CBSE Class 12 Hindi Core Chapter-wise Previous Years Questions (2023) with Solution
Class 12 Hindi Core Question Paper (2023) – Solved Question papers from previous years are very important for preparing for the CBSE Board Exams. It works as a treasure trove. It helps to prepare for the exam precisely. One of key benefits of solving question papers from past board exams is their ability to help identify commonly asked questions. These papers are highly beneficial study resources for students preparing for the upcoming class 12th board examinations. Here we have compiled chapter-wise questions asked in all the sets of CBSE Class 12 Hindi Core question paper (2023).
Aroh Bhag 2 Book Lesson
Chapter 1 – आत्मपरिचय, एक गीत
प्रश्न 1 – ‘एक गीत’ कविता के संदर्भ में लिखिए कि चिड़िया के परों में चंचलता भरने के क्या कारण हो सकते हैं। (40 शब्दों में)
अथवा
‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ गीत के आधार पर लिखिए कि कौन-सा विचार दिन ढलते समय चिड़िया के परों में तीव्रता भर देता है। (40 शब्दों में)
उत्तर – चिड़ियाँ भी दिन ढलने पर चंचल अर्थात अत्यधिक क्रियाशील हो उठती हैं। वे जितनी जल्दी हो सके अपने घोंसलों में पहुँचना चाहती हैं क्योंकि उन्हें ध्यान आता है कि उनके बच्चे भोजन की आशा में घोंसलों से बाहर झाँक रहे होंगे। यह ध्यान आते ही वे अपने पंखों को तेजी से चलती है क्योंकि दिन जल्दी जल्दी ढल रहा है और वे जल्दी-जल्दी अपने घोंसलों में पहुँच जाना चाहती हैं।
प्रश्न 2 – “जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते” – पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए। (40 शब्दों में)
उत्तर – “जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते” – पंक्ति का भाव यह है कि यह पूरा संसार उन्हीं लोगों को अधिक महत्व देता है या उन्ही को पूछता हैं जो संसार के अनुसार चलते हैं तथा उनका गुणगान करते हैं। लेकिन कवि अपने मन की इच्छा के अनुसार चलता है, अर्थात वह कवि वही करता है जो उसका मन कहता है। फिर दुनिया उनके बारे में क्या कहेगी, इसकी उन्होंने कभी परवाह नहीं की।
प्रश्न 3 – ‘आत्मपरिचय’ कविता के आधार पर लिखिए कि कवि का दृष्टिकोण सांसारिक मनुष्यों से किस प्रकार भिन्न है। (40 शब्दों में)
उत्तर – ‘आत्मपरिचय’ कविता के आधार पर कवि का दृष्टिकोण सांसारिक मनुष्यों से भिन्न है। वह अपने जीवन के सभी दायित्वों को निभा रहा है। वह भी एक आम व्यक्ति ही है, वह आम व्यक्ति से बिलकुल अलग नहीं है। जिस तरह एक आम व्यक्ति अपने सुख-दुख, लाभ-हानि आदि को झेलते हुए अपना जीवन यापन करता है कवि भी अपनी जीवन यात्रा इसी तरह पूरी कर रहा है। परन्तु कविता में दूसरी तरफ कवि कहता है कि वह कभी संसार की तरफ ध्यान नहीं देता, उसे संसार की कोई परवाह नहीं है। यहाँ पर कवि अपने जीवन के दायित्वों से मुँह मोड़ने की बात नहीं कर रहा है। बल्कि वह संसार की स्वार्थी व् चापलूसी भरी बातों पर ध्यान न देकर केवल प्रेम पर ध्यान देने की बात कर रहा है। कवि अपने आप को आम व्यक्तियों से अलग मानता है क्योंकि एक आम व्यक्ति सामाजिक बाधाओं से डरकर कुछ नहीं कर पाता। परन्तु कवि सांसारिक बाधाओं की परवाह न करते हुए अपने मन की करता है। इस प्रकार कह सकते हैं कि इन दोनों पंक्तियों के अपने-अपने अर्थ हैं और ये एक-दूसरे के विपरीत नहीं है।
प्रश्न 4 – ‘आत्मपरिचय’ शीर्षक कविता में कवि की संग्रह के प्रति क्या धारणा है? स्पष्ट कीजिए। (40 शब्दों में)
उत्तर – कवि का मानना है कि हर व्यक्ति अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए वैभव, समृद्ध, भोग-विलास की तरफ भाग रहा है। वे इतना सत्य भी नहीं सीख सके हैं कि सांसारिक वस्तुएँ सदैव के लिए नहीं रहती। यह सब जानते समझते हुए भी अगर यह संसार कुछ सीख नहीं पाता हैं तो, फिर इसे मूर्ख ही कहा जायेगा। कवि इस बात को जान चुका है। इसलिए जो भी सांसारिक बातें कवि ने सीखी हैं, अब वह उनको भूलना चाहता है। क्योंकि कवि अपनी मस्ती में रहते हुए, अपने मन के अनुसार जीना चाहता है।
प्रश्न 5 – ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – इस कविता में कवि कहता है कि यद्यपि राहगीर थक जाता है, हार जाता है लेकिन वह फिर भी अपनी मंजिल की ओर बढ़ता ही जाता है। उसे इस बात का भय रहता है कि कहीं दिन न ढल जाए। इसी प्रकार चिड़ियों के माध्यम से भी कवि ने जीने की लालसा का अद्भुत वर्णन किया है। चिड़ियाँ जब अपने बच्चों के लिए तिनके, दाने आदि लेने बाहर जाती हैं तो दिन के ढलते ही वे भी अपने बच्चों की स्थिति के बारे में सोचती हैं। वे सोचती हैं कि उनके बच्चे उनसे यही अपेक्षा रखते हैं कि हमारे माता-पिता हमारे लिए कुछ खाने का सामान लाएँ। कवि पुनः आत्मपरिचय देता हुआ कहता है कि मेरा इस दुनिया में यद्यपि कोई नहीं फिर भी न जाने कौन मुझसे मिलने के लिए उत्सुक है। यही प्रश्न मुझे बार-बार उत्सुक कर देता है। मेरे पाँवों में शिथिलता और मन में व्याकुलता भर देता है। किंतु दिन के ढलते-ढलते ये शिथिलता और व्याकुलता धीरे-धीरे मिटने लगती है। वास्तव में इस कविता के माध्यम से हरिवंशराय बच्चन ने जीवन की क्षण भंगुरता और मानव के जीने की इच्छा का मनोवैज्ञानिक चित्रण किया है।
प्रश्न 6 – मैं अपने मन का गान किया करता हूँ – ‘आत्मपरिचय’ कविता से ली गई इस पंक्ति के माध्यम से कवि की भावनाओं को स्पष्ट कीजिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – कवि को जीवन में जो प्रेम मिला है, वे उसी प्रेम रूपी मदिरा अर्थात शराब को पीकर उसके नशे में मस्त रहते हैं। उन्होंने कभी संसार की परवाह नहीं की। क्योंकि कवि के अनुसार यह पूरा संसार उन्हीं लोगों को अधिक महत्व देता है या उन्ही को पूछता हैं जो संसार के अनुसार चलते हैं तथा उनका गुणगान करते हैं। लेकिन कवि अपने मन की इच्छा के अनुसार चलता है, अर्थात वह कवि वही करता है जो उसका मन कहता है। फिर दुनिया उनके बारे में क्या कहेगी, इसकी उन्होंने कभी परवाह नहीं की।
प्रश्न 7 – ‘आत्मपरिचय’ कविता में कवि को यह संसार अपूर्ण क्यों लगता है? (60 शब्दों में)
उत्तर – कवि हर समय अपने हृदय के भावों को संसार के समक्ष लाने की कोशिश करता रहता है। कवि को जो प्रेम रूपी भेंट मिली है वह उसको हमेशा अपने दिल में लिए फिरता है। कवि के अनुसार यह संसार अधूरा है, जिस कारण उसको यह संसार पसंद नहीं आता। यही वजह है कि कवि अपनी कल्पना के संसार में खुश रहता है। कहने का तात्पर्य यह है कि कवि को स्वार्थी व् चापलूसी से भरे संसार में रहने से अधिक, अपनी कल्पना के संसार में (जहाँ प्रेम ही प्रेम भरा है) रहना पसंद है।
प्रश्न 8 – ‘मेरा जीवन विरुद्धों का सामंजस्य है।’ ‘आत्मपरिचय’ कविता के संदर्भ में इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – ‘मेरा जीवन विरुद्धों का सामंजस्य है।’ इस कथन का आशय यह है कि कवि हर रोज अपनी कल्पना के अनुसार संसार का निर्माण करता है, फिर उसे मिटा देता है। कवि अपने रोने को प्रेम में छिपाए फिरता है। कवि की वाणी भले ही ठंडी सी प्रतीत होती हो परन्तु वह उसमें पूरा जोश लेकर चलता है। प्रेम की पीड़ा के कारण उसके मन का रोना अर्थात मन की पीड़ा शब्द रूप में प्रकट हुई और उसके इस रोने को संसार ने गीत समझा। कवि को स्वार्थी व् चापलूसी से भरे संसार में रहने से अधिक, अपनी कल्पना के संसार में (जहाँ प्रेम ही प्रेम भरा है) रहना पसंद है। संसार के लोग संसार के आपदाओं रूपी सागर को पार करने के लिए कर्म रूपी नाव बनाते हैं, परंतु कवि संसार रूपी सागर की लहरों पर मस्त होकर बहता है। वह अपनी जवानी के पागलपन की मस्ती में घूमता रहता है।
प्रश्न 9 – “आत्मपरिचय” कविता के आधार पर लिखिए कि व्यक्ति का समाज के साथ क्या संबंध है और कवि का संसार के साथ कैसा संबंध है? (60 शब्दों में)
उत्तर – कवि के अनुसार उन्हें उनके जीवन में जो प्रेम मिला है। वे उसी प्रेम रूपी मदिरा अर्थात शराब को पीकर उसके नशे में मस्त रहते हैं। उन्होंने कभी संसार की परवाह नहीं की। क्योंकि कवि के अनुसार यह पूरा संसार उन्हीं लोगों को अधिक महत्व देता है या उन्ही को पूछता हैं जो संसार के अनुसार चलते हैं तथा उनका गुणगान करते हैं। लेकिन कवि अपने मन की इच्छा के अनुसार चलता है, अर्थात कवि वही करता है जो उसका मन कहता है। फिर दुनिया उनके बारे में क्या कहेगी, इसकी उन्होंने कभी परवाह नहीं की। कहने का तात्पर्य यह है कि कवि और संसार दोनों एक-दूसरे से बिलकुल अलग है।
कवि का और संसार का कोई संबंध नहीं है। कहने का तात्पर्य यह है कि कवि जिस तरह का व्यक्ति है, संसार उससे बिलकुल अलग है। अर्थात कवि और संसार में कोई समानता नहीं है। कवि हर रोज अपनी कल्पना के अनुसार संसार का निर्माण करता है, फिर उसे मिटा देता है। कवि कहता है कि यह संसार इस धरती पर सुख-समृद्धि के साधन इकट्ठे करता रहता है, उस धरती को कवि हर कदम पर ठुकराया करता है। कहने का तात्पर्य यह है कि कवि जिस धरती पर रहता है उसके अनुसार न चल कर उसके विपरीत व्यवहार करता है।
प्रश्न 10 – ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ कविता का प्रतिपाद्य लिखिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – अपने लक्ष्य की प्राप्ति की होड़ में समय जल्दी-जल्दी गुजरता हुआ प्रतीत होता है इसी को समझाते हुए इस कविता में कवि कहते हैं कि कहीं रास्ते में ही रात न हो जाए इस वजह से शाम होते देखकर यात्री तेजी से चलता है। लक्ष्य-प्राप्ति के लिए पथिक अपने थके हुए शरीर के बावजूद भी मन में भी उल्लास, तरंग और आशा भर कर अपने पैरों की गति कम नहीं होने देता। कवि प्रकृति के माध्यम से उदाहरण देता हुआ कहता है कि चिड़ियाँ भी दिन ढलने पर अत्यधिक क्रियाशील हो उठती हैं। वे जितनी जल्दी हो सके अपने घोंसलों में पहुँचना चाहती हैं क्योंकि उन्हें ध्यान आता है कि उनके बच्चे भोजन की आशा में घोंसलों से बाहर झाँक रहे होंगे। यह ध्यान आते ही वे अपने पंखों को तेजी से चलती है क्योंकि दिन जल्दी जल्दी ढल रहा है और वे जल्दी-जल्दी अपने घोंसलों में पहुँच जाना चाहती हैं।
प्रश्न 11 – ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ कविता ‘प्रकृति की दैनिक परिवर्तनशीलता के संदर्भ में प्राणि-वर्ग के धड़कते हृदय को सुनने की कोशिश है।’ सिद्ध कीजिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – ‘प्रकृति की दैनिक परिवर्तनशीलता के संदर्भ में प्राणि-वर्ग के धड़कते हृदय को सुनने की कोशिश है।’ क्योंकि कवि इस संसार में बिलकुल अकेला है। इस कारण कवि को लगता है कि कोई उसकी प्रतीक्षा नहीं करता, तो भला वह किसके लिए भागकर घर जाए। कवि के मन में जैसे ही यह प्रश्न आता है तो कवि अपने आप को थका हुआ महसूस करता है। उसका हृदय इस बेचैनी से भर जाता है कि रात में अकेलेपन और उसकी प्रिया की वियोग-पीड़ा कवि के मन को परेशान कर देगी। इस परेशानी से कवि का हृदय पीड़ा से बेचैन हो उठता है।
Related:
Chapter 2 – पतंग
प्रश्न 1 – निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए:
जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास
पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास
जब वे दौड़ते हैं बेसुध
छतों को भी नरम बनाते हुए
दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए
जब वे पेंग भरते हुए चले आते हैं
डाल की तरह लचीले वेग से अकसर
(i) प्रस्तुत काव्यांश किससे संबंधित है?
(a) कवि से
(b) बच्चों से
(c) मनुष्य से
(d) चिड़िया से
उत्तर – (b) बच्चों से
(ii) ‘कपास’ शब्द किस रूप में प्रयुक्त हुआ है?
(a) यथार्थ
(b) कल्पना
(c) निश्छलता
(d) कोमलता
उत्तर – (d) कोमलता
(iii) ‘छतों को नरम बनाते हुए’ – पंक्ति का भाव है:
(a) कल्पना के पीछे भागना
(b) छतों पर दौड़ते रहना
(c) कठिनाइयों को आसान बनाना
(d) कठिनाइयों की परवाह नहीं करना
उत्तर – (d) कठिनाइयों की परवाह नहीं करना
(iv) ‘दिशाओं को मृदंग की तरह बजाने से क्या अभिप्राय है?
(a) दिशाओं को ढोलक की तरह बजाना
(b) दिशाओं में ढोलक के स्वर गूँजना
(c) चारों तरफ बच्चों की किलकारियों का गूँजना
(d) चारों दिशाओं में बच्चों का भागना
उत्तर – (c) चारों तरफ बच्चों की किलकारियों का गूँजना
(v) डाल की क्या विशेषता होती है?
(a) कठोरता
(b) लचीलापन
(c) हरियाली
(d) मजबूती
उत्तर – (b) लचीलापन
प्रश्न 2 – “पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं” है? – कवि ने बच्चों के लिए ऐसा क्यों कहा है? (40 शब्दों में)
उत्तर – “पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं” कथन का आशय यह है कि पतंग उड़ाते बच्चों को देखकर ऐसा लगता है जैसे पतंग के साथ-साथ वो भी खुद भी उड़ रहे हो। कहने का अभिप्राय यह है कि बच्चे अपनी कल्पनाओं व् भावनाओं को पतंग के सहारे ऊंचाइयों तक पहुंचा देते हैं। पतंग बच्चों की कोमल भावनाओं को दर्शाता है। पतंग उड़ाते समय बच्चे अत्यधिक उत्साहित होते हैं। वह भी पतंग की भांति आसमान की ऊँचाइयों को छूना चाहतें हैं। इसी कारण जब बच्चे पतंग उड़ाते हैं तो स्वयं वे भी अपने आपको पतंग के ही समान समझते हैं।
प्रश्न 3 – शरदकालीन सुबह की तुलना किससे और किस आधार पर की गई है? ‘पतंग’ कविता के आधार पर लिखिए। (40 शब्दों में)
उत्तर – शरद ऋतु के आते ही आसमान एकदम साफ, स्वच्छ व निर्मल हो जाता हैं। शरद ऋतु में सुबह के समय आकाश में छाई हुई लालिमा कवि को खरगोश की आँखों की भांति लाल दिखाई दे रही हैं। कवि शरद ऋतु का मानवीकरण करते हुए उसे बालक की संज्ञा देते हुए कहता है कि बालक शरद अपने चमकीले इशारों से बच्चों के समूह को पतंग उड़ाने के लिए बुलाता है। उसने आकाश को मुलायम बना दिया हैं ताकि बच्चों की पतंग आसमान में आसानी से बहुत ऊंची उड़ सके।
प्रश्न 4 – खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा’ – पंक्ति के संदर्भ में अपने क्षेत्र की शरदकालीन सुबह का वर्णन कीजिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा’ – पंक्ति के संदर्भ में हम कह सकते हैं कि हमारे क्षेत्र की शरदकालीन सुबह भी उसी प्रकार लाल रंग बिखेरती है जैसे किसी खरगोश की लाल आँखें होती हैं। कभी – कभी ऐसा प्रतीत होता है जैसे कोई स्त्री अपने नारंगी दुपट्टे को आकाश में लहरा रही हो। सुबह का उगता सूरज किसी दिए की भाँति प्रतीत होता है।
Related:
Chapter 3 – कविता के बहाने, बात सीधी थी पर
प्रश्न 1 – बात और भाषा किस प्रकार एक-दूसरे से जुड़ी हुई है? (40 शब्दों में)
उत्तर – बात और भाषा परस्पर जुड़े होते हैं, परंतु कभी-कभी भाषा के चक्कर में सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है। इसका कारण जटिल शब्दों का प्रयोग हो सकता है। कवि व् लेखक अपनी भाषा को कठिन बना देते है तथा आडंबरपूर्ण या चमत्कारपूर्ण शब्दों से अपनी बात को कहने में स्वयं को श्रेष्ठ समझता है। इससे वह अपनी बात के भाव को कहने में असफल हो जाते है। असल में भाषा कविता के भावों को प्रकट करने का एक माध्यम है। लेकिन जब कवि द्वारा कविता में प्रभावशाली व बनावटी भाषा का प्रयोग किया जाता हैं तो कविता बाहर से दिखने में तो बहुत सुंदर लगती हैं मगर उसके भाव स्पष्ट न होने के कारण वह लोगों की समझ में नहीं आ पाती हैं।
प्रश्न 2 – ‘कविता के बहाने’ कविता के आधार पर लिखिए कि कविता की उड़ान चिड़िया क्यों नहीं जानती। (40 शब्दों में)
उत्तर – कविता और कवि की उड़ान को चिड़िया कभी नहीं जान सकती क्योंकि चिड़िया एक घर से दूसरे घर के आंगन, छत, पेड़ की डालियों और आसमान में थोड़ी दूर तक अपनी सीमा पर ही उड़ सकती है लेकिन कवि अपनी कविता में कल्पनाओं के पंख लगाकर देश और काल में जहाँ तक जाना चाहे वहाँ तक जा सकता है। क्योंकि कविता की उड़ान विस्तृत होती है। अर्थात उसकी कोई सीमा नहीं होती। इसीलिए कवि कहते हैं कि चिड़िया कविता की इस उड़ान को नहीं जान सकती क्योंकि कविता कल्पनाओं के पंख लगाकर दूर तक उड़ान भर सकती हैं। और कविता की उड़ान चिड़िया की उड़ान की तरह सीमित न होकर वस्तृत होती है।
प्रश्न 3 – ‘बात सीधी थी पर’ कविता के आधार पर भाषा और पेंच की समानता लिखिए। (40 शब्दों में)
उत्तर – जब कवि को समझ में आया कि अपनी भाषा को प्रभावित बनाने के चक्कर में उसने भाषा को जटिल बना दिया है तो इस समस्या को धैर्य पूर्वक हल करने बजाए अनजाने में कवि ने भाषा को और भी अधिक जटिल बना दिया। इसके लिए कवि ने पेंच का उदाहरण देते हुए समझाया कि जिस तरह दो वस्तुओं को जोड़ने के लिए पेंच में खाँचे होते हैं ताकि वस्तुओं पर पेंच की पकड़ मजबूत हो सके और पेंच को अच्छी तरह से कसने के लिए उसे सही दिशा में धूमाना पढता है क्योंकि गलत दिशा में धुमाने से पेंच कसने के बजाय खुलने लगता है और जबरदस्ती कसने की कोशिश करने पर पेंच के खाँचे खत्म होकर टूट जाते हैं। ठीक यही बात कवि पर भी लागू होती है। बात को सही तरीके से कैसे कहा जाय या कैसे लिखा जाए, ताकि वह लोगों की समझ में आसानी से आ सके। इस समस्या को धैर्यपूर्वक समझे बिना कवि कविता के शब्दों को तोड़-मरोड़ कर भाषा को और अधिक जटिल बनाता चला गया।
प्रश्न 4 – बात और शरारती बच्चे के बीच की समानता ‘बात सीधी थी पर’ शीर्षक कविता के संदर्भ में लिखिए। (40 शब्दों में)
उत्तर – कवि ने बच्चे और कविता को समानांतर बताया है। इसके निम्नलिखित कारण हो सकते हैं –
बच्चों में रचनात्मक ऊर्जा होती है। कविता भी रचनात्मक तत्वों से युक्त होती है।
बच्चों के खेलने की कोई निश्चित सीमा नहीं होती। इसी तरह कविता का क्षेत्र भी विस्तृत होता है।
बच्चों के सपने असीम होते हैं। इसी तरह कविता की कल्पना शक्ति अद्भुत होती है।
दोनों ही अपने-पराये का भेद नहीं जानते हैं।
प्रश्न 5 – ‘बात सीधी थी पर कविता के संदर्भ में लिखिए कि भाषा को चमत्कारी/प्रभावशाली बनाने के लिए कवि क्या-क्या प्रयोग करता है? (40 शब्दों में)
उत्तर – कवि की कविता के भाव बिलकुल सीधे थे जो श्रोताओं और पाठकों को सीधे समझ में आ जाने चाहिए थे। परन्तु भाषा को प्रभावी बनाने के कारण श्रोता व् पाठक कोई भी उन भावों को अच्छी तरह से समझ नहीं पाये। और कवि ने पाया कि उनकी कविता में भाषा की जटिलता होने के कारण कविता में एक टेढ़ापन आ गया है। कहने का अभिप्राय यह है कि कवि जो बात कविता के माध्यम से कहना चाहते थे , वो बात स्पष्ट नहीं हो पायी जिस कारण लोग कविता के भावों को अच्छी तरह से समझ नहीं पाये। अपनी बात को श्रोताओं और पाठकों तक आसानी से पहुँचाने के लिए कवि ने कविता में थोड़ा बदलाव किया। उन्होंने भाषा के शब्दों, वाक्यांशों, वाक्यों आदि को बदल कर आसान किया और तथा शब्दों को उलट-पुलट कर प्रयोग किया। उन्होंने अपनी भाषा में इस तरह का बदलाव किया जिससे कविता का भाव लोगों की समझ में सही तरीके से आ सके।
प्रश्न 6 – ‘बात सीधी थी पर’ कविता के आधार पर लिखिए कि कवि को ‘भाषा’ के संदर्भ में किस बात का डर था और क्यों? (60 शब्दों में)
उत्तर – जटिल भाषा का प्रयोग करने से दिखने व् सुनने में तो कवि की कविता सुंदर तो दिखने लगी परन्तु उसके भाव किसी को भी समझ में नहीं आ रहे थे। और भाव स्पष्ट करने के लिए जब कवि ने जोर-जबरदस्ती भाषा में बदलाव किए तो कविता प्रभावहीन व उद्देश्यहीन हो गई और कविता केवल शब्दों के आसपास घूमती नज़र आने लगी। कवि का यही डर सच साबित हो गया।
प्रश्न 7 – कविता और फूलों के बीच की समानता और अंतर को ‘कविता के बहाने’ कविता के संदर्भ में लिखिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – कविता भी ठीक उसी प्रकार से विकसित होती है, महक बिखेरती हैं, जिस प्रकार एक फूल विकसित होता है अथवा चारों ओर खुशबू बिखेरता हैं। कविता के विकसित होने का अर्थ फूल कभी नहीं समझ सकता, क्योंकि फूल घर-आंगन, बाग़-बगीचों में खिलते हैं और चारों और खुशबू बिखेरते हैं। लेकिन कुछ समय बाद वे मुरझा जाते हैं। परन्तु इसके विपरीत जब एक कविता विकसित होती है तो वह अपने भावों की खुशबू से हमेशा लोगों के दिलों में खुशबू बिखेरती रहती हैं। कविता का प्रभाव हमेशा बना रहता है। जो कविता में सदैव एक नए पन को बनाये रखता हैं। इसीलिए कवि कहते हैं कि फूल कभी भी कविता के बिना मुरझाये खिले रहने व खुशबू बिखेरते रहने के राज़ को नहीं समझ सकता हैं।
प्रश्न 8 – कविता की उड़ान को चिड़िया के समान बताते हुए भी कवि ने यह क्यों कहा है कि कविता की उड़ान चिड़िया की समझ से परे है? ‘कविता के बहाने’ के संदर्भ में लिखिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – कविता और कवि की उड़ान को चिड़िया कभी नहीं जान सकती क्योंकि चिड़िया एक घर से दूसरे घर के आंगन, छत, पेड़ की डालियों और आसमान में थोड़ी दूर तक अपनी सीमा पर ही उड़ सकती है लेकिन कवि अपनी कविता में कल्पनाओं के पंख लगाकर देश और काल में जहाँ तक जाना चाहे वहाँ तक जा सकता है। क्योंकि कविता की उड़ान विस्तृत होती है। अर्थात उसकी कोई सीमा नहीं होती। इसीलिए कवि कहते हैं कि चिड़िया कविता की इस उड़ान को नहीं जान सकती क्योंकि कविता कल्पनाओं के पंख लगाकर दूर तक उड़ान भर सकती हैं। और कविता की उड़ान चिड़िया की उड़ान की तरह सीमित न होकर वस्तृत होती है।
प्रश्न 9 – कविता की उड़ान को फूलों के समान बताते हुए भी कवि ने यह क्यों कहा है कि कविता का खिलना फूल क्या जाने? ‘कविता के बहाने’ के संदर्भ में लिखिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – कविता के विकसित होने का अर्थ फूल कभी नहीं समझ सकता, क्योंकि फूल घर-आंगन, बाग़-बगीचों में खिलते हैं और चारों और खुशबू बिखेरते हैं। लेकिन कुछ समय बाद वे मुरझा जाते हैं। परन्तु इसके विपरीत जब एक कविता विकसित होती है तो वह अपने भावों की खुशबू से हमेशा लोगों के दिलों में खुशबू बिखेरती रहती हैं। कविता का प्रभाव हमेशा बना रहता है। जो कविता में सदैव एक नए पन को बनाये रखता हैं। इसीलिए कवि कहते हैं कि फूल कभी भी कविता के बिना मुरझाये खिले रहने व खुशबू बिखेरते रहने के राज़ को नहीं समझ सकता हैं।
प्रश्न 10 – ‘यह घर, वह घर सब घर एक कर देने के माने बच्चा ही जाने।’ ‘कविता के बहाने’ से उद्धृत इन पंक्तियों के संदर्भ में लिखिए कि कवि ने बच्चों की किस विशेषता और अपनी किस असमर्थता का उल्लेख किया है? कविता और बच्चों में क्या समानता है? (60 शब्दों में)
उत्तर – ‘कविता के बहाने’ कविता में ‘सब घर एक कर देने के माने’ का अर्थ है – सीमा अथवा भेदभाव का बंधन समाप्त हो जाना। जिस प्रकार बच्चे अपने खेल में किसी भी प्रकार की सीमा का ध्यान रखते, उसी प्रकार कविता में भी किसी सीमा, स्थान या समय की कोई सीमा नहीं होती। जिस तरह बच्चे खेलते समय हर प्रकार के भेदभावों को भूलकर सभी घरों को अपना समझ कर उनमें खेलने चले जाते हैं और सभी घरों के मन मुटावों को मिटा कर एक कर देते हैं। ठीक उसी प्रकार कविता भी बिना किसी के साथ भेदभाव किए समाज के हर वर्ग के श्रोता व् पाठक को एक समान रूप से प्रभावित करती हैं। कवि भी बच्चों की ही भांति पूरे समाज को एक समान समझता है। वह बिना किसी भेदभाव के कविता की रचना करता है।
Related:
- Kavita ke Bahaane, Baat Seedhi Thi Par Summary and Explanation
- Kavita ke Bahaane, Baat Seedhi Thi Par Question Answers
Chapter 4 – कैमरे में बंद अपाहिज
प्रश्न 1 – शारीरिक चुनौती को झेलते व्यक्ति से कैमरे पर सवाल पूछना मीडियाकर्मियों की किस कमी को दर्शाता है? ‘कैमरे में बंद अपाहिज ‘ कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए। (40 शब्दों में)
उत्तर – कवि ने इस कविता के माध्यम से मिडिया का करुणा के मुखोटे में छिपी क्रूरता को दिखाने का प्रयास किया है। मिडिया किस तरह व्यावसायिक लाभ के लिए कमजोर लोगों के साथ अमानवीय व्यवहार करती हैं, यह कविता में एक अपाहिज व्यक्ति के साक्षात्कार के जरिए दिखाया गया है। कार्यक्रम के संचालक द्वारा झूठी सहानुभूति दिखाकर अपाहिज व्यक्ति से तरह-तरह के बहुत ही बेतुके प्रश्न पूछ कर उस अपाहिज व्यक्ति को रुलाने का प्रयास किया जाता है और उसके अपाहिजपन का मजाक उड़ाया जाता हैं। उसे रोने पर मजबूर करने की कोशिश करना वह भी सिर्फ इसलिए ताकि उसके दुख-दर्द व तकलीफ को दिखाकर सहानुभूति प्राप्त कर अधिक से अधिक पैसा कमाया जा सके, कहा जा सकता है कि यह क्रूरता की चरम सीमा है।
