श्री गुरु नानक देव जी पाठ सार
PSEB Class 10 Hindi Book Chapter 17 “Shri Guru Nanak Dev Ji” Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings
श्री गुरु नानक देव जी सार – Here is the PSEB Class 10 Hindi Book Chapter 17 Shri Guru Nanak Dev Ji Summary with detailed explanation of the lesson “Shri Guru Nanak Dev Ji” along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary
इस पोस्ट में हम आपके लिए पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड कक्षा 10 हिंदी पुस्तक के पाठ 17 श्री गुरु नानक देव जी पाठ सार, पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 10 श्री गुरु नानक देव जी पाठ के बारे में जानते हैं।
Shri Guru Nanak Dev Ji (श्री गुरु नानक देव जी)
डॉ. सुखविन्दर कौर बाठ
प्रस्तुत पाठ में इन्होंने ‘श्री गुरु नानक देव जी के जीवन चरित्र का वर्णन किया है। गुरु जी एक ऐसे अवतारी पुरुष, सन्त, विचारक थे, जिन्होंने मध्यकाल के कालिमापूर्ण वातावरण में पंजाब के लोगों को सच्चे ज्ञान व मार्ग का उपदेश देकर उनका उद्धार किया था उनका समूचा जीवन ही हमारे लिए आदर्शों का स्रोत है। उनके व्यवहार में जहाँ मानवता झलकती थी, वहीं उनके उपदेशों में साक्षात् करुणशील भगवान के दर्शन होते थे। उनकी वाणी में जहाँ जीवन, समाज और अध्यात्म की विस्तृत व्याख्या मिलती है, वहीं विभिन्न रंगों के माध्यम से अद्भुत संगीत रस की मधुर ध्वनि झंकृत होती है। प्रस्तुत निबंध उनके जीवन और वाणी की अद्भुत विशेषताओं पर प्रकाश डालता है।
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श्री गुरु नानक देव जी पाठ सार Shri Guru Nanak Dev Ji Summary
‘श्री गुरु नानक देव जी’ नामक लेख में लेखिका सुखविंदर कौर बाठ ने अवतारी महापुरुष श्री गुरु नानक देव जी के जीवन के अलग-अलग पक्षों को हमारे समक्ष रखने की सफल कोशिश की है। उन्होंने श्री गुरु नानक देव जी के द्वारा दिए गए उपदेशों को मानवता के लिए हितकारी माना है।
लेखिका बताती हैं कि जब श्री गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ उस समय देश की दशा बहुत खराब थी। लोग अनेक बुराइयों में फंसे हुए थे और जातियों, धर्मों, सम्प्रदायों आदि में बंट गए थे। समाज पुरानी रूढ़ियों तथा आडंबरों से ग्रस्त था। राजाओं की लूटमार से जनता बहुत दुखी हो रही थी। ऐसे समय में लोगों की पुकार सुनकर परमात्मा ने दुनिया का सुधार करने के लिए गुरु नानक देव जी को इस संसार में भेजा जिस पर भाई गुरदास जी लिखते हैं कि धरती की पुकार सुनकर परमात्मा ने गुरु नानक साहिब को भेजा ताकि धरती पर रहने वाले मनुष्य परमात्मा से जुड़ें व उनके सभी दुःख व् पीड़ा दूर हो जाए। गुरु नानक देव जी ने अपनी कोमल वाणी और सरल व्यवहार से सब को अपने वश में करके सही मार्ग पर चलने का रास्ता दिखाया।
श्री गुरु नानक देव जी ने पंजाब में भक्ति-आंदोलन को प्रारंभ किया था। श्री गुरु नानक देव जी का जन्म शेखूपुरा जिले के तलवंडी गांव (वर्तमान में पाकिस्तान का हिस्सा) में सन् 1469 ई० को हुआ था। उनके पिता का नाम श्री मेहता कालू जी तथा माता का नाम तृप्ता देवी जी था। उनकी एक बहन थी जिसका नाम नानकी था। उन्होंने मौलवी सैय्यद हुसैन और पंडित ब्रजनाथ से भी शिक्षा प्राप्त की। छोटी-सी आयु में ही उन्होंने पंजाबी, अरबी, फारसी, संस्कृत आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। श्री गुरु नानक देव जी की संसार के प्रति विरक्ति को देखते हुए उनके पिता ने गृहस्थ में बांधने के लिए उनका विवाह माता सुलक्खनी जी से कर दिया। श्री गुरु नानक देव जी की दो सन्तानें लखमीदास और श्री चन्द थीं। श्री गुरु नानक देव जी के पिता ने उन्हें सांसारिक व्यापारों में लगाना चाहा लेकिन उनका मन उसमें नहीं लगा। श्री गुरु नानक देव जी अठारह वर्षों तक अनेक मतों को मानने वाले साधुओं की संगति में रहे। उनसे उन्होंने भारतीय धर्म शास्त्रों की शिक्षा प्राप्त की। इसी समय के दौरान उन्होंने बीस रुपए से भूखे साधुओं को खाना खिला कर सच्चा सौदा किया।
