Class 10 Hindi Previous Year Question Paper

 

CBSE Class 10 Hindi Course B Chapter-wise Previous Years Questions (2022) with Solution

Class 10 Hindi (Course B) Question Paper (2022) – Solved Question papers from previous years are very important for preparing for the CBSE Board Exams. It works as a treasure trove. It helps to prepare for the exam precisely. One of key benefits of solving question papers from past board exams is their ability to help identify commonly asked questions. These papers are highly beneficial study resources for students preparing for the upcoming class 10th board examinations. Here we have compiled chapter-wise questions asked in all the sets of CBSE Class 10 Hindi (Course B) question paper (2022).

 

Sparsh Bhag 2 Book

 

Chapter 3- Manushyata

प्रश्न 1 – ‘विचार लो कि मर्त्य हो, न मृत्यु से डरो कभी’ – ‘मनुष्यता’ कविता से उद्धृत प्रस्तुत पंक्ति का भाव
कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – ‘मनुष्यता’ कविता में ‘विचार लो कि मर्त्य हो, न मृत्यु से डरो कभी’ पंक्ति का भाव यह है कि हमें यह जान लेना चाहिए कि मृत्यु का होना निश्चित है, हमें मृत्यु से नहीं डरना चाहिए। बल्कि हमें कुछ ऐसा करना चाहिए कि लोग हमें मरने के बाद भी याद रखें क्योंकि जो मनुष्य दूसरों के लिए कुछ भी ना कर सकें, उनका जीना और मरना दोनों बेकार है।

प्रश्न 2 – कवि ने कैसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा है? ‘मनुष्यता’ कविता के आधार पर बताइए।
उत्तर – ‘मनुष्यता’ कविता के आधार पर जिस मनुष्य में अपने और अपनों के हित-चिंतन से पहले और सर्वोपरि दूसरों का हित चिंतन होता है और उसमें वे गुण हों, जिनके कारण कोई मनुष्य मृत्युलोक से गमन कर जाने के बावजूद युगों तक दुनिया की यादों में बना रहे, ऐसे मनुष्य की मृत्यु को ही कवि ने सुमृत्यु कहा है।

अर्थात जब किसी मनुष्य को उसके सद्गुणों के कारण मृत्यु के बाद भी याद किया जाता है तो उस मनुष्य की मृत्यु भी सुमृत्यु बन जाती है।

प्रश्न 3 – ‘मनुष्यता’ कविता के आधार पर लिखिए कि पशु-प्रवृत्ति क्या है और सच्चा मनुष्य किसे कह सकते हैं।
उत्तर – ‘मनुष्यता’ कविता के आधार पर जो मनुष्य दूसरों के लिए कुछ भी ना कर सकें, उनका जीना और मरना दोनों बेकार है। मर कर भी वह मनुष्य कभी नहीं मरता जो अपने लिए नहीं दूसरों के लिए जीता है, क्योंकि अपने लिए तो जानवर भी जीते हैं अर्थात केवल अपने ही कल्याण के बारे में सोचना व् अपने ही स्वार्थ के लिए जीना पशु-प्रवृत्ति के अंतर्गत आता है। कवि के अनुसार सच्चा मनुष्य वही है जो दूसरे मनुष्यों के लिए मरे अर्थात जो मनुष्य दूसरों की चिंता करे वही असली मनुष्य कहलाता है।

प्रश्न 4 – ‘मनुष्यता’ कविता में कवि ने सब को साथ चलने की प्रेरणा क्यों दी है? इससे समाज को क्या लाभ हो सकता है? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर – ‘मनुष्यता’ कविता में कवि ने सब को साथ चलने की प्रेरणा दी है। मनुष्यों को अपनी इच्छा से चुने हुए मार्ग में ख़ुशी ख़ुशी चलना चाहिए,रास्ते में कोई भी संकट या बाधाएं आये, उन्हें हटाते  चले जाना चाहिए। मनुष्यों को यह ध्यान रखना चाहिए कि आपसी समझ न बिगड़े और भेद भाव न बड़े। बिना किसी तर्क वितर्क के सभी को एक साथ ले कर आगे बढ़ना चाहिए तभी यह संभव होगा कि मनुष्य दूसरों की उन्नति और कल्याण के साथ अपनी समृद्धि भी कायम करे।

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Chapter 4 – Parvat Pradesh Mein Pavas

प्रश्न 1 – ‘पावस ऋतु’ किसे कहते हैं? इस ऋतु में पर्वत पर कैसा दृश्य होता है? ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता के आधार पर लिखिए।
उत्तर –  ‘पावस ऋतु’ वर्षा ऋतु को कहते हैं। पर्वतीय क्षेत्र में वर्षा ऋतु के प्रवेश से प्रकृति के रूप में बार बार बदलाव आ रहा है अर्थात कभी बारिश होती है तो कभी धूप निकल आती है। पहाड़ों पर उगे हजारों फूल ऐसे लग रहे हैं जैसे पहाड़ अपनी हजार पुष्प रूपी आंखें फाड़ कर नीचे विशाल आईने रूपी तालाब के जल में अपने विशाल आकार को देख रहे हैं। मोतियों की लड़ियों के समान सुंदर झरने की करतल ध्वनि नस नस में उत्साह अथवा प्रसन्नता भर देती है। पर्वतों पर उगे हुए पेड़ शांत आकाश को ऐसे देख रहे हैं जैसे वो उसे छूना चाह रहे हों। ऐसा लगता है जैसे वे हमें निरन्तर ऊँचा उठने की प्रेरणा दे रहे हैं। चारों ओर धुँआ होने के कारण लग रहा है कि तालाब में आग लग गई है। ऐसा लग रहा है कि ऐसे मौसम में इंद्र भी अपना बादल रूपी विमान ले कर इधर उधर जादू का खेल दिखता हुआ घूम रहा है। 

