रैदास के पद Class 9 Sparsh book Chapter 7 Summary, Explanation, Question Answer
Raidas ke Pad CBSE Class 9 Hindi Sparsh Lesson 7 summary with a detailed explanation of the lesson ‘रैदास के पद’ along with meanings of difficult words.
Given here is the complete explanation of the lesson, along with a summary and all the exercises, Question, and Answers given at the back of the lesson.
कक्षा 9 स्पर्श भाग 1 पाठ 7 “रैदास के पद”
यहाँ हम हिंदी कक्षा 9 ”स्पर्श – भाग 1” के काव्य खण्ड पाठ 7 “पद” के पाठ प्रवेश, पाठ सार, पाठ व्याख्या, कठिन शब्दों के अर्थ, अतिरिक्त प्रश्न और NCERT पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर इन सभी बारे में जानेंगे |
- रैदास के पद पाठ प्रवेश
- See Video Explanation of Chapter 7 Pad Class 9
- रैदास के पद पाठ सार
- रैदास के पद पाठ व्याख्या
- रैदास के पद प्रश्न अभ्यास
कवि परिचय
कवि – रैदास
जन्म – 1388
रैदास के पद पाठ प्रवेश
यहाँ रैदास के दो पद लिए गए हैं। पहले पद ‘प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी’ में कवि अपने आराध्य को याद करते हुए उनसे अपनी तुलना करता है। पहले पद में कवि ने भगवान् की तुलना चंदन, बादल, चाँद, मोती, दीपक से और भक्त की तुलना पानी, मोर, चकोर, धागा, बाती से की है।
उसका प्रभु बाहर कहीं किसी मंदिर या मस्जिद में नहीं विराजता अर्थात कवि कहता है कि उनके आराध्य प्रभु किसी मंदिर या मस्जिद में नहीं रहता बल्कि कवि का प्रभु अपने अंतस में सदा विद्यमान रहता है।
यही नहीं, कवि का आराध्य प्रभु हर हाल में, हर काल में उससे श्रेष्ठ और सर्वगुण संपन्न है। इसीलिए तो कवि को उन जैसा बनने की प्रेरणा मिलती है।
दूसरे पद में भगवान की अपार उदारता, कृपा और उनके समदर्शी स्वभाव का वर्णन है। रैदास कहते हैं कि भगवान ने नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सधना और सैनु जैसे निम्न कुल के भक्तों को भी सहज-भाव से अपनाया है और उन्हें लोक में सम्माननीय स्थान दिया है।
कहने का तात्पर्य यह है कि भगवान् ने कभी किसी के साथ कोई भेद-भाव नहीं किया। दूसरे पद में कवि ने भगवान को गरीबों और दीन-दुःखियों पर दया करने वाला कहा है। रैदास ने अपने स्वामी को गुसईआ (गोसाई) और गरीब निवाजु (गरीबों का उद्धार करने वाला) पुकारा है।
रैदास के पद Class 9 Video Explanation
रैदास के पद पाठ सार
यहाँ पर रैदास के दो पद लिए गए हैं। पहले पद में कवि ने भक्त की उस अवस्था का वर्णन किया है जब भक्त पर अपने आराध्य की भक्ति का रंग पूरी तरह से चढ़ जाता है कवि के कहने का अभिप्राय है कि एक बार जब भगवान की भक्ति का रंग भक्त पर चढ़ जाता है तो भक्त को भगवान् की भक्ति से दूर करना असंभव हो जाता है। कवि कहता है कि यदि प्रभु चंदन है तो भक्त पानी है।
