सदाचार का तावीज़ पाठ सार

 

PSEB Class 10 Hindi Book Chapter 15 “Sadachar Ka Taviz” Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings

 

सदाचार का तावीज़ सार – Here is the PSEB Class 10 Hindi Book Chapter 15 Sadachar Ka Taviz Summary with detailed explanation of the lesson “Sadachar Ka Taviz” along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary

इस पोस्ट में हम आपके लिए पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड  कक्षा 10 हिंदी पुस्तक के पाठ 15 सदाचार का तावीज़ पाठ सार, पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप  इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 10 सदाचार का तावीज़ पाठ के बारे में जानते हैं।

 

Sadachar Ka Taviz ( सदाचार का तावीज़ ) 

By हरिशंकर परसाई

 

‘सदाचार का तावीज़’ प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरीशंकर परसाई द्वारा लिखा गया एक बेहद रोचक और सार्थक व्यंग्य है। इस रचना में लेखक ने समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार पर तीखा प्रहार किया है। कहानी के माध्यम से परसाई जी यह दिखाते हैं कि लोग सदाचार और ईमानदारी की बातें तो बहुत करते हैं, लेकिन जब स्वार्थ या लाभ सामने आता है, तो वे अपने सिद्धांत भूल जाते हैं। यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्चा सुधार बाहरी साधनों से नहीं, बल्कि भीतर की चेतना और आत्म-संयम से संभव है। लेखक ने हास्य, व्यंग्य और सरल भाषा के माध्यम से एक गहरी सामाजिक सच्चाई प्रस्तुत की है, जिससे यह रचना न केवल मनोरंजक बल्कि शिक्षाप्रद भी बन जाती है।

 

 

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सदाचार का तावीज़ पाठ सार Sadachar Ka Taviz Summary

 

कहानी “सदाचार का तावीज़” एक व्यंग्यात्मक रचना है जो समाज में फैले भ्रष्टाचार और लोगों की मानसिकता पर कटाक्ष करती है। कहानी की शुरुआत एक राज्य से होती है जहाँ चारों ओर भ्रष्टाचार की शिकायतें सुनाई देती हैं। राजा को इस बात पर विश्वास नहीं होता और वह दरबारियों से पूछता है कि क्या उन्होंने कभी भ्रष्टाचार देखा है। दरबारी चापलूसी करते हुए कहते हैं कि जब राजा को नहीं दिखा तो उन्हें भी कैसे दिखेगा। राजा भ्रष्टाचार ढूँढने का काम “विशेषज्ञों” नाम की एक जाति को देता है, जिनके पास सब कुछ देखने वाला “अंजन” होता है। विशेषज्ञ दो महीने बाद लौटते हैं और बताते हैं कि भ्रष्टाचार हर जगह फैला है, वह दिखाई नहीं देता पर अनुभव किया जा सकता है। वे कहते हैं कि यह तो ईश्वर की तरह सर्वव्यापी है और यहाँ तक कि राजा के सिंहासन में भी है। वे बताते हैं कि सिंहासन की मरम्मत के नाम पर झूठा बिल बनाया गया था, जिससे आधा पैसा चोरी हो गया। यह सुनकर राजा बहुत चिंतित हो जाता है और भ्रष्टाचार मिटाने की योजना माँगता है। विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि ठेकों जैसी व्यवस्थाएँ खत्म करनी होंगी ताकि रिश्वत के मौके ही न रहें। लेकिन राजा और दरबारी यह सोचकर डर जाते हैं कि इससे राज्य की पूरी व्यवस्था बदल जाएगी, इसलिए वह कोई आसान उपाय चाहते हैं जिससे बिना मेहनत के भ्रष्टाचार मिट जाए।

इसी बीच दरबारी एक साधु को लाते हैं जिसने “सदाचार का तावीज़” बनाया होता है। साधु कहता है कि यह तावीज़ मनुष्य की आत्मा को बदल देता है और उसे ईमानदार बना देता है। राजा बहुत खुश होकर साधु को तावीज़ बनाने का ठेका दे देता है और उसे पाँच करोड़ रुपये भी दे देता है। अख़बारों में खबर छपती है कि “सदाचार का तावीज़” मिल गया है। लाखों तावीज़ बनाकर सरकारी कर्मचारियों को बाँटे जाते हैं। कुछ दिनों बाद राजा जाँच करने के लिए वेश बदलकर एक कार्यालय जाता है। वहाँ वह एक कर्मचारी को रिश्वत देने की कोशिश करता है। वह कर्मचारी रिश्वत लेने से इनकार कर देता है, जिससे राजा खुश होता है। लेकिन महीने के आख़िरी दिन राजा फिर उसी कर्मचारी के पास जाता है, और इस बार वह रिश्वत ले लेता है। राजा हैरान होकर पूछता है कि क्या उसने आज तावीज़ नहीं बाँधा। कर्मचारी तावीज़ दिखाता है। जब राजा तावीज़ के पास कान लगाकर सुनते हैं तो उसमें से आवाज़ आती है कि अरे, आज इकतीस तारीख है, आज तो ले ले। 