प्रश्न 2 – ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में पर्वतों को ‘मेखलाकार पर्वत अपार’ कहने का कवि का क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में कवि ने पर्वतों को ‘मेखलाकार पर्वत अपार’ कहा है इसका अभिप्राय यह है कि कवि ने पहाड़ों के आकार की तुलना करघनी अर्थात कमर में बांधने वाले आभूषण से की है। पहाड़ों का आकार कमर की तरह घुमावदार होता है और वर्षा ऋतु में जो सौंदर्य पहाड़ों का सामने दिखता है वह किसी आभूषण से कम नहीं लगता। और साथ-ही-साथ मेखलाकर पर्वत अपार से कवि पर्वत की विशालता दर्शाने का प्रयास कर रहे हैं। 

प्रश्न 3 – कवि ने झरने के ‘झर-झर’ स्वर में क्या कल्पना की है? ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता के आधार पर लिखिए।
उत्तर – ‘पर्वतीय प्रदेश में पावस’ कविता में झरनों का वर्णन अत्यधिक सुन्दर तरीके से किया गया है। कविता में बताया गया है कि झरने मोतियों की लड़ियों के समान सुंदर, झर झर की आवाज करते हुए बह रहे हैं, ऐसा लग रहा है की वे पहाड़ों का गुणगान कर रहे हों। उनकी करतल ध्वनि नस नस में उत्साह अथवा प्रसन्नता भर देती है। 

प्रश्न 4 – ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता के आधार पर लिखिए कि कवि ने वृक्षों को पर्वतों की उच्चाकांक्षाएँ क्यों कहा है?
उत्तर – ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में कवि ने वृक्षों को पर्वतों की उच्चाकांक्षाएँ कहा है क्योंकि पहाड़ों के हृदय से उठ-उठ कर अनेकों पेड़ ऊँचा उठने की इच्छा लिए एक टक दृष्टि से स्थिर हो कर शांत आकाश को इस तरह देख रहे हैं, मनो वो किसी चिंता में डूबे हुए हों। अर्थात वे हमें निरन्तर ऊँचा उठने की प्रेरणा दे रहे हैं।

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Chapter 6 – Kar Chale Hum Fida

प्रश्न 1 – ‘कर चले हम फ़िदा’ कविता में धरती की तुलना दुलहन से क्यों की गई है? दो बिंदुओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – ‘कर चले हम फ़िदा’ कविता में धरती की तुलना दुलहन से इसलिए की गई है, क्योंकि सन् 1962 के युद्ध में भारतीय सैनिकों के बलिदानों से, उनके रक्त से धरती लाल हो गई थी, मानो धरती ने किसी दुलहन की भाँति लाल जोड़ा पहन रखा हो।

दुलहन की सुंदरता लाल रंग के परिधान में अद्वितीय हो जाती है। हिमालय की घाटियों की जमीन सैनिकों के रक्त से लाल हो रही है। वहाँ युद्ध कर रहे सैनिक उस रक्त से सनी धरती को देखकर मानते है कि भारत भूमि ने लाल परिधान धारण कर लिया है। इस परिधान में वह लाल जोड़े में सजी दुलहन-सी नज़र आ रही है। 

प्रश्न 2 – ‘कर चले हम फ़िदा’ कविता के आधार पर बताइए कि सीमा पर शहीद होने वाले सैनिकों को मरते दम तक किस बात पर गर्व है और क्यों?
उत्तर – ‘कर चले हम फ़िदा’ कविता में सीमा पर शहीद होने वाले सैनिक अपने आखरी वक्त में उस दृश्य का वर्णन कर रहें है जब दुश्मनों ने देश पर हमला किया था। सैनिकों की साँसे उनका साथ नहीं दे रही थी और उनकी नाड़ियों में खून जमता जा रहा था, फिर भी उन्होंने अपने बढ़ते क़दमों को जारी रखा अर्थात दुश्मनों को पीछे धकेलते गए। सैनिक गर्व करते है कि अगर उन्होंने अपने सर भी कटवाने पड़े तो वे ख़ुशी ख़ुशी कटवा देंगे पर अपने गौरव के प्रतिक हिमालय को नहीं झुकने देंगे अर्थात हिमालय पर दुश्मनों के कदम नहीं पड़ने देंगे। देश के लिए अपनी जान न्यौछावर करने को ही हर सैनिक अपना गौरव समझते हैं। क्योंकि सैनिक देश को अपनी माँ मानते हैं।

प्रश्न 3 – ‘कर चले हम फ़िदा’ शीर्षक कविता के आधार पर सैनिकों की किन्हीं दो विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर – ‘कर चले हम फ़िदा’ कविता में सैनिकों की बहुत सी विशेषताओं का वर्णन किया गया है जिनमें से दो विशेषताऐं निम्नलिखित हैं –

सैनिक कभी भी देश के मानसम्मान को बचाने  से पीछे नहीं हटते। फिर चाहे उन्हें अपनी जान ही क्यों ना गवानी पड़े। सैनिक अपने देश की धरती को सीता के आँचल की तरह मानते हैं। 

सैनिक अपने देश के गौरव के लिए अपने सर को कटवाना अपना धर्म समझते हैं। वे मानते हैं कि देश के लिए प्राण न्योछावर करने की ख़ुशी कभी कभी किसी किसी को ही मिल पाती है अर्थात सैनिक देश पर मर मिटने का एक भी मौका नई खोना चाहते।

