CBSE Class 12 Hindi Core Chapter-wise Previous Years Questions (2025) with Solution

 

Class 12 Hindi Core Question Paper (2025) – Solved Question papers from previous years are very important for preparing for the CBSE Board Exams. It works as a treasure trove. It helps to prepare for the exam precisely. One of key benefits of solving question papers from past board exams is their ability to help identify commonly asked questions. These papers are highly beneficial study resources for students preparing for the upcoming class 12th board examinations. Here we have compiled chapter-wise questions asked in all the sets of CBSE Class 12 Hindi Core question paper (2025).

 

Aroh Bhag 2 Book Lesson

 

Chapter 1 – आत्मपरिचय, एक गीत

प्रश्न 1 – “किसी प्रिय आलंबन या विषय से भावी साक्षात्कार का आश्वासन ही हमारे प्रयास के पगों की गति में चंचलता भर सकता है- पंक्ति का आशय स्पष्ट करते हुए ‘एक गीत’ कविता के आधार पर इसकी पुष्टि कीजिए।(60 शब्दों में)
उत्तर – “किसी प्रिय आलंबन या विषय से भावी साक्षात्कार का आश्वासन ही हमारे प्रयास के पगों की गति में चंचलता भर सकता है- पंक्ति का आशय यह है कि यद्यपि राहगीर थक जाता है, हार जाता है लेकिन वह फिर भी अपनी मंजिल की ओर बढ़ता ही जाता है। उसे इस बात का भय रहता है कि कहीं दिन न ढल जाए। अपने लक्ष्य की प्राप्ति की होड़ में समय जल्दी-जल्दी गुजरता हुआ प्रतीत होता है इसी को समझाते हुए इस कविता में कवि कहते हैं कि कहीं रास्ते में ही रात न हो जाए इस वजह से शाम होते देखकर यात्री तेजी से चलता है। लक्ष्य-प्राप्ति के लिए पथिक अपने थके हुए शरीर के बावजूद भी मन में भी उल्लास, तरंग और आशा भर कर अपने पैरों की गति कम नहीं होने देता। कवि प्रकृति के माध्यम से उदाहरण देता हुआ कहता है कि चिड़ियाँ भी दिन ढलने पर अत्यधिक क्रियाशील हो उठती हैं। वे जितनी जल्दी हो सके अपने घोंसलों में पहुँचना चाहती हैं क्योंकि उन्हें ध्यान आता है कि उनके बच्चे भोजन की आशा में घोंसलों से बाहर झाँक रहे होंगे। यह ध्यान आते ही वे अपने पंखों को तेजी से चलती है क्योंकि दिन जल्दी जल्दी ढल रहा है और वे जल्दी-जल्दी अपने घोंसलों में पहुँच जाना चाहती हैं। 

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Chapter 2 – पतंग

प्रश्न 1 – निम्नलिखित काव्यांश पर आधारित पूछे गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए:
जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास
पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास
जब वे दौड़ते हैं बेसुध
छतों को भी नरम बनाते हुए
दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए
जब वे पेंग भरते हुए चले आते हैं
डाल की तरह लचीले वेग से अक्सर
छतों के खतरनाक किनारों तक–
उस समय गिरने से बचाता है उन्हें
सिर्फ़ उनके ही रोमांचित शरीर का संगीत
पतंगों की धड़कती ऊचाइयाँ उन्हें थाम लेती हैं महज़ एक धागे के सहारे
पतंगों के साथ–साथ वे भी उड़ रहे हैं
अपने रंध्रों के सहारे

(i) ‘बच्चों के लिए कपास’ किस संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है ?
(A) बच्चों की निर्मलता के लिए
(B) बच्चों की पवित्रता के लिए
(C) बच्चों की उज्ज्वलता के लिए
(D) बच्चों की कोमलता के लिए
उत्तर – (D) बच्चों की कोमलता के लिए

(ii) बच्चे किस तरह दौड़ते हैं ?
(A) बहुत तेज गति से
(B) बहुत धीमी गति से
(C) बेसुध होकर
(D) प्रतिस्पर्धी होकर
उत्तर – (C) बेसुध होकर

(iii) बच्चों के ‘बेचैन पैर’ प्रतीकार्थ हैं – उनकी:
(A) भावुकता
(C) चंचलता
(B) स्थिरता
(D) अस्वस्थता
उत्तर – (C) चंचलता

(iv) निम्नलिखित कथन तथा कारण को ध्यानपूर्वक पढ़िए और सही विकल्प चुनकर लिखिए:
कथन : आसमान में उड़ती पतंग बच्चों की उमंगों का रंग-बिरंगा सपना है।
कारण : पतंग ऊँचाइयों की वे हदें हैं, जिन्हें बालमन छूना चाहता है, उसके पार जाना चाहता है।
विकल्प :
(A) कथन सही है, कारण ग़लत है।
(B) कथन सही नहीं है, कारण सही है।
(C) कथन तथा कारण दोनों सही है, किंतु कारण, कथन की सही व्याख्या नहीं करता है।
(D) कथन तथा कारण दोनों सही हैं और कारण, कथन की सही व्याख्या करता है।
उत्तर – (D) कथन तथा कारण दोनों सही हैं और कारण, कथन की सही व्याख्या करता है।

(v) बच्चों को छतों के किनारों से गिरने से कौन बचाता है ?
(A) बच्चों के रोमांचित हृदय का संगीत
(B) बच्चों के रोमांचित शरीर का संगीत
(C) बच्चों के रोमांचित हाथों का संगीत
(D) बच्चों के रोमांचित पैरों का संगीत
उत्तर – (B) बच्चों के रोमांचित शरीर का संगीत

प्रश्न 2 – ‘खतरनाक परिस्थितियों का सामना कर मनुष्य और अधिक सक्षम बनता है।’ – ‘पतंग’ कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – खतरनाक परिस्थितियों का सामना करते हुए मनुष्य अपनी क्षमताओं को विकसित करता है और अधिक सक्षम बनता है, यह वाक्य ‘पतंग’ कविता में स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया गया है। कविता में पतंग को उड़ाते समय जो संघर्ष बच्चों को करना पड़ता है, वह यह दर्शाता है कि विपरीत परिस्थितियों का सामना करना आवश्यक है। और पतंग जब हवा में उड़ता है, तो उसे भी अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जो मनुष्य के जीवन में चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों को दर्शाता है। खतरनाक परिस्थितियों का सामना करने से मनुष्य में साहस और आत्मविश्वास का विकास होता है। जिस तरह कविता में जब बच्चा पतंग उड़ता है, तो वह उड़ान के समय अपना पूरा ज़ोर व् ताकत लगा देता है, उसे कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है। ये चुनौतियाँ न केवल उनके साहस को बढ़ाती हैं, बल्कि जीवन में आगे बढ़ने के लिए आवश्यक मनोबल भी प्रदान करती हैं। वह समय के साथ-साथ अच्छे से पतंग उड़ाना तो सीखता ही है साथ-ही-साथ वह अधिक ताकतवर भी बन जाता है, इसी प्रकार मनुष्य भी कठिनाइयों का सामना करते हुए अपनी क्षमताओं को बढ़ाता है।

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Chapter 3 – कविता के बहाने, बात सीधी थी पर

प्रश्न 1 – “कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है ? ‘कविता के बहाने’ कविता के आधार पर लिखिए।(60 शब्दों में) 
उत्तर – कविता और कवि की उड़ान को चिड़िया कभी नहीं जान सकती क्योंकि चिड़िया एक घर से दूसरे घर के आंगन, छत, पेड़ की डालियों और आसमान में थोड़ी दूर तक अपनी सीमा पर ही उड़ सकती है लेकिन कवि अपनी कविता में कल्पनाओं के पंख लगाकर देश और काल में जहाँ तक जाना चाहे वहाँ तक जा सकता है। क्योंकि कविता की उड़ान विस्तृत होती है। अर्थात उसकी कोई सीमा नहीं होती। इसीलिए कवि कहते हैं कि चिड़िया कविता की इस उड़ान को नहीं जान सकती क्योंकि कविता कल्पनाओं के पंख लगाकर दूर तक उड़ान भर सकती हैं। और कविता की उड़ान चिड़िया की उड़ान की तरह सीमित न होकर वस्तृत होती है।

प्रश्न 2 – कोई बात पेचीदा कैसे हो जाती है ‘बात सीधी थी’ कविता के आधार पर लिखिए। (40 शब्दों में)
उत्तर – ‘बात सीधी थी’ कविता में किसी बात को कहने के लिए भाषा की सहजता व सरलता में जोर दिया गया हैं ताकि कविता या बात के भाव व उद्देश्य श्रोता व् पाठक तक आसानी से पहुंच सके। इस कविता में कवि की कविता के भाव बिलकुल सीधे थे जो श्रोताओं और पाठकों को सीधे समझ में आ जाने चाहिए थे। परन्तु भाषा को प्रभावी बनाने के चक्कर में कवि जो बात कविता के माध्यम से कहना चाहते थे, वो बात स्पष्ट नहीं हो पायी जिस कारण लोग कविता के भावों को अच्छी तरह से समझ नहीं पाये। अपनी बात को श्रोताओं और पाठकों तक आसानी से पहुँचाने के लिए उन्होंने भाषा के  शब्दों, वाक्यांशों, वाक्यों आदि को बदल कर आसान किया और तथा शब्दों को उलट-पुलट कर प्रयोग किया। कवि ने पूरी कोशिश की कि या तो इस भाषा के बदलाव से उनके भाव लोगों तक पहुँच जाएं या फिर वह भाषा के इस उलट-फेर के जंजाल से मुक्त हो जाएं, परंतु कवि को इससे कोई भी सफलता नहीं मिली। 

प्रश्न 3 – कविता और फूल दोनों के महकने को समान मानते हुए भी कवि ने यह क्यों कहा है कि ‘कविता का खिलना फूल क्या जाने।’ ‘कविता के बहाने’ पाठ के आधार पर लिखिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – कविता के विकसित होने का अर्थ फूल कभी नहीं समझ सकता, क्योंकि फूल घर-आंगन, बाग़-बगीचों में खिलते हैं और चारों और खुशबू बिखेरते हैं। लेकिन कुछ समय बाद वे मुरझा जाते हैं। परन्तु इसके विपरीत जब एक कविता विकसित होती है तो वह अपने भावों की खुशबू से हमेशा लोगों के दिलों में खुशबू बिखेरती रहती हैं। कविता का प्रभाव हमेशा बना रहता है। जो कविता में सदैव एक नए पन को बनाये रखता हैं। इसीलिए कवि कहते हैं कि फूल कभी भी कविता के बिना मुरझाये खिले रहने व खुशबू बिखेरते रहने के राज़ को नहीं समझ सकता हैं।

प्रश्न 4 – ‘बात सीधी थी पर कविता में ‘बात को कील की तरह ठोंकना’ से क्या अभिप्राय है? (40 शब्दों में)
उत्तर – ‘बात सीधी थी पर’ कविता के आधार पर ‘बात को कील की तरह ठोकना’ का अर्थ है कि हार कर अपने निर्णय को उपस्थित स्थिति में स्वीकार कर लेना। कवि ने अपनी बात को कील की तरह इसलिए ठोक दिया क्योंकि आखिर में जब कवि अपनी बात अथवा अपने भाव स्पष्ट नहीं कर सका तो उसने अपनी बात को वहीं पर छोड़ दिया जैसे पेंच की चूड़ी समाप्त होने पर उसे कील की तरह ठोंक दिया जाता है। कहने का अभिप्राय यह है कि जब कवि हर तरह से बदलाव करने पर भी अपनी बात को स्पष्ट नहीं कर सका तो कवि ने अपनी कविता को उसी तरह छोड़ दिया जिस तरह पेंच को अंत में ठोक दिया जाता है।

प्रश्न 5 – ‘बात सीधी थी पर’ कविता में ‘बात की चूड़ी मर जाना’ से क्या अभिप्राय है ? (40 शब्दों में)
उत्तर – बात को सही तरीके से कैसे कहा जाय या कैसे लिखा जाए, ताकि वह लोगों की समझ में आसानी से आ सके। इस समस्या को धैर्यपूर्वक समझे बिना कवि कविता के शब्दों को तोड़-मरोड़ कर भाषा को और अधिक जटिल बनाता चला गया। जटिल भाषा का प्रयोग करने से दिखने व् सुनने में तो कवि की कविता सुंदर दिखने लगी परन्तु उसके भाव किसी को भी समझ में नहीं आ रहे थे। 

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Chapter 4 – कैमरे में बंद अपाहिज

प्रश्न 1 – ‘यह अवसर खो देंगे।’ ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता से उद्धृत पंक्ति में निहित मीडियाकर्मियों के चरित्र को स्पष्ट कीजिए।(60 शब्दों में)
उत्तर – संचालक अपाहिज व्यक्ति को उत्तर देने के लिए उकसाते हुए पूछता है कि वह थोड़ी कोशिश करके सोच कर बताए कि वह कैसा महसूस करता है? कहने का अभिप्राय यह है कि संचालक चाहता है कि वह अपाहिज व्यक्ति कैमरे के सामने वैसा ही व्यवहार करके दिखाए जैसा उसने उससे कहा है। ताकि उसके दर्शक अपनी दिलचस्पी उसके साथ बनाए रखें। संचालक अपाहिज व्यक्ति को उकसाता है कि इस वक्त वो नही बोलेगा तो अपना दुःख दुनिया के समक्ष रखने का सुनहरा अवसर उसके हाथ से निकल जाएगा। वह उसे समझा रहा है कि अपनी अपंगता व अपने दुख को दुनिया के सामने लाने का इससे बेहतर मौका उसे नहीं मिल सकता है।

