अशिक्षित का हृदय पाठ सार

PSEB Class 10 Hindi Book Chapter 8 “Ashikshit Ka Hriday” Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings

 

अशिक्षित का हृदय सार – Here is the PSEB Class 10 Hindi Book Chapter 8 Ashikshit Ka Hriday Summary with detailed explanation of the lesson “Ashikshit Ka Hriday” along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary

इस पोस्ट में हम आपके लिए पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड  कक्षा 10 हिंदी पुस्तक के पाठ 8 अशिक्षित का हृदय पाठ सार, पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप  इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 10 अशिक्षित का हृदय पाठ के बारे में जानते हैं।

 

Ashikshit Ka Hriday (अशिक्षित का हृदय)

विश्वंभरनाथ शर्मा ‘कौशिक ‘ 

‘अशिक्षित का हृदय’ प्रकृति के साथ मनुष्य के भावात्मक संबंध को दर्शाने वाली एक मार्मिक कहानी है। कहानी में मनोहर सिंह लगान के बदले अपना नीम का पेड़ जमींदार के यहाँ गिरवी रखता है। जमींदार उस वृक्ष को कटवाना चाहता है किंतु मनोहर सिंह उस वृक्ष का रक्षक बन जाता है। गाँव का एक लड़का तेजा सिंह मनोहर सिंह की भावनाओं की कद्र करता है और अपने प्रयत्न से पेड़ को बचाने में सफल हो जाता है। जिस कारण मनोहर सिंह अपना पेड़ तेजा को दे देता है।

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अशिक्षित का हृदय पाठ सार Ashikshit Ka Hriday Summary

 

‘अशिक्षित का हृदय’ कहानी के लेखक श्री विश्वंभरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ हैं। इस कहानी में लेखक ने एक मनोहर सिंह नामक ग्रामीण के हृदय में छिपे नीम के पेड़ के प्रति सच्चे प्रेम को प्रस्तुत किया है।

मनोहर सिंह नाम का लगभग 55 साल का एक ग्रामीण व्यक्ति था। उसने अपना यौवन काल फौज में व्यतीत किया था। वह इस संसार में अकेला था। गाँव में दूर के एक-दो रिश्तेदार अवश्य थे, उन्हीं के यहां अपना भोजन बना लेता था। उसका कहीं आना-जाना नहीं था। वह अपने टूटे-फूटे मकान में रहता था और ईश्वर भजन किया करता था। फौज से मिलने वाली पेंशन से उसका गुजारा हो रहा था। एक वर्ष पहले उसके मन में खेती कराने की इच्छा पैदा हुई थी। इसलिए उसने ठाकुर शिवपाल सिंह से कुछ भूमि लगान पर लेकर खेती कराई भी थी परन्तु खराब किस्मत के चलते उस साल वर्षा न होने के कारण कुछ पैदावार नहीं हुई। ठाकुर शिवपाल सिंह को लगान न दिया जा सका। जब ठाकुर साहब को लगान न मिला तो उन्होंने मनोहर सिंह का नीम का पेड़ गिरवी रख लिया। मनोहर सिंह की झोंपड़ी के द्वार पर लगा वह नीम का पेड़ उसके पिता द्वारा लगाया गया था जो उनकी आखरी निशानी था। एक दिन जब ठाकुर शिवपाल सिंह अपना लगान वापस लेने मनोहर सिंह के घर आया तो मनोहर सिंह ने बड़े विनम्र भाव से कहा कि अभी रुपये उसके पास अभी रुपये नहीं हैं। फिर रुपयों को कोई खतरा नहीं था क्योंकि उसका नीम का पेड़ ठाकुर के पास गिरवी रखा हुआ था। ठाकुर शिवपाल सिंह ने कहा कि डेढ़ साल का ब्याज मिलाकर कुल 25 रुपये बनते थे। वे रुपये चुका दो नहीं तो वे न नीम का पेड़ कटवा लेंगे। मनोहर सिंह को रुपया अदा करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया गया था। उसने बहुत कोशिश की। परन्तु रूपए का इंतजाम नहीं कर पाया। वह पेड़ उसे बहुत प्रिय था। उसके कट जाने की कल्पना मात्र से वह काँप उठता था। वह नीम के पेड़ के नीचे बैठ कर  पेड़ के उपकारों और अपने पिता का स्मरण कर रहा था। मनोहर सिंह अपने विचारों में डूबा हुआ बड़बड़ा ही रहा था कि उसी समय तेजा नाम का एक पंद्रह-सोलह वर्ष का लड़का आया। उसने मनोहर को अकेले बड़बड़ाते देख पूछा कि वह किससे बातें कर रहा था। मनोहर सिंह ने तेजा को सारी बात सुनाई। तेजा एक बालक ही था लेकिन जब उसे पेड़ की कहानी तथा उसके महत्त्व का पता चला तो उसके हृदय में मनोहर सिंह के प्रति सहानुभूति जागी। तेजा सिंह के लिए 25 रुपये की रकम बहुत बड़ी थी। दस-पाँच रुपये की बात होती तो वह कहीं से ला देता। मनोहर सिंह तेजा सिंह की भावनाओं से प्रभावित हो गया। उसने उसे लम्बी उम्र का आशीर्वाद दिया।

एक सप्ताह बीत जाने पर भी मनोहर सिंह रुपये नहीं चूका सका। आठवें दिन दोपहर के समय शिवपाल सिंह ने मनोहर सिंह से कहा कि अब पेड़ उनका था। अतः उसे कटवाने का अधिकार भी उनका था। मनोहर सिंह पेड़ न कटवाने का अनुरोध करता रहा। पर ठाकुर साहब ने उसकी एक न सुनी। मनोहर सिंह भी फिर अपने पेड़ के नीचे चारपाई बिछाकर बैठ गया। दोपहर ढलने पर दो-चार आदमी कुल्हाड़ियाँ लेकर आते दिखाई दिए। मनोहर सिंह ने तलवार निकाल ली और मज़दूर भाग खड़े हुए। शिवपाल सिंह को जब सारी घटना का पता चला तो वे दो लठबंद आदमियों तथा मज़दूरों के साथ वहाँ पहुँचे। मनोहर सिंह तथा ठाकुर शिवपाल सिंह में वाद-विवाद हुआ। उसी समय तेजा सिंह ने मनोहर सिंह को रुपये लाकर दिये। परन्तु अब ठाकुर साहब पेड़ कटवाने की जिद्द पूरी करना चाहते थे। अतः उन्होंने रुपये लेने से इन्कार कर दिया। सारी घटना के बीच गाँव के लोग इकट्ठे हो गए। उनके साथ तेजा सिंह का पिता भी आया था। जब उसे पता चला कि रुपये तेजा सिंह ने दिए थे और वह ये रुपये वह चुराकर लाया था। तो मनोहर सिंह ने रुपये लौटा दिए। अब शिवपाल सिंह को पता था कि मनोहर सिंह रुपये नहीं दे सकता। इसलिए उसने कहा कि अगर मनोहर सिंह रुपए अभी दे देता है तो वह स्वीकार कर लेंगे। सारी बात सुनकर तेजा सिंह आगे बढ़ा और उसने अपनी अंगूठी ठाकुर की तरफ बढ़ाते हुए कहा कि वह अंगूठी एक तोले की है। और इस पर उसके बापू का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि वह अंगूठी उसे उसकी नानी ने दी है। तेजा सिंह की ऐसी भावना को देखकर उसके पिता आगे बढ़े और उन्होंने ठाकुर को पच्चीस रुपये दे दिये। ठाकुर के चले जाने के बाद मनोहर सिंह ने तेजा को छाती से लगा लिया और सबके सामने कहा वह सभी गांव वालों के सामने अपना नीम का पेड़ तेजा सिंह को दे रहा है। तेजा को छोड़कर उस पेड़ पर किसी का कोई अधिकार नहीं रहेगा।

 

अशिक्षित का हृदय पाठ  व्याख्या Ashikshit Ka Hriday Explanation

 

पाठबूढ़ा मनोहर सिंह विनीत भाव से बोला – सरकार, अभी तो मेरे पास रुपये हैं नहीं, होते तो दे देता। ऋण का पाप तो देने से ही कटेगा। फिर आपके रुपये को कोई जोखिम नहीं। मेरा नीम का पेड़ गिरवी धरा हुआ है। वह पेड़ कुछ न होगा तो पच्चीस-तीस रुपये का होगा। इतना पुराना पेड़ गाँव भर में दूसरा नहीं।
ठाकुर शिवपाल सिंह बोले-डेढ़ साल का ब्याज मिलाकर कुल २२ होते हैं। वह रुपया अदा कर दो। नहीं तो हम तुम्हारा पेड़ कटवा लेंगे।
मनोहर सिंह कुछ घबरा कर बोला-अरे सरकार, ऐसा अंधेर न कीजिएगा। पेड़ न कटवाइएगा। रुपया मैं दे ही दूँगा। यदि न भी दे सकूँ तो पेड़ आपका हो जाएगा। पर मेरे ऊपर इतनी दया कीजिएगा कि उसे कटवाइगा नहीं।
ठाकुर शिवपाल सिंह मुस्करा कर बोले-मनोहर, तुम सठिया गये हो। तभी तो ऐसी ऊल-जलूल बातें करते हो। भला जो पेड़ कटाया न जायेगा, तो हमारे पैसे कैसे निकलेंगे?

