CBSE Class 10 Hindi Course B Chapter-wise Previous Years Questions (2019) with Solution
Class 10 Hindi (Course B) Question Paper (2019) – Solved Question papers from previous years are very important for preparing for the CBSE Board Exams. It works as a treasure trove. It helps to prepare for the exam precisely. One of key benefits of solving question papers from past board exams is their ability to help identify commonly asked questions. These papers are highly beneficial study resources for students preparing for the upcoming class 10th board examinations. Here we have compiled chapter-wise questions asked in all the sets of CBSE Class 10 Hindi (Course B) question paper (2019).
Sparsh Bhag 2 Book
Chapter 1 – Saakhi
प्रश्न 1 – कबीर की साखी के आधार पर लिखिए कि ईश्वर वस्तुत: कहाँ है। हम उसे क्यों नहीं देख पाते?
उत्तर – कवि कबीरदास जी के अनुसार संसार के लोग कस्तूरी हिरण की तरह हो गए है जिस तरह हिरण कस्तूरी प्राप्ति के लिए इधर उधर भटकता रहता है उसी तरह लोग भी ईश्वर प्राप्ति के लिए भटक रहे हैं। जिस प्रकार एक हिरण कस्तूरी की खुशबू को जंगल में ढूंढता फिरता है जबकि वह सुगंध उसी की नाभि में विद्यमान होती है परन्तु वह इस बात से बेखबर होता है, उसी प्रकार संसार के कण कण में ईश्वर विद्यमान है और मनुष्य इस बात से बेखबर ईश्वर को देवालयों और तीर्थों में ढूंढ़ता है। कबीर जी के अनुसार अगर ईश्वर को ढूंढना ही है तो अपने मन में ढूँढना चाहिए। ईश्वर कण कण में व्याप्त है ,पर हम अपने अज्ञान के कारण उसे नहीं देख पाते क्योंकि हम ईश्वर को अपने मन में खोजने के बजाये मंदिरों और तीर्थों में खोजते हैं।
प्रश्न 2 – अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है?
उत्तर – अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने निंदा करने वाले व्यक्तिओं को अपने आस पास रखने का उपाय सुझाया है। उनके अनुसार निंदा करने वाला व्यक्ति जब आपकी गलतियां निकालेगा तो आप उस गलती को सुधार कर अपना स्वभाव निर्मल बना सकते हैं।
प्रश्न 3 – कबीर ने ईश्वर के कण-कण में बसे होने की बात कैसे समझाई है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – कबीर जी मनुष्य को संसार के उस सत्य से परिचित कराना चाहते हैं जिससे मनुष्य आजीवन अनजान रहता है। मनुष्य ईश्वर को पाने के लिए देवालय, तीर्थ – स्थान, गुफा – कंदराओं जैसे दुर्गम स्थानों पर खोज करता रहता है, परन्तु वह ईश्वर को कहीं ढूँढ नहीं पाता, क्योंकि वह ईश्वर को अपने मन में नहीं खोजता, जहाँ ईश्वर का सच्चा वास है। इसीलिए कबीर जी ने कहा है ‘ऐसैं घटि घटि राँम है’ अर्थात ईश्वर तो घट – घट पर, हर प्राणी में यहाँ तक कि संसार के कण – कण में व्याप्त है।
कबीर जी हिरण का उदहारण दे कर समझाते हैं कि जिस प्रकार एक हिरण कस्तूरी की खुशबु को जंगल में ढूंढ़ता फिरता है, जबकि वह सुगंध उसी की नाभि में विद्यमान होती है परन्तु वह इस बात से बेखबर होता है, उसी प्रकार संसार के कण कण में ईश्वर विद्यमान है और मनुष्य इस बात से बेखबर ईश्वर को देवालयों और तीर्थों में ढूंढ़ता है। कबीर जी कहते है कि अगर ईश्वर को ढूंढ़ना ही है तो अपने मन में ढूंढो।
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Chapter 2 – Meera ke Pad
प्रश्न 1 – मीराबाई ने श्रीकृष्ण से अपनी पीड़ा हरने की प्रार्थना किस प्रकार की है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – कवयित्री मीरा ने अपने प्रभु श्रीकृष्ण से कहती हैं कि वे अपने भक्तों के सभी प्रकार के दुखों को हरने वाले हैं अर्थात दुखों का नाश करने वाले हैं। मीरा उदाहरण देते हुए कहती हैं कि जिस तरह उन्होंने द्रोपदी की इज्जत को बचाया और साड़ी के कपड़े को बढ़ाते चले गए, जिस तरह उन्होंने अपने भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए नरसिंह का शरीर धारण कर लिया और जिस तरह उन्होंने हाथियों के राजा भगवान इंद्र के वाहन ऐरावत हाथी को मगरमच्छ के चंगुल से बचाया था, उसी तरह अपनी इस दासी अर्थात भक्त के भी सारे दुःख हर लो अर्थात सभी दुखों का नाश कर दो। साथ ही साथ मीरा ने प्रभु से लोगों की पीड़ा दूर करने की प्रार्थना की है। उनके प्रभु श्रीकृष्ण ने द्रौपदी, प्रहलाद और गजराज की जिस तरह सहायता की थी और उन्हें विपदा से मुक्ति दिलाई उसी तरह मीरा अपनी पीड़ा दूर करने की प्रार्थना अपने प्रभु से करती है।
प्रश्न 2 – मीरा के पदों के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि वह भक्त की विपत्ति दूर करने के लिए किन प्रसंगों की याद कृष्ण को दिखाती है और उन्हें पाने के लिए क्या-क्या कार्य करने को तत्पर है?
उत्तर – कवयित्री मीरा अपने प्रभु श्रीकृष्ण से कहती हैं कि वे अपने भक्तों के सभी प्रकार के दुखों को हरने वाले हैं अर्थात दुखों का नाश करने वाले हैं। मीरा उदाहरण देते हुए कहती हैं कि जिस तरह उन्होंने द्रोपदी की इज्जत को बचाया और साड़ी के कपड़े को बढ़ाते चले गए, जिस तरह उन्होंने अपने भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए नरसिंह का शरीर धारण कर लिया और जिस तरह उन्होंने हाथियों के राजा भगवान इंद्र के वाहन ऐरावत हाथी को मगरमच्छ के चंगुल से बचाया था, उसी तरह अपनी इस दासी अर्थात भक्त के भी सारे दुःख हर लो अर्थात सभी दुखों का नाश कर दो। साथ ही साथ मीरा ने प्रभु से लोगों की पीड़ा दूर करने की प्रार्थना की है। मीरा श्री कृष्ण को पाने के लिए अनेक कार्य करने के लिए तैयार हैं – वे कृष्ण की सेविका बन कर रहने को तैयार हैं,वे उनके विचरण अर्थात घूमने के लिए बाग़ बगीचे लगाने के लिए तैयार हैं, ऊँचे ऊँचे महलों में खिड़कियां बनाना चाहती हैं ताकि श्री कृष्ण के दर्शन कर सके और यहाँ तक की आधी रात को जमुना नदी के किनारे कुसुम्बी रंग की साड़ी पहन कर दर्शन करने के लिए तैयार हैं।
प्रश्न 3 – श्रीकृष्ण को पाने के लिए मीराबाई क्या- क्या सेवाएँ स्वयं करने को प्रस्तुत है? ऐसी भक्ति को आप क्या नाम देंगे?
उत्तर – मीरा श्री कृष्ण को पाने के लिए अनेक कार्य करने के लिए तैयार हैं – वे कृष्ण की सेविका बन कर रहने को तैयार हैं,वे उनके विचरण अर्थात घूमने के लिए बाग़ बगीचे लगाने के लिए तैयार हैं , ऊँचे ऊँचे महलों में खिड़कियां बनाना चाहती हैं ताकि श्री कृष्ण के दर्शन कर सके और यहाँ तक की आधी रात को जमुना नदी के किनारे कुसुम्बी रंग की साड़ी पहन कर दर्शन करने के लिए तैयार हैं। मीरा कृष्ण की अनन्य भक्त थीं। उनकी भक्ति में दास्य भाव अधिक दिखाई देता है।
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Chapter 3 – Manushyata
प्रश्न 1 – कविता के आधार पर मनुष्यता के गुणों/लक्षणों की चर्चा विस्तारपूर्वक कीजिए।
उत्तर – मनुष्यता’ कविता के माध्यम से राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त मनुष्य मात्र के बंधुत्व को परिभाषित करते हुए, हमें मनुष्यता से आवृत गुणों के मार्ग पर चलने की सलाह देते हैं। उनके अनुसार, जीना मरना उसी का सार्थक है, जो दूसरों के लिए जीता मरता है। परोपकार, दयालुता और उदारता; ये तीन मानवीय गुण ऐसे हैं, जो मानव जीवन को सार्थक बनाने में सक्षम है। दूसरों का हित-चिंतन भी अपने और अपनों के हित-चिंतन की तरह महत्पूर्ण होना चाहिए। केवल अपने लिए जीना पशु-प्रवृति है, जबकि दूसरों के लिए जीना ही सच्चे अर्थों में मनुष्यता है।
प्रश्न 2 – ‘मनुष्यता’ कविता के आधार पर लिखिए कि पशु-प्रवृत्ति क्या है।
उत्तर – ‘मनुष्यता’ कविता के आधार पर स्पष्ट है कि पशु की यह प्रवृत्ति होती है कि वह आप ही आप चरता है, उसे दूसरों की चिंता नहीं होती व् पशु केवल अपने लिए ही जीता है। केवल अपनी सुख-सुविधाओं की चिंता करना मनुष्य को शोभा नहीं देता। अतः उसे इस पशु-प्रवृत्ति का अनुकरण नहीं करना चाहिए क्योंकि सच्चा मनुष्य तो वही कहलाता है जो परहित में आत्मबलिदान तक कर देता है।
प्रश्न 3 – उन मानवीय गुणों पर अपने विचार व्यक्त कीजिए जिनका उल्लेख कवि ने ‘मनुष्यता’ कविता में किया है।
उत्तर – राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने ‘मनुयषयता’ कविता के आधार पर हमें मानवीय गुणों पर चलने की सलाह दी है। कवि के अनुसार, जीना मरना उसी का सार्थक है, जो दूसरों के लिए जीता मरता है। परोपकार, दयालुता और उदारता; ये तीन मानवीय गुण ऐसे हैं, जो मानव जीवन को सार्थक बनाने में सक्षम है। केवल अपने लिए जीना पशु-प्रवृति है, जबकि दूसरों के लिए जीना ही सच्चे अर्थों में मनुष्यता है।
प्रश्न 4 – ‘मनुष्यता’ कविता में कवि ने क्या संदेश दिया है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – ‘मनुष्यता’ कविता के माध्यम से कवि यह सन्देश देना चाहता है कि परोपकार ही सच्ची मनुष्यता है। परोपकार ही एक ऐसा साधन है जिसके माध्यम से हम युगों तक लोगो के दिल में अपनी जगह बना सकते है और परोपकार के द्वारा ही समाज का कल्याण व समृद्धि संभव है। अतः हमें परोपकारी बनना चाहिए ताकि हम सही मायने में मनुष्य कहलाये।
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Chapter 4 – Parvat Pradesh Mein Pavas
प्रश्न 1 – पर्वतीय प्रदेश में वर्षा के सौन्दर्य का वर्णन ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ के आधार पर अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर – पर्वतीय प्रदेश में वर्षा के बाद मौसम ऐसा हो गया है कि घनी धुंध के कारण लग रहा है मानो पेड़ कही उड़ गए हों अर्थात गायब हो गए हों। ऐसा लग रहा है कि पूरा आकाश ही धरती पर आ गया हो केवल झरने की आवाज़ ही सुनाई दे रही है। प्रकृति का ऐसा भयानक रूप देख कर शाल के पेड़ डर कर धरती के अंदर धंस गए हैं। चारों ओर धुँआ होने के कारण लग रहा है कि तालाब में आग लग गई है। ऐसा लग रहा है कि ऐसे मौसम में इंद्र भी अपना बादल रूपी विमान ले कर इधर उधर जादू का खेल दिखाता हुआ घूम रहा है।
प्रश्न 2 – सुमित्रानंदन पंत ने ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में तालाब की तुलना किससे की है और क्यों?
