CBSE Class 12 Hindi Core Chapter-wise Previous Years Questions (2019) with Solution
Class 12 Hindi Core Question Paper (2019) – Solved Question papers from previous years are very important for preparing for the CBSE Board Exams. It works as a treasure trove. It helps to prepare for the exam precisely. One of key benefits of solving question papers from past board exams is their ability to help identify commonly asked questions. These papers are highly beneficial study resources for students preparing for the upcoming class 12th board examinations. Here we have compiled chapter-wise questions asked in all the sets of CBSE Class 12 Hindi Core question paper (2019).
Aroh Bhag 2 Book Lesson
Chapter 1 – आत्मपरिचय, एक गीत
प्रश्न 1 – निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल?
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
(क) चिड़ियों के परों में चंचलता कैसे भर जाती है?
उत्तर – अपने बच्चों की चिंता के कारण।
(ख) ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!’ की आवृत्ति से कविता में क्या प्रभाव उत्पन्न हो रहा है?
उत्तर – लक्ष्य की तरफ बढ़ते हुए, समय बीतने का पता नहीं चलता।
(ग) कवि के पद शिथिल और उर में विह्वलता क्यों है?
उत्तर – कवि के पद शिथिल और उर में विह्वलता इसलिए है क्योंकि उसके पास ऐसा कोई नहीं है जिसके लिए वह जल्दी-जल्दी अपनी मंजिल तक पहुँचें। यही निराशा का भाव उनके कदमों में शिथिलता भर देता है, और उनका हृदय पीड़ा से भर जाता है।
प्रश्न 2 – निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,
हों जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर
मैं वह खँडहर का भाग लिए फिरता हूँ।
(क) काव्यांश के अलंकार सौन्दर्य का उद्घाटन कीजिए।
उत्तर – काव्यांश में विरोधाभास अलंकार है।
(ख) काव्यांश का भाव सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – काव्यांश का भाव यह है कि कवि किसी अज्ञात प्रिय की याद अपने हृदय में छिपाए जी रहा है। उस प्रियतम के वियोग में व्याकुल कवि का हृदय जब रोता है, तो उसका वह रुदन कवि के गीतों के रूप में सबके सामने प्रकट हो जाता है। कवि के ये गीत सुनने में शीतल और मधुर होते हैं, किन्तु इनके भीतर उसकी विरह व्यथा भी अलग दहकती रहती है। कवि फिर भी अपने खंडहर जैसे जीवन से संतुष्ट है। वह अपने इस जीवन के सामने राजभवनों के सुखों को भी तुच्छ समझता है। वह प्रिय की स्मृतियों से जुड़े, भग्न-भवन जैसे जीवन को संतुष्ट भाव से जिए जा रहा है।
प्रश्न 3 – “आत्मपरिचय’ में कवि एक ओर ‘जग जीवन का भार लिए’ फिरने की बात करता है और दूसरी ओर ‘मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ’’ – इन दो विपरीत कथनों का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – कविता में एक ओर कवि जग-जीवन का भार लिए घूमने की बात करता है। जग-जीवन का भार लेने से कवि का आशय यह है कि वह अपने जीवन के सभी दायित्वों को निभा रहा है। वह भी एक आम व्यक्ति ही है, वह आम व्यक्ति से बिलकुल अलग नहीं है। जिस तरह एक आम व्यक्ति अपने सुख-दुख, लाभ-हानि आदि को झेलते हुए अपना जीवन यापन करता है कवि भी अपनी जीवन यात्रा इसी तरह पूरी कर रहा है। परन्तु कविता में दूसरी तरफ कवि कहता है कि वह कभी संसार की तरफ ध्यान नहीं देता, उसे संसार की कोई परवाह नहीं है। यहाँ पर कवि अपने जीवन के दायित्वों से मुँह मोड़ने की बात नहीं कर रहा है। बल्कि वह संसार की स्वार्थी व् चापलूसी भरी बातों पर ध्यान न देकर केवल प्रेम पर ध्यान देने की बात कर रहा है। इन दोनों पंक्तियों का आशय यह है कि कवि अपने आप को आम व्यक्तियों से अलग मानता है क्योंकि एक आम व्यक्ति सामाजिक बाधाओं से डरकर कुछ नहीं कर पाता। परन्तु कवि सांसारिक बाधाओं की परवाह न करते हुए अपने मन की करता है। इस प्रकार कह सकते हैं कि इन दोनों पंक्तियों के अपने-अपने अर्थ हैं और ये एक-दूसरे के विपरीत नहीं है।
प्रश्न 4 – दिन ढलने पर कवि के पद शिथिल होने और उर में विह्वलता का अनुभव होने के क्या कारण हैं? ‘एक गीत’ के आधार पर लिखिए।
उत्तर – कवि कहता है कि इस संसार में वह बिलकुल अकेला है। इस कारण कवि को लगता है कि उससे मिलने के लिए कोई भी परेशान नहीं होता, अर्थात कोई उसकी प्रतीक्षा नहीं करता, तो भला वह किसके लिए चंचल हो अर्थात किसके लिए भागकर घर जाए। कवि के मन में जैसे ही यह प्रश्न आता है तो उसे महसूस होता है कि उसके पैर ढीले हो गए हैं अर्थात कवि अपने आप को थका हुआ महसूस करता है। उसका हृदय इस बेचैनी से भर जाता है कि दिन जल्दी ढल रहा है और रात होने वाली है। कहने का तात्पर्य यह है कि रात में अकेलेपन और उसकी प्रिया की वियोग-पीड़ा कवि के मन को परेशान कर देगी। इस परेशानी से कवि का हृदय पीड़ा से बेचैन हो उठता है।
प्रश्न 5 – ‘आत्म परिचय’ कविता में कवि ने अपने परिचय में अनेक विशेषताएँ बताई हैं। उनमें से किन्हीं तीन को समझाइए ।
उत्तर – ‘आत्म परिचय’ कविता में कवि ने अपने परिचय में अनेक विशेषताएँ बताई हैं।
कवि ने अपने प्रेममय व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला है जिससे वे दुनिया को एक अलग नजर से देखने की दृष्टि रखते हैं।
कवि मनुष्यों को अपने जीवन के कर्तव्यों व् दायित्वों के प्रति सचेत करने की पूरी कोशिश करते हैं।
‘आत्म परिचय’ कविता में कवि ने अपने जीवन के बारे में बताया है।
प्रश्न 6 – ‘आत्म परिचय’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
अथवा
‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ गीत का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – इस कविता में कवि कहता है कि यद्यपि राहगीर थक जाता है, हार जाता है लेकिन वह फिर भी अपनी मंजिल की ओर बढ़ता ही जाता है। उसे इस बात का भय रहता है कि कहीं दिन न ढल जाए। इसी प्रकार चिड़ियों के माध्यम से भी कवि ने जीने की लालसा का अद्भुत वर्णन किया है। चिड़ियाँ जब अपने बच्चों के लिए तिनके, दाने आदि लेने बाहर जाती हैं तो दिन के ढलते ही वे भी अपने बच्चों की स्थिति के बारे में सोचती हैं। वे सोचती हैं कि उनके बच्चे उनसे यही अपेक्षा रखते हैं कि हमारे माता-पिता हमारे लिए कुछ खाने का सामान लाएँ। कवि पुनः आत्मपरिचय देता हुआ कहता है कि मेरा इस दुनिया में यद्यपि कोई नहीं फिर भी न जाने कौन मुझसे मिलने के लिए उत्सुक है। यही प्रश्न मुझे बार-बार उत्सुक कर देता है। मेरे पाँवों में शिथिलता और मन में व्याकुलता भर देता है। किंतु दिन के ढलते-ढलते ये शिथिलता और व्याकुलता धीरे-धीरे मिटने लगती है। वास्तव में इस कविता के माध्यम से हरिवंशराय बच्चन ने जीवन की क्षण भंगुरता और मानव के जीने की इच्छा का मनोवैज्ञानिक चित्रण किया है।
प्रश्न 7 – ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ गीत के माध्यम से वस्तुतः कवि क्या कहना चाहता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – अपने लक्ष्य की प्राप्ति की होड़ में समय जल्दी-जल्दी गुजरता हुआ प्रतीत होता है इसी को समझाते हुए इस कविता में कवि कहते हैं कि कहीं रास्ते में ही रात न हो जाए इस वजह से शाम होते देखकर यात्री तेजी से चलता है। लक्ष्य-प्राप्ति के लिए पथिक अपने थके हुए शरीर के बावजूद भी मन में भी उल्लास, तरंग और आशा भर कर अपने पैरों की गति कम नहीं होने देता। कवि प्रकृति के माध्यम से उदाहरण देता हुआ कहता है कि चिड़ियाँ भी दिन ढलने पर अत्यधिक क्रियाशील हो उठती हैं। वे जितनी जल्दी हो सके अपने घोंसलों में पहुँचना चाहती हैं क्योंकि उन्हें ध्यान आता है कि उनके बच्चे भोजन की आशा में घोंसलों से बाहर झाँक रहे होंगे। यह ध्यान आते ही वे अपने पंखों को तेजी से चलती है क्योंकि दिन जल्दी जल्दी ढल रहा है और वे जल्दी-जल्दी अपने घोंसलों में पहुँच जाना चाहती हैं।
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Chapter 2 – पतंग
प्रश्न 1 – निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
खरगोश की आँखों जैसा लाल सबेरा
शरद आया पुलों को पार करते हुए
अपनी नई चमकीली साईकिल तेज़ चलाते हुए
घंटी बजाते हुए ज़ोर-ज़ोर से
(क) काव्यांश में आए बिंबों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा – स्थिर दृश्य बिंब
पुलों को पार करते हुए – गतिशील दृश्य बिंब
अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज़ चलाते हुए – गतिशील दृश्य बिंब
घंटी बजाते हुए जोर – जोर से – श्रव्य बिंब
(ख) प्रकृति में आए परिवर्तनों की अभिव्यक्ति कैसे हुई है?
उत्तर – शरद आया पुलों को पार करते हुए – पंक्ति से प्रकृति में आए परिवर्तनों की अभिव्यक्ति होती है क्योंकि शरद ऋतु को कई ऋतुओं को पार करके आया हुआ बताया गया है।
प्रश्न 2 – “पतंग” कविता में बच्चों द्वारा ‘दिशाओं को मृदंग की तरह बजाने से कवि का क्या आशय है?
उत्तर – “पतंग” कविता में बच्चों द्वारा ‘दिशाओं को मृदंग की तरह बजाने का तात्पर्य यह है कि जब बच्चे ऊँची पतंगें उड़ाते हैं तो वे हर दिशा में उड़ती चली जाती है और बच्चे उन पतंगों के पीछे चीख़ते-चिल्लाते हुए दौड़े चले जाते हैं। तब ऐसा प्रतीत होता है मानो बच्चों की किलकारियों से दिशाएँ मृदंग बजा रही हैं।
प्रश्न 3 – ‘पतंग’ कविता के आधार पर सबसे तेज बौछारें चली जाने के बाद शरद के सौंदर्य का चित्रण अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर – भादों के महीने में तेज वर्षा होती है, बौछारें चलती हैं। बौछारों के समाप्त होने के बाद ही भादों का महीना समाप्त हो जाता है। इसके बाद शरद ऋतु शुरू हो जाती है। इसके आते ही प्रकृति में कई तरह के परिवर्तन आते हैं। प्रकृति में चारों तरफ हरियाली हो जाती है। सूर्य में भी एक नयापन दिखाई देता है। आसमान नीला व साफ़ लगता है। हवा तेज़ चलने लगी है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे सूर्य की प्रातःकालीन लालिमा भी मानो बढ़ जाती है।
प्रश्न 4 – ‘पतंग’ कविता के प्रकृति वर्णन में कवि द्वारा प्रस्तुत बिंबों का सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – ‘पतंग’ कविता के प्रकृति वर्णन में कवि द्वारा निम्नलिखित बिंबों को प्रस्तुत किया गया है जैसे – शरद को बच्चे के रूप में चित्रित किया गया है जो अपनी नई साइकिल की घंटी जोर — जोर से बजाते हुए अपने चमकीले इशारों से बच्चों को बुलाने आ रहा है। पृथ्वी को घूमती हुई बताया गया है, जब बच्चे बेसुध दौड़ते हैं इसमें दृश्य बिंब है। घंटी बजाते हुए जोर — जोर से, दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए में श्रव्य बिंब है। तेज बौछारें, पुलों को पार करते हुए, अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज चलाते हुए, चमकीले इशारों से बुलाते हुए, पतंग ऊपर उठ सके आदि में गतिशील दृश्य बिंब है। सवेरा हुआ , खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा ,आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए – स्पर्श दृश्य बिंब है।
प्रश्न 5 – ‘पतंग’ के आधार पर शरद ऋतु के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन कीजिए। कवि ने इसके लिए किन बिंबों को चुना है?
उत्तर – शरद ऋतु के आते ही आसमान एकदम साफ, स्वच्छ व निर्मल हो जाता हैं। शरद ऋतु में सुबह के समय आकाश में छाई हुई लालिमा कवि को खरगोश की आँखों की भांति लाल दिखाई दे रही हैं। कवि शरद ऋतु का मानवीकरण करते हुए उसे बालक की संज्ञा देते हुए कहता है कि बालक शरद अपने चमकीले इशारों से बच्चों के समूह को पतंग उड़ाने के लिए बुलाता है। उसने आकाश को मुलायम बना दिया हैं ताकि बच्चों की पतंग आसमान में आसानी से बहुत ऊंची उड़ सके।
प्रश्न 6 – ‘पतंग’ कविता के आधार पर भादो बीत जाने के बाद प्रकृति में आए परिवर्तनों का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर – इस कविता में कवि ने प्राकृतिक वातावरण का अत्यंत सुंदर वर्णन किया है। सावन महीने में तेज बौछारों के तथा भादों माह के समाप्त होने पर शरद माह का समय आता है। इस माह में प्रकृति में निम्नलिखित परिवर्तन दिखाई देते हैं-
शरद ऋतु के आते ही आसमान एकदम साफ, स्वच्छ व निर्मल हो जाता है।
शरद ऋतु में सुबह के समय आकाश में छाई हुई लालिमा खरगोश की आँखों की भांति लाल दिखाई देती हैं।
शरद ऋतु में मौसम एकदम सुहाना हो जाता है जिसे देखकर बच्चों के समूह पतंग उड़ाने के लिए अपने घरों से बाहर निकल आते हैं।
शरद ऋतु में धूप चमकीली होती है।
फूलों पर तितलियाँ मँडराती दिखाई देती हैं।
प्रश्न 7 – आप कैसे कह सकते हैं कि कवि ने ‘पतंग’ कविता में बाल सुलभ साहस एवं आकांक्षाओं का सुंदर चित्रण किया है? अपने शब्दों में लिखिए |
उत्तर – इस कविता में कवि ने बालसुलभ इच्छाओं व उमंगों का सुंदर वर्णन किया है। पतंग बच्चों की उमंग व उल्लास का वह रंगबिरंगा सपना है जिसे वे आकाश की ऊँचाइयों तक ले जाना चाहते हैं। शरद ऋतु में जब बारिश के बाद मौसम साफ़ हो जाता है तब चमकीली धूप बच्चों को अपनी ओर आकर्षित करती है। वे इस अच्छे मौसम में पतंगें उड़ाने से अपने आप को नहीं रोक पाते। आसमान में उड़ती हुई पतंगों को उनका बालमन छूना चाहता है। पतंग उड़ाते हुए वे भय पर विजय पाकर गिर-गिर कर भी सँभलते रहते हैं क्योंकि उनका लचीला शरीर किसी पेड़ की लचीली डाल की तरह झूल कर वापिस अपनी जगह आ जाता है। उनकी कल्पनाएँ पतंगों के सहारे आसमान को पार करना चाहती हैं। प्रकृति भी उनका सहयोग करती है, और तितलियाँ उनके सपनों को और अधिक रंगीन बना देती हैं।
प्रश्न 8 – आशय समझाइए:
‘पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं।
अपने रंध्रों के सहारे’
उत्तर – पतंग बच्चों की कोमल भावनाओं को दर्शाते हैं। जब पतंग उड़ती है तो बच्चों का मन भी उड़ता है। पतंग उड़ाते समय बच्चे अत्यधिक उत्साहित हो जाते हैं। पतंग की तरह उनका बालमन भी हिलोरें लेता है। वह भी आसमान की ऊँचाइयों को छूना चाहता है। पतंग उड़ाते समय बच्चे रास्ते की कठिनाइयों को भी ध्यान में नहीं रखते।
प्रश्न 9 – भाव स्पष्ट कीजिए-“पतंगों के साथ वे भी उड़ रहे हैं।”
उत्तर – “पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं” कथन का आशय यह है कि पतंग उड़ाते बच्चों को देखकर ऐसा लगता है जैसे पतंग के साथ-साथ वो भी खुद भी उड़ रहे हो। कहने का अभिप्राय यह है कि बच्चे अपनी कल्पनाओं व् भावनाओं को पतंग के सहारे ऊंचाइयों तक पहुंचा देते हैं। पतंग बच्चों की कोमल भावनाओं को दर्शाता है। पतंग उड़ाते समय बच्चे अत्यधिक उत्साहित होते हैं। वह भी पतंग की भांति आसमान की ऊँचाइयों को छूना चाहतें हैं। इसी कारण जब बच्चे पतंग उड़ाते हैं तो स्वयं वे भी अपने आपको पतंग के ही समान समझते हैं।
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Chapter 3 – कविता के बहाने, बात सीधी थी पर
प्रश्न 1 – निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
आख़िरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था
ज़ोर-ज़बरदस्ती से
बात की चूड़ी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी!
हारकर मैंने उसे कील की तरह
उसी जगह ठोंक दिया!
ऊपर से ठीक-ठाक
पर अन्दर से
न तो उसमें कसाव था
न ताक़त!
बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह
मुझसे खेल रही थी,
मुझे पसीना पोंछते देखकर पूछा
“क्या तुमने भाषा को
सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा?”
(क) भाषा को सहूलियत से बरतने में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर – “भाषा को सहूलियत से बरतने” का अर्थ है कि अच्छी बात को कहने के लिए और अच्छी कविता को बनाने के लिए सही भाषा व सही शब्दों का, सही बात अथवा भाव से जुड़ना आवश्यक है। तभी उसे समझने में आसानी होगी।
(ख) ‘बात की चूड़ी मर गई’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर – बात को सही तरीके से कैसे कहा जाय या कैसे लिखा जाए, ताकि वह लोगों की समझ में आसानी से आ सके। इस समस्या को धैर्यपूर्वक समझे बिना कवि कविता के शब्दों को तोड़-मरोड़ कर भाषा को और अधिक जटिल बनाता चला गया। जटिल भाषा का प्रयोग करने से दिखने व् सुनने में तो कवि की कविता सुंदर दिखने लगी परन्तु उसके भाव किसी को भी समझ में नहीं आ रहे थे।
(ग) भाषा प्रयोग के सन्दर्भ में इन पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए:
‘अन्दर से
न तो उसमें कसाव था
न ताक़त!’
उत्तर – ‘अन्दर से न तो उसमें कसाव था न ताक़त!’ इन पंक्तियों का आशय यह है कि अत्यधिक प्रभावशाली बनाने के लिए कवि ने अधिक जटिल व् कठिन शब्दों का प्रयोग किया था। जिस वजह से कवि की कविता ऐसी स्थिति में थी कि वह बाहर से देखने पर तो कविता जैसी लगती थी, परंतु उसमें भावों की गहराई नहीं थी, उसके शब्दों में ताकत नहीं थी। कहने का अर्थ है कि कविता प्रभावशाली नहीं थी।
प्रश्न 2 – निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह
मुझसे खेल रही थी,
मुझे पसीना पोंछते देखकर पूछा
“क्या तुमने भाषा को
सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा?”
(क) काव्यांश का भाव-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – उपरोक्त पंक्तियों का भाव यह है कि भाव के अनुसार भाषा को चुनना व् प्रयोग करना आवश्यक है। क्योंकि भाषा का वास्तविक उद्देश्य भावों की स्पष्ट अभिव्यक्ति करना है। भाषा को सहूलियत से बरतने” का अर्थ है कि अच्छी बात को कहने के लिए और अच्छी कविता को बनाने के लिए सही भाषा व सही शब्दों का, सही बात अथवा भाव से जुड़ना आवश्यक है। तभी उसे समझने में आसानी होगी।
(ख) काव्यांश के शिल्प-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – कवि ने कविता में अलंकारों का सुन्दर प्रयोग किया है। पसीना पोछना एक मुहावरा है जो परेशानी के अर्थ को सूचित करता है। कवि ने काव्यांश में ‘बात’ का मानवीकरण किया है। काव्यांश के माध्यम से कवि भाषा सही शब्दों का चयन करने का सन्देश दे रहे हैं।
प्रश्न 3 – निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
कविता एक खिलना है, फूलों के बहाने
कविता का खिलना भला फूल क्या जानें!
बाहर भीतर
इस घर उस घर
बिना मुरझाए महकने के माने फूल क्या जानें?
कविता एक खेल है बच्चों के बहाने
बाहर भीतर
यह घर, वह घर
सब घर एक कर देने के माने
बच्चा ही जाने।
(क) भाव स्पष्ट कीजिए
सब घर एक कर देने के माने
बच्चा ही जाने।
उत्तर – ‘सब घर एक कर देने के माने’ का अर्थ है सभी प्रकार के भेदभाव दूर करके एकता स्थापित करना। बच्चों के खेल में जाति, गर्म, रंग आदि का कोई भेद-भाव नहीं होता। वे अपने खेल से सच्ची एकता पैदा करते हैं। कविता भी समस्त भेदभाव भुलाकर निष्पक्ष होकर मानवता के दुख-दर्दो को व्यथित करती है।
(ख) कविता को बच्चों के समानांतर क्यों रखा गया है?
उत्तर – बच्चों के खेल में कौतुक की कोई सीमा नहीं रहती है। कविता में भी स्वच्छन्द शब्दावली रहती है। बच्चे आनन्द-प्राप्ति के लिए खेलते हैं, वे खेल में अपने-पराये का भेदभाव भूल जाते हैं तथा खेल-खेल में उनका संसार विशाल हो जाता है। कवि भी कविता-रचना करते समय सांसारिक सीमा को त्यागकर आनन्द भरता है तथा कविता के बहाने सबको खुशी देना चाहता है। इसी कारण कविता और बच्चों को समानान्तर रखा गया है।
(ग) कविता के खिलने और फूलों के खिलने में क्या साम्य-वैषम्य है?
उत्तर – कविता फूल की तरह विकसित होती है। जिस तरह फूल अपनी सुंदरता व सुगंध से हर तरफ प्रसन्नता फैलाता है, उसी तरह कविता भी मन के भावों से विकसित होकर लम्बे समय तक मनुष्य को आनंद देती रहती है। फर्क सिर्फ इतना हैं कि फूल के खिलने की भी एक निश्चित सीमा होती हैं। लेकिन कविता बिना मुरझाये हमेशा खिलती रहती है।
प्रश्न 4 – ‘कविता के बहाने’ कवि ने किन-किन से कविता का संबंध जोड़ा है और कैसे?
अथवा
‘कविता के बहाने’ कवि ने किन-किन वस्तुओं को जोड़ा है और कैसे? सोदाहरण लिखिए।
उत्तर – ‘कविता के बहाने’ कविता में कवि ने “उड़ने’ और “खिलने” को जोड़ा है। “उड़ने’ और “खिलने” का कविता से गहरा सबंध हैं। उदाहरण के लिए – चिड़िया एक स्थान से दूसरे स्थान तक की दूरी को उड़कर पार करती है, परंतु कविता कल्पना के पंख लगाकर सीमा और समय तक को पार कर जाती है। फर्क सिर्फ इतना हैं कि चिड़िया की उड़ान सीमित होती है जबकि कविता की उड़ान विस्तृत होती है। इसी तरह कविता फूल की तरह विकसित होती है। जिस तरह फूल अपनी सुंदरता व सुगंध से हर तरफ प्रसन्नता फैलाता है, उसी तरह कविता भी मन के भावों से विकसित होकर लम्बे समय तक मनुष्य को आनंद देती रहती है। फर्क सिर्फ इतना हैं कि फूल के खिलने की भी एक निश्चित सीमा होती हैं। लेकिन कविता बिना मुरझाये हमेशा खिलती रहती है।
प्रश्न 5 – ‘भाषा को सहूलियत से बरतने’ से कुँवर नारायण का क्या तात्पर्य है?
उत्तर – “भाषा को सहूलियत से बरतने” से कुँवर नारायण का तात्पर्य यह है कि अच्छी बात को कहने के लिए और अच्छी कविता को बनाने के लिए सही भाषा व सही शब्दों का, सही बात अथवा भाव से जुड़ना आवश्यक है। तभी उसे समझने में आसानी होगी।
प्रश्न 6 – चिड़िया, फूल और बच्चों के बहाने कविता की किन विशेषताओं को कुँवर नारायण ने उजागर किया है?
उत्तर – इस कविता में चिड़िया की उड़ान, फूल का खिलना तथा बच्चों के खेल आदि बहानों के माध्यम से कविता की विशेषताएँ बताई गई हैं। चिड़िया की उड़ान सीमित होती है लेकिन कवि की कल्पना की उड़ान की कोई सीमा नहीं होती। फूल खिलता है तो कुछ दूर तक और कुछ समय तक ही सुगन्ध फैलाता है लेकिन कविता का आनन्द सभी स्थानों और सभी युगों में व्याप्त हो जाता है। बच्चों का खेल सभी प्रकार के भेदभाव से मुक्त तथा सभी को आनन्दित करने वाला होता है। इसी प्रकार कविता भी बिना किसी भेदभाव के सभी को आनन्दित करती है।
प्रश्न 7 – ‘बात सीधी थी पर’ कविता के आधार पर लिखिए कि भाषा के चक्कर में कभी-कभी सीधी बात भी टेढ़ी कैसे हो जाती है।
अथवा
बात और भाषा का परस्पर गहरा संबंध होता है किंतु कभी-कभी भाषा के चक्कर में सीधी बात भी टेढ़ी कैसे हो जाती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – बात और भाषा परस्पर जुड़े होते हैं, परंतु कभी-कभी भाषा के चक्कर में सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है। इसका कारण जटिल शब्दों का प्रयोग हो सकता है। कवि व् लेखक अपनी भाषा को कठिन बना देते है तथा आडंबरपूर्ण या चमत्कारपूर्ण शब्दों से अपनी बात को कहने में स्वयं को श्रेष्ठ समझता है। इससे वह अपनी बात के भाव को कहने में असफल हो जाते है। असल में भाषा कविता के भावों को प्रकट करने का एक माध्यम है। लेकिन जब कवि द्वारा कविता में प्रभावशाली व बनावटी भाषा का प्रयोग किया जाता हैं तो कविता बाहर से दिखने में तो बहुत सुंदर लगती हैं मगर उसके भाव स्पष्ट न होने के कारण वह लोगों की समझ में नहीं आ पाती हैं।
प्रश्न 8 – ‘बात सीधी थी पर’ कविता में ‘बात को सहूलियत से बरतने’ से कवि का क्या आशय है?
