PSEB Class 9 Hindi Chapter 1 Kabir Dohawali (कबीर दोहावली) Question Answers (Important)
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- Kabir Dohawali Extract Based Questions
- Kabir Dohawali Multiple Choice Questions
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PSEB Class 9 Chapter 1 Kabir Dohawali Textbook Questions
अभ्यास
(क) विषय-बोध
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-
(i) कबीर के अनुसार ईश्वर किसके हृदय में वास करता है ?
उत्तर– कबीर के अनुसार सच्चे व्यक्ति के हृदय में ईश्वर वास करता है।
(ii) कबीर ने सच्चा साधु किसे कहा है ?
उत्तर– कबीर के अनुसार सच्चा साधु वही है जो भाव का भूखा होता है, जिसे धन-संपत्ति की इच्छा नहीं होती।
(iii) संतों के स्वभाव के बारे में कबीर ने क्या कहा है ?
उत्तर– संत व्यक्ति करोड़ों दुष्टों के बीच में भी अपने अच्छे स्वभाव को नहीं छोड़ते।
(iv) कबीर ने वास्तविक रूप से पंडित / विद्वान किसे कहा है ?
उत्तर– कबीर के अनुसार जो प्रेम के केवल ढाई अक्षर भी भली-भाँति समझ ले, वही वास्तविक रूप से पंडित / विद्वान है।
(v) धीरज का संदेश देते हुए कबीर ने क्या कहा है ?
उत्तर- धीरज का संदेश देते हुए कबीर ने कहा है कि मन में धैर्य रखने से ही सब कार्य सिद्ध होते हैं। यदि कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींच भी दे, तब भी फल तो उचित ऋतु आने पर ही लगेगा अर्थात् परिणाम उचित समय के अनुसार ही मिलते हैं।
(vi) कबीर ने सांसारिक व्यक्ति की तुलना पक्षी से क्यों की है ?
उत्तर– कबीर ने सांसारिक व्यक्ति की तुलना पक्षी से की है क्योंकि उसका मन जहाँ भटकता है, शरीर भी उसी ओर चला जाता है। वास्तव में, व्यक्ति जिस प्रकार की संगति करता है, उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है।
(vii) कबीर ने समय के सदुपयोग पर क्या संदेश दिया है ?
उत्तर- कबीर ने समय के सदुपयोग पर संदेश दिया है कि जो काम आप कल करना चाहते हैं, उसे आज ही कर लेना चाहिए और जो काम आप आज करना चाहते हैं उसे उसी पल कर लेना चाहिए क्योंकि आने वाले समय का कुछ नहीं पता।
2. निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए-
(i) जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय ।
जैसा पानी पीजिये, तैसी वाणी होय ।।
उत्तर
प्रसंग- प्रस्तुत दोहा संत कबीरदास द्वारा रचित ‘साखी’ संग्रह से लिया गया है। इस दोहे में उन्होंने आहार, व्यवहार और संगति के महत्त्व को बताया है।
व्याख्या- कबीरदास जी कहते हैं कि मनुष्य जैसा भोजन करता है, उसी प्रकार उसका मन और विचार बनते हैं। शुद्ध और सात्त्विक भोजन मन को शांत और पवित्र बनाता है, जबकि अशुद्ध भोजन मन को अस्थिर करता है। इसी तरह, जैसा पानी और वातावरण मनुष्य ग्रहण करता है, वैसी ही उसकी वाणी होती है, कोमल या कठोर।
(ii) बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।
उत्तर
प्रसंग- प्रस्तुत दोहा कबीरदास जी की प्रसिद्ध साखियों से उद्धृत है, जिसमें वह बताते हैं कि सच्ची साधना दूसरों की कमियाँ खोजने में नहीं, बल्कि अपने भीतर झाँककर अपनी बुराइयों को पहचानने और सुधारने में है।
व्याख्या– प्रस्तुत पँक्तियों में कबीरदास जी कहते हैं कि जब उन्होंने संसार में दूसरों की बुराई खोजने की कोशिश की, तो कोई भी उन्हें बुरा नहीं लगा। परंतु जैसे ही उन्होंने अपने हृदय में झाँककर स्वयं को परखा, उन्हें महसूस हुआ कि सबसे अधिक दोष उनके ही भीतर हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य को दूसरों की आलोचना करने के बजाय पहले अपनी कमियों को पहचानकर उन्हें सुधारने का प्रयास करना चाहिए। आत्मचिंतन ही वास्तविक ज्ञान का मार्ग है।
