CBSE Class 12 Hindi Core Chapter-wise Previous Years Questions (2024) with Solution

 

Class 12 Hindi Core Question Paper (2024) – Solved Question papers from previous years are very important for preparing for the CBSE Board Exams. It works as a treasure trove. It helps to prepare for the exam precisely. One of key benefits of solving question papers from past board exams is their ability to help identify commonly asked questions. These papers are highly beneficial study resources for students preparing for the upcoming class 12th board examinations. Here we have compiled chapter-wise questions asked in all the sets of CBSE Class 12 Hindi Core question paper (2024).

 

Aroh Bhag 2 Book Lesson

Chapter 1 – आत्मपरिचय, एक गीत

 

प्रश्न 1 – ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ – कविता के आधार पर बताइए कि चिड़ियों के परों में चंचलता आने के क्या कारण हो सकते हैं ।(40 शब्दों में)

उत्तर – चिड़ियाँ भी दिन ढलने पर चंचल अर्थात अत्यधिक क्रियाशील हो उठती हैं। वे जितनी जल्दी हो सके अपने घोंसलों में पहुँचना चाहती हैं क्योंकि उन्हें ध्यान आता है कि उनके बच्चे भोजन की आशा में घोंसलों से बाहर झाँक रहे होंगे। यह ध्यान आते ही वे अपने पंखों को तेजी से चलती है क्योंकि दिन जल्दी जल्दी ढल रहा है और वे जल्दी-जल्दी अपने घोंसलों में पहुँच जाना चाहती हैं।

 

प्रश्न 2 – ‘हो जाए न पथ में रात कहीं’ – इस काव्य पंक्ति में कवि ने किस पथ की ओर संकेत किया है ? कवि ने ‘रात’ शब्द का प्रयोग करके कौन-सी आशंका व्यक्त की है ? (40 शब्दों में)

उत्तर – ‘हो जाए न पथ में रात कहीं’ – इस काव्य पंक्ति में कवि ने लक्ष्य प्राप्ति के पथ की ओर संकेत किया है। कवि ने ‘रात’ शब्द का प्रयोग करके लक्ष्य के अधूरे रहने की आशंका व्यक्त की है। व्यक्ति को अपने लक्ष्य की प्राप्ति की होड़ में समय जल्दी-जल्दी गुजरता हुआ प्रतीत होता है। कहीं रास्ते में ही रात न हो जाए इस वजह से शाम होते देखकर यात्री तेजी से चलता है। यात्री को पता है कि उसकी मंजिल दूर नहीं है, इस कारण वह दिन भर थका होने के बावजूद भी जल्दी-जल्दी चलता है। कहने का तातपर्य यह है कि लक्ष्य-प्राप्ति के लिए पथिक अपने थके हुए शरीर के बावजूद भी मन में भी उल्लास, तरंग और आशा भर कर अपने पैरों की गति कम नहीं होने देता।

 

प्रश्न 3 – ‘शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ’ – ‘आत्मपरिचय’ कविता के आधार पर इस कथन का विरोधाभास स्पष्ट कीजिए। (60 शब्दों में)

उत्तर – ‘शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ’ कहकर कवि ने विरोधाभास की स्थिति पैदा की है। कवि कहता है कि यद्यपि मेरे द्वारा कही हुई बातें शीतल और सरल हैं। जो कुछ मैं कहता हूँ वह ठंडे दिमाग से कहता हूँ, लेकिन मेरे इस कहने में बहुत गहरे अर्थ छिपे हुए हैं। मेरे द्वारा कहे गए हर शब्द में संघर्ष हैं। मैंने जीवन भर जो संघर्ष किए उन्हें जब मैं कविता का रूप देता हूँ तो वह शीतल वाणी बन जाती है। मेरा जीवन मेरे दुखों के कारण मन ही मन रोता है लेकिन कविता के द्वारा जो कुछ कहता हूँ उसमें सहजता रूपी शीतलता होती है।

 

प्रश्न 4 – ‘शीतल वाणी में आग लिए फिरना’ – यह पंक्ति किस अर्थ को द्योतित करती है ? ‘आत्मपरिचय’ कविता के संदर्भ में लिखिए ।(60 शब्दों में)

उत्तर – ‘शीतल वाणी में आग लिए फिरना’ यह पंक्ति गहरे अर्थ को छिपाए हुए है। क्योंकि कवि के द्वारा कही हुई बातें शीतल और सरल हैं अथवा जो कुछ कवि कहता है वह ठंडे दिमाग से कहता है, लेकिन उनके द्वारा कहे गए हर शब्द में एक संघर्ष छिपा है। कवि ने अपने जीवन में जो संघर्ष किए है यदि कवि उन्हें आत्मकथा या लेख के रूप में लिखता तो वे अत्यधिक कठोर प्रतीत होते किन्तु जब कवि ने उन्हें कविता का रूप दिया तो वही कठोर वाक्य शीतल वाणी बन जाती है। कवि का मन उनके जीवन के दुखों के कारण मन ही मन रोता है लेकिन कविता के द्वारा जो कुछ कहते हैं उसमें सहजता रूपी शीतलता होती है।

 

प्रश्न 5 – ‘मैं फूट पड़ा तुम कहते छंद बनाना’ – ‘आत्मपरिचय’ कविता से ली गई इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए । (60 शब्दों में)

उत्तर – ‘मैं फूट पड़ा तुम कहते छंद बनाना’ इस पंक्ति का आशय यह है कि प्रेम की पीड़ा के कारण कवि के मन का रोना अर्थात मन की पीड़ा शब्द रूप में प्रकट हुई और उसके इस रोने को संसार ने गीत समझा। जब कवि की वेदना अधिक हो गई, तो उसने अपने दुख को शब्दों के माध्यम से व्यक्त करना चाहा और संसार इस प्रक्रिया को मात्राओं का निश्चित मान अनुसार पद्य रचना मानने लगा। कवि को यह समझ नहीं आ रहा है कि यह संसार उन्हें कवि के रूप में क्यों अपनाना चाह रहा है? क्योंकि कवि तो स्वयं को नया दीवाना कहता है जो इस दुनिया में मिलने वाली हर परिस्थितियों में मस्त रहता है।

 

प्रश्न 6 – “मैं भव मौजों पर मस्त बहा करता हूँ” ‘आत्मपरिचय’ कविता से उद्धृत इस पंक्ति का क्या आशय है? (60 शब्दों में)

उत्तर – “मैं भव मौजों पर मस्त बहा करता हूँ” इस पंक्ति का आशय यह है कि संसार के लोग संसार के आपदाओं अथवा कठिनाई रूपी सागर को पार करने के लिए कर्म रूपी नाव बनाते हैं, अर्थात अत्यधिक प्रयास करते हैं। परंतु कवि संसार रूपी सागर की लहरों पर मस्त होकर बहता है। कहने का तात्पर्य यह है कि कवि अपने जीवन में आने वाले सुख-दुख रूपी लहरों में भी मस्त रहता हूँ। क्योंकि कवि के अनुसार उसके पास तो प्रेम की नाव है। जो उन्हें इस संसार के आपदाओं रूपी सागर को पार करने में सहायता करती है।

 

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Chapter 2 – पतंग

 

प्रश्न 1 – ‘पतंग’ कविता में “पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं” कथन का आशय स्पष्ट करते हुए बताइए कि ‘वे’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है। (40 शब्दों में)

उत्तर – “पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं” कथन का आशय यह है कि पतंग उड़ाते बच्चों को देखकर ऐसा लगता है जैसे पतंग के साथ-साथ वो भी खुद भी उड़ रहे हो। कहने का अभिप्राय यह है कि बच्चे अपनी कल्पनाओं व् भावनाओं को पतंग के सहारे ऊंचाइयों तक पहुंचा देते हैं। पतंग बच्चों की कोमल भावनाओं को दर्शाता है। पतंग उड़ाते समय बच्चे अत्यधिक उत्साहित होते हैं। वह भी पतंग की भांति आसमान की ऊँचाइयों को छूना चाहतें हैं। इसी कारण जब बच्चे पतंग उड़ाते हैं तो स्वयं वे भी अपने आपको पतंग के ही समान समझते हैं।

 

प्रश्न 2 – ‘जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास’ – पतंग कविता से उद्धृत इस पंक्ति के संदर्भ में लिखिए कि कपास से बच्चों का क्या संबंध बनता है ? (40 शब्दों में)

उत्तर – कपास व बच्चों के मध्य गहरा संबंध है। जिस तरह कपास मुलायम, शुद्ध और सफेद होती है, ठीक उसी प्रकार बच्चे भी जन्म से ही अपने साथ निर्मलता, कोमलता लेकर आते हैं अर्थात बच्चों का मन व भावनाएं भी स्वच्छ, कोमल और पवित्र होती हैं। जिस प्रकार कपास में चोट सहने की क्षमता होती है। उसी प्रकार बच्चों का शरीर भी हलका व मुलायम होता है। जिस कारण वे भी चोट को आसानी से सहन कर जाते हैं।

 

प्रश्न 3 – ‘पतंग’ कविता में ‘डाल की तरह लचीले वेग’ – से कवि का क्या आशय है ?(40 शब्दों में)

उत्तर – ‘डाल की तरह लचीले वेग’ – से कवि का आशय यह है कि पतंग उड़ाते हुए बच्चे इतने उत्साहित होते हैं कि वे चारों दिशाओं में ऐसे दौड़ते-भागते हैं जैसे कोई ढोल-नगाड़ों पर झूमकर नाचता हो। दौड़ते हुए बच्चे इधर-उधर ऐसे भागते हैं जैसे किसी पेड़ की लचीली डाल हो। क्योंकि जिस तरह पेड़ की डाल लचीली होने के कारण जोर से खींचने पर भी वापिस अपनी जगह पर सही सलामत आ जाती है उसी प्रकार दौड़ते-भागते बच्चों का लचीला शरीर फुर्ती से इधर-उधर भागते हुए भी एक जगह से दूसरी जगह और फिर पुनः अपनी पहली वाली अवस्था में सुरक्षित आ जाता है।

 

प्रश्न 4 – ‘पतंग’ कविता के आधार पर लिखिए कि ‘बच्चों का सूरज के सामने आने’ से क्या अभिप्राय है ? (40 शब्दों में)

उत्तर – ‘बच्चों का सूरज के सामने आने’ से अभिप्राय यह है कि पतंग उड़ाते हुए कभी – कभी ये बच्चे छतों के भयानक किनारों से नीचे गिर भी जाते हैं और लचीले शरीर के कारण ज्यादा चोट न लगने पर बच भी जाते हैं। इस तरह बच जाने से वे और भी ज्यादा भय–हीन हो जाते हैं अर्थात उनके अंदर आत्मविश्वास और अधिक बढ़ जाता है। उनके अंदर से गिरने का डर बिलकुल खत्म हो जाता हैं और वो अत्यधिक उत्साह, साहस व निडरता के साथ फिर से छत पर आकर पतंग उड़ाने लगते हैं। वे अधिक उत्साह के साथ सुनहरे सूरज के सामने फिर आते हैं । कहने का आशय यह है कि वे अगली सुबह फिर उसी उत्साह से पतंग उड़ाते हैं। उनकी गति और अधिक तेज हो जाती है।

 

प्रश्न 5 – ‘जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास’ – ‘पतंग’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि कवि ने ऐसा किसके लिए और क्यों कहा है ? (60 शब्दों में) 

उत्तर – ‘जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास’ – ‘पतंग’ कविता में कवि ने ऐसा बच्चों के लिए कहा है क्योंकि जिस तरह कपास मुलायम, शुद्ध और सफेद होती है, ठीक उसी प्रकार बच्चे भी जन्म से ही अपने साथ निर्मलता, कोमलता लेकर आते हैं अर्थात बच्चों का मन व भावनाएं भी स्वच्छ, कोमल और पवित्र होती हैं। जिस प्रकार कपास में चोट सहने की क्षमता होती है, उसी प्रकार बच्चों का शरीर भी हलका व मुलायम होता है। जिस कारण वे भी चोट को आसानी से सहन कर जाते हैं।

 

प्रश्न 6 – भादों के बीत जाने पर प्रकृति में जो परिवर्तन कवि ने ‘पतंग’ कविता में दिखाया है उसका वर्णन अपने शब्दों में कीजिए । (60 शब्दों में)

उत्तर – इस कविता में कवि ने प्राकृतिक वातावरण का अत्यंत सुंदर वर्णन किया है। सावन महीने में तेज बौछारों के तथा भादों माह के समाप्त होने पर शरद माह का समय आता है। इस माह में प्रकृति में निम्नलिखित परिवर्तन दिखाई देते हैं-

शरद ऋतु के आते ही आसमान एकदम साफ, स्वच्छ व निर्मल हो जाता है।

शरद ऋतु में सुबह के समय आकाश में छाई हुई लालिमा खरगोश की आँखों की भांति लाल दिखाई देती हैं।

शरद ऋतु में मौसम एकदम सुहाना हो जाता है जिसे देखकर बच्चों के समूह पतंग उड़ाने के लिए अपने घरों से बाहर निकल आते हैं।

शरद ऋतु में धूप चमकीली होती है।

फूलों पर तितलियाँ मँडराती दिखाई देती हैं।

 

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Chapter 3 – कविता के बहाने, बात सीधी थी पर

 

प्रश्न 1 – निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उस पर आधारित दिए गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए –

कविता एक उड़ान है चिड़िया के बहाने

कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने

बाहर भीतर

इस घर, उस घर

कविता के पंख लगा उड़ने के माने

चिड़िया क्या जाने ?

 

(i) कवि ने कविता के विषय में क्या बताया ?

(A) एक उत्सव है

(B) एक मंज़िल है

(C) एक यात्रा है

(D) एक पंछी है

उत्तर – (C) एक यात्रा है

 

(ii) कविता और चिड़िया में समानता है :

(A) उड़ान की

(B) पंखों की

(C) गति की

(D) विचारों की

उत्तर – (A) उड़ान की

 

(iii) निम्नलिखित कथनों पर विचार करते हुए पद्यांश के अनुसार सही कथन का चयन कर लिखिए :

(A) चिड़िया और कविता दोनों की उड़ान व्यापक है ।

(B) चिड़िया की उड़ान एक सीमा तक है परंतु कविता की उड़ान असीम है ।

(C) कविता की उड़ान चिड़िया की उड़ान पर निर्भर करती है ।

(D) चिड़िया दूर तक उड़ सकती है जबकि कविता केवल किताब के पन्नों तक ।

उत्तर – (B) चिड़िया की उड़ान एक सीमा तक है परंतु कविता की उड़ान असीम है ।

 

(iv) ‘कविता के पंख लगा उड़ने के माने’ – में ‘कविता के पंख’ से तात्पर्य है :

(A) विशद व्याख्या

(B) शब्द-अर्थ की विसंगति

(C) संश्लेषण-विश्लेषण

(D) कल्पनाशीलता

उत्तर – (D) कल्पनाशीलता

 

(v) कविता की उड़ान को कौन नहीं समझ सकता ?

(A) पाठक

(B) चिड़िया

(C) कवि

(D) समीक्षक

उत्तर – (B) चिड़िया

 

प्रश्न 2 – ‘बात सीधी थी पर’ कविता में भाषा के विषय में व्यंग्य करके कवि क्या सिद्ध करना चाहता है ? (40 शब्दों में)

उत्तर – ‘बात सीधी थी पर’ कविता में भाषा के विषय में व्यंग्य करके कवि सिद्ध करना चाहता है कि हमें सीधी-सरल बात को बिना जटिल व् कठिन बनाए सीधे-सरल शब्दों में कहने का प्रयास करना चाहिए। भाषा के फेर में पड़ने से बात स्पष्ट नहीं हो पाती है, बल्कि कविता में जटिलता और बढ़ जाती है। इसके लिए यह आवश्यक हो जाता अच्छी बात अथवा अच्छी कविता के लिए शब्दों का चयन या भाषागत प्रयोग सहज होना अति आवश्यक है। तभी हम कविता के द्वारा सीधी बात कह सकते है।

 

प्रश्न 3 – ‘बात सीधी थी पर’ कविता के संदर्भ में लिखिए कि आप अपनी बात दूसरों तक पहुँचाने के लिए सहज, सरल भाषा का प्रयोग करेंगे या क्लिष्ट अलंकृत भाषा का । तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए । (60 शब्दों में)

उत्तर – ‘बात सीधी थी पर’ कविता को देखते हुए हम अपनी बात दूसरों तक पहुँचाने के लिए सहज, सरल भाषा का प्रयोग करेंगे क्योंकि कविता में हमने देखा कि कवि सरल व् सीधी बात को और आकर्षक व् प्रभावशाली बनाने के लिए बात को अधिक जटिल रूप में प्रस्तुत करता है। जिसके कारण दूसरे लोग कवि की बात नहीं समझ पाते हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए हम सदैव अपनी बातों को सीधे व् सरल तरीके से ही दूसरों के समक्ष प्रस्तुत करेंगे ताकि वे हमारी बातों को बिना किसी कठिनाई से आसानी से समझ सकें।

 

प्रश्न 4 – ‘कविता के बहाने’ कविता से ली गई पंक्ति ‘सब घर एक कर देने के माने’ – का आशय कविता और बच्चों के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए । (60 शब्दों में)

उत्तर – ‘कविता के बहाने’ कविता में ‘सब घर एक कर देने के माने’ का अर्थ है – सीमा अथवा भेदभाव का बंधन समाप्त हो जाना। जिस प्रकार बच्चे अपने खेल में किसी भी प्रकार की सीमा का ध्यान रखते, उसी प्रकार कविता में भी किसी सीमा, स्थान या समय की कोई सीमा नहीं होती। जिस तरह बच्चे खेलते समय हर प्रकार के भेदभावों को भूलकर सभी घरों को अपना समझ कर उनमें खेलने चले जाते हैं और सभी घरों के मन मुटावों को मिटा कर एक कर देते हैं। ठीक उसी प्रकार कविता भी बिना किसी के साथ भेदभाव किए समाज के हर वर्ग के श्रोता व् पाठक को एक समान रूप से प्रभावित करती हैं। कवि भी बच्चों की ही भांति पूरे समाज को एक समान समझता है। वह बिना किसी भेदभाव के कविता की रचना करता है।

 

प्रश्न 5 – ‘बात सीधी थी पर’ कविता के आधार पर लिखिए कि ‘कील की तरह ठोकना’ का क्या अर्थ है ? कवि ने अपनी बात को कील की तरह क्यों ठोक दिया ? (60 शब्दों में)

उत्तर – ‘बात सीधी थी पर’ कविता के आधार पर ‘कील की तरह ठोकना’ का अर्थ है कि हार कर अपने निर्णय को उपस्थित स्थिति में स्वीकार कर लेना। कवि ने अपनी बात को कील की तरह इसलिए ठोक दिया क्योंकि आखिर में जब कवि अपनी बात अथवा अपने भाव स्पष्ट नहीं कर सका तो उसने अपनी बात को वहीं पर छोड़ दिया जैसे पेंच की चूड़ी समाप्त होने पर उसे कील की तरह ठोंक दिया जाता है। कहने का अभिप्राय यह है कि जब कवि हर तरह से बदलाव करने पर भी अपनी बात को स्पष्ट नहीं कर सका तो कवि ने अपनी कविता को उसी तरह छोड़ दिया जिस तरह पेंच को अंत में ठोक दिया जाता है।

 

प्रश्न 6 – ‘कविता के बहाने’ कविता के आधार पर लिखिए कि कविता की विकास-प्रक्रिया फूलों की तरह होने पर भी फूल उसका मर्म क्यों नहीं समझ सकते ? (60 शब्दों में)

उत्तर – कविता की विकास-प्रक्रिया फूलों की तरह होने पर भी फूल उसका मर्म इसलिए नहीं समझ सकते क्योंकि फूल घर-आंगन, बाग़-बगीचों में खिलते हैं और चारों और खुशबू बिखेरते हैं। लेकिन कुछ समय बाद वे मुरझा जाते हैं। परन्तु इसके विपरीत जब एक कविता विकसित होती है तो वह अपने भावों की खुशबू से हमेशा लोगों के दिलों में खुशबू बिखेरती रहती हैं। कविता का प्रभाव हमेशा बना रहता है। जो कविता में सदैव एक नए पन को बनाये रखता हैं। इसीलिए कवि कहते हैं कि फूल कभी भी कविता के बिना मुरझाये खिले रहने व खुशबू बिखेरते रहने के राज़ को नहीं समझ सकता हैं।

 

प्रश्न 7 – ‘बात सीधी थी पर’ शीर्षक कविता से ली गई पंक्ति ‘भाषा के चक्कर में ज़रा टेढ़ी फँस गई’ – का आशय स्पष्ट कीजिए । (60 शब्दों में)

उत्तर – ‘भाषा के चक्कर में ज़रा टेढ़ी फँस गई’ – पंक्ति में कवि कहते हैं कि उनकी कविता के भाव बिलकुल सीधे थे जो श्रोताओं और पाठकों को सीधे समझ में आ जाने चाहिए थे। परन्तु भाषा को प्रभावी बनाने के कारण श्रोता व् पाठक कोई भी उन भावों को अच्छी तरह से समझ नहीं पाये। और कवि ने पाया कि उनकी कविता में भाषा की जटिलता होने के कारण कविता में एक टेढ़ापन आ गया है। कहने का अभिप्राय यह है कि कवि जो बात कविता के माध्यम से कहना चाहते थे , वो बात स्पष्ट नहीं हो पायी जिस कारण लोग कविता के भावों को अच्छी तरह से समझ नहीं पाये।

 

प्रश्न 8 – ‘बात सीधी थी पर’ कविता से ली गई पंक्ति ‘जोर जबरदस्ती से बात की चूड़ी मर गई’ – का आशय स्पष्ट कीजिए । (60 शब्दों में)

उत्तर – बात को सही तरीके से कैसे कहा जाय या कैसे लिखा जाए, ताकि वह लोगों की समझ में आसानी से आ सके। इस समस्या को धैर्यपूर्वक समझे बिना कवि कविता के शब्दों को तोड़-मरोड़ कर भाषा को और अधिक जटिल बनाता चला गया। कविता में प्रभावशाली व् जटिल शब्दों के प्रयोग से तमाशा देखने वाले अर्थात कविता पढ़ने व् सुनने वाले कवि की प्रशंसा करने लगे क्योंकि कविता देखने व् सुनने में तो प्रभावशाली लग रही थी। परन्तु अंत में वही हुआ जिसका कवि को डर था। जटिल भाषा का प्रयोग करने से दिखने व् सुनने में तो कवि की कविता सुंदर दिखने लगी परन्तु उसके भाव किसी को भी समझ में नहीं आ रहे थे। और भाव स्पष्ट करने के लिए जब कवि ने जोर-जबरदस्ती भाषा में बदलाव किए तो कविता प्रभावहीन व उद्देश्यहीन हो गई और कविता केवल शब्दों के आसपास घूमती नज़र आने लगी।

 

प्रश्न 9 – ‘बात सीधी थी पर’ कविता के आधार पर लिखिए कि कवि ने ‘भाषा को सहूलियत’ से बरतने की सलाह क्यों दी है । (60 शब्दों में)

उत्तर – कवि ने ‘भाषा को सहूलियत’ से बरतने की सलाह दी है। ‘बात सीधी थी पर’ कविता में किसी बात को कहने के लिए भाषा की सहजता व सरलता पर जोर दिया गया हैं ताकि कविता या बात के भाव व उद्देश्य श्रोता व् पाठक तक आसानी से पहुंच सके। हर बात को कहने के लिए कुछ खास शब्द नियत होते हैं जिनका सही प्रयोग करने पर बात को आसानी से किसी को भी समझाया जा सकता है। जैसे हर पेंच के लिए एक निश्चित खाँचा होता है। यदि उसे गलत खाँचे में जबरदस्ती डाला जाए तो वह टूट जाता है। इसलिए अच्छी बात या अच्छी कविता का बनना सही बात का सही शब्द से जुड़ना होता है और जब ऐसा होता है तो किसी दबाव या अतिरिक्त मेहनत की जरूरत नहीं होती वह सहूलियत के साथ हो जाता है।

 

प्रश्न 10 – ‘कविता के बहाने’ के आधार पर बताइए कि ‘सब घर एक कर देने के माने’ से कवि का क्या तात्पर्य है। (60 शब्दों में)

उत्तर – ‘कविता के बहाने’ कविता में ‘सब घर एक कर देने के माने’ का अर्थ है – सीमा अथवा भेदभाव का बंधन समाप्त हो जाना। जिस प्रकार बच्चे अपने खेल में किसी भी प्रकार की सीमा का ध्यान रखते, उसी प्रकार कविता में भी किसी सीमा, स्थान या समय की कोई सीमा नहीं होती। जिस तरह बच्चे खेलते समय हर प्रकार के भेदभावों को भूलकर सभी घरों को अपना समझ कर उनमें खेलने चले जाते हैं और सभी घरों के मन मुटावों को मिटा कर एक कर देते हैं। ठीक उसी प्रकार कविता भी बिना किसी के साथ भेदभाव किए समाज के हर वर्ग के श्रोता व् पाठक को एक समान रूप से प्रभावित करती हैं। कवि भी बच्चों की ही भांति पूरे समाज को एक समान समझता है। वह बिना किसी भेदभाव के कविता की रचना करता है।

 

प्रश्न 11 – ‘बात सीधी थी पर’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि कथ्य अधिक महत्त्वपूर्ण है अथवा माध्यम ?(60 शब्दों में)

उत्तर – ‘बात सीधी थी पर’ कविता के आधार पर कहा जा सकता है कि कथ्य अधिक महत्त्वपूर्ण है न की माध्यम। क्योंकि जब कवि ने जोर-जबरदस्ती भाषा में बदलाव किए तो कविता प्रभावहीन व उद्देश्यहीन हो गई और कविता केवल शब्दों के आसपास घूमती नज़र आने लगी। जब कवि हर तरह से बदलाव करने पर भी अपनी बात को स्पष्ट नहीं कर सका तो कवि ने अपनी कविता को उसी तरह छोड़ दिया जिस तरह पेंच को अंत में ठोक दिया जाता है। जिस स्थिति में कवि की कविता थी वह बाहर से देखने पर तो कविता जैसी लगती थी, परंतु उसमें भावों की गहराई नहीं थी, उसके शब्दों में ताकत नहीं थी। अच्छी बात को कहने के लिए और अच्छी कविता को बनाने के लिए सही भाषा व सही शब्दों का, सही बात अथवा भाव से जुड़ना आवश्यक है। तभी उसे समझने में आसानी होगी।

 

प्रश्न 12 – ‘बात सीधी थी पर’ कविता के आधार पर लिखिए कि भाषा को अर्थ की परिणति तक पहुँचाने के लिए कवि क्या-क्या प्रयास करता है और उसका क्या परिणाम निकलता है । (60 शब्दों में)

उत्तर – भाषा को अर्थ की परिणति तक पहुँचाने के लिए कवि ने भाषा के शब्दों, वाक्यांशों, वाक्यों आदि को बदल कर आसान किया और तथा शब्दों को उलट-पुलट कर प्रयोग किया। कवि ने पूरी कोशिश की कि या तो इस भाषा के बदलाव से उनके भाव लोगों तक पहुँच जाएं या फिर वह भाषा के इस उलट-फेर के जंजाल से मुक्त हो जाएं, परंतु कवि को इससे कोई भी सफलता नहीं मिली। 

 

प्रश्न 13 – कविता और फूलों के खिलने की प्रक्रिया के अंतर को स्पष्ट करते हुए लिखिए कि कवि ने किसे और क्यों श्रेष्ठ सिद्ध किया है ?(60 शब्दों में)

उत्तर – कविता भी ठीक उसी प्रकार से विकसित होती है, महक बिखेरती हैं, जिस प्रकार एक फूल विकसित होता है अथवा चारों ओर खुशबू बिखेरता हैं। लेकिन फूलों का विकसित होना और खुशबू बिखेरना कुछ ही समय के लिए होता हैं क्योंकि कुछ समय बाद वो मुरझा जाते हैं। परन्तु इसके विपरीत कविता के भावों का प्रभाव अत्यधिक लम्बे समय के लिए होता है जो हमेशा लोगों को प्रभावित करता रहता हैं। इसीलिए कवि कहते हैं कि फूल कभी भी कविता के बिना मुरझाये खिले रहने व खुशबू बिखेरते रहने के राज़ को नहीं समझ सकता हैं। अतः कविता का विकसित होना या खिलना फूल के विकसित होने या खिलने से अधिक श्रेष्ठ है। 

 

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Chapter 4 – कैमरे में बंद अपाहिज

 

प्रश्न 1 – निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उस पर आधारित दिए गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए –

हमें दोनों एक संग रुलाने हैं,

आप और वह दोनों

(कैमरा

बस करो

नहीं हुआ

रहने दो

परदे पर वक्त की कीमत है)

अब मुस्कुराएँगे हम

आप देख रहे थे सामाजिक उद्देश्य से युक्त कार्यक्रम

(बस थोड़ी ही कसर रह गई)

धन्यवाद ।

 

(i) काव्यांश में ‘आप’ और ‘वह’ प्रयुक्त हुआ है :

(A) दर्शक और संवाददाता के लिए

(B) मीडियाकर्मी और कैमरामैन के लिए

(C) दर्शक और विकलांग व्यक्ति के लिए

(D) विकलांग व्यक्ति और संवाददाता के लिए

उत्तर – (A) दर्शक और संवाददाता के लिए

 

(ii) निम्नलिखित कथनों पर विचार करते हुए पद्यांश के अनुसार सही कथन को चयनित कर लिखिए :

(A) मीडिया विकलांग व्यक्तियों के प्रति संवेदनशील है।

(B) समाज विकलांग व्यक्तियों के प्रति जागरूक है।

(C) शारीरिक चुनौती झेलते व्यक्ति के साक्षात्कार द्वारा मीडिया का उद्देश्य समाज-सेवा है।

(D) मीडिया स्वार्थी एवं संवेदनहीन है, उसका सामाजिक सरोकार मात्र दिखावा है।

उत्तर – (D) मीडिया स्वार्थी एवं संवेदनहीन है, उसका सामाजिक सरोकार मात्र दिखावा है।

 

(iii) काव्यांश में कोष्ठक में लिखे शब्द संकेत करते हैं :

(A) परदे के पीछे की वास्तविकता

(B) मीडिया का बुरा बर्ताव

(C) साक्षात्कार के प्रश्न

(D) विकलांग व्यक्ति की मानसिकता

उत्तर – (A) परदे के पीछे की वास्तविकता

 

(iv) उपर्युक्त काव्यांश की पंक्ति – ‘अब मुस्कुराएँगे हम’ दिखाती है, मीडियाकर्मियों की :

(A) संवेदनशीलता को

(B) संवेदनहीनता को

(C) परदुख कातरता को

(D) प्रफुल्लता को

उत्तर – (B) संवेदनहीनता को

 

(v) निम्नलिखित कथन और कारण को ध्यानपूर्वक पढ़िए और सही विकल्प चुनकर लिखिए :

कथन : सामाजिक उद्देश्य से युक्त कार्यक्रम में मीडिया का उद्देश्य पूर्ण न हो सका |

कारण : विकलांग व्यक्ति द्वारा उनके निर्देशानुसार व्यवहार न करने से लोगों की सहानुभूति बटोरने का अवसर उनके हाथ से निकल गया ।

विकल्प :

(A) कथन सही है, कारण ग़लत है ।

(B) कथन सही नहीं है, कारण सही है ।

(C) कथन तथा कारण दोनों सही हैं, किंतु कारण, कथन की सही व्याख्या नहीं करता है ।

(D) कथन तथा कारण दोनों सही हैं, किंतु कारण, कथन की सही व्याख्या करता है।

उत्तर – (D) कथन तथा कारण दोनों सही हैं, किंतु कारण, कथन की सही व्याख्या करता है।

 

प्रश्न 2 – ‘बस करो/नहीं हुआ / रहने दो’ – इस प्रकार के शब्द मीडियाकर्मी द्वारा क्यों कहे गए ? ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता के संदर्भ में कारण सहित लिखिए । (40 शब्दों में)

उत्तर – कार्यक्रम के संचालक के अनेक प्रयास करने के बाद भी जब वह अपाहिज व्यक्ति नहीं रोता है, तो संचालक कैमरा मैन से कैमरा बंद करने को कहता है क्योंकि वह उस अपाहिज व्यक्ति को रुलाने में नाकामयाब रहा और साथ ही साथ वह उस अपाहिज व्यक्ति को पर्दे पर वक्त की कीमत का एहसास भी करा देते है कि उस व्यक्ति को अपनी पीड़ा एक निर्धारित समय के अंदर ही व्यक्त करनी थी। और कैमरा बंद होने से पहले वह यह घोषणा करता है कि आप सभी दर्शक समाज के जिस उद्देश्य के लिए यह कार्यक्रम देख रहे थे वह कार्यक्रम अब समाप्त हो चुका है। लेकिन संचालक को ऐसा लगता है कि थोड़ी सी कसर रह गई थी वरना उसने उस व्यक्ति को लगभग रुला ही दिया था। कहने का अभिप्राय यह है कि मीडिया अपना टीआरपी बढ़ाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।

 

प्रश्न 3 – ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता में मीडियाकर्मियों को धुर संवेदनहीन व्यक्तियों के रूप में प्रस्तुत किया गया है, क्या वास्तव में हमारा समाज इतना ही संवेदनहीन हो गया है, या उसका कोई उज्ज्वल पक्ष है ? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए । (40 शब्दों में)

अथवा 

‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता में समाज की जिस संवेदनहीनता का मार्मिक वर्णन हुआ है, क्या आपके दृष्टिकोण में भी समाज वैसा ही है या उसमें अन्तर है ? स्पष्ट कीजिए ।(60 शब्दों में)

उत्तर – ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता में मीडियाकर्मियों को धुर संवेदनहीन व्यक्तियों के रूप में प्रस्तुत किया गया है, वास्तव में हमारा समाज इतना ही संवेदनहीन हो गया है, क्योंकि मीडियाकर्मियों को केवल अपने चैनल की टी. र. पी. के लिए कई बार झूठी व् गलत बातों को प्रस्तुत करते हुए देखा गया है। कई बार किसी व्यक्ति के निजी पलों को सभी के सम्मुख रखते हुए देखा गया है। दुःखी व्यक्ति से सवाल पर सवाल करके उसे और अधिक दुःख पहुँचाते हुए देखा गया है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे मीडियाकर्मियों को केवल अपना फायदा देखना आता है उन्हें किसी के दुःख व् किसी की भावनाओं से कोई फर्क नहीं पड़ता।

 

प्रश्न 4 – शारीरिक चुनौती झेल रहे व्यक्ति की शब्दहीन पीड़ा को मीडियाकर्मी किस प्रकार अभिव्यक्त कराना चाहता है ? क्या वह अपने उद्देश्य में सफल होता है ? कारण लिखिए । (40 शब्दों में)

उत्तर – शारीरिक चुनौती झेल रहे व्यक्ति की शब्दहीन पीड़ा को मीडियाकर्मी एक कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए और उससे लाभ कमाने के लिए व् अपने व्यापार का माध्यम बनाने से बिलकुल नहीं कतरा रहे हैं। उन्हें सिर्फ पैसे कमाने से मतलब होता है। दूरदर्शन के कार्यक्रम का संचालक अपने आप को बहुत सक्षम और शक्तिशाली समझता है। इसीलिए दूरदर्शन के स्टूडियो के एक बंद कमरे में उस साक्षात्कार में उस अपाहिज व्यक्ति से बहुत ही बेतुके प्रश्न पूछे जाते हैं । वह शारीरिक चुनौती झेल रहे व्यक्ति को सभी के समक्ष रुलाकर अपनी टी. र. पी बढ़ाना चाहता था परन्तु वह अपने उद्देश्य में सफल नहीं होता है क्योंकि मीडियाकर्मी उस शारीरिक चुनौती झेल रहे व्यक्ति को कैमरे पर रुलाने में सफल नहीं हो सका।

 

प्रश्न 5 – ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता में निहित व्यंग्यार्थ को स्पष्ट करके लिखिए । (60 शब्दों में)

उत्तर – कवि ने इस कविता के माध्यम से मिडिया का करुणा के मुखोटे में छिपी क्रूरता को दिखाने का प्रयास किया है। मिडिया किस तरह व्यावसायिक लाभ के लिए कमजोर लोगों के साथ अमानवीय व्यवहार करती हैं, यह कविता में एक अपाहिज व्यक्ति के साक्षात्कार के जरिए दिखाया गया है। कार्यक्रम के संचालक द्वारा झूठी सहानुभूति दिखाकर अपाहिज व्यक्ति से तरह-तरह के बहुत ही बेतुके प्रश्न पूछ कर उस अपाहिज व्यक्ति को रुलाने का प्रयास किया जाता है और उसके अपाहिजपन का मजाक उड़ाया जाता है। उसे रोने पर मजबूर करने की कोशिश करना वह भी सिर्फ इसलिए ताकि उसके दुख-दर्द व तकलीफ को दिखाकर सहानुभूति प्राप्त कर अधिक से अधिक पैसा कमाया जा सके, यह क्रूरता की चरम सीमा है।

 

प्रश्न 6 – ‘हम दूरदर्शन पर बोलेंगे, हम समर्थ शक्तिवान’ – ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता से ली गई इन पंक्तियों में निहित व्यंग्यार्थ को स्पष्ट कीजिए । (60 शब्दों में)

उत्तर – ‘हम समर्थ शक्तिवान और हम एक दुर्बल को लाएँगे’ पंक्ति के माध्यम से कवि मीडिया की ताकत व कार्यक्रम संचालकों की मानसिकता को सभी के समक्ष लाने का प्रयास कर रहा है। मीडिया में वह ताकत है जो किसी भिखारी को राजा और किसी राजा को एक ही झटके में भिखारी बना सकती है। दूरदर्शन व मीडिया के लोग अपने आप को बहुत समर्थ, शक्तिवान व ताकतवर समझते है। चैनल के लाभ के लिए संचालक किसी के दुःख को भी बेच सकते हैं। मीडिया के अटपटे प्रश्नों से अच्छा व्यक्ति भी बैचैन हो जाता है। अपंग या कमजोर व्यक्ति तो रोने ही लगता है। कविता में इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने दूरदर्शन के कार्यक्रमों की इसी व्यवसायिकता पर तीखा व्यंग्य किया है।

 

प्रश्न 3 – “कैमरे में बंद अपाहिज” कविता के आधार पर शारीरिक चुनौती झेलने वाले व्यक्ति और दूरदर्शन कर्मी के बीच हुए संवाद के दृश्य को लगभग 40 शब्दों में लिखिए ।(40 शब्दों में)

उत्तर – दूरदर्शन के कार्यक्रम के संचालक अपने आप को बहुत सक्षम और शक्तिशाली समझता है। इसीलिए दूरदर्शन के स्टूडियो के एक बंद कमरे में उस साक्षात्कार में उस अपाहिज व्यक्ति से बहुत ही बेतुके प्रश्न पूछे जाते हैं जैसे “क्या वह अपाहिज हैं?” “यदि हाँ तो वह क्यों अपाहिज हैं?” “उसका अपाहिजपन तो उसे दु:ख देता होगा?”। उस अपंग व्यक्ति के चेहरे व आँखों में पीड़ा को साफ़-साफ़ देखने के बाबजूद भी उससे और बेतुका सवाल पूछा जाएगा कि “वह कैमरे पर बताए कि उसका दु:ख क्या है?” ऐसे प्रश्न विकलांग लोगों को और भी कमजोर बना देते हैं। मीडिया के अधिकारी इतने क्रूर होते हैं कि वह जानबूझकर अपाहिज लोगों से बेतुके सवाल पूछते हैं ताकि वे सवालों का उत्तर ही ना दे पाए। 

 

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Chapter 5 – उषा

 

प्रश्न 1 – ‘उषा’ कविता में ‘राख से लीपा हुआ चौका (अभी गीला पड़ा है)’ से क्या अभिप्राय है? (40 शब्दों में)

उत्तर – ‘उषा’ कविता में ‘राख से लीपा हुआ चौका (अभी गीला पड़ा है)’ से अभिप्राय यह है कि सुबह वातावरण में नमी होने के कारण कवि को वह गहरे स्लेटी रंग का आकाश ऐसा प्रतीत होता है जैसे राख से किसी ने चौके यानी खाना बनाने की जगह को लीप दिया हो, जिस कारण वो अभी भी गीला है। कहने का अभिप्राय यह है कि प्रात:काल में ओस की नमी होती है। गीले चौके में भी नमी होती है। अत: नीले नभ को गीला बताया गया है। साथ ही प्रातः कालीन वातावरण की नमी ने सुबह के वातावरण को किसी शंख की भांति और भी सुंदर, निर्मल व पवित्र बना दिया है।

 

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Chapter 6 – बादल राग

 

प्रश्न 1 – ‘बादल राग’ कविता से ली गई पंक्ति ‘अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर’ का आशय स्पष्ट करते हुए लिखिए कि इस पंक्ति में किसकी ओर संकेत किया गया है। (40 शब्दों में)

उत्तर – ‘अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर’ का आशय यह है कि आकाश की ऊँचाइयों को छूने की इच्छा रखने वाले ऊँचे-ऊँचे पर्वत भी बिजली गिरने से उस प्रकार खंडित अथवा नष्ट हो जाते हैं जिस प्रकार युद्ध भूमि में हथियारों के प्रहार से बड़े-बड़े वीर मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि क्रांति से बड़े लोग या पूँजीपति ही प्रभावित होते हैं। ‘अशानि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर’ इस पंक्ति में कवि ने शोषक वर्ग की ओर संकेत किया है। ‘अशानि-पात’ का तात्पर्य क्रांति से है। जिस प्रकार भयंकर बिजली गिरने से बड़े-बड़े पहाड़ खंडित हो जाते हैं ठीक उसी प्रकार क्रांति से शोषक वर्ग का गर्व चूर-चूर हो जाता है।

 

प्रश्न 2 – ‘क्रांति की गर्जना का शोषक वर्ग पर क्या प्रभाव पड़ता है ? वह अपना मुँह क्यों ढाँप लेते हैं ?’ – ‘बादल राग’ कविता के संदर्भ में लिखिए । (40 शब्दों में)

उत्तर – क्रांति की गर्जना से शोषक वर्ग पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। शोषक वर्ग ने अनेक वर्षों से सभी सुख-सुविधाओं और संसाधनों पर अपना एकाधिकार जमाया हुआ है और वह लगातार जनता का शोषण करता आया है। परंतु क्रांति की गर्जना सुनकर वह अपनी सत्ता को खत्म होते हुए देखता है। वह बुरी तरह से भयभीत हो जाता है। शोषक वर्ग का मुख ढाँकना उसकी कमजोर स्थिति को दर्शाता है क्योंकि क्रांति के परिणामों को सोचकर ही शोषक वर्ग भयभीत है।

 

प्रश्न 3 – ‘बादल राग’ कविता के आधार पर लिखिए कि विप्लवी बादल की युद्ध रूपी नौका में क्या-क्या भरा हुआ है ? इसकी क्या विशेषता है ? स्पष्ट कीजिए । (40 शब्दों में)

उत्तर – विप्लवी बादल की युद्धरूपी नाव में आम आदमी की बहुत सारी इच्छाएँ भरी हुई हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार लोगों की उम्मीद होती है कि बादल जल बरसा कर गर्मी से राहत देगा उसी प्रकार लोगों को क्रान्ति से उम्मीद है कि उन्हें शोषण से मुक्ति मिलेगी।

 

प्रश्न 4 – ‘बादल राग’ कविता के संदर्भ में ‘पंक’ और ‘जलज’ का प्रतीकार्थ लिखते हुए स्पष्ट कीजिए कि क्रांति का इन पर क्या प्रभाव पड़ता है ? (40 शब्दों में)

उत्तर – सदैव कीचड़ पर ही अत्यधिक वर्षा के कारण होने वाली बाढ़ का प्रभाव पड़ता है। अर्थात भयंकर जल-प्रलय सदैव कीचड़ पर ही होता है। यही जल जब कमल की कोमल पंखुड़ियों पर पड़ता है तो वह और अधिक विकसित हो उठती है। कहने का अभिप्राय यह है कि प्रलय से पूँजीपति वर्ग ही प्रभावित होता है। जबकि निम्न वर्ग में बच्चे कोमल शरीर के होते हैं तथा रोग व कष्ट की स्थिति में भी हमेशा हँसते-मुस्कराते रहते हैं। पूँजीपतियों ने उनके आर्थिक साधनों व् धन पर कब्जा कर रखा है। इतना धन इकट्ठा कर लेने पर भी उन्हें शांति प्राप्त नहीं हुई है। अपनी प्रियाओं की गोद में लिपटे हुए होने के बावजूद भी बादलों की गर्जना अर्थात क्रान्ति की गूँज सुनकर काँप रहे हैं। उन्होंने क्रांति की गर्जन सुनकर के भय से अपनी आँखें बँद की हुई है तथा मुँह को छिपाए हुए हैं।

 

प्रश्न 5 – ‘बादल राग’ कविता में पूँजीपतियों की अट्टालिकाओं को ‘आतंक भवन’ क्यों कहा गया है ? (40 शब्दों में)

उत्तर – ‘बादल राग’ कविता में पूँजीपतियों की अट्टालिकाओं को ‘आतंक भवन’ इसलिए कहा गया है क्योंकि पूँजीपतियों के द्वारा बनाए गए ऊँचे-ऊँचे भवन केवल भवन नहीं हैं बल्कि ये तो गरीबों में भय पैदा करने वाले भवन हैं क्योंकि पूंजीपति लोगों ने इन्हें गरीबों का शोषण करके ही बनाया है।

 

प्रश्न 6 – ‘बादल राग’ शीर्षक कविता में बादलों को ‘जीवन का पारावार’ क्यों कहा गया है ? (40 शब्दों में)

उत्तर – शोषित वर्ग शोषण के कारण अत्यधिक कमजोर हो गया है और अब वह शोषण को ख़त्म करने के लिए बेचैन है। शोषकों ने शोषित वर्ग की जीवन-शक्ति छीन ली है अर्थात उनका रक्त रूपी सार तत्त्व चूस लिया है। अब वह केवल हड्डियों का ढाँचा मात्र रह गया है। कवि बादल अर्थात क्रांतिकारियों को ‘जीवन का पारावार’ मानता है क्योंकि अब वे ही शोषक वर्ग पर बरस कर किसान की गरीबी दूर कर सकते हैं अर्थात क्रांति करके शोषण को समाप्त कर सकते हैं।

 

प्रश्न 7 – ‘बादल राग’ कविता में बादल किसका प्रतीक है ? इससे समाज का कौन सा वर्ग प्रभावित होता है ? (40 शब्दों में)

उत्तर – ‘बादल राग’ कविता में कवि ने बादलों को क्रान्ति का प्रतिक बतलाया है। क्रान्ति से समाज का शोषक वर्ग प्रभावित होता है। संसार का हृदय शोषण रूपी अग्नि से जला हुआ है और बादल दुःख व् शोषण से ग्रस्त संसार पर जल बरसा कर शोषण के खिलाफ लोगों के मन में दबे क्रान्ति के बीज को अंकुरित करता है।

 

प्रश्न 8 – ‘बादल राग’ कविता से उद्धृत निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए : (60 शब्दों में)

‘तिरती है समीर-सागर पर

अस्थिर सुख पर दुख की छाया’

उत्तर – ‘तिरती है समीर-सागर पर अस्थिर सुख पर दुख की छाया’ पंक्तियों का आशय यह है कि मानव जीवन में सुख व् दुःख हवा के समान चंचल है अथवा अस्थायी है क्योंकि मानव जीवन में सुख और दुःख दोनों आते-जाते रहते हैं। धनी लोगों के पास सुविधाओं की कोई कमी नहीं होती, गरीबों का शोषण करके वे अत्यधिक संपत्ति जमा करते हैं, परन्तु उन्हें सदैव क्रांति अर्थात विद्रोह की संभावना रहती है। वह अपना सब कुछ छिन जाने के डर से भयभीत रहते हैं। यही कारण है कि कवि ने धनी वर्ग के सुख को अस्थिर कहा है और उस पर सदैव दुःख की छाया का प्रयोग किया है।

 

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Chapter 7 – कवितावली (उत्तर कांड से) , लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप

 

प्रश्न 1 – निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उस पर आधारित दिए गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए:

उहाँ राम लछिमनहि निहारी । बोले बचन मनुज अनुसारी ।।

अर्ध राति गइ कपि नहिं आयउ । राम उठाइ अनुज उर लायऊ ।।

सकहु न दुखित देखि मोहि काऊ । बंधु सदा तव मृदुल सुभाऊ ।।

मम हित लागि तजेहु पितु माता । सहेहु बिपिन हिम आतप बाता ।।

सो अनुराग कहाँ अब भाई । उठहु न सुनि मम बच बिकलाई ।।

 

(i) ‘बोले बचन मनुज अनुसारी’ का अभिप्राय है –

(A) मनुष्य द्वारा बोले जाने योग्य वचन

(B) मनुष्य द्वारा अनुसरण करने योग्य वचन

(C) मानव की प्रकृति के अनुरूप वचन

(D) मानव सुलभ गुणों से युक्त वचन

उत्तर – (A) मनुष्य द्वारा बोले जाने योग्य वचन

 

(ii) ‘सकहु न दुखित ……..मृदुल सुभाऊ’ चौपाई के आधार पर लक्ष्मण के स्वभाव की विशेषताएँ हैं –

(A) स्नेही, मृदुल, भ्रातृ-प्रेमी

(B) मृदुल, आज्ञाकारी, कोमलचित्त

(C) कोमल, स्नेही, आज्ञाकारी

(D) कोमल, उदार, सहनशील

उत्तर – (C) कोमल, स्नेही, आज्ञाकारी

 

(iii) ‘सो अनुराग कहाँ अब भाई’ पंक्ति द्वारा राम लक्ष्मण के हृदय में विद्यमान किस भाव की ओर संकेत कर रहे हैं ?

