लेखक (श्री राम शर्मा), लेखक के बड़े और छोटे भाई का चरित्र-चित्रण | Character Sketch of Writer (Shri Ram Sharma), his Elder and Younger Brother from CBSE Class 9 Hindi Chapter 2 स्मृति
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लेखक (श्री राम शर्मा) का चरित्र-चित्रण (Character Sketch of Writer)
स्मृति पाठ में लेखक अपने बचपन की उस घटना का वर्णन करता है जब वह केवल ग्यारह साल का था और उसके बड़े भाई ने उससे कुछ महत्वपूर्ण चिठियों को डाकघर में डालने के लिए भेजा था और उसने गलती से वो चिठियाँ एक पुराने कुऍं में गिरा दी थी। उन चिठियों को उस कुऍं से निकालने में लेखक को क्या-क्या कठिनाइयाँ हुई और उस समस्या का सामना करते हुए लेखक के व्यक्तित्व की बहुत सी खूबियाँ भी सामने आती हैं –
अपने से बड़ों का सम्मान – एक शाम जब लेखक अपने कई साथियों के साथ झरबेरी के बेर तोड़-तोड़कर खा रहा था कि तभी गाँव के पास से एक आदमी ने लेखक को जोर से आवाज लगा कर पुकारा और कहा कि लेखक के भाई लेखक को बुला रहे हैं इसलिए उसे जल्दी से ही घर लौट जाना चाहिए। लेखक के मन में उसके बड़े भाई साहब से मार पड़ने का डर था इसलिए वह उदास सा घर की ओर चल रहा था। लेखक को समझ में नहीं आ रहा था कि उससे कौन-सी गलती हो गई है जो उसके भाई साहब ने उसे इस तरह घर बुलाया है। डरते-डरते लेखक घर में घुसा। उसे डर था कि बेर खाने के अपराध में ही कहीं उसकी खबर न ली जाए। परन्तु जब लेखक ने आँगन में भाई साहब को कोई पत्र लिखते पाया तब उसके मन से पिटने का डर दूर हो गया।
आज्ञाकारी – जब लेखक और उसके छोटे भाई को लेखक के भाई साहब ने उनके द्वारा लिखे गए पत्रों को ले जाकर मक्खनपुर में स्थित डाकखाने में डालने का आदेश दिया तो उन दिनों बाहर जाड़े के दिन तो थे ही साथ ही साथ ठंडी हवा के कारण उन दोनों को कॅंप-कँपी भी लग रही थी। हवा इतनी ठंडी थी कि हड्डी के भीतर भरा मुलायम पदार्थ तक ठण्ड से ठिठुरने लगा था, इसलिए लेखक और लेखक के भाई ने कानों को धोती से बाँधा। लेखक की माँ ने रास्ते में दोनों के खाने के लिए थोड़े से भुने हुए चने एक धोती में बाँध दिए थे। दोनों भाई अपने बड़े भाई की आज्ञा का पालन करने के लिए अपना-अपना डंडा लेकर घर से उसी ठण्ड में निकल पड़े।
नटखट व् शरारती – बच्चे तो नटखट होते ही हैं। मक्खनपुर पढ़ने जाने वाली लेखक की टोली पूरी तरह बन्दर की टोली कही जाती थी। अपनी टोली की शरारतों के किस्सों में से एक किस्सा सुनाते हुए लेखक कहता है कि एक दिन लेखक और लेखक की टोली स्कूल से लौट रहे थे कि उनको कुएँ में पंजे के बल उचककर झाँकने की सूझी। लेखक ने कुएँ में झाँककर एक पत्थर फेंका क्योंकि उनको जानना था की उसकी आवाज कैसी होती है। परन्तु कुएँ में जैसे ही पत्थर गिरा, वैसे ही एक फुसकार सुनाई पड़ी। उसके बाद लेखक और लेखक के सभी साथियों ने उछल-उछलकर एक-एक पत्थर कुँए में फेंका और कुएँ से आने वाली क्रोध भरी फुसकार को शांत करने में लग गए। गाँव से मक्खनपुर जाते और मक्खनपुर से लौटते समय लेखक और लेखक के साथी हर दिन अब कुएँ में पत्थर डाला करते थे। लेखक सबसे आगे भागकर जाता, अपनी टोपी को एक हाथ से पकड़ता और दूसरे हाथ से पत्थर फेंकता था।
