Character Sketch of the Writer (Mahadevi Verma) and Sevika Bhaktin (Lachmin) from CBSE Class 12 Hindi Chapter 10 भक्तिन
Character Sketch of the Writer (Mahadevi Verma)
‘भक्तिन’ महादेवी जी का प्रसिद्ध संस्मरणात्मक रेखाचित्र है जो ‘स्मृति की रेखाएँ’ में संकलित है। इसमें लेखिका ने अपनी सेविका भक्तिन (लछमिन) के भूतकाल और वर्तमान के बारे में जिस तरह से वर्णन किया है, वह लेखिका के दिलचस्प व्यक्तित्व को दर्शाता है –
- दयालु – लेखिका का स्वभाव अत्यंत दयालु था। जब भक्तिन ने ईमानदारी से अपना नाम लछमिन बताया और इस नाम का प्रयोग न करने को कहा तो लेखिका ने भी भक्तिन नाम रख कर उसकी विवशता को समझा। इसी दयालुता के कारण भक्तिन का लेखिका के प्रति प्रेम अपरम्पार हो गया था।
- भक्तिन के रीती–रिवाजों का मान करना – आधुनिकता को मानने वाली लेखिका ने जब भक्तिन को रसोईघर में कुछ रीति–रिवाजों को करते देखा तो लेखिका ने भक्तिन को रोकने के बजाए, समझौता करना उचित समझा।
- लेखिका और भक्तिन का अनोखा सम्बन्ध – लेखिका और भक्तिन के बीच स्वामी–सेवक का संबंध नहीं था। इसका कारण यह था कि लेखिका चाहते हुए भी उसे नौकरी से हटा नहीं सकती थी और भक्तिन भी चले जाने का आदेश पाकर हँसकर टाल देती थी। भक्तिन लेखिका के परिचितों व साहित्यिक बंधुओं से भी परिचित थी। वह उनके साथ वैसा ही व्यवहार करती थी जैसा वे लेखिका से करती थी। लेखिका भक्तिन के अंतिम परिच्छेद को पूरा नहीं करना चाहती। इसका कारण लेखिका का भक्तिन से लगाव और उसे खोने का डर है।
Questions related to Character of the Writer (Mahadevi Verma)
प्रश्न 1 – लेखिका द्वारा लछमिन को भक्तिन नाम क्यों दिया गया?
प्रश्न 2 – पाठ के आधार पर लेखिका व् भक्तिन के सम्बन्ध को उजागर कीजिए।
Character Sketch of Sevika Bhaktin (Lachmin)
भक्तिन पाठ में लेखिका ने अपनी सेविका भक्तिन (लछमिन) के भूतकाल और वर्तमान के बारे में बताते हुए उसके व्यक्तित्व का दिलचस्प खाका खींचा है। भक्तिन ने एक संघर्ष से भरा, स्वाभिमानी और कर्मठ जीवन जिया, इसका संवेदनशील चित्रण लेखिका ने किया है।
- भक्तिन का व्यक्तित्व – भक्तिन का कद छोटा व शरीर दुबला था और उसके होंठ पतले थे। वह गले में कंठी–माला पहनती थी। वैसे तो उसका नाम लछमिन (लक्ष्मी) था, परंतु उसने अपना परिचय ईमानदारी से देने के बाद लेखिका से यह नाम प्रयोग न करने की प्रार्थना की थी, क्योंकि उसका नाम उसकी आर्थिक स्थिति से बिल्कुल विपरीत था। फिर उसकी कंठी–माला को देखकर लेखिका ने उसका नाम ‘भक्तिन’ रख दिया था। जब भी कोई पूछता था कि वह लेखिका के साथ कब से है तो वह बोल दिया करती थी कि पचास वर्षों से। सेवा–धर्म में वह हनुमान जी से स्पर्द्धा करती थी।
- भक्तिन का बचपन – भक्तिन ऐतिहासिक झूसी के गाँव के प्रसिद्ध सूरमा की इकलौती बेटी थी। उसका लालन–पालन उसकी सौतेली माँ ने किया। उसका विवाह पाँच वर्ष की उम्र में ही हँडिया गाँव के एक गोपालक के पुत्र के साथ कर दिया गया था। नौ वर्ष की उम्र में उसका गौना हो गया। जब उसके पिता की मृत्यु हुई तो उसकी सास ने रोने–पीटने के अपशकुन से बचने के लिए उसे यह कहकर मायके भेज दिया कि वह बहुत दिनों से गई नहीं है। मायके जाने पर पिता की मृत्यु से दुखी होकर वह बिना पानी पिए ही घर वापस चली आई। घर आकर सास को खरी–खोटी सुनाई तथा पति के ऊपर गहने फेंककर अपना दुःख प्रकट किया। जीवन का पहला भाग तो भक्तिन का कष्टों भरा बीता।
