JKBOSE Class 10 Hindi Chapter 10 Kashmir Ka Loknatak “Bhand-Pathar” (कश्मीर का लोकनाटक “बाँड – पाऽथर”) Question Answers (Important) from Bhaskar Bhag 2 Book

 

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JKBOSE Class 10 Chapter 10 Kashmir Ka Loknatak “Bhand-Pathar” Textbook Questions

 

बोध और विचार

(क) ‘बाँड पाऽथर’ किसे कहते हैं?
उत्तर-‘बाँड पाऽथर’ कश्मीरी लोकनाटकों की एक विशेष शैली है जिसे बाँडों की टोलियाँ प्रस्तुत करती हैं। यह एक प्रकार का लोकनाटक है, जिसमें हँसी-मज़ाक और सामाजिक व्यंग्य के माध्यम से आम जनता का मनोरंजन किया जाता है।

(ख) लोकनाटक कौन रचता है?
उत्तर– लोकनाटक आम लोग रचते हैं। ये किसी विद्वान या पेशेवर लेखक द्वारा नहीं लिखे जाते, बल्कि गाँव-समाज के साधारण लोग इन्हें मिल-बैठकर तैयार करते हैं। ये नाटक उनके अपने जीवन के अनुभवों, दुख-दर्द, आशाओं और सामाजिक परिस्थितियों पर आधारित होते हैं। पात्रों, संवादों, वेशभूषा और मंचन की योजना भी यही लोग आपस में तय करते हैं।

(ग) लोक नाटकों में क्या बताया या पेश किया जाता है?
उत्तर- लोक नाटकों में आम लोगों के जीवन से जुड़ी पारंपरिक कहानियाँ, उनके दुख-दर्द, शोक-शिकायतें, आशाएँ-आकांक्षाएँ और सामाजिक समस्याएँ पेश की जाती हैं। इनमें शोषण करने वाले वर्ग की हरकतों की नकल उतारकर व्यंग्य किया जाता है। साथ ही समाज की बुराइयों और दोषों को उजागर करके हँसी-ठिठोली के माध्यम से दर्शकों का मनोरंजन भी किया जाता है।

(घ) ‘बाँड’ तथा पाथर इन दो कश्मीरी शब्दों के अर्थ बताइए।
उत्तर– ‘बाँड’ शब्द संस्कृत के ‘भाँड’ शब्द से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है हास्य अभिनेता। कश्मीरी में ‘बाँड’ हास्य प्रस्तुत करने वाला व्यक्ति होता है जो नाटक में मनोरंजन के लिए अभिनय करता है। वह समाज की समस्याओं पर व्यंग्य करता है और दर्शकों को हँसाता है।
‘पाऽथर’ शब्द संस्कृत के ‘पात्र’ शब्द से बना है। संस्कृत में पात्र का अर्थ होता है अभिनेता जबकि कश्मीरी में ‘पाऽथर’ का अर्थ नाटक या स्वांग होता है। ‘बाँड पाऽथर’ का अर्थ होता है बाँडों द्वारा रचित हास्य-नाटक।

(ङ) कुल कितने ‘बाँड पाऽथरों की परंपरा आज तक चल रही है ?
उत्तर- आज तक कुल आठ ‘बाँड पाऽथरों की परंपरा जीवित है। इनकी विषय-वस्तु के आधार पर नाम रखे गए हैं। ये हैं:
1. वातल (मेहतर का) पाऽथर
2. बुहुर्य् (पंसारी की) पाऽथर
3. राजुॅ (राजा का) पाऽथर
4. दरजुॅ (दरद जाति की स्त्री का) पाऽथर
5. ग्वसाऽन्य् (गोसाईं साधु का ) पाऽथर
6. बकरवाल (बकर वाल का ) पाऽथर
7. अंगरेज़ (अंग्रेज़ का) पाऽथर
8. शिकारगाह (शिकारी तथा वन्यपशुओं का ) पाऽथर
इन पाऽथरों की निश्चित कथाएँ हैं, निश्चित ढंग के वार्तालाप हैं, वेशभूषा तथा साजसज्जा भी निश्चित है।

