Vishesh Lekhan-Swaroop aur Prakar Summary

 

CBSE Class 12 Hindi Core Abhivyakti Aur Madhyam Book  Chapter 5 विशेष लेखन-स्वरूप और प्रकार Summary

 

इस पोस्ट में हम आपके लिए CBSE Class 12 Hindi Core Abhivyakti Aur Madhyam Book के Chapter 5 विशेष लेखन-स्वरूप और प्रकार का पाठ सार लेकर आए हैं। यह सारांश आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे आप जान सकते हैं कि इस कहानी का विषय क्या है। इसे पढ़कर आपको को मदद मिलेगी ताकि आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। Vishesh Lekhan-Swaroop aur Prakar Summary of CBSE Class 12 Hindi Core Abhivyakti Aur Madhyam Chapter 5.

  

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विशेष लेखन-स्वरूप और प्रकार पाठ का सार (Vishesh Lekhan-Swaroop aur Prakar  Summary)  

 

एक समाचारपत्र या पत्रिका तभी संपूर्ण लगती है जब उसमें विभिन्न विषयों और क्षेत्रों के बारे में घटने वाली घटनाओं, समस्याओं और मुद्दों के बारे में नियमित रूप से  जानकारी दी जाए। इससे समाचारपत्रों में एक विविधता आती है और उनका कलेवर व्यापक होता है। पाठकों की रुचियाँ बहुत व्यापक होती हैं और वे साहित्य से लेकर विज्ञान तक तथा कारोबार से लेकर खेल तक सभी विषयों पर पढ़ना चाहते हैं। इसलिए समाचारपत्रों और दूसरे जनसंचार माध्यमों को सामान्य समाचारों से अलग हटकर विशेष क्षेत्रों या विषयों के बारे में भी निरंतर और पर्याप्त जानकारी देनी पड़ती है।

 

विशेष लेखन क्या है

विशेष लेखन अर्थात किसी खास विषय पर सामान्य लेखन से हटकर किया गया लेखन। अधिकतर समाचारपत्रों और पत्रिकाओं के अलावा टी.वी. और रेडियो चैनलों में विशेष लेखन के लिए अलग डेस्क होता है और उस विशेष डेस्क पर काम करने वाले पत्राकारों का समूह भी अलग होता है। जैसे समाचारपत्रों और अन्य माध्यमों में बिशनेस यानी कारोबार और व्यापार का अलग डेस्क, खेल की खबरों और फीचर के लिए खेल डेस्क अलग होता है। इन डेस्कों पर काम करने वाले उपसंपादकों और संवाददाताओं से यह उम्मीद की जाती है कि अपने विषय या क्षेत्र में उनको विशेषज्ञता प्राप्त होगी।

खबरें भी कई तरह की होती हैंराजनीतिक, आर्थिक, अपराध, खेल, फ़िल्म, कृषि, कानून, विज्ञान या किसी भी और विषय से जुड़ी हुई। संवाददाताओं के बीच काम का विभाजन आमतौर पर उनकी दिलचस्पी और ज्ञान को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। मीडिया की भाषा में इसे बीट कहते हैं। एक संवाददाता की बीट अगर अपराध है तो इसका अर्थ यह है कि उसका कार्यक्षेत्र अपने शहर या क्षेत्र में घटनेवाली आपराधिक घटनाओं की रिपोर्टिंग करना है। अखबार की ओर से वह इनकी रिपोर्टिंग के लिए जिम्मेदार और जवाबदेह भी है।

 