प्रश्न 4 – ‘फ़तह का जश्न इस जश्न के बाद हैं’ – ‘कर चले हम फिदा’ कविता से उद्धृत प्रस्तुत पंक्ति में ‘इस जश्न’ से कवि का क्या आशय है और उसे बाद में मनाने के पीछे क्या कारण है?
उत्तर –  ‘फ़तह का जश्न इस जश्न के बाद हैं’ – ‘कर चले हम फिदा’ कविता से उद्धृत पंक्ति में ‘इस जश्न’ से कवि का आशय यह है कि सैनिकों के लिए जीत की ख़ुशी तो देश पर प्राण न्योछावर करने की ख़ुशी के बाद दोगुनी हो जाती है। देश के लिए प्राण देने की स्थिति में एक सैनिक को ऐसा लगता है मनो जिंदगी मौत से गले मिल रही हो। सैनिक कहते हैं कि हम तो देश के लिए बलिदान दे रहे हैं परन्तु हमारे बाद भी ये सिलसिला चलते रहना चाहिए। जब भी जरुरत हो तो इसी तरह देश की रक्षा के लिए एकजुट होकर आगे आना चाहिए।

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Chapter 13 – Patjhar Me Tuti Pattiyan

प्रश्न 1 – लेखक का जापानी मित्र उसे कहाँ ले गया? वहाँ के वातावरण से लेखक क्यों प्रभावित हुआ? ‘झेन की देन’ पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर – लेखक का जापानी दोस्त उन्हें चा-नो-यू अर्थात जापान के चाय पीने के एक विशेष आयोजन में ले गया। लेखक और उनका मित्र चाय पिने के आयोजन के लिए जहाँ गए थे वह एक छः मंजिल की इमारत थी। उसकी छत पर एक सरकने वाली दीवार थी जिस पर चित्रकारी की गई थी और पत्तों की एक कुटिया बनी हुई थी जिसमें जमीन पर चटाई बिछी हुई थी। उसके बाहर बैडोल-सा मिट्टी का एक पानी भरा हुआ बरतन धोने के लिए रखा हुआ था। अंदर चाय देने वाले व्यक्ति ने खड़े होकर कमर झुका कर उन्हें प्रणाम करके, बैठने की जगह दिखाई। चाय बनाने वाले ने चाय तैयार की और फिर उन प्यालों को लेखक और उनके मित्र के सामने रख दिया। जापान में इस चाय समारोह की सबसे खास बात शांति होती है। इसलिए वहाँ तीन से ज्यादा व्यक्तियों को नहीं माना जाता। वे करीब डेढ़ घंटे तक प्यालों से चाय को धीरे-धीरे पीते रहे। पहले दस-पंद्रह मिनट तो लेखक को बहुत परेशानी हुई। लेकिन धीरे -धीरे लेखक ने महसूस किया कि उनके दिमाग की रफ़्तार कम होने लेगी है। और कुछ समय बाद तो लगा कि दिमाग बिलकुल बंद ही हो गया है। तनाव को दूर करने के इस तरीके से लेखक बहुत प्रभावित हुआ।

प्रश्न 2 – ‘झेन की देन’ पाठ के आधार पर बताइए कि पर्णकुटी में चाय पीने के बाद लेखक ने स्वयं में क्या-क्या परिवर्तन महसूस किए।
उत्तर – जापान में इस चाय समारोह की सबसे खास बात शांति होती है। चाय के प्यालों में दो-दो घूँट से ज्यादा चाय नहीं होती। लेखक और उनके मित्र करीब डेढ़ घंटे तक प्यालों से चाय को धीरे-धीरे पीते रहे। पहले दस-पंद्रह मिनट तो लेखक को बहुत परेशानी हुई। जीना किसे कहते यह लेखक को चाय समारोह वाले दिन मालूम हुआ। जापानियों को ध्यान लगाने की यह परंपरा विरासत में देन में मिली है। लेकिन धीरे -धीरे लेखक ने महसूस किया कि उनके दिमाग की रफ़्तार

कम होने लेगी है। और कुछ समय बाद तो लगा कि दिमाग बिलकुल बंद ही हो गया है। लेखक को लगा जैसे वह कभी न ख़त्म होने वाले समय में जी रहा है। यहाँ तक की लेखक का मन इतना शांत हो गया था की बाहर की शांति भी शोर लग रही थी। 

प्रश्न 3 – आज की भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी में मानसिक रोग से ग्रसित लोगों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। आपके विचार से इसके कौन-कौन से कारण हो सकते हैं और उनसे कैसे बचा जा सकता है? ‘झेन की देन’ पाठ के संदर्भ में लिखिए।
उत्तर – ‘झेन की देन’ पाठ हमें अत्यधिक व्यस्त जीवनशैली और उसके दुष्परिणामों से अवगत करवाता है। आज की भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी में मानसिक रोग से ग्रसित लोगों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। इसका सबसे बड़ा कारण है लोगों का जरुरत से अधिक दिमाग को थकाना। काम को अपनी जिंदगी से भी अधिक महत्त्व देना जिससे काम के बोझ के कारण तनाव बढ़ जाता है। अधिक तनाव मनुष्य को पागल बना देता है। इससे बचने का उपाय है मन को शांत रखना। हमें बीते दिनों और भविष्य की कल्पनाओं को भूलकर वर्तमान की वास्तविकता में जीना चाहिए और वर्तमान का भरपूर आनंद लेना चाहिए।  मानसिक तनाव से मुक्त होने के लिए मन से चिंता, तनाव और अधिक काम की बोझिलता हटाना आवश्यक है ताकि शांति एवं चैन से जीवन कटे।

