Patrakariya Lekhan Ke Vibhinn Roop aur Lekhan Prakriya summary

 

CBSE Class 12 Hindi Core Abhivyakti Aur Madhyam Book  Chapter 4 पत्रकारीय लेखन के विभिन्न रूप और लेखन प्रक्रिया  Summary

 

इस पोस्ट में हम आपके लिए CBSE Class 12 Hindi Core Abhivyakti Aur Madhyam Book के Chapter 4 पत्रकारीय लेखन के विभिन्न रूप और लेखन प्रक्रिया का पाठ सार लेकर आए हैं। यह सारांश आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे आप जान सकते हैं कि इस कहानी का विषय क्या है। इसे पढ़कर आपको को मदद मिलेगी ताकि आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। Patrakariya Lekhan Ke Vibhinn Roop aur Lekhan Prakriya Summary of CBSE Class 12 Hindi Core Abhivyakti Aur Madhyam Chapter 4.

  

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पत्रकारीय लेखन के विभिन्न रूप और लेखन प्रक्रिया पाठ का सार (Patrakariya Lekhan Ke Vibhinn Roop aur Lekhan Prakriya Summary) 

 

एक अच्छा पत्रकार या लेखक बनने के लिए यह आवश्यक है कि उसे विभिन्न जनसंचार माध्यमों में लिखने की अलगअलग शैलियों का ज्ञान हो। अखबारों या पत्रिकाओं में समाचार, फीचर, विशेष रिपोर्ट, लेख और टिप्पणियाँ प्रकाशित होती हैं और इन सबको लिखने की अलगअलग पद्धति है जिनका ज्ञान होना एक अच्छे पत्रकार या लेखक बनने के लिए आवश्यक है। जैसेसमाचार लेखन में उलटा पिरामिडशैली का उपयोग किया जाता है। समाचार लिखते हुए छह ककारों का ध्यान रखना ज़रूरी है। समाचार लेखन के विपरीत फीचर लेखन में उलटा पिरामिड के बजाए फीचर की शुरुआत कहीं से भी हो सकती है। जबकि विशेष रिपोर्ट के लेखन में तथ्यों की खोज और विश्लेषण पर जोर दिया जाता है। समाचारपत्रों में विचारपरक लेखन के तहत लेख, टिप्पणियों और संपादकीय लेखन में भी विचारों और विश्लेषण पर जोर होता है। सामान्य तौर पर देखा गया है कि हर नए लेखक की अखबारों में लिखने और छपने की इच्छा होती है। लेकिन अखबारों के लिए लेखन आसान भी है और मुश्किल भी। आसान इसलिए क्योंकि अगर आप पत्रकारीय लेखन के विभिन्न रूपों और उनकी लेखन प्रक्रिया की बारीकियों से परिचित का ज्ञान रखते हैं तो अखबारों के लिए लिखना बहुत सहज और आसान हो जाता है, परन्तु अगर आप पत्रकारीय लेखन की प्रक्रिया और उसके तौरतरीकों से परिचित नहीं हैं तो आसान दिखने वाला लेखन बहुत मुश्किल और पसीना छुड़ाने वाला साबित हो सकता है।

 

अच्छे लेखन के लिए ध्यान रखने योग्य बातें

  • जटिल व् कठिन वाक्य की तुलना में सरल व् छोटे वाक्य लिखने चाहिए।
  • आम बोलचाल में प्रयोग की जाने वाली भाषा और शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए।
  • गैरज़रूरी शब्दों के इस्तेमाल से बचना चाहिए।
  • शब्दों को प्रयोग उनके वास्तविक अर्थ को समझकर ही करना चाहिए।
  • यदि आप अच्छा लिखना चाहते हैं तो जानेमाने लेखकों की रचनाएँ ध्यान से पढ़नी चाहिए क्योंकि अच्छा लिखने के लिए अच्छा पढ़ना भी बहुत ज़रूरी है।
  • लेखन में विविधता लाने के लिए छोटे वाक्यों के साथसाथ कुछ मध्यम आकार के और कुछ बड़े वाक्यों का प्रयोग कर सकते हैं। इसके साथसाथ मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग से लेखन को आकर्षक बनाया जा सकता है।
  • लेखन में कसावट बहुत ज़रूरी है। इसके लिए अपने लिखे हुए को दोबारा ज़रूर पढ़ना चाहिए और उसमें हुई अशुद्धियों के साथसाथ गैरज़रूरी चीजों को हटाने में संकोच नहीं करना चाहिए। 
  • लिखते हुए यह ध्यान रखिए कि आपका उद्देश्य अपनी भावनाओं, विचारों और तथ्यों को व्यक्त करना है कि दूसरे को प्रभावित करना।
  • एक अच्छे लेखक को पूरी दुनिया से लेकर अपने आसपास घटने वाली घटनाओं, समाज और पर्यावरण पर गहरी निगाह रखनी चाहिए अर्थात उसे इन सभी का गहराई से ज्ञान होना चाहिए।
  • एक अच्छे लेखक में तथ्यों को जुटाने और किसी विषय पर बारीकी से विचार करने का धैर्य होना चाहिए।