प्रश्न 2 – जब शारीरिक चुनौती का सामना कर रहे व्यक्ति से उसके दुख के बारे में पूछा जाता है, तो वह अपने दुखों को व्यक्त क्यों नहीं कर पाता ? कैमरे में बंद अपाहिज कविता के संदर्भ में लिखिए। (40 शब्दों में)
उत्तर – दूरदर्शन के कार्यक्रम के संचालक अपने आप को बहुत सक्षम और शक्तिशाली समझता है। इसीलिए दूरदर्शन के स्टूडियो के एक बंद कमरे में उस साक्षात्कार में उस अपाहिज व्यक्ति से बहुत ही बेतुके प्रश्न पूछे जाते हैं जैसे “क्या वह अपाहिज हैं?” “यदि हाँ तो वह क्यों अपाहिज हैं?” “उसका अपाहिजपन तो उसे दु:ख देता होगा?”। उस अपंग व्यक्ति के चेहरे व आँखों में पीड़ा को साफ़-साफ़ देखने के बाबजूद भी उससे और बेतुका सवाल पूछा जाएगा कि “वह कैमरे पर बताए कि उसका दु:ख क्या है?” ऐसे प्रश्न विकलांग लोगों को और भी कमजोर बना देते हैं। मीडिया के अधिकारी इतने क्रूर होते हैं कि वह जानबूझकर अपाहिज लोगों से बेतुके सवाल पूछते हैं ताकि वे सवालों का उत्तर ही ना दे पाए।

प्रश्न 3 – ‘हमें दोनों एक संग रुलाने हैं’ पंक्ति में किन दोनों को एक संग रुलाने की बात की जा रही है और क्यों ? ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता के आधार पर लिखिए। (40 शब्दों में)
उत्तर – जब कार्यक्रम का संचालक उस अपाहिज व्यक्ति को रुलाने में नाकामयाब हो गया तब उस अपाहिज व्यक्ति की दर्द भरी आँखों और बैचैनी भरे होंठों को ही बड़ा करके पर्दे पर दिखाकर दर्शकों को भावुक करने का प्रयास कर रहा हैं। उस अपाहिज व्यक्ति को रुलाने की एक और कोशिश करते हुए कार्यक्रम का संचालक दर्शकों को धीरज बनाए रखने को कहता है। उनका कार्यक्रम दोनों को एक साथ रुलाने वाला हैं यानि उस अपाहिज व्यक्ति को और दर्शकों को।

प्रश्न 4 – ‘हम पूछ-पूछकर रुला देंगे उसको’ – जैसी पंक्ति मीडियाकर्मियों की संवेदनहीनता की चरम सीमा है। स्पष्ट कीजिए। (40 शब्दों में)
उत्तर – कवि ने इस कविता के माध्यम से मिडिया का करुणा के मुखोटे में छिपी क्रूरता को दिखाने का प्रयास किया है। मिडिया किस तरह व्यावसायिक लाभ के लिए कमजोर लोगों के साथ अमानवीय व्यवहार करती हैं, यह कविता में एक अपाहिज व्यक्ति के साक्षात्कार के जरिए दिखाया गया है। कार्यक्रम के संचालक द्वारा झूठी सहानुभूति दिखाकर अपाहिज व्यक्ति से तरह-तरह के बहुत ही बेतुके प्रश्न पूछ कर उस अपाहिज व्यक्ति को रुलाने का प्रयास किया जाता है और उसके अपाहिजपन का मजाक उड़ाया जाता है। उसे रोने पर मजबूर करने की कोशिश करना वह भी सिर्फ इसलिए ताकि उसके दुख-दर्द व तकलीफ को दिखाकर सहानुभूति प्राप्त कर अधिक से अधिक पैसा कमाया जा सके, यह क्रूरता की चरम सीमा है।

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Chapter 5 – उषा

प्रश्न 1 – सूर्योदय से पूर्व आकाश में किस तरह के परिवर्तन दिखलाई पड़ते हैं? ‘उषा’ कविता के आधार पर लिखिए। (40 शब्दों में)
उत्तर – ‘उषा’ कविता में कवि ने सूर्योदय से ठीक पहले आकाश में होने वाले परिवर्तनों को सुंदर शब्दों में उकेरा है। कवि को सूर्योदय से पहले का आकाश किसी नील शंख के सामान पवित्र व सुंदर दिखाई दे रहा है। धीरे-धीरे सुबह का आसमान कवि को ऐसा लगने लगता है जैसे किसी ने राख से चौका लीपा हो अर्थात आसमान धीरे-धीरे गहरे नीले रंग से राख के रंग यानी गहरा स्लेटी होने लगता है। प्रात:काल में ओस की नमी होती है। गीले चौके में भी नमी होती है। अत: नीले नभ को गीला बताया गया है। साथ ही प्रातः कालीन वातावरण की नमी ने सुबह के वातावरण को किसी शंख की भांति और भी सुंदर, निर्मल व पवित्र बना दिया है। धीरे-धीरे जैसे-जैसे सूर्योदय होने लगता है तो हलकी लालिमा आकाश में फैल जाती है। उस दृश्य को देखकर ऐसा लगता है जैसे काली रंग की सिल अर्थात मसाला पीसने के काले पत्थर को लाल केसर से धो दिया गया है। सुबह के समय आकाश ऐसा लगता है मानो किसी बच्चे की काली स्लेट पर किसी ने लाल खड़िया मिट्टी मल दी हो। सूरज की किरणें सूर्योदय के समय ऐसे प्रतीत हो रही है जैसे किसी युवती की सुंदर गोरी काया अर्थात शरीर साफ़ नीले जल में झिलमिला रहा हो। कुछ समय बाद जब सूर्योदय हो जाता है अर्थात जब सूर्य पूरी तरह से आकाश में निकल आता है तब उषा यानी ब्रह्म वेला का हर पल बदलता सौंदर्य एकदम समाप्त हो जाता है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे प्रात: कालीन आकाश का जादू भी धीरे-धीरे खत्म हो रहा है।

प्रश्न 2 – ‘उषा’ कविता में भोर के नभ को राख से लीपा हुआ चौका क्यों कहा गया है? (40 शब्दों में)
उत्तर – उषा’ कविता में भोर के नभ को राख से लीपा हुआ चौका इसलिए कहा गया है क्योंकि भोर के समय आकाश नम और धुंधला होता है और उसका रंग राख से लिपे चूल्हे जैसा मटमैला होता है। धीरे-धीरे सुबह का आसमान कवि को ऐसा लगने लगता है जैसे किसी ने राख से चौका लीपा हो अर्थात आसमान धीरे-धीरे गहरे नीले रंग से राख के रंग यानी गहरा स्लेटी होने लगता है। प्रात:काल में ओस की नमी होती है। गीले चौके में भी नमी होती है। अत: नीले नभ को गीला बताया गया है।

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Chapter 6 – बादल राग

प्रश्न 1 – ‘बादल राग’ कविता के आधार पर लिखिए कि धरती के भीतर सोए अंकुर बादलों को क्यों और कैसे पुकार रहे हैं ? (40 शब्दों में)
उत्तर – जिस प्रकार लोगों की उम्मीद होती है कि बादल जल बरसा कर गर्मी से राहत देगा उसी प्रकार लोगों को क्रान्ति से उम्मीद है कि उन्हें शोषण से मुक्ति मिलेगी। युद्ध क्षेत्र के नगाड़ों अर्थात बादल की गरजना से धरती के अंदर सोए हुए अंकुर अर्थात बीज जाग जाते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि क्रांति की हुँकार से कमजोर व निष्क्रिय व्यक्ति भी शोषण के विरुद्ध संघर्ष के लिए तैयार हो जाते हैं। पृथ्वी के अंदर अंकुर नए जीवन की आशा में सिर उठाकर बादल को देख रहे हैं अर्थात शोषण का शिकार हुए लोग अपने मन में अपने उद्धार की आशाएँ लिए क्रान्ति की ओर ताकते रहते हैं।

प्रश्न 2 – ‘बादल राग’ कविता के आधार पर लिखिए कि बादलों के आगमन का प्रकृति और किसानों पर क्या प्रभाव पड़ता है।(60 शब्दों में)
उत्तर – बादलों के आगमन से प्रकृति और किसानों पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं –
प्रकृति पर प्रभाव
(i) गरमी के कारण दुखी हुए प्राणी बादलों को देखकर प्रसन्न हो जाते हैं।
(ii) प्रकृति में खुशहाली का संचार होता है, और सभी जीव-जंतु प्रसन्न हो जाते हैं।
(iii) बिजली चमकती है तथा उसके गिरने से बड़े-बड़े पर्वत-शिखर खंडित हो जाते हैं।
(iv) बादल अपनी वर्षा से धरती को शीतल करते हैं, जिससे गर्मी से तपती हुई धरती को राहत मिलती है।
(v) तेज़ हवा चलने से छोटे-छोटे पौधे हाथ हिलाते से प्रतीत होते हैं।
(vi) वर्षा से पृथ्वी के गर्भ में सोए हुए अंकुर अंकुरित होते हैं और हरे-भरे हो जाते हैं।
किसानों पर प्रभाव:
(i) बादलों को देखकर किसानों को उम्मीद मिलती हैं कि वर्षा से उनकी फसलें अच्छी होगी। पर्याप्त वर्षा के बिना फसलें नहीं उग सकती हैं, इसलिए किसान बादलों को देखकर खुश होते हैं।
(ii) वर्षा से किसानों में खुशी और उत्साह का संचार होता है, क्योंकि उनकी मेहनत का फल मिलता है।
(iii) वर्षा से खेतों में पानी भर जाता है, जिससे फसलें अच्छी होती हैं और किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।

प्रश्न 3 – ‘बादल राग’ कविता के आधार पर लिखिए कि ऊँची-ऊँची अट्टालिकाओं में रहने वाला पूँजीपति वर्ग किससे और क्यों भयभीत हो जाता है ? (60 शब्दों में)
उत्तर – ऊँची-ऊँची अट्टालिकाओं में रहने वाले पूँजीपति वर्ग पर क्रांति की गर्जना का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। शोषक वर्ग ने अनेक वर्षों से सभी सुख-सुविधाओं और संसाधनों पर अपना एकाधिकार जमाया हुआ है और वह लगातार जनता का शोषण करता आया है। परंतु क्रांति की गर्जना सुनकर वह अपनी सत्ता को खत्म होते हुए देखता है। वह बुरी तरह से भयभीत हो जाता है। शोषक वर्ग का मुख ढाँकना उसकी कमजोर स्थिति को दर्शाता है क्योंकि क्रांति के परिणामों को सोचकर ही शोषक वर्ग भयभीत है।

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Chapter 7 – कवितावली (उत्तर कांड से) , लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप

प्रश्न 1 – निम्नलिखित पठित काव्यांश पर आधारित पूछे गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए:
किसबी, किसान-कुल, बनिक, भिखारी, भाट,
चाकर, चपल नट, चोर, चार, चेटकी।
पेटको पढ़त, गुन गढ़त, चढ़त गिरि,
अटत गहन-गन अहन अखेटकी।।
ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम करि,
पेट ही को पचत, बेचत बेटा-बेटकी।।
“तुलसी” बुझाई एक राम घनस्याम ही तें,
आग बड़वागि तें बड़ी है आगि पेटकी।।

(i) काव्यांश में तुलसीदास ने वर्णन किया है-
(A) अपने समय की सामाजिक विषमता का
(B) अपने समय की आर्थिक विषमता का
(C) समाज में बढ़ते अंधविश्वासों का
(D) श्रमहीन लोगों के विभिन्न प्रयासों का
उत्तर – (B) अपने समय की आर्थिक विषमता का

(ii) पेट की आग को शांत करने के लिए निम्नलिखित में से कौन सा कर्म नहीं किया जा रहा था ?
(A) पर्वतों पर चढ़ना
(B) गुणों को गढ़ना
(C) व्यापार करना
(D) घने जंगलों में घूमना
उत्तर – (D) घने जंगलों में घूमना

(iii) बड़बाग्नि कहते हैं-
(A) समुद्र की आग को
(B) जंगल की आग को
(C) पेट की आग को
(D) सूर्य से प्राप्त आग को
उत्तर – (A) समुद्र की आग को

(iv) काव्यांश के अनुसार ‘पेट की आग’ को किस प्रकार बुझाया जा सकता है ?
(A) समुद्र के जल से
(B) पसीने के जल से
(C) परिश्रम के बल से
(D) राम रूपी कृपाजल से
उत्तर – (D) राम रूपी कृपाजल से

(v) काव्यांश के आधार पर तुलसीदास के विषय में क्या धारणा बनती है ? उचित विकल्प का चयन कीजिए।
(i) राम के प्रति दृढ़ आस्था रखने वाले संत
(ii) समाज को राम भक्ति से जोड़ने वाले साधक
(iii) सामाजिक उत्तरदायित्वों के प्रति सजग रचनाकार
(iv) सामाजिक उत्तरदायित्वों से विमुक्त वैरागी संत
विकल्प:
(A) (i) और (ii) दोनों
(B) (i) और (iii) दोनों
(C) (iii) और (ii) दोनों
(D) (i) और (iv) दोनों
उत्तर – (A) (i) और (ii) दोनों