उत्तर – सुमित्रानंदन पंत ने अपनी कविता “पर्वत प्रदेश में पावस” में एक तालाब और एक दर्पण के बीच समानता दिखाई है। तालाब का जल अत्यंत निर्मल एवं स्वच्छ होता है तथा पर्वत और उस पर उगने वाले सहसनो के पुष्पों का प्रतिबिम्ब स्पष्ट दिखाई देता है। दर्पण से तालाब की यह तुलना बड़ी सटीक है।
प्रश्न 3 – ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – सुमित्रानंदन पंत की कविता, “पर्वत प्रदेश में पावस”, में पर्वत प्रदेश, पर्वत श्रृंखला में स्थित एक हिल स्टेशन की कहानी है। जिसे लेखक ने अपनी आँखों से देखा है। वह इसका वर्णन इस तरह से करता है कि पाठक वहाँ होने की कल्पना कर सकता है, पहाड़ों को देख सकता है। बरसात के मौसम में आप पहाड़ी क्षेत्र में कई अलग-अलग नजारे देख सकते हैं। पर्वतों की तलहटी में निर्मल जल से भरी झील में पर्वतों की श्रंखला तथा उनकी हिमाच्छादित तथा कुछ मेघो से आच्छादित शिखर स्पष्ट दिखाई देते हैं। झील एक दर्पण की तरह दिखती है। झरनों के गिरने की आवाज खूबसूरत होती है और पानी की बूंदें मिलकर मोतियों की माला सी लगती हैं। पहाड़ों पर उगे ऊँचे-ऊँचे वृक्ष ऐसे लगते हैं जैसे कोई आकाश की ओर देख रहा हो और कोई चिंता के कारण झुक गया हो। बादल आए और पर्वत पर बरसने लगे। बारिश में आप केवल झरने की आवाज ही सुन सकते हैं। भारी वर्षा के कारण ऊँचे साल के वृक्ष दिखाई नहीं देते। चारों ओर धुएँ का साया है मानो तालाब से भाप उठ रही हो। पर्वतीय क्षेत्र में बदलते इन सभी दृश्यों को देखकर ऐसा लगता है कि यह कोई जादू की चाल है।
प्रश्न 4 – वर्षा ऋतु में प्रकृति का रूप किस प्रकार परिवर्तित होता है? ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – वर्षा ऋतु में मौसम हर पल बदलता रहता है। कभी तेज़ बारिश आती है तो कभी मौसम साफ हो जाता है। पर्वत अपनी पुष्प रूपी आँखों से अपने चरणों में स्थित तालाब में अपने आप को देखता हुआ प्रतीत होता है। बादलों के धरती पर आ जाने के कारण ऐसा लग रहा है कि जैसे आसमान धरती पर आ गया हो और कोहरा धुएं की तरह लग रहा है जिसके कारण लग रहा है कि तालाब में आग लग गई हो।
प्रश्न 5 – ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ के आधार पर प्रकृति के दो सबसे मनोरम दृश्यों का चित्रण अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर – ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में प्रकृति के कई मनोरम दृश्यों का चित्रण किया है। वर्षा ऋतु में प्रकृति के हर पल बदलते रूप का अद्भुत वर्णन किया है, कभी वर्षा होती है तो कभी धूप निकल आती है। पर्वतों पर उगे हजारों फूल ऐसे लग रहे है जैसे पर्वतों की आँखे हो और वो इन आँखों के सहारे अपने आपको अपने चरणों ने फैले दर्पण रूपी तालाब में देख रहे हों। पर्वतों से गिरते हुए झरने कल कल की मधुर आवाज कर रहे हैं जो नस नस को प्रसन्नता से भर रहे हैं। और बारिश के बाद के मौसम का भी सुंदर वर्णन किया है। जैसे घनी धुंध के कारण लग रहा है मानो पेड़ कहीं उड़ गए हों अर्थात गायब हो गए हों, चारों ओर धुँआ होने के कारण लग रहा है कि तालाब में आग लग गई है। ऐसा लग रहा है कि ऐसे मौसम में इंद्र भी अपना बादल रूपी विमान ले कर इधर उधर जादू का खेल दिखता हुआ घूम रहा है।
प्रश्न 6 – वर्षा ऋतु में पर्वतीय सौंदर्य पर एक अनुच्छेद सुमित्रानंदन पंत की कविता के आलोक में लिखिए।
उत्तर – बरसात के मौसम में यहां के पहाड़ हर पल नया रूप धारण कर लेते हैं। उन पर बहुत से फूल खिले हुए हैं, और पहाड़ के नीचे एक तालाब है जहाँ आप पहाड़ का प्रतिबिंब देख सकते हैं। पर्वत पर उगने वाले सहस्त्र पुष्प पर्वत के सहस्त्र नेत्रों के समान दिखते हैं और पर्वत पर उगने वाले शाल के वृक्ष आकाश की ओर देखकर चिन्तित और उदास प्रतीत होते हैं। प्रकृति पल भर में अपना रूप बदलती है और चारों ओर घने काले बादल छा जाते हैं। भारी बारिश से पहाड़ों, नदियों और यहां तक कि आकाश को भी देखना मुश्किल हो जाता है। हालांकि, झरने की आवाज अभी भी साफ सुनाई दे रही है। जब बारिश बहुत तेज होती है तो ऐसा लगता है जैसे आसमान फट गया हो और शाल के पेड़ (एक प्रकार का पेड़) जमीन में धंस गए हों। बादल तालाब से उठने वाले धुएँ का आभास करा सकते हैं। इससे ऐसा लगता है जैसे तालाब में आग लगी हो। हर पल दृश्य बदलता है और यह बताना मुश्किल है कि क्या हो रहा है। ऐसा लगता है कि भगवान इंद्र अपने जादू का उपयोग बादल में बैठने के लिए कर रहे हैं।
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Chapter 5 – TOP
प्रश्न 1 – ‘तोप’ को कब-कब चमकाया जाता है? ‘तोप’ कविता के आधार पर लिखिए।
उत्तर – कविता में जिन दो अवसरों पर तोप को चमकाने की बात कही गई है, वे दो अवसर हमारे राष्ट्रीय पर्व हैं अर्थात् 15 अगस्त को मनाया जाने वाला पर्व स्वतंत्रता दिवस और 26 जनवरी को मनाया जाने वाला पर्व गणतंत्र दिवस। ये दोनों तिथियाँ हमारे देश के लिए ऐतिहासिक दिवस की प्रतीक हैं। इन्हें हम राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाते हैं। इन दिनों पर पूरा राष्ट्र देश की आजादी को याद करता है। इन्हीं दोनों तिथियों पर इस तोप को भी चमकाया जाता है क्योंकि यह तोप हमारे विजेता और आज़ादी की प्रतीक होने के कारण एक राष्ट्रीय महत्त्व की वस्तु बन चुकी है। इसलिए राष्ट्रीय महत्त्व को ध्यान में रखते हुए इस तोप को चमकाया जाता है ताकि लोगों के मन में राष्ट्रीयता की भावना को बढ़ावा मिले और लोगों को स्वतंत्रता दिलाने वाले वीरों की याद दिलाई जा सके।
प्रश्न 2 – कविता की पृष्ठभूमि में ‘तोप’ की अतीत में भूमिका और उसकी वर्तमान स्थिति का वर्णन कीजिए। कवि को क्यों कहना पड़ा-
“कितनी ही कड़ी हो तोप
एक दिन तो होना ही है उसका मुख बंद।”
उत्तर – ‘तोप’ कविता के आधार पर तोप को भूतकाल में बहुत ताकतवर बताया गया है। जिसने अच्छे अच्छे वीरों के चिथड़े उड़ा दिए थे। अर्थात उस समय तोप का डर हर इंसान को था। परन्तु वर्तमान में तोप की स्थिति बहुत बुरी है। छोटे बच्चे इस पर बैठ कर घुड़सवारी का खेल खेलते हैं। जब बच्चे इस पर नहीं खेल रहे होते तब चिड़ियाँ इस पर बैठ कर आपस में बातचीत करने लग जाती हैं। कभी-कभी शरारती चिड़िया खासकर गौरैयें तोप के अंदर घुस जाती हैं। उस छोटी सी चिड़िया के द्वारा कवि सन्देश देना चाहते हैं कि कोई कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो एक ना एक दिन उसका भी अंत निश्चित होता है। किसी भी बुराई को हिम्मत और होंसलों के सहारे खत्म किया जा सकता है।
प्रश्न 3 – ‘तोप’ कविता का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – “तोप” कविता इस विचार के बारे में है कि आप कितने भी मजबूत और शक्तिशाली क्यों न हों, एक दिन आपको उत्पीड़कों द्वारा उखाड़ फेंका जाएगा। आपको कभी अहंकार नहीं करना चाहिए, क्योंकि आप उन लोगों के वंशज हैं, जिन्होंने आपसे पहले बलिदान दिया है। आपको उन चीजों के लिए आभारी होना चाहिए जो आपके पूर्वजों ने आपको दी हैं और उनके द्वारा दिए गए बलिदानों का सम्मान करना चाहिए।
प्रश्न 4 – कम्पनी बाग में ‘तोप’ क्यों रखी गई है?