सुल्तानपुर में रहते हुए श्री गुरु नानक देव जी को शासन के अत्याचारों, धार्मिक आडंबरों, कर्मकांडों, अंधविश्वासों आदि का पता चला तो बहुत व्याकुल हो गए। उन्होंने वेई नदी में प्रवेश कर के तीन दिन तक आलोप रहे। जब वे प्रकट हुए तो उन्होंने अपना विचार रखा ‘न कोई हिन्दू न मुसलमान।’
श्री गुरु नानक देव जी ने सन् 1499 ई० से 1522 ई० तक चार उदासियाँ अर्थात् चार यात्रायें चारों दिशाओं में आसाम, लंका, ताशकंद, मक्का-मदीना आदि तक की थीं। इन यात्राओं में उन्होंने सही रास्ते से भटके हुए सभी वर्ग के लोगों को सही मार्ग पर चलने का उपदेश दिया था। योगियों, सिद्धों, नेताओं, हिंदुओं और मुसलमानों सब को श्री गुरु नानक देव जी ने सहज, सरल और मीठी निरंकारी भाषा से सहज धर्म पालन करने का उपदेश दिया। गुरु नानक देव जी ने इस्लामी देशों में यात्राओं के द्वारा मानव धर्म की शिक्षा दी। लगभग बाईस वर्ष गुरु नानक देव जी सम्पूर्ण विश्व में घूम-घूम कर मानव धर्म का उपदेश देते रहे और अपने जीवन के अंतिम क्षणों में करतारपुर में खेती-बड़ी करते हुए गृहस्थ जीवन व्यतीत किया परन्तु धार्मिक उपदेश वे अंत तक देते रहे। गुरु नानक देव जी ने केवल लोगों को सत्य बताया या समझाया और लोगों के मन से छोटे विचार और आडंबर अपने आप ही कम होते चले गए।
गुरु नानक देव जी के जीवन से जुड़े हुए बहुत से चमत्कारों का वर्णन भी मिलता है जैसे मक्का मदीना में मक्का को घुमा देना, वली कंधारी का अहंकार तोड़ना, गिरते हुए पहाड़ को हाथ का पंजा लगाकर गिरने से रोक देना, कड़वे रीठे मीठे कर देना इत्यादि।
गुरु नानक देव जी एक महान कवि तथा संगीत के आचार्य भी थे। उनकी वाणी सिक्खों के धार्मिक ग्रन्थ श्री गुरु ग्रन्थ साहिब’ में संकलित है।’ श्री गुरु ग्रन्थ साहिब’ में 974 पद और श्लोक गुरु नानक देव जी द्वारा रचित हैं। इनमें बहुत से अलग-अलग विषयों की चर्चा की गई है। श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में मुख्य 31 राग हैं और उनमें उन्नीस का प्रयोग गुरु नानक देव जी ने अपनी वाणी में किया है। गुरु नानक देव जी ने प्रातः कालीन प्रार्थना के लिए ‘जपुजी’ की रचना की, जो वर्तमान में आज सिक्ख सिद्धांतों का सार कही जा सकती है। गुरु नानक देव जी ने सिक्ख सम्प्रदाय को फलित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
अपने समय के कर्मकांडों,अत्यधिक संख्या में देवताओं की पूजा करने वालों को देखते हुए गुरु नानक देव जी ने एक परमेश्वर की पूजा करने का उपदेश दिया। संसार को एक ऐसा नया दृष्टिकोण देने के कारण गुरु नानक देव जी विश्व प्रसिद्ध संसार के सुधारक कहलाए, जो संसार के लोगों की नीची सोच और आपसी ईर्ष्या, द्वेष और नफरत से बिलकुल अलग और अनछुआ था। गुरु नानक देव जी का प्रेम, समानता, सरलता आदि का उपदेश ही उस एक बड़े धर्म का बीज बना जो आगे चलकर सिक्ख धर्म के नाम से प्रसिद्ध हुआ। सन् 1539 में गुरु नानक देव जी ज्योति-ज्योत समा गए। अर्थात सन् 1539 में गुरु नानक देव जी परमात्मा में विलीन हो गए।
श्री गुरु नानक देव जी पाठ व्याख्या Shri Guru Nanak Dev Ji Lesson Explanation