जिस प्रकार चंदन की सुगंध पानी के बूँद-बूँद में समा जाती है उसी प्रकार प्रभु की भक्ति भक्त के अंग-अंग में समा जाती है। यदि प्रभु बादल है तो भक्त मोर के समान है जो बादल को देखते ही नाचने लगता है। यदि प्रभु चाँद है तो भक्त उस चकोर पक्षी की तरह है जो बिना अपनी पलकों को झपकाए चाँद को देखता रहता है।
यदि प्रभु दीपक है तो भक्त उसकी बत्ती की तरह है जो दिन रात रोशनी देती रहती है। कवि भगवान् से कहता है कि हे प्रभु यदि तुम मोती हो तो तुम्हारा भक्त उस धागे के समान है जिसमें मोतियाँ पिरोई जाती हैं। उसका असर ऐसा होता है। यदि प्रभु स्वामी है तो कवि दास यानि नौकर है। दूसरे पद में कवि भगवान की महिमा का बखान कर रहे हैं।
कवि अपने आराध्य को ही अपना सबकुछ मानते हैं। कवि भगवान की महिमा का बखान करते हुए कहते हैं कि भगवान गरीबों और दीन-दुःखियों पर दया करने वाले हैं, उनके माथे पर सजा हुआ मुकुट उनकी शोभा को बड़ा रहा है। कवि कहते हैं कि भगवान में इतनी शक्ति है कि वे कुछ भी कर सकते हैं और उनके बिना कुछ भी संभव नहीं है।
भगवान के छूने से अछूत मनुष्यों का भी कल्याण हो जाता है क्योंकि भगवान अपने प्रताप से किसी नीच जाति के मनुष्य को भी ऊँचा बना सकते हैं। कवि उदाहरण देते हुए कहते हैं कि जिस भगवान ने नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सधना और सैनु जैसे संतों का उद्धार किया था वही बाकी लोगों का भी उद्धार करेंगे। कवि कहते हैं कि हे सज्जन व्यक्तियों तुम सब सुनो उस हरि के द्वारा इस संसार में सब कुछ संभव है।
रैदास के पद पाठ व्याख्या
पद – 1
अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग-अँग बास समानी।
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती।
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै रैदासा॥
शब्दार्थ –
बास – गंध, वास
समानी – समाना (सुगंध का बस जाना), बसा हुआ (समाहित)
घन – बादल
मोरा – मोर, मयूर
चितवत – देखना, निरखना
चकोर – तीतर की जाति का एक पक्षी जो चंद्रमा का परम प्रेमी माना जाता है
बाती – बत्ती, रुई, जिसे तेल में डालकर दिया जलाते हैं
जोति – ज्योति, देवता के प्रीत्यर्थ जलाया जाने वाला दीपक
बरै – बढ़ाना, जलना
राती – रात्रि
सुहागा – सोने को शुद्ध करने के लिए प्रयोग में आने वाला क्षारद्रव्य
दासा – दास, सेवक
व्याख्या – इस पद में कवि ने भक्त की उस अवस्था का वर्णन किया है जब भक्त पर अपने आराध्य की भक्ति का रंग पूरी तरह से चढ़ जाता है कवि के कहने का अभिप्राय है कि एक बार जब भगवान की भक्ति का रंग भक्त पर चढ़ जाता है तो भक्त को भगवान् की भक्ति से दूर करना असंभव हो जाता है।
कवि भगवान् से कहता है कि हे प्रभु! यदि तुम चंदन हो तो तुम्हारा भक्त पानी है। कवि कहता है कि जिस प्रकार चंदन की सुगंध पानी के बूँद-बूँद में समा जाती है उसी प्रकार प्रभु की भक्ति भक्त के अंग-अंग में समा जाती है। कवि भगवान् से कहता है कि हे प्रभु!