विशेष लेखन केवल बीट रिपोर्टिंग नहीं है। यह बीट रिपोर्टिंग से आगे एक तरह की विशेषीकृत रिपोर्टिंग है जिसमें सिर्फ़ उस विषय की गहरी जानकारी होनी चाहिए बल्कि उसकी रिपोर्टिंग से संबंधित भाषा और शैली पर भी आपका पूरा अधिकार होना चाहिए। सामान्य बीट रिपोर्टिंग के लिए भी एक पत्राकार को काफी तैयारी करनी पड़ती है। उदाहरण के तौर पर जो पत्राकार राजनीति में दिलचस्पी रखते हैं या किसी खास राजनीतिक पार्टी को कवर करते है तो पत्राकार को उस पार्टी के भीतर गहराई तक अपने संपर्क बनाने चाहिए और खबर हासिल करने के नएनए स्रोत विकसित करने चाहिए। किसी भी स्रोत या सूत्र पर आँख मूँदकर भरोसा नहीं करना चाहिए और जानकारी की पुष्टि कई और स्रोतों के ज़रिये भी करनी चाहिए। यानी उस पत्राकार को ज्यादा से ज़्यादा समय अपने क्षेत्र के बारे में हर छोटी बड़ी जानकारी इकट्टी करने में बिताना पड़ता है तभी वह उस बारे में विशेषज्ञता हासिल कर सकता है और उसकी रिपोर्ट या खबर विश्वसनीय मानी जाती है।

 

बीट रिपोर्टिंग और विशेषीकृत रिपोर्टिंग में फर्क है। दोनों के बीच सबसे महत्त्वपूर्ण फर्क यह है कि अपनी बीट की रिपोर्टिंग के लिए संवाददाता में उस क्षेत्र के बारे में जानकारी और दिलचस्पी का होना पर्याप्त है। इसके अलावा एक बीट रिपोर्टर को आमतौर पर अपनी बीट से जुड़ी सामान्य खबरें ही लिखनी होती हैं। लेकिन विशेषीकृत रिपोर्टिंग का तात्पर्य यह है कि आप सामान्य खबरों से आगे बढ़कर उस विशेष क्षेत्र या विषय से जुड़ी घटनाओं, मुद्दों और समस्याओं का बारीकी से विश्लेषण करें और पाठकों के लिए उसका अर्थ स्पष्ट करने की कोशिश करें। जैसे अगर शेयर बाजार में भारी गिरावट आती है तो उस बीट पर रिपोर्टिंग करने वाला संवाददाता उसकी एक तथ्यात्मक रिपोर्ट तैयार करेगा, जिसमें सभी ज़रूरी सूचनाएँ और तथ्य शामिल होंगे। लेकिन विशेषीकृत रिपोर्टिंग करने वाला संवाददाता इसका विश्लेषण करके यह स्पष्ट करने की कोशिश करेगा कि बाजार में गिरावट क्यों और किन कारणों से आई है और इसका आम निवेशकों पर क्या असर पडे़गा। यही कारण है कि बीट कवर करने वाले रिपोर्टर को संवाददाता और विशेषीकृत रिपोर्टिंग करने वाले रिपोर्टर को विशेष संवाददाता का दर्जा दिया जाता है।

 

लेकिन विशेष लेखन सिर्फ विशेषीकृत रिपोर्टिंग भी नहीं है। विशेष लेखन के तहत रिपोर्टिंग के अलावा उस विषय या क्षेत्र विशेष पर फीचर, टिप्पणी, साक्षात्कार, लेख, समीक्षा और स्तंभ लेखन भी आता है। इस तरह का विशेष लेखन समाचारपत्र या पत्रिका में काम करने वाले पत्राकार से लेकर फ्रीलांस पत्राकार या लेखक तक सभी कर सकते हैं। शर्त सिर्फ यह है कि विशेष लेखन के इच्छुक पत्राकार या स्वतंत्र लेखक को उस विषय में माहिर होना चाहिए। मतलब यह कि किसी भी क्षेत्र पर विशेष लेखन करने के लिए ज़रूरी है कि उस क्षेत्र के बारे में आपको ज्यादा से ज़्यादा पता हो, उसकी ताजा से ताजा सूचना आपके पास हो, आप उसके बारे में लगातार पढ़ते हों, जानकारियाँ और तथ्य इकट्टे करते हों और उस क्षेत्र से जुड़े लोगों से लगातार मिलते रहते हों।

 

