नीति के दोहे पाठ सार
PSEB Class 10 Hindi Book Chapter 3 “Niti Ke Dohe” Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings
नीति के दोहे सार – Here is the PSEB Class 10 Hindi Book Chapter 3 Niti Ke Dohe Summary with detailed explanation of the lesson “Niti Ke Dohe” along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary
इस पोस्ट में हम आपके लिए पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड कक्षा 10 हिंदी पुस्तक के पाठ 3 नीति के दोहे पाठ सार, पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 10 नीति के दोहे पाठ के बारे में जानते हैं।
Niti Ke Dohe (नीति के दोहे)
By रहीम, बिहारी, वृन्द
प्रस्तुत संकलन में ‘नीति के दोहे’ में महाकवि रहीम, बिहारी व वृन्द के द्वारा उचित या ठीक रास्ते पर ले जाने अथवा राष्ट्र या समाज की उन्नति या हित के लिए निश्चित आचार-व्यवहार से संबंधित शिक्षा दायक व प्रेरणादायक दोहे हैं।
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नीति के दोहे पाठ सार Niti Ke Dohe Summary
‘नीति के दोहे’ (रहीम) का सार
पहले चार दोहे रहीम जी के दिए गए हैं। जिसमे प्रथम दोहे में रहीम जी कहते है कि सम्पति या अच्छे समय में आपके बहुत से मित्र बन जाते हैं, परन्तु जो विपत्ति या कठिनाई में साथ देता है वही सच्चा मित्र है। दूसरे दोहे में रहीम जी अपना लक्ष्य या ध्येय एक ओर केंद्रित करने की शिक्षा देते हैं। तीसरे दोहे में स्वार्थ की अपेक्षा परमार्थ के महत्व को दिखाया है। चौथे दोहे में रहीम जी कहते हैं कि किसी वस्तु के छोटे आकार को देखकर उसके महत्व को नहीं भूलना चाहिए।
‘नीति के दोहे’ (बिहारी) का सार
पाँचवें से आठवें दोहे बिहारी जी के हैं। जिनमें पाँचवें दोहे में बिहारी जी कहते हैं कि कनक (सोने) का नशा धतूरे (कनक) के नशे से सौ गुना है क्योंकि धतूर (कनक) को तो खाने से ही नशा चढ़ता है पर सोना (कनक) अर्थात् धन सम्पत्ति तो जिस व्यक्ति के पास आ जाती है उसे दौलत का नशा चढ़ जाता है। छठे दोहे में बिहारी जी ने एक भँवरे के माध्यम से मानव को आशावादी होने का संदेश दिया है। सातवें दोहे में बिहारी जी कहते हैं कि एक जैसे स्वभाव या प्रकृति वालों का साथ ही ज्यादा देर रहता है। आठवें दोहे में बिहारी जी गुणों के महत्व पर जोर देते हैं।
‘नीति के दोहे’ (वृन्द) का सार
नौवें से बारहवें दोहे वृन्द जी द्वारा रचित है। नौवें दोहे में वृन्द जी परिश्रम के महत्व के बारे बताते हैं। दसवें दोहे में वृन्द छल और कपट के व्यवहार को थोड़ी देर चलने वाला ही मानते हैं। ग्यारहवें दोहे में वृन्द मीठे वचनों के महत्व को दर्शाते हैं। बारहवें दोहे में वृन्द शिक्षा देते हैं कि अपने शत्रु को कभी भी छोटा, तुच्छ या अपने से कमजोर नहीं समझना चाहिए।
नीति के दोहे पाठ व्याख्या Niti Ke Dohe Explanation
रहीम
1.
कहि रहीम सम्पति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
विपत कसौटी जे कसे, सोई साँचै मीत।। (1)
शब्दार्थ –
कहि – कहते हैं
सम्पति – धन-दौलत
सगे – सगे-संबंधी
बनत – बनते हैं
बहु – अनेक
रीत – प्रकार
विपत – मुसीबत
जे – जो
कसौटी – गुणवत्ता को परखना, मापदण्ड
कसे – खरा उतरना
सोई – वही
साँचे – सच्चा
मीत – मित्र
व्याख्या – प्रस्तुत दोहे में रहीम जी ने सच्चे मित्र के लक्षण बताये हैं। रहीम जी कहते हैं कि जब हमारे पास धन-दौलत होती है तो अनेक प्रकार के लोग हमारे सगे-संबंधी अथवा मित्र बन जाते हैं परंतु सच्चे मित्र की गुणवत्ता की परख कठिन समय में ही होती है। कहने का आशय यह है कि जो मुसीबत के समय में आपके साथ खड़ा रहता है वही आपका सच्चा मित्र होता है।
2.
