Parvat Pradesh Mein Pavas Class 10 Hindi Summary, Explanation, Question Answers

 

arvat Pradesh Mein Pavas Class 10
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Parvat Pradesh Mein Pavas CBSE Class 10 Hindi Chapter 5 Summary, Explanation and NCERT Solutions (Question Answers) from Sparsh Book

Parvat Pradesh Mein Pavas Class 10 – पर्वत प्रदेश में पावस CBSE Class 10 Hindi Lesson summary with a detailed explanation of the lesson ‘Parvat Pradesh Mein Pavas‘ by Sumitranandan Pan along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with a summary and all the exercises, Questions and Answers (Solutions) given at the back of the lesson.

 

Parvat Pradesh Mein Paavas Class 10 Hindi Chapter 5

 

parvat

 

कवि परिचय

 

कवि – सुमित्रानंदन पंत
जन्म -20 मई 1900 ( उत्तराखंड – कौसानी अलमोड़ा )
मृत्यु – 28 दिसम्बर 1977

Parvat Pradesh Mein Paavas Class 10 Video Explanation

 

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पर्वत प्रदेश में पावस पाठ प्रदेश (Introduction)

भला ऐसा भी कोई इंसान हो सकता है जो पहाड़ों पर ना जाना चाहता हो। जिन लोगों को दूर हिमालय पर जाने का मौका नहीं मिल पाता  वो लोग अपने आसपास के पहाड़ी इलाकों में जाने का कोई मौका नहीं छोड़ते। जब आप पहाड़ों को याद कर रहें हों और ऐसे में किसी कवि की कविता अगर कक्षा में बैठे बैठे ही आपको ऐसा एहसास करवा दे की आप अभी अभी पहाड़ों से घूम कर आ रहे हों तो बात ही  अलग होती है।
प्रस्तुत कविता भी इसी तरह के रोमांच और प्रकृति के सुन्दर वर्णन से भरी है जिससे आपकी आंखों और मन दोनों को आनंद आएगा। यही नहीं सुमित्रानंदन पंत की बहुत सारी कविताओं को पढ़ते हुए ऐसा लगता है जैसे आपके चारों ओर की दीवारे कहीं गायब हो गई हों और आप किसी सुन्दर पर्वतीय जगह पर पहुँच गए हों। जहाँ दूर दूर तक पहाड़ ही पहाड़ हों और झरने बह रहे हों और आप बस वहीं रहना चाह रहे हों।
महाप्राण निराला जी ने भी पंत जी के बारे में कहा था कि उनकी सबसे बड़ी प्रतिभा यह है कि वे अपनी कृतियों को अधिक से अधिक सुन्दर बना देते हैं जिसे पढ़ कर या सुन कर बहुत आनंद आता है।

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पर्वत प्रदेश में पावस पाठ सार (Summary)

कवि ने इस कविता में प्रकृति का ऐसा वर्णन किया है कि लग रहा है कि प्रकृति सजीव हो उठी है। कवि कहता है कि वर्षा ऋतु में प्रकृति का रूप हर पल बदल  रहा है कभी वर्षा होती है तो कभी धूप निकल आती है। पर्वतों पर उगे हजारों फूल ऐसे लग रहे है जैसे पर्वतों की आँखे हो और वो इन आँखों के सहारे अपने आपको अपने चरणों ने फैले दर्पण रूपी तालाब में देख रहे हों। पर्वतो से गिरते हुए झरने कल कल की मधुर आवाज कर रहे हैं जो नस नस को प्रसन्नता से भर रहे हैं। पर्वतों पर उगे हुए पेड़ शांत आकाश को ऐसे देख रहे हैं जैसे वो उसे छूना चाह रहे हों।  बारिश के बाद मौसम ऐसा हो गया है कि घनी धुंध के कारण लग रहा है मानो पेड़ कही उड़ गए हों अर्थात गायब हो गए हों,चारों ओर धुँआ होने के कारण लग रहा है कि तालाब में आग लग गई है। ऐसा लग रहा है कि ऐसे मौसम में इंद्र भी अपना बादल रूपी विमान ले कर इधर उधर जादू का खेल दिखता हुआ घूम रहा है।

