहा कि चपाती और गोश्त या सब्जी का मसालेदार शोरबा है, ये कह के उस पठान ने लेखक को एक बेंच की तरफ इशारा करते हुए कहा कि वहाँ बैठ जाइए। लेखक कहता है कि लेखक उस बेंच पर बैठकर रूमाल से हवा करने लगा। लेखक ने उस दुकान के भीतर झाँककर देखा। उस दूकान का आँगन बिना किसी तरीके से लीपा हुआ था, उस दूकान की दीवारें धूल से सनी हुई थी। उस दूकान के एक कोने में एक खाट पड़ी हुई थी जिस पर एक दाढ़ी वाला बुड्ढा गंदे तकिए पर कोहनी टेके हुए हुक्का पी रहा था। उसके हुक्के पिने के ढंग से लेखक को ऐसा लग रहा था कि उसने उस हुक्के की गुड़गुड़ाहट में अपने-आपको ही नहीं, बल्कि सारे संसार को भुला रखा था। कहने का तात्पर्य यह है कि वह अपनी ही मस्ती में हुक्का पी रहा था। उसे किसी से कोई मतलब नहीं था।

पाठ –  “भाई जान, आप कहाँ के रहने वाले हैं? चपाती को अंगारों पर रखते हुए उस अधेड़ उम्र के पठान ने पूछा।
“मालाबार के” मैंने जवाब दिया। उसने यह नाम नहीं सुना था। आटे को हाथ में लेकर गोलाकार बनाते हुए पूछा- “यह हिंदुस्तान में ही है न?”
“हाँ, भारत के दक्षिणी छोर-मद्रास के आगे।”
“क्या आप हिंदू हैं?”
“हाँ, एक हिंदू घर में जन्म लिया है।”
उसने एक फीकी मुसकराहट के साथ फिर पूछा, “आप मुसलमानी होटल में खाना खाएँगे?”
“क्यों नहीं? हमारे यहाँ तो अगर बढ़िया चाय पीनी हो, या बढ़िया पुलाव खाना हो तो लोग बेखटके मुसलमानी होटल में जाया करते हैं।”

शब्दार्थ –
बेखटके – बिना किसी हिचकिचाहट के

व्याख्या – लेखक कहता है कि जब वह दूकान में बैठा हुआ अपने खाने का इंतज़ार कर रहा था तब चपाती को अंगारों पर रखते हुए उस अधेड़ उम्र के पठान ने लेखक से पूछा कि लेखक कहाँ का रहने वाला है? लेखक ने उसे जवाब दिया कि लेखक मालाबार का रहने वाला है। उस पठान ने मालाबार नाम नहीं सुना था। आटे को हाथ में लेकर गोलाकार बनाते हुए पठान ने फिर लेखक से मालाबार के बारे में पूछा कि क्या यह हिंदुस्तान में ही है ? लेखक ने हाँ में उत्तर देते हुए कहा कि यह भारत के दक्षिणी छोर-मद्रास के आगे है। पठान ने फिर लेखक से पूछा कि क्या लेखक हिंदू हैं? लेखक ने फिर हाँ में उत्तर दिया और कहा कि उसका जन्म एक हिंदू घर में हुआ है। लेखक से यह सुनने पर कि वह एक हिन्दू है उस पठान ने एक फीकी मुसकराहट के साथ फिर पूछा कि क्या लेखक एक हिन्दू होते हुए मुसलमानी होटल में खाना खाएगा? इस पर लेखक ने कहा कि क्यों नहीं? लेखक वहाँ खाना जरूर खाएगा और लेखक ने उस पठान से कहा कि जहाँ लेखक रहता है वहाँ तो अगर किसी को बढ़िया चाय पीनी हो, या बढ़िया पुलाव खाना हो तो वे लोग बिना किसी हिचकिचाहट के मुसलमानी होटल में जाया करते हैं। यहाँ लेखक बताना चाहता है कि लेखक के शहर में मुसलमानी होटल में बहुत अच्छी चाय और पुलाव मिलता है।