प्रश्न 2 – ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता के आधार पर लिखिए कि मीडिया कर्मी अपने कार्यक्रम का अंत एक खीझ भरी मुस्कुराहट के साथ क्यों करता है? (40 शब्दों में)
उत्तर – दूरदर्शन के कार्यक्रम के संचालक अपने आप को बहुत सक्षम और शक्तिशाली समझता है। इसीलिए वह अपने दर्शकों से कहता है कि वह उनके लिए एक व्यक्ति को दूरदर्शन के स्टूडियो के एक बंद कमरे में लाएंगें और उससे प्रश्न पूछेंगे। दूरदर्शन के कार्यक्रम के संचालक असल में अपनी लोकप्रियता और व्यापार को बढ़ाने के लिए एक अपाहिज व्यक्ति का साक्षात्कार दर्शकों को दिखाना चाह रहे हैं। कार्यक्रम के संचालक अपाहिज व्यक्ति से बहुत ही प्रश्न पूछता है। क्योंकि अपने कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए कार्यक्रम के संचालक चाहते है कि वह अपाहिज व्यक्ति अपना दुःख – दर्द दूरदर्शन के कैमरे के सामने रो कर व्यक्त करे। ताकि वह उसके दुःख-दर्द को अपने टेलीविजन के पर्दे पर दिखाकर लोगों की सहानुभूति प्राप्त कर अधिक से अधिक धन कमा सके। किन्तु जब वह अपाहिज व्यक्ति को रुलाने में सफल नहीं हो पता और उसका उद्देश्य असफल हो जाता है तब वह अपने कार्यक्रम का अंत एक खीझ भरी मुस्कुराहट के साथ करता है।
प्रश्न 3 – कैमरे में अपाहिज को बंद करने के कारणों का ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता के आधार पर उल्लेख कीजिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – शारीरिक चुनौती झेल रहे व्यक्ति की शब्दहीन पीड़ा को मीडियाकर्मी एक कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए और उससे लाभ कमाने के लिए व् अपने व्यापार का माध्यम बनाने से बिलकुल नहीं कतरा रहे हैं। उन्हें सिर्फ पैसे कमाने से मतलब होता है। दूरदर्शन के कार्यक्रम के संचालक अपने आप को बहुत सक्षम और शक्तिशाली समझता है। इसीलिए दूरदर्शन के स्टूडियो के एक बंद कमरे में उस साक्षात्कार में उस अपाहिज व्यक्ति से बहुत ही बेतुके प्रश्न पूछे जाते हैं? वह शारीरिक चुनौती झेल रहे व्यक्ति को सभी के समक्ष रुलाकर अपनी टी. र. पी बढ़ाना चाहता था परन्तु वह अपने उद्देश्य में सफल नहीं होता है क्योंकि मीडियाकर्मी उस शारीरिक चुनौती झेल रहे व्यक्ति को कैमरे पर रुलाने में सफल नहीं हो सका।
प्रश्न 4 – ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता का संदेश लिखिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ करुणा के मुखौटे में छिपी क्रूरता की कविता है। इस बात का अंदाजा आप यहीं से लगा सकते हैं कि किस तरह एक अपाहिज व्यक्ति से बेतुके प्रश्न पूछ-पूछकर उसे रुलाने की पूरी कोशिश की जाती है ताकि कार्यक्रम की लोकप्रियता व् व्यवसाय में लाभ हो सके। कहने का अभिप्राय यह है कि एक अपाहिज की करुणा को पैसे के लिए टी.वी. पर दर्शाना असल में अमानवीय और क्रूरता की चरम सीमा है। दूरदर्शन के संचालक जिस तरीके से अपाहिज लोगों से बार-बार बेतुके प्रश्न करके उनके दुख का मजाक उड़ाते हैं। यह कविता इन्हीं सब बातों को दर्शाती है। इस कविता के माध्यम से कवि ने यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि एक कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए और उससे लाभ कमाने के लिए मीडिया किसी भी हद तक जा सकती हैं। मीडिया वाले दूसरों के दुख को अपने व्यापार का माध्यम बनाने से बिलकुल नहीं कतराते, उन्हें सिर्फ पैसे कमाने से मतलब होता है और इसी बात पर व्यंग्य कसते हुए कवि ने इस कविता को लिखा है।
प्रश्न 5 – ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता के आधार पर सिद्ध कीजिए कि मीडिया का सामाजिक सरोकार मात्र एक दिखावा है। (60 शब्दों में)
उत्तर – एक कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए और उससे लाभ कमाने के लिए मीडिया किसी भी हद तक जा सकती हैं। मीडिया वाले दूसरों के दुख को अपने व्यापार का माध्यम बनाने से बिलकुल नहीं कतराते, उन्हें सिर्फ पैसे कमाने से मतलब होता है। कार्यक्रम का संचालक को उस अपाहिज व्यक्ति के दुःख व् दर्द से कोई मतलब नहीं है वह केवल अपना फायदा देख रहा है। उस अपंग व्यक्ति के चेहरे व आँखों में पीड़ा को साफ़-साफ़ देखने के बाबजूद भी उससे और बेतुके सवाल पूछे जाते हैं। मीडिया के अधिकारी इतने क्रूर होते हैं कि वह जानबूझकर अपाहिज लोगों से बेतुके सवाल पूछते हैं ताकि वे सवालों का उत्तर ही ना दे पाए। जब वह अपाहिज व्यक्ति नहीं रोता हैं तो संचालक कैमरा मैन से कैमरा बंद करने को कहता है क्योंकि वह उस अपाहिज व्यक्ति को रुलाने में नाकामयाब रहा और कैमरा बंद होने से पहले वह यह घोषणा करता हैं कि आप सभी दर्शक समाज के जिस उद्देश्य के लिए यह कार्यक्रम देख रहे थे वह कार्यक्रम अब समाप्त हो चुका है। लेकिन संचालक को ऐसा लगता हैं कि थोड़ी सी कसर रह गई थी वरना उसने उस व्यक्ति को लगभग रुला ही दिया था। कहने का अभिप्राय यह है कि मीडिया अपना टीआरपी बढ़ाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।
प्रश्न 6 – ‘कैमरे में बंद अपाहिज” कविता के संदर्भ में बताइए कि शारीरिक चुनौती झेल रहे व्यक्ति को पर्दे पर दिखाने के पीछे मीडिया कर्मियों का क्या उद्देश्य था? (60 शब्दों में)
उत्तर – मीडिया वाले दूसरों के दुख को अपने व्यापार का माध्यम बनाने से बिलकुल नहीं कतराते, उन्हें सिर्फ पैसे कमाने से मतलब होता है। दूरदर्शन के कार्यक्रम के संचालक अपने आप को बहुत सक्षम और शक्तिशाली समझता है। इसीलिए वह अपने दर्शकों से कहता है कि वह उनके लिए एक व्यक्ति को दूरदर्शन के स्टूडियो के एक बंद कमरे में लाएंगे और उससे प्रश्न पूछेंगे? कहने का तात्पर्य यह है कि दूरदर्शन के कार्यक्रम के संचालक असल में अपनी लोकप्रियता और व्यापार को बढ़ाने के लिए एक अपाहिज व्यक्ति का साक्षात्कार दर्शकों को दिखाना चाह रहे हैं। उस अपाहिज व्यक्ति से उसकी शाररिक दुर्बलता से सम्बंधित प्रश्न पूछ-पूछ कर, उसे बार-बार उसकी अपंगता का एहसास दिलाकर उसे रोने के लिए मजबूर करना मीडिया कर्मियों का उद्देश्य था। और दर्शक भी उसके रोने का ही इंतजार कर रहे थे क्योंकि कार्यक्रम का संचालक यही तो चाहता हैं कि वह रोये , अपना दुःख लोगों के सामने प्रदर्शित करे ताकि उसका कार्यक्रम और अधिक रोचक बन सके, सफल हो सके।
प्रश्न 7 – किसी के दुःख को बेचना कहाँ तक उचित है? ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता के संदर्भ में लिखिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – किसी के दुःख को बेचना बिलकुल भी उचित नहीं है। दूरदर्शन के संचालक जिस तरीके से अपाहिज लोगों से बार-बार बेतुके प्रश्न करके उनके दुख का मजाक उड़ाते हैं। यह कविता इन्हीं सब बातों को दर्शाती है। इस कविता के माध्यम से कवि ने यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि एक कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए और उससे लाभ कमाने के लिए मीडिया किसी भी हद तक जा सकती हैं। मीडिया वाले दूसरों के दुख को अपने व्यापार का माध्यम बनाने से बिलकुल नहीं कतराते, उन्हें सिर्फ पैसे कमाने से मतलब होता है और इसी बात पर व्यंग्य कसते हुए कवि ने इस कविता को लिखा है।
Related:
Chapter 5 – उषा
प्रश्न 1 – ‘उषा’ कविता में प्रकृति में होने वाला परिवर्तन मानवीय जीवन-चित्र बनकर किस प्रकार अभिव्यक्त हुआ है? (40 शब्दों में)
उत्तर – कविता में कवि ने सूर्योदय से ठीक पहले आकाश में होने वाले परिवर्तनों को सुंदर शब्दों में उकेरा है। कवि ने नए बिंब, नए उपमान, नए प्रतीकों का प्रयोग किया है। कवि को सूर्योदय से पहले का आकाश किसी नील शंख के सामान पवित्र व सुंदर दिखाई दे रहा हैं। धीरे-धीरे सुबह का आसमान कवि को ऐसा लगने लगता है जैसे किसी ने राख से चौका लीपा हो अर्थात आसमान धीरे-धीरे गहरे नीले रंग से राख के रंग यानी गहरा स्लेटी होने लगता है। धीरे-धीरे जैसे-जैसे सूर्योदय होने लगता है तो हलकी लालिमा आकाश में फैल जाती है। उस दृश्य को देखकर ऐसा लगता है जैसे काली रंग की सिल अर्थात मसाला पीसने के काले पत्थर को लाल केसर से धो दिया गया है। सुबह के समय आकाश ऐसा लगता है मानो किसी बच्चे की काली स्लेट पर किसी ने लाल खड़िया मिट्टी (चिह्न बनाने के काम आने वाली मिट्टी) मल दी हो। सूरज की किरणें सूर्योदय के समय ऐसे प्रतीत हो रही है जैसे किसी युवती की सुंदर गोरी काया अर्थात शरीर साफ़ नीले जल में झिलमिला रहा हो।
प्रश्न 2 – ‘उषा’ कविता के आधार पर लिखिए कि काली सिल पर लाल केसर मलने से किस प्रकार का दृश्य उपस्थित होता है? यह तुलना कवि ने किस आधार पर की है? (40 शब्दों में)
उत्तर – धीरे-धीरे जैसे-जैसे सूर्योदय होने लगता है तो हलकी लालिमा आकाश में फैल जाती है। उस दृश्य को देखकर ऐसा लगता है जैसे काली रंग की सिल अर्थात मसाला पीसने के काले पत्थर को लाल केसर से धो दिया गया है। सुबह के समय आकाश ऐसा लगता है मानो किसी बच्चे की काली स्लेट पर किसी ने लाल खड़िया मिट्टी (चिह्न बनाने के काम आने वाली मिट्टी) मल दी हो। सूरज की किरणें सूर्योदय के समय ऐसे प्रतीत हो रही है जैसे किसी युवती की सुंदर गोरी काया अर्थात शरीर साफ़ नीले जल में झिलमिला रहा हो।
प्रश्न 3 – ‘उषा’ कविता के संदर्भ में लिखिए कि उषा का जादू टूटने से आप क्या समझते हैं। (60 शब्दों में)
उत्तर – कवि ने नीले आकाश की तुलना नीले जल से और सूरज की किरणों की तुलना युवती की सुंदर गोरी काया अर्थात शरीर से की है। जब सूर्योदय हो जाता है अर्थात जब सूर्य पूरी तरह से आकाश में निकल आता है तब उषा यानी ब्रह्म वेला का हर पल बदलता सौंदर्य एकदम समाप्त हो जाता है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे प्रात: कालीन आकाश का जादू भी धीरे-धीरे खत्म हो रहा हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि सूर्योदय से पहले आकाश में जो बदलाव होते हैं वे सूर्योदय होने पर समाप्त हो जाते हैं।
Related:
Chapter 6 – बादल राग
प्रश्न 1 – बादल राग’ कविता में कवि बादल को किस रूप में बुलाता है, और क्यों? (40 शब्दों में)
उत्तर – लघुमानव अर्थात आम आदमी के दुख से त्रस्त कवि यहाँ बादल का आह्नान क्रांति के रूप में कर रहा है क्योंकि विप्लव रव से छोटे ही हैं शोभा पाते। किसान मज़दूर की आकांक्षाएँ बादल को नव-निर्माण के राग के रूप पुकार रही हैं। इस कविता में कवि ने बादलों को क्रान्ति का प्रतिक बतलाया है।
प्रश्न 2 – ‘बादल राग’ कविता के आधार पर लिखिए कि बादलों को जीवन का पारावार क्यों कहा गया है। (40 शब्दों में)
उत्तर – शोषित वर्ग शोषण के कारण अत्यधिक कमजोर हो गया है और अब वह शोषण को ख़त्म करने के लिए बैचेन है। शोषकों ने शोषित वर्ग की जीवन-शक्ति छीन ली है अर्थात उनका रक्त रूपी सार तत्त्व चूस लिया है। अब वह केवल हड्डियों का ढाँचा मात्र रह गया है। कवि बादल अर्थात क्रांतिकारियों को ‘जीवन का पारावार’ मानता है क्योंकि अब वे ही शोषक वर्ग पर बरस कर किसान की गरीबी दूर कर सकते हैं अर्थात क्रांति करके शोषण को समाप्त कर सकते हैं।
प्रश्न 3 – ‘बादल राग’ कविता में कवि ने धनिकों के भवनों को ‘आतंक – भवन’ क्यों कहा है? (40 शब्दों में)
उत्तर – ‘बादल राग’ कविता में पूँजीपतियों की अट्टालिकाओं को ‘आतंक भवन’ इसलिए कहा गया है क्योंकि पूँजीपतियों के द्वारा बनाए गए ऊँचे-ऊँचे भवन केवल भवन नहीं हैं बल्कि ये तो गरीबों में भय पैदा करने वाले भवन हैं। क्योंकि पूंजीपति लोगों ने इन्हें गरीबों का शोषण करके ही बनाया है।
प्रश्न 4 – ‘बादल राग’ कविता के आधार पर लिखिए कि बादलों की रणभेरी को सुनकर सोये हुए अंकुरों में किस प्रकार की चेतना उभरती है। (60 शब्दों में)
उत्तर – संसार का हृदय शोषण रूपी अग्नि से जला हुआ है और बादल दुःख व् शोषण से ग्रस्त संसार पर जल बरसा कर शोषण के खिलाफ लोगों के मन में दबे क्रान्ति के बीज को अंकुरित करता है। जिस प्रकार लोगों की उम्मीद होती है कि बादल जल बरसा कर गर्मी से राहत देगा उसी प्रकार लोगों को क्रान्ति से उम्मीद है कि उन्हें शोषण से मुक्ति मिलेगी। क्रांति की हुँकार से कमजोर व निष्क्रिय व्यक्ति भी शोषण के विरुद्ध संघर्ष के लिए तैयार हो जाते हैं। शोषण का शिकार हुए लोग अपने मन में अपने उद्धार की आशाएँ लिए क्रान्ति की ओर ताकते रहते हैं।
प्रश्न 5 – कृषक अधीर होकर बादल को क्यों बुलाता है? ‘बादल राग’ कविता के आधार पर लिखिए | (60 शब्दों में)
उत्तर – कवि बादल अर्थात क्रांतिकारी से कहता है कि शोषण के कारण किसान की भुजाएँ बलहीन हो गई हैं, उसका शरीर कमजोर हो गया है। वह बैचेन हो कर तुझे बुला रहा है। कहने का अभिप्राय यह है कि शोषित वर्ग शोषण के कारण अत्यधिक कमजोर हो गया है और अब वह शोषण को ख़त्म करने के लिए बैचेन है। शोषकों ने शोषित वर्ग की जीवन-शक्ति छीन ली है अर्थात उनका रक्त रूपी सार तत्त्व चूस लिया है। अब वह केवल हड्डियों का ढाँचा मात्र रह गया है। कवि बादल अर्थात क्रांतिकारियों से कहता है कि तुम बरस कर किसान की गरीबी दूर करो अर्थात क्रांति करके शोषण को समाप्त करो।
प्रश्न 6 – ‘बादल राग’ कविता में बादल किसका प्रतीक है? बादलों का आह्वान समाज का कौन-सा वर्ग करता है और क्यों? (60 शब्दों में)
उत्तर – ‘बादल राग’ कविता में कवि ने बादलों को क्रान्ति का प्रतिक बतलाया है। क्रान्ति से समाज का शोषक वर्ग प्रभावित होता है। संसार का हृदय शोषण रूपी अग्नि से जला हुआ है और बादल दुःख व् शोषण से ग्रस्त संसार पर जल बरसा कर शोषण के खिलाफ लोगों के मन में दबे क्रान्ति के बीज को अंकुरित करता है। संसार का हृदय शोषण रूपी अग्नि से जला हुआ है और बादल दुःख व् शोषण से ग्रस्त संसार पर जल बरसा कर शोषण के खिलाफ लोगों के मन में दबे क्रान्ति के बीज को अंकुरित करता है। जिस प्रकार लोगों को उम्मीद होती है कि बादल जल बरसा कर गर्मी से राहत देगा उसी प्रकार लोगों को क्रान्ति से उम्मीद है कि उन्हें शोषण से मुक्ति मिलेगी।
प्रश्न 7 – ‘बादल राग” कविता के आधार पर बादलों के आगमन से प्रकृति में हुए परिवर्तनों का वर्णन कीजिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – बादलों के आगमन से प्रकृति में निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं –
(i) बादल गर्जन करते हैं।
(ii) मूसलाधार वर्षा होती है।
(iii) पृथ्वी से पौधों का अंकुरण होने लगता है।
(iv) बिजली चमकती है तथा उसके गिरने से बड़े-बड़े पर्वत-शिखर खंडित हो जाते हैं।
(v) तेज़ हवा चलने से छोटे-छोटे पौधे हाथ हिलाते से प्रतीत होते हैं।
(vi) गरमी के कारण दुखी हुए प्राणी बादलों को देखकर प्रसन्न हो जाते हैं।
Related:
Chapter 7 – कवितावली (उत्तर कांड से) , लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप
प्रश्न 1 – निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए:
यह बृत्तांत दसानन सुनेऊ।
अति विषाद पुनि पुनि सिर धुनेऊ।।
ब्याकुल कुंभकरन पहिं आवा।
बिबिध जतन करि ताहि जगावा।।
जागा निसिचर देखिअ कैसा।
मानहुँ कालु देह धरि वैसा।।
कुंभकरन बूझा हु भाई।
काहे तव मुख रहे सुखाई||
कथा कही सब तेहिं अभिमानी।
जेहि प्रकार सीता हरि आनी।।
(i) दसानन के बार-बार सिर धुनने का क्या कारण था?
(a) सहयोग नहीं मिलना
(b) संकट से नहीं निकलना
(c) वैद्य द्वारा लक्ष्मण का उपचार करना
(d) लक्ष्मण का स्वस्थ हो जाना
उत्तर – (d) लक्ष्मण का स्वस्थ हो जाना
(ii) अत्यधिक शोक से बेचैन होकर रावण किसके पास गया?
(a) मेघनाद
(b) विभीषण
(c) कुंभकरण
(d) मंदोदरी
उत्तर – (c) कुंभकरण
(iii) कुंभकरण को असमय जगाने के पीछे रावण की क्या मनोदशा रही होगी?
(a) कुंभकरण को स्वयं से श्रेष्ठ मानन
(b) कुंभकरण से दिल की बात करना
(c) कुंभकरण को युद्ध में भेजना
(d) कुंभकरण की शक्ति पर भरोसा
उत्तर – (c) कुंभकरण को युद्ध में भेजना
(iv) ‘जागा निसिचर देखिअ कैसा’ पंक्ति में ‘निसिचर’ से किसे संबोधित किया गया है?
(a) रावण को
(b) कुंभकरण को
(c) राक्षस को
(d) रात में चलने वाले को
उत्तर – (b) कुंभकरण को
(v) कुंभकरण ने रावण से क्या पूछा?
(a) सीता हरण का कारण
(b) अपने पास आने का कारण
(c) दुखी होने का कारण
(d) स्वयं को जगाने का कारण
उत्तर – (c) दुखी होने का कारण
प्रश्न 2 – तुलसीदास ने दरिद्रता की तुलना किससे की है और क्यों? (40 शब्दों में)
अथवा
‘कवितावली’ के छंदों के आधार पर लिखिए कि तुलसीदास ने दरिद्रता की तुलना किससे की है और क्यों। (40 शब्दों में)
उत्तर – तुलसीदास ने दरिद्रता की तुलना रावण से की है। क्योंकि गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि हमारे वेदों और पुराणों में कहा गया है और इस संसार में सदैव देखा गया है कि जब-जब सब पर संकट आया है, तब-तब श्री राम ने ही सब पर कृपा की है अर्थात सबके दुखों को दूर किया है। तुलसीदास जी ईश्वर को पुकारते हुए कहते हैं कि हे दुःखियों पर कृपा करने वाले! दरिद्रता रूपी रावण ने इस दुनिया को तुलसीदास ने दरिद्रता की तुलना पूरी तरह से दबाया हुआ है। पूरी दुनिया बहुत दुखी हैं और पाप की अग्नि में जलती, दुनिया को देखकर तुलसीदास के मन में हाहाकार मच गया हैं और वे प्रभु से इस दुखी संसार का उद्धार करने की प्रार्थना करते हैं।
प्रश्न 3 – तुलसी ने अपने पद ‘धूत कहौ, अवधूत कहौ…’ में अपने स्वाभिमान को कैसे व्यक्त किया है? स्पष्ट कीजिए। (40 शब्दों में)
उत्तर – तुलसीदास ने इस छंद में अपने स्वाभिमान को प्रकट किया है। राम के प्रति उनकी भक्ति अनंत हैं तथा पूर्ण रूप से समर्पित हैं। समाज के द्वारा उन्हें दिए जाने वाले कटाक्षों का उन पर कोई प्रभाव नहीं है। उनका यह कहना कि उन्हें किसी के साथ अपनी बेटी का वैवाहिक संबंध स्थापित नहीं करना। वे किसी से कोई मदद नहीं लेते। वे भिक्षा मांग कर अपना जीवन-निर्वाह करते हैं तथा मस्जिद में भी जाकर सो जाते हैं। वे किसी की परवाह नहीं करते कि कोई उनके बारे में क्या कहेगा। तुलसीदास जी ने अपनी कृतियों के सहारे जीवन की किसी भी परिस्थिति में सभी को स्वाभिमान के साथ जीना सिखाया और उनकी राम भक्ति ने उन्हें इतना आत्मविश्वासी व साहसी बना दिया कि उन्होंने समाज में फैली कुप्रथाओं का खुलकर विरोध किया।
प्रश्न 4 – ‘लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप’ प्रसंग के आधार पर लिखिए कि रावण की बात सुनकर कुंभकरण क्यों बिलखने लगा था। (60 शब्दों में)
उत्तर – अभिमानी रावण ने जिस प्रकार से सीता का हरण किया था और अब तक युद्ध में घटी सारी धटनाएँ कुंभकरण को बताई। उसने कुंभकरण को यह भी बताया कि उन वानरों ने सारे राक्षसों को मार डाला हैं और सारे बड़े-बड़े योद्धाओं का भी संहार कर दिया हैं। दुर्मुख, देवताओं का शत्रु (सुररिपु) , मनुष्य को खाने वाला (मनुज अहारी), भारी शरीर वाला योद्धा (अतिकाय अकंपन) तथा महोदर आदि सभी वीर रणभूमि में मारे गए हैं।
रावण के वचन सुनकर कुंभकर्ण दुखी होकर बिलखने लगा और बोला, हे मूर्ख! जगत माता सीता का हरण कर अब तुम अपना कल्याण चाहते हो? यह संभव नहीं है।
प्रश्न 5 – तुलसीदास ने अपने युग की जिस दुर्दशा का वर्णन किया है, आज के संदर्भ में उस पर टिप्पणी कीजिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – तुलसीदास अपने युग की दुर्दशा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि समय पर बारिश न होने के कारण अकाल पड़ा हुआ है। जिस कारण किसान खेती नहीं कर पा रहा है, स्थिति इतनी दयनीय है कि भिखारी को भीख नहीं मिल रही है, ब्राह्मण को दक्षिणा अथवा भोग नहीं मिल पा रहा है, व्यापारी अपना व्यापार करने में असमर्थ है क्योंकि उसे साधनों की कमी हो रही है और नौकर को कोई नौकरी नहीं मिल रही हैं। बेरोजगारी के कारण बेरोजगार यानि आजीविका रहित लोग दुःखी हैं और बस सोच में पड़े हैं और एक दूसरे से पूछ रहे हैं कि अब कहाँ जाएं और क्या करें?
प्रश्न 6 – तुलसीदास ने ‘कवितावली’ के छंदों में अपने समय के लोगों की जीविका – विहीनता का चित्रण किस प्रकार किया है? (60 शब्दों में)
उत्तर – तुलसीदास को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ थी। उन्होंने अपने युग की प्रत्येक स्थिति व् परिस्थितियों को गहराई से देखा था और साथ ही साथ अनुभव भी किया था। यही कारण था कि वे अपने समय की स्थितियों को हमारे समक्ष इतने सरल तरीके से प्रस्तुत कर सके। उस समय लोगों के पास क्योंकि धन की बहुत कमी थी इसलिए वे धन के लिए सभी प्रकार के अनैतिक कार्य करने से भी पीछे नहीं हटते थे। धन के लिए उन्होंने अपने बेटा-बेटी तक बेचने शुरू कर दिए ताकि कुछ पैसे मिल सकें। पेट की आग बुझाने के लिए हर अधर्मी और नीचा कार्य करने के लिए वे हमेशा तैयार रहते थे।
प्रश्न 7 – ‘लक्ष्मण मूर्च्छा और राम का विलाप’ प्रसंग ईश्वरीय राम का पूरी तरह से मानवीकरण है। सिद्ध कीजिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – लक्ष्मण के मूर्छित होने पर राम को जिस तरह विलाप करते हुए दिखाया गया है, वह प्रभु की नर-लीला की अपेक्षा सच्ची मानवीय अनुभूति अधिक लगती है। राम के द्वारा अनेक ऐसी बातें कही गई हैं जो आम व्यक्ति ही कहता है, जैसे-यदि मुझे तुम्हारे वियोग का पहले पता होता तो मैं वन में आता ही नहीं। मैं अयोध्या जाकर सभी को क्या मुँह दिखाऊँगा, माता को क्या जवाब दूँगा आदि। ये बातें कोई ईश्वरीय व्यक्ति नहीं कह सकता क्योंकि ईश्वर तो सब कुछ पहले से ही जानते है। वह इस तरह से सांसारिक वस्तुओं से नहीं बंधे होते व् हर्ष, शोक आदि भावों को भी व्यक्त नहीं करते। इस तरह कवि ने राम को एक आम व्यक्ति की तरह विलाप व् शोक करते हुए दिखाया है जो उसकी सच्ची मानवीय अनुभूति के अनुरूप ही है। हम इस बात से सहमत हैं कि यह विलाप राम की नर-लीला की अपेक्षा मानवीय अनुभूति अधिक है।
प्रश्न 8 – तुलसीदासकृत चौपाइयों के आधार पर तत्कालीन समाज में नारी की स्थिति स्पष्ट कीजिए। (40 शब्दों में)
उत्तर – तुलसीदास ने कवितावली में समाज की कई सारी समस्यायों पर लोगों का ध्यान केंद्रित करने का प्रयास किया है। आज के समय में भी उन सभी समस्यायों में से बहुत सी समस्यायों का सामना हम करते आ रहे हैं। तुलसीदास जी ने उस समय की समाज में मूलयहीनता, नारी की स्थिति, आर्थिक दुर्व्यवस्था का जो सटीक वर्णन किया है वह आज भी प्रासंगिक है। आज भी महिलाओं के ऊपर अत्याचार और उनके प्रति भेदभाव की स्थिति अक्सर सामने आ ही जाती है। उस समय जिस तरह समाज में महिलाओं की अपमानजनक स्थिति थी आज भी ज्यों-की-त्यों बानी हुई है।
Related:
- Kavitawali, Lakshman Moorchha aur Ram ka Vilap Summary and Explanation
- Kavitawali, Lakshman Moorchha aur Ram ka Vilap Question Answers
Chapter 8 – रुबाइयाँ
प्रश्न 1 – ‘रुबाइयाँ’ के आधार पर लिखिए कि बच्चा माँ से क्या माँग रहा है और वह उसकी ज़िद को कैसे पूरा करती है। (40 शब्दों में)
उत्तर – छोटा बच्चा अपने आँगन में मचल रहा है और जिद कर रहा है। उस बच्चे का मन चाँद को देख कर ललचाया हुआ है और वह उस आकाश के चांद को पाने की जिद्द कर रहा है। बच्चे की इस जिद्द पर माँ बच्चे को एक आईना पकड़ा देती है। और फिर उस दर्पण में चाँद का प्रतिबिम्ब दिखाकर बच्चे को समझा देती है कि देखो, आकाश का चांद शीशे में उतर आया है।
प्रश्न 2 – ‘घुटनियों में लेके है पिन्हाती कपड़े’ पंक्ति के माध्यम से माँ के व्यक्तित्व की कौन-सी विशेषता प्रकट होती है? (40 शब्दों में)
उत्तर – माँ अपने छोटे बच्चे को हिलते-डुलते साफ-सुथरे पानी से नहलाती है। नहाने से उसके अस्त-व्यस्त हुए बालों को कंधी कर धीरे-धीरे प्यार से सुलझाती व संवारती है। और जब माँ अपने बच्चे को अपने घुटनों के बीच पकड़ कर के कपड़े पहनाती है तो बच्चा कितने ही प्यार से अपनी माँ के चेहरे को देखता है। कहने का आशय यह है कि जिस प्यार से बच्चा अपनी माँ को निहारता है उसका शब्दों में वर्णन करना संभव नहीं है।
Related:
Chapter 9 – छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख
प्रश्न 1 – निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए:
छोटा मेरा खेत चौकोना
कागज का एक पन्ना,
कोई अंधड़ कहीं से आया
क्षण का बीज वहाँ बोया गया।
कल्पना के रसायनों को पी
बीज गल गया नि:शेष;
शब्द के अंकुर फूटे,
पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष
(i) छोटा खेत किसका प्रतीक है?