शब्दार्थ
विनीत – नम्र
ऋण – उधार, कर्ज
जोखिम – ख़तरा
गिरवी – बंधक, रखा हुआ, किसी से ऋण लेने के लिए किसी वस्तु को रेहन रखना
धरा हुआ – रखा हुआ
अंधेर – अनीति, अन्याय, ज़्यादती
सठिया – सोचने-समझने के योग्य न रह जाना, ऐसी अवस्था में पहुँचना जबकि बुद्धि ठीक से काम करना छोड़ देती है
ऊल- जलूल बातें – बेकार की बातें 

व्याख्या – लेखक ठाकुर शिवपाल सिंह और मनोहर सिंह की बातचीत का वर्णन कर रहा है। लेखक बताता है कि बूढ़ा मनोहर बहुत ही नम्र भाव से ठाकुर से कहता है कि अभी तो उसके पास रुपये नहीं हैं और अगर उसके पास रूपए होते तो वह जरूर दे देता। क्योंकि उधार तो तभी कटेगा जब वह उधार चुकाएगा। और ठाकुर से उसने जो रुपये लिए हैं उसका ठाकुर को कोई ख़तरा भी नहीं है। क्योंकि मनोहर सिंह का नीम का पेड़ ठाकुर के पास गिरवी पड़ा हुआ था। वह पेड़ कम से कम पच्चीस-तीस रुपये का होगा। क्योंकि उसके जितना पुराना पेड़ पूरे गाँव में दूसरा नहीं था। ठाकुर शिवपाल सिंह मनोहर सिंह की बात सुनकर बोले कि उसके द्वारा लिए गए रूपए का डेढ़ साल का ब्याज मिलाकर कुल 22 रूपए होते हैं। वह उसका इतना रुपया चुका दे। नहीं तो वह उसके नीम के पेड़ को कटवा लेगा। ठाकुर की बातों को सुनकर मनोहर सिंह कुछ घबरा गया और ठाकुर से विनती करने लगा कि वह ऐसा अन्याय न करे। वह उसके नीम के पेड़ को न कटवाए। वह ठाकुर का रुपया जरूर चुका देगा। यदि वह ठाकुर के रूपए न भी दे सकें तो पेड़ तो ठाकुर का हो ही जाएगा। परन्तु वह मनोहर सिंह के ऊपर इतनी दया करे कि वह उस नीम के पेड़ को न कटवाए। ठाकुर शिवपाल सिंह मनोहर की ऐसी बातों को सुनकर मुस्करा कर बोले कि क्या उसकी ऐसी अवस्था हो गई है कि उसकी बुद्धि ने ठीक से काम करना छोड़ दिया है। तभी वह ऐसी बेकार की बातें कर रहा है। क्योंकि यदि पेड़ को कटा नहीं जायेगा, तो उसके पैसे कैसे निकलेंगे? अर्थात पेड़ को बिना काटे ठाकुर कैसे अपने रूपए पूरे कर पाएगा। 

 

पाठ – मनोहर सिंह बोला-अन्नदाता, आपके रुपये तो जहाँ तक होगा मैं दे ही दूँगा।
ठाकुर-अच्छा, अब ठीक-ठीक बताओ कि रुपये कब तक दे दोगे?
मनोहर कुछ देर सोच कर बोला-एक सप्ताह में अवश्य दे दूँगा।
ठाकुर-अच्छा, स्वीकार है। एक सप्ताह में दे देना, नहीं तो फिर पेड़ हमारा हो जाएगा। हमारी जो इच्छा होगी, वह करेंगे – चाहे कटावेंगे, चाहे रक्खेंगे।
मनोहर-और चाहे जो कीजिएगा उसे कटवाइएगा नहीं, इतनी आपसे प्रार्थना है।
ठाकुर-खैर, हमारा जो जी चाहेगा, करेंगे। तुम्हें फिर कुछ कहने का अधिकार नहीं रहेगा।

शब्दार्थ
अन्नदाता – अन्न देकर पालने-पोसने वाला, भरण-पोषण करने वाला व्यक्ति

व्याख्या – मनोहर सिंह, ठाकुर को अन्न देकर पालने-पोसने वाला कहता है और उससे कहता है कि वह उसके रुपये देने की पूरी कोशिश करेगा। ठाकुर भी उस पर थोड़ा विश्वास करते हुए पूछता है कि वह ठीक-ठीक बताए  कि वह रुपये कब तक दे देगा? मनोहर थोड़ी देर सोच कर कह देता है कि वह एक सप्ताह में रूपए अवश्य दे देगा। ठाकुर भी उसकी बात स्वीकार करता है और कहता है कि एक सप्ताह में यदि वह रूपए नहीं देता है, तो फिर उसका नीम का पेड़ सदा के लिए ठाकुर का हो जाएगा। फिर उनकी जो इच्छा होगी, वह पेड़ के साथ करेंगे। अर्थात उनकी इच्छा हुई तो वे पेड़ को कटवा देंगें, और इच्छा हुई तो रख लेंगे। मनोहर फिर भी प्रार्थना करता है कि उनका जो मन हो वो करें किन्तु पेड़ को न काटें। ठाकुर अपनी बात पर अड़ा रहता है कि उसका जो जी चाहेगा, करेगा। मनोहर रूपए नहीं दे पाया तो उसे फिर कुछ कहने का अधिकार नहीं रहेगा।

 

पाठ – मनोहर सिंह की आयु 55 वर्ष के लगभग है। अपनी जवानी उसने फ़ौज में व्यतीत की थी। इस समय वह संसार में अकेला है। उसके परिवार में कोई नहीं। गाँव में दो-एक दूर के रिश्तेदार हैं, जिनके यहाँ अपना भोजन बनवा लेता है। न कहीं आता हैं, न जाता है। दिन-रात अपने टूटे-फूटे मकान में पड़ा ईश्वर-भजन किया करता है।
एक वर्ष पूर्व उसे खेती कराने की सनक सवार हुई थी। उसने ठाकुर शिवपाल सिंह की कुछ भूमि लगान पर लेकर खेती कराई भी थी। पर उसके दुर्भाग्य से उस साल अनावृष्टि के कारण कुछ पैदावार न हुई। ठाकुर शिवपाल सिंह का लगान न पहुँचा। मनोहर सिंह को जो कुछ पेंशन मिलती थी वह उसके भोजन-वस्त्र भर ही को होती थी। अन्त में जब ठाकुर साहब को लगान न मिला, तो उन्होंने उसका एक नीम का वृक्ष, जो उसकी झोंपड़ी के द्वार पर लगा था, गिरवी रख लिया। यह नीम का वृक्ष बहुत पुराना और उसके पिता के हाथ का लगाया हुआ था।

शब्दार्थ
व्यतीत – बिताना
सनक – किसी बात की धुन, मन की झोंक
लगान – कृषि भूमि पर लगने वाला कर, शुल्क, राजस्व
दुर्भाग्य – ख़राब भाग्य, खोटी क़िस्मत, बदक़िस्मती
अनावृष्टि – वर्षा का अभाव, सूखा