(A) बड़े भाई को कभी दुखी न देखने का भाव

(B) सबके प्रति हृदय में विद्यमान कोमलता का भाव

(C) बड़े भाई के प्रति कर्तव्यपालन का भाव

(D) बड़े भाई के प्रति त्याग युक्त प्रेम का भाव

उत्तर – (D) बड़े भाई के प्रति त्याग युक्त प्रेम का भाव

 

(iv) लक्ष्मण के हृदय में राम के प्रति अगाध प्रेम को व्यक्त करने वाली पंक्ति है–

(A) अर्ध राति गइ कपि नहिं आयउ । राम उठाइ…….

(B) सकहु न दुखित देखि मोहि काऊ । बंधु सदा…….

(C) मम हित लागि तजेहु पितु माता । सहु बिपिन……

(D) सो अनुराग कहाँ अब भाई । उठहु न सुनि…….

उत्तर – (C) मम हित लागि तजेहु पितु माता । सहु बिपिन……

 

(v) काव्यांश का केंद्रीय भाव है

(A) लक्ष्मण के शोक में डूबे राम के विलाप का वर्णन करना

(B) दुख की स्थिति के प्रभाव का वर्णन करना

(C) राम के निर्मल और उदात्त चरित्र का वर्णन करना

(D) लक्ष्मण द्वारा राम के लिए किए गए त्याग का वर्णन करना

उत्तर – (A) लक्ष्मण के शोक में डूबे राम के विलाप का वर्णन करना

 

प्रश्न 2 – निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उस पर आधारित दिए गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए:

हरषि राम भेटेउ हनुमाना । अति कृतग्य प्रभु परम सुजाना ।।

तुरत बैद तब कीन्हि उपाई । उठि बैठे लछिमन हरषाई ।।

हृदयँ लाइ प्रभु भेंटेउ भ्राता । हरषे सकल भालु कपि ब्राता ।।

कपि पुनि बैद तहाँ पहुँचावा । जेहि बिधि तबहिं ताहि लइ आवा ।।

यह बृत्तांत दसानन सुनेऊ । अति बिषाद पुनि पुनि सिर धुनेऊ ।।

ब्याकुल कुंभकरन पहिं आवा । बिबिध जतन करि ताहि जगावा ।।

 

(i) राम ने हनुमान के प्रति कृतज्ञता क्यों प्रकट की ?

(A) सीता का पता लगाने के कारण

(B) समय पर संजीवनी बूटी लाने के कारण

(C) अपने स्वभाव की विनम्रता के कारण

(D) वैद्य को लंका से लाने के कारण

उत्तर – (B) समय पर संजीवनी बूटी लाने के कारण

 

(ii) भालू और कपि समूह की प्रसन्नता का कारण था –

(A) राम का हनुमान को गले लगाना ।

(B) हनुमान का सुषैन वैद्य को लाना ।

(C) हनुमान का संजीवनी बूटी लाना ।

(D) लक्ष्मण का स्वस्थ होना ।

उत्तर – (D) लक्ष्मण का स्वस्थ होना ।

 

(iii) रावण द्वारा कौन-सा वृत्तांत सुना गया ?

(A) लक्ष्मण के मूर्च्छित होने का

(B) राम के समुद्र पार आने का

(C) हनुमान द्वारा वैद्य ले जाने का

(D) लक्ष्मण की मूर्च्छा भंग होने का

उत्तर – (D) लक्ष्मण की मूर्च्छा भंग होने का

 

(iv) निम्नलिखित कथन और कारण को ध्यानपूर्वक पढ़िए और सही विकल्प चुनकर लिखिए :

कथन : दुखी रावण बार-बार सिर धुन कर पछता रहा था ।

कारण : विजय की आशाओं पर पानी फिरता दिख रहा था ।

(A) कथन सही है, कारण गलत है ।

(B) कथन सही नहीं है, कारण सही है ।

(C) कथन तथा कारण दोनों सही हैं, किंतु कारण कथन की सही व्याख्या नहीं करता है ।

(D) कथन और कारण दोनों सही हैं तथा कारण कथन की सही व्याख्या करता है ।

उत्तर – (D) कथन और कारण दोनों सही हैं तथा कारण कथन की सही व्याख्या करता है ।

 

(v) व्याकुल रावण कुंभकरण के पास क्यों गया होगा ?

(A) अपना दुख बाँटने

(B) युद्ध में सहायता पाने

(C) युद्ध में हुई हानि का वर्णन करने

(D) राम की सेना द्वारा किए जाने वाले विनाश का वर्णन करने

उत्तर – (B) युद्ध में सहायता पाने

 

प्रश्न 3 – तुलसी के अनुसार पेट की आग कैसी है और इसे किस प्रकार बुझाया जा सकता है? (40 शब्दों में)

उत्तर – पेट भरने के लिए कोई पढ़ता है, तो कोई अनेक तरह के हुनर सीखता है और कोई पर्वत पर चढ़ता है अर्थात पेट भरने के लिए मुश्किल से मुश्किल कार्य करने के लिए तैयार रहता है। कोई जंगलों में दिनभर शिकार की खोज में भटकता है। कोई भी काम अच्छा या बुरा बिना धर्म-अधर्म की परवाह किए करते हैं। यहां तक कि ये लोग अपने पेट की आग को बुझाने के लिए अपने बेटे और बेटी तक को बेचने के लिए मजबूर हो जाते हैं। तुलसीदास जी के अनुसार पेट की आग को केवल श्री राम रूपी बादल ही बुझा सकते हैं अर्थात श्री राम की कृपा दृष्टि से ही लोगों के दुःख दूर हो सकते हैं क्योंकि मनुष्य के पेट की आग, समुद्र की आग से भी भयानक होती है।

 

प्रश्न 4 – ‘लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप’ के आधार पर लिखिए कि युद्ध भूमि में राम के खेमे का माहौल शोकग्रस्त क्यों था। हनुमान द्वारा संजीवनी बूटी लाने पर वहाँ का माहौल कैसा और क्यों हो गया ? (60 शब्दों में)

उत्तर – सभी लोग लक्ष्मण के मूर्छित होने पर शोक में डूबे थे। भाई के शोक में राम का विलाप धीरे-धीरे प्रलाप में बदल जाता है, जिसमें लक्ष्मण के प्रति राम के अंतरमन में छिपे प्रेम के कई कोण सहसा ही सामने आ जाते है। प्रभु श्रीराम के व्याकुल व् तर्कहीन वचन-प्रवाह को सुनकर वानर व भालू का समूह भी बैचेन व व्याकुल हो गया। जैसे ही हनुमान जी आए, ऐसा लगा जैसे करुण रस में वीर रस का संचार हो गया है। हनुमान के आने पर श्री राम जी ने बहुत खुश होकर हनुमान जी को गले से लगा लिया। उसके बाद तुरंत ही वैद्य ने लक्ष्मण जी का उपचार किया और थोड़ी ही देर बाद लक्ष्मण जी उठकर बैठ गए और अत्यंत प्रसन्न हुए।

 

प्रश्न 5 – तुलसी ने ‘कवितावली’ के छंदों में तत्कालीन आर्थिक विषमताओं का स्वाभाविक चित्रण किया है । सिद्ध कीजिए कि तुलसी युग चितेरे कवि थे । (60 शब्दों में)

उत्तर – गोस्वामी तुलसीदास उच्च कोटि के सन्त, भक्त एवं कवि थे, उन्हें लोकनायक कहना गलत नहीं होगा क्योंकि उनकी सभी कृतियों में लोकमंगल की भावना होती थी। उन्होंने अपने युग की अनेक विषम परिस्थितियों को प्रत्यक्ष देखा भी था और उनका सामना भी किया था। उन्होंने अपनी रचनाओं में उन सभी परिस्थितियों को स्वर दिया। समाज में व्याप्त भयंकर बेकारी-बेरोजगारी और भुखमरी को लेकर ‘कवितावली’ आदि में आक्रोश-आवेश के साथ अपना मन्तव्य स्पष्ट किया था। उस समय किसान, श्रमिक, भिखारी, व्यापारी, कलाकार आदि सब आर्थिक समस्या से विवश थे। कवितावली के द्वारा स्पष्ट हो जाता है कि तुलसी को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ थी। यह सिद्ध करता है कि तुलसी युग चितेरे कवि थे। 

 

प्रश्न 6 – “लक्ष्मण – मूर्च्छा और राम का विलाप” प्रसंग के आधार पर रावण और कुंभकरण के बीच हुए संवाद के दृश्य को लगभग 40 शब्दों में लिखिए ।(40 शब्दों में)

उत्तर – लक्ष्मण फिर से जीवित हो गये हैं, इस बात को जब रावण ने सूना तो उसे बहुत दुख हुआ और वह बार-बार अपना सिर पीटने लगा। रावण अत्यंत परेशान होकर अपने छोटे भाई कुंभकरण के पास गया। अभिमानी रावण ने जिस प्रकार से सीता का हरण किया था और अब तक युद्ध में घटी सारी धटनाएँ कुंभकरण को बताई। रावण के वचन सुनकर कुंभकर्ण दुखी होकर बिलखने लगा और बोला, हे मूर्ख! जगत माता सीता का हरण कर अब तुम अपना कल्याण चाहते हो? यह संभव नहीं है।

 

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Chapter 8 – रुबाइयाँ

 

प्रश्न 1 – ‘आँगन में ठुनक रहा है ज़िदयाया है’ पंक्ति में कौन ज़िदयाया है ? कवि ने ‘ठुनक’ शब्द द्वारा बाल-मनोविज्ञान के किस पक्ष का वर्णन किया है ? (40 शब्दों में)

उत्तर – ‘आँगन में ठुनक रहा है ज़िदयाया है’ पंक्ति में कवि ने बाल-हठ का मनोहारी वर्णन किया है। कवि कहते हैं कि छोटा बच्चा अपने आँगन में मचल रहा है और जिद कर रहा है। उस बच्चे का मन चाँद को देख कर ललचाया हुआ है और वह उस आकाश के चांद को पाने की जिद्द कर रहा है। बच्चे की इस जिद्द पर माँ बच्चे को एक आईना पकड़ा देती है। कहने का आशय यह है कि एक माँ अपने बच्चे की ख़ुशी के लिए उसकी हर जिद्द को किसी न किसी तरह पूरा कर ही देती है।

 

प्रश्न 2 – ‘रुबाइयाँ’ शीर्षक कविता से ली गई – “हाथों पे झुलाती है उसे गोद-भरी” – पंक्ति के संदर्भ में ‘गोद-भरी’ प्रयोग का भाव स्पष्ट कीजिए । (40 शब्दों में)

उत्तर – माँ अपने घर के आंगन में अपने चांद के टुकड़े अर्थात अपने छोटे से बच्चे को लेकर खड़ी है। कभी वह माँ अपने बच्चे को अपने हाथों पर झूला झूलती है तो कभी उसे प्यार से गोद में भर लेती है। कभी-कभी वह माँ उस बच्चे को हवा में उछाल भी लेती हैं। माँ के इस प्यार-दुलार भरे खेल से बच्चा भी बहुत खुश होता है और खिलखिला कर हंस देता है। उस छोटे से बच्चे की हंसी से वह पूरा घर और घर का आंगन गूँज उठता है।

 

प्रश्न 3 – ‘रुबाइयाँ’ शीर्षक से ली गई ‘घुटनियों में लेके है पिन्हाती कपड़े’ – पंक्ति के आधार पर माँ की विशेषताओं का वर्णन कीजिए । (40 शब्दों में)

उत्तर – माँ अपने छोटे बच्चे को हिलते-डुलते साफ-सुथरे पानी से नहलाती है। नहाने से उसके अस्त-व्यस्त हुए बालों को कंधी कर धीरे-धीरे प्यार से सुलझाती व संवारती है। और जब माँ अपने बच्चे को अपने घुटनों के बीच पकड़ कर के कपड़े पहनाती है तो बच्चा कितने ही प्यार से अपनी माँ के चेहरे को देखता है। कहने का आशय यह है कि जिस प्यार से बच्चा अपनी माँ को निहारता है उसका शब्दों में वर्णन करना संभव नहीं है।

 

प्रश्न 4 – ‘रुबाइयाँ’ शीर्षक से ली गई पंक्ति – ‘किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को’ के संदर्भ में लिखिए कि बच्चा माँ की ओर क्यों देख रहा है ?(40 शब्दों में)

उत्तर – कवि ने माँ द्वारा बच्चे के नहाने की प्रक्रिया का मनोहारी वर्णन किया गया है। कवि कहते हैं कि माँ अपने छोटे बच्चे को हिलते-डुलते साफ-सुथरे पानी से नहलाती है। नहाने से उसके अस्त-व्यस्त हुए बालों को कंधी कर धीरे-धीरे प्यार से सुलझाती व संवारती है। और जब माँ अपने बच्चे को अपने घुटनों के बीच पकड़ कर के कपड़े पहनाती है तो बच्चा कितने ही प्यार से अपनी माँ के चेहरे को देखता है। कहने का आशय यह है कि जिस प्यार से बच्चा अपनी माँ को निहारता है उसका शब्दों में वर्णन करना संभव नहीं है।

 

प्रश्न 5 – फ़िराक की रुबाइयों में उभरे घरेलू जीवन के बिंबों का सौंदर्य स्पष्ट कीजिए । (60 शब्दों में)

उत्तर – फ़िराक गोरखपुरी की ‘रुबाइयाँ’ में हिंदी का एक घरेलू रूप दिखता है। इस रचना में कवि ने वात्सल्य वर्णन किया है। एक माँ अपने घर के आंगन में अपने चांद के टुकड़े को अपने हाथों पर झूला झूलती है तो कभी उसे प्यार से गोद में भर लेती है। कभी-कभी वह माँ उस बच्चे को हवा में उछाल भी लेती हैं। माँ के इस प्यार-दुलार भरे खेल से बच्चा भी बहुत खुश होता है और खिलखिला कर हंस देता है। जब माँ अपने बच्चे को अपने घुटनों के बीच पकड़ कर के कपड़े पहनाती है तो बच्चा कितने ही प्यार से अपनी माँ के चेहरे को देखता है। छोटा बच्चा अपने आँगन में मचल रहा है और जिद कर रहा है। उस बच्चे का मन चाँद को देख कर ललचाया हुआ है और वह उस आकाश के चांद को पाने की जिद्द कर रहा है। बच्चे की इस जिद्द पर माँ बच्चे को एक आईना पकड़ा देती है। और फिर उस दर्पण में चाँद का प्रतिबिम्ब दिखाकर बच्चे को समझा देती है कि देखो, आकाश का चांद शीशे में उतर आया है। रक्षाबंधन की सुबह आनंद व मिठास की सौगात है। रक्षाबंधन के दिन सुबह के समय आकाश में हल्के-हल्के बादल छाए हुए हैं। और जिस तरह उन बादलों के बीच बिजली चमक रही हैं ठीक उसी तरह राखी के लच्छों भी चमक रहे हैं। और बहिन बड़े ही प्यार से उस चमकती राखी को अपने भाई की कलाई पर बांधती हैं।

 

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Chapter 9 – छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख

 

प्रश्न 1 – निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उस पर आधारित दिए गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए :

झूमने लगे फल,

रस अलौकिक

अमृत धाराएँ फूटतीं

रोपाई क्षण की,

कटाई अनंतता की

लुटते रहने से जरा भी नहीं कम होती ।

रस का अक्षय पात्र सदा का

छोटा मेरा खेत चौकोना ।

 

(i) कवि-कर्म की दृष्टि से ‘झूमने लगे फल’ का आशय है :

(A) कृति का पूर्ण रूप ग्रहण करना

(B) साहित्य का आनंद आना

(C) खेतों में फ़सल लहलहाना

(D) हृदय का प्रसन्नता से झूमना

उत्तर – (A) कृति का पूर्ण रूप ग्रहण करना

 

(ii) निम्नलिखित कथनों पर विचार करते हुए पद्यांश के अनुसार सही कथन को चयनित कर लिखिए :

(A) कविता का आनंद शाश्वत है ।

(B) कविता का आनंद क्षणिक है ।

(C) कविता का आनंद सीमित है ।

(D) कविता का आनंद अल्पकाल तक है ।

उत्तर – (A) कविता का आनंद शाश्वत है ।

 

(iii) काव्यांश में ‘अलौकिक’ से तात्पर्य है :

(A) लौकिक

(B) अद्भुत

(C) अल्पज्ञ

(D) आस्था

उत्तर – (B) अद्भुत

 

(iv) निम्नलिखित कथन और कारण को ध्यानपूर्वक पढ़िए और सही विकल्प चुनकर लिखिए :

कथन : काव्यानंद जितना ही बँटता है उतना ही बढ़ता जाता है ।

कारण : साहित्य-सृजन प्राणिमात्र के मंगल के लिए है, काव्यानंद का वितरण लोक के आनंद का संवर्धन है ।

विकल्प :

(A) कथन सही है, कारण ग़लत है ।

(B) कथन सही नहीं है, कारण सही है ।

(C) कथन तथा कारण दोनों सही हैं, किंतु कारण, कथन की सही व्याख्या नहीं करता है ।

(D) कथन तथा कारण दोनों सही हैं, किंतु कारण, कथन की सही व्याख्या करता है ।

उत्तर – (D) कथन तथा कारण दोनों सही हैं, किंतु कारण, कथन की सही व्याख्या करता है ।

 

(v) ‘रस का अक्षय पात्र’ किसे कहा गया है ?

(A) कवि हृदय को

(B) कविता पढ़ने से मिले आनंद को

(C) साहित्य को

(D) चौकोने छोटे खेत को

उत्तर – (B) कविता पढ़ने से मिले आनंद को

 

प्रश्न 2 – ‘छोटा मेरा खेत’ कविता में ‘रस का अक्षय पात्र’ कथन के आलोक में रचनाधर्मिता की किन विशेषताओं की ओर संकेत किया है ? (40 शब्दों में)

उत्तर – अक्षय का अर्थ होता है – कभी नष्ट न होने वाला। कविता का रस इसी तरह का होता है। कवि की रचना से मिलने वाले रस अर्थात आनंद को कोई जितना भी लूट ले वह कभी भी समाप्त होने वाला नहीं है, वह तो लगातार बढ़ता जाता है। खेत का अनाज तो खत्म हो सकता है, लेकिन काव्य का रस कभी खत्म नहीं होता। कविता रूपी रस अनंतकाल तक बहता है। कविता रूपी अक्षय पात्र हमेशा भरा रहता है।

 

प्रश्न 3 – ‘बगुलों के पंख’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि ‘चुराए लिए जाती वे मेरी आँखें’ से कवि क्या कहना चाहता है ।(40 शब्दों में)

उत्तर – कवि आकाश में छाए काले बादलों में पंक्ति बनाकर उड़ते हुए बगुलों के सुंदर पंखों का वर्णन करता हुआ कहता है कि वह आकाश में पंक्ति बनाकर बगुलों को उड़ते हुए एकटक दृष्टि से देखता रहता है। यह दृश्य कवि की आँखों को चुरा ले जाता है अर्थात कवि को यह दृश्य अत्यधिक मनमोहक लगता है।

 

प्रश्न 4 – ‘बगुलों के पंख’ कविता में ‘हौले-हौले जाती मुझे बाँध निज माया से’ – पंक्ति का क्या अभिप्राय है? (40 शब्दों में)

उत्तर – काले बादल आकाश पर किसी छाया अर्थात परछाई की तरह छाए हुए हैं और बगुलों की पंक्ति आकाश में ऐसी प्रतीत हो रही है जैसे सायंकाल में चमकीला सफेद शरीर काले बादल भरे आकाश में तैर रहा हो। यह दृश्य कवि को इतना मनमोहक लगता है कि उन्हें महसूस होता है कि अपने जादू से यह दृश्य उन्हें धीरे-धीरे अपने साथ बाँध रहा है।

 

प्रश्न 5 – ‘बगुलों के पंख’ कविता में आई पंक्ति ‘उसे तनिक रोक रक्खो’ का भाव स्पष्ट कीजिए ।(40 शब्दों में)

उत्तर – बगुलों की पंक्ति उड़ते-उड़ते दूर जा रही है और मनोहक दृश्य कवि की आँखों से ओझल हो रहा है इस कारण कवि कहता है कि कोई इस मनमोहक दृश्य को लुप्त होने से रोक लें। इस आकर्षक दृश्य का कवि पर इतना प्रभाव पड़ा है कि आकाश में उड़तें पंक्तिबद्ध बगुलों के पंखों में कवि की आँखें अटककर रह जाती हैं। अर्थात कवि बगुलों की उस पंक्ति से अपनी आँखें नहीं हटा पा रहा है।

 

प्रश्न 6 – ‘छोटा मेरा खेत’ कविता के आधार पर लिखिए कि काव्य-रचना की प्रक्रिया किन चरणों से होकर एक कृति के रूप में पूर्ण होती है ।(60 शब्दों में)

उत्तर – कवि के मन में कहीं से कोई भावनात्मक तूफान आया और उसके मन में विचार नामक बीज बोकर चला गया। वह विचार नामक बीज कवि के कल्पना नामक सभी रसायनों को पी जाता है और जिस प्रकार रसायनों को पी कर बीज गल जाता है और अंकुरित हो जाता है ठीक उसी प्रकार से कवि के मन का विचार कवि की कल्पनाओं के माध्यम से कागज पर अंकित हो जाता है। जिस प्रकार खेती में बीज विकसित होकर पौधे का रूप धारण कर लेता है और पत्तों व फूलों से लदकर झुक जाता है। ठीक उसी प्रकार जब कवि के विचार कल्पना का सहारा लेते हैं तब शब्दों के अंकुर फूटने से कवि के विचार रचना का रूप ले लेते है।

 

प्रश्न 7 – ‘छोटा मेरा खेत’ कविता के आधार पर कवि – कर्म और कृषि कर्म में समानता और विविधता का उल्लेख अपने शब्दों में कीजिए ।(60 शब्दों में)

उत्तर – जिस तरीके से खेत पर किसान खेती करता है, ठीक उसी तरह पन्ने पर कवि कविता लिखता है। इसलिए कवि पन्ने को खेत कह रहा है। कवि ने कवि कर्म अर्थात कविता निर्माण को खेत में बीज रोपने की तरह माना है। इसके माध्यम से कवि यह बताना चाहता है कि कविता की रचना करना कोई सरल कार्य नहीं है। क्योंकि जिस प्रकार खेत में बीज बोने से लेकर फ़सल काटने तक कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, ठीक उसी प्रकार कविता की रचना करने के लिए अनेक प्रकार के कठिन कार्य करने पड़ते हैं और अनेक भावनात्मक विचारों को झेलना पड़ता है।

 

प्रश्न 8 – ‘छोटा मेरा खेत’ कविता के आधार पर कवि-कर्म और कृषि-कर्म के रूपक को स्पष्ट कीजिए ।(60 शब्दों में)

उत्तर – कवि ने कवि कर्म को कृषक के कार्य के समान बताया है। जिस तरीके से खेत पर किसान खेती करता है, ठीक उसी तरह पन्ने पर कवि कविता लिखता है। इसलिए कवि पन्ने को खेत कह रहा है। कवि ने कवि कर्म अर्थात कविता निर्माण को खेत में बीज रोपने की तरह माना है। इसके माध्यम से कवि यह बताना चाहता है कि कविता की रचना करना कोई सरल कार्य नहीं है। क्योंकि जिस प्रकार खेत में बीज बोने से लेकर फ़सल काटने तक कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, ठीक उसी प्रकार कविता की रचना करने के लिए अनेक प्रकार के कठिन कार्य करने पड़ते हैं और अनेक भावनात्मक विचारों को झेलना पड़ता है। कहने का आशय यह है कि किसान भी खेत में बीज बोता है, वह बीज अंकुरित होकर फसल बनता है और जनता का पेट भरता है। इसी तरह कवि भी कागज़ रूपी खेत पर अपने विचारों के बीज बोता है। कल्पना का आश्रय पाकर वह विचार विकसित होकर रचना का रूप धारण करता है। इस रचना के रस से मनुष्य की मानसिक जरूरत पूरी होती है।

 

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Chapter 10 – भक्तिन

 

प्रश्न 1 – निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उस पर आधारित दिए गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए:

क्या-क्या सामान बाँध लें, जिससे मुझे वहाँ किसी प्रकार की असुविधा न हो सके । ऐसी यात्रा में किसी को किसी के साथ जाने का अधिकार नहीं, यह आश्वासन भक्तिन के लिए कोई मूल्य नहीं रखता । वह मेरे न जाने की कल्पना से इतनी प्रसन्न नहीं होती, जितनी अपने साथ न जा सकने की संभावना से अपमानित । भला ऐसा अंधेर हो सकता है । जहाँ मालिक वहाँ नौकर – मालिक को ले जाकर बंद कर देने में इतना अन्याय नहीं; पर नौकर को अकेले मुक्त छोड़ देने में पहाड़ के बराबर अन्याय है । ऐसा अन्याय होने पर भक्तिन को बड़े लाट तक लड़ना पड़ेगा । किसी की माई यदि बड़े लाट तक नहीं लड़ी, तो नहीं लड़ी; पर भक्तिन का तो बिना लड़े काम ही नहीं चल सकता ।

 

(i) ‘ऐसी यात्रा में किसी को किसी के साथ जाने का अधिकार नहीं ।’ पंक्ति में प्रयुक्त ‘ऐसी यात्रा’ से क्या अभिप्राय है ?

(A) तीर्थ यात्रा

(B) जेल यात्रा

(C) अंतिम यात्रा

(D) विदेश यात्रा

उत्तर – (B) जेल यात्रा

 

(ii) भक्तिन किस बात को अपने लिए अपमान समझती थी ?

(A) पाक कला में मीन – मेख निकालने को

(B) महादेवी जी की आज्ञा का पालन न करने को

(C) उनकी पसंद का खाना न बना सकने की बात को

(D) कठिन परिस्थितियों में महादेवी जी को अकेला छोड़ देने को

उत्तर – (D) कठिन परिस्थितियों में महादेवी जी को अकेला छोड़ देने को

 

(iii) गद्यांश के संदर्भ में ‘अंधेर होना’ का क्या अर्थ है ?

(A) अंधकार होना

(B) बेईमानी होना

(C) अपमान होना

(D) अन्याय होना

उत्तर – (C) अपमान होना

 

(iv) ‘क्या-क्या ……… असुविधा न हो सके ।’ – इस वाक्य से महादेवी जी के प्रति भक्तिन की किस भावना का पता चलता ?

(A) निष्ठा और कर्तव्यपरायणता

(B) दृढ़ता और धर्मपरायणता

(C) आत्मीयता और भावुकता

(D) सेवा और तत्परता

उत्तर – (A) निष्ठा और कर्तव्यपरायणता

 

(v) भक्तिन बड़े लाट साहब से भी लड़ने को क्यों तैयार है ?

(A) महादेवी जी को जेल भेजने का आदेश देने के कारण

(B) छोटे-छोटे लड़को को जेल में डालने के कारण

(C) स्वतंत्रता सेनानियों को जेल में डालने के कारण

(D) महादेवी जी को जेल में डालने और उसे मुक्त छोड़ने के कारण

उत्तर – (D) महादेवी जी को जेल में डालने और उसे मुक्त छोड़ने के कारण

 

प्रश्न 2 – निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उस पर आधारित दिए गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए:

पिता का उस पर अगाध प्रेम होने के कारण स्वभावतः ईर्ष्यालु और संपत्ति की रक्षा में सतर्क विमाता ने मरणांतक रोग का समाचार तब भेजा, जब वह मृत्यु की सूचना भी बन चुका था । रोने-पीटने के अपशकुन से बचने के लिए सास ने भी उसे कुछ न बताया । बहुत दिन से नैहर नहीं गई, सो जाकर देख आवे, यही कहकर और पहना – उढ़ाकर सास ने उसे विदा कर दिया । इस अप्रत्याशित अनुग्रह ने उसके पैरों में जो पंख लगा दिए थे, वे गाँव की सीमा में पहुँचते ही झड़ गए । ‘हाय लछमिन अब आई’ की अस्पष्ट पुनरावृत्तियाँ और स्पष्ट सहानुभूतिपूर्ण दृष्टियाँ उसे घर तक ठेल ले गईं । पर वहाँ न पिता का चिह्न शेष था, न विमाता के व्यवहार में शिष्टाचार का लेश था । दुख से शिथिल और अपमान से जलती हुई वह उस घर में पानी भी बिना पिए उलटे पैरों ससुराल लौट पड़ी । सास को खरी खोटी सुनाकर उसने विमाता पर आया हुआ क्रोध शांत किया और पति के ऊपर गहने फेंक-फेंककर उसने पिता के चिर बिछोह की मर्मव्यथा व्यक्त की ।

 

(i) विमाता द्वारा भक्तिन के पास उसके पिता की मृत्यु का समाचार देर से पहुँचाने का कारण क्या नहीं है ?

(A) पिता का उस पर अगाध प्रेम होना ।

(B) संपत्ति उसके नाम किए जाने का भय होना ।

(C) उसके रोने-पीटने से अपशकुन होना ।

(D) मन ही मन भक्तिन से ईर्ष्या होना ।

उत्तर – (B) संपत्ति उसके नाम किए जाने का भय होना ।

 

(ii) ‘पैरों के पंख गाँव की सीमा में पहुँचते ही झड़ गए ।’ – पंक्ति का आशय है

(A) खुशी का समाप्त हो जाना

(B) थकावट का अनुभव हो जाना

(C) असलियत का पता लगना

(D) पैरों की गति शिथिल होना

उत्तर – (A) खुशी का समाप्त हो जाना

 

(iii) ‘हाय लछमिन अब आई’ – गाँववालों द्वारा कहे गए ये शब्द प्रकट करते हैं –

(A) उसके प्रति सहानुभूति

(B) उसके प्रति ममता

(C) उसके प्रति दुख

(D) उसके प्रति उपहास

उत्तर – (A) उसके प्रति सहानुभूति

 

(iv) गद्यांश में प्रयुक्त ‘अप्रत्याशित अनुग्रह’ क्या था ?

(A) सास द्वारा भक्तिन का साज-श्रृंगार कर पिता के घर विदा करना ।

(B) सास द्वारा भक्तिन को नैहर जाने के लिए कहना ।

(C) विमाता द्वारा भक्तिन के लिए बुलावा भेजना ।

(D) सास का भक्तिन के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करना ।

उत्तर – (A) सास द्वारा भक्तिन का साज-श्रृंगार कर पिता के घर विदा करना ।

 

(v) निम्नलिखित कथनों पर विचार करते हुए गद्यांश के अनुसार सही कथन को चयनित कर लिखिए :

(A) दुखी अपमानित भक्तिन उलटे पैरों ससुराल लौट आई ।

(B) उसका सत्कार करने वाला पूरे गाँव में कोई नहीं था ।

(C) विमाता पर आया क्रोध उसने पति पर गहने फेंककर शांत किया ।

(D) सास को भला-बुरा कहकर उसने पिता की मृत्यु का दुख शांत किया ।

उत्तर – (A) दुखी अपमानित भक्तिन उलटे पैरों ससुराल लौट आई ।

 

प्रश्न 3 – भक्तिन और लेखिका के बीच कैसा संबंध था ? क्या वह लेखिका के घर में एक सेविका के रूप में थी ? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए। (40 शब्दों में)

उत्तर – भक्तिन व लेखिका के बीच आत्मीय सम्बन्ध था। उनका सम्बन्ध नौकरानी या स्वामिनी का संबंध बिलकुल नहीं था। वे आत्मीय जन की तरह थे। लेखिका भक्तिन की स्वामिनी थी किन्तु अपनी इच्छा होने पर भी वह उसे हटा नहीं सकती थी। और यदि कभी लेखिका भक्तिन को चले जाने के लिए भी कह दे फिर भी भक्तिन लेखिका की बात को मज़ाक बनाकर हँस देती थी। भक्तिन को नौकर कहना उतना ही असंगत है, जितना अपने घर में बारी-बारी से आने-जाने वाले अँधेरे-उजाले और आँगन में फूलों वाले गुलाब और आम को सेवक मानना। जिस प्रकार एक अस्तित्व रखते है जिसे सार्थकता देने के लिए ही हमें सुख-दुख देते हैं, उसी प्रकार भक्तिन का स्वतंत्र व्यक्तित्व अपने विकास के लिए लेखिका के जीवन को घेरे है।

 

प्रश्न 4 – भक्तिन का दुर्भाग्य क्या था ? लेखिका ने उसे और उसके दुर्भाग्य को हठी क्यों कहा है? (40 शब्दों में)

उत्तर – भक्तिन का दुर्भाग्य भी उससे कम हठी नहीं था, इसी से किशोरी से युवती होते ही बड़ी लड़की भी विधवा हो गई। भक्तिन से पार न पा सकने वाले जेठों और काकी को परास्त करने के लिए कटिबद्ध जिठौतों ने आशा की एक किरण देख पाई। विधवा बहिन के गठबंधन के लिए बड़ा जिठौत अपने तीतर लड़ाने वाले साले को बुला लाया, क्योंकि उसका हो जाने पर सब कुछ उन्हीं के अधिकार में रहता। भक्तिन की लड़की भी माँ से कम समझदार नहीं थी, इसी से उसने वर को नापसंद कर दिया। परन्तु एक दिन माँ की अनुपस्थिति में वर महाशय ने बेटी की कोठरी में घुस कर भीतर से द्वार बंद कर लिया और उसके समर्थक गाँववालों को बुलाने लगे। अपीलहीन फैसला हुआ कि चाहे उन दोनों में एक सच्चा हो चाहे दोनों झूठे; पर जब वे एक कोठरी से निकले, तब उनका पति-पत्नी के रूप में रहना ही कलियुग के दोष का परिमार्जन कर सकता है। संबंध कुछ सुखकर नहीं हुआ, क्योंकि दामाद अब निश्चित होकर तीतर लड़ाता था और बेटी विवश क्रोध से जलती रहती थी। इतने यत्न से सँभाले हुए गाय-ढोर, खेती-बारी जब पारिवारिक द्वेष में ऐसे झुलस गए कि लगान अदा करना भी भारी हो गया, सुख से रहने की कौन कहे। अंत में एक बार लगान न पहुंँचने पर ज़मींदार ने भक्तिन को बुलाकर दिन भर कड़ी धूप में खड़ा रखा। यह अपमान तो उसकी कर्मठता में सबसे बड़ा कलंक बन गया, अतः दूसरे ही दिन भक्तिन कमाई के विचार से शहर आ पहुँची।

 

प्रश्न 5 – पाठ के आधार पर लिखिए कि भक्तिन कौन-से बड़े लाट से भी लड़ने को तैयार है और इसका क्या कारण है। (40 शब्दों में)

उत्तर – भक्तिन कारागार से बहुत डरती थी, इसी बात पर लोग उसे चिढ़ाते थे कि लेखिका को कारागार में डाला जा सकता है। इस पर कारागार से डरने के बावजूद भी भक्तिन लेखिका के साथ कारागार चलने का हठ करने लगी थी। अपनी मालकिन के साथ जेल जाने के हक के लिए वह बड़े लाट तक से लड़ने को तैयार थी।

 

प्रश्न 6 – ‘खोटे सिक्कों की टकसाल’ किसे और क्यों कहा गया है ? ‘भक्तिन’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए । (40 शब्दों में)

उत्तर – ‘खोटे सिक्कों की टकसाल’ लछमिन को कहा गया है क्योंकि उसने तीन पुत्रियों को जन्म दिया था। भारत में लड़कियों को ‘खोटा सिक्का’ कहा जाता है। उनकी दशा हीन होती है।

 

प्रश्न 7 – भक्तिन की किन्हीं तीन चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए । (60 शब्दों में)

उत्तर – ‘भक्तिन’ लेखिका की सेविका है और लेखिका ने इस लेख में भक्तिन के जीवन-संघर्ष का वर्णन किया है। पाठ में भक्तिन के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ उजागर होती हैं –

भक्तिन का व्यक्तित्व – भक्तिन एक अधेड़ उम्र की महिला है। उसका कद छोटा व शरीर दुबला-पतला है। उसके होंठ पतले हैं तथा आँखें छोटी हैं।

परिश्रमी – भक्तिन एक परिश्रमी महिला है। ससुराल में भी उसने बहुत मेहनत की है। वह घर, खेत, पशुओं आदि का सारा कार्य अकेले संभालती है। लेखिका के घर में भी वह उसके सारे कामकाज को पूरी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा से करती है। वह लेखिका के हर कार्य में सहायता करती है।

स्वाभिमानिनी – भक्तिन बेहद स्वाभिमानिनी महिला है। पिता की मृत्यु पर विमाता के कठोर व्यवहार से उसने मायके में पानी पीना भी सही नहीं समझा और मायके जाना छोड़ दिया। पति की मृत्यु के बाद उसने दुसरा विवाह नहीं किया तथा स्वयं मेहनत करके घर चलाया। जमींदार द्वारा अपमानित किए जाने पर वह गाँव छोड़कर शहर आ गई।

सच्ची सेविका – भक्तिन में सच्चे सेवक के सभी गुण हैं। लेखिका ने उसे हनुमान जी से स्पद्र्धा करने वाली बताया है। वह छाया की तरह लेखिका के साथ रहती है तथा उसका गुणगान करती है। जेल से डरने के बावजूद भी वह लेखिका के साथ जेल जाने के लिए भी तैयार है। वह युद्ध, यात्रा आदि में हर समय उसके साथ रहना चाहती है।

 

प्रश्न 8 – अनेक कमियों के होते हुए भी भक्तिन लेखिका के लिए अनमोल क्यों थी ? (60 शब्दों में)

उत्तर – अनेक कमियों के होते हुए भी भक्तिन लेखिका के लिए अनमोल थी क्योंकि वह लेखिका पर आने वाले हर कष्ट को अपने ऊपर लेने को तैयार थी। वह लेखिका की सेवा पूरी निष्ठा से करती थी। लेखिका के पास पैसे की कमी की बात सुनकर वह अपने जीवन भर की सारी कमाई लेखिका को देना चाहती थी।

 

प्रश्न 9 – “भक्तिन वाक्पटू थी ।” – पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए । (60 शब्दों में)

उत्तर – यह कथन सही है कि “भक्तिन वाक्पटू थी ।” उसके पास हर बात का सटीक उत्तर तैयार रहता था। लेखिका ने जब उसको सिर घुटाने से रोका तो उसका उत्तर था – तीरथ गए मुंडाए सिद्ध’ इसी तरह उसके बनाएँ खाने पर कटाक्ष करने पर उसने उत्तर दिया – वह कुछ अनाड़िन या फूछड़ नहीं। ससुर, पितिया ससुर, अजिया सास आदि ने उसकी पाक कुशलता के लिए न जाने कितने मौखिक प्रमाणपत्र दे डाले थे।