बाल-सुलभ मन – चिठ्ठियों के कुँए में गिरने के कारण छोटा भाई जोर-जोर से रो रहा था और लेखक चुपचाप आँखें भर कर रो रहा था। लेखक की आँखों में निराशा, पिटने के भय और घबराहट से रोने का उफान आता था। लेखक की पलकें उसके भीतरी भावों को रोकने का प्रयास कर रही थी, परन्तु उसके गालों पर आँसू ढुलक ही जाते थे। उस समय लेखक को माँ की गोद की याद आ रही थी। उसका जी चाह रहा था कि उसकी माँ आए उसे छाती से लगाए और लाड़-प्यार करके यह कह दे कि कोई बात नहीं, चिठियाँ तो फिर से लिख ली जाएँगी, रोने की कोई बात नहीं। लेखक का मन कर रहा था कि कुएँ में बहुत-सी मिट्टी डाल दें और घर जाकर यह झूठ कह दें कि वे दोनों चिठ्ठी डाल आए हैं, पर उस समय लेखक झूठ बोलना जानता ही नहीं था। सच बोलकर पिटने के भावी भय और झूठ बोलकर चिठियों के न पहुँचने की जिम्मेदारी के बोझ से दबा लेखक चुपचाप बैठ कर सिसकियाँ ले रहा था।
दृढ़ निश्चयवादी – लेखक का मानना था कि यदि मन में किसी काम को करने का पक्का विचार कर लिया जाए तो परेशानियाँ अपने आप कम हो जाती हैं। लेखक की परेशानी भी दूर हो गई। क्योंकि लेखक ने कुएँ में घुसकर चिठियों को निकालने का निश्चय कर लिया था। यह बहुत ही भयानक निर्णय था क्योंकि निचे कुऍं में भयंकर काला साँप था। उस समय चिठियाँ निकालने के लिए लेखक विष को धारण करने वाले साँप से भिड़ने को तैयार हो गया। लेखक ने निश्चय कर लिया था। लेखक को विश्वास था कि वह डंडे से साँप को पहले मार देगा, फिर चिठियाँ उठा लेगा। बस इसी दृढ़ विश्वास के बलबूते पर लेखक ने ठान लिया की वह कुएँ में घुस कर चिठियाँ निकाल लाएगा।
बुद्धिमान – लेखक को कुँए में जाने के लिए रस्सी की आवश्यकता थी और उनके पास अपने कपड़ों को ही रस्सी बनाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था। एक धोती लेखक की, एक छोटे भाई की, एक वह जिसमे लेखक की माँ ने चने बाँधे थे, दो वह जो ठण्ड से बचने के लिए कानों से बँधी हुई थी, सब धोतियाँ मिला कर-पाँच धोतियाँ थी उन सब को और कुछ कुँए के पास पड़ी रस्सी मिलाकर कुएँ की गहराई के लिए काफी हुईं। लेखक और उसके भाई ने धोतियाँ एक-दूसरी से बाँधी और खूब खींच-खींचकर आजमा लिया कि गाँठें पक्की हैं या नहीं। लेखक और उसके भाई ने अपनी ओर से कोई धोखे का काम नहीं रखा। फिर लेखक ने धोती के एक सिरे पर डंडा बाँधा और उसे कुएँ में डाल दिया। दूसरे सिरे को डेंग के चारों ओर एक चक्कर देकर और एक गाँठ लगाकर छोटे भाई को दे दिया।
