यशोधर बाबू, किशनदा और यशोधर बाबू के बड़े बेटे भूषण का चरित्र-चित्रण | Character Sketch of Yashodhar Babu, Kishanada and Yashodhar Babu’s Elder Son Bhushan from CBSE Class 12 Hindi Vitan Chapter 1 सिल्वर वैंडिंग
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यशोधर बाबू का चरित्र-चित्रण (Character Sketch of Yashodhar Babu)
यशोधर बाबू पुरानी पीढ़ी से तालुक रखते थे – यशोधर बाबू पुराने ख्यालात के व्यक्ति थे जो अपने परंपरागत आदर्शों और अपने संस्कारों को जीवित रखना चाहते थे। अपने बच्चों को भी अपनी संस्कृति से जोड़े रखना चाहते थे। समय का सदुपयोग करना, अपना काम स्वयं करना व् अपने से बड़ों की इज्जत करना जैसे संस्कारों को वे नई पीढ़ी को देना चाहते थे।
समय के पाबंद – यशोधर बाबू सेक्शन ऑफिसर थे। जब उन्होंने अपने दफ़्तर की पुरानी दीवार घड़ी और अपनी कलाई घड़ी में पाँच मिनट का अंतर देखा तो उन्होंने अपने दफ़्तर की घड़ी को ही सुस्त ठहराया। क्योंकि यशोधर बाबू अपनी घड़ी रोजाना सुबह-शाम रेडियो समाचारों से मिलाते थे। वैसे तो उनका ऑफिस पाँच बजे ही समाप्त हो जाता था किन्तु यशोधर बाबू के कारण सभी को पांच बजे के बाद भी दफ़्तर में बैठना पड़ता था।
फजूलखर्चों के विरोधी – यशोधर बाबू से जब उनकी शादी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने सिक्स्थ फरवरी नाइंटिन फोर्टी सेवन बताया और एक कर्मचारी ने जब हिसाब लगाया तो पता चला कि उनकी ‘सिल्वर वैडिंग’ है। सभी के जोर देने पर न चाहते हुए भी यशोधर बाबू ने तीस रूपए चाय पार्टी के लिए दिए परन्तु खुद उस पार्टी में शामिल नहीं हुए क्योंकि चाय-पानी और गप्प-गप्पाष्टक में वक्त बरबाद करना किशनदा की परंपरा के विरुद्ध था। ऐसे तो यशोधर बाबू अपने बटुए में सौ-डेढ़ सौ रुपये हमेशा रखते हैं परन्तु उनका दैनिक खर्च बिलकुल न के बराबर है। क्योंकि पहले तो गोल मार्केट से ‘सेक्रेट्रिएट’ तक वे साइकिल में आते-जाते थे, मगर अब पैदल आने-जाने लगे हैं क्योंकि उनके बच्चों को उनका साइकिल-सवार होना सख्त नागवार है।
धार्मिक पथ की ओर झुकाव – यशोधर बाबू रोज दफ्तर से बिड़ला मंदिर जाते थे और उसके उद्यान में बैठकर प्रवचन सुनते थे। यह बात उनके पत्नी-बच्चों को अच्छी नहीं लगती थी क्योंकि उनके अनुसार वे इतने बूढ़े नहीं हैं कि रोज़-रोज़ मंदिर जाएँ, इतने ज़्यादा व्रत करें। परन्तु यशोधर बाबू हर रोज अपनी यही दिनचर्य करते थे।
घर के रोज़मर्रा कार्य स्वयं करना – रोजाना बिड़ला मंदिर से यशोधर बाबू पहाड़गंज जाते थे और घर के लिए साग-सब्जी खरीद लाते थे। ये सब काम निपटाते हुए वे घर आठ बजे से पहले नहीं पहुँचते थे।
जीवन में सब अच्छा होते हुए भी अकेलेपन का एहसास – यशोधर बाबू का बड़ा लड़का एक प्रमुख विज्ञापन संस्था में नौकरी कर रहा था। दूसरा बेटा आई.ए.एस. की तैयारी कर रहा था, तीसरा बेटा स्कालरशिप लेकर अमरीका चला गया था और उनकी एकमात्र बेटी भी डाक्टरी की उच्चतम शिक्षा के लिए स्वयं भी अमरीका जाना चाहती थी। यशोधर बाबू एक ओर तो बच्चों की इस तरक्की से खुश होते थे वहीँ दूसरी और अनुभव करते हैं कि वह खुशहाली भी कैसी जो अपनों में परायापन पैदा करे।
