CBSE Class 10 Hindi Course B Chapter-wise Previous Years Questions (2023) with Solution

 

Class 10 Hindi (Course B) Question Paper (2023) – Solved Question papers from previous years are very important for preparing for the CBSE Board Exams. It works as a treasure trove. It helps to prepare for the exam precisely. One of key benefits of solving question papers from past board exams is their ability to help identify commonly asked questions. These papers are highly beneficial study resources for students preparing for the upcoming class 10th board examinations. Here we have compiled chapter-wise questions asked in all the sets of CBSE Class 10 Hindi (Course B) question paper (2023).

 

Sparsh Bhag 2 Book

 

Chapter 1 – Saakhi

 

प्रश्न 1 – ‘साखी’ पाठ के आधार पर ‘घर’ की प्रतीकात्मकता स्पष्ट करते हुए लिखिए कि कबीर अपने बताए मार्ग पर चलने वालों का घर क्यों जलाना चाहते हैं ?

उत्तर – ‘साखी’ पाठ के आधार पर कबीर जी ने मोह-माया को घर बताया है और कबीर जी अपने बताए मार्ग पर चलने वालों का यही मोह-माया रूपी घर जलाना चाहते हैं। कबीर जी कहते हैं कि उन्होंने अपने हाथों से अपना मोह -माया रूपी घर जला कर ज्ञान प्राप्त कर लिया है। अब उनके हाथों में जलती हुई मशाल ( लकड़ी ) है यानि ज्ञान है। अब वे उसका घर जलाएंगे जो उनके साथ चलना चाहता है अर्थात उसे भी मोह-माया से मुक्त होना होगा जो ज्ञान प्राप्त करना चाहता है।

 

प्रश्न 2 – कबीर के अनुसार ईश्वर कहाँ निवास करता है सांसारिक मनुष्यों द्वारा उसे न देख पाने का क्या कारण है, और उस तक कैसे पहुँचा जा सकता है ?

उत्तर – कवी कबीरदास जी के अनुसार संसार के लोग कस्तूरी हिरण की तरह  हो गए है जिस तरह हिरण कस्तूरी प्राप्ति के लिए इधर उधर भटकता रहता है उसी तरह लोग भी ईश्वर प्राप्ति के लिए भटक रहे हैं। जिस प्रकार एक हिरण कस्तूरी की खुशबु को जंगल में ढूंढ़ता फिरता है जबकि वह सुगंध उसी की नाभि में विद्यमान होती है परन्तु  वह इस बात से बेखबर होता है, उसी प्रकार संसार के कण कण में ईश्वर विद्यमान है और मनुष्य इस बात से बेखबर ईश्वर को देवालयों और तीर्थों में ढूंढ़ता है। कबीर जी के अनुसार अगर ईश्वर को ढूंढ़ना ही है तो अपने मन में ढूँढना चाहिए।

 

प्रश्न 3 – कबीर स्वयं को दुःखी और संसार को सुखी क्यों मानते हैं ? कारण स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – कबीर जी अज्ञान रूपी अंधकार में सोये हुए मनुष्यों को देखकर दुःखी हैं और रो रहे हैं। संसार के लोग अज्ञान रूपी अंधकार में डूबे हुए हैं अपनी मृत्यु आदि से भी अनजान सोये हुये हैं। ये सब देख कर कबीर दुखी हैं और वे रो रहे हैं। कबीर जी प्रभु को पाने की आशा में हमेशा चिंता में जागते रहते हैं। यही कारण है कि कबीर स्वयं को दुःखी और संसार को सुखी मानते हैं। 

 

प्रश्न 4 – ‘सुखिया सब संसार है, खायै अरु सोवै। दुखिया दास कबीर है, जागै अरु रौवै।’ – साखी के संदर्भ में कबीर के दुखी और जाग्रत होने का कारण लिखिए। क्या जागना भी दुख का कारण हो सकता है ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – इस साखी के कवि कबीरदास जी है। इसमें कबीर जी अज्ञान रूपी अंधकार में सोये हुए मनुष्यों को देखकर दुःखी हैं और रो रहे हैं। कबीर जी कहते हैं कि संसार के लोग अज्ञान रूपी अंधकार में डूबे हुए हैं अपनी मृत्यु आदि से भी अनजान सोये हुये हैं। ये सब देख कर कबीर दुखी हैं और वे रो रहे हैं। वे प्रभु को पाने की आशा में हमेशा चिंता में जागते रहते हैं। आशय यह है कि प्रभु को पाने की आशा कबीर जी को आराम से सोने नहीं दे रही है। इसी कारण जागना कबीर जी के दुःख का कारण बन गया है क्योंकि जागने के कारण भी उन्हें प्रभु के दर्शन नहीं हो पा रहे हैं। 

 

प्रश्न 5 – “अब घर जालौं तास का जे चले हमारे साथि” साखी के संदर्भ में ‘घर’ शब्द की प्रतीकात्मकता स्पष्ट करते हुए इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – “अब घर जालौं तास का जे चले हमारे साथि” साखी के संदर्भ में कबीर जी ने मोह-माया को घर बताया है और कबीर जी अपने बताए मार्ग पर चलने वालों का यही मोह-माया रूपी घर जलाना चाहते हैं। आशय यह है कि कबीर जी ने अपने हाथों से अपना मोह -माया रूपी घर जला कर ज्ञान प्राप्त कर लिया है। अब उनके हाथों में जलती हुई मशाल ( लकड़ी ) है यानि ज्ञान है। अब वे उसका घर जलाएंगे जो उनके साथ चलना चाहता है अर्थात उसे भी मोह-माया से मुक्त होना होगा जो ज्ञान प्राप्त करना चाहता है।

 

प्रश्न 6 – पठित कविता के आधार पर वाणी के संबंध में कबीर के विचारों पर प्रकाश डालिए।

उत्तर – कबीर जी ने मीठी बोली बोलने और दूसरों को दुःख न देने की बात कही है। कबीरदास जी कहते हैं कि हमें अपने मन का अहंकार त्याग कर ऐसी भाषा का प्रयोग करना चाहिए जिसमें हमारा अपना तन मन भी सवस्थ रहे और दूसरों को भी कोई कष्ट न हो अर्थात दूसरों को भी सुख प्राप्त हो। कबीर जी दूसरों को कष्ट पहुँचाने वाली बातों का समर्थन नहीं करते। 

 

प्रश्न 7 – ‘साखी’ शब्द का अर्थ स्पष्ट करते हुए अपने पाठ्यक्रम में संकलित कबीर की साखियों का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – ‘साखी ‘ शब्द ‘ साक्षी ‘ शब्द का ही (तद्भव ) बदला हुआ रूप है। साक्षी शब्द साक्ष्य से बना है। जिसका अर्थ होता है -प्रत्यक्ष ज्ञान अर्थात जो ज्ञान सबको स्पष्ट दिखाई दे। यह प्रत्यक्ष ज्ञान गुरु द्वारा शिष्य को प्रदान किया जाता है। पाठ्यक्रम में संकलित कबीर की साखियाँ ईश्वर प्रेम के महत्त्व को प्रस्तुत करती हैं। कबीर मीठी भाषा का प्रयोग करने की सलाह देते हैं ताकि दूसरों को सुख और अपने तन को शीतलता प्राप्त हो। ईश्वर को मंदिरों और तीर्थों में ढूंढ़ने के बजाये अपने मन में ढूंढ़ने की सलाह देते हैं तथा अहंकार और ईश्वर को एक दूसरे से विपरीत (उल्टा) बताया है। कबीर कहते हैं कि प्रभु को पाने की आशा उनको संसार के लोगो से अलग करती है। कबीर कहते हैं कि ईश्वर के वियोग में कोई व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता, अगर रहता भी है तो उसकी स्थिति पागलों जैसी हो जाती है। कबीर निंदा करने वालों को हमारे स्वभाव परिवर्तन में मुख्य मानते हैं। कबीर ईश्वर प्रेम के अक्षर को पढने वाले व्यक्ति को पंडित बताते हैं और कबीर कहते हैं कि यदि ज्ञान प्राप्त करना है तो मोह-माया का त्याग करना पड़ेगा। पाठ्यक्रम में संकलित कबीर की साखियों का उद्देश्य सांसारिक मोह-माया से मनुष्यों को हटाना व् प्रभु की भक्ति की ओर लगाना है। 

 

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Chapter 2 – Meera ke Pad

 

प्रश्न 1 – ‘हरि आप हरो जन री भीर’ पद के आधार पर सिद्ध कीजिए कि मीरा यदि एक ओर श्रीकृष्ण की क्षमताओं का गुणगान करती हैं तो दूसरी ओर उन्हें उनके कर्तव्य की याद दिलाने में भी विलंब नहीं करती।

उत्तर – लोक कथाओं के अनुसार अपने जीवन में आए कठिन दुखों से मुक्ति पाने के लिए मीरा घर – परिवार छोड़ कर वृन्दावन में जा बसी थी और कृष्ण प्रेम में लीन हो गई थी।  प्रस्तुत पाठ में संकलित दोनोंपद मीरा के इन्हीं आराध्य अर्थात श्रीकृष्ण को समर्पित हैं। मीरा अपने प्रभु की झूठी प्रशंसा भी करती है ,प्यार भी करती हैं और अवसर आने पर डांटने से भी नहीं डरती। श्रीकृष्ण की शक्तिओं व सामर्थ्य का गुणगान भी करती हैं और उनको उनके कर्तव्य भी याद दिलाती हैं। मीरा श्री कृष्ण से कहती हैं कि  जिस प्रकार आपने द्रोपदी, प्रह्लाद और ऐरावत के दुखों को दूर किया था उसी तरह मेरे भी सारे दुखों का नाश कर दो। मीरा श्री कृष्ण के दर्शन का एक भी मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहती, वह श्री कृष्ण की दासी बनने को तैयार है, बाग़-बगीचे लगाने को भी तैयार है, गली गली में श्री कृष्ण की लीलाओं का बखान भी करना चाहती है, ऊँचे ऊँचे महल भी बनाना चाहती है, ताकि दर्शन का एक भी  मौका न  चुके।

 

प्रश्न 2 – ‘मीराबाई’ रचित ‘द्वितीय पद’ के अनुसार अपने आराध्य को पाने के लिए मीरा क्या-क्या करना चाहती हैं और क्यों?

उत्तर – कवयित्री मीरा श्री कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति भावना को उजागर करते हुए कहती हैं कि हे! श्री कृष्ण मुझे अपना नौकर बना कर रखो अर्थात मीरा किसी भी तरह श्री कृष्ण के नज़दीक रहना चाहती है फिर चाहे नौकर बन कर ही क्यों न रहना पड़े। नौकर बनकर बगीचा लगाना चाहती है ताकि सुबह उठ कर रोज श्री कृष्ण के दर्शन पा सके। मीरा वृन्दावन की संकरी गलियों में अपने स्वामी की लीलाओं का बखान करना चाहती है। मीरा बगीचों के बिच ही ऊँचे ऊँचे महल बनाना और कुसुम्बी साड़ी पहन कर आधी रात को ही जमुना नदी के किनारे श्रीकृष्ण से दर्शन देने की गुजारिश करती है।

 

प्रश्न 3 – अपने किन हितों को पूरा करने के लिए मीरा कृष्ण की चाकरी करना चाहती थीं ? ‘पद’ कविता के आधार पर लिखिए।

उत्तर – मीरा श्री कृष्ण से अनुरोध करती हैं कि वे मीरा को अपना नौकर बना कर रख लें अर्थात मीरा किसी भी तरह श्री कृष्ण के नजदीक रहना चाहती है फिर चाहे नौकर बन कर ही क्यों न रहना पड़े। मीरा नौकर बनकर बागीचा लगाना चाहती है ताकि सुबह उठ कर रोज श्रीकृष्ण के दर्शन पा सके। मीरा वृन्दावन की संकरी गलियों में अपने स्वामी की लीलाओं का बखान करना चाहती है। मीरा का मानना है कि नौकर बनकर उन्हें तीन फायदे होंगे पहला – उन्हें हमेशा कृष्ण के दर्शन प्राप्त होंगे , दूसरा- उन्हें अपने प्रिय की याद नहीं सताएगी और तीसरा- उनकी भाव भक्ति का साम्राज्य बढ़ता ही जायेगा।

 

प्रश्न 4 – प्रथम पद में मीरा अपने आराध्य से कैसे और क्या प्रार्थना करती हैं ?