कहानी के अंत में यह स्पष्ट होता है कि कोई भी बाहरी उपाय, चाहे वह तावीज़ ही क्यों न हो, मनुष्य की आदतें और लोभ नहीं बदल सकता। भ्रष्टाचार मनुष्य की आत्मा में बस चुका है, जिसे किसी जादू या उपाय से मिटाया नहीं जा सकता। लेखक ने हास्य और व्यंग्य के माध्यम से यह संदेश दिया है कि सुधार तभी संभव है जब भ्रष्टाचार के मौके खत्म हों, रिश्वतखोरी या भ्रष्टाचार तब तक समाप्त नहीं होगा, जब तक कि सभी कर्मचारियों को संतोषजनक वेतन नहीं मिल जाता, आर्थिक सुरक्षा नहीं मिल जाती। 

 

सदाचार का तावीज़ पाठ व्याख्या Sadachar Ka Taviz Lesson Explanation

 

पाठ – एक राज्य में हल्ला मचा कि भ्रष्टाचार बहुत फैल गया है।
राजा ने एक दिन दरबारियों से कहा, “प्रजा बहुत हल्ला मचा रही है कि सब जगह भ्रष्टाचार फैला हुआ है। हमें तो आज तक कहीं नहीं दिखा। तुम लोगों को कहीं दिखा हो तो बताओ।”
दरबारियों ने कहा – “जब हुजूर को नहीं दिखा तो हमें कैसे दिख सकता है?”
राजा ने कहा- “नहीं, ऐसा नहीं, ऐसा नहीं है। कभी-कभी जो मुझे नहीं दिखता, वह तुम्हें दिखता होगा। जैसे मुझे बुरे सपने कभी नहीं दिखते, पर तुम्हें दिखते होंगे।”
दरबारियों ने कहा- “जो दिखते हैं। पर वह सपनों की बात है।”
राजा ने कहा- ” फिर भी तुम लोग सारे राज्य में ढूँढ़कर देखो कि कहीं भ्रष्टाचार तो नहीं है। अगर कहीं मिल जाए तो हमारे देखने के लिए नमूना लेते आना। हम भी तो देखें कि कैसा होता है।”

शब्दार्थ-
हल्ला मचना- बहुत शोर होना, अफरा-तफरी मचना
भ्रष्टाचार- बुरा आचार-विचार
दरबार- राजा का सभा स्थल जहाँ मंत्री और दरबारी उपस्थित रहते हैं।
प्रजा- राज्य के लोग, जनता
हुजूर- सम्मान सूचक शब्द, राजा या उच्च अधिकारी के लिए
नमूना- उदाहरण, छोटा हिस्सा

व्याख्या- इस अंश में हरिशंकर परसाई ने शासकों और अधिकारियों की अंधी मानसिकता तथा भ्रष्टाचार के प्रति उनकी सोच पर व्यंग्य किया है। राज्य में जनता भ्रष्टाचार से परेशान होकर शोर मचा रही है, लेकिन राजा को यह दिखाई नहीं देता। किसी राज्य में लोगों के बीच यह चर्चा फैल गई थी कि वहाँ बहुत भ्रष्टाचार हो रहा है। यानी अधिकारी और कर्मचारी घूस लेते हैं, बेईमानी करते हैं। जनता परेशान होकर इसकी शिकायत कर रही है। राजा ने अपने दरबार में कहा कि लोग तो कह रहे हैं कि हर जगह भ्रष्टाचार है, लेकिन उसे तो कहीं दिखाई नहीं देता। राजा को वास्तव में भ्रष्टाचार नहीं दिखता, क्योंकि वह खुद सत्ता में है और सच्चाई से अनजान है। यह बात व्यंग्य के रूप में कही गई है कि जो खुद भ्रष्ट व्यवस्था में है, उसे भ्रष्टाचार दिखाई नहीं देता। दरबारियों ने राजा की चापलूसी करते हुए कहा कि जब आपको भ्रष्टाचार नहीं दिखता, तो हमें भी कैसे दिख सकता है। दरबारी सच्चाई से बोलने की हिम्मत नहीं कर पाते। राजा कहता है कि ऐसा जरूरी नहीं कि जो उसे नहीं दिखता वह तुम्हें भी न दिखे। जैसे उसे बुरे सपने नहीं आते, लेकिन तुम्हें आ सकते हैं। यहाँ राजा अपनी बात को हल्के-फुल्के अंदाज़ में कहता है, लेकिन फिर भी उसे भ्रष्टाचार की सच्चाई का एहसास नहीं है। दरबारी फिर भी राजा की बात को ही सही ठहराते हैं। वे कहते हैं कि हाँ, बुरे सपने तो दिखते हैं, पर वह तो सपनों की बात है। यानी वे भ्रष्टाचार की बात को भी सपना या कल्पना बता देते हैं। राजा आखिर में दरबारियों से कहता है कि फिर भी जाकर पूरे राज्य में ढूंढो कि कहीं भ्रष्टाचार है या नहीं। अगर मिल जाए तो थोड़ा-सा नमूना लेकर आओ, ताकि वह देख सके कि भ्रष्टाचार दिखता कैसा है।

 

पाठ – एक दरबारी ने कहा- “हुजूर, वह हमें नहीं दिखेगा। सुना है, वह बहुत बारीक होता है। हमारी आँखें आपकी विराटता देखने की इतनी आदी हो गई हैं कि हमें बारीक चीज़ नहीं दिखती। हमें भ्रष्टाचार दिखा भी तो उसमें हमें आपकी ही छवि दिखेगी, क्योंकि हमारी आँखों में तो आपकी ही सूरत बसी है। पर अपने राज्य में एक जाति रहती है जिसे “विशेषज्ञ” कहते हैं। इस जाति के पास कुछ ऐसा अंजन होता है कि उसे आँखों में आँजकर वे बारीक से बारीक चीज़ भी देख लेते हैं। मेरा निवेदन है कि इन विशेषज्ञों को ही हुजूर भ्रष्टचार ढूँढ़ने का काम सौंपे।”
राजा ने “विशेषज्ञ” जाति के पाँच आदमी बुलाए और कहा- “सुना है, हमारे राज्य में भ्रष्टाचार है। पर वह कहाँ है, यह पता नहीं चलता। तुम लोग उसका पता लगाओ। अगर मिल जाए तो पकड़ कर हमारे पास ले आना। अगर बहुत हो तो नमूने के लिए थोड़ा-सा ले आना।”

