CBSE Class 9 Hindi Chapter 4 Vaigyanik Chetna ke Vahak – Chandrashekhar Venkat Raman (वैज्ञानिक चेतना के वाहक चंद्रशेखर वेंकट रामन) Question Answers (Important) from Sparsh Book
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- वैज्ञानिक चेतना के वाहक चंद्रशेखर वेंकट रामन NCERT Solutions
- वैज्ञानिक चेतना के वाहक चंद्रशेखर वेंकट रामन सार-आधारित प्रश्न
- वैज्ञानिक चेतना के वाहक चंद्रशेखर वेंकट रामन प्रश्न और उत्तर
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वैज्ञानिक चेतना के वाहक चंद्रशेखर वेंकट रामन NCERT Solutions
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 25-30 शब्दों में लिखिए –
प्रश्न 1 – कॉलेज कि दिनों में रामन की दिली इच्छा क्या थी?
उत्तर – कॉलेज के दिनों में रामन की दिली इच्छा थी कि अपना पूरा जीवन शोधकार्य को समर्पित कर दें। लेकिन उस जमाने में शोधकार्य को एक पूर्णकालिक कैरियर के रूप में अपनाने की कोई व्यवस्था नहीं थी। परन्तु रामन ने अपनी दिली इच्छा को पूरा किया।
प्रश्न 2 – वाद्ययंत्रों पर की गई खोजों से रामन ने कौन सी भ्रांति तोड़ने की कोशिश की?
उत्तर – लोगों का मानना था कि भारतीय वाद्ययंत्र पश्चिमी वाद्ययंत्र की तुलना में अच्छे नहीं होते हैं। रामन ने अपनी खोजों से इस भ्रांति को तोड़ने की कोशिश की।
प्रश्न 3 – रामन के लिए नौकरी संबंधी कौन सा निर्णय कठिन था?
उत्तर – उस जमाने के हिसाब से रामन सरकारी विभाग में एक प्रतिष्ठित अफसर के पद पर तैनात थे। उन्हें मोटी तनख्वाह और अन्य सुविधाएँ मिलती थीं। उस नौकरी को छोड़कर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर की नौकरी करने का फैसला बहुत कठिन था।
प्रश्न 4 – सर चंद्रशेखर वेंकट रामन को समय समय पर किन किन पुरस्कारों से सम्मानित किया गया?
उत्तर – रामन को 1924 में रॉयल सोसाइटी की सदस्यता से सम्मानित किया गया। 1929 में उन्हें ‘सर’ की उपाधि दी गई। 1930 में उन्हें नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें कई अन्य पुरस्कार भी मिले; जैसे रोम का मेत्यूसी पदक, रॉयल सोसाइटी का ह्यूज पदक, फिलाडेल्फिया इंस्टीच्यूट का फ्रैंकलिन पदक, सोवियत रूस का अंतर्राष्ट्रीय लेनिन पुरस्कार, आदि। उन्हें 1954 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
प्रश्न 5 – रामन को मिलने वाले पुरस्कारों ने भारतीय चेतना को जाग्रत किया। ऐसा क्यों कहा गया है?
उत्तर – रामन को अधिकतर पुरस्कार तब मिले जब भारत अंग्रेजों के अधीन था। वैसे समय में यहाँ पर वैज्ञानिक चेतना का सख्त अभाव था। रामन को मिलने वाले पुरस्कारों से भारत की न सिर्फ वैज्ञानिक चेतना जाग्रत हुई बल्कि भारत का आत्मविश्वास भी बढ़ा।
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 50-60 शब्दों में लिखिए –
प्रश्न 1 – रामन के प्रारंभिक शोधकार्य को आधुनिक हठयोग क्यों कहा गया है?