उत्तर – कवयित्री मीरा भगवान श्री कृष्ण से कहती हैं कि वे अपने भक्तों के सभी प्रकार के दुखों को हरने वाले हैं अर्थात दुखों का नाश करने वाले हैं। मीरा उदाहरण देते हुए कहती हैं कि जिस तरह आपने द्रोपदी की इज्जत को बचाया और साड़ी के कपड़े को बढ़ाते चले गए, जिस तरह उन्होंने अपने भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए नरसिंह का शरीर धारण कर लिया और जिस तरह उन्होंने हाथियों के राजा भगवान इंद्र के वाहन ऐरावत हाथी को मगरमच्छ के चंगुल से बचाया था, उसी तरह वे अपनी इस भक्त के भी सारे दुःख हर लें अर्थात सभी दुखों का नाश कर दें।

 

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Chapter 3- Manushyata 

 

प्रश्न 1 – ‘मनुष्यता’ कविता के संदर्भ में लिखिए कि उदार लोगों के प्रति संसार कैसा आचरण करता है ?

उत्तर – ‘मनुष्यता’ कविता के अनुसार जो मनुष्य अपने पूरे जीवन में दूसरों की चिंता करता है उस महान व्यक्ति की कथा का गुण गान सरस्वती अर्थात पुस्तकों में किया जाता है। पूरी धरती उस महान व्यक्ति की आभारी रहती है। उस व्यक्ति की बातचीत हमेशा जीवित व्यक्ति की तरह की जाती है और पूरी सृष्टि उसकी पूजा करती है। जो व्यक्ति पुरे संसार को अखण्ड भाव और भाईचारे की भावना में बाँधता है वह व्यक्ति सही मायने में मनुष्य कहलाने योग्य होता है।

 

प्रश्न 2 – ‘मनुष्यता’ कविता में कवि ने वास्तविक सामर्थ्यवान किसे कहा है और क्यों ?

उत्तर – ‘मनुष्यता’ कविता में कवि ने वास्तविक सामर्थ्यवान उसे कहा है जो दूसरों के लिए जीना व मरना सीख ले। जो दूसरों की चिंता करे। जो त्याग भाव जान ले। जो दूसरों के लिए मरता और जीता है। जो दूसरों का परोपकार व कल्याण करें। जो दुःख में दूसरे मनुष्यों के काम आये। जो आपसी समझ को बनाये रखें और भेदभाव को बढ़ावा न दें। ऐसी सोच वाला मनुष्य ही वास्तविक सामर्थ्यवान है, जो अपने साथ-साथ दूसरों का कल्याण और उद्धार कर सके।

 

प्रश्न 3 – ‘मनुष्यता’ कविता के आधार पर लिखिए कि मृत्यु को सुमृत्यु कब माना जाता है ?

उत्तर – ‘मनुष्यता’ कविता के आधार पर जिस मनुष्य में अपने और अपनों के हित-चिंतन से पहले और सर्वोपरि दूसरों का हित चिंतन होता है और उसमें वे गुण हों, जिनके कारण कोई मनुष्य मृत्युलोक से गमन कर जाने के बावजूद युगों तक दुनिया की यादों में बना रहे, ऐसे मनुष्य की मृत्यु को ही कवि ने सुमृत्यु कहा है।

अर्थात जब किसी मनुष्य को उसके सद्गुणों के कारण मृत्यु के बाद भी याद किया जाता है तो उस मनुष्य की मृत्यु भी सुमृत्यु बन जाती है। 

 

प्रश्न 4 – ‘मनुष्यता’ कविता के आधार पर लिखिए कि कैसा जीवन जीने वाले लोग मरकर अमर हो जाते हैं।

उत्तर – ‘मनुष्यता’ कविता के आधार पर कहा जा सकता है कि मर कर भी वह मनुष्य कभी नहीं मरता जो अपने लिए नहीं दूसरों के लिए जीता है, क्योंकि अपने लिए तो जानवर भी जीते हैं। कवि के अनुसार मनुष्य वही है जो दूसरे मनुष्यों के लिए मरे अर्थात जो मनुष्य दूसरों की चिंता करे वही असली मनुष्य कहलाता है। ऐसे व्यक्तियों को मरने के बाद भी याद किया जाता है अर्थात वे मरकर भी अमर हो जाते हैं। 

 

प्रश्न 5 – ‘मनुष्यता’ कविता में किस तरह के जीवन को व्यर्थ कहा गया है और क्यों ?

उत्तर –  ‘मनुष्यता’ कविता में ऐसे जीवन को व्यर्थ कहा गया है जिसमें मनुष्य दूसरों के लिए कुछ भी ना कर सकें। ऐसे जीवन जीने वाले मनुष्य का जीना और मरना दोनों बेकार है। क्योंकि मर कर भी वह मनुष्य कभी नहीं मरता जो अपने लिए नहीं दूसरों के लिए जीता है, क्योंकि अपने लिए तो जानवर भी जीते हैं। मनुष्य वही है जो दूसरे मनुष्यों के लिए मरे अर्थात जो मनुष्य दूसरों की चिंता करे। 

 

प्रश्न 6 – ‘मनुष्यता’ कविता में ‘विचार लो कि मर्त्य हो’ कहकर कवि पाठकों को क्या संदेश देना चाहता है ?

उत्तर – ‘मनुष्यता’ कविता में ‘विचार लो कि मर्त्य हो’ कहकर कवि पाठकों को संदेश देना चाहता है कि हमें यह जान लेना चाहिए कि मृत्यु का होना निश्चित है, हमें मृत्यु से नहीं डरना चाहिए। बल्कि हमें कुछ ऐसा करना चाहिए कि लोग हमें मरने के बाद भी याद रखें क्योंकि जो मनुष्य दूसरों के लिए कुछ भी ना कर सकें, उनका जीना और मरना दोनों बेकार है। 

 

प्रश्न 7 – “घटे न हेलमेल हाँ, बढ़े न भिन्नता कभी” – ‘मनुष्यता’ कविता से ली गई इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने जीवन रूपी मार्ग पर आगे बढ़ते समय क्या याद रखने को कहा है और क्यों ?

उत्तर –  “घटे न हेलमेल हाँ, बढ़े न भिन्नता कभी” – ‘मनुष्यता’ कविता से ली गई इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने जीवन रूपी मार्ग पर आगे बढ़ते समय यह याद रखने को कहा है कि मनुष्यों को अपनी इच्छा से चुने हुए मार्ग में ख़ुशी ख़ुशी चलना चाहिए, रास्ते में कोई भी संकट या बाधाएं आये, उन्हें हटाते चले जाना चाहिए। मनुष्यों को यह ध्यान रखना चाहिए कि आपसी समझ न बिगड़े और भेद भाव न बड़े। बिना किसी तर्क वितर्क के सभी को एक साथ ले कर आगे बढ़ना चाहिए तभी यह संभव होगा कि मनुष्य दूसरों की उन्नति और कल्याण के साथ अपनी समृद्धि भी कायम करे। 

 

प्रश्न 8 – मानव जीवन का सबसे बड़ा भय मृत्यु ही है, फिर भी ‘मनुष्यता’ कविता में कवि ने मृत्यु से भयभीत न होने की बात क्यों कही है ?

उत्तर – यह सत्य है कि मानव जीवन का सबसे बड़ा भय मृत्यु ही है, फिर भी ‘मनुष्यता’ कविता में कवि ने मृत्यु से भयभीत न होने की बात कही है क्योंकि हमें यह जान लेना चाहिए कि मृत्यु का होना निश्चित है, हमें मृत्यु से नहीं डरना चाहिए। मृत्यु के भय को छोड़कर हमें कुछ ऐसा करना चाहिए कि लोग हमें मरने के बाद भी याद रखें। जो मनुष्य दूसरों के लिए कुछ भी ना कर सकें, उनका जीना और मरना दोनों बेकार है । मर कर भी वह मनुष्य कभी नहीं मरता जो अपने लिए नहीं दूसरों के लिए जीता है। कवि के अनुसार मनुष्य वही है जो दूसरे मनुष्यों के लिए मरे अर्थात जो मनुष्य दूसरों की चिंता करे। 

 

प्रश्न 9 – ‘मनुष्यता’ कविता में भाग्यहीन किसे और क्यों कहा गया है ? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – मनुष्यता’ कविता में ऐसे व्यक्तियों को भाग्यहीन कहा गया है जो संपत्ति या यश पर घमंड करते हैं। कविता में कहा गया है कि इस बात पर कभी गर्व नहीं करना चाहिए कि हमारे साथ हमारे अपनों का साथ है क्योंकि इस संसार में कोई भी व्यक्ति अनाथ नहीं है, उस ईश्वर का साथ सब के साथ है। वह बहुत दयावान है उसका हाथ सबके ऊपर रहता है। वह व्यक्ति भाग्यहीन है जो इस प्रकार का उतावलापन रखता है क्योंकि मनुष्य वही व्यक्ति कहलाता है जो इन सब चीजों से ऊपर उठ कर सोचता है।

 

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Chapter 4 – Parvat Pradesh Mein Pavas

 

प्रश्न 1 – ‘हैं झाँक रहे नीरव नभ पर’ ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता से ली गई पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – ‘हैं झाँक रहे नीरव नभ पर’ ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता से ली गई पंक्ति का भाव यह है कि पहाड़ों पर उगे हुए अनेकों पेड़ों के माध्यम से हमें निरन्तर ऊँचा उठने की प्रेरणा दी जा रही है। कहने का तात्पर्य यह है कि एक तक दृष्टि से अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए। 

 

प्रश्न 2 – ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में कवि को धरती पर आकाश का टूट पड़ना क्यों प्रतीत होता है ?

उत्तर – ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में कवि को धरती पर आकाश का टूट पड़ना इसलिए प्रतीत होता है क्योंकि पर्वतीय क्षेत्रों में तेज बारिश के बाद मौसम ऐसा हो गया है कि घनी धुंध के कारण लग रहा है मानो पेड़ कही उड़ गए हों अर्थात गायब हो गए हों। ऐसा लग रहा है कि पूरा आकाश ही धरती पर आ गया हो क्योंकि धुंध बादलों की तरह प्रतीत हो रही है। 

 

प्रश्न 3 – ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में आई पंक्ति “हैं झाँक रहे नीरव नभ पर” का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में आई पंक्ति “हैं झाँक रहे नीरव नभ पर” का आशय यह है कि जिस तरह पर्वतीय क्षेत्रों में पहाड़ों के हृदय से उठ-उठ कर अनेकों पेड़ ऊँचा उठने की इच्छा लिए एक टक दृष्टि से स्थिर हो कर शांत आकाश को इस तरह देख रहे हैं, मनो वो किसी चिंता में डूबे हुए हों। अर्थात वे पेड़ हमें निरन्तर ऊँचा उठने की प्रेरणा दे रहे हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि हमें पेड़ों की तरह स्थिर हो कर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। 

 

प्रश्न 4 – ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता के आधार पर लिखिए कि झरने पर्वत का गुणगान क्यों और कैसे कर रहे हैं।

उत्तर – ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में झरने पर्वत का गुणगान कर रहे हैं। क्योंकि पर्वत अपनी सुंदरता व् सभी को प्रेरित करने का कार्य कर रहे हैं। झरने मोतियों की लड़ियों के समान सुंदर, झर झर की आवाज करते हुए बह रहे हैं। उनकी करतल ध्वनि हर किसी की नस नस में उत्साह अथवा प्रसन्नता भर देती है।

 

प्रश्न 5 – ‘पर्वतीय प्रदेश में पावस’ कविता में झरनों का वर्णन किस रूप में हुआ है ? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – ‘पर्वतीय प्रदेश में पावस’ कविता में झरनों का वर्णन अत्यधिक सुन्दर तरीके से किया गया है। कविता में बताया गया है कि झरने मोतियों की लड़ियों के समान सुंदर, झर झर की आवाज करते हुए बह रहे हैं, ऐसा लग रहा है की वे पहाड़ों का गुणगान कर रहे हों। उनकी करतल ध्वनि नस नस में उत्साह अथवा प्रसन्नता भर देती है।

 

प्रश्न 6 – ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ के आधार पर लिखिए कि शाल के वृक्ष कहाँ चले गए और क्यों।

उत्तर – ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ के आधार पर प्रकृति का भयानक रूप देख कर शाल के पेड़ डर कर धरती के अंदर धंस गए हैं। क्योंकि तेज बारिश के बाद पर्वतीय क्षेत्र में मौसम ऐसा हो गया है कि घनी धुंध के कारण लग रहा है मानो पेड़ कही उड़ गए हों अर्थात गायब हो गए हों। ऐसा लग रहा है कि पूरा आकाश ही धरती पर आ गया हो केवल झरने की आवाज़ ही सुनाई दे रही है। 

 

प्रश्न 7 – ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता के आधार पर लिखिए कि कवि को ऐसा क्यों लगता है कि जैसे अचानक पर्वत पंख लगाकर उड़ गया हो ?