(a) फ़सल रोपे जाने वाले खेत का
(b) आकार में छोटे खेत का
(c) कागज के उस पन्ने का जिस पर रचना शब्द-बद्ध होती है
(d) कागज के उस पन्ने को जो पुस्तक में जिल्द-बद्ध रहता है
उत्तर – (c) कागज के उस पन्ने का जिस पर रचना शब्द-बद्ध होती है
(ii) ‘अंधड़’ से कवि का क्या अभिप्राय है?
(a) हवा का तीव्र वेग
(b) शीतल-मंद-सुंगधित तेज हवा
(c) भावनाओं और विचारों का वेग
(d) धूल और मिट्टी से भरी तेज हवा
उत्तर – (c) भावनाओं और विचारों का वेग
(iii) कविता के संदर्भ में बताइए कि बीज किसके संसर्ग से अंकुरित हुआ।
(a) खाद-पानी
(b) सूर्य का प्रकाश
(c) कल्पना
(d) मिट्टी-पानी
उत्तर – (c) कल्पना
(iv) बीज के गल जाने पर क्या हुआ?
(a) शब्दों के अंकुर फूटे
(b) कवि को पश्चात्ताप हुआ
(c) भावनाओं के अंकुर फूटे
(d) कवि की मेहनत व्यर्थ हुई
उत्तर – (a) शब्दों के अंकुर फूटे
(v) खेती के रूपक द्वारा कवि ने प्रस्तुत किया है:
(a) कृषि-कर्म प्रक्रिया को
(b) काव्य-रचना प्रक्रिया को
(c) खेती में आने वाली कठिनाइयों को
(d) खेती के महत्त्व को
उत्तर – (b) काव्य-रचना प्रक्रिया को
प्रश्न 2 – निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए:
झूमने लगे फल,
रस अलौकिक,
अमृत धाराएँ फूटती
रोपाई क्षण की
कटाई अनंतता की
लुटते रहने से जरा भी नहीं कम होती
रस का अक्षय पात्र सदा का
छोटा मेरा खेत चौकोना
(i) साहित्यिक कृति से जो अलौकिक अमृत-धारा फूटी, वह किसका परिणाम है?
(a) कवि की कल्पना का
(b) किसान की मेहनत का
(c) क्षण में होने वाली रोपाई का
(d) क्षण में होने वाली कटाई का
उत्तर – (a) कवि की कल्पना का
(ii) ‘कटाई अनंतता की’ के माध्यम से कवि साहित्य की किस विशेषता की ओर संकेत करना चाहता है?
(a) साहित्य कालजयी होता है।
(b) साहित्य समाज – सापेक्ष होता है।
(c) साहित्य समाज का दर्पण होता है।
(d) साहित्य अनंतता का भंडार होता है।
उत्तर – (a) साहित्य कालजयी होता है।
(iii) रचना कर्म की दृष्टि से साहित्य को ‘रस का अक्षय पात्र’ क्यों कहा गया है?
(a) साहित्य जगत में कवि की पहचान अनंतकाल तक बनी रहने के कारण
(b) साहित्य से प्राप्त आनंद के अनंतकाल तक बने रहने के कारण
(c) साहित्य और समाज का घनिष्ठ संबंध होने के कारण
(d) साहित्य मनोरंजन का प्रमुख साधन होने के कारण
उत्तर – (b) साहित्य से प्राप्त आनंद के अनंतकाल तक बने रहने के कारण
(iv) कवि कर्म की दृष्टि से ‘रोपाई’ का अर्थ है?
(a) काव्यानंद की अनुभूति
(b) फसल की कटाई करना
(c) बीजों की बुवाई करना
(d) अनुभूति को शब्द -बद्ध करना
उत्तर – (a) काव्यानंद की अनुभूति
(v) छोटा खेत किसका प्रतीकार्थ है?
(a) फसल रोपे जाने वाले खेत का।
(b) आकार में छोटे खेत का।
(c) कागज के उस पन्ने का जिस पर रचना शब्द-बद्ध होती है।
(d) कागज के उस पन्ने का जो पुस्तक में जिल्द-बद्ध रहता है।
उत्तर – (c) कागज के उस पन्ने का जिस पर रचना शब्द-बद्ध होती है।
प्रश्न 3 – निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए:
छोटा मेरा खेत चौकोना
कागज का एक पन्ना,
कोई अंधड़ कहीं से आया
क्षण का बीज वहाँ बोया गया।
कल्पना के रसायनों को पी
बीज गल गया नि:शेष; शब्द के अंकुर फूटे,
पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष।
(i) काव्यांश में प्रयुक्त ‘खेत’ का अर्थ है –
(a) जमीन भाव
(b) कागज
(d) शब्द
उत्तर – (b) कागज
(ii) ‘कोई अंधड़ कहीं से आया’ – पंक्ति में प्रयुक्त अंधड़ का अर्थ है –
(a) तूफान
(c) भावों की आँधी
(b) धूल भरी आँधी
(d) कठिनाइयाँ
उत्तर – (c) भावों की आँधी
(iii) बीज का अस्तित्व किसके संसर्ग से गल गया?
(a) कल्पना
(b) धरती
(c) भाव
(d) कविता
उत्तर – (a) कल्पना
(iv) भावना रूपी बीजों के गलने से क्या परिणाम मिला?
(a) कवि की मेहनत व्यर्थ हो गई
(b) धरती पर अंकुर फूट पड़े
(c) कवि पुन: कल्पना करने लगा
(d) शब्दों के अंकुर फूट पड़े
उत्तर – (d) शब्दों के अंकुर फूट पड़
(v) ‘कल्पना’ को रसायन क्यों कहा गया है?
(a) सृजन को सुन्दर बनाने में सहायक
(b) सृजन को सरल बनाने में महत्त्वपूर्ण
(c) सृजन के विकास में सहायक तत्त्व
(d) सृजन का मूलभूत तत्त्व
उत्तर – (d) सृजन का मूलभूत तत्त्व
प्रश्न 4 – ‘बगुलों के पंख’ कविता के आधार उस सौन्दर्य का वर्णन कीजिए जिसने कवि के मन को मोह लिया। (40 शब्दों में)
उत्तर – बगुलों की पंक्ति उड़ते-उड़ते दूर जा रही है और मनोहक दृश्य कवि की आँखों से ओझल हो रहा है इस कारण कवि कहता है कि कोई इस मनमोहक दृश्य को लुप्त होने से रोक लें। इस आकर्षक दृश्य का कवि पर इतना प्रभाव पड़ा है कि आकाश में उड़तें पंक्तिबद्ध बगुलों के पंखों में कवि की आँखें अटककर रह जाती हैं। अर्थात कवि बगुलों की उस पंक्ति से अपनी आँखें नहीं हटा पा रहा है।
प्रश्न 5 – ‘छोटा मेरा खेत’ कविता में कवि ने कागज के पन्ने को खेत की तरह क्यों कहा है? समझाइए। (40 शब्दों में)
उत्तर – कवि को कागज का पन्ना किसी चार कोने के खेत की तरह लगता है। कहने का तात्पर्य यह है कि जिस तरीके से खेत पर किसान खेती करता है, ठीक उसी तरह पन्ने पर कवि कविता लिखता है। इसलिए कवि पन्ने को खेत कह रहा है।
प्रश्न 6 – ‘बगुलों के पंख’ कविता की पंक्ति ‘चुराए लिए जाती वे मेरी आँखें’ – से कवि का क्या आशय है? (40 शब्दों में)
उत्तर – कवि आकाश में छाए काले बादलों में पंक्ति बनाकर उड़ते हुए बगुलों के सुंदर पंखों का वर्णन करता हुआ कहता है कि वह आकाश में पंक्ति बनाकर बगुलों को उड़ते हुए एकटक दृष्टि से देखता रहता है। यह दृश्य कवि की आँखों को चुरा ले जाता है अर्थात कवि को यह दृश्य अत्यधिक मनमोहक लगता है।
प्रश्न 7 – ‘बगुलों के पंख’ कविता से उद्धृत पंक्ति ‘हौले-हौले जाती मुझे बाँध निज माया से’ – में कवि किस माया की बात कर रहा है? (40 शब्दों में)
उत्तर – ‘हौले-हौले जाती मुझे बाँध निज माया से’ – में कवि आकर्षण व् सौंदर्य नामक माया की बात कर रहा है। कवि काले बादलों से भरे आकाश में पंक्ति बनाकर उड़ते सफेद बगुलों को देखता है। वे काले बादलों के ऊपर तैरती हुई सांयकाल की श्वेत काया के समान प्रतीत होते हैं। यह दृश्य कवि को इतना मनोहारी लगता है कि इनकी आँखें उस दृश्य से हटने का नाम ही नहीं लेती। कवि सब कुछ भूलकर उसमें खो जाता है। वह इस दृश्य के जादू से अपने को बचाने की गुहार लगाता है, लेकिन वह स्वयं को इससे बचा नहीं पाता।
Related
- Chhota Mera Khet, Bagulon ke Pankh Summary and Explanation
- Chhota Mera Khet, Bagulon ke Pankh Question Answers
Chapter 10 – भक्तिन
प्रश्न 1 – निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए:
दिन भर के कार्य-भार से छुट्टी पाकर जब मैं कोई लेख समाप्त करने या भाव को छंदबद्ध करने बैठती हूँ, तब छात्रावास की रोशनी बुझ चुकती है, मेरी हिरनी सोना तख्त के पैताने फर्श पर बैठ कर पागुर करना बंद कर देती है, कुत्ता बसंत छोटी मचिया पर पंजों में मुख रख कर आँखें मूँद लेता है और बिल्ली गोधूलि मेरे तकिए पर सिकुड़ कर सो रहती पर मुझे रात की निस्तब्धता में अकेली न छोड़ने के विचार से कोने में दरी के आसन पर बैठकर बिजली की चकाचौंध से आँखें मिच – मिचाती हुई भक्तिन, प्रशांत भाव से जागरण करती है। वह ऊँघती भी नहीं, क्योंकि मेरे सिर उठाते ही उसकी धुँधली दृष्टि मेरी आँखों का अनुसरण करने लगती है।
(i) ‘भाव को छंदबद्ध करने बैठती हूँ’ – से किस प्रकार की ध्वनि निकलती है?
(a) डायरी लिखने की
(b) कविता लिखने की
(c) लेख लिखने की
(d) अनुभव लिखने की
उत्तर – (b) कविता लिखने की
(ii) “तब छात्रावास की रोशनी बुझ चुकती है’ – पंक्ति का आशय है :
(a) बिजली गुल होना
(b) रात अधिक होना
(c) अँधेरा होना
(d) छात्रावास में बिजली का न होना
उत्तर – (b) रात अधिक होना
(iii) गद्यांश के अनुसार लेखिका का जानवरों के प्रति किस प्रकार का भाव अभिव्यक्त हो रहा है?
(a) प्रेम का
(b) वात्सल्य का
(c) करुणा का
(d) दया का
उत्तर – (a) प्रेम का
(iv) रात अधिक हो जाने के बाद भी भक्तिन जागने का प्रयास क्यों करती रहती थी?
(a) जानवरों तथा लेखिका की देख-रेख के लिए
(b) रोशनी में नींद नहीं आने से
(c) लेखिका की जरूरत को पूरा करने के लिए
(d) लेखिका को अकेली न छोड़ने के विचार से
उत्तर – (c) लेखिका की जरूरत को पूरा करने के लिए
(v) गद्यांश के अनुसार भक्तिन का लेखिका के प्रति किस प्रकार का भाव अभिव्यक्त होता है?
(a) सहयोग का भाव
(b) दास्य भाव
(c) स्वामी-भक्ति
(d) समर्पण का भाव
उत्तर – (d) समर्पण का भाव
प्रश्न 2 – निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए–
पिता का उस पर अगाध प्रेम होने के कारण स्वभावतः ईर्ष्यालु और संपत्ति की रक्षा में सतर्क विमाता ने उनके मरणांतक रोग का समाचार तब भेजा, जब वह मृत्यु की सूचना भी बन चुका था। रोने-पीटने के अपशकुन से बचने के लिए सास ने भी उसे कुछ न बताया। बहुत दिन से नैहर नहीं गई, सो जाकर देख आवे, यही कहकर और पहना – उढ़ाकर सास ने उसे विदा कर दिया। इस अप्रत्याशित अनुग्रह ने उसके पैरों में जो पंख लगा दिए थे, वे गाँव की सीमा में पहुँचते ही झड़ गए। ‘हाय लछमिन अब आई’ की अस्पष्ट पुनरावृत्तियाँ और स्पष्ट सहानुभूतिपूर्ण दृष्टियाँ उसे घर तक ठेल ले गई। पर वहाँ न पिता का चिह्न शेष था, न विमाता के व्यवहार में शिष्टाचार का लेश था। दुख से शिथिल और अपमान से जलती हुई वह उस घर में पानी भी बिना पिए उलटे पैरों ससुराल लौट पड़ी। सास को खरी-खोटी सुनाकर उसने विमाता पर आया हुआ क्रोध शांत किया और पति के ऊपर गहने फेंक-फेंककर उसने पिता के चिर विछोह की मर्मव्यथा व्यक्त की।
(i) पिता की मृत्यु का समाचार भक्तिन के पास विमाता द्वारा देरी से भेजने का कारण था –
(a) उसे पसंद न करना
(b) उससे ईर्ष्या करना
(c) संपत्ति की रक्षा करना
(d) कोई साधन न होना
उत्तर – (c) संपत्ति की रक्षा करना
(ii) भक्तिन ने सास के किस व्यवहार को ‘अप्रत्याशित अनुग्रह’ कहा है?
(a) बिना कहे ही पिता के घर जाने के लिए कहना
(b) बढ़िया-बढ़िया वस्त्र पहनने के लिए देना
(c) बढ़िया-बढ़िया गहने पहनने के लिए देना
(d) पिता के घर जाने के लिए चना-चबेना देना
उत्तर – (a) बिना कहे ही पिता के घर जाने के लिए कहना
(iii) ‘पैरों के पंखों का गाँव की सीमा में पहुँचते ही झड़ जाना’ — का आशय है —
(a) थकावट का दूर हो जाना
(b) खुशियों का समाप्त हो जाना
(c) खुशियों का दुख में बदल जाना
(d) पैरों की गति का मंद पड़ जाना
उत्तर – (c) खुशियों का दुख में बदल जाना
(iv) निम्नलिखित कथन, कारण को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उसके बाद दिए गए विकल्पों में से कोई एक सही विकल्प चुनकर लिखिए –
कथन (A): लक्ष्मी पिता के घर में पानी भी बिना पिए उलटे पैरों ससुराल लौट पड़ी।
कारण (R): वह पिता के चिर-वियोग और विमाता के व्यवहार से दुखी थी।
(a) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों सही हैं तथा कारण (R), कथन (A) की सही व्याख्या करता है।
(b) कथन (A) गलत है लेकिन कारण (R) सही है।
(c) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों गलत हैं।
(d) कथन (A) सही है लेकिन कारण (R) उसकी गलत व्याख्या करता है।
उत्तर – (a) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों सही हैं तथा कारण (R), कथन (A) की सही व्याख्या करता है।
(v) गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए –
(क) गाँव की सीमा में पहुँचते ही लक्ष्मी के पैरों में पंख लग गए।
(ख) लक्ष्मी को देखते ही गाँव वाले उसे सहानुभूतिपूर्ण दृष्टि से देखने लगे।
(ग) लक्ष्मी ने विमाता पर आया क्रोध पति को खरी-खोटी सुनाकर शांत किया।
उपरिलिखित कथनों में से कौन-सा / कौन-से सही है/हैं?
(a) केवल (क)
(b) केवल (ख)
(c) केवल (क) और (ग)
(d) केवल (ख) और (ग)
उत्तर – (b) केवल (ख)
प्रश्न 3 – भक्तिन का दुर्भाग्य भी उससे कम हठी नहीं था, कैसे? पाठ के आधार पर लिखिए। (40 शब्दों में)
उत्तर – भक्तिन का दुर्भाग्य भी उससे कम हठी नहीं था, इसी से किशोरी से युवती होते ही बड़ी लड़की भी विधवा हो गई। भक्तिन से पार न पा सकने वाले जेठों और काकी को परास्त करने के लिए कटिबद्ध जिठौतों ने आशा की एक किरण देख पाई। विधवा बहिन के गठबंधन के लिए बड़ा जिठौत अपने तीतर लड़ाने वाले साले को बुला लाया, क्योंकि उसका हो जाने पर सब कुछ उन्हीं के अधिकार में रहता। भक्तिन की लड़की भी माँ से कम समझदार नहीं थी, इसी से उसने वर को नापसंद कर दिया। परन्तु एक दिन माँ की अनुपस्थिति में वर महाशय ने बेटी की कोठरी में घुस कर भीतर से द्वार बंद कर लिया और उसके समर्थक गाँववालों को बुलाने लगे। अपीलहीन फैसला हुआ कि चाहे उन दोनों में एक सच्चा हो चाहे दोनों झूठे; पर जब वे एक कोठरी से निकले, तब उनका पति-पत्नी के रूप में रहना ही कलियुग के दोष का परिमार्जन कर सकता है। संबंध कुछ सुखकर नहीं हुआ, क्योंकि दामाद अब निश्चित होकर तीतर लड़ाता था और बेटी विवश क्रोध से जलती रहती थी। इतने यत्न से सँभाले हुए गाय-ढोर, खेती-बारी जब पारिवारिक द्वेष में ऐसे झुलस गए कि लगान अदा करना भी भारी हो गया, सुख से रहने की कौन कहे। अंत में एक बार लगान न पहुँचने पर ज़मींदार ने भक्तिन को बुलाकर दिन भर कड़ी धूप में खड़ा रखा। यह अपमान तो उसकी कर्मठता में सबसे बड़ा कलंक बन गया, अतः दूसरे ही दिन भक्तिन कमाई के विचार से शहर आ पहुँची।
प्रश्न 4 – भक्तिन की विमाता ने पिता की बीमारी का समाचार भक्तिन के पास देर से क्यों भेजा होगा? पाठ के आधार पर लिखिए। (40 शब्दों में)
उत्तर – भक्तिन की विमाता ने पिता की बीमारी का समाचार भक्तिन के पास देर से इसलिए भेजा होगा क्योंकि भक्तिन के पिता भक्तिन से अत्यधिक प्रेम करते थे और विमाता को इससे बहुत ईर्ष्या होती थी। साथ-ही-साथ विमाता को यह भी संदेह रहा होगा कि यदि भक्तिन समय रहते अपने पिता से मिलने आ जाएगी तो उसके पिता अपनी सारी सम्पति भक्तिन के नाम के देंगे। इसी संदेह के कारण विमाता ने पिता की बीमारी का समाचार भक्तिन के पास देर से भेजा होगा।
प्रश्न 5 – भक्तिन के आ जाने से महादेवी अधिक देहाती कैसे हो गई? (60 शब्दों में)
उत्तर – भक्तिन एक ग्रामीण, देहाती महिला थी। शहर में आकर भी उसने अपने आप में कोई परिवर्तन नहीं किया। बल्कि वह तो दूसरों को भी अपने अनुसार बना लेना चाहती थी। भक्तिन ने लेखिका का मीठा खाना बिल्कुल बंद कर दिया था। उसने गाढ़ी दाल व मोटी रोटी खिलाकर लेखिका की स्वास्थ्य संबंधी चिंता दूर कर दी। भक्तिन के आने के बाद लेखिका को रात को मकई का दलिया, सवेरे मट्ठा, तिल लगाकर बाजरे के बनाए हुए ठंडे पुए, ज्वार के भुने हुए भुट्टे के हरे-हरे दानों की खिचड़ी व सफेद महुए की लपसी मिलने लगी थी और इन सबको लेखिका भी स्वाद से खाने लगी। इसके अलावा भक्तिन ने महादेवी को देहाती भाषा भी सिखा दी थी। इस प्रकार कहा जा सकता है कि भक्तिन का साथ पा कर महादेवी भी देहाती बन गई।
प्रश्न 6 – भक्तिन की तुलना हनुमान जी से करने के कारणों को स्पष्ट कीजिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – भक्तिन की सेवा भाव की तुलना हनुमान जी से इसलिए की गई, क्योंकि भक्तिन उसी तरह के निस्वार्थ भाव से सेवा करती थी, जिस तरह हनुमान जी श्री राम की सेवा निस्वार्थ, निष्कपट और निश्छल भाव से करते थे। उत्तर-पुस्तिका के निरीक्षण-कार्य में लेखिका का जब किसी ने सहयोग नहीं दिया तब वह कहती फिरती थी कि उसकी मालकिन जैसा कार्य कोई नहीं जानता। वह स्वयं सहायता करती थी। कभी उत्तर-पुस्तिकाओं को बाँधकर, कभी अधूरे चित्र को कोने में रखकर, कभी रंग की प्याली धोकर और कभी चटाई को आँचल से झाड़कर वह जो सहायता करती थी। जब लेखिका बार-बार बुलाने के बाद भी भोजन के लिए न उठकर चित्र बनाती रहती थी, तब भक्तिन कभी दही का शरबत अथवा कभी तुलसी की चाय पिलाकर उसे भूख के कष्ट से बचाती थी। कारागार से डरने के बावजूद भी भक्तिन लेखिका के साथ कारागार चलने का हठ करने लगी थी। अपनी मालकिन के साथ जेल जाने के हक के लिए वह बड़े लाट तक से लड़ने को तैयार थी।
प्रश्न 7 – ‘भक्तिन’ पाठ के आधार पर लिखिए कि खोटे सिक्कों की टकसाल किसे और क्यों कहा गया है। (40 शब्दों में)
उत्तर – ‘खोटे सिक्कों की टकसाल’ लछमिन को कहा गया है क्योंकि उसने तीन पुत्रियों को जन्म दिया था। भारत में लड़कियों को ‘खोटा सिक्का’ कहा जाता है। उनकी दशा हीन होती है।
प्रश्न 8 – महादेवी वर्मा अपने और भक्तिन के संबंधों को मालिक और नौकरानी का संबंध क्यों नहीं मानती? ‘भक्तिन’ पाठ के संदर्भ में लिखिए। (40 शब्दों में)
उत्तर – महादेवी वर्मा अपने और भक्तिन के संबंधों को मालिक और नौकरानी का संबंध नहीं मानती क्योंकि भक्तिन व लेखिका के बीच नौकरानी या स्वामिनी का संबंध नहीं था। वे आत्मीय जन की तरह थे। स्वामी अपनी इच्छा होने पर भी उसे हटा नहीं सकती थी( स्वामी अपनी इच्छा होने पर भी उसे हटा नहीं सकती। सेवक भी स्वामी के चले जाने के आश पाकर अवज्ञा से हँस दे। भक्तिन को नौकर कहना उतना ही असंगत है, जितना अपने घर में बारी-बारी से आने-जाने वाले अँधेरे-उजाले और आँगन में फूलो वाले गुलाब और आम को सेवक मानना। जिस प्रकार एक अस्तित्व रखते है जिसे सार्थकता देने के लिए ही हमें सुख-दुख देते हैं, उसी प्रकार भक्तिन का स्वतंत्र व्यक्तित्व अपने विकास के लिए लेखिका के जीवन को घेरे है।
प्रश्न 9 – कारागार के नाम से भी डरने वाली भक्तिन लाट साहब से लड़ने के लिए क्यों तैयार हो गई थी? ‘भक्तिन’ पाठ के संदर्भ में लिखिए। (40 शब्दों में)
उत्तर – भक्तिन कारागार से बहुत डरती थी, इसी बात पर लोग उसे चिढ़ाते थे कि लेखिका को कारागार में डाला जा सकता है। इस पर कारागार से डरने के बावजूद भी भक्तिन लेखिका के साथ कारागार चलने का हठ करने लगी थी। अपनी मालकिन के साथ जेल जाने के हक के लिए वह बड़े लाट तक से लड़ने को तैयार थी।
प्रश्न 10 – ‘भक्तिन’ पाठ के कथन “मेरे नाम की विशालता मेरे लिए दुर्वह है” का आशय स्पष्ट कीजिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – “मेरे नाम की विशालता मेरे लिए दुर्वह है” का आशय यह है कि भक्तिन का वास्तविक नाम लछमिन अर्थात् लक्ष्मी था। जिसका अर्थ होता है – धन की देवी। इस नाम के विपरीत लक्ष्मी अत्यंत गरीब थी। लक्ष्मी के पास धन बिलकुल नहीं था। लक्ष्मी नाम को सुनकर लोग उसका मजाक ना बनाएं, इसीलिए वह अपना वास्तविक नाम लोगों से छुपाती थी और उसे यह बिलकुल भी पसंद नहीं था कि कोई भी उसे लक्ष्मी नाम से पुकारे।
प्रश्न 11 – ‘कोई भी व्यक्ति सर्वगुण संपन्न नहीं होता, भक्तिन भी इसका अपवाद नहीं थी।’ भक्तिन के जीवन के आधार पर इस कथन को सिद्ध कीजिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – हर व्यक्ति के स्वभाव में गुण और अवगुण दो पहलुओं की तरह होते हैं। भक्तिन एक सीधी-सादी, ग्रामीण संस्कृति के अनुसार अपना जीवन जीने वाली महिला थी और वह लेखिका को खुश रखने का हर संभव प्रयास करती रहती थी। भक्तिन में भले ही सेवा-भाव है, वह अपने कार्य के प्रति वह कर्तव्यपरायणा है, परंतु इसके बावजूद उसमें अनेक दुर्गुण भी हैं। लेखिका को भक्तिन के निम्नलिखित दुर्गुण लगते हैं –
वह लेखिका के इधर-उधर पड़े पैसे-रुपये भंडार-घर की मटकी में छिपा देती है। जब उससे इसके बारे में पूछा जाता है तो वह स्वयं को सही ठहराने के लिए तरह-तरह के तर्क देती है।
वह लेखिका को प्रसन्न रखने के लिए हर संभव प्रयास करती है और बात को इधर-उधर घुमाकर बताती है। वह इसे झूठ भी नहीं मानती।
वह किसी भी तर्क को नहीं मानती।
वह दूसरों को अपने अनुसार ढालना चाहती है, परंतु स्वयं में वह रति भर भी परिवर्तन नहीं करती।
पढ़ाई-लिखाई में उसकी कोई रुचि नहीं है। वह खुद अनपढ़ होने पर भी दूसरों की गुरु बनी फिरती है।
प्रश्न 12 – ‘भक्तिन’ पाठ के आधार पर भारतीय ग्रामीण समाज में लड़के-लड़कियों में किए जाने वाले भेद-भाव का वर्णन कीजिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – भक्तिन की लगातार तीन लड़कियाँ पैदा हुई तो सास व जेठानियों ने उसकी उपेक्षा करनी शुरू कर दी। इसका कारण यह था कि सास के तीन कमाऊ बेटे थे तथा जेठानियों के भी काले-काले लाल थे। सजा के तौर पर जेठानियाँ कोई काम नहीं करती थी बल्कि बैठकर खातीं थी तथा घर का सारा काम जैसे – चक्की चलाना, कूटना, पीसना, खाना बनाना आदि कार्य-भक्तिन ही किया करती थी। साथ ही छोटी लड़कियाँ गोबर उठातीं तथा कंडे थापती थीं। खाने पर भी भेदभाव किया जाता था। जेठानियाँ और उनके लड़कों को भात पर सफेद राब, दूध व मलाई मिलती तथा भक्तिन को काले गुड़ की डली, मट्ठा तथा लड़कियों को चने-बाजरे की घुघरी मिलती थी।
प्रश्न 13 – “भक्तिन की समृद्धि कपाल की कुंचित रेखाओं में नहीं बँध सकी” कथन का आशय स्पष्ट कीजिए। (40 शब्दों में)
अथवा –
‘लक्ष्मी की समृद्धि भक्तिन के कपाल की कुंचित रेखाओं में बँध न सकी।’ ‘भक्ति’ पाठ के इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए। (40 शब्दों में)
उत्तर – भक्तिन अनामधन्या गोपालिका की कन्या थी। जिसका वास्तविक नाम था लछमिन अर्थात लक्ष्मी। लक्ष्मी की समृद्धि भक्तिन के कपाल की कुंचित रेखाओं में नहीं बँध सकी। अर्थात लक्ष्मी अपने नाम के विपरीत अत्यंत गरीब थी। वैसे तो जीवन में प्रायः सभी को अपने-अपने नाम का विरोधाभास लेकर जीना पड़ता है; पर भक्तिन बहुत समझदार थी , क्योंकि वह अपना समृद्धि-सूचक नाम किसी को बताती नहीं।
प्रश्न 14 – ‘कवि और कविता के संबंध में भक्तिन का ज्ञान बढ़ा है; आदर भाव नहीं।’ महादेवी जी के इस कथन का क्या आशय है? (40 शब्दों में)
उत्तर – ‘कवि और कविता के संबंध में भक्तिन का ज्ञान बढ़ा है; आदर भाव नहीं’ कहने का आशय यह है कि लेखिका के साथ रहते हुए भक्तिन को कवि और कविता के संबंध में ज्ञान तो मिला परन्तु भक्तिन व लेखिका के बीच नौकरानी या स्वामिनी का संबंध नहीं था। वे आत्मीय जन की तरह थे। लेखिका अपनी इच्छा होने पर भी उसे हटा नहीं सकती थी। भक्तिन भी स्वामी के चले जाने के आश पाकर अवज्ञा से हँस देती थी। कहने का अभिप्राय यह है कि भक्तिन लेखिका पर अपना पूरा अधिकार समझने लगी थी।
प्रश्न 15 – ‘पितृसत्तात्मक-मान्यताओं और छल-छम भरे समाज में अपने और अपनी बेटियों के हक की लड़ाई ने भक्तिन के जीवन की दिशा पूरी तरह बदल दी।’ भक्तिन पाठ के आधार पर उदाहरण सहित सिद्ध कीजिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – ‘पितृसत्तात्मक-मान्यताओं और छल-छम भरे समाज में अपने और अपनी बेटियों के हक की लड़ाई ने भक्तिन के जीवन की दिशा पूरी तरह बदल दी।’ क्योंकि जब गाँव में भक्तिन अपना अपमान सहन न कर सकी और कमाई के विचार से शहर चली आई। तो जीवन के अंतिम परिच्छेद में, घुटी हुई चाँद, मैली धोती तथा गले में कंठी पहने वह लेखिका के पास नौकरी के लिए पहुँची। लेखिका के घर नौकरी करते हुए जीवन के अंत में उसे वह अपनापन मिला जो वह जीवन भर ढूँढती रही थी। तभी तो वह लेखिका के साथ कारागार में जाने को भी तैयार थी और लेखिका के लिए अपने जीवन भर की कमाई लुटाने को भी तैयार थी।
Related:
Chapter 11 – बाज़ार दर्शन
प्रश्न 1 – निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए:
बाज़ार में एक जादू है। वह जादू आँख की राह काम करता है। वह रूप का जादू है पर जैसे चुंबक का जादू लोहे पर ही चलता है, वैसे ही इस जादू की भी मर्यादा है। जेब भरी हो, और मन खाली हो, ऐसी हालत में जादू का असर खूब होता है। जेब खाली पर मन भरा न हो, तो भी जादू चल जाएगा। मन खाली है तो बाजार की अनेकानेक चीजों का निमंत्रण उस तक पहुँच जाएगा। कहीं हुई, उस वक्त जेब भरी तब तो फिर वह मन किसकी मानने वाला है। मालूम होता है यह भी लूँ, वह भी लूँ। सभी सामान जरूरी और आराम को बढ़ाने वाला मालूम होता है। पर यह सब जादू का असर है।
(i) बाजार को जादू क्यों कहा गया है?