- भक्तिन का जीवन दुखदायी रहा – बचपन की ही भाँती भक्तिन को जीवन के दूसरे भाग में भी सुख नहीं मिला। उसकी लगातार तीन लड़कियाँ पैदा हुई तो सास व जेठानियों ने उसकी उपेक्षा करनी शुरू कर दी। सजा के तौर पर जेठानियाँ कोई काम नहीं करती थी बल्कि बैठकर खातीं थी तथा घर का सारा काम जैसे – चक्की चलाना, कूटना, पीसना, खाना बनाना आदि कार्य–भक्तिन ही किया करती थी। साथ ही छोटी लड़कियाँ गोबर उठातीं तथा कंडे थापती थीं। खाने पर भी भेदभाव किया जाता था।
- भक्तिन कठिन समय में भी सकारात्मक बनी रहती थी – तमाम कठिनाइयों में भक्तिन फिर भी अपने आप को सौभाग्वती मानती थी क्योंकि उसके पति का व्यवहार उसके साथ बहुत अच्छा था। जबकि जेठानियों के पति उन्हें कभी भी किसी भी बात पर मारा–पीटा करते थे। पति–प्रेम के बल पर ही वह सबसे अलग हो गई।
- बुद्धिमान व् परिश्रमी – अलग होते समय अपने ज्ञान के कारण भक्तिन को गाय–भैंस, खेत, खलिहान, अमराई के पेड़ आदि ठीक–ठाक मिल गए। दोनों पति–पत्नी के परिश्रम के कारण उनके घर में समृद्ध आ गई। पति ने बड़ी लड़की का विवाह धूमधाम से किया। उनकी संपत्ति और समृद्धि देखकर परिवार वालों को उनसे ईर्ष्या होती थी।
- चरित्रवती – जब भक्तिन के पति की मृत्यु हुई थी, उस समय भक्तिन की आयु केवल 29 वर्ष की थी। परिवार वालों ने षडियंत्र वश भक्तिन के समक्ष दूसरे विवाह का प्रस्ताव किया तो भक्तिन ने साफ मना कर दिया। उसने अपने सारे केश मुँड़वा दिए तथा गुरु से मंत्र लेकर कंठी बाँध ली। उसने दोनों लड़कियों की शादी भी कर दी और बड़े दामाद को घर–जमाई बनाकर रखा।
- स्वाभिमानी – दुर्भाग्य ने भक्तिन का पीछा नहीं छोड़ा। उसकी लड़की भी विधवा हो गई और परिवार वालों के षडियंत्र में फस कर तीतरबाज वर से शादी करनी पड़ी। दामाद निश्चित होकर तीतर लड़ाता था, जिसकी वजह से पारिवारिक द्वेष इस कदर बढ़ गया कि लगान अदा करना भी मुश्किल हो गया। लगान न पहुँचने के कारण जमींदार ने एक दिन सजा के तौर पर भक्तिन को पूरा दिन कड़ी धूप में खड़ा रखा। भक्तिन यह अपमान सहन न कर सकी और कमाई के विचार से शहर चली आई।
- रीति–रिवाजों का पालन करने वाली – जीवन के अंतिम परिच्छेद में, घुटी हुई चाँद, मैली धोती तथा गले में कंठी पहने भक्तिन लेखिका के पास नौकरी के लिए पहुँची। नौकरी मिलने पर उसने अगले दिन स्नान करके लेखिका की धुली धोती भी जल के छींटों से पवित्र करने के बाद पहनी। निकलते सूर्य व पीपल को अर्घ दिया। दो मिनट जप किया और कोयले की मोटी रेखा से चौके की सीमा निर्धारित करके खाना बनाना शुरू किया। भक्तिन छूत–पाक को मानने वाली थी, इस कारण लेखिका ने समझौता करना उचित समझा।
- भक्तिन में दुर्गुणों का अभाव नहीं था – भक्तिन इधर–उधर पड़े पैसों को भण्डारगृह में किसी मटकी में छिपाकर रख देती थी जिसे वह चोरी नहीं मानती थी। पूछने पर वह कहती थी कि यह उसका अपना घर है, पैसा–रुपया जो इधर–उधर पड़ा देखा, सँभालकर रख लिया। अपनी मालकिन को खुश करने के लिए वह किसी बात को बदल भी देती थी। लेखिका ने उसे सिर मुँडवाने से रोका तो उसने ‘तीरथ गए मुँड़ाए सिद्ध।’ कहकर अपना तर्क दे दिया। उसे पढ़ना–लिखना पसंद नहीं था। यही कारण है कि जब लेखिका ने उसे हस्ताक्षर करना सीखाना चाहा तो उसने तर्क दिया कि उसकी मालकिन दिन–रात किताब पढ़ती है। यदि वह भी पढ़ने लगे तो घर के काम कौन करेगा। भक्तिन दूसरों को अपने मन के अनुकूल बनाने की इच्छा रखती थी, परन्तु स्वयं को वह बदल नहीं सकती थी।