 

प्रश्न 10 – घर के अन्य सहायकों की अपेक्षा भक्तिन की महादेवी जी से अंतरंगता किस प्रकार प्रमाणित होती है ? (60 शब्दों में)

उत्तर – घर के अन्य सहायकों की अपेक्षा भक्तिन की महादेवी जी से अंतरंगता अनेक कारणों से प्रमाणित होती है जैसे – कभी उत्तर-पुस्तकों को बाँधकर, कभी अधूरे चित्र को कोने में रखकर, कभी रंग की प्याली धोकर और कभी चटाई को आँचल से झाड़कर वह जैसी सहायता पहुँचाती है, उससे भक्तिन का अन्य व्यक्तियों से अधिक बुद्धिमान होना प्रमाणित हो जाता है। जब कभी लेखिका किसी चित्र को पूरा करने में व्यस्त होने पर बार-बार भोजन के लिए बुलाने पर भी नहीं आतीं, तब भक्तिन कभी दही का शरबत, कभी तुलसी की चाय लेखिका को देकर लेखिका की भूख का कष्ट नहीं सहने देती। दिन भर के कार्य-भार से छुट्टी पाकर जब लेखिका कोई लेख समाप्त करने या भाव को छंदबद्ध करने बैठती हूँ, तब उसकी हिरनी सोना, कुत्ता बसंत और बिल्ली गोधूलि सभी सो जाते। परन्तु लेखिका को रात की निस्तब्धता में अकेली न छोड़ने के विचार से कोने में दरी के आसन पर बैठकर बिजली की चकाचौंध से आँखें मिचमिचाती हुई भक्तिन, प्रशांत भाव से जागरण करती है। इस तरह भक्तिन लेखिका से पहले जागती और लेखिका के सोने के बाद सोती और लेखिका के साथ छाया के समान साथ-साथ रहती।

 

प्रश्न 11 – लछमिन (भक्तिन) के लिए अप्रत्याशित अनुग्रह क्या था ? लछमिन पर उसका क्या प्रभाव पड़ा ? (60 शब्दों में)

उत्तर – सास द्वारा लछमिन को नए कपड़े पहनाना, मायके भेजना, नम्र व्यवहार करना-सब कुछ लछमिन के लिए अप्रत्याशित अनुग्रह था। क्योंकि बिना किसी पूर्व सुचना या बिना माता-पिता के बुलावे के ही लछमिन की सास उसे पिता के घर खुशी-खुशी भेज रही थी। इस ‘अप्रत्यक्ष छल’ को लछमिन न समझ सकी और वह खुशी-खुशी मायके चली गई। लछमिन तो उत्साह से भरकर पिता के घर आई थी। परन्तु जैसे ही उसने जाना कि पिता की मृत्यु भी हो चुकी और उसे सूचित भी नहीं किया गया, उसका मन दुख एवं अवसार से भर गया। कम से कम समय से सूचना मिली होती तो बीमार पिता से मिल तो लेती तो विमाता की सारी चाल वह समझ गई और दुख से शिथिल तथा अपमान से जलती हुई लछमिन बिना पानी पिए लौट गई।

 

प्रश्न 12. ‘उपनाम रखने की प्रतिभा होती, तो मैं सबसे पहले इसका प्रयोग अपने ऊपर करती’ – ‘भक्तिन’ पाठ में लेखिका ने यह कथन किस संदर्भ में और क्यों कहा ?(40 शब्दों में)

उत्तर – ‘उपनाम रखने की प्रतिभा होती, तो मैं सबसे पहले इसका प्रयोग अपने ऊपर करती’ – ‘भक्तिन’ पाठ में लेखिका ने यह कथन अपने व् भक्तिन के नाम के विरोधाभास के संदर्भ में कहा क्योंकि लेखिका का नाम था-महादेवी। उसके घर काम करने वाली भक्तिन का नाम था लछमिन अर्थात् लक्ष्मी। दोनों को नामों के विरोधाभास में जीना पड़ रहा था। लेखिका महान देवी न होकर सामान्य नारी थी और भक्तिन लक्ष्मी जैसी समृद्ध न होकर अत्यंत गरीब, दीन-हीन थी। दोनों के नाम और वास्तविक जीवन में बड़ा विरोधाभास था।

 

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Chapter 11 – बाज़ार दर्शन

 

प्रश्न 1 – ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ के आधार पर बताइए कि भगत जी बाज़ार को सार्थकता प्रदान कर रहे हैं और समाज में सद्भाव विकसित कर रहे हैं, कैसे ?(40 शब्दों में)

उत्तर – भगत जी बहुत ही संतोषी व्यक्ति हैं। अत्यधिक धन कमाने या इकट्ठा करने में उनकी बिलकुल रुचि नहीं है। इसीलिए छह आने की आमदनी होने के बाद वो बचा चूर्ण बच्चों में बाँट देते हैं। यहाँ तक की उनका अपने मन पर भी पूरा नियंत्रण रहता है। वो जब अपने सामान के लिए भी बाजार जाते हैं तो बाजार की चकाचौंध से आकर्षित हुए बिना सिर्फ अपनी जरूरत का सामान खरीद कर सीधे अपने घर वापस आते हैं। भगत जी जैसे लोग ही बाजार को उसकी सच्ची सार्थकता देते हैं। ऐसे लोग समाज को प्रेम, भाईचारे व सदभावना का संदेश देते हैं और हमारी नज़र में भी उनका जैसे आचरण रखने वाले व्यक्ति समाज में शांति स्थापित करने में मददगार हो सकते हैं।

 

प्रश्न 2 – पर्चेज़िंग पावर से क्या तात्पर्य है, बाज़ार पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है ? (40 शब्दों में)

उत्तर – पैसा ही पावर है क्योंकि आज के समय में पैसे से ही सब कुछ खरीदा जा सकता हैं। बिना पैसे के जीवन जीना असंभव है। पैसे में पर्चेजिंग पावर है कहने का आशय यह है कि जेब में जितना अधिक पैसा होगा, उतना ही अधिक सामान की खरीदारी की जा सकेगी। फिर चाहे वो सामान उनकी जरूरत का हो या न हो। कुछ लोग इसी पर्चेजिंग पावर का इस्तेमाल करने में खुशी महसूस करते हैं।

 

प्रश्न 3 – बाज़ार का जादू ‘आँख की राह’ किस प्रकार काम करता है ?(40 शब्दों में)

उत्तर – बाजार में एक जादू हैं जो आँखों के रास्ते काम करता हैं। बाजार की जादुई ताकत हमें अपना गुलाम बना लेती है। अगर हम अपनी आवश्यकताओं को ठीक-ठीक समझकर बाजार का उपयोग करें, तो उसका लाभ उठा सकते हैं। लेकिन अगर हम ज़रूरत को तय कर बाजार में जाने के बजाय उसकी चमक-दमक में फँस गए तो वह असंतोष, तृष्णा और ईर्ष्या से घायल कर हमें सदा के लिए बेकार बना सकता है। अगर मन खाली हो तो बाजार जाना ही नहीं चाहिए। क्योंकि अगर आँखे बंद भी कर ली जाए तो तब भी मन यहां वहां घूमता रहता है। हमें अपने मन पर खुद ही नियंत्रण रखना होगा। क्योंकि अगर व्यक्ति की जेब भरी है और मन भी भरा है तो बाजार का जादू उस पर असर नहीं करेगा। लेकिन अगर जेब भरी है और मन खाली है तो बाजार उसे जरूर आकर्षित करेगा। और फिर व्यक्ति को सभी चीज़े अपने काम की लगेगी और बिना सोचे विचारे वह सारा सामान खरीदने लगेगा।

 

प्रश्न 4 – ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ में छल-कपट से परिपूर्ण बाज़ार का पोषण करने वाले अर्थशास्त्र के लिए प्रयुक्त दो विशेषणों का औचित्य स्पष्ट कीजिए ।(40 शब्दों में)

उत्तर – बाजार छल व कपट से निरर्थक वस्तुओं की खरीदफ़रोख्त, दिखावे व ताकत के आधार पर होने लगती है तो बाजार का बाजारूपन बढ़ जाता है। क्रय-शक्ति से संपन्न की पुलेि व्यिक्त बाल्पिनक बताते हैं। इसप्रतिसे बारक सवा लधनाह मिलता। शणक प्रति बढ़ जाती है। वे व्यक्ति जो अपनी आवश्यकता के बारे में निश्चित होते हैं, बाजार को सार्थकता प्रदान करते हैं। बाजार का कार्य मनुष्य कल कपू करता है जहातक सामान मल्नेप बार सार्थकह जाता है। यह पॉड” पावरक प्रर्शना नहीं होता।

 

प्रश्न 5 – ‘बाजार दर्शन’ पाठ के संदर्भ में लिखिए कि बाजार जाते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?(40 शब्दों में)

उत्तर – व्यक्ति का अपने मन पर नियंत्रण होना चाहिए। लेकिन जो लोग अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण नहीं रखते हैं। ऐसे व्यक्ति न तो खुद बाज़ार से कुछ लाभ उठा सकते हैं और न ही बाजार को लाभ दे सकते हैं। ये लोग सिर्फ बाजार का बाजारूपन बढ़ाते हैं। जिससे बाजार में छल कपट बढ़ता हैं। सद्भावना का नाश होता हैं। फिर ग्राहक और विक्रेता के बीच संबंध सद्भावना का न होकर, केवल लाभ-हानि तक ही सीमित रहता हैं।

 

प्रश्न 6 – ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ के आधार पर लिखिए कि बाज़ार में कौन-सा चुंबकीय जादू होता है ? कारण सहित अपने शब्दों में लिखिए ।(40 शब्दों में)

उत्तर – बाजार की जादुई ताकत हमें अपना गुलाम बना लेती है। अगर हम अपनी आवश्यकताओं को ठीक-ठीक समझकर बाजार का उपयोग करें, तो उसका लाभ उठा सकते हैं। लेकिन अगर हम ज़रूरत को तय कर बाजार में जाने के बजाय उसकी चमक-दमक में फँस गए तो वह असंतोष, तृष्णा और ईर्ष्या से घायल कर हमें सदा के लिए बेकार बना सकता है। अगर मन खाली हो तो बाजार जाना ही नहीं चाहिए। क्योंकि अगर आँखे बंद भी कर ली जाए तो तब भी मन यहां वहां घूमता रहता है। हमें अपने मन पर खुद ही नियंत्रण रखना होगा। क्योंकि अगर व्यक्ति की जेब भरी है और मन भी भरा है तो बाजार का जादू उस पर असर नहीं करेगा। लेकिन अगर जेब भरी है और मन खाली है तो बाजार उसे जरूर आकर्षित करेगा। और फिर व्यक्ति को सभी चीज़े अपने काम की लगेगी और बिना सोचे विचारे वह सारा सामान खरीदने लगेगा।

 

प्रश्न 7 – ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए कि बाज़ार का आमंत्रण मूक होता है । (40 शब्दों में)

उत्तर – बाजार तो शैतान का जाल है। जहाँ सामान को कुछ इस तरह आकर्षक तरीके से रखा जाता हैं कि आदमी आकर्षित हुए बिना नहीं रह सकता हैं। लेखक कहते हैं कि बाजार सबको मूक आमंत्रित करता हैं। बाजार का तो काम ही ग्राहकों को आकर्षित करना है। जब कोई व्यक्ति बाजार में खड़ा होता है तो आकर्षक तरीके से रखे हुए सामान को देख कर उसके मन में उस सामान को लेने की तीव्र इच्छा हो जाती है। और अगर उसके पास पर्चेजिंग पावर है तो वह बाजार की गिरफ्त में आ ही जाएगा।

 

प्रश्न 8 – ‘बाजार दर्शन’ पाठ के आधार पर लिखिए कि पर्चेजिंग पावर से क्या अभिप्राय है ? यह किस रूप में दिखाई देता है ?(60 शब्दों में)

उत्तर – पैसा ही पावर है क्योंकि आज के समय में पैसे से ही सब कुछ खरीदा जा सकता हैं। बिना पैसे के जीवन जीना असंभव है। पैसे में पर्चेजिंग पावर है कहने का आशय यह है कि जेब में जितना अधिक पैसा होगा, उतना ही अधिक सामान की खरीदारी की जा सकेगी। फिर चाहे वो सामान उनकी जरूरत का हो या न हो। कुछ लोग इसी पर्चेजिंग पावर का इस्तेमाल करने में खुशी महसूस करते हैं।

 

प्रश्न 9 – “मन लक्ष्य से भरा हो तो बाजार भी फैला का फैला ही रह जाएगा।” ‘बाजार दर्शन’ पाठ के संदर्भ में इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए ।(60 शब्दों में)

उत्तर – “मन लक्ष्य से भरा हो तो बाजार भी फैला का फैला ही रह जाएगा।” इस कथन का आशय यह है कि जब बाजार में हम वस्तुओं को देखते हैं तो उन सभी वस्तुओं को लेने का मन करता है। लेकिन उन सभी को तो हम नहीं सकते और अगर हम थोड़ा लेते तो बाकी छूट जाता और हम तो कुछ भी नहीं छोड़ना चाहते। इसलिए हमें ध्यान रहना चाहिए कि जब पता ही न हो कि हमें क्या लेना हैं? तो बाजार की सभी वस्तुएं हमें अपनी और आकर्षित करेंगी। जिसका परिणाम हमेशा बुरा ही होगा। क्योंकि हम ऐसी स्थिति में बेकार की चीजों को ले आएँगे।

 

प्रश्न 10 – ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ के आधार पर लिखिए कि बाज़ार का वह कौन-सा रूप है जिसका पोषण करने वाला शास्त्र अर्थशास्त्र न होकर नीतिशास्त्र है ? और क्यों ?(60 शब्दों में)

उत्तर – व्यक्ति का अपने मन पर नियंत्रण होना चाहिए। लेकिन जो लोग अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण नहीं रखते हैं। ऐसे व्यक्ति न तो खुद बाज़ार से कुछ लाभ उठा सकते हैं और न ही बाजार को लाभ दे सकते हैं। ये लोग सिर्फ बाजार का बाजारूपन बढ़ाते हैं। जिससे बाजार में छल कपट बढ़ता हैं। सद्भावना का नाश होता हैं। फिर ग्राहक और विक्रेता के बीच संबंध सद्भावना का न होकर, केवल लाभ-हानि तक ही सीमित रहता हैं। सद्भाव से हीन बाजार मानवता के लिए विडंबना है और ऐसे बाज़ार का अर्थशास्त्र अनीति का शास्त्र है।

 

प्रश्न 11 – ‘खाली मन तथा भरी जेब’ से लेखक का क्या आशय है ? इन बातों से बाज़ार कैसे प्रभावित होता है ? ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ के संदर्भ में लिखिए । (60 शब्दों में)

उत्तर – ‘खाली मन तथा भरी जेब’ से लेखक का आशय यह है कि अगर मन खाली हो तो बाजार जाना ही नहीं चाहिए। क्योंकि अगर आँखे बंद भी कर ली जाए तो तब भी मन यहां वहां घूमता रहता है। हमें अपने मन पर खुद ही नियंत्रण रखना होगा। क्योंकि अगर व्यक्ति की जेब भरी है और मन भी भरा है तो बाजार का जादू उस पर असर नहीं करेगा। लेकिन अगर जेब भरी है और मन खाली है तो बाजार उसे जरूर आकर्षित करेगा। और फिर व्यक्ति को सभी चीज़े अपने काम की लगेगी और बिना सोचे विचारे वह सारा सामान खरीदने लगेगा।

 

प्रश्न 12 – बाज़ार केवल क्रेता की क्रय शक्ति को देखता है, अन्य कारकों को नहीं । क्या बाज़ार की यह विशेषता ‘सामाजिक समरसता’ को बढ़ावा देती है ? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए ।(60 शब्दों में)

उत्तर – यह बात बिलकुल सत्य है कि बाजार कभी किसी को लिंग, जाति, धर्म या क्षेत्र के आधार पर नहीं देखता। वह केवल व्यक्ति के खरीदने की शक्ति को देखता है। अर्थात जो व्यक्ति जेब से जितना भरा होगा और मन से खाली होगा वह बाजार के लिए उपयोगी होगा। कहने का आशय यह है कि जो व्यक्ति जितना अधिक सामान खरीद सकता है वह बाजार में सर्वश्रेष्ठ है। बाजार ग्राहक को सिर्फ ग्राहक मानता हैं। वह गरीब-अमीर या किसी धर्म विशेष का नहीं मानता हैं। जिससे वह एक प्रकार से सामाजिक समता की रचना भी कर रहा है।

 

प्रश्न 13 – ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ में लेखक ने किस बाज़ार को मानवता के लिए विडम्बना कहा है ? (60 शब्दों में)

उत्तर – लेखक ने बाज़ार को मानवता के लिए विडम्बना कहा है क्योंकि जब पता ही न हो कि हमें क्या लेना हैं? तो बाजार की सभी वस्तुएं हमें अपनी और आकर्षित करेंगी। जिसका परिणाम हमेशा बुरा ही होगा। क्योंकि हम ऐसी स्थिति में बेकार की चीजों को ले आएँगे। लेखक आगे कहते हैं कि बाजार में एक जादू हैं जो आँखों के रास्ते काम करता हैं।

 

प्रश्न 14 – ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि ‘मन बंद न हो’, ‘मन खाली हो और मन खाली न हो’ से लेखक क्या कहना चाहता है ।(60 शब्दों में)

उत्तर – अगर मन खाली हो तो बाजार जाना ही नहीं चाहिए। क्योंकि अगर आँखे बंद भी कर ली जाए तो तब भी मन यहां वहां घूमता रहता है। हमें अपने मन पर खुद ही नियंत्रण रखना होगा। क्योंकि अगर व्यक्ति की जेब भरी है और मन भी भरा है तो बाजार का जादू उस पर असर नहीं करेगा। लेकिन अगर जेब भरी है और मन खाली है तो बाजार उसे जरूर आकर्षित करेगा। और फिर व्यक्ति को सभी चीज़े अपने काम की लगेगी और बिना सोचे विचारे वह सारा सामान खरीदने लगेगा।

 

प्रश्न 15 – ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ के संदर्भ में ‘पैसे की व्यंग्य शक्ति’ का आशय स्पष्ट करते हुए लिखिए कि सर्वसाधारण पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है और कैसे लोग इससे अप्रभावित रहते हैं ? (60 शब्दों में)

उत्तर – ‘पैसे की व्यंग्य शक्ति’ का आशय यह है कि अगर मन खाली हो तो बाजार जाना ही नहीं चाहिए। क्योंकि अगर आँखे बंद भी कर ली जाए तो तब भी मन यहां वहां घूमता रहता है। हमें अपने मन पर खुद ही नियंत्रण रखना होगा। क्योंकि अगर व्यक्ति की जेब भरी है और मन भी भरा है तो बाजार का जादू उस पर असर नहीं करेगा। लेकिन अगर जेब भरी है और मन खाली है तो बाजार उसे जरूर आकर्षित करेगा। और फिर व्यक्ति को सभी चीज़े अपने काम की लगेगी और बिना सोचे विचारे वह सारा सामान खरीदने लगेगा। जब पता ही न हो कि हमें क्या लेना हैं? तो बाजार की सभी वस्तुएं हमें अपनी और आकर्षित करेंगी। जिसका परिणाम हमेशा बुरा ही होगा। क्योंकि हम ऐसी स्थिति में बेकार की चीजों को ले आएँगे। 

 

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Chapter 12 – काले मेघा पानी दे

 

प्रश्न 1 – निम्नलिखित पठित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उस पर आधारित दिए गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए :

माँगें हर क्षेत्र में बड़ी-बड़ी हैं पर त्याग का कहीं नाम-निशान नहीं है। अपना स्वार्थ आज एकमात्र लक्ष्य रह गया है । हम चटखारे लेकर इसके या उसके भ्रष्टाचार की बातें करते हैं पर क्या कभी हमने जाँचा है कि अपने स्तर पर अपने दायरे में हम उसी भ्रष्टाचार के अंग तो नहीं बन रहे हैं ? काले मेघा दल के दल उमड़ते हैं, पानी झमाझम बरसता है, पर गगरी फूटी की फूटी रह जाती है, बैल पियासे के पियासे रह जाते हैं ? आखिर कब बदलेगी यह स्थिति ?

 

(i) गद्यांश में प्रयुक्त ‘त्याग’ शब्द का समानार्थी शब्द हो सकता है :

(A) त्योरस

(B) त्यजन

(C) त्यौनार

(D) त्योहार

उत्तर – (B) त्यजन

 

(ii) गद्यांश का केंद्रीय भाव है :

(A) देश प्रेम की व्याख्या

(B) भ्रष्टाचार की व्याख्या

(C) वर्षा का वर्णन

(D) स्वार्थ और भ्रष्टाचार के दुष्परिणाम

उत्तर – (D) स्वार्थ और भ्रष्टाचार के दुष्परिणाम

 

(iii) निम्नलिखित कथनों पर विचार करते हुए गद्यांश के अनुसार सही कथन का चयन कर लिखिए :

(A) जब मनुष्य निज स्वार्थ की सोचता है तब वह देश हित के लिए भी कार्य करता है ।

(B) जब मनुष्य अपने कर्तव्य से अधिक अधिकार की माँग करता है तब वह त्याग का नाम भी लेता है ।

(C) जब मनुष्य समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार पर चर्चा करता है तो उसके उन्मूलन के विकल्प भी सोचता है ।

(D) जब मनुष्य निज स्वार्थ को सर्वोपरि मानता है तब वह भी भ्रष्टाचार का अंग बन जाता है ।

उत्तर – (D) जब मनुष्य निज स्वार्थ को सर्वोपरि मानता है तब वह भी भ्रष्टाचार का अंग बन जाता है ।

 

(iv) स्तंभ-I में दिए गए कथनों के आशय को स्तंभ-II से सुमेलित कीजिए और सही विकल्प चुनकर लिखिए :

 

स्तंभ-I स्तंभ-II
1. पानी झमाझम बरसता है । (i) अपार धन-राशि प्रेषित की जाती है ।
2. काले मेघा दल के दल उमड़ते हैं। (ii) जन सामान्य की आवश्यकताएँ/स्थिति जस-की-तस रह जाती हैं ।
3. गगरी फूटी रह जाती है, बैल पियासे रह जाते हैं ।  (iii) सहायता हेतु अनेक कल्याणकारी योजनाएँ बनती हैं।

 

विकल्प :

(A) 1-(i), 2-(iii), 3-(ii)

(B) 1-(i), 2-(ii), 3-(iii)

(C) 1-(iii), 2-(i), 3-(ii)

(D) 1-(ii), 2-(i), 3-(iii)

उत्तर – (A) 1-(i), 2-(iii), 3-(ii)

 

(v) “आखिर कब बदलेगी यह स्थिति ?” गद्यांश से उद्धृत इस कथन के संदर्भ में लिखिए कि देश की स्थिति कैसे बदलेगी ।

(A) अपनी भलाई कर लेने से

(B) मन में विचार कर लेने से

(C) स्वार्थ और भ्रष्टाचार से दूरी बना लेने से

(D) सबको आजीविका प्राप्त होने से

उत्तर – (C) स्वार्थ और भ्रष्टाचार से दूरी बना लेने से

 

 प्रश्न 2 – ‘काले मेघा पानी दे’ संस्मरण के आधार पर बताइए कि जल के संदर्भ में लेखक को कौन-सी बात समझ में नहीं आती थी ।(40 शब्दों में)

उत्तर – इंद्र सेना, भगवान इंद्र से वर्षा की प्रार्थना करती हुई, गीत गाती हुई पूरे गांव में निकलती थी। उस समय लेखक को भी पानी मिलने की आशा में यह सब कुछ करना ठीक लगता था। परंतु एक बात लेखक की समझ में नहीं आती थी कि जब चारों ओर पानी की इतनी अधिक कमी है कि जानवर और इंसान, दोनों ही पानी के लिए परेशान हो रहे हैं तो फिर भी मुश्किल से इकट्ठा किया हुआ पानी लोग इंद्रसेना पर डाल कर उसे क्यों बर्बाद करते हैं।

 

प्रश्न 3 – ‘पानी दे, गुड़धानी दे’- ‘काले मेघा पानी दे’ पाठ के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए कि गुड़धानी क्या है और इसकी माँग भी क्यों की जा रही है ?(40 शब्दों में)

उत्तर – यहाँ ‘गुड़धानी’ से आशय अनाज से है। गुड़धानी गुड़ व अनाज के मिश्रण से बने खाद्य पदार्थ को कहते हैं। मेघों से पानी के साथ-साथ गुड़धानी की माँग इसलिए की जा रही हैं क्योंकि पानी से प्यास बुझती है और साथ ही अच्छी वर्षा से ईख व धान भी उत्पन्न होता है, गाँव की अर्थव्यवस्था कृषि पर ही निर्भर होती है और कृषि वर्षा पर निर्भर है। अच्छी वर्षा होगी तभी अच्छी फसल भी होगी।

 

प्रश्न 4 – इंदर सेना के जयकारे की ग्रामवासियों पर क्या प्रतिक्रिया होती थी ? ‘काले मेघा पानी दे’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए ।(40 शब्दों में)

उत्तर – जब गर्मी बहुत अधिक बढ़ जाती थी और पानी की कमी हर जगह होने लगती थी और आसमान में दूर-दूर तक कही बादल दिखाई नहीं देते थे। तब ये बच्चे एक जगह इकट्ठा होकर जयकारा लगाते थे “बोल गंगा मैया की जय।” जयकारा सुनते ही लोग सावधान हो जाते थे। “काले मेघा पानी दे, गगरी फूटी बैल पियासा, पानी दे, गुड़धानी दे, काले मेघा पानी दे।” लोकगीत गाते हुए गाँव की गलियों में धूमा करते थे। इस लोकगीत को सुनकर महिलाएं व लड़कियाँ घरों की खिड़कियों से झांकने लगती थी। यह मंडली “पानी दे मैया , इंदर सेना आयी हैं….” कहते हुए अचानक गली के किसी मकान के सामने रुक जाती, तो उस घर के लोग बाल्टी भर पानी उस मंडली के ऊपर फेंका देते थे।

 

प्रश्न 5 – मेंढक मंडली पर पानी डालने को लेकर लेखक जीजी के विचारों से सहमत क्यों नहीं था? ‘काले मेघा पानी दे’ पाठ के आधार पर लिखिए। (40 शब्दों में)

उत्तर – इंद्र सेना, भगवान इंद्र से वर्षा की प्रार्थना करती हुई, गीत गाती हुई पूरे गांव में निकलती थी। उस समय लेखक को भी पानी मिलने की आशा में यह सब कुछ करना ठीक लगता था। परंतु एक बात लेखक की समझ में नहीं आती थी कि जब चारों ओर पानी की इतनी अधिक कमी है कि जानवर और इंसान, दोनों ही पानी के लिए परेशान हो रहे हैं तो फिर भी मुश्किल से इकट्ठा किया हुआ पानी लोग इंद्रसेना पर डाल कर उसे क्यों बर्बाद करते हैं। लेखक को यह सब सरासर अंधविश्वास लगता था और उनको लगता था कि इस तरह के अंधविश्वास देश को न जाने कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं। लेखक के अनुसार तो यह इंद्र सेना नहीं बल्कि पाखंड हैं। ऐसा लेखक इसलिए कहते हैं क्योंकि अगर यह इंद्र सेना, सच में इंद्र महाराज से पानी दिलवा सकती तो, क्या वो पहले अपने लिए पानी नहीं मांग लेती।

 

प्रश्न 6 – ‘काले मेघा पानी दे’ पाठ में जीजी ने दान के पक्ष में जो तर्क दिए हैं, उनका उल्लेख कीजिए । (40 शब्दों में)

उत्तर – लेखक बच्चों की टोली पर पानी फेंके जाने के विरुद्ध था लेकिन उसकी जीजी इस बात को सही मानती है। जीजी ने जब इंद्रसेना के ऊपर पानी फेंका, तो लेखक नाराज हो गए। लेखक को मनाते हुए जीजी ने उन्हें बड़े प्यार से समझाया कि यह पानी की बर्बादी नहीं है। बल्कि यह तो पानी का अर्क है जो हम इंद्रसेना के माध्यम से इंद्रदेव पर चढ़ाते हैं। ताकि वे प्रसन्न हो कर हम पर पानी की बरसात करें। जो चीज इंसान पाना चाहता है, यदि पहले उस चीज़ को देगा नहीं तो पाएगा कैसे। इसके लिए जीजी ऋषि-मुनियों के दान को सबसे ऊंचा स्थान दिए जाने को प्रमाणस्वरूप बताती है। जीजी फिर लेखक को समझाते हुए कहती हैं कि सब ऋषि मुनि कह गए, पहले खुद दो, तब देवता तुम्हें चौगुना-आठगुना कर लौटाऐंगे।

 

प्रश्न 7 – ‘काले मेघा पानी दे’ पाठ में लेखक ने लोक प्रचलित विश्वास और विज्ञान के द्वंद्व को पानी के संदर्भ में किस प्रकार रचा है ? स्पष्ट कीजिए ।(60 शब्दों में)

उत्तर – काले मेघा पानी दे’ एक सार्थक संस्मरण है। इसमें लेखक ने लोक प्रचलित विश्वास और विज्ञान के द्वंद्व का सुंदर चित्रण किया है। विज्ञान का अपना तर्क होता है और विश्वास का अपना सामर्थ्य। लेखक जहाँ तर्क के आधार पर गाँव की पानी प्राप्त करने की प्रथा को पानी की बर्बादी सिद्ध करना चाहता है वहीं दीदी के विश्वास के सामने वह निरुत्तर हो जाता है। क्योंकि दादी ऋषि-मुनियों, राजा-महाराजाओं के उदाहरण देकर अपनी प्रथाओं को सही सिद्ध करती हैं।

 

प्रश्न 8 – ‘काले मेघा पानी दें’ पाठ के आधार पर लिखिए कि इन्दरसेना को लेखक ‘मेढक-मंडली’ क्यों कहता था ? जीजी के बार-बार कहने पर भी वह इन्दरसेना पर पानी फेंकने को राजी क्यों नहीं होता ?(60 शब्दों में)

उत्तर – गाँव में बच्चों की एक मंडली हुआ करती थी जिसमें 10-12 से लेकर 16-18 साल के लड़के होते थे। ये बच्चे अपने शरीर पर सिर्फ एक लंगोटी या जांगिया पहने रहते थे। लोगों ने इस मंडली के दो बिलकुल विपरीत नाम रखे हुए थे – इन्द्रसेना और मेंढक मंडली। जो लोग उनके नग्नस्वरूप शरीर, उनकी उछलकूद, उनके शोर-शराबे और उनके कारण गली में होने वाले कीचड़ से चिढ़ते थे, वे उन्हें अक्सर मेढक-मंडली कहते थे। और जो लोग यह मानते थे कि इस मंडली पर पानी फेंकने से बारिश हो जाएगी। वो इस मंडली को “इंद्र सेना” कहा करते थे। ये बच्चे इकट्ठे होकर भगवान इंद्र से वर्षा करने की गुहार लगाते थे। बच्चों का मानना था कि वे इंद्र की सेना के सैनिक हैं तथा उसी के लिए लोगों से पानी माँगते हैं ताकि इंद्र बादलों के रूप में बरसकर सबको पानी दें।

 

प्रश्न 9 – ‘काले मेघा पानी दे’ पाठ के कथन ‘काले मेघा दल के दल उमड़ते हैं, पानी झमाझम बरसता है, पर गगरी फूटी की फूटी रह जाती है, बैल पियासे के पियासे रह जाते हैं ?’ का आशय स्पष्ट कीजिए ।(60 शब्दों में)

उत्तर – ‘काले मेघा दल के दल उमड़ते हैं, पानी झमाझम बरसता है, पर गगरी फूटी की फूटी रह जाती है, बैल पियासे के पियासे रह जाते हैं ?’ का आशय यह है कि काले बादल दल बना कर उमड़ते हैं अर्थात राजनैतिक दल कई पार्टियों में लोगों के समक्ष आते हैं। पानी झमाझम बरसता है अर्थात वे लोगों को कई तरह के प्रलोभन देते हैं। और कई तरह की नीतियों को बनाने की बात करते हैं। पर गगरी फूटी की फूटी रह जाती है, बैल पियासे के पियासे रह जाते हैं अर्थात परन्तु चुनाव के बाद उनकी सारी बातें केवल बातें ही रह जाती है और लोगों को कई फायदा नहीं मिलता। लेखक की ये पंक्तियाँ हमारी समाजिक व्यवस्था पर एक व्यंग्य है। क्योंकि हमारे देश में हर वर्ष हजारों योजनाएं बनाती हैं। लेकिन इन योजनाओं का लाभ उस वर्ग को कभी नहीं मिलता जो उसके हकदार हैं। हर समय विकास की बातें तो बहुत की जाती हैं मगर यह विकास सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह जाता हैं।

 

प्रश्न 10 – “रिश्तों का बंधन हमारी बौद्धिक क्षमता, तार्किक शक्ति को कमजोर करता है ।” ‘काले मेघा पानी दे’ पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए । (60 शब्दों में)

उत्तर – लेखक हमेशा अपनी वैज्ञानिक सोच के आधार पर अंधविश्वासों के तर्क ढूंढते रहते थे। फिर भी वो इस बात को स्वीकार करते हैं कि उन्होंने भी ऐसे कई रीति-रिवाजों को अपनाया जो उन्हें उनकी जीजी ने अपनाने को कहा था। लेखक को सबसे अधिक प्यार उनकी जीजी से ही मिला। वह अपनी जीजी को बहुत मानता था। दोनों में भावनात्मक संबंध बहुत गहरा था। धीरे-धीरे लेखक और उसकी जीजी के बीच की भावनात्मक शक्ति बँटती चली जाती हैं। लेखक की बुद्धि पर जीजी का स्नेह भारी होने लगता है। इसलिए लेखक चाहकर भी उनकी किसी बात का विरोध नहीं कर पाता। वह विरोध जताने का प्रयास करता है लेकिन अंत में उसे जीजी के तर्कों के आगे समर्पण करना पड़ता है। उन तर्कों और जीजी के स्नेह के कारण ना चाहते हुए भी लेखक उन परंपराओं का निर्वहन करते चले गए जो उनकी जीजी उनसे करने के लिए कहती थी। इस सन्दर्भ में विज्ञान के तर्कों के ऊपर स्नेह की जीत को दिखाया गया है।

 

प्रश्न 11 – ‘काले मेघा पानी दे’ पाठ के आधार पर बताइए कि बच्चों की टोली को गाँव वाले ‘इंद्र सेना’ क्यों कहते थे। (60 शब्दों में)

उत्तर – गाँव में बच्चों की एक मंडली हुआ करती थी जिसमें 10-12 से लेकर 16-18 साल के लड़के होते थे। ये बच्चे अपने शरीर पर सिर्फ एक लंगोटी या जांगिया पहने रहते थे। लोगों ने इस मंडली के दो बिलकुल विपरीत नाम रखे हुए थे – इन्द्रसेना और मेंढक मंडली। जो लोग उनके नग्नस्वरूप शरीर, उनकी उछलकूद, उनके शोर-शराबे और उनके कारण गली में होने वाले कीचड़ से चिढ़ते थे, वे उन्हें अक्सर मेढक-मंडली कहते थे। और जो लोग यह मानते थे कि इस मंडली पर पानी फेंकने से बारिश हो जाएगी। वो इस मंडली को “इंद्र सेना” कहा करते थे। ये बच्चे इकट्ठे होकर भगवान इंद्र से वर्षा करने की गुहार लगाते थे। बच्चों का मानना था कि वे इंद्र की सेना के सैनिक हैं तथा उसी के लिए लोगों से पानी माँगते हैं ताकि इंद्र बादलों के रूप में बरसकर सबको पानी दें।

 

प्रश्न 12 – ‘काले मेघा पानी दे’ पाठ के संदर्भ में लिखिए कि हमारे जीवन में नदियों का क्या महत्त्व है और ‘इंदर सेना सबसे पहले गंगा मैया की जय’ क्यों बोलती है ?(60 शब्दों में)

उत्तर – वर्षा न होने पर इंदर सेना सबसे पहले गंगा मैया की जय बोलती है। इसका कारण यह है कि गंगा नदी को सबसे पवित्र नदी माना जाता है। इसकी पूजा एक माँ के रूप में की जाती है। हर शुभ कार्य में इसके जल का प्रयोग किया जाता है। गंगा नदी पानी का वह भंडार है जो हर किसी की प्यास बुझाती है। इसीलिए बच्चों की टोली सबसे पहले “गंगा मैया की जय” का जयकारा लगाती थी।

भारत के सामाजिक व सांस्कृतिक परिवेश में नदियों का बहुत महत्त्व है। प्राचीन काल से ही भारत में नदियों को पूजा जाता है। हमारे ऋषि-मुनियों ने अपनी बुद्धि का प्रमाण देते हुए नदियों को हमारे धर्म व संस्कृति से जोड़ा ताकि नदियों का संरक्षण व इनका रखरखाव हो सके। साथ ही साथ लगभग सभी सभ्यताओं का विकास नदियों के किनारे ही हुआ। देश के लगभग सभी प्रमुख बड़े नगर नदियों के किनारे बसे हुए हैं। धर्म से भी नदियों का प्रत्यक्ष संबंध है। कुछ पवित्रधाम जैसे बनारस, काशी, हरिद्वार, ऋषिकेश, उज्जैन इन्ही पवित्र नदियों के तट पर ही बसे हैं। नदियों को मोक्षदायिनी माना जाता है। जिस कारण अस्थियों को जल में बहा कर मोक्ष दिलवाया जाता है।

 

प्रश्न 13 – ‘अगर तीस-चालीस मन गेहूँ उगाना है तो किसान पाँच-छह सेर अच्छा गेहूँ अपने पास से लेकर ज़मीन में क्यारियाँ बना कर फेंकता है ।’ – ‘काले मेघा पानी दें’ पाठ में यह वाक्य जीजी द्वारा किस संदर्भ में कहा गया है ? स्पष्ट कीजिए । क्या आप उनके विचारों से सहमत हैं ?(60 शब्दों में)

उत्तर – ‘अगर तीस-चालीस मन गेहूँ उगाना है तो किसान पाँच-छह सेर अच्छा गेहूँ अपने पास से लेकर ज़मीन में क्यारियाँ बना कर फेंकता है ।’ यह वाक्य जीजी द्वारा लेखक को त्याग की भावना बतलाने के संदर्भ में कहा गया है। हम उनके विचारों से सहमत हैं क्योंकि दान में देने पर ही इच्छित वस्तु मिलती है। ऋषियों ने दान को महान बताया है। बिना त्याग के दान नहीं होता। इस वाक्य द्वारा जीजी लेखक को समझाती है कि किसान तीस-चालीस मन गेहूँ उगाने के लिए पाँच-छह सेर अच्छा गेहूँ बोता है। इसी तरह वे सब गाँव वाले भी अपने घर का पानी इंद्र सेना पर फेंककर एक तरह से पानी की बुवाई करते हैं। सबका मानना है कि इसी से शहर, कस्बा, गाँव पर पानी वाले बादलों की फसल आ जाएगी। वे सब बीज बनाकर पानी देते हैं, फिर काले बादलों से पानी माँगते हैं।

 

प्रश्न 14 – ‘काले मेघा पानी दे’ पाठ की इंदर सेना द्वारा किए जाने वाले कार्य समाज के लिए कितने प्रेरक हैं और क्यों ? (60 शब्दों में)

उत्तर – ‘काले मेघा पानी दे’ पाठ की इंदर सेना द्वारा किए जाने वाले कार्य समाज के लिए प्रेरक हैं क्योंकि जिस प्रकार इंदर सेना पानी के लिए इंद्र देवता को प्रसन्न करने का प्रयास करती है उसी प्रकार यदि समाज के युवा वर्ग समाज की बुराइयों के खिलाफ एक जुट हो कर उन्हें समाप्त करने का प्रयास करें तो समाज में एक नवीन क्रांति आ जाएगी और समाज का स्वरूप बदलने में देर नहीं लगेगी। समाज में मौजूद रूढ़िवादी रीतियों को समाप्त करने में युवा वर्ग एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 

 

प्रश्न 15 – ‘काले मेघा पानी दें’ पाठ के आधार पर ‘इंदर सेना’ पर पानी फेंकने के संदर्भ में लेखक (धर्मवीर भारती ) और जीजी के बीच हुए वार्तालाप (संवाद) को दृश्य के रूप में प्रस्तुत कीजिए ।(40 शब्दों में)

उत्तर – लेखक उनकी हर बात मानते थे। परन्तु इस बार जब जीजी ने लेखक से इंद्रसेना पर पानी फेंकने को कहा तो, लेखक ने बिलकुल साफ मना कर दिया। लेकिन जीजी ने खुद ही बाल्टी भर पानी ले कर आई जिसे उठाने में उन्हें बहुत दिक्क्त भी आ रही थी परन्तु फिर भी लेखक ने उनकी मदद नहीं की और जीजी ने खुद ही इंद्रसेना के ऊपर पानी फेंक दिया जिसे देखकर लेखक नाराज हो गए। लेखक को मनाते हुए जीजी ने उन्हें बड़े प्यार से समझाया कि यह पानी की बर्बादी नहीं है। बल्कि यह तो पानी का अर्क है जो हम इंद्रसेना के माध्यम से इंद्रदेव पर चढ़ाते हैं। ताकि वे प्रसन्न हो कर हम पर पानी की बरसात करें। फिर उन्होंने कहा कि जो चीज इंसान पाना चाहता है, यदि पहले उस चीज़ को देगा नहीं तो पाएगा कैसे। इसके लिए जीजी ऋषि-मुनियों के दान को सबसे ऊंचा स्थान दिए जाने को प्रमाणस्वरूप बताती है। इस पर लेखक कहते हैं कि ऋषि-मुनियों को क्यों बदनाम करती हो जीजी। जब आदमी पानी की एक-एक बूँद के लिए परेशान है, तब पानी को इस तरह बहाना सही है क्या? इस पर जीजी थोड़ी देर चुप रही। जीजी ने फिर लेखक को समझाते हुए कहा कि तू पढ़ा-लिखा है मगर वह पढ़ी-लिखी नहीं हूँ। लेकिन वह इस बात को अपने अनुभव से जानती है कि जब किसान 30-40 मन गेहूँ उगना चाहता हैं तो वह 5-6 सेर अच्छा गेहूं जमीन में क्यारियाँ बनाकर उसमें फेंक देता है। और वह इस तरह गेहूँ की बुवाई करता है।बस हम भी तो इन्द्रसेना पर पानी फ़ेंक कर पानी की बुवाई ही कर रहे हैं। जब हम यह पानी गली में बोयेंगे, तब तो शहर, कस्बे और गाँव में पानी वाले बादलों की फसल आएगी। हम बीज बनाकर पानी देते हैं फिर काले मेघा से पानी मांगते हैं।

 

प्रश्न 16  – ‘काले मेघा पानी दे’ – पाठ में आया कथन “पहले खुद दो तब देवता तुम्हें चौगुना-आठगुना करके लौटाएँगे” – भारतीय संस्कृति की किस विशेषता का परिचायक है, और मानव समाज के लिए क्यों हितकर है ?(60 शब्दों में)

उत्तर – ‘काले मेघा पानी दे’ – पाठ में आया कथन “पहले खुद दो तब देवता तुम्हें चौगुना-आठगुना करके लौटाएँगे” यह कथन भारतीय संस्कृति की दान व् त्याग की विशेषता का परिचायक है, और मानव समाज के लिए यह भावना हितकर है क्योंकि जब तक समाज में दान पुण्य करने वाले या  इस भावना का सम्मान करने वाले लोग मौजूद रहेंगे। तब तक समाज में अराजकता व् अहिंसा जैसी दुर्भावना दूर रहेगी। यह कथन लोगों को आध्यात्मिकता की ओर भी अग्रसर करती है। और अपने पुराणों व् ऋषि-मुनियों का सम्मान करने की भावना को भी जागृत करती है। 

 

प्रश्न 17 – ‘अपनी जरूरत पीछे रखकर दूसरे के कल्याण के लिए जो कुछ दो, वह त्याग होता है ।’ – ‘काले मेघा पानी दे’ पाठ के संदर्भ में इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए ।(60 शब्दों में)

उत्तर – ‘अपनी जरूरत पीछे रखकर दूसरे के कल्याण के लिए जो कुछ दो, वह त्याग होता है ।’ इस पंक्ति का आशय यह है कि बिना त्याग के दान नहीं होता है। अगर किसी के पास लाखों-करोड़ों रुपये हैं उसमें से थोड़े-बहुत रुपये अगर किसी को दे दिया जाये तो वह दान नहीं कहलाता है और न ही वह त्याग कहलाता है जो चीज किसी के पास कम है अर्थात् उसे भी उस वस्तु की, अथवा उस पैसे की अधिक जरूरत है, तब भी वह उस जरूरत को पीछे रखकर या अपनी जरूरत पूरी न करके दूसरे के कल्याण के लिए, उसके अच्छे के लिए दे दो तो वह त्याग कहलाता है। 

 

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Chapter 13 – पहलवान की ढोलक

 

प्रश्न 1 – निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उस पर आधारित दिए गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए :

जाड़े का दिन । अमावस्या की रात – ठंडी और काली । मलेरिया और हैज़े से पीड़ित गाँव भयार्त्त शिशु की तरह थर-थर काँप रहा था । पुरानी और उजड़ी बाँस-फूस झोपड़ियों में अंधकार और सन्नाटे का सम्मिलित साम्राज्य ! अँधेरा और निस्तब्धता !

अँधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी । निस्तब्धता करुण सिसकियों और आहों को बलपूर्वक अपने हृदय में ही दबाने की चेष्टा कर रही थी । आकाश में तारे चमक रहे थे । पृथ्वी पर कहीं प्रकाश का नाम नहीं । आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर जाना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी । अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे ।

 

(i) गद्यांश में प्रयुक्त ‘भयार्त्त’ शब्द का अर्थ है :

(A) भीषण

(B) भय से पीड़ित

(C) भयंकर

(D) भयानक

उत्तर – (B) भय से पीड़ित

 

(ii) गद्यांश का केन्द्रीय भाव है :

(A) गाँव की प्रकृति का चित्रण

(B) गाँव की रात्रि का चित्रण

(C) भूख और महामारी से दम तोड़ रहे गाँव की दयनीय दशा का चित्रण

(D) गाँव में व्याप्त नीरवता का चित्रण

उत्तर – (C) भूख और महामारी से दम तोड़ रहे गाँव की दयनीय दशा का चित्रण

 

(iii) निम्नलिखित कथनों पर विचार करते हुए गद्यांश के अनुसार सही कथन को चयनित कर लिखिए :

(A) महामारी और आर्थिक तंगी की त्रासदी से जूझती ग्राम – बस्ती में आशा – किरण का आश्रय व्यर्थ प्रयास है ।

(B) महामारी और आर्थिक तंगी की त्रासदी से जूझती ग्राम बस्ती आशा-निराशा के भाव में झूल रही है ।

(C) महामारी और आर्थिक तंगी से जूझती ग्राम बस्ती में ग्रामीण एक दूसरे की सहायता कर रहे हैं ।

(D) महामारी और आर्थिक तंगी से जूझती ग्राम-बस्ती अपनी स्थिति से संतुष्ट है ।

उत्तर – (B) महामारी और आर्थिक तंगी की त्रासदी से जूझती ग्राम बस्ती आशा-निराशा के भाव में झूल रही है ।

 

(iv) प्रकृति को आँसू बहाते हुए क्यों दिखाया गया है ?

(A) काव्यात्मक रूप में प्रकृति सौंदर्य व्यक्त करने हेतु

(B) गाँव वालों के दुख में प्रकृति को दुखी दिखाने हेतु

(C) गाँव में व्याप्त सन्नाटे और अंधकार का वर्णन करने हेतु

(D) प्रकृति की विवशता और असमर्थता को प्रकट करने हेतु

उत्तर – (B) गाँव वालों के दुख में प्रकृति को दुखी दिखाने हेतु

 

(v) स्तंभ-I को स्तंभ-II से सुमेलित कीजिए और सही विकल्प चुनकर लिखिए :

 

स्तंभ-I स्तंभ-II
1. अमावस्या की रात ठंडी – और काली (i)  आशा एवं जिजीविषा का अभाव 
2. प्रकाश का नाम नहीं (ii)  पीड़ित गाँव वालों की मदद न कर पाना
3. तारे की शक्ति और ज्योति रास्ते में ही शेष हो जाती (iii)  निराशापूर्ण परिवेश

 

विकल्पः

(A) 1-(iii), 2-(i), 3-(ii)

(B) 1-(i), 2-(ii), 3-(iii)

(C) 1-(ii), 2-(iii), 3-(i)

(D) 1-(iii), 2-(ii), 3-(i)

उत्तर – (A) 1-(iii), 2-(i), 3-(ii)

 

प्रश्न 2 – ‘पहलवान की ढोलक’ पाठ के आधार पर लुट्टन की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।(40 शब्दों में)

उत्तर – लुट्टन सिंह पहलवान को “होल इंडिया” जानता था लेकिन लेखक के अनुसार उसका “होल इंडिया” उसके जिले तक ही सीमित होगा क्योंकि उसे उसके जिले के अधिकतर लोग जानते थे। लुट्टन सिंह जब नौ साल का था तब उसके माता-पिता का देहांत हो चुका था। सौभाग्य से उसकी शादी पहले ही हो गयी थी। वरना उम्र छोटी होने के कारण वह भी शायद अपने माता-पिता की तरह मृत्यु को प्राप्त करता। उसकी विधवा सास ने ही उसको पाल पोस कर बड़ा किया। वह बचपन में गाय चराता, खूब दूध-दही खाता और कसरत करता था। उसे यह देख कर बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता था कि गांव के लोग उसकी सास को परेशान करते हैं। इसीलिए उसने गांव के लोगों से बदला लेने के लिए ही पहलवान बनने की ठानी थी। और युवावस्था तक आते आते वह अच्छा खासा पहलवान बन गया था। उसने कुश्ती के दाँव पेंच भी सीख लिए थे।

 

प्रश्न 3 – ‘पहलवान की ढोलक’ पाठ के आधार पर बताइए कि राजा साहब ने कुश्ती बीच में ही क्यों रुकवा दी।(40 शब्दों में)

उत्तर – एक बार लुट्टन सिंह श्याम नगर मेले में दंगल देखने गया। वहाँ कुश्ती देखकर और ढोल की आवाज सुनकर उसकी नसों में जैसे खून बिजली की तरह दौड़ने लगा और उसने बिना सोचे समझे वहाँ चाँद सिंह नाम के एक पहलवान को चुनौती दे दी। उसे “शेर के बच्चे” का खिताब दिया गया था। क्योंकि उसने वहाँ तीन दोनों में ही सभी पहलवानो को धूल चटा दी थी। लुट्टन सिंह की चुनौती चाँद सिंह ने स्वीकार कर ली लेकिन जब लुट्टन सिंह, चाँद सिंह से भिड़ा तो चाँद सिंह बाज की तरह लुट्टन से भीड़ गया और उसने पहली बार में ही लुट्टन को जमीन में पटक दिया। लेकिन लुट्टन सिंह उठ खड़ा हुआ और दुबारा दंगल शुरू हुआ। परन्तु राजा साहब ने बीच में ही कुश्ती रोक कर लुट्टन को बुलाकर उसके साहस के लिए उसे दस रूपए देकर मेला घूमने और घर जाने को कहा। क्योंकि उन्हें लगा कि लुट्टन सिंह कुश्ती नहीं जीत सकता।

 

प्रश्न 4 – ‘पहलवान की ढोलक’ पाठ के आधार पर लिखिए लुट्टन पहलवान अपने पुत्रों को क्या शिक्षा दिया करता था ? (40 शब्दों में)

उत्तर – लुट्टन सिंह के दो बेटे थे और उसने अपने दोनों बेटों को भी पहलवान बना दिया था। वह ढोलक को ही अपना गुरु मनाता था इसीलिए अपने दोनों बेटों को भी ढोलक की थाप में पूरा ध्यान देने को कहता था। लुट्टन सिंह की जिंदगी ठीक-ठाक चल रही थी। लेकिन वृद्ध राजा की मृत्यु के बाद उनके बेटे ने राज्य का भार संभाल लिया। नये राजा को कुश्ती में बिलकुल भी दिलचस्पी नहीं थी। अतः उसने लुट्टन सिंह को राजदरबार से निकाल दिया। लुट्टन सिंह अपने दोनों बेटों के साथ गाँव वापस आ गया। गाँव वालों ने उसकी मदद के लिए गाँव के एक छोर पर उसकी एक छोटी सी झोपड़ी बना दी और उसके खाने-पीने का इंतजाम भी कर दिया। इसके बदले में वह गाँव के नौजवानों को पहलवानी सिखाने लगा। लेकिन यह सब ज्यादा दिनों तक नहीं चला क्योंकि गाँव के गरीब नौजवान पहलवानी करने के लिए पौष्टिक आहार आदि का खर्च नहीं उठा पाते थे। इसीलिए अब वह अपनी ढोलक की थाप पर अपने दोनों बेटों को ही कुश्ती सिखाया करता था। उसके बेटे दिन भर मजदूरी करते जिससे उनका गुजर-बसर चलता और शाम को कुश्ती के दांव पेंच सीखते थे।

 

प्रश्न 5 – ‘पहलवान की ढोलक’ पाठ के आधार पर बताइए कि आज गाँव में अखाड़े समाप्त होने के क्या कारण हो सकते हैं । (40 शब्दों में)

उत्तर – असल में पहलवानी बहुत खर्चीला खेल है। क्योंकि इसमें पहलवानों के लिए पौष्टिक आहार की आवश्यकता रहती है और फिर इसके लिए अभ्यास की भी नियमित आवश्यकता होती है। आज कल के व्यस्त माहौल में लोगों के पास इतना समय नहीं कि वे दिन में कई घंटे कसरत करने के लिए निकालें। इसके साथ ही एक और अन्य कारण यह है कि इस खेल से बदले में खिलाड़ियों को कुछ ख़ास भी नहीं मिलता। पुराने समय में मनोरंजन के कम साधन होते हुए कुश्ती मनोरंजन का एक अच्छा साधन था। किन्तु समय के साथ मनोरंजन के साधनों में वृद्धि हुई जिसके कारण लोगो की कुश्ती में रूचि भी समाप्त होती गई।

 

प्रश्न 6 – पहलवान की ढोलक निरीह, साधनहीन और विवश गाँव वालों के प्रति क्या भूमिका निभाती थी ?(40 शब्दों में)

उत्तर – पहलवान की ढोलक निरीह, साधनहीन और विवश गाँव वालों के प्रति संजीवनी की भूमिका निभाती थी। भुखमरी, गरीबी और सही उपचार न मिलने के कारण लोग रोज मर रहे थे और लोगों में निराशा व् हताशा फैल गई थी। घर के घर खाली हो रहे थे और लोगों का मनोबल दिन प्रतिदिन टूटता जा रहा था। ऐसे में पहलवान की ढोलक की आवाज ही लोगों को उनके जिंदा होने का एहसास दिलाती थी। वह उनके लिए संजीवनी का काम करती थी।

 

प्रश्न 7 – ‘पहलवान की ढोलक’ पाठ के आधार पर लिखिए कि बीमारी की विभीषिका से क्रंदन करता हुआ गाँव और अधिक भयावह रूप किन परिस्थितियों में ग्रहण कर लेता था ?(40 शब्दों में)

उत्तर – रात की खामोशी में सिर्फ सियारों और उल्लूओं की आवाज ही सुनाई देती थी। कभी कभी उस काली अंधेरी रात में कोई कमजोर स्वर भगवान को पुकारता हुआ सुनाई पड़ जाता था और कभी किसी बच्चे के द्वारा अपनी माँ को पुकारने की धीमी सी आवाज सुनाई देती थी। क्योंकि कुत्तों में परिस्थिति को समझने की विशेष बुद्धि होती है। इसीलिए वो रात होते ही रोने लगते थे। और गांव के दुख में अपना स्वर मिलाने लगते थे। इन परिस्थितियों में बीमारी की विभीषिका से क्रंदन करता हुआ गाँव और अधिक भयावह रूप धारण कर लेता था।

 

प्रश्न 8 – ‘पहलवान की ढोलक’ पाठ के आधार पर लिखिए कि गाँव भयार्त्त शिशु की तरह क्यों काँप रहा था ?(40 शब्दों में)

उत्तर – गाँव भयार्त्त शिशु की तरह काँप रहा था क्योंकि जाड़ों के मौसम में गाँव में महामारी फैली हुई थी। गांव के अधिकतर लोग मलेरिया और हैजे से ग्रस्त थे। जाडे के दिन थे और रातें एकदम काली अंधेरी व डरावनी लग रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे रात उस गाँव के दुःख में दुःखी होकर चुपचाप आँसू बहा रही हो। रात की खामोशी में सिर्फ सियारों और उल्लूओं की आवाज ही सुनाई देती थी। कभी कभी उस काली अंधेरी रात में कोई कमजोर स्वर भगवान को पुकारता हुआ सुनाई पड़ जाता था और कभी किसी बच्चे के द्वारा अपनी माँ को पुकारने की धीमी सी आवाज सुनाई देती थी। क्योंकि कुत्तों में परिस्थिति को समझने की विशेष बुद्धि होती है। इसीलिए वो रात होते ही रोने लगते थे। और गांव के दुख में अपना स्वर मिलाने लगते थे।

 

प्रश्न 9 – लुट्टन सिंह के पक्ष में न तो राजमत था और न ही बहुमत, फिर भी उसे कुश्ती में विजय कैसे प्राप्त हुई ? ‘पहलवान की ढोलक’ पाठ के आधार पर लिखिए ।(40 शब्दों में)

उत्तर – लुट्टन सिंह की चुनौती चाँद सिंह ने स्वीकार कर ली लेकिन जब लुट्टन सिंह, चाँद सिंह से भिड़ा तो चाँद सिंह बाज की तरह लुट्टन से भीड़ गया और उसने पहली बार में ही लुट्टन को जमीन में पटक दिया। लेकिन लुट्टन सिंह उठ खड़ा हुआ और दुबारा दंगल शुरू हुआ। परन्तु राजा साहब ने बीच में ही कुश्ती रोक कर लुट्टन को बुलाकर उसके साहस के लिए उसे दस रूपए देकर मेला घूमने और घर जाने को कहा। परन्तु इस बार लुट्टन सिंह ने सभी की उम्मीदों के विपरीत चांद सिंह को चित कर दिया। उसने इस पूरी कुश्ती में ढोल को अपना गुरु मानते हुए उसके स्वरों के हिसाब से ही दांव-पेंच लगाया और कुश्ती जीत ली। जीत की ख़ुशी में उसने राजा जी को उठा लिया और राजा ने भी प्रसन्न होकर कहा कि उसने बाहर से आए पहलवान को हरा कर अपनी मिट्टी की लाज रख ली और उन्होंने उसे राज पहलवान बना दिया।

 

प्रश्न 10 – ‘पहलवान की ढोलक’ पाठ में मलेरिया और हैज़े से पीड़ित गाँव की दयनीय स्थिति को चित्रित किया गया है । वर्तमान समय में क्या इस स्थिति में कुछ सुधार आया है ? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए ।(60 शब्दों में)

उत्तर – जाड़ों के मौसम में गाँव में महामारी फैली हुई थी। गांव के अधिकतर लोग मलेरिया और हैजे से ग्रस्त थे। जाडे के दिन थे और रातें एकदम काली अंधेरी व डरावनी लग रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे रात उस गाँव के दुःख में दुःखी होकर चुपचाप आँसू बहा रही हो। टूटते तारे का उदाहरण देते हुए लेखक बताता है कि उस गाँव के दुःख को देख कर यदि कोई बाहरी व्यक्ति उस गाँव के लोगों की कुछ मदद करना भी चाहता था तो चाह कर भी नहीं कर सकता था क्योंकि उस गाँव में फैली महामारी के कारण कोई भी अपने जीवन को कष्ट नहीं डालना चाहता था। किन्तु आज वर्तमान में मलेरिया और हैज़े की बिमारी का इलाज संभव है और आज कोई व्यक्ति किसी मलेरिया और हैज़े से पीड़ित व्यक्ति की सहायता करने से नहीं घबराता।

 

प्रश्न 11 – ‘पहलवान की ढोलक’ कहानी में अँधेरी रात को आँसू बहाते हुए क्यों दिखाया गया है ?(60 शब्दों में)

उत्तर – जाड़ों के मौसम में गाँव में महामारी फैली हुई थी। गांव के अधिकतर लोग मलेरिया और हैजे से ग्रस्त थे। जाडे के दिन थे और रातें एकदम काली अंधेरी व डरावनी लग रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे रात उस गाँव के दुःख में दुःखी होकर चुपचाप आँसू बहा रही हो। क्योंकि उस समय मलेरिया और हैजा एक लाइलाज बीमारी थी और लोग इन बीमारियों से तड़प-तड़प कर मर जाते थे। उस गाँव के दुःख को देख कर यदि कोई बाहरी व्यक्ति उस गाँव के लोगों की कुछ मदद करना भी चाहता था तो चाह कर भी नहीं कर सकता था क्योंकि उस गाँव में फैली महामारी के कारण कोई भी अपने जीवन को कष्ट नहीं डालना चाहता था।

 

प्रश्न 12 – चाँद सिंह पर विजय पाते ही लुट्टन के जीवन में आए किन्हीं तीन परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए। (60 शब्दों में)

उत्तर – चाँद सिंह पर विजय पाते ही लुट्टन के जीवन में आए तीन परिवर्तन निम्नलिखित हैं – राजा साहब ने उसे आश्रय दिया। इसके बाद उसने सभी नामी पहलवानों को हरा दिया। अब वह दर्शनीय जीव बन गया था। पंद्रह साल तक वह राजदरबार में रहा। लुट्टन की कीर्ति राज पहलवान बन जाने के बाद दूर-दूर तक फैल गई। राजा ने उसे दरबार में रखा। पौष्टिक भोजन व राजा की स्नेह दृष्टि से उसने सभी नामी पहलवानों को हरा दिया। वह दर्शनीय जीव बन गया। मेलों में वह घुटने तक लंबा चोगा पहनकर अस्त-व्यस्त पगड़ी बाँधकर मतवाले हाथी की तरह चलता था। हलवाई उसे मिठाई खिलाते थे।

 

प्रश्न 13 – अपने दोनों युवा पुत्रों की मृत्यु के बाद भी पहलवान द्वारा ढोल बजाए जाने का क्या कारण था ? उस आवाज को सुनकर गाँव वालों पर क्या प्रभाव पड़ता था ? (60 शब्दों में)

उत्तर – भुखमरी, गरीबी और सही उपचार न मिलने के कारण लोग रोज मर रहे थे और लोगों में निराशा व् हताशा फैल गई थी। घर के घर खाली हो रहे थे और लोगों का मनोबल दिन प्रतिदिन टूटता जा रहा था। ऐसे में पहलवान की ढोलक की आवाज ही लोगों को उनके जिंदा होने का एहसास दिलाती थी। वह उनके लिए संजीवनी का काम करती थी। पहलवान के दोनों बेटे भी बीमारी की चपेट में आकर मरने की स्थिति में पहुंच चुके थे और मरने से पहले वो अपने पिता से ढोलक बजाने को कहते हैं। लुट्टन सिंह रात भर ढोलक बजाता है और सुबह जाकर देखता है तो वो दोनों पेट के बल मरे पड़े थे। वह अपने दोनों बेटों को कंधे पर ले जाकर नदी में बहा देता हैं। लोगों का मनोबल न टूटे इसके लिए वह उसी रात को फिर से ढोलक बजाता है। लोगों ने उसकी हिम्मत की दाद दी और साथ ही साथ खुद में भी एक ऊर्जा का अनुभव किया।

 

प्रश्न 14 -‘पहलवान की ढोलक’ कहानी में किस प्रकार पुरानी व्यवस्था और नई व्यवस्था के टकराव को व्यक्त किया गया है ? (60 शब्दों में)

उत्तर – पहलवान की ढोलक’ कहानी में पुरानी और नई व्यवस्था के टकराव से उत्पन्न समस्या को व्यक्त किया गया है। पुरानी व्यवस्था में राजदरबार लोक कलाकारों को संरक्षण प्रदान करता था। उनके सहारे ये अपना जीवन खुशहाली से व्यतीत करते थे, परंतु नई व्यवस्था में विलायती दृष्टिकोण को अपनाया गया। लोक कलाकारों का कोई ख़ास महत्त्व नहीं रह गया। जिन खेलों में अधिक समय लगता था व् अधिक खर्चीले होते थे उनको समाप्त कर दिया गया।

 

प्रश्न 15 – ‘मैं जिंदगी में कभी चित नहीं हुआ’ – पंक्ति में आए ‘चित’ शब्द का अर्थ स्पष्ट करते हुए, ‘पहलवान की ढोलक’ पाठ के आधार पर लिखिए कि लुट्टन ने इसका प्रयोग किस संदर्भ में किया है ?(60 शब्दों में)

उत्तर – ‘मैं जिंदगी में कभी चित नहीं हुआ’ – पंक्ति में आए ‘चित’ शब्द का अर्थ है – पीठ के बल लेटना। लुट्टन ने इसका प्रयोग उसकी मृत्यु पर उसे पीठ के बल न लेटाने के संदर्भ में किया। पहलवान की अंतिम इच्छा थी कि मरने के बाद उसे चिता पर पेट के बल लिटा दिया जाए क्योंकि वह जीवन में कभी ‘चित’ नहीं हुआ। अर्थात वह अपनी पूरी जिंदगी में कभी किसी से कुश्ती में नहीं हारा था और पीठ के बल लेटने को वह एक तरह से हारना ही समझता था। इसलिए उसने अपने शिष्यों से कहा था कि उसे उसकी मौत के बाद चिता पर पीठ के बल न सुलाए और चिता सुलगाने के समय ढोलक बजाया जाए।

 

प्रश्न 16 – ‘यही आवाज़ मृत गाँव में संजीवनी शक्ति भरती रहती थी।’ ‘पहलवान की ढोलक’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि गाँव को मृत क्यों कहा गया है और मृत गाँव को कौन-सी आवाज़ किस प्रकार संजीवनी देने का कार्य करती थी ? (60 शब्दों में)

उत्तर – ‘पहलवान की ढोलक’ पाठ में गाँव को मृत इसलिए कहा गया है क्योंकि पूरा गाँव माहमारी से पीड़ित था और मौत के डर ने पूरे गाँव की मानो पूरी शक्ति ही छीन ली थी। महामारी की त्रासदी से जूझते हुए ग्रामीणों को ढोलक की आवाज संजीवनी शक्ति की तरह मौत से लड़ने की प्रेरणा देती थी। महामारी फैलने पर गाँव में चिकित्सा और देखरेख के अभाव में ग्रामीणों की दशा दयनीय हो जाती थी। लोग दिन भर खाँसते कराहते रहते थे। रोज दो-चार व्यक्ति मरते थे। दवाओं के अभाव में उनकी मृत्यु निश्चित थी। शरीर में शक्ति नहीं रहती थी। पहलवान की ढोलक मृतप्राय शरीरों में आशा व जीवंतता भरती थी। वह संजीवनी शक्ति का कार्य करती थी।

 

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Chapter 14 – शिरीष के फूल

 

प्रश्न 1 – निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उस पर आधारित दिए गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए :

शिरीष के फूलों की कोमलता देखकर परवर्ती कवियों ने समझा कि उसका सब-कुछ कोमल है ! यह भूल है । इसके फल इतने मज़बूत होते हैं कि नए फूलों के निकल आने पर भी स्थान नहीं छोड़ते । जब तक नए फल-पत्ते मिलकर, धकियाकर उन्हें बाहर नहीं कर देते तब तक वे डटे रहते हैं । वसंत के आगमन के समय जब सारी वनस्थली पुष्प-पत्र से मर्मरित होती रहती है, शिरीष के पुराने फल बुरी तरह खड़खड़ाते रहते हैं । …

मैं सोचता हूँ कि पुराने की यह अधिकार-लिप्सा क्यों नहीं समय रहते सावधान हो जाती ? जरा और मृत्यु, ये दोनों ही जगत के अतिपरिचित और अतिप्रामाणिक सत्य हैं। तुलसीदास ने अफ़सोस के साथ इनकी सच्चाई पर मुहर लगाई थी – ‘धरा को प्रमान यही तुलसी जो फरा सो झरा, जो बरा सो बुताना !’

 

(i) गद्यांश में प्रयुक्त ‘वसंत’ शब्द का समानार्थी शब्द हो सकता है :

(A) संतदास

(B) मधुमास

(C) उल्लास

(D) मनोरम

उत्तर – (B) मधुमास

 

(ii) निम्नलिखित कथनों पर विचार करते हुए गद्यांश के अनुसार सही कथन को चयनित कर लिखिए :

(A) शिरीष के फल, फूल की तरह कोमल होते हैं ।

(B) शिरीष के फल-फूल दोनों ही कोमल होते हैं ।

(C) शिरीष के फल, फूल की तरह कोमल नहीं होते ।

(D) शिरीष के फल नए फूल आते ही अपना स्थान छोड़ देते हैं।

उत्तर – (C) शिरीष के फल, फूल की तरह कोमल नहीं होते ।

 

(iii) वसंत के सौंदर्य में इनमें से कौन-सा सौंदर्यहीन बना रहता है ?

(A) पुष्पपत्र से मर्मरित वनस्थली

(B) शिरीष के फूल

(C) शिरीष का पेड़

(D) शिरीष के फल

उत्तर – (D) शिरीष के फल

 

(iv) ‘शिरीष’ को लेकर लेखक का परवर्ती कवियों की धारणा को निराधार मानने का आधार है :

(A) फलों की मजबूती

(B) फूलों की मजबूती

(C) फूलों की कोमलता

(D) इसका फूलों से लदे रहना

उत्तर – (A) फलों की मजबूती

 

(v) ‘जो फरा सो झरा, जो बरा सो बुताना’ – पंक्ति का भाव है :

(A) जिसने जन्म लिया उसकी मृत्यु निश्चित है ।

(B) जो फलेगा वह झड़ेगा, जो जलेगा वह बुझेगा ।

(C) पुरानी पीढ़ी का स्थान नई पीढ़ी लेगी ।

(D) शिरीष के फूलों का झड़ना निश्चित है ।

उत्तर – (A) जिसने जन्म लिया उसकी मृत्यु निश्चित है ।

 

प्रश्न 2 – चिलकती धूप में भी सरस रहने वाला शिरीष क्या प्रेरणा देता है ? अपने शब्दों में लिखिए।(40 शब्दों में)

उत्तर – जिस तरह शिरीष के फूल आँधी, लू, भयंकर गर्मी आदि विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए भी अपनी कोमलता व सुंदरता को बनाए रहता है, उसी तरह हमें भी अपने जीवन की विपरीत परिस्थितियों में अपने धैर्य व संयम को बनाए रखते हुए अपने जीवन में आगे बढ़ते रहना चाहिए। शिरीष का फूल हमें जीवन में लगातार संधर्ष करने की प्रेरणा देता हैं।

 

प्रश्न 3 – “शकुंतला कालिदास के हृदय से निकली थी ।” ‘शिरीष के फूल’ पाठ के आधार पर इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए ।(40 शब्दों में)

उत्तर – “शकुंतला कालिदास के हृदय से निकली थी ।” कथन का आशय यह है कि कालिदास ने शकुंतला के सौंदर्य का वर्णन किया हैं। परन्तु लेखक मानता है कि वास्तव में वो शकुंतला का सौंदर्य नहीं बल्कि कालिदास के हृदय की सुंदरता हैं। लेखक कहते हैं कि राजा दुष्यंत ने भी शकुंतला का चित्र बनाया लेकिन उन्हें उस चित्र में हर बार कुछ ना कुछ कमी महसूस होती थी। बहुत देर बाद उन्हें समझ में आया कि वो शकुंतला के कानों में शिरीष का फूल लगाना ही भूल गए। कालिदास सौंदर्य के बाहरी कवर आवरण को भेदकर उसके भीतर पहुंचने में समर्थ थे। वो सुख-दुख दोनों में भाव रस खींच लिया करते थे।

 

प्रश्न 4 – ‘शिरीष के फूल’ पाठ के आधार पर बताइए कि लेखक जीवन का सत्य किसे और क्यों मानता है। (40 शब्दों में)

उत्तर – पुराने रीति-रिवाज, जीवन-सिद्धांत व जीवन जीने का ढंग भी बहुत तेजी से बदल रहा हैं और इन बदलती परिस्थितियों के अनुसार हमें अपने आप को समयानुसार ढाल लेना चाहिए और समाज में आए बदलाव को स्वीकार कर लेना चाहिए। शिरीष के फूल हमें यही सीख देते हैं कि पुरानी पीढ़ी को समय रहते ही अपने अधिकार करने के लोभ को छोड़ देना चाहिए और नई पीढ़ी के लिए स्थान बनाना चाहिए। जिस तरह शिरीष का फूल हर मौसम में अपने को और अपने स्वभाव को बदल लेता है। जैसे वसंत, आषाढ़ और भादों में खिला रहता है। प्रचंड लू और उमस को सहन करता है। लेकिन फिर भी खिला रहता है। उसी तरह हमें भी परिस्थितियों के अनुसार अपने आप को ढालना चाहिए तभी हम अपने जीवन को आनंद पूर्वक व्यतीत कर सकते हैं।

 

प्रश्न 5 – शिरीष के पुष्पों की तुलना लेखक ने किनके साथ और किस आधार पर की है ? (40 शब्दों में)

उत्तर – शिरीष के पुष्पों की तुलना लेखक ने अमलतास के फूल के साथ की है। वैसे तो जेठ की भयंकर गर्मी में बहुत कम फूल ही खिलने की हिम्मत कर पाते हैं। इन फूलों में अमलतास भी शामिल है। किन्तु इसकी तुलना शिरीष के फूलों से है की जा सकती। क्योंकि वह केवल 15 से 20 दिनों के लिए ही खिलता है। जैसे बसंत ऋतू में पलाश का फूल। परन्तु शिरीष के फूल लम्बे समय तक खिले रहते हैं। वो बसंत के शुरुआत में खिलना प्रारंभ होते हैं और आषाढ़ तक खिले रहते हैं।

 

प्रश्न 6 – ‘हाय वह अवधूत आज कहाँ है !’ ‘शिरीष के फूल’ पाठ में लेखक के इस कथन से क्या संकेत मिलता है?(40 शब्दों में)

उत्तर – “हाय ! वह अवधूत आज कहां”, यहाँ लेखक ने महात्मा गांधी को अवधूत यानी सन्यासी के रूप में याद किया हैं जिसने देह बल के ऊपर आत्मबल को सिद्ध किया है। यानि शाररिक रूप से बेहद कमजोर गांधी जी ने अपने आत्मबल के सहारे अंग्रेजों के खिलाफ कई बड़े आंदोलन सफलतापूर्वक चलाये और देश को आजादी दिलाने में अहम् भूमिका अदा की। इसीलिए लेखक जब शिरीष की ओर देखते है तो उनके मन में एक हूक उठती है। क्योंकि वर्तमान समय में देश में चारों ओर मारकाट, आगजनी, लूटपाट आदि का बवंडर छाया है। लोगों में आत्मबल की कमी होती जा रही हैं। आज देश में न गांधीजी हैं और न ही उनके जीवन मूल्यों को मानने वाले लोग।

 

प्रश्न 7 – लेखक ने शिरीष को अवधूत-रूप किन कारणों से माना है ? (60 शब्दों में)

उत्तर – लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत कहा है। “कालजयी” अर्थात जिसने काल पर विजय प्राप्त कर ली हो और “अवधूत” यानि एक ऐसा सन्यासी जिसे सुख-दुख, अच्छे-बुरे से कोई फर्क न पड़ता हो। जिसके भाव हर परिस्थिति में एक समान रहते हों। यही सब लक्षण शिरीष के फूल में भी हैं जिस कारण लेखक ने शिरीष के फूल को कालजयी अवधूत कहा है। क्योंकि शिरीष का फूल भयंकर गरमी, उमस, लू आदि के बीच सरस रहता है। वसंत में वह लहक उठता है तथा भादों मास तक फलता-फूलता रहता है। उस पर ना भयंकर गर्मी का असर दिखाई देता है और ना ही तेज बारिश का कोई प्रभाव। वह काल व समय को जीतकर एक सामान लहलहाता रहता है।

 

प्रश्न 8 – ‘शिरीष के फूल’ पाठ का कथ्य स्पष्ट कीजिए । (60 शब्दों में)

उत्तर – “शिरीष के फूल” लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी जी द्वारा लिखा गया एक निबंध है। इस निबंध में लेखक ने शिरीष के फूल के माध्यम से संदेश दिया है कि जिस तरह शिरीष के फूल आँधी, लू, भयंकर गर्मी आदि विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए भी अपनी कोमलता व सुंदरता को बनाए रहता है, उसी तरह हमें भी अपने जीवन की विपरीत परिस्थितियों में अपने धैर्य व संयम को बनाए रखते हुए अपने जीवन में आगे बढ़ते रहना चाहिए। शिरीष का फूल हमें जीवन में लगातार संधर्ष करने की प्रेरणा देता हैं।

 

प्रश्न 9 – कोमलता और कठोरता परस्पर हृदय के भाव हैं, हृदय की कोमलता बचाने के लिए व्यवहार की कठोरता भी जरूरी है, क्यों ? ‘शिरीष के फूल’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए। (60 शब्दों में)

उत्तर – प्रस्तुत पाठ में शिरीष के फूल के द्वारा लेखक यही समझाना चाहते हैं कि हृदय की कोमलता को बचाने के लिए व्यवहार में कठोरता भी कभी-कभी जरूरी हो जाती है। जिस प्रकार शिरीष का फूल भयंकर गर्मी और लू को सहन करने के लिए बाहर से कठोर स्वभाव अपनाता है और अपने कोमल फूलों की रक्षा कर लेता है। ठीक इसी तरह कभी-कभी मनुष्यों को भी जीवन की विपरीत परिस्थितियों का सामना करने के लिए कठोर निर्णय लेने पड़ते हैं। इसीलिए लेखक कहते हैं कि कभी-कभी हृदय की कोमलता को बचाए रखने के लिए अपने व्यवहार में कठोरता लानी आवश्यक हो जाती है।

 

प्रश्न 10 – शिरीष और महात्मा गाँधी की तुलना पाठ में किस आधार पर की गई है ? (60 शब्दों में)

उत्तर – गांधी जी सत्य, अहिंसा, प्रेम आदि कोमल भावों से युक्त थे। वे दूसरे के कष्टों से द्रवित हो जाते थे। वे अंग्रेजों के प्रति भी कठोर न थे। दूसरी तरफ वे अनुशासन व नियमों के मामले में कठोर थे। वे अपने अधिकारों के लिए डटकर संघर्ष करते थे तथा किसी भी दबाव के आगे झुकते नहीं थे। ब्रिटिश साम्राज्य को उन्होंने अपनी दृढ़ता से ढहाया था। इस तरह गांधी के व्यक्तित्व की विशेषता-कोमल व कठोर भाव बन गए थे।

 

प्रश्न 11 – ‘शिरीष के फूल’ पाठ में लेखक द्वारा शिरीष, अवधूत और गाँधी जी को समानांतर किस आधार पर रखा गया है ? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए ।(60 शब्दों में)

उत्तर – शिरीष के अवधूत रूप के कारण लेखक को महात्मा गांधी की याद आती है। शिरीष तरु अवधूत की तरह, बाहय परिवर्तन धूप, वर्षा, आँधी, लू-सब में शांत बना रहता है तथा पुष्पित-पल्लवित होता रहता है। इनकी तरह ही महात्मा गांधी भी मारकाट, अग्निदाह, लूटपाट, खून खच्चर को बवंडर के बीच स्थिर रह सके थे। इस समानता के कारण लेखक गांधी जी को याद करता है। जिस तरह शिरीष वायुमंडल से रस खींचकर इतना कोमल व कठोर हो सकता है, उसी तरह महात्मा गांधी भी कोमल-कठोर व्यक्तित्व वाले थे। यह वृक्ष और मनुष्य दोनों ही अवधूत हैं।

 

प्रश्न 12 – ‘शिरीष के फूल’ पाठ से उद्धृत पंक्ति ‘महाकाल देवता सपासप कोड़े चला रहे हैं’ – का आशय स्पष्ट करते हुए लिखिए कि लेखक ने कालदेवता से बचने का क्या उपाय बताया है ?(60 शब्दों में)

उत्तर – काल रूपी अग्नि और जीवन शक्ति का संघर्ष निरंतर चलता रहता है कहने का तात्पर्य यह है कि जीवित रहने के लिए हर प्राणी संघर्ष करता रहता हैं लेकिन कई बार कुछ मूर्ख यह भूल जाते हैं कि एक न एक दिन मृत्यु निश्चित हैं। मूर्ख व्यक्ति तो यही समझते हैं कि वो जहां भी टिके हैं वहीं टिके रहे तो मृत्यु से बच जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं है। समय गतिवान है और यदि समय के साथ अपने जीवन में परिवर्तन करते रहे और अपने जीने के ढंग में बदलाव करते रहे तो जीवन जीना आसान हो जाएगा। जो व्यक्ति हिलते-डुलते रहते हैं, स्थान बदलते रहते हैं तथा प्रगति की ओर बढ़ते रहते हैं, वे ही मृत्यु से बच सकते हैं। लेखक ने जीवन में जड़ता को मृत्यु के समान माना है तथा गतिशीलता को ही जीवन बताया है।

 

प्रश्न 13 – ‘दुःख हो या सुख, वह हार नहीं मानता । न ऊधो का लेना, न माधो का देना ।’ ‘शिरीष के फूल’ पाठ में आई यह पंक्ति किसके लिए कही गई, उसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ।(60 शब्दों में)

उत्तर – ‘दुःख हो या सुख, वह हार नहीं मानता । न ऊधो का लेना, न माधो का देना ।’ यह पंक्ति शिरीष के फूल’ के लिए कही गई है। शिरीष को कालजयी अवधूत कहा है। “कालजयी” अर्थात जिसने काल पर विजय प्राप्त कर ली हो और “अवधूत” यानि एक ऐसा सन्यासी जिसे सुख-दुख, अच्छे-बुरे से कोई फर्क न पड़ता हो। जिसके भाव हर परिस्थिति में एक समान रहते हों। यही सब लक्षण शिरीष के फूल में भी हैं जिस कारण लेखक ने शिरीष के फूल को कालजयी अवधूत कहा है। क्योंकि शिरीष का फूल भयंकर गरमी, उमस, लू आदि के बीच सरस रहता है। वसंत में वह लहक उठता है तथा भादों मास तक फलता-फूलता रहता है। उस पर ना भयंकर गर्मी का असर दिखाई देता है और ना ही तेज बारिश का कोई प्रभाव। वह काल व समय को जीतकर एक सामान लहलहाता रहता है।

 

प्रश्न 14 – ‘शिरीष के फूल’ पाठ में बताया गया है कि कबीरदास को पंद्रह-बीस दिन का लहक उठना पसंद नहीं था । ‘लहक उठना’ का अर्थ स्पष्ट करते हुए लिखिए कि क्या आप भी इसमें विश्वास रखते हैं ? तर्क सहित उत्तर दीजिए ।(60 शब्दों में)

उत्तर – कबीरदास को पंद्रह-बीस दिन का लहक उठना पसंद नहीं था । ‘लहक उठना’ का अर्थ होता है – महकना , झूमना या लहलहाना। जेठ की भयंकर गर्मी में बहुत कम फूल ही खिलने की हिम्मत कर पाते हैं। इन फूलों में अमलतास भी शामिल है। किन्तु इसकी तुलना शिरीष के फूलों से है की जा सकती। क्योंकि वह केवल 15 से 20 दिनों के लिए ही खिलता है। जैसे बसंत ऋतु में पलाश का फूल। हालांकि कबीरदास जी को 10-15 दिन के लिए खिलने वाले फूल पसंद नहीं है। कहने का आशय यह है कि कठिन परिस्थितियों में जल्द ही हार मान लेने वाले लोग कबीरदास को पसंद नहीं हैं। हम भी इसमें विश्वास रखते हैं। क्योंकि जो कठिनाइयों में हार मान लेते हैं वे अक्सर अपनी मंजिल नहीं खोज पाते। 

 

प्रश्न 15 – ‘शिरीष के फूल’ पाठ से ली गई पंक्ति ‘ऐसे दुमदारों से तो लँडूरे भले’ का आशय स्पष्ट करते हुए लिखिए कि लेखक ने ऐसा किस संदर्भ में कहा है ?(60 शब्दों में)

उत्तर – ‘ऐसे दुमदारों से तो लँडूरे भले’ का आशय यह है कि कठिनाइयों में जल्दी हार मानने वालों से तो कठिनाइयों को देखकर ही हार मान लेने वाले सही है। लेखक ने इस पंक्ति के माध्यम से कठिनायों में जल्दी हार मान लेने वालों को कठिनाइयों में डट कर सामना करने का सन्देश दिया है। जैसे जेठ की भयंकर गर्मी में बहुत कम फूल ही खिलने की हिम्मत कर पाते हैं। इन फूलों में अमलतास भी शामिल है। किन्तु इसकी तुलना शिरीष के फूलों से है की जा सकती। क्योंकि वह केवल 15 से 20 दिनों के लिए ही खिलता है। जैसे बसंत ऋतू में पलाश का फूल। परन्तु शिरीष के फूल लम्बे समय तक खिले रहते हैं। वो बसंत के शुरुआत में खिलना प्रारंभ होते हैं और आषाढ़ तक खिले रहते हैं। उस पर ना भयंकर गर्मी का असर दिखाई देता है और ना ही तेज बारिश का कोई प्रभाव। वह काल व समय को जीतकर एक सामान लहलहाता रहता है। यह हमें विषम परिस्थितयों में भी प्रसन्नता व मस्ती के साथ जीवन जीने की कला सिखाता हैं।

 

प्रश्न 16 – ‘शिरीष के फूल’ पाठ से ली गई पंक्ति ‘दिन दस फूला फूलिके खंखड़ भया पलास’ का आशय स्पष्ट करते हुए लिखिए कि लेखक द्वारा यह पंक्ति किस उद्देश्य से कही गई है ।(60 शब्दों में)

उत्तर – ‘दिन दस फूला फूलिके खंखड़ भया पलास’ का आशय यह है कि कठिनाइयों में जल्दी हार मानने वालों से तो कठिनाइयों को देखकर ही हार मान लेने वाले सही है। लेखक ने यह पंक्ति लोगों को कठिनायों में जल्दी हार न मानने व् कठिनाइयों में डट कर सामना करने के उद्देश्य से कही है। जैसे जेठ की भयंकर गर्मी में बहुत कम फूल ही खिलने की हिम्मत कर पाते हैं। इन फूलों में अमलतास भी शामिल है। किन्तु इसकी तुलना शिरीष के फूलों से है की जा सकती। क्योंकि वह केवल 15 से 20 दिनों के लिए ही खिलता है। जैसे बसंत ऋतू में पलाश का फूल। परन्तु शिरीष के फूल लम्बे समय तक खिले रहते हैं। वो बसंत के शुरुआत में खिलना प्रारंभ होते हैं और आषाढ़ तक खिले रहते हैं। उस पर ना भयंकर गर्मी का असर दिखाई देता है और ना ही तेज बारिश का कोई प्रभाव। वह काल व समय को जीतकर एक सामान लहलहाता रहता है। यह हमें विषम परिस्थितयों में भी प्रसन्नता व मस्ती के साथ जीवन जीने की कला सिखाता हैं।

 

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Chapter 15 – श्रम विभाजन और जाति-प्रथा

 

प्रश्न 1 – ‘श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि जातिवाद के पोषक अपने समर्थन में क्या तर्क देते हैं ।(40 शब्दों में)