शब्दार्थ-
दरबारी- राजा के दरबार में काम करने वाला सेवक या अधिकारी; जो मंत्रियों के साथ बैठता है
हुजूर- राजा या उच्च अधिकारी को सम्मान से बुलाने का शब्द (जैसे ‘साहब’)
बारीक- बहुत सूक्ष्म, छोटा
विराटता- बहुत बड़ा, विशालता
आदी होना किसी चीज़ की आदत लग जाना
छवि किसी के मन में बना हुआ रूप या चित्र
सूरत बसी होना– किसी की आकृति या प्रभाव का मन में ठहर जाना
जाति- यहाँ विशेष रूप से एक समूह या पेशे का उल्लेख है, जैसे ‘विशेषज्ञ’ नामक लोग
विशेषज्ञ- किसी विषय-विशेष का ज्ञान रखने वाला
अंजन- काजल
आँजकर- आँखों में काजल लगाकर
निवेदन- विनम्र अनुरोध, सौम्य तरीके से कहना
सौंपे- किसी को कोई काम दे देना, जिम्मेदारी देना

व्याख्या- इस अंश में लेखक ने राजा के दरबार और उसके दरबारियों की चापलूसी भरी सोच पर व्यंग्य किया है। एक दरबारी राजा से कहता है कि हुजूर, हमें भ्रष्टाचार नहीं दिख सकता, क्योंकि वह बहुत “बारीक” होता है। हमारी आँखें तो आपकी “महानता” देखने की आदी हो गई हैं, इसलिए हमें छोटी-छोटी चीज़ें दिखाई ही नहीं देतीं। यहाँ दरबारी अपनी बातों में राजा की झूठी तारीफ करके उसकी खुशामद कर रहा है। वह कहता है कि अगर हमें भ्रष्टाचार दिख भी जाए, तो उसमें भी हमें आपकी ही छवि दिखाई देगी, क्योंकि हमारी आँखों में तो बस आप ही बसे हैं। इस तरह दरबारी चालाकी से भ्रष्टाचार की बात को टाल देता है और राजा की चापलूसी करता है।
फिर वह दरबारी एक सलाह देता है कि राज्य में एक जाति रहती है जिसे “विशेषज्ञ” कहा जाता है। उनके पास एक तरह का अंजन (आँखों में लगाने वाला चमत्कारी पदार्थ) होता है जिससे वे बहुत बारीक चीज़ें भी देख सकते हैं। इसलिए राजा को चाहिए कि भ्रष्टाचार ढूँढने का काम उन्हीं विशेषज्ञों को दिया जाए। यह सुनकर राजा “विशेषज्ञ” नाम की उस जाति के पाँच लोगों को बुलाता है और उन्हें आदेश देता है कि पूरे राज्य में जाकर भ्रष्टाचार खोजो। अगर वह मिले तो उसे पकड़कर मेरे पास लाओ ताकि मैं भी देख सकूँ कि वह कैसा होता है। अगर बहुत अधिक हो, तो थोड़ा-सा नमूना लेकर आना।

 

पाठ – विशेषज्ञों ने उसी दिन से छानबीन शुरू कर दी।
दो महीने बात वे फिर से दरबार में हाज़िर हुए।
राजा ने पूछा- “विशेषज्ञों, तुम्हारी जाँच पूरी हो गई?”
“जी, सरकार।”
“क्या तुम्हें भ्रष्टाचार मिला।”
“जी, बहुत-सा मिला।”
राजा ने हाथ बढ़ाया- “लाओ, मुझे बताओ। देखूं, कैसा होता है।”
विशेषज्ञों ने कहा- “हुजूर, वह हाथ की पकड़ में नहीं आता। वह स्थूल नहीं, सूक्ष्म है, अगोचर है। पर वह सर्वत्र व्याप्त है। उसे देखा नहीं जा सकता, अनुभव किया जा सकता है।”
राजा सोच में पड़ गए। बोले- “विशेषज्ञों, तुम कहते हो कि वह सूक्ष्म है, अगोचर है और सर्वव्यापी है। ये गुण तो ईश्वर के हैं। तो क्या भ्रष्टाचार ईश्वर है?”
विशेषज्ञों ने कहा- “हाँ, महाराज, अब भ्रष्टाचार ईश्वर हो गया है।”
एक दरबारी ने पूछा- “पर वह है कहाँ ? कैसे अनुभव होता है?”
विशेषज्ञों ने जवाब दिया- “वह सर्वत्र है। वह इस भवन में है। वह महाराज के सिंहासन में है।”
“सिंहासन में है।” कहकर राजा साहब उछलकर दूर खड़े हो गए।

शब्दार्थ-
छानबीन- जाँच-पड़ताल करना
हाज़िर होना- उपस्थित होना
स्थूल- मोटा
सूक्ष्म- बारीक
अगोचर- अप्रत्यक्ष, अदृश्य
व्याप्त समाया हुआ
अनुभव करना देखना या महसूस करना; प्रत्यक्ष रूप से जानना
गुण- विशेषता या प्रकार
सिंहासन राजा का आधिकारिक राजसी स्थान