प्रश्न 2 – “तुलसीदास स्वभाव से सीधे-सरल थे, किंतु हृदय से स्वाभिमानी और भक्ति से ओत-प्रोत थे।” “कवितावली” के उक्त कथन के संदर्भ में अपने विचार लिखिए।(60 शब्दों में)
उत्तर – गोस्वामी तुलसीदास उच्च कोटि के सन्त, भक्त एवं कवि थे, उन्हें लोकनायक कहना गलत नहीं होगा क्योंकि उनकी सभी कृतियों में लोकमंगल की भावना होती थी।  राम के प्रति उनकी भक्ति अनंत हैं तथा पूर्ण रूप से समर्पित हैं। उन्होंने अपने युग की अनेक विषम परिस्थितियों को प्रत्यक्ष देखा भी था और उनका सामना भी किया था। उन्होंने अपनी रचनाओं में उन सभी परिस्थितियों को स्वर दिया। समाज में व्याप्त भयंकर बेकारी-बेरोजगारी और भुखमरी को लेकर ‘कवितावली’ आदि में आक्रोश-आवेश के साथ अपना मन्तव्य स्पष्ट किया था। उस समय किसान, श्रमिक, भिखारी, व्यापारी, कलाकार आदि सब आर्थिक समस्या से विवश थे। कवितावली के द्वारा स्पष्ट हो जाता है कि तुलसी को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ थी। यह सिद्ध करता है कि तुलसी युग चितेरे कवि थे।

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Chapter 8 – रुबाइयाँ

प्रश्न 1 – फिराक की रुबाइयों में उभरे घरेलू जीवन के बिंबों का सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – फ़िराक गोरखपुरी की ‘रुबाइयाँ’ में हिंदी का एक घरेलू रूप दिखता है। इस रचना में कवि ने वात्सल्य वर्णन किया है। एक माँ अपने घर के आंगन में अपने चांद के टुकड़े को अपने हाथों पर झूला झूलती है तो कभी उसे प्यार से गोद में भर लेती है। कभी-कभी वह माँ उस बच्चे को हवा में उछाल भी लेती हैं। माँ के इस प्यार-दुलार भरे खेल से बच्चा भी बहुत खुश होता है और खिलखिला कर हंस देता है। जब माँ अपने बच्चे को अपने घुटनों के बीच पकड़ कर के कपड़े पहनाती है तो बच्चा कितने ही प्यार से अपनी माँ के चेहरे को देखता है। छोटा बच्चा अपने आँगन में मचल रहा है और जिद कर रहा है। उस बच्चे का मन चाँद को देख कर ललचाया हुआ है और वह उस आकाश के चांद को पाने की जिद्द कर रहा है। बच्चे की इस जिद्द पर माँ बच्चे को एक आईना पकड़ा देती है। और फिर उस दर्पण में चाँद का प्रतिबिम्ब दिखाकर बच्चे को समझा देती है कि देखो, आकाश का चांद शीशे में उतर आया है। रक्षाबंधन की सुबह आनंद व मिठास की सौगात है। रक्षाबंधन के दिन सुबह के समय आकाश में हल्के-हल्के बादल छाए हुए हैं। और जिस तरह उन बादलों के बीच बिजली चमक रही हैं ठीक उसी तरह राखी के लच्छों भी चमक रहे हैं। और बहिन बड़े ही प्यार से उस चमकती राखी को अपने भाई की कलाई पर बांधती हैं।

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Chapter 9 – छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख

प्रश्न 1 – निम्नलिखित काव्यांश पर आधारित पूछे गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए:
कल्पना के रसायनों को पी
बीज गल गया नि:शेष;
शब्द के अंकुर फूटे,
पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष।
झूमने लगे फल,
रस अलौकिक,
अमृत धाराएँ फुटतीं
रोपाई क्षण की,
कटाई अनंतता की
लुटते रहने से ज़रा भी नहीं कम होती।
रस का अक्षय पात्र सदा का
छोटा मेरा खेत चौकोना

(i) कॉलम-I को कॉलम-II से सुमेलित कीजिए और सही विकल्प चुनकर लिखिए।

कॉलम-I कॉलम-II
1. छोटा मेरा खेत (i) कागज का पन्ना
2. अंकुर फूटना (ii) साहित्यिक कृति का रूप धारण करना
3. पल्लवित पुष्पित होना (iii) भावनाओं को शब्द मिलना

विकल्प :
(A) 1- (ii), 2- (i), 3- (iii)
(B) 1- (iii), 2- (i), 3- (ii)
(C) 1- (i), 2-(iii), 3- (ii)
(D) 1- (ii), 2- (iii), 3- (i)
उत्तर – (C) 1- (i), 2-(iii), 3- (ii)

(ii) कवि-कर्म की दृष्टि से बीज हो सकता है।
(A) विचार और अभिव्यक्ति का
(B) कवि के परिश्रम का
(C) कल्पना का
(D) शब्दों का
उत्तर – (A) विचार और अभिव्यक्ति का

(iii) निम्नलिखित कथन तथा कारण को ध्यानपूर्वक पढ़कर उचित विकल्प का चयन कर लिखिए।
कथन: साहित्यिक कृति की अलौकिक रसधारा कालजयी होती है।
कारण : असंख्य पाठकों द्वारा अनंतकाल तक पढ़े जाने पर भी इसका आनंद समाप्त नहीं होता।
विकल्प:
(A) कथन तथा कारण दोनों गलत है।
(B) कारण सही है, लेकिन कथन गलत है।
(C) कथन सही है, लेकिन कारण, कथन की गलत व्याख्या करता है।
(D) कथन तथा कारण दोनों सही है तथा कारण, कथन की सही व्याख्या करता है।
उत्तर – (D) कथन तथा कारण दोनों सही है तथा कारण, कथन की सही व्याख्या करता है।

(iv) ‘झूमने लगे फल’ का आशय है।
(A) बीज अंकुरित होने लगे
(B) फल हवा के सम्पर्क से झुमने लगे
(C) परिश्रम का प्रतिफल मिलने लगा
(D) बीज फूलों का रूप धारण करने लगे
उत्तर – (C) परिश्रम का प्रतिफल मिलने लगा

(v) ‘बीज गल गया नि:शेष’ पंक्ति से क्या संकेत मिलता है?
(A) खेतों में फसल उगाने के लिए बीजों को मिट्टी में बीना पड़ता है।
(B) रचना और विकास के लिए स्वयं का त्याग करना पड़ता है
(C) बीजों के गलने पर ही खेतों में फसल के अंकुर फूटते हैं।
(D) कल्पना के समर्ग बिना साहित्यिक कृति की रचना असंभव है।
उत्तर – (B) रचना और विकास के लिए स्वयं का त्याग करना पड़ता है

प्रश्न 2 – ‘छोटा मेरा खेत’ कविता में ‘अंधड़’ और ‘बीज’ का प्रयोग किस रूप में किया गया है ?(40 शब्दों में)
उत्तर – “छोटा मेरा खेत” कविता में, ‘अंधड़’ शब्द कवि के मन में उठने वाले भावनात्मक तूफान को सूचित करता है और “बीज” कवि के मन के विचारों का प्रतीकात्मक अर्थ हो सकता है।
कविता के संदर्भ में अंधड़ का अभिप्राय है कि जब भावों की आँधी आती है तो वह शब्दों का रूप लेकर कागज़ पर जन्म लेने लगती है। वास्तव में भाव ही कविता रचने का पहला चरण है। ‘बीज’ से कवि का आशय है कि जब भाव आँधी रूप में आते हैं तो कविता रचने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। यह बीज वास्तव में विचार और अभिव्यक्ति का रूप होता है। यही कविता रचने का मूल मंत्र हैं।

प्रश्न 3 – ‘छोटा मेरा खेत’ कविता में ‘कल्पना के रसायनों’ से कवि का क्या तात्पर्य है ? (40 शब्दों में)
उत्तर – ‘छोटा मेरा खेत’ कविता में कवि ने कवि कर्म की तुलना एक किसान से की है। इस कविता में कवि अपने छोटे खेत को कागज़ के पन्ने के रूप में प्रस्तुत करते हैं। जैसे किसान खेत में बीज बोता है, उसी प्रकार कवि के मन में कहीं से कोई भावनात्मक तूफान आता है और उसके मन में विचार नामक बीज बोकर चला जाता है। वह विचार नामक बीज कवि के कल्पना नामक सभी रसायनों को पी जाता है और जिस प्रकार रसायनों को पी कर बीज गल जाता है और अंकुरित हो जाता है ठीक उसी प्रकार से कवि के मन का विचार कवि की कल्पनाओं के माध्यम से कागज पर अंकित हो जाता है। इस प्रक्रिया में कल्पना के रसायनों का उपयोग करते हुए बीज अंकुरित होता है और शब्दों के रूप में विकसित होता है। इस प्रकार, कविता का निर्माण एक प्राकृतिक प्रक्रिया के समान है।

प्रश्न 4 – ‘छोटा मेरा खेत’ कविता के आधार पर लिखिए कि शब्द रूपी अंकुर समय के परिपेक्ष्य में किस प्रकार विकसित होता है? (40 शब्दों में)
उत्तर – ‘छोटा मेरा खेत’ कविता के आधार पर कहा जा सकता है कि शब्द रूपी अंकुर समय के परिपेक्ष्य में विकसित होता है। क्योंकि जिस तरीके से खेत पर किसान खेती करता है, ठीक उसी तरह पन्ने पर कवि कविता लिखता है। जिस प्रकार किसान पहले खेत में बीज को रसायन की मदद से अंकुरित करता हैं उसी प्रकार कवि के मन में भावनात्मक तूफान, उसके मन में विचार नामक बीज बोता है और विचार नामक बीज कवि के कल्पना नामक सभी रसायनों को पीकर गल जाता है और अंकुरित हो जाता है कवि के मन का विचार कवि की कल्पनाओं के माध्यम से कागज पर अंकित हो जाता है। कवि की रचना से मिलने वाले रस अर्थात आनंद को कोई जितना भी लूट ले वह कभी भी समाप्त होने वाला नहीं है, वह तो लगातार बढ़ता जाता है। कवि का कविता रूपी खेत छोटा-सा है, परन्तु उसके रस का पात्र हमेशा भरा रहने वाला है अर्थात कभी समाप्त होने वाला नहीं है।

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Chapter 10 – भक्तिन

प्रश्न 1 – निम्नलिखित गद्यांश पर आधारित पूछे गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर चुनकर लिखिए।
भक्तिन के संस्कार ऐसे हैं कि वह कारागार से वैसे ही डरती है, जैसे यमलोक से ऊँची दीवार देखते ही, वह आँख मूँदकर बेहोश हो जाना चाहती है। उसकी यह कमजोरी इतनी प्रसिद्धि पा चुकी है कि लोग मेरे जेल जाने की संभावना बता बताकर उसे चिढ़ाते रहते हैं। वह डरती नहीं, यह कहना असत्य होगा; पर डर से भी अधिक महत्त्व मेरे साथ का ठहरता है। चुपचाप मुझसे पूछने लगती है कि वह अपनी कै धोती साबुन से साफ़ कर ले. जिससे मुझे वहाँ उसके लिए लज्जित न होना पड़े । क्या-क्या सामान बाँध ले, जिससे मुझे वहाँ किसी प्रकार की असुविधा न हो सके। ऐसी यात्रा में किसी को किसी के साथ जाने का अधिकार नहीं. यह आश्वासन भक्तिन के लिए कोई मूल्य नहीं रखता। वह मेरे न जाने की कल्पना से इतनी प्रसन्न नहीं होती, जितनी अपने साथ न जा सकने की संभावना से अपमानित ।

(i) भक्तिन किससे और कैसे डरती है?
(A) लेखिका से यमराज की तरह
(B) जमींदार से यमराज की तरह
(C) कारागार से यमलोक की तरह
(D) पिजडे से बाप की तरह
उत्तर – (C) कारागार से यमलोक की तरह

(ii) ‘ऐसी यात्रा में किसी को किसी के साथ जाने का अधिकार नहीं’ पंक्ति में ऐसी यात्रा से अभिप्राय है
(A) जेल यात्रा
(B) तीर्थयात्रा
(C) अंतिम यात्रा
(D) शोभा यात्रा
उत्तर -(A) जेल यात्रा

(iii) निम्नलिखित कथनों पर विचार करते हुए गद्यांश के अनुसार सही कथन को चयनित कर लिखिए।
(A) भक्तिन के मन में कारागार का कोई डर नहीं।
(B) भक्तिन के मन में कारागार से भी बड़ा डर लेखिका का साथ छूटने का है।
(C) भक्तिन के मन में कारागार से बड़ा कोई डर नहीं है।
(D) भक्तिन कारागार छोड़कर, सब जगह लेखिका के साथ जाना चाहती है।
उत्तर – (B) भक्तिन के मन में कारागार से भी बड़ा डर लेखिका का साथ छूटने का है।

(iv) गद्यांश के आधार पर भक्तिन की चारित्रिक विशेषताओं के संदर्भ में कॉलम-I को कॉलम-II से सुमेलित कीजिए और सही विकल्प चुनकर लिखिए।

कॉलम-I कॉलम-II
1. भक्तिन की निडरता (i) प्रबंध कौशल
2. सामान का बॉंधना (ii) अपमान
3. लेखिका के साथ न जा पाना (iii) असत्य

विकल्प :
(A) 1- (iii), 2- (i), 3- (ii)
(B) 1- (ii), 2- (iii), 3- (i)
(C) 1- (i), 2-(ii), 3- (iii)
(D) 1- (ii), 2- (i), 3- (iii)
उत्तर – (A) 1- (iii), 2- (i), 3- (ii)

(v) गद्यांश का केंद्रीय भाव हो सकता।
(A) भक्तिन की दूरदर्शिता
(B) महादेवी के प्रति आत्मीयता
(C) भक्तिन का कारावास का भय
(D) भक्तिन का प्रबंध-कौशल
उत्तर – (B) महादेवी के प्रति आत्मीयता

