मीरा के पद Class 10 Hindi Sparsh Chapter 2 Notes, Summary, Question Answers

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मीरा के पद Class 10 Summary, Explanation, Question Answer, Difficult word meaning of Meera ke Pad Class 10

मीरा के पद CBSE Class 10 Hindi Lesson 2 summary with a detailed explanation of the lesson ‘Meera ke Pad’ along with meanings of difficult words.

Given here is the complete explanation of the lesson Meera ke Pad, along with a summary and all the exercises, Questions and Answers given at the back of the lesson.

Class 10 Chapter 2 Meera Ke Pad

कक्षा 10 पाठ 2 – मीरा के पद

कवि परिचय

कवि – मीराबाई
जन्म – 1 5 0 3 ( जोधपुर , चोकड़ी गांव )
मृत्यु – 1 5 4 6

 

Meera ke Pad Class 10 Video Explanation

 

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मीरा के पद पाठ प्रवेश

लोक कथाओं के अनुसार अपने जीवन में आए कठिन दुखों से मुक्ति पाने के लिए मीरा घर – परिवार छोड़ कर वृन्दावन में जा बसी थी और कृष्ण प्रेम में लीन हो गई थी।  इनकी रचनाओं में इनके आराध्य ( कृष्ण ) कहीं निर्गुण निराकार ब्रह्मा अर्थात  जिसका कोई रूप आकर न हो ऐसे प्रभु , कहीं सगुण  साकार गोपीवल्लभ श्रीकृष्ण और कहीं निर्मोही परदेसी जोगी अर्थात जिसे किसी की परवाह नहीं ऐसे  संत के रूप में दिखाई देते हैं।
प्रस्तुत पाठ में संकलित दोंनो पद मीरा के इन्ही आराध्य अर्थात श्रीकृष्ण को समर्पित हैं। मीरा अपने प्रभु की झूठी प्रशंसा भी करती है ,प्यार भी करती हैं और अवसर आने पर डांटने से भी नहीं डरती। श्रीकृष्ण की शक्तिओं व सामर्थ्य का गुणगान भी करती हैं और उनको उनके कर्तव्य भी याद दिलाती हैं।

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मीरा के पद पाठ सार

इन पदों में मीराबाई श्री कृष्ण का भक्तों के प्रति प्रेम और अपना श्री कृष्ण के प्रति भक्ति – भाव का वर्णन करती है। पहले पद में मीरा श्री कृष्ण से कहती हैं कि  जिस प्रकार आपने द्रोपदी ,प्रह्लाद और ऐरावत के दुखों को दूर किया था उसी तरह मेरे भी सारे दुखों का नाश कर दो।
दूसरे पद में मीरा श्री कृष्ण के दर्शन का एक भी मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहती , वह श्री कृष्ण की दासी बनाने को तैयार है ,बाग़ – बगीचे लगाने को भी तैयार है ,गली गली में श्री कृष्ण की लीलाओं का बखान भी करना चाहती है ,ऊँचे ऊँचे महल भी बनाना चाहती है , ताकि दर्शन का एक भी  मौका न  चुके।
श्री कृष्ण के मन मोहक रूप का वर्णन भी किया है और मीरा कृष्ण के दर्शन के लिए इतनी व्याकुल है की आधी रात को ही कृष्ण को दर्शन देने के लिए बुला रही है।

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मीरा के पद पाठ की व्याख्या

( 1 )

 

meera

हरि आप हरो जन री भीर।
द्रोपदी री लाज राखी , आप बढ़ायो चीर।
भगत कारण रूप नरहरि , धरयो आप सरीर।
बूढ़तो गजराज राख्यो , काटी कुञ्जर पीर।
दासी मीराँ लाल गिरधर , हरो म्हारी भीर।।

शब्दार्थ

meera

हरि – श्री कृष्ण
जन – भक्त
भीर – दुख- दर्द
लाज – इज्जत
चीर – साड़ी , कपडा
नरहरि – नरसिंह अवतार
सरीर – शरीर
गजराज – हाथियों का राजा ऐरावत
कुञ्जर – हाथी
काटी – मारना
लाल गिरधर – श्री कृष्ण
म्हारी – हमारी

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प्रसंग :- प्रस्तुत पाठ हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से लिया गया है। इस पद की कवयित्री मीरा है। इसमें कवयित्री भगवान श्री कृष्ण के भक्त – प्रेम को दर्शा रही हैं और स्वयं की रक्षा की गुहार लगा रही है ।