व्याख्या- इस अंश में व्यंग्य के माध्यम से यह दिखाया है कि भ्रष्टाचार इतना फैल गया है कि वह हर जगह मौजूद है। विशेषज्ञों ने राजा के आदेश पर खोजबीन शुरू की और दो महीने बाद दरबार में वापस आए। राजा ने उनसे पूछा कि क्या उन्हें भ्रष्टाचार मिला, तो उन्होंने कहा कि हाँ, बहुत-सा मिला। राजा को लगा कि यह कोई चीज़ होगी, इसलिए उसने हाथ बढ़ाकर कहा कि लाओ, मुझे दिखाओ, देखूँ कैसा होता है। लेकिन विशेषज्ञों ने कहा कि भ्रष्टाचार हाथ में पकड़ने वाली चीज़ नहीं है; यह कोई ठोस वस्तु नहीं बल्कि बहुत सूक्ष्म (बारीक) और अदृश्य (नज़र न आने वाली) चीज़ है, जो हर जगह फैली हुई है। इसे देखा नहीं जा सकता, केवल महसूस किया जा सकता है।
राजा यह सुनकर सोच में पड़ जाता है और कहता है कि अगर भ्रष्टाचार हर जगह फैला हुआ है, दिखाई नहीं देता और सर्वव्यापी है, तो यह तो भगवान जैसा हो गया। क्या भ्रष्टाचार अब ईश्वर बन गया है। विशेषज्ञों ने व्यंग्यात्मक ढंग से कहा कि हाँ महाराज, अब भ्रष्टाचार ईश्वर हो गया है। इसका मतलब है कि भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया है कि वह हर जगह मौजूद है, जैसे भगवान सर्वत्र होता है। तभी एक दरबारी पूछता है कि यह भ्रष्टाचार आखिर है कहाँ और कैसे महसूस होता है। विशेषज्ञ कहते हैं कि वह हर जगह है, इस महल में भी है, यहाँ तक कि राजा के सिंहासन में भी है। यह सुनकर राजा डर जाता है और उछलकर अपने सिंहासन से दूर खड़ा हो जाता है।

 

पाठ – विशेषज्ञों ने कहा- “हाँ, सरकार, सिंहासन में है। पिछले माह इस सिंहासन पर रंग करने के जिस बिल का भुगतान किया गया है, वह बिल झूठा है। वह वास्तव में दुगुने दाम का है। आधा पैसा बीच वाले खा गए। आपके पूरे शासन में भ्रष्टाचार है और वह मुख्यतः घूस के रूप में है।”
विशेषज्ञों की बात सुनकर राजा चिंतित हुए और दरबारियों के कान खड़े हुए।
राजा ने कहा- “यह तो बड़ी चिंता की बात है। हम भ्रष्टाचार बिल्कुल मिटाना चाहते हैं। विशेषज्ञों, तुम बता सकते हो कि वह कैसे मिट सकता है?”
विशेषज्ञों ने कहा- “हाँ महाराज, हमने उसकी भी योजना तैयार की है। भ्रष्टाचार मिटाने के लिए महाराज को
व्यवस्था ने बहुत परिवर्तन करने होंगे। एक तो भ्रष्टाचार के मौके मिटाने होंगे। जैसे ठेका है तो ठेकेदार है और ठेकेदार है तो अधिकारियों को घूस है। ठेका मिट जाए तो उसकी घूस मिट जाए। इसी तरह और बहुत सी चीज़ है। किन कारणों से आदमी घूस लेता है, यह भी विचारणीय है।”
राजा ने कहा- “अच्छा, तुम अपनी पूरी योजना रख जाओ। हम और हमारा दरबार उस पर विचार करेंगे।”
विशेषज्ञ चले गए।

शब्दार्थ-
भुगतान- किसी वस्तु या सेवा के बदले पैसा देना
दुगुने दाम- असली कीमत से दो गुना मूल्य
घूस- रिश्वत
चिंतित परेशान
कान खड़े होना– सुनने में रुचि दिखाना, हैरानी
व्यवस्था में परिवर्तन– प्रशासन, नियम या प्रक्रिया में बदलाव करना
ठेका- किसी काम को करने के लिए अनुबंध या जिम्मेदारी देना
ठेकेदार- वह व्यक्ति या संस्था जो ठेका लेकर काम करता है
विचारणीय- विचार करने योग्य, जिस पर गंभीरता से सोचना चाहिए
योजना- कार्य करने की रूपरेखा