प्रश्न 2 – निम्नलिखित पठित गद्यांश पर आधारित दिए गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्पों को चुनकर लिखिए:
भक्तिन की कंजूसी के प्राण पुंजीभूत होते-होते पर्वताकार बन चुके थे; परंतु इस उदारता के डाइनामाइट ने क्षणभर में उन्हें उड़ा दिया। इतने थोड़े रुपये का कोई महत्त्व नहीं; परंतु रुपये के प्रति भक्तिन का अनुराग इतना प्रख्यात हो चुका है कि मेरे लिए उसका परित्याग मेरे महत्व की सीमा तक पहुँचा देता है। भक्तिन और मेरे बीच में सेवक-स्वामी का संबंध है, यह कहना कठिन है। क्योंकि ऐसा कोई स्वामी नहीं हो सकता, जो इच्छा होने पर भी सेवक को अपनी सेवा से हटा न सके और ऐसा कोई सेवक भी नहीं सुना गया, जो स्वामी के चले जाने का आदेश पाकर अवज्ञा से हँस दे।
भक्तिन को नौकर कहना उतना ही असंगत है, जितना अपने घर में बारी-बारी से आने वाले अँधेरे-उजाले और आँगन में फूलने वाले गुलाब और आम को सेवक मानना।

(i) भक्तिन की कंजूसी के प्राण पुंजीभूत होते-होते पर्वताकार बन चुके थे। पंक्ति का आशय है-
(A) पैसों के प्रति भक्तिन का प्रेम पर्वतों का रूप ले चुका था।
(B) पैसों के प्रति भक्तिन के प्रेम की गाया दूर-दूर तक फैल चुकी थी।
(C) भक्तिन एक-एक पैसा कंजूसी से खर्च करती थी।
(D) एक-एक पैसा जमा करके भक्तिन ने मोटी पूँजी बना ली थी।
उत्तर – (D) एक-एक पैसा जमा करके भक्तिन ने मोटी पूँजी बना ली थी।

(ii) भक्तिन की किस ‘उदारता के डाइनामाइट’ ने महादेवी जी को आश्चर्यचकित कर दिया ?
(A) गाँव में महादेवी जी के रहने का प्रबंध अपनी पूंजी से करने
(B) महादेवी जी को शहर गाँव से जाने और रखने के प्रबंध में
(C) अपने घर में महादेवी जी की सभी सुविधाओं का प्रबंध करने
(D) युद्ध की पृष्ठभूमि में महादेवी जी की सुरक्षा की चिंता करने
उत्तर – (D) युद्ध की पृष्ठभूमि में महादेवी जी की सुरक्षा की चिंता करने

(iii) भक्तिन को नौकर कहना क्यों असंगत था ?
(A) उसका अपना स्वतंत्र अस्तित्व था ।
(B) वह निजी इच्छा के अनुरूप कार्य करती थी।
(C) वह महादेवी जी के व्यक्ति से जुड़ी थी।
(D) वह महादेवी जी की बात सुनकर हंस देती थी।
उत्तर – (A) उसका अपना स्वतंत्र अस्तित्व था ।

(iv) गद्यांश में अँधेरे-उजाले, आम और गुलाब का उदाहरण किस संदर्भ में दिया गया है?
(A) भक्तिन और महादेवी जी के संबंधों के
(B) भक्तिन की चारित्रिक विशेषताओं के
(C) महादेवी जी की चारित्रिक विशेषताओं के
(D) संसार में प्रत्येक वस्तु के अस्तित्व के
उत्तर – (B) भक्तिन की चारित्रिक विशेषताओं के

(v) महादेवी जी द्वारा भक्तिन को अपनी सेवा से न हटाने का कारण था, अपने प्रति उसका ______| (रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए)
(A) सेवाभाव
(B) अपनत्व
(C) सरल व्यवहार
(D) निश्छल व्यवहार
उत्तर – (B) अपनत्व

प्रश्न 3 – भक्तिन द्वारा चौके में खींची गई कोयले की रेखा महादेवी जी के लिए लक्ष्मण के धनुष से खींची हुई रेखा के समान दुर्लंघ्य क्यों हो उठी ?(60 शब्दों में)
उत्तर – भक्तिन स्वभाव से बहुत धार्मिक औरत थी। लेखिका के पास नौकरी मिलने पर उसने अगले दिन स्नान करके लेखिका की धुली धोती भी जल के छींटों से पवित्र करने के बाद पहनी। निकलते सूर्य व पीपल को अर्घ दिया। दो मिनट जप किया और कोयले की मोटी रेखा से चौके की सीमा निर्धारित करके खाना बनाना शुरू किया। वह अपने रसोईघर को बहुत परित्र रखती थी। रसोई में खाना बनाते समय कोयले से मोटी रेखा खींचने का कारण था कि वह नहीं चाहती थी कि कोई भी व्यक्ति उसकी रसोईघर में आ न सके। इसलिए भक्तिन के द्वारा खींची गई कोयले की रेखा लेखिका के लिए लक्ष्मण रेखा बन गई थी। भक्तिन छूत-पाक को मानने वाली थी, इस कारण लेखिका ने समझौता करना उचित समझा।

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Chapter 11 – बाज़ार दर्शन

प्रश्न 1 – निम्नलिखित गद्यांश पर आधारित पूछे गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए:
बाज़ार को सार्थकता भी वही मनुष्य देता है जो जानता है कि वह क्या चाहता है। और जो नहीं जानते कि वे क्या चाहते हैं, अपनी ‘पर्चेजिंग पावर’ के गर्व में अपने पैसे से केवल एक विनाशक शक्ति, शैतानी शक्ति, व्यंग्य की शक्ति ही बाजार को देते हैं। न तो वे बाजार से लाभ उठा सकते हैं, न उस बाजार को सच्चा लाभ दे सकते हैं। वे लोग बाज़ार का बाजारूपन बढ़ाते हैं। जिसका मतलब है कि कपट बढ़ाते हैं। कपट की बढ़ती का अर्थ परस्पर में सद्भाव की घटी इस सद्भाव के हास पर आदमी आपस में भाई-भाई और सुहृद और पड़ोसी फिर रह ही नहीं जाते हैं और आपस में कोरे ग्राहक और बेचक की तरह व्यवहार करते हैं। मानों एक-दूसरे को ठगने की घात में हों।

(i) बाज़ार को सार्थकता कौन प्रदान करता है?
(A) जिसे अपनी जरूरतों का पता हो।
(B) जो अपनी चाह से अज्ञात हो।
(C) जिसके पास अकूत धन हो ।
(D) जिसके पास सीमित धन हो।
उत्तर – (A) जिसे अपनी जरूरतों का पता हो।

(ii) ‘पर्चेजिंग पावर’ का गर्व किन लोगों को होता है?
(A) उचित मोल भाव कर खरीददारी करने वालों को
(B) धैर्य और संयम के साथ खरीददारी करने वालों को
(C) बाज़ार के फैले जाल का लाभ उठाने वालों को
(D) धन के मद में अनावश्यक खरीदारी करने वालों की
उत्तर – (D) धन के मद में अनावश्यक खरीदारी करने वालों की

(iii) निम्नलिखित कथनों पर विचार करते हुए गद्यांश के अनुसार सही कथन को चयनित कर लिखिए:
(A) पर्चेजिंग पावर का गर्व बाज़ार को सार्थक शक्ति देता है।
(B) पचेंजिंग पावर का गर्व बाज़ार को विनाशक शक्ति देता है।
(C) पचेंजिंग पावर का गर्व बाज़ार को नियामक शक्ति देता है।
(D) पर्चेजिंग पावर का गर्व बाज़ार को सच्चा लाभ प्रदान करता है।
उत्तर – (B) पचेंजिंग पावर का गर्व बाज़ार को विनाशक शक्ति देता है।

(iv) ‘वे लोग बाज़ार का बाज़ारूपन बढ़ाते हैं।’ कथन में ‘बाज़ारूपन’ से क्या अभिप्राय है ?
(A) चकाचौंध
(B) छल-कपट
(C) सार्थकता
(D) सद्बव्याहार
उत्तर – (A) चकाचौंध

(v) बाज़ार के बाज़ारूपन बढ़ने के परिणामों के विषय में क्या असत्य है ?
(A) लोगों की आवश्यकता का शोषण होने लगता है।
(B) बाज़ार की सार्थकता समाप्त हो कपट को बढ़ावा मिलता है।
(C) ग्राहक और बेचक के बीच सद्व्यवहार घटने लगता है।
(D) ग्राहक और बेचक दोनों बाज़ार से सच्चा लाभ उठाते हैं।
उत्तर – (A) लोगों की आवश्यकता का शोषण होने लगता है।

प्रश्न 2 – ‘आवश्यकता से अधिक खरीददारी ही बाजार में शोषण का रूप धारण कर लेती है।” ‘बाजार दर्शन’ पाठ के आधार पर इस कथन के पक्ष में तर्क सहित उत्तर दीजिए।(60 शब्दों में)
उत्तर – अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ खरीदने के बाद भी कई बार बाजार की चकाचौंध के वश में आकर व्यक्ति कई बिना जरुरत की चीजें भी ले लेता है और साथ ही साथ कई बार आवश्यकता पड़ने पर व्यक्ति अपेक्षित वस्तु भी हर कीमत पर खरीदना चाहता है। वह कोई भी कीमत देकर उस वस्तु को प्राप्त कर लेना चाहता है। इसलिए वह कई बार शोषण का शिकार हो जाता है। क्योंकि बेचने वाला जब यह जान जाता है कि व्यक्ति किसी भी कीमत पर उस वस्तु को खरीदना चाहता है तो वह तुरंत उस वस्तु की कीमत मूल कीमत से ज्यादा बता देता है। इसीलिए लेखक का यह कहना कि ‘आवश्यकता से अधिक खरीददारी ही बाजार में शोषण का रूप धारण कर लेती है।” एक दम ठीक है।

प्रश्न 3 – ‘बाजार दर्शन’ पाठ को पढ़ने के बाद आप अपने आपको किस तरह का क्रेता मानते हैं और क्यों? (60 शब्दों में)
उत्तर – ‘बाजार दर्शन’ पाठ को पढ़ने के बाद मैं अपने आपको आवश्यकता से अधिक खरीदारी करने वाला क्रेता मानती हूँ और क्योंकि मैं जब भी बाजार जाती हूँ तो अक्सर कोई न कोई बेवजह की खरीदारी जरूर कर लेती हूँ। बाजार जाते ही ऐसा महसूस होता है जैसे बाजार की चकाचौंध मुझे अपने वश में करके मुझसे सभी सामान खरीदने को विवश कर रहे हों। बाजार में सभी वस्तुएँ आवश्यकता पड़ती हैं और घर आ कर वही वस्तुएँ बेकार की मालूम होती हैं।

प्रश्न 4 – ‘बाजार दर्शन’ पाठ से उद्धृत कथन ‘तप की राह रेगिस्तान को जाती होगी, मोक्ष की राह वह नहीं है’ – का आशय स्पष्ट कीजिए । (40 शब्दों में)
उत्तर – उद्धृत कथन ‘तप की राह रेगिस्तान को जाती होगी, मोक्ष की राह वह नहीं है’ – का आशय यह है कि मनुष्य को सही तरह से पता होना चाहिए कि उसे किस चीज की आवश्यकता है। क्योंकि बाजार से उपयोगी चीजें खरीदने में ही बाजार की सार्थकता है। जब मनुष्य को पता होगा कि उसे किस चीज की आवश्यकता है तो वह बाजार के आकर्षण में पड़कर अनावश्यक चीजें नहीं खरीदता।

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Chapter 12 – काले मेघा पानी दे

प्रश्न 1 – ‘काले मेघा पानी दे’ पाठ में अनावृष्टि को दूर करने के लिए अंतिम उपाय के रूप में क्या किया जाता है? इस उपाय के प्रति लेखक के दृष्टिकोण के विषय में अपनी राय स्पष्ट कीजिए।(60 शब्दों में)
उत्तर – जब जेठ का महीना बीत जाता और आषाढ़ भी आधा गुजर जाता मगर फिर भी बारिश नहीं होती तब गांवों व शहरों में सूखे के से हालत हो जाते हैं। मिट्टी इतनी सुखी हो जाती है कि जमीन भी फटने लगती है। इंसान व जानवर पानी के बैगर तड़प-तड़प कर मरने लगते मगर फिर भी आसमान में बादलों का कही कोई निशान तक दिखाई नहीं देता। और विज्ञान भी उनकी इसमें कोई मदद नहीं कर पाता तब ऐसे मुश्किल हालातों में लोग अपने-अपने क्षेत्रों में प्रचलित लोक विश्वासों जैसे पूजा पाठ, हवन-यज्ञ आदि के सहारे भगवान इंद्र से प्रार्थना कर वर्षा की उम्मीद लगाने लगाते थे। जब यह सब कुछ करने के बाद भी केवल हार ही नसीब होती हैं तो फिर अंत में इंदर सेना को बुलाया जाता था।
लेखक की समझ में यह बात नहीं आती थी कि जब चारों ओर पानी की इतनी अधिक कमी है कि जानवर और इंसान, दोनों ही पानी के लिए परेशान हो रहे हैं तो फिर भी मुश्किल से इकट्ठा किया हुआ पानी लोग इंद्रसेना पर डाल कर उसे क्यों बर्बाद करते हैं। लेखक को यह सब सरासर अंधविश्वास लगता था और उनको लगता था कि इस तरह के अन्धविश्वास देश को न जाने कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं। 