(iii) जाति ना पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान।
मोल करो तरवार का पड़ा रहन दो म्यान।।
उत्तर
प्रसंग– प्रस्तुत दोहा कबीरदास जी द्वारा रचित है जो साखी से उद्धृत है। इस दोहे में उन्होंने बताया है कि किसी व्यक्ति की महानता उसकी जाति, वंश या बाहरी पहचान से नहीं, बल्कि उसके ज्ञान, चरित्र और आचरण से मापी जानी चाहिए।
व्याख्या- कबीरदास जी कहते हैं कि साधु या किसी भी ज्ञानी व्यक्ति से उसकी जाति नहीं पूछनी चाहिए, क्योंकि उसका ज्ञान ही उसकी असली पहचान है। जैसे तलवार का मूल्य उसकी तेज धार से आँका जाता है, न कि बाहरी म्यान से, उसी प्रकार साधु की जाति केवल बाहरी आवरण है और उसका ज्ञान ही उसकी वास्तविक शक्ति व महत्त्व है।
(iv) अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।
अति का भला न बरसना, अति की भली धूप।।
उत्तर
प्रसंग– प्रस्तुत दोहा कबीरदास जी द्वारा रचित है जो साखी से उद्धृत है। इस दोहे में उन्होंने जीवन में संतुलन बनाए रखने की बात कही है।
व्याख्या- कबीरदास जी कहते हैं कि किसी भी चीज़ का ज़्यादा होना हानिकारक होता है। अगर कोई बहुत ज़्यादा बोलता है, तो उसकी बातों का महत्त्व खत्म हो जाता है। अगर कोई हमेशा चुप रहता है, तो वह अपनी बात नहीं कह पाता। वैसे ही ज़्यादा बारिश बाढ़ लाती है और ज़्यादा धूप गर्मी और परेशानी देती है। इसलिए हमें हर काम में संतुलन रखना चाहिए, न ज़्यादा, न बहुत कम।
(v) माला तो कर में फिरै, जीभ फिरै मुख मांहि।
मनुवा तौ चहुँ दिशि फिरै, यह तो सुमिरन नांहि।।
उत्तर
प्रसंग- प्रस्तुत दोहा कबीरदास जी द्वारा रचित है जो साखी से उद्धृत है। इस दोहे में कबीरदास जी ने दिखावटी धार्मिकता को त्यागकर ईश्वर का सच्चा सुमिरन करने का महत्त्व समझाने का प्रयास किया है।
व्याख्या- कबीरदास जी कहते हैं कि हाथ में माला फेरना और जीभ से भगवान का नाम जपना तभी सार्थक है जब मन भी पूरी तरह ईश्वर में लगा हो। यदि मन चारों दिशाओं में भटकता रहे अर्थात् इच्छाओं, लालसाओं, और चिंताओं में उलझा रहे तो बाहरी जप केवल एक क्रिया बनकर रह जाता है। इसे सच्चा सुमिरन नहीं कहा जा सकता। वास्तविक भक्ति वही है जिसमें मन, वचन और कर्म तीनों एक साथ ईश्वर की ओर समर्पित हों। कबीर हमें भीतर की एकाग्रता, मन की स्थिरता और वास्तविक आध्यात्मिकता की सीख देते हैं।
(ख) भाषा-बोध
निम्नलिखित शब्दों का वर्ण विच्छेद कीजिए-
शब्द वर्ण-विच्छेद
बराबर ब् + अ + र् + आ + ब् + अ+र्+अ
भोजन ____________________
पंडित ____________________
म्यान ____________________
बरसना ____________________
उत्तर-
| शब्द | वर्ण-विच्छेद |
| बराबर | ब् + अ + र् + आ + ब् + अ+र्+अ |
| भोजन | भ् + ओ + ज् + अ + न् + अ |
| पंडित | प् + अं + ड् + इ + त् + अ |
| म्यान | म् + य् + आ + न् + अ |
| बरसना | ब् + अ + र् + अ + स् + अ + न् + आ |
PSEB Class 9 Hindi Lesson 1 कबीर दोहावली सार-आधारित प्रश्न (Extract Based Questions)
निम्नलिखित दोहों को ध्यानपूर्वक पढ़िए व प्रश्नों के उपयुक्त उत्तर दीजिये-
1
साच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदे साच है, ताके हिरदे आप।।
साधू भूखा भाव का धन का भूखा नाहिं।
धन का भूखा जी फिरै, सो तो साधू नाहिं।।
1.कबीर के अनुसार सबसे बड़ा तप क्या है?
