नर्स पाठ सार
PSEB Class 10 Hindi Book Chapter 10 “Nurse” Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings
नर्स सार – Here is the PSEB Class 10 Hindi Book Chapter 10 Nurse Summary with detailed explanation of the lesson “Nurse” along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary
इस पोस्ट में हम आपके लिए पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड कक्षा 10 हिंदी पुस्तक के पाठ 10 नर्स पाठ सार, पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 10 नर्स पाठ के बारे में जानते हैं।
Nurse (नर्स )
By कला प्रकाश
प्रस्तुत कहानी नर्स का रोगी के प्रति सेवाभाव और ममत्व के भाव को रोगी के हित में प्रस्तुत करती है। साथ ही एक बच्चे और माँ के मन के भावों को भी बहुत मजबूती से प्रस्तुत करती है। नर्सिंग केवल एक व्यवसाय, पेशा या करियर नहीं है बल्कि मानवता की सेवा है। नर्स अस्पताल का एक ऐसा हिस्सा होती है, जिसे अस्पताल से अलग नहीं देखा जा सकता। इस कहानी में अस्पताल में दाखिल छह वर्षीय महेश को अस्पताल में अपनी माँ के बिना अच्छा नहीं लगता। ऐसे में सिस्टर सुसान चिकित्सा और उपचार के अतिरिक्त अपनी बातचीत और व्यवहार से उसे माँ की ही तरह ममता, स्नेह और सुरक्षा प्रदान करती है।
प्रस्तुत कहानी सिंधी भाषा से हिंदी भाषा में रूपांतरित की गई है। यह अपनी भावभूमि, भाषा शैली और प्रस्तुति की दृष्टि से अनुपम है। पूरी कहानी रोचकता से भरी है। भाषा और भाव आदि भी व्यक्ति या पात्रों की मन की स्थिति के अनुरूप है। सहज, सरल संवाद पाठक को घटना क्रम के साथ पूरे मन से जोड़े रखते हैं।
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नर्स पाठ सार Nurse Summary
कला प्रकाश द्वारा रचित ‘नर्स’ एक बहुत ही अच्छी कहानी का उदाहरण है। यह कहानी एक नर्स के सेवाभाव और ममत्व को रोगी के हितों में प्रस्तुत करती है। यह कहानी बाल मनोविज्ञान का भी एक अच्छा प्रदर्शन करती है।
महेश एक छः साल का छोटा सा बच्चा था। वह अस्पताल में भर्ती था क्योंकि उसका आप्रेशन हुआ था। अस्पताल में परिचित मरीज से छ: बजे तक ही मिल पाते थे। परन्तु महेश की जिद्द के कारण उसकी माँ सरस्वती समय पूरा हो जाने पर भी अस्पताल में रुकी हुई थी। वह चाहकर भी अपने बच्चे को छोड़ कर नहीं जा पा रही थी। महेश अपनी माँ को अपने पास रोकना चाहता था। सरस्वती वार्ड में इधर-उधर देखने लगी। सभी बच्चे महेश को देखे जा रहे थे। सरस्वती को याद आया कि कुछ देर पहले नौ नंबर बैड वाले बच्चे ने उसे बताया था कि ऑप्रेशन के बाद महेश माँ-माँ पुकारता हुआ रो रहा था। वह नौ नंबर बैड वाला बच्चा दूसरे बच्चों से थोड़ा समझदार और बड़ा भी लग रहा था। तब सरस्वती उस नौ नंबर बैड वाले बालक के पास छोड़ कर और महेश का ध्यान रखने को कहकर जल्दी से अस्पताल के गेट के पास आ गई। उसे अपने बच्चे को इस तरह छोड़ कर जाना अच्छा नहीं लग रहा था। उसकी आँखों से आँसू छलक रहे थे। वार्ड में नौ नंबर वाला बच्चा महेश को समझा रहा था किंतु महेश कुछ सुनने को तैयार नहीं था। वह तो बस माँ की रट लगाए हुए था। कुछ देर बाद हार मानकर नौ नंबर बैड वाला वह बच्चा वापस अपने बैड पर चला गया। थोड़ी देर बाद चारों ओर खामोशी छा गई। इस खामोशी में भी महेश की मम्मी-मम्मी की हिचकी गूंज रही थी। सात बजे मरीडा और मांजरेकर नाम की दो नर्से वार्ड में आईं। वे दोनों आपस में बातें कर रही थीं और बच्चों का तापमान देखते हुए उनको दवाई खिला रही थीं। वे बच्चों का बिस्तर ठीक कर रही थीं। बच्चों को अच्छा महसूस करवाने के लिए चार नंबर बैड वाले बच्चे को मरींडा बोली कि उसका बिस्तर खिड़की के पास है और उसे बाहर आसमान को देखना चाहिए न कि चादर में मुँह छिपाकर पिता को याद करते हुए रोना चाहिए। मरीडा मांजरेकर से बच्चों के पास समय बिताने और बातें करने को कहती है लेकिन मांजरेकर यह कहकर टाल देती है कि अस्पताल में उन्हें साँस लेने तक की फुर्सत नहीं होती, तो वे बच्चों से बातें कब करेंगे।