उत्तर – ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता के अनुसार कवि को ऐसा लग रहा है कि जैसे अचानक पर्वत पंख लगाकर उड़ गया हो क्योंकि पर्वतीय क्षेत्र में तेज बारिश के बाद मौसम ऐसा हो गया है कि घनी धुंध के कारण लग रहा है मानो पेड़ कही उड़ गए हों अर्थात गायब हो गए हों। धुंध के कारण पेड़ों को देख पाना कठिन हो गया है और घनी धुंध बादलों की तरह प्रतीत हो रही है। जिस कारण पेड़ों के गायब होने का  भ्रम हो रहा है। 

 

प्रश्न 8 – ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता के आधार पर पर्वतों द्वारा अपने रूप-सौंदर्य को निहारने की कल्पना और कारण को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में कवि ने पहाड़ों के आकार की तुलना करघनी अर्थात कमर में बांधने वाले आभूषण से की है। कवि कहता है कि करघनी के आकार वाले पहाड़ अपनी हजार पुष्प रूपी आंखें फाड़ कर नीचे जल में अपने विशाल आकार को देख रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि पहाड़ ने जिस तालाब को अपने चरणों में पाला है वह तालाब पहाड़ के लिए विशाल आईने का काम कर रहा है। पर्वतों द्वारा अपने रूप-सौंदर्य को इस तरह निहारने का कारण बारिश के बाद पर्वतीय क्षेत्र की सुंदरता है। 

 

प्रश्न 9 – ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में पर्वतों की दृष्टि किसे कहा गया है ? पर्वत अपना प्रतिबिंब कहाँ और क्यों निहार रहे हैं ?

उत्तर – ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में पर्वतों की दृष्टि पर्वतों पर उगने वाले फूलों को कहा गया है। पहाड़ अपनी हजार पुष्प रूपी आंखें फाड़ कर नीचे जल में अपने विशाल आकार को देख रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि पहाड़ ने जिस तालाब को अपने चरणों में पाला है वह तालाब पहाड़ के लिए विशाल आईने का काम कर रहा है। उस तालाब रूपी आईने में पर्वत अपनी सुंदरता को निहार रहा है क्योंकि बारिश के बाद तालाब पानी से भर जाता है और साफ पानी में पर्वत का प्रतिबिम्ब भी साफ दिखाई देता है। 

 

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Chapter 5 – TOP

 

प्रश्न 1 – ‘तोप’ कविता के आधार पर ‘तोप’ और ‘गौरैया’ की प्रतीकात्मकता स्पष्ट करते हुए बताइए कि इस कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है ?

उत्तर – तोप’ कविता के आधार पर तोप को भूतकाल में बहुत ताकतवर बताया गया है। जिसने अच्छे अच्छे वीरों के चिथड़े उड़ा दिए थे। अर्थात उस समय तोप का डर हर इंसान को था। परन्तु वर्तमान में तोप की स्थिति बहुत बुरी है। छोटे बच्चे इस पर बैठ कर घुड़सवारी का खेल खेलते हैं। जब बच्चे इस पर नहीं खेल रहे होते तब चिड़ियाँ इस पर बैठ कर आपस में बातचीत करने लग जाती हैं। कभी-कभी शरारती चिड़ियाँ खासकर गौरैयें तोप के अंदर घुस जाती हैं। वो छोटी सी चिड़िया ऐसा करके हमें बताना चाहती हैं कि कोई कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो एक ना एक दिन उसका भी अंत निश्चित होता है। इस कविता में कवि सन्देश देना चाहता है कि किसी भी बुराई को हिम्मत और होंसलों के सहारे खत्म किया जा सकता है।

 

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Chapter 6 – Kar Chale Hum Fida

 

प्रश्न 1 – ‘कर चले हम फिदा’ गीत में कवि देशवासियों से क्या अपेक्षाएँ रखता है ? हम उसकी अपेक्षाओं पर किस रूप में खरा उतर रहे हैं ? तर्क सहित उत्तर दीजिए।

उत्तर –  ‘कर चले हम फिदा’ गीत में कवि देशवासियों से अपेक्षाएँ रखता है कि वे देश के सैनिकों की भावनाओं की कद्र करें। जिस तरह से दुल्हन को लाल जोड़े में सजाया जाता है, उसी तरह सैनिकों ने भी अपने प्राणों का बलिदान दे कर धरती को खून से लाल कर दुल्हन की तरह सजाया है। जिस प्रकार सैनिक देश के लिए बलिदान दे रहे हैं। हमारा भी कर्तव्य बनता है कि उनके बाद भी ये सिलसिला चलते रहना चाहिए। जब भी जरुरत हो तो इसी तरह देश की रक्षा के लिए एकजुट होकर आगे आना चाहिए। सैनिक अपने देश की धरती को सीता के आँचल की तरह मानते हैं और अगर कोई हाथ आँचल को छूने के लिए आगे बड़े तो उसे तोड़ दोते हैं। हमें भी अपने वतन की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए। हमें लगता है कि हम कवि की अपेक्षाओं पर खरा उतर रहे हैं क्योंकि जब भी देश पर दुश्मनों ने बुरी नजर डाली या हम पर हमला किया है, तो हमने उनका डट कर सामना किया है और दुश्मनों को मुहतोड़ जवाब दिया है। 

 

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Chapter 7 – Atamtran

 

प्रश्न 1 – ‘आत्मत्राण’ कविता का कवि ईश्वर से सांसारिक सुखों की प्रार्थना न करते हुए, क्या निवेदन कर रहा है? इससे उसके चरित्र की किस विशेषता का पता चलता है ?

उत्तर – ‘आत्मत्राण’ कविता का कवि ईश्वर से अपने दुःख दर्द कम न करने को कह रहे है। वे उनसे दुःख दर्दों को झेलने की शक्ति मांग रहे हैं। कविगुरु ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं कि किसी भी परिस्थिति में उनके मन में ईश्वर के प्रति संदेह न हो। कवि ईश्वर से ऐसी कोई प्रार्थना नहीं कर रहे हैं कि उन्हें दुःख और कष्टों से बचा कर रखें बल्कि कवि तो सिर्फ ये चाहता है कि ईश्वर उन्हें दुःख तकलीफों को झेलने की शक्ति दे। कष्टों के समय में कवि कभी ना डरे और उनका सामना करे। ईश्वर कवि में इतना आत्मविश्वास भर दें कि कवि हर कष्ट पर जीत हासिल कर सके। कवि के कष्टों के भार को भले ही कम ना करें और न ही कवि को  तसल्ली दें। ईश्वर से कवि की केवल इतनी प्रार्थना है की कवि के अंदर निर्भयता भरपूर डाल दें ताकि कवि सारी परेशानियों का डट कर सामना कर सकें। दुःख से भरी रात में भी अगर कोई कवि की मदद न करे तो भी उनके मन में ईश्वर के प्रति कोई संदेह न हो इतनी शक्ति कवि माँग रहे हैं। इन सभी बातों से कवि के साहसी, आत्मविश्वासी, स्वाभिमानी व् ईश्वर में अडिग विश्वास रखने वाले व्यक्तित्व का पता  चलता है। 

 

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Chapter 8 – Bade Bhai Sahab

 

प्रश्न 1 – खेलों में रुचि होते हुए भी बड़े भाई साहब अपने शौक को पूरा क्यों नहीं कर पाते थे ?    

उत्तर – ऐसा नहीं था कि बड़े भाई साहब को खेल-कूद में कोई शौक नहीं था। दूसरे बच्चों की ही तरह बड़े भाई साहब भी खेल-कूद का शौक रखते थे। परन्तु छोटे भाई की जिम्मेदारी व् घर की स्थिति को देखते हुए उन्होंने अपने शौक को कभी पूरा नहीं किया। उन्हें लगता था कि यदि वे ही गलत रास्ते पर चलने लगेंगे तो अपने छोटे भाई को कैसे सही रास्ता दिखाएंगे। कहने का तात्पर्य यह है कि बड़े भाई साहब घर की स्थिति व् भाई की जिम्मेदारियों के कारण अपने खेल में रूचि होते हुए भी अपने शौक पूरे नहीं कर पाते थे। 

 

प्रश्न 2 – छोटा भाई अपना अधिकांश समय खेलने-कूदने और अपने शौक पूरे करने में लगाता था, जिसके लिए उसे अपने बड़े भाई साहब से डाँट भी पड़ती थी, फिर भी वह कक्षा में अव्वल दर्जे से पास कैसे हो जाता था ?

उत्तर – छोटा भाई अपना अधिकांश समय खेलने-कूदने और अपने शौक पूरे करने में लगाता था, जिसके लिए उसे अपने बड़े भाई साहब से डाँट भी पड़ती थी, फिर भी वह कक्षा में अव्वल दर्जे से पास हो जाता था। इसका कारण यह था कि खेल-कूद से छोटे भाई के शारीरिक विकास के साथ-साथ मानसिक विकास भी हो रहा था। बड़े भाई साहब जहाँ लगातार जिम्मेदारी के बोझ तले व् तनाव की वजह से पढ़ाई में अच्छा नहीं कर पा रहे थे और एक ही अध्याय को तीन-चार बार पढ़ने पर भी अच्छे से याद नहीं रख पाते थे, वहीँ छोटा भाई तनाव से मुक्त था। जिस कारण वह कम पढ़ाई करने पर भी अध्यायों को याद रख पता था। 

 

प्रश्न 3 – ‘बड़े भाई साहब’ पाठ के आधार पर लिखिए कि परिश्रमी, जिम्मेदार और बुद्धिमान होने पर भी बड़े भाई साहब बार-बार असफल क्यों हो जाते थे ?

उत्तर – ‘बड़े भाई साहब’ पाठ के आधार पर परिश्रमी, जिम्मेदार और बुद्धिमान होने पर भी बड़े भाई साहब बार-बार असफल हो जाते थे क्योंकि बड़े भाई साहब हर पल जिम्मेदारी व् अपने छोटे भाई को सही राह पर रखने के ख्यालों में ही डूबे रहते थे। वे हर पल यही सोचते रहते थे कि वे कोई ऐसा काम न करे जिससे उनके छोटे भाई को गलत सबक मिले। वे हर पल अपने पिता की मुसीबतों को कम करने पर भी ध्यान रखते थे। जिस कारण वे हमेशा तनाव से घिरे रहते थे। पढ़ाई में अच्छा करने के लिए वे रात भर जागते थे जिस कारण उनकी नींद भी पूरी नहीं होती थी। इन सभी कारणों के कारण ही बड़े भाई साहब परिश्रमी, जिम्मेदार और बुद्धिमान होने पर भी बार-बार असफल हो जाते थे। 

 

प्रश्न 4 – बड़े भाई साहब के व्यवहार में छोटे भाई के प्रति नरमी क्यों आ गई थी ? ‘बड़े भाई साहब’ पाठ के आधार पर लिखिए।

उत्तर – सालाना परीक्षा में छोटा भाई फिर से पास हो गया और भाई साहब इस बार फिर फेल हो गए। छोटे भाई ने बहुत अधिक मेहनत नहीं की थी लेकिन ना जाने कैसे वह इस बार भी अपनी कक्षा में प्रथम आ गया। भाई साहब ने बहुत अधिक कठोर परिश्रम किया था। छोटे भाई और भाई साहब के बीच अब केवल एक ही कक्षा का अंतर रह गया था। भाई साहब के मन में एक बुरा विचार आया कि अगर वे एक और बार फेल हो जाएँ तो वह और छोटा भाई एक ही कक्षा में होंगे। तब तो वो किसी भी आधार पर छोटे भाई को नहीं डांट सकते और न ही उसकी बेज्ज़ती कर सकते हैं। अब भाई साहब का स्वभाव कुछ नरम हो गया था। कई बार छोटे भाई को डाँटने का अवसर होने पर भी वे नहीं डाँटते थे, शायद उन्हें खुद ही लग रहा था कि अब उनके पास छोटे भाई को डाँटने का अधिकार नहीं है और अगर है भी तो बहुत कम। 