अथवा
भाषा को सहूलियत से बरतने से कवि कुँवर नारायण का क्या आशय है? शिथिल, अस्पष्ट भाषा के क्या परिणाम हो सकते हैं?
उत्तर – ‘बात सीधी थी पर’ कविता में किसी बात को कहने के लिए भाषा की सहजता व सरलता पर जोर दिया गया हैं ताकि कविता या बात के भाव व उद्देश्य श्रोता व् पाठक तक आसानी से पहुंच सके। हर बात को कहने के लिए कुछ खास शब्द नियत होते हैं जिनका सही प्रयोग करने पर बात को आसानी से किसी को भी समझाया जा सकता है। जैसे हर पेंच के लिए एक निश्चित खाँचा होता है। यदि उसे गलत खाँचे में जबरदस्ती डाला जाए तो वह टूट जाता है। इसलिए अच्छी बात या अच्छी कविता का बनना सही बात का सही शब्द से जुड़ना होता है और जब ऐसा होता है तो किसी दबाव या अतिरिक्त मेहनत की जरूरत नहीं होती वह सहूलियत के साथ हो जाता है।
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Chapter 4 – कैमरे में बंद अपाहिज
प्रश्न 1 – “कैमरे में बंद अपाहिज करुणा के मुखौटे में छिपी क्रूरता की कविता है’? इस कथन पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
अथवा
’कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता में कवि ने करुणा के माध्यम से क्रूरता का चित्रण किया है’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – कवि ने इस कविता के माध्यम से मिडिया का करुणा के मुखोटे में छिपी क्रूरता को दिखाने का प्रयास किया है। मिडिया किस तरह व्यावसायिक लाभ के लिए कमजोर लोगों के साथ अमानवीय व्यवहार करती हैं, यह कविता में एक अपाहिज व्यक्ति के साक्षात्कार के जरिए दिखाया गया है। कार्यक्रम के संचालक द्वारा झूठी सहानुभूति दिखाकर अपाहिज व्यक्ति से तरह-तरह के बहुत ही बेतुके प्रश्न पूछ कर उस अपाहिज व्यक्ति को रुलाने का प्रयास किया जाता है और उसके अपाहिजपन का मजाक उड़ाया जाता है। उसे रोने पर मजबूर करने की कोशिश करना वह भी सिर्फ इसलिए ताकि उसके दुख-दर्द व तकलीफ को दिखाकर सहानुभूति प्राप्त कर अधिक से अधिक पैसा कमाया जा सके, यह क्रूरता की चरम सीमा है।
प्रश्न 2 – ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता के द्वारा पत्रकारिता के अमानवीय पहलू पर चोट की गई है।” तर्क सहित टिप्पणी कीजिए।
उत्तर – ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता के द्वारा पत्रकारिता के अमानवीय पहलू पर चोट की गई है।” शारीरिक चुनौती झेल रहे व्यक्ति की शब्दहीन पीड़ा को मीडियाकर्मी एक कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए और उससे लाभ कमाने के लिए व् अपने व्यापार का माध्यम बनाने से बिलकुल नहीं कतरा रहे हैं। उन्हें सिर्फ पैसे कमाने से मतलब होता है। दूरदर्शन के कार्यक्रम का संचालक अपने आप को बहुत सक्षम और शक्तिशाली समझता है। इसीलिए दूरदर्शन के स्टूडियो के एक बंद कमरे में उस साक्षात्कार में उस अपाहिज व्यक्ति से बहुत ही बेतुके प्रश्न पूछे जाते हैं । वह शारीरिक चुनौती झेल रहे व्यक्ति को सभी के समक्ष रुलाकर अपनी टी. र. पी बढ़ाना चाहता था परन्तु वह अपने उद्देश्य में सफल नहीं होता है क्योंकि मीडियाकर्मी उस शारीरिक चुनौती झेल रहे व्यक्ति को कैमरे पर रुलाने में सफल नहीं हो सका।
प्रश्न 3 – “कैमरे में बंद अपाहिज” कविता समाज की किस विडंबना को प्रस्तुत करती है?
उत्तर – ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता समाज की छिपी क्रूरता की कविता है। इस बात का अंदाजा आप यहीं से लगा सकते हैं कि किस तरह एक अपाहिज व्यक्ति से बेतुके प्रश्न पूछ-पूछकर उसे रुलाने की पूरी कोशिश की जाती है ताकि कार्यक्रम की लोकप्रियता व् व्यवसाय में लाभ हो सके। कहने का अभिप्राय यह है कि एक अपाहिज की करुणा को पैसे के लिए टी.वी. पर दर्शाना असल में अमानवीय और क्रूरता की चरम सीमा है। दूरदर्शन के संचालक जिस तरीके से अपाहिज लोगों से बार-बार बेतुके प्रश्न करके उनके दुख का मजाक उड़ाते हैं। यह कविता इन्हीं सब बातों को दर्शाती है। इस कविता के माध्यम से कवि ने यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि एक कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए और उससे लाभ कमाने के लिए मीडिया किसी भी हद तक जा सकती हैं। मीडिया वाले दूसरों के दुख को अपने व्यापार का माध्यम बनाने से बिलकुल नहीं कतराते, उन्हें सिर्फ पैसे कमाने से मतलब होता है और इसी बात पर व्यंग्य कसते हुए कवि ने इस कविता को लिखा है।
प्रश्न 4 – ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ के आधार पर पत्रकारों की हृदयहीनता और निष्ठुरता पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर – एक कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए और उससे लाभ कमाने के लिए मीडिया किसी भी हद तक जा सकती हैं। मीडिया वाले दूसरों के दुख को अपने व्यापार का माध्यम बनाने से बिलकुल नहीं कतराते, उन्हें सिर्फ पैसे कमाने से मतलब होता है। कार्यक्रम का संचालक को उस अपाहिज व्यक्ति के दुःख व् दर्द से कोई मतलब नहीं है वह केवल अपना फायदा देख रहा है। उस अपंग व्यक्ति के चेहरे व आँखों में पीड़ा को साफ़-साफ़ देखने के बाबजूद भी उससे और बेतुके सवाल पूछे जाते हैं। मीडिया के अधिकारी इतने क्रूर होते हैं कि वह जानबूझकर अपाहिज लोगों से बेतुके सवाल पूछते हैं ताकि वे सवालों का उत्तर ही ना दे पाए। जब वह अपाहिज व्यक्ति नहीं रोता हैं तो संचालक कैमरा मैन से कैमरा बंद करने को कहता है क्योंकि वह उस अपाहिज व्यक्ति को रुलाने में नाकामयाब रहा और कैमरा बंद होने से पहले वह यह घोषणा करता हैं कि आप सभी दर्शक समाज के जिस उद्देश्य के लिए यह कार्यक्रम देख रहे थे वह कार्यक्रम अब समाप्त हो चुका है। लेकिन संचालक को ऐसा लगता हैं कि थोड़ी सी कसर रह गई थी वरना उसने उस व्यक्ति को लगभग रुला ही दिया था। कहने का अभिप्राय यह है कि मीडिया अपना टीआरपी बढ़ाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।
प्रश्न 5 – ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ के घटनाक्रम के बाद किसी अपाहिज को कैसा लगा होगा? उसकी भावनाओं को उसी की ओर से व्यक्त कीजिए।
उत्तर – कार्यक्रम के संचालक अपाहिज व्यक्ति से बहुत ही बेतुके प्रश्न पूछता है। क्योंकि अपने कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए कार्यक्रम के संचालक चाहते है कि वह अपाहिज व्यक्ति अपना दुःख – दर्द दूरदर्शन के कैमरे के सामने रो कर व्यक्त करें। ताकि वह उसके दुःख-दर्द को अपने टेलीविजन के पर्दे पर दिखाकर लोगों की सहानुभूति प्राप्त कर अधिक से अधिक धन कमा सके। अपाहिज व्यक्ति से बहुत ही बेतुके प्रश्न पूछे जाते हैं जैसे “क्या वह अपाहिज हैं?” “यदि हाँ तो वह क्यों अपाहिज हैं?” “उसका अपाहिजपन तो उसे दु:ख देता होगा?”। इन बेतुके सवालों का वह व्यक्ति कोई जवाब नहीं दे पता क्योंकि उसका मन पहले से ही इन सबसे दुखी था और इन सवालों को सुनकर वह और अधिक दुखी हो जाता है। वह न तो अपना दुःख छुपा पाता है और न ही व्यक्त कर पाता है।
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Chapter 5 – उषा
प्रश्न 1 – निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
बहुत काली सिल ज़रा से लाल केसर से
कि जैसे घुल गई हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने
(क) काव्यांश की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – पूरे काव्यांश में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
(ख) काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – काव्यांश का भाव यह है कि सूर्य क्षितिज से ऊपर उठता है तो हलकी लालिमा की रोशनी फैल जाती है। ऐसा लगता है कि काली रंग की सिल को लाल केसर से धो दिया गया है। अँधेरा काली सिल तथा सूरज की लाली केसर के समान लगती है। इस समय आकाश ऐसा लगता है मानो काली स्लेट पर किसी ने लाल खड़िया मिट्टी मल दिया हो। अँधेरा काली स्लेट के समान व सुबह की लालिमा लाल खड़िया चाक के समान लगती है।
प्रश्न 2 – निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से
कि जैसे धुल गई हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने
(क) काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – काव्यांश का भाव यह है कि सूर्य क्षितिज से ऊपर उठता है तो हलकी लालिमा की रोशनी फैल जाती है। ऐसा लगता है कि काली रंग की सिल को लाल केसर से धो दिया गया है। अँधेरा काली सिल तथा सूरज की लाली केसर के समान लगती है। इस समय आकाश ऐसा लगता है मानो काली स्लेट पर किसी ने लाल खड़िया मिट्टी मल दिया हो। अँधेरा काली स्लेट के समान व सुबह की लालिमा लाल खड़िया चाक के समान लगती है।
(ख) काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य लिखिए।
उत्तर – उक्त पंक्तियों में कवि ने प्रकृति के मनोहारी दृश्य का वर्णन किया है। इन पंक्तियों में उत्प्रेक्षा अलंकार है, क्योंकि काली सिल को अंधेरे का प्रतीक मान लिया गया है, और लाल केसर सूर्य के प्रकाश को माना गया है। पंक्तियों में कवि ने मुक्तक छंद का प्रयोग किया है। कवि ने कविता में नए बिंबों और प्रतिमानों का प्रयोग कर कविता को प्रभावशाली बना दिया है। कविता की भाषा सरल, सहज और खड़ी बोली में युक्त है, जिसकी सुंदर अभिव्यक्ति हुई है।
प्रश्न 3 – निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने
नील जल में या किसी की
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो।
(क) काव्यांश का भाव-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – काव्यांश का भाव यह है कि कवि ने अँधेरे को काली स्लेट के समान व सुबह की लालिमा को लाल खड़िया मिट्टी के समान बताया है। धीमी हवा व नमी के कारण सूर्य का प्रतिबिंब नील आकाश में हिलता-सा प्रतीत होता है। यहाँ पर कवि ने नीले आकाश की तुलना नीले जल से और सूरज की किरणों की तुलना युवती की सुंदर गोरी काया अर्थात शरीर से की है।
(ख) काव्यांश के शिल्प-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – इस पंक्ति द्वारा कवि ने भोर के नीले-काले आकाश में छाई हुई उषा की लालिमा के दृश्य को एक बिलकुल नए विम्ब द्वारा हमारे मने पर साकार किया है। आकाश काला है और स्लेट भी काली है। आकाश में उषा की लालिमा छाई हुई है और काली स्लेट पर लाल खड़िया या चाक मल दिया गया है। इस प्रकार कवि ने भोर के आकाश के लिए इस नए उपमान की सृष्टि की है। उपमेय और उपमान की समानता से हमें कवि द्वारा देखे गए भोर के दृश्य की प्रत्यक्ष जैसी अनुभूति होती है।
प्रश्न 4 – उषा कविता के आधार पर गाँव की सुबह का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर – इस कविता में कवि ने सूर्योदय से ठीक पहले आकाश में होने वाले परिवर्तनों को सुंदर शब्दों में उकेरा है। कवि को सूर्योदय से पहले का आकाश किसी नील शंख के सामान पवित्र व सुंदर दिखाई दे रहा है। धीरे-धीरे सुबह का आसमान कवि को ऐसा लगने लगता है जैसे किसी ने राख से चौका लीपा हो अर्थात आसमान धीरे-धीरे गहरे नीले रंग से राख के रंग यानी गहरा स्लेटी होने लगता है। प्रात:काल में ओस की नमी होती है। गीले चौके में भी नमी होती है। अत: नीले नभ को गीला बताया गया है। साथ ही प्रातः कालीन वातावरण की नमी ने सुबह के वातावरण को किसी शंख की भांति और भी सुंदर, निर्मल व पवित्र बना दिया है। धीरे-धीरे जैसे-जैसे सूर्योदय होने लगता है तो हलकी लालिमा आकाश में फैल जाती है। उस दृश्य को देखकर ऐसा लगता है जैसे काली रंग की सिल अर्थात मसाला पीसने के काले पत्थर को लाल केसर से धो दिया गया है। सुबह के समय आकाश ऐसा लगता है मानो किसी बच्चे की काली स्लेट पर किसी ने लाल खड़िया मिट्टी (चिह्न बनाने के काम आने वाली मिट्टी) मल दी हो। सूरज की किरणें सूर्योदय के समय ऐसे प्रतीत हो रही है जैसे किसी युवती की सुंदर गोरी काया अर्थात शरीर साफ़ नीले जल में झिलमिला रहा हो। कुछ समय बाद जब सूर्योदय हो जाता है अर्थात जब सूर्य पूरी तरह से आकाश में निकल आता है तब उषा यानी ब्रह्म वेला का हर पल बदलता सौंदर्य एकदम समाप्त हो जाता है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे प्रात: कालीन आकाश का जादू भी धीरे-धीरे खत्म हो रहा है।
प्रश्न 5 – यह क्यों कहा जाता है कि ‘उषा’ कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्दचित्र है?
अथवा
‘उषा’ कविता में कवि ने सुबह का वर्णन किन उपमानों से, कैसे किया है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – कवि को प्रभात का समय नीले शंख की तरह सुंदर व् पवित्र लगता है। उसे भोर का समय राख से लीपे हुए गीले चौके के समान प्रतीत होता है। धीरे-धीरे बढ़ता समय लाल केसर से धोए हुए सिल-सा लगता है। किसी बच्चे के स्लेट पर लाल खड़िया मलने जैसा भी प्रतीत होता है। ये सभी उपमान गाँव के वातावरण व् गाँव से संबंधित हैं। साथ ही साथ नील आकाश में जब सूर्य पूरी तरह उदय होता है तो ऐसा लगता है जैसे नीले जल में किसी युवती का गोरा शरीर झिलमिला रहा है। सूर्य के उदय होते ही उषा का पल-पल बिखरता जादू भी समाप्त हो जाता है। इन उपमानों को देखकर यह कहा जा सकता है कि उषा कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्द चित्र है।
प्रश्न 7 – ‘उषा’ कविता में भोर के नभ की तुलना किससे की गई है और क्यों?
उत्तर – ‘उषा’ कविता में ‘भोर के नभ’ की तुलना ‘राख से लीपे गए गीले चौके’ से की गई है। ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि भोर के समय आकाश नम और धुंधला होता है और उसका रंग राख से लिपे चूल्हे जैसा मटमैला होता है। धीरे-धीरे सुबह का आसमान कवि को ऐसा लगने लगता है जैसे किसी ने राख से चौका लीपा हो अर्थात आसमान धीरे-धीरे गहरे नीले रंग से राख के रंग यानी गहरा स्लेटी होने लगता है। प्रात:काल में ओस की नमी होती है। गीले चौके में भी नमी होती है। अत: नीले नभ को गीला बताया गया है।
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Chapter 7 – कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप
प्रश्न 1 – निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर।
आइ गयउ हनुमान जिमि करुना महँ बीर रस।।
हरषि राम भेटेउ हनुमाना। अति कृतग्य प्रभु परम सुजाना।।
तुरत बैद तब कीन्हि उपाई। उठि बैठे लछिमन हरषाई।।
हृदयँ लाइ प्रभु भेंटेउ भ्राता। हरषे सकल भालु कपि ब्राता।।
कपि पुनि बैद तहाँ पहुँचावा। जेहि बिधि तबहिं ताहि लइ आवा।।
(क) हनुमान के आगमन को करुण रस के बीच वीर रस की उत्पत्ति क्यों कहा गया है?
उत्तर – हनुमान के आगमन को करुण रस के बीच वीर रस की उत्पत्ति इसलिए कहा गया है क्योंकि प्रभु श्रीराम के व्याकुल व् तर्कहीन वचन-प्रवाह को सुनकर वानर व भालू का समूह भी बैचेन व व्याकुल हो गया था। उसी समय हनुमान संजीवनी बूटी लेकर आ गये। विशाल पहाड़ को उखाड़कर लाने तथा साहसी कार्य करने से हनुमान को देखते ही सभी में आशा-उत्साह का संचार हो गया। अतः अचानक इस परिवर्तन से करुण रस के बीच वीर रस का संचार हो गया है।
(ख) ‘अति कृतज्ञ’ कौन हुआ और क्यों?
उत्तर – ‘अति कृतज्ञ’ प्रभु राम हो गए क्योंकि हनुमान जी लक्ष्मण जी के प्राण बचाने हेतु संजीवनी बूटी का पूरा पहाड़ ही उठा लाए थे।
(ग) इन पंक्तियों में वर्णित भाइयों के प्रेम-भाव की आज के जीवन में प्रासंगिकता पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर – इन पंक्तियों में वर्णित भाइयों के प्रेम-भाव की आज के जीवन में अत्यधिक प्रासंगिकता है। क्योंकि आज के जीवन भाई ही भाई का दुश्मन बनता जा रहा है। स्वार्थ में अंधे हो कर भाई ही भाई के खून का प्यासा बनता जा रहा है।
प्रश्न 2 – निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
तुलसी सरनाम गुलाम है राम को, जाको रुचै सो कहै कछु ओऊ।
मांगि के खैबो, मसीत को सोइबो, लेबोको एकु न दैबको दोऊ।
(क) काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – काव्यांश का भाव यह है कि तुलसीदास प्रभु राम के बहुत बड़े भक्त हैं। उन्हें संसार से कोई मतलब नहीं है कि कोई उनके बारे में क्या बात करता है। उन्हें न तो किसी से माँग कर खाने में शर्म है और न ही मस्जिद में सोने से। अर्थात तुलसीदास पूरी तरह से प्रभु भक्ति में लीन हैं।
(ख) भाषा प्रयोग की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर – काव्यांश में ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया है। कविता में प्रासाद गुण का प्रयोग किया गया है। काव्यांश में शांत रस उद्घाटित हो रहा है, और काव्यांश में दो जगह अनुप्रास अंलकार का प्रयोग किया गया है।
प्रश्न 3 – निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
खेती न किसान को, भिखारी को न भीख, बलि,
बनिक को बनिज न चाकर को चाकरी।
जीविका विहीन लोग सीद्यमान सोच बस,
कहैं एक एकन सों कहाँ जाई का करी?
बेदहूँ पुरान कही, लोकहूँ बिलोकियत,
साँकरे सबै पै, राम! रावरें कृपा करी
दारिद दशानन दबाई दुनी, दीनबंधु।
दुरित दहन देखि तुलसी हहा करी॥
(क) तुलसीदास ने अपने समय की किन-किन समस्याओं को उठाया है?
उत्तर – तुलसीदास अपने युग की दुर्दशा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि समय पर बारिश न होने के कारण अकाल पड़ा हुआ है। जिस कारण किसान खेती नहीं कर पा रहा है, स्थिति इतनी दयनीय है कि भिखारी को भीख नहीं मिल रही है, ब्राह्मण को दक्षिणा अथवा भोग नहीं मिल पा रहा है, व्यापारी अपना व्यापार करने में असमर्थ है क्योंकि उसे साधनों की कमी हो रही है और नौकर को कोई नौकरी नहीं मिल रही हैं। बेरोजगारी के कारण बेरोजगार यानि आजीविका रहित लोग दुःखी हैं और बस सोच में पड़े हैं और एक दूसरे से पूछ रहे हैं कि अब कहाँ जाएं और क्या करें?
(ख) तुलसी किससे कृपा की उम्मीद कर रहे हैं और क्यों?
उत्तर – तुलसीदास जी प्रभु राम से कृपा की उम्मीद कर रहे हैं क्योंकि उनके अनुसार पेट की आग को केवल श्री राम रूपी बादल ही बुझा सकते हैं अर्थात श्री राम की कृपा दृष्टि से ही लोगों के दुःख दूर हो सकते हैं क्योंकि मनुष्य के पेट की आग, समुद्र की आग से भी भयानक होती है।
(ग) दरिद्रता की तुलना किससे की गई है और उससे बचाव का उपाय क्या है?
उत्तर – तुलसीदास ने दरिद्रता की तुलना रावण से की है। क्योंकि गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि हमारे वेदों और पुराणों में कहा गया है और इस संसार में सदैव देखा गया है कि जब-जब सब पर संकट आया है, तब-तब श्री राम ने ही सब पर कृपा की है अर्थात सबके दुखों को दूर किया है। पूरी दुनिया बहुत दुखी हैं और पाप की अग्नि में जलती, दुनिया को देखकर तुलसीदास के मन में हाहाकार मच गया हैं और वे प्रभु से इस दुखी संसार का उद्धार करने की प्रार्थना करते हैं।
प्रश्न 4 – निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
उहाँ राम लछिमनहि निहारी। बोले वचन मनुज अनुसारी।।
अर्ध राति गइ कपि नहिं आयउ। राम उठाइ अनुज उर लायऊ।।
(क) काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – इस प्रसंग में कवि द्वारा लक्ष्मण-मूच्छा पर राम के करुण विलाप का वर्णन किया गया है। प्रभु श्री राम लक्ष्मण को निहारते हुए एक साधारण मनुष्य के समान विलाप करते हुए, हनुमान जी का इन्तजार कर रहे हैं। श्री राम अपने छोटे भाई लक्ष्मण को उठाकर अपने हृदय से लगा लेते हैं। क्योंकि वे जानते हैं कि लक्ष्मण जैसा भाई जीवन में दूसरा नहीं मिल सकता।
(ख) काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य लिखिए।
उत्तर – काव्यांश में कवि ने करुण रस का अद्धभुत सुंदर वर्णन किया है।
प्रश्न 5 – निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
खेती न किसान को, भिखारी को न भीख, बलि,
बनिक को बनिज, न चाकर को चाकरी।
जीविका बिहीन लोग सीद्यमान सोच बस,
कहैं एक-एकन सों कहाँ जाई, का करी?
बेदहूँ पुरान कही, लोकहूँ बिलोकिअत,
साँकरे सबै पै, राम! रावरें कृपा करी।
(क) कवि के समय में बेरोज़गारी के विविध स्वरूपों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – कवि के समय में बेरोज़गारी के निम्नलिखित विविध स्वरूप देखने को मिले हैं – किसान खेती नहीं कर पा रहा है, स्थिति इतनी दयनीय है कि भिखारी को भीख नहीं मिल रही है, ब्राह्मण को दक्षिणा अथवा भोग नहीं मिल पा रहा है, व्यापारी अपना व्यापार करने में असमर्थ है क्योंकि उसे साधनों की कमी हो रही है और नौकर को कोई नौकरी नहीं मिल रही हैं। बेरोजगारी के कारण बेरोजगार यानि आजीविका रहित लोग दुःखी हैं
(ख) कवि राम की कृपा क्यों चाहता है?
उत्तर – कवि राम की कृपा इसलिए चाहता है क्योंकि जब-जब सब पर संकट आया है, तब-तब श्री राम ने ही सब पर कृपा की है अर्थात सबके दुखों को दूर किया है। पूरी दुनिया बहुत दुखी हैं और पाप की अग्नि में जलती, दुनिया को देखकर तुलसीदास के मन में हाहाकार मच गया हैं और वे प्रभु से इस दुखी संसार का उद्धार करने की प्रार्थना करते हैं।
(ग) भाव स्पष्ट कीजिए:
‘कहैं एक-एकन सों कहाँ जाई, का करी?’