एकै साधे सब सधै, सब साधै सब जाय।
रहिमन सींचे मूल को फूलै फलै अधाय।। (2)
शब्दार्थ –
साधे – साथ
मूल – जड़
फूलै – फूल आना
फलै – फल आना
अधाय – तृप्त होना
व्याख्या – प्रस्तुत दोहे में रहीम जी ने एक निष्ठ भाव से एक की आराधना करने पर बल दिया है। रहीम के अनुसार अगर हम एक-एक कर कार्यों को पूरा करते हैं, तो हमारे सारे कार्य पूरे हो जाएंगे, परन्तु यदि सभी काम एक साथ शुरू कर दिये तो कोई भी कार्य पूरा नही हो पायेगा। उदाहरण के लिए जैसे किसी वृक्ष की जड़ को सींचने से वह फलता-फूलता है तथा उसके फलों को खा कर सब तृप्त हो जाते हैं। कहने का आशय यह है कि पहले एक काम पूरा करने की ओर ध्यान देना चाहिए। बहुत से काम एक साथ शुरू करने से कोई भी काम ढंग से नहीं हो पता, वे सब अधूरे से रह जाते हैं।
3.
तरुवर फल नहिं खात हैं, सरवर पियहिं न पान।
कहि रहीम पर काज हित, सम्पति संचहिं सुजान।। (3)
शब्दार्थ –
तरूवर – वृक्ष, पेड़
खात – खाना
सरवर – तालाब
पियहिं – नहीं पीता
पान – पानी
परकाज – परोपकार, दूसरे की भलाई
हित – के लिए
संचहिं – एकत्र करना
सुजान – अच्छे लोग, सज्जन
व्याख्या – प्रस्तुत दोहे में रहीम जी ने परोपकार के महत्त्व को प्रदर्शित किया है। रहीम जी कहते हैं कि वृक्ष कभी भी अपने फल नहीं खाता और तालाब भी अपना जल कभी नहीं पीता। रहीम जी कहते हैं कि सज्जन व्यक्ति दूसरों की भलाई के लिए ही धन-दौलत एकत्र करते हैं। कहने का आशय यह है कि मनुष्य को अपनी धन-संपत्ति का सदुपयोग दूसरों की भलाई अथवा परोपकार के लिए करना चाहिए।
4.
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवे सुईं, का करे तरवारि ।। (4)
शब्दार्थ –
बड़ेन – बड़ा
लघु – छोटा, तुच्छ
डारि – छोड़ना, तिरस्कार करना
आवे – आना
तरवारि – तलवार
व्याख्या – प्रस्तुत दोहे में रहीम जी छोटी वस्तु के महत्त्व को बताना चाह रहे हैं। रहीम जी कहते हैं कि किसी बड़े व्यक्ति अथवा वस्तु को देखकर हमें छोटे व्यक्ति अथवा वस्तु को नहीं छोड़ना चाहिए अथवा उसका तिरस्कार नहीं करना चाहिए क्योंकि जिस प्रकार सुई छोटी है और तलवार बड़ी। किन्तु आवश्यकता के समय जहाँ सुई काम आ सकती है, वहाँ तलवार क्या कर सकती है। कहने का आशय यह है कि हमें बड़ी वस्तु अथवा संपन्न व्यक्ति को देखकर छोटी वस्तु अथवा निर्धन व्यक्ति की उपयोगिता को भूलना नहीं चाहिए। हमें दोनों का सम्मान करना चाहिए।
बिहारी
5.
कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय।
वह खाये बौरात है, यह पाये बौराय।। (5)
शब्दार्थ –
कनक – धतूरा
कनक – सोना
मादकता – नशा
अधिकाय – अत्यधिक
बौरात – बौरा जाना, नशे में होना
बौराय – पागल हो जाता है
व्याख्या – प्रस्तुत दोहे में बिहारी जी ने यह बताया है कि धन और वैभव का नशा मनुष्य को पागल बना देता है। महाकवि बिहारी कहते हैं कि धतूरे की तुलना में स्वर्ण में सौगुना अधिक नशा होता है क्योंकि धतूरे को खाने पर नशा होता है जबकि सोने के प्राप्त करने मात्र से ही नशा हो जाता है। कहने का आशय यह है कि जो नशा धतूरा खाने पर होता है, उससे कहीं अधिक नशा धन-सम्पति के प्राप्त होने मात्र से हो जाता है।
6.