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पर्वत प्रदेश में पावस पाठ की व्याख्या

काव्यांश 1
पावस ऋतु थी ,पर्वत प्रवेश ,
पल पल परिवर्तित प्रकृति -वेश।

शब्दार्थ
पावस ऋतु
– वर्षा ऋतु
परिवर्तित – बदलना
प्रकृति -वेश — प्रकृति का रूप

प्रसंग -: प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श – भाग 2’ से लिया गया है। इसके कवि ‘सुमित्रानंदन पंत जी ‘हैं। इसमें कवि ने वर्षा ऋतु का सुंदर वर्णन किया है।

व्याख्या -: कवि कहता है कि पर्वतीय क्षेत्र में वर्षा ऋतु का प्रवेश हो गया है। जिसकी वजह से प्रकृति के रूप में बार बार बदलाव आ रहा है अर्थात कभी बारिश होती है तो कभी धूप निकल आती है।

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काव्यांश 2
मेखलाकार पर्वत अपार
अपने सहस्र दृग- सुमन फाड़,
अवलोक रहा है बार बार ,
नीचे जल ने निज महाकार ,
-जिसके चरणों में पला ताल
दर्पण सा फैला है विशाल !

शब्दार्थ
मेखलाकार
– करघनी के आकर की पहाड़ की ढाल
सहस्र – हज़ार
दृग -सुमन – पुष्प रूपी आँखे
अवलोक – देखना
महाकार – विशाल आकार
ताल – तालाब
दर्पण – आईना

प्रसंग -: प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श – भाग 2’ से लिया गया है। इसके कवि ‘सुमित्रानंदन पंत जी ‘हैं। इसमें कवि ने पर्वतों का सजीव चित्रण किया है।

व्याख्या -: इस पद्यांश में कवि ने पहाड़ों के आकार की तुलना करघनी अर्थात कमर में बांधने वाले आभूषण से की है । कवि कहता है कि करघनी के आकर वाले पहाड़ अपनी हजार पुष्प रूपी आंखें फाड़ कर नीचे जल में अपने विशाल आकार को देख रहे हैं।ऐसा लग रहा है कि पहाड़ ने जिस तालाब को अपने चरणों में पाला है वह तालाब पहाड़ के लिए विशाल आईने का काम कर रहा है।

काव्यांश 3
गिरि का गौरव गाकर झर- झर
मद में नस -नस उत्तेजित कर
मोती की लड़ियों- से सुन्दर
झरते हैं झाग भरे निर्झर !
गिरिवर के उर से उठ -उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
है झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष ,अटल कुछ चिंतापर।

शब्दार्थ
गिरि –
पहाड़
मद – मस्ती
झग – फेन
उर – हृदय
उच्चांकाक्षा – ऊँच्चा उठने की कामना
तरुवर –पेड़
नीरव नभ शांत – शांत आकाश
अनिमेष – एक टक

प्रसंग -: प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श – भाग 2’ से लिया गया है। इसके कवि ‘सुमित्रानंदन पंत जी ‘हैं। इसमें कवि ने झरनों की सुंदरता का वर्णन किया है।

व्याख्या -: इस पद्यांश में कवि कहता है कि मोतियों की लड़ियों के समान सुंदर झरने झर झर की आवाज करते हुए बह रहे हैं ,ऐसा लग रहा है की वे पहाड़ों का गुणगान कर रहे हों। उनकी करतल ध्वनि नस नस में उत्साह अथवा प्रसन्नता भर देती है।
पहाड़ों के हृदय से उठ-उठ कर अनेकों पेड़ ऊँच्चा उठने की इच्छा लिए एक टक दृष्टि से स्थिर हो कर शांत आकाश को इस तरह देख रहे हैं, मनो वो किसी चिंता में डूबे हुए हों। अर्थात वे हमें निरन्तर ऊँच्चा उठने की प्रेरणा दे रहे हैं।