(a) आपूर्ति करने के कारण
(b) भ्रम पैदा करने के कारण
(c) बाज़ार की महिमा के कारण
(d) जरूरत पैदा करने के कारण
उत्तर – (d) जरूरत पैदा करने के कारण
(ii) ‘जादू की मर्यादा’ से आप क्या समझते हैं?
(a) प्रभाव की सीमा
(b) जादू का असर
(c) रूप के समान
(d) निश्चित प्रभाव
उत्तर – (b) जादू का असर
(iii) बाजार का असर कब अधिक होता है?
(a) जेब और मन खाली होने पर
(b) जेब और मन भरे होने पर
(c) जेब भरी और मन खाली होने पर
(d) जेब खाली और मन भरे होने पर
उत्तर – (c) जेब भरी और मन खाली होने पर
(iv) मन खाली और जेब भरी होने पर बाजार का प्रभाव कैसा होता है?
(a) सहयोगी
(b) उपहासक
(c) मर्यादित
(d) विनाशक
उत्तर – (c) मर्यादित
(v) बाजार का सभी सामान उपयोगी लगने के क्या कारण हो सकते हैं?
(a) जादू का असर
(b) सामान की कमी
(c) सब कुछ खरीदने की इच्छा
(d) संतुलित मन के कारण
उत्तर – (a) जादू का असर
प्रश्न 2 – “बाज़ार दर्शन” पाठ में आए ‘पर्चेजिंग पावर’ से आप क्या समझते हैं? इसका सकारात्मक उपयोग कैसे किया जा सकता है? (40 शब्दों में)
उत्तर – पैसा ही पावर है क्योंकि आज के समय में पैसे से ही सब कुछ खरीदा जा सकता हैं। बिना पैसे के जीवन जीना असंभव है। पैसे में पर्चेजिंग पावर है कहने का आशय यह है कि जेब में जितना अधिक पैसा होगा, उतना ही अधिक सामान की खरीदारी की जा सकेगी। फिर चाहे वो सामान उनकी जरूरत का हो या न हो। कुछ लोग इसी पर्चेजिंग पावर का इस्तेमाल करने में खुशी महसूस करते हैं।
प्रश्न 3 – ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ में लेखक ने बाज़ार का पोषण करने वाले अर्थशास्त्र को अन्यायशास्त्र, अनीति-शास्त्र क्यों कहा है? स्पष्ट कीजिए। (40 शब्दों में)
उत्तर – व्यक्ति का अपने मन पर नियंत्रण होना चाहिए। लेकिन जो लोग अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण नहीं रखते हैं। ऐसे व्यक्ति न तो खुद बाज़ार से कुछ लाभ उठा सकते हैं और न ही बाजार को लाभ दे सकते हैं। ये लोग सिर्फ बाजार का बाजारूपन बढ़ाते हैं। जिससे बाजार में छल कपट बढ़ता हैं। सद्भावना का नाश होता हैं। फिर ग्राहक और विक्रेता के बीच संबंध सद्भावना का न होकर, केवल लाभ-हानि तक ही सीमित रहता हैं। सद्भाव से हीन बाजार मानवता के लिए विडंबना है और ऐसे बाज़ार का अर्थशास्त्र अनीति का शास्त्र है।
प्रश्न 4 – ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ के आधार पर लिखिए कि पैसे की पावर का रस किन दो रूपों में प्राप्त किया जा सकता है। (40 शब्दों में)
उत्तर – पैसे की पावर का रस निम्नलिखित रूपों में प्राप्त किया जा सकता है-
पहला – मकान, संपत्ति, कोठी, कार, सामान आदि देखकर।
दूसरा – संयमी बनकर पैसे की बचत करके। इससे मनुष्य पैसे के गर्व से फूला रहता है तथा उसे किसी की सहायता की जरूरत नहीं होती।
प्रश्न 5 – ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ के आधार पर लिखिए कि बाज़ार की कृतार्थता किसमें है? इसे कृतार्थता कैसे लोग प्रदान करते हैं? (40 शब्दों में)
उत्तर – बाजार की असली कृतार्थता है-आवश्यकता के समय काम आना। मन खाली रखने का मतलब मन बंद नहीं करना है। शून्य होने का अधिकार बस परमात्मा का है जो सनातन भाव से संपूर्ण है। मनुष्य अपूर्ण है। मनुष्य इच्छाओं का निरोध नहीं कर सकता। यह लोभ को जीतना नहीं है, बल्कि लोभ की जीत है। समाज में कुछ लोग क्रय-शक्ति के बल पर बाजार से वस्तुएँ खरीदते हैं, परंतु उन्हें अपनी जरूरत का पता ही नहीं होता। ऐसे लोग बाजार से न सच्चा लाभ उठा पाते हैं, न उसे सच्चा लाभ दे सकते हैं। वे धन के बल पर बाजार में कपट को बढ़ावा देते हैं। वे समाज में असंतोष बढ़ाते हैं। वे सामान्य लोगों के सामने अपनी क्रय-शक्ति का प्रदर्शन करते हैं। वे शान के लिए उत्पाद खरीदते हैं। इस प्रकार से वे बाजारूपन को बढ़ाते हैं।
प्रश्न 6 – ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ के अनुसार बाज़ार को सार्थकता कैसे लोग प्रदान करते हैं? (60 शब्दों में)
उत्तर – बाजार की सार्थकता तभी है जब व्यक्ति केवल अपनी जरूरत का सामान खरीदें। बाजार हमेशा ग्राहकों को अपनी चकाचौंध से आकर्षित करता है। व्यक्ति का अपने मन पर नियंत्रण होना चाहिए। लेकिन जो लोग अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण नहीं रखते हैं। ऐसे व्यक्ति न तो खुद बाज़ार से कुछ लाभ उठा सकते हैं और न ही बाजार को लाभ दे सकते हैं। ये लोग सिर्फ बाजार का बाजारूपन बढ़ाते हैं। जिससे बाजार में छल कपट बढ़ता हैं। सद्भावना का नाश होता हैं। फिर ग्राहक और विक्रेता के बीच संबंध सद्भावना का न होकर, केवल लाभ-हानि तक ही सीमित रहता हैं।
प्रश्न 7 – ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ में बाज़ार को ‘शैतान का जाल’ क्यों कहा गया है? (60 शब्दों में)
उत्तर – लेखक ने जब अपने मित्र से इस बारे में पूछा कि उसने इतना फजूल सामान क्यों खरीदा तो उन्होंने बाजार को दोष देते हुए जबाब दिया कि यह बाजार तो शैतान का जाल है। जहाँ सामान को कुछ इस तरह आकर्षक तरीके से रखा जाता हैं कि आदमी आकर्षित हुए बिना नहीं रह सकता हैं। लेखक कहते हैं कि बाजार सबको मूक आमंत्रित करता हैं। बाजार का तो काम ही ग्राहकों को आकर्षित करना है। जब कोई व्यक्ति बाजार में खड़ा होता है तो आकर्षक तरीके से रखे हुए सामान को देख कर उसके मन में उस सामान को लेने की तीव्र इच्छा हो जाती है। और अगर उसके पास पर्चेजिंग पावर है तो वह बाजार की गिरफ्त में आ ही जाएगा।
प्रश्न 8 – बाज़ार की चकाचौंध का व्यक्ति के मन-मस्तिष्क पर क्या प्रभाव पड़ता है? इस चकाचौंध से किस प्रकार बचा जा सकता है? ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ के आधार पर लिखिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – बाजार की सभी वस्तुएं हमें अपनी और आकर्षित करेंगी। जिसका परिणाम हमेशा बुरा ही होगा। क्योंकि हम ऐसी स्थिति में बेकार की चीजों को ले आएँगे। बाजार में एक जादू हैं जो आँखों के रास्ते काम करता हैं। बाजार के जादू से कैसे बचा जाए, इसका उपाए बताते हुए लेखक कहते हैं कि अगर मन खाली हो तो बाजार जाना ही नहीं चाहिए। क्योंकि अगर आँखे बंद भी कर ली जाए तो तब भी मन यहां वहां घूमता रहता है। हमें अपने मन पर खुद ही नियंत्रण रखना होगा। क्योंकि अगर व्यक्ति की जेब भरी है और मन भी भरा है तो बाजार का जादू उस पर असर नहीं करेगा। लेकिन अगर जेब भरी है और मन खाली है तो बाजार उसे जरूर आकर्षित करेगा। और फिर व्यक्ति को सभी चीज़े अपने काम की लगेगी और बिना सोचे विचारे वह सारा सामान खरीदने लगेगा।
प्रश्न 9 – बाज़ार का जादू किन लोगों पर अधिक असर करता है? इसके चढ़ने-उतरने पर क्या स्थिति होती है? (60 शब्दों में)
उत्तर – बाजार में एक जादू हैं जो आँखों के रास्ते काम करता हैं। बाजार की जादुई ताकत हमें अपना गुलाम बना लेती है। अगर हम अपनी आवश्यकताओं को ठीक-ठीक समझकर बाजार का उपयोग करें, तो उसका लाभ उठा सकते हैं। लेकिन अगर हम ज़रूरत को तय कर बाजार में जाने के बजाय उसकी चमक-दमक में फँस गए तो वह असंतोष, तृष्णा और ईर्ष्या से घायल कर हमें सदा के लिए बेकार बना सकता है। अगर मन खाली हो तो बाजार जाना ही नहीं चाहिए। क्योंकि अगर आँखे बंद भी कर ली जाए तो तब भी मन यहां वहां घूमता रहता है। हमें अपने मन पर खुद ही नियंत्रण रखना होगा। क्योंकि अगर व्यक्ति की जेब भरी है और मन भी भरा है तो बाजार का जादू उस पर असर नहीं करेगा। लेकिन अगर जेब भरी है और मन खाली है तो बाजार उसे जरूर आकर्षित करेगा। और फिर व्यक्ति को सभी चीज़े अपने काम की लगेगी और बिना सोचे विचारे वह सारा सामान खरीदने लगेगा।
प्रश्न 10 – ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ से उद्धृत पंक्ति ‘जहाँ तृष्णा है, बटोर रखने की स्पृहा है, वहाँ उस बल का बीज नहीं है।’ – का आशय स्पष्ट कीजिए। (60 शब्दों में)
अथवा
‘बाजार दर्शन’ पाठ से ली गई पंक्ति – ‘जहाँ तृष्णा है, बटोर रखने की स्पृहा है, वहाँ उस बल का बीज नहीं है।’ – में किस बल की बात कही गई है? इस बल से युक्त और हीन व्यक्ति की विशेषताएँ लिखिए |
उत्तर – ‘जहाँ तृष्णा है, बटोर रखने की स्पृहा है, वहाँ उस बल का बीज नहीं है।’ कहने का आशय यह है कि संचय की तृष्णा और वैभव की चाह में व्यक्ति की निर्बलता ही प्रमाणित होती है। वह मनुष्य पर धन की और चेतन पर जड़ की विजय है। संयमी लोग फिजूल खर्ची नहीं करते। वे उसी वस्तु को खरीदते हैं जिनकी उन्हें ज़रूरत होती है। बाजार के आकर्षण में ये कभी नहीं फँसते। उन्हें अपनी ज़रूरत से मतलब है न कि बाजारूपन से। जो चाहिए वही खरीदा नहीं तो छोड़ दिया। ऐसे लोग पैसे के महत्व को समझते है और फ़जूल खर्ची करने से अपने मन पर नियंत्रण रखते हैं और अपनी बुद्धि और संयम से जोड़े हुए पैसों को खर्च करने के बजाय सहेज कर रखने में ज्यादा गर्व महसूस करते है।
Related:
Chapter 12 – काले मेघा पानी दे
प्रश्न 1 – निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए:
लेकिन इस बार मैंने साफ इनकार कर दिया। नहीं फेंकना है मुझे बाल्टी भर-भर कर पानी इस गंदी मेंढक-मंडली पर। जब जीजी बाल्टी भर कर पानी ले गईं उनके बूढ़े पाँव डगमगा रहे थे, हाथ काँप रहे थे, तब भी मैं अलग मुँह फुलाए खड़ा रहा। शाम को उन्होंने लड्डू-मठरी खाने को दिए तो मैंने उन्हें हाथ से अलग खिसका दिया। मुँह फेरकर बैठ गया, जीजी से बोला भी नहीं। पहले वे भी तमतमाई, लेकिन ज्यादा देर तक उनसे गुस्सा नहीं रहा गया। पास आकर मेरा सर अपनी गोद में लेकर बोलीं, “देख भैया रूठ मत। मेरी बात सुन। यह सब अंधविश्वास नहीं है। हम इन्हें पानी नहीं देंगे तो इन्द्र भगवान हमें पानी कैसे देंगे?”
(i) लेखक ने ‘मेंढक-मंडली’ पर पानी फेंकने से इनकार क्यों कर दिया?
(a) मेंढक-मंडली को पसंद नहीं करने के कारण
(b) इसे अंधविश्वास मानने के कारण
(c) पानी के महत्त्व को समझने के कारण
(d) पानी की बरबादी मानने के कारण
उत्तर – (b) इसे अंधविश्वास मानने के कारण
(ii) जीजी की मदद करने के लिए लेखक आगे क्यों नहीं आया?
(a) विचारों में असहमति के कारण
(b) नाराज़गी के कारण
(c) बाल्टी भारी होने के कारण
(d) तार्किक होने के कारण
उत्तर – (a) विचारों में असहमति के कारण
(iii) डगमगाते पैरों और काँपते हाथों से भी जीजी पानी क्यों फेंकने को तत्पर थी?
(a) पानी फेंकना अनिवार्य होने के कारण
(b) लेखक के मना करने के कारण
(c) परम्परा में विश्वास होने के कारण
(d) रूढ़िवादी होने के कारण
उत्तर – (c) परम्परा में विश्वास होने के कारण
(iv) ‘मुँह फेरकर बैठ गया’ – वाक्य में ‘मुँह फेरना’ क्या है?
(a) मुहावरा
(b) लोकोक्ति
(c) पदबंध
(d) पद
उत्तर – (a) मुहावरा
(v) जीजी लेखक से ज्यादा देर तक गुस्सा क्यों नहीं रह पाई?
(a) लेखक के भूखे रहने के कारण
(b) लेखक से काम होने के कारण
(c) लेखक को नासमझ मानने के कारण
(d) लेखक से स्नेह होने के कारण
उत्तर – (d) लेखक से स्नेह होने के कारण
प्रश्न 2 – निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए:
अगर तीस-चालीस मन गेहूँ उगाना है तो किसान पाँच-छह सेर अच्छा गेहूँ अपने पास से लेकर जमीन में क्यारियाँ बना कर फेंक देता है। उसे बुवाई कहते हैं। यह जो सूखे में हम अपने घर का पानी इन पर फेंकते हैं वह भी बुवाई है। यह पानी गली में बोएँगे तो सारे शहर, कस्बा, गाँव पर पानी वाले बादलों की फ़सल आ जाएगी। हम बीज बनाकर पानी देते हैं, फिर काले मेघा से पानी माँगते हैं। सब ऋषि-मुनि कह गए हैं कि पहले खुद दो तब देवता तुम्हें चौगुना-अठगुना करके लौटाएँगे भइया, यह तो हर आदमी का आचरण है, जिससे सबका आचरण बनता है।
(i) बुवाई का क्या अर्थ है?
(a) खेतों में बीज बोना
(b) खेतों में पानी देना
(c) खेतों में कटाई करना
(d) खेतों में खाद देना
उत्तर – (a) खेतों में बीज बोना
(ii) बादलों की फ़सल पाने के लिए क्या करना पड़ता है?
(a) बादलों की पूजा-अर्चना करनी पड़ती है
(b) इंद्र देवता की पूजा-अर्चना करनी पड़ती है
(c) पानी का दान-पुण्य करना पड़ता है
(d) पानी की बरबादी को रोकना होता है
उत्तर – (c) पानी का दान-पुण्य करना पड़ता है
(iii) ऋषि-मुनियों के अनुसार हमें मनवांछित फल की प्राप्ति कब होती है?
(a) दिन-रात परिश्रम करने से
(b) ईश्वर की उपासना करने से
(c) बड़ों के आशीर्वाद से
(d) दान-पुण्य करने से
उत्तर – (d) दान-पुण्य करने से
(iv) जीजी ने किसान का उदाहरण क्यों दिया है?
(a) बुवाई की प्रक्रिया स्पष्ट करने के लिए
(b) भारतीय संस्कृति की महिमा बताने के लिए
(c) किसानों की महत्ता समझाने के लिए
(d) दान-पुण्य की महत्ता समझाने के लिए
उत्तर – (b) भारतीय संस्कृति की महिमा बताने के लिए
(v) ‘पानी गली में बोएँगे’ का अभिप्राय है:
(a) पानी की गली में बुवाई करना
(b) पानी की खेतों में बुवाई करना
(c) पानी को गली में फेंकना
(d) पानी को इंद्र सेना पर डालना
उत्तर – (d) पानी को इंद्र सेना पर डालना
प्रश्न 3 – ‘काले मेघा पानी दें’ पाठ में आई पंक्ति “कैसी निर्मम बर्बादी है पानी की” आशय स्पष्ट कीजिए। (40 शब्दों में)
उत्तर – “कैसी निर्मम बर्बादी है पानी की” पंक्ति का आशय यह है कि जब चारों ओर पानी की इतनी अधिक कमी है कि जानवर और इंसान, दोनों ही पानी के लिए परेशान हो रहे हैं तो फिर भी मुश्किल से इकट्ठा किया हुआ पानी लोग इंद्रसेना पर डाल कर उसे क्यों बर्बाद करते हैं। लेखक को यह सब सरासर अंधविश्वास लगता था और उनको लगता था कि इस तरह के अन्धविश्वास देश को न जाने कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं। लेखक के अनुसार तो यह इंद्र सेना नहीं बल्कि पाखंड हैं।
प्रश्न 4 – “काले मेघा पानी दे” पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए कि जीजी पर गांधी का प्रभाव था। (40 शब्दों में)
उत्तर – “काले मेघा पानी दे” पाठ से सिद्ध होता है कि जीजी पर गांधी का गहरा प्रभाव था। उनके लड़के ने राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया और अंग्रेजों के डंडे भी खाए थे। इस घटना के याद आते ही जीजी गांधी जी की बात करने लगी। जीजी के जीवन में गांधीवाद से प्रेरित लोक आस्था , त्याग व् दान की भावना प्रमुख थी। वह दान को सबसे ऊपर मानती थी और दान को दूसरों के लिए आवश्यक भी मानती थी। उनके विचारों को सुनकर ज्ञात होता है कि वे गांधी जी की समर्थक थी।
प्रश्न 5 – ‘काले मेघा पानी दें’ शीर्षक पाठ में लेखक अंधविश्वासों का विरोधी क्यों था? कारणों का उल्लेख कीजिए। (40 शब्दों में)
अथवा
“काले मेघा पानी दे” पाठ में मेढक मंडली पर लोगों द्वारा सहेजे गए पानी को फेंकने को पानी की निर्मम बरबादी क्यों कहा गया है? (60 शब्दों में)
उत्तर – लेखक की समझ में यह बात नहीं आती थी कि जब चारों ओर पानी की इतनी अधिक कमी है कि जानवर और इंसान, दोनों ही पानी के लिए परेशान हो रहे हैं तो फिर भी मुश्किल से इकट्ठा किया हुआ पानी लोग इंद्रसेना पर डाल कर उसे क्यों बर्बाद करते हैं। लेखक को यह सब सरासर अंधविश्वास लगता था और उनको लगता था कि इस तरह के अन्धविश्वास देश को न जाने कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं। लेखक के अनुसार तो यह इंद्र सेना नहीं बल्कि पाखंड हैं। ऐसा लेखक इसलिए कहते हैं क्योंकि अगर यह इंद्र सेना, सच में इंद्र महाराज से पानी दिलवा सकती तो, क्या वो पहले अपने लिए पानी नहीं मांग लेती। लेखक मानते हैं कि इस तरह के अंधविश्वास के कारण ही तो हम अंग्रेजों से पिछड़ गए और उनके गुलाम हो गये।
प्रश्न 6 – “अंतिम उपाय के रूप में निकलती यह इंदर सेना” – इस कथन में लेखक ने पानी के लिए इंदर सेना के निकलने को अंतिम उपाय क्यों कहा है? (60 शब्दों में)
उत्तर – जब जेठ का महीना बीत जाता और आषाढ़ भी आधा गुजर जाता मगर फिर भी बारिश नहीं होती तब गांवों व शहरों में सूखे के से हालत हो जाते हैं। मिट्टी इतनी सुखी हो जाती है कि जमीन भी फटने लगती है। इंसान व जानवर पानी के बैगर तड़प-तड़प कर मरने लगते मगर फिर भी आसमान में बादलों का कही कोई निशान तक दिखाई नहीं देता। और विज्ञान भी उनकी इसमें कोई मदद नहीं कर पाता तब ऐसे मुश्किल हालातों में लोग अपने-अपने क्षेत्रों में प्रचलित लोक विश्वासों जैसे पूजा पाठ, हवन-यज्ञ आदि के सहारे भगवान इंद्र से प्रार्थना कर वर्षा की उम्मीद लगाने लगाते थे। जब यह सब कुछ करने के बाद भी केवल हार ही नसीब होती हैं तो फिर अंत में इंदर सेना को बुलाया जाता था।
प्रश्न 7 – ‘काले मेघा पानी दें’ पाठ में जीजी द्वारा कराये गये उन रीतिरिवाजों, अनुष्ठानों का उल्लेख कीजिए जिन्हें लेखक अंधविश्वास कहता था। (60 शब्दों में)
उत्तर – लेखक इंद्रसेना पर मुश्किल से इकठ्ठा किया हुआ पानी फेंकने को पानी की बर्बादी मानता है। परन्तु जीजी के अनुसार यह तो पानी का अर्क है जो वे इंद्रसेना के माध्यम से इंद्रदेव पर चढ़ाते हैं। ताकि वे प्रसन्न हो कर हम पर पानी की बरसात करें। जो चीज इंसान पाना चाहता है, यदि पहले उस चीज़ को देगा नहीं तो पाएगा कैसे। इसके लिए जीजी ऋषि-मुनियों के दान को सबसे ऊंचा स्थान दिए जाने को प्रमाणस्वरूप बताती है। लेखक को यह पानी बर्बाद करने वाली बात बिलकुल समझ नहीं आती और न ही वह इस कार्य में जीजी का साथ देता है।
प्रश्न 8 – ‘काले मेघा दल के दल उमड़ते हैं, पानी झमाझम बरसता है, पर गगरी फूटी की फूटी रह जाती है, बैल पियासे के पियासे रह जाते हैं।’ ‘काले मेघा पानी दें’ से ली गई प्रस्तुत पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – “बादल आते हैं पानी बरसता है लेकिन बैल प्यासे के प्यासे और गगरी फूटी की फूटी रहती हैं। आखिर यह स्थिति कब बदलेगी ”। लेखक की यह पंक्ति हमारी समाजिक व्यवस्था पर एक व्यंग्य है। हम अपने देश के लिए करते क्या हैं ? क्योंकि हमारी मांगें तो हर क्षेत्र में बड़ी-बड़ी है पर त्याग का कहीं कोई नाम भी नहीं है। अपना स्वार्थ साधना ही एकमात्र लक्ष्य रह गया है। हम खूब मज़े ले लेकर लोगों की भ्रष्टाचार की बातें तो खूब करते हैं लेकिन क्या हम खुद उसी भ्रष्टाचार के अंग तो नहीं बन रहे है। हमारे देश में हर वर्ष हजारों योजनाएं बनाती हैं। लेकिन इन योजनाओं का लाभ उस वर्ग को कभी नहीं मिलता जो उसके हकदार हैं। हर समय विकास की बातें तो बहुत की जाती हैं मगर यह विकास सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह जाता हैं। इसीलिए लेखक कहते हैं कि “बरसात होने के बाद भी बैल प्यासा रह जाता हैं और गगरी फूट जाती हैं।”
प्रश्न 9 – ‘काले मेघा पानी दें’ पाठ के आधार पर लिखिए कि आज़ादी के वर्षों बाद भी लेखक का मन दुःखी क्यों था? उसके मन में किस तरह के प्रश्न उठ रहे थे? (60 शब्दों में)
उत्तर – आज़ादी के वर्षों बाद भी लेखक का मन इसलिए दुःखी था क्योंकि आज के विज्ञान के युग में भी गाँव के कुछ रूढ़िवादी रीतिरिवाज माने जा रहे हैं। एक बात लेखक की समझ में नहीं आती थी कि जब चारों ओर पानी की इतनी अधिक कमी है कि जानवर और इंसान, दोनों ही पानी के लिए परेशान हो रहे हैं तो फिर भी मुश्किल से इकट्ठा किया हुआ पानी लोग इंद्रसेना पर डाल कर उसे क्यों बर्बाद करते हैं। लेखक को यह सब सरासर अंधविश्वास लगता था और उनको लगता था कि इस तरह के अन्धविश्वास देश को न जाने कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं। लेखक के अनुसार तो यह इंद्र सेना नही बल्कि पाखंड हैं। ऐसा लेखक इसलिए कहते हैं क्योंकि अगर यह इंद्र सेना, सच में इंद्र महाराज से पानी दिलवा सकती तो, क्या वो पहले अपने लिए पानी नहीं मांग लेती। लेखक मानते हैं कि इस तरह के अंधविश्वास के कारण ही तो हम अंग्रेजों से पिछड़ गए और उनके गुलाम हो गये।
प्रश्न 10 -‘काले मेघा पानी दें’ पाठ में बारिश करवाने के लिए कौन सा अंतिम उपाय किया जाता है? लेखक इसके लिए क्यों तैयार नहीं होता और जीजी किन तर्कों से इसे सही ठहराती हैं? (60 शब्दों में)
उत्तर – जब जेठ का महीना बीत जाता और आषाढ़ भी आधा गुजर जाता मगर फिर भी बारिश नहीं होती तब गांवों व शहरों में सूखे के से हालत हो जाते हैं। मिट्टी इतनी सुखी हो जाती है कि जमीन भी फटने लगती है। इंसान व जानवर पानी के बैगर तड़प-तड़प कर मरने लगते मगर फिर भी आसमान में बादलों का कही कोई निशान तक दिखाई नहीं देता। और विज्ञान भी उनकी इसमें कोई मदद नहीं कर पाता तब ऐसे मुश्किल हालातों में लोग अपने-अपने क्षेत्रों में प्रचलित लोक विश्वासों जैसे पूजा पाठ, हवन-यज्ञ आदि के सहारे भगवान इंद्र से प्रार्थना कर वर्षा की उम्मीद लगाने लगाते थे। जब यह सब कुछ करने के बाद भी केवल हार ही नसीब होती हैं तो फिर अंत में इंदर सेना को बुलाया जाता था। लेखक इन सबको अंधविश्वास मानता था परन्तु जीजी इसे दान पुण्य का तर्क देकर सही ठहराती थी।
Related:
- Kaale Megha Paani De Summary
- Kaale Megha Paani De Question Answers
- Kaale Megha Paani De Character Sketch
Chapter 13 – पहलवान की ढोलक
प्रश्न 1 – लुट्टन पहलवान ढोल को ही अपना गुरु क्यों मानता था? (40 शब्दों में)
उत्तर – लुट्टन सिंह को कुश्ती सिखाने वाला कोई गुरु नहीं था। वह ढोलक को ही अपना गुरु मनाता था। जब लुट्टन कुश्ती लड़ता था तो उस समय ढोल के बजने की आवाज से लुट्टन की रगों में मानो जोश भर जाता था। ऐसा प्रतीत आता था कि उसे ढोल की थाप कुश्ती में दाँव-पेंच लड़ने के निर्देश दे रही हैं। पाठ में ढोल की आवाज की कई ध्वन्यात्मक शब्दों का उल्लेख भी कहानीकार ने किया है। ढोल के इन शब्दों के साथ लुट्टन ने अपनी कुश्ती के दाँव-पेंचों का अद्भुत तालमेल बना लिया था।
प्रश्न 2 – लुट्टन को राजा साहब ने किस प्रकार पुरस्कृत किया और क्यों? (40 शब्दों में)
उत्तर – लुट्टन सिंह ने सभी की उम्मीदों के विपरीत चांद सिंह को चित कर दिया। उसने इस पूरी कुश्ती में ढोल को अपना गुरु मानते हुए उसके स्वरों के हिसाब से ही दांव-पेंच लगाया और कुश्ती जीत ली। जीत की ख़ुशी में उसने राजा जी को उठा लिया और राजा ने भी प्रसन्न होकर कहा कि उसने बाहर से आए पहलवान को हरा कर अपनी मिट्टी की लाज रख ली और उन्होंने उसे राज पहलवान बना दिया।
प्रश्न 3 – ‘प्रकृति भी जैसे गाँव वालों के दुख से दुखी थी।’ ‘पहलवान की ढोलक’ पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए। (40 शब्दों में)
अथवा
‘पहलवान की ढोलक’ पाठ में आई पंक्ति “अँधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी” – के द्वारा लेखक ने किस स्थिति की ओर संकेत किया है? स्पष्ट कीजिए। (60 शब्दों में)