 

पत्रकारीय लेखन क्या है?

यदि कोई पत्रकारीय लेखन के किसी भी रूप में दिलचस्पी रखता है तो कोशिश करने वाले हर नए लेखक के लिए सबसे पहले यह समझना बहुत ज़रूरी है कि पत्रकारीय लेखन क्या है, समाज में उसकी भूमिका क्या है और वह अपनी इस भूमिका को कैसे पूरा करता है? अखबार पाठकों के लिए बाहरी दुनिया के ज्ञान का ऐसा जरिया है जो हर रोज़ सुबह देशदुनिया और पासपड़ोस की घटनाओं, समस्याओं, मुद्दों और विचारों से पाठकों को अवगत करवाते हैं। अखबार या अन्य समाचार माध्यमों में काम करने वाले पत्रकार अपने पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं तक सूचनाएँ पहुँचाने के लिए लेखन के विभिन्न रूपों का इस्तेमाल करते हैं। इसे ही पत्रकारीय लेखन कहते हैं और इसके कई रूप हैं। पत्रकार तीन तरह के होते हैंपूर्णकालिक, अंशकालिक और फ्रीलांसर यानी स्वतंत्र। पूर्णकालिक पत्रकार किसी समाचार संगठन में काम करने वाला नियमित वेतन भोगी कर्मचारी होता है जबकि अंशकालिक पत्रकार (स्ट्रिंगर) किसी समाचार संगठन के लिए एक निश्चित मानदेय पर काम करने वाला पत्रकार है। लेकिन फ्रीलांसर पत्रकार का संबंध किसी खास अखबार से नहीं होता है बल्कि वह भुगतान के आधार पर अलगअलग अखबारों के लिए लिखता है। ऐसे में, यह समझना बहुत ज़रूरी है कि पत्रकारीय लेखन का संबंध और दायरा समसामयिक और वास्तविक घटनाओं, समस्याओं और मुद्दों से है।

 

पत्रकारिता और सृजनात्मक लेखन में अंतर्

यह माना जाता है कि पत्रकारिता जल्दी में लिखा गया साहित्य है। लेकिन यह साहित्यिक और सृजनात्मक लेखन से अलग है

पहला, पत्रकारीय लेखन साहित्यिकसृजनात्मक लेखन से इस मायने में अलग है कि कविता, कहानी, उपन्यास आदि कल्पना से सम्बंधित है और पत्रकारिता का रिश्ता तथ्यों से है कि कल्पना से।

दूसरा, पत्रकारीय लेखन साहित्यिकसृजनात्मक लेखन से इस मायने में भी अलग है कि यह अनिवार्य रूप से तात्कालिकता और अपने पाठकों की रुचियों और ज़रूरतों को ध्यान में रखकर किया जाने वाला लेखन है। जबकि साहित्यिक रचनात्मक लेखन में लेखक को काफी छूट होती है।

 

अखबार और पत्रिका के लिए लिखने वाले लेखक और पत्रकार को निम्नलिखित बातों को हमेशा याद रखना चाहिए