(च) ‘ग्वसाऽन्य पाऽथर’ की विषय-वस्तु लिखिए |
उत्तर- ‘ग्वसाऽन्य पाऽथर’ की विषयवस्तु एक ग्वालिन ‘गुपाली’ और एक साधु यात्री पर आधारित है। गुपाली साधु पर मोहित हो जाती है। साधु उसे संसार त्यागने की शर्त देता है। अंततः साधु अंतर्ध्यान हो जाता है और गुपाली ललेश्वरी के ‘वाख’ पढ़ते हुए आत्मलीन हो जाती है।

(छ) ‘अँगरेज़ पाऽथर’ की विषय-वस्तु लिखिए |
उत्तर- ‘अँगरेज़ पाऽथर’ में एक अँग्रेज अधिकारी के दंभ, विदेशी बोली और आचरण पर व्यंग्य किया गया है। वह गाँव में आकर रोब झाड़ता है और नंबरदार व चौकीदार को डाँटता है। उसकी अजीब अँग्रेजी और उर्दू भाषा का ग्रामीण मज़ाक उड़ाते हैं। कुर्सी की जगह हाँडी दे दी जाती है जो उसके बैठते ही टूट जाती है। यह नाटक ब्रिटिश शासकों के अहंकार पर कटाक्ष करता है और दर्शकों को हँसाकर सामाजिक विरोध व्यक्त करता है।

(ज) ‘बाँड पाऽथर’ खेलने वाली टोलियाँ किन अवसरों पर नाटक खेलकर गुज़ारा करती हैं ?
उत्तर- ‘बाँड पाऽथर’ खेलने वाली टोलियाँ विवाह, ईद, शिवरात्रि, यज्ञोपवीत, किसी पीर-फकीर के उर्स जैसे सामाजिक, धार्मिक और व्यक्तिगत उत्सवों के अवसर पर नाटक खेलती हैं। इसके अलावा वे शरद ऋतु में धान कटाई के बाद भी गाँव-गाँव जाकर अपने नाट्य-कौशल से लोगों का मनोरंजन करती हैं और बदले में धन-धान्य प्राप्त कर अपना गुज़ारा करती हैं।

(झ) ‘बाँड़ों’ पर किस राजा ने कर माफ किया था ?
उत्तर- ‘बाँड़ों’ पर कर महाराजा प्रताप सिंह ने माफ किया था। उन्होंने घोड़ा-कर, मवेशी-कर, सड़क-कर जैसे करों को समाप्त कर दिया और बाँड़ों को अनिवार्य बेगार से भी छुटकारा दिलाया। इसके साथ ही उन्हें सरकारी अन्न-भंडार से राशन भी दिया जाने लगा, जिसके बदले वे गाँव-गाँव जाकर लोगों का मनोरंजन करते थे।

भाषा अध्ययन :-
यह वाक्य पढ़ें और लिखें :-
“कश्मीरी लोकनाटकों की एक श्रृंखला है जो बॉड पाथर कहलाती है।” यह दो उपवाक्यों से मिलकर बना एक संयुक्त वाक्य है। इन उपवाक्यों को ‘जो’ शब्द जोड़ता है। इसे संबंध बोधक कहते हैं। नीचे दिए वाक्यों में संबंध बोधक बताइए :-
(क) दर्शकों को हँसाकर नट उनसे धन प्राप्त करते हैं और इसी से उनका गुज़ारा होता है।
(ख) ‘पात्र’ नाटक के अभिनेता को कहते हैं परंतु कश्मीरी में ‘पाऽथर’ का अर्थ स्वांग या नाटक होता है।
(ग) वह बेसिर पैर की अंग्रेज़ी ही बोलता है यद्यपि उर्दू समझता है।
उत्तर-
(क) दर्शकों को हँसाकर नट उनसे धन प्राप्त करते हैं और इसी से उनका गुज़ारा होता है।
संबंधबोधक- और

(ख) ‘पात्र’ नाटक के अभिनेता को कहते हैं परंतु कश्मीरी में ‘पाऽथर’ का अर्थ स्वांग या नाटक होता है।
संबंधबोधक- परंतु

(ग) वह बेसिर पैर की अंग्रेज़ी ही बोलता है यद्यपि उर्दू समझता है।
संबंधबोधक- यद्यपि