उत्तर – हठयोग में योगी अपने शरीर को असह्य पीड़ा से गुजारता है। रामन भी कुछ ऐसा ही कर रहे थे। वे पूरे दिन सरकारी नौकरी में कठिन परिश्रम करते थे और उसके बाद बहु बाजार स्थित प्रयोगशाला में वैज्ञानिक शोध करते थे। उस प्रयोगशाला में बस कामचलाउ उपकरण ही थे। इसलिए रामन के प्रारंभिक शोधकार्य को आधुनिक हठयोग कहा गया है।
प्रश्न 2 – रामन की खोज ‘रामन प्रभाव’ क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – जब एकवर्णीय प्रकाश की किरण किसी तरल या ठोस रवेदार पदार्थ से गुजरती है तो गुजरने के बाद उसके वर्ण में परिवर्तन आता है। ऐसा इसलिए होता है कि जब एकवर्णीय प्रकाश की किरण के फोटॉन किसी तरल या ठोस रवे से गुजरते हुए इनके अणुओं से टकराते हैं तो टक्कर के बाद या तो वे कुछ ऊर्जा खो देते हैं या कुछ ऊर्जा पा जाते हैं। ऊर्जा में परिवर्तन के कारण प्रकाश के वर्ण (रंग) में बदलाव आता है। ऊर्जा के परिमाण में परिवर्तन के हिसाब से प्रकाश का रंग किसी खास रंग का हो जाता है। इसे ही रामन प्रभाव कहते हैं।
प्रश्न 3 – ‘रामन प्रभाव’ की खोज से विज्ञान के क्षेत्र में कौन कौन से कार्य संभव हो सके?
उत्तर – रामन प्रभाव की खोज से अणुओं और परमाणुओं के अध्ययन का कार्य सहज हो गया। यह काम पहले इंफ्रा रेड स्पेक्ट्रोस्कोपी द्वारा किया जाता था और अब रामन स्पेक्ट्रोस्कोपी द्वारा किया जाने लगा। इस खोज से कई पदार्थों का कृत्रिम संश्लेषण संभव हो पाया।
प्रश्न 4 – देश को वैज्ञानिक दृष्टि और चिंतन प्रदान करने में सर चंद्रशेखर वेंकट रामन के महत्वपूर्ण योगदान प्र प्रकाश डालिए।
उत्तर – देश को वैज्ञानिक दृष्टि और चिंतन प्रदान करने के लिए रामन के कई काम किए। रामन ने बंगलोर में एक अत्यंत उन्नत प्रयोगशाला और शोध संस्थान की स्थापना की, जिसे अब रामन रिसर्च इंस्टीच्यूट के नाम से जाना जाता है। भौतिक शास्त्र में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने इंडियन जरनल ऑफ फिजिक्स नामक शोध पत्रिका प्रारंभ की। उन्होंने अपने जीवन काल में सैंकड़ों शोध छात्रों का मार्गदर्शन किया। विज्ञान के प्रचार प्रसार के लिए वे करेंट साइंस नामक पत्रिका का संपादन भी करते थे।
प्रश्न 5 – सर चंद्रशेखर वेंकट रामन के जीवन से प्राप्त होनेवाले संदेश को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – सर चंद्रशेखर वेंकट रामन ने हमेशा ये संदेश दिया कि हम विभिन्न प्राकृतिक घटनाओं की छानबीन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से करें। न्यूटन ने ऐसा ही किया था और तब जाकर दुनिया को गुरुत्वाकर्षण के बारे में पता चला था। रामन ने ऐसा ही किया था और तब जाकर दुनिया को पता चला कि समुद्र का रंग नीला ही क्यों होता है, कोई और क्यों नहीं। जब हम अपने आस पास घटने वाली घटनाओं का वैज्ञानिक विश्लेषन करेंगे तो हम प्रकृति के बारे में और बेहतर ढ़ंग से जान पाएँगे।
(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए –
प्रश्न 1 – उनके लिए सरस्वती की साधना सरकारी सुख सुविधाओं से कहीं अधिक महत्वपूर्ण थी।
