Character Sketch of Writer (Dharamvir Bharti), his Father and Mother from CBSE Class 9 Hindi Chapter 4 मेरा छोटा सा निजी पुस्तकालय
Character Sketch of the Writer (Dharamvir Bharti)
“मेरा छोटा–सा निजी पुस्तकालय” पाठ में लेखक ने पुस्तकों को पढ़ने के अपने शौक, किताबों को इक्कठा करने का शौक अपने पुस्तकालय की पहली पुस्तक से ले कर एक बड़ा पुस्तकालय तैयार करने तक के सफ़र के बारे में बताया है। लेखक ने अपने बारे में इस पाठ में बहुत कुछ बताया है जिससे लेखक के व्यक्तित्व के बारे में निम्नलिखित जानकारी मिलती है –
लेखक की हार्ट–अटैक से जंग – साल 1989 जुलाई में लेखक के बचने की कोई उम्मीद नहीं थी। क्योंकि लेखक को तीन–तीन ज़बरदस्त हार्ट–अटैक आए थे। उनमें से एक तो इतना खतरनाक था कि उस समय लेखक की नब्ज बंद, साँस बंद और यहाँ तक कि धड़कन भी बंद पड़ गई थी। उस समय डॉक्टरों ने यह घोषित कर दिया था कि अब लेखक के प्राण नहीं रहे। उन सभी डॉक्टरों में से एक डॉक्टर बोर्जेस थे जिन्होंने हिम्मत न हारी और लेखक को नौ सौ वॉल्ट्स के शॉक्स दिए। उनका प्रयोग सफल रहा। लेखक के प्राण तो लौटे, पर इस प्रयोग में लेखक का साठ प्रतिशत हार्ट सदा के लिए नष्ट हो गया। चालीस प्रतिशत काम करने वाले हार्ट में भी तीन रुकावटें थी। लेखक के ओपेन हार्ट ऑपरेशन पर सर्जन हिचक रहे थे, इसलिए सभी ने तय किया कि हार्ट के अन्य विशेषज्ञों की राय लेने के बाद ही ऑपरेशन की सोचेंगे। तब तक लेखक को घर जाकर बिना हिले–डुले आराम करने की सलाह दी गई।
लेखक के प्राण किताबों में बसते थे – जब लेखक को अर्धमृत्यु की अधमरी सी हालत में वापिस घर लाया गया था। तब लेखक ने जिद की कि उसे बेडरूम में नहीं बल्कि उसके किताबों वाले कमरे में ही रखा जाए। सब कुछ मना होने पर लेखक दिन भर उस कमरे में पड़े–पड़े दो ही चीजें देखता रहता था, बाईं ओर की खिड़की के सामने रुक–रुककर हवा में झूलते सुपारी के पेड़ के झालरदार पत्ते और अंदर कमरे में चारों ओर फर्श से लेकर छत तक ऊँची, किताबों से ठसाठस भरी अलमारियाँ। इन सब को देखकर लेखक को उसके बचपन में पढ़ी हुई परी कथाओं की याद आ जाती थी। उन कथाओं में जैसे लेखक पढ़ता था कि राजा के प्राण उसके शरीर में नहीं, तोते में रहते हैं, वैसे ही लेखक को लगता था कि लेखक के प्राण लेखक के शरीर से तो निकल चुके हैं, परन्तु वे प्राण लेखक के किताबों के उस कमरे की हजारों किताबों में बसे हैं जो पिछले चालीस–पचास साल में धीरे–धीरे लेखक के पास जमा होती गई थी।
लेखक को पत्रिकाएँ व् विभिन्न पुस्तकें पढ़ने का शौक था – लेखक के घर में हर–रोज पत्र–पत्रिकाएँ आती रहती थीं। इन पत्र–पत्रिकाओं में ‘आर्यमित्र साप्ताहिक’, ‘वेदोदम’, ‘सरस्वती’, ‘गृहिणी’ थी और दो बाल पत्रिकाएँ खास तौर पर लेखक के लिए आती थी। जिनका नाम था-‘बालसखा’ और ‘चमचम’। लेखक को उन दो पत्रिकाओं को पढ़ने की आदत लग गई थी। लेखक उन पत्रिकाओं को हर समय पढ़ता रहता था। यहाँ तक की जब लेखक खाना खाता था तब भी थाली के पास पत्रिकाएँ रखकर पढ़ता रहता था। अपनी दोनों पत्रिकाओं के अलावा लेखक दूसरी पत्रिकाओं को भी पढ़ता था। लेखक ‘सरस्वती’ और ‘आर्यमित्र’ नामक पत्रिकाओं को पढ़ने की कोशिश करता था।