दिए गए तीनों, संयुक्त वाक्यों को ध्यान से देखें। हर वाक्य का पहला भाग स्वतंत्र है परंतु दूसरा पहले के बिना अपूर्ण लगता है। पहला उपवाक्य मुख्य तथा दूसरा आधीन कहलाता है। उदाहरणतया :- बाँड गाँव-गाँव घूमते हैं और नाटक पेश करते हैं।
मुख्य उपवाक्य :- बाँड गाँव-गाँव घूमते हैं
अधीन उपवाक्य :- नाटक पेश करते हैं | (अर्थात् बाँड नाटक पेश करते हैं।)
संबंध बोधक शब्द – और।

इसी प्रकार इन वाक्यों में मुख्य तथा आधीन उपवाक्य बता कर संबंध बोधक शब्द बताइए :-
(क) लोकनाटक आम लोग रचते हैं परंतु इन्हें पेशेवर नट खेलते हैं।
(ख) मेहतर विरोध नहीं करता था क्योंकि वह निर्धन होता था।
(ग) दर्शक उस पर हँसते हैं जबकि राजा को मालूम ही नहीं होता।
उत्तर-
(क) लोकनाटक आम लोग रचते हैं परंतु इन्हें पेशेवर नट खेलते हैं।
मुख्य उपवाक्य- लोकनाटक आम लोग रचते हैं
अधीन उपवाक्य- इन्हें पेशेवर नट खेलते हैं
संबंध बोधक शब्द- परंतु

(ख) मेहतर विरोध नहीं करता था क्योंकि वह निर्धन होता था।
मुख्य उपवाक्य- मेहतर विरोध नहीं करता था
अधीन उपवाक्य- वह निर्धन होता था
संबंध बोधक शब्द- क्योंकि

(ग) दर्शक उस पर हँसते हैं जबकि राजा को मालूम ही नहीं होता।
मुख्य उपवाक्य- दर्शक उस पर हँसते हैं
अधीन उपवाक्य- राजा को मालूम ही नहीं होता
संबंध बोधक शब्द- जबकि

दुख दर्द – दुख और दर्द यह एक शब्द – युग्म है।
इसी प्रकार के पाँच शब्द युग्म पाठ में से चुनकर बताइए और उनके अर्थ लिखकर वाक्यों में उनका प्रयोग करिए।
उत्तर-
1. शोक-शिकायत
अर्थ- दुख और नाराज़गी या विरोध
वाक्य- लोकनाटकों में आम जनता की शोक-शिकायत को खुलकर दिखाया जाता है।

2. आशा-आकांक्षा
अर्थ- उम्मीद और इच्छा
वाक्य- ‘वातल पाऽथर’ में गरीब वर्ग की आशा-आकांक्षा पर व्यंग्य किया गया है।

3. धन-धान्य
अर्थ- पैसा और अनाज
वाक्य- बाँड अपने नाटकों के माध्यम से दर्शकों का मनोरंजन कर उनसे धन-धान्य कमाते हैं।

4. गा-बजा
अर्थ- गाना और बजाना
वाक्य- बाँड शादी या त्योहार पर गा-बजा कर लोगों का मनोरंजन करते हैं।

5. भवनों-हालों
अर्थ- इमारतें और सभागार
वाक्य- बाँड पाऽथर की प्रस्तुतियाँ गाँवों के चौराहों और शहरों के भवनों-हालों में की जाती हैं।

योग्यता- विस्तार

1. इस पाठ में आए कश्मीरी शब्दों की एक सूची बनाएँ तथा उनके अर्थ भी लिखें।

उत्तर-

क्रम कश्मीरी शब्द हिंदी अर्थ
1 बाँड हास्य अभिनेता / हँसाने वाला व्यक्ति
2 पाऽथर स्वांग / नाटक
3 सुरनय शहनाई (एक वाद्य यंत्र)
4 मागुन सूत्रधार / मुख्य पात्र
5 मसखरा जोकर / हँसी-मजाक करने वाला पात्र
6 वातल पाऽथर मेहतर का नाटक
7 राजु पाऽथर राजा का नाटक
8 ग्वसाऽन्य पाऽथर गोसाईं साधु का नाटक
9 अंगरेज़ पाऽथर अंग्रेज़ का नाटक
10 बुहुर्य पाऽथर पंसारी का नाटक
11 दरजु पाऽथर दरद जाति की स्त्री का नाटक
12 बकरवाल पाऽथर बकरवाल चरवाहे का नाटक
13 शिकारगाह पाऽथर शिकारी और वन्य जीवों पर आधारित नाटक
14 बेगार बिना मजदूरी के जबरन कराया गया काम

