सूरदास के पद पाठ सार

PSEB Class 9 Hindi Book Chapter 2 “Surdas Ke Pad” Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings

 

सूरदास के पद सार – Here is the PSEB Class 9 Hindi Book Chapter 2 Surdas Ke Pad Summary with detailed explanation of the lesson “Surdas Ke Pad” along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary

इस पोस्ट में हम आपके लिए पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड  कक्षा 9 हिंदी पुस्तक के पाठ 2 सूरदास के पद पाठ सार, पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप  इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से कक्षा 9 सूरदास के पद पाठ के बारे में जानते हैं।

 

Surdas Ke Pad ( सूरदास के पद)

 

प्रस्तुत संकलन में महाकवि सूरदास के वात्सल्य भाव से संबंधित चार पद लिए गये हैं। जिसमें माँ यशोदा श्रीकृष्ण को पालने में झूला झुलाते हुए लोरी सुना रही हैं। माँ यशोदा श्रीकृष्ण को खेलने के लिए दूर न जाने को कहती हैं। माँ यशोदा श्रीकृष्ण को चोटी बढ़ने का लालच देकर बहाने से दूध पिलाती है। श्रीकृष्ण माँ से गायें चराने जाने के लिए जिद्द करते हैं। परन्तु उनकी बाल-अवस्था देखकर माँ यशोदा उन्हें जाने से रोकना चाहती है। सूरदास की भाषा ब्रज है। अवधी और पूर्वी हिंदी के भी शब्द उनकी रचना में मिलते हैं। उनके पदों में गीति-तत्व की विशेषता साफ दृष्टिगोचर होती है।

 

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सूरदास के पद पाठ सार Surdas Ke Pad Summary

सूरदास द्वारा रचित ‘सूरदास के पद’ नामक इस पाठ में वर्णित चार पदों में वात्सल्य रस का मोहक चित्रण किया गया है। पहले पद में माँ यशोदा बाल कृष्ण को पालने में झुला कर सुलाने का प्रयास कर रही है। वह झूले को हलके से हिलाती है, बाल कृष्ण को दुलारती व् पुचकारती है। माँ यशोदा लोरी गाते हुए नींद को आकर बाल कृष्ण को सुलाने को कहती हैं। सूरदास कहते हैं कि जो सुख देवता और मुनियों के लिए भी दुर्लभ है वह नंद की पत्नी यशोदा को प्राप्त हो रहा है।  दूसरे पद में सूरदास जी ने श्री कृष्ण के उस बाल-रूप का वर्णन किया है, जहाँ श्रीकृष्ण बोलना शुरू कर रहे हैं। बाल कृष्ण माँ यशोदा को मैया-मैया, ग्वालों के मुखिया नंद जी को बाबा-बाबा और बड़े भाई बलराम जी को भैया-भैया कहने लगे हैं। माँ यशोदा कृष्ण को दूर खेलने जाने से रोकती हैं क्योंकि उनको लगता है कि किसी की गाय कृष्ण को मार देगी। सूरदास जी कहते हैं कि हे प्रभु, तुम्हारे दर्शन के लिए, मैं तुम्हारे चरणों पर न्यौछावर हूँ। तीसरे पद में बाल कृष्ण माँ यशोदा से शिकायत करते हैं कि उनकी चोटी कब बड़ी होगी? कितने समय से वे दूध पी रहे हैं, लेकिन चोटी अभी भी वैसी के वैसी छोटी है। माँ से शिकायत करते हुए कृष्ण कहते हैं कि वह बार-बार उन्हें कच्चा दूध पीने के लिए देती है, लेकिन माखन रोटी खाने के लिए नहीं देती। सूरदास कहते हैं कि बलराम और कृष्ण की यह जोड़ी सदा के लिए बनी रहे। चौथे पद में कवि ने बाल कृष्ण के द्वारा गौ चराने की जिद्द करने व् माँ यशोदा का उन्हें गौ चराने जाने से रोकने का वर्णन किया है। माँ यशोदा उन्हें मना करती हैं क्योंकि गायों को चराने के लिए सुबह-सुबह ले जाते हैं तो संध्या के समय ही घर आते हैं। बाल कृष्ण का कमल जैसा कोमल शरीर धूप में भटकने से मुरझा जाएगा। इस पर बाल कृष्ण कहते हैं कि मैया तुम्हारी कसम मुझे धूप नहीं लगती है और कुछ ज्यादा भूख भी नहीं लगती। सूरदास जी कहते हैं कि बाल कृष्ण अपनी माँ का कहना नहीं मानते और अपनी ज़िद्द पर अड़े हुए है कि उन्हें गाय चराने जाना है।

