CBSE Class 10 Hindi (Course B) Sparsh Bhag 2 Book Chapter 9 Diary Ka Ek Panna Question Answers from previous years question papers (2019-2025) with Solutions
Diary Ka Ek Panna Previous Year Questions with Answers – Question Answers from Previous years Question papers provide valuable insights into how chapters are typically presented in exams. They are essential for preparing for the CBSE Board Exams, serving as a valuable resource.They can reveal the types of questions commonly asked and highlight the key concepts that require more attention. In this post, we have shared Previous Year Questions for Class 10 Hindi (Course B) Sparsh Bhag 2 Book Chapter 9, “Diary Ka Ek Panna”.
Questions from the Chapter in 2025 Board Exams
प्रश्न 1 – धर्मतल्ले पर क्या घटना घटित हुई? ‘डायरी का पन्ना’ पाठ के आधार पर लिखिए। (25-30 शब्दों में)
उत्तर – जब स्त्रियाँ मोनुमेंट की सीढियाँ चढ़कर झंडा फहरा रही थीं। तभी सुभाष बाबू को सैनिकों द्वारा पकड़ लिया गया और गाडी में बैठाकर लॉकअप भेज दिया गया। कुछ देर बाद वहाँ से स्त्रियाँ जुलुस बनाकर चलीं और साथ में बहुत बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गयी। भीड़ पर पुलिस ने डंडे बरसाने शुरू कर दिए जिससे बहुत से आदमी घायल हो गए। जिस कारण धर्मतल्ले के मोड़ के पास आकर जुलुस टूट गया और करीब 50-60 महिलाएँ वहीँ बैठ गयीं जिसे पुलिस से पकड़कर लालबाजार भेज दिया।
प्रश्न 2 – लोगों तक अपनी बात पहुँचाने के माध्यमों में ‘डायरी का एक पन्ना‘ पाठ में वर्णित तरीकों और वर्तमान तरीकों में क्या अंतर आया है ? स्पष्ट कीजिए । (25-30 शब्दों में)
उत्तर – ‘डायरी का एक पन्ना’ पाठ में लोगों तक अपनी बात पहुँचाने के लिए सभाएँ करना, जुलूस निकालना, झंडा फहराना, व्यक्तिगत मिलना-जुलना और मौखिक प्रचार जैसे साधन अपनाए गए थे। यह प्रक्रिया समय और श्रमसाध्य थी। वर्तमान में सोशल मीडिया, टेलीविजन, न्यूज़ चैनल, वेबसाइट, ब्लॉग, ईमेल और मोबाइल एप्स जैसे डिजिटल माध्यमों ने संचार को तेज़, व्यापक और तात्कालिक बना दिया है। अब विचार कुछ ही क्षणों में दुनिया भर में फैल सकते हैं।
प्रश्न 3 – डायरी का एक पन्ना’ पाठ में लेखक द्वारा कई आंदोलनकारियों का उल्लेख हुआ है, जिनसे हम साधारणतः अपरिचित हैं। इसके पीछे लेखक का क्या दृष्टिकोण हो सकता है? (25-30 शब्दों में)
उत्तर – ‘डायरी का एक पन्ना’ पाठ में लेखक ने साधारण आंदोलनकारियों का उल्लेख इसलिए किया है ताकि यह बताया जा सके कि अनगिनत गुमनाम, साधारण लोगों के त्याग, संघर्ष और बलिदान से ही आज़ादी संभव हो सकी। लेखक का उद्देश्य था कि इन अनदेखे नायकों के योगदान को भी सम्मान मिले और आने वाली पीढ़ियाँ यह समझें कि राष्ट्र निर्माण में हर व्यक्ति की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है।
Questions which came in 2024 Board Exam
प्रश्न 1 – ‘डायरी का एक पन्ना’ पाठ के आधार पर बताइए कि ‘ओपन लड़ाई’ किसे कहा गया है और यह अपूर्व थी, कैसे?
