Character Sketch of the Writer (Dr. Bhimrao Ambedkar) from CBSE Class 12 Hindi Chapter 15 श्रम विभाजन व् जाति प्रथा
Character Sketch of the Writer (Dr. Bhimrao Ambedkar)
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी जातिवाद का विरोध करते हैं – डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी कहते हैं कि इस आधुनिक युग में भी जातिवाद को समर्थन देने वालों की कोई कमी नहीं है। जातिवाद के उन समर्थकों द्वारा एक तर्क यह भी दिया जाता है कि आधुनिक सभ्य समाज में कार्यकुशलता के लिए कार्य विभाजन आवश्यक है और जातिप्रथा, कार्य विभाजन का ही दूसरा रूप है। इसीलिए उनके अनुसार जातिवाद में कोई बुराई नहीं है। परन्तु सच तो यह है कि जाति प्रथा, काम का बंटवारा करने के साथ–साथ लोगों का बंटवारा भी करती हैं। यह भी सत्य है कि समाज के विकास के लिए कार्य का बंटवारा भी आवश्यक है। परन्तु समाज का विकास तभी संभव है जब यह कार्य विभाजन किसी जाति के आधार पर नहीं बल्कि व्यक्ति की योग्यता, रूचि और उसकी कार्य कुशलता व निपुणता के आधार पर हो।
भीमराव अंबेडकर जी ने जातिप्रथा के सबसे बड़ा नकारात्मक पहलू को उजागर किया है – भीमराव अंबेडकर जी कहते हैं कि एक समय के लिए जाति प्रथा को यदि श्रम विभाजन मान भी लिया जाए तो भी यह स्वाभाविक और उचित नहीं होगा। क्योंकि यह मनुष्य की रुचि के हिसाब से नहीं है। इसमें व्यक्ति जिस जाति या वर्ग में जन्म लेता हैं, उसे उसी के अनुसार कार्य करना होता हैं। भले फिर वह उसकी रूचि का कार्य हो या ना हो। सब कुछ उसके माता–पिता के सामाजिक स्तर के हिसाब से बच्चे के जन्म लेने से पहले से ही निर्धारित कर दिया जाता है कि वह भविष्य में क्या कार्य करेगा। जातिप्रथा का सबसे बड़ा नकारात्मक पहलू यही है।
समाज व राष्ट्र निर्माण के लिए भीमराव अंबेडकर जी जातिप्रथा के स्थान पर कार्य विभाजन का समर्थन करते हैं – व्यक्ति को उसकी रूचि के आधार पर कार्य करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। जैसे अगर कोई ब्राह्मण का पुत्र सैनिक, वैज्ञानिक या इंजीनियर बनकर देश सेवा करना चाहता है तो उसे ऐसा करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। कहने का अभिप्राय यह है कि व्यक्ति को अपनी रूचि व क्षमता के हिसाब से अपना कार्य क्षेत्र चुनने की पूर्ण स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। तभी देश का युवक वर्ग अपनी पूरी क्षमता से समाज व राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभा पाएंगे।
भीमराव अंबेडकर जी जातिप्रथा को दोष बताते हैं – भीमराव अंबेडकर जी के अनुसार जातिप्रथा, व्यक्ति के कार्यक्षेत्र को पहले से ही निर्धारित तो करती ही हैं। साथ ही साथ यह मनुष्य को जीवन भर के लिए उसी पेशे के साथ बंधे रहने को मजबूर भी करती है। फिर भले ही व्यक्ति की उस कार्य को करने में कोई रुचि हो या ना हो, या फिर उस कार्य से उसकी आजीविका चल रही हो या चल रही हो, उसका और उसके परिवार का भरण पोषण हो रहा हो या ना हो रहा हो। यहाँ तक कि उस कार्य से उसके भूखे मरने की नौबत भी आ जाए तो भी, वह अपना कार्य बदल कर कोई दूसरा कार्य नहीं सकता है। इसीलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि कार्यक्षेत्र को बदलने की अनुमति न देकर जाति प्रथा भारत में बेरोजगारी व् भुखमरी बढ़ाने में भी अहम भूमिका निभाती है।
भीमराव अंबेडकर जी श्रम विभाजन की दृष्टि से भी जाति प्रथा में दोष बताते हैं – भीमराव अंबेडकर जी के अनुसार जातिप्रथा में श्रम विभाजन मनुष्य की इच्छा पर निर्भर नहीं होता। इसमें मनुष्य की व्यक्तिगत भावनाओं व व्यक्तिगत रूचि का कोई स्थान और महत्व भी नहीं होता। हर जाति या वर्ग के लोगों को उनके लिए पहले से ही निर्धारित कार्य करने पड़ते है। कई लोगों को अपने पूर्व निर्धारित या पैतृक कार्य में कोई रुचि नहीं होती, फिर भी उन्हें वो कार्य करने पड़ते है। क्योंकि जाति प्रथा के आधार पर वह कार्य उनके लिए पहले से ही निश्चित है और कोई अन्य कार्य या व्यवसाय चुनने की उन्हें कोई अनुमति नहीं है। अतः इस बात से यह प्रमाणित होता है कि व्यक्ति की आर्थिक असुविधाओं के लिए भी जाति प्रथा हानिकारक है। क्योंकि यह मनुष्य की स्वाभाविक रुचि के अनुसार कार्य करने की अनुमति नहीं देती। और बेमन से किया गए कार्य में व्यक्ति कभी भी उन्नति नहीं कर सकता।