एक पिता की इच्छा अनुसार बच्चों से उम्मीदें रखना – यशोधर बाबू को भी हर पिता की तरह अच्छा लगता अगर उनके बेटे बड़े होने पर घर की कुछ जिम्मेदारी अपने पिता से छुड़वा कर खुद करने का प्रस्ताव रखते जैसे कि दूध लाना, राशन लाना, सीजी. एच. एस. डिस्पेंसरी से दवा लाना, सदर बाजार जाकर दालें लाना, पहाड़गंज से सब्जी लाना, डिपो से कोयला लाना। खुद से तो कभी उनके बच्चों ने जिम्मेदारी उठाना मुनासिब नहीं समझा। यशोधर बाबू भी चाहते कि उनका बेटा अपना वेतन उनके हाथों में रखे या झूठे ही सही एक बार यह कह तो दे। परन्तु इसके विपरीत यदि उसके किसी काम में यशोधर बाबू कोई नुक्स निकालते तो वह कह देता कि यह काम मैं अपने पैसे से करने को कह रहा हूँ, आपके से नहीं जो आप नुक्ताचीनी करें।
यशोधर बाबू किशनदा के कहे अनुसार हमेशा संस्कृति से जुड़े रहने का प्रयास करते थे – जब यशोधर बाबू की सिल्वर-वैडिंग पार्टी में उनके बड़े बेटे भूषण ने अपने मित्रों-सहयोगियों का यशोधर बाबू से परिचय कराना शुरू किया। तो यशोधर बाबू ने भी आधुनिक तरीकों से ही उन्हें वापिस परिचय दिया। यहाँ भी उन्हें किशनदा की बात याद आई कि आना सब कुछ चाहिए, सीखना हर एक की बात ठहरी, लेकिन अपनी छोड़नी नहीं हुई। टाई-सूट पहनना आना चाहिए लेकिन धोती-कुर्ता अपनी पोशाक है यह नहीं भूलना चाहिए। अब बच्चों ने जब केक काटने का आग्रह किया तो थोड़ी न-नुकुर के बाद केक काटा गया।
आधुनिकता की धारा में अपने आप को भावुक व् अकेला महसूस करना – जब भूषण ने यशोधर बाबू को उपहार में ऊनी ड्रेसिंग गाउन दिया, तब यशोधर बाबू थोड़ा खुश हुए परन्तु जब भूषण ने कहा कि जब वे सवेरे दूध लेने जाते हैं तो फटा पुलोवर पहन के चले जाते हैं, वह बहुत ही बुरा लगता है। इस बात का यशोधर बाबू को बुरा लगा होगा कि उनका बेटा उन्हें गाउन पहनकर दूध लेने जाने को कह रहा है न कि यह कि कल से वह दूध लाने जाएगा वे आराम करे। उन्हें इस गाउन को पहनकर किशनदा के उस अकेलेपन का एहसास हो रहा था जिसका एहसास किशनदा ने अपने आखरी दिनों में किया होगा क्योंकि आज उन्हें अपना पूरा परिवार उन्हें छोड़कर आधुनिक लग रहा था और वे अपने आपको बहुत अकेला महसूस कर रहे थे।
यशोधर बाबू के चरित्र सम्बंधित प्रश्न (Questions related to Character of Yashodhar Babu)
प्रश्न 1 – यशोधर बाबू किस तरह के व्यक्ति थे?
प्रश्न 2 – यशोधर बाबू के किस व्यवहार को देख कर उनके फजूलखर्चे के विरोधी होने का पता चलता है?
प्रश्न 3 – यशोधर बाबू किस तरह के रोजमर्रा के काम स्वयं करते थे?
प्रश्न 4 – एक पिता होने के नाते यशोधर बाबू अपने बच्चों से क्या उम्मीद करते थे?
प्रश्न 5 – भरा-पूरा परिवार होने के बाद भी यशोधर बाबू अपने आप को अकेला क्यों महसूस करते थे?