काव्यांश 4
उड़ गया ,अचानक लो ,भूधर
फड़का अपार पारद *  के पर !
रव -शेष रह गए हैं निर्झर !
है टूट पड़ा भू पर अम्बर !
धँस गए धारा में सभय शाल !
उठ रहा धुआँ  ,जल गया ताल !
-यों जलद -यान में विचर -विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल।

शब्दार्थ
भूधर –
पहाड़
पारद *  के पर–  पारे के समान धवल एवं चमकीले पंख
रव -शेष – केवल आवाज का रह जाना
सभय – भय के साथ
शाल- एक वृक्ष का नाम
जलद -यान – बादल रूपी विमान
विचर- घूमना
इंद्रजाल – जादूगरी

प्रसंग :- प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श – भाग 2’ से लिया गया है। इसके कवि ‘सुमित्रानंदन पंत जी ‘हैं। इसमें कवि ने बारिश के कारण प्रकृति का बिल्कुल बदला हुआ रूप दर्शाया है।

व्याख्या :- इस पद्यांश में कवि कहता है कि तेज बारिश के बाद मौसम ऐसा हो गया है कि घनी धुंध के कारण लग रहा है मानो पेड़ कही उड़ गए हों अर्थात गायब हो गए हों। ऐसा लग रहा है कि पूरा आकाश ही धरती पर आ गया हो केवल झरने की आवाज़ ही सुनाई दे रही है। प्रकृति का ऐसा भयानक रूप देख कर शाल के पेड़ डर कर धरती के अंदर धंस गए हैं। चारों ओर धुँआ होने के कारण लग रहा है कि तालाब में आग लग गई है। ऐसा लग रहा है कि ऐसे मौसम में इंद्र भी अपना बादल रूपी विमान ले कर इधर उधर जादू का खेल दिखता हुआ घूम रहा है।

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Important Questions and Answers (NCERT SOLUTIONS)

पर्वत प्रदेश में पावस NCERT Solutions (महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर )

Parvat Pradesh Mein Pavas Important Question Answers

(क ) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए -:
प्रश्न 1-: पावस ऋतु में प्रकृति में कौन -कौन से परिवर्तन आते हैं ? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-:
वर्षा ऋतु में मौसम हर पल बदलता रहता है। कभी तेज़ बारिश आती है तो कभी मौसम साफ हो जाता है। पर्वत अपनी पुष्प रूपी आँखों से अपने चरणों में स्थित तालाब में अपने आप को देखता हुआ प्रतीत होता है। बादलों के धरती पर आ जाने के कारण ऐसा लग रहा है कि जैसे आसमान धरती पर आ गया हो और कोहरा धुएं की तरह लग रहा है जिसके कारण लग रहा है कि तालाब में आग लग गई हो।

प्रश्न  2-: ‘मेखलाकार ‘ शब्द का क्या अर्थ है ?कवि ने इस शब्द का प्रयोग यहाँ क्यों किया है?
उत्तर -:
‘मेखलाकार ‘ शब्द का अर्थ है – करघनी अर्थात कमर का आभूषण। कवि ने यहाँ इस शब्द का प्रयोग इसलिए किया है क्योंकि वर्षा ऋतु में पर्वतों की श्रृंखला करघनी की तरह टेडी मेडी लग रही है। अतः कवि ने पर्वतों की श्रृंखला की तुलना करघनी से की है।

प्रश्न 3-: ‘सहस्र दृग – सुमन ‘ से क्या तात्पर्य है ?कवि ने इस पद का प्रयोग किसके लिए किया होगा ?
उत्तर-: ‘
सहस्र दृग – सुमन ‘ से कवि का तात्पर्य पहाड़ों पर खिले हजारों फूलों से है। कवि को ये फूल पहाड़ ही आंखों के समान लग रहे हैं अतः कवि ने इस पद का प्रयोग किया है।

