ममता पाठ सार

PSEB Class 10 Hindi Book Chapter 7 “Mamta” Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings

 

ममता सार – Here is the PSEB Class 10 Hindi Book Chapter 7 Mamta Summary with detailed explanation of the lesson “Mamta” along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary

इस पोस्ट में हम आपके लिए पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड  कक्षा 10 हिंदी पुस्तक के पाठ 7 ममता पाठ सार, पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप  इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 10ममता पाठ के बारे में जानते हैं।

 

Mamta (ममता)

जयशंकर प्रसाद

 

जयशंकर प्रसाद की ऐतिहासिक कहानी ‘ममता’ हिंदी साहित्य की सर्वश्रेष्ठ कहानियों में से एक है। यह कहानी केवल साहित्यिक कृति नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और आदर्शों का प्रतीक भी है। इसमें लेखक ने एक साधारण ब्राह्मणी विधवा स्त्री ममता के माध्यम से यह बताया है कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएँ, धर्म, सत्य और मानवीय मूल्यों से समझौता नहीं करना चाहिए।

कहानी में रिश्वतखोरी का विरोध किया गया है, साथ ही भारतीय परंपरा ‘अतिथि देवो भव’ को अत्यंत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है। 

 

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ममता पाठ सार Mamata Summary

जयशंकर प्रसाद की प्रसिद्ध ऐतिहासिक कहानी ‘ममता’ हिंदी साहित्य की कालजयी कहानियों में गिनी जाती है। इसमें एक विधवा ब्राह्मणी ममता के चरित्र के माध्यम से लेखक ने रिश्वत का विरोध, अतिथि सत्कार का महत्व और निस्वार्थ परोपकार जैसी भारतीय संस्कृति की महान परंपराओं को उजागर किया है।

ममता, रोहतास दुर्ग के मंत्री चूड़ामणि की पुत्री थी। एक दिन चूड़ामणि अपने घर बहुत-सा सोना लेकर आए। ममता को समझ में आ गया कि यह सोना म्लेच्छों से रिश्वत के रूप में लिया गया है। उसने पिता को डाँटते हुए कहा कि यह ईश्वर के प्रति बड़ा साहस है और ब्राह्मण को दो मुट्ठी अन्न भीख में मिल सकता है, पर रिश्वत का सोना लेना पाप है। उसने पिता को समझाया कि यह पाप का काम है और इस धन को लौटा देना चाहिए। परंतु उसके पिता ने उसकी बात नहीं मानी और कहा कि शेरशाह का शासन आने वाला है, इसलिए भविष्य के लिए यह धन सुरक्षित रखना ज़रूरी है।

अगले ही दिन शेरशाह ने रोहतास दुर्ग पर अधिकार कर लिया, चूड़ामणि मारे गए और राजा-रानी पकड़े गए। किंतु ममता किसी तरह बच निकली और एक खंडहर में कुटिया बनाकर रहने लगी।

एक रात एक प्यासा, थका-हारा अजनबी सैनिक उसकी कुटिया में पहुँचा और आश्रय माँगा। ममता पहले तो संदेह में पड़ी, परंतु ‘अतिथि देवो भव’ की परंपरा को याद कर उसने आश्रय दिया। वह सैनिक और कोई नहीं बल्कि पराजित सम्राट हुमायूँ था। अगले दिन जब उसके सैनिक आए तो हुमायूँ ने आदेश दिया कि उस स्त्री का घर बनवाया जाए जिसने उसे आश्रय दिया था। ममता भयवश छिपी रही और अपना नाम प्रकट न किया।

वर्षों बाद जब अकबर के सैनिक उस स्थान पर पहुँचे तो वृद्धा ममता ने स्वीकार किया कि एक दिन कोई मुगल उसकी झोंपड़ी में रुका था और उसका घर बनाने की आज्ञा दी थी। किंतु वह जीवनभर इस भय से जीती रही कि कहीं उसकी झोंपड़ी उजड़ न जाए। अंततः वहीं उसकी मृत्यु हो गई। बाद में वहाँ एक विशाल अष्टकोण मंदिर बना जिस पर यह शिलालेख अंकित था कि हुमायूँ ने यहाँ विश्राम किया था और अकबर ने उसकी स्मृति में यह मंदिर बनवाया। किंतु ममता का नाम कहीं अंकित न हुआ।

ममता पाठ व्याख्या Mamata Lesson Explanation

 