2 अध्यापक से पूछ कर नाटक संबंधी इन शब्दों का अर्थ विस्तार से समझें :- नट, सूत्रधार, विषयवस्तु, कथावस्तु, वार्तालाप, अभिनय, वेषभूषा, मंचसज्जा |

उत्तर-

शब्द अर्थ (विस्तार से)
नट नट वह व्यक्ति होता है जो लोकनाट्य या नाटक में किसी भूमिका का अभिनय करता है। वह संवाद बोलता है, हाव-भाव दिखाता है और दर्शकों का मनोरंजन करता है।
सूत्रधार सूत्रधार वह पात्र होता है जो नाटक की शुरुआत करता है, दर्शकों को नाटक की भूमिका बताता है और नाटक की कड़ियों को जोड़ता है।
विषयवस्तु विषयवस्तु नाटक का केंद्रीय विचार या विषय होता है। जैसे – सामाजिक समस्या, प्रेम, अन्याय, वीरता आदि।
कथावस्तु कथावस्तु नाटक की वह कहानी होती है जो क्रमबद्ध घटनाओं के माध्यम से प्रस्तुत की जाती है।
वार्तालाप नाटक में पात्रों के बीच बोले जाने वाले संवादों को वार्तालाप कहते हैं। इससे कहानी आगे बढ़ती है।
अभिनय अभिनय का मतलब है – पात्र के रूप में बोलना, चलना, हाव-भाव दिखाना जिससे दर्शकों को वह पात्र सजीव लगे।
वेषभूषा नाटक में अभिनय करने वाले पात्र की पोशाक और श्रृंगार को वेषभूषा कहते हैं।
मंचसज्जा मंच को नाटक के अनुरूप सजाने की प्रक्रिया मंचसज्जा कहलाती है। इसमें पर्दे, फर्नीचर, रोशनी आदि शामिल होते हैं।

 

शब्दार्थ :-
नट = बाजीगर, भाँड
अभ्यस्त = आदी बार-बार किया हुआ
पारंपरिक = परंपरा से चला आया हुआ
प्रशिक्षण = अभ्यास
वेशभूषा = कपडा लिबास
परिवर्तन = बदलाव
अंतर्ध्यान = लुप्त, ओझल, गायब
मसखरे = हँसोड़, बहुत हँसी-मज़ाक करने वाले
यज्ञोपवीत = जनेऊ, उपवीत
उर्स = किसी सूफी की पुण्यतिथि का कार्यक्रम
अनिवार्य = परमावश्यक, बहुत जरुरी
बेगार = बिना मज़दूरी का काम

JKBOSE Class 10 Hindi Lesson 10 कश्मीर का लोकनाटक “बाँड – पाऽथर” सार-आधारित प्रश्न (Extract Based Questions)

निम्नलिखित गद्याँशों को ध्यानपूर्वक पढ़िए व प्रश्नों के उत्तर दीजिये –
1
लोक गीत या लोक कहानी की तरह लोक नाटक भी आम लोगों के द्वारा रचा जाता है। आम लोग ही इसे खेल कर प्रस्तुत करते हैं। कई बार खेलने से लोकनाटक खेलने वाले नट अभ्यस्त हो जाते हैं और नाटक खेलने का व्यवसाय अपनाते हैं। उन्हें व्यावसायिक लोकनट कहते हैं। लोकनाटक में आम लोगों के दुख-दर्द, शोक – शिकायत आशा-आकांक्षा पर आधारित कोई पारंपरिक कथा पेश की जाती है। नाटक खेलने वाले नटों (पात्रों) ने कोई प्रशिक्षण नहीं पाया होता है। उनके अभिनय में बनावटीपन नहीं होता। वे अभ्यास से ही वार्तालाप और दृश्य दोहरा पाते हैं। लोकनाटक लिखे नहीं जाते। पात्र (अभिनेता) मिल बैठकर नाटक की विषयवस्तु, वार्तालाप, वेषभूषा, मंच-सज्जा आदि तय करते हैं। ज़्यादातर लोकनाटक ऐसे हैं जिनकी विषयवस्तु पहले से ही प्रचलित होती है। प्रायः इन नाटकों में समाज के शोषक वर्ग के लोगों की हरकतों की नकल उतारी जाती है। सामाजिक दोषों और बुराइयों पर व्यंग्य किया जाता है। दर्शकों को हँसाकर और उनका मनोरंजन करके लोकनट उनसे धन-धान्य प्राप्त करते हैं। इसी से उनका गुज़ारा होता है।