प्रश्न 4-: कवि ने तालाब की समानता किसके साथ दिखाई है और क्यों ?
उत्तर-:
कवि ने तालाब की समानता आईने के साथ दिखाई है क्योंकि तालाब पर्वत के लिए आईने का काम कर रहा है वह स्वच्छ और निर्मल दिखाई दे रहा है।

प्रश्न 5 -: पर्वत के ह्रदय से उठ कर ऊँचे ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर क्यों देख रहे थे और वे किस बात को प्रतिबिंबित करते हैं ?
उत्तर-:
पर्वत पर उगे ऊँचे ऊँचे वृक्ष चिंता में डूबे हुए लग रहें हैं जैसे वे शांत आकाश को छूना चाहते हों। ये वृक्ष मनुष्यों की सदा ऊपर उठने और आगे बढ़ने की और संकेत कर रहे हैं।

प्रश्न 6 -: शाल के वृक्ष भयभीत हो कर धरती में क्यों धस गए हैं ?
उत्तर-:
घनी धुंध के कारण लग रहा है मानो पेड़ कही उड़ गए हों अर्थात गायब हो गए हों। ऐसा लग रहा है कि पूरा आकाश ही धरती पर आ गया हो केवल झरने की आवाज़ ही सुनाई दे रही है। प्रकृति का ऐसा भयानक रूप देख कर शाल के पेड़ डर कर धरती के अंदर धंस गए हैं।

प्रश्न 7-: झरने किसके गौरव का गान कर रहे हैं ?बहते हुए झरने की तुलना किस से की गई है ?
उत्तर-:
झरने पर्वतों के गौरव का गान कर रहे हैं और बहते हुए झरनों की तुलना चमकदार मोतियों से की गई है।

(ख )निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए :-

1-: है टूट पड़ा भू पर अम्बर !
भाव-:
घनी धुंध के कारण लग रहा है मानो पूरा आकाश ही धरती पर आ गया हो केवल झरने की आवाज़ ही सुनाई दे रही है।

2-:-यों जलद -यान में विचर -विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल।
भाव-:
चारों और धुँआ होने के कारण लग रहा है कि इंद्र भी अपना बादल रूपी विमान ले कर इधर उधर जादू का खेल दिखता हुआ घूम रहा है।

3-: गिरिवर के उर से उठ -उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
है झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष ,अटल कुछ चिंतापर।
भाव-:
पहाड़ों के हृदय से उठ-उठ कर अनेकों पेड़ ऊँच्चा उठने की इच्छा लिए एक टक दृष्टि से स्थिर हो कर शांत आकाश को इस तरह देख रहे हैं मनो वो किसी चिंता में डूबे हुए हों। अर्थात वे हमें निरन्तर ऊँच्चा उठने की प्रेरणा दे रहे हैं। ये वृक्ष मनुष्यों की सदा ऊपर उठने और आगे बढ़ने की और संकेत कर रहे हैं।

Solutions for Extra Questions

1-: इस कविता में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किस प्रकार किया गया है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-:
इस कविता में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग जगह जगह किया गया है जिसके कारण प्राकृति सजीव प्रतीत हो रही है। जैसे – पहाड़ अपनी हजार पुष्प रूपी आंखें फाड़ कर नीचे जल में अपने विशाल आकार को देख रहे हैं। और पहाड़ों के हृदय से उठ-उठ कर अनेकों पेड़ ऊँच्चा उठने की इच्छा लिए एक टक दृष्टि से स्थिर हो कर शांत आकाश को इस तरह देख रहे हैं मनो वो किसी चिंता में डूबे हुए हों।