पाठ: रोहतास-दुर्ग के प्रकोष्ठ में बैठी हुई युवती ममता, शोण के तीक्ष्ण गम्भीर प्रवाह को देख रही थी। ममता विधवा थी। उसका यौवन शोण के समान ही उमड़ रहा था मन में वेदना, मस्तक में आँधी, आँखों में पानी की बरसात लिए वह सुख के कंटक शयन में विकल थी। वह रोहतास दुर्गपति के मंत्री चूड़ामणि की अकेली दुहिता थी। फिर उसके लिए कुछ अभाव का होना असंभव था, परंतु वह विधवा थी। हिंदू विधवा संसार में सबसे तुच्छ, निराश्रय प्राणी है तब विडम्बना का कहाँ अंत था ?
चूड़ामणि ने चुपचाप उस प्रकोष्ठ में प्रवेश किया। शोण के प्रवाह में वह अपना जीवन ‘मिलाने में बेसुध थी। पिता का आना न जान सकी। चूड़ामणि व्यथित हो उठे। स्नेहपालिता पुत्री के लिए क्या करें, यह स्थिर न कर सकते थे। लौटकर बाहर चले गये। ऐसा प्रायः होता, पर आज मंत्री के मन में बड़ी दुश्चिन्ता थी। पैर सीधे न पड़ते थे।
एक पहर रात बीत जाने पर फिर वे ममता के पास आये। उस समय उनके पीछे दस सेवक चाँदी के बड़े थालों में कुछ लिए खड़े थे, कितने ही मनुष्यों के पद-शब्द सुन ममता ने घूम कर देखा। मंत्री ने सब थालों के रखने का संकेत किया। अनुचर थाल रखकर चले गए।

शब्दार्थ-
प्रकोष्ठ- महल के सदर फाटक के पास का कमरा इमारत के भीतर का आँगन
युवती- स्त्री
शोण- एक नदी
तीक्ष्ण– तेज
प्रवाह- बहाव
विधवा- पति-रहित स्त्री
वेदना– पीड़ा
मस्तक में आँधी- मन में उथल-पुथल, बेचैनी
कंटक शयन- कांटों की सेज
विकल– बेचैन
दुहिता– पुत्री, बेटी
अभाव- कमी
तुछ– महत्वहीन
निराश्रय– आश्रय हीन
विडम्बना- हालात की मार, इच्छा के विरुद्ध हालात होना
व्यथित– दुखी, पीड़ित
स्नेहपालिता– स्नेह से पाली हुई
दुश्चिन्ता– परेशानी
अनुचर– सेवक, पीछे चलने वाला
थाल– बड़ी प्लेट या परात
पद-शब्द– पाँवों की आहट

व्याख्या- इस अंश में ममता नामक युवती की करुण दशा का वर्णन किया गया है। वह रोहतास दुर्ग के एक कमरे के अंदर बैठकर नदी के तेज और गम्भीर प्रवाह को देख रही है। ममता का यौवन नदी की तरह प्रबल उमंगों से उमड़ रहा था, किंतु उसके मन में गहरी वेदना थी, मस्तिष्क व्याकुल आँधी-सा हो रहा था, आँखों से आँसू बरसात की तरह बह रहे थे और वह जीवन के कांटों भरे शयन में अत्यधिक व्याकुल थी।
यद्यपि वह मंत्री चूड़ामणि की इकलौती बेटी थी और उसके जीवन में किसी भी भौतिक वस्तु का अभाव नहीं था, लेकिन विधवापन ने उसे समाज की दृष्टि में तुच्छ और निराश्रित बना दिया। यही उसकी सबसे बड़ी विडम्बना थी।
ममता अपने दुखों में इतनी डूबी हुई थी कि पिता के आने तक को महसूस न कर सकी। चूड़ामणि अपनी बेटी की पीड़ा देखकर दुःखी हुए, परंतु कोई उपाय न सूझने के कारण लौट गए। अक्सर वे ऐसा ही करते थे, किंतु उस दिन उनका मन अत्यधिक चिंतित था, जिसके कारण वे बेचैनी से इधर-उधर घूमते रहे। कुछ समय बाद वे पुनः ममता के पास आए, इस बार उनके साथ दस सेवक थे जो चाँदी के बड़े थालों में वस्तुएँ लिए हुए थे। सेवकों की आहट सुनकर ममता ने पीछे मुड़कर देखा। मंत्री ने संकेत किया और सेवक थाल रखकर चले गए।
इस प्रकार यह अंश ममता के जीवन की त्रासदी, उसके विधवापन की पीड़ा और पिता की असहायता को मार्मिक रूप से उजागर करता है। यह स्पष्ट करता है कि भौतिक वैभव होने पर भी समाज की कठोर परंपराएँ स्त्री के जीवन को दुःखमय बना देती हैं।