उत्तर – कंपनी बाग़ में तोप इसलिए रखी गई है ताकि वह हमें अंग्रेजों के अत्याचारों और हमारे शहीदों की याद दिलाती है और सावधान रहने की सलाह देती है ताकि कोई दोबारा हम पर राज ना करे। इसी के साथ तोप यह सीख भी देती है कि चाहे कोई कितना भी अधिक शक्तिशाली क्यों न हो एक ना एक दिन उसका अंत हो ही जाता है।
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Chapter 6 – Kar Chale Hum Fida
प्रश्न 1 – कविता के आलोक में सैनिक के जीवन की चुनौतियों का उल्लेख करते हुए भाव स्पष्ट कीजिए –
‘राम भी तुम, तुम है लक्ष्मण साथियों’।
उत्तर – कविता के आलोक में सैनिक के जीवन की चुनौतियों का उल्लेख करते हुए, युद्ध में अपने प्राणों का बलिदान करने से भी पीछे न हटने वाले सैनिकों के भावों को व्यक्त किया गया है। युद्ध में चाहे कितने भी संकट आएँ, मौत सामने आ जाए फिर भी सैनिक पीछे नहीं हटता। सैनिक देश की मर्यादा और सीमाओं के विरुद्ध उठने वाले दुश्मन के हर वार का मुँहतोड़ जवाब देता है। इस पंक्ति में कवि सैनिक के द्वारा हमें सम्बोधित करते हुए कह रहा है, हे साथियो! शत्रु देश का कोई भी सैनिक हमारी मातृभूमि में प्रवेश करके हमारी सीता रूपी भारतमाता को अपमानित न कर सके। तुम ही राम हो, तुम ही लक्ष्मण हो। अब यह देश तुम्हारे हवाले है इसकी रक्षा करना तुम्हारा कर्तव्य है।
प्रश्न 2 – ‘कर चले हम फिदा…’ कविता का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – प्रस्तुत कविता में देश के सैनिकों की भावनाओं का वर्णन है। सैनिक कभी भी देश के मानसम्मान को बचाने से पीछे नहीं हटेगा। फिर चाहे उसे अपनी जान से ही हाथ क्यों ना गवाना पड़े। सैनिक चाहता है की उसके बलिदान के बाद देश की रक्षा के लिए सैनिकों की कमी नहीं होनी चाहिए। दुश्मन कभी भी उसके द्वारा खींची गई खून की लक्ष्मण रेखा पार ना कर पाए इस उम्मीद से वो देश की रक्षा का भार देशवासियों पर छोड़ कर जा रहा है। सैनिक कहता है कि देश पर जान न्योछावर करने के मौके बहुत कम आते हैं। ये क्रम टूटना नहीं चाहिए।
प्रश्न 3 – ‘कर चले हम फ़िदा’ कविता के आधार पर प्रतिपादित कीजिए कि बलिदानी वीर भारतीय युवकों से क्या अपेक्षा करते हैं और क्यों?
उत्तर – ‘कर चले हम फिदा’ गीत में कवि देशवासियों से अपेक्षाएँ रखता है कि वे देश के सैनिकों की भावनाओं की कद्र करें। जिस तरह से दुल्हन को लाल जोड़े में सजाया जाता है, उसी तरह सैनिकों ने भी अपने प्राणों का बलिदान दे कर धरती को खून से लाल कर दुल्हन की तरह सजाया है। जिस प्रकार सैनिक देश के लिए बलिदान दे रहे हैं। हमारा भी कर्तव्य बनता है कि उनके बाद भी ये सिलसिला चलते रहना चाहिए। जब भी जरुरत हो तो इसी तरह देश की रक्षा के लिए एकजुट होकर आगे आना चाहिए। सैनिक अपने देश की धरती को सीता के आँचल की तरह मानते हैं और अगर कोई हाथ आँचल को छूने के लिए आगे बड़े तो उसे तोड़ दोते हैं। हमें भी अपने वतन की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए। हमें लगता है कि हम कवि की अपेक्षाओं पर खरा उतर रहे हैं क्योंकि जब भी देश पर दुश्मनों ने बुरी नजर डाली या हम पर हमला किया है, तो हमने उनका डट कर सामना किया है और दुश्मनों को मुहतोड़ जवाब दिया है।
प्रश्न 4 – ‘कर चले हम फ़िदा’ की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि समझाते हुए लिखिए कि यह गीत आज भी लोकप्रिय क्यों है।
उत्तर – “कर चले हम फ़िदा” गीत सन 1962 के भारत – चीन युद्ध की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर लिखा गया है। चीन ने तिब्बत की ओर से युद्ध किया और भारतीय वीरों ने इसका बहदुरी से सामना किया। जब चीन ने अरुणाचल प्रदेश में भारतीय सीमा पर हमला किया, तो कई भारतीय सैनिकों ने लड़ते-लड़ते अपना बलिदान दिया था। इसी युद्ध को आधार बनाकर चेतन आनंद ने ‘हकीकत’ फिल्म बनाई थी। इस फिल्म में युद्ध की घटनाओं को बहुत ही मार्मिक ढंग से दर्शाया गया है। इस फिल्म के लिए मशहूर शायर कैफी आजमी ने “कर चले हम फिदा” नाम का गाना लिखा था। इस गीत के आज भी लोकप्रिय होने के कारणों में से महत्वपूर्ण कारण यह है कि यह गीत बहुत ही देशभक्तिपूर्ण है और भारत के लोगों की अपने देश के प्रति भावनाओं और चीन के खिलाफ उनकी लड़ाई को व्यक्त करता है।
प्रश्न 5 – ‘कर चले हम फ़िदा’ कविता में दुलहन किसे कहा गया है?
उत्तर – “कर चले हम फ़िदा” कविता में कवि धरती को दुल्हन के रूप में संदर्भित करता है क्योंकि अपने देश के लिए लड़ने वाले शहीदों के खून ने धरती को लाल कर दिया। यह एक नवविवाहित जोड़े की खासियत है। जवानों ने अपना खून देकर धरती को दुल्हन की तरह श्रृंगार किया है। “आज धरती बनी है दुल्हन, साथियो” इस पंक्ति से कवि धरती के बारे में कहना चाहता है कि आज धरा वीरों के लहू का वेश धारण कर दुल्हन बन गई है। अब यह बहादुर सैनिकों का कर्तव्य है कि वे उसके सम्मान की रक्षा करें और उसे दुश्मनों से सुरक्षित रखें।
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Chapter 7 – Atamtran
प्रश्न 1 – कवि किन दिनों में प्रभु की याद बनाए रखना चाहता है? ‘आत्मत्राण’ कविता के आधार पर लिखिए।
उत्तर – मनुष्य सुख के दिनों में ईश्वर को भूल जाता है। कवि मनुष्य के इसी स्वभाव का वर्णन करते हुए कहा है कि दुख के दिनों में तो सभी ईश्वर को याद करते हैं। किंतु सुख आने पर कोई नहीं। कवि प्रार्थना करता है कि कैसी भी विपदा आ जाए या कैसी भी संकटपूर्ण स्थिति हो, उसका शक्ति व पुरुषार्थ न डगमगाए। उसका आत्मविश्वास और बल पौरुष सदा बना रहे। ताकि वह कठिन परिस्थितियों का सामना डटकर कर सके।
प्रश्न 2 – ‘आत्मत्राण’ कविता में कवि सहायक के न मिलने पर क्या प्रार्थना करता है?
उत्तर – सहायक न मिलने पर कवि प्रार्थना करता है कि यदि विपत्ति के समय उसे कोई सहायक न मिले तो भी उसका पौरुष बल न डगमगाए। उसका अपना बल और पौरुष ही उसका सहायक बन जाए। उसमें संघर्ष करने की शक्ति होनी चाहिए।
प्रश्न 3 – ‘आत्मत्राण’ कविता का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – ‘आत्मत्राण’ कविता में कवि मनुष्य को भगवान के प्रति विश्वास बनाए रखने को कहते हैं। चाहे कितनी भी कठिन परिस्थितियां क्यों न हों, कितना भी कठिन समय क्यों ना हो, जीवन में लाख विपदाएं आए परंतु हमें भगवान के प्रति अपना विश्वास नहीं खोना चाहिए और सदैव भगवान के प्रति अपनी आस्था मजबूत रखनी चाहिए। कभी-कभी हमारे साथ कुछ बुरा हो जाता है और हमारा ईश्वर से विश्वास उठ जाता है। लेकिन यह भगवान की गलती नहीं है। यह हमारे दुख की स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। जो हो रहा है उसके लिए हमें भगवान को दोष नहीं देना चाहिए। भगवान हमें छोटी-छोटी चुनौतियाँ और दुःख देकर हमारे धैर्य और विश्वास की परीक्षा लेता है। यदि हम ईश्वर में विश्वास रखते हैं, तो ईश्वर इन चुनौतियों और दुखों में हमारी सहायता करेंगे। ईश्वर हमें इन कठिनाइयों से पार पाने की शक्ति देता है। हमारा विश्वास हमारे मन की आस्था ही हमारा भगवान है। यदि हमारा विश्वास मजबूत रहेगा तो हम असंभव कार्य को भी संभव बना सकते हैं। कवि का आशय यह है कि भगवान पर सदैव विश्वास बनाए रखना ही मनुष्य का धर्म है।
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Chapter 8 – Bade Bhai Sahab
प्रश्न 1 – बड़े भाईसाहब को अपने मन की इच्छाएँ क्यों दबानी पड़ती थीं?
उत्तर – बड़े भाई साहब और छोटे भाई की उम्र में पांच साल का अंतर था। वे माता पिता से दूर हॉस्टल में रहते थे। बड़े भाई साहब का भी मन खेलने,पतंग उड़ाने और तमाशे देखने का करता था परन्तु वे सोचते थे की अगर वो बड़े होकर मनमानी करेंगे तो छोटे भाई को गलत रास्ते पर जाने से कैसे रोकेंगे। बड़े भाई साहब छोटे भाई का ध्यान रखना अपना कर्तव्य मानते थे इसीलिए उन्हें अपनी इच्छाएँ दबानी पड़ती थी।
प्रश्न 2 – बड़े भाई साहब के व्यक्तित्व की विशेषताओं पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
उत्तर – बड़े भाई साहब अनुशासन प्रिय थे। वह अपने छोटे भाई को भी तरह-तरह के आदर्श उदाहरण देकर अनुशासन अपनाने के लिए सलाह देते रहते थे।
बड़े भाई साहब का स्वभाव भी गंभीर और सयंमी प्रवृत्ति का था।
बड़े बड़े भाई साहब यूं तो परिश्रमी थे, लेकिन अपनी कक्षा में तीन बार बाद फेल हो गए थे। फिर भी उन्होंने पढ़ाई से नाता नहीं तोड़ा।
बड़े भाई साहब बोलने में बड़े कुशल थे और वह अपने छोटे भाई को तरह-तरह के उदाहरण देकर अक्सर उपदेश देते रहते थे ताकि उनका छोटा भाई अपने रास्ते से नहीं भटके और पढ़ाई पर ध्यान दे।
बड़े भाई साहब के लिए अपने से बड़ों के प्रति सम्मान का भाव था।
बड़े भाई साहब फिजूलखर्ची पसंद नहीं थी। जब उनका छोटा भाई किसी तरह की फिजूलखर्ची करता अथवा पढ़ाई से ध्यान हटाकर खेलकूद में अपना ध्यान लगाता तो वह उसे डांटते रहते थे।
बड़े भाई साहब अपने छोटे भाई से 5 साल उम्र में बड़े थे। इसीलिए वे अपने को ज्यादा अनुभवी समझ कर अपने अनुभव का ज्ञान अपने छोटे भाई को देते रहते थे।
प्रश्न 3 – “बड़े भाई साहब की डाँट-फटकार यदि न मिलती तो छोटा भाई कक्षा में प्रथम नहीं आता।” उक्त कथन के पक्ष अथवा विपक्ष में अपने विचार उपयुक्त तर्क सहित लिखिए।
उत्तर – बड़े भाई साहब को अपनी जिम्मेदारिओं का आभास था । वे जानते थे कि अगर वह अनुशासन हीनता करेंगे तो छोटे भाई को गलत रास्ते पर जाने से नहीं रोक पाएंगे। छोटा भाई जब भी खेल कूद में ज्यादा समय लगाता तो बड़े भाई साहब उसे डाँट लगाते और पढ़ाई में ध्यान लगाने को कहते। यह बड़े भाई का ही डर था कि छोटा भाई थोड़ा बहुत पढ़ लेता था। अगर बड़े भाई साहब छोटे भाई को डाँट फटकार नहीं लगते तो छोटा भाई कभी कक्षा में अव्वल नहीं आता।
प्रश्न 4 – बड़े भाईसाहब ने ज़िन्दगी के अनुभव और किताबी ज्ञान में से किसे महत्त्वपूर्ण कहा और क्यों?