2-: आपकी दृष्टि में इस कविता का सौन्दर्य इसमें से किस पर निर्भर करता है ?
(क ) अनेक शब्दों की आवृति पर
(ख ) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर
(ग ) कविता की संगीतात्मकता पर
उत्तर-
(ख) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर
क्योंकि इस कविता में चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए प्रकृति का सुंदर और सजीव वर्णन किया गया है।

3-: कवि ने चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए पावस ऋतु का सजीव चित्र अंकित किया है ऐसे स्थलों को छाँट कर लिखिए।
उत्तर-:
1- अपने सहस्र दृग- सुमन फाड़,
अवलोक रहा है बार बार ,
2- गिरि का गौरव गाकर झर- झर
3- धँस गए धारा में सभय शाल !
4- गिरिवर के उर से उठ -उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
है झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष ,अटल कुछ चिंतापर।

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Solutions for Extra Questions (Important)

प्रश्न 1 – कवि ने “पर्वत प्रदेश में पावस” कविता में पहाड़ और तालाब की तुलना किससे की है?
उत्तर – कवि ने “पर्वत प्रदेश में पावस” कविता में पहाड़ों के आकार की तुलना करघनी अर्थात कमर में बांधने वाले आभूषण से की है । कवि कहता है कि करघनी के आकर वाले पहाड़ अपनी हजार पुष्प रूपी आंखें फाड़ कर नीचे जल में अपने विशाल आकार को देख रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि पहाड़ ने जिस तालाब को अपने चरणों में पाला है वह तालाब पहाड़ के लिए विशाल आईने का काम कर रहा है।

प्रश्न 2 – कवि ने “पर्वत प्रदेश में पावस” कविता में झरनों का वर्णन किस प्रकार किया है?
उत्तर – “पर्वत प्रदेश में पावस” कविता में झरनों का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि मोतियों की लड़ियों के समान सुंदर झरने झर झर की आवाज करते हुए बह रहे हैं ,ऐसा लग रहा है की वे पहाड़ों का गुणगान कर रहे हों। उनकी करतल ध्वनि नस नस में उत्साह अथवा प्रसन्नता भर देती है। 

प्रश्न 3 – “पर्वत प्रदेश में पावस” कविता में पेड़ हमें क्या प्रेरणा दे रहे हैं?
उत्तर – “पर्वत प्रदेश में पावस” कविता में पहाड़ों के हृदय से उठ-उठ कर अनेकों पेड़ ऊँचा उठने की इच्छा लिए एक टक दृष्टि से स्थिर हो कर शांत आकाश को इस तरह देख रहे हैं, मनो वो किसी चिंता में डूबे हुए हों। अर्थात वे हमें निरन्तर ऊँचा उठने की प्रेरणा दे रहे हैं।

प्रश्न 4 – कवि ने तालाब की समानता किसके साथ दिखाई है और क्यों?
उत्तर – तालाब में या किसी भी अन्य जल युक्त चीज में आस पास की चीजों का प्रतिबिंब दिखाई देता है, जैसे किसी दर्पण में दिखाई पड़ता है, इसलिए कवि ने तालाब की तुलना किसी विशाल दर्पण से की है क्योंकि तालाब में भी विशाल पर्वत का प्रतिबिम्ब दिखाई पड़ रहा है। 

प्रश्न 5 – ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में पहाड़ को कौन-सा मानवीय कार्य करते हुए दर्शाया गया है?
उत्तर – ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में पहाड़ अत्यंत ऊँचा और विशालकाय है। पहाड़ पर हज़ारों फूल खिले हुए हैं। करघनी के आकर वाला पहाड़ अपनी हजार पुष्प रूपी आंखें फाड़ कर नीचे जल से भरे तालाब में अपने विशाल आकार को देख रहा हैं। उसका यह कार्य किसी मनुष्य के कार्य के समान है।

