CBSE Class 11 Hindi Core Abhivyakti Aur Madhyam Book Chapter 9 डायरी लिखने की कला Summary
इस पोस्ट में हम आपके लिए CBSE Class 11 Hindi Core Abhivyakti Aur Madhyam Book के Chapter 9 डायरी लिखने की कला का पाठ सार लेकर आए हैं। यह सारांश आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे आप जान सकते हैं कि इस कहानी का विषय क्या है। इसे पढ़कर आपको को मदद मिलेगी ताकि आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। Diary Likhne Ki Kala Summary of CBSE Class 11 Core Abhivyakti Aur Madhyam Chapter 9.
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डायरी लिखने की कला पाठ सार (Diary Likhne Ki Kala Summary)
मोटे गत्ते की जिल्द वाली उस नोटबुक के बारे में आप सभी जानते होंगे, जिसके पृष्ठों पर साल के 365 दिनों की दिनांक क्रम से सजी हुई होती हैं और हर दिनांक के साथ एक या आधे पृष्ठ की खाली जगह छोड़ी जाती है। यह खाली जगह उस दिनांक विशेष से सम्बन्ध रखने वाली सूचनाओं या अपनी निजी बातों को लिखने के लिए दी गई होती है। उस नोटबुक को डायरी कहा जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि डायरी में आप अपनी कोई भी निजी घटना, अनुभव या विचार लिख सकते हैं। साथ ही डायरी में हम अपने किसी भी ऐसे काम या अनुभव, जिसे हम याद रखना चाहते हैं, उस दी गई दिनांक के पृष्ठ पर लिख सकते है, जिस दिन वह काम या अनुभव घटित हुआ हो। ऐसा करके हम अपने काम या अनुभव को लिखित शब्दों में लम्बे समय के लिए सुरक्षित कर देते हैं और यह निर्धारित करते हैं कि वह हमारी यादाश्त से कहीं खो न जाएँ। अर्थात हम उन अनुभवों को कहीं भूल न जाएँ इस लिए उन्हें लिख कर सुरक्षित रख सकते हैं। मुख्यतः डायरी-लेखन के बारे में जब बात की जाती है, तो उसका तात्पर्य डायरी के इसी दूसरे उपयोग से होता है। दिनभर आप जिन घटनाओं, गतिविधियों और विचारों से गुज़रते रहे, उन्हें डायरी के पृष्ठों पर अपने शब्दों में सुरक्षित करना ही डायरी-लेखन है। यह लेखन अधिकतर आपके अपने उपयोग एवं इस्तेमाल के लिए होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि आप डायरी अपने लिए लिखते हैं न की किसी और के पढ़ने या मनोरंजन के लिए। पिछली सदी की सबसे अधिक जो पुस्तकें पढ़ी गई हैं उनमें से एक है ऐनी फ्रैंक नामक एक किशोरी की पुस्तक के रूप में छपी हुई डायरी, जो उसने 1942-44 के दौरान नाजी अत्याचार के बीच एम्स्टर्डम में छुप कर रहते हुए लिखी थी। यह तो सिर्फ एक उदाहरण है। इस तरह की बहुत सारी कृतियाँ रही हैं। किसी यात्रा के दौरान घटित होने वाली घटनाओं को तो काफी पहले से ही कई लोग डायरी के रूप में लिखते आ रहे हैं।
पत्र-पत्रिकाओं में भी कई रचनाकारों की डायरी के कुछ-कुछ भाग समय के साथ छपते रहते हैं, जिनमें पढ़ने वालों को अकसर उधेड़-बुन की शैली में प्रकट होने वाले कुछ भड़काने वाले विचारबिंदु, किसी यात्रा का वर्णन या फिर साहित्य-जगत की चटपटी खबरें पढ़ने को मिल जाती हैं। लेकिन इन सब बातों का मतलब यह बिलकुल नहीं कि डायरी सचमुच कहानी, उपन्यास, कविता या नाटक की तरह पाठकों के लिए लिखी जाने वाली कुछ खास तरह की रचनाओं का विधागत नाम है। निबंध, कहानी या उपन्यास डायरी की शक्ल में जरूर लिखे जा सकते हैं, लेकिन वहाँ डायरी का सिर्फ ‘रूप’ होगा। मूलविषय के हिसाब से या डायरी की परिभाषा के हिसाब से उसे डायरी नहीं कहा जा सकता।
फिर प्रश्न उठता है कि डायरी सचमुच में क्या है? हम कह सकते हैं कि वह अत्यधिक निजी स्तर पर घटित घटनाओं और उससे सम्बन्ध रखने वाली, विचार सम्बन्धी – भावनाओं पर आधारित प्रतिक्रियाओं का लेखा-जोखा है। इन्हें हम किसी और के लिए नहीं, स्वयं अपने लिए शब्दों में बाँधते हैं। जिन बातों को हम दुनिया में किसी और व्यक्ति के सामने नहीं कह सकते, उन्हें भी डायरी के पन्नों पर लिख करके खुद को सुना डालते हैं।