विशेष लेखन की भाषा और शैली –

विशेष लेखन का संबंध जिन विषयों और क्षेत्रों से है, उनमें से अधिकांश तकनीकी रूप से जटिल क्षेत्र हैं और उनसे जुड़ी घटनाओं और मुद्दों को समझना आम पाठकों के लिए कठिन होता है। इसलिए इन क्षेत्रों में विशेष लेखन की ज़रूरत पड़ती है जिससे पाठकों को समझने में मुश्किल हो। विशेष लेखन की भाषा और शैली कई मामलों में सामान्य लेखन से अलग है। उनके बीच सबसे बुनियादी फर्क यह है कि हर क्षेत्र विशेष की अपनी विशेष तकनीकी शब्दावली होती है जो उस विषय पर लिखते हुए आपके लेखन में आती है।

उद्धारणार्थकारोबार और व्यापार पर विशेष लेखन करते हुए आपको उसमें इस्तेमाल होने वाली शब्दावली से परिचित होना चाहिए। जैसेतेजड़िए, मंदड़िए,

बिकवाली, ब्याज दर, मुद्रास्पफीति, व्यापार घाटा, राजकोषीय घाटा, राजस्व घाटा, वाखषक योजना, विदेशी संस्थागत निवेशक, एपफ.डी.आई., आवक, निवेश, आयात, निर्यात आदि।

  • पर्यावरण और मौसम से जुड़ी खबरों के लिए उससे जुड़े खास शब्दमसलनपश्चिमी हवाएँ, आर्द्रता, टॉक्सिक कचरा, ग्लोबल वार्मिंग, तूफान का केंद्र या रुख आदि शब्द।
  • खेलों में भीभारत ने पाकिस्तान को चार विकेट से पीटा’, ‘चैंपियंस कप में मलेशिया ने जर्मनी के आगे घुटने टेकेआदि शीर्षक सहज ही ध्यान खींचते हैं।

 

विशेष लेखन की कोई निश्चित शैली नहीं होती। लेकिन अगर आप अपने बीट से जुड़ा कोई समाचार लिख रहे हैं तो उसकी शैली उलटा पिरामिड शैली ही होगी। लेकिन अगर आप समाचार फीचर लिख रहे हैं तो उसकी शैली कथात्मक हो सकती है। इसी तरह अगर आप लेख या टिप्पणी लिख रहे हों तो इसकी शुरुआत भी फीचर की तरह हो सकती है। आप शैली कोई भी अपनाएँ लेकिन मूल बात यह है कि किसी खास विषय पर लिखा गया आपका आलेख सामान्य लेख से अलग होना चाहिए। विशेष लेखन को सभी पाठक नहीं पढ़ते और एक हद तक उनका पाठक वर्ग अलग भी होता है। जैसे समाचारपत्र में कारोबार और व्यापार का पन्ना कम पाठक पढ़ते हैं लेकिन जो पाठक पढ़ते हैं, उनकी अपेक्षा सामान्य पाठकों की तुलना में अधिक होती है। चूँकि वे उस विषय या क्षेत्र से जुडे़ होते हैं, इसलिए उनकी अपेक्षा यह होती है कि उन्हें उन विषयों या क्षेत्रों के बारे में ज्यादा विस्तार और गहराई से बताया जाए।

 

विशेष लेखन के क्षेत्र

  • अर्थ-व्यापार
  • खेल
  • विज्ञान-प्रौद्योगिकी
  • कृषि
  • विदेश
  • रक्षा
  • पर्यावरण
  • शिक्षा
  • स्वास्थ्य
  • फ़िल्म-मनोरंजन
  • अपराध
  • सामाजिक मुद्दे
  • कानून, आदि।

 

पत्रकारिता में विशेषज्ञता का अर्थ थोड़ा अलग होता है। यहाँ विशेषज्ञता से हमारा तात्पर्य एक तरह की पत्रकारीय विशेषज्ञता से है। पत्रकारीय विशेषज्ञता का अर्थ यह है कि व्यावसायिक रूप से प्रशिक्षित होने के बावजूद उस विषय में जानकारी और अनुभव के आधार पर अपनी समझ को इस हद तक विकसित करना कि उस विषय या क्षेत्र में घटने वाली घटनाओं और मुद्दों की आप सहजता से व्याख्या कर सकें और पाठकों के लिए उनके मायने स्पष्ट कर सकें।