दोनों के जाने के बाद फिर से वार्ड में ऐसी खामोशी छा गई जैसे वहाँ कोई न हो। वार्ड में सभी के बैड एक जैसे थे। उनकी चादर तथा कंबल भी एक ही रंग के थे। बैड के साइड में एक छोटी सी अलमारी थी जिसका प्रयोग साइड टेबल की तरह किया जाता था। आठ बजे नर्स सूसान वार्ड में आई। उसे देखकर सभी बच्चों के चेहरों पर मुस्कान छा गई। नौ और चार नंबर बैड का बच्चे तो उसके स्वागत में उठकर बैठ गए। जब वह बच्चों को दवाई पिला रही थी और उनका बुखार चैक कर रही थी, तब नौ नंबर वाले बच्चे ने उसे महेश के बारे में बताया। जब वह महेश के पास पहुँची तो उससे प्यार से बातें करने लगी। उसने उसको बताया कि उसका भी एक बेटा है जिसका नाम भी महेश है किंतु वह अभी छोटा है केवल तीन महीने का है। वह उसे बहुत परेशान करता है। जब वह अस्पताल आती है तो वह बहुत रोता है। सूसान महेश को बातें बताती हुई सूप और दवाई पिलाती है। महेश सूसान के बेटे के बारे में और जानने को उत्सुक होने लगा। उसने पूछा वह और क्या करता है। सूसान ने कहा वह अभी बोल नहीं सकता। लेकिन अगं, अगूं… गू, गूं आदि स्वर निकालता रहता है। सूसान बबलू के समान मुँह फुलाकर आवाजें निकालकर महेश को दिखाने लगती है। जिसे देखकर महेश हँस पड़ता है। सूसान महेश को दवाई और सूप पिला कर जाने लगती है और कहती है कि जब ज़रूरत हो वह उसे बुला सकता है, जैसे वह घर पे अपनी माँ को बुलाता है।
दूसरे दिन जब सरस्वती महेश से मिलने अस्पताल आई तो वह पहले बहुत घबरा रही थी कि उसका बेटा कैसा होगा? वह सोच रही थी कि पिछले दिन की तरह उस दिन भी वह उसे छोड़ के कैसे आएगी। परन्तु मम्मी को देखते ही महेश ने उसे गले से लगा लिया। उसने माँ से अपनी बहन मोना के बारे में पूछा कि क्या वह उसके आने पर रो रही थी ? माँ ने उसे बताया नहीं वह मोना को राजू के पास छोड़कर आई है। तब महेश ने माँ को बताया कि उसकी बहन तो बहुत अच्छी है। परन्तु सिस्टर सूसान का बेटा उसके अस्पताल आने पर बहुत रोता है। वह बहुत शैतान है। माँ के दिल पर सूसान का नाम छप गया। जब 13 दिन के बाद महेश घर वापिस आया तो वह बहुत खुश था। सरस्वती ने सोचा की उसे सुसान को धन्यवाद देना चाहिए कि उसने महेश का इतने अच्छे से ध्यान रखा। इसलिए वह अस्पताल गई और सुसान के लिए फूलों का गुच्छा और उसके बेटे के लिए अच्छा सा उपहार ले कर गई। बाद में जब माँ को सूसान से पता लगा कि वह तो अभी अविवाहित थी और उसने महेश को अच्छा महसूस करवाने के लिए झूठ ही अपने बेटे की बात कही थी तो माँ उसके स्वभाव और बालमनोविज्ञान की समझ से प्रभावित हो उठी थी।
नर्स पाठ व्याख्या Nurse Lesson Explanation
पाठ: छह साल के नन्हे से बेटे को सरस्वती कैसे समझाए कि वह उसके पास अस्पताल में नहीं रह सकती। अस्पताल के क़ायदे से बेख़बर नन्हा तो माँ से रोता हुआ बस यही रट लगाए रहा, “मत जाओ मम्मी, प्लीज़ तुम मत जाओ।”
सरस्वती एक लंबी साँस लेकर बेटे के पलंग के पास रखे स्टूल पर बैठ गई। बेटे के गालों पर हाथ फिराकर कहने लगी, “देखो बेटे, वार्ड में कितने बच्चे हैं, किसी की मम्मी है उनके पास ?”
महेश अपने नन्हे तन को कसमसाता बोला, “भले ही किसी की भी मम्मी न हो पर मैं आपको नहीं जाने दूँगा।”
सरस्वती परेशान हो गई। उसे दो बार कहा जा चुका है कि समय पूरा हो गया है, अब आप जाइए। जब वह चार बजे वार्ड में दाखिल हुई तो महेश माँ को देखते ही तड़प-तड़पकर रो उठा था। उसे दिलासा देने के लिए ही बोलना पड़ा था कि अब वह घर नहीं जाएगी, पर जाना तो था ही वार्ड में कुल बारह बच्चे थे। दूसरे सभी बच्चों के पास आए हुए मुलाकाती छह बजते-बजते जा चुके थे, और सवा छह बज जाने पर भी वह यहीं बैठी थी। सरस्वती की घूमती निगाहों ने देखा, सभी बच्चे महेश को ही ताक रहे हैं। कुछ देर पहले ही नौ नंबर बेड वाला बच्चा बताकर गया था कि ऑपरेशन के बाद होश में आते ही महेश मम्मी… मम्मी पुकारता जोर-जोर से चिल्लाया था। सरस्वती को ख़याल आया, नौ नंबर वाला बच्चा समझदार और दूसरे बच्चों से बड़ा, शायद 10 वर्ष का होगा। शायद वही उसकी मदद कर सके इसलिए उसके पास जाकर बोली, “बेटे, तुम आकर महेश से थोड़ी देर बातें करो तो मैं यहाँ से खिसक जाऊँ।”
बच्चे ने कहा कि वह पहले भी महेश से दो-तीन बार बात करने की कोशिश कर चुका है पर वह उसकी कोई बात सुनने को तैयार ही नहीं सरस्वती बोली, “अब तुम उसे कोई कविता या कहानी सुनाना, तब तक मैं निकल जाऊँगी।”
बालक को महेश के पास छोड़ वह वार्ड से ऐसे निकली जैसे कोई चोर। जाते-जाते उसने महेश की पुकार सुनी जरूर परंतु जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाती अस्पताल के गेट के पास आ पहुँची। एक बार वार्ड नंबर 11 की तरफ देखा उसकी आँखें कब बहने लगीं, उसे पता ही नहीं चल पाया था। आँखें पोंछती वह सड़क पर आ गई।
शब्दार्थ
नन्हे – छोटे
क़ायदे – कानून
बेख़बर – अनजान
रट – किसी शब्द का बार बार उच्चारण करने की क्रिया
तन – शरीर
कसमसाता – अकड़ाते हुए
दाखिल – प्रवेश
दिलासा – तसल्ली
ख़याल – याद
खिसक – छिपकर चल देना
