JKBOSE Class 10 Hindi Chapter 12 Jammu ki Chitrakala (जम्मू की चित्रकला) Question Answers (Important) from Bhaskar Bhag 2 Book
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- Jammu ki Chitrakala Extract Based Questions
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JKBOSE Class 10 Chapter 12 Jammu ki Chitrakala Textbook Questions
प्रश्न- अभ्यास
बोध और सरहाना
प्रश्न 1 – ललित कलाएँ कितने प्रकार की हैं। उनके नाम क्या हैं ?
उत्तर – ललित कलाएं पांच प्रकार की हैं और उनके नाम हैं –
(1) साहित्य कला
(2) संगीत कला
(3) चित्रकला
(4) मूर्ति कला
(5) नृत्य कला
प्रश्न 2 – मानव की प्राचीनतम लिपि कौन सी है ?
उत्तर – मानव की प्राचीनतम लिपि चित्र लिपि है।
प्रश्न 3 – चित्रकला का विश्वव्यापकला क्या कहत हैं ?
उत्तर – सभी कलाओं में चित्रकला एक उत्तम कला माना जा सकता है। क्योंकि चित्र को देखकर जाँचा जा सकता है, जब कि कुछ कलाओं को केवल सुनने या महसूस करने से ही समझा जा सकता है। चित्र देखने में सरल होता है और मुख्यतः हर व्यक्ति चित्र देखकर किसी सीमा तक व्यक्ति की बात को समझ सकता है। उदाहरण के तौर पर विभिन्न भाषाओं में पक्षी को ‘तामर’, ‘परिंदा’,’खग’ लिख दिया जाए, तो ये नाम वही आदमी पढ़ सकता है, जो उस शब्द में प्रयोग की जाने वाली भाषा को जानता हो। परंतु इन सबके स्थान पर यदि एक पक्षी का चित्र बना दिया जाए, तो सभी समझ सकते हैं कि पक्षी की बात की जा रही है। इसी कारण चित्रकला को विश्व – व्यापी अर्थात सम्पूर्ण संसार की भाषा भी कहा जाता है।
प्रश्न 4 – ‘जम्मू की चित्रकला’ का जन्म किस शताब्दी में हुआ ?
उत्तर – जम्मू की चित्रकला का जन्म अठारहवीं शताब्दी में हुआ।
प्रश्न 5 – कृपाल पाल का दरबारी चित्रकार कौन था तथा उसने कौन सी विश्वविख्यात चित्रकला चित्रित की ?
उत्तर – राजा कृपाल पाल एक कला से प्रेम करने वाला तथा कला की देख-रेख अथवा कला को सुरक्षित करने वाला राजा था। उसके प्रसिद्ध दरबारी देवदास जो की एक चित्रकार था, उसने बहुत से अनोखे व् अद्धभुत चित्र बनाए थे। उसने विश्वविख्यात चित्रावली ‘रसमंजरी’ चित्रित करके राजा कृपालपाल को उपहार स्वरूप दी थी।
प्रश्न 6 – अठारहवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध (उत्तरार्द्ध) ‘जम्मू कलम’ का स्वर्णिम काल क्यों कहा जाता है।
उत्तर – अठारहवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध अर्थात अठारहवीं शताब्दी के बाद का आधा भाग को जम्मू-कलम का स्वर्णिम काल अर्थात सुनहरा युग माना जाता है। उस काल में बहुत से चित्रकार हुए और उनकी रचना का स्तर भी ऊँचा रहा। बलवंत देव ने भी इसी एक चित्र बहुत प्रसिद्ध चित्र बनाया था, उस चित्र में बलवंत देव को शिकार खेलते हुए दिखाया गया है। चित्र की बारीकियों का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि उस चित्र में पानी में मुरगाबियाँ (मुरगे की जाति का एक पक्षी, जो जल में तैरता और मछलियाँ पकड़कर खाता हैं) तैरती हुई दिखाई गई हैं। ये चित्र प्रमाणित करते हैं कि जम्मू चित्रकला अथवा जम्मू-कलम का यथार्थ अथवा रियल विकास इसी युग में हुआ था।
प्रश्न 7 – पंडित संसार चंद ने ‘जम्मू कलम’ का जीवित रखने में क्या योगदान दिया ?