 

पाठ: ममता ने पूछा- “यह क्या है पिता जी ?”
“तेरे लिए बेटी, उपहार है।” यह कहकर चूड़ामणि ने आवरण उलट दिया। सुवर्ण का पीलापन उस सुनहली संध्या में विकीर्ण होने लगा। ममता चौंक उठी ………….
“इतना स्वर्ण! यह कहाँ से आया ?”
“चुप रहो ममता! यह तुम्हारे लिए है।”
“तो क्या आपने म्लेच्छ का उत्कोच स्वीकार कर लिया ? पिताजी यह अर्थ नहीं अनर्थ है। लौटा दीजिए। पिता जी हम लोग ब्राह्मण हैं, इतना सोना लेकर क्या करेंगे ?”
“इस पतनोन्मुख प्राचीन सामंत वंश का अंत समीप है, बेटी, किसी भी दिन शेरशाह रोहतास पर अधिकार कर सकता है। उस दिन मंत्रीत्व न रहेगा, तब के लिए बेटी !”
“हे भगवान्! तब के लिए! विपद् के लिए इतना आयोजन! परम पिता की इच्छा के विरुद्ध इतना साहस ? पिता जी, क्या भीख न मिलेगी ? क्या कोई हिंदू भू-पृष्ठ पर न बचा रह जाएगा, जो ब्राह्मण को दो मुट्ठी अन्न दे सके ? असंभव है। फेर दीजिए पिता जी ! मैं काँप रही हूँ- इसकी चमक आँखों को अंधा बना रही है। ”
“मूर्ख है” कहकर चूड़ामणि चले गये।

शब्दार्थ-
उपहार- तोहफ़ा, भेंट
आवरण– ढकने वाली चीज़, पर्दा
सुवर्ण- सोना
पीलापन– पीला रंग
विकीर्ण– फैलना
म्लेच्छ– विदेशी या विधर्मी (उस समय के दृष्टिकोण से अपवित्र माने जाने वाले लोग)
उत्कोच- रिश्वत, घूसखोरी
अनर्थ- बुरा काम
पतनोन्मुख- पतन की ओर जाती हुई
सामंत वंश– राजवंश, रियासत का शासक परिवार
अधिकार करना– कब्जा करना
मंत्रीत्व- मंत्री का पद, मंत्री होना
विपद्- मुश्किल
परम पिता– ईश्वर
भू-पृष्ठ– धरती, भूमि-भाग
मूर्ख- बुद्धिहीन, नासमझ

व्याख्याइस अंश में ममता अपने पिता चूड़ामणि से पूछती है कि यह क्या है। चूड़ामणि बताते हैं कि यह उसके लिए उपहार है और जब वह थालों से आवरण हटाते हैं तो बहुत सारा सोना निकलता है। सोने की चमक देखकर ममता आश्चर्यचकित हो जाती है और पूछती है कि इतना स्वर्ण कहाँ से आया। जब पिता कहते हैं कि यह उसके लिए है, तो ममता समझ जाती है कि यह किसी विदेशी (म्लेच्छ) से रिश्वत के रूप में लिया गया है। वह पिता से कहती है कि यह धन नहीं, अनर्थ है और इसे लौटा दीजिए। वह तर्क देती है कि वे ब्राह्मण हैं, उन्हें इतना सोना लेकर क्या करना है।
चूड़ामणि उसे समझाते हैं कि यह पुराना सामंत राजवंश अब समाप्त होने वाला है और किसी भी दिन शेरशाह रोहतास पर अधिकार कर सकता है। उस समय मंत्री का पद नहीं रहेगा, इसलिए भविष्य की विपत्ति से बचने के लिए यह धन लिया गया है। ममता कहती है कि विपत्ति के समय तो भगवान की इच्छा चलेगी, और क्या कोई हिंदू शेष नहीं रहेगा जो ब्राह्मण को भोजन न दे सके। वह कहती है कि वह काँप रही है, यह सोना उसकी आँखों को चौंधिया रहा है और उसे डर लग रहा है। अंत में, नाराज़ होकर चूड़ामणि ममता को मूर्ख कहकर चले जाते हैं।

 