उत्तर – इस आधुनिक युग में भी जातिवाद को समर्थन देने वालों की कोई कमी नहीं है वे विभिन्न तर्कों के आधार पर जातिवाद का समर्थन करते रहते है। जातिवाद के उन समर्थकों द्वारा एक तर्क यह भी दिया जाता है कि आधुनिक सभ्य समाज में कार्यकुशलता के लिए कार्य विभाजन या कार्य का बंटवारा करना आवश्यक है और जातिप्रथा, कार्य विभाजन का ही दूसरा रूप है। इसीलिए उनके अनुसार जातिवाद में कोई बुराई नहीं है।

 

प्रश्न 2 – आंबेडकर की कल्पना का समाज कैसा होगा ? ‘श्रम विभाजन और जाति-प्रथा’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए । (40 शब्दों में)

उत्तर – डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी की कल्पना का आदर्श समाज स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे पर आधारित है। और किसी भी आदर्श समाज में इतनी गतिशीलता या लचीलापन तो होना ही चाहिए कि यदि समय के साथ समाज में कोई परिवर्तन करने की आवश्यकता हो तो वह परिवर्तन आसानी से किये जा सकें और यदि लोगों की भलाई के लिए कोई फैसला या नियम बनाया जाए तो उन फैसलों या नियमों का लाभ उच्च वर्ग से निम्न वर्ग तक के सभी व्यक्ति को एक समान रूप से मिल सके, जिससे समाज के सभी लोगों को उन्नति के समान अवसर मिलें। समाज में लोगों के बीच किसी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। क्योंकि जिस समाज में लोग एक दूसरे के हितों का ध्यान रखते है या एक दूसरे की भलाई के बारे में सोचते हैं। वह समाज निश्चित रूप से उन्नति करता है।

 

प्रश्न 3 – ‘श्रम विभाजन… मेरी कल्पना…’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि समाज अपने सदस्यों से अधिकतम उपयोगिता कैसे प्राप्त कर सकता है। (40 शब्दों में)

उत्तर – व्यक्ति को उसकी रूचि के आधार पर कार्य करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। जैसे अगर कोई ब्राह्मण का पुत्र सैनिक, वैज्ञानिक या इंजीनियर बनकर देश सेवा करना चाहता है तो उसे ऐसा करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। कहने का अभिप्राय यह है कि व्यक्ति को अपनी रुचि व क्षमता के हिसाब से अपना कार्य क्षेत्र चुनने की पूर्ण स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। तभी देश का युवक वर्ग अपनी पूरी क्षमता से समाज व राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभा पाएंगे।

 

प्रश्न 4 – श्रम विभाजन और श्रमिक विभाजन का अंतर ‘श्रम विभाजन और जाति प्रथा’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए । (40 शब्दों में)

उत्तर – श्रम विभाजन, निश्चय ही सभ्य समाज की आवश्यकता है। जातिप्रथा को यदि श्रम विभाजन मान लिया जाये तो यह स्वाभाविक विभाजन नहीं है। श्रम विभाजन में क्षमता और कार्यकुशलता के आधार पर काम का बँटवारा होता है जबकि श्रमिक विभाजन में लोगों को जन्म के आधार पर बाँटकर पैतृक पेशे को अपनाने के लिए बाध्य किया जाता है। श्रम-विभाजन में व्यक्ति अपनी रुचि के अनुसार व्यवसाय का चयन करता है। श्रमिक-विभाजन में व्यवसाय का चयन तो दूर की बात है, व्यवसाय परिवर्तन की भी अनुमति नहीं होती है। जिससे समाज में ऊँच-नीच, भेदभाव, असमानता का भाव पैदा होता है। यह अस्वाभाविक विभाजन है। इससे गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी जैसी गंभीर समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं।

 

प्रश्न 5 – समाज को अपने सदस्यों से अधिकतम उपयोगिता प्राप्त करने के लिए आंबेडकर ने क्या सुझाव दिए हैं ? अपने शब्दों में लिखिए ।(40 शब्दों में)

उत्तर – यदि हमें समाज के सभी सदस्यों से अधिकतम योगदान प्राप्त करना है तो हमें सभी को सामान अवसर उपलब्ध कराने होंगे और सभी के साथ एक समान व्यवहार करना होगा। और प्रत्येक व्यक्ति को उसकी क्षमता का विकास करने के लिए प्रोत्साहित भी करना होगा। क्योंकि यह संभव है कि किसी व्यक्ति का प्रयत्न कम हो सकता है और किसी का ज्यादा लेकिन कम से कम हम सभी को समान प्रयत्न करने का अवसर तो उपलब्ध करवा सकते हैं।

 

प्रश्न 6 – श्रम विभाजन से क्या अभिप्राय है और इसकी क्या आवश्यकता है ? ‘श्रम विभाजन और जाति प्रथा’ पाठ के आधार पर लिखिए ।(40 शब्दों में)

उत्तर – समाज के विकास के लिए कार्य का बंटवारा भी आवश्यक है। परन्तु समाज का विकास तभी संभव है जब यह कार्य विभाजन किसी जाति के आधार पर नहीं बल्कि व्यक्ति की योग्यता, रूचि और उसकी कार्य कुशलता व निपुणता के आधार पर हो।

 

प्रश्न 7 – ‘मेरी कल्पना का आदर्श समाज’ शीर्षक के आधार पर लिखिए कि आंबेडकर के अनुसार आदर्श समाज की स्थापना के लिए क्या किया जाना चाहिए ?(40 शब्दों में)

उत्तर – अंबेडकर जी कहते हैं कि मानवता की दृष्टि से समाज को दो श्रेणियों में नहीं बांटा जा सकता। व्यवहारिक सिद्धांत भी यही कहता है कि सभी के साथ समान व्यवहार किया जाए। जैसे राजनीतिज्ञ सबके साथ समान व्यवहार करते हैं। राजनेता इसी धारणा को लेकर चलता है कि सबके साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए। तभी उसकी राजनीति फलती फूलती है। हालांकि समानता एक काल्पनिक जगत की वस्तु है फिर भी राजनीतिज्ञ को सभी परिस्थितियों को दृष्टि में रखते हुए , यही मार्ग अपनाना पड़ता है क्योंकि यही व्यवहारिक भी है और यही उसके व्यवहार की एकमात्र कसौटी भी है।

 

प्रश्न 8 – ‘श्रम विभाजन और जाति प्रथा’ पाठ के आधार पर लिखिए कि मनुष्य को पेशा बदलने की आवश्यकता क्यों पड़ती है ?(40 शब्दों में)

उत्तर – जातिप्रथा, व्यक्ति के कार्यक्षेत्र को पहले से ही निर्धारित तो करती ही हैं। साथ ही साथ यह मनुष्य को जीवन भर के लिए उसी पेशे के साथ बंधे रहने को मजबूर भी करती है। फिर भले ही व्यक्ति की उस कार्य को करने में कोई रुचि हो या ना हो, या फिर उस कार्य से उसकी आजीविका चल रही हो या चल रही हो, उसका और उसके परिवार का भरण पोषण हो रहा हो या ना हो रहा हो। यहाँ तक कि उस कार्य से उसके भूखे मरने की नौबत भी आ जाए तो भी, वह अपना कार्य बदल कर कोई दूसरा कार्य नहीं सकता है। जबकि आधुनिक समय में कई बार प्रतिकूल परिस्थितियाँ होने के कारण अपना और अपने परिवार की सुख-सुविधाओं के लिए इंसान को अपना पेशा या कार्यक्षेत्र बदलने की जरूरत पड़ सकती है।

 

प्रश्न 9 – ‘आंबेडकर के अनुसार शारीरिक वंश परंपरा की दृष्टि से मनुष्य में भिन्नता होने के कारण क्या उनके साथ असमान व्यवहार किया जाना चाहिए ?’ कथन पर टिप्पणी कीजिए ।(40 शब्दों में)

उत्तर – आंबेडकर के अनुसार शारीरिक वंश परंपरा की दृष्टि से मनुष्य में भिन्नता होने के कारण उनके साथ असमान व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि शारीरिक वंश परंपरा व सामाजिक उत्तराधिकार का अधिकार व्यक्ति के अपने हाथ में नहीं हैं, इसीलिए इस आधार पर किसी के साथ असमान व्यवहार करना उचित नहीं है। जाति, धर्म, संप्रदाय से ऊपर उठकर हमें मानव मात्र के प्रति समान व्यवहार रखना चाहिए।समाज में भेदभाव को छोड़ कर सभी लोगों को समान अवसर और अधिकार मिलने चाहिए। यह सब असंभव है किन्तु यही सत्य है।

 

प्रश्न 10 – ‘श्रम विभाजन और जाति प्रथा’ पाठ के आधार पर लिखिए कि रुचि आधारित कार्य न मिलने से देश के विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है और क्यों ?(40 शब्दों में)

उत्तर – व्यक्ति को उसकी रूचि के आधार पर कार्य करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। जैसे अगर कोई ब्राह्मण का पुत्र सैनिक, वैज्ञानिक या इंजीनियर बनकर देश सेवा करना चाहता है तो उसे ऐसा करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। कहने का अभिप्राय यह है कि व्यक्ति को अपनी रुचि व क्षमता के हिसाब से अपना कार्य क्षेत्र चुनने की पूर्ण स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। तभी देश का युवक वर्ग अपनी पूरी क्षमता से समाज व राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभा पाएंगे।

 

प्रश्न 11 – ‘मेरी कल्पना का आदर्श समाज’ पाठ के आधार पर ‘दासता’ का अभिप्राय स्पष्ट कीजिए ।(40 शब्दों में)

उत्तर – लेखक के मत के अनुसार दासता या गुलामी का तात्पर्य सिर्फ कानूनी गुलामी नहीं है। बल्कि दासता का तात्पर्य यह है कि किसी व्यक्ति को उसकी रूचि के अनुसार कार्य करने की अनुमति न होना अथवा यह भी कहा जा सकता है कि जब किसी व्यक्ति को उसकी शैक्षणिक योग्यता व् कार्य कुशलता के अनुसार रोजगार या व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता ना हो और उसे समाज के द्वारा बनाए गए रूढ़िवादी नियम कानून के अनुसार अपना जीवन यापन करना पड़े तो, यह भी एक तरह की गुलामी ही है।

 

प्रश्न 12 – ‘श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा’ पाठ के आधार पर लिखिए कि जाति और श्रम-विभाजन में बुनियादी अंतर क्या है । (60 शब्दों में)

उत्तर – समाज के विकास के लिए कार्य का बंटवारा भी आवश्यक है। परन्तु समाज का विकास तभी संभव है जब यह कार्य विभाजन किसी जाति के आधार पर नहीं बल्कि व्यक्ति की योग्यता, रूचि और उसकी कार्य कुशलता व निपुणता के आधार पर हो। भारतीय समाज की जाति प्रथा की एक यह भी विशेषता है कि यह कार्य के आधार पर श्रमिकों का विभाजन नहीं करती बल्कि समाज में पहले से ही विभाजित वर्गों अर्थात ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र, के आधार पर कार्य का विभाजन करती है। उदाहरण के तौर पर ब्राह्मण का बेटा वेद-पुराणों का ही अध्ययन करेगा तो क्षत्रिय का बेटा रक्षा का ही कार्य करेगा, लोहार का बेटा लोहार का ही कार्य करेगा। भले ही इन कार्यों को करने में उनकी रूचि हो या न हो। इस तरह की व्यवस्था विश्व के किसी भी समाज में नहीं दिखाई देती है।भीमराव अंबेडकर जी कहते हैं कि एक समय के लिए जाति प्रथा को यदि श्रम विभाजन मान भी लिया जाए तो भी यह स्वाभाविक और उचित नहीं होगा। क्योंकि यह मनुष्य की रुचि के हिसाब से नहीं है। इसमें व्यक्ति जिस जाति या वर्ग में जन्म लेता हैं, उसे उसी के अनुसार कार्य करना होता हैं।

 

प्रश्न 13 – “जाति-प्रथा के आधार पर किया गया श्रम-विभाजन मनुष्य और समाज दोनों के लिए अहितकर है” – उचित तर्क द्वारा इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए ।(60 शब्दों में)

उत्तर – “जाति-प्रथा के आधार पर किया गया श्रम-विभाजन मनुष्य और समाज दोनों के लिए अहितकर है” इस कथन का आशय यह है कि आधुनिक समय में कई बार प्रतिकूल परिस्थितियाँ होने के कारण अपना और अपने परिवार की सुख-सुविधाओं के लिए इंसान को अपना पेशा या कार्यक्षेत्र बदलने की जरूरत पड़ सकती है। लेकिन अगर प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मनुष्य को अपना कार्यक्षेत्र बदलने की स्वतंत्रता ना हो तो उसके भूखे मरने की नौबत तो आयेगी ही। हिंदू धर्म की जाति प्रथा किसी भी व्यक्ति को ऐसा कोई कार्यक्षेत्र चुनने की अनुमति नहीं देती है जो उसका पैतृक पेशा ना हो। भले ही वह किसी दूसरे कार्य को करने में अधिक निपुण और पारंगत क्यों ना हो। इसीलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि कार्यक्षेत्र को बदलने की अनुमति न देकर जाति प्रथा भारत में बेरोजगारी व् भुखमरी बढ़ाने में भी अहम भूमिका निभाती है।

 

प्रश्न 14 – ‘श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा’ पाठ के आधार पर लिखिए कि मनुष्य की क्षमता किन बातों पर निर्भर करती है ?(60 शब्दों में)

उत्तर – व्यक्ति को उसकी रूचि के आधार पर कार्य करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। जैसे अगर कोई ब्राह्मण का पुत्र सैनिक, वैज्ञानिक या इंजीनियर बनकर देश सेवा करना चाहता है तो उसे ऐसा करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। कहने का अभिप्राय यह है कि व्यक्ति को अपनी रुचि व क्षमता के हिसाब से अपना कार्य क्षेत्र चुनने की पूर्ण स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। तभी देश का युवक वर्ग अपनी पूरी क्षमता से समाज व राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभा पाएंगे।

 

प्रश्न 15 – डॉ. आंबेडकर ‘दासता’ को केवल कानूनी पराधीनता क्यों नहीं मानते ? स्पष्ट कीजिए । (60 शब्दों में)

उत्तर – दासता अर्थात गुलामी केवल कानूनी पराधीनता को ही नहीं कहा जा सकता। जब कुछ लोगों को दूसरे लोगों के द्वारा निर्धारित व्यवहार और कर्तव्यों का पालन करने के लिए विवश होना पड़ता हैं। यह भी एक तरह की गुलामी ही है। और जाति प्रथा में लोगों को अक्सर अपनी इच्छा के विपरीत दूसरे लोगों द्वारा बनाए हुए कानूनों को मानना पड़ता है। क्योंकि जातिप्रथा वाले समाज में प्रतिकूल परिस्थिति होने पर भी व्यक्ति अपना व्यवसाय या कार्यक्षेत्र नहीं बदल सकता। एक व्यक्ति को अपने जन्म से पूर्व निर्धारित कार्यों को ही इच्छा के विरुद्ध जीवन भर करना पड़ता हैं चाहे वह उसके व् उसके परिवार के लिए अनुकूल हो ना हो।

 

प्रश्न 16 – ‘श्रम विभाजन और जाति प्रथा’ पाठ के आधार पर लिखिए कि भारत में जाति आधारित ऐसी कौन-सी व्यवस्था है जो पूरे विश्व में कहीं नहीं पाई जाती ?(40 शब्दों में)

उत्तर – भारतीय समाज की जाति प्रथा की एक यह भी विशेषता है कि यह कार्य के आधार पर श्रमिकों का विभाजन नहीं करती बल्कि समाज में पहले से ही विभाजित वर्गों अर्थात ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र, के आधार पर कार्य का विभाजन करती है। उदाहरण के तौर पर ब्राह्मण का बेटा वेद-पुराणों का ही अध्ययन करेगा तो क्षत्रिय का बेटा रक्षा का ही कार्य करेगा, लोहार का बेटा लोहार का ही कार्य करेगा। भले ही इन कार्यों को करने में उनकी रुचि हो या न हो। इस तरह की व्यवस्था विश्व के किसी भी समाज में नहीं दिखाई देती है।

 

प्रश्न 17 – ‘श्रम विभाजन और जाति प्रथा’ पाठ के संदर्भ में लिखिए कि आधुनिक समाज में कार्य कुशलता के लिए क्या आवश्यक है ? इसका आधार क्या होना चाहिए ?(40 शब्दों में)

उत्तर – आधुनिक समाज में कार्य कुशलता के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति को उसकी रूचि के आधार पर कार्य करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। इसका आधार यह होना चाहिए कि जैसे अगर कोई ब्राह्मण का पुत्र सैनिक, वैज्ञानिक या इंजीनियर बनकर देश सेवा करना चाहता है तो उसे ऐसा करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। कहने का अभिप्राय यह है कि व्यक्ति को अपनी रुचि व क्षमता के हिसाब से अपना कार्य क्षेत्र चुनने की पूर्ण स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। तभी देश का युवक वर्ग अपनी पूरी क्षमता से समाज व राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभा पाएंगे।

 

प्रश्न 18 – ‘श्रम विभाजन…मेरी कल्पना…समाज’ पाठ में लेखक के अनुसार आदर्श समाज किसे माना गया है? (40 शब्दों में)

उत्तर – लेखक के अनुसार आदर्श समाज स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे पर आधारित है। और किसी भी आदर्श समाज में इतनी गतिशीलता या लचीलापन तो होना ही चाहिए कि यदि समय के साथ समाज में कोई परिवर्तन करने की आवश्यकता हो तो वह परिवर्तन आसानी से किये जा सके और यदि लोगों की भलाई के लिए कोई फैसला या नियम बनाया जाए तो उन फैसलों या नियमों का लाभ उच्च वर्ग से निम्न वर्ग तक के सभी व्यक्ति को एक समान रूप से मिल सके, जिससे समाज के सभी लोगों को उन्नति के समान अवसर मिले। समाज में लोगों के बीच किसी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। क्योंकि जिस समाज में लोग एक दूसरे के हितों का ध्यान रखते है या एक दूसरे की भलाई के बारे में सोचते हैं। वह समाज निश्चित रूप से उन्नति करता है।

 

प्रश्न 19 – ‘श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा’ पाठ के आधार पर कारण सहित लिखिए कि जाति-प्रथा के पोषक मनुष्य को किस प्रकार की स्वतंत्रता देने के पक्षधर हैं और किस प्रकार स्वतंत्रता देने के विरोध में हैं । (60 शब्दों में)

उत्तर – इस आधुनिक युग में भी जातिवाद को समर्थन देने वालों की कोई कमी नहीं है वे विभिन्न तर्कों के आधार पर जातिवाद का समर्थन करते रहते है। जातिवाद के उन समर्थकों द्वारा एक तर्क यह भी दिया जाता है कि आधुनिक सभ्य समाज में कार्यकुशलता के लिए कार्य विभाजन या कार्य का बंटवारा करना आवश्यक है और जातिप्रथा, कार्य विभाजन का ही दूसरा रूप है। इसीलिए उनके अनुसार जातिवाद में कोई बुराई नहीं है। परन्तु के इस बात का विरोध करते हैं कि कार्य विभाजन किसी जाति के आधार पर नहीं बल्कि व्यक्ति की योग्यता, रूचि और उसकी कार्य कुशलता व निपुणता के आधार पर हो।

 

प्रश्न 20 – ‘मेरी कल्पना का आदर्श समाज’ पाठ के आधार पर लिखिए कि लोकतंत्र से क्या अभिप्राय है।(40 शब्दों में)

उत्तर – समाज में भाईचारा दूध और पानी के समान होना चाहिए। जैसे पानी, दूध में मिलकर दूध जैसा ही हो जाता है और फिर उसे दूध से अलग करना संभव नहीं होता। ठीक उसी तरह समाज में भाईचारा होना चाहिए। जिस समाज में भाईचारा होता है और कोई भेदभाव नहीं होता। सही अर्थों में वही लोकतंत्र कहलाता है। लेखक लोकतंत्र को परिभाषित करते हुए कहते हैं कि लोकतंत्र सिर्फ देश चलाने के लिए एक शासन व्यवस्था नहीं हैं बल्कि लोकतंत्र एक ऐसा समाज है जहाँ लोग एक दूसरे का, अपने साथियों का सम्मान करें , उनके प्रति श्रद्धा भाव रखें, जहाँ हर किसी को अपना व्यवसाय या कार्यक्षेत्र चुनने की आजादी हो, वही लोकतंत्र है। 

 

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Chapter 1 – सिल्वर वैंडिंग

 

प्रश्न 1 – निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पढ़कर सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए :

(i) लेखक ने यशोधर बाबू को किशनदा का कौन-सा पुत्र कहा है ?

(A) मानस पुत्र

(B) दत्तक पुत्र

(C) पुत्र

(D) जन्मजात पुत्र

उत्तर – (A) मानस पुत्र

 

(ii) ‘सिल्वर वैडिंग’ पाठ के संदर्भ में निम्नलिखित कथन और कारण को ध्यानपूर्वक पढ़िए और सही विकल्प चुनकर लिखिए :

कथन : सिल्वर वैडिंग की भव्य पार्टी भी यशोधर बाबू को ‘समहाउ इंप्रॉपर’ लगी।

कारण : यशोधर बाबू को केक काटना विलायती परंपरा और बचकानी बात मालूम होती थी।

विकल्प :

(A) कथन सही है, कारण ग़लत है।

(B) कथन सही नहीं है, कारण सही है।

(C) कथन तथा कारण दोनों सही हैं, किंतु कारण, कथन की सही व्याख्या नहीं करता है।

(D) कथन तथा कारण दोनों सही हैं और कारण, कथन की सही व्याख्या करता है।

उत्तर – (D) कथन तथा कारण दोनों सही हैं और कारण, कथन की सही व्याख्या करता है।

 

(iii) अपने बेटों से तमाम तरह की शिकायतें होने पर भी यशोधर बाबू को उन पर गर्व क्यों था?

(A) घर की आर्थिक स्थिति सुधर जाने के कारण

(B) छोटी उम्र में ही बेटे द्वारा मोटी तनख्वाह पा जाने के कारण

(C) सांसारिक मानकों के अनुसार बड़ा आदमी मान लिये जाने के कारण

(D) घर में आधुनिक सुख-सुविधा के साधन आ जाने के कारण

उत्तर – (C) सांसारिक मानकों के अनुसार बड़ा आदमी मान लिये जाने के कारण

 

(iv) ‘सिल्वर वैडिंग’ पाठ में पत्नी द्वारा मकान के संदर्भ में भविष्य की चिंता किए जाने पर यशोधर बाबू द्वारा नकली हँसी हँसने का कारण था :

(A) अपनी गलती स्वीकार करना

(B) अपनी परेशानी को छिपाना

(C) पत्नी की खिल्ली उड़ाना

(D) मन ही मन खुश होना

उत्तर – (C) पत्नी की खिल्ली उड़ाना

 

(v) सिल्वर वैडिंग की पार्टी वाले दिन यशोधर बाबू का ‘संध्या’ में अधिक समय लगाने का कारण हो सकता है :

(A) उन्हें पार्टी आयोजन की पूर्व सूचना न दिया जाना

(B) पार्टी में मेहमानों के बीच स्वयं को उपेक्षित पाना

(C) उनके आत्मीय जनों को पार्टी में न बुलाया जाना

(D) पार्टी में आए मेहमानों के बीच स्वयं को असहज महसूस करना

उत्तर – (D) पार्टी में आए मेहमानों के बीच स्वयं को असहज महसूस करना

 

(vi) यशोधर बाबू ने मैट्रिक की परीक्षा कहाँ से उत्तीर्ण की थी ?

(A) रेम्जे स्कूल, नैनीताल

(B) रेम्जे स्कूल, अल्मोड़ा

(C) विद्या मंदिर, अल्मोड़ा

(D) विद्या मंदिर, नैनीताल

उत्तर – (B) रेम्जे स्कूल, अल्मोड़ा

 

(vii) यशोधर बाबू अपने मातहतों से छुट्टी के समय मनोरंजक बात क्यों करते थे ?

(A) दिनभर के शुष्क व्यवहार का निराकरण करने के लिए

(B) अपने काम का भार अपने मातहतों पर डालने के लिए

(C) कर्मचारियों को देर तक दफ़्तर में रोकने के लिए

(D) कर्मचारियों और अपने बीच की दूरी समाप्त करने के लिए

उत्तर – (C) कर्मचारियों को देर तक दफ़्तर में रोकने के लिए

 

(viii) “हम लोगों के यहाँ सिल्वर वैडिंग कब से होने लगी है ।” यह कथन किसके द्वारा किसे संबोधित कर कहा गया है ?

(A) यशोधर बाबू द्वारा अपने बेटे भूषण को

(B) यशोधर बाबू द्वारा अपनी बड़ी बेटी को

(C) यशोधर बाबू द्वारा अपनी पत्नी को

(D) यशोधर बाबू द्वारा चड्ढा को

उत्तर – (D) यशोधर बाबू द्वारा चड्ढा को

 

(ix) ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी में प्रयुक्त ‘असीक का फूल’ से क्या तात्पर्य है ?

(A) स्वागत के फूल

(B) आशीर्वाद के फूल

(C) माला बनाने के फूल

(D) पूजा के फूल

उत्तर – (A) स्वागत के फूल

 

(x) ‘जब तक बाप है तब तक मौज कर ले ।’ यशोधर बाबू यह बात अपने बच्चों से कहते हैं :

(A) उन पर व्यंग्य करने के लिए

(B) उनका उत्साहवर्धन करने के लिए

(C) जिम्मेदारियों से मुक्त रखने के लिए

(D) उनके प्रति अपना प्रेम व्यक्त करने के लिए

उत्तर – (A) उन पर व्यंग्य करने के लिए

 

(xi) यशोधर बाबू बच्चों की तरक्की की खुशी को भी ‘समहाउ इंप्रापर’ क्यों अनुभव करते थे ?

(A) बच्चों ने उन्हें आदर देना बंद कर दिया था ।

(B) इससे अपनों में परायापन पैदा हो गया था ।

(C) इससे बच्चों में स्वच्छंदता बढ़ गई थी ।

(D) इससे बच्चों की जीवन-शैली आधुनिक हो गई थी ।

उत्तर – (D) इससे बच्चों की जीवन-शैली आधुनिक हो गई थी ।

 

(xii) यशोधर बाबू की पत्नी आधुनिकाओं-सा आचरण क्यों करने लगी थी ?

(A) मन में दबी इच्छाओं के कारण

(B) पारिवारिक खुशी के कारण

(C) मातृसुलभ मज़बूरी के कारण

(D) सुविधाजनक होने के कारण

उत्तर – (C) मातृसुलभ मज़बूरी के कारण

 

(xiii) यशोधर बाबू ने डी. डी. ए. का फ़्लैट क्यों बुक नहीं किया था ?

(A) रिटायरमेंट के बाद गाँव में जाकर बसना चाहते थे ।

(B) लड़कों में से किसी एक लड़के के सरकारी नौकरी में आने का विश्वास था ।

(C) फ़्लैट बुक कराने के लिए पैसे नहीं थे ।

(D) योजनाबद्ध तरीके से काम नहीं करते थे ।

उत्तर – (B) लड़कों में से किसी एक लड़के के सरकारी नौकरी में आने का विश्वास था ।

 

(xiv) निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए :

(I) किशनदा ने यशोधर बाबू को नौकरी दिलवाई और जीवन में मार्गदर्शन किया ।

(II) यशोधर बाबू का दैनिक खर्च नगण्य था इसलिए उनके बटुए में पैसे कम होते थे ।

(III) दफ्तर से लौटते हुए बिड़ला मंदिर जाना उन्होंने किशनदा से सीखा था ।

(IV) यशोधर बाबू का मानना था काम तो सब अपने हाथ से ही ठीक रहता है ।

‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के अनुसार उपर्युक्त में से कौन-सा / कौन-से कथन सही है/हैं ?

(A) केवल कथन (I) सही है ।

(B) केवल कथन (II) सही है ।

(C) कथन (II) और (III) सही हैं ।

(D) कथन (I), (II), (III) और (IV) सही हैं ।

उत्तर – (A) केवल कथन (I) सही है ।

 

(xv) किशनदा की तरह घर-गृहस्थी का बबाल न पालकर जीवन समाज के नाम समर्पित करने की भावना यशोधर बाबू के मन में क्यों आती थी ?

(A) पत्नी-बच्चों से मतभेद होने के कारण

(B) घर-गृहस्थी के जंजाल से थकने के कारण

(C) जीवन का मर्म समझ में आने के कारण

(D) परिवार से मोह भंग हो जाने के कारण

उत्तर – (A) पत्नी-बच्चों से मतभेद होने के कारण

 

(xvi) यशोधर बाबू ने डी. डी. ए. के फ़्लैट के लिए पैसा क्यों जमा नहीं किया था ?

(A) वह रिटायरमेंट के बाद गाँव में बसना चाहते थे ।

(B) उन्हें तीनों में किसी एक लड़के का सरकारी नौकरी में आने का विश्वास था ।

(C) उनके पास फ़्लैट बुक कराने के लिए पैसे नहीं थे ।

(D) वे योजनाबद्ध तरीके से काम नहीं करते थे ।

उत्तर – (B) उन्हें तीनों में किसी एक लड़के का सरकारी नौकरी में आने का विश्वास था ।

 

(xvii) किशनदा कभी-कभी इस अनुरोध की रक्षा कर देते । – इस वाक्य में किस ‘अनुरोध की रक्षा’ की बात हो रही है ?

(A) यशोधर बाबू को सुबह जल्दी उठाने की

(B) यशोधर बाबू को सुबह देर से उठाने की

(C) यशोधर बाबू के घर चाय पीने की

(D) यशोधर बाबू के साथ सैर पर जाने की

उत्तर – (C) यशोधर बाबू के घर चाय पीने की

 

प्रश्न 2 – ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के संदर्भ में वर्तमान समाज के परिवार की संरचना और स्वरूप पर प्रकाश डालिए। (40 शब्दों में)

उत्तर – वर्तमान समय में परिवार की संरचना, स्वरूप इस कहानी में दर्शाए गए परिवार के स्वरूप व संरचना आज भी लगभग हर परिवार में पाई जाती है। संयुक्त परिवार आज के समय में लगभग समाप्त हो गए है। पुरानी पीढ़ी की बातों, रीति रिवाज या सलाह, नयी पीढ़ी को कुछ ख़ास महत्वपूर्ण नहीं लगती। जहाँ एक और पुराने बुजुर्ग परंपराओं के निर्वाह में विश्वास रखते हैं, वहीँ दूसरी ओर युवा पीढ़ी हर समय कुछ नया करने में विश्वास करती है। युवा पीढ़ी पुराने रीति रिवाजों को बंधन के सिवा कुछ नहीं समझती। यशोधर बाबू की तरह आज के कई मध्यवर्गीय पिता विवश हैं। वह अपने बच्चों के किसी विषय पर अपना निर्णय नहीं दे सकता। आज के आधुनिक युग में जहाँ यदि पिता बच्चों को कुछ रीति–रिवाज़ समझाना भी चाहे तो माताएँ बच्चों के समर्थन में खड़ी नजर आती हैं। आज बच्चे अपने दोस्तों के साथ पार्टी करने में अधिक खुश रहते हैं। वे आधुनिक जीवन शैली को ही सब कुछ मानते हैं। लड़कियाँ फ़ैशन के अनुसार वस्त्र पहनती हैं। कहानी में यशोधर बाबू की लड़की उसी का प्रतिनिधि है। अत: यह कहना गलत नहीं होगा कि यह कहानी आज लगभग हर परिवार से सामंजस्य बिठाती है।

 

प्रश्न 3 – ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी का कथ्य स्पष्ट कीजिए।(40 शब्दों में)

उत्तर – सिल्वर वैडिंग नामक कहानी के लेखक मनोहर श्याम जोशी जी हैं। इस कहानी के द्वारा उन्होंने पुरानी पीढ़ी व नई पीढ़ी के विचारों व जीने के तौर तरीकों के अंतर को स्पष्ट करने का सफल प्रयत्न किया है। कहानी के मुख्य पात्रों में यशोधर बाबू, उनकी पत्नी, उनके बच्चे व् किशनदा आदि शामिल हैं। एक और जहाँ यशोधर बाबू पुराने ख्यालात के व्यक्ति हैं जो अपने परंपरागत आदर्शों और अपने संस्कारों को जीवित रखना चाहते है वहीँ दूसरी ओर उनके बच्चे नए जमाने के हिसाब से जीवन जीने में विश्वास रखते है। कहानी में भी इसी नई पीढ़ी व् पुरानी पीढ़ी के बीच के द्वंद्व को दर्शाया गया है।

 

प्रश्न 4 – ‘सिल्वर वैडिंग’ पाठ के आधार पर किन्हीं दो जीवन-मूल्यों की उदाहरण सहित समीक्षा कीजिए जो समय के साथ बदल रहे हैं।(40 शब्दों में)

उत्तर – सिल्वर वैडिंग’ कहानी वर्तमान युग में बदलते जीवन-मूल्यों की कहानी है। इस कहानी में यशोधर पंत प्राचीन मूल्यों के प्रतीक हैं। उनके विपरीत उनकी संतान नए युग का प्रतिनिधित्व करती है। दोनों पीढ़ियों के अपने-अपने जीवन मूल्य हैं। भूषण व यशोधर की बेटी वर्तमान समय के बदलते जीवन-मूल्यों की झलक दिखलाते हैं। नई पीढ़ी जन्म-दिन, सालगिरह आदि पर केक काटने में विश्वास रखती है। नई पीढ़ी तेज़ी से आगे बढ़ना चाहती है। इसके लिए वे परंपरागत व्यवस्था को छोड़ने में संकोच नहीं करते।

यशोधर बाबू परंपरा से जुड़े हुए हैं। वे सादगी का जीवन जीना चाहते हैं। संग्रह वृत्ति, भौतिक चकाचौंध से दूर, वे आत्मीयता, सामूहिकता के बोध से युक्त हैं। इन सबके कारण वे भौतिक संसाधन नहीं एकत्र कर पाते । फलतः वे घर में ही अप्रासांगिक हो जाते हैं। उनकी पत्नी बाहरी आवरण को बदल पाती है, परंतु मूल संस्कारों को नहीं छोड़ पाती। बच्चों की हठ के सम्मुख वह मॉडर्न बन जाती है। समय परिवर्तनशील होता है। जीवन-मूल्य भी अपने रूप को बदल लेते हैं।

 

प्रश्न 5 – कौन-कौन से ऐसे काम थे जो यशोधर बाबू को किशनदा से विरासत में मिले थे ? किन्हीं दो का उल्लेख कीजिए। (40 शब्दों में)

उत्तर – सिल्वर वैडिंग’ कहानी में यशोधर बाबू का व्यक्तित्व किशनदा की प्रतिच्छाया है। कम उम्र में यशोधर पहाड़ से दिल्ली आ गए थे तथा किशनदा ने ही उन्हें आश्रय दिया था। उन्हें सरकारी विभाग में नौकरी दिलवाई। इस तरह जीवन में महत्त्वपूर्ण योगदान करने वाले व्यक्ति से प्रभावित होना स्वाभाविक है। किशनदा की निम्नलिखित आदतों का यशोधर बाबू ने जीवन भर निर्वाह किया –

ऑफिस में सहयोगियों के साथ संबंध

सुबह सैर करने की आदत

पहनने-ओढ़ने का तरीका

किराए के मकान में रहना

आदर्श बातें करना

किसी बात को कहकर मुसकराना

सेवानिवृत्ति के बाद गाँव जाने की बात कहना आदि

 

प्रश्न 6 – ‘सिल्वर वैडिंग’ में यशोधर बाबू किशनदा के आदर्श को त्याग क्यों नहीं पाते ? (40 शब्दों में)

उत्तर – ‘सिल्वर वैडिंग’ में यशोधर बाबू किशनदा के आदर्श को इसलिए त्याग नहीं पाते क्योंकि यशोधर बाबू जिस समय दिल्ली आए थे उनकी उम्र सरकारी नौकरी के लिए कम थी। तब किशनदा ने उन्हें मैस का रसोइया बनाकर रख लिया। यही नहीं, उन्होंने यशोधर बाबू को पचास रूपये उधार भी दिए थे ताकि वह अपने लिए कपड़े बनवा सके और गाँव पैसा भेज सके। बाद में किशनदा ने ही अपने ही नीचे नौकरी दिलवाई और दफ़्तरी जीवन में उनका मार्ग-दर्शन भी किया।

 

प्रश्न 7 – ‘सिल्वर वैडिंग’ पाठ में लेखक क्या संदेश देने का प्रयास कर रहे हैं ?(40 शब्दों में)

उत्तर – ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के माध्यम से लेखक ने क्या संदेश देने का प्रयास किया कि हमें समय के अनुसार बदलना चाहिए। नई सोच के साथ नई सोच को अपना कर ही अपने जीवन को आसान बना सकते हैं। जीवन में समय के साथ अच्छा बदलाव बहुत जरूरी होता है। क्योंकि पुरानी सोच को छोड़ कर आगे बढ़ना ही एक आदर्श जीवन कहलाता है।

 

प्रश्न 8 – ‘सिल्वर वैडिंग’ पाठ के आलोक में स्पष्ट कीजिए कि यशोधर बाबू की पत्नी किन कारणों से समय के साथ बदल गई ।(40 शब्दों में)

उत्तर – यशोधर बाबू की पत्नी अपने मूल संस्कारों से किसी भी तरह आधुनिक नहीं है, परंतु बच्चों की तरफदारी करने की मातृसुलभ मजबूरी ने उन्हें भी मॉडर्न बना डाला है। जिस समय उनकी शादी हुई थी यशोधर बाबू के साथ गाँव से आए ताऊजी और उनके दो विवाहित बेटे भी रहा करते थे। इस संयुक्त परिवार में पीछे ही पीछे बहुओं में गज़ब के तनाव थे लेकिन ताऊजी के डर से कोई कुछ कह नहीं पाता था। यशोधर बाबू की पत्नी को शिकायत है कि संयुक्त परिवार वाले उस दौर में पति ने हमारा पक्ष कभी नहीं लिया, बस जिठानियों की चलने दी। उनका यह भी मानना है कि मुझे आचार-व्यवहार के ऐसे बंधनों में रखा गया मानो मैं जवान औरत नहीं, बुढ़िया थी। जितने भी नियम इनकी बुढ़िया ताई के लिए थे, वे सब मुझ पर भी लागू करवाए – ऐसा कहती है घरवाली बच्चों से। बच्चे उससे सहानुभूति व्यक्त करते हैं। फिर वह यशोधर जी से उन्मुख होकर कहती है-मैं भी इन बातों को उसी हद तक मानूंगी जिस हद तक सुभीता हो। अब मेरे कहने से वह सब ढोंग-ढकोसला हो नहीं सकता।

 

प्रश्न 9 – ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के संदर्भ में सिद्ध कीजिए कि समय के साथ न बदलने से व्यक्ति अकेला क्यों हो जाता है ?(40 शब्दों में)

उत्तर – समय के साथ न बदलने से व्यक्ति अकेला हो जाता है। जिस प्रकार ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी में यशोधर बाबू अपने परिवार के साथ आधुनिक चीजों को नहीं अपना पा रहे थे और धीरे-धीरे वे अपने परिवार से दूर होते चले गए। समय के साथ-साथ कुछ पुरानी बातों और परम्पराओं को पीछे छोड़ देना ही सही होता है। जो व्यक्ति केवल पुरानी परम्पराओं में फसा रहता है वह न तो आधुनिकता की अच्छाइयों को देख पता है और न ही सुख-सुविधाओं का सही से लाभ उठा पता है।

 

प्रश्न 10 – वर्तमान युग में युवा पीढ़ी और बुजुर्गों के दृष्टिकोण में बहुत अन्तर दिखाई देता है, इसका क्या कारण है ? ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के संदर्भ में लिखिए ।(40 शब्दों में)

उत्तर – वर्तमान युग में युवा पीढ़ी और बुजुर्गों के दृष्टिकोण में बहुत अन्तर दिखाई देता है। पुरानी पीढ़ी व नई पीढ़ी के विचारों व जीने के तौर तरीकों के अंतर होता है। कहानी के मुख्य पात्रों में यशोधर बाबू, उनकी पत्नी, उनके बच्चे व् किशनदा आदि शामिल हैं। एक और जहाँ यशोधर बाबू पुराने ख्यालात के व्यक्ति हैं जो अपने परंपरागत आदर्शों और अपने संस्कारों को जीवित रखना चाहते है वहीँ दूसरी ओर उनके बच्चे नए जमाने के हिसाब से जीवन जीने में विश्वास रखते है। कहानी में भी इसी नई पीढ़ी व् पुरानी पीढ़ी के बीच के द्वंद्व को दर्शाया गया है।

 

प्रश्न 11 – कौन-कौन से ऐसे काम थे जो यशोधर बाबू को किशनदा से विरासत में मिले थे ? किन्हीं दो का उल्लेख कीजिए। (40 शब्दों में)

उत्तर – यशोधर बाबू को किशन दा से अनेक बातें विरासत में मिली थी। वह किशनदा के व्यक्तित्व से बेहद प्रभावित थे और उन्होंने किशनदा के कई गुणों को अपनाया। जैसे ऑफिस में काम काज मन लगाकर करना, अपने सहयोगियों के साथ प्रेम व आत्मीयता के संबंध कायम रखना, सुबह-सुबह टहलने की आदत डालना, पहनने-ओढ़ने का शालीन तरीका अपनाना, किराए के मकान में रहना और रिटायर हो जाने पर गाँव वापस चले जाना। आदर्शता की बातों को दोहराना और उन पर कायम रहना, हमेशा मुस्कुराना आदि जैसे जीवन मूल्यों को उन्होंने किशनदा से सीखा और उन्हें अपने जीवन में उतारा।

 

प्रश्न 12 – कार्यालय में अपने सहकर्मियों के साथ सेक्शन ऑफ़िसर वाई. डी. पंत के व्यवहार पर टिप्पणी कीजिए ।(40 शब्दों में)

उत्तर – वाई.डी. पंत अर्थात यशोधर बाबू जो की सेक्शन ऑफिसर हैं वे अपने दफ़्तर की पुरानी दीवार घड़ी पर नजर दौड़ाते हैं जो पाँच बजकर पच्चीस मिनट बजा रही थी। उसके बाद वे अपनी कलाई घड़ी को देखते हैं जिसमें साढ़े पाँच बज रहे थे। यशोधर बाबू अपनी घड़ी रोजाना सुबह-शाम रेडियो समाचारों से मिलाते हैं इसलिए उन्होंने अपने दफ़्तर की घड़ी को ही सुस्त ठहराया। वैसे तो उनका ऑफिस पाँच बजे ही समाप्त हो जाता था किन्तु यशोधर बाबू के कारण सभी को पांच बजे के बाद भी दफ़्तर में बैठना पड़ता हैं। 

 

प्रश्न 13 – ‘यशोधर बाबू पुरानी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हुए पुरानी परंपरा से विशेष जुड़ाव महसूस करते हैं’ – इस कथन के आलोक में यशोधर बाबू का चरित्र-चित्रण कीजिए । (40 शब्दों में)

उत्तर – यशोधर बाबू पुराने ख्यालात के व्यक्ति थे जो अपने परंपरागत आदर्शों और अपने संस्कारों को जीवित रखना चाहते थे। अपने बच्चों को भी अपनी संस्कृति से जोड़े रखना चाहते थे। समय का सदुपयोग करना, अपना काम स्वयं करना व् अपने से बड़ों की इज्जत करना जैसे संस्कारों को वे नई पीढ़ी को देना चाहते थे। कहा जा सकता है कि यशोधर बाबू पुरानी पीढ़ी से संबंधित थे और परंपरागत आदर्शों व संस्कारों को संजोए रखना चाहते थे। वे अपनी संस्कृति और मूल्यों को जीवित रखने के पक्षधर थे। यशोधर बाबू चाहते थे कि नई पीढ़ी समय का सदुपयोग करे, अपना काम स्वयं करे और बड़ों का सम्मान करना सीखे।

 

प्रश्न 14 – ‘अभी तुम्हारे अब्बा की इतनी साख है कि सौ रुपए उधार ले सके।’ यह कथन यशोधर बाबू द्वारा किन परिस्थितियों में कहा गया ? स्पष्ट कीजिए । (40 शब्दों में)

उत्तर – ‘अभी तुम्हारे अब्बा की इतनी साख है कि सौ रुपए उधार ले सके।’ यह कथन यशोधर बाबू द्वारा उस समय कहा गया जब उन्हें अपने जीजा जनार्दन जोशी की तबीयत का हाल पूछने अहमदाबाद जाना था। परन्तु उनके बच्चों व् पत्नी को उनका परिवार के लिए एकतरफा लगाव अच्छा नहीं लगता था। पत्नी का कहना था कि यशोधर जी का स्वयं का देखा हुआ कुछ नहीं है। माँ के मर जाने के बाद छोटी-सी उम्र में वह गाँव छोड़कर अपनी विधवा बुआ के पास अल्मोड़ा आ गए थे। बुआ का कोई ऐसा लंबा-चौड़ा परिवार तो था नहीं जहाँ कि यशोधर जी कुछ देखते और परंपरा के रंग में रंगते। परन्तु यशोधर बाबू कहते हैं कि जब उन्होंने बच्चों व् पत्नी के आधुनिक होने पर रोक-टोक नहीं कि तो उन लोगों को भी उनके जीने के ढंग पर कोई एतराज़ होना नहीं चाहिए।

 

प्रश्न 15 – यशोधर बाबू का बार-बार किशनदा को याद करना उनका सामर्थ्य कहा जाएगा या उनकी कमजोरी ? ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के संदर्भ में तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए ।(40 शब्दों में)

उत्तर – यशोधर बाबू का बार-बार किशनदा को याद करना हम सामर्थ्य मानते हैं, वे उनके प्रेरक थे, उनसे अलग अपने को सोचना भी यशोधर बाबू के लिए मुश्किल था। जीवन का प्रेरणा-स्रोत तो सदा शक्ति एवं सामर्थ्य का सर्जक होता है। यशोधर बाबू की कहानी को दिशा देने में किशनदा की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। उन्होंने हमेशा यशोधर बाबू को कठिन समय में सही राह दिखाई है। यशोधर बाबू उन्हें अपना गुरु मानते थे। माता–पिता के बाद गुरु ही ऐसे व्यक्ति होते हैं जो सभी के जीवन में मार्गदर्शक की भूमिका निभाते हैं। अपने माता–पिता व् गुरुओं की बात को जो व्यक्ति हमेशा याद रखते हैं वे जीवन के किसी भी मोड़ पर कठिनाइयों का सामना करने के लिए तैयार रहते हैं। 

 

प्रश्न 16 – यशोधर बाबू के बच्चों की कौन-सी बातें आपको प्रशंसनीय लगती हैं ? कोई दो विशेषताएँ लिखिए ।(40 शब्दों में)

उत्तर – यशोधर बाबू के सभी बच्चे अपने आप को योग्य साबित कर चुके थे जैसे उनका बड़ा लड़का एक प्रमुख विज्ञापन संस्था में नौकरी कर रहा था। दूसरा बेटा आई.ए.एस. की तैयारी कर रहा था, तीसरा बेटा स्कालरशिप लेकर अमरीका चला गया था और उनकी एकमात्र बेटी भी डाक्टरी की उच्चतम शिक्षा के लिए स्वयं भी अमरीका जाना चाहती थी।

जब बच्चों को पता चला कि उनके पिता की सिल्वर वेडिंग है तो उन्होंने उनके लिए एक अच्छी पार्टी का आयोजन भी किया और साथ ही साथ उनके लिए उपहार भी लाए। इससे पता चलता है कि आधुनिकता को अपनाते हुए भी यशोधर बाबू के बच्चे अपने माता-पिता का मान रखते हैं। 

 

प्रश्न 17 – ‘बच्चों दवारा घर में लाए गए भौतिक सुख-सुविधा के साधनों के प्रति यशोधर पंत जी की क्या धारणा थी ? सिल्वर वैडिंग’ पाठ के संदर्भ में लिखिए ।(60 शब्दों में)

उत्तर – बच्चों दवारा घर में लाए गए भौतिक सुख-सुविधा के साधनों के प्रति यशोधर पंत जी की धारणा परिवार के लोगों से अलग है। यशोधर बाबू भी चाहते कि उनका बेटा अपना वेतन उनके हाथों में रखे या झूठे ही सही एक बार कह तो दे। परन्तु इसके विपरीत यदि उसके किसी काम में यशोधर बाबू कोई नुक्स निकालते तो वह कह देता कि यह काम मैं अपने पैसे से करने को कह रहा हूँ, आपके से नहीं जो आप नुक्ताचीनी करें। अपना वेतन वह अपने ढंग से वह घर पर खर्च कर रहा था। कभी कारपेट बिछवा रहा था, कभी पर्दे लगवा रहा था। कभी सोफा आ रहा था कभी डनलपवाला डबल बैड और सिंगार मेज़। कभी टी. वी., कभी फ्रिज। परन्तु यशोधर बाबू को यह सब बेकार लगता था और वह अपनी पत्न्नी को भी यही समझाते थे। 

 

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Chapter 2 – जूझ

 

प्रश्न 1 – निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पढ़कर सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए :

(i) ‘जूझ’ पाठ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए :

कथन I : लेखक अपने अध्यापक से सुनी कविताएँ पढ़ाई करते हुए गाता था ।

कथन II : मंत्री मास्टर गणित पढ़ाते थे ।

कथन III : मास्टर सौंदलगेकर के प्रयास से लेखक की हिंदी भाषा सुधरने लगी ।

कथन IV : लेखक के पिता उसे पढ़ने के लिए प्रेरित करते थे ।

सही कथन /कथनों वाले विकल्प का चयन कर लिखिए :

(A) कथन I तथा II सही हैं।

(B) कथन II सही है ।

(C) कथन II तथा III सही हैं ।

(D) कथन I, II तथा IV सही हैं ।

उत्तर – (C) कथन II तथा III सही हैं ।

 

(ii) पाठशाला जाने की बात लेखक ने सबसे पहले किससे की ? ‘जूझ’ कहानी के आधार पर लिखिए ।

(A) दादा से

(B) माँ से

(C) दत्ता जी राव से

(D) सौंदलगेकर से

उत्तर – (B) माँ से

 

(iii) ‘जूझ’ कहानी से लेखक की किस प्रकृति का उद्घाटन होता है ?