(क) दान करना
(ख) पूजा-पाठ करना
(ग) सत्य बोलना
(घ) उपवास करना
उत्तर– (ग) सत्य बोलना
2. सच्चा साधु किसका भूखा होता है?
(क) प्रेम और भाव का
(ख) धन-दौलत का
(ग) नाम और प्रसिद्धि का
(घ) वस्त्र और भोजन का
उत्तर- (क) प्रेम और भाव का
3. “धन का भूखा जी फिरै, सो तो साधू नाहिं” का क्या अर्थ है?
(क) धन कमाना ही साधु का धर्म है
(ख) जो धन के लिए घूमे, वह साधु नहीं
(ग) साधु को हमेशा भिक्षा लेनी चाहिए
(घ) साधु को कभी यात्रा नहीं करनी चाहिए
उत्तर- (ख) जो धन के लिए घूमे, वह साधु नहीं
4. सच्चा साधु धन का भूखा क्यों नहीं होता?
उत्तर– कबीरदास जी के अनुसार सच्चा साधु धन, वैभव या सुविधाओं की इच्छा नहीं रखता क्योंकि वह केवल भाव, भक्ति और प्रेम का इच्छुक होता है।
5. कबीरदास जी उपर्युक्त दोहों के माध्यम से मनुष्य को क्या संदेश देना चाहते हैं?
उत्तर– इन दोहों के माध्यम से कबीरदास जी मनुष्य को दो प्रमुख संदेश देते हैं—पहला, हमेशा सत्य का पालन करें क्योंकि सत्य ही सबसे बड़ा तप है और झूठ सबसे बड़ा पाप। दूसरा, साधु का असली मूल्य उसके भाव, भक्ति और सरलता में है, न कि धन में। मनुष्य को लालच छोड़कर सत्य, भक्ति और ईमानदारी का जीवन अपनाना चाहिए।
2
जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय।
जैसा पानी पीजिये, तैसी बाणी होय।।
संत ना छाड़ संतई, जो कोटक मिले असंत।
चंदन भुवंगा बैठिया, तऊ सीतलता न तजंत।।
1.निम्नलिखित में से ‘सर्प’ का पर्यायवाची शब्द है-
(क) गज
(ख) कुंजर
(ग) मतंग
(घ) भुजंग
उत्तर– (घ) भुजंग
2. कबीर के अनुसार सच्चा संत कब अपने स्वभाव को नहीं छोड़ता?
(क) जब उसे सम्मान मिले
(ख) जब वह जंगल में हो
(ग) जब उसे असंत लोगों का साथ मिले
(घ) जब वह अकेला हो
उत्तर- (ग) जब उसे असंत लोगों का साथ मिले
3. “चंदन भुवंगा बैठिया…” में चंदन किसका प्रतीक है?
(क) संत या सज्जन व्यक्ति
(ख) क्रोध
(ग) धन
(घ) दुःख
उत्तर– (क) संत या सज्जन व्यक्ति
4. कबीरदास जी भोजन और मन के संबंध को कैसे समझाते हैं?
उत्तर- कबीरदास जी बताते हैं कि मनुष्य जैसा भोजन करता है, वैसा ही उसका मन, स्वभाव और विचार बनते हैं। शुद्ध, सात्त्विक और हल्का भोजन मन को शांत, विवेकपूर्ण और सकारात्मक बनाता है, जबकि अशुद्ध या तामसिक भोजन मन में अस्थिरता, क्रोध और नकारात्मकता पैदा करता है। इसलिए वह कहते हैं कि मन की पवित्रता भोजन की पवित्रता से जुड़ी होती है।
5. “संत ना छाड़ संतई…” दोहे का मूल संदेश क्या है?