व्याख्या – मनोहर सिंह लगभग 55 वर्ष का था। उसने अपनी जवानी फ़ौज में बिताई थी। वह संसार में अकेला था अर्थात उसके परिवार में कोई नहीं था। गाँव में कुछ दो-एक दूर के रिश्तेदार थे, जिनके घर पर वह अपना भोजन बनवा लेता था। वह न कहीं आता था, न जाता था। दिन-रात वह अपने टूटे-फूटे मकान में पड़ा रहता था और ईश्वर-भक्ति में भजन किया करता था। एक साल पहले उसे खेती कराने की धुन सवार हुई थी। जिसके लिए उसने ठाकुर शिवपाल सिंह की कुछ भूमि लगान पर लेकर खेती भी करवाई थी। परन्तु उसकी बदक़िस्मती थी कि उस साल वर्षा के अभाव के कारण फसल में कुछ पैदावार नहीं हुई। ठाकुर शिवपाल सिंह से जिस शुल्क पर भूमि खेती के लिए ली थी, फसल न होने के कारण वह शुल्क ठाकुर को नहीं दे पाया। मनोहर सिंह को फ़ौज की नौकरी के बाद जो कुछ पेंशन मिलती थी, वह उसके भोजन और वस्त्र के लिए ही पर्याप्त हो पाती थी। अन्त में जब ठाकुर साहब को उनका तय किया गया शुल्क न मिला, तो उन्होंने मनोहर का एक नीम का वृक्ष, जो उसकी झोंपड़ी के द्वार पर लगा था, उसे ही गिरवी रख लिया। यह नीम का वृक्ष बहुत पुराना था और उसे मनोहर के पिता के अपने हाथ का लगाया हुआ था। यही कारण था कि मनोहर को उस वृक्ष से लगाव था। 

 

पाठ – मनोहर सिंह को एक सप्ताह का अवकाश दिया गया, उसने बहुत कुछ दौड़धूप की, दो-चार आदमियों से क़र्ज माँगा, पर किसी ने उसे रुपये न दिये। लोगों ने सोचा, वृद्ध आदमी है, न जाने कब दुलक जाय। ऐसी दशा में रुपया किससे वसूल होगा ? मनोहर चारों ओर से हताश होकर बैठा रहा और धड़कते हुए हृदय से सप्ताह व्यतीत होने की राह देखने लगा।
दोपहर का समय है। मनोहर सिंह एक चारपाई पर नीम के नीचे लेटा हुआ है। नीम की शीतल वायु के झोकों से उसे बड़ा सुख मिल रहा है। वह पड़ा पड़ा सोच रहा है कि परसों तक यदि रुपये न पहुंचेंगे, तो ठाकुर साहब उस पेड़ को कटवा डालेंगे।
यह पेड़ मेरे पिता के हाथ का लगाया हुआ है। मुझे और मेरे परिवार को दतून और छाया देता रहा है। इसको ठाकुर साहब कटवा डालेंगे। यह विचार मनोहर सिंह को ऐसा दुःखदायी प्रतीत हुआ कि वह चारपाई पर उठकर बैठ गया। और वृक्ष की ओर मुँह करके बोला – यदि संसार में किसी ने मेरा साथ दिया है तो तूने। यदि संसार में किसी ने निःस्वार्थ भाव से मेरी सेवा की है तो तूने अब भी मेरी आँखों के आगे वह दृश्य आ जाता है, जब मेरे पिता तुझे सींचा करते थे। तू उस समय बिल्कुल बच्चा था। मैं तेरे लिए तालाब से पानी भर कर लाया करता था। पिता कहा करते थे – बेटा मनोहर! यह मेरे हाथ की निशानी है। इससे जब-जब तुझे और तेरे बाल-बच्चों को सुख पहुंचेगा, तब-तब मेरी याद आवेगी। पिता का देहांत हुए चालीस वर्ष व्यतीत हो गए। उनके कहने के अनुसार तू सदैव उनकी कीर्ति का स्मरण कराता रहा और जब तक रहेगा उनकी याद दिलाता रहेगा। मुझे वह दिन अच्छी तरह याद है जब मैं अपने मित्रों सहित तेरी डालियों पर चढ़ कर खेला करता था। इस संसार में तू ही एक पुराना मित्र है। तुझे वह दुष्ट काटना चाहता है। हाँ, काटेगा क्यों नहीं देखूं, कैसे काटता है।

शब्दार्थ 
दौड़धूप करना – बहुत मेहनत करना
क़र्ज – उधार
दुलक जाना – मर जाना
वसूल – रकम या वस्तु की वापसी
हताश – निराश, जिसे आशा न रह गई हो, निराश, नाउम्मीद शक्तिहीन
शीतल – ठंडी
निःस्वार्थ – बिना स्वार्थ के
कीर्ति – प्रसिद्धि, प्रतिष्ठा, खुशी
स्मरण – याद
सहित – साथ 

व्याख्या – ठाकुर के द्वारा मनोहर सिंह को रूपए वापिस करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया गया। मनोहर ने बहुत मेहनत की, दो-चार आदमियों से उधार भी माँगा, परन्तु किसी ने उसे रुपये नहीं दिये। लोगों ने सोचा कि मनोहर एक वृद्ध आदमी है, न जाने कब मर जाय। और यदि वह मर गया तो उस स्थिति में वे रुपया किससे वसूल करेंगे? क्योंकि मनोहर इस संसार में अकेला था। मनोहर चारों ओर से उम्मीद खोकर बैठा रहा और धड़कते हुए हृदय से उसको दिए गए एक सप्ताह के बीत जाने की राह देखने लगा। एक दोपहर को मनोहर सिंह एक चारपाई पर अपने नीम के पेड़ के नीचे लेटा हुआ था। नीम की ठंडी हवा के झोकों से उसे बहुत सुख मिल रहा था। वह नीम के पेड़ के नीचे पड़ा-पड़ा सोच रहा था कि परसों तक यदि वह रुपये वापिस न कर पाया, तो ठाकुर साहब उस नीम पेड़ को कटवा डालेंगे। उस नीम के पेड़ को मनोहर के पिता ने अपने हाथ का लगाया था। वह पेड़ मनोहर और उसके परिवार को दांतुन और छाया देता रहा था। उस पेड़ को ठाकुर साहब काट देंगे, यह विचार मनोहर सिंह को ऐसा दुःखदायी प्रतीत हुआ कि वह चारपाई पर एकदम से उठकर बैठ गया। और वृक्ष की ओर मुँह करके बोला कि यदि संसार में किसी ने उसका साथ दिया है तो केवल उस नीम के पेड़ ने ही दिया है। यदि संसार में किसी ने बिना किसी स्वार्थ के उसकी सेवा की है तो उस नीम के पेड़ ने ही की है। अब भी मनोहर की आँखों के आगे वह दृश्य आ जाता है, जब उसके पिता उस नीम के पेड़ को सींचा करते थे। वह नीम का पेड़ उस समय बिल्कुल बच्चा था। मनोहर उस छोटे से नीम के पेड़ के लिए तालाब से पानी भर कर लाया करता था। उसके पिता कहा करते थे कि यह नीम का पेड़ उनके हाथ की निशानी है। इस नीम के पेड़ से जब-जब उसे और उसके बाल-बच्चों को सुख पहुंचेगा, तब-तब उन लोगों को उसकी याद आएगी। मनोहर के पिता के देहांत को चालीस वर्ष बीत गए थे। उनके कहने के अनुसार नीम का पेड़ सदैव उनकी प्रतिष्ठा की याद मनोहर को कराता रहा और जब तक नीम का पेड़ रहेगा वह मनोहर को उसके पिता की याद दिलाता रहेगा। मनोहर को वह दिन अच्छी तरह याद है जब वह अपने मित्रों के साथ नीम के पेड़ की डालियों पर चढ़ कर खेला करता था। इस संसार में वह नीम का पेड़ ही मनोहर का एक पुराना मित्र है। जिसे वह दुष्ट ठाकुर काटना चाहता है। मनोहर नीम के पेड़ को तस्सली देते हुए कहता है कि वह उस ठाकुर को नीम के पेड़ को काटने नहीं देगा। 

 

