पदावली पाठ सार
PSEB Class 10 Hindi Book Chapter 2 “Padavali” Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings
पदावली सार – Here is the PSEB Class 10 Hindi Book Chapter 2 Padavali Summary with detailed explanation of the lesson “Padavali” along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary
इस पोस्ट में हम आपके लिए पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड कक्षा 10 हिंदी पुस्तक के पाठ 2 पदावली पाठ सार, पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 10 पदावली पाठ के बारे में जानते हैं।
Padavali (पदावली)
मीराँबाई

प्रस्तुत पद मीराबाई की पदावली से लिए गए हैं। इनमें कृष्ण के सौंदर्य और उनके प्रति मीरा की अनन्य भक्ति का चित्रण है। पहले पद में मीरा नन्दलाल के श्याम रूप, मोर मुकुट, मुरली और वैजयंती माला की छवि को अपनी आँखों में बसाने की इच्छा व्यक्त करती हैं। दूसरे पद में वे कृष्ण को अपना सर्वस्व और पति मानती हैं। मीरा ने लोक-लाज और कुल-मर्यादा त्यागकर आँसुओं से कृष्ण-प्रेम की बेल बोई है, जो अब फल-फूल चुकी है। वे स्वयं को कृष्ण की दासी मानकर उद्धार की प्रार्थना करती हैं।
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पदावली पाठ सार Padavali Summary
मीराबाई द्वारा रचित पदों में अनन्य भक्ति और कृष्ण के प्रति उनके प्रेम का अद्भुत चित्रण मिलता है। पहले पद में मीरा अपने आराध्य श्रीकृष्ण की मनमोहक छवि को अपनी आँखों में बसाए रखने की प्रार्थना करती हैं। वह कहती हैं कि नन्दलाल कृष्ण का रूप अत्यंत आकर्षक है। उनका श्यामवर्ण शरीर, बड़ी-बड़ी आँखें, सिर पर मोर मुकुट, कानों में मकराकृति कुण्डल और माथे पर सुशोभित लाल तिलक उनकी छवि को दिव्य बनाते हैं। उनके अधरों पर सुधामृत बरसाने वाली मुरली शोभायमान है और वक्ष पर वैजयंती माला उन्हें और भी मनोहर बनाती है। कमर पर बंधी करधनी की छोटी-छोटी घण्टियाँ और पैरों की पायल की मधुर झंकार उनकी छवि को अनुपम सौंदर्य प्रदान करती है। मीरा मानती हैं कि ऐसे गोपाल भक्तवत्सल हैं, संतों को सुख देने वाले और अपने भक्तों की रक्षा करने वाले हैं। इस पद में मीरा की ईश्वर के रूप-सौंदर्य में गहरी भक्ति और एकाग्रता प्रकट होती है।
दूसरे पद में मीरा का वैराग्य और समर्पण दिखाई देता है। वह कहती हैं कि मेरे लिए तो गिरिधर गोपाल ही सबकुछ हैं। उनके अलावा मेरा कोई और नहीं है। मोर मुकुट धारण करने वाले श्रीकृष्ण ही मेरे पति हैं और पिता, माता, भाई, बंधु सभी रिश्ते अब मेरे नहीं रह गए। मीरा ने कुल की मर्यादा और समाज की परवाह छोड़कर केवल कृष्ण को अपनाया है। वह संतों की संगति में लोक-लाज की चिंता छोड़ देती हैं और अपने आँसुओं से प्रेम की बेल को सींचती हैं। यह प्रेम रूपी बेल अब फैल चुकी है और उस पर आनंद के फल लग चुके हैं। इस भाव का आशय है कि उनका कृष्ण-प्रेम अब गहरा और अडिग हो गया है, जिसे कोई नष्ट नहीं कर सकता।