उत्तर – बड़े भाई साहब ने जिंदगी के अनुभव और किताबी ज्ञान में से जिंदगी के अनुभव को महत्पूर्ण कहा है। उन्होंने पाठ में कई उदाहरणों से ये स्पष्ट किया है। अम्मा और दादा का उदाहरण और हेडमास्टर का उदाहरण दे कर बड़े भाई साहब कहते है कि चाहे कितनी भी बड़ी डिग्री क्यों न हो जिंदगी के अनुभव के आगे बेकार है। जिंदगी की कठिन परिस्थितियों का सामना अनुभव के आधार पर सरलता से किया जा सकता है।
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Chapter 9 – Diary Ka Ek Panna
प्रश्न 1 – मैदान में सभा न होने देने के लिए पुलिस बंदोबस्त का विवरण देते हुए सुभाष बाबू के जुलूस और उनके साथ पुलिस का व्यवहार चर्चा कीजिए |
उत्तर – अंग्रेज़ प्रशासन द्वारा सभा ना करने के कानून को भंग करने की बात कही है। ये कानून वास्तव में भारत वासियों की स्वतंत्रता को कुचलने वाला कानून था अतः इस कानून का उलंघन करना सही था। उस समय हर देशवासी स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ त्यागने के लिए तैयार था और अंग्रेज़ी हुकूमत ने सभा करने, झंडा फहराने और जुलूस में शामिल होने को गैरकानूनी घोषित कर दिया था। अंग्रेज़ी प्रशासन नहीं चाहता था कि लोगो में आज़ादी की भावना आये परन्तु अब हर देशवासी स्वतन्त्र होना चाहता था। उस समय कानून का उलंघन करना सही था। जब सुभाष बाबू को गिरफ्तार करके पुलिस ले गई तो स्त्रियाँ जुलूस बना कर जेल की ओर चल पड़ी। उनके साथ बहुत बड़ी भीड़ भी इकठ्ठी हो गई। परन्तु पुलिस की लाठियों ने कुछ को घायल कर दिया, कुछ को पुलिस गिरफ्तार करके ले गई और बची हुई स्त्रियाँ वहीँ धर्मतल्ले के मोड़ पर बैठ गई। भीड़ ज्यादा थी तो आदमी भी ज्यादा जख्मी हुए। कुछ के सर फ़टे थे और खून बह रहा था।
प्रश्न 2 – 26 जनवरी, 1931 में कोलकाता में हुए घटनाक्रम की उन बातों का वर्णन कीजिए जिनके कारण लेखक ने डायरी में लिखा, “आज जो बात थी वह निराली थी।”
उत्तर – 26 जनवरी, 1931 का दिन निराला इसलिए था क्योंकि 26 जनवरी, 1930 के ही दिन पहली बार सारे हिंदुस्तान में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था और इस साल (26 जनवरी, 1931) भी फिर से वही दोहराया जाना था। सभी मकानों पर हमारा राष्ट्रीय झंडा फहरा रहा था और बहुत से मकान तो इस तरह सजाए गए थे जैसे हमें स्वतंत्रता मिल गई हो। स्मारक के निचे जहाँ शाम को सभा होने वाली थी, उस जगह को तो सुबह के छः बजे से ही पुलिस ने बड़ी संख्या में आकर घेर कर रखा था, इतना सब कुछ होने के बावजूद भी कई जगह पर तो सुबह ही लोगों ने झंडे फहरा दिए थे। स्त्रियाँ अपनी तैयारियों में लगी हुई थी। अलग अलग जगहों से स्त्रियाँ अपना जुलूस निकालने और सही जगह पर पहुँचने की कोशिश में लगी हुई थी।
प्रश्न 3 – कलकत्तावासियों के लिए 26 जनवरी, 1931 का दिन क्यों महत्त्वपूर्ण था?
उत्तर – 26 जनवरी 1931 के दिन को अमर बनाने के लिए काफ़ी तैयारियाँ की गयी थीं। केवल प्रचार पर ही दो हज़ार रूपए खर्च किये गए थे। कार्यकर्ताओं को उनका कार्य घर – घर जा कर समझाया गया था। कलकत्ता शहर में जगह – जगह झंडे लगाए गए थे। कई स्थानों पर जुलूस निकाले जा रहे थे और झंडा फहराया जा रहा था। टोलियाँ बना कर लोगो की भीड़ उस स्मारक के नीचे इकठ्ठी होने लगी थी, जहाँ सुभाष बाबू झंडा फहराने वाले थे और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ने वाले थे।
प्रश्न 4 – सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री समाज की क्या भूमिका थी? ‘डायरी का एक पन्ना’ पाठ के आधार पर सोदाहरण लिखिए।
उत्तर – सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री समाज की बहुत महत्पूर्ण भूमिका थी। स्त्रियों ने बहुत तैयारियां की थी। अलग अलग जगहों से स्त्रियाँ अपना जुलूस निकालने और सही जगह पर पहुँचाने की कोशिश में लगी हुई थी। स्मारक के निचे सीढ़ियों पर स्त्रियां झंडा फहरा रही थी और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ रही थी। स्त्रियाँ बहुत अधिक संख्या में आई हुई थी। सुभाष बाबू की गिरफ़्तारी के कुछ देर बाद ही स्त्रियाँ वहाँ से जन समूह बना कर आगे बढ़ने लगी।। धर्मतल्ले के मोड़ पर आते – आते जुलूस टूट गया और लगभग 50 से 60 स्त्रियाँ वहीँ मोड़ पर बैठ गई। उन स्त्रियों को लालबाज़ार ले जाया गया। मदालसा जो जानकीदेवी और जमना लाल बजाज की पुत्री थी, उसे भी गिरफ़्तार किया गया था। उससे बाद में मालूम हुआ की उसको थाने में भी मारा गया था। सब मिलकर 105 स्त्रियों को गिरफ्तार किया गया था।
प्रश्न 5 – ‘डायरी का एक पन्ना’ के आधार पर 26 जनवरी 1931 को कोलकाता में घटी उन विशिष्ट घटनाओं का उल्लेख कीजिए जिनसे यह दिन अविस्मरणीय हो गया।
उत्तर – कलकत्ते के लगभग सभी भागों में झंडे लगाए गए थे। जिस भी रास्तों पर मनुष्यों का आना – जाना था, वहीं जोश, ख़ुशी और नया पन महसूस होता था। बड़े – बड़े पार्कों और मैदानों को सवेरे से ही पुलिस ने घेर रखा था क्योंकि वही पर सभाएँ और समारोह होना था। स्मारक के निचे जहाँ शाम को सभा होने वाली थी उस जगह को तो सुबह के छः बजे से ही पुलिस ने बड़ी संख्या में आकर घेर कर रखा था, इतना सब कुछ होने के बाबजूद भी कई जगह पर तो सुबह ही लोगों ने झंडे फहरा दिए थे। जब से स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए कानून तोड़ने का सिलसिला शुरू हुआ था तब से आज तक इतनी बड़ी सभा ऐसे खुले मैदान में कभी नहीं हुई थी और ये सभा तो कह सकते हैं की सबके लिए ओपन लड़ाई थी।। पुलिस कमिश्नर ने नोटिस निकल दिया था कि अमुक -अमुक धारा के अनुसार कोई भी, कही भी, किसी भी तरह की सभा नहीं कर सकते हैं।लोगो की भीड़ इतनी अधिक थी कि पुलिस ने उनको रोकने के लिए लाठियां चलाना शुरू कर दिया। आदमियों के सर फट गए। पुलिस कई आदमियों को पकड़ कर ले गई।अलग अलग जगहों से स्त्रियाँ अपना जुलूस निकालने और सही जगह पर पहुँचाने की कोशिश में लगी हुई थी। इतना सब कुछ होने पर भी लोगो के सहस और जोश में कमी नहीं आई। 26 जनवरी 1931 को कोलकाता में इस तरह की कई विशिष्ट घटनाएँ घटी जिनसे यह दिन अविस्मरणीय हो गया।
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Chapter 10 – Tantara-Vamiro Katha
प्रश्न 1 – तताँरा-वामीरो की त्यागभरी मृत्यु से निकोबार में क्या परिवर्तन आया?
उत्तर – निकोबार निवासीयों ने तताँरा – वामीरो की त्यागमयी मृत्यु के बाद अपनी परम्परा को बदला और दूसरे गाँव में भी विवाह सम्बन्ध बनने लगे। तताँरा – वामीरो की जो एक -दूसरे के लिए त्यागमयी मृत्यु थी वह शायद इसी सुखद बदलाव के लिए थी।
प्रश्न 2 – रूढ़ियाँ जब बंधन बनने लगें तो उनका टूट जाना क्यों अच्छा है? कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि रूढ़ियाँ तोड़ने के लिए तताँरा-वामीरो को क्या त्याग करना पड़ा।
उत्तर – रूढ़ियाँ और बंधन समाज को अनुशासित करने के लिए बने होते हैं, परन्तु जब इन्हीं के कारण मनुष्यों की भावनाओं को ठेस पहुँचने लगे और ये सब बोझ लगने लगे तो उनका टूट जाना ही अच्छा होता है। तताँरा – वामीरो की कहानी में हमनें जाना कि रूढ़ियों के कारण इनका प्रेम -विवाह नहीं हो सकता था, जिसके कारण दोनों को जान गवानी पड़ी। जहाँ रूढ़ियाँ किसी का भला करने की जगह नुकसान करे और जहाँ रूढ़ियाँ आडंबर लगने लगे वहाँ इनका टूट जाना ही बेहतर होता है। तताँरा-वामीरो एक दूसरे से प्रेम करते थे तताँरा के गाँव के आयोजन में वामीरो की तलाश थी तभी वामीरो दिखाई दी तब तक तताँरा को देखकर वह रो पड़ी। तताँरा जब तक कुछ समझ पाता, वामीरो की माँ वहाँ पहुँच गई और क्रोधित हो उठी। उसने तताँरा को अपमानित किया। तताँरा यह सहन न कर पाया उसने क्रोध में अपनी तलवार से जमीन को दो भागों में बाँट दिया और स्वयं सागर की लहरों में विलीन हो गया। तताँरा -वामीरो को जीवन का त्याग करना पड़ा। इस प्रकार दोनों को प्रेम व प्राणों का बलिदान करना पड़ा।
प्रश्न 3 – निकोबार के लोग तताँरा को क्यों पसंद करते थे?