प्रश्न 6 – पर्वत से गिरने वाले झरनों की विशेषता लिखिए।
उत्तर – पर्वतीय प्रदेश में वर्षा ऋतु में पर्वत के सीने पर झर-झर करते हुए झरने गिर रहे हैं। इन झरनों की ध्वनि सुनकर ऐसा लगता है, जैसे ये पर्वतों का गौरवगान कर रहे हों। इनकी करतल ध्वनि नस नस में उत्साह अथवा प्रसन्नता भर देती है। ये पर्वतीय झरने झागयुक्त हैं जिन्हें देखकर लगता है कि ये सफ़ेद मोतियों की लड़ियाँ पहने हुए हैं।

प्रश्न 7 – पर्वतों पर उगे पेड़ कवि को किस तरह दिख रहे हैं?
उत्तर – पर्वतों पर उगे पेड़ देखकर लगता है कि ये पेड़ पहाड़ के सीने पर उग आए हैं जो मनुष्य की ऊँची-ऊँची इच्छाओं की तरह हैं। ये पेड़ अत्यंत ध्यान से अपलक और अटल रहकर शांत आकाश की ओर निहार रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि शायद ये भी अपनी उच्चाकांक्षा को पूरा करने का उपाय खोजने के लिए चिंतनशील हैं और स्थिर हो कर उपाय खोज रहे हैं। 

प्रश्न 8 – तेज बारिश के बाद मौसम में क्या-क्या बदलाव आया है?
उत्तर – तेज बारिश के बाद मौसम ऐसा हो गया है कि घनी धुंध के कारण लग रहा है मानो पेड़ कही उड़ गए हों अर्थात गायब हो गए हों। ऐसा लग रहा है कि पूरा आकाश ही धरती पर आ गया हो केवल झरने की आवाज़ ही सुनाई दे रही है। प्रकृति का ऐसा भयानक रूप देख कर शाल के पेड़ डर कर धरती के अंदर धंस गए हैं। चारों ओर धुँआ होने के कारण लग रहा है कि तालाब में आग लग गई है। ऐसा लग रहा है कि ऐसे मौसम में इंद्र भी अपना बादल रूपी विमान ले कर इधर उधर जादू का खेल दिखाता हुआ घूम रहा है।

प्रश्न 9 – “पर्वत प्रदेश में पावस” कविता में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किस प्रकार किया गया है? स्पष्ट कीजिए |
उत्तर – “पर्वत प्रदेश में पावस”  कविता में कवि ने प्रकृति को मानव के सभी अंगों से परिपूर्ण माना है। कवि ने इस कविता में प्रकृति का ऐसा वर्णन किया है कि लग रहा है कि प्रकृति सजीव हो उठी है। उन्होंने पर्वत, बादल , झरने, तालाब, पेड़ आदि को मानवीय चेतना से पूर्ण माना है तथा उनकी तुलना मानव के गुणों से की है।
पर्वतों पर उगे हजारों फूल ऐसे लग रहे है जैसे पर्वतों की आँखे हो और वो इन आँखों के सहारे अपने आपको अपने चरणों ने फैले दर्पण रूपी तालाब में देख रहे हों। पर्वतो से गिरते हुए झरने कल कल की मधुर आवाज कर रहे हैं जो नस नस को प्रसन्नता से भर रहे हैं। पर्वतों पर उगे हुए पेड़ शांत आकाश को ऐसे देख रहे हैं जैसे वो उसे छूना चाह रहे हों। इस प्रकार कवि ने मानवीकरण अलंकार का प्रयोग सुन्दरता के साथ किया है। 

प्रश्न 10 – पर्वतीय प्रदेश में उड़ते बादलों को देखकर कवि ने क्या कल्पना की है?
उत्तर – पर्वतीय प्रदेश में उड़ते बादलों के कारण लग रहा है मानो पेड़ कही उड़ गए हों अर्थात गायब हो गए हों। ऐसा लग रहा है कि पूरा आकाश ही धरती पर आ गया हो केवल झरने की आवाज़ ही सुनाई दे रही है। प्रकृति का ऐसा भयानक रूप देख कर शाल के पेड़ डर कर धरती के अंदर धंस गए हैं। चारों ओर बादल होने के कारण लग रहा है कि तालाब में आग लग गई है। ऐसा लग रहा है कि ऐसे मौसम में इंद्र भी अपना बादल रूपी विमान ले कर इधर उधर जादू का खेल दिखाता हुआ घूम रहा है। कवि की यह कल्पना अत्यधिक मनोरम है।