 

प्रश्न 5 – ‘बड़े भाई साहब’ कहानी का बड़ा भाई शिक्षा को ‘रटंत ज्ञान’ और ‘बे-सिर-पैर की बातें’ मानता है जिनका व्यावहारिक जीवन में कोई अर्थ नहीं ? इस संदर्भ में आपके क्या विचार हैं ? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।

उत्तर –  ‘बड़े भाई साहब’ कहानी का बड़ा भाई शिक्षा को ‘रटंत ज्ञान’ और ‘बे-सिर-पैर की बातें’ मानता है जिनका व्यावहारिक जीवन में कोई अर्थ नहीं। रटत प्रणाली को शिक्षा का नाम दे रखा है और इन बिना अर्थ की बातों को पढ़ने से आखिर फ़ायदा है क्या? लेकिन अगर परीक्षा में पास होना है तो जो किताबों में लिखा है उसे वैसे ही ज्यों का त्यों लिखना पड़ेगा और ये व्यर्थ की बातें याद करनी पड़ेंगी, जिनका कोई काम नहीं। जैसे परीक्षा में कहा जाता है कि -‘समय की पाबंदी’ पर निबंध लिखो, जो चार पन्नों से कम नहीं होना चाहिए। इस तरह के सवालों पर बड़े भाई साहब सोचते हैं कि समय की पाबंदी बहुत अच्छी बात है ये कौन नहीं जानता। लेकिन इतनी सी बात के लिए कोई चार पन्नें कैसे लिख सकते हैं? जो बात आप एक वाक्य में कह सकते हैं, उसके लिए चार पन्नें लिखने की क्या जरुरत? बड़े भाई साहब तो इसे बेवकूफ़ी मानते हैं। 

हमारे विचार से भी विद्यार्थियों को यदि व्यवहारिक ज्ञान दिया जाएगा तो वे ज्यादा ध्यान लगाकर पढ़ाई करेंगे। और जीवन में भी व्यवहारिक ज्ञान ही काम आता है। 

 

प्रश्न 6 – ‘बड़े भाई साहब’ कहानी में आपने पढ़ा कि छोटा भाई कक्षा में अव्वल दर्जे से पास हो रहा था और बड़े भाई साहब असफल, फिर भी वह बड़े भाई की नज़रों से बचकर अपने खेल संबंधी शौक पूरे करता था। इसके पीछे क्या कारण रहे होंगे ?

उत्तर –  ‘बड़े भाई साहब’ कहानी में हमनें पढ़ा कि छोटा भाई कक्षा में अव्वल दर्जे से पास हो रहा था और बड़े भाई साहब असफल, फिर भी वह बड़े भाई की नज़रों से बचकर अपने खेल संबंधी शौक पूरे करता था। इसके पीछे का कारण उसका बड़े भाई साहब के प्रति सम्मान था। छोटा भाई जानता था कि उसके बड़े भाई साहब उसकी ही भलाई के लिए उसे डांटते हैं। छोटा भाई जानता था कि बड़े भाई साहब घर की जिम्मेदारी समझते हैं और वे अपने छोटे भाई को गलत रास्ते पर नहीं जाने देना चाहते इसलिए वे उसे समय बर्बाद करने व् खेलकूद में अधिक ध्यान लगाने से रोकते हैं। 

 

प्रश्न 7 – ‘बड़े भाई साहब’ पाठ के संदर्भ में लिखिए कि तात्कालिक शिक्षा व्यवस्था में बड़े भाई साहब को क्या-क्या कमियाँ दिखाई देती थीं ?

उत्तर – तात्कालिक शिक्षा व्यवस्था में बड़े भाई साहब को निम्नलिखित कमियाँ दिखाई देती थीं – 

अध्यापक बच्चों को समझाने के बजाए रटत प्रणाली अपनाते थे। 

किताबों में बे-फजूल की बातें लिखी होती थी। 

बच्चों को व्यवहारिक ज्ञान नहीं दिया जाता था। 

परीक्षक केवल किताबी उत्तर को ही सही मानते थे। यदि किसी ने उत्तर अलग लिखा तो उसके शून्य अंक  मिलते थे। 

 

प्रश्न 8 – छोटे भाई के कक्षा में अव्वल आने पर भी बड़े भाई साहब द्वारा उसके तिरस्कार के क्या कारण थे ? ‘बड़े भाई साहब’ पाठ के आधार पर लिखिए।

उत्तर – छोटा भाई भले ही कम पढ़ाई करने के बावजूद कक्षा में अव्वल आता था। किन्तु बड़े भाई साहब फिर भी उसको खेलने व् समय बर्बाद करने पर डाँट लगाते थे। क्योंकि उन्हें चिंता रहती थी कि कहीं उनका छोटा भाई गलत रास्ते पर न चल पड़े। छोटे भाई की सारी जिम्मेदारी बड़े भाई साहब पर थी, जिस कारण वे और भी ज्यादा सतर्क रहते थे। जब बार-बार कम पढ़ाई के बावजूद छोटा भाई अव्वल आ रहा था तो उसने बड़े भाई साहब से डरना बंद कर दिया था। इस पर बड़े भाई साहब छोटे भाई से कहते हैं कि यह घमंड जो अपने दिल में पाल रखा है कि बिना पढ़े भी पास हो सकते हो और उन्हें छोटे भाई को डाँटने और समझने का कोई अधिकार नहीं रहा, इसे निकाल डालो। बड़े भाई साहब के रहते वह कभी गलत रस्ते पर नहीं जा सकता। आशय यह है कि छोटे भाई के भविष्य की चिंता के कारण ही बड़े भाई साहब छोटे भाई की गलती पर उसे डाँटते थे। 

 

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Chapter 9 – Diary Ka Ek Panna 

 

प्रश्न 1 – ‘डायरी का एक पन्ना’ पाठ के आधार पर लिखिए कि अंग्रेज सरकार ने कलकत्तावासियों द्वारा मोनूमेंट पार्क में आयोजित सभा को रोकने के लिए क्या-क्या प्रयास किए?

उत्तर – 26 जनवरी 1930 के ही दिन पहली बार सारे हिंदुस्तान में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था और 26 जनवरी 1931 को भी फिर से वही दोहराया जाना था, जिसके लिए बहुत सी तैयारियाँ पहले से ही की जा चुकी थी। सभी मकानों पर भारत का राष्ट्रीय झंडा फहरा रहा था और बहुत से मकान तो इस तरह सजाए गए थे जैसे उन्हें स्वतंत्रता मिल गई हो। कलकत्ते के लगभग सभी भागों में झंडे लगाए गए थे।पुलिस अपनी पूरी ताकत के साथ पुरे शहर में पहरे लिए घूम -घूम कर प्रदर्शन कर रही थी। न जाने कितनी गाड़ियाँ शहर भर में घुमाई जा रही थी। घुड़सवारों का भी प्रबंध किया गया था। स्मारक के निचे जहाँ शाम को सभा होने वाली थी, उस जगह को तो सुबह के छः बजे से ही पुलिस ने बड़ी संख्या में आकर घेर कर रखा था। जो भी सभा में भाग लेने या झंडा फहराने की कोशिश करता उसे गिरफ़्तार किया जा रहा था। 

 

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Chapter 10 – Tantara-Vamiro Katha 

 

प्रश्न 1 – ‘तताँरा-वामीरो कथा’ के आधार पर लिखिए कि ‘पशु पर्व’ में तताँरा के क्रोधित होने का क्या कारण था ?

उत्तर – पासा गाँव में ‘पशु पर्व‘ का आयोजन किया गया था। पशु पर्व में हट्टे-कट्टे पशुओं के दिखावे के अलावा पशुओं से युवकों की शक्ति परखने की प्रतियोगितायें भी होती थी। तताँरा का मन इन में से किसी भी कार्यक्रम में नहीं लग रहा था। उसकी परेशान आँखे तो वामीरों को ढूंढने में व्यस्त थी। जब तताँरा ने वामीरो को देखा तो उसकी आँखें नमी से भरी थी और उसके होंठ डर कर काँप रहे थे। तताँरा को देखते ही वामीरो फूट-फूटकर रोने लगी। तताँरा इस तरह वामीरो को रोता देखकर भावुक हो गया। वामीरो के रोने की आवाज सुनकर वामीरो की माँ वहाँ आ गई और दोनों को एक साथ देख कर गुस्सा हो गई। उसने तताँरा को कई तरह से अपमानित करना शुरू कर दिया। गाँव वाले भी तताँरा के विरोध में बोलने लगे।  लोगो की बातों को सुनना अब तताँरा के लिए सहन कर पाना मुश्किल हो रहा था।

 

प्रश्न 2 – गाँव की रीति के विरुद्ध तताँरा-वामीरो ने क्या कार्य किया और क्यों ? तताँरा-वामीरो कथा के आधार पर लिखिए। तर्कसंगत उत्तर दें।

उत्तर – गाँव की रीति के विरुद्ध तताँरा-वामीरो ने एक दूसरे से प्रेम किया था और यह प्रेम गाँव की रीती के विरुद्ध इसलिए था क्योंकि तताँरा और वामीरो के गाँव की रीति थी कि वहाँ के निवासी केवल अपने गाँववालों के साथ ही विवाह कर सकते थे। गाँव के बाहर के किसी लड़के या लड़की से विवाह करना अनुचित माना जाता था। 

 

प्रश्न 3 – पशु-पर्व में तताँरा के प्रति वामीरो की माँ का व्यवहार उचित था या अनुचित? तर्क सहित अपने उत्तर की पुष्टि कीजिए।

उत्तर –  पासा गाँव में ‘पशु पर्व’ का आयोजन किया गया था। तताँरा का मन कार्यक्रम में नहीं लग रहा था। उसकी परेशान आँखे तो वामीरों को ढूंढने में व्यस्त थी। जब तताँरा ने वामीरो को देखा तो उसकी आँखें नमी से भरी थी और उसके होंठ डर कर काँप रहे थे। तताँरा को देखते ही वामीरो फूट-फूटकर रोने लगी। तताँरा इस तरह वामीरो को रोता देखकर भावुक हो गया। वामीरो के रोने की आवाज सुनकर वामीरो की माँ वहाँ आ गई और दोनों को एक साथ देख कर गुस्सा हो गई। उसने तताँरा को कई तरह से अपमानित करना शुरू कर दिया। गाँव वाले भी तताँरा के विरोध में बोलने लगे। हमारे अनुसार वामीरो की माँ का व्यवहार अनुचित था। तताँरा-वामीरो एक दूसरे से प्रेम करते थे। वामीरो की माँ व् गाँव वालों को उनकी भावनाओं को समझना चाहिए था। 

 

प्रश्न 4 – ‘तताँरा-वामीरो कथा’ का नायक अपने क्रोध का शमन करने के लिए तलवार को धरती में घोंप उसे दूर तक ले जाता है। आप अपने निजी जीवन में क्रोध का शमन करने के लिए क्या-क्या करते हैं ?

उत्तर –  ‘तताँरा-वामीरो कथा’ का नायक अपने क्रोध का शमन करने के लिए तलवार को धरती में घोंप उसे दूर तक ले जाता है। हम अपने निजी जीवन में क्रोध का शमन करने के लिए निम्नलिखित कार्य करते हैं जैसे – लम्बी-लम्बी साँसे लेना, उल्टी गिनती गिनना, सकारात्मक चीजों के बारे में सोचना व् आध्यात्मिकता का सहारा लेकर मन को शांत करना।  क्रोध को शांत करने का एक तरिका मौन रहना भी है। क्योंकि क्रोध में आप जब भी कोई कार्य करते हैं या किसी को कुछ बोलते  हैं तो उसका गलत असर देखने को मिलता है। 

 

प्रश्न 5 – तताँरा और वामीरो की मृत्यु कैसे हुई और उनकी मृत्यु से निकोबार में क्या परिवर्तन आया ? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – तताँरा-वामीरो को एक साथ देख कर जब वामीरो की माँ ने तताँरा को कई तरह से अपमानित करना शुरू कर दिया और गाँव वाले भी तताँरा के विरोध में बोलने लगे। तब लोगो की बातों को सुनना तताँरा के लिए सहन कर पाना मुश्किल हो रहा था। अचानक उसका हाथ उसकी तलवार पर आकर टिक गया। गुस्से से उसने तलवार निकाली। उसने अपने गुस्से को शांत करने के लिए अपनी पूरी शक्ति से तलवार को धरती में गाड़ दिया और अपनी पूरी ताकत से उसे खींचने लगा। जो लकीर तताँरा ने खींची थी उस लकीर की सीध में धरती फटती जा रही थी। तताँरा द्वीप के एक ओर था और वामीरो दूसरी ओर। बहता हुआ तताँरा कहाँ गया?, उसके बाद उसका क्या हुआ ये कोई नहीं जान सका। इधर वामीरो तताँरा से अलग होने के कारण पागल हो गई। उसने खाना -पीना छोड़ दिया था। परिवार से वह कही अलग हो गई। लोगो ने उसे ढूंढ़ने की बहुत कोशिश की परन्तु अब वामीरो का भी कोई सुराग नहीं मिला कि वह कहाँ गई?