पाठ: दूसरे दिन जब डोलियों का तांता भीतर आ रहा था, ब्राह्मण मंत्री चूड़ामणि का हृदय धक् धक् करने लगा। वह अपने को न रोक सका। उसने जाकर रोहतास-दुर्ग के तोरण पर डोलियों का आवरण खुलवाना चाहा। पठानों ने कहा – “यह महिलाओं का अपमान करना है।”
बात बढ़ गयी। तलवारें खिंचीं, ब्राह्मण मंत्री वहीं मारा गया और राजा, रानी तथा कोष सब छली शेरशाह के हाथ पड़े निकल गयी ममता । डोली में भरे हुए पठान सैनिक दुर्ग भर में फैल गये, पर ममता न मिली।

शब्दार्थ-
डोली- पालकी, जिसमें महिलाएँ बैठकर यात्रा करती थीं
तांता- लम्बी कतार
धक्-धक् करना- घबराहट या चिंता से दिल का तेज़ धड़कना
रोहतास-दुर्ग– रोहतास का किला
तोरण- मुख्य द्वार या प्रवेश-द्वार
पठान– अफगान मूल के सैनिक
अपमान- बेइज़्ज़ती
कोष– खजाना
छली– धोखेबाज़, कपटी

व्याख्या प्रस्तुत गद्याँश में बताया गया है कि जब दूसरे दिन डोलियाँ (पालकियाँ) किले के अंदर आ रही थीं, तब ब्राह्मण मंत्री चूड़ामणि का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसे शक हुआ और वह अपने आप को रोक न सका। वह दौड़कर रोहतास दुर्ग के द्वार (तोरण) पर पहुँचा और डोलियों के कपड़े का आवरण हटवाना चाहता था। लेकिन पठानों ने उसे रोका और कहा कि ऐसा करना महिलाओं का अपमान है।
इस बात पर विवाद बढ़ गया और तलवारें निकल आईं। झगड़े में मंत्री चूड़ामणि वहीं मारे गए। इसके बाद राजा, रानी और खजाना सब शेरशाह के हाथ लग गए, क्योंकि वह छल से यह योजना बना चुका था। डोलियों में सैनिक भरे थे, जो किले में फैल गए, लेकिन उनमें ममता नहीं थी। वह बच निकली।

पाठ: काशी के उत्तर धर्मचक्र बिहार मौर्य और गुप्त सम्राटों की कीर्ति का खंडहर था भग्नचूड़ा, तृणागुल्मों से ढके हुए प्राचीर ईटों के ढेर में बिखरी हुई भारतीय शिल्प की विभूति, ग्रीष्म रजनी की चद्रिका में अपने को शीतल कर रही थी।
जहाँ पंचवर्गीय भिक्षु गौतम का उपदेश ग्रहण करने के लिए पहले मिले थे, उसी स्तूप के भग्नावशेष की मलिन छाया में एक झोंपड़ी के दीपालोक में एक स्त्री पाठ कर रही थी-
“अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।” …………………..
पाठ रुक गया। एक भीषण और हताश आकृति दीप के मंद प्रकाश में सामने खड़ी थी। स्त्री उठी, उसने कपाट बंद करना चाहा, परंतु व्यक्ति ने कहा-
“माता! मुझे आश्रय चाहिए।”
“तुम कौन हो ?” स्त्री ने पूछा ।
“मैं मुगल हूँ। चौसा- युद्ध में शेरशाह से विपन्न होकर रक्षा चाहता हूँ। इस रात अब आगे चलने में असमर्थ हूँ।”
“क्या शेरशाह से?” स्त्री ने अपने होंठ काट लिये।
“हाँ, माता!”

शब्दार्थ-
धर्मचक्र बिहार– प्रसिद्ध बौद्ध धर्मस्थल (सारनाथ के पास)
मौर्य और गुप्त सम्राट– भारत के प्राचीन शक्तिशाली राजवंश
कीर्ति का खंडहर- गौरव और वैभव का टूटा हुआ अवशेष
भग्नचूड़ा- टूटा हुआ शिखर या मीनार
तृणागुल्म- घास-फूस और झाड़ियाँ
प्राचीर- दुर्ग या इमारत की दीवार
विभूति- वैभव, महानत
ग्रीष्म रजनी- गर्मी की रात
चन्द्रिका- चाँदनी
स्तूप– बौद्ध शिक्षा के स्तंभ (खंभे
भग्नावशेष- खंडित टुकड़े
मलिन- धुंधला
दीपालोक– दीपक प्रकाश
पाठ– धार्मिक ग्रंथ का पढ़ना
भीषण- डरावना
हताश- निराश
कपाट– दरवाज़ा
आश्रय- शरण, सहारा
विपन्न– विफल, हारकर
असमर्थ- अक्षम, थका हुआ

