हम राज्य लिए मरते हैं पाठ सार
PSEB Class 10 Hindi Book Chapter 4 “Hum Rajya Liye Marte Hain” Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings
हम राज्य लिए मरते हैं सार – Here is the PSEB Class 10 Hindi Book Chapter 4 Hum Rajya Liye Marte Hain Summary with detailed explanation of the lesson “Hum Rajya Liye Marte Hain” along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary
इस पोस्ट में हम आपके लिए पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड कक्षा 10 हिंदी पुस्तक के पाठ 4 हम राज्य लिए मरते हैं पाठ सार, पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 10 हम राज्य लिए मरते हैं पाठ के बारे में जानते हैं।
Hum Rajya Liye Marte Hain (हम राज्य लिए मरते हैं)
by मैथिलीशरण गुप्त
प्रसिद्ध कवि मैथिलीशरण गुप्त हिंदी साहित्य के महान कवियों में गिने जाते हैं। उन्हें राष्ट्रीय कवि भी कहा जाता है। उनके प्रसिद्ध महाकाव्य ‘साकेत’ में उर्मिला का चरित्र विशेष रूप से दिखाया गया है। प्रस्तुत गीत साकेत के उसी प्रसंग से लिया गया है, जिसमें उर्मिला किसानों के जीवन की प्रशंसा करती हैं। वह किसानों की सरलता, धैर्य, परिश्रम और संतोषपूर्ण जीवन की तुलना राजपरिवार की जटिलताओं और दुखों से करती हैं। उर्मिला मानती हैं कि राजा-रजवाड़े तो राज्य के लिए मरते रहते हैं, परंतु वास्तविक सुख और समृद्धि किसानों के जीवन में बसती है।
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हम राज्य लिए मरते हैं पाठ सार Hum Rajya Liye Marte Hain Summary
मैथिलीशरण गुप्त के साकेत के नवम् सर्ग से ली गयीं पंक्तियों में उर्मिला किसानों की महत्ता, उनके शांति पूर्ण जीवन और सरलता का वर्णन करती हैं। इस सर्ग में उर्मिला के विरही जीवन का वर्णन किया गया है। वह कहती हैं कि राजपरिवार को राज्य के झगड़े, राजनीति और जिम्मेदारियों में उलझकर दुःख उठाना पड़ता है, परंतु असली राज्य का संचालन तो किसान करते हैं। किसान खेतों में अन्न उपजाते हैं, जिससे सबका जीवन चलता है। वे अपने परिवार और पत्नी के साथ संतोषपूर्वक रहते हैं। उनके लिए गाय सबसे बड़ा धन है और वे धैर्यपूर्वक कठिनाइयों का सामना करते हैं। उनका जीवन सादगी और श्रम पर आधारित है, परंतु वे त्योहारों और खुशियों को मनाकर अपने जीवन को उत्सवमय बना लेते हैं। किसान व्यर्थ के विवादों से दूर रहते हैं और अपने श्रमधर्म को निभाते हैं। उर्मिला को लगता है कि किसानों का जीवन वास्तव में सुखी है, क्योंकि उन्हें किसी से भय नहीं है, राजा स्वयं उनकी रक्षा करते हैं। अंत में वह सोचती हैं कि यदि वे स्वयं किसान होतीं, तो जीवन में अधिक शांति और सुख प्राप्त होता, लेकिन राजपरिवार में रहकर उन्हें दुःख और कलह सहने पड़ते हैं। उनके अनुसार राजपरिवार में रहने वाले लोग राज्य के लिए कलह करते रहते हैं।
हम राज्य लिए मरते हैं पाठ व्याख्या Hum Rajya Liye Marte Hain Explanation

1
हम राज्य लिए मरते हैं ।
सच्चा राज्य परन्तु हमारे कर्षक ही करते हैं।
जिनके खेतों में है अन्न,
कौन अधिक उनसे सम्पन्न ?