पाठ – जब गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ तब भारत अनेक प्रकार के कुसंस्कारों से ग्रस्त था। तत्कालीन समाज की राजनैतिक, सामाजिक तथा आर्थिक दशा बहुत शोचनीय थी। उस समय के राजा शोषक का रूप धारण कर चुके थे। समाज अनेक जातियों, संप्रदायों और धर्मों में विभाजित हो चुका था। धार्मिक तौर पर पाखंडों, अंधविश्वासों तथा कर्मकांडों का बोलबाला था। ऊँच-नीच और छुआछूत का जहर भारतीय लोगों की नस-नस में फैल चुका था तथा राजाओं की लूटमार से जनता कराह रही थी। ऐसे समय में लोगों की पुकार सुनकर परमात्मा ने दुनिया का सुधार करने के लिए गुरु नानक देव जी को इस संसार में भेजा जिस पर भाई गुरदास जी लिखते हैं:
सुनी पुकार दातार प्रभु,
गुरु नानक जाग माहि पठाया।’
शब्दार्थ –
कुसंस्कार – बुरी आदत
ग्रस्त – पीड़ित, प्रभावित
तत्कालीन – उस समय या उसी समय का
शोचनीय – चिंताजनक
शोषक – शोषण करने वाला व्यक्ति
छुआछूत – अस्पृश्यता
नस-नस – प्रत्येक हिस्से में
कराह – पीड़ा में निकलने वाली तीखी आह
व्याख्या – गुरु नानक देव जी का बखान करते हुए लेखक कहता है कि जब गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था उस समय भारत या भारत के लोग कई तरह की बुरी आदतों के गिरफ़्त में थे। उस समय के समाज की राजनैतिक, सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति बहुत चिंताजनक थी। उस समय के राजा शोषण करने वाले किसी व्यक्ति का रूप धारण कर चुके थे। अर्थात उस समय के राजा जनता के हित व् कल्याण के लिए नहीं बल्कि अपने स्वार्थ के लिए जीते थे। उस समय समाज अनेक जातियों, संप्रदायों और धर्मों में विभाजित हो चुका था। अर्थात उस समय लोग जाति, सम्प्रदाय, धर्म आदि में बँट चुके थे। धार्मिक तौर पर पाखंडों, अंधविश्वासों तथा कर्मकांडों को अत्यधिक महत्त्व दिया जा रहा था। ऊँच-नीच और अस्पृश्यता का जहर भारतीय लोगों के हर हिस्से में फैल चुका था तथा राजाओं की लूटमार से जनता बहुत दुखी हो रही थी। ऐसे समय में लोगों की पुकार सुनकर परमात्मा ने दुनिया का सुधार करने के लिए गुरु नानक देव जी को इस संसार में भेजा जिस पर भाई गुरदास जी लिखते हैं कि
‘सुनी पुकार दातार प्रभु,
गुरु नानक जाग माहि पठाया।’
अर्थात धरती की पुकार सुनकर परमात्मा ने गुरु नानक साहिब को भेजा ताकि धरती पर रहने वाले मनुष्य परमात्मा से जुड़ें व उनके सभी दुःख व् पीड़ा दूर हो जाए।
पाठ – ऐसी महान विभूति पंजाब के भक्ति आंदोलन के प्रवर्त्तक तथा पतनोन्मुखी तत्कालीन समाज के पथ-दर्शक गुरु नानक देव जी का जन्म जिला शेखपुरा के तलवंडी (अब पाकिस्तान) गाँव में कार्तिक पूर्णिमा को सन् 1469 ई. में हुआ था तलवंडी गाँव अब ननकाना साहिब के नाम से प्रसिद्ध है। जन्म से क्षत्रिय, प्रकृति से भ्रमणशील, कर्म से शील, चतुर्दिक ज्ञान के भंडार, उदात्त भावनाओं के सागर, आध्यात्मिक पथ के अविचलित पथिक गुरु नानक देव महान व्यक्तित्व लेकर संसार में आए। आपके पिता का नाम मेहता कालू व माता का नाम तृप्ता था। आपकी बहन बीबी नानकी जी भी महान व्यक्तित्व वाली थी। आप बचपन से ही आध्यात्मिक विचारों के थे। आपका बचपन हरियाली से घिरी हुई तलवंडी में बीता। सात वर्ष की आयु में आपको गाँव की पाठशाला पढ़ने के लिए भेजा गया परंतु आपने आध्यात्मिक विचारों से अपने अध्यापक को प्रभावित किया। आधुनिक इतिहासकारों के अनुसार आपको एक मौलवी सैयद हुसैन और एक पंडित बृजनाथ ने भी शिक्षा दी। आपने छोटी आयु में ही पंजाबी, फारसी, हिंदी, संस्कृत का ज्ञान प्राप्त कर लिया। परंतु ये शिक्षा आपके लिए अल्प थी। इसलिए और ज्ञान के