अथवा
‘पहलवान की ढोलक’ पाठ के आधार पर मलेरिया और हैजे से पीड़ित गाँव में रात्रि की निस्तब्धता का वर्णन करते हुए, इसे और अधिक भयानक बनाने वाले कारणों का उल्लेख कीजिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – जाड़ों के मौसम में गाँव में महामारी फैली हुई थी। गांव के अधिकतर लोग मलेरिया और हैजे से ग्रस्त थे। जाडे के दिन थे और रातें एकदम काली अंधेरी व डरावनी लग रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे रात उस गाँव के दुःख में दुःखी होकर चुपचाप आँसू बहा रही हो। टूटते तारे का उदाहरण देते हुए लेखक बताता है कि उस गाँव के दुःख को देख कर यदि कोई बाहरी व्यक्ति उस गाँव के लोगों की कुछ मदद करना भी चाहता था तो चाह कर भी नहीं कर सकता था क्योंकि उस गाँव में फैली महामारी के कारण कोई भी अपने जीवन को कष्ट नहीं डालना चाहता था। रात की खामोशी में सिर्फ सियारों और उल्लूओं की आवाज ही सुनाई देती थी। कभी कभी उस काली अंधेरी रात में कोई कमजोर स्वर भगवान को पुकारता हुआ सुनाई पड़ जाता था और कभी किसी बच्चे के द्वारा अपनी माँ को पुकारने की धीमी सी आवाज सुनाई देती थी। क्योंकि कुत्तों में परिस्थिति को समझने की विशेष बुद्धि होती है। इसीलिए वो रात होते ही रोने लगते थे। और गांव के दुख में अपना स्वर मिलाने लगते थे।
प्रश्न 4 – ‘पहलवान की ढोलक’ पाठ के आधार पर लुट्टन पहलवान की अंतिम इच्छा लिखिए। (40 शब्दों में)
उत्तर – पहलवान को मृत देखकर आँसू पूछते हुए उसके एक शिष्य ने कहा कि “गुरुजी कहा करते थे कि जब मैं मर जाऊं तो मुझे पीठ के बल नहीं बल्कि पेट के बल चिता पर लिटाना और चिता जलाते वक्त ढोलक अवश्य बजाना”। कहने का अभिप्राय यह है कि पहलवान नहीं चाहता था कि उसके मरने के बाद चिता पर उसे पीठ के बल लेटाया जाए क्योंकि कुश्ती में पीठ के लेटने का अर्थ हारना होता है और पहलवान जिंदगी से हार मानकर नहीं मरना चाहता था।
प्रश्न 5 – पहलवान की ढोलक मृत गाँव में संजीवनी शक्ति का संचार किस प्रकार करती थी? (60 शब्दों में)
उत्तर – रात की खमोशी को सिर्फ लुट्टन सिंह पहलवान की ढोलक ही तोड़ती थी। पहलवान की ढोलक संध्याकाल से लेकर प्रात:काल तक लगातार एक ही गति से बजती रहती थी और गाँव में फैली महामारी से होने वाली मौतों को चुनौती देती रहती थी। ढोलक की आवाज निराश, हताश, कमजोर और अपनों को खो चुके लोगों में संजीवनी भरने का काम करती थी।
प्रश्न 6 – ‘पहलवान की ढोलाक’ पाठ के आधार पर राजपहलवान होने पर भी लुट्टन की दुर्गति का कारण लिखिए। लुट्टन के जीवन का यह परिवर्तन किस ओर संकेत करता है? (60 शब्दों में)
उत्तर – राजा की मृत्यु के बाद उनके बेटे ने राज्य का भार संभाल लिया। नये राजा को कुश्ती में बिलकुल भी दिलचस्पी नहीं थी। और लुट्टन सिंह पर होने वाला खर्चा सुन कर वह हक्का-बक्का रह गया अतः उसने लुट्टन सिंह को राजदरबार से निकाल दिया। लुट्टन के जीवन का यह परिवर्तन संकेत करता है कि समय के साथ व् नयी पीढ़ी के शोक व् जरूरतें बदलती रहती हैं। अतः हमें हर परिस्थिति से जूझने के लिए तैयार रहना चाहिए और समय के साथ कुछ परिवर्तन भी जीवन में आवश्यक हो जाते हैं।
Related:
- Pahalwan ki Dholak Summary
- Pahalwan ki Dholak Question Answers
- Pahalwan ki Dholak Character Sketch
Chapter 14 – शिरीष के फूल
प्रश्न 1 – ‘शिरीष के फूल’ पाठ के आधार पर शिरीष के फूलों की विशेषता लिखिए। (40 शब्दों में)
उत्तर – शिरीष का फूल भयंकर गरमी, उमस, लू आदि के बीच सरस रहता है। वसंत में वह लहक उठता है तथा भादों मास तक फलता-फूलता रहता है। उस पर ना भयंकर गर्मी का असर दिखाई देता है और ना ही तेज बारिश का कोई प्रभाव। वह काल व समय को जीतकर एक सामान लहलहाता रहता है।
प्रश्न 2 – ‘शिरीष’ की किस विशेषता के कारण लेखक वनस्पतिशास्त्री के कथन को सच मानता है? (40 शब्दों में)
उत्तर – जेठ की भयंकर गर्मी में बहुत कम फूल ही खिलने की हिम्मत कर पाते हैं। इन फूलों में अमलतास भी शामिल है। किन्तु इसकी तुलना शिरीष के फूलों से है की जा सकती। क्योंकि वह केवल 15 से 20 दिनों के लिए ही खिलता है। जैसे बसंत ऋतू में पलाश का फूल। हालांकि कबीरदास जी को 10-15 दिन के लिए खिलने वाले फूल पसंद नहीं है। परन्तु शिरीष के फूल लम्बे समय तक खिले रहते हैं। वो बसंत के शुरुआत में खिलना प्रारंभ होते हैं और आषाढ़ तक खिले रहते हैं। शिरीष का फूल भयंकर गरमी, उमस, लू आदि के बीच सरस रहता है।
प्रश्न 3 – ‘शिरीष के फूल’ पाठ के आधार पर लिखिए कि लेखक ने शिरीष को पलाश से श्रेष्ठ किस आधार पर कहा है। (40 शब्दों में)
अथवा
जेठ महीने में शिरीष अन्य पेड़ों से अलग कैसे है? (40 शब्दों में)
उत्तर – जेठ की भयंकर गर्मी में बहुत कम फूल ही खिलने की हिम्मत कर पाते हैं। इन फूलों में अमलतास भी शामिल है। किन्तु इसकी तुलना शिरीष के फूलों से है की जा सकती। क्योंकि वह केवल 15 से 20 दिनों के लिए ही खिलता है। जैसे बसंत ऋतू में पलाश का फूल। परन्तु शिरीष के फूल लम्बे समय तक खिले रहते हैं। वो बसंत के शुरुआत में खिलना प्रारंभ होते हैं और आषाढ़ तक खिले रहते हैं। शिरीष का फूल भयंकर गरमी, उमस, लू आदि के बीच सरस रहता है। वसंत में वह लहक उठता है तथा भादों मास तक फलता-फूलता रहता है। उस पर ना भयंकर गर्मी का असर दिखाई देता है और ना ही तेज बारिश का कोई प्रभाव। वह काल व समय को जीतकर एक सामान लहलहाता रहता है। यह हमें विषम परिस्थितयों में भी प्रसन्नता व मस्ती के साथ जीवन जीने की कला सिखाता हैं।
प्रश्न 4 – शिरीष के फलों की तुलना किससे और क्यों की गई है? (40 शब्दों में)
उत्तर – लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत कहा है। “कालजयी” अर्थात जिसने काल पर विजय प्राप्त कर ली हो और “अवधूत” यानि एक ऐसा सन्यासी जिसे सुख-दुख, अच्छे-बुरे से कोई फर्क न पड़ता हो। जिसके भाव हर परिस्थिति में एक समान रहते हों। यही सब लक्षण शिरीष के फूल में भी हैं जिस कारण लेखक ने शिरीष के फूल को कालजयी अवधूत कहा है। क्योंकि शिरीष का फूल भयंकर गरमी, उमस, लू आदि के बीच सरस रहता है। वसंत में वह लहक उठता है तथा भादों मास तक फलता-फूलता रहता है। उस पर ना भयंकर गर्मी का असर दिखाई देता है और ना ही तेज बारिश का कोई प्रभाव। वह काल व समय को जीतकर एक सामान लहलहाता रहता है। यह हमें विषम परिस्थितयों में भी प्रसन्नता व मस्ती के साथ जीवन जीने की कला सिखाता हैं।
प्रश्न 5 – ‘शिरीष के फूल’ निबंध में लेखक ने जीवन के किस शाश्वत सत्य का उल्लेख किया है? (40 शब्दों में)
उत्तर – ‘शिरीष के फूल’ निबंध में लेखक ने जीवन के शाश्वत सत्य के रूप में वृद्धावस्था और मृत्यु का उल्लेख किया है। ये दोनों जगत के अतिपरिचित व अतिप्रामाणिक सत्य हैं। पुरानी पीढ़ी को समय रहते ही अपने अधिकार करने के लोभ को छोड़ देना चाहिए और नई पीढ़ी के लिए स्थान बनाना चाहिए। लेखक मानते हैं कि वृद्धावस्था और मृत्यु, इस जगत के सत्य है और शिरीष के फलों को भी यह समझना जाना चाहिए कि जब वह फूला है तो उसका झडना भी निश्चित है।
प्रश्न 6 – ‘शिरीष के फूल’ पाठ के आधार पर लिखिए कि काल के देवता की मार से बचने का क्या उपाय है? (40 शब्दों में)
अथवा
‘महाकाल देवता सपासप कोड़े चला रहे हैं, जीर्ण और दुर्बल झड़ रहे हैं, जिनमें प्राणकण थोड़ा भी ऊर्ध्वमुखी है, वे टिक जाते हैं।’ ‘शिरीष के फूल’ पाठ से उद्धृत इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – लेखक कहते है कि काल रूपी अग्नि और जीवन शक्ति का संघर्ष निरंतर चलता रहता है कहने का तात्पर्य यह है कि जीवित रहने के लिए हर प्राणी संधर्ष करता रहता हैं लेकिन कई बार कुछ मुर्ख यह भूल जाते हैं कि एक न एक दिन मृत्यु निश्चित हैं। मूर्ख व्यक्ति तो यही समझते हैं कि वो जहां भी टिके हैं वहीं टिके रहे तो मृत्यु से बच जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं है। समय गतिवान है और यदि समय के साथ अपने जीवन में परिवर्तन करते रहे और अपने जीने के ढंग में बदलाव करते रहे तो जीवन जीना आसान हो जाएगा। जो व्यक्ति हिलते-डुलते रहते हैं, स्थान बदलते रहते हैं तथा प्रगति की ओर बढ़ते रहते हैं, वे ही मृत्यु से बच सकते हैं। लेखक ने जीवन में जड़ता को मृत्यु के समान माना है तथा गतिशीलता को ही जीवन बताया है।
प्रश्न 7 – “शिरीष पुष्प केवल भौंरों के पदों का कोमल दबाव सहन कर सकता है, पक्षियों का बिलकुल नहीं” – कथन का भाव ‘शिरीष के फूल’ पाठ के आधार पर कीजिए। (60 शब्दों में)
अथवा
शिरीष के फूलों की कोमलता को देखकर कवियों की क्या धारणा रही है? लेखक ने इसका विरोध करते हुए क्या कहा है? (60 शब्दों में)
उत्तर – शिरीष के फूल को संस्कृत साहित्य में बहुत ही कोमल माना गया है। यहाँ तक की कालिदास तो यह कह गए हैं कि शिरीष के फूल केवल भौंरों के पैरों का दबाव ही सहन कर सकते हैं पक्षियों के पैरों का दबाव वे सहन नहीं कर सकते। लेखक यहाँ महाकवि कालिदास की इस बात का न तो विरोद्ध करना चाहता है और न ही लेखक की कुछ ऐसी इच्छा भी है। परन्तु लेखक कहता है कि महाकवि कालिदास की इस बात से दूसरे कवियों ने यह समझ लिया कि शिरीष के पेड़ का सब कुछ ही कोमल है जबकि इसके फल बहुत मजबूत होते हैं। इसके फल इतनी मजबूती से अपने स्थान पर या डालियों पर चिपके रहते हैं कि नए फलों के आने पर भी वो अपना स्थान आसानी से नहीं छोड़ते हैं।
प्रश्न 8 – ‘शिरीष के फूल’ पाठ में लेखक ने शिरीष, अवधूत और गांधी जी को एक ही श्रेणी में क्यों रखा है? पाठ के अनुसार इस समानता का आधार स्पष्ट कीजिए। (60 शब्दों में)
अथवा
हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने शिरीष के संदर्भ में गाँधी जी का उल्लेख क्यों किया है? दोनों के बीच समानता का आधार स्पष्ट कीजिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – शिरीष के अवधूत रूप के कारण लेखक को महात्मा गांधी की याद आती है। शिरीष तरु अवधूत की तरह, बाहय परिवर्तन धूप, वर्षा, आँधी, लू-सब में शांत बना रहता है तथा पुष्पित-पल्लवित होता रहता है। इनकी तरह ही महात्मा गांधी भी मारकाट, अग्निदाह, लूटपाट, खून खच्चर को बवंडर के बीच स्थिर रह सके थे। इस समानता के कारण लेखक गांधी जी को याद करता है। जिस तरह शिरीष वायुमंडल से रस खींचकर इतना कोमल व कठोर हो सकता है, उसी तरह महात्मा गांधी भी कोमल-कठोर व्यक्तित्व वाले थे। यह वृक्ष और मनुष्य दोनों ही अवधूत हैं।
Related:
Chapter 15 – श्रम विभाजन और जाति-प्रथा
प्रश्न 1 – जाति आधारित श्रम विभाजन के दोषों का उल्लेख ‘श्रम विभाजन और जाति-प्रथा’ पाठ के आधार पर कीजिए। (40 शब्दों में)
उत्तर – भारतीय समाज की जाति प्रथा की एक यह भी विशेषता है कि यह कार्य के आधार पर श्रमिकों का विभाजन नहीं करती बल्कि समाज में पहले से ही विभाजित वर्गों अर्थात ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र, के आधार पर कार्य का विभाजन करती है। उदाहरण के तौर पर ब्राह्मण का बेटा वेद-पुराणों का ही अध्ययन करेगा तो क्षत्रिय का बेटा रक्षा का ही कार्य करेगा, लोहार का बेटा लोहार का ही कार्य करेगा। भले ही इन कार्यों को करने में उनकी रूचि हो या न हो। इस तरह की व्यवस्था विश्व के किसी भी समाज में नहीं दिखाई देती है।भीमराव अंबेडकर जी कहते हैं कि एक समय के लिए जाति प्रथा को यदि श्रम विभाजन मान भी लिया जाए तो भी यह स्वाभाविक और उचित नहीं होगा। क्योंकि यह मनुष्य की रुचि के हिसाब से नहीं है। इसमें व्यक्ति जिस जाति या वर्ग में जन्म लेता हैं, उसे उसी के अनुसार कार्य करना होता हैं।
प्रश्न 2 – डॉ. आंबेडकर ने किन विशेषताओं को आदर्श समाज की धुरी माना है और क्यों? (40 शब्दों में)
उत्तर – अंबेडकर जी कहते हैं कि मानवता की दृष्टि से समाज को दो श्रेणियों में नहीं बांटा जा सकता। व्यवहारिक सिद्धांत भी यही कहता है कि सभी के साथ समान व्यवहार किया जाए। जैसे राजनीतिज्ञ सबके साथ समान व्यवहार करते हैं। राजनेता इसी धारणा को लेकर चलता है कि सबके साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए। तभी उसकी राजनीति फलती फूलती है। हालांकि समानता एक काल्पनिक जगत की वस्तु है फिर भी राजनीतिज्ञ को सभी परिस्थितियों को दृष्टि में रखते हुए , यही मार्ग अपनाना पड़ता है क्योंकि यही व्यवहारिक भी है और यही उसके व्यवहार की एकमात्र कसौटी भी है।
प्रश्न 3 – ‘श्रम विभाजन और जाति प्रथा’ पाठ में ‘जातिवाद’ का पोषक किसे कहा गया है और क्यों? (40 शब्दों में)
अथवा
‘मेरी कल्पना का आदर्श समाज’ के आधार पर लिखिए कि जाति प्रथा के पोषक लोगों को किस प्रकार की स्वतंत्रता देने के पक्ष में हैं और किस प्रकार की नहीं। (40 शब्दों में)
उत्तर – इस आधुनिक युग में भी जातिवाद को समर्थन देने वालों की कोई कमी नहीं है वे विभिन्न तर्कों के आधार पर जातिवाद का समर्थन करते रहते है। जातिवाद के उन समर्थकों द्वारा एक तर्क यह भी दिया जाता है कि आधुनिक सभ्य समाज में कार्यकुशलता के लिए कार्य विभाजन या कार्य का बंटवारा करना आवश्यक है और जातिप्रथा, कार्य विभाजन का ही दूसरा रूप है। इसीलिए उनके अनुसार जातिवाद में कोई बुराई नहीं है।
प्रश्न 4 – जाति प्रथा को श्रम विभाजन का ही एक रूप नहीं मानने के पीछे डॉ. आंबेडकर के तर्क का उल्लेख कीजिए। (60 शब्दों में)
अथवा
‘श्रम विभाजन और जाति प्रथा’ पाठ के आधार पर श्रम विभाजन का अर्थ स्पष्ट करते हुए श्रम विभाजन और श्रमिक विभाजन का अंतर लिखिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – श्रम विभाजन, निश्चय ही सभ्य समाज की आवश्यकता है। जातिप्रथा को यदि श्रम विभाजन मान लिया जाये तो यह स्वाभाविक विभाजन नहीं है। श्रम विभाजन में क्षमता और कार्यकुशलता के आधार पर काम का बँटवारा होता है जबकि श्रमिक विभाजन में लोगों को जन्म के आधार पर बाँटकर पैतृक पेशे को अपनाने के लिए बाध्य किया जाता है। श्रम-विभाजन में व्यक्ति अपनी रुचि के अनुसार व्यवसाय का चयन करता है। श्रमिक-विभाजन में व्यवसाय का चयन तो दूर की बात है, व्यवसाय परिवर्तन की भी अनुमति नहीं होती है। जिससे समाज में ऊँच-नीच, भेदभाव, असमानता का भाव पैदा होता है। यह अस्वाभाविक विभाजन है। इससे गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी जैसी गंभीर समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं।
Related:
- Shram Vibhaajan Aur Jaati-Pratha Summary
- Shram Vibhaajan Aur Jaati-Pratha Question Answers
- Shram Vibhaajan Aur Jaati-Pratha Character Sketch
Vitan Bhag 2 Book Lessons
Chapter 1 – सिल्वर वैंडिंग
निम्नलिखित प्रश्नों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए:
(i) यशोधर बाबू ने झेंपते हुए खुश होने की अदा किससे सीखी थी?
(a) अपनी पत्नी से
(b) किशन दा से
(c) चड्ढा से
(d) अपने पिता से
उत्तर – (b) किशन दा से
(ii) यशोधर बाबू गोल मार्केट छोड़ना क्यों नहीं चाहते थे?
(a) बड़ा घर होने के कारण
(b) किशन दा के प्रति विश्वास
(c) क्षेत्र विशेष से प्रेम के कारण
(d) यादें जुड़ी होने के कारण
उत्तर – (d) यादें जुड़ी होने के कारण
(iii) सिल्वर वैडिंग की पार्टी देना यशोधर बाबू को ‘समहाउ इंप्रोपर ‘ क्यों लग रहा था?
(a) पुराने ख्याल के होने के कारण
(b) विदेशी ‘कस्टम’ मानने के कारण
(c) दिखावे में विश्वास न रखने के कारण
(d) पार्टी में होने वाले खर्च के कारण
उत्तर – (b) विदेशी ‘कस्टम’ मानने के कारण
(iv) यशोधर बाबू पहले साइकिल से ऑफिस आते थे अब पैदल आने लगे हैं, क्योंकि
(a) घर से ऑफिस पास है।
(b) उनके बच्चों को साइकिल पसंद नहीं।
(c) पिता को साइकिल पर देखना बच्चों को पसंद नहीं।
(d) अब वे साइकिल नहीं चला पाते।
उत्तर – (c) पिता को साइकिल पर देखना बच्चों को पसंद नहीं।
(v) यशोधर बाबू की पत्नी पारंपरिक होते हुए भी किस कारण से आधुनिक हो गई हैं?
(a) यशोधर बाबू से अलग सोच रखने से
(b) समय के साथ खुद को बदलने से
(c) आधुनिकता में आनंद आने से
(d) बच्चों के प्रति मातृसुलभ मजबूरी से
उत्तर – (d) बच्चों के प्रति मातृसुलभ मजबूरी से
(vi) यशोधर बाबू अपने जीवन में किससे प्रभावित थे?
(a) कृष्णानंद पांडेय
(c) कृष्णानंद शर्मा
(b) कृष्णानंद वर्मा
(d) कृष्णानंद गुप्ता
उत्तर – (a) कृष्णानंद पांडेय
(vii) यशोधर बाबू को आप किस प्रकार के व्यक्ति की श्रेणी में रखेंगे?
(a) साधारण
(b) आदर्शवादी
(c) पुरातनपंथी
(d) विरोधी
उत्तर – (b) आदर्शवादी
(viii) पंतजी अपनी घड़ी रोजाना सुबह-शाम रेडियो समाचारों से मिलाते हैं – पंक्ति से यह पता चलता है कि पंतजी
(a) समय के पाबंद हैं।
(b) की घड़ी पुरानी है।
(c) का मन दफ्तर में नहीं लगता।
(d) खाली बैठे रहते हैं।
उत्तर – (a) समय के पाबंद हैं।
(ix) जब यशोधर पंत ने अपने आखिरी फ़ाइल का फीता बाँधा था तब घड़ी में क्या समय हो रहा था?
(a) पाँच बजकर चालीस मिनट
(b) पाँच बजकर तीस मिनट
(c) पाँच बजकर पच्चीस मिनट
(d) पाँच बज रहे थे
उत्तर – (c) पाँच बजकर पच्चीस मिनट
(x) ‘जूझ’ कहानी के लेखक का मन कहाँ जाने के लिए तड़पता था?
(a) सिनेमा जाने
(b) खेलने जाने
(c) खेत में जाने
(d) पाठशाला जाने
उत्तर – (d) पाठशाला जाने
(xi) ‘मुअनजो-दड़ो’ और ‘हड़प्पा’ को सिंधु घाटी सभ्यता के परिपक्व दौर का शहर क्यों कहा गया है?
(a) सबसे पुराने होने से
(b) पूर्ण विकसित होने से
(c) सबसे उत्कृष्ट होने से
(d) बहुत बड़ा होने से
उत्तर – (a) सबसे पुराने होने से
(xii) ‘मुअनजो-दड़ो’ को छोटे-मोटे टीलों पर आबाद क्यों किया गया था?
(a) पहाड़ी इलाका होने से
(b) बाढ़ से बचने के लिए
(c) दूर से दिखने के लिए
(d) बड़ा शहर होने से
उत्तर – (b) बाढ़ से बचने के लिए
(xiii) ‘जूझ’ कहानी में लेखक सुबह-शाम खेत पर, ढोर चराते आदि समय भी कविताओं में क्यों रमे रहते थे?
(a) अपने शिक्षक से प्रभावित होने से
(b) खेत पर अकेले होने से
(c) कविता याद करने के लिए
(d) कविताओं में मन रमने से
उत्तर – (a) अपने शिक्षक से प्रभावित होने से
(xvi) ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी की मूल संवेदना हो सकती है :
(a) मानवीय मूल्यों का संकट
(b) पीढ़ी का अंतराल
(c) पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव
(d) पारिवारिक असहमति
उत्तर – (b) पीढ़ी का अंतराल
(xv) ‘जब चारों ओर कोल्हू चलने लगते तो बाज़ार में गुड़ की बहुतायत हो जाती और भाव नीचे उतर आते’ – पंक्ति से यह पता चलता है कि :
(a) कोल्हू अधिक चलने पर गुड़ अधिक बनता है
(b) उत्पादन अधिक होने से भाव नीचे जाता है
(c) गुड़ अधिक हो जाने पर माँग कम होती है
(d) भाव पर गुड़ का उत्पादन निर्भर रहता है
उत्तर – (c) गुड़ अधिक हो जाने पर माँग कम होती है
(xvi) ‘मुअनजो-दड़ो’ के बारे में धारणा है कि ‘अपने दौर में वह सिंधु घाटी की सभ्यता का केन्द्र रहा होगा’ – पंक्ति में ‘केंद्र’ से क्या अभिप्राय है?
(a) प्रमुख गाँव
(b) राजधानी
(c) व्यवसायिक-स्थल
(d) शिक्षा-स्थल
उत्तर – (b) राजधानी
(xvii) वसंत पाटील का कक्षा में सम्मान क्यों था?
(a) वह मॉनीटर था
(b) कक्षा में आगे बैठता था
(c) पढ़ने में होशियार एवं शांत था
(d) मास्टरों का लाड़ला था
उत्तर – (c) पढ़ने में होशियार एवं शांत था
(xviii) ‘ड्रेसिंग गाउन’ पहनते हुए यशोधर बाबू की आँखों में नमी क्यों आ गई थी?
(a) भूषण के व्यवहार के कारण
(b) किशनदा के याद आने के कारण
(c) केवल (a)
(d) (a) और (b) दोनों
उत्तर – (d) (a) और (b) दोनों
(xix) ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के आधार पर लिखिए कि यशोधर बाबू दफ़्तर से घर जल्दी लौटना क्यों पसंद नहीं करते थे।
(a) पत्नी और बच्चों से वैचारिक मतभेद होने के कारण
(b) दफ़्तर के बाद बिड़ला मंदिर जाना पसंद होने के कारण
(c) घर के कोलाहल से बचने के कारण
(d) घर के एकाकी वातावरण से बचने के कारण
उत्तर – (c) घर के कोलाहल से बचने के कारण
(xx) किशनदा के रिटायर होने के बाद यशोधर बाबू उन्हें अपने घर में क्यों नहीं रख पाए?
(a) घर में अतिरिक्त कमरा न होने के कारण
(b) पत्नी और बच्चों द्वारा उन्हें पसंद न किए जाने के कारण
(c) अपने परिवार को नाराज न करने के कारण
(d) किशनदा द्वारा उनके प्रस्ताव को अस्वीकार किए जाने के कारण
उत्तर – (a) घर में अतिरिक्त कमरा न होने के कारण
(xxi) किशनदा के आदर्शों पर चलने से यशोधर बाबू के पारिवारिक, जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
(a) उनका पारिवारिक जीवन अत्यंत सरल हो गया
(b) उनका परिवार आदर्शवादी परिवार बन गया
(c) उनका परिवार सिद्धांतवादी परिवार बन गया
(d) उनका अपने परिवार से मतभेद रहने लगा
उत्तर – (d) उनका अपने परिवार से मतभेद रहने लगा
(xxii) यशोधर बाबू सिल्वर वैडिंग मनाने के पक्ष में क्यों नहीं थे?
(a) वे इसे समय की बर्बादी मानते थे
(b) वे इसे विदेशी कस्टम मानते थे
(c) वे रूढ़िवादी विचारों के थे
(d) वे इसे पैसों की बर्बादी मानते थे
उत्तर – (b) वे इसे विदेशी कस्टम मानते थे
(xxiii) आनंदा के पिता ईख पेरने का काम दूसरे किसानों से पहले ही क्यों शुरू कर देते थे?
(a) ईख की अच्छी खासी कीमत पाने के लिए
(b) जल्दी ही खेती के काम से मुक्ति पाने के लिए
(c) गाँव में इधर-उधर घूमने के लिए
(d) दूसरे किसानों से पहले काम समाप्त करने के लिए
उत्तर – (a) ईख की अच्छी खासी कीमत पाने के लिए
(xxiv) आनंदा को पाठशाला जाने के लिए लगाई जाने वाली शर्तों में से कौन-सी शर्त सम्मिलित नहीं थी?
(a) सुबह खेतों में पानी लगाना
(b) शाम को आधा घंटा ढोर चराना
(c) शाम को खेतों में सिंचाई करना
(d) खेतों में काम अधिक होने पर पाठशाला न जाना
उत्तर – (c) शाम को खेतों में सिंचाई करना
(xxv) चौथी से पाँचवी कक्षा तक अपनी लगने वाली पाठशाला आनंदा को एकदम पराई जैसी क्यों लगने लगी?
(a) सहपाठियों के पास हो आगे की कक्षा में चले जाने के कारण
(b) मास्टर जी के कठोर व्यवहार के कारण
(c) चह्वान के लड़के द्वारा खिल्ली उड़ाने के कारण
(d) नई कक्षा की कठिन पढ़ाई के कारण
उत्तर – (a) सहपाठियों के पास हो आगे की कक्षा में चले जाने के कारण
(xxvi) ‘अतीत में दबे पाँव’ पाठ के आधार पर बताइए कि राखालदास बनर्जी मुअनजो-दड़ो में किसकी खोज करना चाहते थे।
(a) गढ़
(b) स्नानागार
(c) महाकुंड
(d) बौद्ध स्तूप
उत्तर – (c) महाकुंड
(xxvii) मुअनजो-दड़ो में मिले विशाल कोठार का प्रयोग किस लिए किया जाता होगा?