प्रश्न 2 – इंदरसेना पर पानी फेंक के विषय में ‘काले मेघा पानी दें’ पाठ में जीजी और लेखक के विचारों की तुलना करते हुए लिखिए कि आप किसके विचारों से सहमत हैं और क्यों ? (60 शब्दों में)
उत्तर – लेखक इंद्रसेना पर मुश्किल से इकठ्ठा किया हुआ पानी फेंकने को पानी की बर्बादी मानता है। परन्तु जीजी के अनुसार यह तो पानी का अर्क है जो वे इंद्रसेना के माध्यम से इंद्रदेव पर चढ़ाते हैं। ताकि वे प्रसन्न हो कर हम पर पानी की बरसात करें। जो चीज इंसान पाना चाहता है, यदि पहले उस चीज़ को देगा नहीं तो पाएगा कैसे। इसके लिए जीजी ऋषि-मुनियों के दान को सबसे ऊंचा स्थान दिए जाने को प्रमाणस्वरूप बताती है। लेखक को यह पानी बर्बाद करने वाली बात बिलकुल समझ नहीं आती और न ही वह इस कार्य में जीजी का साथ देता है।
पाठ के आधार पर जीजी और लेखक दोनों अपनी-अपनी जगह सही हैं। परन्तु मैं लेखक के विचारों से सहमत हूँ। क्योंकि जब पानी की अत्यधिक कमी हो तो इस तरह पानी की बर्बादी करना किसी भी तरह समझदारी नहीं हो सकती। 

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Chapter 13 – पहलवान की ढोलक

प्रश्न 1 – ‘पहलवान की ढोलक’ पाठ में महामारी से ग्रसित गाँव की असहाय स्थिति का वर्णन किया गया है। वर्तमान समय में ऐसी स्थिति आने पर उससे कैसे निपटा जाता है ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।(60 शब्दों में)
उत्तर – जाड़ों के मौसम में गाँव में महामारी फैली हुई थी। गांव के अधिकतर लोग मलेरिया और हैजे से ग्रस्त थे। जाडे के दिन थे और रातें एकदम काली अंधेरी व डरावनी लग रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे रात उस गाँव के दुःख में दुःखी होकर चुपचाप आँसू बहा रही हो। टूटते तारे का उदाहरण देते हुए लेखक बताता है कि उस गाँव के दुःख को देख कर यदि कोई बाहरी व्यक्ति उस गाँव के लोगों की कुछ मदद करना भी चाहता था तो चाह कर भी नहीं कर सकता था क्योंकि उस गाँव में फैली महामारी के कारण कोई भी अपने जीवन को कष्ट नहीं डालना चाहता था। किन्तु आज वर्तमान में मलेरिया और हैज़े की बिमारी का इलाज संभव है और आज कोई व्यक्ति किसी मलेरिया और हैज़े से पीड़ित व्यक्ति की सहायता करने से नहीं घबराता। उदाहरण के लिए 2020 में फैले करोना वायरस के कारण जब पूरे देश में लॉकडाउन हो गया था तब भी लोग एक दूसरे की जितनी हो सके सहायता कर रहे थे। 

प्रश्न 2 – ‘पहलवान की ढोलक’ पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए कि गाँव में फैली महामारी के समय प्रकृति भी मनुष्य के दुख में दुखी थी।(60 शब्दों में)
उत्तर – जाड़ों के मौसम में गाँव में महामारी फैली हुई थी। गांव के अधिकतर लोग मलेरिया और हैजे से ग्रस्त थे। जाडे के दिन थे और रातें एकदम काली अंधेरी व डरावनी लग रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे रात उस गाँव के दुःख में दुःखी होकर चुपचाप आँसू बहा रही हो। क्योंकि उस समय मलेरिया और हैजा एक लाइलाज बीमारी थी और लोग इन बीमारियों से तड़प-तड़प कर मर जाते थे। रात की खामोशी में सिर्फ सियारों और उल्लूओं की आवाज ही सुनाई देती थी। कभी कभी उस काली अंधेरी रात में कोई कमजोर स्वर भगवान को पुकारता हुआ सुनाई पड़ जाता था और कभी किसी बच्चे के द्वारा अपनी माँ को पुकारने की धीमी सी आवाज सुनाई देती थी। क्योंकि कुत्तों में परिस्थिति को समझने की विशेष बुद्धि होती है। इसीलिए वो रात होते ही रोने लगते थे। और गांव के दुख में अपना स्वर मिलाने लगते थे। इन परिस्थितियों में बीमारी की विभीषिका से क्रंदन करता हुआ गाँव और अधिक भयावह रूप धारण कर लेता था।

प्रश्न 3 – ‘पहलवान की ढोलक’ कहानी व्यवस्था बदलने के साथ लोक-कला और उससे जुड़े कलाकारों के अप्रासंगिक हो जाने की कहानी है।’ सिद्ध कीजिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – ‘पहलवान की ढोलक’ कहानी में व्यवस्था के बदलने के साथ लोककला व इसके कलाकार के अप्रासांगिक हो जाने की कहानी है। राजा साहब को कुश्ती में दिलचस्पी थी परन्तु उनकी जगह नए राजकुमार का आकर कुश्ती को फजूलख़र्ची बताकर बंद कर देना और पहलवानों को निकाल देना, सिर्फ व्यक्तिगत सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि पुरानी व्यवस्था को पूरी तरह उलट देने और उस पर सभ्यता के नाम पर एक दम नयी व्यवस्था के स्थापित करने का प्रतीक है। यह ‘भारत’ पर ‘इंडिया’ के छा जाने की समस्या है जो लुट्टन पहलवान को लोक कलाकर के आसन से उठाकर पेट भरने के लिए कठोर मेहनत करने वाली निरीहता की भूमि पर पटक देती है।
प्राचीन लोक-कलाओं के पुनर्जीवन के लिए निम्नलिखित प्रयास किए जा सकते हैं- जैसे –
प्राचीन लोक-कलाओं के महत्त्व को आज की पीढ़ी के समक्ष प्रस्तुत करना।
प्राचीन लोक-कलाओं का अधिक से अधिक मंचन करना।
प्राचीन लोक-कलाओं की प्रतियोगिताएँ आयोजित करना इत्यादि। 

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Chapter 14 – शिरीष के फूल

प्रश्न 1 – ‘शिरीष के फूल’ निबंध के आधार पर शिरीष के अवधूत रूप को देखकर लेखक के मन में उठी तरंगों के द्वंद्व को स्पष्ट कीजिए।(60 शब्दों में)
उत्तर – लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत कहा है। “कालजयी” अर्थात जिसने काल पर विजय प्राप्त कर ली हो और “अवधूत” यानि एक ऐसा सन्यासी जिसे सुख-दुख, अच्छे-बुरे से कोई फर्क न पड़ता हो। जिसके भाव हर परिस्थिति में एक समान रहते हों। यही सब लक्षण शिरीष के फूल में भी हैं जिस कारण लेखक ने शिरीष के फूल को कालजयी अवधूत कहा है। क्योंकि शिरीष का फूल भयंकर गरमी, उमस, लू आदि के बीच सरस रहता है। वसंत में वह लहक उठता है तथा भादों मास तक फलता-फूलता रहता है। उस पर ना भयंकर गर्मी का असर दिखाई देता है और ना ही तेज बारिश का कोई प्रभाव। वह काल व समय को जीतकर एक सामान लहलहाता रहता है।

प्रश्न 2 – शिरीष के विषय में कालिदास और हजारीप्रसाद द्विवेदी जी के विचारों के अंतर को स्पष्ट कीजिए । (40 शब्दों में)
उत्तर – कालिदास और संस्कृत साहित्य में शिरीष के फूलों को अत्यन्त कोमल माना गया है। कालिदास कहते हैं कि शिरीष का पुष्प केवल भंवरों के पैरों का भार ही सहन कर सकता है, पक्षियों का नहीं। द्विवेदीजी उनके इस मत से बिल्कुल भी सहमत नहीं हैं। उनका मानना है कि शिरीष के फूलों को कोमल मानना बड़ी भूल है। इसके फल इतने मजबूत होते हैं कि नए फूलों के निकल आने पर भी स्थान नहीं छोड़ते हैं।  जब तक नए फल, पत्ते, पुराने फलों को धकिया कर बाहर नहीं कर देते, तब तक वे डटे रहते हैं। वसन्त के आने पर जब सारी प्रकृति पुष्पों के पत्रों पर मधुर गुंजार करती रहती है तब भी शिरीष के पुराने फल बुरी तरह लड़खड़ाते रहते हैं। और इन्हीं मजबूत पुराने फलों को लेखक ने नेताओं के संदर्भ में प्रयोग किया है कि जब तक युवा पीढ़ी धकिया कर इन्हें सत्ता से बाहर नहीं करती ये स्वयं नहीं जाते हैं।

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Chapter 15 – श्रम विभाजन और जाति-प्रथा

प्रश्न – ‘श्रम विभाजन और जाति प्रथा’ पाठ के आधार पर लिखिए कि आधुनिक समय में मनुष्य को व्यवसाय बदलने की आवश्यकता क्यों पड़ जाती है ? पेशा बदलने की अनुमति नहीं होने का क्या दुष्परिणाम होता है ? (40 शब्दों में)
उत्तर – जातिप्रथा, व्यक्ति के कार्यक्षेत्र को पहले से ही निर्धारित तो करती ही हैं। साथ ही साथ यह मनुष्य को जीवन भर के लिए उसी पेशे के साथ बंधे रहने को मजबूर भी करती है। फिर भले ही व्यक्ति की उस कार्य को करने में कोई रुचि हो या ना हो, या फिर उस कार्य से उसकी आजीविका चल रही हो या चल रही हो, उसका और उसके परिवार का भरण पोषण हो रहा हो या ना हो रहा हो। यहाँ तक कि उस कार्य से उसके भूखे मरने की नौबत भी आ जाए तो भी, वह अपना कार्य बदल कर कोई दूसरा कार्य नहीं सकता है। जबकि आधुनिक समय में कई बार प्रतिकूल परिस्थितियाँ होने के कारण अपना और अपने परिवार की सुख-सुविधाओं के लिए इंसान को अपना पेशा या कार्यक्षेत्र बदलने की जरूरत पड़ सकती है। जब व्यक्ति किसी कार्य को पुरे मन से अथवा लगन से नहीं करेगा तो, वह उस कार्य को पूरी कुशलता या निपुणता से कैसे कर सकता है। अतः इस बात से यह प्रमाणित होता है कि व्यक्ति की आर्थिक असुविधाओं के लिए भी जाति प्रथा हानिकारक है। क्योंकि यह मनुष्य की स्वाभाविक रुचि के अनुसार कार्य करने की अनुमति नहीं देती। और बेमन से किया गए कार्य में व्यक्ति कभी भी उन्नति नहीं कर सकता।

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Chapter 1 – सिल्वर वैडिंग

प्रश्न 1 – ‘यशोधर बाबू एक आदर्श व्यक्तित्व हैं और नई पीढ़ी द्वारा उनके विचारों को अपनाना ही उचित है’ इस संबंध में आपके क्या विचार हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए। (100 शब्दों में)
उत्तर – उत्तर – यशोधर बाबू के बारे में हमारी यही धारणा बनती है कि यशोधर बाबू में एक तरह का द्वंद्व है जिसके कारण नया उन्हें कभी–कभी खींचता है पर पुराना छोड़ता नहीं, इसलिए उन्हें सहानुभूति के साथ देखने की जरूरत है। एक ओर यह सही है कि वे सिद्धांतवादी हैं परन्तु वे व्यावहारिक पक्ष भी अच्छी तरह समझते है। परन्तु सिद्धांत और व्यवहार के इस द्वंद्व में यशोधर बाबू कुछ भी निर्णय लेने में असमर्थ हैं। अपने बच्चों की तरक्की देखकर उन्हें कई बार तो पत्नी और बच्चों का व्यवहार अच्छा लगता है परन्तु दूसरे ही क्षण वे अपने सिद्धांत की ओर खींचे चले जाते हैं। इस द्वंद्व के साथ जीने के लिए वे मजबूर हैं क्योंकि चाह कर भी वे अपने आपको आधुनिकता में नहीं ढाल पा रहे हैं। उनका दफ्तरी जीवन जहाँ सिद्धांतवादी है वहीं पारिवारिक जीवन व्यवहारवादी। दोनों में सामंजस्य बिठा पाना उनके लिए लगभग असंभव है। इसलिए उन्हें सहानुभूति के साथ देखने की जरूरत है।

प्रश्न 2 – ‘आना सब कुछ चाहिए, सीखना हर एक की बात ठहरी, लेकिन अपनी छोड़नी नहीं हुई।’ – यह कथन सिल्वर वैडिंग कहानी में किस संदर्भ में कहा गया ? इस विषय में अपने विचार तर्कपूर्ण ढंग से प्रस्तुत कीजिए । (100 शब्दों में)
उत्तर – ‘आना सब कुछ चाहिए, सीखना हर एक की बात ठहरी, लेकिन अपनी छोड़नी नहीं हुई।’ – यह कथन सिल्वर वैडिंग कहानी में किशनदा द्वारा कहा गया। किशनदा यशोधर बाबू के आदर्श थे। उनका कहना था कि मनुष्य को सब कुछ आना चाहिए उसे दूसरी संस्कृतियों को भी जानना चाहिए। उसे अंग्रेजी सभ्यता और रहन-सहन का तरीका भी आना चाहिए। दूसरों की बातें सीखना अच्छा गुण है। किन्तु विदेशी सभ्यता के फेर में पड़कर अपनी सभ्यता को छोड़ना अच्छी बात नहीं है, ऐसा कदापि नहीं करना चाहिए। इस कथन से हम भी पूरी तरह से सहमत हैं क्योंकि अपनी संस्कृति को छोड़ देना कहीं से भी समझदारी नहीं है। 