उत्तर – तताँरा एक भला और सबकी मदद करने वाला व्यक्ति था। वह हमेशा ही दूसरों की सहायता के लिए तैयार रहता था। जब भी कोई मुसीबत में होता तो हर कोई उसी को याद करता था और वह भी भागा -भागा वहाँ उनकी मदद करने के लिए पहुँच जाता था।उसका व्यक्तित्व तो आकर्षक था ही उसके साथ ही साथ लोगों का उसके करीब रहने का एक सबसे बड़ा कारण था उसका सबको अपना मानने का स्वभाव।
प्रश्न 4 – तताँरा-वामीरो कथा के दो उद्देश्य स्पष्ट कीजिए। क्या लेखक उन्हें ठीक से प्रस्तुत कर सका है? लिखिए।
उत्तर – तताँरा वामीरो कथा के माध्यम से लेखक, कथा के उद्देश्यों को सफलता से प्रस्तुत कर पाया है। जैसे – प्रेम को किसी बंधन, सीमा अथवा रीति-रिवाज में नहीं बाँधा जा सकता। यदि कोई जाति, धर्म, क्षेत्र, प्रदेश आदि प्रेम की पवित्र भावना पर पहरे लगाएगा और उसे पनपने का अवसर नहीं देगा, तो इसका परिणाम सुखद नहीं होगा। समाज में जातीय, धार्मिक पर सामाजिक भेद में और अधिक वृद्धि होगी, जिससे अंततः मानवता को ही नुक्सान पहुंचेगा। अतः हमें सभी प्रकार के भेदभावों को मिटाकर सभी को अपनाना चाहिए।
रूढ़ियाँ और बंधन समाज को अनुशासित करने के लिए बने होते हैं, परन्तु जब इन्हीं के कारण मनुष्यों की भावनाओं को ठेस पहुँचने लगे और ये सब बोझ लगने लगे तो उनका टूट जाना ही अच्छा होता है। तताँरा – वामीरो की कहानी में हमनें जाना कि रूढ़ियों के कारण इनका प्रेम -विवाह नहीं हो सकता था, जिसके कारण दोनों को जान गवानी पड़ी। जहाँ रूढ़ियाँ किसी का भला करने की जगह नुकसान करे और जहाँ रूढ़ियाँ आडंबर लगने लगे वहाँ इनका टूट जाना ही बेहतर होता है।
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Chapter 12 – Ab Kaha Dusre Ke Dukh Se Dukhi Hone Wale
प्रश्न 1 – बढ़ती हुई आबादी का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ा है? ‘अब कहाँ दूसरों के दुख से दुखी होने वाले’ पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर – जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है वैसे-वैसे समुद्र अपनी जगह से पीछे हटने लगा है, लोगों ने पेड़ों को काट कर रास्ते बनाना शुरू कर दिया है। प्रदुषण इतना अधिक फैल रहा है कि उससे परेशान हो कर पंछी बस्तियों को छोड़ कर भाग रहे हैं। बारूद से होने वाली मुसीबतों ने सभी को परेशान कर रखा है। वातावरण में इतना अधिक बदलाव हो गया है कि गर्मी में बहुत अधिक गर्मी पड़ती है, बरसात का कोई निश्चित समय नहीं रह गया है, भूकम्प, सैलाब, तूफ़ान और रोज कोई न कोई नई बीमारियाँ न जाने और क्या-क्या, ये सब मानव द्वारा किये गए प्रकृति के साथ छेड़-छाड़ का नतीजा है। इन सभी के कारण मानव जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। मानव के जीवन पर इसका बहुत अधिक प्रभाव पड़ा है।
प्रश्न 2 – “अब कहाँ दूसरे के दुख …..” पाठ के आधार पर लिखिए कि बढ़ती हुई जनसंख्या का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ रहा है। प्रकृति की सहनशक्ति जब सीमा पार कर जाती है, तो क्या परिणाम होते हैं?
उत्तर – बढ़ती हुई जनसंख्या का पर्यावरण पर भयानक परिणाम हुआ, गर्मी में बहुत अधिक गर्मी पड़ती है, बरसात का कोई निश्चित समय नहीं रह गया है, भूकम्प, सैलाब, तूफ़ान और रोज कोई न कोई नई बीमारियाँ जन्म ले लेती है और मानव का जीवन बहुत अधिक कठिन हो गया है। प्रकृति एक सीमा तक ही सहन कर सकती है। कहा जाता है कि जो जितना बड़ा होता है उसको गुस्सा उतना ही कम आता है परन्तु जब आता है तो उनके गुस्से को कोई शांत नहीं कर सकता। प्रकृति को भी जब गुस्सा आता है तो क्या होता है इसका एक नमूना कुछ साल पहले मुंबई में आई सुनामी के रूप में देख ही चुके हैं। ये नमूना इतना डरावना था कि मुंबई के निवासी डर कर अपने-अपने देवी-देवताओं से उस मुसीबत से बचाने के लिए प्रार्थना करने लगे थे।
प्रश्न 3 – बड़े-बड़े बिल्डर समुद्र को पीछे क्यों धकेल रहे थे?
उत्तर – कई सालों से बड़े-बड़े मकानों को बनाने वाले बिल्डर मकान बनाने के लिए समुद्र को पीछे धकेल कर उसकी जमीन पर कब्ज़ा कर रहे थे। समुद्र के पास खड़े रहने की जगह भी कम पड़ने लगी और समुद्र को गुस्सा आ गया। कहा जाता है कि जो जितना बड़ा होता है उसको गुस्सा उतना ही कम आता है परन्तु जब आता है तो उनके गुस्से को कोई शांत नहीं कर सकता। समुद्र के साथ भी वही हुआ जब समुद्र को गुस्सा आया तो एक रात वह अपनी लहरों के ऊपर दौड़ता हुआ आया और तीन जहाज़ों को ऐसे उठा कर तीन दिशाओं में फेंक दिया जैसे कोई किसी बच्चे की गेंद को उठा कर फेंकता है।
प्रश्न 4 – प्रकृति में आए असंतुलन का क्या परिणाम हुआ? ‘अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले’ पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर – प्रकृति में आए असंतुलन का बहुत अधिक भयानक परिणाम हुआ, गर्मी में बहुत अधिक गर्मी पड़ती है, बरसात का कोई निश्चित समय नहीं रह गया है, भूकम्प, सैलाब, तूफ़ान और रोज़ कोई न कोई नई बीमारियाँ जन्म ले लेती है और मानव का जीवन बहुत अधिक कठिन हो गया है।
प्रश्न 5 – पाठ के आधार पर ‘दूसरे के दुख में दुखी होने वाले’ लोगों के स्वभाव से जुड़ी घटनाओं का उल्लेख कीजिए और लिखिए कि ऐसे लोग अब क्यों नहीं मिलते।
उत्तर – ‘अब कहाँ दूसरे के दुख में दुखी होने वाले’ पाठ में लेखक सुलेमान, पैगंबर लशकर, शेख अयाज़ और अपनी माताजी के माध्यम से यह समझाना चाहता है कि अब संसार में इस तरह के लोग नहीं है, जो किसी दूसरे के दुःख में उसी प्रकार दुःखी होते हैं जैसे उनका अपना ही दुःख हो। इंसान आज इतना स्वार्थी हो गया है कि इस स्वार्थ के वशीभूत होकर वह दूसरों के हितों का भी हनन करने से नहीं चूकता। ईश्वर ने उसे यह सुंदर दुनिया दी ताकि वह इसमें सभी प्राणियों के साथ मिलकर रहे, लेकिन वह यह भूल गया है कि इस दुनिया में उसके अतिरिक्त और कोई भी रहता है। वे अपने लिए इसका व अन्य जीव-जन्तुओं का नाश करने से भी नहीं चूका। उसे यही भ्रम है कि वह इस पृथ्वी पर सबसे शक्तिशाली है।
प्रश्न 6 – निदा फ़ाज़ली के लेख के आधार पर लिखिए कि पर्यावरण के प्रति क्या-क्या अवहेलनाएँ की जा रही हैं और उनके क्या परिणाम हो रहे हैं।
उत्तर – प्रकृति ने यह धरती उन सभी जीवधारियों के लिए दान में दी थी जिन्हें खुद प्रकृति ने ही जन्म दिया था। लेकिन समय के साथ-साथ हुआ यह कि आदमी नाम के प्रकृति के सबसे अनोखे चमत्कार ने धीरे-धीरे पूरी धरती को अपनी जायदाद बना दिया और अन्य दूसरे सभी जीवधारियों को इधर -उधर भटकने के लिए छोड़ दिया। इसका अन्जाम यह हुआ कि दूसरे जीवधारियों की या तो नस्ल ही ख़त्म हो गई या उन्हें अपने ठिकानों से कहीं दूसरी जगह जाना पड़ा जहाँ आदमी ना पहुँचा हो। कुछ जीवधारी तो आज भी अपने लिए ठिकानों की तलाश कर रहे हैं। अगर इतना ही हुआ होता तो भी संतोष किया जा सकता था लेकिन आदमी नाम का यह जीव सब कुछ समेटना चाहता था और उसकी यह भूख इतना सब कुछ करने के बाद भी शांत नहीं हुई। अब वह इतना स्वार्थी हो गया है कि दूसरे प्राणियों को तो पहले ही बेदखल कर चुका था परन्तु अब वह अपनी ही जाति अर्थात मनुष्यों को ही बेदखल करने में जरा भी नहीं हिचकिचाता। प्रकृति में आए असंतुलन का बहुत अधिक भयानक परिणाम हुआ, गर्मी में बहुत अधिक गर्मी पड़ती है, बरसात का कोई निश्चित समय नहीं रह गया है, भूकम्प, सैलाब, तूफ़ान और रोज कोई न कोई नई बीमारियाँ जन्म ले लेती है और मानव का जीवन बहुत अधिक कठिन हो गया है।
प्रश्न 7 – ‘अब कहाँ दूसरों के दुख से दुखी होने वाले’ के अनुसार शेख अयाज़ के प्रसंग को अपने शब्दों में लिखिए। शेख अयाज़ के पिता के कथन में छिपी भावना को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – एक दिन शेख अयाज़ के पिता कुँए से नहाकर लौटे। उनकी माँ ने भोजन परोसा। अभी उनके पिता ने रोटी का पहला टुकड़ा तोड़ा ही था कि उनकी नज़र उनके बाजू पर धीरे-धीरे चलते हुए एक काले च्योंटे पर पड़ी। जैसे ही उन्होंने कीड़े को देखा वे भोजन छोड़ कर खड़े हो गए। उनको खड़ा देख कर शेख अयाज़ा की माँ ने पूछा कि क्या बात है? क्या भोजन अच्छा नहीं लगा? इस पर शेख अयाज़ के पिता ने जवाब दिया कि ऐसी कोई बात नहीं है। उन्होंने एक घर वाले को बेघर कर दिया है वे उसी को उसके घर यानि कुँए के पास छोड़ने जा रहें हैं। शेख अयाज़ के पिता के इस कथन में उनकी जीवों के प्रति दया-भावना स्पष्ट झलकती है।
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Chapter 13 – Patjhar Me Tuti Pattiyan
प्रश्न 1 – ‘गिन्नी का सोना’ पाठ में शुद्ध आदर्श की तुलना शुद्ध सोने से क्यों की गई है?