उत्तर – पंडित संसार चंद, जगतराम छुनिया के शिष्य थे। पंडित संसार चंद बहुत ही प्रतिभाशाली थे। एक ओर जहाँ उन्होंने जम्मू कलम अथवा पहाड़ी कलम के ढंग को जीवित रखा था, वहीं दूसरी ओर वे पुराने और नए तरीकों को मिलाकर के चित्र बनाया करते थे। उनके द्वारा किए गए इन प्रयोगों की हर जगह बड़ी प्रशंसा हुई है और देश में ही नहीं, विदेश में भी ये चित्र देखे जाते है, खरीदे जाते हैं और इनकी प्रशंसा की जाती है। प्रकृति का चित्रण करने में पंडित संसार चंद अत्यंत निपुण थे। वे ‘डोगरा आर्ट गैलरी’ के निर्माताओं में से एक थे तथा वे गैलरी के प्रथम संग्रहपाल (क्यूरेटर) भी रहे थे। पंडित संसार चंद के द्वारा प्रतिष्ठित कला – परम्परा को आगे बढ़ाने में उनके तीन शिष्य प्रयास कर रहे हैं। ये सभी चित्रकार एक ही समय के हैं तथा वर्तमान में कला को और अधिक सुंदर बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
प्रश्न 8 – ‘जम्मू कलम’ के प्रसिद्ध समकालीन चित्रकारों के नाम लिखें।
उत्तर – ‘जम्मू कलम’ के प्रसिद्ध समकालीन चित्रकारों के नाम हैं – ओ. पी. शर्मा ‘सारथी’, देवदास तथा गिरधारी लाल।
प्रश्न 9 – ‘पहाड़ी चित्रकला’ की विशेषता के बारे में तीन वाक्य लिखें।
उत्तर – पहाड़ी चित्रकला (कलम) की कई विशेषताएँ हैं। जैसे –
डेढ़ सौ साल बीत जाने पर भी इन चित्रों के रंग इतने ताज़ा लगते हैं जैसे अभी-अभी उनको चित्रों में लगाया गया हैं।
इनमें प्रयोग किए गए रंग आमतौर पर या ज्यादातर मिट्टी से बनाए जाते थे। कुछ रंगों को वनस्पति और फूलों से भी बनाया जाता था। कुछ चित्रों के सतह के चारों ओर छोड़ी हुई सादा जगह और आभूषणों में स्वर्ण-रंगों का भी प्रयोग किया जाता था जो कि पवित्र सोने से ही तैयार किया जाता था।
इनमें प्रयोग की गई रेखाओं और पैर के नख से सिर तक के सभी अंगों को बनाने की है। चित्रों में रेखाएँ पूरी तरह से स्पष्ट रूप में प्रयोग की गई है और पैर के नख से सिर तक के सभी अंगों को बहुत ही सूक्ष्म और महीन रेखाओं से बनाया गया हैं।
सभी चित्र भावना और कला के अच्छे उदाहरण अथवा मिसाल हैं।
भाषा-अध्ययन
जब शब्द में दो व्यंजन – वर्णों के बीच स्वर – ध्वनि या स्वरवर्ण (स्वर – मात्रा) न आए, उसे व्यंजन-युग्म कहते हैं । व्यंजन – युग्म एक ध्वनि को प्रकट करता है। जैसे ‘मनुष्य’ में (ष्य) ‘नृत्य’ में ‘त्य’ (त्य) ‘जम्मू में म्म— (म्म)।
प्रस्तुत पाठ में आए कोई पाँच व्यंजन-युग्म शब्द छाँटें तथा उनके वाक्य बनाएँ।
उत्तर –
1 – साहित्य – साहित्य इतिहास का दर्पण है।
2 – व्यक्त – चित्रों के माध्यम से मनुष्य को अपनी भावनाएं व्यक्त करने का अवसर मिला।
3 – शताब्दी – चित्रों का इतिहास कई शताब्दी पुराना है।
4 – विश्वविख्यात – जम्मू कला विश्वविख्यात है।
5 – मिट्टी – प्राचीन समय में अधिकतर रंग मिट्टी से बनाए जाते थे।
JKBOSE Class 10 Hindi Lesson 12 जम्मू की चित्रकला सार-आधारित प्रश्न (Extract Based Questions)
1 –
विश्व में मनुष्य जहाँ भी रहता है, वहाँ अपनी भावनाओं और विचारों को व्यक्त करने के लिए विभिन्न ललित – कलाओं को माध्यम बनाता है। ललित कलाएँ पाँच हैं – साहित्यकला, संगीतकला, चित्रकला, मूर्तिकला तथा नृत्यकला । महामुनि कपिल कहते हैं :-
साहित्य संगीत कला विहीन :
साक्षात पशु-पुच्छ-विषाण हीनः
अर्थात् वह व्यक्ति जो साहित्य, संगीत, नृत्यादि कलाओं को नहीं जानता वह बिना सींगों तथा पूँछ के पशु है । इससे स्पष्ट है कि कला जानने वाला ही मनुष्य कहलाने का अधिकारी है । चित्रकला एक श्रेष्ठ कला है । उसको देखकर परखा जा सकता है, जब कि कुछ कलाओं को सुनने या महसूस करने से ही समझा जा सकता है | चित्र देखने में सरल होता है और सामान्यता हर व्यक्ति देखकर किसी सीमा तक समझ सकता है। उदाहरण के तौर पर विविध भाषाओं में पक्षी’, ‘तामर’, ‘परिंदा’ लिख दिया जाए, तो ये नाम वही आदमी पढ़ सकता है, जो वह भाषा जानता हो । परंतु इन सबके स्थान पर यदि एक पक्षी का चित्र बना दिया जाए, तो सभी समझ सकते हैं कि पक्षी ना है। इसी कारण चित्रकला को विश्व – व्यापी भाषा भी कहा जाता है। मानव की प्राचीनतम लिपि चित्रों की लिपि है, जिसे चित्र – लिपि कहते हैं।
प्रश्न 1 – मनुष्य अपनी भावनाओं और विचारों को व्यक्त करने के लिए किसे माध्यम बनाता है?
(क) विभिन्न ऐतिहासिक जगहों को
(ख) विभिन्न चित्रकारों को
(ग) विभिन्न साहित्यकारों को
(घ) विभिन्न ललित-कलाओं को
उत्तर – (घ) विभिन्न ललित-कलाओं को
प्रश्न 2 – ललित कलाएँ कितनी हैं?
(क) चार
(ख) पाँच
(ग) तीन
(घ) छः
उत्तर – (ख) पाँच
प्रश्न 3 – कपिल मुनि के अनुसार कौन मनुष्य कहलाने का अधिकारी है?
(क) साहित्य जानने वाला
(ख) इतिहास जानने वाला
(ग) कला जानने वाला
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (ग) कला जानने वाला
प्रश्न 4 – कौन सा व्यक्ति बिना सींगों तथा पूँछ के पशु है?
(क) वह व्यक्ति जो साहित्य, संगीत, नृत्यादि कलाओं को नहीं जानता
(ख) वह व्यक्ति जो साहित्य, संगीत, नृत्यादि कलाओं को जानता है
(ग) वह व्यक्ति जो भारतीय कलात्मकता को नहीं जानता
(घ) वह व्यक्ति जो भारत के महान साहित्य को नहीं जानता
उत्तर – (क) वह व्यक्ति जो साहित्य, संगीत, नृत्यादि कलाओं को नहीं जानता
प्रश्न 5 – चित्रकला को श्रेष्ठ कला क्यों कहा गया है?