पाठ – उसी समय उधर से एक पंद्रह-सोलह वर्ष का लड़का निकला। वृद्ध मनोहर को बड़बड़ाता देख उसने पूछा-चाचा, किससे बातें करते हो? यहां तो कोई है भी नहीं।
बुड्ढे ने चौंक कर लड़के की ओर देखा और कहा-क्या कहूँ बेटा तेजा, अपने कर्म से बातें कर रहा हूँ। ठाकुर शिवपालसिंह के मुझ पर कुछ रुपये चाहियें। तुझे तो बेटा मालूम ही है कि पर साल खेतों में एक दाना भी नहीं हुआ होता तो क्या मैं उनका लगान रख लेता ? अब वे कहते हैं, लगान के रुपये दो, नहीं पेड़ कटवा लेंगे। इस पेड़ को कटवा लेंगे जो मेरे बापू के हाथ का लगाया हुआ है। यह बात तो देखो : समय का फेर है, जो आज ऐसी-ऐसी बातें सुननी पड़ती है। बेटा, मैंने सारी उमर फ़ौज में बिताई है। बड़ी-बड़ी लड़ाई और मैदान देखे हैं। ये बेचारे हैं किस खेत की मूली। आज शरीर में बल होता, तो इनकी मजाल थी कि मेरे पेड़ के लिए ऐसा कहते। मुँह नोच लेता। मैंने कभी नाक पर मक्खी नहीं बैठने दी। बड़े-बड़े साहब-बहादुरों से लड़ पड़ता था। ये बेचारे हैं क्या? बड़े ठाकुर की दुम बने घूमते हैं। मैंने तो तोप के मुँह पर डट कर बन्दूकें चलाई हैं। पर बेटा, समय सब कुछ करा लेता है। जिन्होंने कभी तोप की सूरत नहीं देखी, वे वीर और ठाकुर बने घूमते हैं। हमें आंखें दिखाते हैं कि रुपये दो, नहीं पेड़ कटवा लेंगे। देखें, कैसे पेड़ कटवाते हैं? लाख बुड्ढा हो गया हूँ। जब तलवार लेकर डट जाऊँगा तो भागते दिखाई पड़ेंगे और बेटा, सौ बात की एक बात तो यह है कि मुझे अब मरना ही है, चल-चलाव लग रहा है। मैं बड़ी-बड़ी लड़ाइयों से जीता लौट आया। समझँगा, यह भी एक लड़ाई ही है। अब इस लड़ाई में मेरा अंत है। पर इतना समझ रखना कि मेरे जीते जी इस पेड़ की एक डाल भी कोई काटने नहीं पावेगा। उनका रुपया गले बराबर है। भगवान जाने, मेरे पास होता, तो मैं दे देता नहीं है, तो क्या किया जाय? पर यह नहीं हो सकता कि ठाकुर साहब मेरा पेड़ कटवा लें, और मैं बैठे टुकुर-टुकुर देखा करूँ।

शब्दार्थ
बड़बड़ाना – अपने आप में धीरे-धीरे बात करना
मजाल – सामर्थ्य, शक्ति, ताकत
चल-चलाव – कहीं से चलने अथवा चल पड़ने की क्रिया, तैयारी या भाव
टुकुर-टुकुर – बिना पलक झपकाए या स्थिर दृष्टि से

व्याख्याजब मनोहर नीम के पेड़ से बातें कर रहा था, उसी समय उधर से एक पंद्रह-सोलह साल का तेजा नाम का लड़का जा रहा था। वृद्ध मनोहर को अपने आप से बातें करता देख उसने मनोहर से पूछा कि चाचा, किससे बातें करते हो? क्योंकि यहां तो कोई है भी नहीं। बुड्ढे मनोहर ने चौंक कर लड़के की ओर देखा और कहा कि वह कर भी क्या सकता है, वह को अपने कर्म से बातें कर रहा है। उसे ठाकुर शिवपाल सिंह के कुछ रुपये चुकाने हैं। उसे तो मालूम ही है कि पिछले साल खेतों में एक दाना भी नहीं हुआ, अगर फसल हुई होती, तो क्या वह ठाकुर का लगान रख लेता? अर्थात यदि फसल हुई होती तो वह ठाकुर का लगान चुका देता। अब वह ठाकुर कहते हैं, लगान के रुपये दो, नहीं तो वे इस नीम ले पेड़ को कटवा लेंगे। यह पेड़ जो उसके बापू के हाथ का लगाया हुआ है, वे उसे कटवाने की बात कर रहे हैं। मनोहर समय का फेर की बात करता है, कि आज ऐसी-ऐसी बातें सुननी पड़ती है। उसने अपनी सारी उम्र फ़ौज में बिताई है। उसने बड़ी-बड़ी लड़ाई और मैदान देखे हैं। ठाकुर और उसके लोगों को मनोहर तुच्छ समझता है। क्योंकि यदि आज उसके शरीर में ताकत होती, तो किसी का सामर्थ्य नहीं होता कि उसके नीम के पेड़ के लिए ऐसा कह पाते। वह सबके मुँह नोच लेता। उसने कभी नाक पर मक्खी तक नहीं बैठने दी। वह बड़े-बड़े साहब-बहादुरों से लड़ पड़ता था। ठाकुर और उसके लोग उनके सामने बेचारे हैं। ये लोग सिर्फ बड़े ठाकुर की दुम बने घूमते हैं। मनोहर ने तो तोप के मुँह पर डट कर बन्दूकें चलाई हैं। पर समय सब कुछ करा लेता है। जिन्होंने कभी तोप की सूरत नहीं देखी, वे वीर और ठाकुर बने घूमते हैं। और मनोहर जैसे सिपाही को आंखें दिखाते हैं कि रुपये दो, नहीं तो पेड़ कटवा लेंगे। मनोहर गुस्से में कहता है कि वह भी देखेगा कि कोई कैसे उसका पेड़ कटवाता है? वह भले ही बहुत बुड्ढा हो गया है। परन्तु जब तलवार लेकर डट जाएगा तो सभी भागते हुए दिखाई पड़ेंगे और सौ बात की एक बात तो यह है कि उसे तो अब मरना ही है, क्योंकि मनोहर को लगता है कि उसकी उम्र हो चली है और उसकी मृत्यु की तैयारी हो गई है। वह बड़ी-बड़ी लड़ाइयों से जीवित लौट आया। इसे भी वह ऐसे ही समझेगा कि यह भी एक लड़ाई ही है। अब इस लड़ाई में उसका अंत है। परन्तु वह तेजा से कहता है कि वह इतना समझ ले कि उसके जीते जी उसके नीम के पेड़ की एक डाल भी कोई काट नहीं पाएगा। ठाकुर का रुपया उसके गले के बराबर है। भगवान ही जानता है कि यदि उसके पास रुपया होता, तो वह दे देता। परन्तु अब जब उसके पास रूपए नहीं है, तो वह क्या कर सकता है? परन्तु यह नहीं हो सकता कि ठाकुर साहब उसके नीम के पेड़ को कटवा लें, और वह बिना कुछ कहे बस देखता रहे।

 

पाठ – तेजा बोला – चाचा, जाने भी दो, इन बातों में क्या रक्खा है? पेड़ कटवाने को कहते हैं, काट लेने देना। इस पेड़ में तुम्हारा रक्खा ही क्या है? पेड़ तो नित्य ही कटा करते हैं।
मनोहर सिंह बिगड़ कर बोला-आखिर लड़के ही हो न! अरे बेटा, यह पेड़ ऐसा वैसा नहीं है। यह पेड़ मेरे भाई के बराबर है। मैं इसे अपना सगा भाई समझता हूँ। यह मेरे पिता के हाथ का लगाया हुआ है, किसी और के हाथ का नहीं। जब मैं तुम से भी छोटा था, तब से इसका और मेरा साथ है। मैं बरसों इस पर खेला हूँ, बरसों इसकी मीठी-मीठी निबोलियाँ खाई हैं। इसकी दतून आज तक करता हूँ। गाँव में सैकड़ों पेड़ हैं, पर मुझ से कसम ले लो, जो मैंने कभी उनकी एक पत्ती तक छुई हो। जब मेरे घर में आप ही इतना बड़ा पेड़ खड़ा हुआ है, तब मुझे दूसरे पेड़ में हाथ लगाने की क्या पड़ी है? दूसरे, मुझे किसी और पेड़ की दतून अच्छी नहीं लगती।
तेजा बोला-चाचा, बिना रुपये दिये तो यह पेड़ बच नहीं सकता।
मनोहर-बेटा, ईश्वर जानता है, मेरे पास रुपये होते, तो मैं आज ही दे देता। पर क्या करूँ, लाचार हूँ। मेरे घर में ऐसी कोई चीज़ भी नहीं, जो बेच कर दे दूँ। मुझे आप इस बात का बड़ा दुःख है। गाँव भर में घूम आया। किसी ने उधार न दिये। क्या करूँ? बेटा तेजा, सच जानना, जो यह पेड़ कट गया, तो मुझे बड़ा दुःख होगा। मेरा बुढ़ापा बिगड़ जायेगा। अभी तक मुझे कोई दुःख नहीं था । खाता था, ईश्वर का भजन करता था, पर अब घोर दुःख हो जायेगा।
यह कर कह वृद्ध मनोहरसिंह ने आँखों में आँसू भर लिये।
तेजा वृद्ध मनोहर सिंह का कष्ट देख-सुन कर बड़ा दुखी हुआ। तेजासिंह गाँव के एक प्रतिष्ठित किसान का लड़का था। उसका पिता डेढ़-दो सौ बीघे भूमि की खेती करता था। मनोहर को तेजासिंह चाचा कहा करता था।