उत्तर – जब से स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए कानून तोड़ने का सिलसिला शुरू हुआ था तब से आज तक अर्थात 26 जनवरी 1931 तक इतनी बड़ी सभा ऐसे खुले मैदान में कभी नहीं हुई थी और इस सभा को सबके लिए ओपन लड़ाई कहा गया था। क्योंकि पुलिस कमिश्नर ने नोटिस निकाल दिया था कि अमुक-अमुक धारा के अनुसार कोई भी, कहीं भी, किसी भी तरह की सभा नहीं कर सकते हैं। किसी ने भी किसी भी तरह से सभा में भाग लिया तो वे दोषी समझे जायेंगे। इधर परिषद की ओर से नोटिस निकाला गया था कि ठीक चार बजकर चौबीस मिनट पर स्मारक के नीचे झंडा फहराया जाएगा तथा स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी। सभी लोगों को उपस्थित रहने के लिए कहा गया था। प्रशासन को इस तरह से खुली चुनौती दे कर कभी पहले इस तरह की कोई सभा नहीं हुई थी।
प्रश्न 2 – ‘कलकत्ता के नाम पर कलंक था कि यहाँ काम नहीं हो रहा है वह आज बहुत अंश में धुल गया।’ – ‘डायरी का पन्ना’ पाठ से उद्धृत इस कथन में किस काम और कलकत्ता पर लगे कलंक की बात हो रही है और वह कैसे धुल गया? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – बंगाल या कलकत्ता के नाम पर कलंक था की यहाँ स्वतंत्रता का कोई काम नहीं हो रहा है। 26 जनवरी 1931 को ये कलंक काफी हद तक धुल गया और लोग ये सोचने लगे कि यहाँ पर भी स्वतंत्रता के विषय में काम किया जा सकता है। इस कलंक के धुलने का कारण उनका अकल्पनीय योगदान था। कलकत्ते के लगभग सभी भागों में झंडे लगाए गए थे। पुलिस अपनी पूरी ताकत के साथ पुरे शहर में पहरे लिए घूम-घूम कर प्रदर्शन कर रही थी। प्रशासन के अत्याचारों को सहते हुए अनगिनत लोग जेल गए और न जाने कितने घायल हो गए। जब लेखक और अन्य स्वयंसेवी अस्पताल गए, तो लोगों को देखने से मालूम हुआ कि 160 आदमी तो अस्पतालों में पहुंचे थे और जो घरों में चले गए उनकी गिनती अलग है। कह सकते हैं कि दो सौ आदमी जरूर घायल हुए। पकड़े गए आदमियों की संख्या का पता नहीं चल सका। पर इतना जरूर पता चला की लालबाज़ार के लॉकअप में स्त्रियों की संख्या 105 थी। इतना सब कुछ पहले कभी नहीं हुआ था ,लोगों का ऐसा प्रचंड रूप पहले किसी ने नहीं देखा था।
प्रश्न 3 – ‘डायरी का पन्ना’ पाठ से उद्धृत पंक्ति ‘आज जो बात थी वह निराली थी।’ — का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – आज का दिन अर्थात 26 जनवरी का दिन निराला इसलिए था क्योंकि आज के ही दिन पहली बार सारे हिंदुस्तान में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था और इस साल अर्थात 1931 को भी फिर से वही दोहराया जाना था। सभी मकानों पर हमारा राष्ट्रीय झंडा फहरा रहा था और बहुत से मकान तो इस तरह सजाए गए थे जैसे हमें स्वतंत्रता मिल गई हो। स्मारक के नीचे जहाँ शाम को सभा होने वाली थी, उस जगह को तो सुबह के छः बजे से ही पुलिस ने बड़ी संख्या में आकर घेर कर रखा था, इतना सब कुछ होने के बावजूद भी कई जगह पर तो सुबह ही लोगों ने झंडे फहरा दिए थे। स्त्रियाँ अपनी तैयारियों में लगी हुई थी। अलग अलग जगहों से स्त्रियाँ अपना जुलूस निकालने और सही जगह पर पहुँचने की कोशिश में लगी हुई थी।
प्रश्न 4 – ‘डायरी का पन्ना’ पाठ से उद्धृत — ‘यह सभा तो कहना चाहिए कि ओपन लड़ाई थी।’ – पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – इस पंक्ति का आशय है कि जब से स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए कानून तोड़ने का सिलसिला शुरू हुआ था तब से आज तक अर्थात 26 जनवरी 1931 तक इतनी बड़ी सभा ऐसे खुले मैदान में कभी नहीं हुई थी और ये सभा तो कह सकते हैं की सबके लिए ओपन लड़ाई थी। क्योंकि प्रशासन को इस तरह से खुली चुनौती दे कर कभी पहले इस तरह की कोई सभा नहीं हुई थी। पुलिस कमिश्नर ने नोटिस निकाल दिया था कि अमुक-अमुक धारा के अनुसार कोई भी, कही भी, किसी भी तरह की सभा नहीं कर सकते हैं। परन्तु लोगों में स्वतंत्रता प्राप्ति की अग्नि, ज्वालामुखी बन चुकी थी।
प्रश्न 5 – ‘डायरी का पन्ना’ पाठ से उद्धृत ‘आज जो कुछ हुआ वह अपूर्व था।’ – पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – इस पंक्ति का आशय है कि 26 जनवरी 1931 को जो दृश्य देखने को मिल रहे थे और आजादी के लिए लोगों में जो जज़्बा दिख रहा था वह इससे पहले कभी नहीं दिखा था। लोग अपनी जान की परवाह किए बगैर प्रशासन के विरुद्ध आवाज उठा रहे थे। जब लेखक और अन्य स्वयंसेवी अस्पताल गए, तो लोगों को देखने से मालूम हुआ कि 160 आदमी तो अस्पतालों में पहुंचे थे और जो घरों में चले गए उनकी गिनती अलग है। लालबाज़ार के लॉकअप में स्त्रियों की संख्या 105 थी। इतना सबकुछ पहले कभी नहीं हुआ था ,लोगों का ऐसा प्रचंड रूप पहले किसी ने नहीं देखा था।
प्रश्न 6 – ‘डायरी का एक पन्ना’ पाठ में 26 जनवरी 1931 को अमर – दिन क्यों कहा गया है और उसके लिए क्या तैयारियाँ की गईं?