प्रश्न 11 – पर्वतीय प्रदेश में कुछ पेड़ पहाड़ पर उगे हैं तो कुछ शाल के पेड़ पहाड़ के पास। इन दोनों स्थान के पेड़ों के सौंदर्य में अंतर कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए
उत्तर पर्वतों पर उगे पेड़ देखकर लगता है कि ये पेड़ पहाड़ के सीने पर उग आए हैं जो मनुष्य की ऊँची-ऊँची इच्छाओं की तरह हैं। ये पेड़ अत्यंत ध्यान से अपलक और अटल रहकर शांत आकाश की ओर निहार रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि शायद ये भी अपनी उच्चाकांक्षा को पूरा करने का उपाय खोजने के लिए चिंतनशील हैं और स्थिर हो कर उपाय खोज रहे हैं।
दूसरी ओर पर्वतीय प्रदेश में उड़ते बादलों के कारण लग रहा है मानो पेड़ कही उड़ गए हों अर्थात गायब हो गए हों। ऐसा लग रहा है कि पूरा आकाश ही धरती पर आ गया हो केवल झरने की आवाज़ ही सुनाई दे रही है। ऐसा लगता है कि अचानक होने वाली मूसलाधार वर्षा और धुंध से भयभीत होकर शाल के ये पेड़ धरती में धंस गए हों।

प्रश्न 12 – “पर्वत प्रदेश में पावस” कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर “पर्वत प्रदेश में पावस” कविता पर्वतीय सौंदर्य को व्यक्त करने वाली कविता है। प्रकृति का यह सौंदर्य वर्षा में और भी बढ़ जाता है। कवि ने इस कविता में प्रकृति का ऐसा वर्णन किया है कि लग रहा है कि प्रकृति सजीव हो उठी है। कवि वर्णन करता है कि वर्षा ऋतु में प्रकृति का रूप हर पल बदल  रहा है कभी वर्षा होती है तो कभी धूप निकल आती है।
पर्वतों पर उगे हजारों फूल ऐसे लग रहे है जैसे पर्वतों की आँखे हो और वो इन आँखों के सहारे अपने आपको अपने चरणों ने फैले दर्पण रूपी तालाब में देख रहे हों। पर्वतो से गिरते हुए झरने कल कल की मधुर आवाज कर रहे हैं जो नस नस को प्रसन्नता से भर रहे हैं। पर्वतों पर उगे हुए पेड़ शांत आकाश को ऐसे देख रहे हैं जैसे वो उसे छूना चाह रहे हों।  बारिश के बाद मौसम ऐसा हो गया है कि घनी धुंध के कारण लग रहा है मानो पेड़ कही उड़ गए हों अर्थात गायब हो गए हों,चारों ओर धुँआ होने के कारण लग रहा है कि तालाब में आग लग गई है। ऐसा लग रहा है कि ऐसे मौसम में इंद्र भी अपना बादल रूपी विमान ले कर इधर उधर जादू का खेल दिखता हुआ घूम रहा है।

प्रश्न 13 – पर्वत प्रदेश में पावस कविता में कवि ने उच्चाकांक्षा पर किस प्रकार व्यंग्य किया है ?
उत्तर – कवि ने उच्चाकांक्षा पर रखने वालों पर यह व्यंग्य किया है कि जो व्यक्ति अपने जीवन में ऊँचा उठने की इच्छा रखते हैं वे उसी तरह हमेशा चिंतित , मौन तथा अपने आप में खोये हुए से रहते हैं जैसे पर्वतीय क्षेत्र में पहाड़ों के हृदय से उठ-उठ कर अनेकों पेड़ ऊँच्चा उठने की इच्छा लिए एक टक दृष्टि से स्थिर हो कर शांत आकाश को देखते हुए से प्रतीत होते हैं। 