भीमराव अंबेडकर जी अपनी कल्पना के आदर्श–समाज का वर्णन करते हैं – डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी की कल्पना का आदर्श समाज स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे पर आधारित है। और किसी भी आदर्श समाज में इतनी गतिशीलता या लचीलापन तो होना ही चाहिए कि यदि समय के साथ समाज में कोई परिवर्तन करने की आवश्यकता हो तो वह परिवर्तन आसानी से किये जा सकें और यदि लोगों की भलाई के लिए कोई फैसला या नियम बनाया जाए तो उन फैसलों या नियमों का लाभ उच्च वर्ग से निम्न वर्ग तक के सभी व्यक्ति को एक समान रूप से मिल सके। समाज में लोगों के बीच किसी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। क्योंकि जिस समाज में लोग एक दूसरे के हितों का ध्यान रखते है, वह समाज निश्चित रूप से उन्नति करता है।
भीमराव अंबेडकर जी सभी को समान प्रयत्न करने का अवसर उपलब्ध करवाने पर बल देते हैं – कभी भी शारीरिक वंश परंपरा और सामाजिक उत्तराधिकार के आधार पर निर्णय नहीं लेना चाहिए। यदि हमें समाज के सभी सदस्यों से अधिकतम योगदान प्राप्त करना है तो हमें सभी को सामान अवसर उपलब्ध कराने होंगे और सभी के साथ एक समान व्यवहार करना होगा। और प्रत्येक व्यक्ति को उसकी क्षमता का विकास करने के लिए प्रोत्साहित भी करना होगा। क्योंकि यह संभव है कि किसी व्यक्ति का प्रयत्न कम हो सकता है और किसी का ज्यादा लेकिन कम से कम हम सभी को समान प्रयत्न करने का अवसर तो उपलब्ध करवा सकते हैं।
भीमराव अंबेडकर जी सभी के साथ समान व्यवहार करने को व्यवहारिक मानते हैं – अंबेडकर जी कहते हैं कि मानवता की दृष्टि से समाज को दो श्रेणियों में नहीं बांटा जा सकता। व्यवहारिक सिद्धांत भी यही कहता है कि सभी के साथ समान व्यवहार किया जाए। राजनेता इसी धारणा को लेकर चलता है कि सबके साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए। तभी उसकी राजनीति फलती फूलती है। हालांकि समानता एक काल्पनिक जगत की वस्तु है फिर भी राजनीतिज्ञ को सभी परिस्थितियों को दृष्टि में रखते हुए , यही मार्ग अपनाना पड़ता है क्योंकि यही व्यवहारिक भी है और यही उसके व्यवहार की एकमात्र कसौटी भी है।
Questions related to Character of the Writer
प्रश्न 1 – डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जातिवाद का विरोध करते हैं। संक्षेप में समझाइए।
प्रश्न 2 – जातिवाद के समर्थकों द्वारा क्या तर्क दिए जाते हैं? वर्णन कीजिए।
प्रश्न 3 – आपके अनुसार समाज का विकास के लिए कार्य विभाजन किस आधार पर होना चाहिए?
प्रश्न 4 – भारतीय समाज की जाति प्रथा की क्या विशेषता है?
प्रश्न 5 – जाति प्रथा को, श्रम विभाजन मान लेना क्यों स्वाभाविक और उचित नहीं होगा?
प्रश्न 6 – आपके अनुसार व्यक्ति को उसकी रूचि के आधार पर कार्य करने की स्वतंत्रता क्यों होनी चाहिए? स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 7 – आधुनिक समय में प्रतिकूल परिस्थितियाँ होने के कारण यदि मनुष्य को अपना कार्यक्षेत्र बदलने की स्वतंत्रता ना हो तो परिणाम क्या हो सकता है?
प्रश्न 8 – व्यक्ति को उसकी इच्छा के अनुसार कार्य करने की आज़ादी व् उसकी इच्छा के विपरीत किसी कार्य को करने के परिणामों को अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 9 – भीमराव अंबेडकर जी के कल्पना के आदर्श–समाज का वर्णन कीजिए।
प्रश्न 10 – डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी के अनुसार सही अर्थों में लोकतंत्र क्या है?
प्रश्न 11 – लोगों को दासता अर्थात गुलामी में जकड़ कर रखना। आशय स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 12 – सभी को समान प्रयत्न करने का अवसर उपलब्ध करवाने के क्या लाभ हो सकते हैं?
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