उत्तर – 26 जनवरी 1931 का दिन हमेशा याद रखा जाने वाला दिन है। 26 जनवरी 1930 के ही दिन पहली बार सारे हिंदुस्तान में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था और 26 जनवरी 1931 को भी फिर से वही दोहराया जाना था, जिसके लिए बहुत सी तैयारियाँ पहले से ही की जा चुकी थी। सिर्फ़ इस दिन को मनाने के प्रचार में ही दो हज़ार रुपये खर्च हुए थे। सभी मकानों पर भारत का राष्ट्रीय झंडा फहरा रहा था और बहुत से मकान तो इस तरह सजाए गए थे जैसे उन्हें स्वतंत्रता मिल गई हो। कलकत्ते के लगभग सभी भागों में झंडे लगाए गए थे। जगह-जगह पर भाषण व् झंडा फहराने का प्रबंध किया गया था। पुलिस व् प्रशासन अपनी पूरी ताकत के साथ पूरे शहर में पहरे लिए घूम-घूम कर प्रदर्शन कर रही थी। न जाने कितनी गाड़ियाँ शहर भर में घुमाई जा रही थी। घुड़सवारों का भी प्रबंध किया गया था। ताकि इस दिन को कोई स्वतंत्रता दिवस के रूप में न मना सके।
प्रश्न 7 – मोनुमेंट के नीचे शाम को सभा होनी थी लेकिन भोर में क्या घटना घटी? ‘डायरी का एक पन्ना’– पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – स्मारक के नीचे जहाँ शाम को सभा होने वाली थी उस जगह को तो सुबह के छः बजे से ही पुलिस ने बड़ी संख्या में आकर घेर कर रखा था, इतना सब कुछ होने के बावजूद भी कई जगह पर तो सुबह ही लोगों ने झंडे फहरा दिए थे। श्रद्धानन्द पार्क में बंगाल प्रांतीय विद्यार्थी संघ के मंत्री अविनाश बाबू ने झंडा गाड़ा तो पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया और अपने साथ ले गई, इसके साथ ही वहाँ इकट्ठे लोगों को मारा और वहाँ से हटा दिया। तारा सुंदरी पार्क में बड़ा बाजार कांग्रेस कमेटी के युद्ध मंत्री हरिश्चंद्र सिंह झंडा फहराने गए परन्तु वे पार्क के अंदर ही ना जा सके। वहाँ पर भी काफी मारपीट हुई और दो-चार आदमियों के सर फट गए। गुजरती सेविका संघ की ओर से लोगों का एक समूह निकला, जिसमें बहुत सी लड़कियाँ थी, उनको भी गिरफ़्तार कर लिया गया।
प्रश्न 8 – 26 जनवरी, 1931 के दिन कलकत्ता के बड़े बाज़ार का दृश्य कैसा था? स्वतंत्रता आंदोलन में इस तरह के दृश्यों का क्या महत्त्व रहा होगा? ‘डायरी का एक पन्ना’ पाठ के संदर्भ में लिखिए।
उत्तर – 26 जनवरी, 1931 के दिन कलकत्ता के बड़े बाज़ार के प्रायः मकानों पर राष्ट्रीय झंडा फहरा रहा था और कई मकान तो ऐसे सजाए गए थे कि ऐसा मालूम होता था कि मानो स्वतंत्रता मिल गई हो। कलकत्ते के प्रत्येक भाग में ही झंडे लगाए गए थे। जिस रास्ते से मनुष्य जाते थे, उसी रास्ते में उत्साह और नवीनता मालूम होती थी। लोगों का कहना था कि ऐसी सजावट पहले नहीं हुई। इस तरह के दृश्यों का स्वतंत्रता आंदोलन में अत्यधिक महत्त्व रहा होगा क्योंकि जब आपके सामने कोई हिम्मत व् उत्साह से किसी कार्य को करने की कोशिश करता है तो दूसरे व्यक्ति के अंदर भी उत्साह व् जोश अपने आप भर जाता है। और स्वतंत्रता आंदोलन में जोश व् उत्साह का होना अत्यधिक महत्त्व रखता था। क्योंकि प्रशासन के विरुद्ध कार्य करने के लिए हिम्मत व् उत्साह अहम भूमिका निभाते हैं।
प्रश्न 9 – ‘डायरी का एक पन्ना’ पाठ के आधार पर लिखिए कि 26 जनवरी 1931 को बालिका विद्यालय में झंडोत्सव कैसे मनाया गया और इस दिन स्त्री-समाज का क्या विशेष योगदान रहा?