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Chapter 2 – जूझ

प्रश्न 1 – ‘जूझ’ कहानी के आधार पर सिद्ध कीजिए कि कथानायक खेतीबाड़ी के परिश्रम से बचने के लिए नहीं बल्कि पढ़-लिखकर कुछ बनने की चाह से स्कूल जाना चाहता था।(100 शब्दों में)
उत्तर – जूझ’ कहानी के कथानायक का मन पाठशाला जाने के लिए तड़पता था। परन्तु कथानायक को अपने दादा अर्थात पिता से यह कहने में डर लगता था लेकिन वह चाहता था कि कोई उसके पिता को यह समझा दे। कथानायक इसलिए भी पढ़ना चाहता था क्योंकि उसे लगता था कि खेती से उनका गुजारा नहीं हो पाएगा। इसका कारण यह भी था कि उसके दादा के समय में जितनी खेती सफल थी अब उसके पिता के समय में नहीं रह गई थी। कथानायक चाहता था कि वह पढ़–लिख कर कोई नौकरी कर ले जिससे चार पैसे उसके हाथ में रहेंगे। यह विचार उसके मन में चलता रहता था। 

प्रश्न 2 – ‘जन्मभर खेत में काम करते रहने पर भी हाथ कुछ नहीं लगेगा’ – ‘जूझ’ पाठ से उद्धृत इस कथन के संदर्भ में लिखिए कि वर्तमान समय में युवा खेती-बाड़ी छोड़कर नौकरी की तरफ क्यों आकर्षित हो रहे हैं? इसे किस प्रकार कम किया जा सकता है ? (100 शब्दों में)
उत्तर – लेखक को छोटी उम्र में ही इस बात की समझ थी कि जन्मभर खेत में काम करते रहने पर भी हाथ कुछ नहीं लगेगा क्योंकि उसके दादा के समय में जितनी खेती सफल थी अब उसके पिता के समय में नहीं रह गई थी। वह पढ़–लिख कर कोई नौकरी कर लेना चाहता था, जिससे चार पैसे उसके हाथ में रहेंगे। वर्तमान में भी युवा खेती-बाड़ी छोड़कर नौकरी की तरफ आकर्षित हो रहे हैं क्योंकि वर्तमान समय में खेती-बाड़ी करने में अत्यधिक परिश्रम के साथ-साथ बहुत सी विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। इस सबके बावजूद भी कोई निश्चित नहीं है कि किसान को उसकी मेहनत की अच्छी कीमत मिले। किसान का गुजारा करना भी मुश्किल हो जाता है। नौकरी में एक तरह से निश्चित वेतन का सहारा होता है जिस वजह से आज के युवा खेती-बाड़ी को छोड़ कर नौकरी करना ज्यादा सही समझते हैं।
इस समस्या का समाधान करने के लिए सरकार को किसानों के हित में योजनाएँ  बनानी  चाहिए जिससे किसान प्रोत्साहित हों और अपने परिवार की सुख-सुविधाओं को पूरा कर सके। 

प्रश्न 3 – जूझ कहानी के नायक आनंदा से आपको क्या प्रेरणा मिलती है ? स्पष्ट कीजिए । (100 शब्दों में)
उत्तर – जूझ कहानी के नायक आनंदा का चरित्र अत्यधिक प्रेरणादायक है। इस कहानी में कहानी के मुख्य पात्र आनंद ने पाठशाला जाने व् पढ़ाई करने के लिए बहुत संघर्ष किया। उसका पिता उसको पाठशाला जाने से मना कर देता है और खेतों का काम संभालने के लिए कहता है। इसके बावजूद, कहानी नायक आनंद अपनी माँ को मना कर दादा व देसाई सरकार के सामने अपना पक्ष रखता है ताकि वे उसके पिता को मना सके। आनंद का पिता किसी भी हाल में उसे पाठशाला नहीं भेजना चाहता था अतः वह उस पर कई तरह के आरोप लगता है परन्तु अपने ऊपर लगे आरोपों का आनंद अच्छे से उत्तर देता है। जब दादा व देसाई सरकार उसे आगे बढ़ने के लिए कुछ कठिन शर्तें बताते हैं तो वह वह हर कठिन शर्त मानता है। पाठशाला में भी वह नए माहौल में ढलने, कविता रचने आदि के लिए बहुत संघर्ष करता है।

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Chapter 3 – अतीत में दबे पाँव

प्रश्न 1 – ‘मुअनजो-दड़ो’ के अजायबघर का वर्णन करते हुए बताइए कि आप इसकी लोकप्रियता को बढ़ाने और रखरखाव को बेहतर करने के लिए क्या कदम उठाएंगे ? स्पष्ट कीजिए।(100 शब्दों में)
उत्तर – मुअनजो-दड़ो की खुदाई में निकली पंजीकृत चीजों की संख्या पचास हजार से ज्यादा है। मगर जो मुट्ठी भर चीजें अजायबघर में प्रदर्शित हैं, पहुँची हुई सिंधु सभ्यता की झलक दिखाने को काफी हैं। काला पड़ गया गेहूँ, ताँबे और काँसे के बर्तन, मुहरें, वाद्य, चाक पर बने विशाल मृद्-भांड, उन पर काले-भूरे चित्र, चौपड़ की गोटियाँ, दीये, माप-तौल पत्थर, ताँबे का आईना, मिट्टी की बैलगाड़ी और दूसरे खिलौने, दो पाटन वाली चक्की, कंघी, मिट्टी के कंगन, रंग-बिरंगे पत्थरों के मनकों वाले हार और पत्थर के औजार। अजायबघर में प्रदर्शित चीजों में औजार तो हैं, पर हथियार कोई नहीं है।
अजायबघर की लोकप्रियता को बढ़ाने और रखरखाव को बेहतर करने के लिए हम इसके बारे में अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार करेंगे। जिससे देश ही नहीं विदेश में भी अधिक से अधिक लोग इसके बारे में जाने और लोग अजायबघर की चीजों को जानकार  ‘मुअनजो-दड़ो’ की संस्कृति को भी पहचाने। इसके रखरखाव को और बेहतर बनाने के लिए समय-समय पर इसकी जाँच करवानी चाहिए। 

प्रश्न 2 – सिंधु घाटी सभ्यता को दूसरी सभ्यताओं से अलग खड़ा करने वाली विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (100 शब्दों में)
उत्तर – मुअनजो-दड़ो शहर ताप्रकाल के शहरों में सबसे बड़ा और उत्कृष्ट था क्योंकि इसकी व्यापक खुदाई में बड़ी तादाद में इमारतें, सड़कें, धातु-पत्थर की मूर्तियाँ, चाक पर बने चित्रित भांडे, मुहरें, साजो-सामान और खिलौने आदि मिले है। यहाँ बड़े-घर, चौड़ी-सड़कें, और बहुत सारे कुएँ हैं। मोहन जोदड़ो की सड़कें इतनी बड़ी हैं, कि यहाँ आसानी से दो बैलगाड़ी निकल सकती हैं। यहाँ पर सड़क के दोनों ओर घर हैं, दिलचस्प बात यह है, कि यहाँ सड़क की ओर केवल सभी घरो की पीठ दिखाई देती है, मतलब दरवाज़े अंदर गलियों में हैं। वास्तव में स्वास्थ्य के प्रति मोहन जोदड़ो का शहर काबिले-तारीफ़ है, कयोंकि हमसे इतने पिछड़े होने के बावज़ूद यहाँ की जो नगर नियोजन व्यव्स्था है वह कमाल की है। दूसरी जगहों पर राजतंत्र या धर्मतंत्र की ताकत का प्रदर्शन करने वाले महल, उपासना-स्थल, मूर्तियाँ और पिरामिड आदि मिलते हैं। हड़प्पा संस्कृति में न भव्य राजप्रसाद मिले हैं, न मंदिर। न राजाओं, महंतों की समाधियाँ। यहाँ के मूर्तिशिल्प छोटे हैं और औजार भी। मुअनजो-दड़ो के ‘नरेश’ के सिर पर जो ‘मुकुट’ है, शायद उससे छोटे सिरपेंच की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

प्रश्न 3 – ‘महाकुंड’ सिन्धु घाटी सभ्यता के अद्वितीय वास्तुकौशल का उदाहरण है। इसकी विशेषताएँ लिखिए। (100 शब्दों में)
उत्तर – स्तूप के टीले से दाईं तरफ एक लंबी गली दीखती है। इसके आगे महाकुंड है। धरोहर के प्रबंधकों ने उस गली का नाम दैव मार्ग (डिविनिटि स्ट्रीट) रखा है। विशेषज्ञों की माने तो उस सभ्यता में सामूहिक स्नान किसी अनुष्ठान का अंग होता था। कुंड करीब चालीस फुट लंबा और पच्चीस फुट चौड़ा है। गहराई सात फुट। कुंड में उत्तर और दक्षिण से सीढ़ियाँ उतरती हैं। इसके तीन तरफ साधुओं के कक्ष बने हुए हैं। उत्तर में दो पाँत में आठ स्नानघर हैं। इनमें किसी भी स्नानघर का द्वार दूसरे स्नानघर के सामने नहीं खुलता। यह एक सिद्ध वास्तुकला का नमूना है। इस कुंड में खास बात पक्की ईंटों का जमाव है। कुंड का पानी रिस न सके और बाहर का ‘अशुद्ध’ पानी कुंड में न आए, इसके लिए कुंड के तल में और दीवारों पर ईंटों के बीच चूने और चिरोड़ी के गारे का इस्तेमाल हुआ है। पार्श्व की दीवारों के साथ दूसरी दीवार खड़ी की गई है जिसमें सफेद डामर का प्रयोग है। कुंड के पानी के बंदोबस्त के लिए एक तरफ कुआँ है। दोहरे घेरे वाला यह अकेला कुआँ है। इसे भी कुंड के पवित्र या अनुष्ठानिक होने का प्रमाण माना गया है। कुंड से पानी को बाहर बहाने के लिए नालियाँ हैं। इनकी खासियत यह है कि ये भी पक्की ईंटों से बनी हैं और ईंटों से ढकी भी हैं।
पक्की और आकार में एक समान धूसर ईंटें तो सिंधु घाटी सभ्यता की विशिष्ट पहचान मानी ही गई हैं, साथ ही पुरातात्त्विक विद्वान और इतिहासकार ढकी हुई नालियों का उल्लेख भी इस घाटी की पहचान के रूप में देते हैं। पानी-निकासी का ऐसा सुव्यवस्थित बंदोबस्त इससे पहले के इतिहास में कहीं नहीं मिलता।

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Chapter 3 – विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन

प्रश्न 1 – इंटरनेट पत्रकारिता क्या है? इसके स्वरूप और इतिहास पर प्रकाश डालिए। (80 शब्दों में)
उत्तर – इंटरनेट पत्रकारिता से तात्पर्य उन पत्रकारिता के कार्यों से है जो इंटरनेट के माध्यम से किए जाते हैं, जैसे कि समाचार वेबसाइट, ब्लॉग, सोशल मीडिया और अन्य ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर समाचार, जानकारी और विचारों का प्रकाशन और प्रसार। यह पारंपरिक पत्रकारिता से अलग है, क्योंकि इसमें डिजिटल माध्यमों का उपयोग किया जाता है।
स्वरूप:

  • डिजिटल प्लेटफार्मों का उपयोग- यह पत्रकारिता ऑनलाइन माध्यमों, जैसे कि समाचार वेबसाइटें, ब्लॉग, सोशल मीडिया, वीडियो साझाकरण साइटें और पॉडकास्ट के माध्यम से काम करती है।
  • बहु-मीडिया प्रारूप – इसमें पाठ, तस्वीरें, वीडियो और ऑडियो जैसे विभिन्न मीडिया प्रारूपों का उपयोग शामिल होता है।
  • अंतःक्रियात्मकता – यह दर्शकों को कमेंट करने, शेयर करने और सामग्री में भाग लेने की अनुमति देती है।
  • वैश्विक पहुंच – यह दुनिया भर में लोगों तक पहुंचने की क्षमता प्रदान करता है।
  • तेजी से सूचना का प्रसार – यह समाचारों और जानकारी को तेजी से प्रसारित करने की अनुमति देती है।

इतिहास:

  • विश्व स्तर पर इस समय इंटरनेट पत्रकारिता का तीसरा दौर चल रहा है। पहला दौर था 1982 से 1992 तक जबकि दूसरा दौर चला 1993 से 2001 तक। तीसरे दौर की इंटरनेट पत्रकारिता 2002 से अब तक की है।
  • भारत में इंटरनेट पत्रकारिता का अभी दूसरा दौर चल रहा है।
  • भारत के लिए पहला दौर 1993 से शुरू माना जा सकता है जबकि दूसरा दौर सन् 2003 से शुरू हुआ है।

प्रश्न 2 – समाचार कैसे लिखा जाता है तथा अच्छे समाचार लेखन के लिए किन महत्त्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखना चाहिए ? (80 शब्दों में)
उत्तर – पत्रकारीय लेखन का सबसे जाना–पहचाना रूप समाचार लेखन है। आमतौर पर अखबारों में समाचार पूर्णकालिक और अंशकालिक पत्रकार लिखते हैं, जिन्हें संवाददाता या रिपोर्टर भी कहते हैं। अखबारों में प्रकाशित अधिकांश समाचार एक खास शैली में लिखे जाते हैं। इन समाचारों में किसी भी घटना, समस्या या विचार के सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य, सूचना या जानकारी को सबसे पहले पैराग्राफ में लिखा गया है। उसके बाद के पैराग्राफ में उससे कम महत्त्वपूर्ण सूचना या तथ्य की जानकारी दी गई है। यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक समाचार खत्म नहीं हो जाता।
अच्छे समाचार लेखन के लिए, कुछ महत्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखना चाहिए।
समाचार स्पष्ट, संक्षिप्त, और मुद्दे पर आधारित होना चाहिए। समाचार में भाषा सरल, सुबोध और सटीक होनी चाहिए, तथा उसमें अपरिचित शब्दावली का उपयोग नहीं करना चाहिए। समाचार का लेखन संक्षिप्त और प्रभावशाली होना चाहिए, और उसमें घटना से संबंधित सभी महत्वपूर्ण सवालों के जवाब होने चाहिए (कहाँ, कब, किसने, किसलिए, किसे, कैसे)।