व्याख्या – लेखिका अस्पताल के एक दृश्य को दर्शाती हुई कहती है कि सरस्वती को समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपने छह साल के छोटे से बेटे को किस तरह समझाए कि वह उसके पास अस्पताल में नहीं रह सकती। अस्पताल के नियमों से अनजान उसका छोटा सा बच्चा तो उससे रोता हुआ बस बार-बार उसे छोड़ कर न जाने की विनती कर रहा था। बच्चे के बार-बार कहने पर सरस्वती भी एक लंबी साँस लेकर बेटे के पलंग के पास रखे हुए स्टूल पर बैठ गई। और बेटे के गालों पर हाथ फिरते हुए समझाने लगी कि वार्ड में और भी तो कितने सारे बच्चे हैं, क्या उन में से किसी की मम्मी उनके पास रुकी हुई है? परन्तु महेश अपने छोटे से शरीर को अकड़ाता हुआ बोला कि चाहे किसी की भी मम्मी वहाँ न हो पर उसे नहीं जाने देगा। महेश की जिद्द से सरस्वती परेशान हो गई। अस्पताल वाले उसे दो बार कह चुके थे कि मरीज से मिलने का उसका समय पूरा हो गया है, अब वह बाहर जाए। जब उसने चार बजे वार्ड में महेश से मिलने के लिए प्रवेश किया था, तो महेश अपनी माँ को देखते ही तड़प-तड़पकर रो उठा था। उसे तसल्ली देने के लिए ही सरस्वती को झूठ बोलना पड़ा था कि अब वह घर नहीं जाएगी, परन्तु उसे जाना तो था ही। महेश के वार्ड में कुल बारह बच्चे थे। दूसरे सभी बच्चों से मिलने आए उनके रिश्तेदार छह बजते-बजते जा चुके थे, और सवा छह बज जाने पर भी सरस्वती वहीं महेश के पास बैठी थी। सरस्वती ने जब इधर-उधर निगाहें दौड़ा के देखा, तो उसने पाया कि सभी बच्चे महेश को ही देखे जा रहे थे। सरस्वती को कुछ देर पहले ही नौ नंबर बेड वाला बच्चा बताकर गया था कि ऑपरेशन के बाद जैसे ही महेश को होश आया था, महेश जोर-जोर से मम्मी… मम्मी पुकारता हुआ चिल्लाया था। सरस्वती को याद आया कि वह नौ नंबर वार्ड वाला बच्चा समझदार है और दूसरे बच्चों से थोड़ा बड़ा भी है। वह शायद लगभग 10 साल का होगा। सरस्वती को लगा कि शायद अब वही बच्चा उसकी मदद कर सकता है इसलिए वह उसके पास जाकर बोली कि वह महेश के पास आकर थोड़ी देर बातें करें। जिससे मौक़ा देखकर वह महेश को बिना बताए चुपके से अस्पताल से बाहर जा सके। बच्चे ने सरस्वती से कहा कि वह पहले भी महेश से दो-तीन बार बात करने की कोशिश कर चुका है पर वह उसकी कोई बात सुनने को तैयार ही नहीं है। सरस्वती ने उसे सुझाव दिया कि अब वह महेश को कोई कविता या कहानी सुनाए, तब तक वह अस्पताल से निकल जाएगी। उस लड़के को वह महेश के पास छोड़ कर वार्ड से ऐसे निकली जैसे कोई चोर चुप-चाप जाता है। जब वह जा रही थी तब उस महेश की पुकार सुनाई जरूर पड़ी थी, परंतु वह बिना ध्यान दिए जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाती हुई अस्पताल के गेट के पास आ पहुँच गई। एक बार उसने महेश के वार्ड नंबर 11 की तरफ देखा, उसे पता ही नहीं चला की कब उसकी आँखें आंसुओं से भर गई। आँखें पोंछती हुई वह सड़क पर आ गई थी।
पाठ: वार्ड में नौ नंबर वाला बच्चा महेश को समझाते हुए कह रहा था, “चिल्लाओगे तो दर्द ज्यादा होगा।” पर महेश उसे सुना-अनसुना कर मम्मी-मम्मी की रट लगाता रहा। अचानक उसे याद आया ‘कि महेश की मम्मी ने कहानी सुनाने के लिए कहा था, सो फिर से बोला, “तुम रोना बंद करो तो मैं तुम्हें एक कहानी सुनाऊँ।”
“मुझे नहीं सुननी कहानी।” महेश तुर्शी से बोला। दो-चार मिनट बाद ही नौ नंबर वाला बच्चा वापिस अपने बिस्तर पर चला गया।
पौने सात बजे ख़ामोश वार्ड में केवल पाँच नंबर वाले महेश की हिचकी भरी मम्मी-मम्मी की रट सुनाई दे रही थी। इस वक्त अक्सर वायुमंडल में गहरी उदासी छाई रहती। चुपचाप बैठे हुए बच्चे वार्ड में आते-जाते डॉक्टर, नर्स, वार्ड ब्वॉय व मेहतरानी को देख शायद इसी सोच में डूब जाते कि फिर 24 घंटों के बाद अपने घरवालों का मुँह देख सकेंगे।
सात बजे मरींडा व मांजरेकर नाम की दो नसें वार्ड में आई। मरीजों के बिस्तर ठीक करती आपस में धीरे-धीरे बातचीत करती हुई जैसे ही चार नंबर बिस्तर पर पहुँची तब मरींडा ने मांजरेकर से कहा, “देखो, कैसे इस बच्चे ने अपना मुँह चादर में छुपा लिया है। रोज शाम को छह बजे जैसे ही इसके पिता मिलकर जाते हैं वैसे ही यह बच्चा चद्दर में मुँह छुपाकर रोना शुरू कर देता है।”
मांजरेकर बोली, “इट्स सैड।”
चौथे नंबर का बिस्तर सही करती मरींडा बच्चे से बोली, “देखो, तुम्हारा पलंग कितनी अच्छी जगह पर रखा हुआ है, खिड़की के पास अरे, खिड़की के बाहर तो देखो, आसमान दिख रहा है।” और उसने उसके मुँह से चद्दर हटा दी। बच्चे ने नैपकिन उठाकर आँखें पोंछों और मरींडा का कहा मानकर खिड़की के बाहर देखने लगा।
पाँच नंबर का बिस्तर ठीक करते हुए मांजरेकर ने कहा, “यह बच्चा तो मम्मी को पुकारता हुआ इतना रोया है कि मन ही विचलित हो गया। देखो न अभी भी कैसे काँप रहा है।”
मरौंडा बोली, “सच में, हमें रोज़ इन बच्चों के पास बैठकर प्यार और अपनेपन से बातें करनी चाहिए।”
मांजरेकर ने बालक की चद्दर ठीक कर उसे कंधों तक ढकते हुए कहा, “यहाँ तो मरने तक की फुर्सत नहीं, इन बच्चों के साथ किस वक्त बैठकर बातें करें।”