1. लोकनाट्य में किसके दुःख-दर्द और आशाओं को दिखाया जाता है?
(क) राजाओं के
(ख) अमीरों के
(ग) आम लोगों के
(घ) कलाकारों के
उत्तर- (ग) आम लोगों के

2. व्यावसायिक लोकनट किसे कहा जाता है?
(क) जो लोकनाटक को पेशा बना लेते हैं
(ख) जो अभिनय में डिग्री प्राप्त करते हैं
(ग) जिन्हें सरकार से पैसे मिलते हैं
(घ) जो फिल्म में काम करते हैं
उत्तर– (क) जो लोकनाटक को पेशा बना लेते हैं

3. लोकनाटक किस प्रकार तय किए जाते हैं?
(क) लिखित स्क्रिप्ट द्वारा
(ख) पात्र मिलकर तय करते हैं
(ग) विदेशी निर्देशक के माध्यम से
(घ) सरकार द्वारा निर्देशित
उत्तर- (ख) पात्र मिलकर तय करते हैं

4. लोकनट अभिनय का अभ्यास कैसे करते हैं?
उत्तर- लोकनट कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं लेते, वे केवल अभ्यास और अनुभव से संवाद और दृश्य प्रस्तुत करना सीखते हैं। उनके अभिनय में बनावटीपन नहीं होता।

5. लोकनाटकों का उद्देश्य क्या होता है?
उत्तर– लोकनाटक समाज की बुराइयों और शोषकों पर व्यंग्य करते हैं। इनका उद्देश्य हँसी-हँसी में मनोरंजन करना और दर्शकों से धन-धान्य प्राप्त कर जीवन-यापन करना होता है।

 

2
कश्मीरी लोक नाटकों की एक श्रृंखला है, जो “बाँड – पाऽथर” कहलाती है। ‘बाँड – पाऽथर’ किसी एक नाटक का नाम नहीं बल्कि एक खास ढंग के लोक नाटक ‘बाँड – पाऽथर’ कहलाते हैं। ये नाटक बाँडों की टोलियाँ खेलती हैं। ये टोलियाँ कश्मीर के गाँवों में (कभी-कभी शहरों में भी) घूमती रहती हैं और खुली जगहों, चौराहों, विद्यालयों के आंगनों या कस्बों- शहरों के भवनों-हालों में अपने नाटकों से लोगों का मनोरंजन करती हैं।
समय गुज़रने के साथ भाषा में परिवर्तन होते रहते हैं। शब्दों के रूप और अर्थ बदलते रहते हैं। संस्कृत का ‘भाँड’ शब्द बदलकर कश्मीरी में ‘बाँड’ हो गया है। ‘भाँड’ हास्य नाटक के चरित्र को कहते थे। हिंदी में संस्कृत का यह शब्द उसी प्रकार प्रयुक्त होता है। इसी प्रकार कश्मीरी के ‘बाँड’ का अर्थ भी हँसाने वाला व्यक्ति या हँसी वाले नाटक का नट या अभिनेता होता है।

1. ‘बाँड – पाऽथर’ किसका नाम है?
(क) एक प्रसिद्ध लोकगायक का
(ख) एक प्रकार के लोक नाटकों की श्रृंखला का
(ग) एक धार्मिक अनुष्ठान का
(घ) एक पुरानी कथा का
उत्तर– (ख) एक प्रकार के लोक नाटकों की श्रृंखला का

2. ———– का ‘भाँड’ शब्द बदलकर कश्मीरी में ‘बाँड’ हो गया है।
(क) फारसी
(ख) हिंदी
(ग) संस्कृत
(घ) उर्दू
उत्तर- (ग) संस्कृत