  • कि वह विशाल समुदाय के लिए लिख रहा है जिसमें एक विश्वविद्यालय के कुलपति जैसे विद्वान से लेकर कम पढ़ालिखा मज़दूर और किसान सभी शामिल हैं। इसलिए उसकी लेखन शैली, भाषा और गूढ़ से गूढ़ विषय की प्रस्तुति ऐसी सहज, सरल और रोचक होनी चाहिए कि वह आसानी से सबकी समझ में जाए।
  •  पत्रकारीय लेखन में अलंकारिकसंस्कृतनिष्ठ भाषाशैली के बजाय आम बोलचाल की भाषा का इस्तेमाल किया जाता है।
  • पाठकों को ध्यान में रखकर ही अखबारों में सीधी, सरल, साफसुथरी लेकिन प्रभावी भाषा के इस्तेमाल पर जोर दिया जाता है।
  • शब्द सरल और आसानी से समझ में आने वाले होने चाहिए।
  •  वाक्य छोटे और सहज होने चाहिए।
  •    जटिल और लंबे वाक्यों से बचना चाहिए।
  • भाषा को प्रभावी बनाने के लिए गैरज़रूरी विशेषणों, मुहावरों व् लोकोक्तियों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

 

समाचार कैसे लिखा जाता है

पत्रकारीय लेखन का सबसे जानापहचाना रूप समाचार लेखन है। आमतौर पर अखबारों में समाचार पूर्णकालिक और अंशकालिक पत्रकार लिखते हैं, जिन्हें संवाददाता या रिपोर्टर भी कहते हैं। अखबारों में प्रकाशित अधिकांश समाचार एक खास शैली में लिखे जाते हैं। इन समाचारों में किसी भी घटना, समस्या या विचार के सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य, सूचना या जानकारी को सबसे पहले पैराग्राफ में लिखा गया है। उसके बाद के पैराग्राफ में उससे कम महत्त्वपूर्ण सूचना या तथ्य की जानकारी दी गई है। यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक समाचार खत्म नहीं हो जाता।

 

उलटा पिरामिडशैली

समाचार लेखन को उलटा पिरामिडशैली (इंवर्टेड पिरामिड स्टाइल) के नाम से जाना जाता है। यह समाचार लेखन की सबसे लोकप्रिय, उपयोगी और बुनियादी शैली है। यह शैली कहानी या कथा लेखन की शैली के ठीक उलटी है जिसमें क्लाइमेक्स बिलकुल आखिर में आता है। इसे उलटा पिरामिड इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य या सूचनायानी क्लाइमेक्स’ पिरामिड के सबसे निचले हिस्से में नहीं होती बल्कि इस शैली में पिरामिड को उलट दिया जाता है। इसका प्रयोग 19वीं सदी के मध्य से ही शुरू हो गया था लेकिन इसका विकास अमेरिका में गृहयुद्ध के दौरान हुआ। उस समय संवाददाताओं को अपनी खबरें टेलीग्राफ संदेशों के  ज़रिये भेजनी पड़ती थीं जिसकी सेवाएँ महँगी, अनियमित और दुर्लभ थीं। कई बार तकनीकी कारणों से सेवा ठप्प हो जाती थी। इसलिए संवाददाताओं को किसी घटना की खबर कहानी की तरह विस्तार से लिखने के बजाय संक्षेप में देनी होती थी। इस तरह उलटा पिरामिडशैली का विकास हुआ और धीरेधीरे लेखन और संपादन की सुविधा के कारण यह शैली समाचार लेखन की मानक (स्टैंडर्ड) शैली बन गई।

 

समाचार लेखन और छह ककार

किसी समाचार को लिखते हुए मुख्यतः छह सवालों का जवाब देने की कोशिश की जाती है क्या हुआ, किसके साथ हुआ, कहाँ हुआ, कब हुआ, कैसे और क्यों हुआ? इसक्या, किसके (या कौनद्ध), कहाँ, कब, क्यों और कैसेको छह ककारों के रूप में भी जाना जाता है। किसी घटना, समस्या या विचार से संबंधित खबर लिखते हुए इन छह ककारों को ही ध्यान में रखा जाता है।

समाचार के मुखड़े (इंट्रो) यानी पहले पैराग्राफ या शुरुआती दोतीन पंक्तियों में आमतौर पर तीन या चार ककारों को आधार बनाकर खबर लिखी जाती है। ये चार ककार हैंक्या, कौन, कब और कहाँ? इसके बाद समाचार की बॉडी में और समापन के पहले बाकी दो ककारोंकैसे और क्योंका जवाब दिया जाता है।इस तरह छह ककारों के आधार पर समाचार तैयार होता है। इनमें से पहले चार ककारक्या, कौन, कब और कहाँसूचनात्मक और तथ्यों पर आधारित होते हैं जबकि बाकी दो ककारोंकैसे और क्योंमें विवरणात्मक, व्याख्यात्मक और विश्लेषणात्मक पहलू पर जोर दिया जाता है।

