परीक्षा पाठ सार

 

CBSE Class 6 Hindi Chapter 10 “Pariksha”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Malhar Book

 

परीक्षा सार – Here is the CBSE Class 6 Hindi Malhar Chapter 10 Pariksha Summary with detailed explanation of the lesson ‘Pariksha’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary

इस पोस्ट में हम आपके लिए सीबीएसई कक्षा 6 हिंदी मल्हार के पाठ 10 परीक्षा पाठ सार, पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप  इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 6 परीक्षा पाठ के बारे में जानते हैं।

 

Pariksha

– Premchand

 

प्रस्तुत पाठ ‘परीक्षा’ प्रेमचंद द्वारा लिखित एक शिक्षाप्रद कथा है, जिसमें यह बताया गया है कि किसी भी पद के लिए केवल डिग्री या दिखावटी योग्यताएँ पर्याप्त नहीं होतीं, बल्कि व्यक्ति के चरित्र, दया, साहस और कर्तव्यनिष्ठा को अधिक महत्व दिया जाना चाहिए।

कहानी में देवगढ़ रियासत में दीवान पद के लिए एक अनूठा विज्ञापन निकाला जाता है, जिसमें शैक्षणिक योग्यता की अनिवार्यता नहीं होती, बल्कि चरित्र और कर्तव्य को प्राथमिकता दी जाती है। विभिन्न स्थानों से कई उम्मीदवार आते हैं और अपने बाहरी व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाने का प्रयास करते हैं।

अंत में, चुनाव के दौरान सरदार सुजानसिंह यह घोषणा करते हैं कि दीवान पद के लिए वही व्यक्ति चुना जाएगा, जो निःस्वार्थ सेवा, साहस और आत्मबल का परिचय देगा। यह गुण पंडित जानकीनाथ में पाए जाते हैं, जिन्होंने एक किसान की गाड़ी को दलदल से निकालने में सहायता की थी। इसी आधार पर उन्हें दीवान पद के लिए चुना जाता है, जिससे यह सिद्ध होता है कि सच्ची योग्यता केवल ज्ञान में नहीं, बल्कि कर्मठता और मानवता में भी होती है।

 

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परीक्षा पाठ सार Pariksha Summary

 

प्रस्तुत पाठ ‘परीक्षा’ में एक शिक्षाप्रद कथा के माध्यम से यह बताया गया है कि किसी भी पद के लिए केवल डिग्री और बाहरी योग्यताएँ पर्याप्त नहीं होतीं, बल्कि व्यक्ति के चरित्र, दया, साहस और कर्तव्यनिष्ठा को अधिक महत्व दिया जाना चाहिए। यह कहानी देवगढ़ रियासत में दीवान पद की नियुक्ति की एक अनोखी कहानी को प्रस्तुत करती है।

देवगढ़ के राजा ने दीवान पद के लिए एक विशेष विज्ञापन निकाला, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि शैक्षणिक योग्यता आवश्यक नहीं है, लेकिन व्यक्ति का शारीरिक रूप से स्वस्थ और कर्तव्यनिष्ठ होना ज़रूरी है। इस खबर से पूरे देश में हलचल मच गई और सैकड़ों लोग इस पद के लिए अपनी किस्मत आज़माने देवगढ़ पहुँच गए। देवगढ़ का वातावरण रंग-बिरंगे और अलग-अलग प्रकार के लोगों से भर गया, जिनमें कुछ नए फैशन के प्रेमी थे तो कुछ पुरानी सादगी के अनुयायी। हालाँकि, बड़ी संख्या में ग्रेजुएट उम्मीदवार भी उपस्थित थे, क्योंकि वे मानते थे कि प्रमाणपत्र (डिग्री) होने से उनकी योग्यता छिपी नहीं रहेगी।

सरदार सुजानसिंह ने सभी उम्मीदवारों के रहन-सहन, आचार-विचार और व्यवहार को एक महीने तक बारीकी से देखा। उम्मीदवार खुद को अच्छा साबित करने के लिए तरह-तरह की कोशिशें कर रहे थे। कुछ लोग जो पहले आरामपसंद थे, वे अब अनुशासित जीवन अपनाने लगे, और जो लोग पहले कठोर व्यवहार रखते थे, वे अब विनम्रता दिखाने लगे। लेकिन सरदार सुजानसिंह एक कुशल निरीक्षक थे, जो इन बाहरी दिखावों के पार जाकर असली चरित्र की परख कर रहे थे।

एक दिन कुछ उम्मीदवारों ने आपस में हॉकी खेलने का प्रस्ताव रखा। खेल बहुत उत्साह से खेला गया, और सभी खिलाड़ी अपनी पूरी शक्ति लगा रहे थे। खेल के बाद, सभी खिलाड़ी थककर बैठे थे कि तभी पास के नाले में एक किसान अपनी अनाज से भरी गाड़ी लेकर आया। नाले में कोई पुल नहीं था, और रास्ता अत्यधिक कीचड़ से भरा हुआ था। किसान ने पूरी कोशिश की, लेकिन गाड़ी ऊपर नहीं चढ़ पा रही थी। वह बार-बार प्रयास करता और निराश होकर बैलों को मारता। लेकिन वहाँ उपस्थित खिलाड़ियों में से किसी ने उसकी मदद करने की कोशिश नहीं की। वे सब उसे देखकर भी अनदेखा कर रहे थे। उनमें न तो दया थी, न ही सेवा भाव।

उसी समूह में एक व्यक्ति था, जिसने किसान की परेशानी को देखा और तुरंत सहायता के लिए आगे आया। वह स्वयं घायल था, लेकिन फिर भी उसने अपनी परवाह किए बिना किसान की मदद करने का निश्चय किया। उसने कोट उतार दिया, डंडा एक किनारे रख दिया और किसान से कहा कि वह बैलों को संभाले, जबकि वह पहियों को धक्का देगा। कीचड़ में धँसने के बावजूद उसने पूरी ताकत लगाई और अंत में किसान की गाड़ी को बाहर निकालने में सफल रहा।