पत्नी सहित विचरते हैं वे, भव वैभव भरते हैं,
शब्दार्थ-
मरते हैं- दुःखी होते हैं
राज्य– शासन, राजपाट
कर्षक– किसान, खेती करने वाले लोग
सम्पन्न– धनी, समृद्ध
पत्नी सहित- अपनी पत्नी के साथ
विचरते हैं– रहते हैं, घूमते हैं
भव वैभव– संसार के ऐश्वर्य
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ मैथिलीशरण गुप्त द्वारा लिखित महाकाव्य ‘साकेत’ के नवम् सर्ग से ली गयीं हैं। इन पंक्तियों में लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला राज्य के कलह से दुःखी हैं और किसानों के सरल, शांतिपूर्ण और सुखद जीवन की प्रशंसा कर रही हैं।
व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियों में उर्मिला कहती हैं कि राजपरिवार कलह और कष्टों से ग्रस्त है। हम राज्य की बातें करके दुःखी होते रहते हैं। दूसरी ओर किसान सच्चा ‘राज्य’ संभालते हैं। वही खेतों में अन्न पैदा करते हैं और सबसे संपन्न वहीं हैं। उनसे ज्यादा सुखदायक जीवन किसी का नहीं है। वे अपनी पत्नी और परिवार के साथ सुखमय जीवन व्यतीत करते हैं। इस तरह, किसान वास्तव में उनसे बेहतर और अधिक समृद्ध हैं।
2
हम राज्य लिए मरते हैं।
वे गोधन के धनी उदार,
उनको सुलभ सुधा की धार,
सहनशीलता के आगर वे श्रम सागर तरते हैं।
हम राज्य लिए मरते हैं।
शब्दार्थ-
गोधन- गाय-रूपी धन
उदार- दानी, बड़े दिल वाले
सुलभ– आसानी से उपलब्ध
सुधा की धार– गाय काअमृत जैसा दूध
सहनशीलता– सहने की शक्ति
आगर- भंडार, खज़ाना
श्रम– मेहनत
तरते हैं– पार करते हैं, सहते हैं
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियों में किसान के सादा जीवन और सरलता के विषय में बताया गया है।
व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियों में उर्मिला राज्य के कलह से दुःखी होते हुए लक्ष्मण जी से कहती हैं कि किसान गाय के दूध जैसे अमृत से संपन्न हैं, उनके पास गाय रूपी धन है। जिसके कारण वे धनी हैं। वे सहनशीलता के गुण से भरे हुए हैं अर्थात् सहनशील और परिश्रमी हैं। वे निरन्तर मेहनत करके श्रम रूपी सागर में तैरते हैं। उनके पास जीवन के लिए आवश्यक साधन सहज रूप से उपलब्ध हैं। जबकि राजा-परिवार राज्य कलह में उलझा है, किसान समृद्ध और संतुष्ट जीवन जीते हैं।
3
यदि वे करें, उचित है गर्व,
बात बात में उत्सव – पर्व,
हम से प्रहरी रक्षक जिनके, वे किससे डरते हैं ?