3. ‘बाँड – पाऽथर’ के नाटक कहाँ प्रस्तुत किए जाते हैं?
(क) केवल राजा के दरबार में
(ख) टेलीविजन पर
(ग) स्कूलों में ही
(घ) गाँवों, चौराहों और भवनों में
उत्तर– (घ) गाँवों, चौराहों और भवनों में

4. ‘बाँड – पाऽथर’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर– ‘बाँड – पाऽथर’ कश्मीर के एक खास तरह के हास्य लोक नाटकों की श्रृंखला है, जिसे बाँड नामक कलाकारों की टोलियाँ प्रस्तुत करती हैं।

5. समय गुज़रने के साथ भाषा में क्या होते रहते हैं?
उत्तर– समय गुज़रने के साथ भाषा में परिवर्तन होते रहते हैं। समयानुसार शब्दों के रूप और अर्थ बदलते रहते हैं।

3
संस्कृत का ‘पात्र’ शब्द बदलकर कश्मीरी में ‘पाऽथर’ हो गया है। पात्र अभिनेता को कहते हैं परन्तु ‘पाऽथर’ का अर्थ है ‘स्वांग’ या ‘नाटक’। इस प्रकार ‘बाँड पाऽथर’ का अर्थ है बाँड चरित्रों या नटों के द्वारा रचा हुआ हास्य-नाटक। इस शब्द की व्याख्या से स्पष्ट है कि कश्मीर की यह लोकनाटक परंपरा संस्कृत से सीधी जुड़ी हुई है।
‘बाँड पाऽथर’ ‘सुरनय’ (शहनाई) के वादन से शुरू होता है। फिर नाटक का सूत्रधार या मुख्य पात्र ‘मागुन’ (महागुणी) प्रवेश करता है। उसके साथ नाटक के अन्य पात्र अपनी–अपनी वेषभूषा में आते हैं । ‘मागुन’ नाटक का परिचय देता है। अन्य पात्रों की वेषभूषा से हम जान जाते हैं कि कौन सा नाटक खेला जाने वाला है। बात-बात में नाटक शुरू हो जाता है। इतने में हँसी मज़ाक करते हुए या करतब दिखाते हुए ‘मसखरे ́ आ जाते हैं, ढोलक की थाप पर और सुरनय की लय पर गीत गाते-गाते नाचने लग जाते हैं। इस नृत्य में अन्य चरित्र भी शामिल हो जाते हैं। ‘बाँड पाऽथर’ में प्रायः पुरुष ही स्त्री की भूमिका निभाते हैं।

1. ‘बाँड पाऽथर’ किस वाद्य यंत्र की धुन से शुरू होता है?
(क) ढोलक
(ख) हारमोनियम
(ग) सुरनय (शहनाई)
(घ) बांसुरी
उत्तर- (ग) सुरनय (शहनाई)

2. ‘पाऽथर’ शब्द का अर्थ क्या है?
(क) अभिनेता
(ख) स्वांग या नाटक
(ग) हास्य कलाकार
(घ) सूत्रधार
उत्तर– (ख) स्वांग या नाटक

3. ‘बाँड पाऽथर’ में स्त्री पात्रों की भूमिका कौन निभाता है?
(क) पुरुष अभिनेता
(ख) महिला दर्शक
(ग) प्रशिक्षित अभिनेत्री
(घ) बच्चियाँ
उत्तर– (क) पुरुष अभिनेता

4. ‘बाँड पाऽथर’ की शुरुआत किसके द्वारा होती है और कैसे?
उत्तर- ‘बाँड पाऽथर’ की शुरुआत ‘सुरनय’ (शहनाई) के वादन से होती है। इसके बाद नाटक का सूत्रधार ‘मागुन’ मंच पर आता है और नाटक का परिचय देता है।

5. ‘बाँड पाऽथर’ नाटकों में हास्य का तत्त्व किस प्रकार जोड़ा जाता है?
उत्तर– इन नाटकों में ‘मसखरे’ पात्र हँसी-मज़ाक और करतब दिखाते हैं। वे ढोलक और सुरनय की लय पर गाते-नाचते हैं, जिससे दर्शकों का खूब मनोरंजन होता है।

 