(a) कर के रूप में एकत्रित अनाज रखने के लिए
(b) कर के रूप में एकत्रित धन रखने के लिए
(c) उपासना केंद्र के रूप में
(d) महासभा भवन के रूप में
उत्तर – (a) कर के रूप में एकत्रित अनाज रखने के लिए
(xxviii) निम्नलिखित कथन-कारण को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उसके बाद दिए गए विकल्पों में से कोई एक सही विकल्प चुनकर लिखिए:
कथन (A): सिंधु घाटी सभ्यता की खूबी उसका सौंदर्यबोध है।
कारण (R): (I) खुदाई के दौरान मिली वस्तुओं से उनकी कला – सिद्धता का ज्ञान होता है।
(II) नगर-नियोजन से उनकी सौंदर्य -प्रियता का ज्ञान होता है।
(a) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों सही हैं तथा कारण (R) कथन (A) की सही व्याख्या करता है।
(b) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों ग़लत हैं।
(c) कथन (A) सही है, लेकिन कारण (R) ग़लत है।
(d) कथन (A) ग़लत है, लेकिन कारण (R) सही है।
उत्तर – (a) कथन (A) तथा कारण (R) दोनों सही हैं तथा कारण (R) कथन (A) की सही व्याख्या करता है।
(xxix) “सिल्वर वैडिंग” कहानी की विषय-वस्तु आधारित है –
(a) समाज में बदलते जीवन-मूल्यों पर
(b) समाज में बदलते पारिवारिक-मूल्यों पर
(c) समाज में बदलते सामाजिक-मूल्यों पर
(d) समाज में बदलते सांस्कृतिक-मूल्यों पर
उत्तर – (d) समाज में बदलते सांस्कृतिक-मूल्यों पर
(xxx) यशोधर बाबू के मातहत उन्हें क्यों पसंद नहीं करते थे?
(a) वे अपना काम अपने मातहतों से करवाते थे।
(b) उनके कारण उन्हें दफ्तर में देर तक बैठना पड़ता था।
(c) वे जूनियरों के साथ कठोर व्यवहार करते थे।
(d) मातहतों का हँसी-मजाक उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं था।
उत्तर – (b) उनके कारण उन्हें दफ्तर में देर तक बैठना पड़ता था।
(xxxi) दफ़्तर से बाहर निकलते समय यशोधर बाबू किशन दा द्वारा सिखाई गई कौन-सी परंपरा का पालन अवश्य करते?
(a) जूनियरों के साथ चाय-कॉफी पीना
(b) जूनियरों के साथ मनोरंजक बात करना
(c) अपनी टेबल का सारा काम खत्म करना
(d) जूनियरों के दिन-भर के काम का लेखा-जोखा लेना
उत्तर – (c) अपनी टेबल का सारा काम खत्म करना
(xxxii) ‘मैं पढ़ने जाऊँगा’ आनंदा की अपने पिता से यह बात कहने की हिम्मत क्यों नहीं होती थी?
(a) पिता के गुस्सैल स्वभाव के कारण
(b) पिता के बीमार रहने के कारण
(c) पिता की पढ़ाई में रुचि न होने के कारण
(d) पिता द्वारा पढ़ाई-खर्च वहन करने की असमर्थता के कारण
उत्तर – (a) पिता के गुस्सैल स्वभाव के कारण
(xxxiii) दीवाली बीतते ही गाँव में कैसी चहल-पहल शुरू हो जाती थी?
(a) खेतों में फसलों की बुवाई शुरू होने लगती थी।
(b) खेतों में फसलों की कटाई शुरू होने लगती थी।
(c) ईख पेरने के लिए कोल्हू चलने लगते थे।
(d) फसलों को बेचने का काम शुरू होने लगता था।
उत्तर – (c) ईख पेरने के लिए कोल्हू चलने लगते थे।
(xxxiv) आनंदा को स्कूल में फिर से नाम लिखवाने की जरूरत क्यों नहीं पड़ी?
(a) क्योंकि दत्ताजी राव ने उसे स्कूल पढ़ने के लिए भेजा था।
(b) क्योंकि उसका नाम रजिस्टर से कटा नहीं था।
(c) क्योंकि वह गाँव के प्रतिष्ठित परिवार से था।
(d) क्योंकि उसके पिता के मास्टर जी से घनिष्ठ संबंध थे।
उत्तर – (b) क्योंकि उसका नाम रजिस्टर से कटा नहीं था।
(xxxv) आनंदा ने पाठशाला नहीं जाने की बात क्यों सोची?
(a) लड़कों द्वारा खिल्ली उड़ाये जाने के कारण
(b) मास्टर जी के कठोर व्यवहार के कारण
(c) स्कूल की वर्दी न होने के कारण
(d) कॉपी-किताब न होने के कारण
उत्तर – (a) लड़कों द्वारा खिल्ली उड़ाये जाने के कारण
(xxxvi) मुअनजो-दड़ो सबसे बड़ा शहर है –
(a) लौह-काल के शहरों में
(b) ताम्र-काल के शहरों में
(c) स्वर्ण-काल के शहरों में
(d) पाषाण-काल के शहरों में
उत्तर – (b) ताम्र-काल के शहरों में
(xxxvii) मुअनजो-दड़ो की गलियों में टहलते हुए लेखक को किस जगह की याद आई?
(a) राजस्थान के गाँव कुलधरा की
(b) हरियाणा के गाँव कुलधरा की
(c) गुजरात के गाँव कुलधरा की
(d) पंजाब के गाँव कुलधरा की
उत्तर – (a) राजस्थान के गाँव कुलधरा की
(xxxviii) निम्नलिखित कथन, कारण को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उसके बाद दिए गए विकल्पों में से कोई एक सही विकल्प चुनकर लिखिए–
कथन (A): सिंधु घाटी सभ्यता लघुता में भी महत्ता का अनुभव कराने वाली संस्कृति थी।
कारण (R): (क) लो-प्रोफाइल सभ्यता थी।
(ख) यहाँ के मूर्तिशिल्प, औजार छोटे हैं।
(ग) यहाँ मिले नरेश के सिर से छोटे सिरपेंच की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
(a) कथन (A) सही है, पर सभी कारण (R) ठीक नहीं हैं।
(b) कथन (A) सही है और (ख) और (ग) कारण (R) उसकी सही व्याख्या करते हैं।
(c) कथन (A) गलत है पर सभी कारण (R) ठीक हैं।
(d) कथन (A) सही है और तीनों कारण (R) उसकी सही व्याख्या करते हैं।
उत्तर – (b) कथन (A) सही है और (ख) और (ग) कारण (R) उसकी सही व्याख्या करते हैं।
Related:
Chapter 2 – जूझ
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर हेतु निर्देशानुसार सही विकल्प चुनकर लिखिए –
(i) ‘जूझ’ कहानी में लेखक के पिता पाठशाला से अधिक महत्त्व खेत तथा ढोर चराने को क्यों देते थे?
(a) स्वयं अशिक्षित होने से
(b) खेतों से फ़सल मिलने से
(c) शिक्षा के महत्त्व को नहीं समझने से
(d) पढ़ने को बेकार का काम समझने से
उत्तर – (c) शिक्षा के महत्त्व को नहीं समझने से
(ii) पाठशाला में पहुँचने के बाद लेखक का मन खट्टा क्यों हो गया?
(a) पढ़ाई में मन नहीं लगने के कारण
(b) पहचान के लड़के नहीं होने के कारण
(c) साथियों के अगली कक्षा में चले जाने के कारण
(d) अपने से कम उम्र और अक्ल के बच्चों के साथ बैठने की मजबूरी के कारण
उत्तर – (d) अपने से कम उम्र और अक्ल के बच्चों के साथ बैठने की मजबूरी के कारण
(vi) पाठशाला में सहपाठियों द्वारा तंग किए गए लेखक की तुलना किससे की गई है?
(a) घायल गिलहरी से
(b) चूहा से
(c) कोयल से
(d) कौआ से
उत्तर – (b) चूहा से
(vii) लेखक का पाठशाला में विश्वास बढ़ने के क्या कारण थे?
(a) शिक्षकों का अपनत्व भरा व्यवहार
(b) वसंत की दोस्ती
(c) केवल (a)
(d) (a) और (b) दोनों
उत्तर – (d) (a) और (b) दोनों
(viii) गाँव भर में लेखक का कोल्हू सबसे पहले शुरू क्यों होता था?
(a) ईख तैयार होने से
(b) भाव अधिक लेने के लिए
(c) ईख अधिक होने से
(d) बाजार में जल्दी गुड़ भेजने के लिए
उत्तर – (d) बाजार में जल्दी गुड़ भेजने के लिए
(ix) देसाई के बाड़े का बुलावा दादा के लिए सम्मान की बात थी, क्यों?
(a) वह ऊँची जाति का था।
(b) गाँव का सम्मानित व्यक्ति था।
(c) उनकी जमीन जोतता था।
(d) उनसे कर्ज लिया था।
उत्तर – (b) गाँव का सम्मानित व्यक्ति था।
(x) ‘मंत्री’ नामक शिक्षक क्या पढ़ाते थे?
(a) विज्ञान
(b) साहित्य
(c) इतिहास
(d) गणित
उत्तर – (d) गणित
(xi) ‘जूझ’ कहानी के नायक का मन किसके लिए तरसता था?
(a) भोजन के लिए
(c) कपड़े के लिए
(b) पढ़ने के लिए
(d) खेलने के लिए
उत्तर – (b) पढ़ने के लिए
(xii) ‘जूझ’ पाठ के लेखक को अकेला रहना क्यों अच्छा लगने लगा?
(a) कविता लिखने में रुचि जगने से
(b) कविताओं के साथ खेलने से
(c) कविता के अर्थ को समझने से
(d) कविता पर विचार करने से
उत्तर – (a) कविता लिखने में रुचि जगने से
(xiii) मास्टर की चाल पर दूसरी कविताएँ भी पढ़ी जा सकती हैं – कथन में प्रयुक्त ‘चाल’ शब्द का अर्थ हो सकता है –
(a) रुकने एवं आगे बढ़ने का नियम
(b) भाव-भंगिमा और गाने का ढंग
(c) अभिनय करने का ढंग
(d) कविता लेखन करने का ढंग
उत्तर – (b) भाव-भंगिमा और गाने का ढंग
(xiv) बसंत पाटिल को लेखक द्वारा अपना दोस्त बनाने के कारणों में से कौन सा कारण सही नहीं है?
(a) होशियार छात्र होना
(b) शांत स्वभाव का होना
(c) कक्षा का मॉनिटर होना
(d) बड़े घर का होना
उत्तर – (d) बड़े घर का होना
(xv) ‘अब मळा के सभी काम बीत गए हैं’ – पंक्ति में प्रयुक्त ‘मळा’ का क्या अर्थ है?
(a) खेती
(b) पानी
(c) बाग
(d) फसल
उत्तर – (a) खेती
Related:
Chapter 3 – अतीत में दबे पाँव
निम्नलिखित प्रश्नों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए:
(i) नगर नियोजन की अनूठी मिसाल किसे कहा गया है?
(a) माया सभ्यता
(b) मुअनजो-दड़ो
(c) महाकुंड
(d) मेसोपोटामिया
उत्तर – (b) मुअनजो-दड़ो
(ii) आप किस आधार पर कह सकते हैं कि सिन्धु घाटी के दौर में व्यापार ही नहीं, उन्नत खेती भी होती थी?
(a) गढ़ होने से
(b) बैलगाड़ी मिलने से
(c) कोठार होने से
(d) कुंड होने से
उत्तर – (c) कोठार होने से
(iii) मेसोपोटामिया के शिलालेखों में मुअनजो-दड़ो के लिए किस शब्द का प्रयोग हुआ है?
(a) मेलुहा
(b) उहा
(c) गढ़
(d) शिव
उत्तर – (c) गढ़
(iv) मुअनजो-दड़ो में अब खुदाई क्यों बंद कर दी गई है?
(a) दलदल की समस्या के कारण
(b) कुछ नहीं मिलने के कारण
(c) अवशेष की उम्मीद नहीं होने से
(d) मौजूद खंडहर बचाने के लिए
उत्तर – (d) मौजूद खंडहर बचाने के लिए
(v) अजायबघर में प्रदर्शित चीजों में कौन सी चीजें नहीं मिली हैं?
(a) हथियार
(b) बरतन
(c) औजार
(d) सूई
उत्तर – (a) हथियार
(vi) छोटे टीलों पर बनी बस्तियों को कहा गया है?
(a) गढ़
(b) रईसों की बस्ती
(c) नीचा नगर
(d) सचिवालय
उत्तर – (a) गढ़
(vii) सिंधु घाटी सभ्यता की संस्कृति को आप किस श्रेणी में रखेंगे?
(a) खेतिहर संस्कृति
(b) मैदानी संस्कृति
(c) नभ संस्कृति
(d) शहरी संस्कृति
उत्तर – (d) शहरी संस्कृति
(viii) मुअनजो-दड़ो सबसे बड़ा शहर है –
(a) ताम्रकाल के शहरों में
(b) स्वर्णकाल के शहरों में
(c) पाषाणकाल के शहरों में
(d) रजतकाल के शहरों में
उत्तर – (a) ताम्रकाल के शहरों में
(ix) मुअनजो-दड़ो और हड़प्पा के रहस्य आज भी रहस्य क्यों बने हुए हैं?
(a) भव्यता के आडंबर से
(b) अध्ययन नहीं हो पाने से
(c) अनबूझ लिपि के कारण
(d) सुघड़ता ‘के अभाव के कारण
उत्तर – (b) अध्ययन नहीं हो पाने से
(x) निम्नलिखित में से किस बात से यह पता चलता है कि मुअनजो-दड़ो के लोग बारीक कशीदाकारी करते थे?
(a) सूई मिलने से
(b) दुशाला मिलने से
(c) सूती कपड़ा मिलने से
(d) (a) और (b) दोनों
उत्तर – (d) (a) और (b) दोनों
Related:
- Ateet Mein Dabe Paon Summary
- Ateet Mein Dabe Paon Question Answers
- Ateet Mein Dabe Paon Character Sketch
Abhivyakti Aur Madhyam Book Lessons
Chapter 3 – विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन
प्रश्न 1 – निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर देने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प का चयन कर लिखिए:
(i) रेडियो में महत्त्व है:
(a) प्रसारणकर्ताओं का
(b) शब्दों और ध्वनियों का
(c) छपे हुए शब्दों का
(d) दृश्यों और तस्वीरों का
उत्तर – (b) शब्दों और ध्वनियों का
(ii) नेट साउंड या नेट कहते हैं –
(a) घटना स्थल से प्रत्यक्षदर्शियों की आवाज़ को
(b) शूट करते समय खुद-ब-खुद रिकार्ड होने वाली आवाज़ को
(c) खबरों को प्रभावशाली बनाने के लिए कृत्रिम आवाज़ को
(d) नेट के माध्यम से आने वाली आवाज़ को
उत्तर – (d) नेट के माध्यम से आने वाली आवाज़ को
(iii) तथ्यों या सूचनाओं को उनके घटते हुए महत्त्वपूर्ण क्रम में लिखना, कहलाता है –
(a) उलटा पिरामिड शैली
(b) सीधा पिरामिड शैली
(c) कथात्मक शैली
(d) वर्णनात्मक शैली
उत्तर – (a) उलटा पिरामिड शैली
(iv) ख़बर की पुष्टि करने वाले प्रत्यक्षदर्शियों के कथन को कहते हैं –
(a) एंकर-पैकेज
(b) फोन-इन
(c) लाइव
(d) एंकर-बाइट
उत्तर – (d) एंकर-बाइट
(v) यूरोप के पुनर्जागरण में आप किसकी भूमिका को प्रमुख मानते हैं?
(a) छापाखाना
(b) समाचार-पत्र
(c) औद्योगिक क्रांति
(d) नेता
उत्तर – (a) छापाखाना
(vi) अख़बारों की पुरानी फाइलों को सहजतापूर्वक खोजने का अवसर हमें प्राप्त होता है:
(a) प्रेस से
(b) दूरदर्शन से
(c) इंटरनेट से
(d) पुस्तकालय से
उत्तर – (c) इंटरनेट से
(vii) ‘उलटा पिरामिड’ शैली का संबंध है:
(a) फ़ीचर लेखन से
(b) आलेख लेखन से
(c) समाचार लेखन से
(d) कथा लेखन से
उत्तर – (c) समाचार लेखन से
प्रश्न 2 – मुद्रित माध्यम से आप क्या समझते हैं? मुद्रित माध्यमों की विशेषता पर अपने विचार व्यक्त कीजिए। (80 शब्दों में)
उत्तर – प्रिंट या मुद्रित माध्यम से तात्पर्य उन सामग्री से है जो कागज या अन्य भौतिक माध्यमों पर छापी जाती है, जैसे कि किताबें, पत्रिकाएँ, समाचार पत्र, और अन्य दस्तावेज़। मुद्रित माध्यमों की सबसे बड़ी विशेषता या शक्ति यह है कि छपे हुए शब्दों में स्थायित्व होता है। उसे आप आराम से और धीरे-धीरे पढ़ सकते हैं। जब भी आपके पास वक्त हो आप तब पढ़ सकते हैं और यदि वक्त की कमी हो तो भी आप थोड़ा-थोड़ा करके पढ़ सकते हो। पढ़ते हुए उस पर सोच सकते हैं या किसी से तर्क-वितर्क भी कर सकते हैं। अगर कोई बात समझ में नहीं आई तो उसे दोबारा या जितनी बार इच्छा करे, उतनी बार पढ़ सकते हैं।
प्रश्न 3 – समाचार लेखन के समय प्रायः किन प्रश्नों का जवाब देने की कोशिश की जाती है? इन्हें किस रूप में जाना जाता है? समाचार के मुखड़े, बॉडी और समापन में किन प्रश्नों को आधार बनाया जाता है? (80 शब्दों में)
अथवा
समाचार के इंट्रो और बॉडी से आप क्या समझते हैं? मीडिया में इनका संबंध किससे है? उसे क्या कहा जाता है? (80 शब्दों में)
उत्तर – किसी समाचार को लिखते हुए मुख्यतः छह सवालों का जवाब देने की कोशिश की जाती है क्या हुआ, किसके साथ हुआ, कहाँ हुआ, कब हुआ, कैसे और क्यों हुआ? इस–क्या, किसके (या कौनद्ध), कहाँ, कब, क्यों और कैसे–को छह ककारों के रूप में भी जाना जाता है। किसी घटना, समस्या या विचार से संबंधित खबर लिखते हुए इन छह ककारों को ही ध्यान में रखा जाता है।
समाचार के मुखड़े (इंट्रो) यानी पहले पैराग्राफ या शुरुआती दो–तीन पंक्तियों में आमतौर पर तीन या चार ककारों को आधार बनाकर खबर लिखी जाती है। ये चार ककार हैं–क्या, कौन, कब और कहाँ? इसके बाद समाचार की बॉडी में और समापन के पहले बाकी दो ककारों–कैसे और क्यों–का जवाब दिया जाता है। इस तरह छह ककारों के आधार पर समाचार तैयार होता है। इनमें से पहले चार ककार–क्या, कौन, कब और कहाँ–सूचनात्मक और तथ्यों पर आधारित होते हैं जबकि बाकी दो ककारों–कैसे और क्यों–में विवरणात्मक, व्याख्यात्मक और विश्लेषणात्मक पहलू पर जोर दिया जाता है।
प्रश्न 4 – एंकर-विजुअल, एंकर-बाइट और एंकर-पैकेज से आप क्या समझते हैं? इनका संबंध जनसंचार के किस माध्यम से जुड़ा है? (80 शब्दों में)
उत्तर – एंकर-विजुअल—जब घटना के दृश्य या विजुअल मिल जाते हैं तब उन दृश्यों के आधार पर ख़बर लिखी जाती है, जो एंकर पढ़ता है। इस ख़बर की शुरुआत भी प्रारंभिक सूचना से होती है और बाद में कुछ वाक्यों पर प्राप्त दृश्य दिखाए जाते हैं।
एंकर-बाइट का अर्थ है-कथन। टेलीविजन में किसी खबर को पुष्ट करने के लिए इससे सम्बन्धित बाइट दिखाई जाती है। किसी घटना के बारे में प्रत्यक्षदर्शियों या सम्बन्धित व्यक्तियों का कथन दिखाकर और सुनाकर समाचारों को प्रामाणिकता प्रदान करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।
एंकर-पैकेज—पैकेज किसी भी ख़बर को संपूर्णता के साथ पेश करने का एक ज़रिया है। इसमें संबंधित घटना के दृश्य, इससे जुड़े लोगों की बाइट, ग्राफ़िक के ज़रिए ज़रूरी सूचनाएँ आदि होती हैं। टेलीविज़न लेखन इन तमाम रूपों को ध्यान में रखकर किया जाता है। जहाँ जैसी ज़रूरत होती है, वहाँ वैसे वाक्यों का इस्तेमाल होता है। शब्द का काम दृश्य को आगे ले जाना है ताकि वह दूसरे दृश्यों से जुड़ सके, उसमें निहित अर्थ को सामने लाना है ताकि ख़बर के सारे आशय खुल सकें।
प्रश्न 5 – मीडिया जगत में दृश्य से क्या अभिप्राय है? टेलीविज़न के लिए दृश्य के साथ लेखन करना क्यों आवश्यक है? उदाहरण सहित लिखिए। (80 शब्दों में)
उत्तर – जब हम टेलीविज़न लेखन की बात करते हैं तो यह साफ़ है कि कि इसमें दृश्यों की अहमियत सबसे ज़्यादा है। यह कहने की ज़रूरत नहीं कि टेलीविज़न देखने और सुनने का माध्यम है और इसके लिए समाचार या आलेख (स्क्रिप्ट) लिखते समय इस बात पर खास ध्यान रखने की ज़रूरत पड़ती है कि आपके शब्द पर्दे पर दिखने वाले दृश्य के अनुकूल हों। अभी तक हमने प्रिंट और रेडियो माध्यम के लिए लेखन की शर्तों की चर्चा की लेकिन टेलीविज़न लेखन इन दोनों ही माध्यमों से काफ़ी अलग है। इसमें कम से कम शब्दों में ज़्यादा से ज़्यादा ख़बर बताने की कला का इस्तेमाल होता है।
इसलिए टी.वी. के लिए ख़बर लिखने की बुनियादी शर्त दृश्य के साथ लेखन है। दृश्य यानी कैमरे से लिए गए शॉट्स, जिनके आधार पर ख़बर बुनी जानी है। अगर शॉट्स आसमान के हैं तो हम आसमान की बात लिखेंगे, समंदर की नहीं। अगर कहीं आग लगी हुई है तो हम उसका ज़िक्र करेंगे पानी का नहीं।
मान लें कि दिल्ली की किसी इमारत में आग लगने की ख़बर लिखनी है। अख़बार में आमतौर पर इस ख़बर का इंट्रो कुछ इस तरह का बन सकता है—दिल्ली के लाजपत नगर की एक दुकान में आज शाम आग लगने से दो लोग घायल हो गए और लाखों रुपए की संपत्ति जलकर राख हो गई। ये आग शॉर्ट सर्किट की वजह से
प्रश्न 6 – इंटरनेट तेजी से लोकप्रिय क्यों हो रहा है? किन्हीं चार कारणों का उल्लेख कीजिए। (80 शब्दों में)
उत्तर – इंटरनेट अंतरक्रियात्मकता (इंटरएक्टिविटी) और सूचनाओं के विशाल भंडार का अद्भुत माध्यम है, बस एक बटन दबाइए और सूचनाओं के अथाह संसार में पहुँच जाइए। जिस भी विषय पर आप जानना चाहें, इंटरनेट के ज़रिये वहाँ पहुँच सकते हैं। इंटरनेट पत्रकारिता, ऑनलाइन पत्रकारिता, साइबर पत्रकारिता या वेब पत्रकारिता। इसे चाहे जो कहें, नयी पीढ़ी के लिए अब यह एक आदत-सी बनती जा रही है। जिन लोगों को इंटरनेट की आदत हो चुकी है, उन्हें हर घंटे-दो-घंटे में खुद को अपडेट करने की लत लगती जा रही है। किसी खबर की पृष्ठभूमि तत्काल जानने के लिए जहाँ पहले ढेर सारी अखबारी कतरनों की फाइलों को ढूँढ़ना पड़ता था, वहीं आज चंद मिनटों में इंटरनेट विश्वव्यापी संजाल के भीतर से कोई भी बैकग्राउंडर या पृष्ठभूमि खोजी जा सकती है।
प्रश्न 7 – मुद्रित माध्यमों के लिए लिखते समय किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है? (80 शब्दों में)
अथवा
मुद्रित माध्यमों के संदर्भ में लेखन के लिए ध्यान रखने योग्य चार बातों का उल्लेख कीजिए। (80 शब्दों में)
उत्तर – मुद्रित माध्यमों के लिए लिखते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है –
लेखन में भाषा, व्याकरण, वर्तनी और शैली का ध्यान रखना ज़रूरी है। प्रचलित भाषा के प्रयोग पर ज़ोर रहता है।
समय-सीमा और आवंटित जगह के अनुशासन का पालन करना हर हाल में जरूरी है।
लेखन और प्रकाशन के बीच गलतियों और अशुद्धियों को ठीक करना ज़रूरी होता है।
लेखन में सहज प्रवाह के लिए तारतम्यता बनाए रखना ज़रूरी है
प्रश्न 8 – टी.वी. पर प्रसारित होने वाली सूचनाएँ किन-किन चरणों से होकर गुजरती हैं? किन्हीं चार के बारे में विस्तार से लिखिए। (80 शब्दों में)
उत्तर – किसी भी टी.वी. चैनल पर खबर देने का मूल आधार वही होता है जो प्रिंट या रेडियो पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रचलित है यानी सबसे पहले सूचना देना। टी.वी. में भी यह सूचनाएँ कई चरणों से होकर दर्शकों के पास पहुँचती हैं। ये चरण हैं –
फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़
ड्राई एंकर
फोन-इन
एंकर-विजुअल
एंकर-बाइट
लाइव
एंकर-पैकेज
फोन-इन – टी.वी. में सूचनाओं के दूसरे चरण ड्राई एंकर के पश्चात् समाचार का विस्तार होता है। एंकर घटना स्थल पर उपस्थित संवाददाता से फोन पर बात करके सूचनाएँ दर्शकों तक पहुँचाता है। इसमें रिपोर्टर घटनास्थल पर मौजूद रहता है तथा घटना स्थल से जो भी जानकारी मिलती है रिपोर्टर उन्हें ज्यादा-से-ज्यादा दर्शकों तक पहुँचाता है।
एंकर-विजुअल—जब घटना के दृश्य या विजुअल मिल जाते हैं तब उन दृश्यों के आधार पर ख़बर लिखी जाती है, जो एंकर पढ़ता है। इस ख़बर की शुरुआत भी प्रारंभिक सूचना से होती है और बाद में कुछ वाक्यों पर प्राप्त दृश्य दिखाए जाते हैं।
एंकर-बाइट का अर्थ है-कथन। टेलीविजन में किसी खबर को पुष्ट करने के लिए इससे सम्बन्धित बाइट दिखाई जाती है। किसी घटना के बारे में प्रत्यक्षदर्शियों या सम्बन्धित व्यक्तियों का कथन दिखाकर और सुनाकर समाचारों को प्रामाणिकता प्रदान करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।
एंकर-पैकेज—पैकेज किसी भी ख़बर को संपूर्णता के साथ पेश करने का एक ज़रिया है। इसमें संबंधित घटना के दृश्य, इससे जुड़े लोगों की बाइट, ग्राफ़िक के ज़रिए ज़रूरी सूचनाएँ आदि होती हैं। टेलीविज़न लेखन इन तमाम रूपों को ध्यान में रखकर किया जाता है। जहाँ जैसी ज़रूरत होती है, वहाँ वैसे वाक्यों का इस्तेमाल होता है। शब्द का काम दृश्य को आगे ले जाना है ताकि वह दूसरे दृश्यों से जुड़ सके, उसमें निहित अर्थ को सामने लाना है ताकि ख़बर के सारे आशय खुल सकें।
प्रश्न 9 – रेडियो और टी.वी. के लिए समाचार लिखते समय किन-किन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए? (80 शब्दों में)
उत्तर – भारत जैसे विकासशील देश में उसके श्रोताओं और दर्शकों में पढ़े-लिखे लोगों से निरक्षर तक और मध्यम वर्ग से लेकर किसान-मज़दूर तक सभी हैं। इन सभी लोगों की सूचना की ज़रूरतें पूरी करना ही रेडियो और टी.वी. का उद्देश्य है।
लोगों तक पहुँचने का माध्यम भाषा है और इसलिए भाषा ऐसी होनी चाहिए कि वह सभी को आसानी से समझ में आ सके लेकिन साथ ही भाषा के स्तर और गरिमा के साथ कोई समझौता भी न करना पड़े।
हम आपसी बोलचाल में जिस भाषा का इस्तेमाल करते हैं, उसी तरह की भाषा का इस्तेमाल रेडियो और टी.वी. समाचार में भी करें।
सरल भाषा लिखने का सबसे बेहतर उपाय यह है कि वाक्य छोटे, सीधे और स्पष्ट लिखे जाएँ।
ऐसे कई शब्द हैं जिनका अखबारों में धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है लेकिन रेडियो और टी.वी. में उनके प्रयोग से बचा जाता है। जैसे निम्नलिखित, उपरोक्त, अधोहस्ताक्षरित और क्रमांक आदि शब्दों का प्रयोग इन माध्यमों में बिलकुल मना है।
द्वारा शब्द के इस्तेमाल से भी बचने की कोशिश की जाती है क्योंकि इसका प्रयोग कई बार बहुत भ्रामक अर्थ देने लगता है।
तथा, एवं, अथवा, व, किन्तु, परंतु, यथा आदि शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए और उनकी जगह और, या, लेकिन आदि शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए। – – – साफ-सुथरी और सरल भाषा लिखने के लिए गैरज़रूरी विशेषणों, सामासिक और तत्सम शब्दों, अतिरंजित उपमाओं आदि से बचना चाहिए।
मुहावरों का इस्तेमाल स्वाभाविक और जहाँ ज़रूरी हो, वहीं होना चाहिए अन्यथा वे भाषा के स्वाभाविक प्रवाह को बाधित करते हैं।
वाक्य छोटे-छोटे हों। एक वाक्य में एक ही बात कहने का धीरज हो।
वाक्यों में तारतम्य ऐसा हो कि कुछ टूटता या छूटता हुआ न लगे।
शब्द प्रचलित हों और उनका उच्चारण सहजता से किया जा सके।
प्रश्न 10 – जनसंचार के आधुनिक माध्यमों में से सबसे पुराने माध्यम की दो खूबियाँ और दो कमियाँ लिखिए। (80 शब्दों में)
अथवा
जनसंचार के आधुनिक माध्यमों में से सबसे पुराना माध्यम कौन-सा है? उसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (80 शब्दों में)
उत्तर – प्रिंट यानी मुद्रित माध्यम जनसंचार के आधुनिक माध्यमों में सबसे पुराना है। छापाखाना यानी प्रेस के आविष्कार ने दुनिया की तसवीर बदल दी। भारत में पहला छापाखाना सन् 1556 में गोवा में खुला। इसे मिशनरियों ने धर्म प्रचार की पुस्तकें छापने के लिए खोला था। तब से लेकर आज तक की मुद्रण तकनीक में बहुत बदलाव आया है और मुद्रित माध्यमों का विस्तार भी हुआ है। मुद्रित माध्यमों के तहत अखबार, पत्रिकाएँ, पुस्तकें आदि हैं।
मुद्रित माध्यमों की खूबियाँ –
मुद्रित माध्यमों की सबसे बड़ी विशेषता या शक्ति यह है कि छपे हुए शब्दों में स्थायित्व होता है। उसे आप आराम से और धीरे-धीरे पढ़ सकते हैं। पढ़ते हुए उस पर सोच सकते हैं।
मुद्रित माध्यमों के स्थायित्व का एक लाभ यह भी है कि आप उन्हें लंबे समय तक सुरक्षित रख सकते हैं और उसे संदर्भ की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं।
मुद्रित माध्यम चिंतन, विचार और विश्लेषण का माध्यम है। इस माध्यम में आप गंभीर और गूढ़ बातें लिख सकते हैं क्योंकि पाठक के पास न सिर्फ उसे पढ़ने, समझने और सोचने का समय होता है बल्कि उसकी योग्यता भी होती है।
मुद्रित माध्यमों की खामियाँ –
मुद्रित माध्यमों का पाठक वही हो सकता है जो साक्षर हो और जिसने औपचारिक या अनौपचारिक शिक्षा के ज़रिये एक विशेष स्तर की योग्यता भी हासिल की हो। निरक्षरों के लिए मुद्रित माध्यम किसी काम के नहीं हैं।
मुद्रित माध्यमों के लिए लेखन करने वालों को अपने पाठकों के भाषा-ज्ञान के साथ-साथ उनके शैक्षिक ज्ञान, योग्यता तथा रुचियों और ज़रूरतों का भी पूरा ध्यान रखना पड़ता है।
मुद्रित माध्यम रेडियो, टी.वी. या इंटरनेट की तरह तुरंत घटी घटनाओं को संचालित नहीं कर सकते। ये एक निश्चित अवधि पर प्रकाशित होते हैं।
मुद्रित माध्यम के लेखक या पत्रकार को छपने से पहले आलेख में मौजूद सभी गलतियों और अशुद्धियों को दूर करना आवश्यक है क्योंकि एक बार प्रकाशन के बाद वह गलती या अशुद्धि वहीं चिपक जाएगी।
Related:
Chapter 4 – पत्रकारीय लेखन के विभिन्न रूप और लेखन प्रक्रिया
प्रश्न 1 – निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर देने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प का चयन कर लिखिए:
(i) संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित होने वाले संपादकीय लेखन को माना जाता है-
(a) संपादक की आवाज़
(b) पत्रकार की आवाज़
(c) अख़बार की आवाज़
(d) पाठक की आवाज़
उत्तर – (c) अख़बार की आवाज़
(ii) फीचर को किस प्रकार का लेखन माना जाता है?