निकोबार निवासीयों ने इस घटना के बाद अपनी परम्परा को बदला और दूसरे गाँव में भी विवाह सम्बन्ध बनाने लगे। तताँरा-वामीरो की जो एक-दूसरे के लिए त्यागमयी मृत्यु थी वह शायद इसी सुखद बदलाव के लिए थी।

 

प्रश्न 6 – तताँरा बार-बार वामीरो से गीत को पूरा करने का आग्रह क्यों कर रहा था ? गीत पूरा करने के आग्रह में उसके व्यक्तित्व की कौन-सी विशेषता उभर कर आती है ?

उत्तर – जो गीत तताँरा को सुनाई दे रहा था, वह इतना अधिक प्रभावी था कि तताँरा उस गीत को सुन कर अपना होश हवास खोने लगा था। गीत सुनते हुए तताँरा की अवस्था ऐसी हो गई थी जैसी अवस्था नींद आने से पहले होती है, इस अवस्था को लहरों की एक तेज़ लहर ने तोड़ा। होश में आते ही तताँरा उस दिशा में बढ़ने के लिए मजबूर हो गया जहाँ से वो गीत सुनाई दे रहा था। समुद्र की लहरों के कारण जब वामीरो अपना गाना भूल गई तो तताँरा ने उसे गीत को पूर्ण करने का आग्रह किया। गीत पूरा करने के आग्रह में उसके व्यक्तित्व की कई विशेषता उभर कर सामने आती है जैसे – तताँरा को संगीत पसंद है। तताँरा वामीरो को परेशान नहीं करना चाहता था। 

 

प्रश्न 7 – “तताँरा-वामीरो कथा’ पाठ के आधार पर ‘पशु-पर्व’ में होने वाली घटना का उल्लेख कीजिए।

उत्तर – पासा गाँव में ‘पशु पर्व ‘का आयोजन किया गया था। पशु पर्व में हट्टे-कट्टे पशुओं के दिखावे के अलावा पशुओं से युवकों की शक्ति परखने की प्रतियोगितायें भी होती थी। तताँरा का मन इन में से किसी भी कार्यक्रम में नहीं लग रहा था। उसकी परेशान आँखे तो वामीरों को ढूंढने में व्यस्त थी। जब तताँरा ने वामीरो को देखा तो उसकी आँखें नमी से भरी थी और उसके होंठ डर कर काँप रहे थे। तताँरा को देखते ही वामीरो फूट-फूटकर रोने लगी। तताँरा इस तरह वामीरो को रोता देखकर भावुक हो गया। वामीरो के रोने की आवाज सुनकर वामीरो की माँ वहाँ आ गई और दोनों को एक साथ देख कर गुस्सा हो गई। उसने तताँरा को कई तरह से अपमानित करना शुरू कर दिया। गाँव वाले भी तताँरा के विरोध में बोलने लगे।  लोगो की बातों को सुनना अब तताँरा के लिए सहन कर पाना मुश्किल हो रहा था।

 

प्रश्न 8 – ‘तताँरा-वामीरो कथा’ के अनुसार गाँव वाले तताँरा के सदाचारी व्यक्तित्व से परिचित और प्रभावित थे फिर भी वामीरो के मामले में उन्होंने उसका साथ क्यों नहीं दिया ?

उत्तर –  ‘तताँरा-वामीरो कथा’ के अनुसार गाँव वाले तताँरा के सदाचारी व्यक्तित्व से परिचित और प्रभावित थे फिर भी वामीरो के मामले में उन्होंने उसका साथ नहीं दिया क्योंकि तताँरा और वामीरो के गाँव की रीति थी कि वहाँ के निवासी केवल अपने गाँववालों के साथ ही विवाह कर सकते थे। गाँव के बाहर के किसी लड़के या लड़की से विवाह करना अनुचित माना जाता था। 

 

प्रश्न 9 – तताँरा -वामीरो कथा के आधार पर लिखिए कि आप कैसे कह सकते हैं कि तताँरा की तलवार में अद्भुत दैवीय शक्ति थी ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – तताँरा हमेशा अपनी पारम्परिक पोशाक ही पहनता था और हमेशा अपनी कमर में एक लकड़ी की तलवार को बाँधे रखता था। लोगों का मानना था कि उस तलवार में लकड़ी के होने के बावजूद भी अनोखी दैवीय शक्तियाँ हैं। तताँरा कभी भी अपनी तलवार को अपने से अलग नहीं करता था। वह दूसरों के सामने तलवार का प्रयोग भी नहीं करता था। परन्तु उसके सहस से पूर्ण कार्यों के कारण लोगों का तलवार में अनोखी शक्ति होने पर विश्वास था। तताँरा की तलवार जिज्ञासा पैदा करने वाला एक ऐसा राज था जिसको कोई नहीं जानता था।

 

प्रश्न 10 – पशु पर्व में अपने क्रोध को शांत करने के लिए तताँरा ने क्या किया ? उसकी प्रतिक्रिया के पक्ष या विपक्ष में तर्कसम्मत उत्तर दीजिए।

उत्तर – तताँरा-वामीरो को एक साथ देख कर जब वामीरो की माँ ने तताँरा को कई तरह से अपमानित करना शुरू कर दिया और गाँव वाले भी तताँरा के विरोध में बोलने लगे। तब लोगो की बातों को सुनना तताँरा के लिए सहन कर पाना मुश्किल हो रहा था। अचानक उसका हाथ उसकी तलवार पर आकर टिक गया। गुस्से से उसने तलवार निकली। उसने अपने गुस्से को शांत करने के लिए अपनी पूरी शक्ति से तलवार को धरती में गाड़ दिया और अपनी पूरी ताकत से उसे खींचने लगा। जो लकीर तताँरा ने खींची थी उस लकीर की सीध में धरती फटती जा रही थी। यदि तताँरा की प्रतिक्रिया के पक्ष में देखें तो तताँरा का इस तरह गुस्सा होना बिलकुल सही था क्योंकि कोई भी उसकी भावनाओं को समझ नहीं रहा था। परन्तु यदि विपक्ष की बात करें तो तताँरा को इतना गुस्सा नहीं करना चाहिए था। उसे सभी को समझाने का प्रयास करना चाहिए था। 

 

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Chapter 11 – Teesri Kasam ke Shilpkaar Shailendra 

 

प्रश्न 1 – ‘तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र’ पाठ से लिए गए कथन – “ऐसा नहीं कि शैलेंद्र बीस सालों तक फ़िल्म इंडस्ट्री में रहते हुए भी वहाँ के तौर-तरीकों से नावाकिफ थे, परंतु उनमें उलझकर वे अपनी आदमियत नहीं खो सके थे।” – के संदर्भ में शैलेंद्र की विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर – ऐसा बिलकुल नहीं था कि शैलेन्द्र बीस सालों तक फिल्म जगत में रहे और उनको वहाँ के रहन-सहन या रंग-ढंग के बारे में कोई ज्ञान नहीं था। परन्तु बात तो यह थी कि वे फिल्म जगत के उस रंग-ढंग में फसकर अपनी इंसानियत को भूलना नहीं चाहते थे। इस आधार पर कहा जा सकता है कि शैलेंद्र एक आदर्शवादी भावुक कवि थे और उनका यही स्वभाव उनके गीतों में भी झलकता था। उन्होंने झूठे दिखावों को कोई स्थान नहीं दिया। शैलेंद्र को न तो अधिक धन-सम्पति का लालच था न ही नाम कमाने की इच्छा। उसे तो केवल अपने आप से संतोष की कामना थी। उनके गीतों में भावों की प्रधानता थी और वे आम जनजीवन से जुड़े हुए थे। शैलेंद्र एक कवि और सफल गीतकार थे। उनके लिखे गीतों में अनेक विशेषताएँ दिखाई देती हैं। उनके गीत सरल, सहज भाषा में होने के बावजूद बहुत बड़े अर्थ को अपने में समाहित रखते थे। उनके गीतों में करुणा के साथ-साथ संघर्ष की भावना भी दिखाई देती है। उनके गीत मनुष्य को जीवन में दुखों से घबराकर रुकने के स्थान पर निरंतर आगे बढ़ने का संदेश देते हैं। 

 

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Chapter 12 – Ab Kaha Dusre Ke Dukh Se Dukhi Hone Wale 

 

प्रश्न 1 – ‘अब कहाँ दूसरों के दुःख से दुःखी होने वाले’ पाठ के आधार पर लिखिए कि लेखक की माँ द्वारा उन्हें समय-समय पर क्या निर्देश दिए जाते थे ? उन निर्देशों के माध्यम से पाठकों को क्या सीख दी गई है ?

उत्तर –  ‘अब कहाँ दूसरों के दुःख से दुःखी होने वाले’ पाठ में लेखक की माँ द्वारा उन्हें समय-समय पर निर्देश दिए जाते थे कि शाम के समय पेड़ों से पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए क्योंकि उस समय यदि पत्ते तोड़ोगे तो पेड़ रोते हैं। पूजा के समय फूलों को नहीं तोड़ना चाहिए क्योंकि उस समय फूलों को तोड़ने पर फूल श्राप देते हैं। नदी पर जाओ तो उसे नमस्कार करनी चाहिए वह खुश हो जाती है। कभी भी कबूतरों और मुर्गों को परेशान नहीं करना चाहिए। इन निर्देशों के माध्यम से लेखक पाठकों को सीख देना चाहते हैं कि प्रकृति की हर वस्तु में जीवन है। हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए। क्योंकि प्रकृति से ही हमें जीवन प्राप्त होता है। 

 

प्रश्न 2 – वर्तमान में लगभग सारा विश्व जलवायु परिवर्तन और विविध प्राकृतिक आपदाओं की चपेट में है। प्रकृति में आए इन अवांछनीय परिवर्तनों के क्या कारण हैं ? ‘अब कहाँ दूसरों के दुःख से दुःखी होने वाले’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – जब पृथ्वी अस्तित्व में आई थी, उस समय पूरा संसार एक परिवार की तरह रहा करता था लेकिन अब इसके टुकड़े हो गए हैं और सभी एक-दूसरे से दूर हो गए हैं। वातावरण में इतना अधिक बदलाव हो गया है कि गर्मी में बहुत अधिक गर्मी पड़ती है, बरसात का कोई निश्चित समय नहीं रह गया है, भूकम्प, सैलाब, तूफ़ान और रोज कोई न कोई नई बीमारियाँ न जाने और क्या-क्या ,ये सब मानव द्वारा किये गए प्रकृति के साथ छेड़-छाड़ का नतीजा है। आदमी नाम का जीव सब कुछ समेटना चाहता है और उसकी यह भूख कभी भी शांत होने वाली नहीं है। वह इतना स्वार्थी हो गया है कि दूसरे प्राणियों को तो पहले ही बेदखल कर चुका था परन्तु अब वह अपनी ही जाति अर्थात मनुष्यों को ही बेदखल करने में जरा भी नहीं हिचकिचाता। परिस्थिति यह हो गई है कि न तो उसे किसी के सुख-दुःख की चिंता है और न ही किसी को सहारा या किसी की सहायता करने का इरादा। 

 

प्रश्न 3 – ‘अब कहाँ दूसरों के दुःख से दुःखी होने वाले’ पाठ में शेख अयाज़ के पिता के किस गुण का उल्लेख है ? क्या वह गुण वर्तमान में प्रासंगिक है ? कारण सहित अपने उत्तर की पुष्टि कीजिए।

उत्तर – ‘अब कहाँ दूसरों के दुःख से दुःखी होने वाले’ पाठ में शेख अयाज़ के पिता के दूसरों के प्रति दयालु स्वभाव का उल्लेख है। यह गुण वर्तमान में अवश्य प्रासंगिक है क्योंकि इस तरह के गुण वर्तमान में होना बहुत दुर्लभ है। शेख अयाज़ के पिता के व्यवहार से हमें सीख लेनी चाहिए कि किसी का अनजाने में भी बुरा न करना और यदि गलती से भी कोई  हमारे द्वारा दुखी हो जाता है तो हमारा कर्तव्य बनता है कि हम उसके दुखों को दूर करने के उपाए भी करें। अपने मन को सदा साफ रखें व् दूसरों के प्रति अपने मन में प्रेम भाव रखें। 

 

प्रश्न 4 – ‘अब कहाँ दूसरों के दुख से दुखी होने वाले’ पाठ में लेखक की माँ उन्हें प्रकृति का ख्याल रखने के बारे में क्या-क्या बताती थीं ? इनके माध्यम से वह लेखक में किन जीवन-मूल्यों का विकास करना चाहती थी ?