व्याख्याकाशी के उत्तर में धर्मचक्र बिहार था, जो कभी मौर्य और गुप्त सम्राटों की महानता का प्रतीक था, लेकिन अब खंडहर बन चुका था। उसकी टूटी दीवारें घास-फूस से ढकी थीं और ईंटों के ढेर में बिखरी भारतीय कला चाँदनी रात में ठंडी-ठंडी सी चमक रही थी। वहीं उस जगह पर, जहाँ पहले पाँच भिक्षुओं ने बुद्ध से उपदेश पाया था, अब एक पुराने स्तूप के खंडहर की छाया में बनी झोंपड़ी में एक स्त्री दीपक की रोशनी में धार्मिक श्लोक ‘अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते’ पढ़ रही थी।
अचानक उसका पाठ रुक गया, क्योंकि एक हताश और थका हुआ व्यक्ति दीपक की मद्धम रोशनी में सामने खड़ा था। स्त्री घबराकर दरवाजा बंद करना चाहती थी, लेकिन वह व्यक्ति उस स्त्री से बोलता है कि उसे आश्रय चाहिए। स्त्री उससे पूछती है कि वह कौन है। वह बोलता है कि वह मुग़ल है। चौसा के युद्ध में शेरशाह से हारकर यहाँ आया है और रक्षा चाहता है। रात में अब वह और आगे नहीं चल सकता। यह सुनकर स्त्री से अपने होंठ कट जाते हैं, उसने आश्चर्य से कहा कि क्या शेरशाह से, वह व्यक्ति बोलता है कि हाँ, माता।

 

पाठ: “परंतु तुम भी वैसे ही क्रूर हो। वही भीषण रक्त की प्यास, वही निष्ठुर प्रतिबिंब तुम्हारे मुख पर भी है। सैनिक मेरी कुटी में स्थान नहीं। जाओ, कहीं दूसरा आश्रय खोज लो।”
“गला, सूख रहा है, साथी छूट गए हैं, अश्व गिर पड़ा है इतना थका हुआ हूँ, इतना !” कहते वह व्यक्ति धम से बैठ गया और उसके सामने ब्रह्मांड घूमने लगा। स्त्री ने सोचा, यह विपत्ति कहाँ से आयी उसने जल दिया। मुगल के प्राणों की रक्षा हुई। वह सोचने लगी-
“सब विधर्मी दया के पात्र नहीं मेरे पिता का वध करने वाले आततायी!” घृणा से उसका मन विरक्त हो गया।
स्वस्थ होकर मुगल ने कहा-‘माता। तो फिर मैं चला जाऊँ?”
स्त्री विचार कर रही थी- “मैं ब्राह्मण हूँ, मुझे तो अपने धर्म – अतिथि देव की उपासना का पालन करना चाहिए; परन्तु यहाँ . ..नहीं नहीं, यह सब विधर्मी दया के पात्र नहीं; परंतु यह दवा तो नहीं कर्त्तव्य करना है। तब?
मुगल अपनी तलवार टेक कर उठ खड़ा हुआ। ममता ने कहा- “क्या आश्चर्य है कि तुम भी छल करो।”
“छल! नहीं, तब नहीं स्त्री ! जाता हूँ, तैमूर का वंशधर स्त्री से छल करेगा। जाता हूँ, भाग्य का खेल है।”

शब्दार्थ-
क्रूर- आततायी, निर्दयी
भीषण- भयानक, डरावना
निष्ठुर– दयाहीन
प्रतिबिंब- परछाईं या छवि
कुटी- छोटी झोपड़ी
आश्रय– शरण, सहारा
अश्व- घोड़ा
धम से बैठ जाना- अचानक गिर जाना या ज़ोर से बैठ जाना
ब्रह्मांड- तीनों लोक (अंतरिक्ष, पृथ्वी और पाताल)
विपत्ति- कठिनाई, मुश्किल, मुसीबत
विधर्मी- दूसरे धर्म वाले, धर्म से विपरीत
आततायी- अत्याचारी, आक्रमणकारी
विरक्त- (दुःखी होकर) उदासीन हो जाना
अतिथि- मेहमान
कर्त्तव्य– जिम्मेदारी
छल- धोखा, कपट
तैमूर का वंशधर– तैमूर (मुगल वंश के पूर्वज) का वंशज

