Mira Ke Pad Summary

 

CBSE Class 11 Hindi Chapter 10 “Mira Ke Pad”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Aroh Bhag 1 Book

इस पोस्ट में हम आपके लिए CBSE Class 11 Hindi Aroh Bhag 1 Book के Chapter 10 मीरा के पद का पाठ सार और व्याख्या लेकर आए हैं। यह सारांश और व्याख्या आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे आप जान सकते हैं कि इस कहानी का विषय क्या है। इसे पढ़कर आपको को मदद मिलेगी ताकि आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। Mira Ke Pad Summary, Explanation of CBSE Class 11 Hindi Aroh Bhag-1 Chapter 10.

Related : 

मीरा के पद पाठ सार (Mira Ke Pad Summary)

मीरा की कविता में प्रेम की गंभीर अभिव्यंजना है। उसमें विरह की वेदना है और मिलन का उल्लास भी। मीरा की कविता का प्रधान गुण सादगी और सरलता है। उनकी भाषा मूलतः राजस्थानी है तथा कहीं-कहीं ब्रजभाषा का प्रभाव है। कृष्ण के प्रेम की दीवानी मीरा पर सूफियों के प्रभाव को भी देखा जा सकता है। मीरा की कविता के मूल में दर्द है। वे बार-बार कहती हैं कि कोई मेरे दर्द को पहचानता नहीं, न शत्रु न मित्र।

यहाँ प्रस्तुत पद में मीरा ने कृष्ण से अपनी अनन्यता व्यक्त की है तथा व्यर्थ के कार्यों में व्यस्त लोगों के प्रति दुख प्रकट किया है। कवयित्री मीरा ने भगवान श्री कृष्ण के प्रति अपनी भावनाएँ व्यक्त की हैं। उन्होंने श्री कृष्ण को अपना पति मान लिया है और वो उनकी सेवा एवं भक्ति में लगी रहती हैं। वो लोक – लाज सब छोड़ कर मंदिरों में श्री कृष्ण के भजन गाती रहती हैं , साधु संतों की संगति में बैठी रहती हैं। आँसुओं से सींचकर उसने कृष्ण प्रेम रूपी बेल बोयी है। अब इसमें आनंद के फल लगने लगे हैं। जिस प्रकार दूध में मथानी डाल कर दही में से मक्खन निकाल लिया जाता है और छाछ अलग कर दिया जाता है उसी प्रकार मीरा ने भी भगवान की भक्ति को अपना लिया है और सांसरिक मोह माया से खुद को अलग कर लिया है और कृष्ण से अपने उद्धार के लिए प्रार्थना करती हैं।

 

मीरा के पद व्याख्या (Mira Ke Pad Explanation)

मेरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरों न कोई
जा के सिर मोर-मुकुट, मेरो पति सोई
छाँड़ि दयी कुल की कानि, कहा करिहैं कोई?
संतन द्विग बैठि-बेठि, लोक-लाज खोयी
असुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम-बलि बोयी
अब त बेलि फॅलि गायी, आणंद-फल होयी
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलायी
दधि मथि घृत काढ़ि लियों, डारि दयी छोयी
भगत देखि राजी हुयी, जगत देखि रोयी
दासि मीरां लाल गिरधर! तारो अब मोही।

शब्दार्थ –
गिरधर – पर्वत को धारण करने वाला अर्थात कृष्ण
गोपाल – गाएँ पालने वाला , कृष्ण
मोर मुकुट – मोर के पंखों का बना मुकुट
सोई – वही
जा के – जिसके
छाँड़ि दयी – छोड़ दी
कुल की कानि – परिवार की मर्यादा
करिहै – करेगा
कहा – क्या
ढिग – पास
लोक-लाज – समाज की मर्यादा
असुवन – आँसू
सींचि – सींचकर
मथनियाँ – मथानी
विलायी – मथी
दधि – दही
घृत – घी
काढ़ि लियो – निकाल लिया
डारि दयी – डाल दी
जगत – संसार
तारो – उद्धार
छोयी – छाछ
मोहि – मुझे

व्याख्या – मीराबाई कहती हैं कि मेरे तो गिरधर गोपाल अर्थात् उनके लिए तो श्री कृष्ण ही सब कुछ हैं। दूसरों से उनका कोई संबंध नहीं है। जिसके सिर पर मोर का मुकुट है, वही उनका पति है। कहने का तात्पर्य यह है कि मीरा श्री कृष्ण को अपना स्वामी मान चुकीं हैं। श्री कृष्ण के लिए उन्होंने परिवार की मर्यादा भी छोड़ दी है। उन्हें अब किसी की कोई परवाह नहीं है। मीरा संतों के पास बैठकर ज्ञान प्राप्त करती हैं और इस प्रकार लोक-लाज भी खो दी है। उन्होंने अपने आँसुओं के जल से सींच-सींचकर प्रेम की बेल बोई है। अब यह बेल फैल गई है और इस पर आनंद रूपी फल लगने लगे हैं। वे कहती हैं कि उन्होंने कृष्ण के प्रेम रूप दूध को भक्ति रूपी मथानी में बड़े प्रेम से बिलोया है। उन्होंने दही से सार तत्व अर्थात् घी को निकाल लिया और छाछ रूपी सारहीन अंशों को छोड़ दिया है। वे प्रभु के भक्त को देखकर बहुत प्रसन्न होती हैं और संसार के लोगों को मोह-माया में लिप्त देखकर रोती हैं। वे स्वयं को गिरधर की दासी बताती हैं और अपने उद्धार के लिए प्रार्थना करती हैं।

Also See: 

Hindi Aroh Bhag 1 Book Lessons

 

Hindi Aroh Bhag 1 Question Answers

 

Hindi Vitan Bhag 1 Book Lessons and Question Answers

 

Hindi Abhivyakti Aur Madhyam Book Lessons and Question Answers

 

Also See: