PSEB Class 10 Hindi Chapter 16 Thele Par Himalaya (ठेले पर हिमालय) Question Answers (Important)
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PSEB Class 10 Chapter 16 Thele Par Himalaya Textbook Questions
अभ्यास
(क) विषय-बोध
I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए-
प्रश्न 1 – लेखक कौसानी क्यों गये थे?
उत्तर – लेखक हिमालय की बर्फ को नजदीक से देखने के लिए कौसानी गये थे।
प्रश्न 2 – बस पर सवार लेखक ने साथ-साथ बहने वाली किस नदी का ज़िक्र किया है?
उत्तर – बस पर सवार लेखक ने साथ-साथ बहने वाली कोसी नदी का ज़िक्र किया है।
प्रश्न 3 – कौसानी कहाँ बसा हुआ है?
उत्तर – नैनीताल से रानीखेत और रानीखेत से डरावने मोड़ों को पार करने के बाद कौसानी सोमेश्वर की घाटी के उत्तर की पर्वतमाला के शिखर पर बसा हुआ है।
प्रश्न 4 – लेखक और उनके मित्रों की निराशा और थकावट किसके दर्शन से छूमंतर हो गई?
उत्तर – लेखक और उनके मित्रों की निराशा और थकावट हिमालय के हिम दर्शन से छूमंतर हो गई।
प्रश्न 5 – लेखक और उनके मित्र कहां ठहरे थे?
उत्तर – लेखक और उनके मित्र डाक बंगले में ठहरे थे।
प्रश्न 6 – दूसरे दिन घाटी से उतर कर लेखक और उनके मित्र कहां पहुंचे?
उत्तर – दूसरे दिन घाटी से उतर कर लेखक और उनके मित्र बैजनाथ पहुंचे।
प्रश्न 7 – बैजनाथ में कौन-सी नदी बहती है?
उत्तर – बैजनाथ में गोमती नदी बहती है।
II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन या चार पंक्तियों में दीजिए-
प्रश्न 1 – लेखक को ऐसा क्यों लगा जैसे वे ठगे गये हैं?
उत्तर – लेखक को ऐसा इसलिए लगा क्योंकि जब कोसी से उनकी बस चली तो रास्ते का सारा दृश्य ही बदल गया। सुन्दर बनावट वाले पत्थरों पर कल-कल करती हुई कोसी, उसके किनारे के छोटे-छोटे सुंदर गाँव और हरे मखमली खेत। सोमेश्वर की घाटी अत्यधिक सुंदर लग रही थी। अत्यधिक हरी-भरी। रास्ते में एक के बाद एक बस स्टैंड आ रहे थे, छोटे-छोटे पहाड़ी डाकखाने दिखाई पड़ रहे थे, बीच-बीच में चाय की दुकाने और कभी-कभी कोसी या उसमें गिरने वाले नदी-नालों पर बने हुए पुल भी दिख जाते थे। कहीं-कहीं सड़क सुनसान चीड़ के जंगलों से गुजरती थी। लेखक की बस कौसानी के अड्डे पर जाकर रुकी। कौसानी बहुत छोटा-सा गाँव है, जो बिल्कुल बर्बाद-सा या वीरान सा है और बरफ़ का तो वहाँ कहीं नाम-निशान नहीं था। लेखक और उनके साथियों को वहाँ पहुँच कर ऐसा लगा जैसे उन लोगों के साथ धोखा हुआ हो। क्योंकि वे तो बर्फ को नजदीक से देखने ही आए थे। बस से उतरते समय लेखक बहुत उदास था।
प्रश्न 2 – सबसे पहले बर्फ दिखाई देने का वर्णन लेखक ने कैसे किया है?
उत्तर – जब धीरे-धीरे बादल हट रहे थे तब लेखक को समझ नहीं आ रहा था कि वह बादलों के पीछे कौन सी चीज़ है जो स्थिर है। अर्थात जो अपनी जगह से नहीं हट रही थी। वह छोटा-सा बादल के टुकड़े जैसा प्रतीत हो रहा था, और उसका रंग भी लेखक को कुछ अजब ही लग रहा था। उसका रंग न सफ़ेद था, न चाँदी के समान था, न हलका नीला था, परन्तु फिर भी उसमें इन तीनों रंगों का आभास हो रहा था। वह क्या था लेखक को समझ नहीं आ रहा था? लेखक के मन में आया कि कहीं यह बरफ़ तो नहीं है। फिर अपने आप को सही ठहराते हुए उन्हें आभास हुआ कि वह बरफ़ ही है। और बिजली की तरह उनके मन में यह विचार प्रकट हुआ कि इसी घाटी के पार वह नगाधिराज, पर्वत सम्राट हिमालय है। उसे ऐसे लग रहा था जैसे कोई बाल स्वभाव वाला शिखर बादलों की खिड़की से झांक रहा हो।
प्रश्न 3 – खानसामे ने सब मित्रों को खुशकिस्मत क्यों कहा?
उत्तर – खानसामे ने उन सब मित्रों को खुशकिस्मत इसलिए कहा क्योंकि उन्हें वहाँ आते ही पहले ही दिन बर्फ दिखाई दे गई थी। उनसे पहले 14 टूरिस्ट वहाँ आकर पूरा हफ्ता भर रहे पर उन्हें बादलों के कारण बर्फ दिखाई नहीं दी थी।
प्रश्न 4 – सूरज के डूबने पर सब गुमसुम क्यों हो गए थे?
उत्तर – सूरज के डूबने पर सब गुमसुम इसलिए हो गए थे क्योंकि सूरज डूबने के साथ ही उनके हिम दर्शन की सारी इच्छाएं और आशाएं मिट सी गई थीं। क्योंकि हिमदर्शन की आशा में लेखक अपने मित्रों के साथ बहुत समय से हिमालय की और एकटक दृष्टि लगा कर देख रहे थे। सूरज के डूबने पर वे उससे वंचित रह गए थे।
प्रश्न 5 – लेखक ने बैजनाथ पहुँच कर हिमालय से किस रूप में भेंट की?
उत्तर – दूसरे दिन घाटी में उतरकर मीलों चलकर वे सभी बैजनाथ पहुंचे, जहां पर गोमती बहती है। गोमती की साफ, स्वच्छ व् निर्मल जलराशि में हिमालय की बर्फीली चोटियों की छाया तैर रही थी। अर्थात गोमती में हिमालय की बर्फ का पिघला पानी बह रहा था। लेखक को लगा कि पता नहीं वह उन हिमालय के शिखरों पर कब पहुंचेगा, इसीलिए उस जल में तैरते हुए हिमालय के पानी से जी भर कर भेंट कर ली अर्थात वह उसमें डूबा रहा। कहने का आशय यह है कि लेखक ने नदी के इस जल में तैरते हुए हिमालय से भेंट की।
III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह या सात पंक्तियों में दीजिए-
प्रश्न 1 – कोसी से कौसानी तक में लेखक को किन-किन दृश्यों ने आकर्षित किया?
उत्तर – कोसी से कौसानी तक लेखक को अद्भुत प्राकृतिक दृश्यों ने आकर्षित किया। सुन्दर बनावट वाले पत्थरों पर कल-कल करती हुई कोसी, उसके किनारे के छोटे-छोटे सुंदर गाँव और हरे मखमली खेत। सोमेश्वर की घाटी अत्यधिक सुंदर लग रही थी। अत्यधिक हरी-भरी। रास्ते में एक के बाद एक बस स्टैंड आ रहे थे, छोटे-छोटे पहाड़ी डाकखाने दिखाई पड़ रहे थे, बीच-बीच में चाय की दुकाने और कभी-कभी कोसी या उसमें गिरने वाले नदी-नालों पर बने हुए पुल भी दिख जाते थे। कहीं-कहीं सड़क सुनसान चीड़ के जंगलों से गुजरती थी। सोमेश्वर की घाटी के उत्तर में एक ऊँची पर्वतमाला थी, उसी पर, उसके बिलकुल शिखर पर, कौसानी बसा हुआ था। घाटी में जो पर्वतमाला थी, ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसने अपने आँचल में कत्यूर की रंग-बिरंगी घाटी को छिपा रखा है, और वह कत्यूर की रंग-बिरंगी घाटी ऐसी लग रही थी जैसे इसमें किन्नर और यक्ष ही बास करते होंगे। अर्थात वह घाटी अत्यधिक आकर्षक व् सुंदर लग रही थी। वह घाटी पचासों मील चौड़ी थी, हरे मखमली कालीनों जैसे खेत थे, सुंदर गेरू की शिलाओं को काटकर लाल-लाल रास्ते बने हुए थे, और उन रास्तों के किनारे सफ़ेद-सफ़ेद पत्थरों की पंक्तियाँ थी और इधर-उधर से आकर आपस में उलझ जाने वाली बेलों की लड़ियों के समान नदियाँ थी। ग्लेशियरों में डूबता सूर्य पिघले हुए केसर जैसा रंग बिखराने लगा था। बर्फ लाल कमल के फूलों जैसी प्रतीत होने लगी थी।
प्रश्न 2 – लेखक को ऐसा क्यों लगा कि वे किसी दूसरे ही लोक में चले आए हैं?
उत्तर – लेखक और उनके साथियों को ऐसा लग रहा था जैसे वे अचानक ही एक दूसरे ही संसार में चले आए थे। वह दृश्य इतना आकर्षक, इतना सुंदर, इतना सजा हुआ और निष्कलंक लग रहा था कि लेखक और उनके साथियों को लगा जैसे इस धरती पर तो जूते उतारकर, पाँव पोंछकर आगे बढ़ना चाहिए। लेखक घाटी को उसके अंत तक देख रहे थे और जहां घाटी के हरे खेत, नदियाँ और जंगल, क्षितिज के धुंधलेपन में, नीले कोहरे में सब कुछ घुल जाते थे, वहां पर कुछ छोटे पर्वतों का संकेत लेखक ने अनुभव किया। उसके बाद केवल बादल थे और फिर कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। कुछ देर तक उन बादलों में लेखक की नजरें भटकती रही कि अचानक फिर एक हलका सा आश्चर्य का धक्का लेखक के मन को लगा ।
प्रश्न 3 – लेखक को ‘ठेले पर हिमालय’ शीर्षक कैसे सूझा?
उत्तर – लेखक अपने मित्रों के साथ हिम दर्शन के लिए अल्मोड़ा यात्रा पर गए थे। एक दिन लेखक अपने अल्मोड़ावासी मित्र के साथ एक पान की दुकान पर खड़ा था कि तभी ठेले पर बर्फ की सिले लादे हुए बर्फ वाला आया। वह बरफ का चोकौर टुकड़ा ठंडा, चिकना, और चमक रहा था, उस बरफ़ से भाप उड़ रही थी। लेखक और लेखक का मित्र क्षणभर उस बरफ़ को देखते रहे, उससे उठती हुई भाप में मानो वे खो गए थे और उस उठती हुई भाप में खोए-खोए से ही एक दूसरे से बोले कि यही बरफ़ तो हिमालय की शोभा है। और उसी समय अचानक इस पाठ का शीर्षक लेखक के मन में मानो चमक गया – ‘ठेले पर हिमालय’। कहने का अभिप्राय यह है कि लेखक को ठेले पर बर्फ देख कर हिमालय की याद आ गई जिस वजह से इन्होने अपनी यात्रा वृत्तांत का शीर्षक ‘ठेले पर हिमालय’ रख दिया।
IV. निम्नलिखित में संधि कीजिए-
हिम + आलय _____________ सोम + ईश्वर _____________
हर्ष + अतिरेक _____________ वि + आकुल _____________
उत्तर –
| हिम + आलय | हिमालय |
| हर्ष + अतिरेक | हर्षातिरेक |
| हर्ष + अतिरेक | सोमेश्वर |
| हर्ष + अतिरेक | व्याकुल |
(ख) भाषा-बोध
I. निम्नलिखित वाक्यांशों के लिए एक शब्द लिखिए-
अच्छी किस्मत वाला ________________
चार रास्तों का समूह ________________
अपने में लीन ________________
जहां कोई न रहता हो ________________
जिसका कोई पार न हो ________________
जिसमें कोई कलंक न हो ________________
उत्तर –
| वाक्य | एक शब्द |
| अच्छी किस्मत वाला | भाग्यशाली |
| चार रास्तों का समूह | चौराहा |
| अपने में लीन | आत्मलीन |
| जहां कोई न रहता हो | निर्जन |
| जिसका कोई पार न हो | अपार |
| जिसमें कोई कलंक न हो | निष्कलंक |
II. निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए-
पहाड़ __________ सूरज__________
धरती __________ कमल__________
मुँह __________ नदी__________
बादल __________ हाथ__________
उत्तर –
| शब्द | पर्यायवाची शब्द |
| पहाड़ | पर्वत, गिरि |
| सूरज | रवि, प्रभाकर |
| धरती | भू, पृथ्वी |
| कमल | पंकज, जलज |
| मुँह | मुख, चेहरा |
| नदी | सरिता, तरंगिणी |
| बादल | मेघ, जलद |
| हाथ | हस्त, कर |
(ग) रचनात्मक अभिव्यक्ति
प्रश्न 1 – यदि हिमालय न होता तो क्या होता? इस विषय पर चर्चा कीजिए।
उत्तर – यदि हिमालय न होता तो शायद इतिहास कुछ और ही होता। भारत उत्तर दिशा में सुरक्षित नहीं होता। गंगा-यमुना, सिंधु-ब्रह्मपुत्र और पंचनद की पांच नदियों का नामोनिशान न होता। हिमालय न होता तो उसके अंचलों में बसे देवस्थान न होते। अमरनाथ, कैलास, मानसरोवर, बद्रीनाथ, केदारनाथ, हरिद्वार, आदि अनगिनत पूजा और श्रद्धा केन्द्र न होते। यदि हिमालय न होता तो हजारों मील में फैले उसके घने जंगलों से फल-फूल, लकड़ी, जड़ी-बूटियाँ, वनस्पति, खनिज, रत्नों के अभाव में भारत की उन्नत सभ्यता का कहीं पता न होता। हिमालय न होता तो सृष्टि में प्राकृतिक सौन्दर्य की कल्पना ही न होती।
प्रश्न 2 – पहाड़, बर्फ, नदी, बादल, सीढ़ीनुमा खेत, घुमावदार रास्ते तथा हरियाली आदि शब्दों का प्रयोग करते हुए अपनी कल्पना से प्रकृति पर पाँच-छः पंक्तियां लिखें।
उत्तर –
प्रकृति ने हमें सुंदर, आकर्षक व् अद्धभुत पहाड़ दिए हैं।
सर्दी के मौसम में प्रकृति हमें बर्फ को नजदीक से देखने व् महसूस करने का अवसर देती है।
प्रकृति से ही हमें कल-कल करती नदियां मिली है, जो अपने निर्मल व् स्वच्छ जल से हमारी व् अनगिनत जीवो की प्यास बुझाती हैं।
बादल प्रकृति की अनुपम भेंट है जो वर्षा करते हैं और धरती को हरी-भरी और उपजाऊ बनाते हैं।
पहाड़ों में सीढ़ीनुमा खेत होते हैं जिसमें फ़सलें उगाना आसान हो जाता है।
पहाड़ों के घुमावदार रास्ते कभी-कभी भयानक मोड़ ले लेते हैं।
प्रकृति के आंचल में चारों तरफ अपार हरियाली उसकी शोभा में चार चाँद लगा देती है।
प्रश्न 3 – हम हर पल यात्रा करते हैं, कभी पैरों से तो कभी मन के पंखों पर-इस पर अपने विचार दीजिए।
उत्तर – मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह अपने कार्यों को पूरा करने के लिए इधर-उधर आता-जाता रहता है। वह कभी पहाड़ों कभी समुद्र कभी धार्मिक स्थानों पर घूमता रहता है। मनुष्य एक कल्पनाशील प्राणी भी है। वह अक्सर कल्पनाएं करता रहता है। वह किसी एक स्थान पर रहते हुए अपने मन के पँखों पर सवार होकर अनेक स्थानों की यात्राएं करता है। वह घर बैठे-बैठे विदेशों तक की यात्राएं कर लेता है। कहने का अभिप्राय यह है कि मनुष्य चाहे कही घूमने जाए या घर पर ही बैठा रहे, उसका मन सदा इधर-उधर विचरण करता ही रहता है।
PSEB Class 10 Hindi Lesson 16 ठेले पर हिमालय गद्यांश आधारित प्रश्न (Extract Based Questions)
निम्नलिखित गद्याँशों को ध्यानपूर्वक पढ़िए व प्रश्नों के उत्तर दीजिये-
1 –
ठेले पर हिमालय! खासा दिलचस्प शीर्षक है न! और यकीन कीजिए, इसे बिलकुल ढूँढना नहीं पड़ा। बैठे-बिठाए मिल गया। अभी कल की बात है, मैं एक पान की दुकान पर अपने अल्मोड़ावासी मित्र के साथ खड़ा था कि तभी ठेले पर बरफ की सिलें लादे हुए बरफ वाला आया। ठंडी, चिकनी, चमकती बरफ़ से भाप उड़ रही थी। वे क्षणभर उस बरफ़ को देखते रहे, उठती हुई भाप में खोए रहे और खोए-खोए से ही बोले, “यही बरफ़ तो हिमालय की शोभा है।” और तत्काल शीर्षक मेरे मन में कौंध गया – ठेले पर हिमालय।
सच तो यह है कि सिर्फ़ बरफ को बहुत निकट से देख पाने के लिए ही हम लोग कौसानी गए थे। नैनीताल से रानीखेत और रानीखेत से मझकाली के भयानक मोड़ों को पार करते हुए कोसी । कोसी से एक सड़क अल्मोड़ा चली जाती है, दूसरी कौसानी।
कितना कष्टप्रद, कितना सूखा और कितना कुरूप है वह रास्ता! पानी का कहीं नाम निशान नहीं, सूखे-भूरे पहाड़, हरियाली का नाम नहीं ढालों को काटकर बनाए हुए टेढ़े-मेढ़े रास्ते। कोसी पहुंचे तो सभी के चेहरे पीले पड़ चुके थे।
प्रश्न 1 – लेखक को किसे बिलकुल ढूँढना नहीं पड़ा?
(क) अपने मित्र को
(ख) बर्फ को
(ग) शीर्षक को
(घ) हिमालय को
उत्तर – (ग) शीर्षक को
प्रश्न 2 – लेखक पान की दुकान पर अपने कौन से मित्र के साथ खड़ा था ?
(क) अल्मोड़ावासी
(ख) कौसानीवासी
(ग) कोसीवासी
(घ) कत्यूरवासी
उत्तर – (क) अल्मोड़ावासी
प्रश्न 3 – ठेले पर पड़ी बर्फ कैसी थी ?
(क) ठंडी
(ख) चिकनी
(ग) चमकती हुई
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 4 – लेखक और उनके मित्र कौसानी क्यों गए थे?
(क) प्रकृति को निकट से महसूस करने के लिए
(ख) सिर्फ़ बरफ को बहुत निकट से देख पाने के लिए
(ग) नदियों व् झरनों को निकट से देखने के लिए
(घ) हिमालय के दर्शन के लिए
उत्तर – (ख) सिर्फ़ बरफ को बहुत निकट से देख पाने के लिए
प्रश्न 5 – कोसी का रास्ता कैसा था ?
(क) कष्टप्रद, सूखा और कुरूप
(ख) कहीं पानी का नाम निशान नहीं, सूखे-भूरे पहाड़
(ग) हरियाली का नाम नहीं और ढालों को काटकर बनाए हुए टेढ़े-मेढ़े रास्ते
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
2 –
कोसी से बस चली तो रास्ते का सारा दृश्य बदल गया। सुडौल पत्थरों पर कल-कल करती हुई कोसी, किनारे के छोटे-छोटे सुंदर गाँव और हरे मखमली खेत। कितनी सुंदर है सोमेश्वर की घाटी! हरी-भरी ! एक के बाद एक बस स्टैंड पड़ते थे, छोटे-छोटे पहाड़ी डाकखाने, चाय की दुकाने और कभी-कभी कोसी या उसमें गिरने वाले नदी-नालों पर बने हुए पुल। कहीं-कहीं सड़क निर्जन चीड़ के जंगलों से गुजरती थी।
सोमेश्वर की घाटी के उत्तर में जो ऊँची पर्वतमाला है, उस पर, बिलकुल शिखर पर, कौसानी बसा हुआ है। कौसानी से दूसरी ओर फिर ढाल शुरू हो जाती है। कौसानी के अड्डे पर जाकर बस रुकी। छोटा-सा, बिल्कुल उजड़ा-सा गाँव और बरफ़ का तो कहीं नाम-निशान नहीं। ऐसा लगा जैसे हम ठगे गए। बस से उतरते समय मैं बहुत खिन्न था।
बस से उतरा ही था कि जहां का तहाँ पत्थर की मूर्ति-सा स्तब्ध खड़ा रह गया। कितना अपार सौंदर्य बिखरा था सामने के घाटी में पर्वतमाला ने अपने अंचल में यह जो कत्यूर की रंग-बिरंगी घाटी छिपा रखी है, इसमें किन्नर और यक्ष ही तो बास करते होंगे। पचासों मील चौड़ी यह घाटी, हरे मखमली कालीनों जैसे खेत, सुंदर गेरू की शिलाएँ काटकर बने हुए लाल-लाल रास्ते, जिनके किनारे सफ़ेद-सफ़ेद पत्थरों की कतार और इधर-उधर से आकर आपस में उलझ जाने वाली बेलों की लड़ियों-सी नदियाँ। मन में बेसाख्ता यही आया कि इन बैलों की लड़ियों को उठाकर कलाई में लपेट लूँ आँखों से लगा लूँ।
प्रश्न 1 – कहाँ से चलने पर रास्ते का सारा दृश्य बदल गया ?
(क) कोसी से चलने पर
(ख) कत्यूर से चलने पर
(ग) कौसानी से चलने पर
(घ) अल्मोड़ा से चलने पर
उत्तर – (क) कोसी से चलने पर
प्रश्न 2 – लेखक द्वारा सोमेश्वर की घाटी की क्या विशेषताएँ कही गई है ?
(क) सुडौल पत्थरों पर कल-कल करती हुई कोसी
(ख) किनारे के छोटे-छोटे सुंदर गाँव और हरे मखमली खेत
(ग) एक के बाद एक बस स्टैंड पड़ते थे, छोटे-छोटे पहाड़ी डाकखाने, चाय की दुकाने और कभी-कभी कोसी या उसमें गिरने वाले नदी-नालों पर बने हुए पुल
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 3 – कौसानी कहाँ बसा हुआ है ?
(क) सोमेश्वर की घाटी के दक्षिण में जो ऊँची पर्वतमाला है, उस पर, बिलकुल शिखर पर
(ख) सोमेश्वर की घाटी के उत्तर में जो ऊँची पर्वतमाला है, उस पर, बिलकुल शिखर पर
(ग) सोमेश्वर की घाटी के पूर्व में जो ऊँची पर्वतमाला है, उस पर, बिलकुल शिखर पर
(घ) सोमेश्वर की घाटी के पश्चिम में जो ऊँची पर्वतमाला है, उस पर, बिलकुल शिखर पर
उत्तर – (ख) सोमेश्वर की घाटी के उत्तर में जो ऊँची पर्वतमाला है, उस पर, बिलकुल शिखर पर
प्रश्न 4 – कौसानी कैसा गाँव है ?
(क) बहुत विशाल
(ख) बरफ़ से ढाका हुआ
(ग) बिल्कुल उजड़ा-सा
(घ) बहुत समृद्ध
उत्तर – (ग) बिल्कुल उजड़ा-सा
प्रश्न 5 – लेखक ने रंग-बिरंगी घाटी किसे कहा है ?
(क) हिमालय
(ख) कौसानी
(ग) कोसी
(घ) कत्यूर
उत्तर – (घ) कत्यूर
3 –
अकस्मात हम एक दूसरे ही लोक में चले आए थे। इतना सुकुमार, इतना सुंदर, इतना सजा हुआ और निष्कलंक कि लगा इस धरती पर तो जूते उतारकर, पाँव पोंछकर आगे बढ़ना चाहिए।
धीरे-धीरे मेरी निगाह ने इस घाटी को पार किया और जहां ये हरे खेत, नदियाँ और वन, क्षितिज के धुंधलेपन में, नीले कोहरे में घुल जाते थे, वहां पर कुछ छोटे पर्वतों का आभास अनुभव किया। इसके बाद बादल थे और फिर कुछ नहीं। कुछ देर उन बादलों में निगाह भटकती रही कि अकस्मात फिर एक हलका सा विस्मय का धक्का मन को लगा ।
इन धीरे-धीरे खिसकते हुए बादलों में यह कौन चीज़ है जो अटल है। यह छोटा-सा बादल के टुकड़े सा, और कैसा अजब रंग है इसका। न सफ़ेद, न रुपहला, न हलका नीला… पर तीनों का आभास देता हुआ। यह है क्या? बरफ़ तो नहीं है। हाँ जी बरफ़ नहीं है तो क्या है? और बिजली-सा यह विचार मन में कौंधा कि इसी घाटी के पार वह नगाधिराज, पर्वत सम्राट हिमालय है। इन बादलों ने उसे ढाँप रखा है, वैसे वह जो सामने हैं, इसका एक कोई छोटा-सा बाल स्वभाव वाला शिखर बादलों की खिड़की से झाँक रहा है। मैं हर्षातिरेक से चीख उठा, “बरफ़! वह देखो!”
प्रश्न 1 – अकस्मात हम एक दूसरे ही लोक में चले आए थे। लेखक और उनके मित्रों को ऐसा क्यों लगा ?
(क) क्योंकि दृश्य अत्यधिक सुकुमार था
(ख) क्योंकि दृश्य अत्यधिक सुंदर व् सजा हुआ था
(ग) क्योंकि दृश्य अत्यधिक निष्कलंक लग रहा था
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 2 – धीरे-धीरे लेखक की निगाह ने घाटी में क्या देखा ?
(क) हरे खेत, नदियाँ और वन
(ख) क्षितिज के धुंधलेपन में, नीले कोहरे में घुल जाने वाला दृश्य
(ग) कुछ छोटे पर्वतों का आभास
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 3 – धीरे-धीरे खिसकते हुए बादलों में से लेखक को कौन चीज़ दिखी जो अटल थी ?
(क) बादल का टुकड़ा
(ख) बर्फ
(ग) हिमालय
(घ) पहाड़
उत्तर – (ख) बर्फ
प्रश्न 4 – बर्फ का रंग कैसा था ?
(क) सफ़ेद
(ख) रुपहला
(ग) हलका नीला
(घ) न सफ़ेद, न रुपहला, न हलका नीला… पर तीनों का आभास
उत्तर – (घ) न सफ़ेद, न रुपहला, न हलका नीला… पर तीनों का आभास
प्रश्न 5 – बरफ़ को देखकर लेखक कैसे चीख उठा ?
(क) आश्चर्य से
(ख) हैरानी से
(ग) हर्षातिरेक से
(घ) अचानक से
उत्तर – (ग) हर्षातिरेक से
4 –
सामान रख दिया गया। पर सभी बिना चाय पिए सामने के बरामदे में बैठे रहे और अपलक सामने देखते रहे। बादल धीरे-धीरे नीचे उतर रहे थे और एक-एक कर नए-नए शिखरों की हिम-रेखाएँ अनावृत हो रही थीं।
और फिर सब खुल गया। बाई ओर से शुरू होकर दाई ओर गहरे शून्य में धँसती जाती हुई ‘हिम शिखरों की ऊबड़-खाबड़, रहस्यमयी, रोमांचक श्रृंखला। हमारे मन में उस समय क्या भावनाएँ उठ रही थीं, अगर बता पाता तो यह खरोंच, यह पीर ही क्यों रह गई होती ? सिर्फ़ एक धुँधला-सा संवेदन इसका अवश्य था कि जैसे बरफ की सिल के सामने खड़े होने पर मुँह पर ठंडी-ठंडी भाप लगती है, वैसे ही हिमालय की शीतलता माथे को छू रही है।
सूरज डूबने लगा और धीरे-धीरे ग्लेशियरों में पिघला केसर बहने लगा। बरफ कमल के लाल फूलों में बदलने लगी। घाटियाँ गहरी पीली हो गई। अँधेरा होने लगा तो हम उठे। मुँह-हाथ धोने और चाय पीने लगे। पर सब चुपचाप थे, गुमसुम, जैसे सबका कुछ छिन गया हो, या शायद सबको कुछ ऐसा मिल गया हो जिसे अंदर ही अंदर सहेजने में सब आत्मलीन हों या अपने में डूब गए हों।
दूसरे दिन घाटी में उतरकर मीलों चलकर हम बैजनाथ पहुंचे, जहां गोमती बहती है। गोमती की उज्ज्वल जलराशि में हिमालय की बर्फीली चोटियों की छाया तैर रही थी। पता नहीं, उन शिखरों पर कब पहुँचूं, इसीलिए उस जल में तैरते हुए हिमालय से जी भर कर भेंटा, उसमें डूबा रहा।
प्रश्न 1 – लेखक और उनके मित्र बिना चाय पिए सामने के बरामदे में क्यों बैठे रहे ?
(क) नए-नए शिखरों को देखने ले लिए
(ख) हिम-रेखाएँ देखने को
(ग) नए-नए शिखरों की हिम-रेखाएँ अनावृत होते हुए देखने को
(घ) हिमालय को अनावृत होते हुए देखने को
उत्तर – (ग) नए-नए शिखरों की हिम-रेखाएँ अनावृत होते हुए देखने को
प्रश्न 2 – बादल हट जाने पर लेखक को क्या दिखा ?
(क) बाई ओर से शुरू होकर दाई ओर गहरे शून्य में धँसती जाती हुई ‘हिम शिखरों की ऊबड़-खाबड़, रहस्यमयी, रोमांचक श्रृंखला
(ख) बाई ओर से शुरू होती हुई ‘हिम शिखरों की ऊबड़-खाबड़, रहस्यमयी, रोमांचक श्रृंखला।
(ग) दाई ओर से शुरू होटी हुई ‘हिम शिखरों की ऊबड़-खाबड़, रहस्यमयी, रोमांचक श्रृंखला।
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (क) बाई ओर से शुरू होकर दाई ओर गहरे शून्य में धँसती जाती हुई ‘हिम शिखरों की ऊबड़-खाबड़, रहस्यमयी, रोमांचक श्रृंखला
प्रश्न 3 – सूरज डूबने पर कैसा दृश्य बदला?
(क) धीरे-धीरे ग्लेशियरों में पिघला केसर बहने लगा
(ख) बरफ कमल के लाल फूलों में बदलने लगी
(ग) घाटियाँ गहरी पीली हो गई
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 4 – अँधेरा होने पर लेखक और उनके मित्रों ने क्या किया ?
(क) मुँह-हाथ धोने और चाय पीने लगे
(ख) सब चुपचाप थे, गुमसुम, जैसे सबका कुछ छिन गया हो
(ग) ऐसा लगा जैसे अंदर ही अंदर सहेजने में सब आत्मलीन हों
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 5 – गोमती की उज्ज्वल जलराशि में ———————————– की छाया तैर रही थी।
(क) हिमालय की पिघली बर्फ
(ख) हिमालय की स्मृतियाँ
(ग) हिमालय की बर्फीली चोटियों
(घ) हिमालय से निकलती नदियाँ
उत्तर – (ग) हिमालय की बर्फीली चोटियों
PSEB Class 10 Hindi Lesson 16 ठेले पर हिमालय बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)
प्रश्न 1 – लेखक और उनका मित्र कहाँ खड़े थे ?
(क) एक पान की दुकान पर
(ख) ठेले के सामने
(ग) हिमालय के सामने
(घ) बर्फ के सामने
उत्तर – (क) एक पान की दुकान पर
प्रश्न 2 – लेखक एक पान की दुकान पर अपने ——————— रहने वाले मित्र के साथ खड़े थे ?
(क) कौसानी में
(ख) कोसी में
(ग) अल्मोड़ा में
(घ) कत्यूर में
उत्तर – (ग) अल्मोड़ा में
प्रश्न 3 – लेखक एक पान की दुकान पर अपने अल्मोड़ा में रहने वाले मित्र के साथ खड़े थे कि तभी उनके सामने कौन आया?
(क) ठेले पर बरफ को लादे हुए बरफ वाला
(ख) ठेले पर रुई को लादे हुए व्यक्ति
(ग) ठेले पर रेत को लादे हुए आदमी
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (क) ठेले पर बरफ को लादे हुए बरफ वाला
प्रश्न 4 – लेखक और लेखक का मित्र क्षणभर उस बरफ़ को देखते रहे, उससे उठती हुई भाप में मानो वे खो गए थे और उस उठती हुई भाप में खोए-खोए से ही एक दूसरे से बोले कि यही बरफ़ तो ————— की शोभा है।
(क) पहाड़ों
(ख) हिमालय
(ग) पर्वतों
(घ) सर्दियों
उत्तर – (ख) हिमालय
प्रश्न 5 – लेखक को ठेले पर बर्फ देख कर किसकी याद आ गई जिस वजह से इन्होने अपनी यात्रा वृत्तांत का शीर्षक ‘ठेले पर हिमालय’ रख दिया?
(क) कसौनी की
(ख) कत्यूर की
(ग) हिमालय की
(घ) अल्मोड़ा की
उत्तर – (ग) हिमालय की
प्रश्न 6 – लेखक कौसानी क्यों गए थे?
(क) बर्फ को निकट से देखने
(ख) हिमालय को निकट से देखने
(ग) पहाड़ों को निकट से देखने
(घ) नदियों को निकट से देखने
उत्तर – (क) बर्फ को निकट से देखने
प्रश्न 7 – कोसी का रास्ता कैसा था ?
(क) बहुत दुःख देने वाला था, बहुत सूखा और बहुत ही गन्दा या बेकार दिखने वाला था
(ख) उस रास्ते पर पानी का कहीं नाम निशान नहीं था, पहाड़ भी सूखे-भूरे दिखाई दे रहे थे, हरियाली का तो कोई नाम भी नहीं था
(ग) खड़ी चट्टानों को काटकर टेढ़े-मेढ़े रास्ते बनाए हुए थे
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 8 – सोमेश्वर की घाटी के उत्तर में एक ऊँची पर्वतमाला है, उसी पर, उसके बिलकुल शिखर पर, क्या बसा हुआ है?
(क) कौसानी
(ख) कोसी
(ग) हिमालय
(घ) अल्मोड़ा
उत्तर – (क) कौसानी
प्रश्न 9 – कौसानी कैसा है ?
(क) बहुत छोटा-सा
(ख) बिल्कुल बर्बाद-सा
(ग) वीरान सा
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 10 – लेखक और उनके साथियों को कौसानी पहुँच कर ऐसा लगा जैसे उन लोगों के साथ धोखा हुआ हो। क्यों ?
(क) क्योंकि वे तो बर्फ को नजदीक से देखने ही आए थे और वहाँ बर्फ का नाम-निशान नहीं था
(ख) क्योंकि वे तो पहाड़ को नजदीक से देखने ही आए थे और वहाँ पहाड़ का नाम-निशान नहीं था
(ग) क्योंकि वे तो नदियों को नजदीक से देखने ही आए थे और वहाँ नदियों का नाम-निशान नहीं था
(घ) क्योंकि वे तो वादियों को नजदीक से देखने ही आए थे और वहाँ वादियों का नाम-निशान नहीं था
उत्तर – (क) क्योंकि वे तो बर्फ को नजदीक से देखने ही आए थे और वहाँ बर्फ का नाम-निशान नहीं था
प्रश्न 11 – कत्यूर की रंग-बिरंगी घाटी कैसी लग रही थी ?
(क) जैसे इसमें किन्नर और यक्ष ही बास करते होंगे
(ख) वह घाटी अत्यधिक आकर्षक व् सुंदर लग रही थी
(ग) वह घाटी पचासों मील चौड़ी थी, हरे मखमली कालीनों जैसे खेत थे, सुंदर गेरू की शिलाओं को काटकर लाल-लाल रास्ते बने हुए थे
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 12 – लेखक और उनके साथियों को ऐसा क्यों लग रहा था जैसे वे अचानक ही एक दूसरे ही संसार में चले आए थे?
(क) क्योंकि उनके सामने का दृश्य इतना आकर्षक, इतना सुंदर, इतना सजा हुआ और निष्कलंक लग रहा था
(ख) घाटी को उसके अंत तक देखने पर घाटी के हरे खेत, नदियाँ और जंगल, क्षितिज के धुंधलेपन में, नीले कोहरे में सब कुछ घुल जाते थे
(ग) वह घाटी अत्यधिक आकर्षक व् सुंदर लग रही थी
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 13 – उसका रंग न सफ़ेद था, न चाँदी के समान था, न हलका नीला था, परन्तु फिर भी उसमें —————- हो रहा था।
(क) सफेद रंग का आभास
(ख) चाँदी के समान रंग का आभास
(ग) इन तीनों रंगों का आभास
(घ) हलका नीले रंग का आभास
उत्तर – (ग) इन तीनों रंगों का आभास
प्रश्न 14 – किसने लेखक और उनके साथियों में मानो एक नई उम्मीद भर दी थी?
(क) हिम-दर्शन
(ख) हिमालय-दर्शन
(ग) कोसी-दर्शन
(घ) कत्यूर-दर्शन
उत्तर – (क) हिम-दर्शन
प्रश्न 15 – डाक बंगले के खानसामे ने लेखक और उनके साथियों को क्या बताया?
(क) कि वे बहुत मेहनती हैं
(ख) कि वे बहुत बदकिस्मत हैं
(ग) कि वे बहुत खुशकिस्मत हैं
(घ) कि वे बहुत अच्छे हैं
उत्तर – (ग) कि वे बहुत खुशकिस्मत हैं
प्रश्न 16 – गोमती की जलराशि में क्या तैर रही थी?
(क) हिमालय की छाया
(ख) हिमालय की बर्फीली चोटियाँ
(ग) हिमालय की बर्फीली चोटियों की मिट्टी
(घ) हिमालय की बर्फीली चोटियों की छाया
उत्तर – (घ) हिमालय की बर्फीली चोटियों की छाया
प्रश्न 17 – लेखक ने किसे रंग-बिरंगी घाटी कहा है?
(क) कुत्यूर
(ख) सोमेश्वर
(ग) किन्नौर
(घ) कोसी।
उत्तर – (क) कुत्यूर
प्रश्न 18 – बरफ कमल के ———– फूलों में बदलने लगी।
(क) गुलाबी
(ख) पीले
(ग) सफेद
(घ) नीले
उत्तर – (ग) सफेद
प्रश्न 19 – लेखक की आँखों से अचानक क्या लुप्त हो गया?
(क) बर्फ़
(ख) हिमालय
(ग) पहाड़
(घ) फूल
उत्तर – (क) बर्फ़
प्रश्न 20 – हिमालय को क्या संज्ञा दी गई है?
(क) पर्वतश्रेष्ठ
(ख) हिम-राज
(ग) पर्वतराज
(घ) गिरी
उत्तर – (ग) पर्वतराज
PSEB Class 10 Hindi ठेले पर हिमालय प्रश्न और उत्तर (Extra Question Answers)
प्रश्न 1 – लेखक ने ‘ठेले पर हिमालय’ शीर्षक क्यों रखा?
उत्तर – लेखक ने ‘ठेले पर हिमालय’ शीर्षक इसलिए रखा क्योंकि ठेले पर हिमालय बहुत अधिक दिलचस्प शीर्षक है। और वह हमें विश्वास करने को कहता है कि इस शीषक को उसे बिलकुल ढूँढना नहीं पड़ा था। उन्हें यह शीर्षक बैठे-बिठाए ही मिल गया। लेखक एक पान की दुकान पर अपने अल्मोड़ा में रहने वाले मित्र के साथ खड़े थे कि तभी उनके सामने ठेले पर बरफ के चोकौर टुकड़े को लादे हुए बरफ वाला आया। वह बरफ का चोकौर टुकड़ा ठंडा, चिकना, और चमक रहा था, उस बरफ़ से भाप उड़ रही थी। लेखक और लेखक का मित्र क्षणभर उस बरफ़ को देखते रहे, उससे उठती हुई भाप में मानो वे खो गए थे और उस उठती हुई भाप में खोए-खोए से ही एक दूसरे से बोले कि यही बरफ़ तो हिमालय की शोभा है। और उसी समय अचानक इस पाठ का शीर्षक लेखक के मन में मानो चमक गया – ‘ठेले पर हिमालय’। कहने का अभिप्राय यह है कि लेखक को ठेले पर बर्फ देख कर हिमालय की याद आ गई जिस वजह से इन्होने अपनी यात्रा वृत्तांत का शीर्षक ‘ठेले पर हिमालय’ रख दिया।
प्रश्न 2 – लेखक बरफ को बहुत नजदीक से देख पाने के लिए कहाँ गए और वहाँ उनका सारा उत्साह क्यों ख़त्म हो गया था?
उत्तर – लेखक और उनके मित्र सिर्फ़ बरफ को बहुत नजदीक से देख पाने के लिए ही कौसानी गए थे। वे नैनीताल से रानीखेत और रानीखेत से मझकाली के भयानक मोड़ों को पार करते हुए कोसी पहुंचे थे। कोसी का रास्ता बहुत दुःख देने वाला था, बहुत सूखा और बहुत ही गन्दा या बेकार दिखने वाला था। उस रास्ते पर पानी का कहीं नाम निशान नहीं था, पहाड़ भी सूखे-भूरे दिखाई दे रहे थे, हरियाली का तो कोई नाम भी नहीं था। खड़ी चट्टानों को काटकर टेढ़े-मेढ़े रास्ते बनाए हुए थे। जब लेखक और उनके साथी कोसी पहुंचे तो सभी के चेहरे पीले पड़ चुके थे। अर्थात कोसी पहुँचते-पहुँचते लेखक और उनके साथियों ने जो सोचा था उसके विपरीत ही सब कुछ पाया था जिस वजह से वे बहुत दुखी थे और थकान के कारण उनका सारा उत्साह ख़त्म हो गया था।
प्रश्न 3 – जब कोसी से लेखक की बस चली तो प्राकृतिक दृश्यों में क्या अंतर् था ?
उत्तर – जब कोसी से लेखक की बस चली तो रास्ते का सारा दृश्य ही बदल गया। सुन्दर बनावट वाले पत्थरों पर कल-कल करती हुई कोसी, उसके किनारे के छोटे-छोटे सुंदर गाँव और हरे मखमली खेत। सोमेश्वर की घाटी अत्यधिक सुंदर लग रही थी। अत्यधिक हरी-भरी। रास्ते में एक के बाद एक बस स्टैंड आ रहे थे, छोटे-छोटे पहाड़ी डाकखाने दिखाई पड़ रहे थे, बीच-बीच में चाय की दुकाने और कभी-कभी कोसी या उसमें गिरने वाले नदी-नालों पर बने हुए पुल भी दिख जाते थे। कहीं-कहीं सड़क सुनसान चीड़ के जंगलों से गुजरती थी। प्राकृतिक दृश्य अत्यधिक आकर्षक था।
प्रश्न 4 – कौसानी पहुँच कर लेखक को क्यों लगा कि उनके साथ धोखा हुआ है ?