प्रश्न 3 – ‘ड्राई-एंकर’ से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।(40 शब्दों में)
उत्तर – जब एंकर खबर के बारे में सीधे-सीधे बताता है कि कहाँ, क्या, कब और कैसे हुआ तथा जब तक खबर के दृश्य नहीं आते, एंकर दर्शकों को रिपोर्टर से मिली जानकारियों के आधार पर सूचनाएँ पहुँचाता है उसे ‘ड्राई एंकर’ कहते हैं।

प्रश्न 4 – जनसंचार के आधुनिक माध्यमों में सबसे पुराना माध्यम कौन-सा है ? उसकी सबसे बड़ी विशेषता का उल्लेख करते हुए लिखिए कि इसकी भाषा कैसी होनी चाहिए।(40 शब्दों में)
उत्तर – प्रिंट यानी मुद्रित माध्यम जनसंचार के आधुनिक माध्यमों में सबसे पुराना है। छापाखाना यानी प्रेस के आविष्कार ने दुनिया की तसवीर बदल दी। भारत में पहला छापाखाना सन् 1556 में गोवा में खुला। इसे मिशनरियों ने धर्म प्रचार की पुस्तकें छापने के लिए खोला था। तब से लेकर आज तक की मुद्रण तकनीक में बहुत बदलाव आया है और मुद्रित माध्यमों का विस्तार भी हुआ है। मुद्रित माध्यमों के तहत अखबार, पत्रिकाएँ, पुस्तकें आदि हैं।
मुद्रित माध्यमों की खूबियाँ –

  • मुद्रित माध्यमों की सबसे बड़ी विशेषता या शक्ति यह है कि छपे हुए शब्दों में स्थायित्व होता है। उसे आप आराम से और धीरे-धीरे पढ़ सकते हैं। पढ़ते हुए उस पर सोच सकते हैं।
  • मुद्रित माध्यमों के स्थायित्व का एक लाभ यह भी है कि आप उन्हें लंबे समय तक सुरक्षित रख सकते हैं और उसे संदर्भ की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं।
  • मुद्रित माध्यम चिंतन, विचार और विश्लेषण का माध्यम है। इस माध्यम में आप गंभीर और गूढ़ बातें लिख सकते हैं क्योंकि पाठक के पास न सिर्फ उसे पढ़ने, समझने और सोचने का समय होता है बल्कि उसकी योग्यता भी होती है।

प्रश्न 5 – संचार के इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के आ जाने पर भी मुद्रित माध्यमों की लोकप्रियता बने रहने के क्या कारण हैं ?(40 शब्दों में)
उत्तर – संचार के इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के आ जाने के बावजूद, मुद्रित माध्यमों की लोकप्रियता कई कारणों से बनी हुई है, जिनमें विश्वसनीयता, पहुँच, और विशिष्ट उपयोग शामिल हैं। मुद्रित सामग्री आमतौर पर प्रकाशन से पहले संपादकीय समीक्षा और तथ्य-जांच से गुजरती है, जिससे उसकी सटीकता और विश्वसनीयता बढ़ती है। कई स्थानों पर आज भी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों या इंटरनेट की पहुँच नहीं है जिस कारण मुद्रित माध्यम उन लोगों के लिए सुलभ हैं। यह ग्रामीण क्षेत्रों या कम आय वाले समुदायों में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। पुस्तकें, पत्रिकाएँ और समाचार पत्र एक भौतिक अनुभव प्रदान करते हैं जो इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों द्वारा दोहराया नहीं जा सकता है।

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Chapter 4 – पत्रकारीय लेखन के विभिन्न रूप और लेखन प्रक्रिया

प्रश्न 1 – ‘संपादक के नाम पत्र’ का क्या महत्त्व है?(40 शब्दों में)
उत्तर -‘संपादक के नाम पत्र’ का बहुत महत्व है क्योंकि यह पाठकों को सार्वजनिक चर्चा में भाग लेने और अपनी राय व्यक्त करने का एक मंच प्रदान करता है। यह पत्र उन मुद्दों पर बहस को बढ़ावा दे सकता है जो व्यक्तिगत, विवादास्पद या शर्मनाक हैं, लेकिन सार्वजनिक बहस में उठाने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

प्रश्न 2 – खोजी पत्रकारिता का आशय स्पष्ट कीजिए। इसका उपयोग कहाँ किया जाता है ?(40 शब्दों में)
उत्तर – खोजपरक पत्रकारिता- से आशय ऐसी पत्रकारिता से है, जिसमें गहराई से छानबीन करके ऐसे तथ्य और सूचनाओं को सामने लाने की कोशिश की जाती है, जिन्हें दबाने या छुपाने का प्रयास किया जा रहा हो।
खोजी पत्रकारिता का उपयोग मुख्य रूप से सार्वजनिक हित को ध्यान में रखते हुए, भ्रष्टाचार, दुराचार, अनियमितताओं और गड़बड़ियों को उजागर करने के लिए किया जाता है। यह सरकार और व्यापार में गलत कार्यों की जांच करता है, जिससे लोगों को सच्चाई और जवाबदेही के बारे में पता चलता है। इसका एक नया रूप टेलीविजन में ‘स्टिंग ऑपरेशन’ के रूप में सामने आया है।

प्रश्न 3 – अर्थ जगत की पत्रकारिता के महत्त्व को रेखांकित करते हुए बताइए कि आर्थिक मामलों के पत्रकार में क्या विशेषताएं होनी चाहिए ?(80 शब्दों में)
उत्तर – अर्थ जगत में मोटे तौर पर उत्पादन, कृषि, सेवा क्षेत्र, उपभोग से जुड़े मसलों पर चिंतन किया जाता है। पत्रकारिता का काम मोटे तौर पर तमाम विषयों पर पाठकों, दर्शकों, श्रोताओं तक सूचनाएं, विचार वगैरह पहुंचाना है। सरल शब्दों में कहा जा सकता है कि आर्थिक पत्रकारिता से आशय पत्रकारिता के उस हिस्से से है, जिसके तहत तमाम आर्थिक गतिविधियों की जानकारियां, विचार पाठकों, दर्शकों, श्रोताओं तक पहुँचायी जाती हैं। आर्थिक पत्रकारिता खास तौर पर बाजारों को कवर करती है। सोना-चांदी बाजार से लेकर लेबर बाजार से लेकर शेयर बाजार से लेकर तमाम तरह के बाजार।
आर्थिक मामलों के पत्रकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती होती है कि उसे आम लोगों की समझ में आने लायक कैसे बनाया जाए। इसके लिए पत्रकार को स्वयं अर्थ जगत की पूरी जानकारी होनी चाहिए। हर समय उसके पास सही आंकड़े होने चाहिए और पत्रकार को भाषा का भी अच्छा ज्ञान होना चाहिए जिससे वह पाठकों व् श्रोताओं तक सही व् जटिल जानकारी को सरल शब्दों में प्रस्तुत कर सके।

प्रश्न 4 – समाचार लेखन में साक्षात्कार का क्या महत्त्व है? साक्षात्कार के लिए साक्षात्कारकर्ता में किन गुणों की अपेक्षा होती है?(80 शब्दों में)
उत्तर – समाचार माध्यमों में साक्षात्कार का बहुत महत्त्व है। पत्रकार एक तरह से साक्षात्कार के ज़रिये ही समाचार, फीचर, विशेष रिपोर्ट और अन्य कई तरह के पत्रकारीय लेखन के लिए कच्चा माल इकट्टा करते हैं।
पत्रकारिय साक्षात्कार और सामान्य बातचीत में यह फर्क होता है कि साक्षात्कार में एक पत्रकार किसी अन्य व्यक्ति से तथ्य, उसकी राय और भावनाएँ जानने के लिए सवाल पूछता है।
एक साक्षात्कारकर्ता में निम्नलिखित गुण होने अनिवार्य हैं –

  • एक अच्छे साक्षात्कारकर्ता का सबसे प्रथम गुण उसका अच्छा एवं उच्च व्यक्तित्व है। उसके व्यक्तित्व का इतना प्रभाव होना चाहिए कि सूचनादाता उसे सूचनाएँ देने के लिए तत्पर हो जाए।
  • एक अच्छे साक्षात्कारकर्ता में उच्च कोटि की मनोवैज्ञानिकता होना भी अनिवार्य है।
  • साक्षात्कारकर्ता में इतनी क्षमता एवं योग्यता का होना आवश्यक है कि वह सूचनादाताओं से अधिक-से-अधिक सहयोग ले सके।
  • यदि साक्षात्कारदाता साक्षात्कारकर्ता से मिलकर कार्य नहीं करेगा या उसको सहयोग नहीं देगा तो साक्षत्कारकर्ता अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सकता।
  • एक सफल साक्षात्कारकर्ता का एक अन्य विशिष्ट गुण निष्पक्षता तथा ईमानदारी है।
  • एक अच्छे साक्षात्कारकर्ता का कुशल एवं चतुर होना भी अनिवार्य है। एक कुशल एवं चतुर साक्षात्कारकर्ता ही सूचनादाताओं, जो कि विविध प्रकार की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के होते हैं, से ठीक प्रकार से सूचना प्राप्त कर सकता है।

प्रश्न 5 – समाचार लेखन के छह ककारों से आप क्या समझते है ? इन ककारों की समाचार लेखन में भूमिका स्पष्ट कीजिए।(40 शब्दों में)
उत्तर – किसी समाचार को लिखते हुए मुख्यतः छह सवालों का जवाब देने की कोशिश की जाती है क्या हुआ, किसके साथ हुआ, कहाँ हुआ, कब हुआ, कैसे और क्यों हुआ? इस–क्या, किसके (या कौनद्ध), कहाँ, कब, क्यों और कैसे–को छह ककारों के रूप में भी जाना जाता है। किसी घटना, समस्या या विचार से संबंधित खबर लिखते हुए इन छह ककारों को ही ध्यान में रखा जाता है।
समाचार के मुखड़े (इंट्रो) यानी पहले पैराग्राफ या शुरुआती दो–तीन पंक्तियों में आमतौर पर तीन या चार ककारों को आधार बनाकर खबर लिखी जाती है। ये चार ककार हैं–क्या, कौन, कब और कहाँ? इसके बाद समाचार की बॉडी में और समापन के पहले बाकी दो ककारों–कैसे और क्यों–का जवाब दिया जाता है। इस तरह छह ककारों के आधार पर समाचार तैयार होता है। इनमें से पहले चार ककार–क्या, कौन, कब और कहाँ–सूचनात्मक और तथ्यों पर आधारित होते हैं जबकि बाकी दो ककारों–कैसे और क्यों–में विवरणात्मक, व्याख्यात्मक और विश्लेषणात्मक पहलू पर जोर दिया जाता है।

प्रश्न 6 – हिंदी वेब पत्रकारिता की क्या स्थिति है ?(40 शब्दों में)
उत्तर – इन्टरनेट के माध्यम से संचालित होने वाली पत्रकारिता को ही वेब पत्रकारिता कहा जाता है। वर्तमान समय में पाठकों में इस पत्रकारिता की क्रेज बहुत अधिक बढ़ा है। वेब पर ऑनलाइन सहित्यिक पत्रिकाओं की संख्या भी निरंतर बढ़ रही है। साथ ही ब्लॉग के आगमन से भी हिंदी वेब पत्रकारिता और साहित्य अधिक से अधिक समृद्ध हो रहे है। वेब पत्रकारिता के क्षेत्र में इतनी मजबूत पकड़ बनने के बावजूद भी हिंदी वेब पत्रकारिता के सामने आज भी साक्षरता, बिजली का अभाव, आर्थिक स्त्रोत तथा विश्वसनीयता जैसी चुनौतियाँ है। इस क्षेत्र का तकनीकी ज्ञान, भाषा और सूचना कौशल आपको एक बेहतर करियर और रोजगार का अवसर प्रदान करता है।

प्रश्न 7 – समाचार पत्र पत्रिकाओं में विशेष लेखन का कार्य विषय-विशेषज्ञों से करवाने के कारणों को स्पष्ट करें। (80 शब्दों में)
उत्तर – किसी भी क्षेत्र में विशेष रूप से लेखन करना विशेष लेखन कहलाता है। समाचार पत्र सामान्य समाचारों के अलावा साहित्य , विज्ञान , खेल इत्यादि की भी पर्याप्त जानकारी देते हैं। इसी कार्य के अंतर्गत जब किसी खास विषय पर सामान्य लेखन से हटकर लेखन किया जाए तो उसे विशेष लेखन कहते हैं। विशेष लेखन में समाचारों के अलावा, खेल, अर्थ-व्यापार, सिनेमा, या मनोरंजन जैसे विषयों पर लिखा जाता है। इसकी भाषा और शैली, समाचारों की भाषा-शैली से अलग होती है।
समाचार पत्र पत्रिकाओं में विशेष लेखन का कार्य करने के लिए इन विषयों पर पूर्ण जानकारी होना आवश्यक होता है और साथ ही साथ विषयों को प्रस्तुत करने व् लोगों तक सरल शब्दों में पूर्ण जानकारी पहुँचाने का हुनर भी होना चाहिए। यही कारण होता है कि समाचार पत्र पत्रिकाओं में विशेष लेखन का कार्य विषय-विशेषज्ञों से करवाया जाता है।