उत्तर – रामन एक ऐसी नौकरी में थे जहाँ मोटी तनख्वाह और अन्य सुविधाएँ मिलती थीं। लेकिन रामन ने उस नौकरी को छोड़कर ऐसी जगह नौकरी करने का निर्णय लिया जहाँ वे सारी सुविधाएँ नहीं थीं। लेकिन नई नौकरी में रहकर रामन अपने वैज्ञानिक शोध का कार्य बेहतर ढ़ंग से कर सकते थे। यह दिखाता है कि उनके लिए सरस्वती की साधना सरकारी सुख सुविधाओं से कहीं अधिक महत्वपूर्ण थी।
प्रश्न 2 – हमारे पास ऐसी न जाने कितनी ही चीजें बिखरी पड़ी हैं, जो अपने पात्र की तलाश में हैं।
उत्तर – हमारे पास अनेक ऐसी चीजें हैं या घटनाएँ घटती रहती हैं जिन्हें हम जीवन का एक सामान्य हिस्सा मानकर चलते हैं। लेकिन उन्ही चीजों में कोई जिज्ञासु व्यक्ति महत्वपूर्ण वैज्ञानिक रहस्य खोज लेता है। फिर हम जैसे नींद से जागते हैं और उस नई खोज से विस्मित हो जाते हैं। किसी की जिज्ञासा उस सही पात्र की तरह है जिसमें किसी वैज्ञानिक खोज को मूर्त रूप मिलता है।
प्रश्न 3 – यह अपने आप में एक आधुनिक हठयोग का उदाहरण था।
उत्तर – इस पंक्ति में लेखक रामन के अथक परिश्रम के बारे में बता रहा है। रामन उस समय एक सरकारी नौकरी में कार्यरत थे। अपने दफ्तर में पूरे दिन काम करने बाद जब वे शाम में निकलते थे तो घर जाने की बजाय सीधा बहु बाजार स्थित प्रयोगशाला में जाते थे। वे प्रयोगशाला में घंटों अपने शोध पर मेहनत करते थे। पूरे दिन दफ्तर में काम करने के बाद फिर प्रयोगशाला में काम करना बहुत मुश्किल होता है। यह शारीरिक और मानसिक तौर पर थका देता है। इसलिए लेखक ने ऐसे काम को हठयोग की संज्ञा दी है।
Class 9 Hindi वैज्ञानिक चेतना के वाहक चंद्रशेखर वेंकट रामन Question Answers Lesson 4 – सार-आधारित प्रश्न (Extract Based Questions)
सार–आधारित प्रश्न बहुविकल्पीय किस्म के होते हैं, और छात्रों को पैसेज को ध्यान से पढ़कर प्रत्येक प्रश्न के लिए सही विकल्प का चयन करना चाहिए। (Extract-based questions are of the multiple-choice variety, and students must select the correct option for each question by carefully reading the passage.)
गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सही विकल्प का चयन कीजिए –
1)
रामन् का जन्म 7 नवंबर सन् 1888 को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली नगर में हुआ था। इनके पिता विशाखापत्तनम् में गणित और भौतिकी के शिक्षक थे। पिता इन्हें बचपन से गणित और भौतिकी पढ़ाते थे। इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि जिन दो विषयों के ज्ञान ने उन्हें जगत-प्रसिद्ध बनाया, उनकी सशक्त नींव उनके पिता ने ही तैयार की थी। कॉलेज की पढ़ाई उन्होंने पहले ए,बी.एन. कॉलेज तिरुचिरापलली से और फिर प्रेसीडेंसी कॉलेज मद्रास से की। बी.ए. और एम.ए. दोनों ही परीक्षाओं में उन्होंने काफ़ी ऊँचे अंक हासिल किए।
i. रामन् का जन्म कब हुआ था?
(क) 7 नवंबर 1888
(ख) 8 नवंबर 1888
(ग) 9 नवंबर 1888
(घ) 10 नवंबर 1888
उत्तर: (क) 7 नवंबर 1888
ii. रामन् का जन्म कहां हुआ था?
(क) कर्नाटक
(ख) तिरुचिलापल्ली, तमिलनाडु
(ग) कोलकाता, बंगाल
(घ) विशाखापट्टनम
उत्तर: (ख) तिरुचिलापल्ली, तमिलनाडु
iii. रामन् के पिता क्या करते थे?
(क) डॉक्टर
(ख) इंजीनियर
(ग) अध्यापक
(घ) वैज्ञानिक
उत्तर: (ग) अध्यापक
iv. रामन् ने कॉलेज की पढ़ाई कहां से पूरी की?
(क) आईआईटी खड़गपुर
(ख) दिल्ली यूनिवर्सिटी
(ग) मद्रास यूनिवर्सिटी
(घ) प्रेसीडेंसी कॉलेज
उत्तर: (घ) प्रेसीडेंसी कॉलेज
2)
रामन् का मस्तिष्क विज्ञान के रहस्यों को सुलझाने के लिए बचपन से ही बेचैन रहता था। अपने कॉलेज के ज़माने से ही उन्होंने शोधकार्यों में दिलचस्पी लेना शुरू कर दिया था। उनका पहला शोधपत्र फिलॉसॉफिकल मैगज़ीन में बे
प्रकाशित हुआ था। उनकी दिली इच्छा तो यही थी कि वे अपना सारा जीवन शोधकार्यों को ही समर्पित कर दें, मगर उन दिनों शोधकार्य को पूरे समय के कैरियर के रूप में अपनाने की कोई खास व्यवस्था नहीं थी। प्रतिभावान छात्र सरकारी नौकरी की ओर आकर्षित होते थे। रामन् भी अपने
समय के अन्य सुयोग्य छात्रों की भाँति भारत सरकार के वित्त-विभाग में अफ़सर बन गए। उनकी तैनाती कलकत्ता में हुई।
कलकत्ता में सरकारी नौकरी के दौरान उन्होंने अपने स्वाभाविक रुझान को बनाए रखा। दफ़्तर से फ़ुर्सत पाते ही वे लौटते हुए बहू बाज़ार आते, जहाँ ‘इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस की प्रयोगशाला थी। यह अपने आपमें एक अनूठी संस्था थी, जिसे कलकत्ता के एक
डॉक्टर महेंद्रलाल सरकार ने वर्षों की कठिन मेहनत और लगन के बाद खड़ा किया था। इस संस्था का उद्देश्य था देश में वैज्ञानिक चेतना का विकास करना। अपने महान् उद्देश्यों के बावजूद इस संस्था के पास साधनों का नितांत अभाव था। रामन् इस संस्था की प्रयोगशाला में कामचलाऊ उपकरणों का इस्तेमाल करते हुए शोधकार्य करते। यह अपने आपमें एक आधुनिक हठयोग का उदाहरण था, जिसमें एक साधक दफ़्तर में कड़ी मेहनत के बाद बहू बाज़ार की इस मामूली-सी प्रयोगशाला में पहुँचता और अपनी इच्छाशक्ति के ज़ोर से भौतिक विज्ञान को समृद्ध बनाने के प्रयास करता।
i. रामन् का पहला शोध पत्र किसमें प्रकाशित हुआ?
(क) टाइम्स अखबार में
(ख) फिलॉसॉफिकल मैगज़ीन में
(ग) फेमिना मैगजीन में
(घ) रिसर्चगेट में
उत्तर: (ख) फिलॉसॉफिकल मैगज़ीन में
ii. रामन् सरकारी काम से समय मिलते ही बहु बाजार क्यों जाते थे?
(क) ‘इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस’ की प्रयोगशाला में शोध करने
(ख) सब्जी खरीदने
(ग) शोध हेतु उपकरण लाने
(घ) इनमे से कोई नहीं
उत्तर: (क) ‘इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस’ की प्रयोगशाला में शोध करने
iii. ‘इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस की प्रयोगशाला की स्थापना किसने की?
(क) सर सीवी रमन ने
(ख) सर आशुतोष मुखर्जी
(ग) डॉक्टर महेंद्रलाल सरकार ने
(घ) ए.जी. जोशी ने
उत्तर: (ग) डॉक्टर महेंद्रलाल सरकार ने
iv. ‘इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस की प्रयोगशाला का क्या उद्देश्य था?
(क) अच्छे वैज्ञानिक तैयार करना
(ख) वैज्ञानिक चेतना का विकास करना
(ग) अग्रेजों के लिए आधुनिक तकनीकी विकसित करना
(घ) भारतीयों को शिक्षित करना
उत्तर: (ख) वैज्ञानिक चेतना का विकास करना
3)
उस ज़माने के प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री सर आशुतोष मुखर्जी को इस प्रतिभावान युवक के बारे में जानकारी मिली। उन्हीं दिनों कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर का नया पद सृजित हुआ था। मुखर्जी महोदय ने रामन् के समक्ष प्रस्ताव रखा कि वे सरकारी नौकरी छोड़कर कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर का पद स्वीकार कर लें। रामन् के लिए यह एक कठिन निर्णय था। उस ज़माने के हिसाब से वे एक अत्यंत प्रतिष्ठित सरकारी पद पर थे, जिसके साथ मोटी तनख्वाह और अनेक सुविधाएँ जुड़ी हुई थीं। उन्हें नौकरी करते हुए दस वर्ष बीत चुके थे। ऐसी हालत में सरकारी नौकरी छोड़कर कम वेतन और कम सुविधाओं वाली विश्वविद्यालय की नौकरी में आने का फ़ैसला करना हिम्मत का काम था।
रामन् सरकारी नौकरी की सुख-सुविधाओं को छोड़ सन् 1917 में कलकत्ता विश्वविद्यालय की नौकरी में आ गए। रामन् ने अनेक ठोस रवों और तरल पदार्थों पर प्रकाश की किरण के प्रभाव का अध्ययन किया।
i. रामन् कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद पर कब नियुक्त हुए?
(क) 1915
(ख) 1916
(ग) 1917
(घ) 1918
उत्तर: (ग) 1917
ii. रामन् के समक्ष किसने कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद का प्रस्ताव रखा?
(क) अरिंदम घोष
(ख) सुभाष चन्द्र बोस
(ग) सर आशुतोष मुखर्जी
(घ) इनमे से कोई नहीं
उत्तर: (ग) सर आशुतोष मुखर्जी
iii. रामन् ने किसका अध्ययन किया?
(क) ठोस रवों और तरल पदार्थों पर प्रकाश की किरण के प्रभाव का
(ख) पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की संरचना की
(ग) न्यूटन के गति विषयक नियमों का
(घ) इनमे से कोई नहीं
उत्तर: (क) ठोस रवों और तरल पदार्थों पर प्रकाश की किरण के प्रभाव का
iv. सर आशुतोष मुखर्जी कौन थे?
(क) अर्थशास्त्री
(ख) शिक्षाशास्त्री
(ग) भुगोलविद
(घ) नेता
उत्तर: (ख) शिक्षाशास्त्री
4)
एकवर्णीय प्रकाश की किरणों में सबसे अधिक ऊर्जा बैंजनी रंग के प्रकाश में होती है। बैंजनी के बाद क्रमश: नीले, आसमानी, हरे, पीले, नारंगी और लाल वर्ण का नंबर आता है। इस प्रकार लाल-वर्णीय प्रकाश की ऊर्जा सबसे कम होती है।
रामन् की खोज भौतिकी के क्षेत्र में एक क्रांति के समान थी। इसका पहला परिणाम तो यह हुआ कि प्रकाश की प्रकृति के बारे में आइंस्टाइन के विचारों का प्रायोगिक प्रमाण मिल गया। आइंस्टाइन के पूर्ववर्ती वैज्ञानिक प्रकाश को तरंग के रूप में मानते थे, मगर आइंस्टाइन ने बताया कि प्रकाश अति सूक्ष्म कणों की तीत्र धारा के समान है। इन अति सूक्ष्म कणों की तुलना आइंस्टाइन ने बुलेट से की और इन्हें “फोटॉन’ नाम दिया। रामन् के प्रयोगों ने आइंस्टाइन की धारणा का प्रत्यक्ष प्रमाण दे दिया, क्योंकि एकवर्णीय प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन यह साफ़तौर पर प्रमाणित करता है कि प्रकाश की किरण तीत्रगामी सूक्ष्म कणों के प्रवाह के रूप में व्यवहार करती है।
रामन् की खोज की वजह से पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना का अध्ययन सहज हो गया। पहले इस काम के लिए इंफ्रा रेड स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाता था। यह मुश्किल तकनीक है और गलतियों की संभावना बहुत अधिक रहती है। रामन् की खोज के बाद पदार्थों की आणविक और परमाणविक संरचना के अध्ययन के लिए रामन् स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाने लगा। यह तकनीक एकवर्णीय प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन के आधार पर, पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की संरचना की सटीक जानकारी देती है।
i. एकवर्णीय प्रकाश की किरणों में सबसे अधिक ऊर्जा किस रंग की होती है?