व्याख्या -: इस पद में कवयित्री मीरा भगवान श्री कृष्ण के भक्त – प्रेम का वर्णन करते हुए कहती हैं कि आप अपने भक्तों के सभी प्रकार के दुखों को हरने वाले हैं अर्थात दुखों का नाश करने वाले हैं। मीरा उदाहरण देते हुए कहती हैं कि जिस तरह आपने द्रोपदी की इज्जत को बचाया और साडी के कपडे को बढ़ाते चले गए ,जिस तरह आपने अपने भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए नरसिंह का शरीर धारण कर लिया और जिस तरह आपने हाथियों के राजा भगवान इंद्र के वाहन ऐरावत हाथी को मगरमच्छ के चंगुल से बचाया था ,हे ! श्री कृष्ण उसी तरह अपनी इस दासी अर्थात भक्त के भी सारे दुःख हर लो अर्थात सभी दुखों का नाश कर दो।

( 2 )

 

meera

स्याम म्हाने चाकर राखो जी,
गिरधारी लाला म्हाँने चाकर राखोजी।
चाकर रहस्यूँ बाग लगास्यूँ नित उठ दरसण पास्यूँ।
बिन्दरावन री कुंज गली में , गोविन्द लीला गास्यूँ।
चाकरी में दरसन पास्यूँ, सुमरन पास्यूँ खरची।
भाव भगती जागीरी पास्यूँ , तीनूं बाताँ सरसी।
मोर मुगट पीताम्बर सौहे , गल वैजन्ती माला।
बिन्दरावन में धेनु चरावे , मोहन मुरली वाला।
ऊँचा ऊँचा महल बनावँ बिच बिच राखूँ बारी।
साँवरिया रा दरसण पास्यूँ ,पहर कुसुम्बी साड़ी।
आधी रात प्रभु दरसण ,दीज्यो जमनाजी रे तीरा।
मीराँ रा प्रभु गिरधर नागर , हिवड़ो घणो अधीरा।

 

शब्दार्थ
स्याम
– श्री कृष्ण
चाकर – नौकर
रहस्यूँ – रह कर
नित – हमेशा
दरसण – दर्शन
जागीरी -जागीर , साम्राज्य
कुंज – संकरी
पीताम्बर – पीले वस्त्र
धेनु – गाय
बारी – बगीचा
पहर – पहन कर
तीरा – किनारा
अधीरा – व्याकुल होना

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प्रसंग -: प्रस्तुत पद हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से लिया गया है। इस पद की कवयित्री मीरा है। इस पद में कवयित्री मीरा श्री कृष्ण के प्रति अपने प्रेम का वर्णन कर रही है और श्री कृष्ण के दर्शन के लिए वह कितनी व्याकुल है यह दर्शा रही है।

व्याख्या -: इस पद में कवयित्री मीरा श्री कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति भावना को उजागर करते हुए कहती हैं कि हे !श्री कृष्ण मुझे अपना नौकर बना कर रखो अर्थात मीरा किसी भी तरह श्री कृष्ण के नजदीक रहना चाहती है फिर चाहे नौकर बन कर ही क्यों न रहना पड़े।  मीरा कहती हैं कि नौकर बनकर मैं बागीचा लगाउंगी ताकि सुबह उठ कर रोज आपके दर्शन पा सकूँ। मीरा कहती हैं कि वृन्दावन की संकरी गलियों में मैं अपने स्वामी की लीलाओं का बखान करुँगी।  मीरा का मानना है कि नौकर बनकर उन्हें तीन फायदे होंगे पहला – उन्हें हमेशा कृष्ण के दर्शन प्राप्त होंगे , दूसरा- उन्हें अपने प्रिय की याद नहीं सताएगी और तीसरा- उनकी भाव भक्ति का साम्राज्य बढ़ता ही जायेगा।
मीरा श्री कृष्ण के रूप का बखान करते हुए कहती हैं कि उन्होंने पीले वस्त्र धारण किये हुए हैं ,सर पर मोर के पंखों का मुकुट विराजमान है और गले में वैजन्ती फूल की माला को धारण किया हुआ है।
वृन्दावन में गाय चराते हुए जब वह मोहन मुरली बजाता है तो सबका मन मोह लेता है।
मीरा कहती है कि मैं बगीचों के बिच ही ऊँचे ऊँचे महल बनाउंगी और कुसुम्बी साड़ी पहन कर अपने प्रिय के दर्शन करुँगी अर्थात श्री कृष्ण के दर्शन के लिए साज श्रृंगार करुँगी। मीरा कहती हैं कि हे !मेरे प्रभु गिरधर स्वामी मेरा मन आपके दर्शन के लिए इतना बेचैन है कि वह सुबह का इन्तजार नहीं कर सकता। मीरा चाहती है की श्री कृष्ण आधी रात को ही जमुना नदी के किनारे उसे दर्शन दे दें।

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पाठ की व्याख्या प्रश्न अभ्यास (महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर )

प्रश्न 1 -: पहले पद में मीरा ने हरि से अपनी पीड़ा हरने की विनती किस प्रकार की है ?
उत्तर -:
पहले पद में मीरा कहती हैं कि जिस प्रकार हे ! प्रभु आप अपने सभी भक्तों के दुखों को हरते हो ,जैसे – द्रोपदी की लाज बचाने के लिए साड़ी का कपड़ा बढ़ाते चले गए ,प्रह्लाद को बचाने के लिए नरसिंह का रूप धारण कर लिया और ऐरावत हाथी को बचाने के लिए मगरमच्छ को मार दिया उसी प्रकार मेरे भी सारे दुखों को हर लो अर्थात सभी दुखों को समाप्त कर दो।

प्रश्न 2 -: दूसरे पद में मीराबाई श्याम की चाकरी क्यों करना चाहती है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर -:
दूसरे पद में मीरा श्री कृष्ण की नौकर बनने की विनती इसलिए करती है क्यों कि वह श्री कृष्ण के दर्शन का एक भी मौका खोना नहीं चाहती है। वह कहती है कि मैं बगीचा लगाऊँगी ताकि रोज सुबह उठते ही मुझे श्री कृष्ण के दर्शन हो सकें।

प्रश्न 3 -: मीरा ने श्री कृष्ण के रूप सौंदर्य का वर्णन कैसे किया है ?
उत्तर -:
मीरा श्री कृष्ण के रूप सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहती हैं कि उन्होंने सर पर मोर पंख का मुकुट धारण किया हुआ है ,पीले वस्त्र पहने हुए हैं और गले में वैजंत फूलों की माला को धारण किया हुआ है। मीरा कहती हैं कि जब श्री कृष्ण वृन्दावन में गाय चराते हुए बांसुरी बजाते है तो सब का मन मोह लेते हैं।

प्रश्न 4 -: मीरा की भाषा शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर -:
मीरा को हिंदी और गुजरती दोनों की कवयित्री माना जाता है। इनकी कुल सात -आठ कृतियाँ ही उपलब्ध हैं। मीरा की भाषा सरल ,सहज और आम बोलचाल की भाषा है, इसमें राजस्तानी ,ब्रज, गुजरती ,पंजाबी और खड़ी बोली का मिश्रण है।पदों में भक्तिरस है तथा अनुप्रास ,पुनरुक्ति ,रूपक आदि अलंकारों का भी प्रयोग किया गया है।

प्रश्न 5 -: वे श्री कृष्ण को पाने के लिया क्या – क्या कार्य करने को तैयार हैं ?
उत्तर -:
मीरा श्री कृष्ण को पाने के लिए अनेक कार्य करने के लिए तैयार हैं – वे कृष्ण की सेविका बन कर रहने को तैयार हैं ,वे उनके विचरण अर्थात घूमने के लिए बाग़ बगीचे लगाने के लिए तैयार हैं ,ऊँचे ऊँचे महलों में खिड़कियां बनाना चाहती हैं ताकि श्री कृष्ण के दर्शन कर सके और यहाँ तक की आधी रात को जमुना नदी के किनारे कुसुम्बी रंग की साडी पहन कर दर्शन करने के लिए तैयार हैं।

(ख) निम्नलिखित पंक्तिओं का काव्य – सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए -:
1) हरि आप हरो जन री भीर।
    द्रोपदी री लाज राखी ,आप बढ़ायो चीर।
    भगत कारण रूप नरहरि ,धरयो आप सरीर।

काव्य -सौन्दर्य – इन पंक्तिओं में मीरा श्री कृष्ण के भक्ति -भाव को प्रकट कर रही है। इन पंक्तिओं में शांत रस प्रधान है। मीरा कहती है कि हे !श्री कृष्ण आप अपने भक्तों के कष्टों को हरने वाले हो। आपने द्रोपदी की लाज बचाई और साड़ी के कपडे को बढ़ाते चले गए। आपने अपने भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए नरसिंह का रूप भी धारण किया।

2) बूढ़तो गजराज राख्यो ,काटी कुञ्जर पीर।
    दासी मीराँ लाल गिरधर , हरो म्हारी भीर।।

काव्य सौन्दर्य – इन पंक्तिओं में मीरा श्री कृष्ण से उनके दुःख दूर करने की विनती करती हैं। इन पंक्तिओं में तत्सम और तद्भव शब्दों का सुन्दर मिश्रण है। मीरा कहती हैं कि जिस तरह हे !श्री कृष्ण आपने हाथिओं के राजा ऐरावत को मगरमच्छ के चंगुल से बचाया था मुझे भी हर दुःख से बचाओ।

3) चाकरी में दरसन पास्यूँ ,सुमरन पास्यूँ खरची।
   भाव भगती जागीरी पास्यूँ ,तिन्नू बाताँ सरसी।।