(a) कथात्मक
(c) वर्णनात्मक
(b) आत्मनिष्ठ
(d) विवरणात्मक
उत्तर – (b) आत्मनिष्ठ
(iii) समाचार लिखते समय मुख्यतः कितने सवालों का जवाब देने की कोशिश की जाती है?
(a) तीन
(b) चार
(c) पाँच
(d) छह
उत्तर – (d) छह
(iv) सुव्यवस्थित, सृजनात्मक और आत्मनिष्ठ लेखन को पत्रकारिता की भाषा में क्या कहते हैं?
(a) आलेख
(b) विशेष लेख
(c) स्तंभ लेख
(d) फ़ीचर
उत्तर – (d) फ़ीचर
(v) उलटा पिरामिड शैली का विकास कब हुआ?
(a) अमेरिका में गृह-युद्ध के दौरान
(b) प्रथम विश्व युद्ध के दौरान
(c) द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान
(d) इंग्लैंड के गृह-युद्ध के दौरान
उत्तर – (a) अमेरिका में गृह-युद्ध के दौरान
(vi) हिंदी नेट पत्रकारिता का आरंभ हुआ:
(a) भास्कर के साथ
(b) दैनिक जागरण के साथ
(c) वेब दुनिया के साथ
(d) प्रभासाक्षी के साथ
उत्तर – (c) वेब दुनिया के साथ
(vii) गहरी छानबीन, विश्लेषण और व्याख्या के आधार पर तैयार की गई रिपोर्ट कहलाती है:
(a) विशेष रिपोर्ट
(b) संपादकीय रिपोर्ट
(c) सामान्य रिपोर्ट
(d) प्रेस रिपोर्ट
उत्तर – (a) विशेष रिपोर्ट
(viii) किसी समाचार संगठन के लिए निश्चित मानदेय पर काम करने वाला पत्रकार कहलाता है –
(a) पूर्णकालिक पत्रकार
(b) अंशकालिक पत्रकार
(c) स्वतंत्र पत्रकार
(d) फ्रीलांसर पत्रकार
उत्तर – (b) अंशकालिक पत्रकार
(ix) समाचार के मुखड़े में खबर लिखी जाने का सही ककार क्रम है –
(a) क्या, कौन, कब, कहाँ
(b) क्या, कौन, कब, क्यों
(e) कौन, क्यों, क्या, कैसे
(d) क्या, कहाँ, कब, कैसे
उत्तर – (a) क्या, कौन, कब, कहाँ
(x) पत्रकारीय लेखन का संबंध आप किससे मानते हैं?
(a) वास्तविक घटनाओं से
(b) साहित्यिक लेखन से
(c) सृजनात्मक लेखन से
(d) प्रभावकारी विचारों से
उत्तर – (a) वास्तविक घटनाओं से
प्रश्न 2 – पत्रकारीय लेखन किसे कहते हैं? पत्रकारों के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख करते हुए पूर्णकालिक पत्रकार और स्वतंत्र पत्रकार के अंतर को स्पष्ट कीजिए। (80 शब्दों में)
अथवा
पत्रकारीय लेखन से आप क्या समझते हैं? पत्रकारों के प्रकारों के बारे में विस्तार से लिखिए। (80 शब्दों में)
अथवा
पत्रकारीय लेखन किसे कहते हैं? पत्रकारों के विभिन्न प्रकारों का विस्तार से उल्लेख कीजिए। (80 शब्दों में)
उत्तर – यदि कोई पत्रकारीय लेखन के किसी भी रूप में दिलचस्पी रखता है तो कोशिश करने वाले हर नए लेखक के लिए सबसे पहले यह समझना बहुत ज़रूरी है कि पत्रकारीय लेखन क्या है, समाज में उसकी भूमिका क्या है और वह अपनी इस भूमिका को कैसे पूरा करता है? दरअसल, अखबार, पाठकों को सूचना देने, उन्हें जागरूक रखने और लोकतांत्रिक समाजों में एक पहरेदार, शिक्षक और जनमत निर्माता के तौर पर बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। अखबार पाठकों के लिए बाहरी दुनिया के ज्ञान का ऐसा जरिया है जो हर रोज़ सुबह देश–दुनिया और पास–पड़ोस की घटनाओं, समस्याओं, मुद्दों और विचारों से पाठकों को अवगत करवाते हैं। अखबार या अन्य समाचार माध्यमों में काम करने वाले पत्रकार अपने पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं तक सूचनाएँ पहुँचाने के लिए लेखन के विभिन्न रूपों का इस्तेमाल करते हैं। इसे ही पत्रकारीय लेखन कहते हैं।
पूर्णकालिक पत्रकार किसी समाचार संगठन में काम करने वाला नियमित वेतन भोगी कर्मचारी होता है। लेकिन फ्रीलांसर पत्रकार का संबंध किसी खास अखबार से नहीं होता है बल्कि वह भुगतान के आधार पर अलग–अलग अखबारों के लिए लिखता है।
प्रश्न 3 – फ़ीचर लेखन का कोई निश्चित ढाँचा क्यों नहीं होता है? स्पष्ट कीजिए। (80 शब्दों में)
उत्तर – अखबारों में समाचारों के अलावा भी अन्य कई तरह का पत्रकारीय लेखन छपता है। इनमें फीचर प्रमुख है। फीचर एक सुव्यवस्थित, सृजनात्मक और आत्मनिष्ठ लेखन है जिसका उद्देश्य पाठकों को सूचना देने, शिक्षित करने के साथ मुख्य रूप से उनका मनोरंजन करना होता है।
फीचर लेखन का कोई निश्चित ढाँचा या फॉर्मूला नहीं होता है। इसलिए फीचर को कहीं से भी शुरू कर सकते हैं। हर फीचर का एक प्रारंभ, मध्य और अंत होता है। प्रारंभ आकर्षक और उत्सुकता पैदा करने वाला होना चाहिए। हालाँकि प्रारंभ, मध्य और अंत को अलग–अलग देखने के बजाय पूरे फीचर को समग्रता में देखना चाहिए लेकिन अगर फीचर का प्रारंभ आकर्षक, रोचक और प्रभावी हो तो बाकी पूरा फीचर भी पठनीय और रोचक बन सकता है।
फीचर के प्रारंभ, मध्य और अंत को सहज और स्वाभाविक तरीके से एक साथ जोड़ना किसी चुनौती से कम नहीं है। हर पैराग्राफ अपने पहले के पैराग्राफ से सहज तरीके से जुड़ा हो और शुरू से आखिर तक प्रवाह और गति बनी रहे, यह सुनिश्चित करने के लिए पैराग्राफ छोटे रखिए और एक पैराग्राफ में एक पहलू पर ही फोकस कीजिए।
प्रश्न 4 – ‘संपादक के नाम पत्र’ कॉलम से आप क्या समझते हैं? समाचार-पत्रों में इसकी क्या उपयोगिता है? (80 शब्दों में)
उत्तर – अखबारों के संपादकीय पृष्ठ पर और पत्रिकाओं की शुरुआत में संपादक के नाम पाठकों के पत्र भी प्रकाशित होते हैं। सभी अखबारों में यह एक स्थायी स्तंभ होता है। इस स्तंभ के ज़रिये अखबार के पाठक न सिर्फ विभिन्न मुद्दों पर अपनी राय व्यक्त करते हैं बल्कि जन समस्याओं को भी उठाते हैं। एक तरह से यह स्तंभ जनमत को प्रतिबिंबित करता है। ज़रूरी नहीं कि अखबार पाठकों द्वारा व्यक्त किए गए विचारों से सहमत हो। यह स्तंभ नए लेखकों के लिए लेखन की शुरुआत करने और उन्हें हाथ माँजने का भी अच्छा अवसर देता है।
प्रश्न 5 – पत्रकारीय साक्षात्कार और सामान्य बात-चीत का अंतर स्पष्ट करते हुए साक्षात्कारकर्ता के गुणों का उल्लेख कीजिए। (80 शब्दों में)
उत्तर – समाचार माध्यमों में साक्षात्कार का बहुत महत्त्व है। पत्रकार एक तरह से साक्षात्कार के ज़रिये ही समाचार, फीचर, विशेष रिपोर्ट और अन्य कई तरह के पत्रकारीय लेखन के लिए कच्चा माल इकट्टा करते हैं।
पत्रकारिय साक्षात्कार और सामान्य बातचीत में यह फर्क होता है कि साक्षात्कार में एक पत्रकार किसी अन्य व्यक्ति से तथ्य, उसकी राय और भावनाएँ जानने के लिए सवाल पूछता है।
साक्षात्कार का एक स्पष्ट मकसद और ढाँचा होता है।
एक सफल साक्षात्कार के लिए आपके पास न सिर्फ ज्ञान होना चाहिए बल्कि आपमें संवेदनशीलता, कूटनीति, धैर्य और साहस जैसे गुण भी होने चाहिए।
एक अच्छे और सफल साक्षात्कार के लिए यह ज़रूरी है कि आप जिस विषय पर और जिस व्यक्ति के साथ साक्षात्कार करने जा रहे हैं, उसके बारे में आपके पास पर्याप्त जानकारी हो।
आप साक्षात्कार से क्या निकालना चाहते हैं, इसके बारे में स्पष्ट रहना बहुत ज़रूरी है।
आपको वे सवाल पूछने चाहिए जो किसी अखबार के एक आम पाठक के मन में हो सकते हैं।
साक्षात्कार को अगर रिकार्ड करना संभव हो तो बेहतर है लेकिन अगर ऐसा संभव न हो तो साक्षात्कार के दौरान आप नोट्स लेते रहें।
साक्षात्कार को लिखते समय आप दो में से कोई भी एक तरीका अपना सकते हैं। एक – आप साक्षात्कार को सवाल और फिर जवाब के रूप में लिख सकते हैं या फिर उसे एक आलेख की तरह से भी लिख सकते हैं।
प्रश्न 6 – फीचर लेखन और समाचार लेखन की शैलियों पर विचार व्यक्त कीजिए। (80 शब्दों में)
उत्तर – फीचर समाचार की तरह पाठकों को तात्कालिक घटनाक्रम से अवगत नहीं कराता।
फीचर लेखन की शैली भी समाचार लेखन की शैली से अलग होती है।
समाचार लेखन में वस्तुनिष्ठता और तथ्यों की शुद्धता पर जोर दिया जाता है यानी समाचार लिखते हुए रिपोर्टर उसमें अपने विचार नहीं डाल सकता जबकि फीचर में लेखक के पास अपनी राय या दृष्टिकोण और भावनाएँ जाहिर करने का अवसर होता है।
फीचर लेखन में उलटा पिरामिड–शैली का प्रयोग नहीं होता यानी फीचर लेखन का कोई एक तय ढाँचा या फार्मूला नहीं होता है।
फीचर लेखन की शैली काफी हद तक कथात्मक शैली की तरह है।
फीचर लेखन की भाषा समाचारों के विपरीत सरल, रूपात्मक, आकर्षक और मन को छूनेवाली होती है।
फीचर में समाचारों की तरह शब्दों की कोई अधिकतम सीमा नहीं होती।
फीचर आमतौर पर समाचार रिपोर्ट से बड़े होते हैं। अखबारों और पत्रिकाओं में 250 शब्दों से लेकर 2000 शब्दों तक के फीचर छपते हैं।
एक अच्छे और रोचक फीचर के साथ फोटो, रेखांकन, ग्राफ़िक्स आदि का होना ज़रूरी है।
फीचर का विषय कुछ भी हो सकता है। हलके–फुलके विषयों से लेकर गंभीर विषयों और मुद्दों पर भी फीचर लिखा जा सकता है।
कुछ समाचारों को फीचर शैली में भी लिखा जाता है। लेकिन हर समाचार को फीचर शैली में नहीं लिखा जा सकता है।
प्रश्न 7 – संपादकीय लेख कौन लिखता है? समाचार पत्र-पत्रिकाओं में इसका क्या महत्त्व है? इस लेखन के साथ किसी का नाम क्यों नहीं लिखा होता? (80 शब्दों में)
उत्तर – संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित होने वाले संपादकीय को अखबार की आवाज़ माना जाता है। संपादकीय के ज़रिये अखबार किसी घटना, समस्या या मुद्दे के प्रति अपनी राय प्रकट करते हैं। संपादकीय किसी व्यक्ति विशेष का विचार नहीं होता इसलिए उसे किसी के नाम के साथ नहीं छापा जाता। संपादकीय लिखने का दायित्व उस अखबार में काम करने वाले संपादक और उनके सहयोगियों पर होता है। आमतौर पर अखबारों में सहायक संपादक, संपादकीय लिखते हैं। कोई बाहर का लेखक या पत्रकार संपादकीय नहीं लिख सकता है।
प्रश्न 8 – पत्रकारीय विशेषज्ञता का क्या अर्थ है? यह कैसे हासिल की जा सकती है? (80 शब्दों में)
उत्तर – पत्रकारिता में विशेषज्ञता का अर्थ थोड़ा अलग होता है। यहाँ विशेषज्ञता से हमारा तात्पर्य एक तरह की पत्रकारीय विशेषज्ञता से है। पत्रकारीय विशेषज्ञता का अर्थ यह है कि व्यावसायिक रूप से प्रशिक्षित न होने के बावजूद उस विषय में जानकारी और अनुभव के आधार पर अपनी समझ को इस हद तक विकसित करना कि उस विषय या क्षेत्र में घटने वाली घटनाओं और मुद्दों की आप सहजता से व्याख्या कर सकें और पाठकों के लिए उनके मायने स्पष्ट कर सकें।
किसी विषय में विशेषज्ञता हासिल करने के लिए आवश्यक है कि आप जिस भी विषय में विशेषज्ञता हासिल करना चाहते हैं, उसमें आपकी वास्तविक रुचि होनी चाहिए।
आप उच्चतर माध्यमिक (+2) और स्नातक स्तर पर उसी या उससे जुड़े विषय में पढ़ाई करें।
अपनी रुचि के विषय में पत्रकारीय विशेषज्ञता हासिल करने के लिए आपको उन विषयों से संबंधित पुस्तकें खूब पढ़नी चाहिए।
विशेष लेखन के क्षेत्र में सक्रिय लोगों के लिए खुद को अपडेट रखना बेहद ज़रूरी होता है। इसके लिए उस विषय से जुड़ी खबरों और रिपोर्टों की कटिंग करके फाइल बनानी चाहिए।
उस विषय के प्रोफेशनल विशेषज्ञों के लेख और विश्लेषणों की कटिंग भी सहेजकर रखनी चाहिए।
एक तरह से आपको उस विषय में जितनी संभव हो, संदर्भ सामग्री जुटाकर रखनी चाहिए। इसके अलावा उस विषय का शब्दकोश और इनसाइक्लोपीडिया भी आपके पास होनी चाहिए।
जिस विषय में आप विशेषज्ञता हासिल करना चाहते हैं, उससे जुड़े सरकारी और गैरसरकारी संगठनों और संस्थाओं की सूची, उनकी वेबसाइट का पता, टेलीफोन नंबर और उसमें काम करने वाले विशेषज्ञों के नाम और फोन नंबर अपनी डायरी में ज़रूर रखिए।
प्रश्न 9 – उलटा पिरामिड शैली क्या है? इसका प्रयोग कहाँ होता है? (80 शब्दों में)
अथवा
समाचार लेखन की शैली का विस्तार से वर्णन करते हुए लिखिए कि यह शैली समाचार-लेखन की मानक शैली कैसे बनी। (80 शब्दों में)
उत्तर – समाचार लेखन को उलटा पिरामिड–शैली (इंवर्टेड पिरामिड स्टाइल) के नाम से जाना जाता है। यह समाचार लेखन की सबसे लोकप्रिय, उपयोगी और बुनियादी शैली है। यह शैली कहानी या कथा लेखन की शैली के ठीक उलटी है जिसमें क्लाइमेक्स बिलकुल आखिर में आता है। इसे उलटा पिरामिड इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य या सूचना ‘यानी क्लाइमेक्स’ पिरामिड के सबसे निचले हिस्से में नहीं होती बल्कि इस शैली में पिरामिड को उलट दिया जाता है। इसका प्रयोग 19वीं सदी के मध्य से ही शुरू हो गया था लेकिन इसका विकास अमेरिका में गृहयुद्ध के दौरान हुआ। उस समय संवाददाताओं को अपनी खबरें टेलीग्राफ संदेशों के ज़रिये भेजनी पड़ती थीं जिसकी सेवाएँ महँगी, अनियमित और दुर्लभ थीं। कई बार तकनीकी कारणों से सेवा ठप्प हो जाती थी। इसलिए संवाददाताओं को किसी घटना की खबर कहानी की तरह विस्तार से लिखने के बजाय संक्षेप में देनी होती थी। इस तरह उलटा पिरामिड–शैली का विकास हुआ और धीरे–धीरे लेखन और संपादन की सुविधा के कारण यह शैली समाचार लेखन की मानक (स्टैंडर्ड) शैली बन गई।
प्रश्न 10 – विचारपरक लेखन किसे कहते हैं? इसके भेदों का उल्लेख करते हुए अख़बार को होने वाले लाभ बताइए। (80 शब्दों में)
उत्तर – अखबारों में समाचार और फीचर के अलावा विचारपरक सामग्री को भी प्रकाशित किया जाता है। कुछ अखबारों की पहचान ही उनके वैचारिक रुझान से होती है। ऐसा भी कहा जा सकता है कि विचारपूर्ण लेखन से अखबार की छवि बनती है। अखबारों में संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित होने वाले संपादकीय अग्रलेख, लेख और टिप्पणियाँ इसी विचारपरक पत्रकारीय लेखन की श्रेणी में आते हैं। इसके साथ ही विभिन्न विषयों के विशेषज्ञों या वरिष्ठ पत्रकारों के स्तंभ अर्थात कॉलम भी विचारपरक लेखन के अंतर्गत आते हैं।
प्रश्न 11 – किसी समाचार को लिखते समय मुख्यतः किन छह प्रश्नों का जवाब देना अनिवार्य होता है? उल्लेख करते हुए स्पष्ट कीजिए। (80 शब्दों में)
उत्तर – किसी समाचार को लिखते हुए मुख्यतः छह सवालों का जवाब देने की कोशिश की जाती है क्या हुआ, किसके साथ हुआ, कहाँ हुआ, कब हुआ, कैसे और क्यों हुआ? इस–क्या, किसके (या कौनद्ध), कहाँ, कब, क्यों और कैसे–को छह ककारों के रूप में भी जाना जाता है। किसी घटना, समस्या या विचार से संबंधित खबर लिखते हुए इन छह ककारों को ही ध्यान में रखा जाता है।
समाचार के मुखड़े (इंट्रो) यानी पहले पैराग्राफ या शुरुआती दो–तीन पंक्तियों में आमतौर पर तीन या चार ककारों को आधार बनाकर खबर लिखी जाती है। ये चार ककार हैं–क्या, कौन, कब और कहाँ? इसके बाद समाचार की बॉडी में और समापन के पहले बाकी दो ककारों–कैसे और क्यों–का जवाब दिया जाता है।इस तरह छह ककारों के आधार पर समाचार तैयार होता है। इनमें से पहले चार ककार–क्या, कौन, कब और कहाँ–सूचनात्मक और तथ्यों पर आधारित होते हैं जबकि बाकी दो ककारों–कैसे और क्यों–में विवरणात्मक, व्याख्यात्मक और विश्लेषणात्मक पहलू पर जोर दिया जाता है।
Related:
- Patrakariya Lekhan Ke Vibhinn Roop aur Lekhan Prakriya Summary
- Patrakariya Lekhan Ke Vibhinn Roop aur Lekhan Prakriya Question Answers
Chapter 5 – विशेष लेखन-स्वरूप और प्रकार
प्रश्न 1 – निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर देने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प का चयन कर लिखिए:
(i) ‘न्यूजपेग’ से आप क्या समझते हैं?
(a) कथात्मक शैली में लेखन
(b) आलेख की तरह लेखन
(c) केस स्टडी प्रारूप में लेखन
(d) अन्य खबर से जोड़ कर लेखन
उत्तर – (c) केस स्टडी प्रारूप में लेखन
(ii) समाचार पत्रों को सामान्य समाचारों से अलग हटकर विशेष क्षेत्रों के बारे में जानकारी क्यों देनी पड़ती है?
(a) बाजार में टिके रहने के लिए
(b) सभी तरह के विषयों पर लेखन के लिए
(c) पाठकों की रुचियों के लिए
(d) विज्ञापन प्राप्त करने के लिए
उत्तर – (c) पाठकों की रुचियों के लिए
(iii) बीट कवर करने वाले रिपोर्टर को पत्रकारिता जगत में किस नाम से बुलाते हैं?
(a) संवाददाता
(b) अंशकालिक पत्रकार
(c) पूर्णकालिक पत्रकार
(d) फ्रीलांस पत्रकार
उत्तर – (a) संवाददाता
(iv) संचार का सबसे प्राचीन माध्यम कौन-सा है?
(a) रेडियो
(b) दूरदर्शन
(c) सिनेमा
(d) समाचार-पत्र
उत्तर – (d) समाचार-पत्र
(v) दूरदर्शन के लिए ख़बर लिखने की बुनियादी शर्त आप किसे मानते हैं?
(a) सरल भाषा में लेखन
(b) दृश्य
(c) कम शब्दों में लेखन के साथ लेखन
(d) ख़बर बताते हुए लेखन
उत्तर – (a) सरल भाषा में लेखन
(vi) खेल जगत से जुड़ी शब्दावली का उदाहरण है:
(a) स्टाकिस्टों की चौतरफा बिकवाली
(b) मलेशिया ने जर्मनी के आगे घुटने टेके
(c) चाँदी की चमक हुई फीकी
(d) सेंसेक्स आसमान पर
उत्तर – (b) मलेशिया ने जर्मनी के आगे घुटने टेके
(vii) संवाददाताओं की रुचियों और ज्ञान को ध्यान में रखकर किया गया कार्य विभाजन मीडिया की भाषा में क्या कहलाता है?
(a) डेड लाइन
(b) एंकर बाइट
(c) बीट
(d) डेस्क
उत्तर – (c) बीट
(viii) विशेष लेखन की भाषा शैली किस तरह की होती है?