मरींडा ने नैपकिन से बच्चे का मुँह साफ़ कर मुस्कुराते हुए पूछा, “पानी पीओगे ?” फिर उसके जवाब का इंतज़ार न कर पानी भरा गिलास जैसे ही उसकी तरफ़ बढ़ाया, महेश ने मुँह फेर लिया। मरींडा पानी का गिलास वापस रख, बच्चे के सिर पर हाथ फेर कर आगे बढ़ गई।
शब्दार्थ
तुर्शी – रुष्टता, व्यवहार आदि में दिखाई जाने वाली कटुता
पौने – किसी संख्या में से चौथा भाग (¼) कम, किसी संख्या के तीन चौथाई भाग
ख़ामोश – मौन, चुप्पी, शांति
हिचकी – बहुत रोने से साँस रुकने लगना
अक्सर – आम तैर पर
मेहतरानी – सफ़ाई करने वाली
नैपकिन – रूमाल
विचलित – अस्थिर, चंचल
फुर्सत – खाली समय
व्याख्या- वार्ड में नौ नंबर वाला बच्चा महेश को समझाने की कोशिश कर रहा था कि यदि वह ज्यादा चिल्लाएगा तो उसे ज्यादा दर्द होगा। परन्तु महेश उसकी किसी भी बात को नहीं सुन रहा था। वह सिर्फ बार-बार मम्मी-मम्मी ही पुकार रहा था। वार्ड में नौ नंबर वाले बच्चे को अचानक याद आया कि महेश की मम्मी ने उसे महेश को कहानी सुनाने के लिए कहा था, इसलिए वह महेश से कहने लगा कि यदि वह रोना बंद करेगा तो वह उसे एक कहानी सुनाएगा। परन्तु महेश ने बड़ी रुष्टता से जवाब दिया कि उसे कोई कहानी नहीं सुननी। परेशान हो कर दो-चार मिनट बाद ही नौ नंबर वाला बच्चा वापिस अपने बिस्तर पर चला गया।
सात बजने में जब पंद्रह मिनट थे तब तक पूरे वार्ड में चुपी छा गई थी, केवल पाँच नंबर वाले महेश की धीरे-धीरे रोने की आवाज के साथ मम्मी-मम्मी की रट सुनाई दे रही थी। अस्पताल में उस वक्त तक आम तौर पर पूरे माहौल में गहरी उदासी छाई रहती थी। क्योंकि चुपचाप बैठे हुए बच्चे वार्ड में आते-जाते डॉक्टर, नर्स, वार्ड ब्वॉय व सफाई करने वाली महिला को देख कर शायद इसी सोच में डूब जाते थे कि फिर 24 घंटों के बाद वे अपने घरवालों को देख सकेंगे।
जैसे ही सात बजे मरींडा व मांजरेकर नाम की दो नर्सें वार्ड में आई। वे मरीजों के बिस्तर ठीक करते हुए आपस में धीरे-धीरे बातचीत कर रही थी और जैसे ही वे चार नंबर बिस्तर पर पहुँची तब मरींडा ने मांजरेकर से कहा कि इस चार नंबर बिस्तर वाले बच्चे ने अपना मुँह चादर में छुपा रखा है। यह रोज शाम को अपने पिता से मिलता है और छह बजे जैसे ही वे चले जाते हैं, वैसे ही यह बच्चा चद्दर में मुँह छुपाकर रोना शुरू कर देता है। यह सुनकर मांजरेकर को बहुत बुरा लगा।
चौथे नंबर का बिस्तर ठीक करते हुए मरींडा उस बच्चे को अच्छा महसूस करवाने के लिए बच्चे से कहती है कि उसका पलंग बहुत अच्छी जगह पर रखा हुआ है, बिलकुल खिड़की के पास में। और खिड़की से बाहर देखने पर आसमान भी दिखता है। और ऐसा कहते हुए उसने बच्चे के मुँह से चद्दर हटा दी। बच्चे ने भी रुमाल उठाकर आँखें पोछी और मरींडा का कहना मानकर खिड़की के बाहर देखने लगा।
अब पाँच नंबर का बिस्तर ठीक करते हुए मांजरेकर ने उस बिस्तर पर लेटे बच्चे के बारे में मरींडा को बताया कि वह बच्चा तो मम्मी को पुकारता हुआ इतना रोया था कि सभी का मन विचलित हो गया था और वह अभी भी काँप रहा है।
मांजरेकर की बातें सुनकर मरींडा कहने लगी कि उन्हें रोज़ इन बच्चों के पास बैठकर प्यार और अपनेपन से बातें करनी चाहिए। मांजरेकर ने उस बालक की चद्दर को ठीक कर उसे बालक के कंधों तक ढकते हुए कहा कि अस्पताल में तो उन्हें मरने तक का समय नहीं होता अर्थात अस्पताल में वे बहुत ज्यादा व्यस्त होते हैं, वे इन बच्चों के साथ बैठकर बातें करने का समय कैसे निकाल सकतीं हैं।
मरींडा ने रुमाल से महेश का मुँह साफ़ किया और मुस्कुराते हुए उससे पानी के लिए पूछा। फिर महेश के जवाब का इंतज़ार न कर पानी से भरा गिलास जैसे ही उसकी तरफ़ बढ़ाया, महेश ने मुँह फेर लिया। मरींडा ने पानी का गिलास वापस रख दिया और महेश के सिर पर हाथ फेर कर आगे बढ़ गई।
पाठ – फिर वही शांति, जैसे वहाँ कोई न हो। केवल बारह पलंग और हर पलंग के पास एक छोटा-सा कबर्ड, जिसे साइड टेबल की तरह भी काम में लिया जाता है। उस पर पानी का गिलास व जग। सब बच्चों के बिस्तर एक जैसे, हर बिस्तर के पायताने ब्राउन रंग का कंबल एक ही तरीके से लिपटा हुआ। कोई किसी से अलग नहीं, बारहों बच्चे ही एक जैसे लग रहे हैं।
आठ बजे सिस्टर सुसान ने वार्ड में आते ही कई बच्चों के चेहरे पर मुस्कान छा गई। एक और नौ नंबर वाले बच्चे तो उसके स्वागत के लिए बिस्तर पर उठकर बैठ गए। सिस्टर ने उनकी ओर हाथ हिलाया और बच्चों का टेंपरेचर देख रिकॉर्ड करती उन्हें दवा का डोज़ पिलाने लगी। सूसान जब नौ नंबर बेड के पास पहुँची तो वह बोला, “सिस्टर जो पाँच नंबर है न, सारा दिन मम्मी मम्मी कहकर रोया है। मेरा तो जिस दिन ऑपरेशन हुआ था मैंने क्राइस्ट को याद किया था।”
सिस्टर उसे एक कैप्सूल और गोली देती बोली, “पाँच नंबर अपनी माँ को ही क्राइस्ट समझता होगा।”
“माँ को कैसे क्राइस्ट समझता होगा ?”