मीरा आगे कहती हैं कि जब वे भक्तों को देखती हैं तो उनका मन आनंदित हो उठता है, पर जब संसार को देखती हैं तो दुखी होकर रो पड़ती हैं। इसका कारण यह है कि संसार मोह-माया और दुःख-दर्द से भरा हुआ है, जबकि प्रभु की भक्ति सच्चे आनंद का मार्ग है। अंत में मीरा स्वयं को श्रीकृष्ण की दासी कहकर उनसे अपने उद्धार की प्रार्थना करती हैं। यहाँ मीरा की भक्ति का चरम रूप प्रकट होता है, जिसमें न तो परिवार का बंधन है और न ही समाज की मर्यादा की चिंता, बल्कि केवल कृष्ण में पूर्ण समर्पण ही जीवन का सार है।
पदावली पाठ व्याख्या Padavali Explanation
1
बसौ मेरे नैनन में नन्द लाल ।
मोहनि मूरति साँवरी सूरति नैना बनै विसाल ।
मोर मुकुट मकराकृत कुंडल अरुण तिलक दिये भाला
अधर सुधारस मुरली राजति उर वैजन्ती माल ।
छुद्र घंटिका कटि तट सोभित नुपूर शब्द रसाल।
मीरा प्रभु संतन सुखदाई भक्त बछल गोपाल ।। (1)
शब्दार्थ-
बसौ– निवास करो, रहो
मेरे नैनन में– मेरी आँखों में
नन्द लाल– नन्द के बेटे श्री कृष्ण
मोहनि मूरति- मन को मोह लेने वाली मूर्ति, छवि
साँवरी सूरति– श्यामवर्ण रूप
नैना- आँखें
विसाल- विशाल, बड़े
मोर मुकुट- मोर पंखों से बना मुकुट
मकराकृत कुंडल– मकर या मछली के आकार के कुण्डल
अरुण- लाल
भाला- मस्तक, माथा
अधर सुधारस- होंठ अमृत समान रस से भरे हुए
मुरली राजति– बांसुरी सुशोभित है
उर– हृदय
वैजन्ती माल– वैजयंती माला
छुद्र घंटिका– छोटी-छोटी घण्टिकाएँ
कटि- कमर
सोभित– शोभा पा रही
नुपूर- घुँघरू
रसाल- मीठा, मोहक
संतन सुखदाई- संतों को सुख देने वाले
बछल– वत्सल, रक्षक
प्रसंग- प्रस्तुत पद में मीराबाई जी ने अपने आराध्य प्रभु श्रीकृष्ण के सौंदर्य का वर्णन किया है।
व्याख्या- मीरा बड़ी आत्मीयता से कहती हैं कि हे नन्दलाल कृष्ण! आप सदा मेरी आँखों के सामने बने रहें और मेरी दृष्टि में बसे रहें, ताकि आपकी मोहक छवि निरंतर मेरे हृदय में अंकित हो। वे कृष्ण के सौन्दर्य का वर्णन करती हुईं कहती हैं कि प्रभु आपका रूप मन को मोहने वाला है। आपका श्यामवर्ण रूप और विशाल नेत्र अत्यंत आकर्षक हैं।
आपके अधरों पर रखी मुरली से सुधामृत बरसता है और वक्षस्थल पर वैजयंती माला की शोभा अपूर्व है।
आपके सिर पर मोर के पंखों का मुकुट, कानों में मछली के आकार के कुण्डल, और माथे पर लाल रंग का तिलक मन को आनंदित करते हैं।
कमर में बंधी करधनी की छोटी-छोटी घण्टिकाएँ और चरणों में झंकारती पायल आपकी छवि को और भी अनुपम बना देती हैं। अंत में मीरा कहती हैं कि हे गोपाल! आप भक्तवत्सल हैं, संतों को सुख प्रदान करने वाले हैं और अपने भक्तों पर सदैव कृपा दृष्टि बरसाते हैं।
2
मेरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई।
तात मात भ्रात बंधु, आपनो न कोई।
छांड़ि दई कुल की कानि, कहा करै कोई।