उत्तर– इस दोहे का संदेश है कि सच्चा संत कभी अपनी अच्छाई, सरलता और शांत स्वभाव को नहीं छोड़ता, चाहे वह कितने भी दुष्ट या नकारात्मक लोगों के बीच क्यों न हो। जैसे चंदन के वृक्ष पर विषैला सर्प बैठ जाए, फिर भी चंदन अपनी शीतलता और सुगंध नहीं छोड़ता। इसी तरह संत की अच्छाई बाहरी बुराइयों से प्रभावित नहीं होती।
3
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित हुआ न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़ें सु पंडित होय।।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।
1.“ढाई आखर प्रेम का…” में कबीर किसे सच्चा पंडित मानते हैं?
(क) जो बहुत ग्रंथ पढ़े
(ख) जो प्रेम का अर्थ समझे
(ग) जो बहस करे
(घ) जो धनवान हो
उत्तर- (ख) जो प्रेम का अर्थ समझे
2. “बुरा जो देखन मैं चला…” दोहे के अनुसार सबसे अधिक बुराई कहाँ पाई गई?
(क) पड़ोसियों में
(ख) समाज में
(ग) स्वयं के अंदर
(घ) मित्रों में
उत्तर– (ग) स्वयं के अंदर
3. ‘आखर’ का तत्सम शब्द है-
(क) अक्षर
(ख) अखबार
(ग) निरक्षर
(घ) साक्षर
उत्तर– (क) अक्षर
4. ‘प्रेम’ का विपरीत शब्द होगा-
(क) भाव
(ख) स्नेह
(ग) लज्जा
(घ) घृणा
उत्तर– (घ) घृणा
5. कबीरदास जी पुस्तक पढ़ने और प्रेम सीखने में क्या अंतर बताते हैं?
उत्तर- कबीरदास जी कहते हैं कि केवल पुस्तकें पढ़ने से मनुष्य सच्चा ज्ञानी नहीं बनता, क्योंकि बाहरी ज्ञान हृदय में विनम्रता और करुणा नहीं ला सकता। इसके विपरीत, यदि मनुष्य प्रेम के ढाई अक्षर दया, करुणा और मानवता को समझ ले, तो वह वास्तविक पंडित कहलाता है।
4
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय ।।
जातिना पूछो साधु की पूछ लीजिये ज्ञान।
मोल करो तरवार का पड़ा रहन दो म्यान।।
1.”धीरे-धीरे रे मना…” साखी का मुख्य संदेश क्या है?
(क) जल्दी करने से सफलता मिलती है
(ख) धैर्य और सही समय का महत्त्व
(ग) दूसरों पर निर्भर रहना
(घ) कठोरता से काम लेना
उत्तर- (ख) धैर्य और सही समय का महत्त्व
2. “जाति ना पूछो साधु की” में तलवार की किस बात को महत्त्व दिया गया है?
(क) उसकी लंबाई
(ख) उसकी म्यान
(ग) उसकी धार
(घ) उसका रंग
उत्तर– (ग) उसकी धार
3. ‘म्यान’ शब्द का अर्थ क्या है?
(क) जिसमें तलवार रखते हैं
(ख) जिसमें घड़ा रखते हैं
(ग) जिससे पानी पीते हैं
(घ) जिससे पौधे सींचते हैं
उत्तर- (क) जिसमें तलवार रखते हैं
4. ‘धीरे-धीरे रे मना…..’ साखी में कबीर धैर्य को क्यों आवश्यक बताते हैं?
उत्तर– कबीर कहते हैं कि जीवन में हर कार्य समय के अनुसार ही पूर्ण होता है। कोई व्यक्ति चाहे कितना भी प्रयास कर ले, पर परिणाम उचित समय पर ही मिलते हैं। जैसे माली यदि पेड़ को सौ घड़े पानी दे, तब भी फल तो ऋतु आने पर ही लगते हैं। इसलिए मन को धैर्यवान रखना ही सफलता का मूल है।
5. ‘जाति न पूछो साधु की’ में ज्ञान को म्यान और तलवार के उदाहरण से कैसे समझाया गया है?