यदि तुम बादल हो तो तुम्हारा भक्त किसी मोर के समान है जो बादल को देखते ही नाचने लगता है। कवि भगवान् से कहता है कि हे प्रभु यदि तुम चाँद हो तो तुम्हारा भक्त उस चकोर पक्षी की तरह है जो बिना अपनी पलकों को झपकाए चाँद को देखता रहता है।
कवि भगवान् से कहता है कि हे प्रभु यदि तुम दीपक हो तो तुम्हारा भक्त उसकी बत्ती की तरह है जो दिन रात रोशनी देती रहती है। कवि भगवान् से कहता है कि हे प्रभु! यदि तुम मोती हो तो तुम्हारा भक्त उस धागे के समान है जिसमें मोतियाँ पिरोई जाती हैं।
उसका असर ऐसा होता है जैसे सोने में सुहागा डाला गया हो अर्थात उसकी सुंदरता और भी निखर जाती है। कवि रैदास अपने आराध्य के प्रति अपनी भक्ति को दर्शाते हुए कहते हैं कि हे मेरे प्रभु! यदि तुम स्वामी हो तो मैं आपका भक्त आपका दास यानि नौकर हूँ।
पद – 2
ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै।
गरीब निवाजु गुसईआ मेरा माथै छत्रु धरै।।
जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढ़रै।
नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै॥
नामदेव कबीरु तिलोचनु सधना सैनु तरै।
कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरिजीउ ते सभै सरै॥
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शब्दार्थ
लाल – स्वामी
कउनु – कौन
गरीब निवाजु – दीन-दुखियों पर दया करने वाला
गुसईआ – स्वामी, गुसाईं
माथै छत्रु धरै – मस्तक पर मुकुट धारण करने वाला
छोति – छुआछूत, अस्पृश्यता
जगत कउ लागै – संसार के लोगों को लगती है
ता पर तुहीं ढरै – उन पर द्रवित होता है
नीचहु ऊच करै – नीच को भी ऊँची पदवी प्रदान करता है
नामदेव – महाराष्ट्र के एक प्रसिद्ध संत, इन्होंने मराठी और हिंदी दोनों भाषाओं में रचना की है
तिलोचनु (त्रिलोचन) – एक प्रसिद्ध वैष्णव आचार्य, जो ज्ञानदेव और नामदेव के गुरु थे
सधना – एक उच्च कोटि के संत जो नामदेव के समकालीन माने जाते हैं
सैनु – ये भी एक प्रसिद्ध संत हैं, आदि ‘गुरुग्रंथ साहब’ में संगृहीत पद के आधार पर इन्हें रामानंद का समकालीन माना जाता है
हरिजीउ – हरि जी से
सभै सरै – सब कुछ संभव हो जाता है
व्याख्या – इस पद में कवि भगवान की महिमा का बखान कर रहे हैं। कवि कहते हैं कि हे! मेरे स्वामी तुझ बिन मेरा कौन है अर्थात कवि अपने आराध्य को ही अपना सबकुछ मानते हैं। कवि भगवान की महिमा का बखान करते हुए कहते हैं कि भगवान गरीबों और दीन-दुःखियों पर दया करने वाले हैं, उनके माथे पर सजा हुआ मुकुट उनकी शोभा को बड़ा रहा है। कवि कहते हैं कि भगवान में इतनी शक्ति है कि वे कुछ भी कर सकते हैं और उनके बिना कुछ भी संभव नहीं है। कहने का तात्पर्य यह है कि भगवान् की इच्छा के बिना दुनिया में कोई भी कार्य संभव नहीं है। कवि कहते हैं कि भगवान के छूने से अछूत मनुष्यों का भी कल्याण हो जाता है क्योंकि भगवान अपने प्रताप से किसी नीच जाति के मनुष्य को भी ऊँचा बना सकते हैं अर्थात भगवान् मनुष्यों के द्वारा किए गए कर्मों को देखते हैं न कि किसी मनुष्य की जाति को। कवि उदाहरण देते हुए कहते हैं कि जिस भगवान ने नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सधना और सैनु जैसे संतों का उद्धार किया था वही बाकी लोगों का भी उद्धार करेंगे। कवि कहते हैं कि हे !सज्जन व्यक्तियों तुम सब सुनो, उस हरि के द्वारा इस संसार में सब कुछ संभव है।
रैदास के पद प्रश्न अभ्यास
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