चालाक – लेखक के पास जब कुँए में उतरने के अलावा दूसरा कोई उपाय न रहा तो वह धीरे-धीरे निचे उतरने लगा। एक-एक इंच ज्यों-ज्यों लेखक नीचे उतरता जाता था, त्यों-त्यों लेखक का ध्यान साँप की हरकतों की ओर बढ़ता जा रहा था। लेखक ने चालाकी दिखाते हुए अपने दोनों हाथों से धोती पकड़े हुए ही अपने पैर कुएँ की बगल में लगा दिए। दीवार से पैर लगाते ही कुछ मिट्टी नीचे गिरी और साँप ने फू करके उस मिट्टी पर मुँह मार कर हमला किया। लेखक के पैर भी दीवार से हट गए, और लेखक की टाँगें कमर से लटकती हुई समकोण बनाती रहीं, इससे लेखक को यह फायदा हुआ कि लेखक को साँप से दूरी और कुएँ की परिधि पर उतरने का ढंग मालूम हो गया। लेखक ने झूलकर अपने पैर कुएँ की बगल से सटाए, और कुछ धक्वे देने के साथ ही वह अपने शत्रु के सामने कुँए की दूसरी ओर डेढ़ गज पर-कुएँ के धरातल पर खड़ा हो गया।
हिम्मती अथवा बहादुर – जब लेखक ने साँप को साक्षात् देखा तो उसने साँप को मारने की अपनी योजना और आशा को असंभव पाया क्योंकि कुँए के निचे साँप को मारने के लिए डंडा चलाने के लिए पूरी जगह ही नहीं थी। एक तरीका और था कि साँप को डंडे से दबाया जा सकता था, पर ऐसा करना मानो तोप के मुहाने पर खड़ा होना था। दो चिठियाँ साँप के पास उससे सटी हुई पड़ी थीं और एक लेखक की ओर थी। जैसे ही उसने साँप की दाईं ओर पड़ी चिठ्ठी की ओर डंडे को बढ़ाया वैसे ही साँप का फन पीछे की ओर हुआ। धीरे-धीरे डंडा चिठ्ठी की ओर बढ़ा और जैसे ही चिठ्ठी के पास पहुँचा साँप की फुँकार के साथ काली बिजली तड़पी और डंडे पर गिरी। साँप ने लगातार फूँ-फूँ करके डंडे पर तीन-चार चोटें कीं। लेखक ने दुबारा फिर से उसी प्रकार लिफ़ाफ़े को उठाने की कोशिश की। इस बार साँप ने फिर से वार किया और और इस बार वह डंडे से चिपट ही गया। जब लेखक ने डंडे के अपनी ओर खिंचा तो लेखक और साँप की स्थिति बदल गई। लेखक ने तुरंत ही लिफ़ाफ़े और पोस्टकार्ड चुन लिए। चिठियों को धोती के किनारे में बाँध दिया, और छोटे भाई ने उन्हें ऊपर खींच लिया।
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लेखक (श्री राम शर्मा) के चरित्र सम्बंधित प्रश्न (Questions related to Character of the Writer)
प्रश्न 1 – स्मृति पाठ में लेखक ने अपने जीवन के किस किस्से को उजागर किया है?
प्रश्न 2 – लेखक को किसने घर बुलाया था और क्यों?
प्रश्न 3 – लेखक और उसके छोटे भाई को किस काम के लिए घर बुलाया गया था?
प्रश्न 4 – जाड़े से बचने के लिए लेखक और उसके छोटे भाई के लिए उनकी माँ ने क्या प्रबंध किया?
प्रश्न 5 – स्मृति पाठ के किस हिस्से से पता चलता है कि लेखक अपने से बड़ों की हर आज्ञा का पालन हर
परिस्थिति में करते थे?
प्रश्न 6 – बच्चे नटखट सहोते ही हैं। स्मृति पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 7 – चिठ्ठियों के कुँए में गिर जाने पर लेखक के मन में क्या-क्या चल रहा था?