उत्तर – ‘कहैं एक-एकन सों कहाँ जाई, का करी?’ पंक्ति का भाव यह है कि आर्थिक विषमताओं से दुखी हो कर किसी भी व्यक्ति को यह समझ में नहीं आ रहा है कि वह ऐसा क्या करें कि उसकी दरिद्रता व् दुःख समाप्त हो जाएं।
प्रश्न 6 – ‘कवितावली के छंदों में अपने युग की आर्थिक एवं सामाजिक विषमता की अभिव्यक्ति है’ कथन की पुष्टि कीजिए।
अथवा
‘कवितावली’ से उद्धृत पदों के आधार पर तुलसीदास के समय की सामाजिक स्थिति का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
अथवा
कवितावली से संकलित पदों के आधार पर तुलसीदास के समय की सामाजिक अवस्था पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर – ‘कवितावली के छंदों में अपने युग की आर्थिक एवं सामाजिक विषमता की अभिव्यक्ति है’ क्योंकि तुलसीदास जी की सभी कृतियों में लोकमंगल की भावना होती थी। उन्होंने अपने युग की अनेक विषम परिस्थितियों को प्रत्यक्ष देखा भी था और उनका सामना भी किया था। उन्होंने अपनी रचनाओं में उन सभी परिस्थितियों को स्वर दिया। समाज में व्याप्त भयंकर बेकारी-बेरोजगारी और भुखमरी को लेकर ‘कवितावली’ आदि में आक्रोश-आवेश के साथ अपना मन्तव्य स्पष्ट किया था। उस समय किसान, श्रमिक, भिखारी, व्यापारी, कलाकार आदि सब आर्थिक समस्या से विवश थे। कवितावली के द्वारा स्पष्ट हो जाता है कि तुलसी को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ थी।
प्रश्न 7 – “माँगि के खैबो, मसीत को सोइबो” – तुलसी के इस कथन के मर्म पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर – तुलसीदास प्रभु राम के बहुत बड़े भक्त हैं। उन्हें संसार से कोई मतलब नहीं है कि कोई उनके बारे में क्या बात करता है। उन्हें न तो किसी से माँग कर खाने में शर्म है और न ही मस्जिद में सोने से। अर्थात तुलसीदास पूरी तरह से प्रभु भक्ति में लीन हैं।
प्रश्न 8 – ‘लक्ष्मण मूर्च्छा पर राम का विलाप में तुलसीदास नारी के प्रति तत्कालीन समाज की मान्यताओं के प्रभाव से बच नहीं पाए।’ – सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
उत्तर – तुलसीदास ने कवितावली में समाज की कई सारी समस्याओं पर लोगों का ध्यान केंद्रित करने का प्रयास किया है। आज के समय में भी उन सभी समस्याओं में से बहुत सी समस्याओं का सामना हम करते आ रहे हैं। तुलसीदास जी ने उस समय की समाज में मूलयहीनता, नारी की स्थिति, आर्थिक दुर्व्यवस्था का जो सटीक वर्णन किया है वह आज भी प्रासंगिक है। आज भी महिलाओं के ऊपर अत्याचार और उनके प्रति भेदभाव की स्थिति अक्सर सामने आ ही जाती है। उस समय जिस तरह समाज में महिलाओं की अपमानजनक स्थिति थी आज भी ज्यों-की-त्यों बनी हुई है।
प्रश्न 9 – शोकग्रस्त वातावरण में हनुमान के आगमन के प्रसंग में करुण और वीर रस का उल्लेख क्यों हुआ है? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
लक्ष्मण मूर्च्छा के शोकग्रस्त वातावरण में हनुमान के आगमन को करुण रस के बीच वीर रस का आविर्भाव क्यों कहा गया है? तुलना का सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – सभी लोग लक्ष्मण के मूर्छित होने पर शोक में डूबे थे। भाई के शोक में राम का विलाप धीरे-धीरे प्रलाप में बदल जाता है, जिसमें लक्ष्मण के प्रति राम के अंतरमन में छिपे प्रेम के कई कोण सहसा ही सामने आ जाते है। हनुमान के आगमन को करुण रस के बीच वीर रस की उत्पत्ति इसलिए कहा गया है क्योंकि प्रभु श्रीराम के व्याकुल व् तर्कहीन वचन-प्रवाह को सुनकर वानर व भालू का समूह भी बैचेन व् व्याकुल हो गया था। उसी समय हनुमान संजीवनी बूटी लेकर आ गये। विशाल पहाड़ को उखाड़कर लाने तथा साहसी कार्य करने से हनुमान को देखते ही सभी में आशा-उत्साह का संचार हो गया। अतः अचानक इस परिवर्तन से करुण रस के बीच वीर रस का संचार हो गया है।
प्रश्न 10 – ‘लक्ष्मण मूर्च्छा और राम का प्रलाप’ के आधार पर राम के भ्रातृ प्रेम के बारे में आपकी क्या धारणा बनती है? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
अथवा
लक्ष्मण मूर्च्छा पर राम के प्रलाप के आधार पर राम के भ्रातृप्रेम का वर्णन सोदाहरण कीजिए।
उत्तर – लंका में प्रभु श्री राम लक्ष्मण को निहारते हुए एक साधारण मनुष्य के समान विलाप कर रहे थे और कह रहे थे कि आधी रात बीत गई है परन्तु हनुमान जी अभी तक नहीं आए हैं। यह कहकर श्री राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को उठाकर अपने हृदय से लगा लिया था और कहने लगे थे कि लक्ष्मण कभी उन्हें दुःखी नहीं देख सकते थे और उनका व्यवहार सदैव प्रभु राम के लिए कोमल व विनम्र रहा। प्रभु राम हित के लिए ही लक्ष्मण ने अपने माता-पिता को त्याग दिया और राम जी के साथ जंगल में ठंड, धूप, तूफ़ान आदि को सहन किया। श्री राम लक्ष्मण जी को उठाने का प्रयास करते हुए कहते हैं कि श्री राम के लिए उनका वो प्यार अब कहाँ गया? वे राम के व्याकुलता भरे वचनों को सुनकर भी क्यों नहीं उठ रहे हैं। यदि राम जानते कि वन में उन्हें अपने भाई से बिछड़ना होगा तो वे वन में नहीं आते। श्री राम कहते हैं कि पुत्र, धन, स्त्री, घर और परिवार, ये सब इस संसार में बार-बार मिल सकते हैं। क्योंकि इस संसार में सगा भाई दुबारा नहीं मिल सकता। जिस प्रकार पंख के बिना पक्षी, मणि के बिना सांप और सूँड के बिना हाथी बहुत ही दीन-हीन हो जाते हैं। ठीक उसी प्रकार लक्ष्मण के बिना श्री राम केवल भाग्य से जीवित रहेंगे मगर उनका जीवन अत्यंत कठिन होगा। श्री राम कहते हैं कि वे अयोध्या कौन सा मुँह लेकर जाएंगे। क्योंकि सभी कहेंगे कि राम ने पत्नी के लिए अपना प्रिय भाई खो दिया। इस संसार में पत्नी को खोने का कलंक सहन किया जा सकता है। क्योंकि इस संसार में अनुसार स्त्री की हानि कोई विशेष क्षति नहीं होती हैं।
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Chapter 8 – रुबाइयाँ
प्रश्न 1 – निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
रक्षाबंधन की सुबह रस की पुतली
छायी है छटा गगन की हलकी हलकी
बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे
भाई के है बाँधती चमकती राखी।
(क) काव्यांश के भाव-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – उपरोक्त पंक्तियों में कवि रक्षाबंधन के त्यौहार व भाई-बहिन के असीम प्यार भरे पवित्र रिश्ते का वर्णन कर रहे है। कवि कहते हैं कि रक्षाबंधन की सुबह आनंद व मिठास की सौगात है। रक्षाबंधन के दिन सुबह के समय आकाश में हल्के-हल्के बादल छाए हुए हैं। और जिस तरह उन बादलों के बीच बिजली चमक रही हैं ठीक उसी तरह राखी के लच्छों भी चमक रहे हैं। और बहिन बड़े ही प्यार से उस चमकती राखी को अपने भाई की कलाई पर बांधती हैं।
(ख) काव्यांश के शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – काव्यांश में रक्षाबंधन के त्यौहार व भाई-बहिन के असीम प्यार भरे पवित्र रिश्ते को अद्धभुत ढंग से प्रस्तुत किया गया है। राखी के लच्छे को बिजली की चमक की तरह कहकर यह भाव व्यंजित करना चाहता है कि रक्षाबंधन सावन के महीने में आता है। इस समय आकाश में घटाएँ छाई होती हैं तथा उनमें बिजली भी चमकती है।
प्रश्न 2 – “फिराक की रुबाइयों में हिंदी, उर्दू और लोकभाषा का आकर्षक पुट लगाया गया है” – सोदाहरण सिद्ध कीजिए।
उत्तर – “फिराक की रुबाइयों में हिंदी, उर्दू और लोकभाषा का आकर्षक पुट लगाया गया है” जैसे –
हिंदी के प्रयोग-
आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी
हाथों में झुलाती है उसे गोद-भरी
गूँज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसी
किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को
दीवाली की शाम घर पुते और सजे
रक्षाबंधन की सुबह रस की पुतली
छायी है घटा गगन की हलकी-हलकी
बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे
भाई के है बाँधती चमकती राखी
उर्दू के प्रयोग-
उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके
देख आईने में चाँद उतर आया है
लोकभाषा के प्रयोग-
रह-रह के हवा में जो लोका देती है।
जब घुटनियों में ले के है पिन्हाती कपड़े
आँगन में दुनक रहा है जिदयाया है
बालक तो हई चाँद पै ललचाया है
प्रश्न 3 – ‘रुबाइयाँ’ कविता के आधार पर सावन की घटाओं और रक्षाबंधन के पर्व पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर – रक्षाबंधन का त्यौहार सावन के महीने में आता है। उस समय हर वक्त आकाश में काले धने बादल छाये रहते हैं। और बिजली भी चमकती रहती है। रक्षाबंधन की सुबह आनंद व मिठास की सौगात है। रक्षाबंधन के दिन सुबह के समय आकाश में हल्के-हल्के बादल छाए हुए हैं। और जिस तरह उन बादलों के बीच बिजली चमक रही हैं ठीक उसी तरह राखी के लच्छों भी चमक रहे हैं। और बहिन बड़े ही प्यार से उस चमकती राखी को अपने भाई की कलाई पर बांधती हैं।
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Chapter 9 – छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख
प्रश्न 1 – निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
नभ में पाँती-बँधे बगुलों के पंख,
चुराए लिए जाती वे मेरी आँखें।
कजरारे बादलों की छाई नभ छाया,
तैरती साँझ की सतेज श्वेत काया।
(क) काव्यांश के शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – सौंदर्य के प्रभाव को उत्पन्न करने के लिए कवि कई युक्तियों को अपनाता है। काव्यांश में कवि ने सौंदर्य का चित्रात्मक वर्णन तो किया ही है, साथ ही साथ मन पर उस सौंदर्य के प्रभाव का वर्णन भी किया है। सरल व् सुबोध भाषा का प्रयोग किया गया है।
(ख) काव्यांश का भाव-सौंदर्य लिखिए।
उत्तर – उपरोक्त पंक्तियों में कवि आकाश में छाए काले बादलों में पंक्ति बनाकर उड़ते हुए बगुलों के सुंदर पंखों का वर्णन करता हुआ कहता है कि वह आकाश में पंक्ति बनाकर बगुलों को उड़ते हुए एकटक दृष्टि से देखता रहता है। यह दृश्य कवि की आँखों को चुरा ले जाता है अर्थात कवि को यह दृश्य अत्यधिक मनमोहक लगता है। काले बादल आकाश पर किसी छाया अर्थात परछाई की तरह छाए हुए हैं और बगुलों की पंक्ति आकाश में ऐसी प्रतीत हो रही है जैसे सायंकाल में चमकीला सफेद शरीर काले बादल भरे आकाश में तैर रहा हो।
प्रश्न 2 – निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
नभ में पाँती-बँधे बगुलों के पंख,
चुराए लिए जातीं वे मेरी आँखें।
कज़रारे बादलों की छाई नभ छाया,
तैरती साँझ की सतेज श्वेत काया।
हौले-हौले जाती मुझे बाँध निज माया से
उसे कोई तनिक रोक रक्खो।
वह तो चुराए लिए जाती मेरी आँखें
नभ में पाँती-बँधी बगुलों की पाँखें।
(क) ‘आँखें चुराए लिए जाने’ से कवि का क्या अभिप्राय है?
उत्तर – कवि आकाश में छाए काले बादलों में पंक्ति बनाकर उड़ते हुए बगुलों के सुंदर पंखों को देखता है। यह दृश्य कवि की आँखों को चुरा ले जाता है अर्थात कवि को यह दृश्य अत्यधिक मनमोहक लगता है।
(ख) प्रकृति के सौंदर्य पर मुग्ध कवि की मन:स्थिति पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर – कवि काले बादलों से भरे आकाश में पंक्ति बनाकर उड़ते सफेद बगुलों को देखता है। वे काले बादलों के ऊपर तैरती हुई सांयकाल की श्वेत काया के समान प्रतीत होते हैं। यह दृश्य कवि को इतना मनोहारी लगता है कि इनकी आँखें उस दृश्य से हटने का नाम ही नहीं लेती। कवि सब कुछ भूलकर उसमें खो जाता है। वह इस दृश्य के जादू से अपने को बचाने की गुहार लगाता है, लेकिन वह स्वयं को इससे बचा नहीं पाता।
(ग) कवि किसे रोकने की बात करता है और क्यों?
उत्तर – आकाश में छाए काले बादलों में पंक्ति बनाकर उड़ते हुए बगुलों का दृश्य कवि को इतना मनमोहक लगता है कि उन्हें महसूस होता है कि अपने जादू से यह दृश्य उन्हें धीरे-धीरे अपने साथ बाँध रहा है। बगुलों की पंक्ति उड़ते-उड़ते दूर जा रही है और मनोहक दृश्य कवि की आँखों से ओझल हो रहा है इस कारण कवि कहता है कि कोई इस मनमोहक दृश्य को लुप्त होने से रोक लें। इस आकर्षक दृश्य का कवि पर इतना प्रभाव पड़ा है कि आकाश में उड़तें पंक्तिबद्ध बगुलों के पंखों में कवि की आँखें अटककर रह जाती हैं। अर्थात कवि बगुलों की उस पंक्ति से अपनी आँखें नहीं हटा पा रहा है।
प्रश्न 3 – निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
झूमने लगे फल,
रस अलौकिक,
अमृत धाराएँ फूटतीं
रोपाई क्षण की,
कटाई अनंतता की
लुटते रहने से जरा भी नहीं कम होती।
रस का अक्षय पात्र सदा का
छोटा मेरा खेत चौकोना।
(क) अच्छा साहित्य समय की सीमाओं को पार कर जाता है – कैसे?
उत्तर – कवि की रचना से मिलने वाले रस अर्थात आनंद को कोई जितना भी लूट ले वह कभी भी समाप्त होने वाला नहीं है, वह तो लगातार बढ़ता जाता है। खेत का अनाज तो खत्म हो सकता है, लेकिन काव्य का रस कभी खत्म नहीं होता। कविता रूपी रस अनंतकाल तक बहता है। कविता रूपी अक्षय पात्र हमेशा भरा रहता है।
(ख) कवि ने चौकोने खेत को क्या कहा है और क्यों?
उत्तर – जिस तरीके से खेत पर किसान खेती करता है, ठीक उसी तरह पन्ने पर कवि कविता लिखता है। इसलिए कवि पन्ने को खेत कह रहा है। कवि ने कवि कर्म अर्थात कविता निर्माण को खेत में बीज रोपने की तरह माना है। इसके माध्यम से कवि यह बताना चाहता है कि कविता की रचना करना कोई सरल कार्य नहीं है। क्योंकि जिस प्रकार खेत में बीज बोने से लेकर फ़सल काटने तक कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, ठीक उसी प्रकार कविता की रचना करने के लिए अनेक प्रकार के कठिन कार्य करने पड़ते हैं और अनेक भावनात्मक विचारों को झेलना पड़ता है।
(ग) ‘रोपाई क्षण की,
कटाई अनंतता की ‘- का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – भावनात्मक आँधी के प्रभाव से कविता रूपी बीज का रोपण होता है। कविता के रस या भाव का अस्वाद अनन्त काल तक श्रोताओं-पाठकों को आनन्दमग्न करता रहता है। इस तरह क्षणभर की अभिव्यक्ति का फल अनन्त काल तक चलता रहता है।
प्रश्न 4 – खेत की तुलना कागज के पन्ने से करने में निहित सौंदर्य और रूपक की सार्थकता पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर – कवि ने खेत की तुलना कागज से इसलिए की है क्योंकि वह कागज पर लिखी गई बातें, विचार और भावनाएँ उस खेत के समान हैं जहाँ जीवन की फसल उगती है। जैसे खेत में मेहनत करके फसल उगाई जाती है, उसी तरह कागज पर लिखे गए शब्दों से विचारों की फसल उगाई जाती है। यह एक रूपक है जो यह दर्शाता है कि जिस तरह खेत में उगाई गई फसल जीवन के लिए महत्वपूर्ण होती हैं उसी प्रकार कागज पर लिखी गई रचनाएँ भी जीवन में महत्वपूर्ण होती हैं।
प्रश्न 5 – कवि ने खेत की तुलना काग़ज़ से क्यों की? ‘छोटा मेरा खेत’ कविता के आधार पर लिखिए।
उत्तर – जिस तरीके से खेत पर किसान खेती करता है, ठीक उसी तरह पन्ने पर कवि कविता लिखता है। इसलिए कवि पन्ने को खेत कह रहा है। कवि ने कवि कर्म अर्थात कविता निर्माण को खेत में बीज रोपने की तरह माना है। इसके माध्यम से कवि यह बताना चाहता है कि कविता की रचना करना कोई सरल कार्य नहीं है। क्योंकि जिस प्रकार खेत में बीज बोने से लेकर फ़सल काटने तक कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, ठीक उसी प्रकार कविता की रचना करने के लिए अनेक प्रकार के कठिन कार्य करने पड़ते हैं और अनेक भावनात्मक विचारों को झेलना पड़ता है।
प्रश्न 6 – ‘छोटा मेरा खेत’ कविता के रूपक में कविकर्म और कृषिकर्म में कवि ने किस प्रकार साम्य बिठाया है?
अथवा
उमाशंकर जोशी ने खेती के रूपक के बहाने कृषिकर्म और कविकर्म में समानता कैसे दर्शाई है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – कवि ने कवि कर्म को कृषक के कार्य के समान बताया है। जिस तरीके से खेत पर किसान खेती करता है, ठीक उसी तरह पन्ने पर कवि कविता लिखता है। इसलिए कवि पन्ने को खेत कह रहा है। कवि ने कवि कर्म अर्थात कविता निर्माण को खेत में बीज रोपने की तरह माना है। इसके माध्यम से कवि यह बताना चाहता है कि कविता की रचना करना कोई सरल कार्य नहीं है। क्योंकि जिस प्रकार खेत में बीज बोने से लेकर फ़सल काटने तक कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, ठीक उसी प्रकार कविता की रचना करने के लिए अनेक प्रकार के कठिन कार्य करने पड़ते हैं और अनेक भावनात्मक विचारों को झेलना पड़ता है। कहने का आशय यह है कि किसान भी खेत में बीज बोता है, वह बीज अंकुरित होकर फसल बनता है और जनता का पेट भरता है। इसी तरह कवि भी कागज़ रूपी खेत पर अपने विचारों के बीज बोता है। कल्पना का आश्रय पाकर वह विचार विकसित होकर रचना का रूप धारण करता है। इस रचना के रस से मनुष्य की मानसिक जरूरत पूरी होती है।
प्रश्न 7 – ‘छोटा मेरा खेत’ कविता में कवि ने रस के अक्षय पात्र से रचनाकर्म की किन विशेषताओं का संकेत किया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – अक्षय का अर्थ होता है – कभी नष्ट न होने वाला। कविता का रस इसी तरह का होता है। कवि की रचना से मिलने वाले रस अर्थात आनंद को कोई जितना भी लूट ले वह कभी भी समाप्त होने वाला नहीं है, वह तो लगातार बढ़ता जाता है। खेत का अनाज तो खत्म हो सकता है, लेकिन काव्य का रस कभी खत्म नहीं होता। कविता रूपी रस अनंतकाल तक बहता है। कविता रूपी अक्षय पात्र हमेशा भरा रहता है।
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Chapter 10 – भक्तिन
प्रश्न 1 – निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
भक्तिन और मेरे बीच में सेवक-स्वामी का संबंध है, यह कहना कठिन है; क्योंकि ऐसा कोई स्वामी नहीं हो सकता, जो इच्छा होने पर भी सेवक को अपनी सेवा से हटा न सके और ऐसा कोई सेवक भी नहीं सुना गया, जो स्वामी के चले जाने का आदेश पाकर अवज्ञा से हँस दे। भक्तिन को नौकर कहना उतना ही असंगत है, जितना अपने घर में बारी-बारी से आने-जाने वाले अँधेरे-उजाले और आँगन में फूलने वाले गुलाब और आम को सेवक मानना। वे जिस प्रकार एक अस्तित्व रखते हैं, जिसे सार्थकता देने के लिए हमें सुख-दुख देते हैं, उसी प्रकार भक्तिन का स्वतंत्र व्यक्तित्व अपने विकास के परिचय के लिए ही मेरे जीवन को घेरे हुए है।
(क) लेखिका को अपने और भक्तिन के बीच सेवक-स्वामी का संबंध होने में संदेह क्यों है?
उत्तर – भक्तिन और लेखिका के बीच में सेवक-स्वामी का संबंध है, यह कहना कठिन है; क्योंकि ऐसा कोई स्वामी नहीं हो सकता, जो इच्छा होने पर भी सेवक को अपनी सेवा से हटा न सके और ऐसा कोई सेवक भी नहीं सुना गया, जो स्वामी के चले जाने का आदेश पाकर अवज्ञा से हँस दे।
(ख) लेखिका ने भक्तिन को नौकर कहना असंगत क्यों माना है?
उत्तर – भक्तिन को नौकर कहना उतना ही असंगत है, जितना अपने घर में बारी-बारी से आने-जाने वाले अँधेरे-उजाले और आँगन में फूलने वाले गुलाब और आम को सेवक मानना। वे जिस प्रकार एक अस्तित्व रखते हैं, जिसे सार्थकता देने के लिए हमें सुख-दुख देते हैं, उसी प्रकार भक्तिन का स्वतंत्र व्यक्तित्व अपने विकास के परिचय के लिए ही लेखिका के जीवन को घेरे हुए है।
(ग) लेखिका और भक्तिन के परस्पर संबंधों की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर – भक्तिन व लेखिका के बीच आत्मीय सम्बन्ध था। उनका सम्बन्ध नौकरानी या स्वामिनी का संबंध बिलकुल नहीं था। वे आत्मीय जन की तरह थे। अनेक कमियों के होते हुए भी भक्तिन लेखिका के लिए अनमोल थी क्योंकि वह लेखिका पर आने वाले हर कष्ट को अपने ऊपर लेने को तैयार थी। वह लेखिका की सेवा पूरी निष्ठा से करती थी। लेखिका के पास पैसे की कमी की बात सुनकर वह अपने जीवन भर की सारी कमाई लेखिका को देना चाहती थी।
प्रश्न 2 – भक्तिन की बेटी पर पंचायत द्वारा पति थोप देने की घटना के विरोध में टिप्पणी लिखिए |
उत्तर – पुरुषों की तरह स्त्रियों को भी अपनी पसंद का जीवन-साथी चुनने का अधिकार है, लेकिन पंचायत ने भक्तिन की बेटी पर आवारा तीतरबाज युवक को पति के रूप में थोप दिया। यह कोई परिस्थितिवश होने वाली घटना नहीं थी। यह पुरुष प्रधान समाज द्वारा स्त्री के मानवाधिकार को कुचलने का षड्यंत्र था। स्त्रियों को उनके मानवाधिकारों से वंचित करने की यह परम्परा सदियों से चली आ रही है। कोई महिला पुरुष प्रधान समाज के विरुद्ध आवाज न उठा दें यह कभी भी पुरुष प्रधान समाज को स्वीकार न था और न ही कभी होगा।
प्रश्न 3 – ‘भक्तिन’ के आधार पर लिखिए कि उस समय कन्या और नारी के प्रति समाज में क्या धारणा प्रधान थी? आज आपको क्या परिवर्तन दिखाई पड़ता है?
उत्तर – भक्तिन की लगातार तीन लड़कियाँ पैदा हुई तो सास व जेठानियों ने उसकी उपेक्षा करनी शुरू कर दी। इसका कारण यह था कि सास के तीन कमाऊ बेटे थे तथा जेठानियों के भी काले-काले लाल थे। सजा के तौर पर जेठानियाँ कोई काम नहीं करती थी बल्कि बैठकर खातीं थी तथा घर का सारा काम जैसे – चक्की चलाना, कूटना, पीसना, खाना बनाना आदि कार्य-भक्तिन ही किया करती थी। साथ ही छोटी लड़कियाँ गोबर उठातीं तथा कंडे थापती थीं। खाने पर भी भेदभाव किया जाता था। जेठानियाँ और उनके लड़कों को भात पर सफेद राब, दूध व मलाई मिलती तथा भक्तिन को काले गुड़ की डली, मट्ठा तथा लड़कियों को चने-बाजरे की घुघरी मिलती थी।
आज समय के साथ-साथ महिलाओं के जीवन में कुछ सुधार अवश्य हुआ है, परन्तु कहीं न कहीं आज भी रूढ़िवादी सोच महिलाओं को आगे बढ़ने से रोक देती हैं।
प्रश्न 4 – टिप्पणी कीजिए – “भक्तिन अच्छी है, यह कहना कठिन होगा क्योंकि उसमें दुर्गुणों का अभाव नहीं।”
अथवा
‘भक्तिन अच्छी है, यह कहना कठिन होगा’- महादेवी जी ने यह क्यों कहा? तीन कारण लिखिए।
उत्तर – “भक्तिन अच्छी है, यह कहना कठिन होगा क्योंकि उसमें दुर्गुणों का अभाव नहीं।” क्योंकि भक्तिन का दुर्भाग्य भी उससे कम हठी नहीं था, इसी से किशोरी से युवती होते ही बड़ी लड़की भी विधवा हो गई। एक दिन माँ की अनुपस्थिति में वर महाशय ने बेटी की कोठरी में घुस कर भीतर से द्वार बंद कर लिया और उसके समर्थक गाँववालों को बुलाने लगे। अपीलहीन फैसला हुआ कि चाहे उन दोनों में एक सच्चा हो चाहे दोनों झूठे; पर जब वे एक कोठरी से निकले, तब उनका पति-पत्नी के रूप में रहना ही कलियुग के दोष का परिमार्जन कर सकता है। संबंध कुछ सुखकर नहीं हुआ, क्योंकि दामाद अब निश्चित होकर तीतर लड़ाता था और बेटी विवश क्रोध से जलती रहती थी। इतने यत्न से सँभाले हुए गाय-ढोर, खेती-बारी जब पारिवारिक द्वेष में ऐसे झुलस गए कि लगान अदा करना भी भारी हो गया, सुख से रहने की कौन कहे। अंत में एक बार लगान न पहुंँचने पर ज़मींदार ने भक्तिन को बुलाकर दिन भर कड़ी धूप में खड़ा रखा। यह अपमान तो उसकी कर्मठता में सबसे बड़ा कलंक बन गया, अतः दूसरे ही दिन भक्तिन कमाई के विचार से शहर आ पहुँची।
प्रश्न 5 – ‘भक्तिन’ अपना वास्तविक नाम लोगों से क्यों छिपाती थी?