शब्दार्थ –
नित्य – हमेशा
निबोली – नीम का छोटा सा फल
लाचार – विवश, मजबूर
घोर – अत्यधिक
प्रतिष्ठित – सम्मान प्राप्त

व्याख्या मनोहर सिंह की बातों से तेजा समझ गया कि वह नीम के पेड़ के कटवाए जाने से दुखी है। इसलिए तेजा बोला कि चाचा, अब सब जाने भी दो, बेवजह की बातों में क्या रक्खा है? यदि ठाकुर पेड़ कटवाने को कहते हैं, तो काट लेने देना। क्योंकि इस पेड़ में मनोहर का रखा ही क्या है? हर जगह, हर रोज कई पेड़ कटा करते हैं। तेजा की बात सुनकर मनोहर सिंह गुस्से में बोला कि आखिर वह एक लड़का ही है अर्थात वह एक छोटा लड़का ही है जिसे अभी पूरी समझ नहीं है। तभी वह मनोहर के भाव नहीं समझ रहा है। फिर मनोहर, तेजा को समझाते हुए कहता है कि जैसा वह समझ रहा है मनोहर के लिए वह नीम का पेड़ वैसा साधारण नहीं है। मनोहर उस पेड़ को अपने सगे भाई के समान मानता है। क्योंकि वह पेड़ उसके पिता के द्वारा लगाया गया था। मनोहर तेजा से कहता है कि उसका और उस नीम के पेड़ का साथ तब का है जब वह तेजा से भी छोटा था। वह कई साल उस पेड़ पर खेला है, कई साल उस नीम के पेड़ के छोटे-छोटे फल खाए हैं। वह आज तक उस नीम के पेड़ की दतून करता है। मनोहर कहता है कि गाँव में सैकड़ों पेड़ हैं, परन्तु उसने कभी किसी भी पेड़ की एक पत्ती तक नहीं छुई, चाहे उसे किसी की कसम खाने को कहा जाए। इसका कारण मनोहर बताते जब उनके घर में स्वयं इतना बड़ा पेड़ खड़ा हुआ है, तब उन्हें दूसरे पेड़ में हाथ लगाने की क्या आवश्यकता है? दूसरा कारण यह बताते हैं कि, उन्हें अपने नीम के पेड़ के अलावा किसी और पेड़ की दतून अच्छी नहीं लगती। सारी बातें सुनकर तेजा मनोहर से बोला कि चाचा, बिना ठाकुर के रुपये दिये तो यह पेड़ बच नहीं सकता। मनोहर अपनी मजबूरी बताता हुआ कहता है कि बेटा, यह तो ईश्वर ही जानता है, कि अगर उसके पास रुपये होते, तो वह आज ही दे देता। पर वह क्या करे, वह मजबूर है। उसके घर में ऐसी कोई चीज़ भी नहीं है, जिसे बेच कर वह रूपए दे सके। उसे खुद भी इस बात का बहुत दुःख है। वह पुरे गाँव भर में घूम कर आया, परन्तु किसी ने उसे रूपए उधार नहीं दिए। बहुत दुखी हो कर मनोहर, तेजा से कहता है कि सच तो यह है कि, यदि उसका नीम का पेड़ कट गया, तो उसे बड़ा दुःख होगा। उसका बुढ़ापा बिगड़ जायेगा। क्योंकि अभी तक उसे कोई दुःख नहीं था। वह निश्चिन्त होकर खाता था, और ईश्वर का भजन किया करता था, परन्तु अब यदि उसका नीम का पेड़ कट जाएगा तो उसे बहुत दुःख होगा। यह सब कहते हुए वृद्ध मनोहर सिंह ने आँखों में आँसू भर लिये। तेजा वृद्ध मनोहर सिंह का कष्ट देख और सुन कर बड़ा दुखी हुआ। तेजा सिंह गाँव के एक सम्मानित किसान का लड़का था। उसका पिता डेढ़-दो सौ बीघे भूमि की खेती करता था। मनोहर को तेजा सिंह चाचा कह कर पुकारा करता था।

 

पाठ – तेजा ने कहा-चाचा, बापू से यह हाल कहा है?
मनोहर सब से कह चुका बेटा! तेरा बापू तो अब बड़ा आदमी हो गया है। वह मेरे जैसे गरीबों की बात क्यों सुनने लगा? एक जमाना था, जब वह दिन-दिन भर द्वार पर पड़ा रहता था। घर में लड़ाई होती थी, तो मेरे ही यहाँ भाग आता था, और दो-दो तीन-तीन दिन तक यहाँ रहता था, वही तुम्हारा बापू अब सीधे मुँह बात नहीं करता। इसी से कहता हूँ, समय की बात है।
तेजा ने पूछा-कितने रुपये देने से पेड़ बच सकता है?
मनोहर – २५ रुपये देने पड़ेंगे।
तेजा – २५ रुपये तो बहुत हैं चाचा ।
मनोहर-पास नहीं हैं, तो बहुत ही हैं। होते, तो थोड़े थे।
तेजा-दस पाँच रुपये की बात होती, तो मैं ही कहीं से ला देता।
मनोहर-बेटा, ईश्वर तुझे चिरंजीव रखें। तूने एक बात तो कही। गाँव वालों ने तो इतना भी नहीं कहा। खैर, देखा जायगा। पर इतना तू याद रखना कि मेरे जीते जी इस पेड़ को कोई हाथ नहीं लगाने पावेगा।

शब्दार्थ –
जमाना – समय
सीधे मुँह बात न करना – घमंड से, अकड़ से अथवा अहंकार दिखाकर बात करना
चिरंजीव – दीर्घजीवी, बहुत समय तक जीवित रहने वाला
खैर – कुछ चिंता नहीं, कुछ परवा नहीं
पावेगा – पाएगा 

व्याख्या – जब तेजा को पता चला कि पुरे गांव में किसी ने मनोहर की मदद नहीं की, तो उसने मनोहर से पूछा कि क्या मनोहर ने उसके पिता से इस विषय में कोई बात की है ? मनोहर ने सब से बात की थी। परन्तु तेजा के पिता से नहीं की थी। क्योंकि तेजा का पिता अब बड़ा आदमी हो गया था। मनोहर को लगता था कि वह उसके जैसे गरीबों की बात क्यों सुनेगा ? एक समय था, जब तेजा का पिता सरे दिन भर मनोहर के द्वार पर पड़ा रहता था। अर्थात मनोहर के घर पर ही रहता था। घर में लड़ाई होती थी, तो तेजा का पिता मनोहर के ही घर भाग आता था, और दो-दो तीन-तीन दिन तक वहीं रहता था, और अब तेजा का पिता मनोहर से अच्छे से बात तक नहीं करता। इसी कारण मनोहर कहता रहता है कि सब समय की बात है। तेजा मनोहर से पूछता है कि कितने रुपये देने से उसका नीम का पेड़ कटने से बच सकता है? मनोहर जब 24 रुपये बताता है तो तेजा को वह 24 रूपए बहुत ज्यादा लगते हैं। इस पर मनोहर कहता है कि उसके पास नहीं हैं, इसलिए बहुत लग रहे हैं। अगर उनके पास रुपए होते, तो 24 रूपए कुछ ज्याद नहीं थे। मनोहर की बात सुनकर तेजा कहता है कि यदि दस पाँच रुपये की बात होती, तो तेजा ही कहीं से ला देता। मनोहर तेजा की बात सुनकर खुश होता है और उसे लंबे जीवन का आशीर्वाद देता है। क्योंकि उसने एक बच्चा होते हुए भी मनोहर की भावनाएँ समझी और मदद करने की सोची। दूसरी ओर गाँव वालों ने तो इतना भी नहीं कहा। परन्तु अब कुछ नहीं हो सकता , अब मनोहर ने सोच लिया है जो होगा देखा जाएगा। परन्तु वह तेजा से कहता है कि चाहे जो हो जाए उसके जीते जी उसके नीम के पेड़ को कोई हाथ नहीं लगा पाएगा।