प्रश्न 4 – “हमारे सामने जो वर्तमान क्षण है वही सत्य है। उसी में जीना चाहिए।” ‘झेन की देन’ पाठ से उद्धृत लेखक का यह कथन वर्तमान परिस्थितियों में कहाँ तक सत्य है? क्या आप इससे सहमत हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर – “हमारे सामने जो वर्तमान क्षण है वही सत्य है। उसी में जीना चाहिए।” ‘झेन की देन’ पाठ से उद्धृत लेखक का यह कथन वर्तमान परिस्थितियों में बहुत अधिक हद तक सत्य है। हम इस कथन से सहमत हैं। हम लोग या तो बीते हुए दिनों में रहते हैं या आने वाले दिनों में। जबकि दोनों ही समय झूठे होते हैं। क्योंकि बीते हुए समय को हम फिर से जी नहीं सकते और आने वाले समय का हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि वह कैसा होगा। जो समय अभी चल रहा है अर्थात वर्त्तमान, वही सच है। और यह समय कभी न ख़त्म होने वाला और बहुत अधिक फैला हुआ है। क्योंकि हम हमेशा वर्त्तमान में ही रहते हैं।

 

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Chapter 14 – Kartoos 

प्रश्न 1 – वज़ीर अली की बहादुरी प्रशंसनीय है, कैसे? ‘कारतूस’ एकांकी के आधार पर तर्क सहित उत्तर लिखिए |
उत्तर –  ‘कारतूस’ एकांकी से ज्ञात होता है कि वज़ीर अली अत्यंत साहसी, वीर, महत्त्वाकांक्षी और स्वाभिमानी शासक था। उन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था और वे बहादुरी से अंग्रेजों के समक्ष भी चले जाते थे और उनके हाथ भी नहीं आते थे। इन्हीं गुणों के कारण उसे जाँबाज़ सिपाही कहा जाता था। वज़ीर अली के साहस की जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम ही है। उसने कंपनी के वकील की हत्या कर दी थी। वह कर्नल के कैंप में घुसकर उससे कारतूस भी लाता है ये उसके साहसी होने के प्रमाण है। 

प्रश्न 2 – ‘कारतूस’ एकांकी के आधार पर बताइए कि सवार कौन था? वह किससे मिलना चाहता था और क्यों? इस सारे प्रसंग में सवार की कौन-सी विशेषताएँ उभरकर आती हैं?
उत्तर – ‘कारतूस’ एकांकी के आधार पर सवार वज़ीर अली था। वज़ीर अली सवार के रूप में आ कर कर्नल से मिलना चाहता था। जब कर्नल ने सवार से पूछता है कि वह क्या चाहता है अर्थात वह कर्नल से मिलने क्यों आया है तो सवार कर्नल से कुछ कारतूस मांगता है और कहता है कि उसको ये कारतूस वज़ीर अली को गिरफ्तार करने के लिए चाहिए। यह सुन कर कर्नल सवार को दस कारतूस दे देता है और जब सवार से नाम पूछता है तो सवार अपना नाम वज़ीर अली बताता है और कर्नल को कहता है कि कर्नल ने उसे कारतूस दिए हैं इसलिए वह उसकी जान को बख्श रहा है। इतना कह कर वज़ीर अली बाहर चला जाता है, घोड़े के टापों की आवाजों से लगता है की वह दूर चला गया है। इस सारे प्रसंग से सवार की कई विशेषताएँ उभरकर आती हैं जैसे – वह एक ऐसा सिपाही था जो अपनी जान की परवाह नहीं करता। वह बहुत साहसी और चतुर था।

प्रश्न 3 – ‘वज़ीर अली जैसे जाँबाज़ों के कारण ही हम आज़ाद हैं’ – इस कथन के पक्ष में अपने विचार ‘कारतूस’ एकांकी के संदर्भ में लिखिए।
उत्तर – ‘वज़ीर अली जैसे जाँबाज़ों के कारण ही हम आज़ाद हैं।’ क्योंकि आज़ादी के लिए जिस साहस व् जज़्बे जैसी विशेषताओं की आवश्यकता थी वज़ीर अली में वो सभी विशेषताएँ थी। वज़ीर अली को अंग्रेज़ों ने अवध के तख्ते से हटा दिया था पर उसने हिम्मत नहीं हारी। वज़ीफे की रकम में मुश्किल डालने वाले कंपनी के वकील की भी उसने हत्या कर दी। अंग्रेज़ों को महीनों दौड़ाता रहा परन्तु फिर भी उनके हाथ नहीं आया। अंग्रेज़ों के खेमे में अकेले ही पहुँच गया, कारतूस भी ले आया और अपना सही नाम भी बता गया। इस तरह वह एक जाँबाज़ सिपाही था। जिससे अंग्रेज़ भी डरा करते थे।