उत्तर – भक्तिन अनामधन्या गोपालिका की कन्या थी। जिसका वास्तविक नाम था लछमिन अर्थात लक्ष्मी। लक्ष्मी की समृद्धि भक्तिन के कपाल की कुंचित रेखाओं में नहीं बँध सकी। अर्थात लक्ष्मी अपने नाम के विपरीत अत्यंत गरीब थी। वैसे तो जीवन में प्रायः सभी को अपने-अपने नाम का विरोधाभास लेकर जीना पड़ता है; पर भक्तिन बहुत समझदार थी , क्योंकि वह अपना समृद्धि-सूचक नाम किसी को बताती नहीं। केवल जब नौकरी की खोज में आई थी, तब ईमानदारी का परिचय देने के लिए उसने शेष इतिवृत्त के साथ यह भी बता दिया; पर इस प्रार्थना के साथ कि लेखिका कभी उस नाम का उपयोग न करे। क्योंकि उसे यह भी डर रहता था कि लोग उसका मज़ाक बनाएंगे।
प्रश्न 6 – भक्तिन के स्वभाव पर टिप्पणी कीजिए।
अथवा
पाठ के आधार पर भक्तिन के स्वभाव की तीन विशेषताएँ सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
अथवा
महादेवी के संस्मरण के आधार पर भक्तिन के व्यक्तित्व की तीन विशेषताओं का सोदाहरण उल्लेख कीजिए।
उत्तर – भक्तिन एक अधेड़ उम्र की महिला है। उसका कद छोटा व शरीर दुबला-पतला है। उसके होंठ पतले हैं तथा आँखें छोटी हैं। भक्तिन एक परिश्रमी महिला है। ससुराल में भी उसने बहुत मेहनत की है। वह घर, खेत, पशुओं आदि का सारा कार्य अकेले संभालती है। लेखिका के घर में भी वह उसके सारे कामकाज को पूरी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा से करती है। वह लेखिका के हर कार्य में सहायता करती है।
भक्तिन बेहद स्वाभिमानिनी महिला है। पिता की मृत्यु पर विमाता के कठोर व्यवहार से उसने मायके में पानी पीना भी सही नहीं समझा और मायके जाना छोड़ दिया। पति की मृत्यु के बाद उसने दुसरा विवाह नहीं किया तथा स्वयं मेहनत करके घर चलाया। जमींदार द्वारा अपमानित किए जाने पर वह गाँव छोड़कर शहर आ गई।
भक्तिन में सच्चे सेवक के सभी गुण हैं। लेखिका ने उसे हनुमान जी से स्पद्र्धा करने वाली बताया है। वह छाया की तरह लेखिका के साथ रहती है तथा उसका गुणगान करती है। जेल से डरने के बावजूद भी वह लेखिका के साथ जेल जाने के लिए भी तैयार है। वह युद्ध, यात्रा आदि में हर समय उसके साथ रहना चाहती है।
प्रश्न 7 – भक्तिन के आ जाने से महादेवी अधिक देहाती कैसे हो गईं?
उत्तर – भक्तिन एक ग्रामीण, देहाती महिला थी। शहर में आकर भी उसने अपने आप में कोई परिवर्तन नहीं किया। बल्कि वह तो दूसरों को भी अपने अनुसार बना लेना चाहती थी। भक्तिन ने लेखिका का मीठा खाना बिल्कुल बंद कर दिया था। उसने गाढ़ी दाल व मोटी रोटी खिलाकर लेखिका की स्वास्थ्य संबंधी चिंता दूर कर दी। भक्तिन के आने के बाद लेखिका को रात को मकई का दलिया, सवेरे मट्ठा, तिल लगाकर बाजरे के बनाए हुए ठंडे पुए, ज्वार के भुने हुए भुट्टे के हरे-हरे दानों की खिचड़ी व सफेद महुए की लपसी मिलने लगी थी और इन सबको लेखिका भी स्वाद से खाने लगी। इसके अलावा भक्तिन ने महादेवी को देहाती भाषा भी सिखा दी थी। इस प्रकार कहा जा सकता है कि भक्तिन का साथ पा कर महादेवी भी देहाती बन गई।
प्रश्न 8 – “भक्तिन की बेटी पर पंचायत द्वारा एक षड्यंत्र से बलपूर्वक पति थोपा जाना एक दुर्घटना ही नहीं, स्त्री के मानवाधिकारों का भी हनन है।” कथन पर तर्क सहित टिप्पणी कीजिए।
उत्तर – “भक्तिन की बेटी पर पंचायत द्वारा एक षड्यंत्र से बलपूर्वक पति थोपा जाना एक दुर्घटना ही नहीं, स्त्री के मानवाधिकारों का भी हनन है।” भक्तिन ने बेटी की शादी कर दामाद को घरजमाई रखा। वह अकालमृत्यु को प्राप्त हो गया। उसके जेठ के परिवार वाले संपत्ति हडपना चाहते थे। परंतु सारी जायदाद लड़की के नाम थी, लड़की के ताऊ के लड़के के तीतरबाज़ साले ने जबरदस्ती घर में घुस कर उसे बदनाम करने की कोशिश की। लक्ष्मी ने उसकी खूब पिटाई की। जेठ ने पंचायत में अपील की। वहाँ भी भ्रष्टतंत्र था। उन्होंने लड़की की न सुनकर अपीलहीन फैसले में उसे तीतरबाज युवक के साथ रहने का फैसला सुनाया। यह मानवाधिकारों का हनन था। दोषी को सजा न देकर उसे इनाम मिला।
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Chapter 11 – बाज़ार दर्शन
प्रश्न 1 – निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
लोभ का यह जीतना नहीं है कि जहाँ लोभ होता है, यानी मन में, वहाँ नकार हो! यह तो लोभ की ही जीत है और आदमी की हार। आँख अपनी फोड़ डाली, तब लोभनीय के दर्शन से बचे तो क्या हुआ? ऐसे क्या लोभ मिट जाएगा? और कौन कहता है कि आँख फूटने पर रूप दीखना बंद हो जाएगा? क्या आँख बंद करके ही हम सपने नहीं लेते हैं? और वे सपने क्या चैन- भंग नहीं करते हैं? इससे मन को बंद कर डालने की कोशिश तो अच्छी नहीं। वह अकारथ है यह तो हठवाला योग है। शायद हठ-ही-हठ है, योग नहीं है। इससे मन कृश भले हो जाए और पीला और अशक्त जैसे विद्वान का ज्ञान। वह मुक्त ऐसे नहीं होता। इससे वह व्यापक की जगह संकीर्ण और विराट की जगह क्षुद्र होता है। इसलिए उसका रोम-रोम मूँदकर बंद तो मन को नहीं करना चाहिए। वह मन पूर्ण कब है? हम में पूर्णता होती तो परमात्मा से अभिन्न हम महाशून्य ही न होते? अपूर्ण हैं, इसी से हम हैं। सच्चा ज्ञान सदा इसी अपूर्णता के बोध को हम में गहरा करता है।
(क) आँख फोड़ने का उदाहरण किस संदर्भ में और क्यों दिया गया है?
उत्तर – आँख फोड़ने का उदाहरण लोभ या सांसारिक चीजों से ध्यान हटाने के संदर्भ में दिया गया है। उदाहरण से यह समझाने का प्रयास किया गया है कि आँखें बंद कर लेने या आँख फोड़ने से आदमी का ही नुक्सान होता है, लोभ को कोई हानि नहीं पहुँचती।
(ख) ‘लोभ को नकारना लोभ की ही जीत है’ कैसे?
उत्तर – लोभ को नकारना लोभ की ही जीत है क्योंकि लोभ को नकारने के लिए लोग मन को मारते हैं। इनका यह नकारना वैदिक नहीं होता। इसके लिए वे योग का नहीं, हठयोग का सहारा लेते हैं। इस तरह यह लोभ की ही जीत होती है।
(ग) हठ द्वारा मन को मुक्त करने का क्या परिणाम होता है?
उत्तर – मुक्त होने के लिए लेखक ने आवश्यक शर्त यह बताई है कि हठयोग से मन कमजोर, पीला और अशक्त हो जाता है। इससे मन संकीर्ण हो जाता है। इसलिए मन का रोम-रोम बंद करके मन को रोकने का प्रयास नहीं करना चाहिए।
प्रश्न 2 – लेखक ने क्यों कहा कि ‘मन खाली हो, तब बाज़ार न जाओ’?
उत्तर – ‘मन खाली हो, तब बाज़ार न जाओ’ से लेखक का आशय यह है कि अगर मन खाली हो तो बाजार जाना ही नहीं चाहिए। क्योंकि अगर आँखे बंद भी कर ली जाए तो तब भी मन यहां वहां घूमता रहता है। हमें अपने मन पर खुद ही नियंत्रण रखना होगा। क्योंकि अगर व्यक्ति की जेब भरी है और मन भी भरा है तो बाजार का जादू उस पर असर नहीं करेगा। लेकिन अगर जेब भरी है और मन खाली है तो बाजार उसे जरूर आकर्षित करेगा। और फिर व्यक्ति को सभी चीज़े अपने काम की लगेगी और बिना सोचे विचारे वह सारा सामान खरीदने लगेगा।
प्रश्न 3 – टिप्पणी कीजिए-“बाज़ार में एक जादू है।”
अथवा
बाज़ार के जादू से क्या आशय है? इस जादू से कैसे बचा जा सकता है?
अथवा
बाज़ार के जादू से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
बाज़ार का जादू क्या है? इसके चढ़ते-उतरने का क्या प्रभाव पड़ता है? समझाकर लिखिए।
अथवा
बाज़ार का जादू चढ़ने और उतरने का क्या आशय है? उसका मनुष्य पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर – बाजार में एक जादू हैं जो आँखों के रास्ते काम करता हैं। बाजार की जादुई ताकत हमें अपना गुलाम बना लेती है। अगर हम अपनी आवश्यकताओं को ठीक-ठीक समझकर बाजार का उपयोग करें, तो उसका लाभ उठा सकते हैं। लेकिन अगर हम ज़रूरत को तय कर बाजार में जाने के बजाय उसकी चमक-दमक में फँस गए तो वह असंतोष, तृष्णा और ईर्ष्या से घायल कर हमें सदा के लिए बेकार बना सकता है। अगर मन खाली हो तो बाजार जाना ही नहीं चाहिए। क्योंकि अगर आँखे बंद भी कर ली जाए तो तब भी मन यहां वहां घूमता रहता है। हमें अपने मन पर खुद ही नियंत्रण रखना होगा। क्योंकि अगर व्यक्ति की जेब भरी है और मन भी भरा है तो बाजार का जादू उस पर असर नहीं करेगा। लेकिन अगर जेब भरी है और मन खाली है तो बाजार उसे जरूर आकर्षित करेगा। और फिर व्यक्ति को सभी चीज़े अपने काम की लगेगी और बिना सोचे विचारे वह सारा सामान खरीदने लगेगा।
प्रश्न 4 – बाज़ारूपन से जैनेंद्र कुमार का क्या आशय है? किस प्रकार के लोग बाज़ार को सार्थकता प्रदान करते हैं? समझाइए।
अथवा
बाज़ार को किस प्रकार के लोग कैसे सार्थकता प्रदान करते हैं?
उत्तर – लेखक जैनेन्द्र कुमार के अनुसार, ‘बाजारूपन’ से उन्होंने व्यापारिक और बाजारी दृष्टिकोण की बात की है। इस शब्द का तात्पर्य वस्त्र व्यापार, शृंगारिक आदर्श, और साहित्यिक उत्पादों के बाजारीकरण से हो सकता है, जहां सामाजिक और आर्थिक परिवर्तनों का वर्णन होता है।
बाजार की सार्थकता तभी है जब व्यक्ति केवल अपनी जरूरत का सामान खरीदें। बाजार हमेशा ग्राहकों को अपनी चकाचौंध से आकर्षित करता है। व्यक्ति का अपने मन पर नियंत्रण होना चाहिए। लेकिन जो लोग अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण नहीं रखते हैं। ऐसे व्यक्ति न तो खुद बाज़ार से कुछ लाभ उठा सकते हैं और न ही बाजार को लाभ दे सकते हैं। ये लोग सिर्फ बाजार का बाजारूपन बढ़ाते हैं। जिससे बाजार में छल कपट बढ़ता हैं। सद्भावना का नाश होता हैं। फिर ग्राहक और विक्रेता के बीच संबंध सद्भावना का न होकर, केवल लाभ-हानि तक ही सीमित रहता हैं।
प्रश्न 5 – बाज़ार दर्शन में चूरन वाले भगत जी बाज़ार के जादू से अप्रभावित क्यों हैं? अपना मत दीजिए।
अथवा
चूरन वाले भगत जी पर बाज़ार का जादू नहीं चल सकता-क्यों? ‘ बाज़ार दर्शन’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – भगत जी बहुत ही संतोषी व्यक्ति हैं। अत्यधिक धन कमाने या इकट्ठा करने में उनकी बिलकुल रुचि नहीं है। इसीलिए छह आने की आमदनी होने के बाद वो बचा चूर्ण बच्चों में बाँट देते हैं। यहाँ तक की उनका अपने मन पर भी पूरा नियंत्रण रहता है। वो जब अपने सामान के लिए भी बाजार जाते हैं तो बाजार की चकाचौंध से आकर्षित हुए बिना सिर्फ अपनी जरूरत का सामान खरीद कर सीधे अपने घर वापस आते हैं। भगत जी जैसे लोग ही बाजार को उसकी सच्ची सार्थकता देते हैं। ऐसे लोग समाज को प्रेम, भाईचारे व सद्भावना का संदेश देते हैं और हमारी नज़र में भी उनका जैसे आचरण रखने वाले व्यक्ति समाज में शांति स्थापित करने में मददगार हो सकते हैं।
प्रश्न 6 – ‘बाज़ार दर्शन’ के आधार पर बाज़ार की तीन विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर – बाजार छल व कपट से निरर्थक वस्तुओं की खरीदफ़रोख्त, दिखावे व ताकत के आधार पर होने लगती है तो बाजार का बाजारूपन बढ़ जाता है। बाजार की जादुई ताकत हमें अपना गुलाम बना लेती है। अगर हम अपनी आवश्यकताओं को ठीक-ठीक समझकर बाजार का उपयोग करें, तो उसका लाभ उठा सकते हैं। लेकिन अगर हम ज़रूरत को तय कर बाजार में जाने के बजाय उसकी चमक-दमक में फँस गए तो वह असंतोष, तृष्णा और ईर्ष्या से घायल कर हमें सदा के लिए बेकार बना सकता है।
बाजार सबको मूक आमंत्रित करता हैं। बाजार का तो काम ही ग्राहकों को आकर्षित करना है। जब कोई व्यक्ति बाजार में खड़ा होता है तो आकर्षक तरीके से रखे हुए सामान को देख कर उसके मन में उस सामान को लेने की तीव्र इच्छा हो जाती है। और अगर उसके पास पर्चेजिंग पावर है तो वह बाजार की गिरफ्त में आ ही जाएगा।
बाजार कभी किसी को लिंग, जाति, धर्म या क्षेत्र के आधार पर नहीं देखता। वह केवल व्यक्ति के खरीदने की शक्ति को देखता है। अर्थात जो व्यक्ति जेब से जितना भरा होगा और मन से खाली होगा वह बाजार के लिए उपयोगी होगा।
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Chapter 12 – काले मेघा पानी दे
प्रश्न 1 – निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
फिर जीजी बोलीं, “देख तू तो अभी से पढ़-लिख गया है। मैंने तो गाँव के मदरसे का भी मुँह नहीं देखा। पर एक बात देखी है कि अगर तीस-चालीस मन गेहूँ उगाना है तो किसान पाँच-छह सेर अच्छा गेहूँ अपने पास से लेकर ज़मीन में क्यारियाँ बना कर फेंक देता है। उसे बुवाई कहते हैं। यह जो सूखे हम अपने घर का पानी इन पर फेंकते हैं वह भी बुवाई है। यह पानी गली में बोएँगे तो सारे शहर, क़स्बा, गाँव पर पानीवाले फ़सल आ जाएगी। हम बीज बनाकर पानी देते हैं, फिर काले मेघा से पानी माँगते हैं। सब ऋषि- मुनि कह गए हैं कि पहले ख़ुद दो तब देवता तुम्हे चौगुना-अठगुना करके लौटाएँगे। भईया, यह तो हर आदमी का आचरण है, जिससे सबका आचरण बनता है। यथा राजा तथा प्रजा सिर्फ़ यही सच नहीं है। सच यह भी है कि यथा प्रजा तथा राजा। यही तो गांधी जी महाराज कहते हैं”।
(क) बुवाई के लिए किसान किस प्रकार से श्रम करते हैं?
उत्तर – अगर तीस-चालीस मन गेहूँ उगाना है तो किसान पाँच-छह सेर अच्छा गेहूँ अपने पास से लेकर ज़मीन में क्यारियाँ बना कर फेंक देता है। उसे बुवाई कहते हैं।
(ख) त्याग की महत्ता को किसने बताया था? समाज के लिए यह क्यों ज़रूरी है?
उत्तर – त्याग की महत्ता को ऋषि-मुनियों ने बताया था। समाज के लिए यह ज़रूरी है क्योंकि जब तुम पहले दोगे तभी तो देवता तुम्हे चौगुना-अठगुना करके लौटाएँगे। एक व्यक्ति के आचरण से ही सबका आचरण बनता है।
(ग) ‘यथा प्रजा तथा राजा’ से जीजी क्या कहना चाहती थीं?
उत्तर – ‘यथा प्रजा तथा राजा’ अर्थात जैसा राजा होगा, प्रजा भी वैसी ही होगी। राजा दानी, त्यागी और परोपकारी होगा, तो प्रजा भी उसी के अनुरूप आचरण करेगी, परन्तु प्रजा के आचरण का प्रभाव राजा पर भी पड़ता है। जनता त्याग-भावना का आचरण करती है तो तब राजा अर्थात् देवता भी त्याग करते हैं, जनता की प्रार्थना सुनकर इच्छित फल देते हैं।
प्रश्न 2 – निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
वर्षा के बादलों के स्वामी हैं इंद्र, और इंद्र की सेना टोली बाँध कर कीचड़ में लथपथ निकलती, पुकारते हुए मेघों को, पानी माँगते हुए प्यासे गलों और सूखे खेतों के लिए। पानी की आशा पर जैसे सारा जीवन आकर टिक गया हो। बस एक बात मेरे समझ में नहीं आती थी कि जब चारों ओर पानी की इतनी कमी है तो लोग घर में इतनी कठिनाई से इकट्ठा करके रखा हुआ पानी बाल्टी भर-भर कर इन पर क्यों फेंकते हैं। कैसी निर्मम बरबादी है पानी की। देश की कितनी क्षति होती है इस तरह के अंधविश्वासों से।
(क) इंद्र सेना किसे कहा गया है और क्यों?
उत्तर – इंद्र से पानी की माँग करने वाली बच्चों की टोली को इंद्र सेना कहा गया है क्योंकि इंद्र की सेना टोली बाँध कर कीचड़ में लथपथ निकलती है , मेघों को पुकारते हुए , प्यासे गलों और सूखे खेतों के लिए पानी माँगते हुए पूरे गाँव में घूमती हैं।
(ख) लेखक को कौन-सी बात समझ नहीं आती थी और क्यों?
उत्तर – लेखक को यह बात समझ नहीं आती थी कि जब चारों ओर पानी की इतनी कमी है तो लोग घर में इतनी कठिनाई से इकट्ठा करके रखा हुआ पानी बाल्टी भर-भर कर इंद्र सेना पर क्यों फेंकते हैं। लेखक को यह अंधविश्वास व् पानी की निर्मम बरबादी लगती थी।
(ग) ‘कैसी निर्मम बरबादी है पानी की’ – कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – “कैसी निर्मम बर्बादी है पानी की” पंक्ति का आशय यह है कि जब चारों ओर पानी की इतनी अधिक कमी है कि जानवर और इंसान, दोनों ही पानी के लिए परेशान हो रहे हैं तो फिर भी मुश्किल से इकट्ठा किया हुआ पानी लोग इंद्रसेना पर डाल कर उसे क्यों बर्बाद करते हैं। लेखक को यह सब सरासर अंधविश्वास लगता था और उनको लगता था कि इस तरह के अन्धविश्वास देश को न जाने कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं। लेखक के अनुसार तो यह इंद्र सेना नहीं बल्कि पाखंड हैं।
प्रश्न 3 – ‘काले मेघा पानी दें’ लेख के इस कथन पर अपने विचार लिखिए – “हम आज देश के लिए करते क्या हैं? माँगें हर क्षेत्र में बढ़ी हैं, पर त्याग का कहीं नाम नहीं है।”
उत्तर – “हम आज देश के लिए करते क्या हैं? माँगें हर क्षेत्र में बढ़ी हैं, पर त्याग का कहीं नाम नहीं है।” भारतीय संस्कृति की दान व् त्याग की विशेषता का परिचायक है, और मानव समाज के लिए यह भावना हितकर है क्योंकि जब तक समाज में दान पुण्य करने वाले या इस भावना का सम्मान करने वाले लोग मौजूद रहेंगे। तब तक समाज में अराजकता व् अहिंसा जैसी दुर्भावना दूर रहेगी। परन्तु आज के समय में यह भावना लुप्त हो रही है और इसका स्थान स्वार्थ ने ले लिया है। आज के समय का व्यक्ति केवल सुख सुविधाएं अपने लिए चाहता है। उसे दूसरे व्यक्ति की दुःख तकलीफ से कोई मतलब नहीं होता।
प्रश्न 4 – मेंढक-मंडली से लेखक का क्या तात्पर्य है? वह उन पर पानी डालने को क्यों व्यर्थ मानता था?
उत्तर – गाँव में बच्चों की एक मंडली हुआ करती थी जिसमें 10-12 से लेकर 16-18 साल के लड़के होते थे। ये बच्चे अपने शरीर पर सिर्फ एक लंगोटी या जांगिया पहने रहते थे। लोगों ने इस मंडली के दो बिलकुल विपरीत नाम रखे हुए थे – इन्द्रसेना और मेंढक मंडली। जो लोग उनके नग्नस्वरूप शरीर, उनकी उछलकूद, उनके शोर-शराबे और उनके कारण गली में होने वाले कीचड़ से चिढ़ते थे, वे उन्हें अक्सर मेढक-मंडली कहते थे। और जो लोग यह मानते थे कि इस मंडली पर पानी फेंकने से बारिश हो जाएगी। वो इस मंडली को “इंद्र सेना” कहा करते थे। ये बच्चे इकट्ठे होकर भगवान इंद्र से वर्षा करने की गुहार लगाते थे। बच्चों का मानना था कि वे इंद्र की सेना के सैनिक हैं तथा उसी के लिए लोगों से पानी माँगते हैं ताकि इंद्र बादलों के रूप में बरसकर सबको पानी दें।
लेखक की समझ में यह बात नहीं आती थी कि जब चारों ओर पानी की इतनी अधिक कमी है कि जानवर और इंसान, दोनों ही पानी के लिए परेशान हो रहे हैं तो फिर भी मुश्किल से इकट्ठा किया हुआ पानी लोग इंद्रसेना पर डाल कर उसे क्यों बर्बाद करते हैं। लेखक को यह सब सरासर अंधविश्वास लगता था।
प्रश्न 5 – ‘काले मेघा पानी दें’ के आधार पर इंदर सेना के पक्ष में जीजी के तर्क का उल्लेख कीजिए।
अथवा
इंदर सेना पर पानी फेंके जाने के पक्ष में जीजी के तर्कों की समीक्षा कीजिए।
उत्तर – लेखक बच्चों की टोली पर पानी फेंके जाने के विरुद्ध था लेकिन उसकी जीजी इस बात को सही मानती है। जीजी ने जब इंद्रसेना के ऊपर पानी फेंका, तो लेखक नाराज हो गए। लेखक को मनाते हुए जीजी ने उन्हें बड़े प्यार से समझाया कि यह पानी की बर्बादी नहीं है। बल्कि यह तो पानी का अर्क है जो हम इंद्रसेना के माध्यम से इंद्रदेव पर चढ़ाते हैं। ताकि वे प्रसन्न हो कर हम पर पानी की बरसात करें। जो चीज इंसान पाना चाहता है, यदि पहले उस चीज़ को देगा नहीं तो पाएगा कैसे। इसके लिए जीजी ऋषि-मुनियों के दान को सबसे ऊंचा स्थान दिए जाने को प्रमाणस्वरूप बताती है। जीजी फिर लेखक को समझाते हुए कहती हैं कि सब ऋषि मुनि कह गए, पहले खुद दो, तब देवता तुम्हें चौगुना-आठगुना कर लौटाऐंगे।
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Chapter 13 – पहलवान की ढोलक
प्रश्न 1 – निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
रात्रि की विभीषिका को सिर्फ़ पहलवान की ढोलक ही ललकारकर चुनौती देती रहती थी। पहलवान संध्या से सुबह तक, चाहे जिस खयाल से ढोलक बजाता हो, किंतु गाँव के अर्द्धमृत, औषधि-उपचार-पथ्य-विहीन प्राणियों में वह संजीवनी शक्ति ही भरती थी। बूढ़े-बच्चे-जवानों की शक्तिहीन आँखों के आगे दंगल का दृश्य नाचने लगता था। स्पंदन-शक्ति-शून्य स्नायुओं में भी बिजली दौड़ जाती थी। अवश्य ही ढोलक की आवाज़ में न तो बुखार हटाने का कोई गुण था और न महामारी की सर्वनाश शक्ति को रोकने की शक्ति ही, पर इसमें संदेह नहीं कि मरते हुए प्राणियों को आँख मूँदते समय कोई तकलीफ़ नहीं होती थी, मृत्यु से वे डरते नहीं थे।
(क) रात्रि की विभीषिका को पहलवान की ढोलक किस प्रकार चुनौती देती थी?
उत्तर – रात्रि की विभीषिका को पहलवान की ढोलक ललकारकर चुनौती देती थी।
(ख) ‘अर्द्धमृत, औषधि-उपचार-पथ्य-विहीन प्राणियों’ से आप क्या समझते? ढोलक से उनमें शक्ति कैसे आ जाती थी?
उत्तर – पहलवान संध्या से सुबह तक, चाहे जिस खयाल से ढोलक बजाता हो, किंतु गाँव के अर्द्धमृत, औषधि-उपचार-पथ्य-विहीन प्राणियों में वह संजीवनी शक्ति ही भरती थी। बूढ़े-बच्चे-जवानों की शक्तिहीन आँखों के आगे दंगल का दृश्य नाचने लगता था। स्पंदन-शक्ति-शून्य स्नायुओं में भी बिजली दौड़ जाती थी।
(ग) ढोलक की आवाज का लोगों पर क्या-क्या प्रभाव पड़ता था?
उत्तर – अवश्य ही ढोलक की आवाज़ में न तो बुखार हटाने का कोई गुण था और न महामारी की सर्वनाश शक्ति को रोकने की शक्ति ही, पर इसमें संदेह नहीं कि मरते हुए प्राणियों को आँख मूँदते समय कोई तकलीफ़ नहीं होती थी, मृत्यु से वे डरते नहीं थे।
प्रश्न 2 – लुट्टन पहलवान ने ढोल को अपना गुरु क्यों कहा?