सुसान ने आठ नंबर की तरफ बढ़ते हुए जवाब दिया, “तुम्हें इस बात का जवाब बाद में दूँगी, तब तक गुड नाइट।”
शब्दार्थ
कबर्ड – अलमारी
पायताने – पाँयता, वह दिशा जिधर पैर फैला कर सोया जाए
ब्राउन – भूरा
टेंपरेचर – तापमान
रिकॉर्ड – किसी व्यक्ति, वस्तु आदि के बारे में जानकारी या सूचना दर्ज़ करना
डोज़ – खुराक
क्राइस्ट – ईश्वर (ईसा मसीह)
व्याख्या – मरींडा व मांजरेकर के जाने के बाद वार्ड में फिर वैसे ही शांति हो गई, जैसे वहाँ कोई न हो। केवल बारह पलंग और हर पलंग के पास एक छोटी-सी अलमारी, जिसे साइड टेबल की तरह भी प्रयोग में लिया जाता था। उस छोटी अलमारी के ऊपर पानी का गिलास व जग रखा होता था। सब बच्चों के बिस्तर बिलकुल एक जैसे थे, हर बिस्तर पर जिस दिशा में बच्चे सोते थे, वहां भूरे रंग का कंबल एक ही तरीके से लिपटा हुआ था। कोई भी किसी से अलग नहीं था, सभी बारह बच्चे ही एक जैसे लग रहे थे।
जैसे ही आठ बजे सिस्टर सुसान वार्ड में आई, कई बच्चों के चेहरे पर मुस्कान छा गई। एक और नौ नंबर वाले बच्चे तो उसके स्वागत के लिए बिस्तर पर उठकर बैठ गए थे। सिस्टर ने भी उनकी ओर हाथ हिलाया और फिर सभी बच्चों का तापमान देख कर, उसकी जानकारी इकठ्ठा करती हुई सभी को दवा की खुराक पिलाने लगी। सूसान जब नौ नंबर बेड के पास पहुँची, तो उस पर लेटा बच्चा सिस्टर सूसान से कहने लगा कि जो बच्चा पाँच नंबर पर है, वह सारा दिन मम्मी को याद करके रोता रहा है। अपने बारे में वह कहता है कि जिस दिन उसका ऑपरेशन हुआ था उसने तो ईश्वर (ईसा मसीह) को याद किया था। अर्थात उसे समझ नहीं आ रहा था कि महेश ईश्वर को याद करने के बजाए अपनी माँ को क्यों याद कर रहा है ? सिस्टर सूसान ने उसे एक कैप्सूल और गोली दी और उसे समझाया कि पाँच नंबर अर्थात महेश अपनी माँ को ही क्राइस्ट अर्थात ईश्वर समझता होगा। यह बात नौ नंबर वाले बच्चे को समझ नहीं आई। सुसान ने आठ नंबर वाले बिस्तर की तरफ बढ़ते हुए नौ नंबर वाले बच्चे को अभी के लिए गुड नाइट कहा और दिलासा दिया कि वह उसे बाद में समझाएगी।

पाठ: सुसान पाँच नंबर बेड पर पहुँची। टेबल पर दवाइयों की ट्रे रख थर्मामीटर उठाते हुए महेश से बोली, “कोई-कोई बच्चा बहुत तंग करता है। परंतु तुम अच्छे बच्चे लग रहे हो, तुम तंग नहीं करोगे।” महेश ने उसकी तरफ देखा। टेंपरेचर रिकॉर्ड करते हुए सूसान ने पूछा “छोटे बच्चे तुम्हारा नाम क्या है?”
“महेश।”
“अरे वाह, महेश तो मेरे बेटे का भी नाम है।” और चुटकी बजाते हुए बोली, “वह अभी बहुत छोटा है, नन्हा सा पता है कितना सा?”
“कितना-सा ?” महेश ने पूछा।
सुसान ने स्टूल पर बैठते हुए बताया, “यह तुम्हारी बाँह है ना, बस तुम्हारी बाँह जितना । सिर्फ तीन महीने का है, मुझे इतना परेशान करता है कि बस….” सूसान, महेश का हाथ अपने हाथ में लेकर बोली, “अभी जब मैं अस्पताल आ रही थी न, तब इतना रोया, इतना रोया कि मैं तुम्हें क्या बताऊँ?” महेश ने कुछ पूछना चाहा पर फिर चुपचाप सूसान को देखने लगा। सूसान ने उसे बताया, “आखिर में पता है मैंने क्या किया? उसे आया की गोदी में देकर चली आई। अब शायद चुप हो गया होगा। आया उससे खेलती है ना। या फिर गाना गाकर सुनाती है तो वह खुशी से अपने हाथ-पैर ऐसे ऊपर-नीचे करने लगता है, जैसे डांस कर रहा हो।”
महेश छोटे बबलू की कल्पना करते हुए पूछ बैठा, “वह और क्या करता है?”