 

इन छः ककारों को और अच्छे से समझने के लिए अखबार में प्रकाशित एक समाचार को उदाहरण के तौर पर देखिए

समाचार का शीर्षकमास्को में छत ढहने से 4 लोग मरे, 29 घायल

 

समाचार का इंट्रो मास्को, 23 फरवरी (भाषा) उत्तर पश्चिमी मास्को के बाओमांस्की बाजार में गुरुवार की शाम छत ढहने से 4 लोगों की मौत हो गई और 29 घायल हो गए। सौ से अधिक लोगों के अब भी मलबे में फँसे होने की आशंका है। घायलों को अस्पताल में भरती करा दिया गया है।

(यहाँ चार ककारों का उत्तर दिया गया है जैसे

क्या – 4 मरे 29 घायल

कौनआम नागरिक

कबगुरुवार की शाम

कहाँउत्तर पश्चिम मास्को का बाओमांस्की बाजार

 

समाचार की बॉडी प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक पहले तो बाओमांस्की भूमिगत बाजार की गुंबदनुमा विशालकाय छत ढही और उसके बाद छत को संभालने वाले खंभे एकएक कर गिरने लगे। शहर में मेयर ने इस दुर्घटना के पीछे किसी आतंकवादी संगठन का हाथ होने की बात से साफ इंकार किया है। प्रारंभिक जाँच से पता चला है कि पिछले दिनों हुए भारी हिमपात की वजह से इस 30 साल पुरानी इमारत की छत ढही है।

( यहाँ अंतिम दो कारकों के उत्तर दिए गए हैं जैसे

कैसेछत ढहने से, आतंकवादी घटना नहीं

क्योंछत पर बरफ जमने से

 

उद्धरण / स्रोत आपात मामलों के मंत्री, मास्को के मेयर, प्रत्यक्षदर्शी

आपात मामलों के मंत्री सर्गेई शोगो ने बताया कि मलबे के नीचे अभी कई लोग जिंदा हैं। वे रो रहे हैं, चिल्ला रहे हैं और किसी भी तरह अपने जीवित होने के संकेत बाहर भेजने की कोशिश कर रहे हैं। मोबाइल आपरेटरों ने भी मलबे से सौ से अधिक मोबाइल संदेश मिलने की पुष्टि की है। माना जा रहा है कि छत गिरने का मुख्य कारण इस पूरी इमारत का डिजाइन भी है। इसकी गुंबदनुमा छत पर भारी बरफ जम गई थी। संभवतः गुंबद बरफ का वज़न बर्दाश्त नहीं कर पाया।

उपरोक्त समाचार के पहले पैराग्राफ यानी मुखड़े (इंट्रो) में चार ककारोंक्या, कौन, कब और कहाँके बाबत जानकारी दी गई है जबकि उसके बाद के तीन पैराग्राफ में दो अन्य ककारोंकैसे और क्योंके ज़रिये दुर्घटना के कारणों पर रोशनी डाली गई है। अधिकांश समाचार इसी शैली में लिखे जाते हैं। लेकिन कभीकभी अपने महत्त्व के कारण कैसे या क्यों भी समाचार के मुखड़े में सकते हैं। एक और बात याद रखने की है कि समाचार में सूचना के स्रोत यानी जिससे

जानकारी मिली है, उसको भी अवश्य उद्धृत करना चाहिए। जैसे उपरोक्त समाचार में प्रत्यक्षदर्शियों और आपात मामलों  के मंत्री को उद्धृत किया गया है।

 

फीचर क्या है?

अखबारों में समाचारों के अलावा भी अन्य कई तरह का पत्रकारीय लेखन छपता है। इनमें फीचर प्रमुख है। फीचर एक सुव्यवस्थित, सृजनात्मक और आत्मनिष्ठ लेखन है जिसका उद्देश्य पाठकों को सूचना देने, शिक्षित करने के साथ मुख्य रूप से उनका मनोरंजन करना होता है।

 