उत्तर – लुट्टन सिंह को कुश्ती सिखाने वाला कोई गुरु नहीं था। वह ढोलक को ही अपना गुरु मनाता था। जब लुट्टन कुश्ती लड़ता था तो उस समय ढोल के बजने की आवाज से लुट्टन की रगों में मानो जोश भर जाता था। ऐसा प्रतीत आता था कि उसे ढोल की थाप कुश्ती में दाँव-पेंच लड़ने के निर्देश दे रही हैं। पाठ में ढोल की आवाज की कई ध्वन्यात्मक शब्दों का उल्लेख भी कहानीकार ने किया है। ढोल के इन शब्दों के साथ लुट्टन ने अपनी कुश्ती के दाँव-पेंचों का अद्भुत तालमेल बना लिया था।
प्रश्न 3 – भाव स्पष्ट कीजिए-“ढोलक की थाप मृत गाँव में संजीवनी शक्ति भरती रहती थी।”
उत्तर – पहलवान की ढोलक निरीह, साधनहीन और विवश गाँव वालों के प्रति संजीवनी की भूमिका निभाती थी। पूरा गाँव माहमारी से पीड़ित था और मौत के डर ने पूरे गाँव की मानो पूरी शक्ति ही छीन ली थी। पहलवान की ढोलक संध्याकाल से लेकर प्रात:काल तक लगातार एक ही गति से बजती रहती थी। महामारी की त्रासदी से जूझते हुए ग्रामीणों को ढोलक की आवाज संजीवनी शक्ति की तरह मौत से लड़ने की प्रेरणा देती थी। महामारी फैलने पर गाँव में चिकित्सा और देखरेख के अभाव में ग्रामीणों की दशा दयनीय हो जाती थी। लोग दिन भर खाँसते कराहते रहते थे। रोज दो-चार व्यक्ति मरते थे। दवाओं के अभाव में उनकी मृत्यु निश्चित थी। शरीर में शक्ति नहीं रहती थी। पहलवान की ढोलक मृतप्राय शरीरों में आशा व जीवंतता भरती थी। वह संजीवनी शक्ति का कार्य करती थी।
प्रश्न 4 – “’पहलवान की ढोलक’ कहानी पारंपरिक रूप से लोकप्रिय रहे कुश्ती जैसे खेलों के प्रति नई पीढ़ी की सोच में आए परिवर्तनों को भी दर्ज करती है,”- टिप्पणी कीजिए।
अथवा
‘पहलवान की ढोलक’ आज हमारे द्वारा लोककला और लोक कलाकारों को अप्रासंगिक बना दिए जाने की करुण कथा भी है। आधुनिकता के दिखावे में हम उन्हें भूलते जा रहे हैं।” तर्क सहित प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर – ‘पहलवान की ढोलक’ कहानी में व्यवस्था के बदलने के साथ लोककला व इसके कलाकार के अप्रासांगिक हो जाने की कहानी है। राजा साहब को कुश्ती में दिलचस्पी थी परन्तु उनकी जगह नए राजकुमार का आकर कुश्ती को फजूलख़र्ची बताकर बंद कर देना और पहलवानों को निकाल देना, सिर्फ व्यक्तिगत सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि पुरानी व्यवस्था को पूरी तरह उलट देने और उस पर सभ्यता के नाम पर एक दम नयी व्यवस्था के स्थापित करने का प्रतीक है। यह ‘भारत’ पर ‘इंडिया’ के छा जाने की समस्या है जो लुट्टन पहलवान को लोक कलाकर के आसन से उठाकर पेट भरने के लिए कठोर मेहनत करने वाली निरीहता की भूमि पर पटक देती है।
प्राचीन लोक-कलाओं के पुनर्जीवन के लिए निम्नलिखित प्रयास किए जा सकते हैं- जैसे –
प्राचीन लोक-कलाओं के महत्त्व को आज की पीढ़ी के समक्ष प्रस्तुत करना।
प्राचीन लोक-कलाओं का अधिक से अधिक मंचन करना।
प्राचीन लोक-कलाओं की प्रतियोगिताएँ आयोजित करना इत्यादि।
प्रश्न 5 – लोककलाओं और कलाकारों के प्रति राजा श्यामानंद और उनके पुत्र के दृष्टिकोण में क्या मूलभूत अंतर था? आप इसका कारण क्या मानते हैं ? ‘पहलवान की ढोलक’ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर – लोककलाओं और कलाकारों के प्रति राजा श्यामानंद का नजरिया जहाँ सकारात्मक था वहीँ उनके पुत्र का दृष्टिकोण इस ओर बिलकुल नकारात्मक था। वह कुश्ती जैसे खेल को समय व् धन की बर्बादी समझता था। लोककलाओं और कलाकारों के प्रति उसका कोई आदर भाव नहीं था। हमारे अनुसार राजकुमार अपने आपको नई पीढ़ी का समझता होगा और उसके समय में मनोरंजन के दूसरे साधन उसने खोज लिए होंगे। जिस कारण उसकी लोककलाओं और कलाकारों में रूचि नहीं रही होगी।
प्रश्न 6 – पहलवान की ढोलक का गाँव वालों पर क्या प्रभाव होता था?
उत्तर – गाँव में महामारी फैलने और सही उपचार न मिलने के कारण लोग रोज मर रहे थे और लोगों में निराशा व् हताशा फैल गई थी। घर के घर खाली हो रहे थे और लोगों का मनोबल दिन प्रतिदिन टूटता जा रहा था। ऐसे में पहलवान की ढोलक की आवाज ही लोगों को उनके जिंदा होने का एहसास दिलाती थी। वह उनके लिए संजीवनी का काम करती थी।
प्रश्न 7 – असहाय और मरणासन्न लोगों के लिए पहलवान की ढोलक कैसे सहारा बनती थी? स्वयं लुट्टन की अंतिम इच्छा क्या थी?
उत्तर – रात की खमोशी को सिर्फ लुट्टन सिंह पहलवान की ढोलक ही तोड़ती थी। पहलवान की ढोलक संध्याकाल से लेकर प्रात:काल तक लगातार एक ही गति से बजती रहती थी और गाँव में फैली महामारी से होने वाली मौतों को चुनौती देती रहती थी। ढोलक की आवाज निराश, हताश, कमजोर और अपनों को खो चुके लोगों में संजीवनी भरने का काम करती थी।
पहलवान को मृत देखकर आँसू पूछते हुए उसके एक शिष्य ने कहा कि “गुरुजी कहा करते थे कि जब मैं मर जाऊं तो मुझे पीठ के बल नहीं बल्कि पेट के बल चिता पर लिटाना और चिता जलाते वक्त ढोलक अवश्य बजाना”। कहने का अभिप्राय यह है कि पहलवान नहीं चाहता था कि उसके मरने के बाद चिता पर उसे पीठ के बल लेटाया जाए क्योंकि कुश्ती में पीठ के लेटने का अर्थ हारना होता है और पहलवान जिंदगी से हार मानकर नहीं मरना चाहता था।
प्रश्न 8 – लुट्टन राज के लुट्टन सिंह बन जाने की घटना संक्षेप में लिखिए।
उत्तर – लुट्टन राज की चुनौती चाँद सिंह ने स्वीकार कर ली लेकिन जब लुट्टन राज , चाँद सिंह से भिड़ा तो चाँद सिंह बाज की तरह लुट्टन से भीड़ गया और उसने पहली बार में ही लुट्टन को जमीन में पटक दिया। लेकिन लुट्टन उठ खड़ा हुआ और दुबारा दंगल शुरू हुआ। परन्तु राजा साहब ने बीच में ही कुश्ती रोक कर लुट्टन को बुलाकर उसके साहस के लिए उसे दस रूपए देकर मेला घूमने और घर जाने को कहा। परन्तु इस बार लुट्टन ने सभी की उम्मीदों के विपरीत चांद सिंह को चित कर दिया। उसने इस पूरी कुश्ती में ढोल को अपना गुरु मानते हुए उसके स्वरों के हिसाब से ही दांव-पेंच लगाया और कुश्ती जीत ली। जीत की ख़ुशी में उसने राजा जी को उठा लिया और राजा ने भी प्रसन्न होकर कहा कि उसने बाहर से आए पहलवान को हरा कर अपनी मिट्टी की लाज रख ली और उन्होंने उसे राज पहलवान बना दिया।
प्रश्न 9 – लुट्टन पहलवान के सम्मानित जीवन को अचानक असम्मानित जीवन में बदल जाने के लिए आप किसे उत्तरदायी मानते हैं?
उत्तर – राजा की मृत्यु के बाद उनके बेटे ने राज्य का भार संभाल लिया। नये राजा को कुश्ती में बिलकुल भी दिलचस्पी नहीं थी। और लुट्टन सिंह पर होने वाला खर्चा सुन कर वह हक्का-बक्का रह गया अतः उसने लुट्टन सिंह को राजदरबार से निकाल दिया। लुट्टन के जीवन का यह परिवर्तन संकेत करता है कि समय के साथ व् नयी पीढ़ी के शोक व् जरूरतें बदलती रहती हैं। अतः हमें हर परिस्थिति से जूझने के लिए तैयार रहना चाहिए और समय के साथ कुछ परिवर्तन भी जीवन में आवश्यक हो जाते हैं।
प्रश्न 10 – ‘पहलवान की ढोलक’ के आधार पर साधनहीन ग्रामीणों के जीवन पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर – जाड़ों के मौसम में गाँव में महामारी फैली हुई थी। गांव के अधिकतर लोग मलेरिया और हैजे से ग्रस्त थे। जाडे के दिन थे और रातें एकदम काली अंधेरी व डरावनी लग रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे रात उस गाँव के दुःख में दुःखी होकर चुपचाप आँसू बहा रही हो। टूटते तारे का उदाहरण देते हुए लेखक बताता है कि उस गाँव के दुःख को देख कर यदि कोई बाहरी व्यक्ति उस गाँव के लोगों की कुछ मदद करना भी चाहता था तो चाह कर भी नहीं कर सकता था क्योंकि उस गाँव में फैली महामारी के कारण कोई भी अपने जीवन को कष्ट नहीं डालना चाहता था।
इन सभी बातों से ग्रामीणों के साधनहीन होने का पता चलता है कि गाँव में बिमारी से लड़ने के लिए किसी भी प्रकार की सुविधा नहीं थी और लोग तड़प-तड़प कर मरने के लिए विवश थे।
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Chapter 14 – शिरीष के फूल
प्रश्न 1 – निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
एक-एक बार मुझे मालूम होता है कि यह शिरीष एक अद्भुत अवधूत है। दुख हो या सुख, वह हार नहीं मनाता। न ऊधो का लेना, न माधो का देना। जब धरती और आसमान जलते रहते हैं, तब भी यह हज़रत न जाने कहाँ से अपना रस खींचते रहते हैं। मौज में आठों याम मस्त रहते हैं। एक वनस्पतिशास्त्री ने मुझे बताया है कि यह उस श्रेणी का पेड़ है जो वायुमंडल से अपना रस खींचता है। ज़रूर खींचता होगा। नहीं तो भयंकर लू के समय इतने कोमल तंतुजाल और ऐसे सुकुमार केसर को कैसे उगा सकता था? अवधूतों के मुँह से ही संसार की सबसे सरस रचनाएँ निकली हैं। कबीर बहुत कुछ इस शिरीष के समान ही थे, मस्त और बेपरवाह, पर सरस और मादक। कालिदास भी जरूर अनासक्त योगी रहे होंगे। शिरीष के फूल फक्कड़ाना मस्ती से ही उपज सकते हैं और ‘मेघदूत’ का काव्य उसी से अनासक्त अनाविल उन्मुक्त हृदय में उमड़ सकता है।
(क) लेखक ने शिरीष को अवधूत क्यों कहा है?
उत्तर – लेखक ने शिरीष को अवधूत इसलिए कहा है क्योंकि दुख हो या सुख, वह हार नहीं मनाता। न ऊधो का लेना, न माधो का देना। जब धरती और आसमान जलते रहते हैं, तब भी यह हज़रत न जाने कहाँ से अपना रस खींचते रहते हैं। मौज में आठों याम मस्त रहते हैं।
(ख) लेखक यह क्यों मानता है कि अनासक्त हृदय से ही मेघदूत जैसा श्रेष्ठ काव्य उपज सकता है?
उत्तर – अनासक्त हृदय से ही मेघदूत जैसा श्रेष्ठ काव्य उपज सकता है क्योंकि मेघदूत जैसे काव्य को रचने के लिए जिस फक्कड़ाना मस्ती की आवश्यकता है वह कालिदास में थी।
(ग) वर्तमान के संघर्षपूर्ण जीवन में शिरीष के माध्यम से लेखक क्या संकेत देना चाह रहा है?
उत्तर – जिस तरह शिरीष के फूल आँधी, लू, भयंकर गर्मी आदि विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए भी अपनी कोमलता व सुंदरता को बनाए रहता है, उसी तरह हमें भी अपने जीवन की विपरीत परिस्थितियों में अपने धैर्य व संयम को बनाए रखते हुए अपने जीवन में आगे बढ़ते रहना चाहिए। शिरीष का फूल हमें जीवन में लगातार संधर्ष करने की प्रेरणा देता हैं।
प्रश्न 2 – लेखक ने शिरीष को अवधूत की तरह क्यों माना है?
उत्तर – लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत कहा है। “कालजयी” अर्थात जिसने काल पर विजय प्राप्त कर ली हो और “अवधूत” यानि एक ऐसा सन्यासी जिसे सुख-दुख, अच्छे-बुरे से कोई फर्क न पड़ता हो। जिसके भाव हर परिस्थिति में एक समान रहते हों। यही सब लक्षण शिरीष के फूल में भी हैं जिस कारण लेखक ने शिरीष के फूल को कालजयी अवधूत कहा है। क्योंकि शिरीष का फूल भयंकर गरमी, उमस, लू आदि के बीच सरस रहता है। वसंत में वह लहक उठता है तथा भादों मास तक फलता-फूलता रहता है। उस पर ना भयंकर गर्मी का असर दिखाई देता है और ना ही तेज बारिश का कोई प्रभाव। वह काल व समय को जीतकर एक सामान लहलहाता रहता है।
प्रश्न 3 – किन विशेषताओं के कारण लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत कहा है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – शिरीष का फूल भयंकर गरमी, उमस, लू आदि के बीच सरस रहता है। वसंत में वह लहक उठता है तथा भादों मास तक फलता-फूलता रहता है। उस पर ना भयंकर गर्मी का असर दिखाई देता है और ना ही तेज बारिश का कोई प्रभाव। वह काल व समय को जीतकर एक समान लहलहाता रहता है।
शिरीष के इन्हीं विशेषताओं को देखकर लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत कहा है क्योंकि वह सुख-दुख से परे, कठोर परिस्थितियों में भी अडिग रहता है और अपनी सुंदरता से जीवन की अजेयता का संदेश देता है।
प्रश्न 4 – ‘शिरीष के फूल’ निबंध में लेखक ने अपने देश के ‘एक बूढ़े’ का उल्लेख किया। वह बूढ़ा कौन था? शिरीष के संदर्भ में उसे क्यों याद किया गया?
उत्तर – ‘शिरीष के फूल’ निबंध में लेखक ने अपने देश के ‘एक बूढ़े’ का उल्लेख किया। वह बूढ़ा गाँधी जी थे। शिरीष के संदर्भ में उन्हें इसलिए याद किया गया
क्योंकि गांधी जी सत्य, अहिंसा, प्रेम आदि कोमल भावों से युक्त थे। वे दूसरे के कष्टों से द्रवित हो जाते थे। वे अंग्रेजों के प्रति भी कठोर न थे। दूसरी तरफ वे अनुशासन व नियमों के मामले में कठोर थे। वे अपने अधिकारों के लिए डटकर संघर्ष करते थे तथा किसी भी दबाव के आगे झुकते नहीं थे। ब्रिटिश साम्राज्य को उन्होंने अपनी दृढ़ता से ढहाया था। इस तरह गांधी के व्यक्तित्व की विशेषता-कोमल व कठोर भाव बन गए थे।
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Chapter 15 – श्रम विभाजन और जाति-प्रथा
प्रश्न 1 – डॉ. आम्बेडकर ने शाब्दिक अर्थ में असंभव होते हुए भी ‘समता’ को नियामक सिद्धांत मानने पर बल क्यों दिया है?
अथवा
वंश परंपरा और सामाजिक उत्तराधिकार की दृष्टि से मनुष्य में संभावित असमानता के हो हुए भी डॉ. आम्बेडकर ने ‘समता’ को एक व्यवहार्य सिद्धांत मानने का आग्रह क्यों किया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – शारीरिक वंश परंपरा और सामाजिक उत्तराधिकार की दृष्टि से मनुष्यों में असमानता संभावित रहने के बावजूद आंबेडकर समता को एक व्यवहार्य सिद्धांत मानने का आग्रह इसलिए करते हैं क्योंकि किसी भी वर्ग या समुदाय में पैदा होना किसी व्यक्ति के हाथ में नहीं होता। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी कार्य क्षमता के विकास करने का समान अवसर मिलना चाहिए। अंबेडकर जी शारीरिक वंश परंपरा व सामाजिक उत्तराधिकार के आधार पर असमान व्यवहार को अनुचित ठहराते हैं। उनका मानना यह है कि यदि समाज चाहता है कि उसे बेहतरीन से बेहतरीन नागरिक व् आदर्श व्यक्तित्व वाले व्यक्ति चाहिए, तो उसे समाज के प्रत्येक सदस्यों को बिना वर्ग की परवाह किए शुरू से ही समान अवसर व समान व्यवहार उपलब्ध करवाने चाहिए।
प्रश्न 2 – डॉ.आंबेडकर ने राजनीतिज्ञ को व्यवहार में किस व्यवहार्य सिद्धांत की आवश्यकता बताई है?
उत्तर – अंबेडकर जी कहते हैं कि मानवता की दृष्टि से समाज को दो श्रेणियों में नहीं बांटा जा सकता। व्यवहारिक सिद्धांत भी यही कहता है कि सभी के साथ समान व्यवहार किया जाए। जैसे राजनीतिज्ञ सबके साथ समान व्यवहार करते हैं। राजनेता इसी धारणा को लेकर चलता है कि सबके साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए। तभी उसकी राजनीति फलती फूलती है। हालांकि समानता एक काल्पनिक जगत की वस्तु है फिर भी राजनीतिज्ञ को सभी परिस्थितियों को दृष्टि में रखते हुए , यही मार्ग अपनाना पड़ता है क्योंकि यही व्यवहारिक भी है और यही उसके व्यवहार की एकमात्र कसौटी भी है।
प्रश्न 3 – डॉ. आम्बेडकर जाति-प्रथा को श्रम विभाजन का ही एक रूप क्यों नहीं मानते थे?
अथवा
जाति प्रथा को श्रम-विभाजन का रूप न मानने के पीछे डॉ आम्बेडकर के तर्कों को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर – समाज के विकास के लिए कार्य का बंटवारा भी आवश्यक है। परन्तु समाज का विकास तभी संभव है जब यह कार्य विभाजन किसी जाति के आधार पर नहीं बल्कि व्यक्ति की योग्यता, रूचि और उसकी कार्य कुशलता व निपुणता के आधार पर हो। भारतीय समाज की जाति प्रथा की एक यह भी विशेषता है कि यह कार्य के आधार पर श्रमिकों का विभाजन नहीं करती बल्कि समाज में पहले से ही विभाजित वर्गों अर्थात ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र, के आधार पर कार्य का विभाजन करती है। उदाहरण के तौर पर ब्राह्मण का बेटा वेद-पुराणों का ही अध्ययन करेगा तो क्षत्रिय का बेटा रक्षा का ही कार्य करेगा, लोहार का बेटा लोहार का ही कार्य करेगा। भले ही इन कार्यों को करने में उनकी रूचि हो या न हो। इस तरह की व्यवस्था विश्व के किसी भी समाज में नहीं दिखाई देती है। भीमराव अंबेडकर जी कहते हैं कि एक समय के लिए जाति प्रथा को यदि श्रम विभाजन मान भी लिया जाए तो भी यह स्वाभाविक और उचित नहीं होगा। क्योंकि यह मनुष्य की रुचि के हिसाब से नहीं है। इसमें व्यक्ति जिस जाति या वर्ग में जन्म लेता हैं, उसे उसी के अनुसार कार्य करना होता हैं।
प्रश्न 4 – डॉ. आंबेडकर ने मनुष्यों की क्षमता को किन बातों पर निर्भर माना है? उनका उल्लेख कीजिए।
उत्तर – व्यक्ति को उसकी रूचि के आधार पर कार्य करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। जैसे अगर कोई ब्राह्मण का पुत्र सैनिक, वैज्ञानिक या इंजीनियर बनकर देश सेवा करना चाहता है तो उसे ऐसा करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। कहने का अभिप्राय यह है कि व्यक्ति को अपनी रुचि व क्षमता के हिसाब से अपना कार्य क्षेत्र चुनने की पूर्ण स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। तभी देश का युवक वर्ग अपनी पूरी क्षमता से समाज व राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभा पाएंगे।
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Vitan Bhag 2 Book Lessons
Chapter 1 – सिल्वर वैडिंग
प्रश्न 1 – यशोधर बाबू जीवन में नए और पुराने के द्वंद्व में फंस गए हैं, आपके विचार से उन्हें क्या करना चाहिए और क्यों?
उत्तर – एक और जहाँ यशोधर बाबू पुराने ख्यालात के व्यक्ति हैं जो अपने परंपरागत आदर्शों और अपने संस्कारों को जीवित रखना चाहते है वहीँ दूसरी ओर उनके बच्चे नए जमाने के हिसाब से जीवन जीने में विश्वास रखते है। यशोधर बाबू जीवन में नए और पुराने के द्वंद्व में फंस गए हैं। हमारे विचार से यशोधर बाबू को समय के अनुसार बदलना चाहिए। क्योंकि नई सोच के साथ नई सोच को अपना कर ही अपने जीवन को आसान बना सकते हैं। जीवन में समय के साथ अच्छा बदलाव बहुत जरूरी होता है। क्योंकि पुरानी सोच को छोड़ कर आगे बढ़ना ही एक आदर्श जीवन कहलाता है।
प्रश्न 2 – बार-बार ‘सम हाउ इंप्रापर’ कहना यशोधर बाबू के व्यक्तित्व के किन पहलुओं को उजागर करता है? ‘इंप्रापर’ को वे अंततः स्वीकार क्यों कर लेते हैं?
अथवा
अपने साथ होने वाली अनेक बातें यशोधर बाबू को ‘समहाउ इंप्रापर’ लगती हैं। ऐसी दो बातों पर टिप्पणी कीजिए जिनसे आपको भी लगता हो कि वे ऐसी हैं।
अथवा
यशोधर बाबू अनेक बातों को ‘समहाउ इंप्रॉपर’ मानते हैं और फिर उन्हें मान भी लेते हैं। इस आलोक में उनके चरित्र का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर – यशोधर बाबू ‘समहाउ इंप्रॉपर’ वाक्यांश का प्रयोग तकिया कलाम की तरह करते हैं। उन्हें जब भी कुछ अनुचित लगता या उन्हें किसी में कोई कमियाँ नजर आती तो वे इस वाक्यांश का प्रयोग करते थे। पाठ में अनेक स्थानों पर ‘समहाउ इंप्रॉपर’ वाक्यांश का प्रयोग हुआ है। जैसे –
जब दफ़्तर में उनकी सिल्वर वैडिंग का वाक्य हुआ।
जब उन्हें अपने साधारण पुत्र को असाधारण वेतन मिलने पर शंका हुई।
जब उनके अपनों से उन्हें परायेपन का व्यवहार मिलने लगा।
जब डी०डी०ए० फ़्लैट का पैसा भरना उन्हें उनुचित लगा।
जब उनके बड़े पुत्र द्वारा वेतन उनके हाथ में नहीं दिया गया और जब बड़ा बेटा अपने वेतन से लाइ चीजों पर अपना एकाधिकार समझने लगा।
जब उनकी पत्नी पुराने तौर–तरीकों को छोड़ कर आधुनिक बन गई।
जब घर पर उनकी सिल्वर वैडिंग पार्टी रखी गई।
जब केक काटने की विदेशी परंपरा निभाने को कहा गया। इत्यादि।
इन सभी जगहों पर इस वाक्यांश के प्रयोग से यशोधर बाबू के व्यक्तित्व के बारे में पता चलता है कि वे जमाने के हिसाब से अप्रासंगिक हो गए हैं। यह पीढ़ियों के अंतराल को दर्शाता है। वे अपनी पीढ़ी में ही अटक कर रह गए हैं और अपने परिवार को भी उसी तरह रखने का प्रयास करते हैं।
प्रश्न 3 – कैसे कह सकते हैं कि ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी मध्यवर्गीय जीवन के द्वंद्व को उजागर करती है? अपने उत्तर की पुष्टि सोदाहरण कीजिए।
उत्तर – वर्तमान युग में युवा पीढ़ी और बुजुर्गों के दृष्टिकोण में बहुत अन्तर दिखाई देता है। पुरानी पीढ़ी व नई पीढ़ी के विचारों व जीने के तौर तरीकों के अंतर होता है। कहानी के मुख्य पात्रों में यशोधर बाबू, उनकी पत्नी, उनके बच्चे व् किशनदा आदि शामिल हैं। एक और जहाँ यशोधर बाबू पुराने ख्यालात के व्यक्ति हैं जो अपने परंपरागत आदर्शों और अपने संस्कारों को जीवित रखना चाहते है वहीँ दूसरी ओर उनके बच्चे नए जमाने के हिसाब से जीवन जीने में विश्वास रखते है। कहानी में भी इसी नई पीढ़ी व् पुरानी पीढ़ी के बीच के द्वंद्व को दर्शाया गया है।
प्रश्न 4 – ‘सिल्वर वैडिंग’ की शाम को सेक्शन ऑफीसर यशोधर पंत की कार्यालयी गतिविधियों पर एक विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
अथवा
सेक्शन ऑफीसर वाई.डी. पंत के अपने सहकर्मियों से संबंध तथा उनके कार्यालयी अनुभवों का वर्णन कीजिए।
अथवा
सेक्शन ऑफीसर वाई.डी.पंत के कार्यालय जीवन और सहकर्मियों से परस्पर व्यवहार पर चर्चा कीजिए।
उत्तर – वाई.डी. पंत अर्थात यशोधर बाबू जो की सेक्शन ऑफिसर हैं वे अपने दफ़्तर की पुरानी दीवार घड़ी पर नजर दौड़ाते हैं जो पाँच बजकर पच्चीस मिनट बजा रही थी। उसके बाद वे अपनी कलाई घड़ी को देखते हैं जिसमें साढ़े पाँच बज रहे थे। यशोधर बाबू अपनी घड़ी रोजाना सुबह-शाम रेडियो समाचारों से मिलाते हैं इसलिए उन्होंने अपने दफ़्तर की घड़ी को ही सुस्त ठहराया। वैसे तो उनका ऑफिस पाँच बजे ही समाप्त हो जाता था किन्तु यशोधर बाबू के कारण सभी को पांच बजे के बाद भी दफ़्तर में बैठना पड़ता हैं।
प्रश्न 5 – यशोधर बाबू अपने जीवन के आस-पास हो रहे परिवर्तनों के साथ तालमेल बिठाने में क्या कठिनाई महसूस कर रहे थे और क्यों?