सूसान महेश को सूप पिलाती हुई बोली, “बोलना तो उसे आता ही नहीं है, फिर भी कैसी- कैसी तो आवाजें निकालता है, अगूं, अंगू… गूं, गूं…. और यूँ गाल फुलाता है।” सुसान अपने गालों को फुलाती बबलू जैसी आवाजें निकालने की कोशिश करने लगी। महेश को हँसी आ गई। सूसान उसे दवाई पिलाती हुई बोली, “मैं तुम्हें अपने शैतान बबलू की बहुत-सी बातें बताऊँगी लेकिन बाद में, अभी तो मुझे काम है ना। कोई भी काम हो तो बेल बजाकर मुझे बुला लेना जैसे घर में मम्मी को बुलाते हो। अस्पताल में नर्स ही मम्मी होती है।”
शब्दार्थ
आया – बच्चे की देख-रेख करने वाली
कल्पना – अनुमान
व्याख्या – सिस्टर सुसान सभी बच्चों को दवाई देते हुए पाँच नंबर बेड पर पहुँची। टेबल पर दवाइयों की ट्रे रख कर उन्होंने थर्मामीटर उठाते हुए महेश से कहा की कोई-कोई बच्चा उन्हें बहुत तंग करता है। और महेश से कहा कि वह अच्छा बच्चा है उसे तंग नहीं करेगा। सिस्टर सुसान की बातें सुकर महेश उसकी तरफ देखने लगा। तापमान की जानकारी इकट्ठी करते हुए सूसान ने फिर से महेश से बात करते हुए उसका नाम पूछा। महेश ने भी अपना नाम बता दिया। इस पर सुसान चुटकी बजाते हुए कहने लगी कि उसके बेटे का नाम भी महेश ही है। और वह बहुत छोटा सा है। महेश की जिज्ञासा बढ़ाने के लिए वह महेश से कहती है कि क्या वह जानता है कि उसका बेटा कितना छोटा है? महेश भी उत्सुकता में पूछता है और सुसान बताती है कि जितनी महेश की बाँह है ना, बस वह उतना ही है। वह सिर्फ तीन महीने का है, और सुसान को बहुत परेशान करता है। सूसान, महेश का हाथ अपने हाथ में ले लेती है और बताती है कि अभी जब वह अस्पताल आ रही थी , तब उसका बेटा बहुत रोया। महेश ने सारी बातें सुनी और कुछ पूछना चाहा, पर फिर चुपचाप सूसान को देखने लगा। सूसान ने उसे आगे बताया कि आखिर में वह अपने बेटे को बच्चे संभालने वाली महिला की गोदी में देकर अस्पताल चली आई। सूसान को लगता है कि अब शायद वह चुप हो गया होगा। बच्चे संभालने वाली महिला उसके साथ खेलती है। या फिर उसे गाना गाकर सुनाती है तो वह खुशी से अपने हाथ-पैर ऊपर-नीचे करने लगता है, जैसे वह डांस कर रहा हो। सूसान की बातें सुनकर महेश सुजान के छोटे बेटे बबलू की हरकतों का अंदाजा लगाते हुए पूछ बैठता है कि वह और क्या करता है? सूसान महेश को सूप पिलाती हुई अपने बेटे के बारे में उसे और बताती है कि बोलना तो उसे आता ही नहीं है, फिर भी न जाने कैसी-कैसी आवाजें निकालता है और गाल फुलाता है। सूसान अपने गालों को फुलाती हुई बबलू की नकल करते हुए उसकी जैसी आवाजें निकालने की कोशिश करने लगी। सुसान की हरकतों को देखते हुए महेश को हँसी आ गई। सूसान महेश को दवाई पिलाती हुई कहती है कि वह उसे अपने शैतान बेटे बबलू की बहुत-सी बातें बताएगी लेकिन अभी तो उसे काम है, वह बाद में उसे और बातें बताएगी। सुसान महेश को यह भी कहती है कि यदि उसे कोई भी काम हो तो वह बेल बजाकर उसे बुला ले, जैसे घर में वह अपनी मम्मी को बुलाता है। क्योंकि अस्पताल में नर्स ही बच्चों की मम्मी होती है।
पाठ: दूसरे दिन शाम के चार बजते ही सरस्वती अस्पताल के गेट तक पहुँच गई। कल बेटे का ऑपरेशन सफल हुआ, इसका उसे संतोष था परंतु बेटे ने रात कैसे बिताई होगी, यह सोचते ही घबरा गई। कल उसे रोता छोड़कर आना पड़ा था। आज उसे किस तरह छोड़कर आ पाएगी, सोचते ही उसके माथे पर पसीना निकल आया। बेटे के पलंग तक पहुँचते-पहुँचते सोचों ने समय को लंबा कर दिया। महेश को चूमते हुए बोली, “बेटा, कैसा है तू ?”
“अरे मम्मी, तुम आ गई ?” महेश ने माँ के गले में बाँहें डालते हुए पूछा, “पापा कब आएँगे?”
“आ जाएँगे थोड़ी देर में।”
“मम्मी जब तुम मेरे पास आ रही थीं तो मोना रो रही थी क्या ?” महेश ने छोटी बहन के लिए पूछा।
सरस्वती ने लंबी साँस छोड़ते हुए कहा, “नहीं नहीं, उसे पास वाले राजू के घर छोड़कर आई हूँ। वो उसे खेल खिलाते हैं ना।”
“हमारी मोना अच्छी है। तुम उसे छोड़कर आई। तब भी नहीं रोई परंतु सिस्टर सूसान है ना, उसका बबलू बहुत ही शैतान है। वह बेचारी जब अस्पताल आती है तो बहुत रोता है।”
सरस्वती के दिल पर सिस्टर सूसान का नाम छप-सा गया। उसने महेश से पूछा, “तुम्हें किसने बताया कि सिस्टर सूसान का बबलू शैतान है ?”
“सिस्टर सूसान ने बतलाया।”
“किस वक़्त ?”
“रात को।”
“बेटे तुमको रात में नींद आई थी?”
“हाँ।” महेश खुशी से बोला, “सिस्टर सुसान ने दूध पिलाया फिर कविता सुनाई। मम्मी उनकी आवाज़ इतनी प्यारी है……”
“किसकी, सिस्टर सूसान की?”