 

कैसे हासिल करें विशेषज्ञता

इस सिलसिले में सबसे ज़रूरी बात यह है कि आप जिस भी विषय में विशेषज्ञता हासिल करना चाहते हैं, उसमें आपकी वास्तविक रुचि होनी चाहिए।

अगर आप उस विषय में विशेषज्ञता हासिल करना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि आप उच्चतर माध्यमिक (+2) और स्नातक स्तर पर उसी या उससे जुड़े विषय में पढ़ाई करें।

अपनी रुचि के विषय में पत्रकारीय विशेषज्ञता हासिल करने के लिए आपको उन विषयों से संबंधित पुस्तकें खूब पढ़नी चाहिए।

विशेष लेखन के क्षेत्र में सक्रिय लोगों के लिए खुद को अपडेट रखना बेहद ज़रूरी होता है। इसके लिए उस विषय से जुड़ी खबरों और रिपोर्टों की कटिंग करके फाइल बनानी चाहिए।

उस विषय के प्रोफेशनल विशेषज्ञों के लेख और विश्लेषणों की कटिंग भी सहेजकर रखनी चाहिए।

एक तरह से आपको उस विषय में जितनी संभव हो, संदर्भ सामग्री जुटाकर रखनी चाहिए। इसके अलावा उस विषय का शब्दकोश और इनसाइक्लोपीडिया भी आपके पास होनी चाहिए।

जिस विषय में आप विशेषज्ञता हासिल करना चाहते हैं, उससे जुड़े सरकारी और गैरसरकारी संगठनों और संस्थाओं की सूची, उनकी वेबसाइट का पता, टेलीफोन नंबर और उसमें काम करने वाले विशेषज्ञों के नाम और फोन नंबर अपनी डायरी में ज़रूर रखिए।

एक पत्राकार की विशेषज्ञता कुछ हद तक उसके अपने सूत्रों और स्रोतों पर निर्भर करती है।

 

कारोबार और व्यापार

समाचारपत्र में कारोबार और अर्थ जगत से जुड़ी खबरों के लिए अलग से एक पृष्ठ होता है। कुछ अखबारों में आर्थिक खबरों के दो पृष्ठ प्रकाशित होते हैं। यह कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि समाचारपत्र में अगर आर्थिक और खेल का पृष्ठ हो तो वह संपूर्ण समाचारपत्र नहीं माना जाएगा। इसकी वजह यह है कि अर्थ यानी धन हर आदमी के जीवन का मूल आधार है। हमारे रोज़मर्रा के जीवन में इसका खास महत्त्व है। हम बाजार से कुछ खरीदते हैं, बैंक में पैसे जमा करते हैं, बचत करते हैं, किसी कारोबार के बारे में योजना बनाते हैं या कुछ भी ऐसा सोचते या करते हैं जिसमें आर्थिक फायदे, नफानुकसान आदि की बात होती है तो इन सबका कारोबार और अर्थ जगत से संबंध जुड़ता है। यही कारण है कि कारोबार, व्यापार और अर्थ जगत से जुड़ी खबरों में काफी पाठकों की रुचि होती है।

आर्थिक मामलों की पत्रकारिता सामान्य पत्रकारिता की तुलना में काफी जटिल होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि आम लोगों को इसकी शब्दावलियों के बारे में या उनके मतलब के बारे में ठीक से पता नहीं होता। उसे आम लोगों की समझ में आने लायक कैसे बनाया जाए, यह आर्थिक मामलों के पत्रकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती होती है। लेकिन इसके साथ ही आर्थिक खबरों का एक ऐसा पाठकवर्ग भी है जो उस क्षेत्र से जुड़ा होने के कारण उसके बारे में काफी जानता है। एक आर्थिक पत्रकार को इन दोनों तरह के पाठकों की ज़रूरत को पूरा करना पड़ता है।

 