पाठ – वह मेरी बात पर विश्वास नहीं कर पाया। मैंने उसे गर्व के साथ बताया, “हमारे यहाँ हिंदू-मुसलमान में कोई फर्क नहीं है! सब मिल-जुलकर रहते हैं! भारत में मुसलमानों ने जिस पहली मस्जिद का निर्माण किया था, वह हमारे ही राज्य के एक स्थान ‘कोडुंगल्लूर’ में है। हमारे यहाँ हिंदू-मुसलमानों के बीच दंगे नहीं के बराबर होते हैं।”
उसने मेरी बात को बहुत ही ध्यानपूर्वक सुनकर कहा, “काश! मैं आपके मुल्क में आकर यह सब अपनी आँखों से देख सकता।”
“क्या आपको मेरी बात पर विश्वास नहीं होता?” मैंने पूछा।
“मुझे आपकी बात पर तो पूरा यकीन हो गया है, पर मैं इस पर ईमान नहीं कर सकता कि आप हिंदू हैं। क्योंकि यहाँ कोई भी हिंदू आपकी कही हुई बातों को इतने फ़ख्र साथ किसी मुसलमान से नहीं कह सकता। उसकी नजर में हम आततायियों की औलादें हैं! हमें इस हालत में अपनी आन के लिए लड़ना पड़ता है। यही हमारी नियति है।” उसकी आवाज में सच्चाई कूट-कूटकर भरी थी।

शब्दार्थ
ध्यानपूर्वक – पूरे ध्यान से
मुल्क – देश
ईमान – धर्म पर विश्वास
फ़ख्र – गर्व
आततायियों – अत्याचार करने वाले
औलादें – संताने
नियति – भाग्य

व्याख्या – लेखक कहता है कि जब लेखक ने उस पठान को यह बताया था कि लेखक के शहर में जब किसी को अच्छी चाय या पुलाव खाने का मन होता है तो वे बिना किसी की परवाह किए मुस्लिम होटल में चले जाते हैं तो वह पठान लेखक की इस बात पर विश्वास नहीं कर पाया था। लेखक कहता है कि लेखक ने उसे बड़े गर्व के साथ बताया था कि लेखक के शहर में हिंदू-मुसलमान में कोई फर्क नहीं है। सब मिल-जुलकर रहते हैं। लेखक ने पठान को यह भी बताया था कि भारत में मुसलमानों ने जिस पहली मस्जिद का निर्माण किया था, वह लेखक के ही राज्य के एक स्थान ‘कोडुंगल्लूर’ में है। लेखक ने यह भी बताया कि लेखक के राज्य में हिंदू-मुसलमानों के बीच दंगे नहीं के बराबर होते हैं। लेखक कहता है कि पठान ने लेखक की बात को बहुत ही ध्यान से सुना और कहा कि काश! वह भी लेखक के देश में आकर यह सब अपनी आँखों से देख सकता। उसके ऐसा कहने पर लेखक ने उस पठान से पूछा कि क्या उस को लेखक की बात पर विश्वास नहीं है। लेखक के पूछने पर पठान ने कहा कि उसको लेखक की बात पर तो पूरा यकीन हो गया है, पर उसे लेखक के धर्म पर विश्वास नहीं हो रहा कि लेखक हिंदू है। क्योंकि वहाँ पाकिस्तान में कोई भी हिंदू लेखक की कही हुई बातों को इतने गर्व के साथ किसी मुसलमान से नहीं कह सकता था। वह लेखक से कहता है कि वहाँ हिन्दुओं की नजर में मुसलमान अत्याचार करने वालों की संताने हैं। ऐसे हालत में उन लोगों को अपनी आन के लिए लड़ना पड़ता है। यही उनका भाग्य है। लेखक कहता है कि उसकी आवाज में सच्चाई कूट-कूटकर भरी थी।

पाठ – “आपका शुभ नाम?” मैंने पूछा।
“हामिद खाँ, वो जो चारपाई पर बैठे हैं, वो मेरे अब्बाजान हैं। अच्छा, आप दस मिनट तक इंतजार कीजिए, सालन अभी पक रहा है।” मैं इंतजार करने लगा।
“अरे ओ अब्दुल!” हामिद खाँ ने जोर से आवाज लगाई। एक छोकरा दौड़ता हुआ आया जो आँगन में चटाई बिछाकर लाल मिर्च सुखा रहा था।
हामिद ने पश्तो भाषा में उसे कुछ आदेश दिया। वह दुकान के पिछवाड़े की तरफ भागा।
“भाई जान, जालिमों की इस दुनिया में शैतान भी लुक-छिपकर चलता है। किसी पर धैंस जमाकर या मजबूर करके हम प्यार मोल नहीं ले सकते। आप ईमान से मुहब्बत के नाते मेरे होटल में खाना खाने आए हैं। ऐसी ईमानदारी और मुहब्बत का असर मेरे दिल में क्यों न पड़े? अगर हिंदू और मुसलमान ईमान से आपस में मुहब्बत करते तो कितना अच्छा होता।” धीमे स्वर में बोलते हुए वह अँगीठी से आखिरी चपाती उतारकर खड़ा हो गया।