(क) उसको देखकर परखा जा सकता है
(ख) चित्र देखने में सरल होता है
(ग) सामान्यता हर व्यक्ति देखकर किसी सीमा तक समझ सकता है
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
2 –
उत्तर भारत में चित्रकला का एक केंद्र जम्मू भी रहा है। जम्मू की कला ‘जम्मू–कलम’ अथवा ‘जम्मू-पहाड़ी कला’ के नाम से जानी जाती है। जम्मू चित्रकला का भारतीय कला के क्षेत्र में विशिष्ट स्थान है। इस कला का जन्म लगभग अठारहवीं शताब्दी में हुआ।
सतरहवीं शताब्दी में बसोहली पर राजा कृपाल पाल का राज्य था । वह कला-प्रेमी तथा कला का संरक्षक था उसके प्रसिद्ध दरबारी चित्रकार देवदास ने बहुत से अनुपम चित्र बनाए। उसने ‘रसमंजरी’ नामक विश्वविख्यात चित्रावली चित्रित करके राजा कृपालपाल को भेंट की थी । यह काल बसोहली चित्रकला का स्वर्णिम काल था ।
राजा ध्रुवदेव, जिसका राज्यकाल 1702 ई० से 1730 ई० रहा, अपने समय का शक्तिशाली शासक था। उसके उपरांत जम्मू के शासक रंजीत देव के समय के पहाड़ी चित्र उपलब्ध हुए । अठारहवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध जम्मू-कलम का स्वर्णिम काल माना जाता है। उस काल में बहुत से चित्रकार हुए और उनके सृजन का स्तर भी ऊँचा रहा । उनका प्रेरणा-स्रोत जम्मू के सुप्रसिद्ध राजा रंजीत देव का छोटा भाई बलवंत देव था । बलवंत देव ने सरूईंसर में ही रहकर चित्र बनाए। उस काल के चित्रों मैं एक प्रसिद्ध चित्र है, जिसमें बलवंत देव को शिकार खेलते हुए दर्शाया गया है। चित्र में पानी में मुरगाबियाँ तैरती हुई दिखाई गई हैं। इन चित्रों से प्रमाणित होता है कि जम्मू चित्रकला अथवा जम्मू-कलम का वास्तविक विकास इसी युग में हुआ। इन चित्रों में मुगल – शैली का प्रभाव दिखाई देता है ।
प्रश्न 1 – जम्मू किस क्षेत्र की चित्रकला का केंद्र रहा है?
(क) दक्षिण भारत
(ख) उत्तर भारत
(ग) पूर्वी भारत
(घ) पश्चिमी भारत
उत्तर – (ख) उत्तर भारत
प्रश्न 2 – जम्मू चित्रकला का जन्म कब माना जाता है?
(क) लगभग अठारहवीं शताब्दी में
(ख) लगभग सतरहवीं शताब्दी में
(ग) लगभग सोलवीं शताब्दी में
(घ) लगभग उन्नीसवीं शताब्दी में
उत्तर – (क) लगभग अठारहवीं शताब्दी में
प्रश्न 3 – ‘रसमंजरी’ किसकी रचना है?
(क) देवराज
(ख) राजा कृपाल
(ग) गिरधारी लाल
(घ) देवदास
उत्तर – (घ) देवदास
प्रश्न 4 – जम्मू-कलम का स्वर्णिम काल कौन सा माना जाता है?
(क) अठारहवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध
(ख) अठारहवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध
(ग) दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (क) अठारहवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध
प्रश्न 5 – बलवंत देव के प्रसिद्ध चित्र की ख़ास बात क्या है?
(क) बलवंत देव को शिकार खेलते हुए दर्शाया गया है
(ख) चित्र में पानी में मुरगाबियाँ तैरती हुई दिखाई गई हैं
(ग) बलवंत देव राजा को चित्र उपहार में दे रहे हैं
(घ) बलवंत देव ने मुग़ल शैली का प्रयोग किया है
उत्तर – (ख) चित्र में पानी में मुरगाबियाँ तैरती हुई दिखाई गई हैं
3 –
गुलाब सिंह के महाराजा बन जाने पर जम्मू क्षेत्र में शांति स्थापित हुई और चित्रकला को पनपने का अवसर प्राप्त हुआ । एक सिद्धहस्त चित्रकार नंदलाल कांगड़ा से जम्मू आए और यहीं बस गए। चित्रकार नंदलाल के दो पुत्र चाननू और रुलदू थे। वे महाराजा गुलाब सिंह के पुत्र रंजीत सिंह के दरबारी चित्रकार रहे। चाननू का पुत्र हरिचंद जम्मू दरबार का चित्रकार रहा। महाराजा प्रताप सिंह के दरबार का महत्त्वपूर्ण चित्रकार जगतराम छुनिया था । उसने बड़े ही अनुपम चित्र बनाए। उसकी मृत्यु 1926 ई० में हुई । जगतराम छुनिया के बनाए कुछ चित्र जम्मू आर्ट म्यूज़ियम में आज भी सुरक्षित हैं।
जगतराम छुनिया के शिष्य पंडित संसार चंद थे। पंडित संसार चंद बहुत ही प्रतिभा संपन्न थे। उन्होंने एक और जम्मू कलम अथवा पहाड़ी कलम की शैली को जीवित रखा, तो दूसरी ओर पुरानी और नई शैली के मिश्रण के चित्र बनाए हैं । आपके इन प्रयोगों की बड़ी प्रशंसा हुई है और देश-विदेश में ये चित्र देखे, खरीदे व सराहे गए हैं। प्रकृति-चित्रण में आप सिद्धहस्त थे । आप ‘डोगरा आर्ट गैलरी’ के निर्माताओं में से थे तथा गैलरी के प्रथम संग्रहपाल (क्यूरेटर) भी रहे थे ।
पंडित संसार चंद की कला – परम्परा को आगे बढ़ाने में उनके तीन शिष्य ओ. पी. शर्मा ‘सारथी’, देवदास तथा गिरधारी लाल कार्यरत हैं।
प्रश्न 1 – कौन सा चित्रकार कांगड़ा से जम्मू आया?
(क) सिद्धहस्त चित्रकार नंदलाल
(ख) सिद्धहस्त चित्रकार जगतराम
(ग) सिद्धहस्त चित्रकार पंडित संसार चंद
(घ) सिद्धहस्त चित्रकार गुलाब सिंह
उत्तर – (क) सिद्धहस्त चित्रकार नंदलाल
प्रश्न 2 – महाराजा प्रताप सिंह के दरबार का महत्त्वपूर्ण चित्रकार कौन था ?
(क) पंडित संसार चंद
(ख) चित्रकार नंदलाल
(ग) जगतराम छुनिया
(घ) बलवंत देव
उत्तर – (ग) जगतराम छुनिया
प्रश्न 3 – देश-विदेश में किसके द्वारा बनाए गए चित्र देखे, खरीदे व सराहे जाते थे?
(क) बलवंत देव
(ख) जगतराम छुनिया
(ग) पंडित संसार चंद
(घ) देवदास
उत्तर – (ख) जगतराम छुनिया
प्रश्न 4 – डोगरा आर्ट गैलरी के प्रथम संग्रहालय कौन थे?
(क) ओ०पी० शर्मा सारथी
(ख) देवदास
(ग) संसार चंद
(घ) गिरधारी लाल
उत्तर – (ग) संसार चंद
प्रश्न 5 – संसार चंद की कला परंपरा को आगे बढ़ाने का श्रय किसको जाता है?
(क) ओ०पी० शर्मा सारथी
(ख) देवदास
(ग) गिरधारी लाल
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर – (घ) उपर्युक्त सभी
4 –
पहाड़ी चित्रकला (कलम) की कई विशेषताएँ हैं। सबसे बड़ी विशेषता यह है कि डेढ़ सौ साल बीत जाने पर भी इनके रंग ऐसे ताज़ा हैं कि जान पड़ता है कि अभी लगाए गए हैं। इनमें प्रयुक्त रंग बहुधा मिट्टी से बनाए जाते थे । कुछ एक वनस्पति और पुष्पों से भी निर्मित करते थे । कुछ चित्रों के हाशियों और आभूषणों में स्वर्ण-रंग भी प्रयुक्त किया गया है जो कि विशुद्ध स्वर्ण ही में तैयार किया जाता था । दूसरी विशेषता रेखा और नखशिख चित्रण की है। रेखाएँ पूर्ण रूप से सधी हुई हैं और नखशिख बहुत ही सूक्ष्म और बारीक रेखाओं से बनाए गए हैं। किसी चित्र को सामान्यतः देखने से लगता है कि सिर में केवल रंग पोत दिया गया है, परंतु ध्यान—पूर्वक देखने पर एक-एक बाल खिंचा हुआ दिखाई दे जाता है। सारे चित्र भावना और कला के अच्छे नमूने हैं। इनमें वनस्पति, फूल, पत्ते और वृक्षों का चित्रण बहुत बारीकी और कलात्मकता से किया गया है । वस्त्रों का चित्रण पारदर्शी तथा मोहक है । महलों, मुँडेरों, मेहराबों तथा द्वारों पर बेल-बूटों का बारीक कार्य देखते ही बनता है। इन्हीं गुणों के कारण इन चित्रों ने देश-विदेश में ख्याति अर्जित की और भारत का नाम संसार भर में उजागर किया । अब इस शैली के चित्रों का निर्माण लगभग समाप्त हो चुका है।
प्रश्न 1 – पहाड़ी चित्रकला (कलम) की क्या विशेषताएँ हैं?
(क) डेढ़ सौ साल बीत जाने पर भी इन चित्रों के रंग इतने ताज़ा लगते हैं
(ख) चित्रों में रेखाएँ पूरी तरह से स्पष्ट रूप में प्रयोग की गई है और पैर के नख से सिर तक के सभी अंगों को बहुत ही सूक्ष्म और महीन रेखाओं से बनाया गया हैं
(ग) सभी चित्र भावना और कला के अच्छे उदाहरण अथवा मिसाल हैं
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 2 – नखशिख का क्या अर्थ है?
(क) पैर के नाख़ून
(ख) पैर के नाख़ून का सिरा
(ग) पैर के नख से सिर तक के सभी अंग
(घ) पैर का अगला भाग
उत्तर – (ग) पैर के नख से सिर तक के सभी अंग
प्रश्न 3 – किन गुणों के कारण चित्रों ने देश-विदेश में ख्याति अर्जित की?
(क) डेढ़ सौ साल बीत जाने पर भी इन चित्रों के रंग इतने ताज़ा लगते हैं
(ख) रेखा और नखशिख चित्रण
(ग) सारे चित्र भावना और कला के अच्छे नमूने हैं
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 4 – किसी चित्र को सामान्यतः देखने से लगता है कि सिर में केवल रंग पोत दिया गया है, परंतु ध्यान—पूर्वक देखने पर क्या दिखाई देता है?
(क) एक-एक बाल में रंग भरा हुआ दिखाई दे जाता है
(ख) एक-एक बाल खिंचा हुआ दिखाई दे जाता है
(ग) एक-एक बाल में अलग-अलग रंग दिखाई दे जाता है
(घ) एक-एक बाल अच्छे से सुनहरा दिखाई दे जाता है
उत्तर – (ख) एक-एक बाल खिंचा हुआ दिखाई दे जाता है
प्रश्न 5 – हाशियों और आभूषणों में प्रयुक्त स्वर्ण-रंग कैसे तैयार किया जाता था?
(क) अशुद्ध स्वर्ण से
(ख) पवित्र स्वर्ण से
(ग) पीले फूलों से
(घ) फूलों के पराग से
उत्तर – (ख) पवित्र स्वर्ण से
JKBOSE Class 10 Hindi जम्मू की चित्रकला प्रश्न और उत्तर (Extra Question Answers)
प्रश्न 1 – ‘जम्मू की चित्रकला’ पाठ के अनुसार मनुष्य अपनी भावनाओं और विचारों को दूसरों के समक्ष कैसे प्रस्तुत करता है?
उत्तर – मनुष्य संसार में जहाँ कहीं भी रहता है, वहाँ अपनी भावनाओं और विचारों को दूसरों के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए अलग-अलग तरह की सुन्दर – कलाओं को माध्यम बनाता है। कहने का अभिप्राय यह है कि मनुष्य अपने विचारों को प्रस्तुत करने का कोई-न-कोई ढंग खोज ही लेता है। जिन ललित कलाओं को मनुष्य माध्यम बनाता है उन्हें पाँच प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है – साहित्यकला, संगीतकला, चित्रकला, मूर्तिकला तथा नृत्यकला।
प्रश्न 2 – महामुनि कपिल के अनुसार कैसा मनुष्य बिना सींगों तथा पूँछ के पशु के सामान है?
उत्तर – महामुनि कपिल के अनुसार –
साहित्य संगीत कला विहीन :
साक्षात पशु-पुच्छ-विषाण हीनः
अर्थात् वह व्यक्ति जो साहित्य, संगीत, नृत्यादि कलाओं को नहीं जानता वह बिना सींगों तथा पूँछ के पशु के सामान है। महामुनि कपिल के इस वाक्य से स्पष्ट है कि कला जानने वाला ही मनुष्य कहलाने का अधिकारी है।
प्रश्न 3 – उत्तर भारत में चित्रकला का केंद्र कौन रहा है?
उत्तर – उत्तर भारत में चित्रकला का एक केंद्र अर्थात सेंटर जम्मू भी रहा है। जम्मू की कला को ‘जम्मू–कलम’ अथवा ‘जम्मू-पहाड़ी कला’ के नाम से जाना जाता है। भारतीय कला के क्षेत्र में जम्मू चित्रकला का अपना एक विशेष व् प्रसिद्ध स्थान है। जम्मू चित्रकला का जन्म लगभग अठारहवीं शताब्दी में माना जाता है। अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध का यह काल बसोहली चित्रकला का स्वर्णिम काल अर्थात सुनहरा युग माना जाता है।
प्रश्न 4 – राजा बलवंत देव की छत्रछाया में रहकर किन चित्रकारों ने अपनी कला का सृजन किया?
उत्तर – प्रसिद्ध चित्रकार नैनसुख के पिता, जो उनके गुरु भी थे, मुग़ल दरबार के चित्रकार रह चुके थे। वे जसरोटा में आ कर बस गए थे। नैनसुख जम्मू चित्रकला के सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण चित्रकार थे, उन्होंने राजा बलवंत देव की छत्रछाया में रहकर अपनी कला का सृजन किया। अर्थात नैनसुख राजा बलवंत देव के आश्रय में रहकर अपनी कला की रचना किया करते थे। उनके द्वारा बनाए गए चित्रों में एक ऐसा भी चित्र मिला है जिसमें नैनसुख स्वयं एक चित्र राजा बलवंत देव को उपहार स्वरूप दे रहे हैं। नैनसुख के अलावा वाजनशाह और दोद्दी बलवंत देव के द्वारा बचाए गए चित्रकार थे। अर्थात नैनसुख के अलावा वाजनशाह और दोद्दी को भी बलवंत देव का आश्रय प्रदान था।
प्रश्न 5 – चित्रकार नंदलाल किस राजा के दरबारी चित्रकार रहे?
उत्तर – गुलाब सिंह के महाराजा बन जाने पर जम्मू क्षेत्र में शांति स्थापित हुई और चित्रकला को फलने-फूलने व् विकसित होने का पूरा मौका मिला। एक कुशल व् निपुण चित्रकार नंदलाल कांगड़ा से जम्मू आए और यहीं बस गए। चित्रकार नंदलाल के दो पुत्र थे – चाननू और रुलदू। चित्रकार नंदलाल के पुत्र महाराजा गुलाब सिंह के पुत्र रंजीत सिंह के दरबारी चित्रकार रहे।
प्रश्न 6 – किसके चित्र आज भी जम्मू आर्ट म्यूज़ियम में सुरक्षित रखे गए हैं?
उत्तर – चित्रकार जगतराम छुनिया महाराजा प्रताप सिंह के दरबार का महत्त्वपूर्ण चित्रकार था। उसने बड़े ही अद्धभुत व् अनूठे चित्र बनाए। जगतराम छुनिया के बनाए कुछ चित्र आज भी जम्मू आर्ट म्यूज़ियम में सुरक्षित रखे गए हैं। पंडित संसार चंद, जगतराम छुनिया के शिष्य थे।
प्रश्न 7 – पंडित संसार चंद का चित्रकारी में क्या योगदान रहा?
उत्तर – पंडित संसार चंद बहुत ही प्रतिभाशाली थे। एक ओर जहाँ उन्होंने जम्मू कलम अथवा पहाड़ी कलम के ढंग को जीवित रखा था, वहीं दूसरी ओर वे पुराने और नए तरीकों को मिलाकर के चित्र बनाया करते थे। उनके द्वारा किए गए इन प्रयोगों की हर जगह बड़ी प्रशंसा हुई है और देश में ही नहीं, विदेश में भी ये चित्र देखे जाते है, खरीदे जाते हैं और इनकी प्रशंसा की जाती है। प्रकृति का चित्रण करने में पंडित संसार चंद अत्यंत निपुण थे। वे ‘डोगरा आर्ट गैलरी’ के निर्माताओं में से एक थे तथा वे गैलरी के प्रथम संग्रहपाल (क्यूरेटर) भी रहे थे। पंडित संसार चंद के द्वारा प्रतिष्ठित कला – परम्परा को आगे बढ़ाने में उनके तीन शिष्य ओ. पी. शर्मा ‘सारथी’, देवदास तथा गिरधारी लाल जुटे हुए हैं। अर्थात पंडित संसार चंद के तीन शिष्य उनके कला के ढंग को बरकरार रखने का प्रयास कर रहे हैं।
प्रश्न 8 – ‘जम्मू की चित्रकला’ पाठ के आधार पर पहाड़ी चित्रकला (कलम) की विशेषताएँ अपने शब्दों में लिखिए?
उत्तर – पहाड़ी चित्रकला (कलम) की कई विशेषताएँ हैं। सभी विशेषताओं में सबसे बड़ी विशेषता यह है कि डेढ़ सौ साल बीत जाने पर भी इन चित्रों के रंग इतने ताज़ा लगते हैं जैसे अभी-अभी उनको चित्रों में लगाया गया हैं। इनमें प्रयोग किए गए रंग आमतौर पर या ज्यादातर मिट्टी से बनाए जाते थे। कुछ रंगों को वनस्पति और फूलों से भी बनाया जाता था। कुछ चित्रों के सतह के चारों ओर छोड़ी हुई सादा जगह और आभूषणों में स्वर्ण-रंगों का भी प्रयोग किया जाता था जो कि पवित्र सोने से ही तैयार किया जाता था। इन चित्रों की दूसरी विशेषता इनमें प्रयोग की गई रेखाओं और पैर के नख से सिर तक के सभी अंगों को बनाने की है। चित्रों में रेखाएँ पूरी तरह से स्पष्ट रूप में प्रयोग की गई है और पैर के नख से सिर तक के सभी अंगों को बहुत ही सूक्ष्म और महीन रेखाओं से बनाया गया हैं। सामान्यतः किसी चित्र को देखने पर लगता है जैसे उस चित्र में सिर में केवल रंग पोत दिया गया है, परंतु जब ध्यान-पूर्वक देखा जाता है, तब ज्ञात होता है कि सिर पर एक-एक बाल रेखाएँ खिंच कर बनाया हुआ है। सभी चित्र भावना और कला के अच्छे उदाहरण अथवा मिसाल हैं। इनमें वनस्पति, फूल, पत्ते और वृक्षों का चित्रण बहुत महीन और कला का पूर्ण रूप से प्रयोग करके किया गया है। चित्रों में वस्त्रों को पारदर्शी तथा मोहक बनाया गया है। चित्रों में महलों, खेत के चारों ओर सीमा पर अथवा क्यारियों के उभरे हुए भाग, द्वार के ऊपर का अर्धमंडलाकार बनाया हुआ भाग तथा द्वारों पर बेल-बूटों का महीन कार्य देखते ही बनता है। इन्हीं गुणों के कारण इन चित्रों ने देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी प्रसिद्धि हासिल की है और भारत का नाम सम्पूर्ण संसार भर में प्रकाशित या रोशन किया है।