उत्तर – सोमेश्वर की घाटी के उत्तर में एक ऊँची पर्वतमाला है, उसी पर, उसके बिलकुल शिखर पर, कौसानी बसा हुआ है। कौसानी से दूसरी ओर फिर से ढलान शुरू हो जाती है। लेखक की बस कौसानी के अड्डे पर जाकर रुकी। कौसानी बहुत छोटा-सा गाँव है, जो बिल्कुल बर्बाद-सा या वीरान सा है और बरफ़ का तो वहाँ कहीं नाम-निशान नहीं था। लेखक और उनके साथियों को वहाँ पहुँच कर ऐसा लगा जैसे उन लोगों के साथ धोखा हुआ हो। क्योंकि वे तो बर्फ को नजदीक से देखने ही आए थे। बस से उतरते समय लेखक बहुत उदास था।
प्रश्न 5 – कत्यूर की रंग-बिरंगी घाटी का सुन्दर वर्णन अपने शब्दों में करो।
उत्तर – कौसानी में लेखक जैसे ही बस से उतरा, वह जैसा था वैसा ही पत्थर की मूर्ति की तरह बिलकुल स्थिर खड़ा रह गया। क्योंकि उसके सामने बहुत अधिक सुन्दर दृश्य बिखरा था। उसके सामने के घाटी में जो पर्वतमाला थी, ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसने अपने आँचल में कत्यूर की रंग-बिरंगी घाटी को छिपा रखा है, और वह कत्यूर की रंग-बिरंगी घाटी ऐसी लग रही थी जैसे इसमें किन्नर और यक्ष ही बास करते होंगे। अर्थात वह घाटी अत्यधिक आकर्षक व् सुंदर लग रही थी। वह घाटी पचासों मील चौड़ी थी, हरे मखमली कालीनों जैसे खेत थे, सुंदर गेरू की शिलाओं को काटकर लाल-लाल रास्ते बने हुए थे, और उन रास्तों के किनारे सफ़ेद-सफ़ेद पत्थरों की पंक्तियाँ थी और इधर-उधर से आकर आपस में उलझ जाने वाली बेलों की लड़ियों के समान नदियाँ थी।
प्रश्न 6 – लेखक और उनके साथियों को ऐसा क्यों लग रहा था जैसे वे अचानक ही एक दूसरे ही संसार में चले आए थे?
उत्तर – लेखक और उनके साथियों को ऐसा लग रहा था जैसे वे अचानक ही एक दूसरे ही संसार में चले आए थे। क्योंकि उनके सामने का दृश्य इतना आकर्षक, इतना सुंदर, इतना सजा हुआ और निष्कलंक लग रहा था कि लेखक और उनके साथियों को लगा जैसे इस धरती पर तो जूते उतारकर, पाँव पोंछकर आगे बढ़ना चाहिए। धीरे-धीरे लेखक की नजरों ने उस घाटी को पार किया अर्थात लेखक घाटी को उसके अंत तक देख रहे थे और जहां घाटी के हरे खेत, नदियाँ और जंगल, क्षितिज के धुंधलेपन में, नीले कोहरे में सब कुछ घुल जाते थे, वहां पर कुछ छोटे पर्वतों का संकेत लेखक ने अनुभव किया। उसके बाद केवल बादल थे और फिर कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।
प्रश्न 7 – बर्फ का वर्णन लेखक ने किस प्रकार किया है ?
उत्तर – जब घाटी में धीरे-धीरे बादल हट रहे थे तब लेखक को समझ नहीं आ रहा था कि वह बादलों के पीछे कौन सी चीज़ है जो स्थिर है। अर्थात जो अपनी जगह से नहीं हट रही थी। वह छोटा-सा बादल के टुकड़े जैसा प्रतीत हो रहा था, और उसका रंग भी लेखक को कुछ अजब ही लग रहा था। उसका रंग न सफ़ेद था, न चाँदी के समान था, न हलका नीला था, परन्तु फिर भी उसमें इन तीनों रंगों का आभास हो रहा था। वह क्या था लेखक को समझ नहीं आ रहा था? लेखक के मन में आया कि कहीं यह बरफ़ तो नहीं है। फिर अपने आप को सही ठहराते हुए उन्हें आभास हुआ कि वह बरफ़ ही है। और बिजली की तरह उनके मन में यह विचार प्रकट हुआ कि इसी घाटी के पार वह नगाधिराज, पर्वत सम्राट हिमालय है।
प्रश्न 8 – क्या सोच कर लेखक का दिल बुरी तरह से धड़क रहा था?
उत्तर – बादलों के बीच से हिमालय का कोई छोटा सा शिखर लेखक को दिखाई पड़ रहा था। लेखक बहुत अधिक खुश हो कर चीख उठा और अपने साथियों को बरफ़ दिखाने लगा। लेखक के साथ आए शुक्ल जी, सेन और अन्य सभी ने बर्फ को देखा, परन्तु अचानक वह फिर से गायब हो गया। परन्तु उस एक ही क्षण के हिम-दर्शन ने लेखक और उनके साथियों में मानो एक नई उम्मीद भर दी थी। सारी उदासी, सारी निराशा और सारी थकावट, सब मानो कहीं गायब हो गई। वे सभी बैचेन या उत्सुक हो उठे। कि अभी ये बादल हट जाएँगे और फिर हिमालय उन सभी के सामने बिना किसी आवरण के खड़ा होगा। वे यही सोच रहे थे कि अत्यधिक सौंदर्यराशि उनके सामने अभी कुछ समय में अपना घूँघट धीरे से हटा देगी और तब उन्हें बर्फ के दर्शन होंगें। यही सोच-सोच कर सचमुच लेखक का दिल बुरी तरह से धड़क रहा था।
प्रश्न 9 – डाक बंगले के खानसामे ने लेखक और उनके साथियों को खुशकिस्मत क्यों कहा ?
उत्तर – डाक बंगले के खानसामे ने लेखक और उनके साथियों को बताया कि वे सभी लोग खुशकिस्मत हैं! क्योंकि उनसे पहले 14 टूरिस्ट आए थे। हफ्ते भर वहीं घाटी में पड़े रहे, परन्तु उन्हें बरफ नहीं दिखी। परन्तु आज तो लेखक और उनके साथियों के आते ही मौसम के लक्षण खुलने के हो रहे हैं। अर्थात मौसम को देखकर लग रहा था जैसे बादल हट जाएंगे और लेखक और उनके साथियों को हिमालय और बर्फ के दर्शन हो जाएंगे।
प्रश्न 10 – जब सूरज डूबने लगा तब हिमालय का दृश्य कैसा था और लेखक और उनके मित्र कैसा अनुभव कर रहे थे ?
उत्तर – जब सूरज डूबने लगा तो धीरे-धीरे ग्लेशियरों में से मानो पिघला केसर बहने लगा हो। शाम की धूप के कारण बरफ कमल के लाल फूलों में बदलने लगी थी। घाटियाँ गहरी पीली हो गई थी। अँधेरा होने लगा तो लेखक और उनके साथी बरामदे से उठे और फिर मुँह-हाथ धोने और चाय पीने लगे। परन्तु सब चुपचाप और गुमसुम थे, मानो सबका कुछ छिन गया हो, या शायद सबको कुछ ऐसा मिल गया हो जिसे वे अपने अंदर ही अंदर सहेजने में आत्मलीन हों या अपने में डूब गए हों। अर्थात हिमालय और बर्फ के दर्शन के बाद सभी उस दृश्य में मानो खो से गए थे।