किसान अत्यंत कृतज्ञ हुआ और हाथ जोड़कर बोला कि भगवान की कृपा से यही व्यक्ति दीवान बनेगा। युवक को संदेह हुआ कि कहीं यह किसान स्वयं सरदार सुजानसिंह तो नहीं? लेकिन किसान ने बस मुस्कुराकर उत्तर दिया कि गहरे पानी में पैठने से ही मोती मिलता है।

महीने भर की परीक्षा समाप्त होने के बाद उम्मीदवारों को राजदरबार में बुलाया गया। सभी उम्मीदवार उत्सुक थे कि किसका चयन होगा। सरदार सुजानसिंह ने दरबार में घोषणा की कि दीवान पद के लिए ऐसा व्यक्ति चाहिए, जिसमें साहस, आत्मबल और दया हो। उन्होंने बताया कि जो व्यक्ति घायल होते हुए भी एक गरीब किसान की मदद करने के लिए आगे बढ़ा, वही इस पद के लिए सबसे योग्य है। अंत में उन्होंने पंडित जानकीनाथ को इस पद के लिए चुना। यह सुनकर उम्मीदवारों में कुछ के चेहरे पर संतोष था, तो कुछ में ईर्ष्या।

इस कथा से यह संदेश मिलता है कि किसी भी पद के लिए केवल डिग्री, प्रतिभा या बाहरी दिखावा पर्याप्त नहीं होता, बल्कि सच्ची योग्यता साहस, आत्मबल और दूसरों की सहायता करने की भावना होनी चाहिए। यह कहानी हमें सिखाती है कि केवल विद्या ही नहीं, बल्कि मानवता और कर्तव्यनिष्ठा ही सच्ची सफलता का आधार है।

 

परीक्षा पाठ व्याख्या Pariksha Lesson Explanation

पाठ
जब रियासत देवगढ़ के दीवान सरदार सुजानसिंह बूढ़े हुए तो परमात्मा की याद आई। जाकर महाराज से विनय की कि दीनबंधु! दास ने श्रीमान की सेवा चालीस साल तक की, अब मेरी अवस्था भी ढल गई, राज-काज सँभालने की शक्ति नहीं रही। कहीं भूल-चूक हो जाय तो बुढ़ापे में दाग लगे। सारी ज़िंदगी की नेकनामी मिट्टी में मिल जाए।
राजा साहब अपने अनुभवशील नीतिकुशल दीवान का बड़ा आदर करते थे। बहुत समझाया, लेकिन जब दीवान साहब ने न माना, तो हारकर उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली; पर शर्त यह लगा दी कि रियासत के लिए नया दीवान आप ही को खोजना पड़ेगा।

शब्दार्थ-
रियासत – राज्य, प्रदेश
दीवान – मंत्री, उच्च प्रशासनिक अधिकारी
परमात्मा – ईश्वर, भगवान
विनय – प्रार्थना, निवेदन
दीनबंधु – गरीबों का मित्र, राजा को संबोधित करने का आदरसूचक शब्द
अवस्था – उम्र, स्थिति
राज-काज – शासन का कार्य, प्रशासन
भूल-चूक – गलती
नेकनामी – अच्छी प्रतिष्ठा, सम्मान
नीतिकुशल – नीति में निपुण
आदर – सम्मान
प्रार्थना – निवेदन, विनती
स्वीकार – मान लेना
शर्त – नियम
खोजना – ढूँढना

व्याख्या- प्रेमचंद की कहानी परीक्षा के इस अंश में सरदार सुजानसिंह नामक एक अनुभवी और नीतिनिपुण दीवान का परिचय दिया गया है, जो देवगढ़ रियासत की सेवा में चालीस वर्षों तक लगे रहे। अब जब वे बूढ़े हो चुके हैं, तो उन्हें लगता है कि वे इस बूढ़े शरीर से ज्यादा काम नहीं कर सकते हैं। वे समझते हैं कि अब उनके लिए राजकाज संभालना कठिन हो रहा है, और यदि इस अवस्था में वे कोई भूल-चूक कर बैठे, तो उनकी जीवनभर की कमाई हुई प्रतिष्ठा पर धब्बा लग सकता है। इसीलिए वे राजा से विनम्रतापूर्वक निवेदन करते हैं कि उन्हें सेवा से मुक्त किया जाए।
राजा साहब, जो अपने दीवान की बुद्धिमत्ता और अनुभव का बहुत सम्मान करते हैं, उन्हें समझाने की बहुत कोशिश करते हैं कि वे अपनी सेवा जारी रखें। लेकिन जब दीवान साहब अपने निश्चय पर अड़े रहते हैं, तो राजा को अंत में उनकी प्रार्थना स्वीकार करनी पड़ती है। हालांकि, राजा एक शर्त रखते हैं कि दीवान साहब को ही अपनी जगह पर एक योग्य उत्तराधिकारी खोजना होगा, जो इस महत्वपूर्ण पद को संभाल सके।

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पाठ
दूसरे दिन देश के प्रसिद्ध पत्रों में यह विज्ञापन निकला कि देवगढ़ के लिए एक सुयोग्य दीवान की ज़रूरत है। जो सज्जन अपने को इस पद के योग्य समझें, वे वर्तमान सरकार सुजानसिंह की सेवा में उपस्थित हों। यह ज़रूरी नहीं है कि वे ग्रेजुएट हों, मगर हष्ट-पुष्ट होना आवश्यक है, मंदाग्नि के मरीज को यहाँ तक कष्ट उठाने की कोई ज़रूरत नहीं। एक महीने तक उम्मीदवारों के रहन-सहन, आचार-विचार की देखभाल की जाएगी। विद्या का कम, परंतु कर्तव्य का अधिक विचार किया जायेगा। जो महाशय इस परीक्षा में पूरे उतरेंगे, वे इस उच्च पद पर सुशोभित होंगे।