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Chapter 5 – विशेष लेखन-स्वरूप और प्रकार

प्रश्न 1 – ‘आर्थिक जगत’ के पृष्ठ के बिना क्या समाचार पत्र को संपूर्ण समाचार-पत्र कहा जा सकता है ? पक्ष या विपक्ष में तर्कपूर्ण ढंग से लिखिए।(80 शब्दों में)
उत्तर – समाचार-पत्रों में अगर आर्थिक जगत से जुड़ी खबरें न हों तो वह संपूर्ण नहीं माना जाएगा, क्योंकि समाचार-पत्रों में कारोबार तथा अर्थ जगत से संबंधित समाचारों के लिए अलग से एक पृष्ठ होता है। कुछ समाचार-पत्रों में तो आर्थिक समाचारों के दो पृष्ठ प्रकाशित होते हैं। समाचार-पत्रों में यदि आर्थिक समाचार का पृष्ठ न हो तो वह संपूर्ण समाचार पत्र नहीं कहलाता। अर्थ अर्थात धन प्रत्येक जीवन का मूल आधार है। हमारे जीवन में इसका विशेष महत्व है। क्रय-विक्रय करना, बैंक में पैसे जमा करवाना, बचत करना, किसी कारोबार के बारे में योजना बनाना या कुछ इस प्रकार का सोचना जिसमें आर्थिक लाभ हो इत्यादि से संबंधित विषय कारोबार और अर्थ जगत से संबंधित होते हैं। इसी कारण कारोबार, व्यापार और अर्थजगत से जुड़ी खबरों में पाठकों की विशेष रुचि होती है।

प्रश्न 2 – विशेष लेखन क्या है? विशेष लेखन और डेस्क का क्या संबंध है? स्पष्ट कीजिए।(40 शब्दों में)
उत्तर – विशेष लेखन अर्थात किसी खास विषय पर सामान्य लेखन से हटकर किया गया लेखन। अधिकतर समाचारपत्रों और पत्रिकाओं के अलावा टी.वी. और रेडियो चैनलों में विशेष लेखन के लिए अलग डेस्क होता है और उस विशेष डेस्क पर काम करने वाले पत्राकारों का समूह भी अलग होता है। जैसे समाचारपत्रों और अन्य माध्यमों में बिजनेस यानी कारोबार और व्यापार का अलग डेस्क, खेल की खबरों और फीचर के लिए खेल डेस्क अलग होता है। इन डेस्कों पर काम करने वाले उपसंपादकों और संवाददाताओं से यह उम्मीद की जाती है कि अपने विषय या क्षेत्र में उनको विशेषज्ञता प्राप्त होगी।

प्रश्न 3 – विशेष लेखन की भाषा-शैली सामान्य लेखन से अलग कैसे है ?(40 शब्दों में)
उत्तर – विशेष लेखन का संबंध जिन विषयों और क्षेत्रों से है, उनमें से अधिकांश तकनीकी रूप से जटिल क्षेत्र हैं और उनसे जुड़ी घटनाओं और मुद्दों को समझना आम पाठकों के लिए कठिन होता है। इसलिए इन क्षेत्रों में विशेष लेखन की ज़रूरत पड़ती है। विशेष लेखन की भाषा और शैली में सबसे बुनियादी फर्क यह है कि हर क्षेत्र विशेष की अपनी विशेष तकनीकी शब्दावली होती है। विशेष लेखन की कोई निश्चित शैली नहीं होती। लेकिन अगर आप अपने बीट से जुड़ा कोई समाचार लिख रहे हैं तो उसकी शैली उलटा पिरामिड शैली ही होगी। लेकिन अगर आप समाचार फीचर लिख रहे हैं तो उसकी शैली कथात्मक हो सकती है। इसी तरह अगर आप लेख या टिप्पणी लिख रहे हों तो इसकी शुरुआत भी फीचर की तरह हो सकती है। आप शैली कोई भी अपनाएँ लेकिन मूल बात यह है कि किसी खास विषय पर लिखा गया आपका आलेख सामान्य लेख से अलग होना चाहिए।

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Chapter 11 – कैसे करें कहानी का नाट्य रूपांतरण

प्रश्न 1 – कहानी और नाटक में मुख्य अंतर क्या है? स्पष्ट कीजिए।(40 शब्दों में)
उत्तर – कहानी कही जाती है या पढ़ी जाती है। नाटक मंच पर प्रस्तुत किया जाता है। नाटक को मंच पर अभिनेता अभिनय द्वारा प्रस्तुत करते हैं। मंच सज्जा होती है, संगीत होता है, प्रकाश व्यवस्था होती है।

प्रश्न 2 – नाट्य रूपांतरण करते समय कहानी के किन तत्वों को नाटक में ढालना मुश्किल होता है ?(40 शब्दों में)
उत्तर – कहानी का नाटक में रूपांतरण करने के लिए सबसे पहले कहानी और नाटक में विविधता या अनेकता तथा समानताओं को समझना आवश्यक है। इसके लिए हमें नाटक की विशेषताओं को समझना होगा। जहाँ कहानी का संबंध लेखक और पाठक से जुड़ता है वहीं नाटक लेखक, निर्देशक, पात्र, दर्शक, श्रोता एवं अन्य लोगों को एक–दूसरे से जोड़ता है। चूँकि दृश्य का स्मृतियों से गहरा संबंध होता है इसलिए नाटक एवं फ़िल्म को लोग देर तक याद रखते हैं। यही कारण है कि गोदान, देवदास, उसने कहा था, सद्गति आदि के नाट्य रूपांतरण कई बार हुए हैं और कई तरह से हुए हैं।

प्रश्न 3 – कहानी का नाट्य रूपांतरण करते समय दृश्यों का विभाजन किस प्रकार किया जाता है ? (80 शब्दों में)
उत्तर – रूपांतरण में एक समस्या पात्रों के मनोभावों को कहानीकार द्वारा विवरण के रूप में व्यक्त प्रसंगों या मानसिक द्वंद्व के दृश्यों की नाटकीय प्रस्तुति में आ सकती है। उदाहरण के लिए ईदगाह का वह हिस्सा जहाँ हामिद इस द्वंद्व में है कि क्या–क्या खरीदे या जहाँ वह यह सोचता है कि अम्मा का हाथ जल जाता है, उसका रूपांतरण कठिन है। रूपांतरण में इस तरह के विवरण प्रस्तुत करने के लिए स्वगत कथन का प्रयोग किया जाता है जिसमें लेखक मंच के कोने में जाकर अपने आपसे यह संवाद बोलता है। कहानी का नाट्य रूपांतरण करने से पहले यह जानकारी होना आवश्यक है कि वर्तमान रंगमंच में क्या संभावनाएँ हैं। यह तभी संभव है जब अच्छे नाटक देखे जाएँ। इसलिए रूपांतरण का पहला पाठ यही हो सकता है कि अच्छी नाट्य प्रस्तुतियाँ देखी जाएँ।

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Chapter 12 – कैसे बनता है रेडियो नाटक

प्रश्न 1 – रेडियो को श्रोताओं से संचालित माध्यम क्यों माना जाता है? मुद्रित माध्यमों की तुलना मे रेडियो के श्रोताओं को कौन-सी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं है?(80 शब्दों में)
अथवा
रेडियो को श्रोताओं से संचालित माध्यम क्यों माना जाता है ? (80 शब्दों में)
उत्तर – रेडियो श्रव्य माध्यम है। इसमें सब कुछ ध्वनि, स्वर और शब्दों का खेल है। इन सब वजहों से रेडियो को श्रोताओं से संचालित माध्यम माना जाता है। रेडियो पत्रकारों को अपने श्रोताओं का पूरा ध्यान रखना चाहिए। अगर किसी समाचार/लेख या फ़ीचर को पढ़ते हुए कोई बात समझ में नहीं आई तो पाठक उसे फिर से पढ़ सकता है या शब्दकोश में उसका अर्थ देख सकता है या किसी से पूछ सकता है, लेकिन रेडियो के श्रोता को यह सुविधा उपलब्ध नहीं होती। अखबार की तरह रेडियो समाचार बुलेटिन को कभी भी और कहीं से भी नहीं सुन सकता। उसे बुलेटिन के प्रसारण समय का इंतजार करना होगा और फिर शुरू से लेकर अंत तक बारी-बारी से एक के बाद दूसरा समाचार सुनना होगा। इस बीच, वह इधर-उधर नहीं आ-जा सकता और न ही उसके पास किसी गूढ़ शब्द या वाक्यांश के आने पर शब्दकोश का सहारा लेने का समय होता है। अगर वह शब्दकोश में अर्थ ढूँढ़ने लगेगा तो बुलेटिन आगे निकल जाएगा।

प्रश्न 2 – रेडियो नाटक का लेखन करते समय विशेष सावधानी क्यों बरतनी पड़ती है ?(40 शब्दों में)
उत्तर – रेडियो नाटक का लेखन करते समय विशेष सावधानी बरतनी पड़ती है क्योंकि सिनेमा और रंगमंच की तरह रेडियो नाटक में भी चरित्र होते हैं उन चरित्रों के आपसी संवाद होते हैं और इन्हीं संवादों के ज़रिये आगे बढ़ती है कहानी। बस सिनेमा और रंगमंच की तरह रेडियो नाटक में विजुअल्स अर्थात दृश्य नहीं होते। रेडियो पूरी तरह से श्रव्य माध्यम है इसीलिए रेडियो नाटक का लेखन सिनेमा व रंगमंच के लेखन से थोड़ा भिन्न भी है और थोड़ा मुश्किल भी। यहाँ आपकी सहायता के लिए न मंच सज्जा तथा वस्त्र सज्जा है और न ही अभिनेता के चेहरे की भाव-भंगिमाएँ। वरना बाकी सब कुछ वैसा ही है। एक कहानी, कहानी का वही ढाँचा, शुरुआत-मध्य-अंत, इसे यूँ भी कह सकते हैं, परिचय-द्वंद्व-समाधान। बस ये सब होगा आवाज़ के माध्यम से।

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Chapter 13 – नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन

प्रश्न 1 – रटंत को बुरी लत क्यों कहा जाता है ?(40 शब्दों में)
उत्तर – रटंत का मतलब है, दूसरों के द्वारा तैयार की गई सामग्री को याद करके ज्यों–का–त्यों प्रस्तुत कर देने की कुटेव (बुरी लत)। इस कुटेव का शिकार हो जाने पर असली अभ्यास या रियाज़ का मौका ही कहाँ मिलता है? लेखन का आशय यहाँ यांत्रिक हस्तकौशल से नहीं है। उसका आशय भाषा के सहारे किसी चीज़ पर विचार करने और उस विचार को व्याकरणिक शुद्धता के साथ सुसंगठित रूप में अभिव्यक्त करने से है। भाषा विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम ही नहीं, स्वयं विचार करने का साधन भी है।

प्रश्न 2 – नए और अप्रत्याशित विषय पर लिखने से आप क्या समझते हैं? इसका अभ्यास न होने पर क्या हानि होती है?(40 शब्दों में)
उत्तर – ऐसे लेखन के लिए किसी भी तरह के विषय दिए जा सकते हैं, उनकी संख्या अपरिमित है। जैसे आपके सामने की दीवार, उस दीवार पर टंगी घड़ी, उस दीवार में बाहर की ओर खुलता झरोखा, टी.वी. धारावाहिकों में स्त्री, बहुत ज़रूरी है शिक्षा, इत्यादि। बहुत खुलापन रखने वाले विषयों पर अगर हम शताधिक कोणों से विचार कर सकते हैं, तो उनसे भिन्न, किंचित केंद्रित प्रकृति के विषयों पर विचार करने के कोण स्वाभाविक रूप से थोड़े कम होते हैं। जब विषय पर विचार करने की चौहद्दियाँ बहुत सख्ती से तय न कर दी गई हों, उस सूरत में सुसंबद्धता बनाए रखने के लिए कोशिश करनी पड़ती है।

प्रश्न 3 – नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन में ‘मैं’ शैली के प्रयोग के विषय में क्या स्थिति है ?(40 शब्दों में)
उत्तर – नए और अनपेक्षित विषयों पर लिखते समय, “मैं” शैली के उपयोग के बारे में कुछ धारणाएँ होती हैं, जिन पर विचार करना सहायक हो सकता है। एक धारणा यह है कि “मैं” शैली का उपयोग करने से लेखक को अपने व्यक्तिगत अनुभव और दृष्टिकोण साझा करने की अनुमति मिलती है, जो लेखन में गहराई और प्रामाणिकता जोड़ सकता है।
एक और धारणा यह है कि “मैं” शैली का उपयोग लेखन को अधिक आकर्षक और दिलचस्प बना सकता है, क्योंकि यह लेखक को अपने व्यक्तित्व और आवाज को टुकड़े में डालने की अनुमति देता है।
हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि “मैं” शैली का उपयोग विषय पर ही ध्यान देने के साथ संतुलित होना चाहिए। लेखक को अपने व्यक्तिगत अनुभवों और दृष्टिकोणों का उपयोग विषय को बढ़ाने के लिए करना चाहिए, न कि इसे ढंकने के लिए। इसके अतिरिक्त, लेखक को अपने दर्शकों के प्रति सावधान रहना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनका लेखन संदर्भ और टुकड़े के स्वर के लिए उपयुक्त है।

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