 

पाठ – एक सप्ताह बीत गया। आज आठवाँ दिन है। मनोहर-सिंह रुपयों का प्रबंध नहीं कर सका। वह समझ गया कि अब पेड़ का बचना कठिन है पर साथ ही वह यह भी निश्चित कर चुका था कि उसके जीते जी कोई उसको नहीं काट सकता। उसने अपनी तलवार भी निकाल ली थी, और साफ करके रख ली थी। अब वह हर समय पेड़ के नीचे पड़ा रहता था। तलवार सिरहाने रखी रहती थी।
आठवें दिन दोपहर के समय शिवपाल सिंह ने मनोहर सिंह को बुलवाया। मनोहर सिंह तलवार बगल में दबाये अकड़ता हुआ ठाकुर साहब के सामने पहुँचा ।
शिवपाल सिंह और उनके पास बैठे हुए लोग बुड्ढे को इस सजधज से देखकर मुस्कराए। शिवपाल सिंह ने कहा-सुनते हो मनोहर सिंह, एक सप्ताह बीत गया। अब पेड़ हमारा हो गया। आज हम उसकी कटाई शुरू करते हैं।
मनोहर-आपको अधिकार है। मुझे रुपया मिलता, तो दे ही देता। और अब भी मिल जायेगा तो दे ही दूँगा। मेरी नीयत में बेईमानी नहीं है। मैं फौज में रहा हूँ। बेईमानी का नाम नहीं जानता।
शिवपाल-तो अब हम उसे कटवा लें न!
मनोहर-यह कैसे कहूँ। आपका जो जी चाहे, कीजिये ।
यह कहकर मनोहर सिंह उसी प्रकार अकड़ता हुआ ठाकुर शिवपाल के सामने से चला आया। और अपने पेड़ के नीचे चारपाई पर आकर बैठ गया ।

शब्दार्थ –
प्रबंध – इंतजाम
अकड़ता हुआ – रौब दिखाता हुआ
नीयत – इरादा, भावना
बेईमानी – झूठ, कपट 

व्याख्यामनोहर को दिया गया एक सप्ताह बीत गया। अब आठवाँ दिन था। परन्तु मनोहर सिंह रुपयों का प्रबंध नहीं कर पाया था। उसे समझ आ गया था कि अब  नीम के पेड़ को बचना कठिन था परन्तु फिर भी यह निश्चित कर चुका था कि उसके जीते जी कोई उसके नीम के पेड़ को नहीं काट सकता। उसने अपनी तलवार भी निकाल ली थी, और साफ करके रख ली थी। अर्थात वह हर हाल में, हर परिस्थिति में पेड़ को बचाने के लिए तैयार था। अब वह हर समय पेड़ के नीचे ही पड़ा रहता था। अपनी तलवार को वह अपने सिरहाने ही रखता था। आठवें दिन दोपहर के समय शिवपाल सिंह ने मनोहर सिंह को बुलवाया। मनोहर सिंह भी तलवार बगल में दबाये रौब दिखाता हुआ ठाकुर के सामने पहुँचा। शिवपाल सिंह और उनके पास बैठे हुए लोग मनोहर को इस तरह आता देखकर मुस्कराए। शिवपाल सिंह ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि मनोहर सिंह, को दिया गया एक सप्ताह बीत गया है अतः अब उसका नीम का पेड़ उनका हो गया है। इसलिए वे आज से ही उसकी कटाई शुरू कर रहे हैं। मनोहर भी कहता है कि उनको अधिकार है। यदि उसे रुपया मिलता, तो वह दे ही देता। और अब भी यदि कहीं से मिल जायेगा तो वह दे ही देगा। क्योंकि उसके इरादे में कपट नहीं है। वह फौज में रहा है। झूठ, कपट का नाम वह नहीं जानता। शिवपाल भी कहता है कि तो अब वे उस नीम के पेड़ को कटवा लें या नहीं। मनोहर कुछ समझ नहीं पा रहा था कि वह क्या कहे। तो उसने कहा कि ठाकुर का जो जी चाहे, करे। यह कहकर मनोहर सिंह उसी प्रकार रौब दिखाता हुआ ठाकुर शिवपाल के सामने से चला आया। और अपने नीम के पेड़ के नीचे चारपाई पर आकर बैठ गया। 

Ashikshit Ka Hriday Summary img 1

पाठ – दोपहर ढलने पर चार-पाँच आदमी कुल्हाड़ियाँ लेकर आते हुए दिखाई पड़े। मनोहर सिंह झट म्यान से तलवार निकाल डट कर खड़ा हो गया और ललकार कर बोला…… संभल कर आगे बढ़ना। जो किसी ने भी पेड़ में कुल्हाड़ी लगाई, तो उसकी जान और अपनी जान एक कर दूँगा।
वे मजदूर बुड्ढे की ललकार सुन और तलवार देखकर भाग खड़े हुए।
जब शिवपाल सिंह को यह बात मालूम हुई, तब पहले तो वे बहुत हँसे, परंतु पीछे कुछ सोचकर उनका चेहरा क्रोध के मारे लाल हो गया। बोले-इस बुड्ढे की शामत आई है। हमारा माल है, हम चाहे काटें, चाहे रखें, वह कौन होता है?
चलो तो मेरे साथ, देखूं तो वह क्या करता है?
शिवपाल सिंह मज़दूरों तथा दो लठबंद आदमियों को लेकर पहुँचे। उन्हें आता देख बुड्ढा फिर तलवार निकाल कर खड़ा हो गया।
शिवपाल सिंह उसके सामने पहुंचकर बोले-क्यों मनोहर, यह क्या बात है?
मनोहर सिंह बोला-बात केवल इतनी है कि मेरे रहते इसे कोई हाथ नहीं लगा सकता। यह मैं जानता हूँ कि अब पेड़ आपका है, मगर यह होने पर भी मैं इसे कटता हुआ नहीं देख सकता।
शिवपाल सिंह-पर हम तो इसे कटवाये बिना न मानेंगे।
मनोहर सिंह को भी क्रोध आ गया। वह बोला-ठाकुर साहब, जो आप सच्चे ठाकुर हैं, तो इस पेड़ को कटवा लें। जो मैं ठाकुर हूँगा, तो इसे न कटने दूँगा।
शिवपाल सिंह अपने आदमियों से बोले-देखते क्या हो, इस बुड्ढे को पकड़ लो और पेड़ काटना शुरू कर दो।

शब्दार्थ –
शामत – मुसीबत, वबाल अर्थात बहुत बड़ी विपत्ति या संकट
लठबंद – लाठी लिए हुए 