शब्दार्थ-
प्रसिद्ध – मशहूर, ख्याति प्राप्त
विज्ञापन – सूचना, घोषणा
सुयोग्य – योग्य, उपयुक्त
सज्जन – भले, अच्छे आचरण वाले व्यक्ति
योग्य – काबिल, उपयुक्त
वर्तमान – अभी का समय
सरकार – शासक, प्रशासन
सेवा में उपस्थित हों – सामने आएं, हाजिर हों
अनिवार्य – ज़रूरी, आवश्यक
ग्रेजुएट – स्नातक
हृष्ट-पुष्ट – स्वस्थ, बलवान
मंदाग्नि – कमजोर पाचन शक्ति, अपच रोग
कष्ट – तकलीफ़, कठिनाई
रहन-सहन – जीवनशैली, दिनचर्या
आचार-विचार – व्यवहार और सोच
निरीक्षण – देखभाल, परख
कर्तव्य – दायित्व, जिम्मेदारी
उच्च पद – बड़ा ओहदा, ऊँचा स्थान
सुशोभित होंगे – शोभा बढ़ाएंगे, सम्मान पाएंगे

व्याख्याइस अंश में दीवान के पद की नियुक्ति के बारे में बताया गया है। अगले दिन देश के बड़े अखबारों में यह घोषणा की गई कि देवगढ़ के लिए एक योग्य दीवान की आवश्यकता है। इच्छुक उम्मीदवारों को दीवान सुजानसिंह के पास उपस्थित होने को कहा गया। इसमें ग्रेजुएट होना जरूरी नहीं था, लेकिन स्वस्थ और ताकतवर होना आवश्यक था। कमजोर और बीमार लोगों को आवेदन न करने की सलाह दी गई।
उम्मीदवारों को एक महीने तक परखा जाएगा, जिसमें उनके रहन-सहन, आचार-विचार और कर्तव्यनिष्ठा को देखा जाएगा। शिक्षा से ज्यादा उनकी ईमानदारी और जिम्मेदारी को महत्व दिया जाएगा। जो इस परीक्षा में सफल होंगे, उन्हें दीवान के पद पर नियुक्त किया जाएगा।

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पाठ
इस विज्ञापन ने सारे मुल्क में तहलका मचा दिया। ऐसा ऊँचा पद और किसी प्रकार की कैद नहीं? केवल नसीब का खेल है। सैकड़ों आदमी अपना-अपना भाग्य परखने के लिए चल खड़े हुए। देवगढ़ में नए-नए और रंग-बिरंगे मनुष्य दिखाई देने लगे। प्रत्येक रेलगाड़ी से उम्मीदवारों का एक मेला-सा उतरता। कोई पंजाब से चला आता था, कोई मद्रास से, कोई नए फैशन का प्रेमी, कोई पुरानी सादगी पर मिटा हुआ। रंगीन एमामे, चोगे और नाना प्रकार के अंगरखे और कंटोप देवगढ़ में अपनी सज-धज दिखाने लगे। लेकिन सबसे विशेष संख्या ग्रेजुएटों की थी, क्योंकि सनद की कैद न होने पर भी सनद से परदा तो ढका रहता है।

शब्दार्थ-
मुल्क – देश
तहलका मचा देना – हलचल पैदा करना, सनसनी फैलाना
कैद – बंधन
नसीब का खेल – भाग्य पर निर्भर होने वाली बात
भाग्य परखना – किस्मत आज़माना
रंग-बिरंगे मनुष्य – अलग-अलग प्रकार के लोग
रेलगाड़ी से उम्मीदवारों का मेला उतरना – बड़ी संख्या में लोगों का आना
नए फैशन का प्रेमी – आधुनिकता को पसंद करने वाला व्यक्ति
पुरानी सादगी पर मिटा हुआ – पुराने रीति-रिवाजों और सरल जीवनशैली को पसंद करने वाला
एमामे – पगड़ी या सिर पर बाँधा जाने वाला वस्त्र
चोगा – ढीला-ढाला परिधान
अंगरखा – एक पारंपरिक परिधान
कंटोप – विशेष प्रकार की टोपी
सनद – डिग्री या प्रमाणपत्र
परदा ढकना – किसी कमी या बात को छिपाना

व्याख्याइस अनोखे विज्ञापन ने पूरे देश में हलचल मचा दी। इतने ऊँचे पद के लिए कोई खास शैक्षणिक योग्यता आवश्यक न होने के कारण लोग इसे किस्मत का खेल मानने लगे। सैकड़ों लोग अपनी किस्मत आजमाने देवगढ़ की ओर चल पड़े।
देवगढ़ में हर दिन नए-नए और अलग-अलग तरह के लोग दिखाई देने लगे। हर रेलगाड़ी से उम्मीदवारों की भीड़ उतरती, जिनमें कोई पंजाब से आता था, कोई मद्रास से। कोई आधुनिक फैशन का दीवाना था, तो कोई पुरानी सादगी को पसंद करने वाला। तरह-तरह के रंग-बिरंगे कपड़े, एमामे, चोगे और अंगरखे देवगढ़ की रौनक बढ़ाने लगे। हालांकि, सबसे ज्यादा संख्या ग्रेजुएट लोगों की थी, क्योंकि डिग्री की अनिवार्यता न होने के बावजूद उनकी योग्यता को एक तरह से सुरक्षा कवच माना जा रहा था।

 

पाठ
सरदार सुजानसिंह ने इन महानुभावों के आदर-सत्कार का बड़ा अच्छा प्रबंध कर दिया था। हर एक मनुष्य अपने जीवन को अपनी बुद्धि के अनुसार अच्छे रूप में दिखाने की कोशिश करता था। मिस्टर ‘अ’ नौ बजे दिन तक सोया करते थे, आजकल वे बगीचे में टहलते हुए ऊषा का दर्शन करते थे। मिस्टर ‘द’, ‘स’ और ‘ज’ से उनके घरों पर नौकरों की नाक में दम था, लेकिन ये सज्जन आजकल ‘आप’ और ‘जनाब’ के बगैर नौकरों से बातचीत नहीं करते थे। मिस्टर ‘ल’ को किताब से घृणा थी, परंतु आजकल वे बड़े-बड़े ग्रंथ देखने-पढ़ने में डूबे रहते थे। जिससे बात कीजिए, वह नम्रता और सदाचार का देवता बना मालूम देता था। लोग समझते थे कि एक महीने का झंझट है, किसी तरह काट लें, कहीं कार्य सिद्ध हो गया तो कौन पूछता है?
लेकिन मनुष्यों का वह बूढ़ा जौहरी आड़ में बैठा हुआ देख रहा था कि इन बगुलों में हंस कहाँ छिपा हुआ है।