समाचार और फीचर के बीच निम्नलिखित अंतर् है – 

  •  फीचर समाचार की तरह पाठकों को तात्कालिक घटनाक्रम से अवगत नहीं कराता।
  • फीचर लेखन की शैली भी समाचार लेखन की शैली से अलग होती है।
  • समाचार लेखन में वस्तुनिष्ठता और तथ्यों की शुद्धता पर जोर दिया जाता है यानी समाचार लिखते हुए रिपोर्टर उसमें अपने विचार नहीं डाल सकता जबकि फीचर में लेखक के पास अपनी राय या दृष्टिकोण और भावनाएँ जाहिर करने का अवसर होता है।
  • फीचर लेखन में उलटा पिरामिडशैली का प्रयोग नहीं होता यानी फीचर लेखन का कोई एक तय ढाँचा या फार्मूला नहीं होता है।
  • फीचर लेखन की शैली काफी हद तक कथात्मक शैली की तरह है।
  • फीचर लेखन की भाषा समाचारों के विपरीत सरल, रूपात्मक, आकर्षक और मन को छूनेवाली होती है।
  • फीचर में समाचारों की तरह शब्दों की कोई अधिकतम सीमा नहीं होती।
  • फीचर आमतौर पर समाचार रिपोर्ट से बड़े होते हैं। अखबारों और पत्रिकाओं में 250 शब्दों से लेकर 2000 शब्दों तक के फीचर छपते हैं।
  •  एक अच्छे और रोचक फीचर के साथ फोटो, रेखांकन, ग्राफ़िक्स आदि का होना ज़रूरी है।
  • फीचर का विषय कुछ भी हो सकता है। हलकेफुलके विषयों से लेकर गंभीर विषयों और मुद्दों पर भी फीचर लिखा जा सकता है।
  • कुछ समाचारों को फीचर शैली में भी लिखा जाता है। लेकिन हर समाचार को फीचर शैली में नहीं लिखा जा सकता है।

 

फीचर कैसे  लिखें?

फीचर लिखते हुए कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है।

  • फीचर को सजीव बनाने के लिए उसमें उस विषय से जुड़े लोगों यानी पात्रों की मौजूदगी ज़रूरी है।
  • पात्रों के माध्यम से उस विषय के विभिन्न पहलुओं को सामने लाने की कोशिश कीजिए।
  •  कहानी को बताने का अंदाज़ ऐसा हो कि आपके पाठक यह महसूस करें कि वे खुद देख और सुन रहे हैं।
  • फीचर को मनोरंजक होने के साथसाथ सूचनात्मक होना चाहिए।
  • फीचर कोई नीरस शोध रिपोर्ट नहीं है। वह बड़ी घटनाओं, कार्यक्रमों और आयोजनों की सूखी और बेजान रिपोर्ट भी नहीं है।
  • फीचर आमतौर पर तथ्यों, सूचनाओं और विचारों पर आधारित कथात्मक विवरण और विश्लेषण होता है।
  • फीचर की कोई कोई थीम होनी चाहिए। उस थीम के इर्दगिर्द सभी प्रासंगिक सूचनाएँ, तथ्य और विचार गुँथे होने चाहिए।

 

फीचर कई प्रकार के होते हैं। इनमें समाचार बैकग्राउंडर, खोजपरक फीचर, साक्षात्कार फीचर, जीवनशैली फीचर, रूपात्मक फीचर, व्यक्तिचित्र फीचर, यात्रा फीचर और विशेषरुचि के फीचर प्रमुख हैं।

 

फीचर लेखन का कोई निश्चित ढाँचा या फॉर्मूला नहीं होता है। इसलिए फीचर को कहीं से भी शुरू कर सकते हैं। हर फीचर का एक प्रारंभ, मध्य और अंत होता है। प्रारंभ आकर्षक और उत्सुकता पैदा करने वाला होना चाहिए। हालाँकि प्रारंभ, मध्य और अंत को अलगअलग देखने के बजाय पूरे फीचर को समग्रता में देखना चाहिए लेकिन अगर फीचर का प्रारंभ आकर्षक, रोचक और प्रभावी हो तो बाकी पूरा फीचर भी पठनीय और रोचक बन सकता है।

फीचर के प्रारंभ, मध्य और अंत को सहज और स्वाभाविक तरीके से एक साथ जोड़ना किसी चुनौती से कम नहीं है। हर पैराग्राफ अपने पहले के पैराग्राफ से सहज तरीके से जुड़ा हो और शुरू से आखिर तक प्रवाह और गति बनी रहे, यह सुनिश्चित करने के लिए पैराग्राफ छोटे रखिए और एक पैराग्राफ में एक पहलू पर ही फोकस कीजिए।

 

विशेष रिपोर्ट कैसे लिखें?