उत्तर – यशोधर बाबू अपने जीवन के आस-पास हो रहे परिवर्तनों के साथ तालमेल बिठाने में इसलिए कठिनाई महसूस कर रहे थे क्योंकि यशोधर बाबू पुराने ख्यालात के व्यक्ति थे जो अपने परंपरागत आदर्शों और अपने संस्कारों को जीवित रखना चाहते थे। अपने बच्चों को भी अपनी संस्कृति से जोड़े रखना चाहते थे। समय का सदुपयोग करना, अपना काम स्वयं करना व् अपने से बड़ों की इज्जत करना जैसे संस्कारों को वे नई पीढ़ी को देना चाहते थे। कहा जा सकता है कि यशोधर बाबू पुरानी पीढ़ी से संबंधित थे और परंपरागत आदर्शों व संस्कारों को संजोए रखना चाहते थे। वे अपनी संस्कृति और मूल्यों को जीवित रखने के पक्षधर थे। यशोधर बाबू चाहते थे कि नई पीढ़ी समय का सदुपयोग करे, अपना काम स्वयं करे और बड़ों का सम्मान करना सीखे।
प्रश्न 6 – क्या यशोधर बाबू को अतीत जीवी कहा जा सकता है? पक्ष या विपक्ष में उदाहरण सहित अपना उत्तर दीजिए।
उत्तर – सिल्वर वैडिंग’ का प्रधान पात्र यशोधर बाबू है। वह रहता तो वर्तमान में हैं, परंतु जीता अतीत में है। वह अतीत को आदर्श मानता है। यशोधर को पुरानी जीवन शैली, विचार आदि अच्छे लगते हैं, वे उसका स्वप्न हैं। परंतु वर्तमान जीवन में वे अप्रासंगिक हो गए हैं। कहानी में यशोधर का परिवार नए ज़माने की सोच का है। वे प्रगति के नए आयाम छूना चाहते हैं। उनका रहन-सहन, जीने का तरीका, मूल्यबोध, संयुक्त परिवार के कटु अनुभव, सामूहिकता का अभाव आदि सब नए ज़माने की देन है। यशोधर को यह सब ‘समहाड इम्प्रापर’ लगता है। उन्हें हर नई चीज़ में कमी नजर आती है। वे नए जमाने के साथ तालमेल नहीं बना पा रहे। वे अधिकांश बदलावों से असंतुष्ट हैं। वे बच्चों की तरक्की पर खुलकर प्रतिक्रिया नहीं दे पाते। यहाँ तक कि उन्हें बेटे भूषण के अच्छे वेतन में गलती नजर आती है। दरअसल यशोधर बाबू अपने समय से आगे निकल नहीं पाए। उन्हें लगता है कि उनके जमाने की सभी बातें आज भी वैसी ही होनी चाहिए। यह संभव नहीं है। इस तरह के रूढ़िवादी व्यक्ति समाज के हाशिए पर चले जाते हैं।
प्रश्न 7 – यशोधर बाबू के व्यक्तित्व की तीन प्रमुख विशेषताएँ लिखते हुए समझाइए कि नई पीढ़ी के लिए इन्हें अपनाना क्यों उपयुक्त है। ‘सिल्वर वैडिंग’ के आधार पर लिखिए।
उत्तर – यशोधर बाबू के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं जिन्हें अपनाना नई पीढ़ी के लिए उपयुक्त है – जैसे –
भौतिक सुख के विरोधी – यशोधर भौतिक संसाधनों के घोर विरोधी थे। उन्हें घर या दफ्तर में पार्टी करना पसंद नहीं था। वे पैदल चलते थे या साइकिल पर चलते थे। केक काटना, काले बाल करना, मेकअप, धन संग्रह आदि पसंद नहीं था।
परंपरावादी – यशोधर परंपरा का निर्वाह करते थे। उन्हें सामाजिक रिश्ते निबाहने में आनंद आता था। वे अपनी बहन को नियमित तौर पर पैसा भेजते थे। वे रामलीला आदि का आयोजन करवाते थे।
अपरिवर्तनशील – यशोधर बाबू आदर्शों से चिपके रहे। वे समय के अनुसार अपने विचारों में परिवर्तन नहीं ला सके। वे रूढ़िवादी थे। उन्हें बच्चों के नए प्रयासों पर संदेह रहता था। वे सेक्शन अफ़सर होते हुए भी साइकिल से दफ्तर जाते थे।
प्रश्न 8 – किशन दा और यशोधर बाबू के संबंधों पर टिप्पणी करते हुए पुष्टि कीजिए कि किशन दा के प्रभाव से वे आजीवन मुक्त नहीं हो पाए।
उत्तर – ‘सिल्वर वैडिंग’ में यशोधर बाबू किशनदा के आदर्श को इसलिए त्याग नहीं पाते क्योंकि यशोधर बाबू जिस समय दिल्ली आए थे उनकी उम्र सरकारी नौकरी के लिए कम थी। तब किशनदा ने उन्हें मैस का रसोइया बनाकर रख लिया। यही नहीं, उन्होंने यशोधर बाबू को पचास रूपये उधार भी दिए थे ताकि वह अपने लिए कपड़े बनवा सके और गाँव पैसा भेज सके। बाद में किशनदा ने ही अपने ही नीचे नौकरी दिलवाई और दफ़्तरी जीवन में उनका मार्ग-दर्शन भी किया।
प्रश्न 9 – ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के आधार पर यशोधर पंत का चरित्र-चित्रण अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर – यशोधर बाबू पुराने ख्यालात के व्यक्ति हैं जो अपने परंपरागत आदर्शों और अपने संस्कारों को जीवित रखना चाहते है। यशोधर बाबू अपने बटुए में सौ-डेढ़ सौ रुपये हमेशा रखते हैं परन्तु उनका दैनिक खर्च बिलकुल न के बराबर है। क्योंकि पहले तो गोल मार्केट से ‘सेक्रेट्रिएट’ तक वे साइकिल में आते-जाते थे, मगर अब पैदल आने-जाने लगे हैं क्योंकि उनके बच्चों को उनका साइकिल-सवार होना सख्त नागवार है। बच्चों के अनुसार साइकिल तो चपरासी चलाते हैं। स्कूटर उन्हें पसंद नहीं और कार वे ‘अफोर्ड’ नहीं कर सकते। यशोधर बाबू रोज दफ्तर से बिड़ला मंदिर जाते हैं और उसके उद्यान में बैठकर प्रवचन सुनते हैं। यह बात उनके पत्नी-बच्चों को अच्छी नहीं लगती। क्योंकि उनके अनुसार वे इतने बुड्डे नहीं हैं कि रोज़-रोज़ मंदिर जाएँ, इतने ज़्यादा व्रत करें। बिड़ला मंदिर से यशोधर बाबू पहाड़गंज जाते हैं और घर के लिए साग-सब्जी खरीद लाते हैं। ये सब काम निपटाते हुए वे घर आठ बजे से पहले नहीं पहुँचते। यशोधर बाबू का अपनी पत्नी और बच्चों से हर छोटी-बड़ी बात में मतभेद होने लगा है और इसी वजह से वह घर जल्दी लौटना पसंद नहीं करते।
प्रश्न 10 – यशोधर बाबू ने किशन दा से किन जीवन मूल्यों को पाया था? उनका उल्लेख करते हुए बताइए कि आपके लिए भी वे उपयोगी हो सकते हैं तो कैसे?
अथवा
यशोधर बाबू ने किशन दा से किन जीवन-मूल्यों को पाया था? क्या आप भी उन्हें अपनाना चाहेंगे क्यों?
उत्तर – यशोधर बाबू को किशन दा से अनेक बातें विरासत में मिली थी। वह किशनदा के व्यक्तित्व से बेहद प्रभावित थे और उन्होंने किशनदा के कई गुणों को अपनाया। जैसे ऑफिस में काम काज मन लगाकर करना, अपने सहयोगियों के साथ प्रेम व आत्मीयता के संबंध कायम रखना, सुबह-सुबह टहलने की आदत डालना, पहनने-ओढ़ने का शालीन तरीका अपनाना, किराए के मकान में रहना और रिटायर हो जाने पर गाँव वापस चले जाना। आदर्शता की बातों को दोहराना और उन पर कायम रहना, हमेशा मुस्कुराना आदि जैसे जीवन मूल्यों को उन्होंने किशनदा से सीखा और उन्हें अपने जीवन में उतारा।
हम अपने जीवन में किशन दा की, अपने सहयोगियों के साथ प्रेम व आत्मीयता के संबंध कायम रखना, सुबह-सुबह टहलने की आदत डालना जैसे गुणों को अपनाना चाहेंगे।
प्रश्न 11 – यशोधर बाबू की पत्नी तो समय के साथ अपने को ढालने में सफल होती है किन्तु यशोधर बाबू असफल रहते हैं। ‘सिल्वर वैडिंग’ पाठ के आधार पर उदाहरण सहित उत्तर लिखिए।
उत्तर – यशोधर बाबू के माता–पिता का देहांत उनके बचपन में ही हो गया था। वे बचपन से ही जिम्मेदारियों के बोझ से लद गए थे। उनका पालन–पोषण उनकी विधवा बुआ ने किया था। अपनी मैट्रिक होने के बाद जब वे दिल्ली आए तब किशन दा जैसे कुंआरे के पास रहे। इस तरह बचपन से युवा अवस्था तक वे हमेशा पुरानी विचारधारा के लोगों के साथ रहे, पले और बढ़े। अत: उनके मन पर पुरानी परंपराओं का ऐसा रंग चढ़ा की वे उन परम्पराओं को छोड़ नहीं सके। सबसे अधिक प्रभाव उन पर किशन दा के सिद्धांतों का हुआ। इन सब कारणों के कारण यशोधर बाबू समय के साथ बदलने में असफल रहते हैं। परन्तु इसके विपरीत दूसरी तरफ, उनकी पत्नी भले ही पुराने संस्कारों की थीं। और वे एक संयुक्त परिवार में आई थीं जहाँ उन्हें कभी सुखद अनुभव नहीं हुआ। उनकी इच्छाएँ अतृप्त रहीं। उन्हें जबरदस्ती उन रीति रिवाजों को अपनाना पड़ता था जो किसी बुजुर्ग महिला के लिए थे। वे हमेशा मातृ सुलभ प्रेम के कारण अपनी संतानों का पक्ष लेती हैं और अपनी बेटी के कहने पर समय के साथ बदलने का निर्णय लेती हैं। कहीं न कहीं उनके मन में पहले से ही पुरानी परम्पराओं के प्रति रोष था जिस कारण वह समय के साथ ढल सकने में सफल होती है।
प्रश्न 12 – यशोधर बाबू अतीत के मूल्यों से चिपके रहना चाहते हैं किन्तु अन्य परिवारजन उन्हें आगे ले आने के लिए उत्सुक हैं। इस द्वंद्व पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर – यशोधर बाबू अतीत के मूल्यों से चिपके रहना चाहते हैं किन्तु अन्य परिवारजन उन्हें आगे ले आने के लिए उत्सुक हैं। यशोधर बाबू अपने जीवन के आस-पास हो रहे परिवर्तनों के साथ तालमेल बिठाने में इसलिए कठिनाई महसूस कर रहे थे क्योंकि यशोधर बाबू पुराने ख्यालात के व्यक्ति थे जो अपने परंपरागत आदर्शों और अपने संस्कारों को जीवित रखना चाहते थे। अपने बच्चों को भी अपनी संस्कृति से जोड़े रखना चाहते थे। उनके बच्चे नए जमाने के हिसाब से जीवन जीने में विश्वास रखते है। यशोधर बाबू के मन पर पुरानी परंपराओं का ऐसा रंग चढ़ा था कि वे उन परम्पराओं को छोड़ नहीं सके। सबसे अधिक प्रभाव उन पर किशन दा के सिद्धांतों का हुआ। इन सब कारणों के कारण यशोधर बाबू समय के साथ बदलने में असफल रहे। उनकी सिल्वर वेडिंग का बहाना करके उनके बच्चों ने उनमें थोड़ा परिवर्तन करना चाहा पर वे असफल रहे।
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Chapter 2 – जूझ
प्रश्न 1 – ‘जूझ’ पाठ के पात्र दत्ताजी राव देसाई ने लेखक के जीवन को कैसे प्रभावित किया? उदाहरण सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर – ‘जूझ’ कहानी में ‘दत्ता राव देसाई’ लेखक के जीवन को बहुत प्रभावित किया। दत्ता राव देसाई गाँव के प्रभावशाली व्यक्ति थे। वे बेहद समझदार थे और गांव में उनका प्रभाव था। हर कोई ग्रामीण उनकी बात आसानी से मान जाता था। जब लेखक आनंदा में पढ़ाई के प्रति रुचि जागृत हुई, लेकिन आनंदा के पिता अशिक्षित होने के कारण लेखक को पाठशाला नहीं भेजना चाहते थे और खेती के कार्य में ही लगाना चाहते थे। ऐसे में लेखक ने दत्ता राव जी देसाई के पास जाकर अपनी समस्या कही तो दत्ता राव जी देसाई ने लेखक के पिता को बुलाकर समझाया और डाँटा। उन्होंने लेखक के पिता को पढ़ाई का महत्व समझाकर आनंदा को पाठशाला भेजने के लिए राजी किया। इस तरह दत्ता राव जी देसाई के प्रयास के कारण ही लेखक का पाठशाला जाना संभव हो पाया और उसका जीवन संवर पाया। इसलिए दत्ताराव देसाई ने लेखक के जीवन को बहुत अच्छे स्तर पर प्रभावित किया।
प्रश्न 2 – ‘जूझ’ पाठ के लेखक के पिता अपने बेटे की पढ़ाई के विरुद्ध क्यों थे? शिक्षा के प्रति अपनाया गया उनका यह रवैया वर्तमान सन्दर्भों में त्याज्य क्यों है?
उत्तर – पढ़ाई-लिखाई के संबंध में लेखक और दत्ता जी राव का रवैया सही था। लेखक का दृष्टिकोण पढ़ाई के प्रति यथार्थवादी था। उसे पता था कि खेती से गुजारा नहीं होने वाला। पढ़ने से उसे कोई-न-कोई नौकरी अवश्य मिल जाएगी और गरीबी दूर हो जाएगी। वह सोचता भी है-पढ़ जाऊँगा तो नौकरी लग जाएगी, चार पैसे हाथ में रहेंगे, विठोबा आण्णा की तरह कुछ धंधा-कारोबार किया जा सकेगा। दत्ता जी राव का रवैया भी सही है। उन्होंने लेखक के पिता को धमकाया तथा लेखक को पाठशाला भिजवाया। यहाँ तक कि खुद खर्चा उठाने तक की धमकी लेखक के पिता को दी। इसके विपरीत, लेखक के पिता का रवैया एकदम अनुचित था। उसकी यह सोच, ‘तेरे ऊपर पढ़ने का भूत सवार हुआ है। मुझे मालूम है बालिस्टर नहीं होने वाला है तू”-एकदम प्रतिगामी था। वह खेती के काम को ज्यादा बढ़िया समझता था तथा स्वयं ऐयाशी करने के लिए बच्चे की खेती में झोंकना चाहता था।
प्रश्न 3 – ‘जूझ’ लेख ग्रामीण समाज की प्रतिकूल परिस्थितियों में लेखक के जीवन संघर्ष को उजागर करता हैं’, उदाहरण सहित टिप्पणी कीजिए।
अथवा
जूझ’ के आधार पर लेखक के संघर्ष को अपने शब्दों में समझाइए।
अथवा
‘जूझ’ पाठ के आधार पर लेखक के जीवन संघर्ष पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – लेखक के पिता उसे पढ़ाना नहीं चाहता था जबकि लेखक व उसकी माँ पिता के रवैये से सहमत नहीं थे। उन्होंने दत्ताजी राव की सहायता से यह कार्य करवाया। लेखक पाठशाला जाना शुरू कर देता है। वहाँ दूसरे लड़कों से उसकी दोस्ती होती है। वह पढ़ने के लिए हर तरह के प्रयास करता है। स्कूल में वर्दी, किताबों आदि की समस्या से उसे दो-चार होना पड़ा। यहीं पर मराठी के अच्छे अध्यापक के प्रभाव से वह कविता भी रचने लगा था। वह खेती के काम के समय भी अपने आसपास के दृश्यों पर कविता बनाने लगा था। उन कविताओं को अपने अध्यापक सौंदलेकर को दिखलाता। यह सब कार्य उसने एक झूठ के सहारे किया अगर वह झूठ न बोलता तो दत्ताजी राव उसके पिता पर दबाव नहीं डालते। इस तरह उसका जीवन विकसित नहीं होता।
प्रश्न 4 – ‘जूझ’ शीर्षक पाठ कथानायक की किन चारित्रिक विशेषताओं की ओर संकेत करता है? इस संदर्भ में पाठ के शीर्षक के औचित्य को समझाइए।
उत्तर – कहानी या किसी रचना का शीर्षक बहुत मायने रखता है। क्योंकि शीर्षक को देखकर ही पाठक को अंदाजा हो जाता है कि वह रचना या कहानी किस सन्दर्भ में है और किसी भी रचना का मुख्य भाव शीर्षक से ही व्यक्त होता है। इस पाठ का शीर्षक ‘जूझ’ है और जूझ का अर्थ होता है जुझना या संघर्ष। इस कहानी में कहानी के मुख्य पात्र आनंद ने पाठशाला जाने व् पढ़ाई करने के लिए बहुत संघर्ष किया। उसका पिता उसको पाठशाला जाने से मना कर देता है और खेतों का काम संभालने के लिए कहता है। इसके बावजूद, कहानी नायक आनंद अपनी माँ को मना कर दादा व देसाई सरकार के सामने अपना पक्ष रखता है ताकि वे उसके पिता को मना सके। आनंद का पिता किसी भी हाल में उसे पाठशाला नहीं भेजना चाहता था अतः वह उस पर कई तरह के आरोप लगता है परन्तु अपने ऊपर लगे आरोपों का आनंद अच्छे से उत्तर देता है। जब दादा व देसाई सरकार उसे आगे बढ़ने के लिए कुछ कठिन शर्तें बताते हैं तो वह वह हर कठिन शर्त मानता है। पाठशाला में भी वह नए माहौल में ढलने, कविता रचने आदि के लिए बहुत संघर्ष करता है। अत: यह शीर्षक सर्वथा उपयुक्त है। इस कहानी के मुख्य पात्र में संघर्ष की प्रवृत्ति है। इस प्रकार यह शीर्षक कथा-नायक की केंद्रीय चारित्रिक विशेषता को उजागर करता है।
प्रश्न 5 – कविता के प्रति लगाव से पूर्व तथा उसके बाद अकेलेपन के प्रति ‘जूझ’ के लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया और क्यों ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – पहले जानवरों को चराते हुए, पानी लगाते हुए, दूसरे काम करते हुए, लेखगक को अकेलापन बहुत खटकता था। उसे किसी के साथ बोलते हुए, गपशप करते हुए, हँसी-मजाक करते हुए काम करना अच्छा लगता था। लेकिन अब उलटा लेखक को अकेले रहना अच्छा लगता था क्योंकि अकेले में वह कविता ऊँची आवाज़ में गा सकता था और किसी भी तरह का अभिनय कर सकता था। लेखक ने अनेक कविताओं को अपनी खुद की चाल में गाना शुरू किया।
प्रश्न 6 – ‘जूझ’ के लेखक ने अपने मराठी शिक्षक सौंदलगेकर से किन गुणों और जीवन-मूल्यों को ग्रहण किया? क्या आज भी उनकी प्रासंगिकता है ?
उत्तर – लेखक के एक मराठी मास्टर जिनका नाम न.वा.सौंदलगेकर था। वे कविता बहुत ही अच्छे ढंग से पढ़ाते थे। पहले तो वे एकाध कविता को गाकर सुनाते थे-फिर बैठे-बैठे अभिनय के साथ कविता के भाव बच्चों को समझाते थे। वे स्वयं भी कविता की रचना करते थे। लेखक उनके द्वारा सुनाई व् अभिनय की गई कविताओं को ध्यान से सुनता व् देखता था। लेखक अपनी आँखों और कानों का पूरा ध्यान लगाकर मास्टर के हाव-भाव, ध्वनि, गति, चाल और रस को ग्रहण करता था। और उन सभी कविताओं को सुबह-शाम खेत पर पानी लगाते हुए या जानवरों को चराते हुए अकेले में खुले गले से मास्टर के ही हाव-भाव, यति-गति और आरोह-अवरोह के अनुसार गाता था। लेखक ने अनेक कविताओं को अपनी खुद की चाल में गाना शुरू किया। लेखक भैंस चराते-चराते, फसलों पर, जंगली फूलों पर तुकबंदी करने लगा। उन्हें जोर से गुनगुनाता भी था और अपनी बनाई कवितायेँ मास्टर को दिखाने भी लगा। मास्टर कविता लिखने में लेखक का मार्गदर्शन भी किया करते थे। वे लेखक को बताते कि कवि की भाषा कैसी होनी चाहिए, संस्कृत भाषा का उपयोग कविता के लिए किस तरह होता है, छंद की जाति कैसे पहचानें, उसका लयक्रम कैसे देखें, अलंकारों में सूक्ष्म बातें कैसी होती हैं, अलंकारों का भी एक शास्त्र होता है, कवि को शुद्ध लेखन करना क्यों जरूरी होता है, शुद्ध लेखन के नियम क्या हैं, आदि। श्री सौंदलगेकर की इन्हीं विशेषताओं के कारण कविताओं के प्रति लेखक के मन में रुचि जाग गई।
प्रश्न 7 – ‘जूझ’ नामक पाठ के आधार पर दत्ता जी राव के चरित्र की चार विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – ‘जूझ’ नामक पाठ के आधार पर दत्ता जी राव के चरित्र की चार विशेषताएं निम्नलिखित है।
तर्कशील – दत्ता जी राव तर्क के माहिर हैं। लेखक की पढ़ाई के संबंध में वे लेखक के पिता से तर्क करते हैं। जिसके कारण वह उसे पढ़ाने की मंजूरी देता है।
मददगार – दत्ता जी राव लोगों की मदद करते हैं। वे लेखक की पढ़ाई का खर्च भी उठाने को तैयार हो जाते हैं।
प्रेरक – दत्ता साहब का व्यक्तित्व प्रेरणादायक है। वे अच्छे कार्यों के लिए दूसरों को प्रोत्साहित भी करते हैं। इसी की प्रेरणा से लेखक का पिता बेटे को पढ़ाने को तैयार होता है।
समझदार – दत्ता बेहद सूझबूझ वाले व्यक्ति थे। लेखक उसकी माँ की बात का अर्थ वे शीघ्र ही समझ जाते हैं। वे लेखक के पिता को बुलाकर उसे समझाते हैं कि वह बेटे की पढ़ाई करवाए। वह माँ-बेटे की बात को भी गुप्त ही रखता है।
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Chapter 3 – अतीत में दबे पाँव
प्रश्न 1 – ‘सिन्धु की सभ्यता पूर्ण विकसित मानव सभ्यता थी’, इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं और क्यों?
उत्तर – इसमें कोई दोराहे नहीं है कि सिंधु-सभ्यता साधन-संपन्न थी। क्योंकि सिंधु सभ्यता के शहर मुअनजो-दड़ो की व्यवस्था, साधन और नियोजन एक अद्धभुत व् रोचक विषय रहा है। यह बात सभी को आश्चयचकित कर देती हैं कि वहाँ पर अन्न-भंडारण व्यवस्था, जल-निकासी की व्यवस्था अत्यंत विकसित और परिपक्व थी। वहाँ पर हर निर्माण बड़ी ही बुद्धमानी के साथ किया गया था, इसका उदाहरण हम जल-निकासी की व्यवस्था से ले सकते हैं कि यदि सिंधु नदी का जल बस्ती तक आ भी जाए तो उससे बस्ती को कम-से-कम नुकसान हो। सिंधु सभ्यता की सारी व्यवस्थाओं के बीच भी इस सभ्यता की संपन्नता की बात बहुत ही कम हुई है। क्योंकि इनमें अन्य सभ्यताओं की तरह भव्यता का आडंबर नहीं है। इस सभ्यता में व्यापारिक व्यवस्थाओं की जानकारी तो मिलती है, मगर अब तक की जानकारियों में सब कुछ आवश्यकताओं से ही जुड़ा हुआ पाया गया है, भव्यता के लिए कोई व्यापारिक सम्बन्ध कहीं नहीं मिलता। हो सकता है कि यदि सिंधु सभ्यता की लिपि पढ़ ली जाए तो उसके बाद इस विषय में कुछ और अधिक महत्वपूर्ण जानकारी मिले।
प्रश्न 2 – हमारे पूर्वजों ने पाँच हज़ार वर्ष पहले किस प्रकार विश्व को व्यवस्थित जीवन जीने का तरीका सिखाया था? ‘अतीत के खंडहर’ पाठ के आधार पर सोदाहरण उत्तर दीजिए।
उत्तर – हमारे पूर्वजों ने पाँच हज़ार वर्ष पहले विश्व को व्यवस्थित जीवन जीने का तरीका सिखाया था। इसका सबसे अच्छा उदाहरण सिंधु-सभ्यता है जो पूरी तरह साधन-संपन्न थी। क्योंकि सिंधु सभ्यता के शहर मुअनजो-दड़ो की व्यवस्था, साधन और नियोजन एक अद्धभुत व् रोचक विषय रहा है। यह बात सभी को आश्चयचकित कर देती हैं कि वहाँ पर अन्न-भंडारण व्यवस्था, जल-निकासी की व्यवस्था अत्यंत विकसित और परिपक्व थी। वहाँ पर हर निर्माण बड़ी ही बुद्धमानी के साथ किया गया था, इसका उदाहरण हम जल-निकासी की व्यवस्था से ले सकते हैं कि यदि सिंधु नदी का जल बस्ती तक आ भी जाए तो उससे बस्ती को कम-से-कम नुकसान हो। सिंधु घाटी के लोगों में कला या सुरुचि का महत्त्व ज्यादा था। वास्तुकला या नगर-नियोजन ही नहीं, धातु और पत्थर की मूर्तियाँ, मृद्-भांड, उन पर चित्रित मनुष्य, वनस्पति और पशु-पक्षियों की छवियाँ, सुनिर्मित मुहरें, उन पर बारीकी से उत्कीर्ण आकृतियाँ, खिलौने, केश-विन्यास, आभूषण और सबसे ऊपर सुघड़ अक्षरों का लिपिरूप सिंधु सभ्यता को तकनीक-सिद्ध से ज्यादा कला-सिद्ध जाहिर करता है। मुअनजो-दड़ो की खुदाई में निकली पंजीकृत चीजों की संख्या पचास हजार से ज्यादा है। जिसमें काला पड़ गया गेहूँ, ताँबे और काँसे के बर्तन, मुहरें, वाद्य, चाक पर बने विशाल मृद्-भांड, उन पर काले-भूरे चित्र, चौपड़ की गोटियाँ, दीये, माप-तौल पत्थर, ताँबे का आईना, मिट्टी की बैलगाड़ी और दूसरे खिलौने, दो पाटन वाली चक्की, कंघी, मिट्टी के कंगन, रंग-बिरंगे पत्थरों के मनकों वाले हार और पत्थर के औजार आदि हैं। जिन्हें देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारे पूर्वजों ने पाँच हज़ार वर्ष पहले कितनी संपन्न सभ्यता को विकसित किया था।
प्रश्न 3 – ‘अतीत में दबे पाँव’ पाठ में मुअनजो-दड़ो के अजायबघर का जो वर्णन लेखक ने किया है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
अथवा
मुअनजो-दड़ो के अजायबघर में प्रदर्शित सामान की विशेषताएँ लिखिए। इनसे तत्कालीन राजतंत्र के बारे में लेखक ने क्या निष्कर्ष निकाला और वह इस निर्णय पर कैसे पहुँचा?