शब्दार्थ-
महानुभाव – सम्माननीय व्यक्ति, प्रतिष्ठित लोग
आदर-सत्कार – सम्मानपूर्वक सेवा, स्वागत
प्रबंध – व्यवस्था, आयोजन
ऊषा का दर्शन – सुबह-सुबह सूर्योदय देखना
नाक में दम करना – बहुत परेशान करना
जनाब – सम्मानसूचक शब्द, आदर से बुलाने का तरीका
घृणा – नफरत
नम्रता – विनम्रता, शिष्टाचार
सदाचार – अच्छे आचरण, नैतिकता
झंझट – परेशानी, कठिनाई
कार्य सिद्ध होना – उद्देश्य की पूर्ति होना, मनचाही चीज़ मिलना
बगुलों में हंस – ढोंगियों के बीच असली गुणी व्यक्ति
बूढ़ा जौहरी – अनुभवी व्यक्ति जो असली और नकली में फर्क कर सके

व्याख्या- सरदार सुजानसिंह ने उम्मीदवारों के लिए हर तरह की सुख-सुविधाओं का प्रबंध कर दिया था, ताकि वे बिना किसी चिंता के अपने व्यक्तित्व को प्रदर्शित कर सकें। प्रत्येक व्यक्ति अपने को योग्य साबित करने की भरपूर कोशिश कर रहा था। कुछ लोग, जो आमतौर पर देर तक सोते थे, अब तड़के उठकर बगीचे में सैर करने लगे, ताकि वे अनुशासित और स्वस्थ दिखाई दें। जो लोग अपने घरों में नौकरों को डांट-डपट कर रखते थे, वे अब अत्यधिक विनम्रता से ‘आप’ और ‘जनाब’ कहकर उनसे बातें कर रहे थे, मानो वे सदा से ही उदार और सहृदय रहे हों। जिन्हें पुस्तकों से कोई लगाव न था, वे अब घंटों ग्रंथों में डूबे रहने का दिखावा करने लगे, मानो ज्ञान की तलाश में हों। हर कोई अपने आचरण में एक बनावटी सुधार करने की चेष्टा कर रहा था, ताकि वे दूसरों की दृष्टि में आदर्श और योग्य उम्मीदवार प्रतीत हों। कुछ लोगों को यही लग रहा था कि यह केवल एक महीने की परीक्षा है, किसी तरह यह समय बीत जाए और पद मिल जाए, फिर कोई पूछने वाला नहीं होगा।
लेकिन इन सबकी चतुराई और बनावट को परखने वाला एक अनुभवी व्यक्ति—सरदार सुजानसिंह—गुप्त रूप से सब कुछ देख रहा था। वह मनुष्यों की इस भीड़ में गुणवान व्यक्ति को खोजने की कोशिश कर रहा था। वह ढूंढ रहा था कि इन बगुलों के बीच में कोई न कोई हंस जरूर होगा।

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पाठ
एक दिन नए फैशनवालों को सूझी कि आपस में हॉकी का खेल हो जाए। यह प्रस्ताव हॉकी के मँजे हुए खिलाड़ियों ने पेश किया। यह भी तो आखिर एक विद्या है। इसे क्यों छिपा रखें। संभव है, कुछ हाथों की सफ़ई ही काम कर जाए। चलिए तय हो गया, फील्ड बन गई, खेल शुरू हो गया और गेंद किसी दफ्तर के अप्रेंटिस की तरह ठोकरें खाने लगी।
रियासत देवगढ़ में यह खेल बिल्कुल निराली बात थी। पढ़े-लिखे भलेमानस लोग शतरंज और ताश जैसे गंभीर खेल खेलते थे। दौड़-कूद के खेल बच्चों के खेल समझे जाते थे।

शब्दार्थ-
नए फैशनवाले – आधुनिक जीवनशैली अपनाने वाले लोग
सूझी – विचार आया
हॉकी के मँजे हुए खिलाड़ी – अनुभवी और निपुण हॉकी खिलाड़ी
विद्या – ज्ञान, कला या हुनर
हाथों की सफाई – कुशलता, चतुराई, चालाकी
फील्ड – मैदान, खेल का स्थान
दफ्तर के अप्रेंटिस – कार्यालय में प्रशिक्षण प्राप्त करने वाला व्यक्ति
ठोकरें खाना – मुश्किलों का सामना करना
भलेमानस – सज्जन, सम्माननीय लोग
गंभीर खेल – ध्यान और रणनीति से खेले जाने वाले खेल (जैसे शतरंज, ताश)
दौड़-कूद के खेल – शारीरिक श्रम से जुड़े खेल
बिल्कुल निराली बात – एकदम नया और अनोखा अनुभव