अखबारों और पत्रिकाओं में सामान्य समाचारों के अलावा गहरी छानबीन, विश्लेषण और व्याख्या के आधार पर विशेष रिपोर्टें भी प्रकाशित होती हैं। ऐसी रिपोर्टों को तैयार करने के लिए किसी घटना, समस्या या मुद्दे की गहरी छानबीन की जाती है। उससे संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्यों को इकट्टा किया जाता है। तथ्यों के विश्लेषण के ज़रिये उसके नतीजे, प्रभाव और कारणों को स्पष्ट किया जाता है।

 

विशेष रिपोर्ट के भी कई प्रकार होते हैं। खोजी रिपोर्ट (इंवेस्टिगेटिव रिपोर्ट), इनडेप्थ रिपोर्ट, विश्लेषणात्मक रिपोर्ट और विवरणात्मक रिपोर्टविशेष रिपोर्टों के  कुछ प्रमुख प्रकार हैं।

खोजी रिपोर्ट में रिपोर्टर मौलिक शोध और छानबीन के ज़रिये ऐसी सूचनाएँ या तथ्य सामने लाता है जो सार्वजनिक तौर पर पहले से उपलब्ध नहीं थीं। खोजी रिपोर्ट का इस्तेमाल आमतौर पर भ्रष्टाचार, अनियमितताओं और गड़बड़ियों को उजागर करने के लिए किया जाता है।

इनडेप्थ रिपोर्ट में सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध तथ्यों, सूचनाओं और आँकड़ों की गहरी छानबीन की जाती है और उसके आधार पर किसी घटना, समस्या या मुद्दे से जुड़े महत्त्वपूर्ण पहलुओं को सामने लाया जाता है।

विश्लेषणात्मक रिपोर्ट में जोर किसी घटना या समस्या से जुड़े तथ्यों के विश्लेषण और व्याख्या पर होता है जबकि विवरणात्मक रिपोर्ट में किसी घटना या समस्या के विस्तृत और बारीक विवरण को प्रस्तुत करने की कोशिश की जाती है।

 

विचारपरक लेखनलेख, टिप्पणियाँ और संपादकीय

अखबारों में समाचार और फीचर के अलावा विचारपरक सामग्री को भी प्रकाशित किया जाता है। कुछ अखबारों की पहचान ही उनके वैचारिक रुझान से होती है। ऐसा भी कहा जा सकता है कि विचारपूर्ण लेखन से अखबार की छवि बनती है। अखबारों में संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित होने वाले संपादकीय अग्रलेख, लेख और टिप्पणियाँ इसी विचारपरक पत्रकारीय लेखन की श्रेणी में आते हैं। इसके साथ ही विभिन्न विषयों के विशेषज्ञों या वरिष्ठ पत्रकारों के स्तंभ अर्थात कॉलम भी विचारपरक लेखन के अंतर्गत आते हैं।

 

संपादकीय लेखन

संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित होने वाले संपादकीय को अखबार की आवाज़ माना जाता है। संपादकीय के ज़रिये अखबार किसी घटना, समस्या या मुद्दे के प्रति अपनी राय प्रकट करते हैं। संपादकीय किसी व्यक्ति विशेष का विचार नहीं होता इसलिए उसे किसी के नाम के साथ नहीं छापा जाता। संपादकीय लिखने का दायित्व उस अखबार में काम करने वाले संपादक और उनके सहयोगियों पर होता है। आमतौर पर अखबारों में सहायक संपादक, संपादकीय लिखते हैं। कोई बाहर का लेखक या पत्रकार संपादकीय नहीं लिख सकता है।

 

स्तंभ (कॉलम) लेखन

स्तंभ लेखन भी विचारपरक लेखन का एक प्रमुख रूप है। कुछ महत्त्वपूर्ण लेखक अपने खास वैचारिक रुझान के लिए जाने जाते हैं। उनकी अपनी एक लेखनशैली भी विकसित हो जाती है। ऐसे लेखकों की लोकप्रियता को देखकर अखबार उन्हें एक नियमित स्तंभ (कॉलम) लिखने का जिम्मा दे देते हैं। स्तंभ (कॉलम) का विषय चुनने और उसमें अपने विचार व्यक्त करने की स्तंभ (कॉलम) लेखक को पूरी छूट होती है। स्तंभ (कॉलम) में लेखक के विचार अभिव्यक्त होते हैं। यही कारण है कि स्तंभ (कॉलम) अपने लेखकों के नाम पर जाने और पसंद किए जाते हैं। कुछ स्तंभ (कॉलम) इतने लोकप्रिय होते हैं कि अखबार उनके कारण भी पहचाने जाते हैं। लेकिन नए लेखकों को स्तंभ (कॉलम) लेखन का मौका नहीं मिलता है।