उत्तर – 11 बजे मारवाड़ी बालिका विद्यालय की छात्राओं ने अपने विद्यालय में झंडा फहराने का समारोह मनाया। वहाँ पर जानकी देवी, मदालसा बजाज- नारायण आदि स्वयंसेवी भी आ गए थे। उन्होंने लड़कियों को समझाया कि उत्सव का क्या मतलब होता है। स्त्रियाँ अपनी तैयारियों में लगी हुई थी। अलग अलग जगहों से स्त्रियाँ अपना जुलूस निकालने और सही जगह पर पहुँचाने की कोशिश में लगी हुई थी। पुलिस कमिश्नर ने नोटिस निकाल दिया था कि अमुक-अमुक धारा के अनुसार कोई भी, कही भी, किसी भी तरह की सभा नहीं कर सकते हैं। ठीक चार बजकर दस मिनट पर सुभाष बाबू अपना जुलूस ले कर मैदान की ओर निकले। जब वे लोग मैदान के मोड़ पर पहुंचे तो पुलिस ने उनको रोकने के लिए लाठियाँ चलाना शुरू कर दिया। बहुत से लोग घायल हो गए। एक तरफ इस तरह का माहौल था और दूसरी तरफ स्मारक के नीचे सीढ़ियों पर स्त्रियाँ झंडा फहरा रही थी और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ रही थी। स्त्रियाँ बहुत अधिक संख्या में आई हुई थी। मदालसा जो जानकीदेवी और जमना लाल बजाज की पुत्री थी, उसे भी गिरफ़्तार किया गया था। उससे बाद में मालूम हुआ की उसको थाने में भी मारा गया था। सब मिलाकर 105 स्त्रियों को गिरफ्तार किया गया था। कलकत्ता में इस से पहले इतनी स्त्रियों को एक साथ कभी गिरफ़्तार नहीं किया गया था।
प्रश्न 10 – ‘डायरी का एक पन्ना’ पाठ में वर्णित स्वतंत्रता आंदोलन और अंग्रेज़ी सत्ता की क्रूरता का उल्लेख संक्षेप में कीजिए।
उत्तर – नेताजी सुभाष चंद्र बोस और स्वयं लेखक सहित कलकत्ता (कोलकाता) के लोगों ने देश का दूसरा स्वतंत्रता दिवस किस जोश के साथ मनाया, अंग्रेज प्रशासकों ने इसे उनका विरोध मानते हुए उन पर और विशेषकर महिला कार्यकर्ताओं पर कैसे-कैसे जुल्म ढाए, इन सब बातों का वर्णन इस पाठ में किया गया है। 26 जनवरी 1931 का दिन हमेशा याद रखा जाने वाला दिन है। 26 जनवरी 1930 के ही दिन पहली बार सारे हिंदुस्तान में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था और 26 जनवरी 1931 को भी फिर से वही दोहराया जाना था, जिसके लिए बहुत सी तैयारियाँ पहले से ही की जा चुकी थी। पुलिस अपनी पूरी ताकत के साथ पुरे शहर में पहरे लिए घूम -घूम कर प्रदर्शन कर रही थी। स्मारक के निचे जहाँ शाम को सभा होने वाली थी, उस जगह को तो सुबह के छः बजे से ही पुलिस ने बड़ी संख्या में आकर घेर कर रखा था। तारा सुंदरी पार्क में बड़ा बाजार कांग्रेस कमेटी के युद्ध मंत्री हरिश्चंद्र सिंह झंडा फहराने गए परन्तु वे पार्क के अंदर ही ना जा सके। वहाँ पर भी काफी मारपीट हुई और दो-चार आदमियों के सर फट गए। जब से स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए कानून तोड़ने का सिलसिला शुरू हुआ था तब से आज 26 जनवरी 1931 तक इतनी बड़ी सभा ऐसे खुले मैदान में कभी नहीं हुई थी ठीक चार बजकर दस मिनट पर सुभाष बाबू अपना जुलूस ले कर मैदान की और निकले। जब वे लोग मैदान के मोड़ पर पहुंचे तो पुलिस ने उनको रोकने के लिए लाठियाँ चलाना शुरू कर दिया। बहुत से लोग घायल हो गए। सुभाष बाबू पर भी लाठियाँ पड़ी। मदालसा जो जानकीदेवी और जमना लाल बजाज की पुत्री थी, उसे भी गिरफ़्तार किया गया था। उससे बाद में मालूम हुआ की उसको थाने में भी मारा गया था। सब मिलकर 105 स्त्रियों को गिरफ्तार किया गया था।
Questions that appeared in 2023 Board Exams
प्रश्न 1 – ‘डायरी का एक पन्ना’ पाठ के आधार पर लिखिए कि अंग्रेज सरकार ने कलकत्तावासियों द्वारा मोनूमेंट पार्क में आयोजित सभा को रोकने के लिए क्या-क्या प्रयास किए?