प्रश्न 4 – “आपसी फूट के कारण भारत इतने वर्षों तक दूसरों का गुलाम रहा” – क्या आप इस कथन से सहमत हैं? ‘कारतूस’ एकांकी के आधार पर कारण सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर –  “आपसी फूट के कारण भारत इतने वर्षों तक दूसरों का गुलाम रहा” – हम इस कथन से सहमत हैं। अंग्रेजों का भारत पर शासन करने का एक ही मंत्र था ‘फूट डालो, शासन करो’ जिसके द्वारा उन्होंने भारत पर इतने लम्बे समय तक शासन किया। ‘कारतूस’ एकांकी से भी यह बात स्पष्ट होती है। सआदत अली आसिफ़उद्दौला (वज़ीर अली का पिता) का भाई था। सआदत अली, वज़ीर अली और आसिफ़उद्दौला का अपना होता हुए भी उन्हें दुश्मन मानता था। वज़ीर अली के पैदा होने को सआदत अली ने अपनी मौत ही समझ लिया था क्योंकि वज़ीर अली के पैदा होने के बाद अब वह अवध के सिंहासन को हासिल नहीं कर सकता था। सआदत अली का वज़ीर अली से इस नफरत का फायदा अंग्रेजों ने उठाया और सआदत अली की मदद से अवध पर अपनी हुकूमत कर ली।

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Sanchyan Bhag-2

 

Chapter 1 – Harihar Kaka

प्रश्न 1 – हरिहर काका भाइयों पर गुस्सा करके घर से बाहर जा रहे थे, तब उनकी भेंट महंत से हुई और वे उन्हें ठाकुरबारी ले गए। हरिहर काका को ठाकुरबारी ले जाकर महंत ने उनके साथ किस प्रकार का व्यवहार किया? ‘हरिहर काका’ कहानी के आधार पर लिखिए।
उत्तर – हरिहर काका भाइयों पर गुस्सा करके घर से बाहर जा रहे थे, तब उनकी भेंट महंत से हुई और वे उन्हें ठाकुरबारी ले गए। महंत की नज़र भी हरिहर काका की ज़मीन पर थी। जिस कारण महंत ने पहले तो हरिहर काका की बहुत ख़ातिरदारी की। उन्हें तरह-तरह के खाने खिलाए। मिठाइयाँ खिलाई और उनकी सेवा में कई नौकर-चाकर भी लगवाए। उनकी ज़मीन  ठाकुरबारी के नाम लिखवाने के लिए उन्हें कई तरह से मनाने की कोशिश भी की। महंत जी हरिहर काका को समझाने लगे की उनके भाई का परिवार केवल उनकी जमीन के कारण उनसे जुड़ा हुआ है, किसी दिन अगर हरिहर काका यह कह दें कि वे अपने खेत किसी और के नाम लिख रहे हैं, तो वे लोग तो उनसे बात करना भी बंद कर देंगें। खून के रिश्ते ख़त्म हो जायेंगे। महंत हरिहर काका से कहता है कि उनके हिस्से में जितने खेत हैं वे उनको भगवान के नाम लिख दें। ऐसा करने से उन्हें सीधे स्वर्ग की प्राप्ति होगी।

प्रश्न 2 – ‘हरिहर काका’ कहानी में आपने पढ़ा कि हरिहर काका का, महंत और उसके साथियों ने अपहरण कर लिया। कल्पना कीजिए कि आप एक पत्रकार हैं। आपको हरिहर काका के, महंत की गिरफ़्त में होने का पता लगता है। आप किन बातों का खुलासा करेंगे और दूसरे लोगों पर उसका क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर – हरिहर काका का, महंत और उसके साथियों ने अपहरण कर लिया था। अगर मैं एक पत्रकार होती और मुझे हरिहर काका के, महंत की गिरफ़्त में होने का पता लगता तो मैं ठाकुरबारी जा कर इस बात के सबूत इकट्ठे करती। वहाँ मौजूद हर छोटे-बड़े व्यक्ति से बात करके बात को अधिक गंभीरता से समझती। सभी पक्षों का ब्यान ले कर अखबार की मदद से लोगों तक इस अपराध को पूरी सच्चाई से रखती। इस तरह की कोशिश से लोगों पर अवश्य प्रभाव पड़ेगा। इस घटना से सभी के समक्ष आ जाने पर लोग आँख मूँद कर किसी पर भी विश्वास नहीं करेंगे। भगवान् के नाम पर डरना बंद करेंगे व् अपने आसपास होने वाले अपराधों को रोकने में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करेंगे। 

प्रश्न 3 – हरिहर काका के प्रति उनके परिवार के व्यवहार पर अपने विचार लिखिए और यह भी बताइए कि बुजुर्गों के प्रति कैसा व्यवहार करना चाहिए?
उत्तर – हरिहर काका के प्रति उनके परिवार के व्यवहार अत्यधिक निंदनीय था। न तो उनके परिवार का कई सदस्य उनसे अच्छे से बात करता था और न ही कोई उनकी इज़्ज़त करता था। यहाँ तक कि उनके बीमार पड़ने पर कोई उनको पानी तक नहीं पूछता था। घर में कोई उनके खाने का भी ध्यान नहीं रखता था। सभी के अच्छे से खा लेने के बाद बचा हुआ रुखा-सूखा उन्हें दिया जाता था। इस तरह का व्यवहार बिलकुल अनुचित है। घर में बुजुर्गों का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी अपने परिवार की सुख-समृद्धि में लगा दी और जब बुढ़ापे में उनके शरीर में कुछ करने की क्षमता नहीं है तब हमारा दायित्व है कि हम उनके सुख-दुःख का ध्यान रखें। जिस तरह हम अपने बच्चों का ध्यान रखते हैं उसी तरह हमें अपने बुजुर्गों का भी ध्यान रखना चाहिए।