व्याख्या- एक दिन उन नवाबों के मन में एक नया विचार आया—क्यों न आपस में हॉकी खेली जाए? यह सुझाव खास तौर पर उन लोगों ने दिया जो पहले से ही इस खेल को जानते थे। आखिरकार, यह भी एक कला ही तो है, फिर इसे क्यों छिपाकर रखा जाए? संभव है, किसी की तेज़ चालाकी ही काम आ जाए और वह अपनी दक्षता साबित कर सके। प्रस्ताव पर सहमति बन गई, मैदान तैयार हुआ और खेल शुरू हो गया। अब गेंद किसी दफ्तर के अप्रेंटिस की तरह ठोकरें खा रही थी—इधर से उधर धकेली जा रही थी, मानो अपनी स्थिति खुद तय नहीं कर पा रही हो। गेंद का अप्रेंटिस की तरह इधर-उधर ठोकरें खाना यह बताता है कि कैसे कुछ लोग अपनी स्थिति खुद तय नहीं कर पाते और दूसरों के फैसलों पर निर्भर रहते हैं।
रियासत देवगढ़ के लिए यह खेल एक बिल्कुल अनोखी बात थी। वहाँ के पढ़े-लिखे और अच्छे लोग आमतौर पर शतरंज और ताश जैसे गम्भीर और दिमागी खेलों में रुचि रखते थे। उनके लिए खेल का मतलब केवल बुद्धि और धैर्य की परीक्षा था। दौड़-भाग वाले खेलों को बच्चों के खेल समझा जाता था—ऐसे खेल जिनमें शरीर से ज्यादा मेहनत करनी पड़े, वे गंभीर पुरुषों के लिए सही नहीं माने जाते थे।

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पाठ
खेल बड़े उत्साह से जारी था। धावे के लोग जब गेंद को लेकर तेज़ी से उड़ते तो ऐसा जान पड़ता था कि कोई लहर बढ़ती चली आती है। लेकिन दूसरी ओर के खिलाड़ी इस बढ़ती हुई लहर को इस तरह रोक लेते थे कि मानो लोहे की दीवार है।
संध्या तक यही धूमधाम रही। लोग पसीने से तर हो गए। खून की गरमी आँख और चेहरे से झलक रही थी। हाँफते-हाँफते बेदम हो गए, लेकिन हार-जीत का निर्णय न हो सका।

शब्दार्थ-
उत्साह – उमंग
धावे के लोग – आक्रमण करने वाले खिलाड़ी (जो गेंद को लेकर आगे बढ़ते हैं)।
लोहे की दीवार – बहुत मजबूत और अडिग प्रतिरोध
संध्या – शाम, दिन का अंतिम भाग।
धूमधाम – उत्साह और जोश भरा माहौल।
खून की गरमी – जोश, उत्साह और ऊर्जा।
हाँफते-हाँफते बेदम हो गए – बहुत थक जाना, सांस फूल जाना।
निर्णय – फैसला

व्याख्या- खेल पूरे जोश और उत्साह के साथ चल रहा था। जब आक्रमण करने वाली टीम के खिलाड़ी गेंद को लेकर तेज़ी से आगे बढ़ते, तो ऐसा लगता मानो समुद्र की कोई ऊँची लहर तूफ़ान की तरह मैदान में उमड़ पड़ी हो। लेकिन दूसरी टीम के खिलाड़ी भी कम नहीं थे—वे इस बढ़ती हुई लहर को इस तरह रोकते कि जैसे लोहे की मज़बूत दीवार खड़ी हो गई हो। हर बार जब एक टीम बढ़त लेने की कोशिश करती, दूसरी टीम उसे उसी जोश के साथ रोक लेती।
यह संघर्ष शाम तक जारी रहा। चारों ओर जोश और रोमांच का माहौल बना हुआ था। खिलाड़ी पसीने से तरबतर हो चुके थे, लेकिन चेहरे और आँखों में वही तेज, वही जीतने का जुनून बना रहा। हर कोई अपनी पूरी ताकत झोंक चुका था। सांसें तेज़ चल रही थीं, शरीर थकान से चूर था, लेकिन किसी भी टीम ने हार नहीं मानी। दोनों पक्ष अपनी-अपनी जगह अडिग थे, और अंततः, घंटों की मेहनत के बाद भी हार-जीत का फैसला नहीं हो सका।

 

पाठ
अँघेरा हो गया था। इस मैदान से ज़रा दूर हटकर एक नाला था। उस पर कोई पुल न था। पथिकों को नाले में से चलकर आना पड़ता था। खेल अभी बंद ही हुआ था और खिलाड़ी लोग बैठे दम ले रहे थे कि एक किसान अनाज से भरी हुई गाड़ी लिए हुए उस नाले में आया। लेकिन कुछ तो नाले में कीचड़ था और कुछ उसकी चढ़ाई इतनी ऊँची थी कि गाड़ी ऊपर न चढ़ सकती थी। वह कभी बैलों को ललकारता, कभी पहियों को हाथ से ढकेलता, लेकिन बोझ अधिक था और बैल कमज़ोर। गाड़ी ऊपर को न चढ़ती और चढ़ती भी तो कुछ दूर चढ़कर फिर खिसककर नीचे पहुँच जाती। किसान बार-बार ज़ोर लगाता और बार-बार झुंझलाकर बैलों को मारता, लेकिन गाड़ी उभरने का नाम न लेती। बेचारा इधर-उधर निराश होकर ताकता मगर वहाँ कोई सहायक नज़र न आता। गाड़ी को अकेले छोड़कर कहीं जा भी नहीं सकता। बड़ी आपत्ति में फँसा हुआ था। इसी बीच में खिलाड़ी हाथों में डंडे लिए घूमते-घामते उधर से निकले।
किसान ने उनकी तरफ़ सहमी हुई आँखों से देखा; परंतु किसी से मदद माँगने का साहस न हुआ। खिलाड़ियों ने भी उसको देखा मगर बंद आँखों से, जिनमें सहानभुतिू न थी। उनमें स्वार्थ था, मद था, मगर उदारता और वात्सल्य का नाम भी न था।

शब्दार्थ-
पथिकों – यात्रियों, राहगीरों।
ललकारता – ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ देकर हिम्मत बंधाना।
झुंझलाकर – गुस्से और हताशा में आकर।
निराश होकर ताकता – हताश होकर चारों ओर देखना, किसी मदद की उम्मीद करना।
सहमी हुई आँखों से – डर और घबराहट से भरी दृष्टि।
सहानुभूति – दया, हमदर्दी।
स्वार्थ – केवल अपने लाभ की चिंता।
मद – अहंकार, घमंड।
उदारता – दूसरों की मदद करने की भावना।
वात्सल्य – स्नेह, दया और प्रेम।