लिए आपने अनुभवी साधुओं से मेल-मिलाप बढ़ाया, ताकि मन की पिपासा शांत हो सके। मेहता कालू ने आपको दुनियावी तौर पर जीविकोपार्जन के कार्यों में जैसे कृषि कार्य, व्यापार आदि में लगाने का यत्न किया परंतु आप इन कार्यों में प्रवृत्त न होकर साधुओं की सेवा में लीन रहे। लगभग अठारह वर्ष की आयु तक आप अनेक मतों के साधुओं की संगति में रहे। इन साधुओं की संगति से आपको भारतीय धर्म, सम्प्रदाय और भारतीय धर्म ग्रंथों व शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त हुआ। इसी काल में आपने भूखे साधुओं को 20 रुपए से खाना खिलाकर सच्ची सेवा व सच्चा सौदा किया। इसी समय में भाई मरदाना (रखाबी) से आपका स्नेह पैदा हुआ जो सदा आपके साथ रहा। आपके पिता जी ने आपकी दुनियावी विरक्ति देखते हुए आपको सांसारिकता में बाँधने के लिए आपकी शादी माता सुलखनी से कर दी। आपके दो सन्तानें हुईं एक का नाम लखमीचन्द व दूसरे का श्री चन्द रखा गया। आपने कुछ समय तक सुलतानपुर में शाही मोदी खाने में नौकरी भी की।
शब्दार्थ –
विभूति – महत्ता, बड़प्पन, दिव्यशक्ति
प्रवर्त्तक – संचालक, आविष्कार करने वाला
पतनोन्मुखी – विनाश, पतन, गिरावट की ओर
चतुर्दिक – चारों ओर
उदात्त भावना – उच्च भावना
अविचलित – अटल
पथिक – बटोही, राहगीर, मुसाफ़िर
पिपासा – तृष्णा, प्यास, किसी चीज़ को पाने की प्रबल इच्छा
जीविकोपार्जन – जीवन-व्यापन हेतु किया जाने वाला व्यवसाय
यत्न – प्रयास
प्रवृत्त – लगना, तत्पर, उन्मुख
विरक्ति – उदासीनता, खिन्नता
व्याख्या – गुरु नानक देव जी के बारे में बताते हुए लेखक कहते हैं कि गुरु नानक देव जी एक महान दिव्यशक्ति थे जो पंजाब के भक्ति आंदोलन के संचालक थे तथा विनाश की ओर जाते हुए उस समय के समाज को सही रास्ता दिखाने वाले थे। गुरु नानक देव जी का जन्म जिला शेखपुरा के तलवंडी (जो अब पाकिस्तान में है) गाँव में कार्तिक पूर्णिमा को सन् 1469 ई. में हुआ था। वर्तमान समय में तलवंडी गाँव अब ननकाना साहिब के नाम से प्रसिद्ध है। गुरु नानक देव जी जन्म से क्षत्रिय थे, स्वभाव से घूमने वाले थे, कर्म से अत्यधिक विनम्र थे, उन्हें हर तरह का ज्ञान था, उच्च भावनाओं से परिपूर्ण थे, आध्यात्मिक पथ के अटल रूप से चलने वाले गुरु नानक देव जी एक महान व्यक्तित्व लेकर इस संसार में आए थे। उनके पिता का नाम मेहता कालू व माता का नाम तृप्ता था। उनकी बहन बीबी नानकी जी भी एक महान व्यक्तित्व वाली महिला थी। गुरु नानक देव जी बचपन से ही आध्यात्मिक विचारों के थे। उनका बचपन हरियाली से घिरी हुई तलवंडी में ही बीता था। सात वर्ष की आयु में उन्हें गाँव की ही पाठशाला में पढ़ने के लिए भेजा गया परंतु उन्होंने वहाँ अपने आध्यात्मिक विचारों से अपने अध्यापक को अत्यधिक प्रभावित किया। आधुनिक इतिहासकारों के अनुसार गुरु नानक देव जी को एक मौलवी सैयद हुसैन और एक पंडित बृजनाथ ने भी शिक्षा दी थी। गुरु नानक देव जी ने छोटी आयु में ही पंजाबी, फारसी, हिंदी, संस्कृत का ज्ञान प्राप्त कर लिया थे। परंतु ये शिक्षा उनके लिए बहुत कम थी। इसलिए और अधिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए उन्होंने अनुभवी साधुओं के साथ अपना मेल-मिलाप बढ़ाया, ताकि अपने मन की ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा को शांत कर सके। मेहता कालू ने गुरु नानक देव जी को दुनिया के आधार पर जीवन-व्यापन हेतु किया जाने वाला व्यवसाय के कार्यों में जैसे कृषि कार्य, व्यापार आदि में लगाने का बहुत प्रयास किया गुरु नानक देव जी इन कार्यों में न लगकर, साधुओं की सेवा में लीन रहे। अर्थात गुरु नानक देव