शब्दार्थ 
अब्बाजान – पिता
पश्तो – प्राचीन भाषा
जालिमों – अत्याचार करने वाले
धैंस जमाकर – गुस्सा दिखा कर, जबरदस्ती
मोल – खरीदना

व्याख्या – लेखक ने पठान से बात करते हुए उसका शुभ नाम पूछा। उस पठान ने अपना नाम हामिद खाँ बताया और यह भी बताया कि वो जो चारपाई पर बैठे हैं, वो उसके पिता हैं। पठान ने लेखक को दस मिनट तक इंतजार करने के लिए कहा क्योंकि गोश्त या सब्जी का मसालेदार शोरमा अभी पक रहा था। लेखक भी इंतजार करने लगा। लेखक कहता है कि हामिद खाँ ने जोर से किसी अब्दुल को आवाज लगाई। उसके आवाज लगते ही एक छोकरा दौड़ता हुआ आया जो आँगन में चटाई बिछाकर लाल मिर्च सुखा रहा था। हामिद ने उनकी किसी प्राचीन भाषा में उसे कुछ आदेश दिया। वह दुकान के पिछवाड़े की तरफ भागा। उसके जाने के बाद हामिद खाँ लेखक से कहने लगा कि भाई जान, अत्याचार करने वालों की इस दुनिया में शैतान भी लुक-छिपकर चलता है। किसी गुस्सा दिखा कर या जबरदस्ती या मजबूर करके कोई किसी का प्यार नहीं खरीद सकता। वह लेखक से कहता है कि लेखक ईमान से मुहब्बत के नाते उसके होटल में खाना खाने आया है। लेखक की ऐसी ईमानदारी और मुहब्बत का असर उसके दिल में आखिर क्यों न पड़े? अगर हिंदू और मुसलमान ईमान से आपस में मुहब्बत करते तो कितना अच्छा होता। लेखक कहता है कि वह इन सब बातों को धीमे स्वर में बोल रहा था और अँगीठी से आखिरी चपाती उतारकर वहीं खड़ा हो गया।

पाठ –  जो छोकरा पिछवाड़े की तरफ गया था, उसने एक थाली में चावल लाकर सामने रख दिया, हामिद खाँ ने तीन-चार चपातियाँ उसमें रख दीं, फिर लोहे की तश्तरी में सालन परोसा। छोकरा साफ पानी से भरा एक कटोरा मेज पर रखकर चला गया। मैंने बड़े चाव से भरपेट खाना खाया।
“कितने पैसे हुए?” जेब में हाथ डालते हुए मैंने हामिद खाँ से पूछा!
मुसकराते हुए हामिद खाँ ने हाथ पकड़ लिया और बोला, “भाई जान, माफ कीजिएगा। पैसा नहीं लूँगा, आप मेरे मेहमान हैं।”
“मेहमाननवाजी की बात अलग है। एक दुकानदार के नाते आपको खाने के पैसे लेने पड़ेंगे। आपको मेरी मुहब्बत की कसम।”

शब्दार्थ 
तश्तरी – प्लेट
चाव से – शौक से

व्याख्या – लेखक कहता है कि जो छोकरा दूकान के पिछवाड़े की तरफ गया था, उसने एक थाली में चावल लाकर लेखक के सामने रख दिया, हामिद खाँ ने तीन-चार चपातियाँ उसमें रख दीं, फिर लोहे की प्लेट में गोश्त या सब्जी का शोरमा परोसा। छोकरा साफ पानी से भरा एक कटोरा मेज पर रखकर चला गया। लेखक ने बड़े शौक से भरपेट खाना खाया। खाना खाने के बाद जेब में हाथ डालते हुए लेखक ने हामिद खाँ से पूछा कि भोजन के कितने पैसे हुए? हामिद खाँ ने मुसकराते हुए लेखक का हाथ पकड़ लिया और बोला कि लेखक उसे माफ कर दें क्योंकि वह भोजन के पैसा नहीं लेगा क्योंकि लेखक हामिद खाँ का मेहमान हैं। हामिद खाँ की इस बात को सुन कर लेखक ने बड़े प्यार से हामिद खाँ से कहा कि मेहमाननवाजी की बात अलग है। एक दुकानदार के नाते हामिद खाँ को खाने के पैसे लेने पड़ेंगे। लेखक ने हामिद खाँ को लेखक की मुहब्बत की कसम भी दी। ताकि वह लेखक की बात को न ताल सके।