(A) घूमने-फिरने की

(B) झूठ बोलने की

(C) संघर्ष करने की

(D) अपने मन का करने की

उत्तर – (C) संघर्ष करने की

 

(iv) ‘जूझ’ कहानी के नायक आनंदा का स्कूल में वसंत पाटील की तरह ही सुव्यवस्थित ढंग से काम करने और पढ़ने का कारण इनमें से नहीं है :

(A) उससे ईर्ष्या करना

(B) उससे प्रतिस्पर्द्धा करना

(C) थोड़े ही समय में परीक्षा की तैयारी करना

(D) पिता द्वारा दी गई चुनौती को पूरा करना

उत्तर – (C) थोड़े ही समय में परीक्षा की तैयारी करना

 

(v) ‘जूझ’ कहानी के आधार पर बताइए कि आनंदा को गणित कैसे समझ आने लगा था?

(A) मन की एकाग्रता से

(B) वसंत पाटील की सहायता से

(C) माँ की सहायता से

(D) शिक्षक की सहायता से

उत्तर – (B) वसंत पाटील की सहायता से

 

(vi) ‘जूझ’ पाठ की लेखन शैली है :

(A) विवरणात्मक

(B) आत्मकथात्मक

(C) संवाद

(D) वर्णनात्मक

उत्तर – (B) आत्मकथात्मक

 

(vii) ‘जूझ’ पाठ के अनुसार कविता के प्रति लगाव से पहले और बाद में अकेलेपन के प्रति लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया ?

(A) अकेलापन डरावना है

(B) अकेलापन अनावश्यक है

(C) अकेलापन उपयोगी है

(D) अकेलापन सामान्य प्रक्रिया है

उत्तर – (C) अकेलापन उपयोगी है

 

(viii) निम्नलिखित कथन और कारण को ध्यानपूर्वक पढ़िए और सही विकल्प चुनकर लिखिए :

कथन : आनंदा अपने पढ़ने की बात अपने दादा से नहीं कर पाता है ।

कारण : आनंदा के पिता अत्यधिक क्रोधी स्वभाव के थे तथा आनंदा की पढ़ाई करवाने के पक्ष में नहीं थे ।

विकल्प :

(A) कथन सही है, कारण ग़लत है ।

(B) कथन सही नहीं है, कारण सही है ।

(C) कथन तथा कारण दोनों सही हैं, किंतु कारण, कथन की सही व्याख्या नहीं करता है।

(D) कथन तथा कारण दोनों सही हैं, किंतु कारण, कथन की सही व्याख्या करता है।

उत्तर – (D) कथन तथा कारण दोनों सही हैं, किंतु कारण, कथन की सही व्याख्या करता है।

 

(ix) ‘जूझ’ कहानी के लेखक को कविता लिखने की प्रेरणा किससे मिली ?

(A) अपने पिता से

(B) अपनी माँ से

(C) न.वा. सौंदलगेकर से

(D) अपने मित्र से

उत्तर – (C) न.वा. सौंदलगेकर से

 

(x) निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए और उचित विकल्प का चयन कीजिए ।

कथन I : वसंत पाटील पढ़ने में बहुत कमजोर था ।

कथन II : वसंत पाटील आनंदा का शत्रु था ।

कथन III : वसंत पाटील कक्षा का मॉनीटर था ।

कथन IV : वसंत पाटील कक्षा बारहवीं का छात्र था ।

विकल्प :

(A) कथन I तथा II सही हैं ।

(B) कथन I, II तथा III सही हैं ।

(C) कथन III सही है ।

(D) कथन IV सही है ।

उत्तर – (C) कथन III सही है ।

 

(xi) पत्थर की शिला पर लिखी कविता ‘जूझ’ कहानी के लेखक के द्वारा कब मिटाई जाती थी ?

(A) मास्टर को दिखा देने के बाद

(B) याद हो जाने के बाद

(C) मित्रों को दिखा देने के बाद

(D) मास्टर को सुना देने के बाद

उत्तर – (A) मास्टर को दिखा देने के बाद

 

(xii) “अब तू ही बता, मैं का करूँ ?” – इस कथन से आनंदा की माँ के चरित्र की कौन-सी विशेषता प्रकट होती है ?

(A) विवशता

(B) दुर्बलता

(C) अक्षमता

(D) परवशता

उत्तर – (A) विवशता

 

(xiii) आनंदा के पिता ने उसे पाठशाला भेजने के लिए कौन-सी शर्त नहीं रखी ?

(A) सुबह खेतों में पानी लगाना

(B) स्कूल से आकर ढोर चराना

(C) सुबह शाम गाय-भैंस दुहना

(D) अधिक काम होने पर स्कूल से छुट्टी लेना

उत्तर – (B) स्कूल से आकर ढोर चराना

 

(xiv) ‘उस चक्की की अपेक्षा मास्टर की छड़ी की मार अच्छी लगती थी ।’ – इस वाक्य में किस चक्की की ओर संकेत किया गया है ?

(A) खेती के काम की चक्की

(B) आटा पीसने की चक्की

(C) घर के काम की चक्की

(D) कोल्हू से रस निकालने की चक्की

उत्तर – (A) खेती के काम की चक्की

 

(xv) निम्नलिखित कथन और कारण को ध्यानपूर्वक पढ़िए और सही विकल्प को चुनकर लिखिए:

कथन : यदि ईख को और कुछ दिन खेत में खड़ी रहने दिया जाए तो गुड़ जरा ज्यादा निकलता है ।

कारण : देर तक खेत में खड़ी रहने वाली ईख में पानी की मात्रा कम होती है और रस गाढ़ा हो जाता है ।

(A) कथन सही है, कारण गलत है ।

(B) कथन सही नहीं है, कारण सही है ।

(C) कथन तथा कारण दोनों सही हैं, किंतु कारण कथन की सही व्याख्या नहीं करता है ।

(D) कथन और कारण दोनों सही हैं तथा कारण कथन की सही व्याख्या करता है ।

उत्तर – (D) कथन और कारण दोनों सही हैं तथा कारण कथन की सही व्याख्या करता है ।

 

(xvi) कक्षा की बेंच पर बैठे आनंदा की तुलना किससे की गई है ?

(A) खेती के काम से सुस्ताते पेड़ के नीचे बैठे लड़के से

(B) लड़कों की मार से घायल कौए के बच्चे से

(C) बस अड्डे पर पोटली सँभाले बस की प्रतीक्षा करते लड़के से

(D) रेलवे स्टेशन पर गाड़ी की प्रतीक्षा करने वाले लड़के से

उत्तर – (B) लड़कों की मार से घायल कौए के बच्चे से

 

(xvii) ‘मेरी ही पाठशाला मुझे चोंच मार-मार कर घायल कर रही थी ।’ – इस पंक्ति का आशय है –

(A) पाठशाला में आनंदा की खिल्ली उड़ाई जा रही थी ।

(B) पाठशाला में उसकी पिटाई की जा रही थी ।

(C) पाठशाला में उसे कटु वचन कहे जा रहे थे ।

(D) पाठशाला में उसे दण्डित किया जा रहा था ।

उत्तर – (A) पाठशाला में आनंदा की खिल्ली उड़ाई जा रही थी ।

 

प्रश्न 2 – ‘जूझ’ शब्द का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसके शीर्षक का औचित्य सिद्ध कीजिए।(40 शब्दों में)

उत्तर – कहानी या किसी रचना का शीर्षक बहुत मायने रखता है। क्योंकि शीर्षक को देखकर ही पाठक को अंदाजा हो जाता है कि वह रचना या कहानी किस सन्दर्भ में है और किसी भी रचना का मुख्य भाव शीर्षक से ही व्यक्त होता है। इस पाठ का शीर्षक ‘जूझ’ है और जूझ का अर्थ होता है जुझना या संघर्ष। इस कहानी में कहानी के मुख्य पात्र आनंद ने पाठशाला जाने व् पढ़ाई करने के लिए बहुत संघर्ष किया। आनंद का पिता किसी भी हाल में उसे पाठशाला नहीं भेजना चाहता था अतः वह उस पर कई तरह के आरोप लगता है परन्तु अपने ऊपर लगे आरोपों का आनंद अच्छे से उत्तर देता है। जब दादा व देसाई सरकार उसे आगे बढ़ने के लिए कुछ कठिन शर्तें बताते हैं तो वह वह हर कठिन शर्त मानता है। पाठशाला में भी वह नए माहौल में ढलने, कविता रचने आदि के लिए बहुत संघर्ष करता है। अत: यह शीर्षक सर्वथा उपयुक्त है। इस कहानी के मुख्य पात्र में संघर्ष की प्रवृत्ति है। इस प्रकार यह शीर्षक कथा-नायक की केंद्रीय चारित्रिक विशेषता को उजागर करता है।

 

प्रश्न 3 – ‘जूझ’ पाठ के लेखक में कविता-रचना के प्रति रुचि कैसे उत्पन्न हुई ? (40 शब्दों में)

उत्तर – लेखक के एक मराठी मास्टर जिनका नाम न.वा.सौंदलगेकर था। वे कविता बहुत ही अच्छे ढंग से पढ़ाते थे। कभी कक्षा में कोई अपनी कविता याद आती तो वे सुना देते। लेखक उनके द्वारा सुनाई व् अभिनय की गई कविताओं को ध्यान से सुनता व् देखता था। लेखक अपनी आँखों और कानों का पूरा ध्यान लगाकर मास्टर के हाव–भाव, ध्वनि, गति, चाल और रस को ग्रहण करता था। और उन सभी कविताओं को सुबह–शाम खेत पर पानी लगाते हुए या जानवरों को चराते हुए अकेले में खुले गले से मास्टर के ही हाव–भाव, यति–गति और आरोह–अवरोह के अनुसार गाता था। पहले जानवरों को चराते हुए, पानी लगाते हुए, दूसरे काम करते हुए, लेखगक को अकेलापन बहुत खटकता था। उसे किसी के साथ बोलते हुए, गपशप करते हुए, हँसी–मजाक करते हुए काम करना अच्छा लगता था। लेकिन अब उलटा लेखक को अकेले रहना अच्छा लगता था क्योंकि अकेले में वह कविता ऊँची आवाज़ में गा सकता था और किसी भी तरह का अभिनय कर सकता था। लेखक ने अनेक कविताओं को अपनी खुद की चाल में गाना शुरू किया।

 

प्रश्न 4 – ‘जूझ’ कहानी के आधार पर बताइए कि दत्ता जी राव ने लेखक की पढ़ाई जारी रखने हेतु किस प्रकार प्रयास किया। (40 शब्दों में)

उत्तर – जब देसाई दादा ने बड़ी चतुराई से पूछा की लेखक कौन सी कक्षा में पढता है तो लेखक ने भी तुरंत कह दिया कि वह पाँचवी कक्षा में पढ़ता था परन्तु अब विद्यालय नहीं जाता क्योंकि उनके खेतों में पानी देने वाला कोई नहीं है। इस पर देसाई दादा ने लेखक के पिता को खूब बातें सुनाई। देसाई दादा ने लेखक के पिता द्वारा दिए गए सभी तर्कों को काट दिया और लेखक को रोज स्कूल जाने को कहा और यदि उसका पिता उसे न जाने दें तो उसे अपने पास सुबह–शाम जो भी काम हो सके वह करने को कहा और उसके बदले वे उसे पढ़ाएंगे।

 

प्रश्न 5 – ‘जूझ’ के मुख्य पात्र आनंदा के व्यक्तित्व की किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ।(40 शब्दों में)

उत्तर – आनंदा को शिक्षा प्राप्त करने के लिए कई स्तरों पर संघर्ष करना पड़ा।

परिवार, समाज, आर्थिक, विद्यालय आदि हर स्तर पर उसका संघर्ष दिखाई देता है।

 

प्रश्न 6 – ‘जूझ’ कहानी के आधार पर बताइए कि लेखक का पाठशाला में विश्वास कैसे बढ़ने लगा। (40 शब्दों में)

उत्तर – लेखक को पता था कि उसके पास पाँचवी की परीक्षा पास करने के लिए केवल दो महीने ही है। कक्षा में दंगा करना और पढ़ाई की उपेक्षा करना लेखक के लिए मुमकिन नहीं था। इन सब बातों के कारण लेखक का सारा ध्यान पढ़ाई की ओर ही रहा और पढ़ाई में लेखक वसंत पाटिल की नकल करने लगा। जिसके परिणाम स्वरूप लेखक के मन की एकाग्रता बड़ गई और लेखक को गणित झटपट समझ में आने लगा और सवाल सही होने लगे। मास्टरों लेखक को अपनेपन का व्यवहार मिलने लगा। मास्टरों के इस व्यवहार के कारण और वसंत की दोस्ती के कारण पाठशाला में लेखक का विश्वास बढ़ने लगा।

 

प्रश्न 7 – ‘जूझ’ पाठ के आधार पर बताइए कि बालक आनंद के पिता ने उसे किन शर्तों पर विद्यालय जाने की अनुमति प्रदान की ।(40 शब्दों में)

उत्तर – घर पर खाना खाते-खाते लेखक के पिता ने लेखक को कुछ शर्तें बताई जैसे कि उसकी पाठशाला का समय ग्यारह बजे होता है। इसलिए लेखक को दिन निकलते ही खेत पर हाज़िर होना है। ग्यारह बजे तक खेतों पर पानी देना है। खेतों में पानी देकर आते समय ही पढ़ने का बस्ता घर से ले जाना। घर से सीधे पाठशाला पहुँचना। छुट्टी होते ही घर में बस्ता रखकर सीधे खेत पर आकर एक घंटे जानवरों को चराना और कभी खेतों में ज़्यादा काम हुआ तो पाठशाला में गैर-हाज़िरी लगाना। लेखक ने भी सभी शर्तों को मान लिया।

 

प्रश्न 8 – ‘जूझ’ पाठ के कथानायक को खेती के काम की अपेक्षा पाठशाला जाना क्यों अच्छा लगता था ? (40 शब्दों में)

उत्तर – लेखक का मन पाठशाला जाने के लिए तड़पता था। परन्तु लेखक को अपने दादा अर्थात पिता से यह कहने में डर लगता था लेकिन वह चाहता था कि कोई उसके पिता को यह समझा दे। लेखक इसलिए भी पढ़ना चाहता था क्योंकि उसे लगता था कि खेती से उनका गुजारा नहीं हो पाएगा। इसका कारण यह भी था कि उसके दादा के समय में जितनी खेती सफल थी अब उसके पिता के समय में नहीं रह गई थी। लेखक चाहता था कि वह पढ़-लिख कर कोई नौकरी कर ले जिससे चार पैसे उसके हाथ में रहेंगे।

 

प्रश्न 9 – ‘प्रोत्साहन से आत्मविश्वास को दृढ़ता मिलती है।’ ‘जूझ’ कहानी के आधार पर इस कथन को सिद्ध कीजिए।(40 शब्दों में)

उत्तर – लेखक के मराठी के मास्टर स्वयं कविता करते थे और अनेक मराठी कवियों के काव्य-संग्रह उनके घर में थे। वह भाव छंद और लय के साथ कविताओं का पाठ करता था। वे उन कवियों के चरित्र और उनके संस्मरण बच्चों को बताया करते थे। इसके कारण ये कवि लोग लेखक को ‘आदमी’ ही लगने लगे थे। इसलिए लेखक को भी यह विश्वास हुआ कि वह भी कविता कर सकता है। मास्टर के दरवाजे पर मालती की बेल पर मास्टर ने एक कविता लिखी थी। वह कविता और वह लता लेखक ने दोनों ही देखी थी। इसके कारण लेखक को भी लगता था कि अपने आसपास, अपने गाँव में, अपने खेतों में, कितने ही ऐसे दृश्य हैं जिन पर वह कविता बना सकता है। लेखक भैंस चराते-चराते, फसलों पर, जंगली फूलों पर तुकबंदी करने लगा। उन्हें जोर से गुनगुनाता भी था और अपनी बनाई कवितायेँ मास्टर को दिखाने भी लगा। मास्टर कविता लिखने में लेखक का मार्गदर्शन भी किया करते थे।

 

प्रश्न 10 – ‘जूझ’ कहानी के आधार पर लिखिए कि लेखक की आनन्दा से आनंद यादव बनने की यात्रा में मास्टर सौंदलगेकर की क्या भूमिका थी ?(40 शब्दों में)

उत्तर – लेखक के एक मराठी मास्टर जिनका नाम न.वा.सौंदलगेकर था। वे कविता बहुत ही अच्छे ढंग से पढ़ाते थे। पहले तो वे एकाध कविता को गाकर सुनाते थे-फिर बैठे-बैठे अभिनय के साथ कविता के भाव बच्चों को समझाते थे। वे स्वयं भी कविता की रचना करते थे। लेखक उनके द्वारा सुनाई व् अभिनय की गई कविताओं को ध्यान से सुनता व् देखता था। लेखक अपनी आँखों और कानों का पूरा ध्यान लगाकर मास्टर के हाव-भाव, ध्वनि, गति, चाल और रस को ग्रहण करता था। और उन सभी कविताओं को सुबह-शाम खेत पर पानी लगाते हुए या जानवरों को चराते हुए अकेले में खुले गले से मास्टर के ही हाव-भाव, यति-गति और आरोह-अवरोह के अनुसार गाता था। लेखक ने अनेक कविताओं को अपनी खुद की चाल में गाना शुरू किया। लेखक भैंस चराते-चराते, फसलों पर, जंगली फूलों पर तुकबंदी करने लगा। उन्हें जोर से गुनगुनाता भी था और अपनी बनाई कवितायेँ मास्टर को दिखाने भी लगा। मास्टर कविता लिखने में लेखक का मार्गदर्शन भी किया करते थे। वे लेखक को बताते कि कवि की भाषा कैसी होनी चाहिए, संस्कृत भाषा का उपयोग कविता के लिए किस तरह होता है, छंद की जाति कैसे पहचानें, उसका लयक्रम कैसे देखें, अलंकारों में सूक्ष्म बातें कैसी होती हैं, अलंकारों का भी एक शास्त्र होता है, कवि को शुद्ध लेखन करना क्यों जरूरी होता है, शुद्ध लेखन के नियम क्या हैं, आदि। श्री सौंदलगेकर की इन्हीं विशेषताओं के कारण कविताओं के प्रति लेखक के मन में रुचि जाग गई।

 

प्रश्न 11 – ‘जूझ’ कहानी के आधार पर दत्ताजी राव की किन्हीं दो चारित्रिक विशेषताओं को लिखिए । (40 शब्दों में)

उत्तरमददगार – दत्ता जी राव लोगों की मदद करते हैं। वे लेखक की पढ़ाई का खर्च भी उठाने को तैयार हो जाते हैं।

समझदार – दत्ता बेहद सूझबूझ वाले व्यक्ति थे। लेखक उसकी माँ की बात का अर्थ वे शीघ्र ही समझ जाते हैं। वे लेखक के पिता को बुलाकर उसे समझाते हैं कि वह बेटे की पढ़ाई करवाए। वह माँ-बेटे की बात को भी गुप्त ही रखता है।

 

प्रश्न 12 – ‘जूझ’ कहानी का उद्देश्य क्या है ?(40 शब्दों में)

उत्तर – व्यक्ति को संघर्षों से जूझते रहना चाहिए। समस्याएँ तो जीवन में आती रहती हैं। इन समस्याओं से भागना नहीं चाहिए बल्कि इनका मुकाबला करना चाहिए। इसके लिए आत्मविश्वास का होना जरूरी है। बिना आत्मविश्वास के व्यक्ति संघर्ष नहीं कर सकता। जो व्यक्ति संघर्ष करता है उसे एक न एक दिन सफलता अवश्य मिलती है। संघर्ष करना तो मानव की नियति है। प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी रूप में जीवनभर संघर्ष करता है। यदि संघर्ष नहीं किया तो मानव जीवन एकाकी एवं नीरस बन जाएगा। इन संघर्षों से जूझ कर व्यक्ति सफलता के ऊँचे शिखर पर पहुँच सकता है।

 

प्रश्न 13 – ‘जूझ’ कहानी के आधार पर लिखिए कि पाठशाला में आनंदा का पहले दिन का अनुभव कैसा रहा ?(60 शब्दों में)

उत्तर – लेखक फिर से पाँचवीं कक्षा में जाकर बैठने लगा। वहाँ उसे पुनः नाम लिखवाने की ज़रूरत नहीं पड़ी। ‘पाँचवीं ना पास’ की टिप्पणी उसके नाम के आगे लिखी हुई थी। पहले दिन गली के दो लड़कों को छोड़कर कोई भी लड़की उसका जानकार नहीं था। लेखक को बहुत बुरा लगा। वह सोचने लगा कि उसे अब उन लड़कों के साथ बैठना पड़ेगा जिन्हें वह मंदबुद्धि समझता था। उसके साथ के सभी लड़के तो आगे की कक्षाओं में चले गए थे। इसलिए वह कक्षा में स्वयं को बहुत अकेला महसूस कर रहा था।

 

प्रश्न 14 – ‘जूझ’ कहानी किस प्रकार युवावर्ग को प्रेरणा प्रदान करती है ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।(40 शब्दों में)

उत्तर – ‘जूझ’ कहानी एक प्रेरणादायी संघर्ष गाथा है। आनंदा विपरीत पारस्थितियों में पढ़ने के लिए संघर्ष करता है। खेत में कठोर मेहनत करता हैं विद्यालय में भी कठिनाइयों का सामना करता है। सभी संघर्षों पर विजय पाते हुए वह सफलता प्राप्त करता है। ‘जूझ’ कहानी किशोर छात्रों को हर बाधा को पार करके भी पढ़ाई करने और लगन के साथ पढ़कर कक्षा में प्रथम आने की प्रेरणा देता है। साथ ही लेखक का उद्देश्य विद्यार्थियों के मन में यह भाव भी उत्पन्न करना है कि अपने योग्य अध्यापकों से केवल पुस्तकीय ज्ञान ही नहीं वरन् अन्य गुण जैसे कविता करना आदि भी ग्रहण करना चाहिए। इस प्रकार यह कहानी किशोरों की व्यक्तिगत समस्याओं को स्वयं संघर्ष करके सुलझाने की प्रेरणा देने के साथ-साथ उन्हें योग्य विद्यार्थी बनने की प्रेरणा भी देती है। 

 

प्रश्न 15 – ‘जूझ’ कहानी का कथानायक विषम परिस्थितियों में भी किस प्रकार अपने सपने साकार करने में सफल हो सका ? (40 शब्दों में)

उत्तर – ‘जूझ’ कहानी का कथानायक विषम परिस्थितियों में भी इसलिए अपने सपने साकार करने में सफल हो सका क्योंकि उसने कभी भी कठिनाइयों से हार नहीं मानी। पढ़ाई के लिए उसे जो कुछ भी मेहनत करनी पड़ी उसने बिना डरे की। लेखक को दिन निकलते ही खेत पर हाज़िर होना पड़ता था। ग्यारह बजे तक खेतों पर पानी देना और खेतों में पानी देकर आते समय ही पढ़ने का बस्ता घर से ले जाना। घर से सीधे पाठशाला पहुँचना। छुट्टी होते ही घर में बस्ता रखकर सीधे खेत पर आकर एक घंटे जानवरों को चराना और कभी खेतों में ज़्यादा काम हुआ तो पाठशाला में गैर-हाज़िरी लगाना। लेखक ने पढ़ाई के साथ-साथ इन सभी कामों को बखूबी किया और पूरी मेहनत से पढ़ाई की। 

 

प्रश्न 16 – आनंदा के पिता की भाँति आज भी अनेक गरीब कामगार पिता अपने बच्चों को स्कूल क्यों नहीं भेजना चाहते?(40 शब्दों में)

उत्तर – आनंदा के पिता की भाँति आज भी अनेक गरीब कामगार पिता अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहते क्योंकि उन्हें लगता है कि पढ़ाई-लिखाई समय की बर्बादी है। इसमें बच्चों का कोई भविष्य नहीं है। पढ़ाई-लिखाई में समय बर्बाद करने से अच्छा है कि बच्चे अपने पैतृक कामों को सीखें और अपनी आजीविका कमाने पर ध्यान दें। साथ-ही-साथ शिक्षा का अत्यधिक महँगा होना भी एक महत्वपूर्ण कारण है। 

 

प्रश्न 17 – अपनी पूरक पाठ्य-पुस्तक वितान के पाठ ‘जूझ’ के आधार पर दत्ता जी राव, आनंदा और आनंदा के पिता के बीच हुए वार्तालाप को एक दृश्य के रूप में लिखिए ।(40 शब्दों में)

उत्तर – जब लेखक के पिता घर पहुंचे तो लेखक की माँ ने उन्हें देसाई दादा के यहाँ भेज दिया और कुछ समय बाद पिता को बुलाने के बहाने वह भी देसाई दादा के घर पहुँच गया। सवाल जवाब में जब देसाई दादा ने बड़ी चतुराई से पूछा की लेखक कौन सी कक्षा में पढता है तो लेखक ने भी तुरंत कह दिया कि वह पाँचवी कक्षा में पढ़ता था परन्तु अब विद्यालय नहीं जाता क्योंकि उनके खेतों में पानी देने वाला कोई नहीं है। इस पर देसाई दादा ने लेखक के पिता को खूब बातें सुनाई। देसाई दादा ने लेखक के पिता द्वारा दिए गए सभी तर्कों को काट दिया और लेखक को रोज स्कूल जाने को कहा और यदि उसका पिता उसे न जाने दें तो उसे अपने पास सुबह–शाम जो भी काम हो सके वह करने को कहा और उसके बदले वे उसे पढ़ाएंगे। यह बात सुन कर लेखक के पिता ने कहा कि वे उसे स्कूल जाने से नहीं रोकते अगर उसे ज़रा गलत–सलत आदत न पड़ गई होती। इसलिए पाठशाला से निकालकर ज़रा नज़रों के सामने रख लिया है। देसाई दादा के पूछने पर पिता ने बताया कि वह यहाँ–वहाँ कुछ भी करता है। कभी वंकंडे बेचता, कभी चारा बेचता, सिनेमा देखता, कभी खेलने जाता। खेती और घर के काम में इसका बिलकुल ध्यान नहीं है। इस पर लेखक ने सफाई देते हुए कहा कि कभी एक बार मेले में पटा पर पैसे लगा दिए थे। दादा तो कभी भी सिनेमा के लिए पैसे नहीं देते हैं। इसलिए खेत पर गोबर बीन–बीनकर माँ से कंडे थपवा लिए थे और उन्हें बेचकर ही कपड़े भी बनवाए थे। उसी समय एक बार सिनेमा भी गया था। देसाई दादा ने सारी बातें सुनी और बीती बातें भूल कर अगले दिन से स्कूल जाने को कहा।

 

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Chapter 3 – अतीत में दबे पाँव

 

प्रश्न 1 – निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पढ़कर सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए :

(i) लेखक के अनुसार सिंधु सभ्यता का सौन्दर्य है, उसके :

(A) राज-पोषित होने में

(B) समाज-पोषित होने में

(C) धर्म-पोषित होने में

(D) व्यापार-पोषित होने में

उत्तर – (B) समाज-पोषित होने में

 

(ii) मुअनजो-दड़ो के सबसे ऊँचे चबूतरे पर क्या विद्यमान है ?

(A) मंदिर

(B) राजमहल

(C) बौद्ध स्तूप

(D) विशाल भवन

उत्तर – (C) बौद्ध स्तूप

 

(iii) मुअनजो-दड़ो की मुख्य सड़क की चौड़ाई कितनी है ?

(A) 32 फीट

(B) 20 फीट

(C) 33 फीट

(D) 23 फीट

उत्तर – (C) 33 फीट

 

(iv) ‘अतीत में दबे पाँव’ पाठ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए और सही विकल्प चुनकर लिखिए :

(A) कथन I : सिंधु घाटी सभ्यता ‘हाई प्रोफाइल’ सभ्यता थी ।

(B) कथन II : सिंधु घाटी सभ्यता ‘लो प्रोफाइल’ सभ्यता थी ।

(C) कथन III : सिंधु घाटी सभ्यता ‘हथियारों’ की सभ्यता थी ।

(D) कथन IV : सिंधु घाटी सभ्यता ‘ताकत’ के बल पर थी ।

उत्तर – (A) कथन I : सिंधु घाटी सभ्यता ‘हाई प्रोफाइल’ सभ्यता थी ।

 

(v) किसके निर्देशन में मुअनजो-दड़ो की खुदाई का व्यापक अभियान प्रारम्भ हुआ ?

(A) इरफान हबीब

(B) जॉन मार्शल

(C) राखालदास बनर्जी

(D) दीक्षित काशीनाथ

उत्तर – (B) जॉन मार्शल

 

(vi) ‘अतीत में दबे पाँव’ पाठ से उद्धृत पंक्ति – ‘देखना अपनी आँख से देखना है । बाकी सब आँख का झपकना है’ – का आशय है :

(A) सौंदर्य की वास्तविक अनुभूति तो प्रत्यक्ष दर्शन से ही होती है ।

(B) आँखों देखा ही सत्य होता है, शेष सब व्यर्थ होता है ।

(C) स्वयं देखकर ही आनंद आता है, पढ़-सुनकर नहीं ।

(D) स्वयं का भोगा ही सत्य होता है, दूसरों द्वारा कहा नहीं ।

उत्तर – (A) सौंदर्य की वास्तविक अनुभूति तो प्रत्यक्ष दर्शन से ही होती है ।

 

(vii) निम्नलिखित कथन और कारण को ध्यानपूर्वक पढ़िए और सही विकल्प चुनकर लिखिए :

कथन : सिंधु सभ्यता को जल-संस्कृति कहा जाता है ।

कारण : सिंधु घाटी सभ्यता पहली ज्ञात संस्कृति है जिसमें लगभग सात सौ कुएँ, नदी, स्नानागार और बेजोड़ जल निकासी की व्यवस्था है ।

विकल्प :

(A) कथन सही है, कारण ग़लत है ।

(B) कथन सही नहीं है, कारण सही है ।

(C) कथन तथा कारण दोनों सही हैं, किंतु कारण, कथन की सही व्याख्या नहीं करता है ।

(D) कथन तथा कारण दोनों सही हैं, किंतु कारण, कथन की सही व्याख्या करता है ।

उत्तर – (D) कथन तथा कारण दोनों सही हैं, किंतु कारण, कथन की सही व्याख्या करता है ।

 

(viii) सिंधु घाटी सभ्यता का स्वरूप था :

(A) जंगली

(B) नगरीय

(C) ग्रामीण

(D) कबीलाई

उत्तर – (B) नगरीय

 

(ix) वर्तमान में सिंध की खास पहचान क्या बन गया ?

(A) दाढ़ी वाले ‘नरेश’ की मूर्ति

(B) गुलकारी वाला दुपट्टा

(C) छापे वाला कपड़ा ‘अजरक’

(D) बारीक बुनाई वाला सूती कपड़ा

उत्तर – (A) दाढ़ी वाले ‘नरेश’ की मूर्ति

 

(x) ‘अतीत में दबे पाँव’ पाठ के संदर्भ में निम्नलिखित कथन और कारण को ध्यानपूर्वक पढ़िए और सही विकल्प चुनकर लिखिए:

कथन : देखना अपनी आँख से देखना है । बाकी सब आँख का झपकना है ।

कारण : यथार्थ का अनुभव स्वयं किया जा सकता है, कहना-सुनना केवल दिखावा मात्र है ।

(A) कथन सही है, कारण गलत है ।

(B) कथन सही नहीं है, कारण सही है ।

(C) कथन तथा कारण दोनों सही हैं, किंतु कारण कथन की सही व्याख्या नहीं करता ।

(D) कथन तथा कारण दोनों सही हैं, कारण कथन की सही व्याख्या करता है ।

उत्तर – (D) कथन तथा कारण दोनों सही हैं, कारण कथन की सही व्याख्या करता है ।

 

(xi) मुअनजो-दड़ो की खुदाई में मिले कोठार का उपयोग अनाज संग्रह के लिए किया जाता होगा । इस विश्वास का आधार है –

(A) कोठार का वास्तुशिल्प

(B) संग्रहालय में मिले गेहूँ के दाने

(C) बैलगाड़ी के साक्ष्य

(D) पत्थर के औजार

उत्तर – (C) बैलगाड़ी के साक्ष्य

 

(xii) ‘अतीत में दबे पाँव’ पाठ से उद्धृत ‘रेगिस्तान के जहाज से हवा के जहाज का यह ऐतिहासिक गठजोड़ है ।’ – कथन का अभिप्राय है –

(A) ऊँटगाड़े में जहाज के उतारू पहियों का प्रयोग

(B) राजस्थान तक हवाई-यात्रा का प्रबंध

(C) ऊँटगाड़े का सड़कों पर हवा की तरह दौड़ना

(D) ऊँटगाड़े में हवा वाले पहियों का प्रयोग

उत्तर – (A) ऊँटगाड़े में जहाज के उतारू पहियों का प्रयोग

 

(xiii) ‘महाकुंड’ के विषय में निम्नलिखित में कौन-सा कथन असत्य है ?

(A) कुंड के पानी के बंदोबस्त के लिए एक तरफ कुआँ है ।

(B) महाकुंड के चारों तरफ साधुओं के कक्ष बने हुए हैं ।

(C) कुंड से पानी की निकासी के लिए पक्की ईंटों से बनी नालियाँ हैं ।

(D) कुंड से पानी के रिसाव को रोकने के लिए तल और दीवारों पर चिनाई की गई है ।

उत्तर – (B) महाकुंड के चारों तरफ साधुओं के कक्ष बने हुए हैं ।

 

(xiv) निम्नलिखित युम्मों में से कौन-सा युग्म सही सुमेलित नहीं है ?