- लेखिका की सहायता के लिए सदैव तत्पर – उत्तर–पुस्तिका के निरीक्षण–कार्य में लेखिका का जब किसी ने सहयोग नहीं दिया तब वह कहती फिरती थी कि उसकी मालकिन जैसा कार्य कोई नहीं जानता। वह स्वयं सहायता करती थी। कभी उत्तर–पुस्तिकाओं को बाँधकर, कभी अधूरे चित्र को कोने में रखकर, कभी रंग की प्याली धोकर और कभी चटाई को आँचल से झाड़कर वह जो सहायता करती थी उससे भक्तिन का अन्य व्यक्तियों से अधिक बुद्धिमान होना प्रमाणित हो जाता है। जब लेखिका बार–बार बुलाने के बाद भी भोजन के लिए न उठकर चित्र बनाती रहती थी, तब भक्तिन कभी दही का शरबत अथवा कभी तुलसी की चाय पिलाकर उसे भूख के कष्ट से बचाती थी।
- संवेदनशील – युद्ध के समय लोग डरे हुए थे, उस समय वह बेटी–दामाद के आग्रह बुलाने पर भी गाँव नहीं गई और लेखिका के साथ ही रही। युद्ध में भारतीय सेना के पलायन की बात सुनकर वह लेखिका को अपने गाँव ले जाना चाहती थी। वह लेखिका से कहती है कि वह गाँव में उसके लिए हर तरह के प्रबंध कर देगी। क्योंकि उसने कुछ रूपए गाँव में ही छिपा रखे हैं। भक्तिन कारागार से बहुत डरती थी, इसी बात पर लोग उसे चिढ़ाते थे कि लेखिका को कारागार में डाला जा सकता है। इस पर कारागार से डरने के बावजूद भी भक्तिन लेखिका के साथ कारागार चलने का हठ करने लगी थी। अपनी मालकिन के साथ जेल जाने के हक के लिए वह बड़े लाट तक से लड़ने को तैयार थी। लेखिका भक्तिन के अंतिम परिच्छेद को पूरा नहीं करना चाहती थी इसका कारण लेखिका का भक्तिन से लगाव और उसे खोने का डर था।
- भक्तिन में गजब का सेवा–भाव था – छात्रावास की रोशनी बुझने पर जब लेखिका के परिवार के सदस्य–हिरनी सोना, कुत्ता बसंत, बिल्ली गोधूलि भी–आराम करने लगते थे, तब भी भक्तिन लेखिका के साथ जागती रहती थी। वह उसे कभी पुस्तक देती, कभी स्याही तो कभी फ़ाइल देती थी। भक्तिन लेखिका के जागने से पहले जागती थी तथा लेखिका के बाद सोती थी। लेखिका को भक्तिन अपनी छाया के समान लगने लगी थी।
Questions related to Character of Sevika Bhaktin (Lachmin)
प्रश्न 1 – भक्तिन के व्यक्तित्व का वर्णन कीजिए।
प्रश्न 2 – भक्तिन को उसके बचपन में किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा?
प्रश्न 3 – भक्तिन ने जीवन में कैसी कठिनाइयों को झेला? वर्णन कीजिए।
प्रश्न 4 – भक्तिन एक बुद्धिमान व् परिश्रमी महिला थी। पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 5 – भक्तिन के चरित्रवती होने का संकेत पाठ के किस हिस्से से होता है?
प्रश्न 6 – भक्तिन के स्वाभिमानी होने का पता कैसे चलता है?
प्रश्न 7 – लेखिका के अनुसार भक्तिन में कौन से दुर्गुण थे?
प्रश्न 8 – भक्तिन लेखिका की सहायता किस प्रकार किया करती थी?
प्रश्न 9 – भक्तिन कारागार से बहुत डरती थी, परन्तु फिर भी लेखिका के साथ कारागार में रहने के लिए किसी से भी लड़ने को तैयार थी। आशय स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 10 – भक्तिन के सेवा–भाव को दर्शाइए।
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