उत्तर– कबीरदास बताते हैं कि साधु की जाति पूछना व्यर्थ है, क्योंकि उसकी असली पहचान उसका ज्ञान है। तलवार की कीमत म्यान से नहीं, बल्कि उसकी धार से आँकी जाती है। उसी प्रकार व्यक्ति का मूल्य उसकी बाहरी जाति से नहीं, बल्कि उसके भीतर के गुण, ज्ञान और चरित्र से निर्धारित होता है।
PSEB Class 9 Hindi Lesson 1 कबीर दोहावली बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)
1.“साच बराबर तप नहीं” दोहे में ‘साच’ का अर्थ है-
(क) तपस्या
(ख) झूठ
(ग) सच
(घ) पाप
उत्तर– (ग) सच
2. झूठ को कबीरदास किसके समान बताते हैं?
(क) तप
(ख) पाप
(ग) दया
(घ) ज्ञान
उत्तर- (ख) पाप
3. जिस हृदय में सच होता है, वहाँ किसका वास माना गया है?
(क) गुरु/ईश्वर का
(ख) क्रोध का
(ग) धन का
(घ) मोह का
उत्तर- (क) गुरु/ईश्वर का
4. “साधू भूखा भाव का” का अर्थ है-
(क) साधु धन चाहता है
(ख) साधु भक्ति और प्रेम चाहता है
(ग) साधु यश चाहता है
(घ) साधु आराम चाहता है
उत्तर- (ख) साधु भक्ति और प्रेम चाहता है
5. “धन का भूखा जी फिरै, सो तो साधू नाहिं” का आशय है-
(क) धन मांगना अच्छा है
(ख) साधु को धन संग्रह करना चाहिए
(ग) धन के लोभी को साधु नहीं कहा जा सकता
(घ) साधु का काम व्यापार है
उत्तर– (ग) धन के लोभी को साधु नहीं कहा जा सकता
6. “जैसा भोजन खाइये तैसा ही मन होय” का संदेश है-
(क) भोजन और मन का कोई संबंध नहीं
(ख) भोजन मन को प्रभावित करता है
(ग) भोजन केवल शरीर पर असर करता है
(घ) भोजन व्यर्थ है
उत्तर- (ख) भोजन मन को प्रभावित करता है
7. “संत ना छाड़ संतई” का आशय है कि संत-
(क) अपना स्वभाव बदल लेते हैं
(ख) भीड़ में खो जाते हैं
(ग) किसी भी परिस्थिति में अपनी अच्छाई नहीं छोड़ते
(घ) असंतों के साथ रहते हैं
उत्तर– (ग) किसी भी परिस्थिति में अपनी अच्छाई नहीं छोड़ते
8. चंदन पर भुवंग (सर्प) बैठने पर भी चंदन-
(क) जहरीला हो जाता है
(ख) टूट जाता है
(ग) सूख जाता है
(घ) अपनी सुगंध और शीतलता नहीं छोड़ता
उत्तर- (घ) अपनी सुगंध और शीतलता नहीं छोड़ता
9. “पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा” का तात्पर्य है-
(क) पढ़ना बेकार है
(ख) किताबें जलानी चाहिए
(ग) केवल पढ़ने से व्यक्ति विद्वान नहीं बनता
(घ) पोथियाँ कठिन होती हैं
उत्तर- (ग) केवल पढ़ने से व्यक्ति विद्वान नहीं बनता
10. कबीर के अनुसार असंतों के बीच भी संत क्यों नहीं बदलते?
(क) डर के कारण
(ख) मजबूरी से
(ग) क्योंकि उनका स्वभाव स्थिर और पवित्र रहता है
(घ) अभिमान के कारण
उत्तर- (ग) क्योंकि उनका स्वभाव स्थिर और पवित्र रहता है
11. “बहुरि करैगो कब्ब” का आशय-
(क) कल फिर अवसर मिलेगा
(ख) काम करने को समय नहीं मिलेगा
(ग) और समय है
(घ) आराम करो
उत्तर- (ख) काम करने को समय नहीं मिलेगा
12. “काल्ह करै सो आज कर” किस पर जोर देता है?