जी को जीवन यापन के कार्यों से अधिक संतुष्टि साधुओं की सेवा में मिलती थी। लगभग अठारह वर्ष की आयु तक वे अनेक मतों के साधुओं की संगति में रहे। इन साधुओं की संगति से उन्हें भारतीय धर्म, सम्प्रदाय और भारतीय धर्म ग्रंथों व शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त हुआ। इसी समय के दौरान गुरु नानक देव जी ने भूखे साधुओं को 20 रुपए से खाना खिलाकर सच्ची सेवा व सच्चा सौदा किया। इसी समय में भाई मरदाना (रखाबी) से उनके स्नेह आरम्भ हुआ जो सदा उनके साथ रहा। गुरु नानक देव जी के पिता जी ने उनकी दुनिया के प्रति विरक्ति देखते हुए उनको सांसारिकता में बाँधने के लिए उनकी शादी माता सुलखनी से कर दी। गुरु नानक देव जी किओ दो सन्तानें हुईं, जिनमें से एक का नाम लखमीचन्द व दूसरे का श्री चन्द रखा गया। गुरु नानक देव जी ने कुछ समय तक सुलतानपुर में शाही मोदी खाने में नौकरी भी की थी। कहने का आशय यह है कि गुरु नानक देव जी के पिता ने गुरु नानक देव जी को सांसारिक बंधनों में बाँधने का भरसक प्रयास किया, ताकि वे दुनिया से विरक्त हो कर साधू न बन जाएं।
पाठ – उस समय सुलतानपुर, सूबे की राजधानी होने के कारण धार्मिक व सांस्कृतिक सरगर्मियों का केंद्र था। यहां रहकर आपको हुकूमत की ज्यादती तथा तत्कालीन समाज के धार्मिक आडंबरों, कर्मकांडों, अन्ध-विश्वासों आदि की गहरी जानकारी प्राप्त हुई। इसके अतिरिक्त आपने भिन्न-भिन्न आध्यात्मिक अवस्थाओं से गिरे हुए बनावटी जीवन को नजदीक से देखा। इन सब चीजों को देखकर आप बहुत विचलित हुए। एक सुबह (1499 ई.) आप देई नदी में स्नान करने गए। इस घटना को इतिहास में ‘वेंई प्रवेश’ के नाम से जाना जाता है। वहाँ आप तीन दिन अलोप रहे इस समय आपको निरंकार परमात्मा से संसार का कल्याण करने के लिए चारों दिशाओं की यात्रा करने का संदेश प्राप्त हुआ। तीन दिन बाद प्रकट होकर आपने यह वाक्य बोला, ‘न कोई हिन्दू न मुसलमान’। इसके साथ ही आप संसार के उद्धार के लिए यात्राओं पर चल पड़े। भाई गुरदास जी आपके इस फैसले के लिए इस प्रकार लिखते हैं-
‘चढ़िया सोधन धरत लुकाई’
आपने 1499 ई. से लेकर 1522 ई. के समय में पूर्व, पश्चिम, उत्तर तथा दक्षिण दिशाओं में चार उदासियां (यात्राएँ) कीं। इन यात्राओं में आपने क्रमशः आसाम, मक्का मदीना, लंका, तथा ताशकन्द तक की यात्राएँ की इसी समय के दौरान ही आपने करतारपुर नगर बसाया। यात्राओं के दौरान ही आपने कई स्थानों पर उचित उपदेश द्वारा भटके हुए जनमानस को सुरुचिपूर्ण मार्ग दर्शाया। कश्मीर विद्वानों का गढ़ था। आपने वहाँ के पंडितों से विचार-विमर्श किया। हिमालय पर योगियों के केंद्र थे। आपने उनको सही धर्म सिखाया तथा योगी सिद्धों को जन सेवा का उपदेश दिया। हिन्दुस्तान में घूमते समय आपका अनेक पीरों-फकीरों, सूफी-संतों के साथ भी तर्क-वितर्क हुआ। मौलवी व मुसलमानों को आपने सही रास्ता दिखाया। इस्लामी देशों में यात्राओं द्वारा आपने ‘सांझे’ धर्म की शिक्षा दी। लगभग बाईस वर्ष आप घूम फिर कर धर्म का प्रचार करते रहे। आपने अपने जीवन के अंतिम वर्ष करतारपुर में गृहस्थ जीवन में रहते हुए खेतीबाड़ी करने के साथ-साथ धार्मिक उपदेश देते हुए व्यतीत किये।
शब्दार्थ –
हुकूमत – शासन, सत्ता
ज्यादती – अत्याचार
विचलित – डांवाडोल
अलोप – एक पेड़ जो सदा हरा रहता है तथा जिसकी लकड़ी चिकनी और मज़बूत होती है
उद्धार – कल्याण
सुरुचिपूर्ण मार्ग – मनभावना (मन को अच्छा लगने वाला) उचित सदमार्ग
‘सांझे’ धर्म – मानव धर्म