पाठ – एक रुपये के नोट को मैंने हामिद खाँ की ओर बढ़ाया। वह सकुचा रहा था। उसने वह रूपया लेकर फिर मेरे हाथ में रख दिया।
“भाई जान मैंने खाने के पैसे आपसे ले लिए हैं, मगर मैं चाहता हूँ कि यह आप ही के हाथों में रहे। आप जब पहुँचें तो किसी मुसलमानी होटल में जाकर इस पैसे से पुलाव खाएँ और तक्षशिला के भाई हामिद खाँ को याद करें।”
वहाँ से लौटकर मैं तक्षशिला के खंडहरों की तरफ चला आया। उसके बाद मैंने फिर कभी हामिद खाँ को नहीं देखा। पर हामिद खाँ की वह आवाज, उसके साथ बिताए क्षणों की यादें आज भी ताजा हैं। उसकी वह मुसकान आज भी मेरे दिल में बसी है। तक्षशिला के सांप्रदायिक दंगों की चिंगारियों की आग से हामिद और उसकी वह दुकान जिसने मुझ भूखे को दोपहर में छाया और खाना देकर मेरी क्षुध को तृप्त किया था, बची रहे। मैं यही प्रार्थना अब भी कर रहा हूँ।

शब्दार्थ 
सकुचा – हिचकिचाना
क्षुध – भूख
तृप्त – संतोष

व्याख्या – लेखक कहता है कि भोजन के लिए लेखक ने एक रुपये के नोट को हामिद खाँ की ओर बढ़ाया। वह उन पैसों को लेने में हिचकिचा रहा था। उसने वह रूपया लेखक से लेकर फिर से लेखक के ही हाथ में रख दिया। रूपए को लेखक के हाथों में रखते हुए हामिद खाँ ने लेखक से कहा कि उस ने लेखक से खाने के पैसे ले लिए हैं, मगर वह चाहता है कि यह एक रूपया लेखक के ही हाथों में रहे और जब लेखक अपने देश वापिस पहुँचें तो किसी मुसलमानी होटल में जाकर इस पैसे से पुलाव खाएँ और तक्षशिला के भाई हामिद खाँ को याद करें। लेखक कहता है कि हामिद की दूकान से लौटकर लेखक तक्षशिला के खंडहरों की तरफ चला आया। उसके बाद लेखक ने फिर कभी हामिद खाँ को नहीं देखा। पर हामिद खाँ की वह आवाज, उसके साथ बिताए क्षणों की यादें आज भी लेखक के मन में बिलकुल ताजा हैं। उसकी वह मुसकान आज भी लेखक के दिल में बसी है। आज वर्तमान में जब लेखक ने तक्षशिला के सांप्रदायिक दंगों की चिंगारियों की आग के बारे में सुना तो लेखक भगवान् से यही प्रार्थना कर रहा है कि हामिद और उसकी वह दुकान जिसने लेखक को उस कड़कड़ाती दोपहर में छाया और खाना देकर लेखक की भूख को संतोष प्रदान किया था, वह सही-सलामत बची रहे।

 
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हामिद खाँ प्रश्न अभ्यास

हामिद खाँ NCERT Solutions (महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर )

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

प्रश्न 1 -लेखक का परिचय हामिद खाँ से किन परिस्थितियों में हुआ?

उत्तर – हामिद पाकिस्तानी मुसलमान था। वह तक्षशिला के पास एक गाँव में होटल चलाता था। लेखक तक्षशिला के खंडहर देखने के लिए पाकिस्तान आया तो हामिद के होटल पर खाना खाने पहुँचा। पहले तो हामिद खाँ लेखक को बहुत घूर-घूर कर देख रहा था परन्तु जब उन्होंने आपस में बात की तो हामिद खाँ लेखक से बहुत प्रभावित हुआ। वहीं पर उनका आपस में परिचय भी हुआ।

प्रश्न 2 – काश मैं आपके मुल्क में आकर यह सब अपनी आँखों से देख सकता।’-हामिद ने ऐसा क्यों कहा?