सूरदास के पद पाठ व्याख्या Surdas Ke Pad Explanation

Surdas Ke Pad Summary img1

1. 
जसोदा हरि पालने झुलावै।
हलरावै, दुलराइ मल्हावे, जोइ-सोइ कछू गावै।
मेरे लाल को आउ निंदरिया, काहै न आनि सुवावै।
तू काहैं नहिं बेगहिं आवै, तोकों कान्ह बुलावै।
कबहुँक पलक हरि मूँदि लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै।
सोवत जानि मौन है रहि रहि, करि करि सैन बतावै।
इहिं अंतर अकुलाई उठे हरि, जसुमति मधुरं गावै।
जो सुख सूर अमर मुनि दुरलभ, सो नंद भामिनि पावै।।

शब्दार्थ –
जसोदा – यशोदा
हरि – श्रीकृष्ण
पालना – झूला
झुलावै – झुलाना
हलरावै – हल्का सा हिलाना
दुलराइ मल्हावे – प्यार करना
निंदरिया – नींद
बेगहिं – शीघ्रता से
तोकों – तुझे
मूँदि – बंद करना
अधर – होंठ
फरकावै – फड़काना
मौन है – मौन होकर
सैन – संकेत, इशारे
अंतर – अंतराल, इसी बीच
अकुलाई – व्याकुल होकर, परेशान होकर
नंद भामिनि – नन्द की पत्नी, यशोदा

व्याख्या प्रस्तुत पद सूरदास द्वारा रचित ‘सूरदास के पद’ से लिया गया है, इसमें माँ यशोदा अपने पुत्र कृष्ण जी को पालने में झुला कर सुलाने का प्रयास कर रही है। कवि ने पद में अत्यधिक मनोहारी ढंग से एक माँ की क्रियाओं को दर्शाया है। सूरदास जी कहते हैं कि माँ यशोदा बाल कृष्ण को पालने में झुला रही है। वह झूले को हलके से हिलाती है, बाल कृष्ण को दुलारती व् पुचकारती है और प्रेम भाव से जो कुछ मन में आता है, वह गाती है। माँ यशोदा लोरी गाते हुए कहती हैं कि हे नींद! तू मेरे लाल के पास आजा। तू आकर इसे क्यों नहीं सुलाती? तू जल्दी से क्यों नहीं आती, कब से कन्हैया तुम्हें बुला रहा है। नींद के इन्तजार में कभी कृष्ण पलकों को बन्द कर लेते हैं और कभी ओठों को फड़काते हैं। उन्हें सोया हुआ समझकर माँ यशोदा चुप हो जाती हैं और दूसरों को अपनी बातें समझाने के लिए इशारे से ही बातें करती हैं। इसी बीच कृष्ण बैचेन हो कर उठते हैं और यशोदा फिर से मधुर स्वर में लोरी गाने लगती हैं। सूरदास कहते हैं कि जो सुख देवता और मुनियों के लिए भी दुर्लभ है वह नंद की पत्नी यशोदा को प्राप्त हो रहा है।  

 