उत्तर – शुद्ध सोने में चमक होती है और आदर्श भी शुद्ध सोने की तरह चमकदार और महत्वपूर्ण मूल्यों से भरा होता है। ताँबे से सोना मजबूत तो होता है परन्तु उसकी शुद्धता समाप्त हो जाती है। इसी प्रकार व्यवहारिकता के कारण आदर्श समाप्त हो जाते हैं परन्तु यदि सही ढंग से व्यवहारिकता और आदर्शों को मिलाया जाये तो जीवन में बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है।
प्रश्न 2 – जापान में चाय पीना एक ‘सेरेमनी’ क्यों है?
उत्तर – ‘झेन की देन’ पाठ हमें अत्यधिक व्यस्त जीवनशैली और उसके दुष्परिणामों से अवगत कराता है। पाठ में जापानियों की व्यस्त दिनचर्या से उत्पन्न मनोरोग की चर्चा करते हुए वहाँ की ‘टी-सेरेमनी’ के माध्यम से मानसिक तनाव से मुक्त होने का संकेत करते हुए यह संदेश दिया है कि अधिक तनाव मनुष्य को पागल बना देता है। इससे बचने का उपाय है मन को शांत रखना। बीते दिनों और भविष्य की कल्पनाओं को भूलकर वर्तमान की वास्तविकता में जीना और वर्तमान का भरपूर आनंद लेना। इसके लिए मन से चिंता, तनाव और अधिक काम की बोझिलता हटाना आवश्यक है ताकि शांति एवं चैन से जीवन कटे।
प्रश्न 3 – चा-नो-यू की पूरी प्रक्रिया का वर्णन अपने शब्दों में करते हुए लिखिए कि उसे झेन परंपरा की अनोखी देन क्यों कहा गया है?
उत्तर – जापान में चाय पीने की एक विधि है। जापानी में जिसे चा-नो-यू कहते हैं। इस विधि में शांति को प्रमुखता दी जाती है। इसलिए चाय पीने के स्थान पर एक साथ तीन लोगों से अधिक को प्रवेश नहीं दिया जाता है। एक बहुमंजिला इमारत की छत पर दफ़्ती दीवारों तथा चटाई की ज़मीन वाली एक सुंदर पर्णकुटी बनी होती है। बाहर मिट्टी के बर्तन में पानी भरा होता है। हाथ-पाँव धोकर और तौलिए से पोंछकर अंदर प्रवेश किया जाता है। चानीज़ अँगीठी सुलगाकर चाय तैयार करता है। बर्तन तौलिए से साफ़ करके चाय को प्यालों में डाल कर अतिथि के सामने लाता है। प्याले में दो घूँट से अधिक चाय नहीं होती। वहाँ ओठों से प्याला लगाकर एक-एक बूँद चाय पी जाती है। करीब डेढ़ घंटे तक चुसकियों का यह सिलसिला चलता रहता है। इससे चाय पीने वाले व्यक्ति के दिमाग की रफ़्तार धीरे-धीरे धीमी पड़ने लगती है। और वह अनंतकाल में जीने लगता है। लेखक ने इसे झेन की अनोखी देन इसलिए कहा है, क्योंकि इस प्रक्रिया के माध्यम से लेखक को यह आभास हुआ था कि जीना किसे कहते हैं अर्थात यह प्रक्रिया वर्तमान में जीना सिखाती है। इसलिए यह झेन की अनोखी परंपरा है।
प्रश्न 4 – वर्तमान समय में शाश्वत मूल्यों की क्या उपयोगिता है? ‘गिन्नी का सोना’ पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर – हमारे विचार से – सत्य, अहिंसा, दया, प्रेम, भाईचारा, त्याग, परोपकार, मीठी वाणी, मानवीयता इत्यादि ये मूल्य शाश्वत हैं। वर्तमान समाज में इन मूल्यों की प्रासंगिकता अर्थात महत्व बहुत अधिक है। जहाँ- जहाँ और जब-जब इन मूल्यों का पालन नहीं किया गया है वहाँ तब-तब समाज का नैतिक पतन हुआ है। सबसे महत्पूर्ण बात तो यह है कि खुद भी तरक्की करो और अपने साथ-साथ दूसरों को भी आगे ले चलो और ये काम हमेशा से ही आदर्शो को सबसे आगे रखने वाले लोगों ने किया है।
प्रश्न 5 – जापान में अधिकांश लोगों के मनोरुग्ण होने के क्या कारण हैं? तनाव से मुक्ति दिलाने में झेन परंपरा की चा-नो-यू विधि किस प्रकार सहायक है?
उत्तर – जापान में चाय पीने की एक विधि है। जापानी में जिसे चा-नो-यू कहते हैं। इस विधि में शांति को प्रमुखता दी जाती है। इसलिए चाय पीने के स्थान पर एक साथ तीन लोगों से अधिक को प्रवेश नहीं दिया जाता है। एक बहुमंजिला इमारत की छत पर दफ़्ती दीवारों तथा चटाई की ज़मीन वाली एक सुंदर पर्णकुटी बानी होती है। बाहर मिट्टी के बर्तन में पानी भरा होता है। हाथ-पाँव धोकर और तौलिए से पोंछकर अंदर प्रवेश किया जाता है। चानीज़ अँगीठी सुलगाकर चाय तैयार करता है। बर्तन तौलिए से साफ़ करके चाय को प्यालों में डाल कर अतिथि के सामने लता है। प्याले में दो घूँट से अधिक चाय नहीं होती। वहाँ ओठों से प्याला लगाकर एक-एक बूँद चाय पी जीती है। करीब डेढ़ घंटे तक चुसकियों का यह सिलसिला चलता रहता है। इससे चाय पीने वाले व्यक्ति के दिमाग की रफ़्तार धीरे-धीरे धीमी पड़ने लगती है। और वह अनंतकाल में जीने लगता है। लेखक ने इसे झेन की अनोखी देन इसलिए कहा है, क्योंकि इस प्रक्रिया के माध्यम से लेखक को यह आभास हुआ था कि जीना किसे कहते हैं अर्थात यह प्रक्रिया वर्तमान में जीना सिखाती है। इसलिए यह झेन की अनोखी परंपरा है।
प्रश्न 6 – लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए। आशय स्पष्ट करते हुए बताइए कि लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा। ‘झेन की देन’ पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर – लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए। हम लोग या तो बीते हुए दिनों में रहते हैं या आने वाले दिनों में। जबकि दोनों ही समय झूठे होते हैं। वो इसलिए क्योंकि एक बीत चुका होता है और दूसरा अभी आया भी नहीं होता। तो बात आती है कि सच क्या है तो इस बात पर लेखक कहते हैं कि जो समय अभी चल रहा है वही सच है।
प्रश्न 7 – जापान में मानसिक रोग बढ़ने के क्या-क्या कारण बताए गए हैं? इसके समाधान में ‘चा-नो-यू’ कैसे सहायक है? “झेन की देन” पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के कारण बताते हुए कहा कि वहाँ जापान में कोई आराम से नहीं चलता, बल्कि दौड़ता है अर्थात सब एक दूसरे से आगे जाने की सोच रखते हैं। कोई भी व्यक्ति आराम से बात नहीं करता, वे लोग केवल काम की ही बात करते हैं। यहाँ तक की जब जापान के लोग कभी अपने आप को अकेला महसूस करते हैं तो वे किसी और से नहीं बल्कि अपने आप से ही बातें करते हैं। जापान के लोग अमेरिका से प्रतियोगिता में लग गए जिसके कारण वे एक महीने में पूरा होने वाला काम एक दिन में ही ख़त्म करने की कोशिश करने लगे। ऐसा करने के कारण दिमाग थक जाता है और टेंशन में आ कर पूरा इंजन टूट जाता है। यही कारण है कि जापान के लोगों में मानसिक बिमारी बहुत अधिक फैल गई है। हम इन कारणों से पूरी तरह सहमत हैं।
प्रश्न 8 – गिन्नी का सोना और शुद्ध सोना में क्या अंतर है? इस चर्चा में गांधी जी का नाम लेखक ने क्यों लिया है?
उत्तर – गिन्नी का सोना शुद्ध सोना नहीं होता बल्कि इसमें तांबे का मिश्रण होता है। यही कारण है कि उसमें ज्यादा चमक होती है और शुद्ध सोने की अपेक्षा मजबूती अधिक होती है। अतः इसकी उपयोगिता भी अधिक होती है। गिन्नी के सोने की इन्ही विशेषताओं के कारण अधिकांशतः इसी सोने के आभूषण बनवाए जाते हैं।
गाँधी जी कभी भी अपने आदर्शों को अपने व्यवहार पर हावी नहीं होने देते थे । बल्कि वे अपने व्यवहार में ही अपने आदर्शों को रखने की कोशिश करते थे। वे किसी भी तरह के आदर्शों में कोई भी व्यावहारिक मिलावट नहीं करते थे बल्कि व्यव्हार में आदर्शों को मिलाते थे जिससे आदर्श ही सबको दिखे और सब आदर्शों का ही पालन करे और आदर्शों की कीमत बढ़े। वे शुद्ध सोने में तांबा नहीं, ताँबे में सोना मिलाकर उसकी कीमत बढ़ाते थे। उसी प्रकार आदर्श को क्रियान्वित करने के लिए व्यवहारिकता की आवश्यकता होती है।
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Chapter 14 – Kartoos
प्रश्न 1 – ‘कारतूस’ पाठ के आधार पर सोदाहरण सिद्ध कीजिए कि वज़ीर अली एक जाँबाज़ सिपाही था।
उत्तर – वज़ीर अली को अंग्रेज़ों ने उनके नवाब पद से हटा दिया था और बनारस भेज दिया था। वजीफ़े के लिए जो रकम दी गई थी उसमें अड़चन डालने के लिए उसे कलकत्ता बुलाया जा रहा था, जब इसकी शिकायत वकील से करने गया तो वकील उल्टा उसी को बुरा-भला कहने लगा। वकील के ऐसे व्यव्हार पर उसे गुस्सा आया और उसने वकील की हत्या कर दी। महीनों अंग्रेज़ों को जंगलों में दौड़ाता रहा परन्तु फिर भी उनके हाथ नहीं आया। अकेले ही अंग्रेज़ों के तंबू में कर्नल से मिलने चला गया और उससे दस कारतूस भी ले आया और जाते-जाते अपना सही नाम भी बता दिया। इतने ज़ोखिम भरे कारनामों से सिद्ध होता है कि वज़ीर अली एक जाँबाज़ सिपाही था।
प्रश्न 2 – कर्नल कालिंज का खेमा जंगल में क्यों लगा हुआ था?