किशनदा का चरित्र-चित्रण (Character Sketch of Kishanada)
किशनदा कुँआरे थे और पहाड़ से आए हुए न जाने कितने लड़के ठीक-ठिकाना होने से पहले उनके यहाँ रह जाते थे।
यशोधर बाबू जिस समय दिल्ली आए थे उनकी उम्र सरकारी नौकरी के लिए कम थी। तब किशनदा ने उन्हें मैस का रसोइया बनाकर रख लिया। यही नहीं, उन्होंने यशोधर बाबू को पचास रूपये उधार भी दिए थे ताकि वह अपने लिए कपड़े बनवा सके और गाँव पैसा भेज सके।
किशनदा ने ही यशोधर बाबू को अपने ही नीचे नौकरी दिलवाई और दफ़्तरी जीवन में उनका मार्ग-दर्शन भी किया।
चाय-पानी और गप्प-गप्पाष्टक में वक्त बरबाद करना किशनदा की परंपरा के विरुद्ध था।
किशनदा हमेशा कहते थे कि आना सब कुछ चाहिए, सीखना हर एक की बात ठहरी, लेकिन अपनी छोड़नी नहीं हुई। टाई-सूट पहनना आना चाहिए लेकिन धोती-कुर्ता अपनी पोशाक है यह नहीं भूलना चाहिए।
किशनदा का बुढ़ापा सुखी नहीं रहा था। किशनदा कुछ साल राजेंद्र नगर में किराए का क़्वार्टर लेकर रहा और फिर अपने गाँव लौट गया जहाँ साल भर बाद उसकी मृत्यु हो गई। विचित्र बात यह थी कि उन्हें कोई भी बीमारी नहीं हुई थी। जब उसके एक बिरादर से मृत्यु का कारण पूछा तब उसने यशोधर बाबू को यही जवाब दिया, “जो हुआ होगा।” यानी ‘पता नहीं, क्या हुआ।’
किशनदा के चरित्र सम्बंधित प्रश्न (Questions related to Character of Kishanada)
प्रश्न 1 – किशनदा ने किस प्रकार यशोधर बाबू की सहायता की थी?
प्रश्न 2 – किशनदा हमेशा किस बात को कहा करते थे?
प्रश्न 3 – आपके अनुसार किशनदा का बुढ़ापा क्यों सुखी नहीं रहा?
यशोधर बाबू के बड़े बेटे भूषण का चरित्र-चित्रण (Character Sketch of Yashodhar Babu’s Elder Son Bhushan)
घमंडी – भूषण यशोधर बाबू का बड़ा बेटा था, जो विज्ञापन कंपनी में बड़ी नौकरी करने लगा था, तब से ऐसा मालूम होता था जैसे उसे अपने पैसों पर घमंड आ गया हो। क्योंकि वह यशोधर बाबू से घर के कामों को करने के लिए नौकर रखने की बात करता है और उसकी तनख्वाह भी वह स्वयं देगा इस तरह रौब दिखाता है।
पिता का आदर न करने वाला – यशोधर बाबू भी चाहते कि उनका बेटा अपना वेतन उनके हाथों में रखे या झूठे ही सही एक बार यह कह तो दे। परन्तु इसके विपरीत यदि उसके किसी काम में यशोधर बाबू कोई नुक्स निकालते तो वह कह देता कि यह काम मैं अपने पैसे से करने को कह रहा हूँ, आपके से नहीं जो आप नुक्ताचीनी करें।
फजूलखर्च करने वाला – अपना वेतन भूषण अपने ढंग से घर पर खर्च कर देता था। कभी कारपेट बिछवा रहा था, कभी पर्दे लगवा रहा था। कभी सोफा आ रहा था, कभी डनलपवाला डबल बैड और सिंगार मेज़। कभी टी. वी., कभी फ्रिज। परन्तु यशोधर बाबू को यह सब बेकार लगता था और वह अपनी पत्न्नी को भी यही समझाते थे। परन्तु उनकी घर में कोई नहीं सुनता था।
स्वार्थी – जब भूषण ने यशोधर बाबू को तोफे में ऊनी ड्रेसिंग गाउन दिया, तब यशोधर बाबू थोड़ा खुश हुए परन्तु जब भूषण ने कहा कि जब वे सवेरे दूध लेने जाते हैं तो फटा पुलोवर पहन के चले जाते हैं, वह बहुत ही बुरा लगता है। इस बात का यशोधर बाबू की बुरा लगा होगा कि उनका बेटा उन्हें गाउन पहनकर दूध लेने जाने को कह रहा है न कि यह कि कल से वह दूध लाने जाएगा वे आराम करे। यहाँ भूषण के स्वार्थी होने का प्रमाण मिलता है।
यशोधर बाबू के बड़े बेटे भूषण के चरित्र सम्बंधित प्रश्न (Questions related to Character of Yashodhar Babu’s Elder Son Bhushan)
प्रश्न 1 – भूषण एक घमंडी व्यक्तित्व वाला व्यक्ति था। कैसे?
प्रश्न 2 – भूषण अत्यधिक फजूल खर्च करता था। क्या आप इस बात से सहमत हैं?
प्रश्न 3 – भूषण अपने पिता का मान नहीं करता था। पाठ के आधार पर बताइए।
प्रश्न 4 – भूषण के स्वार्थीपन को उजागर कीजिए।
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