व्याख्या – लेखक बताते हैं कि गुरु नानक देव जी के समय सुलतानपुर, सूबे की राजधानी होने के कारण धार्मिक व सांस्कृतिक सरगर्मियों का केंद्र था। यहां रहकर गुरु नानक देव जी को सत्ता या शासन के अत्याचारों तथा उस समय के समाज के धार्मिक आडंबरों, कर्मकांडों, अन्ध-विश्वासों आदि की गहरी जानकारी प्राप्त हुई। इसके अलावा गुरु नानक देव जी ने अलग-अलग आध्यात्मिक अवस्थाओं से घिरे हुए बनावटी जीवन को भी बहुत नजदीक से देखा। इन सब चीजों को देखकर गुरु नानक देव जी बहुत बैचेन हुए। 1499 ई में एक सुबह वे देई नदी में स्नान करने गए। वर्तमान में इस घटना को इतिहास में ‘वेंई प्रवेश’ के नाम से जाना जाता है। वहाँ गुरु नानक देव जी तीन दिन अलोप रहे। इस समय के दौरान गुरु नानक देव जी को निरंकार परमात्मा से संसार का कल्याण करने के लिए चारों दिशाओं की यात्रा करने का संदेश प्राप्त हुआ। तीन दिन बाद प्रकट होकर उन्होंने ‘न कोई हिन्दू न मुसलमान’ वाक्य कहा। इसके साथ ही वे संसार के कल्याण के लिए संसार की यात्राओं पर चल पड़े। भाई गुरदास जी उनके इस फैसले के लिए इस प्रकार लिखते हैं कि ‘चढ़िया सोधन धरत लुकाई’
गुरु नानक देव जी ने 1499 ई. से लेकर 1522 ई. के समय में पूर्व, पश्चिम, उत्तर तथा दक्षिण दिशाओं में चार उदासियां अर्थात यात्राएँ कीं। इन यात्राओं में उन्होंने पहले आसाम, फिर मक्का मदीना, फिर लंका, तथा फिर ताशकन्द तक की यात्राएँ की। इन यात्रायों के समय के दौरान ही उन्होंने करतारपुर नगर बसाया था। यात्राओं के दौरान ही उन्होंने कई स्थानों पर उचित उपदेश द्वारा भटके हुए लोगों को सही मार्ग दिखलाया था। उन दौरान कश्मीर विद्वानों का गढ़ मान जाता था। गुरु नानक देव जी ने वहाँ के पंडितों से विचार-विमर्श किया। हिमालय पर योगियों के केंद्र थे। गुरु नानक देव जी ने उनको सही धर्म सिखाया तथा योगी सिद्धों को जन सेवा का उपदेश भी दिया। हिन्दुस्तान में घूमते समय गुरु नानक देव जी का अनेक पीरों-फकीरों, सूफी-संतों के साथ भी तर्क-वितर्क हुआ। मौलवी व मुसलमानों को भी गुरु नानक देव जी ने सही रास्ता दिखाया। गुरु नानक देव जी ने इस्लामी देशों में यात्राओं के द्वारा मानव धर्म की शिक्षा दी। लगभग बाईस वर्ष गुरु नानक देव जी घूम फिर कर धर्म का प्रचार करते रहे। गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष करतारपुर में गृहस्थ जीवन में रहते हुए खेतीबाड़ी करने के साथ-साथ धार्मिक उपदेश देते हुए व्यतीत किये। कहने का आशय यह है कि गुरु नानक देव जी सम्पूर्ण विश्व में घूम-घूम कर मानव धर्म का उपदेश देते रहे और अपने जीवन के अंतिम क्षणों में करतारपुर में खेती करते हुए गृहस्थ जीवन व्यतीत किया परन्तु धार्मिक उपदेश वे अंत तक देते रहे।
पाठ – गुरु नानक देव जी ने बहुत सहज व सरल भाषा में लोगों को प्रभावित किया। अपनी सहजता से ही उन्होंने कुतकों को काटा। यह बहुत टेढ़ा कार्य था। सहज धर्म की व्याख्या उन्होंने सहजता से ही की। कहीं भी पांडित्य का प्रदर्शन नहीं किया-
सब महि जोति जोति है सोइ ।
तिस दै चानणि सब महि चानण होइ।
ऐसी ही मीठी भाषा से उन्होंने सबको प्रभावित किया।
गुरु नानक देव जी ने तत्कालीन धार्मिक आडंबरों तथा संकीर्णताओं को दूर करने के लिए लोगों के सामने वास्तविक सत्य को प्रस्तुत कर दिया, जिससे
संकीर्ण विचार और आडंबर अपने आप ही ढीले पड़ गए।
गुरु जी के जीवन से संबंधित बहुत सी करामातों का वर्णन भी मिलता है जैसे मक्का मदीना में मक्का को घुमा देना, वली कंधारी का अहंकार तोड़ना, गिरते हुए पहाड़ को हाथ का पंजा लगाकर गिरने से रोक देना, कड़वे रीठे मीठे कर देना आदि।