प्रश्न 4 – ‘समाज में रिश्तों से अधिक महत्त्व धन का है।’ ‘हरिहर काका’ कहानी के संदर्भ में इस कथन की सत्यता सिद्ध कीजिए।
उत्तर – ‘समाज में रिश्तों से अधिक महत्त्व धन का है।’ ‘हरिहर काका’ कहानी के संदर्भ में इस कथन की सत्यता सिद्ध होती है। हरिहर काका का परिवार भी हरिहर काका के साथ केवल उनकी ज़मीन के कारण ही था। नहीं तो वे कब का हरिहर काका को घर से निकाल दिए होते। महंत भी उनकी ज़मीन के कारण ही उनका ध्यान रखने का ढोंग करता था। ज़मीन को अपने-अपने नाम लिखवाने के लिए हरिहर काका के भाइयों और महंत ने हरिहर काका पर न जाने कितने जुल्म किए। उन्हें हरिहर काका की जिंदगी से कोई मतलब नहीं था। वे तो केवल हरिहर काका का ध्यान ज़मीन के लालच में ही रख रहे रहे थे।

प्रश्न 5 – ‘हरिहर काका’ कहानी वृद्धों के प्रति संवेदनहीन होते समाज की कथा है।” इस कथन को कहानी के आधार पर उदाहरण सहित सिद्ध कीजिए।
उत्तर – ‘हरिहर काका’ कहानी वृद्धों के प्रति संवेदनहीन होते समाज की कथा है।” यह कहानी काफी हद तक आज के समय में बुजुर्गों की सच्ची स्थिति का आइना है। आज के व्यक्ति न जाने क्यों अपने बुजुर्गों को बोझ समझते हैं। जब तक कोई बुजुर्ग अपनी सम्पति को अपने नाम पर रखता है तब तक घर के सभी सदस्य उस बुजुर्ग का कहना भी मानते हैं और साथ ही साथ उसका आदर भी करते हैं। परन्तु जैसे ही वह बुजुर्ग अपनी सम्पति किसी के नाम कर जाता है उसकी इज्जत व् सम्मान भी कम होने लगता है। आज कल के बच्चे अपने वृद्ध माता-पिता को अपने साथ न रख कर वृद्धाश्रम में छोड़ जाते है। वे उन्हें बोझ समझने लगे हैं। यह स्थिति बिलकुल भी सही नहीं है। इस तरह वे खुशहाली की और नहीं बल्कि पतन की और जा रहे हैं।

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 Chapter 2 – Sapno Ke Se Din

प्रश्न 1 – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में लेखक ने बताया है कि कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती।’ अपने आस-पास के जीवन से कोई उदाहरण देकर इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में लेखक ने बताया है कि कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती।’ लेखक के बचपन के ज्यादातर साथी राजस्थान या हरियाणा से आकर मंडी में व्यापार या दुकानदारी करने आए परिवारों से थे। जब लेखक छोटा था तो उनकी बातों को बहुत कम समझ पाता था और उनके कुछ शब्दों को सुन कर तो लेखक को हँसी आ जाती थी। परन्तु जब सभी खेलना शुरू करते तो सभी एक-दूसरे की बातों को बहुत अच्छे से समझ लेते थे। हमारे आस-पास रहने वाले परिवार भी देश के अलग-अलग जगहों से हैं। जिसके कारण भाषा और रहन-सहन के साथ-साथ रीती-रिवाजों में भी बहुत अंतर् देखने को मिलता है। परन्तु सभी परिवार एक दूसरे के सुख-दुःख में एक-दूसरे के साथ खड़े रहते हैं। त्यौहारों में भी सभी मिल-झुलकर खुशियाँ मनाते हैं और एक दूसरे को अपनी-अपनी जगहों के प्रसिद्ध व्यंजन खिलाते हैं।

प्रश्न 2 – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ के आधार पर बताइए कि लेखक की हैरानी का क्या कारण था और क्यों?
उत्तर – जब लेखक के पीटी मास्टर कई सप्ताह तक स्कूल नहीं आए। तब कुछ सातवीं-आठवीं के विद्यार्थी लेखक और उसके साथियों को बताया करते थे कि उन्हें निष्कासित होने की थोड़ी सी भी चिंता नहीं थी। जिस तरह वह पहले आराम से पिंजरे में रखे दो तोतों को दिन में कई बार, भिगोकर रखे बादामों की गिरियों का छिलका उतारकर खिलाते थे, वे आज भी उसी तरह आराम से पिंजरे में रखे उन दो तोतों को दिन में कई बार, भिगोकर रखे बादामों की गिरियों का छिलका उतारकर खिलाते और उनसे बातें करते रहते हैं। लेखक और उसके साथियों के लिए यह चमत्कार ही था कि जो प्रीतमचंद पट्टी या डंडे से मार-मारकर विद्यार्थियों की चमड़ी तक उधेड़ देते, वह अपने तोतों से मीठी-मीठी बातें कैसे कर लेते थे? लेखक स्वयं में सोच रहा था कि क्या तोतों को उनकी आग की तरह जलती, भूरी आँखों से डर नहीं लगता होगा?

प्रश्न 3 – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ के लेखक को नई कक्षा में पुरानी किताबों की गंध उदास कर देती थी, क्यों?
उत्तर – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ के लेखक को नई कक्षा में पुरानी किताबों की गंध उदास कर देती थी। उसके लिए पुरानी किताबों का प्रबंध हेडमास्टर साहब कर देते थे, क्योंकि लेखक के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, जबकि अन्य बच्चे नई कक्षा में नई किताबें खरीदते थे। नयी श्रेणी में जाकर लेखक का बालमन इसलिए उदास हो जाता था, क्योंकि उसे किताबें अन्य लड़कों द्वारा पढ़ी हुई ही पढ़नी पड़ती थीं। लेखक का बालमन भी नई कापियों तथा नई किताबों के लिए तरसता था। जब लेखक को नई कक्षा में जाने पर भी पुरानी किताबों से पढ़ाई करनी पड़ती थी तो उनका मन उदास हो जाता था।