व्याख्या पेड़ के कटने का तय होने पर दोपहर ढलने पर अर्थात शाम के समय चार-पाँच आदमी कुल्हाड़ियाँ लेकर मनोहर के घर की ओर आते हुए दिखाई पड़े। मनोहर सिंह एक दम से म्यान से तलवार निकाल डट कर खड़ा हो गया और उन आदमियों को ललकार कर बोला कि वे संभल कर आगे बढ़े। यदि किसी ने भी नीम के पेड़ में कुल्हाड़ी लगाई, तो वह उसकी जान और अपनी जान एक कर देगा। अर्थात वह अपनी परवाह किए बिना उसे मार डालेगा। वे मजदूर बुड्ढे मनोहर की ललकार सुन कर और तलवार देखकर भाग खड़े हुए। जब शिवपाल सिंह को यह सारी बात मालूम हुई, तब पहले तो वह इस घटना पर बहुत हँसा, परंतु फिर कुछ सोचकर उनका चेहरा क्रोध के मारे लाल हो गया। वह बोलै कि उस बुड्ढे मनोहर की शामत आई है। अब वह नीम का पेड़ उसका है, वह चाहे काटें, चाहे रखें, वह मनोहर अब कौन होता है? जो उसे काटने से रोके। वह सारी घटना देखने और समझने के लिए मजदूरों को अपने साथ चलने को कहता है। शिवपाल सिंह मज़दूरों तथा दो आदमियों को, जिन्होंने लाठी ली हुई थी, उन्हें लेकर मनोहर के घर पहुंचा। उन्हें आता देख बुड्ढा मनोहर फिर से तलवार निकाल कर खड़ा हो गया। शिवपाल सिंह उसके सामने पहुंचकर बोले कि मनोहर, यह क्या बात है? क्योंकि अब पेड़ पर उसका कोई अधिकार नहीं है और वह उसे काटने से नहीं रुक सकता। मनोहर ठाकुर को समझाते हुए बोलै कि बात केवल इतनी है कि उसके रहते उस नीम के पेड़ को कोई हाथ नहीं लगा सकता। वह जानता है कि अब पेड़ ठाकुर का है, परन्तु वह फिर भी उसे कटता हुआ नहीं देख सकता। शिवपाल सिंह भी अब जिद्द पर आ जाता है कि वह तो उस नीम के पेड़ को कटवाये बिना नहीं मानेंगा। उसकी बातों से मनोहर सिंह को भी गुस्सा आ गया। वह बोला कि ठाकुर साहब, अगर आप सच्चे ठाकुर हैं, तो इस पेड़ को कटवा लें। अगर वह ठाकुर होगा, तो वह इसे कटने नहीं देगा। मनोहर की ललकार सुनकर शिवपाल सिंह ने अपने आदमियों को आदेश दिया कि वे उस बुड्ढे मनोहर को पकड़ लें और पेड़ काटना शुरू कर दें।

 

पाठ – ठीक उसी समय तेजा सिंह दौड़ता हुआ आया और मनोहर सिंह को कुछ रुपये देकर बोला-लो चाचा, ये रुपये। अब तुम्हारा पेड़ बच गया।
मनोहर सिंह ने रुपये गिन कर ठाकुर शिवपाल सिंह से पूछा-कहिए ठाकुर साहब, रुपये लेने हों, तो ये हाजिर हैं। और पेड़ कटवाना हो, तो आगे बढ़िये।
ठाकुर-रुपये अब हम नहीं ले सकते। रुपये देने की मियाद बीत गई। अब तो पेड़ कटेगा।
मनोहर सिंह अकड़ कर बोला-ठीक है। अब मालूम हुआ कि आप केवल मुझे दुःख पहुँचाने के लिए पेड़ कटवा रहे हैं। अच्छा कटवाइए! मुझे भी देखना है, आप किस तरह पेड़ कटवाते हैं। इतनी ही देर में गाँव भर में खबर फैल गई कि शिवपाल सिंह मनोहर सिंह का पेड़ कटवाते हैं, पर मनोहर सिंह तलवार खींचे खड़ा है, किसी को पेड़ के पास नहीं जाने देता। यह खबर फैलते ही गाँव भर जमा हो गया।
गाँव के दो-चार प्रतिष्ठित आदमियों ने मनोहर सिंह से पूछा-क्या बात है मनोहर सिंह?
मनोहर सिंह सब हाल कहकर बोला-मैं रुपये देता हूँ, ठाकुर नहीं लेते। कहते हैं कल तक मियाद थी। अब तो पेड़ कटेगा।
शिवपाल सिंह बोले-कल तक यह रुपये दे देता तो पेड़ पर हमारा कोई अधिकार न होता। अब हमारा उस पर पूरा अधिकार है। हम पेड़ अवश्य कटवाएंगे।
एक व्यक्ति बोला-जब कल तक इसके पास रुपये नहीं थे, तो आज कहाँ से आ गये?
शिवपाल सिंह का एक आदमी बोला-तेजा ने अभी ला कर दिये हैं।
गाँव वालों के साथ तेजा का पिता भी आया था। उसने यह सुनकर तेजा को पकड़ा और कहा- क्यों बे, तूने ही रुपये चुराये? मैंने दोपहर को पूछा तो तीन-तेरह बकने लगा था।
इसके बाद मनोहर सिंह से कहा-मनोहर, ये रुपये तेजा मेरे संदूक से चुरा लाया है। ये रुपये मेरे हैं।
मनोहर रुपये फेंक कर बोला-तेरे हैं तो ले जा। मैंने तेरे लड़के से रुपये नहीं माँगे थे।
फिर मनोहर सिंह ने तेजा से कहा-बेटा, तूने यह बुरा काम किया! चोरी की! राम-राम! बुढ़ापे में मेरी नाक काटने का काम किया था। ये लोग समझेंगे मैंने ही चुराने के लिए तुझसे कहा होगा।
तेजा बोला – चाचा, मैं गंगा जल उठा कर कह सकता हूँ कि तुमने रुपये मांगे तक नहीं, चुराने के लिए कहना तो बड़ी दूर की बात है।
शिवपाल सिंह ने हँस कर कहा-क्यों मनोहर, अब रुपये कहाँ हैं? लाओ, रुपये ही लाओ। मैं रुपये लेने को तैयार हूँ। अब या तो अभी रुपये दे दो, या सामने से हट जाओ। झगड़ा करने से कोई लाभ न होगा।
मनोहर सिंह बोला-ठाकुर साहब, इन तानों से क्या फायदा? रुपये मेरे पास नहीं हैं, लेकिन पेड़ मैं कटने नहीं दूंगा।
शिवपाल सिंह उपस्थित लोगों से बोले-आप लोग इस बात को देखिए और न्याय कीजिए। मियाद कल तक की थी; मैं अब भी रुपये लेने को तैयार हूँ। अब मेरा अपराध नहीं, यह बुड्ढा व्यर्थ झगड़ा कर रहा है।
तेजा सिंह यह सुनते ही आगे बढ़ा, और अपनी उंगली से सोने की अंगूठी उतार कर शिवपाल सिंह से बोला-ठाकुर साहब, यह अंगूठी एक तोले की है। आपके रुपये इससे निकल आयेंगे। आप यह अंगूठी ले जाइये। इस अंगूठी पर बापू का कोई अधिकार नहीं। यह अंगूठी मुझे मेरी नानी ने दी थी।
यह देखकर तेजा सिंह का पिता आगे बढ़ा और बोला-ठाकुर साहब, लीजिए ये पच्चीस रुपये और अब इस पेड़ को छोड़ दीजिए। आप अभी कह चुके हैं कि रुपये मिल जायें, तो पेड़ छोड़ देंगे। अतएव अपने वचन का पालन कीजिए।
ठाकुर साहब के चेहरे का रंग उड़ गया। उन्हें विश्वास हो गया था कि अब मनोहर सिंह को रुपये मिलना असंभव है। इसी से उन्होंने केवल उदारता दिखाने के लिए रुपए लेना स्वीकार किया था। अब वे कुछ न कह सके। कारण, उन्होंने पच्चीस-तीस आदमियों के सामने रुपये लेना स्वीकार कर लिया था। वे रुपये लेकर चुपचाप चले गये।
ठाकुर साहब के चले जाने के बाद मनोहर सिंह ने तेजा को बुलाकर छाती से लगाया और कहा-बेटा, इस पेड़ को तूने ही बचाया है, अतएव मुझे विश्वास हो गया है कि मेरे पीछे तू इस पेड़ की पूरी रक्षा कर सकेगा।
मनोहर ने यह कह कर उपस्थित लोगों से कहा-भाइयो! मैं तुम सबके समाने यह पेड़ तेजा सिंह को देता हूँ। तेजा को छोड़ कर इस पर किसी का कोई अधिकार न रहेगा।
फिर तलवार म्यान में रखते हुआ आप ही आप कहा पर मेरे जीते जी कोई पेड़ में हाथ नहीं लगा सकता था, अपनी और उसकी जान एक कर देता। मैंने फौज में नौकरी की है। बड़ी-बड़ी लड़ाइयाँ जीती हैं। ये बिचारे हैं क्या चीज !