गुरु नानक देव जी एक महान कवि तथा संगीताचार्य भी थे। आपकी वाणी सिक्खों के धार्मिक ग्रन्थ श्री गुरु ग्रन्थ साहिब’ में संकलित है।’ श्री गुरु ग्रन्थ साहिब’ में 974 पद और श्लोक गुरु नानक देव जी द्वारा रचित हैं। इनमें विभिन्न विषयों की चर्चा है। मुख्यतः गुरु जी द्वारा सृष्टि, जीव और ब्रह्म के संबंध, अकाल पुरुष का रूप और स्थान, माया का बंधन काटने की प्रेरणा, निर्विकार एवं शुद्ध मन से प्रभु का नाम जपने का प्रोत्साहन आदि विषय लिए गये हैं। श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में मुख्य 31 राग हैं और उनमें उन्नीस का प्रयोग गुरु नानक देव जी ने अपनी वाणी में किया है। गुरु नानक देव जी के प्रातः कालीन प्रार्थना के लिए ‘जपुजी’ की रचना की, जो आज सिक्ख सिद्धांतों का सार कही जा सकती है। इसके अतिरिक्त आपकी अन्य रचनाओं में, आसा की वार, सिद्ध गोसटि, पट्टी, दक्खनी ऊँकार, पहरे-तिथि, बारह माह, सुचच्ची-कुचब्बी, आरती आदि प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। इनके अतिरिक्त गुरु नानक देव जी की अन्य वाणी श्लोक, पद, अष्टपदियों, सोहले, छन्द आदि के रूप में हैं।
शब्दार्थ –
कुतकों – नीचा दिखाने के लिए की गई अतार्किक बात
सहज धर्म – सरल, आडम्बर, विधि निषेधों से रहित (मुक्त) धर्म
पांडित्य – विद्वता, ज्ञानी
संकीर्ण – छोटी सोच
करामात – सिद्धि, चमत्कार
व्याख्या – लेखक बताते हैं कि गुरु नानक देव जी ने बहुत सहज व सरल भाषा में लोगों को प्रभावित किया। अपनी सहजता से ही उन्होंने उन्हें नीचा दिखाने वालों के तर्कों का जवाब दिया। नीचा दिखाने वालों के तर्कों का जवाब सरलता या सहजता से देना बहुत कठिन कार्य था। सहज धर्म की व्याख्या उन्होंने सहजता से ही की। कहीं भी अपनी विद्वता या ज्ञानता का प्रदर्शन नहीं किया –
सब महि जोति जोति है सोइ ।
तिस दै चानणि सब महि चानण होइ।
अर्थात – सारे जीवों में एक वही परमात्मा की ज्योति बरत रही है। उस ज्योति के प्रकाश से सारे जीवों में प्रकाश (सूझ-बूझ) है। पर, इस ज्योति का ज्ञान गुरु की शिक्षा से ही होता है।
इस तरह की ही मीठी भाषा से उन्होंने सबको प्रभावित किया।
गुरु नानक देव जी ने उस समय के धार्मिक आडंबरों तथा संकीर्णताओं को दूर करने के लिए लोगों के सामने असली सत्य को प्रस्तुत कर दिया, जिससे छोटे विचार और आडंबर अपने आप ही ढीले पड़ गए। अर्थात गुरु नानक देव जी ने केवल लोगों को सत्य बताया या समझाया और लोगों के मन से छोटे विचार और आडंबर अपने आप ही कम होते चले गए।
गुरु नानक देव जी के जीवन से जुड़े हुए बहुत से चमत्कारों का वर्णन भी मिलता है जैसे मक्का मदीना में मक्का को घुमा देना, वली कंधारी का अहंकार तोड़ना, गिरते हुए पहाड़ को हाथ का पंजा लगाकर गिरने से रोक देना, कड़वे रीठे मीठे कर देना इत्यादि।
गुरु नानक देव जी एक महान कवि तथा संगीत के आचार्य भी थे। उनकी वाणी सिक्खों के धार्मिक ग्रन्थ श्री गुरु ग्रन्थ साहिब’ में संकलित है।’ श्री गुरु ग्रन्थ साहिब’ में 974 पद और श्लोक गुरु नानक देव जी द्वारा रचित हैं। इनमें बहुत से अलग-अलग विषयों की चर्चा की गई है। खास तौर पर गुरु नानक देव जी द्वारा सृष्टि, जीव और ब्रह्म के संबंध, अकाल पुरुष का रूप और स्थान, माया का बंधन काटने की प्रेरणा, निर्विकार एवं शुद्ध मन से प्रभु का नाम जपने का प्रोत्साहन आदि विषय उनके द्वारा रचित पद और श्लोक में लिए गये हैं। श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में मुख्य 31 राग हैं और उनमें उन्नीस का प्रयोग गुरु नानक देव जी ने अपनी वाणी में किया है। गुरु नानक देव जी ने प्रातः कालीन प्रार्थना के लिए ‘जपुजी’ की रचना की, जो वर्तमान में आज सिक्ख सिद्धांतों का सार कही जा सकती है। इसके अतिरिक्त गुरु नानक देव जी की अन्य रचनाओं में, आसा की वार, सिद्ध गोसटि, पट्टी, दक्खनी ऊँकार, पहरे-तिथि, बारह माह, सुचच्ची-कुचब्बी, आरती आदि प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। इनके अलावा भी गुरु नानक देव जी की अन्य वाणी श्लोक, पद, अष्टपदियों, सोहले, छन्द आदि के रूप में हैं। कहने का आशय यह है कि गुरु नानक देव जी ने सिक्ख सम्प्रदाय को फलित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