2. 
कहन लागे मोहन मैया मैया।
नंद महर सों बाबा बाबा, अरु हलधर सों भैया।
ऊंचे चढ़ि चढ़ि कहति जसोदा, लै लै नाम कन्हैया।
दूरि खेलन जनि जाहुलला रे, मारैगी काहु की गया।
गोपी ग्वाल करत कौतूहल, घर घर बजति बधैया।
सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस कों, चरननि की बलि जैया।।

शब्दार्थ
मोहन – श्रीकृष्ण
महर – मुखिया
हलधर – बलराम (श्री कृष्ण के बड़े भाई)
जनि – मत, न
जाहु – जाना
लला रे – हे पुत्र, हे लाल
कौतूहल – आश्चर्य, हैरानी
बधैया – बधाइयाँ
दरस – दर्शन
बलि जैया – निछावर हूँ

व्याख्याप्रस्तुत पद सूरदास जी द्वारा रचित ‘सूरदास के पद’ में से लिया गया है, इसमें सूरदास जी ने श्री कृष्ण के उस बाल-रूप का वर्णन किया है, जहाँ श्रीकृष्ण बोलना शुरू कर रहे हैं। सूरदास जी कहते हैं कि श्री कृष्ण अब माँ यशोदा को मैया-मैया कहने लगे हैं तथा ग्वालों के मुखिया नंद जी को बाबा-बाबा पुकारने लगे हैं और बड़े भाई बलराम जी को भैया-भैया कहने लगे हैं। बालक कृष्ण को खेलने के लिए बाहर जाता हुआ देखकर माँ यशोदा घर की छत के ऊपर चढ़ कर श्री कृष्ण का नाम ले – ले कर पुकारती हैं। माँ यशोदा कृष्ण को दूर खेलने जाने से रोकती हैं क्योंकि उनको लगता है कि किसी की गाय कृष्ण को मार देगी। श्री कृष्ण के रूप सौंदर्य को देखकर गोपियाँ तथा ग्वाले सभी आश्चर्य करते हैं अथवा प्रसन्न होते हैं और घर-घर में बधाइयाँ दी जाती हैं। सूरदास जी कहते हैं कि हे प्रभु, तुम्हारे दर्शन के लिए, मैं तुम्हारे चरणों पर न्यौछावर हूँ।

 

3 –
मैया कबहुं बढ़ेगी चोटी।
किती बेर मोहिं दूध पियत भई, यह अजहूं है छोटी।
तू जो कहति बल की बेनी ज्यों, हवै है लांबी मोटी।
काढ़त गुहत न्हवावत जैहै नागिन – सी भुईं लोटी।
काचो दूध पियावति पचि पचि, देति न माखन रोटी।
सूरदास चिरजीवौ दोउ भैया, हरि हलधर की जोटी।।

शब्दार्थ
कबहुँ – कब
पियत – पी लिया है
अजहूँ – अब भी
बल – बलराम
बेनी – चोटी
काढ़त (बालों को कंघी से) – संवारना
गुहत – चोटी बनाते हुए, गूंथना
न्हवावत – नहलाकर
नागिन-सी – नागिन जैसी
भुईं – धरती
काचो दूध – कच्चा दूध
पचि-पचि – बार-बार
हरि-हलधर – कृष्ण-बलराम

व्याख्या प्रस्तुत पद सूरदास द्वारा रचित ‘सूरदास के पद’ से लिया गया है। यहाँ सूरदास ने कृष्ण के बाल-सुलभ रूप का अनोखा वर्णन किया है। बाल कृष्ण माँ यशोदा से शिकायत करते हैं कि – माँ मेरी यह चोटी कब बड़ी होगी? कितनी ही बार मैने दूध पी लिया है अर्थात कितने समय से मैं दूध पी रहा हूँ, लेकिन यह अभी भी वैसी के वैसी छोटी है। माँ तुम तो कहती हो कि मेरी ये चोटी बलराम भैया की चोटी की तरह मोटी और लंबी हो जाएगी। इसमें कंघी करते हुए, इसे संवारते हुए और नहाते हुए यह नागिन की तरह धरती पर लोटने लगेगी। माँ से शिकायत करते हुए कृष्ण कहते हैं कि हे मैया ! तुम बार-बार मुझे कच्चा दूध पीने के लिए देती हो, लेकिन माखन रोटी खाने के लिए नहीं देती हो। सूरदास कहते हैं कि बलराम और कृष्ण की यह जोड़ी सदा के लिए बनी रहे।