प्रश्न 4 – यदि आपको पी.टी. मास्टर बना दिया जाए, तो आपका अपने विद्यार्थियों के प्रति व्यवहार कैसा होगा? ‘सपनों के-से दिन’ पाठ के संदर्भ में लिखिए।
उत्तर – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में बताया गया है कि अध्यापकों की मार व् डर से बच्चों को स्कूल जाना पसंद नहीं था परन्तु फिर भी कभी-कभी कुछ ऐसी स्थितियाँ भी होती थी जहाँ बच्चों को स्कूल अच्छा भी लगने लगता था। वह स्थितियाँ बनती थी जब स्कूल में स्काउटिंग का अभ्यास करवाते। यदि स्काउटिंग करते हुए कोई भी विद्यार्थी कोई गलती न करता तो पीटी साहब अपनी चमकीली आँखें हलके से झपकाते और सभी को शाबाश कहते। उनकी एक शाबाश लेखक और उसके साथियों को ऐसे लगने लगती जैसे उन्होंने किसी फ़ौज के सभी पदक या मैडल जीत लिए हों।

यदि हमें पी.टी. मास्टर बना दिया जाए, तो हम भी विद्यार्थियों को अनुशासन में रहने का पाठ पढ़ाएंगे। क्योंकि बचपन से ही यदि अनुशासन में रहना शुरू कर दिया जाए तो हर कार्य में सफलता मिलना स्वाभाविक होता है। बचपन में यह बात समझना किसी भी बालमन के लिए कठिन होता है अतः हम कोशिश करेंगे कि बच्चों को खेल-खेल में व् कहानियों के जरिए अनुशासन का पाठ पढ़ाएँ और जहाँ आवश्यकता हो वहाँ थोड़ी सख्ती करना भी आवश्यक हो जाता है।

प्रश्न 5 – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ के आधार पर लिखिए कि लेखक को नयी श्रेणी में जाने की प्रसन्नता अन्य विद्यार्थियों की तरह क्यों नहीं होती थी?
उत्तर – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में लेखक को नयी श्रेणी में जाने की प्रसन्नता अन्य विद्यार्थियों की तरह नहीं होती थी क्योंकि लेखक को नयी कापियों और पुरानी पुस्तकों में से ऐसी गंध आने लगती थी कि उसका मन बहुत उदास होने लगता था। अन्य सभी विद्यार्थियों को नई कक्षा में जाने पर नई कॉपियाँ व् नई किताबें मिलती थी परन्तु लेखक की पारिवारिक स्थितियों के कारण उन्हें दूसरे बच्चों की पुरानी किताबों से ही पढ़ाई करनी पड़ती थी जिस कारण लेखक का बालमन नई कक्षा में जाने पर भी प्रसन्न नहीं हो पता था।

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Chapter 3 – Topi Shukla

प्रश्न 1 – आपका घनिष्ठ मित्र दूसरे मज़हब का है, आपके घर पर उसका आदर-सत्कार किस प्रकार होता है? ‘टोपी शुक्ला’ पाठ के संदर्भ में विस्तार से उत्तर दीजिए।
उत्तर – टोपी शुक्ला पाठ में टोपी व् इफ़्फ़न की दोस्ती को बहुत अच्छे से दिखाया गया है। जिस तरह उन दोनों के धर्म अलग-अलग थे किन्तु कभी भी इफ़्फ़न के घर पर टोपी को किसी भी बात के लिए ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं की गई। उसके धर्म का पूरा सम्मना व् इज़्ज़त की गई। इफ़्फ़न को भी पता था कि टोपी कहीं बाहर या किसी के घर पर कुछ नहीं खाता इसलिए जब भी वे कुछ भी खाते बाहर फल की दूकान से केले ले कर खाते थे।

मेरा घनिष्ठ मित्र भी दूसरे मज़हब का है और जब भी वह मेरे घर आता है तो उसके धर्म के विरुद्ध कोई भी कार्य नहीं होता। मेरी माता जी उसी की पसंद का खाना बनाने की कोशिश करती हैं और जब भी कोई त्यौहार होता है तो हमारे घर से उनके घर मिठाई जरूर जाती है।

प्रश्न 2 – आपके विचार से मित्रता की कौन-कौन सी कसौटियाँ हो सकती हैं? ‘टोपी शुक्ला’ पाठ के संदर्भ में तीन बिंदु लिखिए।
उत्तर – हमारे विचार से मित्रता को किसी कसौटी पर परखा नहीं जा सकता। सच्ची मित्रता वही है जो हर कसौटी पर खरी उतरे। टोपी और इफ़्फ़न की मित्रता हमें बहुत कुछ सीखाती है। ‘टोपी शुक्ला’ पाठ के संदर्भ में तीन बिंदु निम्नलिखित है –

मित्रता में कभी भी धर्म व् मज़हब मायने नहीं रखता। मित्रता इन सभी से ऊपर उठकर है।

मित्रता में कभी भी भाषा व् रीती-रिवाजों की रोक नहीं होती। किसी भी भाषा, स्थान व् मज़हब के दो व्यक्ति मित्र हो सकते हैं।

मित्रता में कभी भी उम्र बाधा नहीं बन सकती। किसी भी उम्र के व्यक्ति मित्र बन सकते हैं। मित्रता असल में एक भावना है जो किसी के भी साथ मेल खा सकती है।