4
बाँड पाऽथरों में ‘वातल पाऽथर’ सबसे पुराना है। इसमें एक गरीब मेहतर (मोची) के घर की समस्याओं को उजागर किया जाता है। अनमेल विवाह से पैदा होने वाली विषमताओं का हास्यपूर्ण चित्रण किया जाता है। इस वर्ग के सीमित साधनों और असीम आकाँक्षाओं पर व्यंग्य किया जाता है। मेहतर को ऊँचे वर्गों की नफरत तथा मार – दुत्कार सहनी पड़ती थी। ज़ालिम लोग उसकी झोंपड़ी तक जला डालते, पर वह उफ भी नहीं करता था। सैकड़ों वर्षों से चले आ रहे अत्याचार की एक कथा पेश की जाती है ‘वातल पाऽथर’ में।
‘राजॅु पाऽथर’ में अन्यायी राजा का नाम ‘जय सरकार’ है। वह प्रजा पर रोब झाड़ने के लिए गलत-सलत फ़ारसी और पंजाबी बोलता है और हास्यास्पद बन जाता है। वेशभूषा तथा बोलने के लिहज़े से वह पठान लगता है। राजा के कारिंदे लोगों के बीच आकर अपना उल्लू सीधा करते हैं। जब फरियादी राजा के पास आने लगते हैं तो कारिंदे उन्हें बीच राह में ही रोककर राजा के पास पहुँचने नहीं देते। आम दबे डरे लोग कारिंदों का मज़ाक उड़ाते हैं। इसी तरह राजा के प्रति अपने ढंग से विरोध प्रकट करते हैं। जैसे नाई राजा के काले बाल चुनचुन कर काटता है और सफेद रहने देता है।

1. ‘वातल पाऽथर’ में किस वर्ग के व्यक्ति की समस्याओं को दर्शाया गया है?
(क) बकरवाल
(ख) गोसाईं
(ग) मेहतर (मोची)
(घ) दरद जाति
उत्तर– (ग) मेहतर (मोची)

2. ‘राजॅु पाऽथर’ में राजा किस नाम से जाना जाता है?
(क) प्रताप सिंह
(ख) जय सरकार
(ग) गुपाल सिंह
(घ) अमरनाथ
उत्तर– (ख) जय सरकार

3. राजा ‘जय सरकार’ किस भाषा में गलत-सलत बोलता है जिससे वह हास्यास्पद बन जाता है?
(क) फारसी और पंजाबी
(ख) अँग्रेजी और कश्मीरी
(ग) संस्कृत और हिंदी
(घ) मराठी और उर्दू
उत्तर- (क) फारसी और पंजाबी

4. ‘राजॅु पाऽथर’ में राजा के किस व्यवहार पर व्यंग्य किया गया है?
उत्तर– राजा ‘जय सरकार’ गलत-सलत फारसी और पंजाबी बोलता है, जिससे वह हास्यास्पद बन जाता है। उसके कारिंदे जनता पर अत्याचार करते हैं, और प्रजा उस पर अपने ढंग से व्यंग्य करती है।

5. ‘राजॅु पाऽथर’ में जनता किस तरह से अपने विरोध को प्रकट करती है?
उत्तर- जनता राजा के कारिंदों का मज़ाक उड़ाती है। नाई राजा के सिर से काले बाल काटकर सफेद छोड़ देता है, जो प्रतीकात्मक विरोध है। यह आम लोगों की चतुराई और व्यंग्यात्मक विरोध को बताता है।

 

JKBOSE Class 10 Hindi कश्मीर का लोकनाटक “बाँड – पाऽथर” प्रश्न और उत्तर (Extra Question Answers)

1. महाराजा प्रताप सिंह ने बाँडों के लिए क्या किया?
उत्तर– महाराजा प्रताप सिंह ने बाँडों को अनिवार्य बेगार से मुक्त किया और उन्हें सरकारी अन्न भंडार से राशन देना शुरू किया। बदले में उन्हें गाँवों में जाकर नाटक प्रस्तुत करना अनिवार्य कर दिया गया जिससे लोकसंस्कृति बने रहे।

2. प्रमुख प्रसिद्ध बाँड टोलियाँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर- ‘अकिन गाम’, ‘वाहथोर’ और ‘बुमय’ की खानदानी बाँड टोलियाँ बहुत प्रसिद्ध हैं। ये टोलियाँ पीढ़ियों से इस परंपरा से जुड़ी हुई हैं और लोकनाट्य कला को जीवित रखे हुए हैं।