लेखक स्वामी दयानंद जी से प्रभावित थे – लेखक की प्रिय पुस्तक थी स्वामी दयानंद की एक जीवनी, जो बहुत ही मनोरंजक शैली में लिखी हुई थी, अनेक चित्रों से सज्जी हुई। वे उस समय के दिखावों और ढोंगों के विरुद्ध ऐसा अद्भुत साहस दिखाने वाले अद्भुत व्यक्तित्व थे जिन्हें दबाया न जा सकता था। कितनी ही अद्भुत घटनाएँ थीं उनके जीवन की जो लेखक को बहुत प्रभावित करती थीं। सब घटनाएँ लेखक के बालमन को बहुत रोमांचित करती थी।
लेखक पढ़ाई में भी अवल था – लेखक को स्कूल नहीं भेजा गया था, लेखक की शुरू की पढ़ाई के लिए लेखक के घर पर मास्टर रखे गए थे। लेखक की पिता नहीं चाहते थे कि छोटी सी उम्र में जब किसी चीज की समझ नहीं होती उस उम्र में लेखक किसी गलत संगति में पड़कर गाली–गलौज न सीख ले, बुरे संस्कार न ग्रहण कर ले। लेखक तीसरी कक्षा में स्कूल में भरती हुआ। पिता के आशीर्वाद और कठिन मेहनत से तीसरी और चौथी कक्षा में लेखक के अच्छे नंबर आए और पाँचवीं कक्षा में तो लेखक प्रथम आया। लेखक को अंग्रेजी में सबसे ज्यादा नंबर मिले थे, अतः इसलिए लेखक को स्कूल से इनाम में दो अंग्रेजी किताबें मिली थीं।
लेखक की लाइब्रेरी की शुरुआत – लेखक को स्कूल से इनाम में मिली अंग्रेजी की दो किताबों ने लेखक के लिए एक नयी दुनिया का द्वार लिए खोल दिया था। लेखक के पिता ने उनकी अलमारी के एक खाने से अपनी चीजें हटाकर जगह बनाई थी और लेखक की वे दोनों किताबें उस खाने में रखकर उन्होंने लेखक से कहा था कि आज से यह खाना तुम्हारी अपनी किताबों का है। अब यह तुम्हारी अपनी लाइब्रेरी है। यहीं से लेखक की लाइब्रेरी शुरू हुई थी जो बढ़ते–बढ़ते एक बहुत बड़े कमरे में बदल गई थी।
पढ़ाई के प्रति लेखक की लग्न – आर्थिक तंगी के कारण लेखक के पास लाइब्रेरी का चंदा चुकाने के लिए भी पैसा नहीं था, इसी कारण लेखक लाइब्रेरी में बैठकर किताबें निकलवाकर पढ़ता रहता था। लेखक ने बहुत से उपन्यास पढ़े। जैसे ही लाइब्रेरी खुलती थी लेखक लाइब्रेरी पहुँच जाता था और जब लाइब्रेरियन कहते कि अब उठो, पुस्तकालय बंद करना है, तब लेखक बिना इच्छा के ही वहां से उठता था। लेखक ‘सेकंड–हैंड’ प्रमुख पाठ्यपुस्तकें खरीदता था, बाकी अपने सहपाठियों से लेकर पढ़ता और नोट्स बना लेता था।
माँ की आज्ञा का पालन करने वाला – जब लेखक पुरानी पाठ्यपुस्तकें बेचकर बी.ए. की पाठ्यपुस्तकें लेने एक सेकंड–हैंड बुकशाॅप पर गया तो इस बार न जाने कैसे सारी पाठ्यपुस्तकें खरीदकर भी दो रुपये बच गए थे। लेखक ने देखा की सामने के सिनेमाघर में ‘देवदास’ लगा था। उन दिनों उसकी बहुत चर्चा थी। लेकिन लेखक की माँ को सिनेमा देखना बिलकुल पसंद नहीं था। इसलिए लेखक फ़िल्म देखने नहीं गया।
Questions related to Character of the Writer
प्रश्न 1 – ‘मेरा छोटा सा निजी पुस्तकालय‘ पाठ में लेखक ने मुख्यतः किस घटना का जिक्र किया है?
प्रश्न 2 – लेखक ने आराम के लिए अपनी लाइब्रेरी को क्यों चुना?
प्रश्न 3 – लेखक को पढ़ने का शौक कैसे जागा?
प्रश्न 4 – ‘मेरा छोटा सा निजी पुस्तकालय‘ पाठ के आधार पर बताइए कि उसके द्वारा इकठ्ठी की गई पुस्तकों में उसकी जान बसती है जैसे तोते में राजा के प्राण बसते थे?