(A) बौद्ध स्तूप – पुराना लैंडस्केप

(B) गढ़ – महंतों की समाधियाँ

(C) महाकुंड – सामूहिक स्नान का अंग

(D) ग्रिडशैली – आड़ी-सीधी सड़कें

उत्तर – (B) गढ़ – महंतों की समाधियाँ

 

(xv) मुअनजो-दड़ो के मिले अवशेषों में अपने मूल स्वरूप के नजदीक बचे निर्माण के रूप में है –

(A) महाकुंड

(B) गढ़

(C) बौद्ध स्तूप

(D) उपासना केंद्र

उत्तर – (A) महाकुंड

 

प्रश्न 2 – ‘अतीत में दबे पाँव’ पाठ में लेखक ने सिंधु घाटी सभ्यता को ‘जल-संस्कृति’ कहा है। इस तथ्य को प्रमाण सहित सिद्ध कीजिए। (40 शब्दों में)

उत्तर – मुअनजो-दड़ो में इमारतों से पहले जो चीज़ दूर से ध्यान खींचती है, वह है कुओं का प्रबंध। ये कुएँ भी पकी हुई एक ही आकार की ईंटों से बने हैं। इतिहासकार कहते हैं सिंधु घाटी सभ्यता संसार में पहली ज्ञात संस्कृति है जो कुएँ खोद कर भू-जल तक पहुँची। उनके मुताबिक केवल मुअनजो-दड़ो में सात सौ के करीब कुएँ थे। नदी, कुएँ, कुंड, स्नानागार और बेजोड़ पानी-निकासी। इन सभी को देखते हुए विशेषज्ञ की माने तो सिंधु घाटी सभ्यता को जल-संस्कृति कह सकते हैं

 

प्रश्न 3 – कैसे कहा जा सकता है कि मुअनजो-दड़ो शहर ताप्रकाल के शहरों में सबसे बड़ा और उत्कृष्ट था ?(40 शब्दों में)

उत्तर – मुअनजो-दड़ो शहर ताप्रकाल के शहरों में सबसे बड़ा और उत्कृष्ट था क्योंकि इसकी व्यापक खुदाई में बड़ी तादाद में इमारतें, सड़कें, धातु-पत्थर की मूर्तियाँ, चाक पर बने चित्रित भांडे, मुहरें, साजो-सामान और खिलौने आदि मिले है। यहाँ बड़े-घर, चौड़ी-सड़कें, और बहुत सारे कुएँ हैं। मोहन जोदड़ो की सड़कें इतनी बड़ी हैं, कि यहाँ आसानी से दो बैलगाड़ी निकल सकती हैं। यहाँ पर सड़क के दोनों ओर घर हैं, दिलचस्प बात यह है, कि यहाँ सड़क की ओर केवल सभी घरो की पीठ दिखाई देती है, मतलब दरवाज़े अंदर गलियों में हैं। वास्तव में स्वास्थ्य के प्रति मोहन जोदड़ो का शहर काबिले-तारीफ़ है, कयोंकि हमसे इतने पिछड़े होने के बावज़ूद यहाँ की जो नगर नियोजन व्यव्स्था है वह कमाल की है।

 

प्रश्न 4 – उदाहरण सहित सिद्ध कीजिए कि मुअनजो-दड़ो की सभ्यता लघुता में भी महत्ता का अनुभव कराने वाली सभ्यता थी। (40 शब्दों में)

उत्तर – दूसरी जगहों पर राजतंत्र या धर्मतंत्र की ताकत का प्रदर्शन करने वाले महल, उपासना-स्थल, मूर्तियाँ और पिरामिड आदि मिलते हैं। हड़प्पा संस्कृति में न भव्य राजप्रसाद मिले हैं, न मंदिर। न राजाओं, महंतों की समाधियाँ। यहाँ के मूर्तिशिल्प छोटे हैं और औजार भी। मुअनजो-दड़ो के ‘नरेश’ के सिर पर जो ‘मुकुट’ है, शायद उससे छोटे सिरपेंच की कल्पना भी नहीं की जा सकती। और तो और, उन लोगों की नावें बनावट में मिस्र की नावों जैसी होते हुए भी आकार में छोटी रहीं। आज के मुहावरे में कह सकते हैं वह ‘लो-प्रोफाइल’ सभ्यता थी; लघुता में भी महत्ता अनुभव करने वाली संस्कृति। मुअनजो-दड़ो सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा शहर ही नहीं बल्कि साधनों और व्यवस्थाओं को देखते हुए सबसे समृद्ध भी माना गया है। फिर भी इसकी संपन्नता की बात बहुत कम हुई है वह इसलिए क्योंकि उसमें भव्यता का आडंबर नहीं है।

 

प्रश्न 5 – मुअनजो-दड़ो की गलियों या घरों में घूमतें हुए लेखक को किसकी याद आ गई है और क्यों? (40 शब्दों में)

उत्तर – मुअनजो-दड़ो के घरों में टहलते हुए लेखक को कुलधरा की याद आई। क्योंकि वहाँ भी गाँव में घर हैं, पर लोग नहीं हैं। कोई डेढ़ सौ साल पहले राजा से तकरार पर स्वाभिमानी गाँव का हर बाशिंदा रातोंरात अपना घर छोड़ चला गया। घर खंडहर हो गए पर ढहे नहीं। घरों की दीवारें, प्रवेश और खिड़कियाँ ऐसी हैं जैसे कल की बात हो। लोग निकल गए, वक्त वहीं रह गया। खंडहरों ने उसे थाम लिया। जैसे सुबह लोग घरों से निकले हों, शायद शाम ढले लौट आने वाले हों। राजस्थान ही नहीं, गुजरात, पंजाब और हरियाणा में भी कुएँ, कुंड, गली-कूचे, कच्ची-पक्की ईंटों के कई घर भी आज वैसे मिलते हैं जैसे हजारों साल पहले हुए।

 

प्रश्न 6 – ‘अतीत में दबे पाँव’ पाठ के आधार पर बताइए कि मुअनजो-दड़ो के कौन-से दृश्य पर्यटकों के लिए दर्शनीय स्थल हैं। किन्हीं दो का संक्षिप्त परिचय दीजिए । (40 शब्दों में)

उत्तर – मुअनजो-दड़ो के अनेक दृश्य पर्यटकों के लिए दर्शनीय स्थल हैं। उनमें से दो प्रमुख हैं –

मुअनजो-दड़ो के सबसे ऊँचे चबूतरे पर बड़ा बौद्ध स्तूप है। यह बौद्ध स्तूप पचीस फुट ऊँचे चबूतरे पर छब्बीस सदी पहले बनी ईंटों के दम पर बनाया गया है। चबूतरे पर भिक्षुओं के कमरे भी हैं। जब भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के महानिदेशक जॉन मार्शल के निर्देश पर खुदाई का व्यापक अभियान शुरू हुआ तो यह खोज विशेषज्ञों को सिंधु घाटी सभ्यता की देहरी पर ले आई। इस खोज से दुनिया की प्राचीन सभ्यता होने के भारत के दावे को पुरातत्त्व का वैज्ञानिक आधार मिल गया। इस स्तूप को नागर भारत का सबसे पुराना लैंडस्केप कहा गया है।

वह अनुष्ठानिक महाकुंड भी जो सिंधु घाटी सभ्यता के अद्वितीय वास्तुकौशल को स्थापित करने के लिए अकेला ही काफी माना जाता है। असल में यहाँ यही एक निर्माण है जो अपने मूल स्वरूप के बहुत नज़दीक बचा रह सका है। बाकी इमारतें इतनी उजड़ी हुई हैं कि कल्पना और बरामद चीजों के जोड़ से उनके उपयोग का अंदाज़ा भर लगाया जा सकता है।

 

प्रश्न 7 – ‘अतीत में दबे पाँव’ पाठ के आधार पर बताइए कि लेखक ने ‘प्राचीन भारत का लैंडस्केप’ किसे कहा है ? इसका संक्षिप्त परिचय दीजिए । (40 शब्दों में)

उत्तर – मुअनजो-दड़ो के सबसे ऊँचे चबूतरे पर बड़ा बौद्ध स्तूप है। यह बौद्ध स्तूप पचीस फुट ऊँचे चबूतरे पर छब्बीस सदी पहले बनी ईंटों के दम पर बनाया गया है। चबूतरे पर भिक्षुओं के कमरे भी हैं। 1922 में जब राखालदास बनर्जी यहाँ आए, तब वे इसी स्तूप की खोजबीन करना चाहते थे। इसके इर्द-गिर्द जब उन्होंने खुदाई शुरू की तो उन्होंने पाया कि यहाँ ईसा पूर्व के निशान हैं। जब भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के महानिदेशक जॉन मार्शल के निर्देश पर खुदाई का व्यापक अभियान शुरू हुआ तो यह खोज विशेषज्ञों को सिंधु घाटी सभ्यता की देहरी पर ले आई। इस खोज से दुनिया की प्राचीन सभ्यता होने के भारत के दावे को पुरातत्त्व का वैज्ञानिक आधार मिल गया। इस स्तूप को नागर भारत का सबसे पुराना लैंडस्केप कहा गया है।

 

प्रश्न 8 – आज जल संकट एक बड़ी समस्या है, क्या ऐसे में सिंधु सभ्यता के महानगर मुअनजोदड़ो से जल-व्यवस्था की प्रेरणा ली जा सकती है ? उचित उत्तर दीजिए ? (40 शब्दों में)

उत्तर – सिंधु घाटी में जल की व्यवस्था अति उत्तम थी। यहाँ पर कुएँ पकी हुई एक ही आकार की ईंटों से बने हैं। इतिहासकारों का मानना है कि यह सभ्यता संसार में पहली ज्ञात संस्कृति है जो कुएँ खोदकर भूजल तक पहुँची। यहाँ लगभग सात सौ कुएँ थे। इसके अतिरिक्त स्नानागार की व्यवस्था हर घर में है। पानी के रिसाव को रोकने का उत्तम प्रबंध था। जल निकासी के लिए नालियाँ व नाले बने हुए थे जो ढके हुए थे। इस तरह सिंधु सभ्यता में जल संरक्षण पर उचित ध्यान दिया गया था। वर्तमान समय में पूरी दुनिया में जल संकट का हाहाकार मचा हुआ है। लातूर, राजस्थान आदि क्षेत्रों के संकट से हर कोई परिचित है। जल संकट के प्रमुख कारण जनसंख्या वृधि व अनियोजित जल संरक्षण प्रणाली है। जल की कमी नहीं है, परंतु उसका वितरण सही नहीं है। जल संरक्षण के लिए निम्नलिखित उपाय हैं जैसे – पानी को दूषित होने से बचाने के उपाय करने चाहिए। पानी का दुरुपयोग विशेषकर उसका समुचित वितरण करना चाहिए। वर्षा के जल के उचित भंडारण की व्यवस्था हो। अधिकाधिक वृक्षारोपण करना चाहिए। नदी-नालों, तालाबों को प्रदूषण मुक्त रखना चाहिए।

 

प्रश्न 9 – साधन संपन्न, समृद्ध सभ्यता होते हुए भी सिंधु घाटी सभ्यता की संपन्नता की बात इतिहास में कम क्यों हुई है ? (40 शब्दों में)

उत्तर – इसमें कोई दोराहे नहीं है कि सिंधु-सभ्यता साधन-संपन्न थी। क्योंकि सिंधु सभ्यता के शहर मुअनजो-दड़ो की व्यवस्था, साधन और नियोजन एक अद्धभुत व् रोचक विषय रहा है। यह बात सभी को आश्चयचकित कर देती हैं कि वहाँ पर अन्न-भंडारण व्यवस्था, जल-निकासी की व्यवस्था अत्यंत विकसित और परिपक्व थी। वहाँ पर हर निर्माण बड़ी ही बुद्धमानी के साथ किया गया था, इसका उदाहरण हम जल-निकासी की व्यवस्था से ले सकते हैं कि यदि सिंधु नदी का जल बस्ती तक आ भी जाए तो उससे बस्ती को कम-से-कम नुकसान हो। सिंधु सभ्यता की सारी व्यवस्थाओं के बीच भी इस सभ्यता की संपन्नता की बात बहुत ही कम हुई है। क्योंकि इनमें अन्य सभ्यताओं की तरह भव्यता का आडंबर नहीं है। इस सभ्यता में व्यापारिक व्यवस्थाओं की जानकारी तो मिलती है, मगर अब तक की जानकारियों में सब कुछ आवश्यकताओं से ही जुड़ा हुआ पाया गया है, भव्यता के लिए कोई व्यापारिक सम्बन्ध कहीं नहीं मिलता। हो सकता है कि यदि सिंधु सभ्यता की लिपि पढ़ ली जाए तो उसके बाद इस विषय में कुछ और अधिक महत्वपूर्ण जानकारी मिले।

 

प्रश्न 10 – मुअनजो-दड़ो की गृह-निर्माण योजना पर संक्षेप में प्रकाश डालिए । (40 शब्दों में)

उत्तर – मुअनजो-दड़ो की खूबी यह है कि इस अत्यधिक पुराने शहर की सड़कों और गलियों में आज भी घुमा जा सकता हैं। यहाँ की सभ्यता और संस्कृति का प्राचीन सामान आज भले ही अजायबघरों की शोभा बढ़ा रहा हो, परन्तु शहर जहाँ था अब भी वहीं है। भले ही यह एक खंडहर क्यों न हो, परन्तु इसकी किसी भी दीवार पर पीठ टिका कर सुस्ता सकते हैं। किसी घर की देहरी पर पाँव रखकर आप सहसा सहम सकते हैं, रसोई की खिड़की पर खड़े होकर उसकी गंध महसूस कर सकते हैं। या शहर के किसी सुनसान मार्ग पर कान लगाकर उस बैलगाड़ी की रुन-झुन सुन सकते हैं जिसे आपने पुरातत्त्व की तसवीरों में मिट्टी के रंग में देखा है। यह सच है कि यहाँ किसी आँगन की टूटी-फूटी सीढ़ियाँ अब आपको कहीं नहीं ले जातीं; वे आकाश की तरफ अधूरी रह जाती हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि वहाँ की सीढ़ियाँ तो सलामत है परन्तु उन सीढ़ियों के द्वारा जिस दूसरी मंजिल पर जाया जाए वो दूसरी मंजिल नहीं है। लेकिन उन अधूरे पायदानों पर खड़े होकर अनुभव किया जा सकता है कि आप दुनिया की छत पर हैं; वहाँ से आप इतिहास को नहीं, उसके पार झाँक रहे हैं। अर्थात आप सबूतों के द्वारा इतिहास को जान सकते हो परन्तु यहाँ के प्रत्यक्ष साक्ष्यों को देख कर आप इतिहास के उस पन्ने को लिखते हो जिसके साबुत नहीं हैं।

 

प्रश्न 11 – ‘मुअनजो-दड़ो के घरों के अधूरे पायदानों पर खड़े होकर आप इतिहास को नहीं उसके पार झाँक सकते हैं।’ इस कथन से लेखक का क्या आशय है ? (40 शब्दों में)

उत्तर – इस कथन के पीछे लेखक का आशय यह है कि सिंधु सभ्यता भले ही खंडहर हो गई हो परन्तु इसके बाद भी आँगन की टूटी-फूटी सीढ़ियाँ व् पायदान बीते इतिहास का पूरा परिचय देते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि इन आँगन की टूटी-फूटी सीढ़ियों व् पायदानों से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन खंडहरों की दूसरी मंजिल भी रही होगी और इतनी ऊँची छत पर स्वयं चढ़कर इतिहास का अनुभव करना एक बढ़िया रोमांच है। लेखक का मानना है कि सिंधु घाटी की सभ्यता केवल इतिहास नहीं है बल्कि इतिहास के पार की वस्तु है और इतिहास के पार की वस्तु को इन अधूरे पायदानों पर खड़े होकर ही देखा जा सकता है। ये अधूरे पायदान यही दर्शाते हैं कि विश्व की दो सबसे प्राचीन सभ्यताओं का इतिहास कैसा रहा क्योंकि इतिहास को आप मिले हुए सबूतों के बल पर जानते हैं और ये पायदान आपको उससे भी परे सोचने पर मजबूर करते हैं ।

 

प्रश्न 12 – पुरातत्ववेत्ताओं ने किस भवन को ‘कॉलेज ऑफ प्रीस्ट्स’ कहा है और क्यों ?(40 शब्दों में)

उत्तर – महाकुण्ड के उत्तर-पूर्व में एक बहुत लम्बी सी इमारत के अवशेष हैं। भवन के अवशेषों को देखकर पुरातत्त्ववेत्ताओं ने उसे ‘कॉलेज ऑफ प्रीस्टेस’ माना है। क्योंकि दुनिया-भर की प्रसिद्ध इमारतों के खंडहर चबूतरे के पश्चिम में हैं। इनमें प्रशासनिक इमारतें, सभा-भवन, ज्ञानशाला और कोठार हैं। केवल अनुष्ठानिक महाकुंड अपने मूल स्वरूप में बचा है, शेष इमारतें उजड़ी हुई हैं।

 

प्रश्न 13 – “मुअनजो-दड़ो में प्राप्त वस्तुओं में औज़ार तो है, पर हथियार नहीं” कथन के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि सिंधु सभ्यता किस प्रकार की सभ्यता रही होगी । (40 शब्दों में)

अथवा 

‘अजायबघर में प्रदर्शित चीजों में औजार तो हैं, पर हथियार कोई नहीं है।’ – इस कथन से मुअनजो-दड़ो के विषय में क्या जानकारी मिलती है ?(40 शब्दों में)

उत्तर – “मुअनजो-दड़ो में प्राप्त वस्तुओं में औज़ार तो है, पर हथियार नहीं” कथन के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है कि सिंधु सभ्यता एक समृद्ध व् शान्ति पसंद सभ्यता थी। मुअनजो-दड़ो की खुदाई में निकली पंजीकृत चीजों की संख्या पचास हजार से ज्यादा है। मगर जो मुट्ठी भर चीजें अजायबघर में प्रदर्शित हैं, पहुँची हुई सिंधु सभ्यता की झलक दिखाने को काफी हैं। काला पड़ गया गेहूँ, ताँबे और काँसे के बर्तन, मुहरें, वाद्य, चाक पर बने विशाल मृद्-भांड, उन पर काले-भूरे चित्र, चौपड़ की गोटियाँ, दीये, माप-तौल पत्थर, ताँबे का आईना, मिट्टी की बैलगाड़ी और दूसरे खिलौने, दो पाटन वाली चक्की, कंघी, मिट्टी के कंगन, रंग-बिरंगे पत्थरों के मनकों वाले हार और पत्थर के औजार। अजायबघर में प्रदर्शित चीजों में औजार तो हैं, पर हथियार कोई नहीं है। मुअनजो-दड़ो क्या, हड़प्पा से लेकर हरियाणा तक समूची सिंधु सभ्यता में हथियार उस तरह कहीं नहीं मिले हैं जैसे किसी राजतंत्र में होते हैं। इस बात को लेकर विद्वान सिंधु सभ्यता में शासन या सामाजिक प्रबंध के तौर-तरीके को समझने की कोशिश कर रहे हैं। क्योंकि वहाँ कोई अनुशासन तो ज़रूर था, पर वो अनुशासन ताकत के बल पर नहीं था। वे मानते हैं कोई सैन्य सत्ता शायद यहाँ न रही हो। मगर कोई अनुशासन ज़रूर था जो नगर योजना, वास्तुशिल्प, मुहर-ठप्पों, पानी या साफ-सफाई जैसी सामाजिक व्यवस्थाओं आदि में एकरूपता तक को कायम रखे हुए था।

 

प्रश्न 14 – मुअनजो-दड़ो कहाँ है? उसकी प्रसिद्धि का कारण लिखिए । (40 शब्दों में)

उत्तर – मुअनजो-दड़ो और हड़प्पा केवल प्राचीन भारत के ही नहीं, बल्कि दुनिया के दो सबसे पुराने नियोजित शहर माने जाते हैं। कई जगहों पर खुदाई में और भी शहर भी मिले हैं। परन्तु मुअनजो-दड़ो ताम्र काल के शहरों में सबसे बड़ा है। इसकी व्यापक खुदाई में बड़ी तादाद में इमारतें, सड़कें, धातु-पत्थर की मूर्तियाँ, चाक पर बने चित्रित भांडे, मुहरें, साजो-सामान और खिलौने आदि मिले है। मुअनजो-दड़ो के बारे में यह धारणा है कि अपने समय में वह घाटी की सभ्यता का केंद्र रहा होगा। इसके बारे में कहा जाता है यह शहर दो सौ हैक्टर क्षेत्र में फैला था और इसकी आबादी कोई पचासी हज़ार थी। सबसे दिलचस्प बात जो सामने आई है कि सिंधु घाटी मैदान की संस्कृति थी, परन्तु पूरा मुअनजो-दड़ो छोटे-मोटे टीलों पर आबाद था। नगर नियोजन को मुअनजो-दड़ो की अनूठी मिसाल के तौर पर समझा जाता है। मुअनजो-दड़ो में इमारतों से पहले जो चीज़ दूर से ध्यान खींचती है, वह है कुओं का प्रबंध। 

 

प्रश्न 15 – ‘‘सिंधु घाटी सभ्यता’ में प्रभुत्व या दिखावे के तेवर का अभाव था’ – सोदाहरण सिद्ध कीजिए ।(60 शब्दों में)

उत्तर – ‘‘सिंधु घाटी सभ्यता’ में प्रभुत्व या दिखावे के तेवर का अभाव था” सिंधु-सभ्यता के शहर मुअनजो-दड़ो की व्यवस्था, साधन और नियोजन के विषय में खूब चर्चा हुई है। इस बात से सभी प्रभावित हैं कि वहाँ की अन्न-भंडारण व्यवस्था, जल-निकासी की व्यवस्था अत्यंत विकसित और परिपक्व थी। हर निर्माण बड़ी बुद्धमानी के साथ किया गया था; यह सोचकर कि यदि सिंधु का जल बस्ती तक फैल भी जाए तो कम-से-कम नुकसान हो। इन सारी व्यवस्थाओं के बीच इस सभ्यता की संपन्नता की बात बहुत ही कम हुई है। वस्तुत: इनमें भव्यता का आडंबर है ही नहीं। व्यापारिक व्यवस्थाओं की जानकारी मिलती है, मगर सब कुछ आवश्यकताओं से ही जुड़ा हुआ है, भव्यता का प्रदर्शन कहीं नहीं मिलता। 

 

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Chapter 3 – विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन

 

Q1. निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पढ़कर सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए :  

 

(i) रमेश को हिन्दी भाषा के शब्दों को समझने में कठिनाई का अनुभव होता है इसीलिए संचार के निम्नलिखित माध्यमों में से उसके लिए कौन-सा माध्यम उपयुक्त रहेगा ?

(A) टी.वी.

(B) समाचार-पत्र

(C) रेडियो

(D) सिनेमा

उत्तर – (B) समाचार-पत्र

 

(ii) किसी घटना के दृश्य एवं प्रत्यक्षदर्शियों या संबंधित व्यक्तियों का कथन दिखा और सुनाकर ख़बर को प्रमाणिकता प्रदान करना क्या कहलाता है ?

(A) एंकर-पैकेज

(B) एंकर-बाइट

(C) एंकर-विजुअल

(D) ड्राई एंकर

उत्तर – (B) एंकर-बाइट

 

(iii) कौन-सा समाचार-पत्र प्रिंट रूप में उपलब्ध न होकर केवल इंटरनेट पर ही उपलब्ध है ?

(A) अमर उजाला

(B) जनसत्ता

(C) प्रभात ख़बर

(D) प्रभासाक्षी

उत्तर – (D) प्रभासाक्षी

 

(iv) ‘छापेखाने’ का आविष्कार किस युग में हुआ ?

(A) प्राचीन युग में

(B) आधुनिक युग में

(C) मध्य युग में

(D) आदियुग में

उत्तर – (B) आधुनिक युग में

 

(v) निम्नलिखित में कौन-सा माध्यम ध्वनि, स्वर और शब्दों का खेल है ?

(A) रेडियो 

(B) टेलीविज़न

(C) इंटरनेट

(D) समाचार-पत्र

उत्तर – (A) रेडियो 

 

(vi) एच टी एम एल क्या है ?

(A) वेबसाइट

(B) वेबसीरीज़

(C) वेबफ़िल्म

(D) वेबभाषा

उत्तर – (D) वेबभाषा

 

(vii) समाचार माध्यमों में किसी समाचार को प्रकाशन हेतु स्वीकार करने की निश्चित समय-सीमा को कहा जाता है :

(A) ऑन लाइन

(B) ऑफ लाइन

(C) डेड लाइन

(D) डेथ लाइन

उत्तर – (C) डेड लाइन

 

(viii) टेलीविज़न के लिए समाचार या आलेख लेखन के लिए अनिवार्य है : 

(A) शब्द परदे पर दिखने वाले दृश्य के अनुकूल हों

(B) समाचार की भाषा आंचलिक शब्दावली से युक्त हो

(C) समाचारों के बीच-बीच में दृश्य अवश्य उपस्थित हों

(D) बाइट, ग्राफिक के माध्यम से समाचारों की प्रस्तुति हो

उत्तर – (A) शब्द परदे पर दिखने वाले दृश्य के अनुकूल हों

 

(ix) टी.वी. पर एंकर द्वारा रिपोर्टर से मिली जानकारी के आधार पर सूचनाएँ देना कहलाता है

(A) ब्रेकिंग न्यूज

(C) लाइव

(B) ड्राई एंकर

(D) एंकर पैकेज

उत्तर – (A) ब्रेकिंग न्यूज

 

(x) दृश्यों के साथ खबर लिखने की बुनियादी शर्त किस माध्यम में है ?

(A) समाचार-पत्र

(C) रेडियो

(B) टेलीविजन

(D) इंटरनेट

उत्तर – (B) टेलीविजन

 

प्रश्न 2 – मुद्रित माध्यम की किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ।(40 शब्दों में)

उत्तर – मुद्रित माध्यमों की सबसे बड़ी विशेषता या शक्ति यह है कि छपे हुए शब्दों में स्थायित्व होता है। उसे आप आराम से और धीरे-धीरे पढ़ सकते हैं। जब भी आपके पास वक्त हो आप तब पढ़ सकते हैं और यदि वक्त की कमी हो तो भी आप थोड़ा-थोड़ा करके पढ़ सकते हो। पढ़ते हुए उस पर सोच सकते हैं या किसी से तर्क-वितर्क भी कर सकते हैं। अगर कोई बात समझ में नहीं आई तो उसे दोबारा या जितनी बार इच्छा करे, उतनी बार पढ़ सकते हैं। 

 

प्रश्न 3 – फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़ से क्या तात्पर्य है ? इसकी सुविधा संचार के कौन-से साधनों में उपलब्ध है ?(40 शब्दों में)

उत्तर – फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़ – सबसे पहले कोई बड़ी खबर फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़ के रूप में तत्काल दर्शकों तक पहुँचाई जाती है। इसमें कम से कम शब्दों में केवल महत्वपूर्ण सूचना दी जाती है। ब्रेकिंग न्यूज के लिए लेखन शैली आम तौर पर उल्टे पिरामिड संरचना का अनुसरण करती है जिसमें एक सारांश नेतृत्व होता है जिसमें कौन, क्या, कहाँ और कब शामिल होता है। इसकी सुविधा संचार के कई साधनों में उपलब्ध है जैसे – टी.वी. , रेडियो, इंटरनेट इत्यादि। 

 

प्रश्न 4 – दूरदर्शन के संदर्भ में ‘लाइव प्रसारण’ से क्या तात्पर्य है ? यह प्रक्रिया किस प्रकार संभव हो पाती है ?(40 शब्दों में)

उत्तर – जब किसी घटना या कार्यक्रम को रेडियो और टेलीविज़न में प्रत्यक्ष होते हुए दिखाया या सुनाया जाता है तो उस प्रसारण को लाइव प्रसारण कहते हैं। रेडियो में इस प्रसारण को आँखों देखा हाल भी कहते हैं जबकि टेलीविज़न के परदे पर लाइव प्रसारण के समय लाइव लिख दिया जाता है। जिससे दर्शकों को ज्ञात होता है कि वे किसी घटना को प्रत्यक्ष देख रहे हैं। इसका अर्थ यह है कि उस समय आप जो भी देख रहे हैं, वह बिना किसी संपादकीय काट-छाँट के सीधे आप तक पहुँच रहा है।

 

प्रश्न 5 – मुद्रित माध्यमों में पढ़ी हुई कहानी की तुलना में दृश्य माध्यम पर देखी गई कहानी को लोग देर तक क्यों याद रखते हैं ?(40 शब्दों में)

उत्तर – मुद्रित माध्यमों में पढ़ी हुई कहानी की तुलना में दृश्य माध्यम पर देखी गई कहानी को लोग देर तक याद रखते हैं क्योंकि मुद्रित माध्यमों में पढ़ी हुई कहानी में पात्रों के हाव-भाव व् भावनाओं को समझना मुश्किल होता है जबकि दृश्य माध्यम पर देखी गई कहानी में दर्शक पात्रों को अपने समक्ष परिस्थितियों से जूझते हुए देखते हैं। दृश्य माध्यम पर देखी गई कहानी में दर्शक अपने आपको किसी न किसी प्रकार से कहानी के पात्रों के साथ जोड़ता हुआ प्रतीत होता है जिस कारण दर्शकों को दृश्य माध्यम पर देखी गई कहानी अधिक समय तक याद रहती है। 

 

प्रश्न 6 – भारत में पहला छापाखाना कब, कहाँ और किस उद्देश्य से खोला गया ? (60 शब्दों में)

उत्तर – भारत में पहला छापाखाना गोवा में सन 1556 ई० में खुला था। इसे मिशनरियों ने धर्म प्रचार की पुस्तक छापने के लिए खोला था। 30 अप्रैल 1556 को लोयोला के सेंट इग्नाटियस को लिखे एक पत्र में, फादर गैस्पर कैलेजा ने अबीसीनिया में मिशनरी काम में मदद करने के उद्देश्य से पुर्तगाल से एबिसिनिया के लिए एक प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना के लिए एक जहाज की बात कही। परिस्थितियों ने इस प्रिंटिंग प्रेस को भारत छोड़ने से रोक दिया, और इसके परिणामस्वरूप, देश में मुद्रण की पहल (पहला छापाखाना) की गई।

 

प्रश्न 7 – टेलीविज़न माध्यम की किन्हीं तीन खूबियों अथवा तीन कमियों का उल्लेख कीजिए । (60 शब्दों में)

उत्तर – टेलीविजन माध्यम की तीन खूबियाँ एवं कमियाँ निम्नलिखित है –

खूबियाँ – 

यह मनोरंजन का सबसे अच्छा माध्यम माना जा सकता है।

इसके माध्यम से दुनिया में हो रही किसी भी घटना का पता लग जाता है।

इसमें आने वाले कई शैक्षणिक प्रोग्रामों के माध्यम से हम घर बैठे शिक्षा प्राप्त कर सकते है।

कमियाँ – 

टेलीविजन की सबसे बड़ी कमी यह है की इससे बच्चे खुले मैदानों में खेलना बंद करके घर में रहना ज्यादा पसंद करने लगे है।

इसमें आने वाले लाइव प्रसारण को हम दुबारा चला कर नहीं देख सकते। किसी कारण से अगर कोई समाचार देखना छूट जाए तो हम दुबारा उसे नहीं चला पाते।

इसकी वजह से बच्चों में सामाजिक समावेश कम हो गया है। बड़े बुजुर्गों में और बच्चों में संबंध खराब होने लगे है, बच्चे बुजुर्गों के साथ वक्त बिताने से ज्यादा टेलीविजन देखना पसंद करते है।

 

प्रश्न 8 – मुद्रित माध्यमों की तुलना में भाषा-शैली के स्तर पर रेडियो और टी.वी. पर प्रस्तुत किए जाने वाले समाचारों में विशेष सावधानी क्यों बरतनी चाहिए ?(60 शब्दों में)

उत्तर – रेडियो और टी.वी. समाचार में भाषा और शैली के स्तर पर काफी सावधानी बरतने की जरूरत है। ऐसे अनेक शब्द हैं जिनका अखबार में धड़ल्ले से प्रयोग होता है पर रेडियो और टी.वी. में उनके प्रयोग से बचा जाता है। जैसे :

निम्नलिखित उपरोक्त, अधोहस्ताक्षरित और क्रमांक आदि शब्दों का प्रयोग टी.वी. रेडियो में मना है। ‘द्वारा’ शब्द के इस्तेमाल से भी बचा जाना चाहिए। उदाहरण के लिए :

‘निरीक्षक द्वारा, नकल करते हुए दो छात्रों को पकड़ लिया।’

इसके स्थान पर :

‘निरीक्षक ने दो छात्रों को नकल करते हुए पकड़ लिया।’

अधिक स्पष्ट है।

तथा, एवं, अथवा, व, किंतु, परंतु, यथा आदि शब्दों के प्रयोग से बचा जाना चाहिए।

गैर जरूरी विशेषणों, सामासिक और तत्सम शब्दों, अतिरंजित उपमाओं आदि से भी बचना चाहिए। इनसे भाषा बोझिल बनती है।

जहाँ आवश्यक हो वहाँ मुहावरों का प्रयोग करना चाहिए। इससे भाषा आकर्षक और प्रभावी बनती है।

वाक्य छोटे हों।

एक वाक्य में एक ही बात कहने का धीरज हो।

वाक्यों में तारतम्य हो।

ऐसे शब्द प्रयोग किए जाएँ जिनका उच्चारण सहजता से हो सके।

जैसे – क्रय-विक्रय की जगह खरीद-बिक्री, ‘स्थानांतरण’ की जगह ‘तबादला’।

अधिक विद्वता दिखाने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए।

 

प्रश्न 9 – तकनीकी विकास के बावजूद हिन्दी की वेब पत्रकारिता अपने शैशवकाल में ही क्यों है ? इसके विकास के लिए क्या आवश्यक है ?(60 शब्दों में)

उत्तर – तकनीकी विकास के बावजूद हिन्दी की वेब पत्रकारिता अपने शैशवकाल में ही है। इसमें सबसे बड़ी समस्या हिंदी फ़ौंट की है। अभी भी हमारे पास कोई हिंदी ‘की. बोर्ड’ नहीं है। डायनमिक फ़ौंट की अनुपलब्घता के कारण कई हिंदी साइट्स खुलती ही नहीं है। अब माइक्रोसॉफ्ट और बेव दुनिया ने यूनिकाड फ़ौंट बनाए हैं। लेकिन ये भी ख़ास लोकप्रिय नहीं हो पा रहे हैं। हिंदी जगत जब तक हिंदी के बेलगाम फ़ौंट संसार पर नियंत्रण नहीं लगाएगा और की. बोर्ड का मानवीकरण नहीं करेगा। तब तक यह समस्या बनी रहेगी। 

 

प्रश्न 10 – ‘इंटरनेट पत्रकारिता’ की लोकप्रियता के तीन कारण स्पष्ट कीजिए । (60 शब्दों में)

उत्तर – ‘इंटरनेट पत्रकारिता’ की लोकप्रियता के तीन कारण निम्नलिखित हैं –

इसमें सूचनाएं लगातार अपडेट होती रहती हैं। 

इसकी पहुँच जन-जन तक है अर्थात कहा जा सकता है कि यह सब जगह विद्यमान है और इसे कहीं भी देखा जा सकता है। 

इसमें जानकारियों का भंडार है और उस हिसाब से यह दूसरे साधनों से बहुत सस्ता भी है। 

 

प्रश्न 11 – साहित्यिक लेखन से समाचार लेखन की कला किस प्रकार भिन्न है ? (60 शब्दों में)

उत्तर – पत्रकारीय लेखन अथवा समाचार लेखन साहित्यिक या सृजनात्मक लेखन से भिन्न होता है क्योंकि समाचार लेखन में तथ्य होते हैं, जबकि साहित्यिक लेखन में कल्पना होती है। साहित्यिक लेखन तात्कालिकता और अपने पाठकों की रुचियों और आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किया जाने वाला लेखन है और साहित्यिक या सृजनात्मक लेखन में लेखक को काफी छूट होती है।

 

प्रश्न 12 – आलेख किसे कहते हैं ? अच्छे आलेख की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए । (60 शब्दों में)

उत्तर – आलेख निबंध लेखन का ही एक लघु रूप है। आलेख साहित्य, खेलकूद, फ़िल्मजगत, व्यापार, विज्ञान, समाज तथा राजनीति इत्यादि विषयो से संबंधित होते है। इनमें तथ्यों, समाचारों और सूचनाओं पर ज्यादा जोर दिया जाता है। एक आदर्श और अच्छे आलेख को पढ़कर पाठक के अन्दर उस मुद्दे को लेकर उस भावना का आना अनिवार्य है। आलेख लेखन में भूमिका, विषय प्रतिपादन और निष्कर्ष महत्वपूर्ण होता है। एक अच्छे आलेख की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं – 

आलेख की भाषा सरल और स्पष्ट होनी चाहिए। जिससे आलेख को पढ़कर पाठक की जिज्ञासा उत्पन्न हो जाए। 

आलेख हमेशा ज्वलंत और प्रसिद्ध मुद्दों या समारोह पर होना चाहिए। आलेख का आरम्भ तथा समापन रोचक तथा जिज्ञासापूर्ण होता है। 

आलेख अनुमान पर आधारित नहीं बल्कि तथ्यों पर आलेख का अस्तित्व होता है। आलेख विचारात्मक होते है। 

 

प्रश्न 13 – फ़ोन-इन से क्या तात्पर्य है ? समाचार प्रसारण में इसका क्या महत्त्व है ?(40 शब्दों में)

उत्तर – जब एंकर रिपोर्टर से फ़ोन पर बात करके सूचनाएं दर्शकों तक पहुँचाता है, इसे फ़ोन-इन कहते हैं। प्रसारण में, एक फोन-इन या कॉल-इन एक प्रोग्राम प्रारूप है जिसमें दर्शकों या श्रोताओं को टेलीफ़ोन द्वारा अपने लाइव टिप्पणियाँ प्रसारित करने के लिए आमंत्रित किया जाता है, आमतौर पर प्रसारण के दिन पर चर्चा के लिए चुने गए किसी विशेष विषय के संबंध में इस विधि का प्रयोग किया जाता है।

 

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Chapter 4 – पत्रकारीय लेखन के विभिन्न रूप और लेखन प्रक्रिया

 

Q1. निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पढ़कर सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए : 

(i) ‘अख़बार की आवाज़’ किसे माना जाता है ?

(A) पहले पृष्ठ पर छपे मुख्य समाचार को

(B) संपादकीय पृष्ठ पर लिखे गए संपादकीय को 

(C) अर्थव्यवस्था से जुड़ी ख़बरों को 

(D) अंतिम पृष्ठ पर छपे विदेशी समाचारों को

उत्तर – (B) संपादकीय पृष्ठ पर लिखे गए संपादकीय को 

 

(ii) समाचार और फ़ीचर पत्रकारीय लेखन के दो प्रमुख रूप हैं, परंतु दोनों में पर्याप्त अंतर है, अत: निम्नलिखित में से समाचार के लिए अनिवार्य नहीं है :

(A) सूचना देना

(B) फोटो या ग्राफिक्स होना

(C) ताज़ी घटना से अवगत कराना

(D) शब्द सीमा का होना

उत्तर – (B) फोटो या ग्राफिक्स होना

 

(iii) कुछ लेखक अपने वैचारिक रुझान और लेखन शैली के लिए पहचाने जाते हैं, ऐसी लोकप्रियता देखकर उन्हें नियमित लेखन का जिम्मा दिया जाता है, उस लेखन को कहा जाता है :

(A) स्तंभ लेखन

(B) फ़ीचर लेखन

(C) आलेख लेखन

(D) विचारपरक लेखन

उत्तर – (A) स्तंभ लेखन

 

(iv) पार्थ एक पत्रकार हैं । वे सामान्य समाचारों से आगे बढ़कर विज्ञान-प्रौद्योगिकी विषय से जुड़ी घटनाओं, मुद्दों और समस्याओं का बारीकी से विश्लेषण करते हैं । उनकी रिपोर्टिंग को क्या कहा जा सकता है ?

(A) बीट रिपोर्टिंग

(B) विशेषीकृत रिपोर्टिंग

(C) फ्रीलांसिंग

(D) संपादकीय

उत्तर – (B) विशेषीकृत रिपोर्टिंग

 

(v) आलोक एक पत्रकार हैं । वे किसी खास अख़बार से संबंध नहीं रखते अपितु भुगतान के आधार पर अलग-अलग अख़बारों के लिए लिखते हैं । उनको किस तरह का पत्रकार कहा जा सकता है ?

(A) पूर्णकालिक पत्रकार

(B) अंशकालिक पत्रकार

(C) फ्रीलांसर (स्वतंत्र-पत्रकार)

(D) विशेष संवाददाता पत्रकार

उत्तर – (C) फ्रीलांसर (स्वतंत्र-पत्रकार)

 

(vi) निम्नलिखित में फ़ीचर का एक प्रकार नहीं है :

(A) खोजपरक फ़ीचर

(B) साक्षात्कार फ़ीचर

(C) रूपात्मक फ़ीचर

(D) काव्यात्मक फ़ीचर

उत्तर – (D) काव्यात्मक फ़ीचर

 

(vii) पत्रकार द्वारा साक्षात्कार लिए जाने का उद्देश्य है :

(A) समाचार, फ़ीचर, विशेष रिपोर्ट के लिए सामग्री एकत्रित करना

(B) साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति को प्रसिद्धि दिलाना

(C) पत्रकार द्वारा अपनी विशेष योग्यता दर्शाना

(D) पत्रकार द्वारा अपनी जिज्ञासा पूरी करना

उत्तर – (A) समाचार, फ़ीचर, विशेष रिपोर्ट के लिए सामग्री एकत्रित करना

 

(viii) किसी भी क्षेत्र में हो रहे भ्रष्टाचार, अनियमितताओं और गड़बड़ियों को उजागर करने के लिए तैयार की गई रिपोर्ट कहलाएगी—

(A) खोजी रिपोर्ट

(B) इन-डेप्थ रिपोर्ट

(C) विश्लेषणात्मक रिपोर्ट

(D) विवरणात्मक रिपोर्ट

उत्तर – (A) खोजी रिपोर्ट

 

(ix) उलटा पिरामिड शैली की लोकप्रियता के संदर्भ में कौन-सा / कौन-से कथन सही है/हैं, उचित विकल्प चुनकर लिखिए:

(I) समाचार लेखन की सबसे लोकप्रिय, उपयोगी और बुनियादी शैली है ।

(II) इस शैली में सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य या सूचना पिरामिड के निचले हिस्से में होती है ।

(III) लेखन और संपादन की सुविधा के कारण यह समाचार लेखन की मानक शैली है ।

(IV) इस शैली का आरम्भ द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुआ ।

(A) केवल कथन (I) सही है ।

(B) केवल कथन (IV) सही है । 

(C) कथन (I) और (III) सही हैं ।

(D) कथन (I) और (II) सही हैं ।

उत्तर – (D) कथन (I) और (II) सही हैं ।

 

(x) प्रो. गुप्ता की लेखन में विशेष रुचि है, कॉलेज की पत्रिका के लिए वह लेख लिखते हैं । अब वह समाचार-पत्रों में अपना हाथ माँजना चाहते हैं । उन्हें किस शीर्षक के अंतर्गत अपने लेख भेजने चाहिए ?

(A) संपादक के नाम पत्र

(B) संपादकीय

(C) स्तंभलेखन

(D) प्रतिवेदन

उत्तर – (A) संपादक के नाम पत्र

 

(xi) जनसंचार के अन्य माध्यमों की तुलना में इंटरनेट पत्रकारिता के तेजी से लोकप्रिय होने के कारण हैं –

(A) पढ़ने, सुनने और देखने की सुविधा का मिलना ।

(B) खबरों का तीव्र गति से पहुँचना ।

(C) सूचनाओं के विशाल भंडार का होना ।

(D) खबरों के संप्रेषण और पुष्टि के लिए बैकग्रांउड तैयार कराने में सहायक होना ।

उत्तर – (A) पढ़ने, सुनने और देखने की सुविधा का मिलना ।

 

(xii) पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं तक सूचनाएँ पहुँचाने के लिए पत्रकारों द्वारा अपनाए जाने वाले विभिन्न रूप कहलाते हैं –

(A) समाचार लेखन

(B) विचारपरक लेखन

(C) साहित्यिक लेखन

(D) पत्रकारीय लेखन

उत्तर – (A) समाचार लेखन

 

(xiii) साक्षात्कार को किस रूप में लिखा जा सकता है ?

(A) सवाल जवाब के रूप में

(B) आलेख के रूप में

(C) (A) और (B) दोनों रूप में

(D) (A) और (B) दोनों रूपों में से कोई नहीं

उत्तर – (C) (A) और (B) दोनों रूप में

 

(xiv) पत्रकारीय लेखन का सबसे जाना-माना रूप क्या होता है ?