(a) सामान्य लेखन की तरह
(b) समाचार लेखन की तरह
(c) सामान्य लेखन से अलग
(d) आलंकारिक भाषा का प्रयोग
उत्तर – (c) सामान्य लेखन से अलग
प्रश्न 2 – लेखन से आप क्या समझते हैं? लेखन के लिए अभ्यास क्यों आवश्यक है और कैसे? (60 शब्दों में)
उत्तर – विशेष लेखन अर्थात किसी खास विषय पर सामान्य लेखन से हटकर किया गया लेखन। विशेष लेखन केवल बीट रिपोर्टिंग नहीं है। यह बीट रिपोर्टिंग से आगे एक तरह की विशेषीकृत रिपोर्टिंग है जिसमें न सिर्फ़ उस विषय की गहरी जानकारी होनी चाहिए बल्कि उसकी रिपोर्टिंग से संबंधित भाषा और शैली पर भी आपका पूरा अधिकार होना चाहिए। सामान्य बीट रिपोर्टिंग के लिए भी एक पत्राकार को काफी तैयारी करनी पड़ती है। उदाहरण के तौर पर जो पत्राकार राजनीति में दिलचस्पी रखते हैं या किसी खास राजनीतिक पार्टी को कवर करते है तो पत्राकार को उस पार्टी के भीतर गहराई तक अपने संपर्क बनाने चाहिए और खबर हासिल करने के नए–नए स्रोत विकसित करने चाहिए। किसी भी स्रोत या सूत्र पर आँख मूँदकर भरोसा नहीं करना चाहिए और जानकारी की पुष्टि कई और स्रोतों के ज़रिये भी करनी चाहिए। यानी उस पत्राकार को ज्यादा से ज़्यादा समय अपने क्षेत्र के बारे में हर छोटी बड़ी जानकारी इकट्टी करने में बिताना पड़ता है तभी वह उस बारे में विशेषज्ञता हासिल कर सकता है और उसकी रिपोर्ट या खबर विश्वसनीय मानी जाती है।
प्रश्न 3 – विशेष लेखन के कई क्षेत्र होते हैं। किन्हीं दो क्षेत्रों का उल्लेख करते हुए उसकी आवश्यकता पर विचार व्यक्त कीजिए। (80 शब्दों में)
उत्तर – विशेष लेखन के क्षेत्र –
अर्थ-व्यापार, खेल, विज्ञान-प्रौद्योगिकी, कृषि, विदेश, रक्षा, पर्यावरण, शिक्षा, स्वास्थ्य, फ़िल्म-मनोरंजन ,अपराध, सामाजिक मुद्दे, कानून, आदि।
अर्थ-व्यापार = धन हर व्यक्ति के जीवन का एक महत्वपूर्ण आधार है। हमारा कोई भी कार्य, बाजार से कोई वस्तु खरीदना, बैंक में पैसे जमा करना, किसी तरह की कोई बचत करना, किसी व्यापार को करने के बारे में सोचना, आर्थिक धन लाभ-हानि के बारे में विचार करना आदि अर्थ व्यवस्था से जुड़ी चीजें हैं। इनका हमारे दैनिक जीवन में बहुत महत्त्व है।
खेल = खेल एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें छोटे बड़े, युवा-वृद्ध सभी की रूचि होती है। हम सभी में कोई न कोई खिलाड़ी छुपा होता है जिसे हम अपने जीवन की व्यस्थता के कारण छुपाए ही रखते हैं। परन्तु खेलों में जो दिलचस्पी होती है वह विभिन्न तरह की खेल प्रतियोगिताओं के दौरान देखने को मिलती है। खेल हमारे सर्वांगीण विकास में अहम भूमिका निभाता है।
प्रश्न 4 – पत्रकारिता जगत में ‘बीट’ से आप क्या समझते हैं? बीट रिपोर्टिंग के लिए एक पत्रकार को क्या तैयारी करनी पड़ती है? (80 शब्दों में)
उत्तर – खबरें भी कई तरह की होती हैं–राजनीतिक, आर्थिक, अपराध, खेल, फ़िल्म, कृषि, कानून, विज्ञान या किसी भी और विषय से जुड़ी हुई। संवाददाताओं के बीच काम का विभाजन आमतौर पर उनकी दिलचस्पी और ज्ञान को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। मीडिया की भाषा में इसे बीट कहते हैं। एक संवाददाता की बीट अगर अपराध है तो इसका अर्थ यह है कि उसका कार्यक्षेत्र अपने शहर या क्षेत्र में घटनेवाली आपराधिक घटनाओं की रिपोर्टिंग करना है। अखबार की ओर से वह इनकी रिपोर्टिंग के लिए जिम्मेदार और जवाबदेह भी है।
सामान्य बीट रिपोर्टिंग के लिए भी एक पत्राकार को काफी तैयारी करनी पड़ती है। उदाहरण के तौर पर जो पत्राकार राजनीति में दिलचस्पी रखते हैं या किसी खास राजनीतिक पार्टी को कवर करते है तो पत्राकार को उस पार्टी के भीतर गहराई तक अपने संपर्क बनाने चाहिए और खबर हासिल करने के नए–नए स्रोत विकसित करने चाहिए। किसी भी स्रोत या सूत्र पर आँख मूँदकर भरोसा नहीं करना चाहिए और जानकारी की पुष्टि कई और स्रोतों के ज़रिये भी करनी चाहिए। यानी उस पत्राकार को ज्यादा से ज़्यादा समय अपने क्षेत्र के बारे में हर छोटी बड़ी जानकारी इकट्टी करने में बिताना पड़ता है तभी वह उस बारे में विशेषज्ञता हासिल कर सकता है और उसकी रिपोर्ट या खबर विश्वसनीय मानी जाती है।
प्रश्न 5 – संवाददाता और विशेष संवाददाता के अंतर को समझाइए। (80 शब्दों में)
उत्तर – अपनी बीट की रिपोर्टिंग के लिए संवाददाता में उस क्षेत्र के बारे में जानकारी और दिलचस्पी का होना पर्याप्त है। इसके अलावा एक बीट रिपोर्टर को आमतौर पर अपनी बीट से जुड़ी सामान्य खबरें ही लिखनी होती हैं। लेकिन विशेषीकृत रिपोर्टिंग का तात्पर्य यह है कि आप सामान्य खबरों से आगे बढ़कर उस विशेष क्षेत्र या विषय से जुड़ी घटनाओं, मुद्दों और समस्याओं का बारीकी से विश्लेषण करें और पाठकों के लिए उसका अर्थ स्पष्ट करने की कोशिश करें। जैसे अगर शेयर बाजार में भारी गिरावट आती है तो उस बीट पर रिपोर्टिंग करने वाला संवाददाता उसकी एक तथ्यात्मक रिपोर्ट तैयार करेगा, जिसमें सभी ज़रूरी सूचनाएँ और तथ्य शामिल होंगे। लेकिन विशेषीकृत रिपोर्टिंग करने वाला संवाददाता इसका विश्लेषण करके यह स्पष्ट करने की कोशिश करेगा कि बाजार में गिरावट क्यों और किन कारणों से आई है और इसका आम निवेशकों पर क्या असर पडे़गा। यही कारण है कि बीट कवर करने वाले रिपोर्टर को संवाददाता और विशेषीकृत रिपोर्टिंग करने वाले रिपोर्टर को विशेष संवाददाता का दर्जा दिया जाता है।
प्रश्न 6 – पत्रकारिता के क्षेत्र में विशेष लेखन से क्या अभिप्राय है? विशेष लेखन की भाषा और शैली सामान्य लेखन से अलग क्यों होती है? (80 शब्दों में)
उत्तर – विशेष लेखन अर्थात किसी खास विषय पर सामान्य लेखन से हटकर किया गया लेखन। अधिकतर समाचारपत्रों और पत्रिकाओं के अलावा टी.वी. और रेडियो चैनलों में विशेष लेखन के लिए अलग डेस्क होता है और उस विशेष डेस्क पर काम करने वाले पत्राकारों का समूह भी अलग होता है।
विशेष लेखन का संबंध जिन विषयों और क्षेत्रों से है, उनमें से अधिकांश तकनीकी रूप से जटिल क्षेत्र हैं और उनसे जुड़ी घटनाओं और मुद्दों को समझना आम पाठकों के लिए कठिन होता है। इसलिए इन क्षेत्रों में विशेष लेखन की ज़रूरत पड़ती है जिससे पाठकों को समझने में मुश्किल न हो। विशेष लेखन की भाषा और शैली कई मामलों में सामान्य लेखन से अलग है। उनके बीच सबसे बुनियादी फर्क यह है कि हर क्षेत्र विशेष की अपनी विशेष तकनीकी शब्दावली होती है जो उस विषय पर लिखते हुए आपके लेखन में आती है।
विशेष लेखन की कोई निश्चित शैली नहीं होती। लेकिन अगर आप अपने बीट से जुड़ा कोई समाचार लिख रहे हैं तो उसकी शैली उलटा पिरामिड शैली ही होगी। लेकिन अगर आप समाचार फीचर लिख रहे हैं तो उसकी शैली कथात्मक हो सकती है। इसी तरह अगर आप लेख या टिप्पणी लिख रहे हों तो इसकी शुरुआत भी फीचर की तरह हो सकती है। आप शैली कोई भी अपनाएँ लेकिन मूल बात यह है कि किसी खास विषय पर लिखा गया आपका आलेख सामान्य लेख से अलग होना चाहिए।
Related:
Chapter 11 – कैसे करें कहानी का नाट्य रूपांतरण
प्रश्न 1 – कहानी के नाट्य रूपांतरण में संवाद लेखन की महत्त्वपूर्ण शर्तों को स्पष्ट कीजिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – दृश्य निर्धारित हो जाने पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि दृश्य की सभी आवश्यकताओं को पूरा करने वाले तथा दृश्य के क्रमिक विकास को सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त संवाद हैं या नहीं। यदि पर्याप्त संवाद नहीं हैं तो उन्हें लिखने का काम किया जाता है।
सबसे पहली और महत्त्वपूर्ण शर्त यह है कि नए लिखे संवाद, कहानी के मूल संवादों के साथ मेल खाते हों।
दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह कि उनके लिखे जाने का सौ प्रतिशत औचित्य हो।
तीसरी बात जो ध्यान में रहे वह यह है कि संवाद छोटे, प्रभावशाली और बोलचाल की भाषा में हों। कहानी में छपे लंबे संवाद को पाठक पढ़ सकता है लेकिन मंच पर बोले गए लंबे संवाद से तारतम्य बनाए रख पाना कठिन होता है।
प्रश्न 2 – कहानी और नाटक में पाई जाने वाली समानताओं और असमानताओं का उल्लेख कीजिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – कहानी का नाटक में रूपांतरण करने के लिए सबसे पहले कहानी और नाटक में विविधता या अनेकता तथा समानताओं को समझना आवश्यक है। इसके लिए हमें नाटक की विशेषताओं को समझना होगा। जहाँ कहानी का संबंध लेखक और पाठक से जुड़ता है वहीं नाटक लेखक, निर्देशक, पात्र, दर्शक, श्रोता एवं अन्य लोगों को एक–दूसरे से जोड़ता है। क्योंकि दृश्य का स्मृतियों से गहरा संबंध होता है इसलिए नाटक एवं फ़िल्म को लोग देर तक याद रखते हैं। यही कारण है कि गोदान, देवदास, उसने कहा था, सद्गति आदि के नाट्य रूपांतरण कई बार हुए हैं और कई तरह से हुए हैं।
कहानी कही जाती है या पढ़ी जाती है। नाटक मंच पर प्रस्तुत किया जाता है। नाटक को मंच पर अभिनेता अभिनय द्वारा प्रस्तुत करते हैं। मंच सज्जा होती है, संगीत होता है, प्रकाश व्यवस्था होती है। समानता यह होती है कि कहानी और नाटक दोनों में एक कहानी होती है, पात्र होते हैं, परिवेश होता है, कहानी का क्रमिक विकास होता है, संवाद होते हैं, द्वंद्व होता है, चरम उत्कर्ष होता है।
प्रश्न 3 – कहानी और नाटक में क्या-क्या समानताएँ होती हैं? (60 शब्दों में)
उत्तर – कहानी और नाटक में निम्नलिखित समानताएँ हैं –
कहानी का मूलाधार कथानक होता है, नाटक भी कथानक पर ही आधारित होता है।
कहानी में घटनाएँ क्रमबद्ध रहती हैं, नाटक में भी घटनाओं का वर्णन क्रमबद्ध रूप में होता है।
कहानी में पात्रों की मुख्य भूमिका होती है, नाटक की रचना में भी पात्रों का मुख्य स्थान होता है।
कहानी में एक परिवेश रहता है, नाटक में भी परिवेश होता है।
कहानी में पात्रों के मध्य द्वंद्व होता है, नाटक के पात्रों के मध्य भी द्वंद्व दिखाया जाता है।
कहानी उद्देश्य विशेष को लेकर चलती है, नाटक भी उद्देश्य विशेष को लेकर ही लिखा जाता है।
कहानी का चर्मोत्कर्ष होता है, नाटक का भी चर्मोत्कर्ष होता है।
प्रश्न 4 – कहानी का नाट्य रूपांतरण करते समय हमें किस प्रकार की सावधानियाँ रखनी चाहिए? (60 शब्दों में)
अथवा
कथावस्तु का नाट्य रूपांतरण करते समय दृश्य किस आधार पर विभाजित किए जाते हैं? (60 शब्दों में)
उत्तर – कहानी को नाटक में रूपांतरित करने के लिए सबसे पहले कहानी की विस्तृत कथावस्तु को समय और स्थान के आधार पर विभाजित किया जाता है। कथावस्तु उन घटनाओं का लेखा–जोखा है जो कहानी में घटती है। प्रत्येक घटना किसी स्थान पर किसी समय में घटती है। ऐसा भी संभव है कि घटना स्थान तथा समयविहीन हो। कहानी की कथावस्तु (कथानक) को सामने रखकर एक–एक घटना को चुन–चुनकर निकाला जाता है और उसके आधार पर दृश्य बनता है। तात्पर्य यह कि यदि एक घटना एक स्थान और एक समय में घट रही है तो वह एक दृश्य होगा।
स्थान और समय के आधार पर कहानी का विभाजन करके दृश्यों को लिखा जा सकता है। प्रत्येक दृश्य का कथानक के अनुसार औचित्य हो।
प्रत्येक दृश्य एक बिंदु से प्रारंभ होता है। कथानुसार अपनी आवश्यकताएँ पूरी करता है और उसका ऐसा अंत होता है जो उसे अगले दृश्य से जोड़ता है।
ऐसा हो सकता है कि कुछ ऐसे दृश्य बनते हों जिनमें लेखक ने केवल विवरण दिया हो और उसमें कोई संवाद न हो। ऐसे दृश्यों का भी पूरा खाका तैयार कर लेना चाहिए। यह अवश्य देखना चाहिए कि जानकारियाँ, सूचनाएँ और घटनाएँ दोहराई न गई हों।
दृश्य निर्धारित करने के बाद दृश्यों और मूल कहानी को पढ़ने से यह अनुमान लग सकता है कि मूल कहानी में ऐसा क्या है जो दृश्यों में नहीं आया है।
लेखक द्वारा परिवेश का विवरण या परिस्थितियों पर टिप्पणियाँ प्रायः दृश्यों में नहीं ढल पातीं। यह देखना आवश्यक है कि परिस्थिति, परिवेश, पात्र, कथानक से संबंधित विवरणात्मक टिप्पणियाँ किस प्रकार की हैं।
प्रश्न 5 – कहानी के वे कौन-से तत्त्व हैं जो नाट्य रूपांतरण करते समय दृश्यों में नहीं ढल पाते? इन्हें नाटक में किस प्रकार स्थान दिया जा सकता है? (60 शब्दों में)
उत्तर – कहानी में चरित्र–चित्रण अलग प्रकार से किया जाता है और नाटक में उसकी विधि कुछ बदल जाती है। रूपांतरण करते समय कहानी के पात्रों की दृश्यात्मकता और नाटक के पात्रों में उसका प्रयोग किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए प्रेमचंद ने ईदगाह में मेले में जाते हामिद के कपड़ों का जिक्र नहीं किया है और न ही अन्य लड़कों के बारे में कुछ लिखा है परंतु कहानी से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि हामिद नंगे पैर होगा, उसके कुर्ते में पैबंद लगे होंगे जबकि अन्य लड़कों के कपड़े उनकी अच्छी आर्थिक स्थिति के सूचक होंगे।
विभिन्न प्रकार के विवरणों को नाटक में स्थान देने के अलग–अलग तरीके हैं। उदाहरण के लिए विवरणात्मक टिप्पणी यदि परिवेश के बारे में है तो उसे मंच सज्जा के अंतर्गत लिया जा सकता है या पार्श्व संगीत के माध्यम से व्यक्त किया जा सकता है। विवरण यदि पात्रों के बारे में है तो उन्हें संवादों के माध्यम से निर्धारित दृश्यों में उचित स्थान पर दिया जा सकता है। कहने का तात्पर्य यह है कि कहानी में व्यक्त महत्त्वपूर्ण सूत्र नाटक के स्वरूप के अनुसार अपनी जगह निर्धारित कर लेते हैं।
प्रश्न 6 – कहानी को नाटक में रूपांतरित करने हेतु किन्हीं तीन आवश्यक बिंदुओं का उल्लेख कीजिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – कहानी को नाटक में रूपांतरित करने के लिए सबसे पहले कहानी की विस्तृत कथावस्तु को समय और स्थान के आधार पर विभाजित किया जाता है। कथावस्तु उन घटनाओं का लेखा–जोखा है जो कहानी में घटती है।
प्रत्येक घटना किसी स्थान पर किसी समय में घटती है। ऐसा भी संभव है कि घटना स्थान तथा समयविहीन हो।
कहानी की कथावस्तु (कथानक) को सामने रखकर एक–एक घटना को चुन–चुनकर निकाला जाता है और उसके आधार पर दृश्य बनता है। तात्पर्य यह कि यदि एक घटना एक स्थान और एक समय में घट रही है तो वह एक दृश्य होगा।
Related:
- Kaise Kare Kahani Ka Natya Rupantaran Summary
- Kaise Kare Kahani Ka Natya Rupantaran Question Answers
Chapter 12 – कैसे बनता है रेडियो नाटक
प्रश्न 1 – क्या किसी नाटक का दृश्य कथानक का हिस्सा होता है, कैसे? (60 शब्दों में)
उत्तर – एक नाटक का कथानक एक नाटक में होने वाली घटनाओं के क्रम को संदर्भित करता है। वास्तव में, एक कथानक विचार की श्रृंखला की बुनाई है और घटनाओं के सिलसिले में यह बताता है कि इसका अर्थ क्या होता है। कथानक द्वारा उत्पन्न अभिरुचि में विभिन्न प्रकार के नाटकों के लिए इसके क्रेज़ और गर्त हैं। नाटक को हमेशा एक रेखीय संरचना में प्रस्तुत नहीं करना पड़ता है। एक नाटक के पात्र भी कथानक का हिस्सा होते हैं क्योंकि वे एक्शन की शुरुआत करते हैं, एक्शन प्वॉइसेस वह घटनाओं के लिए अंत में एक कथानक में रूपांतरित होते हैं। नाटक की विषयवस्तु उन विषयों पर आधारित है जो इसके साथ काम करते हैं।
प्रश्न 2 – रेडियो नाटक के लिए कहानी का चुनाव एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है, कैसे? (60 शब्दों में)
उत्तर – रेडियो नाटक के लिए कहानी का चुनाव एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि रेडियो नाटक में विजुअल्स अर्थात दृश्य नहीं होते। रेडियो पूरी तरह से श्रव्य माध्यम है इसीलिए रेडियो नाटक का लेखन सिनेमा व रंगमंच के लेखन से थोड़ा भिन्न भी है और थोड़ा मुश्किल भी। पूरी कहानी को संवादों और ध्वनि प्रभावों के माध्यम से संप्रेषित करना होता है। रेडियो नाटक के लिए कहानी का चुनाव करते समय हमें तीन मुख्य बातों का खयाल रखना है –
कहानी आपकी मौलिक हो या चाहे किसी और स्रोत से ली हुई। उसमें निम्न बातों का ध्यान ज़रूर रखना होगा जैसे कहानी ऐसी न हो जो पूरी तरह से एक्शन अर्थात हरकत पर निर्भर करती हो। क्योंकि रेडियो पर बहुत ज़्यादा एक्शन सुनाना उबाऊ हो सकता है।
प्रश्न 3 – रेडियो नाटक और सिनेमा में क्या भिन्नता होती है? (60 शब्दों में)
अथवा
“रेडियो नाटक का लेखन सिनेमा और रंगमंच के लेखन से थोड़ा भिन्न भी है और थोड़ा मुश्किल भी” – कैसे? तर्क सहित उत्तर दीजिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – सिनेमा और रंगमंच की तरह रेडियो नाटक में भी चरित्र होते हैं उन चरित्रों के आपसी संवाद होते हैं और इन्हीं संवादों के ज़रिये आगे बढ़ती है कहानी। बस सिनेमा और रंगमंच की तरह रेडियो नाटक में विजुअल्स अर्थात दृश्य नहीं होते। यही सबसे बड़ा अंतर है, रेडियो नाटक तथा सिनेमा या रंगमंच के माध्यम में। रेडियो पूरी तरह से श्रव्य माध्यम है इसीलिए रेडियो नाटक का लेखन सिनेमा व रंगमंच के लेखन से थोड़ा भिन्न भी है और थोड़ा मुश्किल भी। आपको सब कुछ संवादों और ध्वनि प्रभावों के माध्यम से संप्रेषित करना होता है। यहाँ आपकी सहायता के लिए न मंच सज्जा तथा वस्त्र सज्जा है और न ही अभिनेता के चेहरे की भाव–भंगिमाएँ। वरना बाकी सब कुछ वैसा ही है। एक कहानी, कहानी का वही ढाँचा, शुरुआत–मध्य–अंत, इसे यूँ भी कह सकते हैं, परिचय–द्वंद्व–समाधान। बस ये सब होगा आवाज़ के माध्यम से। रेडियो नाटक की अवधि ही सीमित है, तो फिर अपने–आप ही पात्रों की संख्या भी सीमित हो जाएगी। क्योंकि श्रोता सिर्फ आवाज़ के सहारे चरित्रों को याद रख पाता है, ऐसी स्थिति में रेडियो नाटक में यदि बहुत ज़्यादा किरदार हैं तो उनके साथ एक रिश्ता बनाए रखने में श्रोता को दिक्कत होगी।
प्रश्न 4 – रेडियो पर किस तरह के कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं? 19वीं शताब्दी में इसकी लोकप्रियता का क्या कारण था? (60 शब्दों में)
उत्तर – आज से कुछ दशक पहले एक ज़माना ऐसा भी था, जब दुनिया में न टेलीविज़न था, न कंप्यूटर। सिनेमा हॉल और थिएटर थे तो, लेकिन उनकी संख्या आज के मुकाबले काफी कम होती थी और एक आदमी के लिए वे आसानी से उपलब्ध भी नहीं थे। ऐसे समय में घर में बैठे मनोरंजन का जो सबसे सस्ता और सहजता से प्राप्त साधन था, वो था–रेडियो। रेडियो पर खबरें आती थीं, ज्ञानवर्धक कार्यक्रम आते थे, खेलों का आँखों देखा हाल प्रसारित होता था, एफ.एम चैनलों की तरह गीत–संगीत की भरमार रहती थी। टी.वी. धारावाहिकों और टेलीफिल्मों की कमी को पूरा करते थे, रेडियो पर आने वाले नाटक। हिंदी साहित्य के तमाम बड़े नाम, साहित्य रचना के साथ–साथ रेडियो स्टेशनों के लिए नाटक भी लिखते थे। उस समय यह बड़े सम्मान की बात मानी जाती थी। हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं के नाट्य आंदोलन के विकास में रेडियो नाटक की अहम भूमिका रही है। हिंदी के कई नाटक जो बाद में मंच पर भी बेहद कामयाब रहे, मूलतः रेडियो के लिए लिखे गए थे। धर्मवीर भारती कृत अंधा युग और मोहन राकेश का आषाढ़ का एक दिन इसके श्रेष्ठ उदाहरण हैं।
प्रश्न 5 – रेडियो नाटक के लिए संवाद लिखते समय क्या सावधानी बरतनी चाहिए? (60 शब्दों में)
उत्तर – रेडियो नाटक के लिए संवाद लिखते समय निम्नलिखित सावधानी बरतनी चाहिए –
नाट्य आंदोलन के विकास में रेडियो नाटक की अहम भूमिका रही है!
सिनेमा और रंगमंच की तरह रेडियो एक दृश्य माध्यम नहीं, श्रव्य माध्यम है।
रेडियो की प्रस्तुति संवादों और ध्वनि प्रभावों के माध्यम से होती है।
फिल्म की तरह रेडियो में एक्शन की गुंजाइश नहीं होती।
चूँकि रेडियो नाटक की अवधि सीमित होती है इसलिए पात्रों की संख्या भी सीमित होती है क्योंकि सिर्फ आवाज़ के सहारे पात्रों को याद रख पाना मुश्किल होता है।
पात्र संबंधी विविध जानकारी संवाद एवं ध्वनि संकेतों से उजागर होती है।
प्रश्न 6 – रेडियो नाटक में आवाज की भूमिका को स्पष्ट कीजिए। (60 शब्दों में)
उत्तर – रेडियो नाटक के शुरू में हमने अंक या दृश्य की जगह कट/हिस्सा लिखा है। दरअसल रेडियो नाटक में दृश्य नहीं होता, इसीलिए उसकी बजाय अंग्रेज़ी शब्द ‘कट’ लिखने की परिपाटी है। वैसे ये इतना महत्त्वपूर्ण नहीं है, आप अलग–अलग दृश्यों या हिस्सों को अपने तरीके से दर्शा सकते हैं। महत्त्वपूर्ण हैं–संवाद और ध्वनि प्रभाव। शुरू में ही ध्वनि प्रभावों से जंगल या किसी खुली जगह का संकेत दे दिया है, फिर राम भी अपने संवाद में कहता है–कितना भयानक जंगल है। अर्थात ये लोग इस समय जंगल में हैं ये बात श्रोता को मालूम हो गई है, अब श्याम अपने अगले संवाद में–इत्ती रात हो गई अर्थात स्थान–जंगल, समय–रात। अगर समय और ज़्यादा स्पष्ट करना है, तो श्याम का संवाद कुछ इस प्रकार हो सकता था–रात के बारह बज गए हैं, घर में अम्मा–बाबू सब परेशान होंगे। तात्पर्य यह है कि संवादों के द्वारा दृश्य का देश काल स्थापित कर सकते हैं, बस शर्त यह है कि वो स्वाभाविक होना चाहिए, ज़बरदस्ती ठूँसा हुआ न लगे।
Related:
Chapter 13 – नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन
प्रश्न 1 – नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन की तुलना खुले मैदान से क्यों की गई है? (60 शब्दों में)
उत्तर – नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन में विषय दो खंभों के बीच बंधी रस्सी की तरह नहीं होता, जिस पर चलते हुए हम एक कदम भी इधर–उधर रखने का जोखिम नहीं उठा सकते। वह तो खुले मैदान की तरह होता है, जिसमें बेलाग दौड़ने, कूदने और कुलाँचे भरने की छूट होती है। असल में ऐसे विषय के साहचर्य से जो भी सार्थक और सुसंगत विचार हमारे मन में आते हैं, उन्हें हम यहाँ व्यक्त कर सकते हैं। अपेक्षाकृत स्पष्ट फोकस वाले विषय मिलने पर (मसलन, टी.वी. धारावाहिकों में स्त्री) इस विचार–प्रवाह को थोड़ा नियंत्रित रखना पड़ता है। इन पर लिखते हुए विषय में व्यक्त वस्तुस्थिति की हम उपेक्षा नहीं कर सकते।
बहुत खुलापन रखने वाले विषयों पर अगर हम शताधिक कोणों से विचार कर सकते हैं, तो उनसे भिन्न, किंचित केंद्रित प्रकृति के विषयों पर विचार करने के कोण स्वाभाविक रूप से थोड़े कम होते हैं।
प्रश्न 2 – अच्छे लेखन के लिए सुसंबद्ध होने के साथ-साथ उसका सुसंगत होना क्यों आवश्यक है? (60 शब्दों में)
उत्तर – वस्तुतः सुसंबद्धता किसी भी तरह के लेखन का एक बुनियादी नियम है। खासतौर से, जब विषय पर विचार करने की चौहद्दियाँ बहुत सख्ती से तय न कर दी गई हों, उस सूरत में सुसंबद्धता बनाए रखने के लिए कोशिश करनी पड़ती है। विवरण–विवेचन के सुसंबद्ध होने के साथ–साथ उसका सुसंगत होना भी अच्छे लेखन की एक खासियत है। आपकी कही गई बातें न सिर्फ आपस में जुड़ी हुई हों, बल्कि उनमें तालमेल भी हो। अगर आपकी दो बातें आपस में ही एक–दूसरे का खंडन करती हों, तो यह लेखन का ही नहीं, किसी भी तरह की अभिव्यक्ति का एक अक्षम्य दोष है। लेख–चाहे संस्मरणात्मक हो, रेखाचित्रात्मक हो अथवा वैचारिक, उसकी सुसंबद्धता और सुसंगति के प्रति हर लेखक को सचेत होना चाहिए। वैसे हमारे सोचने की प्रक्रिया स्वाभाविक रूप से इन गुणों को धारण करती ही है, फिर भी सचेत न रहने पर, संभव है, ये गुण कहीं–कहीं नदारद हो जाएँ!
प्रश्न 3 – क्या नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन की कोई तकनीक हो सकती है? इन्हें लिखते समय क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए? (60 शब्दों में)
उत्तर – यह सत्य है कि लिखने का कोई फार्मूला आज तक दुनिया में नहीं बना। अगर फॉर्मूला होता, तो कंप्यूटर हमारे मुकाबले बेहतर लेखक साबित हो सकता था। कुछ ऐसे सुझाव दिए जा सकते हैं, जो अचानक सामने आए विषय से मुखामुखम होने में मददगार साबित हो सकते हैं।
इस तरह के लेखन में विषय दो खंभों के बीच बंधी रस्सी की तरह नहीं होता, जिस पर चलते हुए हम एक कदम भी इधर–उधर रखने का जोखिम नहीं उठा सकते। वह तो खुले मैदान की तरह होता है, जिसमें बेलाग दौड़ने, कूदने और कुलाँचे भरने की छूट होती है।
असल में ऐसे विषय के साहचर्य से जो भी सार्थक और सुसंगत विचार हमारे मन में आते हैं, उन्हें हम यहाँ व्यक्त कर सकते हैं।
अपेक्षाकृत स्पष्ट फोकस वाले विषय मिलने पर (मसलन, टी.वी. धारावाहिकों में स्त्री) इस विचार–प्रवाह को थोड़ा नियंत्रित रखना पड़ता है। इन पर लिखते हुए विषय में व्यक्त वस्तुस्थिति की हम उपेक्षा नहीं कर सकते।
बहुत खुलापन रखने वाले विषयों पर अगर हम शताधिक कोणों से विचार कर सकते हैं, तो उनसे भिन्न, किंचित केंद्रित प्रकृति के विषयों पर विचार करने के कोण स्वाभाविक रूप से थोड़े कम होते हैं।
किसी भी विषय पर एक ही व्यक्ति के ज़ेहन में कई तरीकों से सोचने की प्रवृत्ति होती है। ऐसी स्थिति अगर आपके साथ हो, तो सबसे पहले दो–तीन मिनट ठहर कर यह तय कर लें कि उनमें से किस कोण से उभरनेवाले विचारों को आप थोड़ा विस्तार दे सकते हैं। यह तय कर लेने के बाद एक आकर्षक–सी शुरुआत पर विचार करें।
शुरुआत आकर्षक होने के साथ–साथ निर्वाह–योग्य भी हो। ऐसा न हो कि जो कुछ कहना चाहते हैं, उसे प्रस्थान के साथ सुसंबद्ध और सुसंगत रूप में पिरो पाना मुमकिन ही न हो।
शुरुआत से आगे बात कैसे सिलसिलेवार बढ़ेगी, इसकी एक रूपरेखा ज़ेहन में होनी चाहिए। वस्तुतः सुसंबद्धता किसी भी तरह के लेखन का एक बुनियादी नियम है। खासतौर से, जब विषय पर विचार करने की चौहद्दियाँ बहुत सख्ती से तय न कर दी गई हों, उस सूरत में सुसंबद्धता बनाए रखने के लिए कोशिश करनी पड़ती है।
प्रश्न 4 – इलेक्ट्रॉनिक माध्यम और प्रिंट माध्यम में क्या अंतर है? स्पष्ट कीजिए। (80 शब्दों में)
उत्तर – इलेक्ट्रॉनिक मीडिया उन सभी माध्यमों को कहते हैं जो इलेक्ट्रॉनिक तकनीक का उपयोग करके विभिन्न प्रकार की जानकारी, समाचार, मनोरंजन आदि को सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से उपयोगकर्ताओं तक पहुंचाते हैं। इसमें टेलीविजन, रेडियो, इंटरनेट आदि शामिल होते हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का उपयोग आधुनिक दुनिया में बढ़ता जा रहा है और यह संचार का एक महत्वपूर्ण साधन है। इसमें समाचार, मनोरंजन, शिक्षा, व्यापार, संचार आदि के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह भी समझा जाता है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से संचार को आसान बनाया गया है, जो उपयोगकर्ताओं को दुनिया की विभिन्न विषयों से अवगत करवाता है।
प्रिंट मीडिया एक ऐसा साधन हैंं जो ख़बरों का आदान प्रदान लिखित रूप से या चित्रण के माध्यम से करता हैंं और जिसके लिए रीडर को पे भी करना होता हैं, यह हमें पत्रिका या समाचार पत्र के माध्यम से देश-विदेश की खबरें देकर हमें अपडेट करता हैं। प्रिंट मीडिया, मीडिया का एक महत्वपूर्ण भाग है जिसने इतिहास के सभी पहलुओं को दर्शाने में मदद की है।
Related: