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‘टोपी’ Summary, Explanation, Question and Answers and Difficult word meaning

Topi (टोपी) CBSE Class 8 Hindi Lesson 18 summary with detailed explanation of the lesson ‘Topi’ along with the meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary and all the exercises, Question and Answers given at the back of the lesson

Topi Class 8 Chapter 18

कक्षा 8 पाठ 18 टोपी

लेखक – संजय

 

Topi Class 8 Video Explanation

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टोपी पाठ प्रवेश

संजय की कहानी “टोपी” एक लोक कथा है। इस कहानी के द्वारा लेखक ने सामाजिक समस्याओं को उजागर करने का प्रयास किया है। यह कहानी शासक वर्ग से जनता के सम्बन्धों की समीक्षा करती है। लेखक ने इस कहानी में एक नन्हीं गौरैया के दृढ़ निश्चय और प्रयासों का वर्णन किया है और लेखक के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति नन्ही गौरैया से प्रेरित हो सकता है और अपने जीवन को सफल और अर्थ-पूर्ण बना सकता है। इसमें लेखक ने राजा और उसके मंत्रियों का जनता के ऊपर दबाव को बहुत ही अच्छे तरीके से दिखाया है। एक छोटी गौरैया भी राजा का सच को सभी जनता के सामने ला सकती, यह दिखाया गया है। लेखक ने यह समझाने का प्रयास भी किया है कि सबको उसके काम के बदले उचित मेहनताना मिले, पूरी मजदूरी मिले तो किसी को भी अच्छा काम करने में ख़ुशी मिलेगी और कोई भी अपना काम पूरी ईमानदारी के साथ ख़ुशी-ख़ुशी करेगा। 

 

टोपी पाठ सार

यह कहानी एक गौरैया के जोड़े की है। उन दोनों में बहुत प्रेम था। एक-दूसरे के बगैर वे कोई भी काम नहीं करते थे। एक बार मादा गौरैया ने किसी मनुष्य को कपड़े पहने देखा तो उसकी प्रशंसा की परंतु नर गौरैया ने कहा कि वस्त्रों से मनुष्य सुन्दर नहीं लगता, वह तो मनुष्य के वास्तविक सौंदर्य को ढाक लेता है। परन्तु मादा गौरैया को टोपी पहनने का मन करता है, नर गौरैया कहता है कि हमें वस्त्रों की कोई आवश्यकता नहीं हम तो ऐसे ही ठीक हैं। मगर मादा गौरैया अपनी जिद की पक्की थी, उसने निश्चय कर लिया था कि वह टोपी बनवाकर ही रहेगी।
एक दिन उसे रूई का टुकड़ा मिला, जिसे पहले वह धुनिया के पास ले जा कर धुनवाती है, फिर सूत कतवाने के लिए कोरी के पास ले जाती है तथा दोनों को बनवाई आधा-आधा हिस्सा मजदूरी दे देती है। गौरैया धागा बनवाने के बाद बुनकर के पास जाती है और बुनकर को कपड़े का आधा हिस्सा मजदूरी देकर तथा अपना कपड़ा लेकर दर्जी के पास जाती है तथा उसे भी उसकी मजदूरी देकर, उससे दो टोपियाँ बनवा लेती है। दर्जी ने खुश हो कर उसकी टोपी में पाँच ऊन के फूल भी लगा दिए।
चिड़िया की टोपी बहुत सुन्दर बनी थी। चिड़िया के मन में राजा से मिलने की इच्छा उत्पन्न हुई, तो वह राजा के महल की ओर उड़ चली। चिड़िया राजा के महल पहुँची, तो राजा छत पर मालिश करवा रहा था। चिड़िया ने राजा का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया। राजा को क्रोध आ गया। उसने अपने सैनिकों को उस चिड़िया को मारने के लिये कहा पर सैनिकों ने उसे मारा नहीं राजा के कहने पर उसकी टोपी छीन ली।
राजा उसकी सुन्दर टोपी देखकर हैरान था कि उस चिड़िया के पास इतनी सुन्दर टोपी कहाँ से आई। राजा हैरान था की इतनी सुन्दर टोपी किसने बनाई। उसने अपने सेवकों द्वारा उस दर्ज़ी को बुलवाया। दर्जी ने टोपी सुन्दर बनने का कारण अच्छा कपड़ा बताया। इस प्रकार क्रमशः बुनकर, कोरी व धुनिया को बुलावा भेजा। उन्होंने बताया की उन्होंने बहुत अच्छा काम इसलिए किया है क्योंकि उन्हें मजदूरी बहुत अच्छी मिली थी।
चिड़िया ने राजा को कहा कि उसने सारा कार्य पूरी कीमत चुकाकर करवाया है। वह राजा पर आरोप लगाती है कि राजा कंगाल है, तभी प्रजा को बहुत सताता है, उन पर कर लगाता है और तभी उसने उसकी टोपी भी छीन ली है क्योंकि वह खुद इतनी अच्छी टोपी नहीं बनवा सकता। राजा को अपनी पोल खुलने का डर हो जाता है इसलिए वह चिड़िया की टोपी वापस कर देता है। चिड़िया राजा को डरपोक-डरपोक कहती हुई निकल जाती है। 

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टोपी पाठ की व्याख्या

पाठ – एक थी गवरइया (गौरैया) और एक था गवरा (नर गौरैया)। दोनों एक दूजे के परम संगी। जहाँ जाते, जब भी जाते साथ ही जाते। साथ हँसते, साथ ही रोते, एक साथ खाते-पीते, एक साथ सोते। 

शब्दार्थ
एक दूजे –
एक दूसरे
परम संगी – मुख्य साथी

व्याख्या – लेखक अपनी कहानी के मुख्य पात्रों का परिचय देते हुए कहते हैं कि एक गवरइया यानी मादा गौरैया थी और एक गवरा यानि नर गौरैया था। दोनों एक-दूसरे के मुख्य साथी थे। वे जहाँ भी जाते, जब भी जाते एक-साथ ही जाते थे। वे एक-साथ ही हँसते थे, एक-साथ ही रोते थे, एक-साथ ही खाते-पीते और एक-साथ ही सोते थे। लेखक कहना चाहते हैं कि वे दोनों एक-दूसरे के बगैर न तो कहीं जाते थे और न ही कोई काम करते थे। 

पाठ – भिनसार होते ही खोंते से निकल पड़ते दाना चुगने और झुटपुटा होते ही खोंते में आ घुसते। थकान मिटाते और सारे दिन के देखे-सुने में हिस्सेदारी बटाते।

शब्दार्थ
भिनसार –
प्रातः काल
दाना चुगने और झुटपुटा – वह समय जब कुछ-कुछ अँधेरा और कुछ-कुछ उजाला हो
खोंते – घोंसले
थकान – कमज़ोरी
हिस्सेदारी – भागीदारी

व्याख्या – लेखक कहते हैं कि दोनों गौरैया प्रातः काल होते ही अपने घोंसले से दाना चुगने निकल पड़ते और शाम को जब प्रकाश और अन्धकार का मिलन हो रहा होता वे अपने घोंसले में आ जाते। दिन भर की अपनी थकान को मिटाते और दिन-भर जो कुछ देखा-सुना होता उसकी बातें करते। दोनों एक-दूसरे के दुःख-सुख के साथी थे। 

पाठ – एक शाम गवरइया बोली, “आदमी को देखते हो? कैसे रंग-बिरंगे कपड़े पहनते हैं! कितना फबता है उन पर कपड़ा!’’
“खाक फबता है!’’ गवरा तपाक से बोला, “कपड़ा पहन लेने के बाद तो आदमी और बदसूरत लगने लगता है।’’
“लगता है आज लटजीरा चुग गए हो?’’ गवरइया बोल पड़ी। 

शब्दार्थ
फबता
– सुन्दर
तपाक – जल्दी
बदसूरत – बुरा दिखना
लटजीरा – एक पौधा

व्याख्या – लेखक कहते हैं कि एक शाम जब दोनों गौरैया दाना चुग कर अपने घौंसले में लौटी तो मादा गौरैया नर गौरैया से बोली कि क्या वह आदमी को देखता है? सभी आदमी कितने सूंदर रंग-बिरंगे कपड़े पहनते हैं। उन लोगो पर कपड़ा कितना अच्छा लगता है। असल में मादा गौरैया को इंसानों के कपड़ों ने आकर्षित कर दिया था। उसकी इस बात पर नर गौरैया एकाएक बोल पड़ा कि उन पर कोई कपड़ा नहीं अच्छा लगता, बल्कि कपड़े पहन लेने के बाद तो इंसान और भी ज्यादा बदसूरत लगता है। उसकी ऐसी बातें सुन कस्र मादा गौरैया गुस्से से बोलती है कि लगता है आज वह लटजीरा नामक पौधे को चुग कर आया है जो ऐसी बेकार की बातें कर रहा है। 

पाठ – “कपड़े पहन लेने के बाद आदमी की कुदरती खूबसूरती ढँक जो जाती है।’’ गवरा बोला, ’’अब तू ही सोच! अभी तो तेरी सुघड़ काया का एक-एक कटाव मेरे सामने है, रोंवें-रोंवें की रंगत मेरी आँखों में चमक रही है। 

शब्दार्थ
कुदरती –
स्वाभाविक
सुघड़ – सुन्दर
काया – तन
कटाव – आकार
रोंवें-रोंवें की रंगत – रंग 

व्याख्या – अपने आप को सही साबित करते हुए नर गौरैया कहता है कि कपड़े पहन लेने के बाद आदमी की प्राकृतिक खूबसूरती ढँक जाती है। प्रकृति ने जो सुंदरता मनुष्य को दी है मनुष्य उसे कपड़ों के द्वारा नष्ट कर देते हैं। आगे नर गौरैया मादा गौरैया से कहता है कि अब वो खुद ही सोच कर देखे की अभी तो उसके सुन्दर शरीर का आकार उसके सामने है, अंग-अंग का रंग उसकी आँखों में चमक ला देता है। 

पाठ – अब अगर तू मानुस की तरह खुद को सरापा ढँक ले तो तेरी सारी खूबसूरती ओझल हो जाएगी कि नहीं?’’
’’कपड़े केवल अच्छा लगने के लिए नहीं, गवरइया बोली, ’’मौसम की मार से बचने के लिए भी पहनता है आदमी।’’

शब्दार्थ
मानुस –
मनुष्य
खुद को सरापा – सिर से पाँव तक पहने जाना वाला वस्त्र
ओझल – दिखाई न देना

व्याख्या – नर गौरैया मादा गौरैया को समझते हुए कहता है कि अब अगर वह मनुष्यों की तरह खुद को कपड़ों से पूरा ढँक ले तो उसकी सारी खूबसूरती ही गायब हो जाएगी या नहीं। यह प्रश्न नर गौरैया, मादा गौरैया के सामने रख देता है। इस प्रश्न का उत्तर देते हुए मादा गौरैया कहती है कि केवल अपने आप को सुन्दर दिखाने के लिए ही मनुष्य कपड़े नहीं पहनता बल्कि गर्मी-सर्दी-बरसात जैसे मौसमों की मार से खुद को बचाने के लिए भी मनुष्य कपड़ों का सहारा लेता है।  

पाठ – “फिर भी आदमी कपड़ा पहनने से बाज नहीं आता।’’ गवरइया बोली। “नित नए-नए लिबास सिलवाता रहता है।’’
“यह निरा पोंगापन है।’’ गवरा बोला, “आदमी तो लिबास से फकत लाज ही नहीं ढँकता, हाथ-पैर जो चलने-फिरने, काम करने के वास्ते हैं, उन्हें भी दस्ताने और मोजे से ढँक लेता है। 

शब्दार्थ
नए-नए लिबास
– पहनावा या पोशाक
निरा – एकमात्र
पोंगापन – पागलपन
फकत – केवल
लाज – शर्म
वास्ते – लिए 

व्याख्या – मादा गौरैया आगे कहती है कि चाहे जो भी हो आदमी कभी कपड़े पहनने से बाज नहीं आता। वह हमेशा ही नए-नए कपड़े पहनता और सिलवाता रहता है। उसे तो केवल कपड़े सिलवाने का कोई बहाना चाहिए होता है। इस पर नर गौरैया कहता है कि यह सब मनुष्यों का पागलपन है। मनुष्य केवल कपड़ों से अपनी शर्म को ही नहीं छुपाता बल्कि वह तो अपने काम करने के अंगों जैसे हाथ-पैर आदि को भी ढँक देता है। हाथों में दस्ताने पहन लेता है और पैरों को मोजों से ढँक देता है। लेखक के अनुसार यह मनुष्यों का काम के प्रति आलस को दिखाता है। 

पाठ – सिर पर लटें हैं, उन्हें भी टोपी से ढँक लेता है। अपन तो नंगे ही भले।’’
“उनके सिर पर टोपी कितनी अच्छी लगती है।’’ गवरइया बोली, “मेरा भी मन टोपी पहनने का करता है।’’
“टोपी तू पाएगी कहाँ से?’’ 

शब्दार्थ
अपन –
हम

व्याख्या – नर गौरैया मादा गौरैया से कहता है कि मनुष्य अपने शरीर, हाथ-पैर ही नहीं ढकता बल्कि वह तो सिर को भी टोपी से ढँक लेता है, जबकि सिऱ पर तो लटें होती हैं, तो उसे ढकने का क्या फायदा। नर गौरैया मादा गौरैया को कहता है कि वे लोग तो नंगे ही भले हैं क्योंकि वे प्रकृति द्वारा दी गई सुंदरता को नहीं ढकते। नर गौरैया की बात को काटते हुए मादा गौरैया कहती है कि मनुष्यों के सिर पर टोपी कितनी अच्छी लगती है। उसका भी मन करता है कि वह भी टोपी पहने। मादा गौरैया की बात सुनकर नर गौरैया उससे पूछता है कि वह टोपी कहाँ से लाएगी? 

पाठ – गवरा बोला, “टोपी तो आदमियों का राजा पहनता है। जानती है, एक टेापी के लिए कितनों का टाट उलट जाता है। जरा-सी चूक हुई नहीं कि टोपी उछलते देर नहीं लगती। अपनी टोपी सलामत रहे, इसी फिकर में कितनों को टोपी पहनानी पडत़ी है। मेरी मान तो तू इस चक्कर में पड़ ही मत।’’ गवरा था तनिक समझदार, इसलिए शक्की।
जबकि गवरइया थी जिद्दी और धुन की पक्की। ठान लिया सो ठान लिया, उसको ही जीवन का लक्ष्य मान लिया। 

शब्दार्थ
उलट –
दिवाला निकलना
चूक – भूल
उछलते – इज्जत जाना
सलामत – बनी रहे
फिकर – चिंता
तनिक – थोड़ा
शक्की – शक करने वाला
जिद्दी – जिद्द करने वाला
धुन की पक्की – कोई बात निश्चित कर लेना, तो उसको पूरा करके ही दम लेना
ठान – निश्चित
जीवन का लक्ष्य – उद्देश्य

व्याख्या – नर गौरैया मादा गौरैया को समझते हुए कहता है कि असली टोपी तो आदमियों का राजा पहनता है और क्या वह जानती है कि उस एक टेापी के लिए कितने ही लोगों का दिवाला निकल जाता है। अगर जरा-सी भी भूल हो जाती है तो इज्जत उछलने में देर नहीं लगती। मनुष्य अपनी इज्जत को बचाने के लिए ना जाने कितने लोगों को बेवकूफ बनाता फिरता है। नर गौरैया थोड़ा समझदार था इसलिए थोड़ा शक्की किसम का था अतः वह मादा गौरैया को समझते हुए कहता है कि वह उसकी बात मान ले और इस चक्कर को छोड़ दे। क्योंकि नर गौरैया के हिसाब से यह सही नहीं था। लेकिन मादा गौरैया बहुत ही जिद्दी और धुन की पक्की थी। वह जिस काम को एक बार करने के बारे में सोच लेती थी उसे किए बगैर पीछे नहीं हटती थी। उसने तय कर लिया कि वह टोपी पहन कर रहेगी और इसी को उसने अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया। 

पाठ – कहा गया है- जहाँ चाह, वहीं राह। मामूल के मुताबिक अगले दिन दोनों घूरे पर चुगने निकले। चुगते-चुगते उसे रुई का एक फाहा मिला। ’’मिल गया— मिल गया— मिल गया—’’ गवरइया मारे खुशी के घूरे पर लोटने लगी।  

शब्दार्थ
मामूल –
नित्य-नियम
मुताबिक – अनुसार
घूरे – कूड़ा-करकट
फाहा – टुकड़ा

व्याख्या – लेखक कहता है कि मादा गौरैया अपनी धुन की पक्की थी, उसने निश्चय कर लिया था कि वह टोपी पा कर ही रहेगी और शायद ईश्वर भी उसके साथ था। जैसे कहा भी गया है कि जहाँ चाह, वहीं राह। यानि जहाँ किसी चीज को पाने के लिए शिदद्त से कोशिश की जाए वहाँ रास्ता निकल ही आता है। अगली सुबह रोज  की तरह नर गौरैया और मादा गौरैया कूड़े के ढेर को चुगने निकले। चुगते-चुगते मादा गौरैया को रुई का एक टुकड़ा मिल गया। रुई का टुकड़ा मिलते ही मादा गौरैया मनो ख़ुशी से पागल हो गई और मिल गया, मिल गया, मिल गया इस तरह चिल्लाते हुए कूड़े के ढेर पर लोटने लगी।  

पाठ – “अरे— क्या मिल गया, रे!’’ गवरे ने चिहाकर पूछा।
“मिल गया— मिल गया— टोपी का जुगाड मिल गया—’’ गवरइया ने गवरे के सामने रुई का फाहा धर दिया ।
“तेरे जैसा ही एक बावरा और था।’’ गवरा बोला, “रास्ता चलते-चलते उसे अचानक एक दिन पडा़ हुआ चाबुक मिल गया।

शब्दार्थ
चिहाकर
– चकित होकर
जुगाड – उपाय
धर दिया – रख दिया
बावरा – दीवाना
अचानक – एकाएक
चाबुक – कोड़ा

व्याख्या – लेखक कहता है कि जब मादा गौरैया पागलों की तरह चिल्ला रही थी कि मिल गया, मिल गया तो नर गौरैया ने हैरान होकर उससे पूछा कि वह क्यों पागल हो रही है और उसे क्या मिल गया है? मादा गौरैया ने रुई का टुकड़ा नर गौरैये के सामने रखा और बोली कि मिल गया, मिल गया, टोपी को बनाने का उपाय मिल गया। मादा गौरैये के इस पागलपन को देख-कर नर गौरैया उसे एक कहानी सुनाना शुरू करता है कि उसी की तरह एक पागल दीवाना था। एक दिन अचानक से उसे रास्ते में चलते-चलते एक कोड़ा मिल गया। 

पाठ – चाबुक था बडा़ उम्दा और लचकदार। किसी घुड़सवार के हाथ से छूटकर गिर गया होगा। चाबुक हाथ लगते ही वह बावरा चीखने लगा- ‘चाबुक तो मिल गया, बाकी बचा तीन घोड़ा-लगाम-जीन’। अब ये तीनों तो रास्ते में पडे़ मिलने से रहे। सब काम-धंधा छोड़ वह बावरा ताउम्र यह रटता रहा- ‘बाकी बचा तीन घोडा़-लगाम-जीन।’ गवरा उसे समझाते हुए बोला, “इस रुई के फाहे से लेकर टोपी तक का सफर— तुझे कुछ अता-पता है?’’
“बस देखते जाओ— अब कैसे बनती है टोपी।’’ 

शब्दार्थ
बडा़ उम्दा –
बहुत अच्छा
लचकदार – लचीला
बावरा – पागल
ताउम्र – सारी उम्र

व्याख्या – नर गौरैया आगे की कहानी सुनाता हुआ कहता है कि वह कोड़ा बहुत ही अच्छा और लचीला था। शायद वह किसी घुड़सवार के हाथ से छूटकर गिर गया था। कोड़ा हाथ लगते ही वह पागल दीवाना भी मादा गौरैया की तरह ही चीखने लगा कि कोड़ा तो मिल गया, बाकी तीन चीज़ें घोड़ा, लगाम और जीन बच गए। अब ये तीनों चीजें उसे कोड़े की तरह रास्ते में पडे़ हुए तो मिलने वाले नहीं थे। तो वह पागल दीवाना अपना सारा काम-धंधा छोड़ कर पूरी जिंदगी बस यही दोहराता रहा कि  बाकी तीन चीज़ें घोड़ा, लगाम और जीन बच गए। नर गौरैया असल में मादा गौरैया को यह समझना चाहता था कि वह टोपी पाने की अपनी फ़ालतू जिद्द छोड़ दे क्योंकि वह साडी उम्र भी टोपी नहीं पा सकेगी। नर गौरैया मादा गौरैया को समझते हुए कहता है कि क्या उसे रुई के टुकड़े से लेकर टोपी बनने तक के टोपी के सफर के बारे में कुछ भी पता है। इसका जवाब देते हुए मादा गौरैया बड़े आत्मविश्वास के साथ कहती है कि वह बस अब यह देखता जाए कि अब टोपी कैसे बनती है। 

पाठ – गवरइया रुई का फाहा लिए एक धुनिया के पास चली गई और बड़े मनुहार से बोली, “धुनिया भइया-धुनिया भइया! इस रुई के फाहे को धुन दो।’’
धुनिया बेचारा बूढ़ा था। जाड़े का मौसम था। उसके तन पर वर्षों पुरानी तार-तार हो चुकी एक मिर्जई पड़ी हुई थी। वह काँपते हुए बोला, “तू जाती है कि नहीं! देखती नहीं, अभी मुझे राजा जी के लिए रजाई बनानी है। एक तो यहाँ का राजा ऐसा है जो चाम का दाम चलाता है। ऊपर से तू आ गई फोकट की रुई धुनवाने।’’

शब्दार्थ
मनुहार –
मनाना
जाड़े – सर्दी
तन – त्वचा
पुरानी तार-तार – फटी
मिर्जई – कपड़ा
चाम का दाम – अपना हुकुम चलाना
फोकट – मुफ्त

व्याख्या – लेखक कहते हैं कि मादा गौरैया बड़े उत्साह के साथ रुई का टुकड़ा लिए एक धुनिया के पास चली गई और उसे बड़े प्यार से मनाते हुए बोली कि धुनिया भइया-धुनिया भइया! इस रुई के टुकड़े को पीटकर मुलायम कर दो। धुनिया बेचारा बूढ़ा था। ऊपर से ठण्ड का मौसम था। उसके शरीर पर न जाने कितने वर्षों पुराना जर-जर हो चूका एक कपड़ा पड़ा हुआ था। वह ठण्ड से काँपते हुए मादा गौरैया से बोला कि वह उसे परेशां न करे, वहाँ से चली जाए। क्या वह यह नहीं देख रही है कि अभी उसे राजा जी के लिए रजाई बनानी है। धुनिया राजा की बुराई करते हुए कहता है कि एक तो यहाँ का राजा ऐसा है जो अपना ही हुक्म चलाता रहता है। दूसरों की परवाह नहीं करता और फिर मादा गौरैया से कहता है कि ऊपर से वह भी रुई के टुकड़े को मुफ्त में पिटवाकर मुलायम करने के लिए आ गई है। 

पाठ – “उज्र न करो भइए!’’ गवरइया बोली, “मैं तुम्हें पूरी उजरत दूँगी। इसे धुन दो, भइया! आधा तू ले ले, आधा मैं ले लूँगी।’’
धुनिए को अपनी जिंदगी में आज तक इतनी खरी मजूरी कभी न मिली थी। सोलह आने में आठ आने मजूरी तो इसके लिए सपना थी। 

शब्दार्थ
उज्र –
ऐतराज़
उजरत – मजदूरी
खरी – शुद्ध
मजूरी – मजदूरी
आठ आने – आधी-आधी

व्याख्या – धुनिए की बात सुनकर मादा गौरैया धुनिए से बोली कि वह रुई को पीटने में ऐतराज़ न करे क्योंकि वह उसे रुई पिटवाने की पूरी मजदूरी देगी। वह धुनिए से कहती है कि वह रुई को पीट कर मुलायम कर दे तो आधी रुई वह ले सकता है और आधी मादा गौरैया को दे सकता है। धुनिए को अपनी पूरी जिंदगी में आज तक इतनी अच्छी मजदूरी कभी न मिली थी। सोलह आने में आठ आने यानि आधी मजदूरी तो इसके लिए किसी सपने से काम नहीं थी। 

पाठ – वह झट तैयार हो गया। ‘घर्र-चों, घर्र-चों’ उसकी ताँती बज उठी। उसने बड़े मन से रुई धुनी, ’’लो इसे—।’’ उसमें से आधा धुनिया ने ले लिया और आधा गवरइया ने।

शब्दार्थ
झट –
तुरंत
उसकी ताँती – कपडा बुनने वाला औज़ार

व्याख्या – आधी मजदूरी की बात सुनते ही धुनिया एकदम से मादा गौरैया की रुई को पीट कर मुलायम करने के लिए तैयार हो गया। ‘घर्र-चों, घर्र-चों’ की आवाज के साथ ही उसका रुई पीटने का यंत्र शुरू हो गया। उसने  अपनी पूरी लग्न से रुई को पीट कर मुलायम कर दिया और उसमें से आधा ले लिया और आधा मादा गौरैया को दे दिया। 

पाठ – इससे उत्साहित गवरा-गवरइया एक कोरी के यहाँ गए और कहने लगे, “कोरी भइया-कोरी भइया, इस धुनी रुई से सूत कात दो।’’
कोरी की कमर झुकी हुई थी। उसने बदन पर धज्जी-धज्जी हो चुका एक धुस्सा डाल रखा था। वह बड़ी अनिच्छा से बोला, “तुम लोग यहाँ से भागते हो कि नहीं। देखते नहीं, अभी मुझे राजा जी के अचकन के लिए सूत कातने हैं। मुझे फुर्सत नहीं है मुफ्त में मल्लार गाने की।’’

शब्दार्थ
उत्साहित –
उत्साह से युक्त
कोरी – कताई करने वाला
धज्जी-धज्जी – टुकड़े-टुकड़े
धुस्सा – मोटा कंबल
अनिच्छा – बेमन
अचकन – लंबा कुर्ता
सूत – धागा
फुर्सत – खाली समय
मुफ्त में मल्लार – संगीत का एक राग, मल्हार

 

 

व्याख्या – जब धुनिया ने मादा गौरैया के रुई के टुकड़े को अच्छे से पीटकर मुलायम कर दिया तो इससे बहुत अधिक खुश नर गौरैया और मादा गौरैया एक कोरी के यहाँ गए और कहने लगे कि कोरी भइया-कोरी भइया इस मुलायम हो चुकी रुई के टुकड़े को कात कर सूत बना दो। किसी कारण से कोरी की कमर झुकी हुई थी। उसने अपने शरीर पर फटा-पुराना हो चुका एक कम्बल डाल रखा था। नर गौरैया और मादा गौरैया की बात सुन कर वह बिना काम करने की इच्छा से बोला कि वे लोग वहाँ से भागते हो कि नहीं। क्या उन्हें दिखाई नहीं दे रहा है कि अभी उसे राजा जी के लंबे कुर्ते के लिए सूत कातना हैं और रही बात नर गौरैया और मादा गौरैया के लिए सूत काटने की तो उसके पास इतना खाली समय नहीं है कि वह मुफ्त में किसी के लिए गाना गए यानि वह मुफ्त में कोई काम नहीं करता। 

पाठ – “भइया, इस मुल्क में सब काम क्या राजा जी के लिए ही होता है?’’ गवरइया अचरज से बोली।
“तू किस मुल्क से आई है?’’
कोरी ने उसे भर आँख देखा, “जानती नहीं यहाँ का चलन— खट मरे बरधा, बैठा खाय तुरंग। यहाँ सब काम राजा जी के नाम पर और राजा जी के लिए होता है। राजा जी के लगुए-भगुए भी तो बहुत हैं— इसी में उनका भी काम होता है।’’

शब्दार्थ
मुल्क –
देश
अचरज – हैरानी
आँख देखा – एक नजर देखा
खट मरे बरधा, बैठा खाय तुरंग – मेहनत करे हम, फल खाए दूसरा
लगुए-भगुए – चमचे

व्याख्या – कोरी की बात सुन-कर मादा गौरैया बहुत ही हैरानी के साथ कोरी से पूछती है कि भइया, इस देश में सब काम क्या सिर्फ राजा जी के लिए ही होता है? क्योंकि हर जगह मादा गौरैया को राजा जी के ही काम सुनाई पड़ रहे थे। कोरी ने मादा गौरैया को एक नजर भर देखा और पूछा कि वह किस देश से आई है? क्योंकि उसे इस देश के बारे में कुछ नहीं पता था। कोरी मादा गौरैया से कहता है कि क्या वह यह नहीं जानती कि इस देश का क्या माहौल है? यहाँ तो मेहनत कोई और करता है है और उसका फल कोई और ही ले जाता है। कोरी उन्हें बताता है कि यहाँ सब काम राजा जी के नाम पर और राजा जी के लिए ही होते हैं। राजा जी के आगे-पीछे उनकी चापलूसी करने वाले भी तो बहुत हैं और राजा जी के नाम पर उनका भी काम होता है।

पाठ – “मुकरो मत, भइया! हम तुम्हें माकूल मुआवजा देंगे।’’ गवरइया बोल पड़ी, “इसे कात दो— आधा तुम ले लो, आधा मैं ले लूँगी।’’
कोरी भी तैयार हो गया। इतनी वाजिब मजूरी पर काम न करना मूर्खता होती। ‘तन्न— तन्न’ करके उसकी तकली चरखी ताता-थैया करने लगी। काफी महीन और लच्छेदार सूत कात दिए उसने। 

शब्दार्थ
मुकरो –
अपनी बात पर बने न रहना
मुआवजा – उचित हर्ज़ाना
वाजिब – सही
मूर्खता – बेवकूफी
ताता-थैया – नाचने
महीन – पतला
लच्छेदार – रेशेदार

व्याख्या – कोरी को मनाते हुए नर गौरेया और मादा गौरैया बोले कि कोरी भइया तुम कृपया इंकार मत करो, वे उसे उसका पूरा उचित हर्ज़ाना देंगे। फिर मादा गौरैया कोरी से बोल पड़ी की वह उसके रुई के टुकड़े को कात दो और बदले में उसमें से आधा वह ले ले और आधा उसे दे दे। इस बात को सुनकर कोरी भी तैयार हो गया। इतनी सही मजदूरी पर कोई काम न करे तो वह जरूर ही मूर्ख होगा। वह पूरी लग्न से उस रुई के टुकड़े को कातने लगा। ‘तन्न— तन्न’ करके उसकी तकली चरखी ताता-थैया करके नाचने लगी। उसने बहुत ही पतला और रेशेदार सूत कात-कर नर गौरैया और मादा गौरैया को दिया। 

पाठ – कदम-कदम पर मिलते कामगारों के सहयोग ने गवरइया को आगे बढ़ने पर उकसा दिया। इसके बाद वे दोनों एक बुनकर के पास गए और इसरार करने लगे, “बुनकर भइया, बुनकर भइया, इस कते सूत से कपड़ा बुन दो।’’ 

शब्दार्थ
सूत –
धागा
सहयोग – मदद
उकसा – उत्साहित
इसरार – आग्रह

व्याख्या – लेखक कहते हैं कि कदम-कदम पर कामगारों का सहयोग मिलने के कारण मादा गौरैया को अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए और ज्यादा प्रोत्साहन मिल रहा था। सूत जब कात लिया गया तो उसके बाद वे दोनों एक बुनकर के पास गए और उससे आग्रह करने लगे कि बुनकर भइया, बुनकर भइया, इस कते हुए सूत से उनके लिए कपड़ा बुन दो। 

पाठ – बुनकर इन्हें अगबग होकर देखने लगा, “हटते हो कि नहीं यहाँ से! देखते नहीं, अभी मुझे राजा जी के लिए बागा बुनना है। अभी थोड़ी देर बाद ही राजा जी के कारिंदे हाजिर हो जाएँगे। साव करे भाव तो चबाव करे चाकर।’’ इतना कहकर बुनकर अपने काम में मशगूल हो गया। 

शब्दार्थ
अगबग –
परेशान
बागा – एक वस्त्र
कारिंदे – कर वसूली करने वाले
हाजिर – पहुँच
साव करे भाव तो चबाव करे चाकर – काम करे कोई और खा जाए कोई और
मशगूल – व्यस्त

व्याख्या – लेखक कहते हैं कि जब नर गौरैया और मादा गौरैया बुनकर के पास सूत से कपड़ा बुनवाने गए तो बुनकर उन्हें हैरान होकर देखता है और कहता है कि यहाँ से दूर भाग जाओ क्या उन्हें दिखाई नहीं दे रहा है कि अभी उसे राजा जी के लिए एक कपड़ा बुनना है। वह दोनों गौरैयों को यह भी बताता है कि अभी थोड़ी देर बाद ही राजा जी की ओर से कर वसूलने वाले आ जाएँगे। साव करे भाव तो चबाव करे चाकर यानि काम करे कोई और खा जाए कोई और। इतना कहकर बुनकर अपने काम में व्यस्त हो गया। 

पाठ – “इसे बुन दे भइया!’’ गवरइया ने साहस सँजोकर कहा, “हम सेंत-मेंत का काम नहीं करवाते। इसे बुन दे और आधा तू ले ले, आधा हम ले लेंगे।’’ 

शब्दार्थ
सँजोकर –
बटोरकर
सेंत-मेंत – मुफ्त

व्याख्या – बुनकर की बातें सुनकर मादा गौरैया को लगा कि वह बहुत गुस्से में है और उसका सूत नहीं बनेगा तो मादा गौरैया ने थोड़ी हिम्मत बटोरकर बुनकर से कहा कि वह उसका सूत बन दें क्योंकि वे मुफ्त में कोई काम नहीं करवाते। अगर वह उनके सूत का कपड़ा बना देगा तो आधा कपड़ा वह रख सकता है और आधा उन्हें दे सकता है। 

पाठ – बुनकर ने देखा कि सौदा बुरा नहीं है। वह तैयार हो गया। सूत अपनी ओर खींचकर ताना-बाना पसार दिया। उसका करघा चलने लगा, ढरकी ढुलकने लगी। थोड़ी ही देर में उसने काफ़ी गफश और दबीज कपड़ा बुन दिया। आधा उसने ले लिया और आधा इन्होंने। 

शब्दार्थ
करघा –
चरखा
ढरकी – कपड़ा बनाते हुए जुलाहे जिससे बाने का सूत फेंकते हैं
गफश – घना बना हुआ
दबीज – मजबूत 

व्याख्या – लेखक कहते हैं कि जब बुनकर ने मादा गौरैया से कपड़े  आधा-आधा बाँट लेने के सौदे के बारे में सुना तो उस ने देखा कि सौदा बुरा नहीं है। वह सूत बुनने के लिए तैयार हो गया। उसने मादा गौरैया से सूत अपनी ओर खींचकर अपना कपड़ा बुनने का काम शुरू कर दिया। उसका करघा चलने लगा, ढरकी ढुलकने लगी। वह बड़ी तेज़ी से काम करने लगा क्योंकि उसे राजा जी का कपड़ा भी बनाना था। थोड़ी ही देर में उसने काफ़ी घना और मजबूत कपड़ा बुन दिया। कपड़ा तैयार हुआ तो आधा-आधा उन्होंने बाँट लिया।

पाठ – गवरइया ने तीन चैथाई मंजिल मार ली थी। कपड़ा लिए-दिए वह एक दर्जी के पास जा पहुँची, ’’दर्जी भइया-दर्जी भइया, इसकी टोपी सिल दो।’’ 

शब्दार्थ
मंजिल –
हिस्सा

व्याख्या – लेखक कहते हैं कि मादा गौरैया ने अपने लक्ष्य के आधे से ज्यादा रास्ते को पार कर लिया था। बुनकर ने जब मादा गौरैया को कपड़ा बुनकर दे दिया तो वह कपड़ा ले कर एक दर्जी के पास जा पहुँची और दर्जी से प्रार्थना करने लगी कि दर्जी भइया-दर्जी भइया, उसके कपड़े की टोपी सिल दो।  

पाठ – “खिसकती हो कि नहीं यहाँ से।’’ दर्जी रोष से बोला, “देखते नहीं, राजा जी की सातवीं रानी से नौ बेटियों के बाद दसवाँ बेटा पैदा हुआ है। अब उस दसरतन के लिए मुझे ढेरों झब्ब सिलने हैं।’’ दर्जी ने माथे का पसीना पोंछते हुए ठंडी आह भरी, “कुछ देना, न लेना— भर माथे पसीना।’’ 

शब्दार्थ
खिसकती –
भागती या जाती
दर्जी रोस – गुस्से
झब्ब – झबला
आह भरी – निश्चिन्त होना 

व्याख्या – मादा गौरैया से कपड़े की टोपी बनाने की बात सुनकर दर्जी ने मादा गौरैया पर गुस्सा निकालते हुए कहा कि वह वहाँ से चली जाए। क्या वह यह नहीं देख पा रही है कि उसे राजा जी की सातवीं रानी से नौ बेटियों के बाद जो दसवाँ बेटा पैदा हुआ है, उसके लिए ढेरों झबले सिलने हैं। दर्जी बहुत ही व्यस्त नजर आ रहा था, उसने अपने माथे का पसीना पोंछते हुए ठंडी आह भरी और कहने लगा कि न तो इस काम से उसका कोई लेना है न देना है फिर भी कड़ी मेहनत कर पसीना बहाना पड़ रहा है। 

पाठ – “हम तो भइए, बेगार में कुछ करवाते नहीं।’’ गवरइया बोली, “इस बुने कपड़े की टोपी सिल दे। बल्कि दो टोपियाँ सिल दे। एक तू ले ले, एक हम ले लेंगे।’’
मुँह माँगी मजूरी पर कौन मूजी तैयार न होता। ‘कच्च-कच्च’ उसकी कैंची चल उठी और चूहे की तरह ‘सर्र-सर्र’ उसकी सूई कपड़े के भीतर-बाहर होने लगी। बड़े मनोयोग से उसने दो टोपियाँ सिल दीं। खुश होकर दर्जी ने अपनी ओर से एक टोपी पर पाँच फुँदने भी जड़ दिए। फुँदने वाली टोपी पहनकर तो गवरइया जैसे आपे में न रही। डेढ़ टाँगों पर ही लगी नाचने, फुदक-फुदककर लगी गवरा को दिखाने, “देख मेरी टोपी सबसे निराली— पाँच फुँदनेवाली।’’ 

शब्दार्थ
बेगार –
बिना मजदूरी का काम
मूजी – मजदूर
मनोयोग – मन
फुँदने  – सूत या ऊन आदि का फूल
जड़ – लगा
आपे में न रही – बेकाबू होना 

व्याख्या – जब दर्जी ने मादा गौरैया का कपडा सिलने से मना कर दिया तब वहाँ भी मादा गौरैया ने वही बात कही जो पहले सभी कारीगरों से कही थी कि वह तो मुफ्त में कोई काम नहीं करवाती। हर काम का उचित मूल्य देती है। वह दर्जी से बोली कि वह इस बुने कपड़े की टोपी सिल दे। बल्कि दो टोपियाँ सिल दे। एक वह दर्जी रख ले और दूसरी उसे दे दे। यदि किसी मजदूर को मुँह माँगी मजदूरी मिल रही हो तो कौन मजदूर काम करने को तैयार नहीं होता। ‘कच्च-कच्च’ करके दर्जी की कैंची चल उठी और चूहे की तरह ‘सर्र-सर्र’ उसकी सूई कपड़े के भीतर-बाहर होने लगी। उसने भी बहुत ही मन से दो टोपियाँ सिल दीं और-तो-और खुश होकर दर्जी ने अपनी ओर से एक टोपी पर पाँच ऊन के फूल भी जड़ दिए। ऊन के फूल वाली टोपी पहनकर तो मादा गौरैया जैसे आपे में न रही। वह उस टोपी को पहन कर बहुत ही ज्यादा खुश थी क्योंकि उसने जो काम करने का मन बनाया था वह भी पूरा हुआ था और उसकी टोपी पहनने की इच्छा भी पूरी हुई थी। ख़ुशी के मारे मादा गुरैया डेढ़ टाँगों पर ही नाचने लगी, फुदक-फुदककर नर गौरैया को दिखाने लगी कि उसकी पाँच ऊन के फूलों वाली टोपी सबसे अनोखी और सुंदर है। 

पाठ – “वाकई तू तो रानी लग रही है।’’ गवरे को भी आखिरकार कहना पड़ा। “रानी, नहीं, राजा कहो, मेरे राजा!’’ गवरइया ऊँचा उड़ने लगी, “अब कौन राजा मेरा मुकाबला करेगा।’’

शब्दार्थ
मुकाबला –
बराबरी

व्याख्या – जब मादा गौरैया ने अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लिया यानि जब मादा गौरैया ने अपने टोपी पहनने की इच्छा को पूरा कर लिया और वह अपनी पाँच ऊन के फूलों वाली टोपी को पहन कर खुशी से नाच रही थी और नर गौरैया से कह रही थी कि उसकी टोपी सबसे अनोखी और सुंदर है तो नर गौरैया को भी आखिरकार कहना ही पड़ा की वह टोपी पहन कर रानी लग रही है। लेकिन मादा गौरैया ने नर गौरैया की बात को बिच में ही काटते हुए कहा कि उसे रानी, नहीं, राजा कहा जाए। यह कह कर मादा गौरैया बहुत ऊँचा उड़ने लगी और कहने लगी कि अब कोई राजा उसका मुकाबला नहीं कर सकता। 

पाठ – टोपी पहनते ही उसके मन में एक नए हुलस ने जोर मारा कि क्यों न इस मुलुक के राजा का भी एक बार जायजा लिया जाए जिसके लिए इत्ते सारे काम होते हैं। उड़ते-उड़ते वह राजा के महल के कंगूरे पर जा बैठी। 

शब्दार्थ
हुलस –
ख़ुशी
मुलुक – देश
जायजा – देखा
इत्ते – बहुत
कंगूरे – चोटी, शिखर

व्याख्या – लेखक कहते हैं कि जैसे ही मादा गौरैया ने टोपी पहनी वैसे ही उसके मन में एक नया आनंद उमड़ने लगा था। अब वह सोचने लगी कि क्यों न इस देश के उस राजा को भी एक बार देख लिया जाए जिसके लिए इतने सारे लोग बेमन भी काम करते रहते हैं। क्योंकि मादा गौरैया ने सभी कारीगरों को जबरदस्ती राजा का काम करते देखा था। उड़ते-उड़ते वह राजा के महल के शिखर पर जा बैठी। 

पाठ – उसी वक्त राजा अपने चैबारे पर टहलुओं से खुली धूप में फुलेल की मालिश करवा रहा था। राजा उस वक्त अधनंगा बदन अैार नंगे सिर था। एक टहलुआ सिर पर चंपी कर रहा था, तो दूसरा हाथ-पाँव की उँगलियाँ फोड़ रहा था, तो तीसरा पीठ पर मुक्की मार रहा था तो चैथा पिंडली पर गुद्दी काढ़ रहा था।

शब्दार्थ
चैबारे –
आँगन
टहलुओं – नौकर
फुलेल – खुशबूदार तेल
चंपी – मालिश
उँगलियाँ फोड़ – उँगलियाँ बजाना
पिंडली – टांग का ऊपरी पिछला भाग
गुद्दी काढ़ – थकान निकालना

व्याख्या – जब मादा गौरैया ने पहली बार राजा को देखा तो राजा उस वक्त अपने आँगन में नौकरों के साथ मौजूद था। वह वहाँ खुली धूप में खुशबूदार तेल की मालिश करवा रहा था। राजा का शरीर उस वक्त अधनंगा था अैार उस समय राजा का सिर भी नंगा था। उस समय राजा ने अपनी टोपी नहीं पहनी थी। एक नौकर सिर की मालिश कर रहा था, तो दूसरा हाथ-पाँव की उँगलियाँ चटका रहा था, तो तीसरा पीठ पर मुक्के मार कर राजा को आराम दिला रहा था और चैथा पाँव के पिछले भाग की मालिश कर राजा की थकान को दूर कर रहा था।

पाठ – गवरइया कंगूरे पर से ही चिल्लाई, “मेरे सिर पर टोपी, राजा के सिर पर टोपी नहीं— राजा के सिर पर टोपी नहीं।’’
मालिश करवाते राजा की नज़र गवरइया से टकरा गई। गवरइया के सिर पर फुँदनेदार टोपी देखकर उसकी अकल चकरा गई। वह तो लगातार रटे (दोहराना) जा रही थी, “मेरे सिर पर टोपी, राजा के सिर पर टोपी नहीं।’’
“अरे कोई मेरी टोपी लाओ— जरा जल्दी।’’ राजा दोनों हाथों से अपना सिर ढँकते हुए चिल्लाया। टोपी आ गई। 

शब्दार्थ
अकल चकरा –
कुछ समझ में न आना
रटे – दोहराना

व्याख्या – जब मादा गौरैया ने देखा की राजा के सर पर कोई टोपी नहीं है और नर गौरैया झूट बोल रहा था कि सबसे सुंदर मनुष्यों के राजा की टोपी होती है तो मादा गौरैया वहीं शिखर पर से चिल्लाई कि उसके सिर पर टोपी है और राजा के सिर पर टोपी नहीं है, राजा के सिर पर टोपी नहीं है। उसे बहुत ख़ुशी हो रही थी। राजा ने जब यह सुना तो मालिश करवाते- करवाते ही राजा की नज़र मादा गौरैया से टकरा गई। मादा गौरैया के सिर पर ऊन के फूलों वाली टोपी देखकर राजा को कुछ भी समझ  था कि चिड़िया के पास इतनी सुंदर टोपी कहाँ से आ सकती है। परन्तु मादा गौरैया तो लगातार दोहराए जा रही थी कि उसके सिर पर टोपी है और राजा के सिर पर टोपी नहीं है। यह सुनकर राजा ने अपने सिर को दोनों हाथों से ढका और चिल्लाया कि अरे कोई उसकी टोपी को जरा जल्दी लाओ। राजा के आदेश देते ही उसकी टोपी आ गई। 

पाठ – राजा ने झट पहन भी ली, “देख री फदगुद्दी।’’
“मेरी टोपी में पाँच फुँदने’’, गवरइया ने अब दूसरा ही राग अलापना शुरू कर दिया। “राजा की टोपी में एक भी नहीं— मेरी टोपी में पाँच फुँदने, राजा की टोपी में फुँदने नहीं।’’ 

शब्दार्थ
फदगुद्दी
– एक छोटी चिड़िया
अलापना – अपनी बात कहते जाना

व्याख्या – जैसे ही राजा की टोपी लाई गई राजा ने एक दम से पहन भी ली और मादा गौरैया को दिखाते हुए बोला कि छोटी सी चिड़िया अब देख कि किसकी टोपी ज्यादा सुंदर है। राजा की बात सुनकर मादा गौरैया ने पहली बात छोड़ कर दूसरी बात को दोहराना शुरू कर दिया कि उसकी टोपी में पाँच ऊन के फूल और राजा की टोपी में एक भी ऊन का फूल नहीं……… उसकी टोपी में पाँच ऊन के फूल और राजा की टोपी में एक भी ऊन का फूल नहीं। 

पाठ – राजा को बेहद हेठी महसूस हुई। इस मुलुक के महाबली राजा के सामने एक चिड़िया की यह मजाल! वह बुरी तरह बिगड़ गया, “इस फदगुद्दी की गर्दन मसल दो— पखने नोच लो— सिपाहियों, देर न करो।’’
“खमा करें महाराज!’’ मंत्री ने हाथ जोड़ दिए, “मच्छर मारकर हाथ क्यों गंदा करना! अपने आप चली जाएगी।’’ 

शब्दार्थ
हेठी –
अपमान
महाबली – शक्तिशाली
मजाल – हिम्मत
मसल – मार देना
पखने – पँख
खमा – क्षमा

व्याख्या – जब मादा गौरैया अपनी टोपी को राजा की टोपी से ज्यादा सुंदर बता रही थी तो राजा को बहुत ज्यादा अपमान महसूस हुआ। वह सोचने लगा की वह इस देश का शक्तिशाली राजा है और उसके सामने एक छोटी सी चिड़िया इतनी हिम्मत दिखा रही है कि राजा का अपमान कर रही है।उससे बहुत बुरी तरह से गुस्सा आ गया और वह अपने सिपाहियों से बोल पड़ा कि इस छोटी सी चिड़िया की गर्दन मरोड़ कर मार डालो, इसके पंख उखाड़ दो और देर मत करो जल्दी से इस चिड़िया को मार दो। क्योंकि इसने राजा का अपमान किया है। राजा की बात सुन कर उसका मंत्री हाथ जोड़ कर कहता है कि क्षमा करे राजन, क्यों इस छोटी सी चिड़िया को मार कर अपने हाथ गंदे करे, यह अपने आप ही थोड़ी देर में चली जाएगी। 

पाठ – तब राजा सिपाहियों से बोला, “यह ऐसे नहीं मानेगी। इसकी टोपी छीन ले आओ— उसे मैं पैरों से ठोकर मारूँगा।’’
एक सिपाही ने गुलेल मारकर गवरइया की टोपी नीचे गिरा दी, तो दूसरे सिपाही ने झट वह टोपी लपक ली और राजा के सामने पेश कर दिया। 

शब्दार्थ
लपक
– झपटना

व्याख्या – मंत्री की बात सुनकर राजा ने मादा गौरैया को मारने का ख्याल बदल दिया और तब राजा ने सिपाहियों को आदेश दिया कि यह छोटी सी चिड़िया ऐसे नहीं मानेगी। इसकी टोपी छीन ले आओ, इसकी टोपी को वह पैरों से ठोकर मारेगा और इसे दिखायेगा की राजा का अपमान करने पर क्या-क्या हो सकता है? राजा का आदेश सुनते ही एक सिपाही ने गुलेल मारकर मादा गौरैया की टोपी को नीचे गिरा दिया और दूसरा सिपाही तुरंत ही उस टोपी पर झपटा और वह टोपी राजा के सामने प्रस्तुत की गई। 

पाठ – राजा टोपी को पैरों से मसलने ही जा रहा था कि उसकी खूबसूरती देखकर दंग रह गया। कारीगरी के इस नायाब नमूने को देखकर वह जड़ हो गया – ’’मेरे राज में मेरे सिवा इतनी खूबसूरत टोपी दूसरे के पास कैसे पहुँची!’’ सोचते हुए राजा उसे उलट-पुलटकर देखने लगा। 

शब्दार्थ
मसलने –
कुचलना
दंग – हैरान
नायाब – बहुमूल्य
नमूने – बनावट
जड़ हो गया – एक जगह जम जाना
सिवा – अलावा

व्याख्या – जैसे ही राजा के सामने मादा गौरैया की टोपी को लाया गया, राजा तुरंत ही टोपी को पैरों से कुचलने के लिए तैयार हो गया परन्तु जैसे ही राजा उस टोपी को कुचलने ही वाला था कि उस टोपी की खूबसूरती देखकर राजा हैरान रह गया। कारीगरी की इस बहुमूल्य बनावट को देखकर कुछ समय के लिए अपनी जगह पर ही जम गया। राजा उस टोपी को उठा कर पलट-पलट कर देखने लगा और सोचने लगा कि आखिर उसके राज में कोई उससे ज्यादा सुंदर टोपी कैसे किस के पास हो सकती है?

पाठ – “इतनी नगीना टोपी इस मुलुक में बनाई किसने?’’ राजा के मन में खयाल आया। अब तो उस हुनरमंद कारीगर की खोज होने लगी। राजा चाहे और पता न चले! 

शब्दार्थ
नगीना –
सुन्दर
हुनरमंद – गुणी
कारीगर – निर्माता

व्याख्या – मादा गौरैया की टोपी देखकर राजा हैरान हो गया और राजा के मन में खयाल आया कि इतनी सुंदर टोपी इस देश में आखिर कौन बना सकता है? राजा के कहने पर अब तो उस गुणी निर्माता की खोज होने लगी। और भला ऐसा कभी हो सकता राजा  कुछ चाहे और उसे वह पता न चले! 

पाठ – गिरते-पड़ते दर्जी हाज़िर हुआ, ”दुहाई अन्नदाता।’’
“इतनी बढ़िया टोपी तुमने कभी हमारे लिए क्यों नहीं बनाई?’’ मेघों की गड़गड़ाहट की मानिंद राजा की आवाज़ निकली।
“दुहाई अन्नदाता!’’
“हमें दुहाई नहीं— वजह बताओ।’’ 

शब्दार्थ
हाज़िर –
उपस्थित
मेघों की गड़गड़ाहट – बादल की गर्जन जैसा गुस्सा
मानिंद – तरह
दुहाई – माफी 

व्याख्या – जब राजा ने टोपी बनाने वाले का पता लगाने का आदेश दिया तो दर्जी को राजा के सामने हाजिर किया गया। गिरते-पड़ते दर्जी हाज़िर हुआ और राजा से माफ़ी मांगने कि अन्नदाता उसे माफ़ कर दें। बादलों की तरह गस्से में राजा ने दर्जी से कहा कि इतनी बढ़िया टोपी उसने कभी राजा के लिए क्यों नहीं बनाई? दर्जी राजा से क्षमा याचना ही करता रहा तो राजा ने उसे कहा कि उसे क्षमा नहीं बल्कि उसके प्रश्न का उत्तर चाहिए कि इतनी बढ़िया टोपी उसने कभी राजा के लिए क्यों नहीं बनाई?

पाठ – “कपड़ा बहुत उम्दा था सरकार! एकदम गफश और दबीज।’’
“ऐसा उम्दा कपड़ा किसने बुना?’’ नाग की मानिंद राजा फूंक मारने लगा। गिरते-पड़ते बुनकर हाज़िर हुआ, “माफी बख्शें, सरकार।’’
“माफी नहीं— वजह बताओ।’’
“सूत बड़ा उम्दा था सरकार। एकदम महीन और लच्छेदार।’’ 

शब्दार्थ
उम्दा –
बेहतर
दबीज – घना और मजबूत
मानिंद – जैसा
बख्शें – करें
उम्दा – अच्छा

व्याख्या – जब दर्जी से राजा ने उसके प्रश्न का उत्तर देने को कहा कि उसने कभी इतनी बढ़िया टोपी राजा के लिए क्यों नहीं बनाई? तो दर्जी ने जवाब दिया कि जो कपड़ा मादा गौरैया लाई थी वह कपड़ा बहुत ही अच्छा था और राजन एकदम घाना और मजबूत था। अब राजा नाग की तरह गुस्से से मनो जहर उगलने लगा और गुस्से से बोला कि इतना अच्छा कपड़ा आखिर बुना किसने? अब गिरते-पड़ते बुनकर को राजा के सामने हाज़िर किया गया। वह भी राजा से माफी माँगने लगा। उसे भी राजा ने वही कहा कि उसे माफ़ी नहीं वजह जाननी है कि आज तक उसने राजा के लिए इतना अच्छा कपड़ा क्यों नहीं बुना? अब इस पर बुनकर ने जवाब दिया कि राजन जो सूत यह छोटी चिड़िया लाई थी वह सूत बहुत ही अच्छा था, एकदम पतला और रेशेदार। 

पाठ – “इतना महीन सूत किसने काता?’’ शेर की मानिंद राजा ने दहाड़ मारी। गिरते-पड़ते कोरी हाजिर हुआ, “जान बख्शें, महाराज!’’
“जान नहीं— वजह बताओ।’’ “रुई बड़ी बेहतरीन थी, सरकार! एकदम बादलों की तरह धुनी हुई।’’ 


शब्दार्थ
बड़ी बेहतरीन –
बहुत अच्छी

व्याख्या – जब बुनकर ने कहा कि क्योंकि छोटी चिड़िया द्वारा लाया गया सूत बहुत ही अच्छा था, एकदम पतला और रेशेदार। इसलिए कपड़ा अच्छा बुना गया तो राजा ने गुस्से से शेर की तरह दहाड़ मारी और पूछा कि इतना एकदम पतला और रेशेदार सूत आखिर किसने काता था? अब गिरते-पड़ते कोरी को राजा के समक्ष हाजिर किया गया वह भी अपनी जान की भीख मांगने लगा। राजा ने यहाँ भी वही प्रश्न दोहराया कि जान की तो वह बाद में सोचेगा पहले यह बताओ कि उसने इतना अच्छा सूत राजा के लिए कभी क्यों नहीं काता? इस के जवाब में कारी ने उत्तर दिया कि जो रुई यह छोटी चिड़िया लेकर आई थी वह बहुत ही बेहतरीन थी एकदम बादलों की तरह पीट कर मुलायम की हुई। 

पाठ – “इतनी बेहतरीन रुई किसने धुनी?’’ बिजली की तरह राजा की आवाज कडक़ी। हाँफते-छाती पीटते धुनिया हाजिर हुआ, “खमा अन्नदाता!’’ “खमा नहीं— वजह बताओ।’’ राजा गुस्से से काँप रहा था, “तुम चारों ने मिलकर इस गवरइया का काम किया— हमारे लिए आज तक ऐसा काम क्यों नहीं किया?’’

शब्दार्थ
खमा –
क्षमा
अन्नदाता – मालिक

व्याख्या – जब राजा को पता चला कि अच्छी तरह पीट कर मुलायम की गई रुई के कारण ही यह सब काम हुआ है तो राजा की आवाज बिजली की तरह भयानक हो गई और राजा ने पूछा कि इतनी बेहतरीन रुई किसने धुनी? अब हाँफते-छाती पीटते धुनिया को राजा के सामने हाजिर किया गया, वह भी क्षमा मांगता हुआ राजा के सामने खड़ा हो गया।उसे भी राजा ने वही कहा कि उसे माफ़ी नहीं वजह जाननी है कि उसने आज तक ऐसा काम राजा के लिए क्यों नहीं किया? राजा गुस्से से काँप रहा था और उन चारों से पूछ रहा था कि आखिर आज तक उन चारों ने मिलकर राजा के लिए ऐसा काम क्यों नहीं किया? और इस छोटी सी गौरैया के लिए कर दिया। 

पाठ – “आपके लिए भी किया है, सरकार।’’ धुनिए ने ज़मीन पर लेटकर कहा, “आगे भी आपके लिए करेंगे, सरकार?’’
“हमारे लिए अब तक जो काम हुआ है उसमें इतनी नफासत क्यों नहीं थी?’’
“अभय दान दें, तो बोलूँ, सरकार!’’ धुनिया बोला।
“चलो दिया,’’ राजा बोले, “अब बताओ—।’’
“महाराज! इस गवरइया ने जो भी काम करवाया उसमें आधा हिस्सा दे देती थी। जिसके पास बहुत कुछ है, वह कुछ भी नहीं देता। इसके पास कुछ भी नहीं था फिर भी यह आधा दे देती थी। इसीलिए इसके काम में अपने-आप नफासत आती गई, सरकार।’’ 

शब्दार्थ
नफासत –
सज्जा
अभय – रक्षा का भरोसा

व्याख्या – जब सभी को लगा कि अब राजा बहुत गुस्से में है तो धुनिए ने ज़मीन पर लेटकर कहा कि राजन सभी ने आपके लिए भी किया है और आगे भी अपने राजा के लिए करते रहेंगे। राजा ने गुस्से से कहा कि आज तक जो भी काम उन लोगों ने राजा के लिए किए हैं उनमें वो सज्जा क्यों नहीं थी जो सज्जा छोटी सी चिड़िया की टोपी बनाने में दिखाई गई। इस पर धुनिया बोला कि अगर राजा उसे रक्षा का वचन दे तो वह बताएगा कि इसका कारण क्या था? राजा किसी भी हालत में यह जानना चाहता था कि आखिर वो क्या कारण है कि उसकी चीजों में सज्जा की कमी है, इसलिए उसने धुनिया को रक्षा का वचन दिया और कहा कि वह बताए आखिर क्या कारण है? फिर धुनिया बोलै कि राजन यह मादा गौरैया जो भी काम करवाती थी उसमें आधा हिस्सा काम करने वाले को दे देती थी। जिसके पास बहुत कुछ है, वह कुछ भी नहीं देता। इसके पास कुछ भी नहीं था फिर भी यह आधा दे देती थी। इसीलिए इसके काम में अपने-आप सज्जा आती गई, सबने इसका काम मन लगाकर किया। 

पाठ – धुनिया दंडवत पर दंडवत किए जा रहा था।
“देख ले-देख ले, राजा!— आँख में अँगुली डालकर देख ले। इसके लिए पूरे मोल चुकाए हैं। बेगार की नहीं है यह।’’ गवरइया फिर चिल्लाने लगी, “यह राजा तो कंगाल है। निरा कंगाल। इसका धन घट गया लगता है। इसे टोपी तक नहीं जुरती — तभी तो इसने मेरी टोपी छीन ली।’’ 

शब्दार्थ
दंडवत –
चरणस्पर्श
पूरे मोल – कीमत
बेगार – बिना मेहनताना के दिया किया जाने वाला कार्य
कंगाल – दरिद्र
निरा कंगाल – बिल्कुल गरीब
जुरती – जुटाना

व्याख्या – धुनिया को यह डर था कि कहीं राजा उसे दंड न दे इसलिए वह लगातार राजा के चरण स्पर्श किए जा रहा था। तभी मादा गौरैया चिल्लाने लगी कि राजा देख ले-देख ले, अपनी आँख में अँगुली डालकर देख ले। इस टोपी के लिए उसने पूरे दाम चुकाए हैं। यह टोपी मुफ्त की नहीं है। और लगता है कि यह राजा तो दरिद्र है। बहुत ज्यादा गरीब है। इसके पास इतना भी धन नहीं है कि यह एक टोपी तक बनवा सके, तभी तो इसने गौरैया की टोपी को छीन लिया है। मादा गौरैया जोर-जोर से यह सब चिल्ला रही थी। 

पाठ – राजा तो वाकई अकबका गया था। एक तो तमाम कारीगरों ने उसकी मदद की थी। दूसरे, इस टोपी के सामने अपनी टोपी की कमसूरती। तीसरे, खजाने की खुलती पोल। इस पाखी को कैसे पता चला कि धन घट गया है? तमाम बेगार करवाने, बहुत सख्ती से लगान वसूलने के बावजूद राजा का खजाना खाली ही रहता था। इतना ऐशोआराम, इतनी लशकरी, इतने लवाजिमे का बोझ खजाना सँभाले भी तो कैसे!’’

शब्दार्थ
अकबका –
परेशान
एक तो तमाम – बहुत सारे
कमसूरती – कम सुन्दर
खजाने – कोष या भंडार
पाखी – पक्षी
घट – कम
तमाम बेगार करवाने – तमाम लोग निकल आए थे
लगान – कर
ऐशोआराम – सुख-चैन
लशकरी – सेना
लवाजिमे – यात्रा आदि के साथ रहने वाला सामान
बोझ – भार

व्याख्या – मादा गौरैया की बातें सुनकर राजा तो सचमुच हैरान ही रह गया था। एक तो तमाम कारीगरों ने उस छोटी सी चिड़िया की मदद की थी। दूसरे, उस छोटी सी चिड़िया की टोपी के सामने राजा की टोपी बदसूरत थी, चिड़िया की टोपी बहुत ज्यादा सुन्दर थी। तीसरे, राजा के खजाने की पोल सबके सामने खुलती जा रही थी। राजा यह सोच रहा था कि इस छोटी सी चिड़िया को कैसे पता चला कि राजा का धन घट गया है? उस छोटी सी चिड़िया की बातें सुन कर सभी लोग बाहर आ गए थे, बहुत सख्ती से कर वसूलने के बावजूद भी राजा का खजाना खाली ही रहता था। इतना सुख-चैन, इतनी सेना, इतना यात्रा आदि के साथ रहने वाला सामान का बोझ खजाना सँभाले भी तो कैसे? इतने खर्चों के बाद राजा का खजाना खाली होना स्वाभाविक ही था। 

पाठ – मंत्री ने हौले से कहा, “यह मुँहफट तो महाराज को बेपरदा ही करके दम लेगी।’’
राजा तो खुद घबरा रहा था, झट से बोल पड़ा, “इसकी टोपी वापस कर दो।’’
सिपाहियों ने कहना माना। टोपी वापस कंगूरे की ओर हवा में उछाल दी गई। 

शब्दार्थ
हौले –
धीरे
मुँहफट – मुँह पर जवाब देने वाला
बेपरदा – खुला करना
झट – तुरंत

व्याख्या – लेखक कहते हैं कि जब मादा गौरैया राजा के खजाने की पोल खोल रही थी तो राजा का मंत्री धीरे से बोला कि यह छोटी सी चिड़िया तो बिना डरे मुँह पर जवाब देने में माहिर है, किसी से भी नहीं डरती। यदि इसे रोका न गया तो ये राजा के सभी राज सब को बता कर ही दम लेगी। मादा गौरैया की बातें सुनकर राजा तो खुद भी घबराया हुआ था, कहीं मादा गौरैया ज्यादा न बोल दे इसलिए वह झट से बोल पड़ा कि इस छोटी सी चिड़िया की टोपी वापस कर दो। सिपाहियों ने राजा का कहना माना और मादा गौरैया की टोपी को वापस शिखर की ओर हवा में उछाल दिया। 

पाठ – गवरइया ने फिर से टोपी पहन ली और उड़-उड़कर कहने लगी, “यह राजा तो डरपोक है। निरा डरपोक! मुझसे डर गया। तभी तो इसने मेरी टोपी लौटा दी।’’
“कौन इस मुँहफट के मुँह लगे? क्यों मंत्री जी!’’ कहकर राजा ने अपनी टोपी कसकर पकड़ ली। 


व्याख्या – जैसे ही राजा का आदेश मान कर सिपाहियों ने मादा गौरैया की टोपी को शिखर की ओर हवा में उछाला मादा गौरैया ने फिर से अपनी टोपी पहन ली और उड़-उड़कर फिर से नया राग गाने लगी कि यह राजा तो डरपोक है। बहुत ही ज्यादा डरपोक क्योंकि यह एक छोटी सी चिड़िया से डर गया। तभी तो इसने टोपी लौटा दी। उसकी बातों को सुन कर राजा अपने मंत्री से कहने लगा कि यह छोटी सी चिड़िया तो मुँह पर ही बोलने वाली है कौन इसके मुँह लगेगा? राजा ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि मादा गौरैया सब के सामने उसके राज खोल रही थी। राजा ने अपनी इज्जत बचने के लिए मादा गौरैया की टोपी भी लौटा दी और उसे नुकसान भी नहीं पहुँचाया। 

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टोपी प्रश्न-अभ्यास (महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर )

प्रश्न-1 गवरइया और गवरा के बीच किस बात पर बहस हुई और गवरइया को अपनी इच्छा पूरी करने का अवसर कैसे मिला?
उत्तर – गवरइया और गवरा के बीच मनुष्य द्वारा पहने गए कपड़ों को लेकर बहस हुई। गवरइया को अपनी इच्छा पूरी करने का अवसर, एक रुई का फाहा मिलने से मिला। जिससे उसने टोपी बनवाई और अपनी इच्छा पूरी की। 

प्रश्न-2 गवरइया और गवरे की बहस के तर्कों को एकत्र करें और उन्हें संवाद के रूप में लिखें।
उत्तर –
गवरइया – मनुष्य वस्त्र पहनकर कितने सुन्दर लगते हैं।
गवरा – ख़ाक सुन्दर लगते हैं।
गवरइया – लगता है आज लटजीरा चुग गए हो?
गवारा – कपड़े पहनने से आदमी की कुदरती खूबसूरती ढक जाती है।
गवरइया – कपड़े मौसम की मार से बचने के लिए पहनता है आदमी।
गवरा – कपड़े पहन-पहन कर मनुष्य मौसम की मार सहन करने की क्षमता भी खोता जा रहा है।
गवरइया – मनुष्य नित नए कपड़े सिलवाता है, इसमें कुछ तो खास होगा।
गवरा – कुछ खास नहीं निरा पोंगापन है।
गवरइया – मुझे मनुष्य की टोपी बहुत पसंद है।
गवरा – टोपी के चक्कर में पड़कर इन्सान अपनी इंसानियत खो देता है, अतः तू इस चक्कर से अलग रह।
गवरइया – मुझे तो हर कीमत पर टोपी चाहिए। 


प्रश्न-3 टोपी बनवाने के लिए गवरइया किस-किस के पास गई? टोपी बनने तक के एक-एक कार्य को लिखें।
उत्तर – टोपी बनवाने के लिये गवरइया पहले धुनिया के पास रुई धुनवाने के लिए गई, फिर वह कोरी के पास तकवाने के लिये गई, इसके बाद बुनकर के पास कपड़ा बुनवाने के लिये और अंत में दर्जी के पास टोपी सिलवाने के लिये गई। तब उसकी टोपी तैयार हुई। 

प्रश्न-4 गवरइया की टोपी पर दर्जी ने पाँच फुँदने क्यों जड़ दिए?
उत्तर – गवरइया की टोपी पर दर्जी ने पाँच फुँदने इसलिये जड़ दिए क्योंकि उसने दर्जी को मजदूरी के रूप में आधा कपड़ा दे दिया था। खुश होकर उसने टोपी को और सुन्दर बना दिया था। 

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