व्याख्या- इस अंश में विशेषज्ञ राजा से कहते हैं कि हाँ सरकार, भ्रष्टाचार आपके सिंहासन में भी है। वे उदाहरण देकर बताते हैं कि पिछले महीने सिंहासन पर रंग-रोगन करने के लिए जो बिल सरकार से पास हुआ था, वह झूठा था। उस काम की असली कीमत आधी थी, लेकिन बिल दुगुनी रकम का बनाया गया और आधा पैसा बीच में ही अधिकारियों ने खा लिया। यानी राजा के शासन में भी रिश्वतखोरी और बेईमानी का जाल फैला हुआ है। उन्होंने बताया कि भ्रष्टाचार सबसे ज़्यादा “घूस” यानी रिश्वत के रूप में फैला हुआ है।
यह सुनकर राजा बहुत चिंतित हो गया और दरबारियों के कान खड़े हो गए, यानी वे डर और बेचैनी से ध्यान देने लगे। राजा कहता है कि यह तो बहुत चिंता की बात है। हमें भ्रष्टाचार को पूरी तरह मिटाना होगा। विशेषज्ञों, तुम बताओ कि यह कैसे खत्म हो सकता है। विशेषज्ञ उत्तर देते है कि महाराज, हमने इस पर पूरी योजना तैयार की है। लेकिन भ्रष्टाचार मिटाने के लिए आपको व्यवस्था में बहुत बड़े-बड़े परिवर्तन करने होंगे। पहले उन मौकों को खत्म करना होगा जहाँ रिश्वत के अवसर पैदा होते हैं। उदाहरण के लिए, अगर ठेका प्रणाली है, तो ठेकेदार होंगे और जब ठेकेदार होंगे तो अधिकारी उनसे रिश्वत लेंगे। अगर ठेका व्यवस्था ही हटा दी जाए, तो रिश्वत की संभावना खत्म हो जाएगी। इसी तरह और भी कई कारण हैं, जिनकी वजह से लोग घूस लेते हैं। उन सब पर विचार करना होगा। राजा कहता है कि ठीक है, तुम अपनी पूरी योजना यहाँ छोड़ दो। हम और हमारा दरबार उस पर विचार करेंगे। यह सुनकर विशेषज्ञ चले जाते हैं।

 

पाठ – राजा ने और दरबारियों ने भ्रष्टाचार मिटाने की योजना को पढ़ा। उस पर विचार किया।
विचार करते दिन बीतने लगे और राजा का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा।
एक दिन एक दरबारी ने कहा- “महाराज, चिंता के कारण आपका स्वास्थ्य बिगड़ता जा रहा है। उन विशेषज्ञों ने
आपको झंझट में डाल दिया।”
राजा ने कहा- “हाँ, मुझे रात को नींद नहीं आती।”
दूसरा दरबारी बोला- “ऐसी रिपोर्ट को आग के हवाले कर देना चाहिए जिससे महाराज की नींद में खलल पड़े।”
राजा ने कहा- “पर करें क्या ? तुम लोगों ने भी भ्रष्टाचार मिटाने की योजना का अध्ययन किया है। तुम्हारा क्या मत है ? क्या उसे काम में लाना चाहिए?”
दरबारियों ने कहा- “महाराज, वह योजना क्या है एक मुसीबत है। उसके अनुसार कितने उलट-फेर करने पड़ेंगे! कितनी परेशानी होगी। सारी व्यवस्था उलट-पलट हो जाएगी। जो चला आ रहा है, उसे बदलने से नई-नई कठिनाइयां पैदा हो सकती हैं। हमें तो कोई ऐसी तरकीब चाहिए जिससे बिना कुछ उलट-फेर किए भ्रष्टाचार मिट जाए।”
राजा साहब बोले- “मैं भी यही चाहता हूँ। पर यह हो कैसे ? हमारे प्रपितामह को तो जादू आता था; हमें वह भी नहीं आता। तुम लोग ही कोई उपाय खोजो।”

शब्दार्थ-
स्वास्थ्य बिगड़ना- शरीर की स्थिति खराब होना, बीमार या थकावट महसूस होना
झंझट में डालना मुश्किल, परेशानी या उलझन में डालना
रिपोर्ट को आग के हवाले करना– किसी दस्तावेज़ या रिपोर्ट को नष्ट करना
मत- राय, सुझाव या विचार
मुसीबत- कठिनाई या समस्या
उलट-फेर- बदलाव, परिवर्तन
परेशानी- कठिनाई
तरकीब- उपाय, युक्ति
प्रपितामह- परदादा

व्याख्या- राजा और उनके दरबारी विशेषज्ञों द्वारा बनाई गई भ्रष्टाचार मिटाने की योजना को ध्यान से पढ़ते हैं और सोचते हैं कि इसे कैसे लागू किया जाए। जब वे रोज़ इस योजना पर सोचते रहे, तो राजा बहुत चिंतित हो गए। लगातार चिंता करने से उनका स्वास्थ्य खराब होने लगा। एक दिन एक दरबारी राजा से कहता है कि वह बहुत चिंता कर रहे हैं, इसलिए बीमार पड़ रहे हैं। वह कहता है कि विशेषज्ञों ने उन्हें इस मुश्किल में डाल दिया है। राजा कहता है कि वह इतने परेशान हैं कि रात को भी सो नहीं पाते। दूसरा दरबारी कहता कि उस रिपोर्ट (योजना) को जला देना चाहिए, जो राजा की नींद और शांति छीन रही है। राजा दरबारियों से पूछता है कि उन्होंने भी योजना को पढ़ा है, तो बताएं क्या इसे लागू किया जाना चाहिए या नहीं। दरबाबारी कहते हैं कि वह योजना बहुत मुश्किल है। अगर उसे लागू किया गया तो बहुत कुछ बदलना पड़ेगा और बहुत कठिनाइयाँ आएँगी। वे कहते हैं कि अगर पुरानी व्यवस्था बदली गई तो देश में और समस्याएँ आ सकती हैं। दरबारी कहते हैं कि वे ऐसा तरीका चाहते हैं जिससे बिना कुछ बदले भ्रष्टाचार खत्म हो जाए। राजा भी यही चाहते हैं कि बिना झंझट के भ्रष्टाचार मिट जाए, पर यह कैसे संभव है। राजा मज़ाक में कहते हैं कि उनके पूर्वजों को जादू आता था, पर उन्हें नहीं आता, इसलिए दरबारी ही कोई आसान उपाय सोचें।