व्याख्या- प्रस्तुत अंश में स्त्री उस मुगल से कहती है कि वह भी उतना ही क्रूर और रक्तपिपासु है जितने और सैनिक होते हैं, इसलिए उसकी झोपड़ी में उसके लिए कोई जगह नहीं है, वह कहीं और आश्रय ढूँढे। लेकिन मुगल बहुत थका हुआ था। उसका गला सूख रहा था, साथी छूट गए थे, घोड़ा भी थक कर गिर गया था। अपने बारे में ऐसा बताते हुए वह वहीं बैठ जाता है, उसकी हालत लगभग बेहोश होने जैसी हो गयी थी। स्त्री सोचती है कि यह कैसी विपत्ति आ गई है, उसे दया आ जाती है और वह उस मुग़ल को पानी देती है। पानी पीकर उसकी जान में जान आती है।
फिर भी स्त्री का मन शांत न हुआ। उसे याद आता है कि मुगलों ने ही उसके पिता की हत्या की थी, इसलिए उसे इनसे घृणा थी। पर साथ ही उसके मन में यह विचार भी आया कि वह ब्राह्मण है और ब्राह्मण धर्म में ‘अतिथि देवो भव’ माना जाता है। अतिथि को ठुकराना उसके धर्म के विरुद्ध था, इसलिए वह उलझन में पड़ गई।
स्वस्थ होकर मुगल कहता है कि यदि वह चाहती है तो वह चला जाएगा। जाते समय ममता ने संदेह से कहा कि क्या आश्चर्य है यदि वह भी छल करे। इस पर मुगल कहता है कि नहीं स्त्री, तैमूर का वंशधर स्त्री से छल नहीं करेगा। यह सब तो भाग्य का खेल है कि वह यहाँ आया है और अब जा रहा है।

पाठ: ममता ने मन में कहा – “यहाँ कौन दुर्ग है। यही झोंपड़ी हैं, जो चाहे ले ले। मुझे तो अपना कर्त्तव्य करना पड़ेगा।” वह बाहर चली आयी और मुगल से बोली, “जाओ भीतर, थके हुए भयभीत पथिक ! तुम चाहे कोई हो, मैं तुम्हें आश्रय देती हूँ। मैं ब्राह्मण कुमारी हूँ, सब अपना धर्म छोड़ दें तो मैं भी क्यों छोड़ दूँ?”

Mamta Summary img1

मुगल ने चन्द्रमा के मंद प्रकाश में वह महिमामय मुखमंडल देखा। उसने मन ही मन नमस्कार किया। ममता पास की टूटी हुई दीवारों में चली गयी। भीतर थके पथिक ने झोंपड़ी में विश्राम किया।
प्रभात में खंडहर की संधि से ममता ने देखा, सैकड़ों अश्वारोही उस प्रांत में घूम रहे हैं। वह अपनी मूर्खता पर अपने को कोसने लगी।
अब उस झोंपड़ी से निकल कर उस पथिक ने कहा- “मिरजा ! मैं यहाँ हूँ।”
शब्द सुनते ही प्रसन्नता की चीत्कार ध्वनि से वह प्रांत गूँज उठा। ममता अधिक भयभीत हुई। पथिक ने कहा- “वह स्त्री कहाँ है? उसे खोज निकालो।” ममता छिपने के लिए अधिक सचेष्ट ‘हुई। वह मृगदाव में चली गयी। दिन भर उसमें से न निकली। संध्या को जब उनके जाने का उपक्रम हुआ, तो ममता ने सुना, पथिक घोड़े पर सवार होते हुए कह रहा था “मिरजा उस स्त्री को मैं कुछ भी न दे सका। उसका घर बनवा देना, क्योंकि विपत्ति में मैंने यहाँ आश्रय पाया था। यह स्थान भूलना मत।” इसके बाद वे चले गये।

शब्दार्थ-
दुर्ग- किला
पथिक– यात्री, राहगीर
ब्राह्मण कुमारी– ब्राह्मण जाति की कन्या
महिमामय– तेजस्वी, महानता से युक्त
मुखमंडल– चेहरा
विश्राम- आराम करना
खंडहर- टूटी-फूटी इमारत।
संधि– जोड़
अश्वारोही– घुड़सवार
प्रांत– क्षेत्र, इलाका
चित्कार– जोर से निकली हुई आवाज़, पुकार
सचेष्ट- सजग, प्रयत्नपूर्वक
मृगदाव– हिरण वाला जंगल
उपक्रम- तैयारी, आरंभ
आश्रय पाया- शरण मिली