उत्तर – अंग्रेज़ों ने वज़ीर अली को शासन से हटाया था और उसे काशी भेज दिया था। वजीर अली अंग्रेज़ों से नफ़रत करता था। उसने कंपनी के वकील की हत्या कर दी और गोरखपुर के जंगलों में जा छिपा था। अंग्रेज़ सैनिक वहीं जंगल में खेमा डालकर वज़ीर अली को पकड़ने का प्रयास कर रहे थे।
प्रश्न 3 – वज़ीर अली कौन था? उसकी जांबाज़ी का उदाहरण देते हुए उसके व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर – वज़ीर अली अवध के शासक आसिफउद्दौला का पुत्र था। अंग्रेज़ों ने वजीर अली को सत्ता से हटाकर उसके चाचा सआदत अली को अवध की गद्दी पर बिठाया था। वज़ीर अली के मन में अंग्रेज़ों के प्रति घृणा भरी थी। उसने कंपनी के वकील की हत्या कर दी थी, इसलिए अंग्रेज़ उसे पकड़ना चाहते थे। ‘कारतूस’ पाठ से ज्ञात होता है कि वज़ीर अली अत्यंत साहसी, वीर, महत्त्वाकांक्षी और स्वाभिमानी शासक था। अवध की सत्ता छिनने के बाद उसके इन गुणों को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। उसकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
साहसी – वज़ीर अली के साहस की जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम ही है। वह कर्नल के कैंप में घुसकर उससे कारतूस लाता है वह कंपनी के वकील की हत्या पहले ही कर चुका था। ये उसके साहसी होने के प्रमाण हैं।
वीर – वज़ीर अली इतना वीर है कि अवध की सत्ता छिनने के बाद भी अंग्रेजों को देश से खदेड़ने के लिए कटिबद्ध रहता है।
महत्त्वाकांक्षी – वज़ीर अली महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति है। वह अवध का शासक बनने की महत्त्वाकांक्षा सदा बनाए रखता है।
स्वाभिमानी – वज़ीर अली इतना स्वाभिमानी है कि वह कंपनी के वकील की अपमानजनक बातों को सह नहीं पाता है और उसकी हत्या कर देता है।
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Sanchayan Bhag-2
Chapter 1 – Harihar Kaka
प्रश्न 1 – हरिहर काका के विरोध में महंत और पुजारी ही नहीं उनके भाई भी थे। उसका कारण क्या था? हरिहर काका उनकी राय क्यों नहीं मानना चाहते थे? विस्तार से समझाइए।
उत्तर – हरिहर काका के विरोध में ठाकुरबाड़ी का महंत और पुजारी ही नहीं बल्कि उनके भाई भी थे। इन लोगों के विरोध का सबसे बड़ा कारण उनकी ज़मीन थी। उनके सब भाई चाहते थे हरिहर काका समस्त ज़मीन उनके नाम लिख दें और महंत चाहते थे कि हरिहर काका समस्त ज़मीन मठ के नाम कर दें। हरिहर काका की जमीन का लालच सभी को था। ये लोग सभी प्रकार की मर्यादाओं को तार-तार कर धन और जमीन के लालच में हरिहर काका के साथ अमानवीय व्यवहार कर रहे थे। हरिहर काका को अनुमान हो चुका था कि वे यदि इन लोगों की बात मानकर अपनी ज़मीन इन लोगों के नाम कर देते हैं तो इन्हें दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेकेंगे। उनके लिए भरपेट भोजन मिलना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए वे उनकी राय नहीं मान रहे थे। उन्हें गाँव के ऐसे लोगों की दुर्दशा का ज्ञान था जिन्होंने अपनी जमीन सगे सम्बन्धियों को लिख दी थी। जीवन ही उनके जीवन का सहारा थी।
प्रश्न 2 – कल्पना कीजिए कि एक पत्रकार के रूप में आप हरिहर काका के बारे में अपने समाचार पत्र को क्या-क्या बताना चाहेंगे और समाज को उसके उत्तरदायित्व का बोध कैसे कराएंगे?
उत्तर – एक पत्रकार के रूप में हरिहर काका के बारे में अपने समाचार पत्र को सूचित किया जाएगा कि ज़मीन के लालच में उनके सगे संबंधी उन्हें परेशान कर रहे हैं। अपने समाचार पत्र में समाज की प्रतिष्ठित संस्था के महंत के चरित्र के बारे में विस्तार विवरण देना चाहूँगा। धन केंद्रित मानसिकता से समाज को बचाने के लिए लोगों को अपनत्व व सौहार्द्र से भरे सामाजिक जीवन जीने के लाभ से परिचित करवाना होगा। इसके लिए नुक्कड़ नाटक के आयोजन तथा टी.वी. आदि पर घर-घर की कलह आदि को दिखाने के स्थान पर प्रेम, सौहाई व भाईचारे की भावना से ओतप्रोत धारावाहिकों का प्रसारण किया जाना चाहिए, जिससे लोग जागरूक हों और अपनत्व के महत्व को समझते हुए अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन कर सके।
प्रश्न 3 – हरिहर काका के जीवन के अनुभवों से हमें क्या सीख मिलती है? पाठ के आधार पर लिखिए|
उत्तर – हरिहर काका के जीवन के अनुभवों से हमें बहुत सी सीख मिलती हैं। जैसे – अपने संबंधों में किसी भी प्रकार का लालच या स्वार्थ न आने दें। जीते-जी अपनी जायदाद किसी के नाम नहीं करनी चाहिए। धार्मिक अंधविश्वास या बहकावे में नहीं आना चाहिए। राजनीतिक बहकावे में नहीं आना चाहिए। परिवार में एक-दूसरे के प्रति भरोसा, विश्वास कायम रखना चाहिए। परिवार में बाहरी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए या बाहरी लोगों की राय नहीं लेनी चाहिए।
प्रश्न 4 – हरिहर काका के जीवन में आई कठिनाइयों का मूल कारण क्या था? ऐसी सामाजिक समस्या के समाधान के क्या उपाय हो सकते हैं? लिखिए।
उत्तर – हरिहर काका के जीवन में आई कठिनाइयों का कारण समाज व परिवार के लोगों में लालच की प्रवृत्ति का आना था। सब हरिहर काका की ज़मीन को हड़पना चाहते थे। ऐसी सामाजिक समस्या के समाधान के कुछ उपाय हो सकते हैं। जैसे – जीते-जी अपनी जायदाद किसी के नाम नहीं करनी चाहिए। धार्मिक अंधविश्वास या बहकावे में नहीं आना चाहिए। राजनीतिक बहकावे में नहीं आना चाहिए। परिवार में एक-दूसरे के प्रति भरोसा, विश्वास कायम रखना चाहिए। परिवार में बाहरी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए या बाहरी लोगों की राय नहीं लेनी चाहिए।
प्रश्न 5 – वर्तमान समाज में पारिवारिक संबंधों का क्या महत्त्व है? ‘हरिहर काका’ कहानी में यह सच्चाई कैसे उजागर होती है?
उत्तर – समाज में सुखी जीवन जीने के लिए रिश्तों-नातों का बहुत अधिक महत्त्व है। परन्तु आज के समाज में सभी मानवीय और पारिवारिक मूल्यों और कर्तव्यों को पीछे छोड़ते जा रहे हैं। आज का व्यक्ति स्वार्थी मनोवृति का हो गया है। वह केवल अपने मतलब के लिए ही लोगों से मिलता है। वह अपने अमीर रिश्तेदारों से रोज मिलना चाहता है परन्तु अपने गरीब रिश्तेदारों से कोसों दूर भागता है। ज्यादातर लोग केवल स्वार्थ के लिए ही रिश्ते निभाते हैं। रोज अखबारों और ख़बरों में सुनने को मिलता है कि जायदाद के लिए लोग अपनों की हत्या करने से भी नहीं झिझकते।
प्रश्न 6 – उन घटनाओं का उल्लेख कीजिए जिनके आधार पर हरिहर काका को अपने भाई और महंत एक ही श्रेणी के लगते थे।
उत्तर – कुछ दिनों तक तो हरिहर काका के परिवार वाले हरिहर काका की सभी चीज़ों का अच्छे से ध्यान रखते थे, परन्तु फिर कुछ दिनों बाद हरिहर काका को कोई पूछने वाला नहीं था। हरिहर काका के सामने जो कुछ बच जाता था वही परोसा जाता था। कभी-कभी तो हरिहर काका को बिना तेल-घी के ही रूखा-सूखा खाना खा कर प्रसन्न रहना पड़ता था। अगर कभी हरिहर काका के शरीर की स्थिति या मन की स्थिति ठीक नहीं होती तो हरिहर काका पर मुसीबतों का पहाड़ ही गिर जाता। क्योंकि इतने बड़े परिवार के रहते हुए भी हरिहर काका को कोई पानी भी नहीं पूछता था। बारामदे के कमरे में पड़े हुए हरिहर काका को अगर किसी चीज़ की जरुरत होती तो उन्हें खुद ही उठना पड़ता।
महंत हरिहर काका को समझाता था कि उनके हिस्से में जितने खेत हैं वे उनको भगवान के नाम लिख दें। ऐसा करने से उन्हें सीधे स्वर्ग की प्राप्ति होगी। तीनों लोकों में उनकी प्रसिद्धि का ही गुणगान होगा। जब तक इस दुनिया में चाँद-सूरज रहेंगे, तब तक लोग उन्हें याद किया करेंगे। साधु-संत भी उनके पाँव धोएंगें। महंत हरिहर काका से कहता था कि उनके हिस्से में जो पंद्रह बीघे खेत हैं। उसी के कारण उनके भाइयों का परिवार उनसे जुड़ा हुआ है। किसी दिन अगर हरिहर काका यह कह दें कि वे अपने खेत किसी और के नाम लिख रहे हैं तो वे लोग तो उनसे बात करना भी बंद कर देंगें। खून के रिश्ते ख़त्म हो जायेंगे।
असल में हरिहर काका को समझ आ गया था की दोनों ही उनसे उनकी जमीन के लिए अच्छा व्यवहार करते हैं, नहीं तो कोई उन्हें पूछता तक नहीं। इसीलिए हरिहर काका को महंत और अपने भाई एक ही श्रेणी के लगने लगे थे।
प्रश्न 7 – ‘अनपढ़ होते हुए भी हरिहर काका दुनिया की अच्छी समझ रखते हैं।’ सोदाहरण सिद्ध कीजिए।
उत्तर – जब हरिहर काका के भाइयों ने हरिहर काका को उनके हिस्से की जमीन को उनके नाम लिखवाने के लिए कहा, तो हरिहर काका बहुत सोचने के बाद अंत में इस परिणाम पर पहुंचे कि अपने जीते-जी अपनी जायदाद का स्वामी किसी और को बनाना ठीक नहीं होगा। फिर चाहे वह अपना भाई हो या मंदिर का महंत। हरिहर काका को अपने गाँव और इलाके के वे कुछ लोग याद आए, जिन्होंने अपनी जिंदगी में ही अपनी जायदाद को अपने रिश्तेदारों या किसी और के नाम लिखवा दिया था। उनका जीवन बाद में किसी कुत्ते की तरह हो गया था, उन्हें कोई पूछने वाला भी नहीं था। हरिहर काका बिलकुल भी पढ़े-लिखे नहीं थे, परन्तु उन्हें अपने जीवन में एकदम हुए बदलाव को समझने में कोई गलती नहीं हुई और उन्होंने फैसला कर लिया कि वे जीते-जी किसी को भी अपनी जमीन नहीं लिखेंगे। इससे पता चलता है कि अनपढ़ होते हुए भी हरिहर काका दुनिया की बेहतर समझ रखते थे।
प्रश्न 8 – ‘हरिहर काका’ पाठ के आधार पर लिखिए कि हरिहर काका को जबरन उठा ले जाने वाले व्यक्ति कौन थे। उन्होंने उनके साथ कैसा व्यवहार किया?