(क) लाल
(ख) पीला
(ग) बैगनी
(घ) नीला
उत्तर: (ग) बैगनी
ii. एकवर्णीय प्रकाश की किरणों में सबसे कम ऊर्जा किस रंग की होती है?
(क) लाल
(ख) पीला
(ग) बैगनी
(घ) नीला
उत्तर: (क) लाल
iii. फोटान की खोज किसने की?
(क) आइंस्टाइन
(ख) प्लांक ने
(ग) सर सीवी रमन ने
(घ) न्यूटन ने
उत्तर: (क) आइंस्टाइन
iv. रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी किस में काम आता था?
(क) पदार्थ की अणु और परमाणु की सरंचना का पता लगाने में
(ख) किरणों के अपवर्तन में
(ग) रंगों के संश्लेषण में
(घ) इनमे से कोई नहीं
उत्तर: (क) पदार्थ की अणु और परमाणु की सरंचना का पता लगाने में
5)
रामन् प्रभाव की खोज ने रामन् को विश्व के चोटी के वैज्ञानिकों की पंक्ति में ला खड़ा किया। पुरस्कारों और सम्मानों की तो जैसे झड़ी-सी लगी रही। उन्हें सन्
1924 में रॉयल सोसाइटी की सदस्यता से सम्मानित किया गया। सन् 1929 में उन्हें ‘सर’ की उपाधि प्रदान की गई। ठीक अगले ही साल उन्हें विश्व के सर्वोच्च पुरस्कार-भौतिकी में नोबेल पुरस्कार-से सम्मानित किया गया। उन्हें और भी कई पुरस्कार मिले, जैसे रोम का मेत्यूसी पदक, रॉयल सोसाइटी का ह्यूज़ पदक, फ़िलोडेल्फ़िया इंस्टीट्यूट का फ्रैंकलिन पदक, सोवियत रूस का अंतर्राष्ट्रीय लेनिन पुरस्कार आदि। सन् 1954 में रामन् को देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। वे नोबेल पुरस्कार पानेवाले पहले भारतीय वैज्ञानिक थे। उनके बाद यह पुरस्कार भारतीय नागरिकता वाले किसी अन्य वैज्ञानिक को अभी तक नहीं मिल पाया है। उन्हें अधिकांश सम्मान उस दौर में मिले जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था। उन्हें मिलने वाले सम्मानों ने भारत को एक नया आत्म-सम्मान और आत्म-विश्वास दिया। विज्ञान के क्षेत्र में उन्होंने एक नयी भारतीय चेतना को जाग्रत किया।
भारतीय संस्कृति से रामन् को हमेशा ही गहरा लगाव रहा। उन्होंने अपनी भारतीय पहचान को हमेशा अक्षुण्ण रखा। अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि के बाद भी उन्होंने अपने दक्षिण भारतीय पहनावे को नहीं छोड़ा। वे कट्टर शाकाहारी थे और मदिरा से सख्त परहेज़ रखते थे। जब वे नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने स्टॉकहोम गए तो वहाँ उन्होंने अल्कोहल पर रामन् प्रभाव का प्रदर्शन किया। बाद में आयोजित पार्टी में जब उन्होंने शराब पीने से इनकार किया तो एक आयोजक ने परिहास में उनसे कहा कि रामन् ने जब अल्कोहल पर रामन् प्रभाव का प्रदर्शन कर हमें आह्वादित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, तो रामन् पर अल्कोहल के प्रभाव का प्रदर्शन करने से परहेज क्यों?