व्याख्याममता मन ही मन सोचती है कि उसके पास कोई किला नहीं, बस यही छोटी सी झोंपड़ी है। अगर कोई इसमें रहना चाहे, तो रह सकता है। लेकिन उसे अपना धर्म निभाना ही है। वह बाहर जाकर मुगल से कहती है कि वह चाहे जो भी हो, थके हुए और डरे पथिक, वह अंदर आकर आराम कर सकता है। वह स्त्री आगे कहती है कि वह तो एक ब्राह्मण कन्या है। सब लोग अपना धर्म छोड़ दें तब भी वह अपना धर्म क्यों छोड़े।
मुगल चाँदनी में ममता का तेजस्वी चेहरा देखता है और मन ही मन उसका सम्मान करता है। ममता टूटी दीवार के पास चली जाती है और मुगल झोंपड़ी में विश्राम करता है।
सुबह ममता देखती है कि सैकड़ों घुड़सवार सैनिक उस इलाके में घूम रहे हैं। वह पछताती है कि उसने मुगल को शरण दी। तभी झोंपड़ी से वह पथिक निकलता है और ऊँची आवाज में कहता है कि मिरजा, वह यहाँ है जिसे वे सैनिक ढूँढ रहे थे। यह सुनकर सैनिक खुशी से चिल्ला उठते हैं। ममता और डर जाती है।
तब पथिक पूछता है कि वह स्त्री कहाँ है, उसे खोजो। ममता छिपने के लिए जंगल में भाग जाती है और दिनभर वहीं रहती है।
शाम को जब सैनिक जाने लगते हैं, तो वह पथिक घोड़े पर बैठकर कहता है कि मिरजा, उस स्त्री को वह कुछ दे नहीं सका। उसका घर बनवा देना, क्योंकि उस स्त्री ने विपत्ति में उसे यहाँ आश्रय दिया था। इस स्थान को मत भूलना। इतना कहकर वह चला जाता है।

पाठ: चौसा के मुगल-पठान युद्ध को बहुत दिन बीत गये। ममता अब सत्तर वर्ष की वृद्धा है। वह अपनी झोंपड़ी में एक दिन पड़ी थी। शीतकाल का प्रभाव था। उसका जीर्ण कंकाल खाँसी से गूँज रहा था। ममता की सेवा के लिए गाँव की दो-तीन स्त्रियाँ उसे घेर कर बैठी थीं, क्योंकि वह आजीवन सब के सुख – दुःख की सहभागिनी रही।
ममता ने जल पीना चाहा। एक स्त्री ने सीपी से जल पिलाया। सहसा एक अश्वारोही उसी झोंपड़ी के द्वार पर दिखायी पड़ा। वह अपनी धुन में कहने लगा- “मिरजा ने जो चित्र बनाकर दिया है, वह तो इसी जगह का होना चाहिए। वह बुढ़िया मर गई होगी। अब किससे पूछें कि एक दिन शाहंशाह हुमायूँ किस छप्पर के नीचे बैठे थे? यह घटना भी तो सैंतालीस वर्ष से ऊपर की हुई।”

शब्दार्थ-
चौसा- बिहार का एक स्थान जहाँ हुमायूँ और शेरशाह का युद्ध हुआ था
मुगल-पठान युद्ध– मुगल शासक हुमायूँ और पठान शासक शेरशाह सूरी के बीच लड़ा गया युद्ध
जीर्ण कंकाल– कमज़ोर ढांचा
सहभागिनी- साथी, साथ देने वाली
सीपी– खोल या छोटा पात्र जिससे पानी पिलाया गया
धुन- ध्यान या विचार में मग्न अवस्था
चित्र- नक्शा या रेखाचित्र
छप्पर– घास-फूस या लकड़ी से बनी हुई छत

व्याख्या- चौसा का मुगल और पठान युद्ध हुए कई साल बीत चुके थे। अब ममता सत्तर साल की बूढ़ी औरत हो गई थी। वह अपनी छोटी-सी झोंपड़ी में पड़ी रहती थी। सर्दी का मौसम था और उसका कमजोर शरीर खाँसी से कांप रहा था। गाँव की दो-तीन औरतें उसकी देखभाल कर रही थीं, क्योंकि ममता ने जिंदगी भर सबके सुख-दुख में साथ दिया था।
ममता पानी माँगती है। एक स्त्री सीप से उसे पानी पिलाती है। तभी अचानक एक घोड़े पर सवार आदमी झोंपड़ी के दरवाजे पर आता है। वह अपने आप से कहने लगता है कि मिरजा ने जो चित्र बनाया था, वह तो यही जगह लगती है। शायद वह बूढ़ी औरत अब मर चुकी होगी। अब किससे पूछें कि एक दिन बादशाह हुमायूँ इसी छप्पर के नीचे बैठे थे। यह घटना तो सैंतालीस साल से भी पुरानी है।