उत्तर – हरिहर काका को जबरन उठा ले जाने वाले महंत के आदमी थे। उन्होंने ठाकुरबारी के एक कमरे में हरिहर काका को हाथ और पाँव बाँध कर रखा था और साथ ही साथ उनके मुँह में कपड़ा ठूँसा गया था ताकि वे आवाज़ न कर सकें। वे लोग काका को उस कमरे में इस तरह बाँध कर कही गुप्त दरवाज़े से भाग गए थे और उन्होंने कुछ खाली और कुछ लिखे हुए कागजों पर हरिहर काका के अँगूठे के निशान जबरदस्ती ले लिए थे। परन्तु हरिहर काका दरवाज़े तक लुढ़कते हुए आ गए थे और दरवाज़े पर अपने पैरों से धक्का लगा रहे थे ताकि बाहर खड़े उनके भाई और पुलिस उन्हें बचा सकें।
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Chapter 2 – Sapno Ke Se Din
प्रश्न 1 – “स्कूल हमारे लिए ऐसी जगह न थी जहां खुशी से भागा जाए फिर भी लेखक और साथी स्कूल क्यों जाते थे? आज के स्कूलों के बारे में आपकी क्या राय है? क्यों? विस्तार से समझाइए।
उत्तर – ‘सपनों के से दिन’ पाठ में बच्चों को स्कूल जाना बिल्कुल भी पसंद नहीं था, इसका कारण था कि स्कुल में बच्चों को वह आज़ादी नहीं मिल पाती थी जो बच्चे चाहते हैं। स्कूल में अध्यापकों द्वारा उन्हें पढ़ाई करने को कहा जाता था और पढ़ाई न करने पर मारा भी जाता था। अध्यापक सख्त स्वभाव के थे। और गर्मियों की छुट्टियों का काम न करने पर मार के डर से भी बच्चे स्कूल जाना पसंद नहीं करते थे। बचपन में हमें भी स्कूल जाना पसंद नहीं आता था क्योंकि बालमन शरारतों में लगा रहता था और स्कूल में अध्यापक अनुशासन में रहने की सीख देते थे। परन्तु जैसे-जैसे बुद्धि का विकास हुआ हमें स्कूल के महत्त्व का पता चला और फिर हमने स्कूल के हर कार्यक्रम व् प्रतियोगिताओं में अपना योगदान दिया। जो हमें आज के समय में जीवन की कठिन परिस्थितियों का सामना करने की प्रेरणा देते हैं।
प्रश्न 2 – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ के आधार पर पी.टी. सर के स्वभाव की विशेषताओं पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
उत्तर – लेखक ने कभी भी मास्टर प्रीतमचंद को स्कूल के समय में मुस्कुराते या हँसते नहीं देखा था। उनके जितना सख्त अध्यापक किसी ने पहले नहीं देखा था। उनका छोटा कद, दुबला-पतला परन्तु पुष्ट शरीर, माता के दानों से भरा चेहरा यानि चेचक के दागों से भरा चेहरा और बाज़ सी तेज़ आँखें, खाकी वर्दी, चमड़े के चौड़े पंजों वाले जूत-ये सभी चीज़े बच्चों को भयभीत करने वाली होती थी। उनके जूतों की ऊँची एड़ियों के निचे भी खुरियाँ लगी रहतीं थी। अगले हिस्से में, पंजों के निचे मोटे सिरों वाले कील ठुके होते थे। वे अनुशासन प्रिय थे यदि कोई विद्यार्थी उनकी बात नहीं मानता तो वे उसकी खाल खींचने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। वे बहुत स्वाभिमानी भी थे क्योंकि जब हेडमास्टर शर्मा ने उन्हें निलंबित कर के निकाला तो वे गिड़गिड़ाए नहीं, चुपचाप चले गए और पहले की ही तरह आराम से रह रहे थे।
प्रश्न 3 – ‘सपनों के-से दिन’ संस्मरण के आधार पर लिखिए कि पी.टी. साहब को विद्यालय से क्यों निकाल दिया गया। हेडमास्टर साहब के इस कदम पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर – मास्टर प्रीतमचंद लेखक की चौथी कक्षा को फ़ारसी पढ़ाने लगे थे। अभी मास्टर प्रीतमचंद को लेखक की कक्षा को पढ़ते हुए एक सप्ताह भी नहीं हुआ होगा कि प्रीतमचंद ने उन्हें एक शब्दरूप याद करने को कहा और आज्ञा दी कि कल इसी घंटी में केवल जुबान के द्वारा ही सुनेंगे। दूसरे दिन मास्टर प्रीतमचंद ने बारी-बारी सबको सुनाने के लिए कहा तो एक भी लड़का न सुना पाया। मास्टर जी ने गुस्से में चिल्लाकर सभी विद्यार्थियों को कान पकड़कर पीठ ऊँची रखने को कहा। जब लेखक की कक्षा को सज़ा दी जा रही थी तो उसके कुछ समय पहले शर्मा जी स्कूल में नहीं थे। आते ही जो कुछ उन्होंने देखा वह सहन नहीं कर पाए। शायद यह पहला अवसर था कि उन्होंने पीटी प्रीतमचंद की उस असभ्यता एवं जंगलीपन को सहन नहीं किया और वह भड़क गए थे। यही कारण था कि हेडमास्टर शर्मा जी ने पीटी साहब को मुअतल कर दिया।
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Chapter 3 – Topi Shukla
प्रश्न 1 – टोपी और इफ्फन अलग-अलग धर्म और जाति से संबंध रखते थे पर दोनों एक अटूट रिश्ते से बंधे थे। इस कथन के आलोक में ‘टोपी शुक्ला’ कहानी पर विचार कीजिए।
उत्तर – टोपी हिन्दू धर्म से था और इफ़्फ़न की दादी मुस्लिम थी। परन्तु टोपी और दादी का रिश्ता इतना अधिक अटूट था कि टोपी को इफ़्फ़न के घर जाने के लिए मार भी पड़ी थी परन्तु टोपी दादी से मिलने, उनकी कहानियाँ सुनाने और उनकी मीठी पूरबी बोली सुनने रोज इफ़्फ़न के घर जाता था। दादी रोज उसे कुछ-न-कुछ खाने को देती पर टोपी कभी नहीं खाता था। उसे तो दादी का हर एक शब्द गुड़ की डली की तरह लगता था। टोपी और इफ़्फ़न की दादी अलग-अलग मज़हब और जाति के थे पर एक अनजान अटूट रिश्ते से बँधे थे। दोनों एक दूसरे को खूब समझते थे।
प्रश्न 2 – मानवीय मूल्यों के आधार पर इफ़्फ़न और टोपी शुक्ला की दोस्ती की समीक्षा कीजिए।
उत्तर – इफ़्फ़न और टोपी शुक्ला दो भिन्न-भिन्न धर्मों को मानने वाले हैं। इफ़्फ़न मुसलमान है तो टोपी शुक्ला पक्का हिंदू है। धार्मिक भिन्नता होते भी दोनों में पक्की मित्रता है। टोपी इफ्फन को बहुत चाहता है। उसके पिता का तबादला होने पर वह दुःखी होता है। वह इफ़्फ़न की दादी से बहुत प्यार करता है तथा दादी भी उसे बहुत प्यार करती है। दोनों के सम्बन्ध मानवीय धरातल पर हैं। इनके बीच में धर्म की दीवार नहीं है। यही हमारी सामाजिक संस्कृति की प्रमुख विशेषता है। हमें सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए। मानवीय प्रेम सर्वोपरि है। धर्म को इसमें बाधक नहीं बनना चाहिए।
प्रश्न 3 – ‘टोपी शुक्ला’ कहानी हमें क्या संदेश देती है? भारतीय समाज के लिए यह कैसे लाभकारी हो सकता है? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर – टोपी शुक्ला कहानी हमें हमारी परम्परा सभ्यता के अनुसार भारत की विविधता में एकता व् जाति और धर्म से ऊपर उठकर एक साथ रहने का संदेश देती है। इन्सान में इन्सानियत होनी चाहिए। धर्म जाति से ऊपर उठना चाहिए क्योंकि ये सब इंसानों द्वारा बनाया गया है। हमें परस्पर सांप्रदायिक सौहार्द बनाये रखना चाहिए। व्यक्ति का व्यवहार सम्मानजनक होना चाहिए। बच्चों के प्यार में कोई धर्म आड़े नहीं आता दोनों एक दूसरे से अत्यधिक प्यार करते हैं। दोनों एक दूसरे पर जान देते हैं। लेकिन हमारी पुरानी रंजिश ने इन दोनों को मिलने नहीं दिया जो हमारे समाज के लिए लाभकारी नहीं है और न ही हो सकते हैं। मिल-जुड़कर रहना हमारी परम्परा रही है। संगठित व शक्तिशाली राष्ट्र निर्माण में सहायक है। सांप्रदायिक विवाद को रोकने तथा सहिष्णुता बढ़ाने में भी सहायक है।
प्रश्न 4 – इफ़्फ़न और टोपी शुक्ला की मित्रता पर टिप्पणी करते हुए लिखिए कि ऐसी मैत्री भारतीय समाज के लिए कैसे प्रेरक हो सकती है।
उत्तर – टोपी और इफ़्फ़न की कहानी भारतीय समाज के लिए प्रेरक हो सकती है। एक है टोपी, जो हिंदू परिवार से संबंध रखने वाला है, दूसरा है-इफ़्फ़न, जो मुस्लिम परिवार से संबंध रखता है। दोनों में गहरी मित्रता है। दोनों एक-दूसरे के सुख-दुःख बाँटते हैं। टोपी इफ़्फ़न के घर भी जाता है। टोपी को इफ़्फ़न की दादी से बेहद लगाव है, जबकि उसे अपनी दादी बिल्कुल अच्छी नहीं लगती। जिस स्नेह और अपनेपन को वह अपने घर में ढूँढता था, वह उसे इफ़्फ़न के घर, उसकी दादी से मिलता था। जब इफ़्फ़न की दादी का देहांत हुआ तो वह बहुत उदास हो गया। टोपी और इफ़्फ़न की मित्रता ऐसी थी कि दोनों को एक-दूसरे के बगैर चैन नहीं मिलता था। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया था कि मित्रता की भावना को मजहब और जाति की दीवारों में कैद नहीं किया जा सकता। आज समाज में टोपी और इफ़्फ़न जैसी मित्रता की बहुत अधिक आवश्यकता है। बच्चों में उत्पन्न प्रेम और अपनेपन का आधार मजहब या सम्पन्न परिवार के लोग नहीं होते। यह भी सच है कि मनुष्य पहले मनुष्य है, वह हिंदू या मुसलमान बाद में है। टोपी और इफ़्फ़न की मित्रता से हमें प्रेरणा मिलती है कि ऐसी सच्ची मित्रता सांप्रदायिक भावना, तनाव और झगड़ों को समाप्त करने में उपयोगी सिद्ध हो सकती है। ऐसी मित्रता समाज में मौजूद मजहब की दीवारों को भी तोड़ सकती हैं।
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