उत्तर – 26 जनवरी 1930 के ही दिन पहली बार सारे हिंदुस्तान में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था और 26 जनवरी 1931 को भी फिर से वही दोहराया जाना था, जिसके लिए बहुत सी तैयारियाँ पहले से ही की जा चुकी थी। सभी मकानों पर भारत का राष्ट्रीय झंडा फहरा रहा था और बहुत से मकान तो इस तरह सजाए गए थे जैसे उन्हें स्वतंत्रता मिल गई हो। कलकत्ते के लगभग सभी भागों में झंडे लगाए गए थे।पुलिस अपनी पूरी ताकत के साथ पुरे शहर में पहरे लिए घूम-घूम कर प्रदर्शन कर रही थी। न जाने कितनी गाड़ियाँ शहर भर में घुमाई जा रही थी। घुड़सवारों का भी प्रबंध किया गया था। स्मारक के निचे जहाँ शाम को सभा होने वाली थी, उस जगह को तो सुबह के छः बजे से ही पुलिस ने बड़ी संख्या में आकर घेर कर रखा था। जो भी सभा में भाग लेने या झंडा फहराने की कोशिश करता उसे गिरफ़्तार किया जा रहा था।
Questions from the Chapter in 2020 Board Exams
प्रश्न 1 – ‘डायरी का एक पन्ना’ पाठ के आधार पर लिखिए कि 26 जनवरी, 1931 का दिन विशेष क्यों था?(लगभग 30-40 शब्दों में)
उत्तर – 26 जनवरी 1931 का दिन हमेशा याद रखा जाने वाला दिन है। 26 जनवरी 1930 के ही दिन पहली बार सारे हिंदुस्तान में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था और 26 जनवरी 1931 को भी फिर से वही दोहराया जाना था, जिसके लिए बहुत सी तैयारियाँ पहले से ही की जा चुकी थी। सिर्फ़ इस दिन को मनाने के प्रचार में ही दो हज़ार रुपये खर्च हुए थे। सभी मकानों पर भारत का राष्ट्रीय झंडा फहरा रहा था और बहुत से मकान तो इस तरह सजाए गए थे जैसे उन्हें स्वतंत्रता मिल गई हो।
प्रश्न 2 – एक संगठित समाज कृतसंकल्प हो तो ऐसा कुछ भी नहीं जो वह न कर सके।’ ‘डायरी का एक पन्ना’ पाठ के संबंध में कहे गए उक्त कथन की उदाहरण सहित पुष्टि कीजिए।(लगभग 30-40 शब्दों में)
उत्तर – ‘डायरी का एक पन्ना’ पाठ क्रांतिकारियों की कुर्बानियों की याद दिलाते हुए तथ्य की पुष्टि करता है कि यदि एक संगठित समाज कृतसंकल्प हो तो ऐसा कुछ भी नहीं, जो वह न कर सके। 26 जनवरी, 1931 के दिन कलकत्ता में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए हजारों की संख्या में स्त्री-पुरुषों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। अंग्रेजी प्रशासकों ने इसे उनका अपराध मानते हुए उन पर लाठीचार्ज करना शुरू कर दिया, जिसमें अधिक संख्या में लोग घायल हुए, किन्तु फिर भी अंग्रेजों के क्रूर अत्याचारों को सहन करते हुए भी कलकत्तावासियों ने संगठित होकर अपूर्ण उत्साह, साहस एवं बलिदान का परिचय दिया। साथ ही अपने संकल्प को पूरा करने के लिए राष्ट्रीय ध्वज फहराया।
प्रश्न 3 – “डायरी का एक पन्ना” के संदर्भ में लिखिए कि धर्मतल्ले के मोड़ पर आकर जुलूस क्यों टूट गया?(लगभग 30-40 शब्दों में)
उत्तर – जब स्त्रियाँ मोनुमेंट की सीढियाँ चढ़कर झंडा फहरा रही थीं। तभी सुभाष बाबू को सैनिकों द्वारा पकड़ लिया गया और गाडी में बैठाकर लॉकअप भेज दिया गया। कुछ देर बाद वहाँ से स्त्रियाँ जुलुस बनाकर चलीं और साथ में बहुत बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गयी। भीड़ पर पुलिस ने डंडे बरसाने शुरू कर दिए जिससे बहुत से आदमी घायल हो गए। जिस कारण धर्मतल्ले के मोड़ के पास आकर जुलुस टूट गया और करीब 50-60 महिलाएँ वही बैठ गयीं जिसे पुलिस से पकड़कर लालबाजार भेज दिया।