 

पाठ: ममता ने अपने विकल कानों से सुना। उसने पास की स्त्री से कहा- “उसे बुलाओ।”
अश्वारोही पास आया। ममता ने रुक-रुक कर कहा- “मैं नहीं जानती कि वह शाहंशाह था या साधारण मुगल; पर एक दिन इसी झोपड़ी के नीचे वह रहा था। मैंने सुना था, वह मेरा घर बनाने की आज्ञा दे गया था। मैं आजीवन अपनी झोंपड़ी खुदवाने के डर से भयभीत रही थी।”
‘भगवान ने सुन लिया, मैं आज इसे छोड़े जाती हूँ। अब तुम इसका मकान बनाओ या महल; मैं अपने चिर विश्राम गृह में जाती हूँ।”
वह अश्वारोही अवाक् खड़ा था। बुढ़िया के प्राण पक्षी अनंत में उड़ गये।
वहां एक अष्टकोण मन्दिर बना और उस पर शिलालेख लगाया गया-
“सातों देशों के नरेश हुमायूँ ने एक दिन यहाँ विश्राम किया था। उनके पुत्र अकबर ने उसकी स्मृति में यह गगनचुम्बी मंदिर बनवाया।”
पर उसमें ममता का कहीं नाम न था।

शब्दार्थ-
विकल कान– कमजोर कान
शाहंशाह– सम्राट या बादशाह
आज्ञा– आदेश या हुक्म
भयभीत– डर से ग्रस्त
चिर विश्राम गृह- स्थायी विश्राम स्थान
अवाक्– आश्चर्य से भरकर चुप हो जाना
प्राण पक्षी- जीवन या आत्मा का प्रतीक
अनंत– जिसका अंत न हो
अष्टकोण मंदिर– आठ कोणों वाला मंदिर
शिलालेख- पत्थर पर खुदा हुआ लेख या अभिलेख
स्मृति– यादगार या स्मरण
गगनचुम्बी– बहुत ऊँचा, आकाश को छूने वाला

व्याख्या- प्रस्तुत अंश में ममता अपने असमर्थ कानों से घुड़सवार की बात सुनती है और पास बैठी एक स्त्री से कहती है कि उसे बुलाओ। तब घुड़सवार आता है, तब ममता अपने धीमे स्वर से कहती है कि उसे नहीं पता कि वह बादशाह था या कोई साधारण मुगल, पर एक बार वह इसी झोंपड़ी में ठहरा था।
वह आगे कहती है कि उसने सुना था कि वह उसका घर बनाने की आज्ञा देकर गया था। पर वह सारी उम्र डरती रही कि कहीं उसकी झोंपड़ी तुड़वा न दी जाए। आज भगवान ने उसकी प्रार्थना सुन ली। वह कहती है कि अब वह इस जगह को छोड़ रही है। आप चाहो तो यहाँ मकान बनाओ या महल, पर वह अब हमेशा के लिए जा रही है।
इतना कहकर ममता की मृत्यु हो जाती है। घुड़सवार हैरान खड़ा रह जाता है। बाद में वहाँ एक अष्टकोण मंदिर बनाया जाता है और शिलालेख लगाया जाता है जिसपे लिखा होता है कि हुमायूँ यहाँ ठहरे थे और उनके पुत्र अकबर ने उनकी याद में यह मंदिर बनवाया।
लेकिन सोचने वाली बात यह है कि उस मंदिर और शिलालेख में ममता का कहीं नाम नहीं लिखा जाता है।

Conclusion

इस पोस्ट में ‘ममता’ पाठ का सारांश, व्याख्या और शब्दार्थ दिए गए हैं। यह पाठ PSEB कक्षा 10 के पाठ्यक्रम में हिंदी की पाठ्यपुस्तक से लिया गया है। जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित इस कहानी में रिश्वतखोरी का विरोध किया गया है, साथ ही भारतीय परंपरा ‘अतिथि देवो भव’ को अत्यंत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है। यह पोस्ट विद्यार्थियों को पाठ को सरलता से समझने, उसके मुख्य संदेश को ग्रहण करने और परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देने में सहायक सिद्ध होगा।