“हाँ और मम्मी उनके बबलू का नाम भी महेश है। और मम्मी, सिस्टर सूसान पता है क्या करती है, बबलू के बिस्तर के ऊपर जो डंडा है, उसमें खिलौने बाँध देती है।”
सरस्वती के दो घंटे कैसे निकल गए उसे पता ही नहीं चला। छह बजे जब मुलाक़ाती जाने लगे तब उसका मन घबराने लगा। स्टूल से उठते हुए बेटे को प्यार करती बोली, “बेटे अब मैं जा रही हूँ, छह बज गए हैं न।”
“हाँ मम्मी, जल्दी आओ। मोना को राजू के घर से जल्दी ले आओ।”
शब्दार्थ
ऑपरेशन – शल्य-क्रिया
संतोष – तृप्ति, सब्र, संतुष्टि
सोचों – विचार करने का भाव, चिंतन, चिंता
व्याख्या – एक दिन बीत गया और दूसरे दिन शाम के चार बजते ही सरस्वती अस्पताल के गेट तक पहुँच गई। पिछले कल उसके बेटे महेश का ऑपरेशन सफल हुआ था, इस बात की उसे संतुष्टि तो थी, परंतु उसके बेटे ने उसके बिना रात कैसे बिताई होगी, यह सोचते ही वह घबरा गई। क्योंकि कल उसे अस्पताल में अपने बेटे को रोता हुआ ही छोड़कर आना पड़ा था। आज वह उसे किस तरह छोड़कर आ पाएगी, यह सोचते ही उसके माथे पर पसीना निकल आया। अर्थात वह परेशान हो गई। बेटे के पलंग तक पहुँचते-पहुँचते उसके विचारों की लम्बी पंक्तियों ने समय को मानो लंबा कर दिया था। अर्थात आज उसे अस्पताल के गेट से महेश के पलंग तक पहुँचने में अधिक समय लगा। महेश को प्यार करते हुए उसने उसका हाल पूछा। महेश ने भी माँ के गले में अपनी बाँहें डालते हुए माँ का स्वागत किया और अपने पापा के बारे में पूछा। माँ ने उसे बताया कि उसके पापा भी थोड़ी देर में आ जाएँगे। फिर महेश अपनी माँ से सवाल करने लगा कि जब वह उसके पास आ रही थीं तो क्या उसकी छोटी बहन मोना रो रही थी ? सरस्वती ने लंबी साँस छोड़ते हुए ‘नहीं’ में उत्तर दिया और कहा कि वह उसे पास वाले राजू के घर छोड़कर आई है। वो उसे खेल खिलाते हैं इसलिए वह नहीं रोती। इस पर महेश अपनी बहन मोना को अच्छी बताता है। जो उसकी माँ उसे छोड़कर आई। तब भी वह नहीं रोई परंतु महेश बताता है कि सिस्टर सूसान का बेटा बबलू बहुत ही शैतान है। क्योंकि जब वह बेचारी अस्पताल आती है तो वह बहुत रोता है। सरस्वती के दिल पर सिस्टर सूसान का नाम छप-सा गया। उसने महेश से पूछा कि उसे किसने बताया कि सिस्टर सूसान का बबलू शैतान है ? महेश ने कहा की उसे खुद सिस्टर सूसान ने बतलाया। सरस्वती ने पूछा कि सिस्टर सुसान ने किस वक़्त उसे सारी बात बताई ? इस पर महेश ने बताया की सिस्टर सुसान ने उसे रात में सब बताया था। सरस्वती ने महेश से पूछा कि क्या उसे रात में नींद आई थी? महेश ने भी खुशी से हाँ में जवाब दिया। और बताया कि सिस्टर सुसान ने उसे दूध पिलाया फिर कविता भी सुनाई। महेश सिस्टर सुसान के बारे में और बताता है कि उसे उनकी आवाज़ प्यारी लगती है और उनके बबलू का नाम भी महेश ही है। और सिस्टर सूसान बबलू के बिस्तर के ऊपर जो डंडा है, उसमें खिलौने बाँध देती है।
महेश की बातों में सरस्वती के दो घंटे कैसे निकल गए उसे पता ही नहीं चला। छह बजे जब परिचितों के जाने का समय हुआ और सभी जाने लगे, तब सरस्वती का मन घबराने लगा। वह स्टूल से उठते हुए महेश को प्यार करती हुई बोली कि छह बज गए हैं, अब वह जा रही है। महेश ने भी उसे जल्दी जाने को कहा और मोना को राजू के घर से जल्दी ले आने को कहा। कहने का अभिप्राय यह है कि सरस्वती को लग रहा था कि महेश आज भी रोएगा परन्तु आज महेश ने उसे खुशी-ख़ुशी जाने को कहा।
पाठ: आज बेटा घर जाने की इजाज़त यूँ ख़ुशी-ख़ुशी देगा, उसने सपने में भी नहीं सोचा था। घर जाते-जाते वह असंभव को संभव करने वाली सिस्टर सूसान की कल्पना करने लगी कि कैसी होगी सूसान नाम की सोन परी जिसने यह जादू कर दिखाया।
13 दिन बाद महेश को अस्पताल से छुट्टी मिली। घर आकर वह अपनी छोटी बहन मोना और पड़ोस के दोस्तों से ऐसे मिला जैसे वर्षों बाद घर लौटा हो। सारा दिन ख़ुशी से बिताते हुए वह शाम होते न होते भूल चुका था कि 13 दिन अस्पताल में बिताकर आ रहा है। परंतु सरस्वती ना तो अस्पताल को भूली थी और ना ही सिस्टर सूसान को सुबह बेटे को घर लाते समय उसने पता लगा लिया था कि आज सिस्टर सुसान की ड्यूटी शाम चार बजे से है। शाम के पाँच बजते ही वह अस्पताल जाने के लिए तैयार हो गई। उसके हाथों में सिस्टर सूसान के लिए गुलदस्ता व उसके बबलू के लिए शानदार गिफ़्ट था। अस्पताल जाते हुए वह अजीब-सी ख़ुशी महसूस कर रही थी। बारह दिन से जिस स्त्री के प्रति उसका दिल शुक्रगुजार था, आज उसके सामने पहुँच अपने मन की भावना कैसे व्यक्त करेगी? उससे क्या बोलेगी, “मेहरबानी।” नहीं; नहीं; बोलेगी, “तुम्हारी जिंदगी हमेशा रोशन रहे।” अरे! नहीं, उससे कहेगी, “तुम बहारों की रुत हो। तुम्हारे आँगन में हमेशा फूल खिलते रहें…”
और साढ़े पाँच बजे सरस्वती पहुँच गई सिस्टर सूसान के पास अपना परिचय देती बोली, “मैं तुम्हें कभी भी नहीं भूल पाऊँगी, कभी भी नहीं।”
सूसान ने जोर से ठहाका लगाते हुए कहा, “मुझे जल्दी से भूल जाइएगा, नहीं तो आपके पति को मुझसे ईर्ष्या होने लगेगी। पति बहुत ही ईर्ष्यालु होते हैं।”