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पाठ – एक दिन दरबारियों ने राजा के सामने एक साधु को पेश किया और कहा- “महाराज, एक कंदरा में तपस्या करते हुए इस महान साधक को हम ले आये हैं। इन्होंने सदाचार का तावीज़ बनाया है। वह मंत्रों से सिद्ध है और उसके बाँधने से आदमी एकदम सदाचारी हो जाता है।”
साधु ने अपने झोले में से एक तावीज़ निकालकर राजा को दिया। राजा ने उसे देखा। बोले- “हे साधु, इस तावीज़ के विषय में मुझे विस्तार से बताओ। इससे आदमी सदाचारी कैसे हो जाता है?”
साधु ने समझाया- “महाराज, भ्रष्टाचार और सदाचार मनुष्य की आत्मा में होता है, बाहर से नहीं होता। विधाता जब मनुष्य को बनाता है तब किसी की आत्मा में ईमान की कल फिट कर देता है और किसी की आत्मा में बेईमानी की। इस कल में से ईमान या बेईमानी के स्वर निकलते हैं, जिन्हें ‘आत्मा की पुकार’ कहते हैं। आत्मा की पुकार के अनुसार ही आदमी काम करता है। प्रश्न यह है कि जिनकी आत्मा से बेईमानी के स्वर निकलते हैं, उन्हें दबाकर ईमान के स्वर कैसे निकाले जाएँ ? मैं कई वर्षों से इसी के चिन्तन में लगा हूँ। अभी मैंने यह सदाचार का तावीज़ बनाया है। जिस आदमी की भुजा पर यह बँधा होगा, वह सदाचारी हो जाएगा। मैंने कुत्ते पर भी इसका प्रयोग किया है। यह तावीज़ गले में बाँध देने से कुत्ता भी रोटी नहीं चुराता । बात यह है कि इस तावीज़ में से भी सदाचार के स्वर निकलते हैं। जब किसी की आत्मा बेईमानी के स्वर निकालने लगती है तब इस तावीज़ की शक्ति आत्मा का गला घोंटती है और आदमी को तावीज़ से ईमान के स्वर सुनाई पड़ते हैं। वह इन स्वरों को आत्मा की पुकार समझकर सदाचार की ओर प्रेरित होता है। यही इस तावीज़ का गुण है, महाराज !”

शब्दार्थ-
साधु- तपस्या और धर्म के मार्ग पर रहने वाला धार्मिक व्यक्ति
कंदरा- गुफ़ा
तपस्या मन, वचन और शरीर को संयम में रखकर कठिन साधना करना
महान साधक- अनुभवी और धर्मात्मा व्यक्ति
सदाचार- अच्छा आचरण
तावीज़- रक्षा-कवच, मंत्र लिखा कागज़ या धातु का टुकड़ा जिसे हाथ पर या गले में धारण किया जाता है
मंत्रों से सिद्ध- मंत्रों द्वारा शक्तिशाली या असरदार बनाना
झोला- थैला जिसमें वे वस्तुएँ रखते हैं
आत्मा- मनुष्य का भीतर का, अदृश्य और अमर हिस्सा
विधाता- भगवान
कल- यंत्र, मशीन
बेईमानी- चोरी, झूठ या भ्रष्ट व्यवहार
स्वर आवाज़
चिन्तन- सोचना
भुजा- हाथ
प्रयोग किसी चीज़ का अनुभव करने या परखने का तरीका
सत्ता- शक्ति या प्रभाव
प्रेरित होना- किसी दिशा में काम करने के लिए उत्साहित होना

व्याख्या- एक दिन दरबारियों ने राजा के सामने एक साधु को लाकर पेश किया। दरबारी राजा से कहते हैं कि महाराज, हम इस महान साधु को एक कंदरा (गुफा) से लाए हैं, जहाँ यह वर्षों से तपस्या कर रहे थे। इस साधु ने एक “सदाचार का तावीज़” बनाया है जो मंत्रों से सिद्ध है। इसे पहनने वाला व्यक्ति तुरंत ईमानदार और नेक बन जाता है। राजा साधु से वह तावीज़ लेते हैं, ध्यान से देखते हैं और कहते हैं कि हे साधु, बताओ, यह तावीज़ कैसे काम करता है। इससे आदमी सच में सदाचारी कैसे बन जाता है। वह साधु राजा को समझाता है कि भ्रष्टाचार या सदाचार बाहर की चीज़ नहीं है, यह मनुष्य की आत्मा में बसता है। जब भगवान मनुष्य को बनाते हैं, तो किसी की आत्मा में “ईमान की कल” (मशीन जैसी शक्ति) लगा देते हैं और किसी में “बेईमानी की कल”। इस कल से जो ध्वनि निकलती है, उसे “आत्मा की पुकार” कहा जाता है और आदमी उसी पुकार के अनुसार काम करता है। साधु कहता है कि वह वर्षों से यह सोच रहे थे कि जिनकी आत्मा से बेईमानी की पुकार आती है, उन्हें ईमानदार कैसे बनाया जाए। अब उन्होंने यह “सदाचार का तावीज़” बनाया है, जिसे बांधने से व्यक्ति ईमानदार हो जाता है। उसाधु बताता है कि उन्होंने यह प्रयोग एक कुत्ते पर भी किया जब तावीज़ उसके गले में बांधा गया, तो उसने रोटी चुराना भी छोड़ दिया। साधु ने कहा कि इस तावीज़ से “सदाचार के स्वर” निकलते हैं। जब किसी की आत्मा में बेईमानी की आवाज़ उठती है, तो यह तावीज़ उस आवाज़ को दबाकर ईमानदारी की पुकार सुनाता है। व्यक्ति इसे अपनी आत्मा की पुकार समझकर अच्छा और सच्चा व्यवहार करने लगता है। यही इस तावीज़ की खासियत है महाराज जी।