पाठ – ‘श्री गुरु ग्रन्थ साहिब’ में प्रत्येक कवि की अपनी अलग शैली है, परन्तु गुरु नानक देव जी की वाणी शैली पक्ष से बिल्कुल अद्भुत विशेषताएँ लिए हुए है। गुरु नानक देव जी के प्रत्येक वाक्य के पीछे उनका संपूर्ण व्यक्तित्व झलकता है, जो उनकी शैली को बिल्कुल अनूठी बना देता है। अपने समय के कर्मकांडों, बहुदेवोपासना को देखते हुए आपने एक परमेश्वर की पूजा करने का उपदेश दिया।
अंत में कहा जा सकता है कि विश्व को एक नवीन दृष्टिकोण, जो सांसारिक संकीर्णताओं और पारस्परिक ईर्ष्या, द्वेष और नफरत से अछूता था, देने के कारण गुरु नानक देव जी विश्व विख्यात सुधारक कहलाए। गुरु नानक देव जी का प्रेम, समानता, सरलता आदि का उपदेश ही उस एक बड़े धर्म का बीज बना जो आगे चलकर सिक्ख धर्म के नाम से प्रसिद्ध हुआ। सन् 1539 में आप ज्योति-ज्योत समा गए।
शब्दार्थ –
शैली – बात कहने का ढंग, तरीका, पद्धति- विशेष
अनूठी – अलग, अनोखा, विचित्र, विलक्षण, अदभुत
नवीन – नया
विख्यात – प्रसिद्ध, मशहूर
व्याख्या – लेखक बताते हैं कि ‘श्री गुरु ग्रन्थ साहिब’ में प्रत्येक कवि का अपनी बात कहने का अलग ढंग या तरीका है, परन्तु गुरु नानक देव जी की वाणी अन्य कवियों के तरीकों से बिल्कुल अलग व् अद्भुत विशेषताएँ लिए हुए है। गुरु नानक देव जी के प्रत्येक वाक्य के पीछे उनका संपूर्ण व्यक्तित्व झलकता है, जो उनकी पद्धति- विशेष को बिल्कुल अनोखा बना देता है। अपने समय के कर्मकांडों,अत्यधिक संख्या में देवताओं की पूजा करने वालों को देखते हुए गुरु नानक देव जी ने एक परमेश्वर की पूजा करने का उपदेश दिया।
अंत में कहा जा सकता है कि संसार को एक ऐसा नया दृष्टिकोण देने के कारण गुरु नानक देव जी विश्व प्रसिद्ध संसार के सुधारक कहलाए, जो संसार के लोगों की नीची सोच और आपसी ईर्ष्या, द्वेष और नफरत से बिलकुल अलग और अनछुआ था। अर्थात गुरु नानक देव जी से पहले शायद ही किसी ने संसार को ऐसा नया दृष्टिकोण देने की कोशिश भी की होगी। गुरु नानक देव जी का प्रेम, समानता, सरलता आदि का उपदेश ही उस एक बड़े धर्म का बीज बना जो आगे चलकर सिक्ख धर्म के नाम से प्रसिद्ध हुआ। सन् 1539 में गुरु नानक देव जी ज्योति-ज्योत समा गए। अर्थात सन् 1539 में गुरु नानक देव जी परमात्मा में विलीन हो गए।
Conclusion
प्रस्तुत पाठ में ‘श्री गुरु नानक देव जी के जीवन चरित्र का वर्णन किया है। गुरु जी एक ऐसे अवतारी पुरुष, सन्त, विचारक थे, जिन्होंने मध्यकाल के कालिमापूर्ण वातावरण में पंजाब के लोगों को सच्चे ज्ञान व मार्ग का उपदेश देकर उनका उद्धार किया था। उनकी वाणी में जहाँ जीवन, समाज और अध्यात्म की विस्तृत व्याख्या मिलती है, वहीं विभिन्न रंगों के माध्यम से अद्भुत संगीत रस की मधुर ध्वनि झंकृत होती है। प्रस्तुत निबंध उनके जीवन और वाणी की अद्भुत विशेषताओं पर प्रकाश डालता है। PSEB Class 10 Hindi – पाठ – 17 श्री गुरु नानक देव जी’ की इस पोस्ट में सार, व्याख्या और शब्दार्थ दिए गए हैं। छात्र इसकी मदद से पाठ को तैयार करके परीक्षा में पूर्ण अंक प्राप्त कर सकते हैं।