3. ‘बाँड पाऽथर’ की टोलियाँ कहाँ-कहाँ प्रस्तुति देती हैं?
उत्तर- ‘बाँड पाऽथर’ की टोलियाँ कश्मीर के गाँवों में घूमती हैं। वे कभी-कभी शहरों के भवनों, आंगनों, विद्यालयों या चौराहों पर भी प्रस्तुति देती हैं। ये लोक कलाकार खुली जगहों पर ही दर्शकों के बीच नाटक प्रस्तुत करते हैं।

4. ‘बाँड पाऽथर’ में पुरुष किस भूमिका में होते हैं?
उत्तर– ‘बाँड पाऽथर’ में प्रायः पुरुष ही स्त्रियों की भूमिका निभाते हैं। वे स्त्रियों की चाल, बोली और वेषभूषा की नकल करके दर्शकों का मनोरंजन करते हैं।

5. ‘अँगरेज़ पाऽथर’ में किस पर व्यंग्य किया गया है?
उत्तर- ‘अँगरेज़ पाऽथर’ में एक अंग्रेज़ अधिकारी के घमंड और विदेशी तौर-तरीकों पर व्यंग्य किया गया है। वह गाँव में रोब झाड़ता है, पर ग्रामीण उसकी अजीब अँग्रेजी और व्यवहार का मज़ाक उड़ाते हैं। हाँडी पर बैठते ही वह गिर जाता है, जिससे हास्य उत्पन्न होता है।

6. ‘ग्वसाऽन्य पाऽथर’ की कथा किस पर आधारित है?
उत्तर- ‘ग्वसाऽन्य पाऽथर’ की कथा एक ग्वालिन ‘गुपाली’ और एक साधु यात्री पर आधारित है। गुपाली साधु पर मोहित हो जाती है। साधु उसे संसार त्यागने की शर्त देता है। अंततः साधु अंतर्ध्यान हो जाता है और गुपाली ललेश्वरी के ‘वाख’ पढ़ते हुए आत्मलीन हो जाती है।

7. ‘वातल पाऽथर’ की मुख्य विशेषता क्या है?
उत्तर– ‘वातल पाऽथर’ सबसे पुराना बाँड पाऽथर है, जिसमें एक गरीब मेहतर के जीवन की समस्याओं को हास्य के माध्यम से दर्शाया गया है। इसमें अनमेल विवाह, समाज की असमानता और अमीर-गरीब के बीच भेदभाव को दिखाया जाता है। यह अत्याचार और सहिष्णुता पर व्यंग्य करता है।

8. ‘बाँड पाऽथर’ की विषयवस्तु कैसे तय की जाती है?
उत्तर- ‘बाँड पाऽथर’ के पात्र आपस में बैठकर नाटक की विषयवस्तु, संवाद, वेषभूषा और मंच सज्जा तय करते हैं। यह पूर्व-निर्धारित और अभ्यास से तय किया गया होता है, लेकिन लिखित रूप में नहीं होता। विषयवस्तु पारंपरिक और प्रचलित कथाओं पर आधारित होती है।

9. ‘मसखरे’ किस भूमिका में होते हैं?
उत्तर– ‘मसखरे’ बाँड पाऽथर के हास्य तत्व होते हैं। वे ढोलक की थाप और सुरनय की लय पर गाते-नाचते हैं। वे करतब दिखाकर, मज़ाक उड़ाकर दर्शकों को हँसाते हैं और नाटक को जीवंत बनाते हैं। अक्सर पुरुष ही स्त्री की भूमिका निभाते हैं।

10. ‘बाँड पाऽथर’ की शुरुआत कैसे होती है?
उत्तर- ‘बाँड पाऽथर’ की शुरुआत शहनाई वाद्य ‘सुरनय’ की धुन से होती है। इसके बाद सूत्रधार ‘मागुन’ मंच पर आता है और फिर अन्य पात्रों के साथ नाटक की भूमिका और कथानक का परिचय देता है। उसके बाद हास्य पात्र ‘मसखरे’ नृत्य और गीत के साथ मंच पर आते हैं।