संतन ढिग बैठि बैठि लोक लाज खोई।
असुअन जल सींचि सींचि, प्रेम बेलि बोई।
अब तो बेलि फैल गई, आनंद फल होई ।
भगत देखि राजी भई, जगत देखि रोई ।
दासी मीरा लाल गिरधर, तारौ अब मोही। (2)
शब्दार्थ-
गिरिधर– गोवर्धन पर्वत को धारण करने वाला
जाके सिर- जिनके सिर पर
मोर मुकुट– मोर पंखों का मुकुट
मेरो पति सोई– वही मेरे पति हैं
तात- पिता
भ्रात- भाई
बंधु– सगे संबंधी
आपनो न कोई– अब मेरा कोई नहीं है
छांड़ि दई- छोड़ दिया
कानि– मर्यादा
कहा करै कोई– अब कौन क्या कर सकता है
संतन ढिग- संतों के पास
बैठि बैठि- बैठकर
लोक लाज– लोगों की शर्म, सामाजिक संकोच
असुअन जल- आँसुओं का जल
सींचि सींचि- सींचते हुए बार-बार
प्रेम बेलि– प्रेम की लता (बेल)
बोई- रोपी
अब तो बेलि फैल गई- अब वह लता फैल गई है
आनंद फल होई– अब आनंद रूपी फल आ गया है
भगत देखि– भक्त को देखकर
राजी- प्रसन्न
जगत देखि– संसार को देखकर
रोई– रोना
दासी मीरा– सेविका मीरा
लाल गिरधर– प्रियतम गिरधर (कृष्ण)
तारौ– उद्धार करना, तारना
प्रसंग- इस पद में मीराबाई का अद्वितीय वैराग्य और अनन्य भक्ति भाव प्रकट होता है। वे जगत के सभी रिश्तों-नातों को त्यागकर केवल अपने आराध्य गिरिधर गोपाल को ही अपना सर्वस्व मानती हैं।
व्याख्या- प्रस्तुत पद्य में मीराबाई अत्यंत दृढ़ निश्चय के साथ कहती हैं कि उनके लिए तो श्रीकृष्ण ही सबकुछ हैं, श्री कृष्ण के सिवा उनका कोई नहीं है। मोर-मुकुट को धारण करने वाले वही श्रीकृष्ण ही उनके सच्चे पति हैं। पिता, माता, भाई तथा अन्य सभी रिश्तेदार अब मीराबाई के नहीं रहे। मीराबाई आगे कहती हैं कि उन्होंने अब कुल-परिवार की मान-मर्यादा त्याग दी है और केवल श्री कृष्ण को ही अपना लिया है, इसलिए अब उन्हें संसार की कोई परवाह नहीं। वह आगे कहती हैं कि उन्होंने लोक-लाज की चिंता छोड़ दी है और संतों की संगति में बैठकर प्रभु प्रेम का रस पिया है। आँसुओं के जल से सींच-सींचकर उन्होंने कृष्ण प्रेम की बेल बोई है, जो अब फैलकर फल देने लगी है और जिसका नाश संभव नहीं। मीराबाई कहती हैं कि वह प्रभु भक्त को देखकर प्रसन्न होती हैं, परंतु संसार को देखकर रो उठती हैं। भाव यह है कि संसार में मोह-माया में फँसे जीवों का दुखद अंत देखकर उनका हृदय पीड़ा से भर जाता है। अंत में मीरा स्वयं को कृष्ण की दासी मानकर उनसे अपने उद्धार की प्रार्थना करती हैं।
Conclusion
इस पोस्ट में ‘पदावली – मीराबाई’ पाठ का साराँश, प्रसंग, व्याख्या और शब्दार्थ दिए गए हैं। यह पाठ PSEB कक्षा 10 के पाठ्यक्रम में हिंदी की पाठ्यपुस्तक से लिया गया है। इन पदों में मीराबाई का कृष्ण-प्रेम, सौंदर्य-चित्रण और अनन्य भक्ति भाव प्रकट दिखाया गया है।
यह पोस्ट विद्यार्थियों को मीराबाई द्वारा रचित पदों को गहराई से समझने में मदद करेगा और परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देने में भी सहायक सिद्ध होगा।