उत्तर – मुअनजो-दड़ो की खुदाई में निकली पंजीकृत चीजों की संख्या पचास हजार से ज्यादा है। मगर जो मुट्ठी भर चीजें अजायबघर में प्रदर्शित हैं, पहुँची हुई सिंधु सभ्यता की झलक दिखाने को काफी हैं। काला पड़ गया गेहूँ, ताँबे और काँसे के बर्तन, मुहरें, वाद्य, चाक पर बने विशाल मृद्-भांड, उन पर काले-भूरे चित्र, चौपड़ की गोटियाँ, दीये, माप-तौल पत्थर, ताँबे का आईना, मिट्टी की बैलगाड़ी और दूसरे खिलौने, दो पाटन वाली चक्की, कंघी, मिट्टी के कंगन, रंग-बिरंगे पत्थरों के मनकों वाले हार और पत्थर के औजार। अजायबघर में प्रदर्शित चीजों में औजार तो हैं, पर हथियार कोई नहीं है। मुअनजो-दड़ो क्या, हड़प्पा से लेकर हरियाणा तक समूची सिंधु सभ्यता में हथियार उस तरह कहीं नहीं मिले हैं जैसे किसी राजतंत्र में होते हैं। इस बात को लेकर विद्वान सिंधु सभ्यता में शासन या सामाजिक प्रबंध के तौर-तरीके को समझने की कोशिश कर रहे हैं। क्योंकि वहाँ कोई अनुशासन तो ज़रूर था, पर वो अनुशासन ताकत के बल पर नहीं था। वे मानते हैं कोई सैन्य सत्ता शायद यहाँ न रही हो। मगर कोई अनुशासन ज़रूर था जो नगर योजना, वास्तुशिल्प, मुहर-ठप्पों, पानी या साफ-सफाई जैसी सामाजिक व्यवस्थाओं आदि में एकरूपता तक को कायम रखे हुए था।
प्रश्न 4 – कैसे कहा जा सकता है ‘सिंधु सभ्यता आडंबर विहीन सभ्यता थी’? उदाहरण सहित ‘अतीत में दबे पाँव’ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – ‘‘सिंधु घाटी सभ्यता’ में प्रभुत्व या दिखावे के तेवर का अभाव था” सिंधु-सभ्यता के शहर मुअनजो-दड़ो की व्यवस्था, साधन और नियोजन के विषय में खूब चर्चा हुई है। इस बात से सभी प्रभावित हैं कि वहाँ की अन्न-भंडारण व्यवस्था, जल-निकासी की व्यवस्था अत्यंत विकसित और परिपक्व थी। हर निर्माण बड़ी बुद्धमानी के साथ किया गया था; यह सोचकर कि यदि सिंधु का जल बस्ती तक फैल भी जाए तो कम-से-कम नुकसान हो। इन सारी व्यवस्थाओं के बीच इस सभ्यता की संपन्नता की बात बहुत ही कम हुई है। वस्तुत: इनमें भव्यता का आडंबर है ही नहीं। व्यापारिक व्यवस्थाओं की जानकारी मिलती है, मगर सब कुछ आवश्यकताओं से ही जुड़ा हुआ है, भव्यता का प्रदर्शन कहीं नहीं मिलता।
प्रश्न 5 – “सिंधु घाटी के लोगों में सादगी और सुरुचि का महत्त्व अधिक था”- कथन की सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
उत्तर – दूसरी जगहों पर राजतंत्र या धर्मतंत्र की ताकत का प्रदर्शन करने वाले महल, उपासना-स्थल, मूर्तियाँ और पिरामिड आदि मिलते हैं। हड़प्पा संस्कृति में न भव्य राजप्रसाद मिले हैं, न मंदिर। न राजाओं, महंतों की समाधियाँ। यहाँ के मूर्तिशिल्प छोटे हैं और औजार भी। मुअनजो-दड़ो के ‘नरेश’ के सिर पर जो ‘मुकुट’ है, शायद उससे छोटे सिरपेंच की कल्पना भी नहीं की जा सकती। और तो और, उन लोगों की नावें बनावट में मिस्र की नावों जैसी होते हुए भी आकार में छोटी रहीं। आज के मुहावरे में कह सकते हैं वह ‘लो-प्रोफाइल’ सभ्यता थी; लघुता में भी महत्ता अनुभव करने वाली संस्कृति। मुअनजो-दड़ो सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा शहर ही नहीं बल्कि साधनों और व्यवस्थाओं को देखते हुए सबसे समृद्ध भी माना गया है। फिर भी इसकी संपन्नता की बात बहुत कम हुई है वह इसलिए क्योंकि उसमें भव्यता का आडंबर नहीं है।
प्रश्न 6 – “टूटे-फूटे खंडहर सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती ज़िंदगियों के अनछुए समयों के भी दस्तावेज होते हैं”-कथन की सोदाहरण पुष्टि ‘अतीत में दबे पाँव’ पाठ के आधार पर कीजिए।
उत्तर – यह सच है कि टूटे-फूटे खंडहर, सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती जिंदगियों के अनछुए समयों का भी दस्तावेज होते हैं। मुअनजो-दड़ो में प्राप्त खंडहर यह अहसास कराते हैं कि आज से पाँच हजार साल पहले कभी यहाँ एक सुनियोजित बस्ती थी। ये खंडहर उस समय की सभ्यता व् संस्कृति का परिचय कराते हैं। लेखक बताता है कि इस प्राचीन शहर के जो अब केवल खंडहर ही बचा है, उसके किसी भी मकान की दीवार पर पीठ टिकाकर सुस्ता सकते हैं, किसी घर की देहरी पर पाँव रखकर आप सहसा सहम सकते हैं, रसोई की खिड़की पर खड़े होकर उसकी गंध महसूस कर सकते हैं या शहर के किसी सुनसान मार्ग पर कान देकर बैलगाड़ी की रुन-झुन सुन सकते हैं। इस तरह जीवन के प्रति सजग दृष्टि होने पर पुरातात्विक खंडहर भी जीवन की धड़कन सुना देते हैं। ये एक प्रकार के दस्तावेज होते हैं जो इतिहास के साथ-साथ उस अनछुए समय को भी हमारे सामने उपस्थित कर देते हैं। जो कभी उन शहरों का हिस्सा रहे हैं।
प्रश्न 7 – सिन्धु-सभ्यता हमारी परंपरा का एक महत्त्वपूर्ण अंश है जहाँ अपनाई गई व्यवस्था और तकनीक की अनेकों विशेषताएँ आज भी उपयोगी हैं। — उदाहरण सहित टिप्पणी कीजिए।
उत्तर – सिंधु घाटी सभ्यता को लगभग 5,000 साल पुरानी सभ्यता माना जाता हैं। मुअनजो-दड़ो और हड़प्पा केवल प्राचीन भारत के ही नहीं, बल्कि दुनिया के दो सबसे पुराने नियोजित शहर माने जाते हैं। सिंधु घाटी सभ्यता को लगभग 5,000 साल पुरानी सभ्यता माना जाता हैं। मुअनजो-दड़ो और हड़प्पा केवल प्राचीन भारत के ही नहीं, बल्कि दुनिया के दो सबसे पुराने नियोजित शहर माने जाते हैं। नगर नियोजन को मुअनजो-दड़ो की अनूठी मिसाल के तौर पर समझा जाता है। क्योंकि यहाँ की इमारतें भले ही खंडहरों में बदल चुकी हों मगर ‘शहर’ की सड़कों और गलियों के विस्तार को स्पष्ट करने के लिए ये खंडहर काफी हैं। यहाँ की कमोबेश सारी सड़कें सीधी हैं या फिर आड़ी। आज वास्तुकार इसे ‘ग्रिड प्लान’ कहते हैं। आज की सेक्टर-मार्का कॉलोनियों में हमें आड़ा-सीधा ‘नियोजन’ बहुत मिलता है।
प्रश्न 8 – ‘अतीत में दबे पाँव’ के आधार पर मुअनजो-दड़ो निवासियों के रहन-सहन और कलात्मक सुरुचि का वर्णन कीजिए।
उत्तर – सिंधु घाटी के लोगों में कला या सुरुचि का महत्त्व ज्यादा था। वास्तुकला या नगर-नियोजन ही नहीं, धातु और पत्थर की मूर्तियाँ, मृद्-भांड, उन पर चित्रित मनुष्य, वनस्पति और पशु-पक्षियों की छवियाँ, सुनिर्मित मुहरें, उन पर बारीकी से उत्कीर्ण आकृतियाँ, खिलौने, केश-विन्यास, आभूषण और सबसे ऊपर सुघड़ अक्षरों का लिपिरूप सिंधु सभ्यता को तकनीक-सिद्ध से ज्यादा कला-सिद्ध जाहिर करता है। एक पुरातत्त्ववेत्ता के मुताबिक सिंधु सभ्यता की खूबी उसका सौंदर्य-बोध है, “जो राज-पोषित या धर्म-पोषित न होकर समाज-पोषित था।” शायद इसीलिए आकार की भव्यता की जगह उसमें कला की भव्यता दिखाई देती है।
प्रश्न 9 – ‘अतीत में दबे पाँव’ पाठ के आधार पर कल्पना कीजिए कि आप स्वयं मुअनजो-दड़ो के निवासी थे। तत्कालीन सड़कों, गलियों, भवनों, पानी निकास आदि का वर्णन अपने काल्पनिक अनुभव के आधार पर कीजिए।
उत्तर – सिंधु घाटी मैदान की संस्कृति थी, परन्तु पूरा मुअनजो-दड़ो छोटे-मोटे टीलों पर आबाद था। इन टीलों को कच्ची और पक्की दोनों तरह की ईंटों से धरती की सतह को ऊँचा उठाया गया था, ताकि यदि कभी सिंधु का पानी बाहर पसर आए तो उससे बचा जा सके। मुअनजो-दड़ो की खूबी यह है कि इस अत्यधिक पुराने शहर की सड़कों और गलियों में आज भी घुमा जा सकता हैं। इसके सबसे ऊँचे चबूतरे पर बड़ा बौद्ध स्तूप है। यह बौद्ध स्तूप पचीस फुट ऊँचे चबूतरे पर छब्बीस सदी पहले बनी ईंटों के दम पर बनाया गया है। यह इलाका राजस्थान से बहुत मिलता-जुलता है। यहाँ केवल रेत के टीले की जगह खेतों का हरापन है।नगर नियोजन को मुअनजो-दड़ो की अनूठी मिसाल के तौर पर समझा जाता है। स्तूप के टीले से दाईं तरफ एक लंबी गली दीखती है। इसके आगे महाकुंड है। कुंड में उत्तर और दक्षिण से सीढ़ियाँ उतरती हैं। इसके तीन तरफ साधुओं के कक्ष बने हुए हैं। उत्तर में दो पाँत में आठ स्नानघर हैं। इनमें किसी भी स्नानघर का द्वार दूसरे स्नानघर के सामने नहीं खुलता। यह एक सिद्ध वास्तुकला का नमूना है। इस कुंड में खास बात पक्की ईंटों का जमाव है। कुंड का पानी रिस न सके और बाहर का ‘अशुद्ध’ पानी कुंड में न आए, इसके लिए कुंड के तल में और दीवारों पर ईंटों के बीच चूने और चिरोड़ी के गारे का इस्तेमाल हुआ है। सिंधु घाटी के लोगों में कला या सुरुचि का महत्त्व ज्यादा था। वास्तुकला या नगर-नियोजन ही नहीं, धातु और पत्थर की मूर्तियाँ, मृद्-भांड, उन पर चित्रित मनुष्य, वनस्पति और पशु-पक्षियों की छवियाँ, सुनिर्मित मुहरें, उन पर बारीकी से उत्कीर्ण आकृतियाँ, खिलौने, केश-विन्यास, आभूषण और सबसे ऊपर सुघड़ अक्षरों का लिपिरूप सिंधु सभ्यता को तकनीक-सिद्ध से ज्यादा कला-सिद्ध जाहिर करता है।
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Chapter 3 – विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन
प्रश्न 1 – इंटरनेट की बढ़ती लोकप्रियता के दो कारण लिखिए।
उत्तर – इंटरनेट की बढ़ती लोकप्रियता के दो मुख्य कारण हैं-
इंटरनेट सूचना और ज्ञान तक आसान पहुंच का एक महत्वपूर्ण साधन है। किसी भी विषय पर जानकारी, समाचार, अनुसंधान सामग्री आदि पलक झपकते ही प्राप्त की जा सकती है।
इसके अतिरिक्त, इंटरनेट विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। ऑनलाइन बैंकिंग, निवेश, शॉपिंग, और अन्य वित्तीय कार्य करने के लिए इसका उपयोग किया जाता है। विभिन्न कंपनियों और व्यक्तियों से सेवाएं प्राप्त करना भी आसान हो गया है।
प्रश्न 2 – ‘स्टिंग ऑपरेशन’ की उपादेयता समझाइए।
अथवा
‘स्टिंग ऑपरेशन’ क्या होता है?
उत्तर – स्टिंग ऑपरेशन एक ऐसी तकनीक है जहाँ कानून प्रवर्तन अधिकारी या पत्रकार किसी व्यक्ति या संस्था को अपराध करते हुए पकड़ने के लिए, उसे फंसाने या प्रलोभित करने के लिए अंडरकवर काम करते हैं। यह अक्सर गलत कार्यों का खुलासा करने के लिए या अपराधों को रोकने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
प्रश्न 3 – ब्रेकिंग न्यूज़ से आप क्या समझते हैं?
अथवा
‘ब्रेकिंग न्यूज़’ का क्या आशय है?
उत्तर – ब्रेकिंग न्यूज़ या फ़्लैश – सबसे पहले कोई बड़ी खबर फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़ के रूप में तत्काल दर्शकों तक पहुँचाई जाती है। इसमें कम से कम शब्दों में केवल महत्वपूर्ण सूचना दी जाती है। ब्रेकिंग न्यूज के लिए लेखन शैली आम तौर पर उल्टे पिरामिड संरचना का अनुसरण करती है जिसमें एक सारांश नेतृत्व होता है जिसमें कौन, क्या, कहाँ और कब शामिल होता है।
प्रश्न 4 – इंटरनेट पर मौजूद हिन्दी की किन्हीं दो साहित्यिक पत्रिकाओं के नाम लिखिए।
उत्तर – इंटरनेट पर हिन्दी की दो साहित्यिक पत्रिकाओं के नाम “वागर्थ” और “कादंबनी” हैं।
प्रश्न 5 – इंटरनेट पत्रकारिता क्या है?
उत्तर – इंटरनेट पत्रकारिता से तात्पर्य उन पत्रकारिता के कार्यों से है जो इंटरनेट के माध्यम से किए जाते हैं, जैसे कि समाचार वेबसाइट, ब्लॉग, सोशल मीडिया और अन्य ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर समाचार, जानकारी और विचारों का प्रकाशन और प्रसार। यह पारंपरिक पत्रकारिता से अलग है, क्योंकि इसमें डिजिटल माध्यमों का उपयोग किया जाता है।
प्रश्न 6 – मुद्रित माध्यम के चार उदाहरणों के नाम लिखिए।
अथवा
मुद्रित माध्यम के चार उदाहरण लिखिए।
उत्तर – मुद्रित माध्यम के चार उदाहरण निम्नलिखित हैं:
समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, पुस्तकें, और विज्ञापन।
प्रश्न 7 – मुद्रित माध्यम की भाषा की दो विशेषताएँ लिखिए।
अथवा
मुद्रित माध्यम की दो विशेषताएँ लिखिए।
अथवा
मुद्रित माध्यम की किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – मुद्रित माध्यमों की सबसे बड़ी विशेषता या शक्ति यह है कि छपे हुए शब्दों में स्थायित्व होता है। उसे आप आराम से और धीरे-धीरे पढ़ सकते हैं। जब भी आपके पास वक्त हो आप तब पढ़ सकते हैं और यदि वक्त की कमी हो तो भी आप थोड़ा-थोड़ा करके पढ़ सकते हो। पढ़ते हुए उस पर सोच सकते हैं या किसी से तर्क-वितर्क भी कर सकते हैं। अगर कोई बात समझ में नहीं आई तो उसे दोबारा या जितनी बार इच्छा करे, उतनी बार पढ़ सकते हैं।
प्रश्न 8 – चार प्रमुख जनसंचार माध्यमों के नाम लिखिए |
उत्तर – जनसंचार के चार प्रमुख माध्यम निम्नलिखित हैं।
अखबार, रेडियो, टेलीविजन और इंटरनेट आदि।
प्रश्न 9 – टेलीविज़न की भाषा की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर – टेलीविजन की भाषा की दो विशेषताएँ निम्नलिखित है –
दृश्य और श्रव्य तत्वों का संयोजन: टेलीविजन एक दृश्य-श्रव्य माध्यम है, जिसका अर्थ है कि यह छवियों (विजुअल्स) और आवाजों (ऑडियो) दोनों का उपयोग करता है। दृश्य तत्वों में वीडियो क्लिप्स, ग्राफिक्स और इमेजेज शामिल हैं, जबकि श्रव्य तत्वों में संवाद, संगीत और साउंड इफेक्ट्स शामिल हैं। इन तत्वों को एक साथ मिलाकर, टेलीविजन भाषा संदेश को अधिक प्रभावी और समझने में आसान बनाती है।
सरल, संक्षिप्त और प्रत्यक्ष भाषा: टेलीविजन भाषा में अक्सर बिना किसी शब्दजाल के सरल वाक्यों का उपयोग किया जाता है। यह भाषा संक्षिप्त और प्रत्यक्ष होती है, ताकि दर्शक जल्दी से संदेश को समझ सकें। यह भाषा आमतौर पर आम बोलचाल की भाषा होती है, लेकिन इसमें अंग्रेजी और अन्य भाषाओं के शब्द भी शामिल हो सकते हैं।
प्रश्न 10 – ‘माध्यम’ शब्द की परिभाषा लिखिए।
उत्तर – ‘माध्यम’ शब्द का अर्थ है जिसके द्वारा कोई कार्य सम्पन्न हो। उदाहरण के लिए वर्तमान समय में संसार की सभी जातियों में आदान प्रदान व् मेल मिलाप हो रहा है। साहित्य इस मेल-मिलाप का माध्यम है।
प्रश्न 11 – संपादन-सिद्धांत के रूप में ‘वस्तुपरकता’ का अर्थ लिखिए।
उत्तर – वस्तुपरकता का संबंध इस बात से है कि कोई व्यक्ति तथ्यों को कैसे देखता है। किसी विषय या मुद्दे के बारे में हमारे मस्तिष्क में पहले से बनी हुई छवियां समाचार मूल्यांकन की हमारी क्षमता को प्रभावित कर सकती हैं। संपादन के लिए यह अति महत्वपूर्ण तथ्य है कि, किसी भी घटना को संप्रेषित करने से पूर्व उस घटना में संतुलन रखा जाना चाहिए। क्योंकि कई बार उस घटना से हिंसक विचार पाठक तक पहुंच जाता है, जिससे पाठक का मन विचलित व खिन्न हो जाता है। इसलिए यह अति आवश्यक है की शब्दों का चयन व उसके द्वारा पड़ने वाला प्रभाव, सम्प्रेषित कर रहे व्यक्ति के मस्तिष्क में अवश्य हो।
प्रश्न 12 – संचार माध्यमों में साक्षात्कार/इंटरव्यू का एक मुख्य उद्देश्य लिखिए।
उत्तर – साक्षात्कार केवल दो व्यक्तियों के बीच वार्तालाप करने की प्रक्रिया नहीं है, अपितु इसके अनेक उद्देश्य होते हैं, अर्थात् साक्षात्कार लेने वाले और साक्षात्कारदाता के बीच होने वाली बातचीत एक विशेष उद्देश्य के लिए होती है। साक्षात्कार का उद्देश्य सूचनादाताओं से सीधे या आमने-सामने संपर्क स्थापित करके उनसे डेटा संकलित करने में शोधकर्ता की सहायता करना है। आमने-सामने बैठकर शोधकर्ता न केवल सूचनादाताओं से खुलकर बातचीत करता है बल्कि उनके चेहरे के भावों को भी समझने की कोशिश करता है।
प्रश्न 13 – ‘ड्राइ ऐंकर’ किसे कहा जाता है? क्यों?
अथवा
‘ड्राइ ऐंकर’ का क्या तात्पर्य है?
उत्तर – जब एंकर खबर के बारे में सीधे-सीधे बताता है कि कहाँ, क्या, कब और कैसे हुआ तथा जब तक खबर के दृश्य नहीं आते, एंकर दर्शकों को रिपोर्टर से मिली जानकारियों के आधार पर सूचनाएँ पहुँचाता है उसे ‘ड्राई एंकर’ कहते हैं।
प्रश्न 14 – सूचनारंजन (इन्फोटेनमेंट) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – सूचनारंजन (इन्फोटेनमेंट) का अर्थ है उपभोक्ताओं को गंभीर सूचनाओं के स्थान पर सतही मनोरंजन से बहलाना और अपनी ओर आकर्षित करना।
प्रश्न 15 – जनसंचार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – जनसंचार शब्द दो शब्दों से बना हुआ है, जिसमे जन शब्द से आशय जनता और संचार शब्द से आशय चलना होता है, इस प्रकार से किसी भी घटना को लिखित, या मौखिक तरीके से एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचना ही जनसंचार है।
प्रश्न 16 – संचार माध्यमों के संदर्भ में ‘द्वारपाल’ क्या है?
उत्तर – संचार माध्यमों के संदर्भ में ‘द्वारपाल’ से तात्पर्य उन व्यक्तियों या समूहों से है जो जनसंचार माध्यमों में सामग्री को प्रसारित करने या प्रकाशित करने से पहले उसे नियंत्रित और फ़िल्टर करते हैं। ये व्यक्ति या समूह तय करते हैं कि कौन सी सामग्री प्रकाशित या प्रसारित की जाएगी, और कौन सी नहीं।
प्रश्न 17 – संचार के तत्त्वों के नाम लिखिए।
उत्तर – संचार प्रक्रिया निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत हम लोग अनुभव, विचारों, संवेदना, सूचनाओं का आदान प्रदान (संप्रेषण) करते हैं। यह संप्रेषण की प्रक्रिया प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से संपन्न होती है। संचार के मुख्य तत्व हैं – स्रोत, लिपिबद्धकरण, संदेश , माध्यम , साधन , संदेश प्राप्तकर्ता , व्याख्या करना या कूट खोलना, अर्थ और आशय , प्रतिक्रिया , प्रतिपुष्टि, विकृति या कोलाहल इत्यादि।
प्रश्न 18 – दृश्य माध्यमों की लोकप्रियता के दो कारण लिखिए।
उत्तर – दृश्य माध्यमों के कारण एक व्यक्ति कहीं दूर बैठे देश-विदेश में घटने वाली घटना को प्रत्यक्ष देख सकता है। वर्तमान समय में सरकारी व अर्ध सरकारी अथवा पूर्ण रूप से निजी रूप में दृश्य माध्यमों पर कई ऐसे चैनल प्रचलित हैं , जो शिक्षा व ज्ञान – विज्ञान की जानकारियां संप्रेषित करती है। एक व्यक्ति अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए , व एक छात्र उस चैनल से जुड़कर अपने विषय से जुड़ी जानकारियां प्राप्त कर सकता है।
प्रश्न 19 – लाइव प्रसारण किसे कहते हैं?
उत्तर – जब किसी घटना या कार्यक्रम को रेडियो और टेलीविज़न में प्रत्यक्ष होते हुए दिखाया या सुनाया जाता है तो उस प्रसारण को लाइव प्रसारण कहते हैं। रेडियो में इस प्रसारण को आँखों देखा हाल भी कहते हैं जबकि टेलीविज़न के परदे पर लाइव प्रसारण के समय लाइव लिख दिया जाता है। जिससे दर्शकों को ज्ञात होता है कि वे किसी घटना को प्रत्यक्ष देख रहे हैं। इसका अर्थ यह है कि उस समय आप जो भी देख रहे हैं, वह बिना किसी संपादकीय काट-छाँट के सीधे आप तक पहुँच रहा है।
प्रश्न 20 – समेकित माध्यम किसे कहा जाता है?