 

पाठ – दरबार में हलचल मच गई। दरबारी उठ-उठकर तावीज़ को देखने लगे।
राजा ने खुश होकर कहा- “मुझे नहीं मालूम था कि मेरे राज्य में ऐसे चमत्कारी साधु भी हैं। महात्मन्, हम आपके बहुत आभारी हैं। आपने हमारा संकट हर लिया। हम सर्वव्यापी भ्रटाचार से बहुत परेशान थे। मगर हमें लाखों नहीं, करोड़ों तावीज़ चाहिए। हम राज्य की और से तावीज़ों का कारखाना खोल देते हैं। आप उसके जनरल मैनेजर बन जाएँ और अपनी देख-रेख में बढ़िया तावीज़ बनवाएँ।”
एक मन्त्री ने कहा- “महाराज, राज्य क्यों झंझट में पड़े? मेरा तो निवेदन है कि साधु बाबा को ठेका दे दिया जाए। वे अपनी मंडली से तावीज बनवा कर राज्य को सप्लाई कर देंगे?”
राजा को यह सुझाव पसन्द आया। साधु को तावीज़ बनाने का ठेका दे दिया गया। उसी समय उन्हें पाँच करोड़ रुपये कारखाना खोलने के लिए पेशगी मिल गए।
राज्यों के अखबारों में खबरें छपी “सदाचार के तावीज़ की खोज ! तावीज़ बनाने का कारखाना खुला!”
लाखों तावीज़ बन गए। सरकार के हर सरकारी कर्मचारी की भुजा पर एक-एक तावीज़ बाँध दिया गया।

शब्दार्थ-
हलचल शोरगुल, हड़कंप
महात्मन् सम्मानपूर्वक साधु या धर्मात्मा व्यक्ति को संबोधित करने का शब्द
आभारी किसी का धन्यवाद करने वाला, कृतज्ञ
सर्वव्यापी हर तरफ फैला हुआ
कारखाना उत्पादन करने की जगह, यहाँ तावीज़ बनाने की फैक्ट्री
जनरल मैनेजर- कारखाने या किसी कार्य का मुख्य प्रबंधक
देख-रेख- निगरानी
मंडली- साधु के सहयोगी या समूह
सप्लाई करना- उत्पादन करके उपलब्ध कराना
पेशगी- किसी वस्तु के मूल का वह अंश जो काम करने वाले को पहले ही दे दिया जाता है, अग्रिम

व्याख्या- इस अंश में जब साधु अपने “सदाचार के तावीज़” की शक्ति के बारे में बताता है तो दरबार में हलचल मच जाती है। सभी दरबारी उत्सुकता से अपनी जगह से उठते हैं और उस तावीज़ को देखने लगते हैं। राजा बहुत खुश होते हैं और बोलते हैं कि मुझे यह नहीं पता था कि मेरे राज्य में ऐसे अद्भुत और चमत्कारी साधु भी रहते हैं। राजा कहते हैं कि हे महात्मा! आपने तो हमारा बड़ा संकट दूर कर दिया। हम पूरे राज्य में फैले भ्रष्टाचार से बहुत परेशान थे। फिर राजा आगे कहते हैं कि उन्हें सिर्फ कुछ तावीज़ नहीं, बल्कि लाखों-करोड़ों तावीज़ चाहिए ताकि पूरे राज्य के लोग सदाचारी बन जाएँ। राजा कहते हैं कि राज्य की ओर से एक तावीज़ बनाने का कारखाना खोला जाएगा और साधु को उसका “जनरल मैनेजर” बनाया जाएगा ताकि वे अपनी देख-रेख में अच्छे तावीज़ तैयार करवा सकें।
तभी एक मंत्री सुझाव देता है कि राज्य को खुद इस झंझट में नहीं पड़ना चाहिए। इसके बजाय साधु बाबा को ही तावीज़ बनाने का ठेका दे दिया जाए ताकि वे अपनी मंडली से तावीज़ बनवाकर सरकार को सप्लाई कर दें। राजा को यह विचार बहुत पसंद आता है और उन्होंने वह तुरंत साधु को तावीज़ बनाने का ठेका दे देते हैं। उसी समय साधु को कारखाना शुरू करने के लिए पाँच करोड़ रुपये की अग्रिम राशि भी दे दी गई। कुछ ही दिनों में यह खबर पूरे राज्य के अखबारों में छप गई  “सदाचार के तावीज़ की खोज! तावीज़ बनाने का कारखाना खुला!” जल्द ही लाखों तावीज़ बनकर तैयार हो गए और हर सरकारी कर्मचारी की भुजा पर एक-एक तावीज़ बाँध दिया गया। राजा को लगा कि अब राज्य में भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा और सभी ईमानदार बन जाएँगे।

 