 

संपादक के नाम पत्र

अखबारों के संपादकीय पृष्ठ पर और पत्रिकाओं की शुरुआत में संपादक के नाम पाठकों के पत्र भी प्रकाशित होते हैं। सभी अखबारों में यह एक स्थायी स्तंभ होता है। इस स्तंभ के ज़रिये अखबार के पाठक सिर्फ विभिन्न मुद्दों पर अपनी राय व्यक्त करते हैं बल्कि जन समस्याओं को भी उठाते हैं। एक तरह से यह स्तंभ जनमत को प्रतिबिंबित करता है। ज़रूरी नहीं कि अखबार पाठकों द्वारा व्यक्त किए गए विचारों से सहमत हो। यह स्तंभ नए लेखकों के लिए लेखन की शुरुआत करने और उन्हें हाथ माँजने का भी अच्छा अवसर देता है।

 

लेख

सभी अखबार संपादकीय पृष्ठ पर समसामयिक मुद्दों पर वरिष्ठ पत्रकारों और उन विषयों के विशेषज्ञों के लेख प्रकाशित करते हैं।

लेखों में किसी विषय या मुद्दे पर  विस्तार से चर्चा की जाती है।

लेख में लेखक के विचारों को प्रमुखता दी जाती है।

लेख लिखने के लिए पर्याप्त तैयारी ज़रूरी है। इसके लिए उस विषय से जुड़े सभी तथ्यों और सूचनाओं के अलावा पृष्ठभूमि सामग्री भी जुटानी पड़ती है।

लेख की कोई एक निश्चित लेखन शैली नहीं होती और हर लेखक की अपनी शैली होती है।

लेख लिखने की शुरुआत उन विषयों के साथ करनी चाहिए जिस पर आपकी अच्छी पकड़ और जानकारी हो।

लेख का भी एक प्रारंभ, मध्य और अंत होता है।

 

साक्षात्कार/इंटरव्यू

समाचार माध्यमों में साक्षात्कार का बहुत महत्त्व है। पत्रकार एक तरह से साक्षात्कार के ज़रिये ही समाचार, फीचर, विशेष रिपोर्ट और अन्य कई तरह के पत्रकारीय लेखन के लिए कच्चा माल इकट्टा करते हैं।

पत्रकारिय साक्षात्कार और सामान्य बातचीत में यह फर्क होता है कि साक्षात्कार में एक पत्रकार किसी अन्य व्यक्ति से तथ्य, उसकी राय और भावनाएँ जानने के लिए सवाल पूछता है।

 

साक्षात्कार से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण बातें

  • साक्षात्कार का एक स्पष्ट मकसद और ढाँचा होता है।
  •  एक सफल साक्षात्कार के लिए आपके पास सिर्फ ज्ञान होना चाहिए बल्कि आपमें संवेदनशीलता, कूटनीति, धैर्य और साहस जैसे गुण भी होने चाहिए।
  • एक अच्छे और सफल साक्षात्कार के लिए यह ज़रूरी है कि आप जिस विषय पर और जिस व्यक्ति के साथ साक्षात्कार करने जा रहे हैं, उसके बारे में आपके पास पर्याप्त जानकारी हो।
  • आप साक्षात्कार से क्या निकालना चाहते हैं, इसके बारे में स्पष्ट रहना बहुत ज़रूरी है।
  • आपको वे सवाल पूछने चाहिए जो किसी अखबार के एक आम पाठक के मन में हो सकते हैं।
  • साक्षात्कार को अगर रिकार्ड करना संभव हो तो बेहतर है लेकिन अगर ऐसा संभव हो तो साक्षात्कार के दौरान आप नोट्स लेते रहें।
  • साक्षात्कार को लिखते समय आप दो में से कोई भी एक तरीका अपना सकते हैं। एकआप साक्षात्कार को सवाल और फिर जवाब के रूप में लिख सकते हैं या फिर उसे एक आलेख की तरह से भी लिख सकते हैं।