प्रश्न 8 – लेखक का व्यक्तित्व दृढ़निश्चयवादी था। स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 9 – लेखक ने कैसे और कहाँ अपनी बुद्धिमानी का परिचय दिया?
लेखक के बड़े भाई का चरित्र-चित्रण (Character Sketch of Writer’s Elder Brother)
रौबदार – लेखक के बड़े भाई का स्वभाव रौबदार था। इसका पता हमें तब चलता है जब लेखक अपने कई साथियों के साथ झरबेरी के बेर तोड़-तोड़कर खा रहा था और तभी गाँव के पास से एक आदमी ने लेखक को जोर से आवाज लगा कर पुकारा और कहा कि लेखक के भाई लेखक को बुला रहे हैं इसलिए उसे जल्दी से ही घर लौट जाना चाहिए। लेखक उस आदमी की बात सुन कर तुरंत घर की ओर चलने लगा।
अपने भाइयों को सही राह दिखाने वाला – अपने दोनों छोटे भाइयों पर लेखक के बड़े भाई का अत्यधिक डर था। लेखक को समझ में नहीं आ रहा था कि उससे कौन-सी गलती हो गई है जो उसके भाई साहब ने उसे इस तरह घर बुलाया है। लेखक के मन में उसके बड़े भाई साहब से मार पड़ने का डर था इसलिए वह उदास सा घर की ओर चल रहा था। डरते-डरते लेखक घर में घुसा। उसे डर था कि बेर खाने के अपराध में ही कहीं उसकी खबर न ली जाए। अपने भाई साहब के कारण दोनों छोटे भाई किसी भी गलत काम को करने या शरारत करने से डरते थे।
कर्तव्यनिष्ठ – लेखक और उसके छोटे भाई को लेखक के भाई साहब ने घर आया हुआ देखा तो भाई साहब ने उन दोनों से कहा कि उनके द्वारा लिखे गए पत्रों को ले जाकर मक्खनपुर में स्थित डाकखाने में डाल आओ। तेज़ी से जाना जिससे शाम की डाक में उनकी चिठियाँ निकल जाएँ ताकि ये चिठियाँ जल्दी ही वहाँ पहुँच जाए जहाँ उन्हें भेजा जाना है क्योंकि वे बहुत जरुरी थी।
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लेखक के बड़े भाई के चरित्र सम्बंधित प्रश्न (Questions related to Character of Writer’s Elder Brother)
प्रश्न 1 – लेखक के बड़े भाई साहब ने दोनों भाइयों को क्या काम दिया था?
लेखक के छोटे भाई का चरित्र-चित्रण (Character Sketch of Writer’s Younger Brother)
लेखक के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध – लेखक और उनके कहते भाई का सम्बन्ध मित्रों की तरह था क्योंकि वे दोनों हमेशा साथ ही स्कूल जाते व् साथ ही स्कूल से आते। और यहाँ तक की सभी खेल व् शरारतें भी साथ में ही करते थे। जैसे – बेर तोड़ना, स्कूल जाते व् आते समय बंदरों की तरह मस्ती करना और कुँए के साँप को पत्थर मारना इत्यादि।
आज्ञाकारी – लेखक का छोटा भाई भी लेखक की ही तरह आज्ञाकारी था। छोटा होने के बावजूद भी जाड़े की ठंडी हवाओं में भी वह लेखक के साथ चिठियों को डाकघर में डालने के लिए दोनों भाई अपना-अपना डंडा लेकर घर से निकल पड़े।
शरारती – लेखक की ही तरह लेखक का छोटा भाई भी शरारती था। जब दोनों भाई उछलते-कूदते उस कुएँ के पास आ गए जिसमें एक बहुत ही भयंकर काला साँप गिरा हुआ था। तो लेखक के मन में कुएँ में पत्थर फेंककर साँप की फुसकार सुनने की उसकी इच्छा जाग गई। लेखक कुएँ पत्थर डालने के लिए कुँए की ओर बढ़ा। छोटा भाई भी लेखक के पीछे इस तरह चल पड़ा जैसे बड़े हिरन के बच्चे के पीछे छोटा हिरन का बच्चा चल पड़ता है।