व्याख्या- खेल की थकान के बावजूद खिलाड़ी आपस में खेल की बातें करते हुए इधर-उधर टहल रहे थे। मैदान से कुछ ही दूरी पर वह नाला था, जो हर राहगीर के लिए मुश्किल भरा रास्ता बन जाता था। कोई पुल न होने के कारण लोगों को पानी और कीचड़ में उतरकर ही पार करना पड़ता था।
किसान अपनी अनाज से भरी गाड़ी के साथ बड़ी परेशानी में था। नाले के कीचड़ ने पहियों को जकड़ रखा था, और ऊपर की चढ़ाई इतनी ऊँची थी कि कमज़ोर बैल उसे खींच नहीं पा रहे थे। वह बार-बार पूरी ताकत लगाता, कभी बैलों को पुचकारता तो कभी नाराज़ होकर उन्हें मारता, लेकिन गाड़ी थी कि टस से मस नहीं हो रही थी। जितनी बार वह गाड़ी को ऊपर चढ़ाने की कोशिश करता, उतनी ही बार वह कुछ दूर जाकर फिसलकर नीचे लौट आती।
बेचारा किसान चारों ओर मदद की उम्मीद से देखता, लेकिन दूर-दूर तक कोई सहायता करने वाला नहीं दिख रहा था। उसे गाड़ी छोड़कर कहीं जाना भी संभव नहीं था, क्योंकि किसी भी पल गाड़ी पलट सकती थी या अनाज पानी में गिर सकता था। वह पूरी तरह निराश और हताश खड़ा था कि तभी खिलाड़ी अपने हाथों में हॉकी स्टिक लिए घूमते-फिरते उस नाले के पास आ पहुँचे।
किसान असहाय नज़रों से खिलाड़ियों की ओर देखता रहा, लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पाया कि मदद माँग सके। खिलाड़ियों ने उसे देखा जरूर, मगर अनदेखा कर दिया, उनकी आँखों में दया या सहानुभूति नहीं थी। वे अपने खेल के गर्व और उत्साह में डूबे थे, जिसमें स्वार्थ और अहंकार तो था, पर दयालुता नहीं। उनके पास शक्ति थी, पर वे उसे किसी की सहायता के लिए नहीं, बल्कि अपने मनोरंजन के लिए इस्तेमाल कर रहे थे।

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पाठ
लेकिन उसी समूह में एक ऐसा मनुष्य था जिसके हृदय में दया थी और साहस था। आज हॉकी खेलते हुए उसके पैरों में चोट लग गई थी। लँगड़ाता हुआ धीरे-धीरे चला आता था। अकस्मात उसकी निगाह गाड़ी पर पड़ी। ठिठक गया। उसे किसान की सूरत देखते ही सब बातें ज्ञात हो गई। डंडा एक किनारे रख दिया। कोट उतार डाला और किसान के पास जाकर बोला, “मैं तुम्हारी गाड़ी निकाल दूँ?”
किसान ने देखा एक गठे हुए बदन का लंबा आदमी सामने खड़ा है। झुककर बोला, “हुजूर, मैं आपसे कैसे कहूँ?” युवक ने कहा, “मालूम होता है, तुम यहाँ बड़ी देर से फँसे हो। अच्छा, तुम गाड़ी पर जाकर बैलों को साधो, मैं पहियों को ढकेलता हूँ, अभी गाड़ी ऊपर चढ़ जाती है।”
किसान गाड़ी पर जा बैठा। युवक ने पहिये को ज़ोर लगाकर उकसाया। कीचड़ बहुत ज्यादा था। वह घुटने तक ज़मीन में गड़ गया, लेकिन हिम्मत न हारी। उसने फिर ज़ोर किया, उधर किसान ने बैलों को ललकारा। बैलों को सहारा मिला, हिम्मत बँध गई, उन्होंने कंधे झुकाकर एक बार ज़ोर किया तो गाड़ी नाले के ऊपर थी।

शब्दार्थ-
अकस्मात – अचानक, सहसा।
ठिठक गया – अचानक रुक गया, चलते-चलते ठहर जाना।
सूरत – चेहरा, हाव-भाव।
ज्ञात हो गई – समझ में आ गई, पता चल गया।
गठे हुए बदन का – मजबूत और ताकतवर शरीर वाला।
झुककर बोला – आदर और विनम्रता से बोला।
साधो – संभालो, काबू में रखो।
उकसाया – ज़ोर लगाकर आगे बढ़ाया।
हिम्मत न हारी – हार नहीं मानी, साहस बनाए रखा।
ललकारा – ऊँची आवाज़ में प्रेरित किया, पुकारा।

व्याख्याइस अंश में एक युवक के साहस, दयालुता और निस्वार्थ सेवा-भाव को बताया गया है। जब वह किसान अपनी गाड़ी को कीचड़ से निकालने में असमर्थ होता है, तब आसपास के खिलाड़ी उसकी मदद करने के बजाय उसे अनदेखा कर देते हैं। लेकिन उसी समूह में एक युवक था, जिसके हृदय में दया और साहस था। हॉकी खेलते समय उसे चोट लग गई थी, फिर भी वह लँगड़ाते हुए आगे बढ़ रहा था। अचानक उसकी नज़र कीचड़ में फँसी गाड़ी पर पड़ी, और किसान के चेहरे के भावों से ही वह समझ गया कि वह बहुत देर से परेशान है। युवक ने बिना किसी संकोच के अपना डंडा किनारे रखा, कोट उतारा और किसान से मदद के लिए पूछा। किसान पहले झिझका, लेकिन युवक ने आत्मविश्वास से उसे निर्देश दिया कि वह बैलों को संभाले, जबकि वह पहियों को धक्का देगा। कीचड़ बहुत अधिक था, जिससे गाड़ी निकालना मुश्किल हो रहा था। युवक खुद घुटनों तक कीचड़ में धँस गया, लेकिन उसने हार नहीं मानी और पूरी ताकत से धक्का देता रहा। उधर, किसान ने बैलों को ललकारा, जिससे उन्हें सहारा और हिम्मत मिली। अंत में, सभी के प्रयास से गाड़ी नाले से बाहर आ गई।