उत्तर – समेकित माध्यम एक रणनीति है जिसमें पारंपरिक और डिजिटल दोनों प्रकार के मीडिया प्लेटफ़ॉर्म जैसे प्रिंट, टेलीविज़न, रेडियो, सोशल मीडिया, ईमेल मार्केटिंग, वेबसाइट, और अन्य चैनल्स का सामूहिक और समन्वित उपयोग किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य एकीकृत और सुसंगत संदेश देना है।
प्रश्न 21 – इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के दो लाभ लिखिए।
अथवा
इलेक्ट्रॉनिक माध्यम की लोकप्रियता के दो कारण लिखिए।
अथवा
इलेक्ट्रॉनिक माध्यम की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर – इलेक्ट्रॉनिक मीडिया वह माध्यम है जिसके द्वारा हमें घर बैठे डिजिटल सभी जानकारी आसानी से मिल जाती है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के उदाहरण – टीवी, रेडियो, कंप्यूटर और मोबाइल फोन आदि।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले कुछ वर्षों में इसमें कभी तेजी से वृद्धि हुई है। लोगों का इसके प्रति रुचि भी बढ़ी है इसका प्रभाव आधुनिक समाज में देखने को मिलता है चाहे फैशन का प्रचलन हो या आधुनिक गीत का प्रचार प्रसार हर जगह मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से आसानी से दिन दुनिया की खबर मिल जाती है, ऑनलाइन इंटरनेट की मदद से आप दुनिया के किसी भी कोने की जानकारी ले सकती हो।
प्रश्न 22 – पी.सी. जोशी समिति ने दूरदर्शन के जो उद्देश्य निर्धारित किए थे उनमें से किन्हीं चार का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – पी. सी. जोशी समिति का गठन 1980 में इंदिरा गाँधी ने दूरदर्शन के कार्यक्रमों की गुणवत्ता को सुधारने के लिए किया गया था। समिति ने जनसंचार के माध्यम के बतौर भारत में दूरदर्शन के कुछ उद्देश्य स्थापित किए थे। उनमें सामाजिक परिवर्तन, राष्ट्रीय एकता, वैज्ञानिक चेतना का विकास, परिवार कल्याण को प्रोत्साहन, कृषि विकास, पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक विकास, खेल संस्कृति का विकास, सांस्कृतिक धरोहर को प्रोत्साहन शामिल थे।
सामाजिक परिवर्तन, समाज के आधारभूत परिवर्तनों पर प्रकाश डालने वाला एक विस्तृत एवं कठिन विषय है। इस प्रक्रिया में समाज की संरचना एवं कार्यप्रणाली का एक नया जन्म होता है। इसके अन्तर्गत मूलतः प्रस्थिति, वर्ग, स्तर तथा व्यवहार के अनेकानेक प्रतिमान बनते एवं बिगड़ते हैं। समाज गतिशील है और समय के साथ परिवर्तन अवश्यंभावी है।
वैज्ञानिक चेतना का विकास एक जटिल और बहुआयामी प्रक्रिया है जो समय के साथ विकसित होती है। यह ज्ञान, तर्क, और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को विकसित करने की क्षमता है जो हमें दुनिया को समझने में मदद करता है। इस चेतना का विकास ज्ञान के प्रति जिज्ञासा, वैज्ञानिक गतिविधियों में भाग लेने, और वैज्ञानिक सोच के सिद्धांतों को अपनाने से होता है।
खेल संस्कृति के विकास – खेलों के प्रति जागरूकता, रुचि और सहभागिता बढ़ाना, जिससे व्यक्ति और समाज दोनों को लाभ हो। खेल संस्कृति के विकास से बच्चों में टीम भावना, नेतृत्व कौशल, और रणनीतिक सोच विकसित होती है, जिससे उनका मानसिक और शारीरिक विकास भी होता है।
सांस्कृतिक धरोहर – किसी संस्कृति या समाज की मूर्त और अमूर्त विरासत। इसमें ऐसी चीजें शामिल होती हैं जो पिछली पीढ़ियों से पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती हैं और समाज की पहचान, इतिहास और मूल्यों को दर्शाती हैं।
प्रश्न 23 – फीचर किसे कहते हैं?
उत्तर – अखबारों में समाचारों के अलावा भी अन्य कई तरह का पत्रकारीय लेखन छपता है। इनमें फीचर प्रमुख है। फीचर एक सुव्यवस्थित, सृजनात्मक और आत्मनिष्ठ लेखन है जिसका उद्देश्य पाठकों को सूचना देने, शिक्षित करने के साथ मुख्य रूप से उनका मनोरंजन करना होता है।
फीचर लेखन का कोई निश्चित ढाँचा या फॉर्मूला नहीं होता है। इसलिए फीचर को कहीं से भी शुरू कर सकते हैं। हर फीचर का एक प्रारंभ, मध्य और अंत होता है। प्रारंभ आकर्षक और उत्सुकता पैदा करने वाला होना चाहिए। हालाँकि प्रारंभ, मध्य और अंत को अलग–अलग देखने के बजाय पूरे फीचर को समग्रता में देखना चाहिए लेकिन अगर फीचर का प्रारंभ आकर्षक, रोचक और प्रभावी हो तो बाकी पूरा फीचर भी पठनीय और रोचक बन सकता है।
फीचर के प्रारंभ, मध्य और अंत को सहज और स्वाभाविक तरीके से एक साथ जोड़ना किसी चुनौती से कम नहीं है। हर पैराग्राफ अपने पहले के पैराग्राफ से सहज तरीके से जुड़ा हो और शुरू से आखिर तक प्रवाह और गति बनी रहे, यह सुनिश्चित करने के लिए पैराग्राफ छोटे रखिए और एक पैराग्राफ में एक पहलू पर ही फोकस कीजिए।
प्रश्न 24 – उल्टा पिरामिड शैली क्या है?
उत्तर – समाचार लेखन को उलटा पिरामिड–शैली (इंवर्टेड पिरामिड स्टाइल) के नाम से जाना जाता है। यह समाचार लेखन की सबसे लोकप्रिय, उपयोगी और बुनियादी शैली है। यह शैली कहानी या कथा लेखन की शैली के ठीक उलटी है जिसमें क्लाइमेक्स बिलकुल आखिर में आता है। इसे उलटा पिरामिड इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य या सूचना ‘यानी क्लाइमेक्स’ पिरामिड के सबसे निचले हिस्से में नहीं होती बल्कि इस शैली में पिरामिड को उलट दिया जाता है।
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Chapter 4 – पत्रकारीय लेखन के विभिन्न रूप और लेखन प्रक्रिया
प्रश्न 1 – पत्रकारीय लेखन किसे कहते हैं?
उत्तर – यदि कोई पत्रकारीय लेखन के किसी भी रूप में दिलचस्पी रखता है तो कोशिश करने वाले हर नए लेखक के लिए सबसे पहले यह समझना बहुत ज़रूरी है कि पत्रकारीय लेखन क्या है, समाज में उसकी भूमिका क्या है और वह अपनी इस भूमिका को कैसे पूरा करता है? दरअसल, अखबार, पाठकों को सूचना देने, उन्हें जागरूक रखने और लोकतांत्रिक समाजों में एक पहरेदार, शिक्षक और जनमत निर्माता के तौर पर बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। अखबार पाठकों के लिए बाहरी दुनिया के ज्ञान का ऐसा जरिया है जो हर रोज़ सुबह देश–दुनिया और पास–पड़ोस की घटनाओं, समस्याओं, मुद्दों और विचारों से पाठकों को अवगत करवाते हैं। अखबार या अन्य समाचार माध्यमों में काम करने वाले पत्रकार अपने पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं तक सूचनाएँ पहुँचाने के लिए लेखन के विभिन्न रूपों का इस्तेमाल करते हैं। इसे ही पत्रकारीय लेखन कहते हैं।
प्रश्न 2 – पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा खंभा क्यों कहा जाता है?
अथवा
लोकतंत्र का चौथा खंभा किसे कहा जाता है और क्यों?
उत्तर – लोकतंत्र में चार प्रमुख स्तंभ होते हैं: विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया। मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है क्योंकि यह जनता को सूचित रखने, सरकार की गतिविधियों पर नजर रखने और जनमत को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
प्रश्न 3 – पीत पत्रकारिता से क्या तात्पर्य है?
उत्तर – पीत पत्रकारिता- पाठकों को लुभाने के लिए झूठी अफवाहों, आरोपों-प्रत्यारोपों, प्रेम संबंधों आदि से संबंधित सनसनीखेज समाचारों को पित्त पत्रकारिता कहते हैं।
प्रश्न 4 – पत्रकारिता में ‘बीट’ किसे कहते हैं?
उत्तर – जब किसी विषय विशेष में लेखन का दायित्व किसी पत्रकार को सौंपा जाता है, तो मीडिया की भाषा में इसको बीट कहते हैं। बीट रिपोर्टर को अपने सम्बंधित क्षेत्र पर गहन अध्ययन करना पड़ता है। साथ-ही-साथ उसे अपने सूत्रों से शीघ्र संपर्क करके सम्बंधित विषयों पर अधिक से अधिक जानकारी एकत्र करनी होती है। निर्धारित समय पर आवश्यक व् सटीक जानकारी इकट्ठी करके रिपोर्ट तैयार करने की जिम्मेदारी भी उसी पर होती है। इसके अलावा बीट रिपोर्टर को सिमित समय में कवर स्टोरी तैयार करने की कुशलता भी हासिल करनी होती है। जिससे जानकारी समय पर लोगों तक पहुंचाई जा सके।
प्रश्न 5 – समाचार के तत्त्व के रूप में नवीनता का आशय लिखिए।
उत्तर – नवीनता समाचार का प्रमुख तत्व है। बासी समाचार पत्रों को गौरवान्वित नहीं कर सकते हैं। दैनिक पात्रों में 24 घंटे एवं सप्ताहिक पत्रों में 1 सप्ताह के बाद समाचार छपने पर समाचार नहीं रह जाता। आशय यह है कि ताजा से ताजा समाचार पाठक को आकर्षित करता है विलंब होने पर निरर्थक हो जाता है नवीनता के अभाव में समाचार गल्प बातचीत आख्यान बन जाता है। समाचार के लिए तत्काल तक्षण अनिवार्य है।
प्रश्न 6 – समाचार लेखन के छह ककार कौन-कौन से हैं?
अथवा
समाचार लेखन के संदर्भ में ‘ककार’ का क्या आशय है?
उत्तर – किसी समाचार को लिखते हुए मुख्यतः छह सवालों का जवाब देने की कोशिश की जाती है क्या हुआ, किसके साथ हुआ, कहाँ हुआ, कब हुआ, कैसे और क्यों हुआ? इस–क्या, किसके (या कौनद्ध), कहाँ, कब, क्यों और कैसे–को छह ककारों के रूप में भी जाना जाता है। किसी घटना, समस्या या विचार से संबंधित खबर लिखते हुए इन छह ककारों को ही ध्यान में रखा जाता है।
समाचार के मुखड़े (इंट्रो) यानी पहले पैराग्राफ या शुरुआती दो–तीन पंक्तियों में आमतौर पर तीन या चार ककारों को आधार बनाकर खबर लिखी जाती है। ये चार ककार हैं–क्या, कौन, कब और कहाँ? इसके बाद समाचार की बॉडी में और समापन के पहले बाकी दो ककारों–कैसे और क्यों–का जवाब दिया जाता है। इस तरह छह ककारों के आधार पर समाचार तैयार होता है। इनमें से पहले चार ककार–क्या, कौन, कब और कहाँ–सूचनात्मक और तथ्यों पर आधारित होते हैं जबकि बाकी दो ककारों–कैसे और क्यों–में विवरणात्मक, व्याख्यात्मक और विश्लेषणात्मक पहलू पर जोर दिया जाता है।
प्रश्न 7 – ‘समाचार’ शब्द को परिभाषित कीजिए।
अथवा
‘समाचार’ शब्द की परिभाषा लिखिए।
उत्तर – समाचार नवीनतम घटनाओं और समसामयिक विषयों पर अद्यतन सूचनाओं को कहते हैं, जिन्हें मुद्रण, प्रसारण, अंतर्जाल या अन्य माध्यमों की सहायता से आम लोगों यानी, पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं तक पहुंचाया जाता है। समाचार अंग्रेजी शब्द न्यूज का हिंदी रूपांतरण है। एक अन्य परिभाषा के अनुसार, समाचार वह समसामयिक सूचना है, जिसमे जन रूचि जुड़ी हो तथा लोग उसे जानने के लिए उत्सुक हो।
प्रश्न 8 – ‘पेज थ्री’ पत्रकारिता से आप क्या समझते हैं?
अथवा
‘पेज थ्री’ पत्रकारिता क्या है?
उत्तर – पेज थ्री पत्रकारिता- ऐसी पत्रकारिता जिसमें फैशन, अमीरों की पार्टियों, महफिलों और जाने-माने लोगों की निजी जीवन के बारे में बताया जाता है।
प्रश्न 9 – संपादक के दो कार्य बताइए।
उत्तर – संपादन का अर्थ है किसी सामग्री को त्रुटि मुक्त करके उसे पढ़ने लायक बनाना।
जब कोई रिपोर्टर कोई समाचार लाता है तब उपसंपादक अथवा संपादक उसे ध्यान से पढ़ता है और उसमें व्याकरण, भाषा शैली, अथवा वर्तनी संबंधित जो अशुद्धियां होती हैं, उन्हें दूर करता है।
वह निर्धारित करता है कि किस समाचार को कितना महत्व दिया जाय और समाचार पत्रों में कहां स्थान दिया जाय।
प्रश्न 10 – संपादन के दो सिद्धांत बताइए।
अथवा
संपादन के एक सिद्धांत के रूप में वस्तुपरकता (ऑब्जेक्टिविटी) को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
तथ्यों की शुद्धता ( एक्यूरेसी )
संपादन करते समय संपादक मंडल का यह पहला कर्तव्य बनता है कि वह तथ्यों की शुद्धता पर ध्यान दें। प्रमाणित समाचार को ही अपने समाचार पत्रों में प्रकाशित करें। समाचार की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि तथ्य सही और सटीक हो।
वस्तुपरकता (औब्जेक्टिविटी )
संपादन करते समय संपादक मंडल को यह ध्यान रखना चाहिए कि समाचार, घटनाएं तथा तथ्य उसी रूप में रखे जाएं जिस रूप में वह घटित होती हैं। पत्रकार के मन के अनुसार उसका स्वरूप नहीं बदलना चाहिए। कहीं विरोध , समर्थन अथवा किसी कारण से समाचार का स्वरूप नहीं बदलना चाहिए।
प्रश्न 11 – संपादक के दो प्रमुख दायित्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – संपादक समाचार पत्र रूपी जलयान का कप्तान होता है । वह समाचार पत्र के विभिन्न क्षेत्रों का संचालन व नियमन करता है । वह संस्था के विभिन्न कर्मचारियों – संवाददाता, उप-संपादक, सह-संपादक , विज्ञापन-प्रबंधक आदि के मध्य समन्वय स्थापित करता है । समाचार पत्र की नीति के परिपालन का दायित्व उसका होता है । जनहित का संरक्षण भी वही करता है ।
प्रश्न 12 – संपादकीय किसे कहते हैं?
अथवा
संपादकीय से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित होने वाले संपादकीय को अखबार की आवाज़ माना जाता है। संपादकीय के ज़रिये अखबार किसी घटना, समस्या या मुद्दे के प्रति अपनी राय प्रकट करते हैं। संपादकीय किसी व्यक्ति विशेष का विचार नहीं होता इसलिए उसे किसी के नाम के साथ नहीं छापा जाता। संपादकीय लिखने का दायित्व उस अखबार में काम करने वाले संपादक और उनके सहयोगियों पर होता है।
प्रश्न 13 – सफल साक्षात्कार के लिए पत्रकार में किन गुणों की आवश्यकता होती है?
उत्तर – एक सफल साक्षात्कार के लिए आपके पास न सिर्फ ज्ञान होना चाहिए बल्कि आपमें संवेदनशीलता, कूटनीति, धैर्य और साहस जैसे गुण भी होने चाहिए।
एक अच्छे और सफल साक्षात्कार के लिए यह ज़रूरी है कि आप जिस विषय पर और जिस व्यक्ति के साथ साक्षात्कार करने जा रहे हैं, उसके बारे में आपके पास पर्याप्त जानकारी हो।
आप साक्षात्कार से क्या निकालना चाहते हैं, इसके बारे में स्पष्ट रहना बहुत ज़रूरी है।
आपको वे सवाल पूछने चाहिए जो किसी अखबार के एक आम पाठक के मन में हो सकते हैं।
साक्षात्कार को अगर रिकार्ड करना संभव हो तो बेहतर है लेकिन अगर ऐसा संभव न हो तो साक्षात्कार के दौरान आप नोट्स लेते रहें।
प्रश्न 14 – स्तंभ लेखन किसे कहते हैं?
उत्तर – स्तंभ लेखन भी विचारपरक लेखन का एक प्रमुख रूप है। कुछ महत्त्वपूर्ण लेखक अपने खास वैचारिक रुझान के लिए जाने जाते हैं। उनकी अपनी एक लेखन–शैली भी विकसित हो जाती है। ऐसे लेखकों की लोकप्रियता को देखकर अखबार उन्हें एक नियमित स्तंभ (कॉलम) लिखने का जिम्मा दे देते हैं। स्तंभ (कॉलम) का विषय चुनने और उसमें अपने विचार व्यक्त करने की स्तंभ (कॉलम) लेखक को पूरी छूट होती है। स्तंभ (कॉलम) में लेखक के विचार अभिव्यक्त होते हैं। यही कारण है कि स्तंभ (कॉलम) अपने लेखकों के नाम पर जाने और पसंद किए जाते हैं। कुछ स्तंभ (कॉलम) इतने लोकप्रिय होते हैं कि अखबार उनके कारण भी पहचाने जाते हैं। लेकिन नए लेखकों को स्तंभ (कॉलम) लेखन का मौका नहीं मिलता है।
प्रश्न 15 – संदेह करना पत्रकार का गुण क्यों माना जाता है?
उत्तर – संदेह करना पत्रकार का गुण माना जाता है क्योंकि संदेह करने से ही किसी सूचना को सही से परखा जा सकता है और एक तथ्य पर आधारित सही सूचना को दर्शकों व् पाठकों तक पहुंचाया जा सकता है। एक अच्छा पत्रकार सदैव अपनी सभी सूचनाओं को तब तक संदेह की दृष्टि से देखता है जब तक उस सूचना को तथ्यों सहित प्रमाणित नहीं किया जाता।
प्रश्न 16 – खोजी पत्रकारिता किसे कहा जाता है?
अथवा
खोजी पत्रकारिता का क्या आशय है?
उत्तर – खोजपरक पत्रकारिता- से आशय ऐसी पत्रकारिता से है, जिसमें गहराई से छानबीन करके ऐसे तथ्य और सूचनाओं को सामने लाने की कोशिश की जाती है, जिन्हें दबाने या छुपाने का प्रयास किया जा रहा हो। इसमें पत्रकारिता सार्वजनिक महत्व के मामले में भ्रष्टाचार, अनियमितताओं और गड़बड़ियों को सामने लाने की कोशिश करती है। इसका एक नया रूप टेलीविजन में ‘स्टिंग ऑपरेशन’ के रूप में सामने आया है।
प्रश्न 17 – फ्री-लांसर पत्रकार किसे कहते हैं?
उत्तर – फ्रीलांसर पत्रकार का संबंध किसी खास अखबार से नहीं होता है बल्कि वह भुगतान के आधार पर अलग–अलग अखबारों के लिए लिखता है। ऐसे में, यह समझना बहुत ज़रूरी है कि पत्रकारीय लेखन का संबंध और दायरा समसामयिक और वास्तविक घटनाओं, समस्याओं और मुद्दों से है।
प्रश्न 18 – लोकतंत्र में जनसंचार के दो कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – जनसंचार के तीन मूलभूत काम माने जाते हैं:
लोगों को सूचित करना
लोगों का मनोरंजन करना
उन्हें समझाना या किसी काम के लिए मनाना
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Chapter 5 – विशेष लेखन-स्वरूप और प्रकार
प्रश्न 1 – ‘विशेष लेखन’ का आशय समझाइए।
उत्तर – किसी भी क्षेत्र में विशेष रूप से लेखन करना विशेष लेखन कहलाता है। समाचार पत्र सामान्य समाचारों के अलावा साहित्य , विज्ञान , खेल इत्यादि की भी पर्याप्त जानकारी देते हैं। इसी कार्य के अंतर्गत जब किसी खास विषय पर सामान्य लेखन से हटकर लेखन किया जाए तो उसे विशेष लेखन कहते हैं। विशेष लेखन में समाचारों के अलावा, खेल, अर्थ-व्यापार, सिनेमा, या मनोरंजन जैसे विषयों पर लिखा जाता है। इसकी भाषा और शैली, समाचारों की भाषा-शैली से अलग होती है।
प्रश्न 2 – जनसंचार के किन्हीं दो कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – जनसंचार के तीन मूलभूत काम माने जाते हैं:
लोगों को सूचित करना – सूचनाओं का प्रसारण समाचार माध्यमों का प्राथमिक कार्य है। समाचार-पत्र, रेडियो और टीवी विश्वभर की खबरें उपलब्ध करवाकर हमारा सूचना स्तर बढ़ाने में सहायता करते हैं।
लोगों का मनोरंजन करना – जनसंचार का एक अत्यधिक प्रचलित कार्य लोगों का मनोरंजन करना भी है। रेडियो, टीवी और फिल्म तो सामान्यतया मनोरंजन का ही साधन समझे जाते हैं। समाचार-पत्र भी कॉमिक्स, कार्टून, फीचर, वर्ग पहेली, चक्करघिन्नी, सुडोकू आदि के माध्यम से पाठकों को मनोरंजन की सामग्री उपलब्ध करवाते हैं।
उन्हें समझाना या किसी काम के लिए मनाना – किसी वस्तु, सेवा, विचार, व्यक्ति, स्थान, घटना इत्यादि के प्रति लोगों को समझाने या प्रोत्साहित करने के लिए भी जन माध्यमों को औजार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। अलग-अलग जनमाध्यमों की अलग-अलग प्रकृति व पहुंच होती है।
प्रश्न 3 – विशेष लेखन के किन्हीं दो क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – विशेष लेखन के निम्नलिखित क्षेत्र है – अर्थ-व्यापार, खेल, विज्ञान-प्रौद्योगिकी, कृषि, विदेश, रक्षा, पर्यावरण, शिक्षा, स्वास्थ्य, फ़िल्म-मनोरंजन ,अपराध, सामाजिक मुद्दे, कानून, आदि।
अर्थ-व्यापार – धन हर व्यक्ति के जीवन का एक महत्वपूर्ण आधार है। हमारा कोई भी कार्य, बाजार से कोई वस्तु खरीदना, बैंक में पैसे जमा करना, किसी तरह की कोई बचत करना, किसी व्यापार को करने के बारे में सोचना, आर्थिक धन लाभ-हानि के बारे में विचार करना आदि अर्थ व्यवस्था से जुड़ी चीजें हैं। इनका हमारे दैनिक जीवन में बहुत महत्त्व है।
खेल – खेल एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें छोटे बड़े, युवा-वृद्ध सभी की रूचि होती है। हम सभी में कोई न कोई खिलाड़ी छुपा होता है जिसे हम अपने जीवन की व्यस्थता के कारण छुपाए ही रखते हैं। परन्तु खेलों में जो दिलचस्पी होती है वह विभिन्न तरह की खेल प्रतियोगिताओं के दौरान देखने को मिलती है। खेल हमारे सर्वांगीण विकास में अहम भूमिका निभाता है।
प्रश्न 4 – बीट रिपोर्टिंग किसे कहते हैं?
अथवा
बीट रिपोर्टिंग का क्या आशय है?
उत्तर – जब किसी विषय विशेष में लेखन का दायित्व किसी पत्रकार को सौंपा जाता है, तो मीडिया की भाषा में इसको बीट कहते हैं। बीट रिपोर्टर को अपने सम्बंधित क्षेत्र पर गहन अध्ययन करना पड़ता है। साथ-ही-साथ उसे अपने सूत्रों से शीघ्र संपर्क करके सम्बंधित विषयों पर अधिक से अधिक जानकारी एकत्र करनी होती है। निर्धारित समय पर आवश्यक व् सटीक जानकारी इकट्ठी करके रिपोर्ट तैयार करने की जिम्मेदारी भी उसी पर होती है। इसके अलावा बीट रिपोर्टर को सिमित समय में कवर स्टोरी तैयार करने की कुशलता भी हासिल करनी होती है। जिससे जानकारी समय पर लोगों तक पहुंचाई जा सके।
प्रश्न 5 – हिन्दी समाचार-पत्रों की भाषा की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर – भारत जैसे विकासशील देश में उसके श्रोताओं और दर्शकों में पढ़े-लिखे लोगों से निरक्षर तक और मध्यम वर्ग से लेकर किसान-मज़दूर तक सभी हैं। इसलिए भाषा ऐसी होनी चाहिए कि वह सभी को आसानी से समझ में आ सके लेकिन साथ ही भाषा के स्तर और गरिमा के साथ कोई समझौता भी न करना पड़े।
आपसी बोलचाल में जिस भाषा का इस्तेमाल करते हैं, उसी तरह की भाषा का इस्तेमाल रेडियो और टी.वी. समाचार में भी करें। सरल भाषा लिखने के लिए वाक्य छोटे, सीधे और स्पष्ट लिखे जाएँ।
तथा, एवं, अथवा, व किंतु परंतु, यथा आदि शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए। इनके स्थान पर और, या, लेकिन आदि शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए।
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Chapter 11 – कैसे करें कहानी का नाट्य रूपांतरण
प्रश्न 1 – ‘वायस ओवर’ क्या है?
उत्तर – वॉइस ओवर एक अनोखी उत्पादन तकनीक है जहाँ एक व्यक्ति कहानी सुनाने या अधिक जानकारी जोड़ने के लिए आवाज़ रिकॉर्ड करता है। हम वॉइस कलाकार को नहीं देखते, केवल उनकी आवाज़ सुनते हैं। एक वॉइस ओवर का उपयोग अधिक संदर्भ प्रदान करने या मौजूदा कथा को बढ़ाने के लिए किया जाता है। आमतौर पर, एक व्यक्ति के पास एक स्क्रिप्ट होती है और वह रिकॉर्डिंग स्टूडियो में पाठ पढ़ता है। वॉइस ओवर उद्योग सभी उम्र और अनुभवों के वॉइस कलाकारों का स्वागत करता है।
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Chapter 12 – कैसे बनता है रेडियो नाटक
प्रश्न 1 – रेडियो की लोकप्रियता के दो कारण बताइए।
उत्तर – रेडियो को हम किसी भी समय सुन सकते हैं क्योंकि इसमें हमारी केवल एक ज्ञानेंद्री का उपयोग होता है।
इस पर न केवल मनोरंजक बल्कि सभी प्रकार के कार्यक्रम और समाचार आदि आते हैं ।
ये एक समय जनसंचार के माध्यम की भूमिका निभाता है। इसे सुनने के लिए हमें अलग से किसी उपकरण की आवश्यकता नहीं होती है ।
प्रश्न 2 – रेडियो की भाषा की दो विशेषताएँ लिखिए|
उत्तर – रेडियो की भाषा में उदाहरणार्थ, उक्त, क्रमशः, निम्नलिखित, निम्नांकित, अर्थात् जैसे शब्दों की कोई उपयोगिता नहीं है। ऐसे शब्दों का प्रयोग मुद्रित माध्यम में उपयोगी सिद्ध होता है। साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाए जो प्रचलित हो, सामान्य जीवन में व्यवहार में लाए जाते हों। इसीलिए रेडियो में अन्योन्याश्रित, अंततोगत्वा, द्रष्टव्य आदि शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाता। क्योंकि रेडियो एक ध्वनि माध्यम है। इसलिए ध्वनियाँ श्रोता को बहुत देर तक अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकतीं। अतः रेडियो की भाषा में अत्यधिक ध्यान देने की आवश्यकता पड़ती है।
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