सरस्वती की भी हँसी छूट गई। उसने सिस्टर को गुलदस्ता और उसके बबलू के लिए गिफ़्ट पेश किया। सिस्टर सूसान इतना हँसी, इतना हँसी कि पास में बैठी मैट्रेन ने उसे तीखी नज़रों से देखते हुए वार्निंग दे डाली कि अस्पताल में वह इतना ज़ोर से कैसे हँस सकती है? सूसान ने भी अपनी भूल महसूस करते हुए मैट्रेन से माफ़ी माँगी और सरस्वती से बोली, “रंग-बिरंगे सुंदर फूलों वाला यह गुलदस्ता तो मैं ख़ुशी से ले रही हूँ। बाक़ी यह गिफ़्ट किसी ऐसी स्त्री को दे दीजिए, जिसका कोई बबलू हो। मेरा तो कोई बबलू है ही नहीं, मैंने तो अभी शादी ही नहीं की है।”
शब्दार्थ
इजाज़त – आज्ञा, अनुमति
यूँ – इस तरह
गुलदस्ता – फूलों का गुच्छा
शुक्रगुजार – आभारी, कृतज्ञ
व्यक्त – प्रकट
मेहरबानी – अच्छा व्यवहार करना, दया-भाव से पेश आना अर्थात तरस खाना
बहारों – एक ऐसी जगह जहां हर जगह फूल खिलते हैं, फूलों से हर तरफ़ सजा हुआ स्थान
रुत – ऋतु, मौसम
ईर्ष्या – जलन
ईर्ष्यालु – ईर्ष्या करने वाला, जलने वाला
मैट्रेन – अधीक्षिका, किसी व्यवहार, बात, काम आदि को ध्यान से देखनेवाली महिला
वार्निंग – चेतावनी
व्याख्या – सरस्वती ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि आज उसका बेटा उसे घर जाने की अनुमति इस तरह ख़ुशी-ख़ुशी देगा। अर्थात दूसरे दिन महेश ने बिना रोए अपनी माँ को घर जाने दिया। घर जाते-जाते वह असंभव को संभव करने वाली सिस्टर सूसान की कल्पना करने लगी कि सूसान नाम की वह नर्स किसी सोन परी जैसे होगी जिसने यह जादू कर दिखाया।
13 दिन बाद महेश को जब अस्पताल से छुट्टी मिली, तो वह घर आकर अपनी छोटी बहन मोना और पड़ोस के दोस्तों से ऐसे मिला जैसे न जाने कितने वर्षों बाद घर लौटा हो। सारा दिन ख़ुशी से बिताते हुए वह शाम होते-होते यह भी भूल चुका था कि वह 13 दिन बाद अस्पताल से घर आया है। परंतु सरस्वती ना तो अस्पताल को भूली थी और ना ही उस सिस्टर सूसान को जिसने उसके बेटे को अस्पताल में माँ की कमी महसूस नहीं होने दी थी। अपने बेटे को सुबह घर लाते समय उसने पता लगा लिया था कि उस दिन सिस्टर सुसान की ड्यूटी शाम चार बजे से है। इसलिए शाम के पाँच बजते ही वह अस्पताल जाने के लिए तैयार हो गई। उसने सिस्टर सूसान के लिए फूलों का गुच्छा व उसके बेटे बबलू के लिए एक बहुत ही शानदार उपहार लिया हुआ था। अस्पताल जाते हुए उसे अजीब सी ख़ुशी महसूस हो रही थी। बारह दिन से जिस स्त्री के प्रति उसके दिल में आभार भरा था, आज उसके सामने पहुँच कर वह अपने मन की भावना उसे कैसे बताएगी? वह उससे कैसे बात करेगी, क्या बोलेगी, वह इसी उलझन में थी। वह सोच रही थी कि वह उसके दयाभाव के लिए धन्यवाद कहेगी । या वह बोलेगी, कि उसकी जिंदगी हमेशा रोशन रहे। या वह उससे कहेगी कि वह उस मौसम की तरह है जिसमें हर जगह फूलों से भर जाती है। उसके आँगन में हमेशा फूल खिलते रहें। अर्थात सरस्वती सुसान के सामने अपनी ख़ुशी और उसका आभार व्यक्त करने के लिए शब्दों का चयन नहीं कर पा रही थी।
साढ़े पाँच बजे सरस्वती, सिस्टर सूसान के पास पहुँच गई और अपना परिचय देती बोली कि वह उसे कभी भी नहीं भूल पाऊँगी। इस पर सूसान ने जोर से ठहाका लगाते हुए उससे मजाक में कहा कि वह उसे जल्दी से भूल जाइएगा, नहीं तो सरस्वती के पति को उससे जलन होने लगेगी। क्योंकि पति बहुत ही ईर्ष्यालु होते हैं।
सुसान की बातें सुनकर सरस्वती की भी हँसी छूट गई। उसने सिस्टर सुसान को फूलों का गुच्छा दिया और उसके बेटे बबलू के लिए गिफ़्ट भी दिया। सिस्टर सूसान इस बात पर इतना हँसी, कि पास में बैठी उनके अस्पताल की हर बात का ध्यान रहने वाली अध्यक्षिका ने उसे तीखी नज़रों से देखते हुए चेतावनी दे डाली कि अस्पताल में वह इतना ज़ोर से कैसे हँस सकती है? सूसान ने भी अपनी भूल स्वीकार करते हुए अध्यक्षिका से माफ़ी माँगी और सरस्वती से बोली कि वह रंग-बिरंगे सुंदर फूलों वाला गुलदस्ता तो ख़ुशी से ले रही है। बाक़ी यह जो गिफ़्ट लाई है वह किसी ऐसी स्त्री को दे , जिसका कोई बबलू हो। क्योंकि उसका तो कोई बबलू है ही नहीं, उसने तो अभी शादी भी नहीं की है। अर्थात सुसान ने केवल महेश को अच्छा महसूस करवाने के लिए अपनी शादी और बेटे की झूठी कहानी सुनाई थी। यह स्वभाव उसके बालमनोविज्ञान की अच्छी समझ का उदाहरण प्रदर्शित करता है।
Conclusion
प्रस्तुत कहानी नर्स का रोगी के प्रति सेवाभाव और ममत्व के भाव को रोगी के हित में प्रस्तुत करती है। साथ ही एक बच्चे और माँ के मन के भावों को भी बहुत मजबूती से प्रस्तुत करती है। कहानी में स्पष्ट किया गया है कि नर्सिंग केवल एक व्यवसाय, पेशा या करियर नहीं है बल्कि मानवता की सेवा है। इस कहानी में अस्पताल में दाखिल छह वर्षीय महेश को अस्पताल में अपनी माँ के बिना अच्छा नहीं लगता। ऐसे में सिस्टर सुसान चिकित्सा और उपचार के अतिरिक्त अपनी बातचीत और व्यवहार से उसे माँ की ही तरह ममता, स्नेह और सुरक्षा प्रदान करती है। PSEB Class 10 Hindi – पाठ-10 ‘नर्स’ की इस पोस्ट में सार, व्याख्या और शब्दार्थ दिए गए हैं। छात्र इसकी मदद से पाठ को तैयार करके परीक्षा में पूर्ण अंक प्राप्त कर सकते हैं।