पाठ
किसान युवक के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। बोला, “महाराज, आपने आज मुझे उबार लिया, नहीं तो सारी रात मुझे यहाँ बैठना पड़ता।”
युवक ने हँसकर कहा, “अब मुझे कुछ इनाम देते हो?” किसान ने गंभीर भाव से कहा, “नारायण चाहेंगे तो दीवानी आपको ही मिलेगी।”
युवक ने किसान की तरफ़ गौर से देखा। उसके मन में एक संदेह हुआ, क्या यह सुजानसिंह तो नहीं हैं? आवाज़ मिलती है, चेहरा-मोहरा भी वही। किसान ने भी उसकी ओर तीव्र दृष्टि से देखा। शायद उसके दिल के संदेह को भाँप गया। मुस्कराकर बोला, “गहरे पानी में पैठने से ही मोती मिलता है।”

शब्दार्थ-
हाथ जोड़कर – आदर या कृतज्ञता प्रकट करने की मुद्रा।
उबार लिया – बचा लिया, कठिनाई से निकाल दिया।
गंभीर भाव से – गहरी सोच से।
गौर से देखा – ध्यानपूर्वक देखा।
संदेह हुआ – शक हुआ।
चेहरा-मोहरा – शक्ल-सूरत, हाव-भाव।
तीव्र दृष्टि से – पैनी नजर से, गहराई से देखना।
भाँप गया – समझ गया, स्थिति को महसूस कर लेना।
गहरे पानी में पैठने से ही मोती मिलता है – कठिनाइयों का सामना करने से ही सफलता मिलती है।

व्याख्याकिसान युवक के सामने हाथ जोड़कर धन्यवाद कहता है कि यदि युवक ने मदद न की होती, तो उसे सारी रात वहीं बितानी पड़ती। वह युवक के प्रति कृतज्ञ भाव दिखाता है। युवक हँसते हुए इनाम मांगता है, जिस पर किसान गंभीरता से जवाब देता है कि यदि नारायण चाहेंगे तो दीवानी (दीवान का पद) उसे ही मिलेगी। युवक किसान को गौर से देखता है और संदेह करता है कि कहीं यह सुजानसिंह तो नहीं है, क्योंकि उसकी आवाज़ और चेहरे की बनावट उससे मेल खाती है। दूसरी ओर, किसान भी युवक को तीव्र दृष्टि से देखता है और शायद उसके मन में आए संदेह को भाँप जाता है। वह मुस्कराकर रहस्यमयी ढंग से कहता है कि गहरे पानी में उतरने से ही मोती मिलता है।

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5

पाठ
निदान महीना पूरा हुआ। चुनाव का दिन आ पहुँचा। उम्मीदवार लोग प्रातःकाल ही से अपनी किस्मतों का फैसला सुनने के लिए उत्सुक थे। दिन काटना पहाड़ हो गया। प्रत्येक के चेहरे पर आशा और निराशा के रंग आते थे। नहीं मालूम, आज किसके नसीब जागेंगे! न जाने किस पर लक्ष्मी की कृपादृष्‍टि होगी।
संध्या समय राजा साहब का दरबार सजाया गया। शहर के रईस और धनाढ्य लोग, राज्य के कर्मचारी और दरबारी तथा दीवानी के उम्मीदवारों का समूह, सब रंग-बिरंगी सज-धज बनाए दरबार में आ विराजे! उम्मीदवारों के कलेजे धड़क रहे थे।

शब्दार्थ-
निदान – अंत में, आखिरकार।
प्रातःकाल – सुबह का समय, भोर।
किस्मतों का फैसला – भाग्य का निर्णय, नसीब का निर्णय।
दिन काटना पहाड़ हो गया – समय बहुत कठिनाई से बीतना, बेचैनी महसूस होना।
आशा और निराशा के रंग आना – उम्मीद और हताशा का अनुभव होना।
लक्ष्मी की कृपादृष्टि – धन और सौभाग्य की देवी की कृपा, भाग्य का साथ देना।
रईस – अमीर, धनवान व्यक्ति।
धनाढ्य – अत्यधिक धनी व्यक्ति।
राज्य के कर्मचारी – शासन में कार्य करने वाले अधिकारी।
दरबारी – राजा के दरबार से जुड़े हुए व्यक्ति।
सज-धज – भव्य पोशाक और आभूषण पहनकर तैयार होना।
कलेजे धड़कना – घबराहट और बेचैनी होना, तनाव महसूस करना।

व्याख्या- चुनाव का महीना पूरा होते ही निर्णय का दिन आ गया, और सभी उम्मीदवार अपनी किस्मत जानने के लिए उत्सुक थे। समय काटना मुश्किल हो रहा था, और उनके चेहरों पर आशा और निराशा के भाव लगातार बदल रहे थे। किसी को नहीं पता था कि किसकी तकदीर चमकेगी और किसे लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलेगा। संध्या समय राजा साहब का दरबार सजाया गया, जिसमें शहर के रईस, धनाढ्य, राज्य के अधिकारी और दरबारी उपस्थित थे। दीवानी के उम्मीदवार भी पूरी सज-धज के साथ दरबार में पहुँचे। दरबार का माहौल भव्य और भरा-पूरा था, लेकिन उम्मीदवारों के दिलों की धड़कनें तेज़ थीं। वे सभी बेचैनी और उम्मीद के साथ अपने भाग्य के फैसले का इंतजार कर रहे थे।

 

पाठ
जब सरदार सुजानसिंह ने खड़े होकर कहा, “मेरे दीवानी के उम्मीदवार महाशयो! मैनें आप लोगों को जो कष्‍ट दिया है, उसके लिए मुझे क्षमा कीजिए। इस पद के लिए ऐसे पुरुष की आवश्यकता थी, जिसके हृदय में दया हो और साथ-साथ आत्मबल। हृदय वह जो उदार हो, आत्मबल वह जो आपत्ति का वीरता के साथ सामना करें और इस रियासत के सौभाग्य से हमें ऐसा पुरुष मिल गया। ऐसे गुणवाले संसार में कम हैं और जो हैं, वे कीर्ति और मान के शिखर पर बैठे हुए हैं, उन तक हमारी पहुँच नहीं। मैं रियासत के पंडित जानकीनाथ-सा को दीवानी पाने पर बधाई देता हूँ।”