प्रश्न 1 – पहले पद में भगवान और भक्त की जिन-जिन चीजों से तुलना की गई है, उनका उल्लेख कीजिए।
उत्तर – पहले पद में भगवान् की तुलना चंदन से और भक्त की तुलना पानी से, भगवान् की तुलना बादल से और भक्त की तुलना मोर से, भगवान् की तुलना चाँद से और भक्त की तुलना चकोर से, भगवान् की तुलना मोती से और भक्त की तुलना धागा से, भगवान् की तुलना दीपक से और भक्त की तुलना बाती से और भगवान् की तुलना सोने से और भक्त की तुलना सुहागे से की गई है।
प्रश्न 2 – पहले पद की प्रत्येक पंक्ति के अंत में तुकांत शब्दों के प्रयोग से नाद-सौंदर्य आ गया है, जैसे: पानी, समानी, आदि। इस पद में अन्य तुकांत शब्द छाँटकर लिखिए।
उत्तर – इस पद में अन्य तुकांत शब्द मोरा-चकोरा, बाती-राती, धागा-सुहागा, दासा-रैदासा हैं।
प्रश्न 3 – पहले पद में कुछ शब्द अर्थ की दृष्टि से परस्पर संबद्ध हैं। ऐसे शब्दों को छाँटकर लिखिए: उदाहरण: दीपक – बाती
उत्तर – पहले पद में कुछ शब्द अर्थ की दृष्टि से परस्पर संबद्ध हैं जैसे – चंदन-पानी, घन-बनमोरा, चंद-चकोरा, सोनहि-सुहागा।
प्रश्न 4 – दूसरे पद में कवि ने ‘गरीब निवाजु’ किसे कहा है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – दूसरे पद में भगवान को ‘गरीब निवाजु’ कहा गया है क्योंकि भगवान गरीबों और दीन-दुःखियों पर दया करने वाले हैं।
प्रश्न 5 – दूसरे पद की ‘जाकी छोती जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढ़रै’ इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – भगवान के छूने से अछूत मनुष्यों का भी कल्याण हो जाता है क्योंकि भगवान अपने प्रताप से किसी नीच जाति के मनुष्य को भी ऊँचा बना सकते हैं अर्थात भगवान् मनुष्यों के द्वारा किए गए कर्मों को देखते हैं न कि किसी मनुष्य की जाति को। अछूत से अभी भी बहुत से लोग बच कर चलते हैं और अपना धर्म भ्रष्ट हो जाने से डरते हैं। अछूत की स्थिति समाज में दयनीय है। ऐसे लोगों का उद्धार भगवान ही करते हैं।
प्रश्न 6 – रैदास ने अपने स्वामी को किन किन नामों से पुकारा है?
उत्तर – रैदास ने अपने स्वामी को गुसईआ (गोसाई) और गरीब निवाजु (गरीबों का उद्धार करने वाला) पुकारा है।
प्रश्न 7 – निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए – मोरा, चंद, बाती, जोति, बरै, राती, छत्रु, छोति, तुहीं, गुसईआ।
उत्तर – मोरा – मोर
चंद – चाँद
बाती – बत्ती
जोति – ज्योति
बरै – जलना
राती – रात
छत्रु – छाता
छोति – छूने
तुहीं – तुम्हीं
गुसईआ – गोसाई
नीचे लिखी पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए-
प्रश्न 1 – जाकी अँग-अँग बास समानी।
उत्तर – भगवान उस चंदन के समान हैं जिसकी सुगंध अंग-अंग में समा जाती है।
प्रश्न 2 – जैसे चितवन चंद चकोरा।
उत्तर – जैसे चकोर हमेशा चांद को देखता रहता है वैसे कवि भी भगवान् को देखते रहना चाहता है।
प्रश्न 3 – जाकी जोति बरै दिन राती।
उत्तर – भगवान यदि एक दीपक हैं तो भक्त उस बाती की तरह है जो प्रकाश देने के लिए दिन रात जलती रहती है।
प्रश्न 4 – ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै।
उत्तर – भगवान इतने महान हैं कि वह कुछ भी कर सकते हैं। भगवान के बिना कोई भी व्यक्ति कुछ भी नहीं कर सकता।
प्रश्न 5 – नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै।
उत्तर – भगवान यदि चाहें तो निचली जाति में जन्म लेने वाले व्यक्ति को भी ऊँची श्रेणी दे सकते हैं। क्योंकि भगवान् कर्मों को देखते हैं जाति को नहीं।
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