प्रश्न 14 – ” पर्वत प्रदेश में पावस ” कविता में कवि ने झरनों के सौंदर्य को किस प्रकार दर्शाया है ?
उत्तर – ” पर्वत प्रदेश में पावस ” कविता में कवि झरनों के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं कि जब पहाड़ों पर झरने बहते हैं तो उनके झागदार पानी को  देखकर ऐसा लगता है मनो उन्होंने मोतियों की लड़ियाँ पहन रखी हों , उनकी कल – कल की ध्वनि को सुन कर ऐसा लगता है जैसे वे पहाड़ों का गुणगान कर रहे हों। उनकी करतल ध्वनि नस – नस में उत्साह अथवा प्रसन्नता भर देती है। 

प्रश्न 15 – ” पर्वत प्रदेश में पावस ” कविता में धुंआँ कहाँ नजर आ रहा है ?
उत्तर – ” पर्वत प्रदेश में पावस ” कविता में कवि तेज बारिश के बाद मौसम में घनी धुंध के कारण धुँआ होने से लग रहा है कि तालाब में आग लग गई है और वह धुंध तालाब से उठते धुएँ के समान लग रही है। 

प्रश्न 16 – ” पर्वत प्रदेश में पावस ” कविता द्वारा किस अनुभव की प्राप्ति होती है?
उत्तर –  ” पर्वत प्रदेश में पावस ” कविता द्वारा प्राकृतिक सौंदर्य के अनुभव की प्राप्ति होती है। 

प्रश्न 17 – ” पर्वत प्रदेश में पावस ” कविता में पर्वत की महानता का गुणगान कौन कर रहे है ?
उत्तर – ” पर्वत प्रदेश में पावस ” कविता में झरनों की करतल ध्वनि मन को प्रसन्नता देने वाली कही गई हैं और उस करतल ध्वनि को सुन कर ऐसा लगता है जैसे वे पर्वत की महानता का गुणगान कर रहे हों। 

प्रश्न 18 – ” झर झर , नस नस , उठ उठ ” में कौन सा अलंकार है?
उत्तर – ” झर झर , नस नस , उठ उठ ” में  ‘ पुनरुक्ति ’ अलंकार है क्योंकि जहाँ एक ही शब्द की उत्पत्ति एक से अधिक बार हुई हो वहाँ ‘ पुनरुक्ति ’ अलंकार होता है।  

प्रश्न 19 – ” दर्पण सा फैला है विशाल ” पंक्ति में कौन सा अलंकार है?
उत्तर – ” दर्पण सा फैला है विशाल ” पंक्ति में  ‘ उपमा ’ अलंकार है क्योंकि जहाँ उपमेय की उपमान से तुलना की गयी हो तथा जहाँ सा , से , सी , जैसे , इत्यादि शब्दों का प्रयोग हो वहाँ ‘ उपमा ‘ अलंकार होता है। 

प्रश्न 20 – जादू का खेल कौन खेल रहा है ?
उत्तर – बारिश के मौसम के बाद चारों ओर फैली घनी धुंध के कारण ऐसा लग रहा है जैसे इस मौसम में इंद्र भी अपना बादल रूपी विमान ले कर इधर – उधर जादू का खेल दिखता हुआ घूम रहा है।

प्रश्न 21 – ऊँचे वृक्ष किस प्रकार आसमान की ओर देख रहे हैं ?
उत्तर – पहाड़ों के हृदय से उठ-उठ कर अनेकों पेड़ ऊँच्चा उठने की इच्छा लिए एक टक दृष्टि से स्थिर हो कर शांत आकाश को इस तरह देख रहे हैं, मनो वो किसी चिंता में डूबे हुए हों।

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