शब्दार्थ-
उम्मीदवार – प्रत्याशी, जो किसी पद के लिए आवेदन करता है।
कष्ट – पीड़ा, परेशानी, कठिनाई।
क्षमा – माफ़ी, दोषमुक्त करना।
आवश्यकता – ज़रूरत
हृदय – मन, दिल।
उदार – दयालु, परोपकारी।
आत्मबल – आत्मविश्वास, स्वयं की शक्ति।
आपत्ति – कठिनाई, समस्या, संकट।
वीरता – बहादुरी, साहस।
सौभाग्य – अच्छा भाग्य, सफलता।
गुणवाले – जिनमें अच्छे गुण हों, श्रेष्ठ व्यक्ति।
कीर्ति – यश, प्रसिद्धि।
मान – सम्मान, प्रतिष्ठा।
शिखर – चोटी, उच्च स्थान।
बधाई – शुभकामना, बधाई देना।

व्याख्या– सरदार सुजानसिंह ने खड़े होकर सभी दीवानी के उम्मीदवारों को संबोधित किया और उनसे क्षमा माँगी कि उन्होंने उन्हें परीक्षा में डालकर कष्ट दिया। उन्होंने समझाया कि इस पद के लिए ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी, जिसमें दया और आत्मबल दोनों हों। दया का अर्थ है उदार हृदय होना, और आत्मबल का अर्थ है संकटों का वीरता से सामना करना। उन्होंने कहा कि ऐसे गुणों वाले व्यक्ति बहुत कम होते हैं, और जो होते भी हैं, वे पहले ही प्रतिष्ठित स्थानों पर होते हैं, जहाँ तक उनकी पहुँच नहीं हो सकती। अंत में, उन्होंने घोषणा की कि पंडित जानकीनाथ इस पद के लिए सबसे योग्य हैं और उन्हें दीवान नियुक्त किया जाता है। यह सुनकर सभी ने पंडित जानकीनाथ को बधाई दी, और उनकी योग्यता को सराहा।

पाठ
रियासत के कर्मचारियों और रईसों ने जानकीनाथ की तरफ़ देखा। उम्मीदवार दल की आँखें उधर उठीं, मगर उन आँखों में सत्कार था, इन आँखों में ईर्ष्या।
सरदार साहब ने फिर फरमाया, “आप लोगों को यह स्वीकार करने में कोई आपत्ति न होगी कि जो पुरुष स्वयं जख्मी होकर भी एक गरीब किसान की भरी हुई गाड़ी को दलदल से निकालकर नाले के ऊपर चढ़ा दे उसके हृदय में साहस, आत्मबल और उदारता का वास है। ऐसा आदमी गरीबों को कभी न सतावेगा। उसका संकल्प दृढ़ है, जो उसके चित्त को स्थिर रखेगा। वह चाहे धोखा खा जाए, परंतु दया और धर्म से कभी न हटेगा।”

शब्दार्थ-
कर्मचारी – नौकर, अधीनस्थ कार्यकर्ता।
सत्कार – सम्मान, आदर।
ईर्ष्या – जलन, द्वेष।
फरमाया – कहा, आदेश दिया (सम्मानसूचक शब्द)।
स्वीकार – मान लेना।
आपत्ति – विरोध, असहमति।
पुरुष – व्यक्ति, मनुष्य।
जख्मी – घायल, चोटिल।
दलदल – कीचड़, गीली मिट्टी, जहाँ चलना कठिन हो।
साहस – हिम्मत, वीरता।
वास – निवास, रहना।
संकल्प – दृढ़ निश्चय, ठानना।
चित्त – मन, हृदय।
स्थिर – अटल, शांत, अडिग।
धोखा – छल, कपट।
दया – करुणा, सहानुभूति।
धर्म – कर्तव्य, नैतिकता।

व्याख्या- रियासत के कर्मचारी और रईस जानकीनाथ की ओर आदर भरी नज़रों से देखने लगे, जबकि दीवानी के अन्य उम्मीदवारों की आँखों में ईर्ष्या झलक रही थी। सरदार सुजानसिंह ने पुनः कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि जो व्यक्ति स्वयं घायल होने के बावजूद एक गरीब किसान की भरी हुई गाड़ी को कीचड़ से निकालकर ऊपर चढ़ा सकता है, उसके हृदय में साहस, आत्मबल और उदारता है। ऐसे व्यक्ति से गरीबों को कोई भय नहीं होना चाहिए, क्योंकि वह कभी अन्याय नहीं करेगा। उन्होंने आगे कहा कि जानकीनाथ का संकल्प दृढ़ है, जो उनके चित्त को स्थिर बनाए रखेगा। भले ही वे किसी से धोखा खा जाएँ, लेकिन दया और धर्म के मार्ग से कभी नहीं हटेंगे। उनके ये गुण उन्हें एक सच्चे और योग्य दीवान के रूप में स्थापित करते हैं।

 

Conclusion

इस पोस्ट में हमने ‘परीक्षा’ नामक पाठ का सारांश, पाठ व्याख्या और शब्दार्थ को विस्तार से समझा। यह पाठ मल्हार पुस्तक में शामिल है और कक्षा 6 हिंदी के पाठ्यक्रम का एक महत्वपूर्ण भाग है।
प्रेमचंद द्वारा लिखित इस पाठ में ईमानदारी, धैर्य और बुद्धिमानी की परीक्षा को दर्शाया गया है।
इस पोस्ट को पढ़कर विद्यार्थी न केवल पाठ को बेहतर समझ सकेंगे, बल्कि इससे उन्हें परीक्षा में सटीक उत्तर लिखने और महत्वपूर्ण बिंदुओं को याद रखने में भी सहायता मिलेगी।