प्रश्न 4 – कलकत्ता में 26 जनवरी 1931 की सभा में स्त्रियों की भूमिका का वर्णन ‘डायरी का एक पन्ना’ के आधार पर कीजिए।(लगभग 30-40 शब्दों में)
उत्तर – 11 बजे मारवाड़ी बालिका विद्यालय की छात्राओं ने अपने विद्यालय में झंडा फहराने का समारोह मनाया। वहाँ पर जानकी देवी, मदालसा बजाज- नारायण आदि स्वयंसेवी भी आ गए थे। अलग अलग जगहों से स्त्रियाँ अपना जुलूस निकालने और सही जगह पर पहुँचाने की कोशिश में लगी हुई थी। स्मारक के नीचे सीढ़ियों पर स्त्रियाँ झंडा फहरा रही थी और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ रही थी। स्त्रियाँ बहुत अधिक संख्या में आई हुई थी। मदालसा जो जानकी देवी और जमना लाल बजाज की पुत्री थी ,उसे भी गिरफ़्तार किया गया था। उससे बाद में मालूम हुआ की उसको थाने में भी मारा गया था। सब मिलाकर 105 स्त्रियों को गिरफ्तार किया गया था। कलकत्ता में इस से पहले इतनी स्त्रियों को एक साथ कभी गिरफ़्तार नहीं किया गया था।
प्रश्न 5 – ‘बंगाल या कलकत्ता के नाम पर जो कलंक था, वह धुल गया,’ कलंक क्या था और कैसे धुल गया? ‘डायरी का एक पन्ना’ पाठ के आधार पर लिखिए।(लगभग 30-40 शब्दों में)
उत्तर – बंगाल या कलकत्ता के नाम पर कलंक था की यहाँ स्वतंत्रता का कोई काम नहीं हो रहा है। 26 जनवरी 1931 को ये कलंक काफी हद तक धुल गया और लोग ये सोचने लगे कि यहाँ पर भी स्वतंत्रता के विषय में काम किया जा सकता है। इस कलंक के धुलने का कारण उनका अकल्पनीय योगदान था। कलकत्ते के लगभग सभी भागों में झंडे लगाए गए थे। प्रशासन के अत्याचारों को सहते हुए अनगिनत लोग जेल गए और न जाने कितने घायल हो गए। जब लेखक और अन्य स्वयंसेवी अस्पताल गए, तो लोगों को देखने से मालूम हुआ कि 160 आदमी तो अस्पतालों में पहुंचे थे और जो घरों में चले गए उनकी गिनती अलग है। कह सकते हैं कि दो सौ आदमी जरूर घायल हुए। पकड़े गए आदमियों की संख्या का पता नहीं चल सका। पर इतना जरूर पता चला की लालबाज़ार के लॉकअप में स्त्रियों की संख्या 105 थी। इतना सब कुछ पहले कभी नहीं हुआ था ,लोगों का ऐसा प्रचंड रूप पहले किसी ने नहीं देखा था।
प्रश्न 6 – ‘डायरी का एक पन्ना’ पाठ के आधार पर लिखिए 26 जनवरी 1931 को सारे हिंदुस्तान में कौन-सा स्वतंत्रता दिवस मनाया गया और इस दिन बड़े बाज़ार का दृश्य कैसा था?(लगभग 30-40 शब्दों में)
उत्तर – 26 जनवरी 1931 का दिन हमेशा याद रखा जाने वाला दिन है। 26 जनवरी 1930 के ही दिन पहली बार सारे हिंदुस्तान में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था और 26 जनवरी 1931 को भी फिर से वही दोहराया जाना था, जिसके लिए बहुत सी तैयारियाँ पहले से ही की जा चुकी थी। सिर्फ़ इस दिन को मनाने के प्रचार में ही दो हज़ार रुपये खर्च हुए थे। सभी मकानों पर भारत का राष्ट्रीय झंडा फहरा रहा था और बहुत से मकान तो इस तरह सजाए गए थे जैसे उन्हें स्वतंत्रता मिल गई हो। कलकत्ते के लगभग सभी भागों में झंडे लगाए गए थे। जगह-जगह पर भाषण व् झंडा फहराने का प्रबंध किया गया था। पुलिस व् प्रशासन अपनी पूरी ताकत के साथ पूरे शहर में पहरे लिए घूम-घूम कर प्रदर्शन कर रही थी। न जाने कितनी गाड़ियाँ शहर भर में घुमाई जा रही थी। घुड़सवारों का भी प्रबंध किया गया था। ताकि इस दिन को कोई स्वतंत्रता दिवस के रूप में न मना सके।