रामन् का वैज्ञानिक व्यक्तित्व प्रयोगों और शोधपत्र-लेखन तक ही सिमटा हुआ नहीं था। उनके अंदर एक राष्ट्रीय चेतना थी और वे देश में वैज्ञानिक दृष्टि और चिंतन के विकास के प्रति समर्पित थे। उन्हें अपने शुरुआती दिन हमेशा ही याद रहे।
i. रामन् को रॉयल सोसायटी की सदस्यता कब मिली?
(क) 1924
(ख) 1929
(ग) 1954
(घ) 1967
उत्तर: (क) 1924
ii. रामन् को सर की उपाधि कब मिली?
(क) 1924
(ख) 1929
(ग) 1954
(घ) 1967
उत्तर: (ख) 1929
iii. रामन् को विश्व के सर्वोच्च पुरस्कार-भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से कब सम्मानित किया गया?
(क) 1924
(ख) 1929
(ग) 1927
(घ) 1930
उत्तर: (घ) 1930
iv. रामन् को भारत रत्न कब मिला?
(क) 1924
(ख) 1929
(ग) 1954
(घ) 1967
उत्तर: (ग) 1954
Class 9 Hindi वैज्ञानिक चेतना के वाहक चंद्रशेखर वेंकट रामन प्रश्न और उत्तर (including questions from Previous Years Question Papers)
Q1. रामन् के प्रारंभिक जीवन पर प्रकाश डालिए?
उत्तर: रामन् का जन्म 7 नवंबर सन् 1888 को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली नगर में हुआ था। इनके पिता विशाखापत्तनम् में गणित और भौतिकी के शिक्षक थे। ये बचपन में पिता से ही गणित और भौतिकी पढ़ते थे। कॉलेज की पढ़ाई उन्होंने पहले ए,बी.एन. कॉलेज तिरुचिरापलली से और फिर प्रेसीडेंसी कॉलेज मद्रास से की। बी.ए. और एम.ए. दोनों ही परीक्षाओं में उन्होंने काफ़ी ऊँचे अंक हासिल किए।
Q2. ‘इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस की प्रयोगशाला के बारे में बताइए?
उत्तर: यह बहू बाहर ने स्थित थी एवं अपने आपमें एक अनूठी संस्था थी, जिसे कलकत्ता के एक डॉक्टर महेंद्रलाल सरकार ने वर्षों की कठिन मेहनत और लगन के बाद खड़ा किया था। इस संस्था का उद्देश्य था देश में वैज्ञानिक चेतना का विकास करना। अपने महान् उद्देश्यों के बावजूद इस संस्था के पास साधनों का नितांत अभाव था।
Q3. रामन् वाद्य यंत्रों में खोज क्यों करना चाहते थे?
उत्तर: रामन् के समय में पश्चिमी देशों में यह भ्रांति फैली हुई थी कि भारतीय वाद्य यंत्र क्वालिटी में बहुत घटिया होते हैं तभी रामन भारतीय वाद्य यंत्रों, जैसे; वीणा आदि के साथ-साथ विदेशी वाद्य यंत्रों में भी खोज करके यह सिद्ध करना चाहते थे कि यह भ्रांति बिल्कुल गलत है।
Q4. रमन प्रभाव क्या है?
उत्तर: रामन् ने अनेक ठोस रवों और तरल पदार्थों पर प्रकाश की किरण के प्रभाव का अध्ययन ही रमन प्रभाव के नाम से प्रसिद्ध है, जिसमे सर सीवी रमन ने यह बताया कि जब एकवर्णीय प्रकाश की किरण किसी तरल या ठोस रवेदार पदार्थ से गुजरती है तो गुजरने के बाद अणुओं से टकराते हैं तो इस टकराव के परिणामस्वरूप वे या तो ऊर्जा का कुछ अंश खो जाने के बाद उसके वर्ण में परिवर्तन आता है।
Q5. रामन् को कौन कौन से पुरस्कार मिले?