खेल

खेल का क्षेत्र ऐसा है जिसमें अधिकांश लोगों की रुचि होती है। खेल हर आदमी के जीवन में नयी ऊर्जा का संचार करता है। बचपन से ही हमारी विभिन्न खेलों में रुचि होती है और हममें से अधिकांश के भीतर एक खिलाड़ी ज़रूर होता है। जीवन की भागदौड़ और दूसरी ज़िम्मेदारियों की वजह से ये खिलाड़ी बेशक कहीं दब जाता हो। लेकिन खेलों में दिलचस्पी बनी रहती है।

कई खेल तो देश की संस्कृति में रचबस जाते हैं और इसलिए उन खेलों के बारे में पढ़ने वालों और उसे देखने वालों की संख्या काफी ज्यादा होती है। इसलिए हैरत की बात नहीं है कि अखबारों और दूसरे माध्यमों में खेलों को बहुत अधिक महत्त्व मिलता है। सभी समाचारपत्रों में खेल के एक या दो पृष्ठ होते हैं और कोई भी टी.वी. और रेडियो बुलेटिन खेलों की खबर के बिना पूरा नहीं होता है। यही नहीं, समाचार माध्यमों में खेलों का महत्त्व लगातार बढ़ता जा रहा है। समाचारपत्र और पत्रिकाओं में खेलों पर विशेष लेखन, खेल विशेषांक और खेल परिशिष्ट प्रकाशित हो रहे हैं। इसी तरह टी.वी. और रेडियो पर खेलों के विशेष कार्यक्रम प्रसारित किए जा रहे हैं।

पत्रपत्रिकाओं में खेलों के बारे में लिखने वालों के लिए ज़रूरी है कि वे खेल की तकनीक, उसके नियमों, उसकी बारीकियों और उससे जुड़ी तमाम बातों से भलीभाँति परिचित हों। लेकिन आर्थिक मामलों की तरह ही किसी एक खेल लेखक के लिए हर खेल के बारे में उतने ही अधिकार के साथ लिखना या जानना मुश्किल होता है। इसलिए कोई क्रिकेट का जानकार होता है तो कोई हॉकी की बारीकियाँ बेहतर समझता है। किसी का एथलेटिक्स पर अधिकार होता है

तो कोई फुटबॉल का जानकार होता है।

 

खेल में विशेषज्ञता हासिल करने के लिए उसके बारे में आपकी जानकारी और समझदारी का स्तर ऊँचा होना चाहिए।

आपको उस खेल में बनने वाले रिकॉर्ड्स या कीर्तिमानों के बारे में पता होना चाहिए।

खेल के नियम या उसकी बारीकियाँ या किसी खिलाड़ी की तकनीक के बारे में जाननेसमझने वाले ही इस बारे में अच्छा लिख या बोल सकते हैं।

एक खेल पत्रकार को अपनी जानकारियों को दिलचस्प तरीके से पेश करना चाहिए।

वह जब किसी मैच का, किसी खिलाड़ी विशेष के प्रदर्शन का, खेल की तकनीक का और इससे जुड़े तमाम पहलुओं का विश्लेषण करता है तो यह विश्लेषण खेल की तरह ही रोमांचक होना चाहिए।

खेलों की रिपोर्टिंग और विशेष लेखन की भाषा और शैली में एक ऊर्जा, जोश, रोमांच और उत्साह दिखना चाहिए।

खेल की खबर या रिपोर्ट उलटा पिरामिड शैली में शुरू होती है लेकिन दूसरे पैराग्राफ से वह कथात्मक यानी घटनानुक्रम शैली में चली जाती है। 

 

विशेष लेखन के जब भी हम किसी खास विषय को उठाते हैं, उसके बारे में लिखते या बात करते हैं तो इस बात का ध्यान रखना सबसे ज़्यादा ज़रूरी है कि हमारा पाठक, दर्शक या श्रोता कौन है, हमारी बात उसे समझ में रही है या नहीं, हम अपनी बातों की अभिव्यक्ति ठीक से कर पा रहे हैं या नहीं, हमारे तथ्य और तर्क में तालमेल है या नहीं। ये तमाम बातें ऐसी हैं जो किसी भी लेखन को विशिष्टता प्रदान करती हैं।