उत्तर – लेखक की माँ हमेशा कहती थी कि जब भी सूरज ढले अर्थात शाम के समय पेड़ों से पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए क्योंकि उस समय यदि पत्ते तोड़ोगे तो पेड़ रोते हैं। दिया-बत्ती के समय अर्थात पूजा के समय फूलों को नहीं तोड़ना चाहिए क्योंकि उस समय फूलों को तोड़ने पर फूल श्राप देते हैं। नदी पर जाओ तो उसे नमस्कार करनी चाहिए वह खुश हो जाती है। कभी भी कबूतरों को परेशान नहीं करना चाहिए क्योंकि कबूतर हज़रत मुहम्मद को बहुत प्यारे हैं। मुर्गों को भी कभी परेशान नहीं करना चाहिए क्योंकि वह मुल्ला जी से पहले ही पूरे मोहल्ले को बांग दे कर जगाता है। सबकी पूजा एक सी है अर्थात चाहे हिंदु हो या मुस्लिम या फिर सीख हो या ईसाई। सभी एक ही ईश्वर का गुणगान करते हैं। केवल तरीका अलग होता है। 

इन सबके माध्यम से लेखक की माँ लेखक में दयालु स्वभाव, सकारात्मकता, जीवों से प्रेम करना व् सभी का सम्मान करना जैसे जीवन-मूल्यों का विकास करना चाहती हैं। 

 

प्रश्न 5 – लगातार बढ़ती आबादी ने पर्यावरण को किस रूप में प्रभावित किया है ? ‘अब कहाँ दूसरे के दुख में दुखी होने वाले’ पाठ के संदर्भ में लिखिए।

उत्तर – जब पृथ्वी अस्तित्व में आई थी, उस समय पूरा संसार एक परिवार की तरह रहा करता था लेकिन अब इसके टुकड़े हो गए हैं और सभी एक-दूसरे से दूर हो गए हैं। पहले सभी बड़े-बड़े बरामदों और आंगनों में मिल-जुलकर रहा करते थे परन्तु आज के समय में सभी का जीवन छोटे-छोटे डिब्बे जैसे घरों में सिकुड़ने लगा है। जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है वैसे-वैसे समुद्र अपनी जगह से पीछे हटने लगा है, लोगों ने पेड़ों को काट कर रास्ते बनाना शुरू कर दिया है। प्रदुषण इतना अधिक फैल रहा है कि उससे परेशान हो कर पंछी बस्तियों को छोड़ कर भाग रहे हैं। बारूद से होने वाली मुसीबतों ने सभी को परेशान कर रखा है। वातावरण में इतना अधिक बदलाव हो गया है कि गर्मी में बहुत अधिक गर्मी पड़ती है, बरसात का कोई निश्चित समय नहीं रह गया है, भूकम्प, सैलाब, तूफ़ान और रोज कोई न कोई नई बीमारियाँ न जाने और  क्या-क्या ,ये सब मानव द्वारा प्रकृति के साथ किये गए छेड़-छाड़ का नतीजा है। प्रकृति एक सीमा तक ही सहन कर सकती है। प्रकृति को जब गुस्सा आता है तो क्या होता है इसका एक नमूना कुछ साल पहले मुंबई में आई सुनामी के रूप में देख ही चुके हैं। 

 

प्रश्न 6 – ‘अब कहाँ दूसरों के दुख से दुखी होने वाले’ पाठ के आधार पर लिखिए कि लेखक की माँ पर्यावरण संरक्षण के प्रति क्यों सजग थीं। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – लेखक की माँ पर्यावरण संरक्षण के प्रति सजग थीं क्योंकि वे मानती थी कि जितना अधिकार हम मनुष्यों का इस धरती पर है उतना ही अन्य जिव-जंतुओं व् प्राकृतिक चीज़ों का भी है। वे लेखक को बचपन में हमेशा कहती थी कि शाम के समय पेड़ों से पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए क्योंकि उस समय यदि पत्ते तोड़ोगे तो पेड़ रोते हैं। पूजा के समय फूलों को नहीं तोड़ना चाहिए क्योंकि उस समय फूलों को तोड़ने पर फूल श्राप देते हैं। नदी पर जाओ तो उसे नमस्कार करनी चाहिए वह खुश हो जाती है। कभी भी कबूतरों को परेशान नहीं करना चाहिए क्योंकि कबूतर हज़रत मुहम्मद को बहुत प्यारे हैं। मुर्गों को भी कभी परेशान नहीं करना चाहिए क्योंकि वह मुल्ला जी से पहले ही पूरे मोहल्ले को बांग दे कर जगाता है। सबकी पूजा एक सी अर्थात चाहे हिंदु हो या मुस्लिम या फिर सीख हो या ईसाई । सभी एक ही ईश्वर का गुणगान करते हैं। केवल तरीका अलग होता है।

 

प्रश्न 7 – निदा फ़ाज़ली अपनी माँ और पत्नी द्वारा जीव-जंतुओं के साथ किए जाने वाले व्यवहार के अंतर से क्या कहना चाहते हैं ? ‘अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले’ पाठ के संदर्भ में लिखिए। 

उत्तर –  निदा फ़ाज़ली अपनी माँ और पत्नी द्वारा जीव-जंतुओं के साथ किए जाने वाले व्यवहार के अंतर से स्पष्ट करना चाहते हैं कि जिस तरह हमें दुःख व् सुख का अनुभव होता है उसी तरह अन्य जीवों को भी हर भावना का अनुभव होता है। हमें समझना चाहिए कि हमने उनके घरों के स्थान को छीना है न कि वे हमारे घरों पर रहने आए हैं। हमने उनके जीवन को भंग किया है अतः हमारा दायित्व बनता है कि हम उन्हें और अधिक परेशान न करें। थोड़ा सा स्थान व् भोजन उनके साथ भी साँझा करें क्योंकि जितना अधिकार हम प्राकृति पर समझते हैं उतना ही अधिकार उन सभी का भी है। 

 

प्रश्न 8 – बढ़ती हुई आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किए गए मानवीय क्रियाकलापों ने प्रकृति को नकारात्मक रूप में प्रभावित कर उसे असंतुलित किया है। प्रकृति के इस असंतुलन का मानवीय जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा है? ‘अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले’ पाठे के संदर्भ में लिखिए।

उत्तर – बढ़ती हुई आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किए गए मानवीय क्रियाकलापों ने प्रकृति को नकारात्मक रूप में प्रभावित कर उसे असंतुलित किया है। प्रकृति ने यह धरती उन सभी जीवधारियों के लिए दान में दी थी जिन्हें खुद प्रकृति ने ही जन्म दिया था। लेकिन समय के साथ-साथ हुआ यह कि आदमी नाम के प्रकृति के सबसे अनोखे चमत्कार ने धीरे-धीरे पूरी धरती को अपनी जायदाद बना दिया और अन्य दूसरे सभी जीवधारियों को इधर -उधर भटकने के लिए छोड़ दिया। प्रकृति एक सीमा तक ही सहन कर सकती है। कहा जाता है कि जो जितना बड़ा होता है उसको गुस्सा उतना ही कम आता है परन्तु जब आता है तो उनके गुस्से को कोई शांत नहीं कर सकता। प्रकृति को भी जब गुस्सा आता है तो क्या होता है इसका एक नमूना कुछ साल पहले मुंबई में आई सुनामी के रूप में देख ही चुके हैं। ये नमूना इतना डरावना था कि मुंबई के निवासी डर कर अपने-अपने देवी-देवताओं से उस मुसीबत से बचाने के लिए प्रार्थना करने लगे थे। प्रकृति में आए असंतुलन का बहुत अधिक भयानक परिणाम हुआ है। गर्मी में बहुत अधिक गर्मी पड़ती है, बरसात का कोई निश्चित समय नहीं रह गया है, भूकम्प, सैलाब, तूफ़ान और रोज कोई न कोई नई बीमारियाँ जन्म ले लेती है और मानव का जीवन बहुत अधिक कठिन हो गया है।

 

प्रश्न 9 – ‘अब कहाँ दूसरों के दुख से दुखी होने वाले’ पाठ में ऐसे अनेक लोगों का उल्लेख है, जो जीव-जंतुओं के प्रति संवेदनशील थे। आपको उनमें से सबसे अच्छा कौन लगा ? कारण सहित लिखिए।

उत्तर – ‘अब कहाँ दूसरों के दुख से दुखी होने वाले’ पाठ में ऐसे अनेक लोगों का उल्लेख है, जो जीव-जंतुओं के प्रति संवेदनशील थे। हमें उनमें से सबसे अच्छा सिंधी भाषा के महाकवि शेख अयाज़ के पिता लगे। उनके एक वाक्य ने हमें बहुत प्रभावित किया।  एक दिन जब वे कुँए से नहाकर लौटे। और खाना खाने के लिए जैसे जी उन्होंने रोटी का पहला टुकड़ा तोड़ा कि उनकी नज़र उनके बाजू पर धीरे-धीरे चलते हुए एक काले च्योंटे पर पड़ी। जैसे ही उन्होंने कीड़े को देखा वे भोजन छोड़ कर खड़े हो गए। जब उनसे पूछा गया कि क्या भोजन अच्छा नहीं लगा? तो शेख अयाज़ के पिता ने जवाब दिया कि ऐसी कोई बात नहीं है। उन्होंने एक घर वाले को बेघर कर दिया है वे उसी को उसके घर यानि कुँए के पास छोड़ने जा रहे हैं। इस वाक्य से उनके दयालु स्वभाव व् निर्मल हृदय का पता चलता है। 

 

प्रश्न 10 – ‘अब कहाँ दूसरों के दुख से दुखी होने वाले’ पाठ के आधार पर लिखिए कि पहले और अब के संसार में जीवन शैली में क्या अंतर आ गया है ?

उत्तर – जब पृथ्वी अस्तित्व में आई थी, उस समय पूरा संसार एक परिवार की तरह रहा करता था लेकिन अब इसके टुकड़े हो गए हैं और सभी एक-दूसरे से दूर हो गए हैं। पहले सभी बड़े-बड़े बरामदों और आंगनों में मिल-जुलकर रहा करते थे परन्तु आज के समय में सभी का जीवन छोटे-छोटे डिब्बे जैसे घरों में सिकुड़ने लगा है। जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है वैसे-वैसे समुद्र अपनी जगह से पीछे हटने लगा है, लोगों ने पेड़ों को काट कर रास्ते बनाना शुरू कर दिया है। प्रदुषण इतना अधिक फैल रहा है कि उससे परेशान हो कर पंछी बस्तियों को छोड़ कर भाग रहे हैं। बारूद से होने वाली मुसीबतों ने सभी को परेशान कर रखा है। वर्सोवा में जहाँ लेखक का घर है, वहाँ लेखक के अनुसार किसी समय में दूर तक जंगल ही जंगल था। पेड़-पौधे थे, पशु-पक्षी थे और भी न जाने कितने जानवर थे। अब तो यहाँ समुद्र के किनारे केवल लम्बे-चौड़े गाँव बस गए हैं। इन गाँव ने न जाने कितने पशु-पक्षियों से उनका घर छीन लिया है। इन पशु-पक्षियों में से कुछ तो शहर को छोड़ कर चले गए हैं और जो नहीं जा सके उन्होंने यहीं कहीं पर अस्थाई घर बना लिए हैं। अस्थाई इसलिए क्योंकि कब कौन उनका घर तोड़ कर चला जाए कोई नहीं जानता।

 

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Chapter 13 – Patjhar Me Tuti Pattiyan

 

प्रश्न 1 – ‘पतझर में टूटी पत्तियाँ’ के लेखक के अनुसार ‘सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए।’ क्या आप लेखक के विचार से सहमत हैं ? अपने पक्ष के समर्थन या विरोध में तर्क सहित उत्तर दीजिए।

उत्तर – ‘पतझर में टूटी पत्तियाँ’ के लेखक के अनुसार ‘सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए।’ हम लेखक की इस बात से सहमत हैं क्योंकि हम लोग या तो बीते हुए दिनों में रहते हैं या आने वाले दिनों में। जबकि दोनों ही समय झूठे होते हैं। क्योंकि बीते हुए समय को हम फिर से जी नहीं सकते और आने वाले समय का हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि वह कैसा होगा। जो समय अभी चल रहा है अर्थात वर्त्तमान, वही सच है। और यह समय कभी न ख़त्म होने वाला और बहुत अधिक फैला हुआ है। क्योंकि हम हमेशा वर्त्तमान में ही रहते हैं। हमें बीते दिनों और भविष्य की कल्पनाओं को भूलकर वर्तमान की वास्तविकता में जीना चाहिए और वर्तमान का भरपूर आनंद लेना चाहिए। 

 

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Chapter 14 – Kartoos 

 

प्रश्न 1 – वज़ीर अली की उन चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए जिनके कारण उसे जाँबाज़ सिपाही कहा जाता था। आप इनमें से किन गुणों को अपनाना चाहेंगे और क्यों ?