उत्तर: रामन् को सन् 1924 में रॉयल सोसाइटी की सदस्यता से सम्मानित किया गया। सन् 1929 में उन्हें ‘सर’ की उपाधि प्रदान की गई। 1930 में उन्हें विश्व के सर्वोच्च पुरस्कार-भौतिकी में नोबेल पुरस्कार-से सम्मानित किया गया। इसके अलावा उनको रोम का मेत्यूसी पदक, रॉयल सोसाइटी का ह्यूज़ पदक, फ़िलोडेल्फ़िया इंस्टीट्यूट का फ्रैंकलिन पदक, सोवियत रूस का अंतर्राष्ट्रीय लेनिन पुरस्कार आदि पुरस्कार भी मिले। सन् 1954 में रामन् को देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
Q6. रामन् की खोज ने भौतिक विज्ञान के क्षेत्र मे क्या बदलाव लाए?
उत्तर: रामन् की खोज का पहला परिणाम तो यह हुआ कि प्रकाश की प्रकृति के बारे में आइंस्टाइन के विचारों का प्रायोगिक प्रमाण मिल गया। रामन् के प्रयोगों ने आइंस्टाइन की धारणा का प्रत्यक्ष प्रमाण दे दिया, क्योंकि एकवर्णीय प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन यह साफ़तौर पर प्रमाणित करता है कि प्रकाश की किरण तीत्रगामी सूक्ष्म कणों के प्रवाह के रूप में व्यवहार करती है। रामन् की खोज की वजह से पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना का अध्ययन सहज हो गया।
Q7. रामन् के साथ स्टॉकहोम में क्या हुआ?
उत्तर: जब वे नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने स्टॉकहोम गए तो वहाँ उन्होंने अल्कोहल पर रामन् प्रभाव का प्रदर्शन किया। बाद में आयोजित पार्टी में जब उन्होंने शराब पीने से इनकार किया तो एक आयोजक ने परिहास में उनसे कहा कि रामन् ने जब अल्कोहल पर रामन् प्रभाव का प्रदर्शन कर हमें आह्वादित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, तो रामन् पर अल्कोहल के प्रभाव का प्रदर्शन करने से परहेज क्यों?
Q8. रमन की खोज से आइंस्टाइन का क्या संबंध है?
उत्तर: रामन् की खोज का से ही प्रकाश की प्रकृति के बारे में आइंस्टाइन के विचारों का प्रायोगिक प्रमाण मिल गया। रामन् के प्रयोगों ने आइंस्टाइन की धारणा का प्रत्यक्ष प्रमाण दे दिया, क्योंकि एकवर्णीय प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन यह साफ़तौर पर प्रमाणित करता है कि प्रकाश की किरण तीत्रगामी सूक्ष्म कणों के प्रवाह के रूप में व्यवहार करती है।
Q9. रमन ने “रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट” की स्थापना क्यों की?
उत्तर: रमन ने बैंगलोर में “रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट” की स्थापना इसलिए की क्योंकि जीवन के शुरूआती दिनों में उनको बेहद हो कम उन्नत और कम उपकरणों वाली प्रयोगशाला में कामचलाउ शोध करके संतोष होना पड़ता था, वो नहीं चाहते थे कि भारतीय युवा ऐसे चीजों का सामना करे। इसके अलावा उन्होंने इंडियन जर्नल ऑफ फिजिक्स नामक शोध पत्रिका भी प्रारंभ की।
Q10. रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कॉपी से किस प्रकार अलग था?
उत्तर: परंपरागत तौर पर पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना का अध्ययन इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कॉपी से किया जाता था जिसमे गलती की बहुत अधिक संभावना होती थी। रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी एकवर्णीय प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन के आधार पर, पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की संरचना की सटीक जानकारी देती है।
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