डायरी लिखने से हमें कई फायदे भी होते हैं। डायरी लिखने से हम पहले तो हम खुद को और अच्छे तरीके से समझ पाते हैं, दूसरा अपने अंदर अनजाने में ही इकट्ठा होते भार से आज़ाद हो जाते हैं और अपने ही व्यक्तित्त्व के पहलुओं को विस्मृति के अंधेरे में खोने से पहले इस तरह रिकॉर्ड कर लेते हैं कि उन्हें पलट कर कभी भी दुबारा जिया जा सकता है। अर्थात हम अपनी भावनाओं, विचारों या घटनाओं को हमेशा के लिए अपनी यादाश्त में संभाल नहीं सकते इसलिए डायरी के जरिए उन्हें सुरक्षित रखते हैं और जब हमें लगे की हमें अपनी उन घटनाओं य विचारों को फिर से याद करना है तो हम डायरी को पढ़ कर उन्हें कभी भी याद कर सकते हैं।
लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं समझना चाहिए कि डायरी सिर्फ हमारे निजी सत्यों को शब्द देने का तरीका है। डायरी एक तरह का किसी व्यक्ति का अपना निजी दस्तावेज़ भी है, जिसमें अपने जीवन के खास पलों, किसी विशेष समय में मन के अंदर चलने वाले विचारों, यादगार मुलाकातों और तर्क-वितर्क को हम लिख कर सुरक्षित कर लेते हैं। अपनी कई तरह की यादों को हम कैमरे की मदद से भी रिकॉर्ड करते हैं, पर खुद अपना पाठ तैयार करना और जो कुछ घटित हुआ, उसकी कहानी की तरह कहना एक ऐसा तरीका है, जो हमें आनेवाले दिनों में उन लम्हों को दुबारा जीने का मौका देता है। डायरी हमें महत्वपूर्ण चीजों को भूलने से बचाती है। यात्राओं के दौरान डायरी लिखना तो बहुत ही उपयोगी सबित होता है। क्योंकि यात्राओं में हमारी बहुत सी यादें होती हैं जिन्हें समय के साथ हम भूलते जाते हैं। डायरी में पूरी यात्रा का वर्णन करके हम उस यात्रा को हमेशा के लिए अपने पास सुरक्षित कर सकते हैं। डायरी लिखना अपने साथ एक अच्छी दोस्ती कायम करने का बहुत ही अच्छा तरीका है। अगर आप भी खुद अपने साथ अच्छी दोस्ती बनाना चाहते हैं, तो इन खास-खास बातों को ध्यान में रखना चाहिए –
- डायरी या तो किसी नोटबुक में या पुराने साल की डायरी में लिखी जानी चाहिए। क्योंकि पुराने साल की डायरी में पहले की पड़ी हुई तिथियों की जगह अपने हाथ से नई तिथि डाल सकते हैं। ऐसा करने का एक फायदा यह है कि आप कहीं मौजूदा साल की डायरी में तिथियों के अनुसार बने हुए सीमित स्थान से अपने को बंधा हुआ न महसूस करें। क्योंकि ऐसा भी हो सकता है कि हम किसी दिन दो-तीन पंक्तियाँ ही लिखना चाहें और किसी दिन हमारी बात पाँच पन्नों में पूरी हो। ऐसे में डायरी का किसी निश्चित तिथि के साथ दिया गया सीमित स्थान हमारे लिए बंधन बन जाएगा। इसीलिए नोटबुक या पुराने साल की डायरी अधिक उपयोगी साबित हो सकती है। उसमें अपनी सुविधा के अुनसार तिथियाँ डाली जा सकती हैं और स्थान का उपयोग किया जा सकता है।
- अपनी दिनभर की घटनाओं, मुलाकातों, विचारों इत्यादि में से कौन-कौन सी चीज़े आपको डायरी में लिखने लायक लगती हैं, उन्हें आप किन-किन वजहों से भविष्य में भी याद करना चाहेंगे-यह विचार कर लेने के बाद ही उन्हें आपको शब्दबद्ध करना चाहिए।
- डायरी बिलकुल निजी वस्तु है और यह मान कर ही आपको डायरी लिखनी चाहिए कि वह किसी और के द्वारा नहीं पढ़ी जाएगी। क्योंकि अगर आप किसी और को पढ़वाने की बात सोच कर डायरी लिखते हैं, तो आप अपनी बातों के बेबाकपन से नहीं लिख पाएंगे।
- यह बिलकुल भी ज़रूरी नहीं कि डायरी में पूरी शुद्ध और उच्च स्तर की भाषा-शैली का प्रयोग किया जाए। डायरी का डायरीपन इसी में है कि आप जो कुछ भी उसमें लिखना चाहते हैं और जिस तरीके से लिखना चाहते हैं, आप लिख सकते हैं।
- आखिरी, पर बहुत महत्वपूर्ण बात यह है कि डायरी नितांत निजी स्तर की घटनाओं और भावनाओं का लेखा-जोखा होने के साथ-साथ, हमारे अपने मन के आईने में अपने आप से पहचान का ज़रिया भी है। डायरी लिखते हुए अगर यह बात हमारी स्मरणशक्ति में रहे, तो अपने काम के महत्त्व को लेकर हम अधिक उत्साहित हो सकते हैं।
इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए हमें अपने रोज़ के कामों के बीच थोड़ा-सा समय डायरी लिखने के लिए, यानी खुद को अपना हालचाल बताने और अपने आप को और बेहतर मनाने के लिए सुरक्षित अवश्य करना चाहिए।
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