(A) फीचर

(C) स्तंभ

(B) समाचार

(D) आलेख

उत्तर – (B) समाचार

 

प्रश्न 2 – रचनात्मक लेखन में लेखक अपने विचार व्यक्त करने हेतु स्वतंत्र है, फिर भी इस प्रकार का लेखन करते समय किस तरह के विचार व्यक्त किए जाने चाहिए ?(40 शब्दों में)

उत्तर – रचनात्मक लेखन (Creative Writing) एक ऐसा लेखन कौशल है जिसमें लेखक अपनी कल्पना, विचार, भावनाओं, और अनुभवों को रचनात्मक तरीके से अभिव्यक्त करता है। यह लेखन, सामान्य लेखन से अलग होता है क्योंकि इसमें लेखक स्वतंत्रता और मौलिकता के साथ अपने विचारों को प्रस्तुत करता है। यदि लेखन कौशल में परिपक्वता नहीं है, तो दी गई घटना या विषय पर ध्यान केंद्रित करना और प्रभावी रूप से लिखना कठिन हो जाता है। रचनात्मक लेखन के लिए समसामयिक विषयों के साथ-साथ प्रचलित रीति-रिवाज, सामाजिक परिस्थितियाँ, और सरकारी व गैर-सरकारी नीतियों का ज्ञान भी आवश्यक है।

 

प्रश्न 3 – संपादकीय लेखन का समाचार पत्र-पत्रिकाओं में क्या महत्त्व है और संपादकीय में लेखक का नाम क्यों नहीं होता ?(40 शब्दों में)

उत्तर – एक संपादक अपनी नॉलेज की सहायता से पाठकों को आकर्षित करने वाले लेख लिखता है, इसे ही संपादकीय कहा जाता है। संपादकीय लेखन में किसी अखबार की विशेषता, उनकी सोच आदि के बारे में अपने विचार या राय को प्रस्तुत किया जाता है। इस पृष्ठ पर सम्पादक समाज के महत्वपूर्ण विषयों पर लोगों का ध्यान आकर्षित करता है। इस पृष्ठ को समाचार पत्र-पत्रिकाओं की आवाज या आत्मा कहा जाता है। संपादकीय में लेखक का नाम इसलिए नहीं होता क्योंकि इस पृष्ठ पर विभिन्न मुद्दों पर अपनी राय या विचार प्रस्तुत किए जाते हैं। 

 

प्रश्न 4 – समाचार लिखने की कौन-सी प्रचलित शैली है और समाचार लेखन में किन बातों का ध्यान रखा जाता है ।(40 शब्दों में)

उत्तर – समाचार लिखने की सबसे प्रचलित शैली उल्टा-पिरामिड शैली है। यह शैली सबसे महत्वपूर्ण, उपयोगी और बुनियादी मानी जाती है। इस शैली में समाचार की मुख्य जानकारी शुरुआत में दी जाती है और समाचार को घटते क्रम में प्रस्तुत किया जाता है। समाचार लेखन में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाता है ।

प्रसार क्षेत्र की आवश्यकता को ध्यान में रखना आवश्यक है।

राष्ट्र की मर्यादा और समाज की परंपरा का ध्यान रखना आवश्यक है।

धर्म, जाति एवं संस्कृति के सम्मान एवं हित का ध्यान रखना आवश्यक है।

वक्ता के कथन या वक्तव्य को जैसे का तैसा प्रस्तुत किया जाता है।

किसी अप्रिय घटना की शिकार महिला युक्ति की पहचान को उजागर नहीं करना, यह महत्वपूर्ण है। 

शीर्षक का रोचक होना भी आवश्यक है।

किसी भी महत्वपूर्ण घटना पर पक्ष व् विपक्ष दोनों के विचारों को समान महत्त्व देना पड़ता है।

किसी भी घटना के संबंध में विश्लेषण समीक्षक या ज्ञानकार बनने से बचना चाहिए।

 

प्रश्न 5 – ‘फ़ीचर’ लेखन में किस प्रकार की भाषा का प्रयोग होना चाहिए ? उसकी दो विशेषताएँ लिखिए ।(40 शब्दों में)

उत्तर – अखबारों में समाचारों के अलावा भी अन्य कई तरह का पत्रकारीय लेखन छपता है। इनमें फीचर प्रमुख है। फीचर एक सुव्यवस्थित, सृजनात्मक और आत्मनिष्ठ लेखन है जिसका उद्देश्य पाठकों को सूचना देने, शिक्षित करने के साथ मुख्य रूप से उनका मनोरंजन करना होता है। फीचर समाचार की तरह पाठकों को तात्कालिक घटनाक्रम से अवगत नहीं कराता है। फीचर-लेखन में निजी दृष्टिकोण और भावनाओं को व्यक्त किया जाता है। फीचर-लेखन की शैली भी समाचार-लेखन से अलग होती है, इसमें उलटा पिरामिड-शैली का प्रयोग नहीं होता है, इसकी शैली प्रायः कथात्मक होती है। 

फ़ीचर लिखते समय अग्रलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए – 

फ़ीचर लिखते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि उसे सजीव बनाने के लिए उसमें उस विषय से जुड़े लोगों यानी पात्रों की मौजूदगी जरूरी है। फीचर की शैली कथात्मक होती है। इसमें कथ्य को प्रयुक्त पात्रों के माध्यम से कहने का प्रयत्न किया जाना चाहिए।

 

प्रश्न 6 – पत्रकारीय विशेषज्ञता से क्या आशय है ? यह व्यावसायिक विशेषज्ञता से किस रूप में भिन्न है ? (60 शब्दों में)

उत्तर – पत्रकारिता में विशेषज्ञता का अर्थ थोड़ा अलग होता है। यहाँ विशेषज्ञता से हमारा तात्पर्य एक तरह की पत्रकारीय विशेषज्ञता से है। पत्रकारीय विशेषज्ञता का अर्थ यह है कि व्यावसायिक रूप से प्रशिक्षित न होने के बावजूद उस विषय में जानकारी और अनुभव के आधार पर अपनी समझ को इस हद तक विकसित करना कि उस विषय या क्षेत्र में घटने वाली घटनाओं और मुद्दों की आप सहजता से व्याख्या कर सकें और पाठकों के लिए उनके मायने स्पष्ट कर सकें।

 

प्रश्न 7 – पत्रकार कितने प्रकार के होते हैं और अंशकालिक पत्रकार किन्हें कहते हैं तथा इन्हें अन्य किस नाम से जाना जाता है ? (60 शब्दों में)

उत्तर – पत्रकार तीन तरह के होते हैं–पूर्णकालिक, अंशकालिक और फ्रीलांसर यानी स्वतंत्र। पूर्णकालिक पत्रकार किसी समाचार संगठन में काम करने वाला नियमित वेतन भोगी कर्मचारी होता है जबकि अंशकालिक पत्रकार (स्ट्रिंगर) किसी समाचार संगठन के लिए एक निश्चित मानदेय पर काम करने वाला पत्रकार है। लेकिन फ्रीलांसर पत्रकार का संबंध किसी खास अखबार से नहीं होता है बल्कि वह भुगतान के आधार पर अलग–अलग अखबारों के लिए लिखता है।

 

प्रश्न 8 – पत्रकारिता की भाषा में ‘बीट’ किसे कहते हैं ? बीट रिपोर्टिंग और विशेषीकृत रिपोर्टिंग में क्या अंतर है ? उदाहरण सहित लिखिए । (60 शब्दों में)

उत्तर – पत्रकारिता की भाषा में ‘बीट’ जानकारी व दिलचस्पी के अनुसार कार्य विभाजन को कहते हैं। विभिन्न विषयों से जुड़े समाचारों के लिए संवाददाताओं के बीच काम का विभाजन आम तौर पर उनकी दिलचस्पी और ज्ञान को ध्यान में रख कर किया जाता है। मीडिया की भाषा में इसे ही बीट कहा जाता है।

बीट रिपोर्टिंग में किसी विशेष क्षेत्र से संबधित जानकारी कहां, कब, क्या, किसने किया इत्यादि के बारे में बताया जाता है। परन्तु विशेषीकृत रिपोर्टिंग में आम सामान्य आगे बढ़कर विशेष क्षेत्र या विषयों से जुडी ख़बरों या घटनाओं बारे में जानकारी प्राप्त करके पाठकों के लिए उसके अर्थ को स्पष्ट करना होता है। 

 

प्रश्न 9 – पत्रकारीय लेखन का संबंध किससे है और यह साहित्यिक और सृजनात्मक लेखन से अलग कैसे है ? (60 शब्दों में)

उत्तर – पत्रकारिता लेखन का संबंध समसामयिक और वास्तविक घटनाओं तथा मुद्दों से है। इसमें आवश्यक हो जाता है कि तात्कालिक और पाठक की रुचियों और जरूरतों को ध्यान में रखकर लेख लिखा जाए। 

सृजनात्मक लेखन – कविता, कहानी, उपन्यास आदि कल्पना से सम्बंधित है और पत्रकारिता का रिश्ता तथ्यों से है न कि कल्पना से।

साहित्यिक लेखन – यह अनिवार्य रूप से तात्कालिकता और अपने पाठकों की रुचियों और ज़रूरतों को ध्यान में रखकर किया जाने वाला लेखन है। जबकि साहित्यिक रचनात्मक लेखन में लेखक को काफी छूट होती है।

 

प्रश्न 10 – समाचार पत्र-पत्रिका के संदर्भ में लेख से क्या तात्पर्य है ? लेख लिखते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? (60 शब्दों में)

उत्तर – अखबार, पाठकों को सूचना देने, उन्हें जागरूक रखने और लोकतांत्रिक समाजों में एक पहरेदार, शिक्षक और जनमत निर्माता के तौर पर बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। अखबार पाठकों के लिए बाहरी दुनिया के ज्ञान का ऐसा जरिया है जो हर रोज़ सुबह देश–दुनिया और पास–पड़ोस की घटनाओं, समस्याओं, मुद्दों और विचारों से पाठकों को अवगत करवाते हैं। अखबार या अन्य समाचार माध्यमों में काम करने वाले पत्रकार अपने पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं तक सूचनाएँ पहुँचाने के लिए लेखन के विभिन्न रूपों का इस्तेमाल करते हैं। अच्छे लेखन के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है –

जटिल व् कठिन वाक्य की तुलना में सरल व् छोटे वाक्य लिखने चाहिए।

आम बोलचाल में प्रयोग की जाने वाली भाषा और शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए।

गैर–ज़रूरी शब्दों के इस्तेमाल से बचना चाहिए।

शब्दों को प्रयोग उनके वास्तविक अर्थ को समझकर ही करना चाहिए।

यदि आप अच्छा लिखना चाहते हैं तो जाने–माने लेखकों की रचनाएँ ध्यान से पढ़नी चाहिए क्योंकि अच्छा लिखने के लिए अच्छा पढ़ना भी बहुत ज़रूरी है।

लेखन में विविधता लाने के लिए छोटे वाक्यों के साथ–साथ कुछ मध्यम आकार के और कुछ बड़े वाक्यों का प्रयोग कर सकते हैं। इसके साथ–साथ मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग से लेखन को आकर्षक बनाया जा सकता है।

लेखन में कसावट बहुत ज़रूरी है। इसके लिए अपने लिखे हुए को दोबारा ज़रूर पढ़ना चाहिए और उसमें हुई अशुद्धियों के साथ–साथ गैर–ज़रूरी चीजों को हटाने में संकोच नहीं करना चाहिए। 

लिखते हुए यह ध्यान रखिए कि आपका उद्देश्य अपनी भावनाओं, विचारों और तथ्यों को व्यक्त करना है न कि दूसरे को प्रभावित करना।

एक अच्छे लेखक को पूरी दुनिया से लेकर अपने आसपास घटने वाली घटनाओं, समाज और पर्यावरण पर गहरी निगाह रखनी चाहिए अर्थात उसे इन सभी का गहराई से ज्ञान होना चाहिए।

 

प्रश्न 11 – समाचार-पत्रों में अगर आर्थिक जगत से जुड़ी खबरें न हों तो वह संपूर्ण नहीं माना जाएगा, क्यों ?(60 शब्दों में)

उत्तर – समाचार-पत्रों में अगर आर्थिक जगत से जुड़ी खबरें न हों तो वह संपूर्ण नहीं माना जाएगा, क्योंकि समाचार-पत्रों में कारोबार तथा अर्थ जगत से संबंधित समाचारों के लिए अलग से एक पृष्ठ होता है। कुछ समाचार-पत्रों में तो आर्थिक समाचारों के दो पृष्ठ प्रकाशित होते हैं। समाचार-पत्रों में यदि आर्थिक समाचार का पृष्ठ न हो तो वह संपूर्ण समाचार पत्र नहीं कहलाता। अर्थ अर्थात धन प्रत्येक जीवन का मूल आधार है। हमारे जीवन में इसका विशेष महत्व है। क्रय-विक्रय करना, बैंक में पैसे जमा करवाना, बचत करना, किसी कारोबार के बारे में योजना बनाना या कुछ इस प्रकार का सोचना जिसमें आर्थिक लाभ हो इत्यादि से संबंधित विषय कारोबार और अर्थ जगत से संबंधित होते हैं। इसी कारण कारोबार, व्यापार और अर्थजगत से जुड़ी खबरों में पाठकों की विशेष रुचि होती है।

 

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Chapter 5 – विशेष लेखन-स्वरूप और प्रकार

 

Q1. निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पढ़कर सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए : 

(i) सामान्य लेखन से हटकर किसी खास विषय पर किया गया लेखन क्या कहलाता है ?

(A) संपादकीय

(B) विशेष लेखन

(C) कथा लेखन

(D) विचारपरक लेखन

उत्तर – (B) विशेष लेखन

 

प्रश्न 2 – विशेष लेखन क्या है और यह क्यों किया जाता ? (60 शब्दों में)

उत्तर – किसी भी क्षेत्र में विशेष रूप से लेखन करना विशेष लेखन कहलाता है। समाचार पत्र सामान्य समाचारों के अलावा साहित्य , विज्ञान , खेल इत्यादि की भी पर्याप्त जानकारी देते हैं। इसी कार्य के अंतर्गत जब किसी खास विषय पर सामान्य लेखन से हटकर लेखन किया जाए तो उसे विशेष लेखन कहते हैं। विशेष लेखन में समाचारों के अलावा, खेल, अर्थ-व्यापार, सिनेमा, या मनोरंजन जैसे विषयों पर लिखा जाता है। इसकी भाषा और शैली, समाचारों की भाषा-शैली से अलग होती है। 

 

प्रश्न 3 – मीडिया की भाषा में ‘बीट’ किसे कहते हैं ? बीट रिपोर्टर बनने के लिए एक पत्रकार में क्या योग्यता होनी चाहिए ? (60 शब्दों में)

उत्तर – जब किसी विषय विशेष में लेखन का दायित्व किसी पत्रकार को सौंपा जाता है, तो मीडिया की भाषा में इसको बीट कहते हैं। बीट रिपोर्टर को अपने सम्बंधित क्षेत्र पर गहन अध्ययन करना पड़ता है। साथ-ही-साथ उसे अपने सूत्रों से शीघ्र संपर्क करके सम्बंधित विषयों पर अधिक से अधिक जानकारी एकत्र करनी होती है। निर्धारित समय पर आवश्यक व् सटीक जानकारी इकट्ठी करके रिपोर्ट तैयार करने की जिम्मेदारी भी उसी पर होती है। इसके अलावा बीट रिपोर्टर को सिमित समय में कवर स्टोरी तैयार करने की कुशलता भी हासिल करनी होती है। जिससे जानकारी समय पर लोगों तक पहुंचाई जा सके। 

 

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Chapter 11 – कैसे करें कहानी का नाट्य रूपांतरण

 

प्रश्न 1 – नाट्य रूपांतरण करते समय कहानी की कथावस्तु के दृश्यों का निर्धारण करने में किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ? (40 शब्दों में)

उत्तर – कहानी का नाटक में रूपांतरण करने के लिए सबसे पहले कहानी और नाटक में विविधता या अनेकता तथा समानताओं को समझना आवश्यक है। इसके लिए हमें नाटक की विशेषताओं को समझना होगा। जहाँ कहानी का संबंध लेखक और पाठक से जुड़ता है वहीं नाटक लेखक, निर्देशक, पात्र, दर्शक, श्रोता एवं अन्य लोगों को एक–दूसरे से जोड़ता है। चूँकि दृश्य का स्मृतियों से गहरा संबंध होता है इसलिए नाटक एवं फ़िल्म को लोग देर तक याद रखते हैं। यही कारण है कि गोदान, देवदास, उसने कहा था, सद्गति आदि के नाट्य रूपांतरण कई बार हुए हैं और कई तरह से हुए हैं।

 

प्रश्न 2 – कहानी और नाटक में क्या-क्या समानताएँ हैं ? स्पष्ट कीजिए ।(40 शब्दों में)

उत्तर – कहानी कही जाती है या पढ़ी जाती है। नाटक मंच पर प्रस्तुत किया जाता है। नाटक को मंच पर अभिनेता अभिनय द्वारा प्रस्तुत करते हैं। मंच सज्जा होती है, संगीत होता है, प्रकाश व्यवस्था होती है।

समानता यह होती है कि कहानी और नाटक दोनों में एक कहानी होती है, पात्र होते हैं, परिवेश होता है, कहानी का क्रमिक विकास होता है, संवाद होते हैं, द्वंद्व होता है, चरम उत्कर्ष होता है।

 

प्रश्न 3 – कहानी से नाट्य रूपांतरण में, संवाद रचना करते हुए किन बातों का विशेष ध्यान रखना होता है ? प्रकाश डालिए ।(40 शब्दों में)

उत्तर – संवाद को नाटक में प्रभावशाली बनाने का एक तरीका अभिनय है जो प्रायः निर्देशक का काम है, पर लेखक भी इस ओर संकेत कर सकता है।

पात्र की भावभंगिमाओं और उसके तौर तरीकों से प्रभाव उत्पन्न किया जा सकता है।

कहानी के लंबे संवादों को छोटा करके उन्हें अधिक नाटकीय बनाया जा सकता है।

स्थानीय रंग में संवादों को रंग कर चरित्र–चित्रण को परिमार्जित किया जा सकता है।

 

प्रश्न 4 – कहानी के कथानक को नाट्य रूपांतरण करते समय किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है ?(40 शब्दों में)

उत्तर – कहानी का नाटक में रूपांतरण करने के लिए सबसे पहले कहानी और नाटक में विविधता या अनेकता तथा समानताओं को समझना आवश्यक है। इसके लिए हमें नाटक की विशेषताओं को समझना होगा। जहाँ कहानी का संबंध लेखक और पाठक से जुड़ता है वहीं नाटक लेखक, निर्देशक, पात्र, दर्शक, श्रोता एवं अन्य लोगों को एक–दूसरे से जोड़ता है। चूँकि दृश्य का स्मृतियों से गहरा संबंध होता है इसलिए नाटक एवं फ़िल्म को लोग देर तक याद रखते हैं। यही कारण है कि गोदान, देवदास, उसने कहा था, सद्गति आदि के नाट्य रूपांतरण कई बार हुए हैं और कई तरह से हुए हैं।

 

प्रश्न 5 – कहानी का नाट्य रूपांतरण करते समय नाटक में पात्रों का चरित्र चित्रण किस प्रकार किया जाता है ?(40 शब्दों में)

उत्तर – कहानी में चरित्र–चित्रण अलग प्रकार से किया जाता है और नाटक में उसकी विधि कुछ बदल जाती है। रूपांतरण करते समय कहानी के पात्रों की दृश्यात्मकता और नाटक के पात्रों में उसका प्रयोग किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए प्रेमचंद ने ईदगाह में मेले में जाते हामिद के कपड़ों का जिक्र नहीं किया है और न ही अन्य लड़कों के बारे में कुछ लिखा है परंतु कहानी से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि हामिद नंगे पैर होगा, उसके कुर्ते में पैबंद लगे होंगे जबकि अन्य लड़कों के कपड़े उनकी अच्छी आर्थिक स्थिति के सूचक होंगे।

 

प्रश्न 6 – कहानी का नाट्य रूपांतरण करते समय कहानीकार द्वारा विवरण के रूप में व्यक्त प्रसंगों या मानसिक द्वंद्व के दृश्यों को नाटक में किस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है ?(40 शब्दों में)

उत्तर – पात्रों के मनोभावों या मानसिक द्वंद्व के दृश्यों की नाटकीय प्रस्तुति में समस्या व् निर्धारण –

रूपांतरण में एक समस्या पात्रों के मनोभावों को कहानीकार द्वारा विवरण के रूप में व्यक्त प्रसंगों या मानसिक द्वंद्व के दृश्यों की नाटकीय प्रस्तुति में आ सकती है। उदाहरण के लिए ईदगाह का वह हिस्सा जहाँ हामिद इस द्वंद्व में है कि क्या–क्या खरीदे या जहाँ वह यह सोचता है कि अम्मा का हाथ जल जाता है, उसका रूपांतरण कठिन है। रूपांतरण में इस तरह के विवरण प्रस्तुत करने के लिए स्वगत कथन का प्रयोग किया जाता है जिसमें लेखक मंच के कोने में जाकर अपने आपसे यह संवाद बोलता है। लेकिन आजकल ‘वायस ओवर’अर्थात ऐसी ध्वनि जो दर्शकों को सुनाई देती है पर पात्र नहीं बोलता के माध्यम से संभव है। अम्मा वाले अंश के लिए फ़ैलेशबैक शैली का उपयोग किया जा सकता है। इसी प्रकार हामिद की ललचाई आँखों, होठों पर जीभ फेरते और बाद में भारी कदमों से दुकान से दूर जाने का दृश्य बनाया जा सकता है। कहानी का नाट्य रूपांतरण करने से पहले यह जानकारी होना आवश्यक है कि वर्तमान रंगमंच में क्या संभावनाएँ हैं। यह तभी संभव है जब अच्छे नाटक देखे जाएँ। इसलिए रूपांतरण का पहला पाठ यही हो सकता है कि अच्छी नाट्य प्रस्तुतियाँ देखी जाएँ।

 

प्रश्न 7 – नाटक में ‘दृश्य’ की क्या भूमिका है ?(40 शब्दों में)

उत्तर – नाटक दृश्य काव्य के अंतर्गत आता है। इसका प्रदर्शन रंगमंच पर होता हैं। भारतेंदु हरिशचन्द्र ने नाटक के लक्षण देते हुए लिखा है “नाटक शब्द का अर्थ नट लोगों की क्रिया हैं। दृश्य-काव्य की संज्ञा-रूपक है। रूपकों मे नाटक ही सबसे मुख्य है इससे रूपक मात्र को नाटक कहते है। नाटक गद्य का वह कथात्मक रूप है, जिसे अभिनय संगीत, नृत्य, संवाद आदि के माध्यम से रंगमंच पर अभिनीत किया जा सकता है।

 

प्रश्न 8 – कहानी में वर्णित परिवेश और परिस्थितियों से संबंधित टिप्पणियों को नाटक में किस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है ?(40 शब्दों में)

उत्तर – विभिन्न प्रकार के विवरणों को नाटक में स्थान देने के अलग–अलग तरीके हैं। उदाहरण के लिए विवरणात्मक टिप्पणी यदि परिवेश के बारे में है तो उसे मंच सज्जा के अंतर्गत लिया जा सकता है या पार्श्व संगीत के माध्यम से व्यक्त किया जा सकता है। विवरण यदि पात्रों के बारे में है तो उन्हें संवादों के माध्यम से निर्धारित दृश्यों में उचित स्थान पर दिया जा सकता है। कहने का तात्पर्य यह है कि कहानी में व्यक्त महत्त्वपूर्ण सूत्र नाटक के स्वरूप के अनुसार अपनी जगह निर्धारित कर लेते हैं।

 

प्रश्न 9 – कहानीकार द्वारा कहानी में वर्णित मानसिक द्वंद्व को नाटक में किस प्रकार रूपांतरित किया जा सकता है ?(40 शब्दों में)

उत्तर – रूपांतरण में एक समस्या पात्रों के मनोभावों को कहानीकार द्वारा विवरण के रूप में व्यक्त प्रसंगों या मानसिक द्वंद्व के दृश्यों की नाटकीय प्रस्तुति में आ सकती है। उदाहरण के लिए ईदगाह का वह हिस्सा जहाँ हामिद इस द्वंद्व में है कि क्या–क्या खरीदे या जहाँ वह यह सोचता है कि अम्मा का हाथ जल जाता है, उसका रूपांतरण कठिन है। रूपांतरण में इस तरह के विवरण प्रस्तुत करने के लिए स्वगत कथन का प्रयोग किया जाता है जिसमें लेखक मंच के कोने में जाकर अपने आपसे यह संवाद बोलता है। 

 

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Chapter 12 – कैसे बनता है रेडियो नाटक

 

प्रश्न 1 – सामान्यतः रेडियो नाटकों की अवधि कितनी होती है और क्यों ?(40 शब्दों में)

उत्तर – रेडियो नाटक की अवधि का 15 मिनट से 30 मिनट के होने के दो कारण हैं, श्रव्य माध्यम में नाटक या वार्ता जैसे कार्यक्रमों के लिए मनुष्य की एकाग्रता की अवधि 15-30 मिनट ही होती है, इससे ज़्यादा नहीं। दूसरे, सिनेमा या नाटक में दर्शक अपने घरों से बाहर निकल कर किसी अन्य सार्वजनिक स्थान पर एकत्रित होते हैं इसका मतलब वो इन आयोजनों के लिए एक प्रयास करते हैं और अनजाने लोगों के एक समूह का हिस्सा बनकर प्रेक्षागृह में बैठते हैं।

 

प्रश्न 2 – रेडियो नाटक में ध्वनि संकेतों के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए ।(40 शब्दों में)

उत्तर – रेडियो पूरी तरह से श्रव्य माध्यम है इसीलिए रेडियो नाटक का लेखन सिनेमा व रंगमंच के लेखन से थोड़ा भिन्न भी है और थोड़ा मुश्किल भी। आपको सब कुछ संवादों और ध्वनि प्रभावों के माध्यम से संप्रेषित करना होता है। यहाँ आपकी सहायता के लिए न मंच सज्जा तथा वस्त्र सज्जा है और न ही अभिनेता के चेहरे की भाव–भंगिमाएँ। वरना बाकी सब कुछ वैसा ही है। एक कहानी, कहानी का वही ढाँचा, शुरुआत–मध्य–अंत, इसे यूँ भी कह सकते हैं, परिचय–द्वंद्व–समाधान। बस ये सब होगा आवाज़ के माध्यम से।

 

प्रश्न 3 – रेडियो नाटक लेखन में किन-किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है ?(40 शब्दों में)

उत्तर – नाट्य आंदोलन के विकास में रेडियो नाटक की अहम भूमिका रही है!

सिनेमा और रंगमंच की तरह रेडियो एक दृश्य माध्यम नहीं, श्रव्य माध्यम है।

रेडियो की प्रस्तुति संवादों और ध्वनि प्रभावों के माध्यम से होती है।

फिल्म की तरह रेडियो में एक्शन की गुंजाइश नहीं होती।

चूँकि रेडियो नाटक की अवधि सीमित होती है इसलिए पात्रों की संख्या भी सीमित होती है क्योंकि सिर्फ आवाज़ के सहारे पात्रों को याद रख पाना मुश्किल होता है।

पात्र संबंधी विविध जानकारी संवाद एवं ध्वनि संकेतों से उजागर होती है।

 

प्रश्न 4 – ‘रेडियो नाटक लेखन, सिनेमा और रंगमंच की कथा लेखन से भिन्न है,’ कैसे ?(40 शब्दों में)

उत्तर – सिनेमा और रंगमंच की तरह रेडियो नाटक में भी चरित्र होते हैं उन चरित्रों के आपसी संवाद होते हैं और इन्हीं संवादों के ज़रिये आगे बढ़ती है कहानी। बस सिनेमा और रंगमंच की तरह रेडियो नाटक में विजुअल्स अर्थात दृश्य नहीं होते। यही सबसे बड़ा अंतर है, रेडियो नाटक तथा सिनेमा या रंगमंच के माध्यम में। रेडियो पूरी तरह से श्रव्य माध्यम है इसीलिए रेडियो नाटक का लेखन सिनेमा व रंगमंच के लेखन से थोड़ा भिन्न भी है और थोड़ा मुश्किल भी। आपको सब कुछ संवादों और ध्वनि प्रभावों के माध्यम से संप्रेषित करना होता है। यहाँ आपकी सहायता के लिए न मंच सज्जा तथा वस्त्र सज्जा है और न ही अभिनेता के चेहरे की भाव–भंगिमाएँ। वरना बाकी सब कुछ वैसा ही है। एक कहानी, कहानी का वही ढाँचा, शुरुआत–मध्य–अंत, इसे यूँ भी कह सकते हैं, परिचय–द्वंद्व–समाधान। बस ये सब होगा आवाज़ के माध्यम से।

 

प्रश्न 5 – रेडियो नाटक किसे कहा जाता है और आज के संदर्भ में इसका क्या महत्त्व है ?(40 शब्दों में)

अथवा 

रेडियो नाटक और सिनेमा या रंगमंच के माध्यम में अंतर स्पष्ट कीजिए ।(40 शब्दों में)

उत्तर – सिनेमा और रंगमंच की तरह रेडियो नाटक में भी चरित्र होते हैं उन चरित्रों के आपसी संवाद होते हैं और इन्हीं संवादों के ज़रिये आगे बढ़ती है कहानी। बस सिनेमा और रंगमंच की तरह रेडियो नाटक में विजुअल्स अर्थात दृश्य नहीं होते। यही सबसे बड़ा अंतर है, रेडियो नाटक तथा सिनेमा या रंगमंच के माध्यम में। रेडियो पूरी तरह से श्रव्य माध्यम है इसीलिए रेडियो नाटक का लेखन सिनेमा व रंगमंच के लेखन से थोड़ा भिन्न भी है और थोड़ा मुश्किल भी। आपको सब कुछ संवादों और ध्वनि प्रभावों के माध्यम से संप्रेषित करना होता है। 

 

प्रश्न 6 – रेडियो नाटक के संवाद में पात्रों का नाम लेना क्यों आवश्यक होता है ?(40 शब्दों में)

उत्तर – रेडियो नाटक में पात्रों संबधी तमाम जानकारी हमें संवादों के माध्यम से ही मिलती हैं। उनके नाम, आपसी संबंध, चारित्रिक विशेषताएँ, ये सभी हमें संवादों द्वारा ही उजागर करना होता है। रेडियो में कौन किससे बात कर रहा है, हम देख नहीं पाते इसलिए संवाद जिस चरित्र को संबोधित है, उसका नाम लेना ज़रूरी होता है, खासतौर पर जब दृश्यों में दो से अधिक पात्र हों। इसके अलावा रेडियो नाटक में कई बार कोई पात्र विशेष जब कोई हरकत, कोई एक्शन करता है तो उसे भी संवाद का हिस्सा बनाना पड़ता है।

 

प्रश्न 7 – रेडियो नाटकों का लेखन अन्य माध्यमों के लेखन से कुछ कठिन होता है, क्यों ? कारण सहित उत्तर लिखिए । (40 शब्दों में)

अथवा 

सिनेमा या रंगमंच (दृश्य माध्यम) और रेडियो नाटक में क्या अंतर है ?(40 शब्दों में)

उत्तर – सिनेमा और रंगमंच की तरह रेडियो नाटक में भी चरित्र होते हैं उन चरित्रों के आपसी संवाद होते हैं और इन्हीं संवादों के ज़रिये आगे बढ़ती है कहानी। बस सिनेमा और रंगमंच की तरह रेडियो नाटक में विजुअल्स अर्थात दृश्य नहीं होते। यही सबसे बड़ा अंतर है, रेडियो नाटक तथा सिनेमा या रंगमंच के माध्यम में। रेडियो पूरी तरह से श्रव्य माध्यम है इसीलिए रेडियो नाटक का लेखन सिनेमा व रंगमंच के लेखन से थोड़ा भिन्न भी है और थोड़ा मुश्किल भी। आपको सब कुछ संवादों और ध्वनि प्रभावों के माध्यम से संप्रेषित करना होता है। यहाँ आपकी सहायता के लिए न मंच सज्जा तथा वस्त्र सज्जा है और न ही अभिनेता के चेहरे की भाव-भंगिमाएँ। वरना बाकी सब कुछ वैसा ही है। एक कहानी, कहानी का वही ढाँचा, शुरुआत-मध्य-अंत, इसे यूँ भी कह सकते हैं, परिचय-द्वंद्व-समाधान। बस ये सब होगा आवाज़ के माध्यम से।

 

प्रश्न 8 – रेडियो नाटक की कहानी पूरी तरह एक्शन (क्रिया) प्रधान क्यों नहीं होनी चाहिए ?(40 शब्दों में)

उत्तर – नाट्य आंदोलन के विकास में रेडियो नाटक की अहम भूमिका रही है! सिनेमा और रंगमंच की तरह रेडियो एक दृश्य माध्यम नहीं, श्रव्य माध्यम है।रेडियो की प्रस्तुति संवादों और ध्वनि प्रभावों के माध्यम से होती है। फिल्म की तरह रेडियो में एक्शन की गुंजाइश नहीं होती। चूँकि रेडियो नाटक की अवधि सीमित होती है इसलिए पात्रों की संख्या भी सीमित होती है क्योंकि सिर्फ आवाज़ के सहारे पात्रों को याद रख पाना मुश्किल होता है। पात्र संबंधी विविध जानकारी संवाद एवं ध्वनि संकेतों से उजागर होती है।

 

प्रश्न 9 – दृश्य-श्रव्य माध्यमों की तुलना में रेडियो नाटक की क्या – क्या सीमाएँ हैं ?(40 शब्दों में)

उत्तर – सिनेमा और रंगमंच की तरह रेडियो नाटक में भी चरित्र होते हैं उन चरित्रों के आपसी संवाद होते हैं और इन्हीं संवादों के ज़रिये आगे बढ़ती है कहानी। बस सिनेमा और रंगमंच की तरह रेडियो नाटक में विजुअल्स अर्थात दृश्य नहीं होते। यही सबसे बड़ा अंतर है, रेडियो नाटक तथा सिनेमा या रंगमंच के माध्यम में। रेडियो नाटक की अवधि का 15 मिनट से 30 मिनट के होने के दो कारण हैं, श्रव्य माध्यम में नाटक या वार्ता जैसे कार्यक्रमों के लिए मनुष्य की एकाग्रता की अवधि 15-30 मिनट ही होती है, इससे ज़्यादा नहीं। दूसरे, सिनेमा या नाटक में दर्शक अपने घरों से बाहर निकल कर किसी अन्य सार्वजनिक स्थान पर एकत्रित होते हैं इसका मतलब वो इन आयोजनों के लिए एक प्रयास करते हैं और अनजाने लोगों के एक समूह का हिस्सा बनकर प्रेक्षागृह में बैठते हैं।

 

प्रश्न 10 – नाटक में दृश्य का क्या महत्त्व है ? किन्हीं दो बिंदुओं का उल्लेख कीजिए ।(40 शब्दों में)

उत्तर – सिनेमा और रंगमंच की तरह रेडियो नाटक में भी चरित्र होते हैं उन चरित्रों के आपसी संवाद होते हैं और इन्हीं संवादों के ज़रिये आगे बढ़ती है कहानी। बस सिनेमा और रंगमंच की तरह रेडियो नाटक में विजुअल्स अर्थात दृश्य नहीं होते। यही सबसे बड़ा अंतर है, रेडियो नाटक तथा सिनेमा या रंगमंच के माध्यम में। रेडियो पूरी तरह से श्रव्य माध्यम है इसीलिए रेडियो नाटक का लेखन सिनेमा व रंगमंच के लेखन से थोड़ा भिन्न भी है और थोड़ा मुश्किल भी। आपको सब कुछ संवादों और ध्वनि प्रभावों के माध्यम से संप्रेषित करना होता है। यहाँ आपकी सहायता के लिए न मंच सज्जा तथा वस्त्र सज्जा है और न ही अभिनेता के चेहरे की भाव-भंगिमाएँ। वरना बाकी सब कुछ वैसा ही है। एक कहानी, कहानी का वही ढाँचा, शुरुआत-मध्य-अंत, इसे यूँ भी कह सकते हैं, परिचय-द्वंद्व-समाधान। बस ये सब होगा आवाज़ के माध्यम से।

 

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Chapter 13 – नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन

 

प्रश्न 1 – अप्रत्याशित लेखन किसे कहते हैं ?(40 शब्दों में)

उत्तर – ऐसे लेखन के लिए किसी भी तरह के विषय दिए जा सकते हैं, उनकी संख्या अपरिमित है। जैसे आपके सामने की दीवार, उस दीवार पर टंगी घड़ी, उस दीवार में बाहर की ओर खुलता झरोखा इत्यादि। ऐसे विषय भी हो सकते हैं, जिनमें इनके मुकाबले खुलापन थोड़ा कम हो और ‘फोकस’ अधिक स्पष्ट हो। जैसे टी.वी. धारावाहिकों में स्त्री, बहुत ज़रूरी है शिक्षा, इत्यादि। ऐसे लेखन के लिए किसी भी तरह के विषय दिए जा सकते हैं, उनकी संख्या अपरिमित है। जैसे आपके सामने की दीवार, उस दीवार पर टंगी घड़ी, उस दीवार में बाहर की ओर खुलता झरोखा इत्यादि। ऐसे विषय भी हो सकते हैं, जिनमें इनके मुकाबले खुलापन थोड़ा कम हो और ‘फोकस’ अधिक स्पष्ट हो। जैसे टी.वी. धारावाहिकों में स्त्री, बहुत ज़रूरी है शिक्षा, इत्यादि।

 

प्रश्न 2 – अप्रत्याशित लेखन करते समय लेखक के समक्ष सबसे बड़ी कौन-सी चुनौतियाँ होती हैं ?(40 शब्दों में)

उत्तर – इस तरह के लेखन में विषय दो खंभों के बीच बंधी रस्सी की तरह नहीं होता, जिस पर चलते हुए हम एक कदम भी इधर–उधर रखने का जोखिम नहीं उठा सकते। बहुत खुलापन रखने वाले विषयों पर अगर हम शताधिक कोणों से विचार कर सकते हैं, तो उनसे भिन्न, किंचित केंद्रित प्रकृति के विषयों पर विचार करने के कोण स्वाभाविक रूप से थोड़े कम होते हैं। किसी भी विषय पर एक ही व्यक्ति के ज़ेहन में कई तरीकों से सोचने की प्रवृत्ति होती है। शुरुआत आकर्षक होने के साथ–साथ निर्वाह–योग्य भी हो। शुरुआत से आगे बात कैसे सिलसिलेवार बढ़ेगी, इसकी एक रूपरेखा ज़ेहन में होनी चाहिए। जब विषय पर विचार करने की चौहद्दियाँ बहुत सख्ती से तय न कर दी गई हों, उस सूरत में सुसंबद्धता बनाए रखने के लिए कोशिश करनी पड़ती है।

 

प्रश्न 3 – नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन को सरल बनाया जा सकता है, कैसे ?(40 शब्दों में)

उत्तर – विवरण–विवेचन के सुसंबद्ध होने के साथ–साथ उसका सुसंगत होना भी अच्छे लेखन की एक खासियत है। आपकी कही गई बातें न सिर्फ आपस में जुड़ी हुई हों, बल्कि उनमें तालमेल भी हो। अगर आपकी दो बातें आपस में ही एक–दूसरे का खंडन करती हों, तो यह लेखन का ही नहीं, किसी भी तरह की अभिव्यक्ति का एक अक्षम्य दोष है। लेख–चाहे संस्मरणात्मक हो, रेखाचित्रात्मक हो अथवा वैचारिक, उसकी सुसंबद्धता और सुसंगति के प्रति हर लेखक को सचेत होना चाहिए।

 

प्रश्न 4 – ‘नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन’ पाठ के संदर्भ में बताइए कि ‘कुटेव’ का क्या अर्थ है और इसका शिकार हो जाने पर किस अवसर को खोना पड़ता है ?(40 शब्दों में)

उत्तर – ‘कुटेव’ का अर्थ है – बुरी आदत। ज्यादातर लोग आत्मनिर्भर होकर लिखित रूप में अभिव्यक्ति का अभ्यास ही नहीं करते। अभ्यास के हर मौके को हम रटंत पर निर्भर होकर गँवा बैठते हैं। रटंत का मतलब है, दूसरों के द्वारा तैयार की गई सामग्री को याद करके ज्यों–का–त्यों प्रस्तुत कर देने की कुटेव (बुरी लत)। इस कुटेव का शिकार हो जाने पर असली अभ्यास या रियाज़ का मौका ही कहाँ मिलता है? लेखन का आशय यहाँ यांत्रिक हस्तकौशल से नहीं है। उसका आशय भाषा के सहारे किसी चीज़ पर विचार करने और उस विचार को व्याकरणिक शुद्धता के साथ सुसंगठित रूप में अभिव्यक्त करने से है। भाषा विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम ही नहीं, स्वयं विचार करने का साधन भी है। 

 

प्रश्न 5 – ‘नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन’ पाठ के संदर्भ में लिखिए कि लेखन की रचनात्मकता निबंध के पारंपरिक विषयों में क्यों घटित नहीं हो पाती ?(40 शब्दों में)

उत्तर – लेखन का आशय यहाँ यांत्रिक हस्तकौशल से नहीं है। उसका आशय भाषा के सहारे किसी चीज़ पर विचार करने और उस विचार को व्याकरणिक शुद्धता के साथ सुसंगठित रूप में अभिव्यक्त करने से है। भाषा विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम ही नहीं, स्वयं विचार करने का साधन भी है। विचार करने और उसे व्यक्त करने की यह प्रक्रिया निबंध के चिरपरिचित विषयों के साथ आमतौर पर घटित नहीं हो पाती। इसका कारण यह है कि उन विषयों पर तैयारशुदा सामग्री प्रचुर मात्रा में उपलब्ध रहती है और हम कुछ नया सोचने–लिखने की ज़हमत उठाने के बजाय उसी सामग्री पर निर्भर हो जाते हैं। मौलिक प्रयास एवं अभ्यास को बाधित करने वाली यह निर्भरता हमारे अंदर लिखित अभिव्यक्ति की क्षमता विकसित नहीं होने देती। 

 

प्रश्न 6 – नए और अप्रत्याशित विषयों पर लेखन में कौन-कौन सी बातों का ध्यान रखना आवश्यक है ?(40 शब्दों में)

उत्तर – ऐसे लेखन के लिए किसी भी तरह के विषय दिए जा सकते हैं, उनकी संख्या अपरिमित है। जैसे आपके सामने की दीवार, उस दीवार पर टंगी घड़ी, उस दीवार में बाहर की ओर खुलता झरोखा इत्यादि। ऐसे विषय भी हो सकते हैं, जिनमें इनके मुकाबले खुलापन थोड़ा कम हो और ‘फोकस’ अधिक स्पष्ट हो। जैसे टी.वी. धारावाहिकों में स्त्री, बहुत ज़रूरी है शिक्षा, इत्यादि।

अप्रत्याशित विषय कुछ भी हो सकते हैं अतः ये अलग–अलग प्रकृति के हो सकते हैं और इसीलिए इनकी माँग भी अलग–अलग किस्म की होगी।

कोई विषय तार्किक विचार प्रक्रिया में उतारना चाहता है। 

कोई आपसे यह माँग करता है कि जो कुछ आपने देखा–सुना है या देख–सुन रहे हैं, उसे थोड़ी बारीकी से पुनःसंकलित करते हुए एक व्यवस्था में ढाल दें।

कोई अपनी स्मृतियों को खंगालने के लिए आपको प्रेरित करता है।

कोई अनुभव का सैद्धांतिक नज़रिये से जाँचने–परखने के लिए आपको उकसाता है।

 

प्रश्न 7 – अप्रत्याशित लेखन की किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ।(40 शब्दों में)

उत्तर – विवरण–विवेचन के सुसंबद्ध होने के साथ–साथ उसका सुसंगत होना भी अच्छे लेखन की एक खासियत है। आपकी कही गई बातें न सिर्फ आपस में जुड़ी हुई हों, बल्कि उनमें तालमेल भी हो। अगर आपकी दो बातें आपस में ही एक–दूसरे का खंडन करती हों, तो यह लेखन का ही नहीं, किसी भी तरह की अभिव्यक्ति का एक अक्षम्य दोष है।

लेख–चाहे संस्मरणात्मक हो, रेखाचित्रात्मक हो अथवा वैचारिक, उसकी सुसंबद्धता और सुसंगति के प्रति हर लेखक को सचेत होना चाहिए। वैसे हमारे सोचने की प्रक्रिया स्वाभाविक रूप से इन गुणों को धारण करती ही है, फिर भी सचेत न रहने पर, संभव है, ये गुण कहीं–कहीं नदारद हो जाएँ!

 

प्रश्न 8 – नए विषयों पर लेखन एक चुनौतीपूर्ण कार्य क्यों लगता है ?(40 शब्दों में)

उत्तर – किसी भी घटना या परिस्थिति को लेख की शक्ल देना, उसे शब्दों के सहारे पन्नों पर उकेरना–बहुत से लोगों के लिए यह मुश्किल काम है। जिन विचारों को कह डालना कठिन नहीं होता, उन्हें लिख डालने का निमंत्रण एक चुनौती की तरह लगने लगता है। इसके अनगिनत कारण हो सकते हैं, परन्तु एक मुख्य कारण यह है कि ज्यादातर लोग आत्मनिर्भर होकर लिखित रूप में अभिव्यक्ति का अभ्यास ही नहीं करते।

 

प्रश्न 9 – रटंत से क्या अभिप्राय है ? यह बुरी लत क्यों है ?(40 शब्दों में)

उत्तर – रटंत का मतलब है, दूसरों के द्वारा तैयार की गई सामग्री को याद करके ज्यों–का–त्यों प्रस्तुत कर देने की कुटेव (बुरी लत)। इस कुटेव का शिकार हो जाने पर असली अभ्यास या रियाज़ का मौका ही कहाँ मिलता है? लेखन का आशय यहाँ यांत्रिक हस्तकौशल से नहीं है। उसका आशय भाषा के सहारे किसी चीज़ पर विचार करने और उस विचार को व्याकरणिक शुद्धता के साथ सुसंगठित रूप में अभिव्यक्त करने से है। भाषा विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम ही नहीं, स्वयं विचार करने का साधन भी है। 

 

प्रश्न 10 – लेखन का तात्पर्य बताते हुए स्पष्ट कीजिए कि इसे यांत्रिक हस्तकौशल क्यों नहीं माना जाता है ।(40 शब्दों में)

उत्तर – लेखन का आशय यहाँ यांत्रिक हस्तकौशल से नहीं है। उसका आशय भाषा के सहारे किसी चीज़ पर विचार करने और उस विचार को व्याकरणिक शुद्धता के साथ सुसंगठित रूप में अभिव्यक्त करने से है। भाषा विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम ही नहीं, स्वयं विचार करने का साधन भी है। विचार करने और उसे व्यक्त करने की यह प्रक्रिया निबंध के चिरपरिचित विषयों के साथ आमतौर पर घटित नहीं हो पाती। इसका कारण यह है कि उन विषयों पर तैयारशुदा सामग्री प्रचुर मात्रा में उपलब्ध रहती है और हम कुछ नया सोचने–लिखने की ज़हमत उठाने के बजाय उसी सामग्री पर निर्भर हो जाते हैं। मौलिक प्रयास एवं अभ्यास को बाधित करने वाली यह निर्भरता हमारे अंदर लिखित अभिव्यक्ति की क्षमता विकसित नहीं होने देती। इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि हम निबंध के परंपरागत विषयों को छोड़ कर नए तरह के विषयों पर लिखने का अभ्यास करें। यही अभ्यास हमें अपने मौलिक अधिकारों में से एक–अभिव्यक्ति के अधिकार का पूरा–पूरा उपयोग कर पाने की सामर्थ्य देगा।

 

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