(क) समय पर काम करना
(ख) आलस करना
(ग) काम टालना
(घ) प्रतीक्षा करना
उत्तर– (क) समय पर काम करना
13. “माला तो कर में फिरै” में क्या व्यर्थ माना गया है?
(क) जप
(ख) मन की एकाग्रता
(ग) ध्यान
(घ) बिना मन के किया गया सुमिरन
उत्तर- (घ) बिना मन के किया गया सुमिरन
14. “अति का भला न बोलना” का संदेश है-
(क) ज़्यादा बोलना अच्छा है
(ख) चुप रहना सबसे अच्छा है
(ग) संतुलन जरूरी है
(घ) धूप अच्छी है
उत्तर- (ग) संतुलन जरूरी है
15. “कबीर तन पंछी भया” क्या दर्शाता है?
(क) शरीर कमजोर है
(ख) मनुष्य का शरीर मन की दिशा में चलता है
(ग) मनुष्य उड़ सकता है
(घ) पक्षी श्रेष्ठ हैं
उत्तर- (ख) मनुष्य का शरीर मन की दिशा में चलता है
16. तलवार का मूल्य किससे आँका जाता है?
(क) म्यान से
(ख) उसकी लंबाई से
(ग) उसकी धार से
(घ) उसके रंग से
उत्तर– (ग) उसकी धार से
17. पेड़ को सौ घड़े पानी देने पर भी फल कब लगता है?
(क) ऋतु आने पर
(ख) अगले दिन
(ग) तुरंत
(घ) जब चाहे
उत्तर- (क) ऋतु आने पर
18. इस दोहे का मुख्य संदेश क्या है- “जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय”?
(क) दूसरों की आलोचना करनी चाहिए
(ख) खुद को सुधारना जरूरी है
(ग) दुनिया बुरी है
(घ) बुराई खोजो
उत्तर– (ख) खुद को सुधारना जरूरी है
19. “बुरा जो देखन मैं चला” में कवि ने किसे सबसे बुरा पाया?
(क) पड़ोसी
(ख) दोस्त
(ग) गुरु को
(घ) स्वयं को
उत्तर- (घ) स्वयं को
20. कबीर के अनुसार असली पंडित कौन है?
(क) जो बहुत पोथियाँ पढ़े
(ख) जो प्रेम के ढाई अक्षर समझ ले
(ग) जो बहस करे
(घ) जो धनवान हो
उत्तर– (ख) जो प्रेम के ढाई अक्षर समझ ले
PSEB Class 9 Hindi कबीर दोहावली प्रश्न और उत्तर (Extra Question Answers)
1. ‘जाति नहीं, ज्ञान महत्वपूर्ण है’- कबीर इस बात को कैसे स्पष्ट करते हैं?
उत्तर– कबीर कहते हैं कि व्यक्ति की जाति उसके बाहरी आवरण ‘म्यान’ के समान है, जिसका वास्तविक मूल्य नहीं है। असली मूल्य उसके ज्ञान, विचारों और चरित्र का होता है, जो तलवार की तेज धार की तरह प्रभावी और उपयोगी होता है।
2. धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय ।। – दोहे का आधुनिक जीवन में क्या महत्व है?
उत्तर– आज की तेज़ जीवनशैली में लोग तुरंत परिणाम चाहते हैं, पर कबीर का यह संदेश आज भी उतना ही प्रभावीहै। हर कार्य अपने समयानुसार ही फल देता है। जल्दबाज़ी में अक्सर गलतियाँ या निराशा मिलती है। सफलता धैर्य, निरंतर प्रयास और प्रतीक्षा के संयोजन से मिलती है। इसलिए यह दोहा धैर्य का महत्व सिखाता है।
3. आत्मचिंतन को कबीर क्यों आवश्यक बताते हैं?
उत्तर- कबीर कहते हैं कि मनुष्य दूसरों की बुराई ढूँढने में अपना समय नष्ट करता है, जबकि वास्तविक सुधार स्वयं के भीतर झाँककर ही संभव है। जब व्यक्ति अपने दोषों को पहचानता है तभी वह सच्चे सुधार के मार्ग पर चलता है। आत्मचिंतन मनुष्य को विनम्र, जागरूक और बेहतर बनने की प्रेरणा देता है।
4. कबीर प्रेम को ‘ढाई आखर’ क्यों कहते हैं?