शब्दार्थ –
हाजिर – मौजूद
मियाद – तय समय
प्रतिष्ठित – सम्मानित
तीन-तेरह बकना – इधर-उधर की बाते करना
व्यर्थ – बेकार
उदारता – दानशीलता, शीलता 

व्याख्याजब मनोहर और ठाकुर की बहस हो रही थी, ठीक उसी समय तेजा सिंह दौड़ता हुआ आया और मनोहर सिंह को कुछ रुपये देकर बोला कि चाचा, ये रुपये लो। अब तुम्हारा पेड़ बच गया समझो। मनोहर सिंह ने रुपये गिन कर ठाकुर शिवपाल सिंह से पूछा कि अब ठाकुर साहब क्या कहेंगे, रुपये लेने हों, तो ये लीजिए मौजूद हैं। और पेड़ कटवाना हो, तो आगे बढ़िये। ठाकुर मनोहर की ऐसी बातें सुनकर बोला कि अब वह रूपए नहीं ले सकता। रुपये देने का जो समय तय हुआ था वह बीत गया है। अब तो वह पेड़ का पेड़ कटेगा। मनोहर सिंह भी रौब से बोला, अब उसे मालूम हुआ कि ठाकुर केवल उसे दुःख पहुँचाने के लिए उसका नीम का पेड़ कटवा रहा है। अब मनोहर भी अपनी बात पर अड़ गया था कि कैसे ठाकुर उसका पेड़ कटवाते हैं। इतनी ही देर में पूरे गाँव में यह खबर फैल गई कि शिवपाल सिंह मनोहर सिंह के नीम का पेड़ कटवाना चाहते हैं, परन्तु मनोहर सिंह उस पेड़ की रक्षा में तलवार खींचे खड़ा है, किसी को पेड़ के पास नहीं जाने दे रहा है। यह खबर फैलते ही पूरा गाँव मनोहर के घर पर जमा हो गया। गाँव के दो-चार सम्मानित आदमियों ने मनोहर सिंह से पूरी बात पूछी।
मनोहर सिंह ने भी सब हाल कहकर सूना दिया कि वह ठाकुर को रुपये दे रहा है, परन्तु ठाकुर नहीं ले रहा। वह कहता है कि रूपए देने का समय कल तक का था। अब वह रूपए नहीं लेगा, पेड़ कटवाएगा।
शिवपाल सिंह भी सभी के सामने अपना पक्ष रखते हुए कहता है कि यदि कल तक मनोहर ने रुपये दे दिए होते तो पेड़ पर ठाकुर का कोई अधिकार नहीं होता। परन्तु अब पेड़ पर ठाकुर का पूरा अधिकार है। वह पेड़ अवश्य कटवाएंगा। एक व्यक्ति ने प्रश्न उठाया कि जब कल तक मनोहर के पास रुपये नहीं थे, तो आज कहाँ से आ गये? इसका उत्तर देते हुए शिवपाल सिंह का एक आदमी बोला कि उसे तेजा ने अभी रूपए ला कर दिये हैं। गाँव वालों के साथ तेजा का पिता भी आया हुआ था। जब उसने यह सुनकर तो वह तेजा को पकड़ कर डाँटने लगा कि क्या उसने ही रुपये चुराये थे, और जब उसने तेजा से दोपहर में रुपए के बारे में पूछा था, तो वह इधर-उधर की बातें कर रहा था। उसने मनोहर सिंह से कहा कि ये रुपये तेजा उसके संदूक से चुरा लाया है इसलिए ये रुपये उसके हैं। यह सुनकर मनोहर रुपये फेंक कर बोलार कि यदि रूपए उसके हैं और वह उसे नहीं देना चाहता तो वह अपने रूपए ले जाए। क्योंकि उसने तेजा से रुपये नहीं माँगे थे। फिर मनोहर सिंह ने तेजा से कहा कि यह चोरी का काम उसने बुरा किया है। बुढ़ापे में उसने उसकी नाक काटने का काम किया था। अर्थात अब सभी लोग समझेंगे कि उस ने ही तेजा को रूपए चुराने के लिए कहा होगा। इस पर तेजा बोला कि वह गंगा जल उठा कर कह सकता है कि मनोहर ने उससे रुपये मांगे तक नहीं, चुराने के लिए कहना तो बड़ी दूर की बात है। सारी बातें सुनकर शिवपाल सिंह हँस कर बोला कि मनोहर, अब रुपये कहाँ हैं? लाओ, रुपये ही लाओ। अब वह रुपये लेने को तैयार है। अब या तो अभी मनोहर रुपये दे , या सामने से हट जाए। क्योंकि झगड़ा करने से कोई लाभ नहीं होगा। मनोहर सिंह भी ठाकुर से कहता है कि ठाकुर के तानों का कोई फायदा नहीं है क्योंकि रुपये उसके पास नहीं हैं, परन्तु वह पेड़ को कटने नहीं देगा।
अब शिवपाल सिंह वहाँ उपस्थित गाँव के लोगों से कहता है कि वे लोग इस बात को देखें और न्याय करे। रूपए चुकाने का समय कल तक का था। परन्तु अब भी वह रुपये लेने को तैयार है। अब जो भी घटित हो रहा है उसमें उसका कोई अपराध नहीं है, यह बुड्ढा मनोहर बेकार में ही झगड़ा कर रहा है।
यह सुनकर कि यदि मनोहर अभी रूपए दे देगा तो ठाकुर पेड़ को छोड़ देगा, तेजा सिंह आगे बढ़ा, और अपनी उंगली से सोने की अंगूठी उतार कर शिवपाल सिंह को देते हुए बोला कि यह अंगूठी एक तोले की है। इससे उसके रुपये निकल आयेंगे। वह ठाकुर से विनती करता है कि वह अंगूठी ले सकता है क्योंकि इस अंगूठी पर उसके पिता का कोई अधिकार नहीं है। यह अंगूठी तेजा को उसकी नानी ने दी थी।
तेजा सिंह का व्यवहार देखकर उसका पिता आगे बढ़ा और ठाकुर से बोला कि वह पच्चीस रुपये ले लें और अब मनोहर के पेड़ को छोड़ दे। क्योंकि ठाकुर आप अभी कह चुका हैं कि रुपये मिल जायें, तो पेड़ छोड़ देंगे। इसलिए उसे रूपए ले कर अपने वचन का पालन करना चाहिए। ठाकुर के चेहरे का रंग उड़ गया। क्योंकि उसे विश्वास हो गया था कि अब मनोहर सिंह को रुपये मिलना असंभव है। इसी कारण से उसने केवल अपनी उदारता दिखाने के लिए रुपए लेना स्वीकार किया था। अब वह कुछ नहीं कह सकता था। इसलिए, उसने पच्चीस-तीस आदमियों के सामने रुपये लेना स्वीकार कर लिया था। वह रुपये लेकर वहाँ से चुपचाप चला गया।
ठाकुर के चले जाने के बाद मनोहर सिंह ने तेजा को अपने पास बुलाया और अपनी छाती से लगाते हुए कहा कि उसके नीम के पेड़ को तेजा ने ही बचाया है, इसलिए उसे विश्वास हो गया है कि मनोहर के बाद वह उसके नीम के पेड़ की पूरी रक्षा कर सकेगा। मनोहर ने वहाँ उपस्थित सभी लोगों से कहा कि वह उन सबके समाने अपने नीम के पेड़ को तेजा सिंह को देता है। तेजा को छोड़ कर उस नीम के पेड़ पर किसी का कोई अधिकार नहीं रहेगा। फिर मनोहर अपनी तलवार को म्यान में रखते हुआ आप ही आप से कहने लगा कि उसके जीते जी कोई पेड़ में हाथ नहीं लगा सकता था, वह अपनी जान की परवाह किए बगैर उसकी रक्षा करता रहेगा। उसने फौज में नौकरी की है। बड़ी-बड़ी लड़ाइयाँ जीती हैं। ये बिचारे हैं क्या चीज! अर्थात उसके सामने कोई  टिक नहीं सकता। 

 

Conclusion 

‘अशिक्षित का हृदय’ में लेखक विश्वंभरनाथ शर्मा ‘कौशिक ‘ ने प्रकृति के साथ मनुष्य के भावात्मक संबंध को दर्शाया है। कहानी में मनोहर सिंह लगान के बदले अपना नीम का पेड़ जमींदार के यहाँ गिरवी रखता है। जमींदार उस वृक्ष को कटवाना चाहता है किंतु मनोहर सिंह उस वृक्ष का रक्षक बन जाता है। अंत में तेजा के व्यवहार से प्रभावित होकर मनोहर अपना नीम का पेड़ तेजा को दे देता है। PSEB Class 10 Hindi – पाठ-8 ‘अशिक्षित का हृदय’ की इस पोस्ट में सार, व्याख्या और शब्दार्थ दिए गए हैं। छात्र इसकी मदद से पाठ को तैयार करके परीक्षा में पूर्ण अंक प्राप्त कर सकते हैं।