प्रश्न 7 – दूसरे स्वतंत्रता दिवस पर बड़े बाज़ार में क्या बदलाव देखने को मिले?(लगभग 30-40 शब्दों में)
उत्तर – 26 जनवरी 1931 का दिन हमेशा याद रखा जाने वाला दिन है। 26 जनवरी 1930 के ही दिन पहली बार सारे हिंदुस्तान में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था और 26 जनवरी 1931 को भी फिर से वही दोहराया जाना था, जिसके लिए बहुत सी तैयारियाँ पहले से ही की जा चुकी थी। सभी मकानों पर भारत का राष्ट्रीय झंडा फहरा रहा था और बहुत से मकान तो इस तरह सजाए गए थे जैसे उन्हें स्वतंत्रता मिल गई हो। जगह-जगह पर भाषण व् झंडा फहराने का प्रबंध किया गया था। पुलिस व् प्रशासन अपनी पूरी ताकत के साथ पूरे शहर में पहरे लिए घूम-घूम कर प्रदर्शन कर रही थी। ताकि इस दिन को कोई स्वतंत्रता दिवस के रूप में न मना सके।
2019 Exam Question and Answers from the chapter
प्रश्न 1 – मैदान में सभा न होने देने के लिए पुलिस बंदोबस्त का विवरण देते हुए सुभाष बाबू के जुलूस और उनके साथ पुलिस का व्यवहार चर्चा कीजिए |
उत्तर – अंग्रेज़ प्रशासन द्वारा सभा ना करने के कानून को भंग करने की बात कही है। ये कानून वास्तव में भारत वासियों की स्वतंत्रता को कुचलने वाला कानून था अतः इस कानून का उलंघन करना सही था। उस समय हर देशवासी स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ त्यागने के लिए तैयार था और अंग्रेज़ी हुकूमत ने सभा करने, झंडा फहराने और जुलूस में शामिल होने को गैरकानूनी घोषित कर दिया था। अंग्रेज़ी प्रशासन नहीं चाहता था कि लोगो में आज़ादी की भावना आये परन्तु अब हर देशवासी स्वतन्त्र होना चाहता था। उस समय कानून का उलंघन करना सही था। जब सुभाष बाबू को गिरफ्तार करके पुलिस ले गई तो स्त्रियाँ जुलूस बना कर जेल की ओर चल पड़ी। उनके साथ बहुत बड़ी भीड़ भी इकठ्ठी हो गई। परन्तु पुलिस की लाठियों ने कुछ को घायल कर दिया, कुछ को पुलिस गिरफ्तार करके ले गई और बची हुई स्त्रियाँ वहीँ धर्मतल्ले के मोड़ पर बैठ गई। भीड़ ज्यादा थी तो आदमी भी ज्यादा जख्मी हुए। कुछ के सर फ़टे थे और खून बह रहा था।
प्रश्न 2 – 26 जनवरी, 1931 में कोलकाता में हुए घटनाक्रम की उन बातों का वर्णन कीजिए जिनके कारण लेखक ने डायरी में लिखा, “आज जो बात थी वह निराली थी।”
उत्तर – 26 जनवरी, 1931 का दिन निराला इसलिए था क्योंकि 26 जनवरी, 1930 के ही दिन पहली बार सारे हिंदुस्तान में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था और इस साल (26 जनवरी, 1931) भी फिर से वही दोहराया जाना था। सभी मकानों पर हमारा राष्ट्रीय झंडा फहरा रहा था और बहुत से मकान तो इस तरह सजाए गए थे जैसे हमें स्वतंत्रता मिल गई हो। स्मारक के नीचे जहाँ शाम को सभा होने वाली थी, उस जगह को तो सुबह के छः बजे से ही पुलिस ने बड़ी संख्या में आकर घेर कर रखा था, इतना सब कुछ होने के बावजूद भी कई जगह पर तो सुबह ही लोगों ने झंडे फहरा दिए थे। स्त्रियाँ अपनी तैयारियों में लगी हुई थी। अलग अलग जगहों से स्त्रियाँ अपना जुलूस निकालने और सही जगह पर पहुँचने की कोशिश में लगी हुई थी।
प्रश्न 3 – कलकत्तावासियों के लिए 26 जनवरी, 1931 का दिन क्यों महत्त्वपूर्ण था?