उत्तर– कबीर कहते हैं कि प्रेम के ढाई अक्षर ही वास्तविक ज्ञान का आधार हैं। बड़ी-बड़ी पुस्तकों का अध्ययन भी व्यर्थ है यदि व्यक्ति प्रेम का भाव नहीं समझता। प्रेम मनुष्य को विनम्र, सहृदय और उदार बनाता है। प्रेम का रास्ता ईश्वर तक पहुँचने का सबसे सरल और श्रेष्ठ मार्ग माना गया है।
5. संत और असंत की संगति का प्रभाव क्या होता है?
उत्तर- कबीर उदाहरण देते हैं कि चंदन के वृक्ष पर साँप बैठा होता है, फिर भी चंदन अपनी सुगंध और शीतलता नहीं खोता। इसका अर्थ है कि सच्चा संत चाहे कितने भी बुरे वातावरण में रहे, अपने आदर्शों, शांति और भलाई को नहीं छोड़ता। इसके विपरीत, असंत अपने नकारात्मक स्वभाव से दूसरों को प्रभावित करता है। इस प्रकार संगति का प्रभाव गहरा होता है।
6. भोजन और मन के संबंध को कबीर किस रूप में प्रस्तुत करते हैं?
उत्तर– कबीर कहते हैं कि भोजन केवल शरीर को ही नहीं, बल्कि मन और विचारों को भी प्रभावित करता है। सात्त्विक भोजन मन को शांत, सकारात्मक और संतुलित बनाता है। तामसिक या अशुद्ध भोजन मन में भ्रम, क्रोध और बेचैनी उत्पन्न करता है।
7. ‘माला तो कर में फिरै’ दोहे में सच्चे सुमिरन की पहचान क्या है?
उत्तर– कबीर कहते हैं कि हाथ से माला फेरना और जीभ से नाम जपना तभी अर्थपूर्ण है जब मन भी ईश्वर में स्थिर हो। यदि मन इच्छाओं और चिंताओं में भटकता रहे तो यह केवल बाहरी क्रिया बनकर रह जाता है। सच्चा सुमिरन वही है जिसमें मन, वचन और कर्म तीनों ईश्वर की ओर समर्पित हों। मन की एकाग्रता ही भक्ति का मूल है।
8. कबीर के अनुसार ‘कौन व्यक्ति सच्चा साधु नहीं है’?
उत्तर– कबीर कहते हैं कि जो व्यक्ति साधु के वेश में रहकर भी धन, उपहार और लोभ की तलाश में घूमता रहता है, वह सच्चा साधु नहीं है। साधु का जीवन त्याग, शुद्धता और निस्वार्थ भाव का प्रतीक होता है। यदि कोई व्यक्ति लालच और भौतिक वस्तुओं में फँसा है, तो वह भले ही वेश से साधु लगे, पर वास्तव में साधु नहीं माना जा सकता।
9. ‘बुरा जो देखन मैं चला’ दोहे से आत्मचिंतन का क्या महत्त्व समझ में आता है?
उत्तर– कबीर कहते हैं कि मनुष्य दूसरों की बुराइयाँ खोजने में लगा रहता है, जबकि वास्तविक दोष उसके अपने भीतर होते हैं। जब उसने अपने हृदय को टटोला, तो पाया कि सबसे अधिक गलतियाँ स्वयं में ही छिपी हैं। इस दोहे का संदेश है कि आलोचना करने से पहले व्यक्ति को अपनी कमियों को पहचानना चाहिए और उन्हें सुधारना चाहिए। आत्मचिंतन ही सच्चे ज्ञान और सुधार का मार्ग है।
10. ‘जातिना पूछो साधु की’ दोहे से सामाजिक समानता का क्या संदेश मिलता है?
उत्तर– कबीर इस दोहे में बताते हैं कि किसी साधु या ज्ञानी व्यक्ति की जाति नहीं पूछनी चाहिए क्योंकि उसका ज्ञान ही उसकी असली पहचान है। जैसे तलवार का मूल्य उसकी धार से आँका जाता है, न कि उसकी म्यान से, वैसे ही किसी व्यक्ति की सद्गुण, चरित्र और ज्ञान ही महत्वपूर्ण हैं।