प्रश्न 3 – ‘रिश्तों की बुनियाद ‘प्रेम’ है।’ इस कथन को ‘टोपी शुक्ला’ पाठ से उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – ‘रिश्तों की बुनियाद ‘प्रेम’ है।’ यह कथन ‘टोपी शुक्ला’ पाठ से स्पष्ट होता है। टोपी शुक्ला पाठ से ज्ञात होता है कि टोपी के घर में उसकी दादी, माता-पिता के अलावा एक बड़ा और एक छोटा भाई भी है। उसके घर में काम करने वाली सीता और केतकी नामक दो नौकरानियाँ हैं। परन्तु टोपी अपने घर में प्रेम के लिए तरसता है। टोपी को जो प्रेम उसके परिवार से नहीं मिला वही प्रेम उसे अपने मित्र इफ़्फ़न और उसकी दादी और अपने घर की नौकरानी सीता से मिलता है। प्रेम न तो जाति देखता है और न ही मज़हब। टोपी को जहाँ अपने ही परिवार से प्रेम नहीं मिला वहाँ उसे वही प्रेम बाहर दूसरे लोगों से मिला। इस प्रकार नि:संदेह कहा जा सकता है कि प्रेम मानवीय रिश्तों की बुनियाद है। प्रेम किसी से भी, कहीं भी, कभी भी हो सकता है। इसकी कोई सीमा नहीं होती।

प्रश्न 4 – आप एक समृद्ध परिवार से हैं लेकिन आपका मित्र बहुत ग़रीब है। उससे दोस्ती निभाते समय आप कौन-सी सावधानियाँ बरतेंगे और क्यों? ‘टोपी शुक्ला’ पाठ के संदर्भ में लिखिए।
उत्तर – यदि मैं एक समृद्ध परिवार से हूँ और मेरा मित्र बहुत ग़रीब परिवार से सम्बन्ध रखता है तो मैं ऐसी कोई भी बात नहीं करुँगी जिससे मेरे मित्र को ऐसा लगे कि मैं उसे नीचे दिखा रही हूँ। उसके सामने कभी भी महँगी चीजों का प्रदर्शन नहीं करुँगी और न ही कभी महंगे होटल में खाना खाने जाऊँगी। कभी भी उसके घर जाने का मौका मिले तो उसके माता-पिता को भी उतना ही सम्मान दूँगी जितना मैं अपने माता-पिता को देती हूँ। वह कभी मेरे घर आए तो कभी भी किसी चीज़ का दिखावा करने से बचूँगी। क्योंकि यदि मैं उसके सामने किसी चीज़ को दिखाते हुए उसका मूल्य बताऊगी तो हो सकता है उसे बुरा लगे। यदि मैं उसके घर नहीं जाउंगी तो भी हो सकता है उसे लगे कि मुझे उसके घर में बुरा महसूस होता है। उसके साथ केवल महँगे होटलों या दुकानों में जाऊँ तो उसे ऐसा लग सकता है कि मुझे उसके साथ कभी दूसरी जगह जाने से शर्म आती है। ऐसी चीज़ें उसके मनोबल को तोड़ सकती है 

प्रश्न 5 – ‘टोपी शुक्ला’ कहानी के पात्र इफ्फ़न की दादी की तरह आपकी दादी या नानी भी आपको प्यार करती होंगी, उसका वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर – हर बच्चे को उसकी दादी व् नानी प्यार करती ही हैं। मेरी दादी भी मुझसे बहुत प्यार करती थी और हमेशा माँ की मार से वही मुझे बचाती थी। कभी-कभी छुप-छुपा कर मुझे पैसे भी दिया करती थी। उनके निधन के बाद मुझे भी टोपी की ही तरह अपना घर खाली सा लगता है। मेरी नानी भी मुझसे बहुत प्यार करती हैं। बचपन में जब भी मैं खाना खाने से मना करती थी तो वो हमेशा मेरी पसंद पूछ-पूछकर खाना बनाती थी और अपने हाथों से खिलाती थी। आज वे काफ़ी वृद्ध हो गई हैं और आज भी जब मैं उनसे मिलती हूँ तो वो मेरी पसंद का ही खाना बनवाती हैं। जब भी उनसे बिछड़ने का वक्त आता है तो आज भी वे पहले की ही तरह भावुक हो जाती हैं।

प्रश्न 6 – “इफ्फन के पिता के तबादले के बाद टोपी शुक्ला का अकेलापन और महंत और भाइयों के दुर्व्यवहार के कारण ‘हरिहर काका’ का मौन धारण वर्तमान समाज की ऐसी सच्चाई है, जिससे आज बहुत से लोग पीड़ित हैं।” इस स्थिति से निकलने में आप ऐसे लोगों को क्या सुझाव देंगे?
उत्तर – टोपी शुक्ला जैसे व्यक्तियों को हम केवल यह कह सकते हैं कि उन्हें जीवन में होने वाले बदलावों को स्वीकार करना सीखना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति हमेशा के लिए आपने साथ नहीं रह सकता। जीवन का नाम ही बदलाव है। हमें हर परिस्थितियों में अपने आप को मजबूत बनाना सीखना होगा। तभी हम अपनी भावनाओं को अपने नियंत्रण में रख सकते हैं।

हरिहर काका जैसे व्यक्तियों को चाहिए कि वे कभी भी अपनी सम्पत्ति को किसी के नाम न लिखे। वे अपने जीवन की सुरक्षा के लिए स्वयं सतर्क रहें। अपने सम्मान का स्वयं ध्यान रखें और स्वाभिमान से अपना जीवन जिए। यदि किसी भी तरह की कोई मुसीबत आती है तो वे चुप बिलकुल न बैठें। उन्हें स्वयं अपनी सुरक्षा व् स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए।

 

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