उत्तर –  ‘कारतूस’ पाठ से ज्ञात होता है कि वज़ीर अली अत्यंत साहसी, वीर, महत्त्वाकांक्षी और स्वाभिमानी शासक था। अवध की सत्ता छिनने के बाद उसके इन गुणों को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। उन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था और वे बहादुरी से अंग्रेजों के समक्ष भी चले जाते थे और उनके हाथ भी नहीं आते थे। इन्हीं गुणों के कारण उसे जाँबाज़ सिपाही कहा जाता था। वज़ीर अली ने हमें सर्वाधिक प्रभावित किया है। उसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषता को हम अपनाना चाहेंगे – साहसी – वज़ीर अली के साहस की जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम ही है। उसने कंपनी के वकील की हत्या कर दी थी। वह कर्नल के कैंप में घुसकर उससे कारतूस भी लाता है ये उसके साहसी होने के प्रमाण है। वीर – वज़ीर अली इतना वीर है कि अवध की सत्ता छिनने के बाद भी अंग्रेजों को देश से खदेड़ने के लिए हर संभव प्रयास करता रहता है। महत्त्वाकांक्षी – वज़ीर अली महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति है। वह अवध का शासक बनने की महत्त्वाकांक्षा सदा बनाए रखता है। स्वाभिमानी – वज़ीर अली इतना स्वाभिमानी है कि वह कंपनी के वकील की अपमानजनक बातों को सह नहीं पाता है और उसकी हत्या कर देता है। इन गुणों को अपनाकर हम भी अपने जीवन में आने वाले कष्टों का डट कर सामना करना व् कभी भी मुसीबत में न भागने की प्रेरणा लेंगें।  

 

प्रश्न 2 – ‘कारतूस’ एकांकी के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि सआदत अली वजीर अली का सगा चाचा होते हुए भी उससे नफरत क्यों करता था ?

उत्तर – सआदत अली आसिफ़उद्दौला (वज़ीर अली का पिता) का भाई था। सआदत अली, वज़ीर अली और आसिफ़उद्दौला का दुश्मन था। नवाब आसिफ़उद्दौला के घर में लड़के के पैदा होने की आशा सब खो चुके थे परन्तु वज़ीर अली के पैदा होने को सआदत अली ने अपनी मौत ही समझ लिया था क्योंकि वज़ीर अली के पैदा होने के बाद अब वह अवध के सिंहासन को हासिल नहीं कर सकता था। यही कारण था कि सआदत अली वज़ीर अली का सगा चाचा होते हुए भी उससे नफरत करता था। 

 

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Sanchyan Bhag-2

 

Chapter 1 – Harihar Kaka 

 

प्रश्न 1 – ‘हरिहर काका’ कहानी की पृष्ठभूमि ग्रामीण जीवन पर आधारित है, जिसमें पारिवारिक संबंधों के निःस्वार्थ प्रेम के स्थान पर बढ़ती स्वार्थ-लिप्सा को दर्शाया गया है। क्या यह कहानी शहरी जीवन के यथार्थ को भी उजागर करती है? तर्क सहित स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – ‘हरिहर काका’ कहानी की पृष्ठभूमि ग्रामीण जीवन पर आधारित है, जिसमें पारिवारिक संबंधों के निःस्वार्थ प्रेम के स्थान पर बढ़ती स्वार्थ-लिप्सा को दर्शाया गया है। यह कहानी शहरी जीवन के यथार्थ को भी उजागर करती है क्योंकि केवल ग्रामीण जीवन में ही लोगों को स्वार्थ ने नहीं घेरा है। शहर में भी यही स्थिति है। बच्चे अपने ही माता-पिता को वृद्धाश्रम में भेज देते हैं। व्यापार में मित्र ही मित्र को धोखा देता है। मनुष्य अपने आप को दूसरों से उच्च बताने के लिए झूठा दिखावा करते हैं। यहाँ तक की स्वार्थ-लिप्सा में पुत्र अपने पूरे परिवार की हत्या की साजिश भी रचता है। स्वार्थ-लिप्सा का ग्रामीण व् शहरी दोनों जीवन पर प्रभाव पड़ा है। मनुष्य अपनी मनुष्यता को खोता चला आ रहा है। 

 

प्रश्न 2 – “आस्था के प्रतीक धर्मस्थान, मानव को जीवन में सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।” “हरिहर काका’ कहानी के संदर्भ में इस कथन के पक्ष या विपक्ष में तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।

उत्तर – “आस्था के प्रतीक धर्मस्थान, मानव को जीवन में सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।” “हरिहर काका’ कहानी के संदर्भ में इस कथन के पक्ष और विपक्ष दोनों स्पष्ट होते हैं। पक्ष में देखे तो धर्मस्थान ऐसी जगह है जहाँ पर लोग भगवान् के दर्शन करने जाते हैं। वहाँ लोगों को मन की शान्ति मिलती है जो उनके जीवन से तनाव को मुक्त करती है। वहाँ उपस्थित महात्मा लोगों को सन्मार्ग पर चलने की सीख व् दुष्कर्म करने पर मिलने वाले कष्टों से अवगत करवाते हैं। किन्तु यदि  “हरिहर काका’ कहानी के संदर्भ में धर्मस्थानों के विपक्ष में देखे तो वहाँ धर्म के नाम पर पाखण्ड भी किया जाता है। लोगों को धर्म के नाम पर डरा-धमका कर लूटा जाता है। महात्माओं द्वारा लोगों को भ्रमित किया जाता है व् पाप का भागीदार बनाया जाता है। 

 

प्रश्न 3 – हरिहर काका और टोपी शुक्ला दोनों ही भरे-पूरे परिवार से संबंधित होते हुए भी अकेले थे। दोनों के अकेलेपन के कारणों की समीक्षा कीजिए। क्यों ?

उत्तर – ‘भरे-पूरे परिवार में रहता हुआ भी व्यक्ति अकेला हो सकता है।’ ‘हरिहर काका’ और ‘टोपी शुक्ला’ कहानी इस कथन के लिए सही उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। ‘टोपी शुक्ला’ कहानी में टोपी का इफ़्फ़न की दादी से बहुत गहरा सम्बन्ध बन गया था। दोनों अपने घरों में अजनबी और भरे घर में अकेले थे क्योंकि दोनों को ही उनके घर में कोई समझने वाला नहीं था। ‘हरिहर काका’ कहानी में भी हरिहर काका का पूरा परिवार केवल उनकी ज़मीन के कारण ही उनके साथ था। पूरे परिवार ने उनकी ज़मीन हासिल करने के लिए न जाने कितने जुल्म उनपर किए। भरे-पुरे परिवार में भी उनका कोई अपना नहीं था। 

इफ़्फ़न की दादी इसलिए परिवार में अकेलापन महसूस करती थी क्योंकि वह उस परिवार के तौर-तरीकों से बिलकुल अलग परिवार से आई थी और टोपी अपने परिवार में हर किसी के द्वारा प्रताड़ित किया जाता था जिस कारण वह अपने ही घर में अकेला हो गया था।  

 

प्रश्न 4 – ‘हरिहर काका’ कहानी के आधार पर लिखिए कि कहानी के अंत में हरिहर काका की सुरक्षा में राइफलधारी पुलिस के चार जवान क्यों नियुक्त किए गए। हरिहर काका की वास्तविक सुरक्षा किसके द्वारा और कैसे की जा रही थी ?

उत्तर – कहानी के अंत में हरिहर काका की सुरक्षा में राइफलधारी पुलिस के चार जवान नियुक्त किए गए क्योंकि ज़मीन के लालच में हरिहर काका के भाइयों ने जब जोर-जबरदस्ती करके, मर-पीट करके, उनसे ज़मीन अपने नाम करवानी चाही तब ठाकुरबाड़ी के महंत ने पुलिस रिपोर्ट करवा दी थी ताकि ज़मीन के चक्कर में हरिहर काका के भाई कहीं उन्हें चोरी-छुपे मार कर ज़मीन अपने नाम न लिखवा दें। इस घटना के बाद हरिहर काका अपने परिवार से एकदम अलग रहने लगे थे। उन्हें उनकी सुरक्षा के लिए चार राइफलधारी पुलिस के जवान मिले थे। आश्चर्य की बात तो यह है कि इसके लिए उनके भाइयों और महंत की ओर से काफ़ी प्रयास किए गए थे। असल में भाइयों को चिंता थी कि हरिहर काका अकेले रहने लगेंगे, तो देव-स्थान के महंत-पुजारी फिर से हरिहर काका को बहला-फुसला कर ले जायँगे और ज़मीन देव-स्थान के नाम करवा लेंगे। और यही चिंता महंत जी को भी थी कि हरिहर काका को अकेला और असुरक्षित पा, उनके भाई फिर से उन्हें पकड़ कर मारेंगे और ज़मीन को अपने नाम करवा लेंगे। इसीलिए जब हरिहर काका ने अपनी सुरक्षा के लिए पुलिस की माँग की तब सामने ना आकर हरिहर काका के भाई और महंत दोनों ने पीछे ही रह कर बहुत खुशामद और पैसा खर्च कर के हरिहर काका की सुरक्षा के लिए सहायता की थी। यह उनकी सहायता का ही परिणाम था कि एक व्यक्ति की सुरक्षा के लिए गाँव में पुलिस के चार जवान तैनात कर दिए गए थे।

 

प्रश्न 5 – “हरिहर काका कहानी पारिवारिक जीवन में घर कर चुकी स्वार्थपरता और हिंसा-प्रवृत्ति को बेनकाब करती है।” तर्कसंगत उत्तर दीजिए।

उत्तर –  “हरिहर काका कहानी पारिवारिक जीवन में घर कर चुकी स्वार्थपरता और हिंसा-प्रवृत्ति को बेनकाब करती है।” यह कथन शतप्रतिशत सही है। वर्तमान में व्यक्ति इतना स्वार्थी हो गया है कि वह धन-संपत्ति के लालच में अपने सगे-सम्बन्धियों को ही नहीं बल्कि अपने माता-पिता को भी कष्ट पहुँचाने से नहीं कतराता। वर्तमान में हिंसा-प्रवृत्ति के कई उदाहरण सामने आते-रहते हैं जिसमें न जाने कितने बच्चे अपने माता-पिता, भाई-बहन व् सगे-सम्बन्धियों को मौत के घाट तक उतार देते हैं। हरिहर काका कहानी तो पारिवारिक जीवन में घर कर चुकी स्वार्थपरता और हिंसा-प्रवृत्ति का नमूना मात्र है वास्तविकता तो इससे कहीं अधिक घिनौनी है। 

 

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Chapter 2 – Sapno Ke Se Din

 

प्रश्न 1 – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में वर्णित ‘ओमा’ जैसा व्यक्तित्व कभी भी अनुकरणीय क्यों नहीं हो सकता?