डरपोक – जब लेखक ने गलती से चिठ्ठियों को कुएँ में गिरा दिया था तब बड़े भाई की मार के डर से लेखक का छोटा भाई और लेखक रो रहे थे – छोटा भाई जोर-जोर से रो रहा था और लेखक चुपचाप आँखें भर कर रो रहा था।
भावुक – जब लेखक ने निश्चय कर लिया कि वह चिठ्ठियों को लेने कुऍं में जाएगा तब उसका छोटा भाई रो रहा था क्योंकि उसे लग रहा था कि लेखक की मौत उसे नीचे बुला रही है। उसे लग रहा था कि अगर लेखक निचे कुँए में गया तो वह जरूर साँप के काटे जाने से मर जाएगा। यद्यपि वह शब्दों से कुछ नहीं कह रहा था बस वह रोए जा रहा था। और जब साँप के अचानक हमले से लेखक चौंककर उछल गया था। तो ऊपर फूँ-फूँ और लेखक के उछलने और फिर वहीं धमाके से खड़े होने से लेखक के छोटे भाई ने समझा कि लेखक का काम समाप्त हो गया और लेखक के भाई को लगा कि लेखक की साँप के काटने से मौत हो गई है। लेखक को साँप के काटने से होने वाले दर्द और लेखक से बिछुड़ जाने के खयाल से ही लेखक के छोटे भाई के कोमल हृदय को धक्का लगा। भाई के प्यार के ताने-बाने को चोट लगी। उसकी चीख निकल गई। वह बहुत अधिक डर गया।
भाई का हर परिस्थिति में साथ देने वाला – लेखक को जब कुँए में जाने के लिए रस्सी की आवश्यकता थी और उनके पास अपने कपड़ों को ही रस्सी बनाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था। एक धोती लेखक की, एक छोटे भाई की, एक वह जिसमे लेखक की माँ ने चने बाँधे थे, दो वह जो ठण्ड से बचने के लिए कानों से बँधी हुई थी, सब धोतियाँ मिला कर-पाँच धोतियाँ थी उन सब को और कुछ कुँए के पास पड़ी रस्सी मिलाकर कुएँ की गहराई के लिए काफी हुईं। लेखक और उसके भाई ने अपनी ओर से कोई धोखे का काम नहीं रखा। लेखक का छोटा भाई केवल आठ साल का ही था, इसीलिए धोती को डेंग से पक्का करके बाँध दिया और तब लेखक ने अपने भाई को रस्सी खूब मजबूती से पकड़ने के लिए कहा। लेखक कुएँ में धोती के सहारे जाने लगा तो उसका छोटा भाई रोने लगा। लेखक ने उसे भरोसा दिलाया कि लेखक कुएँ के नीचे पहुँचते ही साँप को मार देगा और लेखक को भी यही विश्वास था कि वह नीचे पहुँचते ही साँप को मार देगा।
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लेखक के छोटे भाई के चरित्र सम्बंधित प्रश्न (Questions related to Character of Writer’s Younger Brother)
प्रश्न 1 – पाठ के किस अंश से ज्ञात होता है कि लेखक और उसका छोटा भाई लेखक के बड़े भाई से डरते थे?
प्रश्न 2 – ठण्ड से बचने के लिए दोनों भाइयों ने क्या किया?
प्रश्न 3 – लेखक और उनके छोटे भाई में कैसा सम्बन्ध था?
प्रश्न 4 – लेखक और उनके छोटे भाई में कौन से गुण समान थे?
प्रश्न 5 – छोटा भाई डरपोक था कैसे पता चलता है?
प्रश्न 6 – छोटा भाई लेखक के लिए अत्यधिक भावुक था। स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 7 – छोटे भाई ने कैसे हर परिस्थिति में लेखक का साथ दिया?
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