इहि आशा अटक्यों रहै, अलि गुलाब के मूल।
हो है बहुरि बसन्त ऋतु, इन डारनि पै फूल।। (6)
शब्दार्थ –
इहि – इस
अटक्यों – अटक कर रहना
अलि – भँवरा
मूल – जड़
हो है – आ जाएगी
बहुरि – फिर से
व्याख्या – प्रस्तुत दोहे में बिहारी जी ने मनुष्य को सदा आशावादी रहने का संदेश दिया है। कवि कहता है कि फूल न होने पर भी भँवरा गुलाब की जड़ के पास इसलिए रहता है क्योंकि उसे उम्मीद है कि फिर से बसंत ऋतु आएगी और इन डालियों पर फूल खिल जाएँगे। कहने का आशय यह है कि मनुष्य को कभी निराश नहीं होना चाहिए क्योंकि दुःख के बाद सुख आता ही है। मनुष्य को निरन्तर उम्मीद बनाए रखनी चाहिए।
7.
सोहतु संग समानु सो, यहै कहै सब लोग ।
पान पीक ओठनु बनैं, नैननु काजर जोग।। (7)
शब्दार्थ –
सोहतु – शोभामान होता है
संग – साथ
समानु – एक सामान
यहै – यही
पीक – चबाए हुए पान, तंबाकू या गिलौरी की थूक
नैननु – आँखें
काजर – काजल
व्याख्या – प्रस्तुत दोहे में बिहारी जी बताते हैं कि एक जैसे स्वभाव वालों का साथ सदा बना रहता है। कवि कहता है कि एक जैसे स्वभाव वाले लोगों का साथ ही सदा रहता है ऐसा ही सब लोग भी कहते हैं। क्योंकि चबाए हुए पान की लालिमा सदा ओंठों पर तथा काजल आँखों में सुशोभित होता है। अथवा चबाए हुए पान की लालिमा ओंठों के लिए तथा काजल आँखों के लिए बना है। कहने का आशय यह है कि समान प्रकृति तथा स्वभाव के व्यक्तियों का साथ सदा बना रहता है।
8.
गुनी गुनी सबकै कहैं, निगुनी गुनी न होतु।
सुन्यों कहूँ तरू अरक तें, अरक समान उदोतु ।। (8)
शब्दार्थ –
गुनी – गुणवान
कहैं – कहने से
निगुनी – गुणहीन
सुन्यों कहूँ – कहीं सुना है
तरू – वृक्ष
अरक – आक या मदार का पौधा
अरक-समान – सूर्य के समान
उदोतु – प्रकाशवान
व्याख्या – प्रस्तुत दोहे में बिहारी जी ने स्पष्ट किया है कि कहने मात्र से ही गुणहीन व्यक्ति गुणवान नहीं हो सकता। कवि कहता है कि सब लोगों के द्वारा किसी गुणहीन व्यक्ति को बार-बार गुणवान कहने से वह गुणहीन व्यक्ति गुणवान नहीं बन सकता क्योंकि क्या कभी कहीं यह नहीं सुना कि आक या मदार के वृक्ष में भी सूर्य के समान तेज तथा उजाला है। अर्थात जैसे अरक कहने से आक का वृक्ष अरक अर्थात् सूर्य नहीं हो सकता वैसे ही गुणहीन को गुणी-गुणी कहते रहने से वह गुणवान नहीं हो सकता है। कहने का आशय यह है कि गुणहीन को गुणी कहते रहने से उसे गुणवान नहीं बनाया जा सकता।
वृन्द
9.