हम राज्य लिए मरते हैं।
शब्दार्थ-
उचित– सही
गर्व- अभिमान, आत्मसम्मान
उत्सव– समारोह
पर्व- त्योहार
प्रहरी– पहरेदार
रक्षक– सुरक्षा करने वाला
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियों में उर्मिला बताती हैं कि किसान अपने जीवन की साधारण खुशी में गर्व क्यों महसूस कर सकते हैं।
व्याख्या- इन पंक्तियों में उर्मिला कहती हैं किसान को अपने ऊपर गर्व करना स्वाभाविक और उचित है। वे हर छोटी-छोटी बात में उत्सव मनाते हैं और अपने सुख को सहज रूप से प्रदर्शित करते हैं। आगे वह कहती हैं कि जब राजा ही उनके रक्षक हैं, तो उन्हें किसी से डरने की आवश्यकता नहीं। वास्तव में वे आत्मनिर्भर और निर्भीक जीवन जीते हैं। आगे उर्मिला राज्य के कलह से दुःखी होते हुए कहती हैं कि हम महलों में रहने वाले लोग राज्य के लिए मरते रहते हैं।
4
करके मीन मेख सब ओर,
किया करें बुध वाद कठोर,
शाखामयी बुद्धि तजकर वे मूल धर्म धरते हैं।
हम राज्य लिए मरते हैं।
शब्दार्थ-
मीन मेख– निकालना, तर्क वितर्क करना
बुध- बुद्धिमान, विद्वान
वाद- वाद विवाद, तर्क, बहस
शाखामयी बुद्धि- फैलाव वाली बुद्धि, व्यर्थ की उलझी हुई चतुराई
तजकर- छोड़कर
मूल धर्म– मूल कर्तव्य, वास्तविक धर्म
धरते हैं- अपनाते हैं, निभाते हैं
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियों में उर्मिला किसान के साधारण जीवन और उनके स्वभाव की प्रशंसा कर रही हैं।
व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियों में उर्मिला कहती हैं कि ज्ञानी लोग हर बात पर झगड़ा करते हैं, दोष निकालते हैं, लंबी-चौड़ी बाते हाँकते रहते हैं और विवाद करते हैं। लेकिन किसान ऐसा नहीं करते, वे शाखाओं वाली जटिल बुद्धि को त्यागकर मूल धर्म को धारण करते हैं, जबकि हम राज्य के लिए मरते रहते हैं, यानी कलह करके दुःखी होते रहते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि किसान शांति और धर्म का अनुसरण करते हैं और विद्वान लोग कठोर वाद-विवाद में उलझे रहते हैं। उसी तरह हम भी राज्य के लिए लड़ते-मरते रहते हैं।
5
होते कहीं वही हम लोग,
कौन भोगता फिर ये भोग ?
उन्हीं अन्नदाताओं के सुख आज दुःख हरते हैं।
हम राज्य लिए मरते हैं।
शब्दार्थ-
भोग– सुख
अन्नदाताओं- अन्न देने वाले किसानों
हरते है- दूर करते हैं
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियों में उर्मिला किसानों के जीवन की तुलना राज्य के लालच में लगे हुए लोगों से कर रही हैं।
व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियों में उर्मिला कहती हैं कि यदि हम लोग-भी किसान होते तो राज्य के कलह से उत्पन्न दुःखों को कौन भोगता। उर्मिला के अनुसार राज्य करना आसान नहीं है, अनेक प्रकार के कष्टों को सहन करना पड़ता है। आगे उर्मिला कहती हैं कि किसान हमारे अन्न दाता हैं। इनका सुखमय जीवन देखकर हमारे अनेकों कष्ट दूर हो सकते हैं। परन्तु दुःख की बात यह है कि सब कुछ जानते हुए भी हम राज्य के घमंड में लड़ते-झगड़ते रहते हैं।
Conclusion
इस पोस्ट में ‘हम राज्य लिए मरते हैं’ पाठ का साराँश, प्रसंग, व्याख्या और शब्दार्थ दिए गए हैं। यह पाठ PSEB कक्षा 10 के पाठ्यक्रम में हिंदी की पाठ्यपुस्तक से लिया गया है। प्रस्तुत पद्य मैथिलीशरण गुप्त जी के प्रसिद्ध महाकाव्य ‘साकेत’ के नवम् सर्ग से लिया गया है। जिसमें ‘साकेत’ की नायिका उर्मिला राज्य के कारण हुए गृह कलह से दुःखी हैं और किसानों के शांति पूर्ण जीवन की प्रशंसा कर रही हैं। यह पोस्ट विद्यार्थियों को पाठ को गहराई से समझने में मदद करेगा और परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देने में भी सहायक सिद्ध होगा।