पाठ – भ्रष्टाचार की समस्या का ऐसा सरल हल निकल आने से राजा और दरबारी सब खुश थे।
एक दिन राजा की उत्सुकता जागी। सोचा- “देखें तो कि यह तावीज़ कैसे काम करता है।”
वह वेश बदलकर एक कार्यालय गए। उस दिन 2 तारीख थी। एक दिन पहले तनख्वाह मिली थी।
वह एक कर्मचारी के पास गए और कई काम बताकर उसे पाँच रुपये का नोट देने लगे।
कर्मचारी ने उन्हें डांटा- “भाग जाओ यहां से घूस लेना पाप है!”राजा बहुत खुश हुए। तावीज़ ने कर्मचारी को ईमानदार बना दिया था।
कुछ दिन बाद वह फिर वेश बदलकर उसी कर्मचारी के पास गए। उस दिन इकतीस तारीख थी – महीने का आखिरी दिन।
राजा ने फिर उसे पाँच का नोट दिखाया और उसने लेकर जेब में रख लिया।
राजा ने उसका हाथ पकड़ लिया। बोले- “मैं तुम्हारा राजा हूँ। क्या तुम आज सदाचार का तावीज़ बाँधकर नहीं आए?”
“बाँधा है, सरकार, यह देखिए।”
उसने आस्तीन चढ़ाकर तावीज दिखा दिया।
राजा असमंजस में पड़ गए। फिर ऐसा कैसे हो गया ?
उन्होंने तावीज़ पर कान लगाकर सुना। तावीज़ में से स्वर निकल रहे थे- “अरे, आज इकतीस। आज तो ले।”

शब्दार्थ-
हल- समाधान
उत्सुकता अधीरता, बेचैनी
वेश बदलकर- अपने सामान्य रूप को बदलकर, पहचान छुपाकर
कार्यालय- कामकाजी स्थान, जहाँ कर्मचारी अपने कार्य करते हैं
तनख्वाह- कर्मचारी को महीने में मिलने वाला वेतन
घूस- रिश्वत
ईमानदार- जो बेईमानी न करता हो
आस्तीन- पहनने के कपड़े का वह भाग जो बाँह को ढकता है, बाँह
असमंजस- दुविधा

व्याख्या- जब भ्रष्टाचार की समस्या का इतना आसान और चमत्कारी हल मिल गया, तो राजा और उनके सारे दरबारी बहुत खुश होते हैं। सभी को लगता है कि अब राज्य में कोई बेईमानी नहीं रहेगी। कुछ दिनों बाद राजा के मन में जिज्ञासा होती है कि क्यों न खुद देखा जाए कि यह तावीज़ सच में काम करता है या नहीं। वह सोचते हैं कि वे वेश बदलकर किसी सरकारी दफ्तर में जाकर इसकी परीक्षा लें।
राजा आम आदमी का रूप धारण करते हैं और एक सरकारी कार्यालय पहुँचते हैं। उस दिन महीने की दो तारीख थी, यानी कर्मचारियों को तनख्वाह मिले सिर्फ एक दिन हुआ था। राजा एक कर्मचारी के पास जाते हैं और उसे कुछ काम बताकर पाँच रुपये का नोट देने लगते हैं। कर्मचारी तुरंत डाँटते हुए कहते हैं कि भाग जाओ यहाँ से, रिश्वत लेना पाप है। यह सुनकर राजा बहुत खुश होते हैं। उन्हें लगता है कि तावीज़ ने सच में अपना असर दिखा दिया, कर्मचारी अब ईमानदार बन चुका है।
कुछ दिन बीत गए। अब राजा फिर से वेश बदलकर उसी कार्यालय में उसी कर्मचारी के पास पहुँचते हैं। इस बार तारीख थी इक्तीस यानी महीने का आख़िरी दिन, जब तनख्वाह खत्म हो जाती है। राजा फिर उसी तरह उसे पाँच रुपये का नोट दिखाते हैं। इस बार कर्मचारी बिना झिझक वह नोट ले लेता है और अपनी जेब में रख लेता है। राजा तुरंत उसका हाथ पकड़ लेता है और बोलता है कि मैं तुम्हारा राजा हूँ, क्या तुमने आज भी सदाचार का तावीज़ बाँध रखा है।
कर्मचारी कहता है कि हाँ, सरकार, यह देखिए और अपनी आस्तीन ऊपर करके तावीज़ दिखा देता है। राजा अब बहुत हैरान हो जाता है कि जब तावीज़ बंधा हुआ है तो फिर उसने रिश्वत क्यों ली। वह ध्यान से तावीज़ को कान से लगाते हैं तो उसमें से आवाज़ आती है कि अरे, आज इकतीस तारीख है, आज तो ले ले।
राजा समझ जाते हैं कि यह तावीज़ भी मनुष्य की आदतों को नहीं बदल सकता बल्कि उसने भी हालात देखकर अपनी “ईमानदारी” बदल ली थी। 

 

Conclusion

इस पोस्ट में ‘सदाचार का तावीज़’ पाठ का सारांश, व्याख्या और शब्दार्थ दिए गए हैं। यह पाठ PSEB कक्षा 10 के पाठ्यक्रम में हिंदी की पाठ्यपुस्तक से लिया गया है। प्रस्तुत पाठ में हरिशंकर परसाई जी ने भ्रष्टाचार के कारण तथा निवारण के उपायों को व्यंग्यात्मक शैली में प्रस्तुत किया है। यह पोस्ट विद्यार्थियों को पाठ को सरलता से समझने, उसके मुख्य संदेश को ग्रहण करने और परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देने में सहायक सिद्ध होगा।