उत्तर – 26 जनवरी 1931 के दिन को अमर बनाने के लिए काफ़ी तैयारियाँ की गयी थीं। केवल प्रचार पर ही दो हज़ार रूपए खर्च किये गए थे। कार्यकर्ताओं को उनका कार्य घर – घर जा कर समझाया गया था। कलकत्ता शहर में जगह – जगह झंडे लगाए गए थे। कई स्थानों पर जुलूस निकाले जा रहे थे और झंडा फहराया जा रहा था। टोलियाँ बनाकर लोगों की भीड़ उस स्मारक के नीचे इकट्ठी होने लगी थी, जहाँ सुभाष बाबू झंडा फहराने वाले थे और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ने वाले थे।
प्रश्न 4 – सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री समाज की क्या भूमिका थी? ‘डायरी का एक पन्ना’ पाठ के आधार पर सोदाहरण लिखिए।
उत्तर – सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री समाज की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका थी। स्त्रियों ने बहुत तैयारियां की थी। अलग अलग जगहों से स्त्रियाँ अपना जुलूस निकालने और सही जगह पर पहुँचाने की कोशिश में लगी हुई थी। स्मारक के नीचे सीढ़ियों पर स्त्रियां झंडा फहरा रही थी और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ रही थी। स्त्रियाँ बहुत अधिक संख्या में आई हुई थी। सुभाष बाबू की गिरफ़्तारी के कुछ देर बाद ही स्त्रियाँ वहाँ से जन समूह बना कर आगे बढ़ने लगी।। धर्मतल्ले के मोड़ पर आते – आते जुलूस टूट गया और लगभग 50 से 60 स्त्रियाँ वही मोड़ पर बैठ गई। उन स्त्रियों को लालबाज़ार ले जाया गया। मदालसा जो जानकीदेवी और जमना लाल बजाज की पुत्री थी, उसे भी गिरफ़्तार किया गया था। उससे बाद में मालूम हुआ की उसको थाने में भी मारा गया था। सब मिलकर 105 स्त्रियों को गिरफ्तार किया गया था।
प्रश्न 5 – ‘डायरी का एक पन्ना’ के आधार पर 26 जनवरी 1931 को कोलकाता में घटी उन विशिष्ट घटनाओं का उल्लेख कीजिए जिनसे यह दिन अविस्मरणीय हो गया।
उत्तर – कलकत्ते के लगभग सभी भागों में झंडे लगाए गए थे। जिस भी रास्तों पर मनुष्यों का आना – जाना था, वहीं जोश, ख़ुशी और नया पन महसूस होता था। बड़े – बड़े पार्कों और मैदानों को सवेरे से ही पुलिस ने घेर रखा था क्योंकि वही पर सभाएँ और समारोह होना था। स्मारक के निचे जहाँ शाम को सभा होने वाली थी उस जगह को तो सुबह के छः बजे से ही पुलिस ने बड़ी संख्या में आकर घेर कर रखा था, इतना सब कुछ होने के बाबजूद भी कई जगह पर तो सुबह ही लोगों ने झंडे फहरा दिए थे। जब से स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए कानून तोड़ने का सिलसिला शुरू हुआ था तब से आज तक इतनी बड़ी सभा ऐसे खुले मैदान में कभी नहीं हुई थी और ये सभा तो कह सकते हैं की सबके लिए ओपन लड़ाई थी।। पुलिस कमिश्नर ने नोटिस निकल दिया था कि अमुक -अमुक धारा के अनुसार कोई भी, कही भी, किसी भी तरह की सभा नहीं कर सकते हैं।लोगो की भीड़ इतनी अधिक थी कि पुलिस ने उनको रोकने के लिए लाठियां चलाना शुरू कर दिया। आदमियों के सर फट गए। पुलिस कई आदमियों को पकड़ कर ले गई।अलग अलग जगहों से स्त्रियाँ अपना जुलूस निकालने और सही जगह पर पहुँचाने की कोशिश में लगी हुई थी। इतना सब कुछ होने पर भी लोगो के सहस और जोश में कमी नहीं आई। 26 जनवरी 1931 को कोलकाता में इस तरह की कई विशिष्ट घटनाएँ घटी जिनसे यह दिन अविस्मरणीय हो गया।
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