करत करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात ते, सिल पर परत निसान।। (9)
शब्दार्थ –
करत करत – बार-बार करना
जड़मति – मूर्ख
होत – होना
सुजान – विद्वान्, बुद्धिमान
रसरी – रस्सी
आवत – आना
जात – जाना
सिल – पत्थर, चट्टान
परत – पढ़ना
निसान – निशान
व्याख्या – प्रस्तुत दोहे में कवि वृन्द बताते हैं कि अभ्यास करने से मूर्ख भी विद्वान् बन सकता है। कवि कहता है कि बार-बार अभ्यास करने से मूर्ख व्यक्ति भी विद्वान् बन सकता है। जैसे रस्सी के बार-बार घिसने से पत्थर पर भी निशान पड़ जाते हैं। कहने का आशय यह है कि परिश्रम करने से व्यक्ति अपने लक्ष्य को अवश्य प्राप्त कर लेता है।
10.
फेर न ह्वै है कपट सों, जो कीजै व्यापार।
जैसे हाँडी काठ की, चढ़ न दूजी बार।। (10)
शब्दार्थ –
फेर – दुबारा
ह्वै – फिर से होना
कपट – छल
काठ – लकड़ी
दूजी – दूसरी
व्याख्या – प्रस्तुत दोहे में कवि वृन्द ने यह स्पष्ट किया है कि छल-कपट का व्यवहार बार-बार नहीं चलता। कवि कहता है कि यदि कोई व्यक्ति छल-कपट और चालाकी से अपना कार्य करता है तो उसका छल-कपट एक बार तो चल जाता है परंतु बार-बार नहीं चलता। जैसे लकड़ी की हांडी एक बार तो चूल्हे पर चढ़ जाती है परंतु दोबारा नहीं चढ़ सकती। कहने का आशय यह है कि छल-कपट से आप बार-बार अपना कार्य नहीं करवा सकते।
11.
मधुर वचन ते जात मिट, उत्तम जन अभिमान।
तनिक सीत जल सों मिटे, जैसे दूध उफान।। (11)
शब्दार्थ –
मधुर – मीठे
वचन – शब्द, वाणी
अभिमान – घमंड, अहंकार
तनिक – थोड़े से
सीत – ठंडा
उफान – उबाल
व्याख्या – प्रस्तुत दोहे में कवि ने मीठी वाणी के प्रभाव का वर्णन किया है। कवि कहता है कि मधुर वचनों अथवा मीठी वाणी से किसी भी अभिमानी व्यक्ति के गर्व अथवा घमंड को उसी प्रकार से शांत किया जा सकता है जैसे थोड़े से ठंडे पानी के छींटों से उबलते हुए दूध के उफ़ान को कम कर लिया जाता है। कहने का आशय यह है कि मधुर वाणी के प्रयोग से क्रोधी व्यक्ति के क्रोध तथा घमंडी के घमंड को भी शांत किया जा सकता है।
12.
अरि छोटो गनिये नहीं जाते होत बिगार।
तृण समूह को तनिक में, जारत तनिक अंगार।। (12)
शब्दार्थ –
अरि – शत्रु, दुश्मन
गनिये – मानना, गिनना
बिगार – बिगड़ना
तृण – तिनका
तनिक – क्षण भर में
जारत – जलाना
तनिक – छोटा-सा
अंगार – आग का अंगारा
व्याख्या – प्रस्तुत दोहे में कवि ने संदेश दिया है कि अपने छोटे-से-छोटे शत्रु को भी कभी कमजोर नहीं समझना चाहिए। कवि कहता है कि अपने शत्रु को कभी भी छोटा या अपने से कमजोर नहीं समझना चाहिए क्योंकि इस से आपके कई कार्य बिगड़ सकते है। जिस प्रकार तिनकों के समूह को आग का केवल एक छोटा सा अंगारा क्षणभर में जला कर नष्ट कर देता है वैसे ही शत्रु को कम समझने से हानि होती है। कहने का आशय यह है कि कभी भी किसी कार्य अथवा शत्रु को अपने से कम नहीं समझना चाहिए।
Conclusion
‘नीति के दोहे’ में महाकवि रहीम, बिहारी व वृन्द के द्वारा उचित या ठीक रास्ते पर ले जाने अथवा राष्ट्र या समाज की उन्नति या हित के लिए निश्चित आचार-व्यवहार से संबंधित शिक्षा दायक व प्रेरणादायक दोहे हैं। PSEB Class 10 Hindi – पाठ-3 ‘नीति के दोहे’ की इस पोस्ट में सार, व्याख्या और शब्दार्थ दिए गए हैं। छात्र इसकी मदद से पाठ को तैयार करके परीक्षा में पूर्ण अंक प्राप्त कर सकते हैं।
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