उत्तर – लेखक और हामिद ने जब आपस में बातचीत की तो उस बातचीत केन दौरान हामिद को पता चला कि भारत में हिंदू-मुसलमान सौहार्द से मिल-जुलकर रहते हैं। लेकिन पाकिस्तान में हिंदू-मुसलमानों को आतताइयों की औलाद समझते हैं। वहाँ सांप्रदायिक सौहार्द की कमी के कारण आए दिन हिंदू-मुसलमानों के बीच दंगे होते रहे हैं। लेखक की बात हामिद को सपने जैसी लग रही थी क्योंकि वह सपने में भी नहीं सोच सकता था कि हिन्दू-मुस्लिम भी आपस में कहीं प्यार से रहते होंगे। इसीलिए लेखक की बात सुनकर हामिद ने कहा कि काश वह भी लेखक के मुल्क में आकर यह सब अपनी आँखों से देख सकता।

प्रश्न 3 – हामिद को लेखक की किन बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था?

उत्तर – हामिद को लेखक की भेदभाव रहित बातों पर विश्वास नहीं हुआ। लेखक ने हामिद को बताया कि उनके प्रदेश में हिंदू-मुसलमान बड़े प्रेम से रहते हैं। वहाँ के हिंदू बढ़िया चाय या पुलावों का स्वाद लेने के लिए मुसलमानी होटल में बिना किसी हिचकिचाहट के जाते हैं। पाकिस्तान में ऐसा होना संभव नहीं था। वहाँ के हिंदू मुसलमानों को अत्याचारी मानकर उनसे नफरत करते थे। और वहाँ हर दिन दंगे होते ही रहते थे। हामिद को लेखक के हिन्दू होने की बात पर भी विश्वास नहीं हो रहा था क्योंकी उसने कभी किसी हिन्दू को किसी मुस्लिम से इतने प्यार से बात करते नहीं देखा था।

प्रश्न 4 – हामिद खाँ ने खाने का पैसा लेने से इंकार क्यों किया?

उत्तर – हामिद खाँ ने अनेक कारणों के कारण खाने का पैसा लेने से इसलिए इंकार कर दिया, ये कारण निम्नलिखित हैं –
(1) वह भारत से पाकिस्तान गए लेखक को अपना मेहमान मान रहा था।
(2) हिंदू होकर भी लेखक मुसलमान के ढाबे पर खाना खाने गया था।
(3) लेखक मुसलमानों को आतताइयों की औलाद नहीं मानता था।
(4) लेखक की सौहार्द भरी बातों से हामिद खाँ बहुत प्रभावित था।
(5) लेखक की मेहमाननवाजी करके हामिद ‘अतिथि देवो भव’ की परंपरा का निर्वाह करना चाहता था।

प्रश्न 5 – मालाबार में हिंदू-मुसलमानों के परस्पर संबंधों को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – मालाबार में हिंदू-मुसलमानों के आपसी संबंध बहुत घनिष्ठ हैं। जब कभी भी किसी हिंदू को अच्छी चाय या पुलाव खाने का मन होता है तो वह बिना किसी हिचकिचाहट के मुसलमानों के होटलों में चला जाता हैं। वे आपस में मिल जुलकर रहते हैं। भारत में मुसलमानों द्वारा बनाई गई पहली मसजिद लेखक के ही राज्य में है। वहाँ सांप्रदायिक दंगे भी बहुत कम होते हैं।

प्रश्न 6 – तक्षशिला में आगजनी की खबर पढ़कर लेखक के मन में कौन-सा विचार कौंधा? इससे लेखक के स्वभाव की किस विशेषता का परिचय मिलता है?

उत्तर – तक्षशिला में आगजनी की खबर सुनकर लेखक के मन में हामिद खाँ और उसकी दुकान के आगजनी से प्रभावित होने का विचार कौंधा। वह सोच रहा था कि कहीं हामिद की दुकान इस आगजनी का शिकार न हो गई हो। वह हामिद की सलामती की प्रार्थना करने लगा। इससे लेखक के कृतज्ञ होने, हिंदू-मुसलमानों को समान समझने की मानवीय भावना रखने वाले स्वभाव का पता चलता है।

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