उत्तर – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में वर्णित ‘ओमा’ जैसा व्यक्तित्व कभी भी अनुकरणीय नहीं हो सकता क्योंकि ओमा की बातें, गालियाँ और उसकी मार-पिटाई का ढंग सभी से बहुत अलग था। वह देखने में भी सभी से बहुत अलग था। उसका मटके के जितना बड़ा सिर था, जो उसके चार बालिश्त (ढ़ाई फुट) के छोटे कद के शरीर पर ऐसा लगता था जैसे बिल्ली के बच्चे के माथे पर तरबूज रखा हो। बड़े सिर पर नारियल जैसी आँखों वाला उसका चेहरा बंदरिया के बच्चे जैसा और भी अजीब लगता था। जब भी लड़ाई होती थी तो वह अपने हाथ-पाँव का प्रयोग नहीं करता था, वह अपने सिर से ही लड़ाई किया करता था। ओमा जैसा व्यक्तित्व कभी भी किसी के लिए आदर्श नहीं बन सकता क्योंकि उसमें कोई गुण नहीं थे बल्कि वह अवगुणों से भरपूर था। वह अध्यापकों का आदर नहीं करता था, न ही कोई कार्य पूर्ण करता था। वह अनुशासनहीन होने के साथ-साथ, निर्दयी भी था। 

 

प्रश्न 2 – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ के आधार पर लिखिए कि मास्टर प्रीतमचंद जैसे अध्यापकों को मुअत्तल किए जाने को आप कहाँ तक उचित मानते हैं और क्यों। पक्ष या विपक्ष में तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।

उत्तर – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ के आधार पर मास्टर प्रीतमचंद जैसे अध्यापकों को मुअत्तल किए जाने को हम अनुचित मानते हैं क्योंकि वे केवल अपने कर्तव्य का पालन कर रहे थे। वे अपने विद्यार्थियों को सही राह पर चलने व् अनुशासन में रहने का पाठ पढ़ा रहे थे। विद्यार्थियों को सज़ा देना उनके क्रूर होने का सबूत नहीं है क्योंकि जब लेखक अपने साथियों के साथ मास्टर प्रीतमचंद के घर गए थे उन्होंने मास्टर प्रीतमचंद को तोतो को प्यार से खाना खिलाते देखा था। इससे साबित  होता है कि अध्यापक कभी भी अपने स्वार्थ के लिए विद्यार्थियों को सजा नहीं देता बल्कि वह तो अपने विद्यार्थियों के उज्जवल भविष्य के लिए उन्हें सुधारने के लिए थोड़ा सख्त रवैया अपनाता है। 

 

प्रश्न 3 – ‘सपनों के से दिन’ पाठ में बच्चों को स्कूल जाना बिल्कुल भी पसंद नहीं था, कारण सहित उत्तर स्पष्ट करते हुए बताइए कि स्कूल जाने के संबंध में आपका क्या अनुभव है ?

उत्तर – ‘सपनों के से दिन’ पाठ में बच्चों को स्कूल जाना बिल्कुल भी पसंद नहीं था, इसका कारण था कि स्कुल में बच्चों को वह आज़ादी नहीं मिल पाती थी जो बच्चे चाहते हैं। स्कूल में अध्यापकों द्वारा उन्हें पढ़ाई करने को कहा जाता था और पढ़ाई न करने पर मारा भी जाता था। अध्यापक सख्त स्वभाव  के थे। और गर्मियों की छुट्टियों का काम न करने पर मार के डर से भी बच्चे स्कूल जाना पसंद नहीं करते थे। बचपन में हमें भी स्कूल जाना पसंद नहीं आता था क्योंकि बालमन शरारतों में लगा रहता था और स्कूल में अध्यापक अनुशासन में रहने की सीख देते थे। परन्तु जैसे-जैसे बुद्धि का विकास हुआ हमें स्कूल के महत्त्व का पता चला और फिर हमने स्कूल के हर कार्यक्रम व् प्रतियोगिताओं में अपना योगदान दिया। जो हमें आज के समय में जीवन की कठिन परिस्थितियों का सामना करने की प्रेरणा देते हैं। 

 

प्रश्न 4 – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में बच्चों को अनुशासन में रखने के लिए माता-पिता, भाई-बहनों और अध्यापकों द्वारा मार-पीट करने का जिक्र आया है। वर्तमान समय में इसमें क्या परिवर्तन आया है ? आपकी दृष्टि में कौन-सा तरीका अधिक बेहतर है ?

उत्तर – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में बच्चों को अनुशासन में रखने के लिए माता-पिता, भाई-बहनों और अध्यापकों द्वारा मार-पीट करने का जिक्र आया है। वर्तमान समय में इसमें बहुत परिवर्तन आया है क्योंकि आज के समय में माना जाता है कि मार-पीट से बच्चों के मानसिक विकास पर असर पड़ता है। हमारी दृष्टि से यह कभी हद तक सही है। क्योंकि मार-पीट से बच्चों के मन में कहीं न कहीं डर बैठ जाता है और इससे उनकी बौद्धिक क्षमता पर असर पड़ता है। परन्तु बच्चों को अनुशासन व् सही शिक्षा देने के लिए बच्चों को सही तरीकों से समझाना आवश्यक है क्योंकि बिना डर के बच्चे गलत रास्तों को अपना लेते हैं व् अपना भविष्य अंधकारमय कर देते हैं। 

 

प्रश्न 5 – “वर्तमान में विद्यालयों में बढ़ती हुई अनुशासनहीनता को देखते हुए मास्टर प्रीतमचंद जैसे अध्यापकों की आवश्यकता है।” इस कथन से सहमति या असहमति के संबंध में अपने तर्कसम्मत विचार लिखिए।

उत्तर – “वर्तमान में विद्यालयों में बढ़ती हुई अनुशासनहीनता को देखते हुए मास्टर प्रीतमचंद जैसे अध्यापकों की आवश्यकता है।” इस कथन से हम बहुत अधिक हद तक सहमत हैं, क्योंकि आजकल वर्तमान में बच्चों के दिमाग में यह बात घर कर गई है कि अध्यापकों को उन्हें पीटने व् डाँटने का कोई अधिकार नहीं है। जिस कारण विद्यालय में अनुशासनहीनता अकसर देखने को मिल रही है। अध्यापकों का सख्त रवैया ही विद्यार्थियों को अनुशासन का पालन करने के लिए मजबूर करता है और यही अनुशासन आगे चल कर उन विद्यार्थियों के सफल भविष्य का कारण बनता है। विद्यार्थी भले ही अपने बालमन में सख्त अध्यापक को बुरा समझते हो परन्तु समय के साथ-साथ उन्हें एहसास हो जाता है कि वही सख्त अध्यापक असल में उनका शुभचिंतक था। जो अपनी परवाह किए बगैर अपने विद्यार्थियों के भविष्य को सवारने में लगा था। 

 

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Chapter 3 – Topi Shukla 

 

प्रश्न 1 – इफ़्फ़न का अपनी दादी से विशेष लगाव होने के क्या कारण थे ? ‘टोपी शुक्ला’ कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – इफ़्फ़न के घर आने से टोपी की मित्रता इफ़्फ़न की दादी से भी हो गई थी। इनका सम्बन्ध आत्मीय था। टोपी को इफ़्फ़न की दादी के साथ बैठना पसंद था, उसे उनकी बातें बहुत अच्छी लगती थी। उसका इफ़्फ़न की दादी से बहुत गहरा सम्बन्ध बन गया था। दोनों अपने घरों में अजनबी और भरे घर में अकेले थे क्योंकि दोनों को ही उनके घर में कोई समझने वाला नहीं था। दोनों ने एक दूसरे का अकेलापन दूर कर दिया था। इफ़्फ़न की दादी के देहांत से टोपी को बहुत दुःख हुआ था। यहाँ तक कि वह चाहता था कि इफ़्फ़न की दादी के बदले उसकी दादी का देहांत होना चाहिए था। 

 

प्रश्न 2 – ‘टोपी शुक्ला’ पाठ के नायक टोपी शुक्ला की परेशानियों को देखते हुए आप शिक्षा-व् -व्यवस्था में किस तरह के सुधार लाना चाहेंगे ?

उत्तर – ‘टोपी शुक्ला’ पाठ के नायक टोपी शुक्ला की परेशानियों को देखते हुए हम शिक्षा-व्-व्यवस्था में निम्नलिखित सुधार लाना चाहेंगे – 

अध्यापकों को बच्चों के साथ थोड़ा मैत्रिपूर्ण स्वभाव रखना चाहिए। जिससे वे अपनी परेशानी बे-झिझक अध्यापकों को बता सकें।  

कक्षा में कमजोर विद्यार्थियों के लिए अतिरिक्त कक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए। 

तनाव से गुजरने वाले बच्चों के लिए मनोचिकित्सक को विद्यालय भ्रमण करवाया जाना चाहिए। 

अध्यापकों को भी मनोचिकित्सा की तकनीकों को सिखाया जाना चाहिए। 

परीक्षा के दौरान कोई ऐसी गतिविधि नहीं करवानी चाहिए जिससे विषयार्थियों का मन पढ़ाई से भटके। 

 

प्रश्न 3 – इफ्फ़न के पिता के तबादले के बाद टोपी शुक्ला का कोई और मित्र क्यों नहीं बन सका ? इसका उसके बालमन पर क्या प्रभाव पड़ा ?

उत्तर – इफ्फ़न के पिता के तबादले के बाद टोपी शुक्ला का कोई और मित्र नहीं बन सका। टोपी दादी के मरने के बाद तो अकेला महसूस कर ही रहा था और अब इफ़्फ़न के चले जाने पर वह और भी अकेला हो गया था क्योंकि दूसरे कलेक्टर ठाकुर हरिनाम सिंह के तीन लड़कों में से कोई उसका दोस्त नहीं बन सका था। पढ़ाई में भी लगातार फेल होने के कारण उसके साथ पढ़ने वाले आगे बढ़ गए और वह अपने से छोटे लड़कों के साथ दोस्ती नहीं कर पाया। इन सब का उसके बालमन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। वह अकेलेपन के कारण तनाव में रहने लगा और पढ़ाई में भी लगातार पिछड़ता गया। 

 

प्रश्न 4 – ‘टोपी शुक्ला’ कहानी के आधार पर लिखिए कि कहानी का प्रमुख पात्र टोपी अपने बड़े भाई मुन्नी बाबू से क्यों चिढ़ता था। टोपी के साथ मुन्नी बाबू द्वारा किए गए व्यवहार को आप कितना उचित मानते हैं ? तर्क सहित उत्तर दीजिए।

उत्तर – ‘टोपी शुक्ला’ कहानी का प्रमुख पात्र टोपी अपने बड़े भाई मुन्नी बाबू से इसलिए चिढ़ता था क्योंकि परिवार के लोग टोपी पर विश्वास नहीं करते थे। एक दिन जब टोपी को इफ़्फ़न के घर जाने के लिए, मार पड़ रही थी तब मुन्नी बाबू एक और बात जोड़ कर बोले कि एक दिन टोपी को उन्होंने रहीम कबाबची की दुकान पर कबाब खाते देखा था। यह बात झूठी थी पर इस बात पर टोपी को और ज्यादा मार पड़ी थी। ठण्ड के दिनो में जब सभी के लिए नए कपड़े बनते थे टोपी को मुन्नी बाबू का पुराना कोट मिला था। वह भी एक कारण था जिसकी वजह से टोपी अपने बड़े भाई मुन्नी बाबू को पसंद नहीं करता था। टोपी के साथ जो व्यवहार मुन्नी बाबू द्वारा किया जाता था वह अनुचित था क्योंकि उनके इस तरह व्यवहार से टोपी का मानसिक तनाव बढ़ता था। जिस कारण वह पढ़ाई में पूरा ध्यान नहीं लगा पता था। 

 

प्रश्न 5 – टोपी शुक्ला अपनी दादी को नापसंद क्यों करता था ? पाठ के आधार पर लिखिए।

उत्तर – टोपी को अपनी दादी बिलकुल भी पसंद नहीं थी। उसे तो अपनी दादी से नफ़रत थी। वह पता नहीं कैसी भाषा बोलती थी। टोपी को अपनी दादी की भाषा और इफ़्फ़न के अब्बू की भाषा एक जैसी लगती थी। टोपी की दादी उसे इफ़्फ़न से मिलने नहीं देती थी और इफ़्फ़न की तरह माँ को अम्मी बोलने पर दादी ने टोपी को खूब मार पड़वाई थी। उसकी दीदी उसे नहीं समझती थी जिस कारण टोपी अपनी दादी को बिलकुल पसंद नहीं करता था। 

 

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