प्रश्न 5 – लेखक स्वामी दयानंद जी की किन बातों से प्रभावित थे?
प्रश्न 6 – लेखक की लाइब्रेरी की शुरुआत कैसे हुई?
प्रश्न 7 – लेखक के पढ़ाई के प्रति लग्न को पाठ के किए हिस्से से समझा जा सकता है?
Character Sketch of Writer’s Father
लेखक के पिता आर्य समाज रानीमंडी के प्रधान थे।
लेखक के जन्म के पहले ही गांधी जी के द्वारा बुलाए जाने पर लेखक के पिता ने सरकारी नौकरी छोड़ दी थी।
रूपए–पैसे संबड़े बंधी कष्टों से गुजर होने पर भी लेखक के पिता ने घर में आने वाली पत्र–पत्रिकाओं को बंद नहीं किया, क्योंकि वे लेखक के पढ़ने के शौक को जारी रखना चाहते थे।
लेखक के पिता ही थे जिन्होंने लेखक को उनकी लाइब्रेरी बनाने व् किताबों को इकठ्ठा करने में प्रेरणादायक भूमिका निभाई।
लेखक के पिता लेखक के द्वारा पत्रिकाओं को पढ़ने में रोक–टोक नहीं करते थे। लेखक की माँ की यह चिंता कि उनका लड़का हमेशा पत्र–पत्रिकाओं को पढ़ता रहता है, कक्षा की किताबें कभी नहीं पढ़ता। कक्षा की किताबें नहीं पढ़ेगा तो कक्षा में पास कैसे होगा! इस पर लेखक के पिता उनसे कहते थे कि जीवन में यही पढ़ाई काम आएगी, इसलिए लेखक को पढ़ने दो।
लेखक के पिता ने लेखक को स्कूल नहीं भेजा था, लेखक की शुरू की पढ़ाई के लिए लेखक के घर पर मास्टर रखे गए थे। लेखक की पिता नहीं चाहते थे कि छोटी सी उम्र में जब किसी चीज की समझ नहीं होती उस उम्र में लेखक किसी गलत संगति में पड़कर गाली–गलौज न सीख ले, बुरे संस्कार न ग्रहण कर ले।
लेखक के पिता लेखक का मार्गदर्शन किया करते थे। जिस दिन लेखक को स्कूल में भरती किया गया उस दिन शाम को लेखक के पिता लेखक की उँगली पकड़कर लेखक को घुमाने ले गए। लेखक के सिर पर हाथ रखकर लेखक से वायदा लिया कि लेखक अपने पाठ्यक्रम की किताबें भी इतने ही ध्यान से पढ़ेगा जितने ध्यान से लेखक पत्रिकाओं को पढ़ता है और लेखक अपनी माँ की चिंता को भी मिटाएगा।
Questions related to Character of Writer’s Father
प्रश्न 1 – लेखक के जीवन में पिता की भूमिका का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
Character Sketch of Writer’s Mother
लेखक की माँ ने स्त्री–शिक्षा के लिए आदर्श कन्या पाठशाला की स्थापना की थी।
लेखक की माँ लेखक को स्कूली पढ़ाई करने पर जोर दिया करती थी। लेखक की माँ लेखक को स्कूली पढ़ाई करने पर जोर इसलिए देती थी क्योंकि लेखक की माँ को यह चिंतित लगी रहती थी कि उनका लड़का हमेशा पत्र–पत्रिकाओं को पढ़ता रहता है, कक्षा की किताबें कभी नहीं पढ़ता। कक्षा की किताबें नहीं पढ़ेगा तो कक्षा में पास कैसे होगा!
लेखक स्वामी दयानन्द की जीवनी पढ़ा करता था जिस कारण लेखक की माँ को यह भी डर था कि लेखक कहीं खुद साधु बनकर घर से भाग न जाए। लेखक की माँ को इतनी चिंता करता देख लेखक के पिता उनसे कहते थे कि जीवन में यही पढ़ाई काम आएगी, इसलिए लेखक को पढ़ने दो।
हर माँ की तरह लेखक की माँ भी भावुक थी। लेखक की कठिन मेहनत से तीसरी और चौथी कक्षा में लेखक के अच्छे नंबर आए और पाँचवीं कक्षा में तो लेखक प्रथम आया। लेखक की मेहनत को देखकर लेखक की माँ ने आँसू भरकर लेखक को गले लगा लिया था। और जब देवदास फ़िल्म न देखकर, लेखक ने देवदास किताब अपनी माँ को दिखाई। उस किताब को देखकर लेखक की माँ के आँखों में आँसू आ गए।
Questions related to Character of Writer’s Mother
प्रश्न 1- लेखक की माँ को क्या डर था और क्यों?
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