 

4 –
आजु मैं गाइ चरावन जैहौं।
बृन्दावन के भांति भांति फल अपने कर मैं खेहाँ।
ऐसी बात कहौ जनि बारे, देखौ अपनी भांति।
तनक तनक पग चलिहौ कैसें, आवत हवै है अति राति।
प्रात जात गैया लै चारन घर आवत हैं सांझ।
तुम्हारे कमल बदन कुम्हिलैहे, रेंगति घामहिं मांझ।
तेरी सौं मोहिं घाम न लागत, भूख नहीं कछु नेक।
सूरदास प्रभु कहयौ न मानत, पर्यो आपनी टेक।।

शब्दार्थ
चरावन – चरवाने के लिए
जैहौं – जाऊँगा
कर – हाथ
खेहौं – खाऊँगा
जनि – मत
बारे – बालक
चलिहौ – चलकर
कुम्हिलैहे – मुरझाना
घामहिं – धूप
सौं – कसम
टेक – ज़िद्द, हठ

व्याख्याप्रस्तुत पद सूरदास द्वारा रचित ‘सूरदास के पद’ से लिया गया है जिसमें कवि ने बाल कृष्ण के द्वारा गौ चराने की जिद्द करने व् माँ यशोदा का उन्हें गौ चराने जाने से रोकने का वर्णन किया है। बाल कृष्ण माँ यशोदा से कहते हैं कि वे आज गाय चराने जाएंगे। वे वृंदावन के तरह-तरह के फलों को भी अपने हाथों से तोड़ कर खाएँगे। बाल कृष्ण की इस बात पर माँ यशोदा उन्हें मना करते हुए कहती हैं कि कृष्ण ऐसी बात न करें, वे ज़रा अपने को देख लें कि वे अपने छोटे-छोटे कदमों से किस प्रकार चलेंगे क्योंकि गौ चरा कर घर वापिस आने में बहुत रात हो जाएगी। गायों को चराने के लिए सुबह-सुबह ले जाते हैं तो संध्या के समय ही घर आते हैं। बाल कृष्ण का कमल जैसा कोमल शरीर धूप में भटकने से मुरझा जाएगा। इस पर बाल कृष्ण कहते हैं कि मैया तुम्हारी कसम मुझे धूप नहीं लगती है और कुछ ज्यादा भूख भी नहीं लगती। सूरदास जी कहते हैं कि बाल कृष्ण अपनी माँ का कहना नहीं मानते और अपनी ज़िद्द पर अड़े हुए है कि उन्हें गाय चराने जाना है।

 

Conclusion

प्रस्तुत संकलन में महाकवि सूरदास के वात्सल्य भाव से संबंधित चार पद लिए गये हैं। जिनमें माँ यशोदा द्वारा श्रीकृष्ण को पालने में झूला झुलाने और लोरी सुनाने, माँ यशोदा द्वारा श्रीकृष्ण को खेलने के लिए दूर न जाने देने, माँ यशोदा द्वारा श्रीकृष्ण को चोटी बढ़ने का लालच देकर बहाने से दूध पिलाने व् श्रीकृष्ण द्वारा माँ से गायें चराने जाने के लिए जिद्द करने का वर्णन किया हैं। PSEB Class 9 Hindi – पाठ – 2 ‘सूरदास के पद’ की इस पोस्ट में सार, व्याख्या और शब्दार्थ दिए गए हैं। छात्र इसकी मदद से पाठ को तैयार करके परीक्षा में पूर्ण अंक प्राप्त कर सकते हैं।