काव्य सौन्दर्य इन पंक्तिओं में मीरा श्री कृष्ण के प्रति अपनी भाव भक्ति दर्शा रही है। यहाँ शांत रस प्रधान है। यहाँ मीरा श्री कृष्ण के पास रहने के तीन फायदे बताती है।  पहला -उसे हमेशा दर्शन प्राप्त होंगे ,दूसरा -उसे श्री कृष्ण को याद करने की जरूरत नहीं होगी और तीसरा -उसकी भाव भक्ति का साम्राज्य बढ़ता ही जायेगा।

प्रश्न 6 – मीरा के जिस पद में ” हिवड़ो ” शब्द प्रयुक्त हुआ है , उस पद को लिखिए तथा यह भी स्पष्ट कीजिए कि ” हिवड़ो ” का अर्थ क्या है।
उत्तर – आधी रात प्रभु दरसण ,दीज्यो जमनाजी रे तीरा।
           मीराँ रा प्रभु गिरधर नागर , हिवड़ो घणो अधीरा। 

अर्थात मीरा कहती हैं कि हे ! मेरे प्रभु गिरधर स्वामी मेरा मन आपके दर्शन के लिए इतना बेचैन है कि वह सुबह का इन्तजार नहीं कर सकता। मीरा चाहती है की श्री कृष्ण आधी रात को ही जमुना नदी के किनारे उसे दर्शन दे दें।
इस पद में ” हिवड़ो ” का अर्थ ” हृदय यानि मन ” से लिया गया है। “हिवड़ो घणो अधीरा ” अर्थत हृदय या मन बहुत बैचेन हो रहा है। 

प्रश्न 7 – लोग मीरा को बावरी कहते थे। स्पष्ट कीजिए क्यों ?
उत्तर – मीरा कृष्ण – भक्ति में अपनी सुध – बुध खो चुकी थी। उन्हें किसी परंपरा या मर्यादा का भी ध्यान नहीं रहता था। वह कृष्ण प्रेम में पागल होकर उनकी मूर्ति के सम्मुख नाचती रहती है। वह कृष्ण को अपना पति मानती थी। मीरा संतों की संगति में रहती थी। कृष्ण – भक्ति के लिए उन्होंने राज – परिवार छोड़ दिया , लोकनिंदा सही तथा मंदिरों में भजन गाए , नृत्य किया। उसके इन्हीं कार्यों के कारण लोगों ने उसकी भरपूर निंदा की परंतु मीरा तो सब सांसारिकता को त्याग कर कृष्ण की अनन्य भक्ति में रम चुकी थी। मीरा की अनन्य कृष्ण – भक्ति की इसी पराकष्ठा को बावलेपन की संज्ञा दी गई है। इसी कारण लोग उन्हें बावरी कहते थे। 

प्रश्न 8 – मीरा जी के पदों की कौन सी भाषा है ?
उत्तर – मीरा जी के पदों में राजस्थानी और बृज भाषा का मिलाजुला प्रयोग मिलता है।

प्रश्न 9 – दुसरे पद में मीरा जी श्री कृष्ण से क्या प्रार्थना करती हैं ?
उत्तर – दूसरे पद में कवयित्री मीरा जी श्री कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति भावना को उजागर करते हुए कहती हैं कि हे ! श्री कृष्ण मुझे अपना नौकर बना कर रखो अर्थात मीरा किसी भी तरह श्री कृष्ण के नजदीक रहना चाहती है फिर चाहे नौकर बन कर ही क्यों न रहना पड़े। दूसरे पद में मीरा श्री कृष्ण की नौकर बनने की विनती इसलिए करती है क्यों कि वह श्री कृष्ण के दर्शन का एक भी मौका खोना नहीं चाहती है। वह कहती है कि वे बगीचा लगाएँगी ताकि रोज सुबह उठते ही उन्हें श्री कृष्ण के दर्शन हो सकें। 

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CBSE Class 10 Hindi Lessons

Chapter 1 Saakhi Chapter 2 Meera ke Pad Chapter 3 Dohe
Chapter 4 Manushyata Chapter 5 Parvat Pravesh Mein Pavas Chapter 6 Madhur Madhur Mere Deepak Jal
Chapter 7 TOP Chapter 8 Kar Chale Hum Fida Chapter 9 Atamtran
Chapter 10 Bade Bhai Sahab Chapter 11 Diary ka Ek Panna Chapter 12 Tantara Vamiro Katha
Chapter 13 Teesri Kasam ka Shilpkaar Chapter 14 Girgit Chapter 15 Ab Kaha Dusre Ke Dukh Se Dukhi Hone Wale
Chapter 16 Pathjhad ki Patiya Chapter 17 Kartoos

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