गोल पाठ सार

 

CBSE Class 6 Hindi Chapter 2 “Gol”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Malhar Book

 

गोल सार – Here is the CBSE Class 6 Hindi Malhar Chapter 2 Gol Summary with detailed explanation of the lesson ‘Gol’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary

 

इस पोस्ट में हम आपके लिए सीबीएसई कक्षा 6 हिंदी मल्हार के पाठ 2 गोल पाठ सार, पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप  इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 6 गोल पाठ के बारे में जानते हैं।

 

Gol (गोल)

 

लेखक – मेजर ध्यानचंद

इस पाठ का नाम ‘गोल’ है और इस पाठ का नाम पढ़कर हमारे मन में कुछ गोल वस्तुओं के नाम या चित्र उभरते हैं जैसे – गोल गेंद, गोल रोटी, गोल चंद्रमा इत्यादि। लेकिन यह पाठ एक विशेष प्रकार के गोल और उस गोल को करने वाले खिलाड़ी के बारे में है। यह पाठ एक प्रसिद्ध खिलाड़ी के संम्मरण (सम्यक समरण) का एक भाग मात्र है। इस पाठ में हम जानेंगे कि वे प्रसिद्ध खिलाड़ी कौन थे ।

 

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गोल पाठ सार  Gol Summary

यह पाठ एक विशेष प्रकार के गोल और उस गोल को करने वाले खिलाड़ी के बारे में है। यह पाठ एक प्रसिद्ध खिलाड़ी मेज़र ध्यानचंद जी के संम्मरण (सम्यक समरण) का एक भाग मात्र है। मेज़र ध्यानचंद जी 1933 के एक मैच का जिक्र कर रहे हैं। उनके अनुसार खेल के मैदान में थोड़ी बहुत धक्का-मुक्की और वाद-विवाद खेल का एक हिस्सा ही है। सन् 1933 में, मेज़र ध्यानचंद पंजाब रेजिमेंट की ओर से खेला करते थे। एक दिन ‘पंजाब रेजिमेंट’ और ‘सैंपर्स एंड माइनर्स टीम’ के बीच जब मुकाबला हो रहा था, तब ‘माइनर्स टीम’ के एक खिलाड़ी ने गुस्से में हॉकी स्टिक मेज़र ध्यानचंद के सिर पर मार दी। कुछ समय बाद मेज़र ध्यानचंद पट्टी बाँधकर फिर मैदान में आ पहुँचे। मैदान में पहुँचते ही उन्होंने उस खिलाड़ी से कहा कि वह चिंता न करे, वह उसका बदला जरूर लेंगें। वह खिलाड़ी घबरा गया। क्योंकि जो बुरा करता है उसे हर पल यही लगता है कि उसके साथ भी बुरा ही होगा। मेज़र ध्यानचंद ने उस मैच में एक के बाद एक तुरंत ही छह गोल कर दिए। खेल खत्म होने के बाद उन्होंने उस खिलाड़ी को समझाया कि खेल में इतना गुस्सा करना अच्छा नहीं है। मेज़र ध्यानचंद जहाँ भी जाते थे बच्चे व बूढ़े उन्हें घेर लेते थे और उनसे उनकी सफलता का रहस्य जानना चाहते थे। वे हर किसी से यही कहते थे कि किसी काम में पूरी तरह से ध्यान लगाना, कठिन परिश्रम करना और खेल को खेल भावना से खेलना ही सफलता के सबसे बड़े मंत्र हैं। मेज़र ध्यानचंद का जन्म सन् 1904 में प्रयाग में एक साधारण से परिवार में हुआ था। बाद में उनका परिवार झाँसी आकर बस गए थे। 16 साल की उम्र में मेज़र ध्यानचंद ‘फर्स्ट ब्राह्मण रेजिमेंट’ में एक साधारण सिपाही के रूप में भर्ती हो गए थे। मेज़र ध्यानचंद की खेल में कोई दिलचस्पी नहीं थी। सूबेदार मेजर तिवारी, मेज़र ध्यानचंद को हॉकी खेलने के लिए कहते रहते थे। जैसे-जैसे उनके खेल अच्छा होता गया, वैसे-वैसे खेल में उनको उन्नति भी मिलती गई। सन् 1936 में बर्लिन ओलंपिक में उन्हें उनकी टीम का कप्तान बनाया गया। बर्लिन ओलंपिक में लोग मेज़र ध्यानचंद के हॉकी खेलने के ढंग से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने मेज़र ध्यानचंद को ‘हॉकी का जादूगर’ कहना शुरू कर दिया। मेज़र ध्यानचंद की हमेशा कोशिश रहती थी कि वे गेंद को गोल के पास ले जाकर अपने किसी साथी खिलाड़ी को दें, ताकि उसे गोल करने का श्रेय मिल जाए। उनकी इसी खेल भावना के कारण उन्होंने दुनिया के खेल प्रेमियों का दिल जीत लिया था। बर्लिन ओलंपिक में मेज़र ध्यानचंद की टीम को स्वर्ण पदक मिला था। खेलते समय मेज़र ध्यानचंद हमेशा इस बात का ध्यान रखते थे कि हार या जीत उनकी नहीं, बल्कि पूरे देश की है। इन सभी खूबियों के कारण वे एक महान खिलाड़ी माने जाते हैं।

गोल पाठ व्याख्या – Gol Lesson Explanation

 

पाठ – खेल के मैदान में धक्का-मुक्की और नोंक-झोंक की घटनाएँ होती रहती हैं। खेल में तो यह सब चलता ही है। जिन दिनों हम खेला करते थे, उन दिनों भी यह सब चलता था।

Gol Summary Image 1

सन् 1933 की बात है। उन दिनों में, मैं पंजाब रेजिमेंट की ओर से खेला करता था। एक दिन ‘पंजाब रेजिमेंट’ और ‘सैंपर्स एंड माइनर्स टीम’ के बीच मुकाबला हो रहा था। ‘माइनर्स टीम’ के खिलाड़ी मुझसे गेंद छीनने की कोशिश करते, लेकिन उनकी हर कोशिश बेकार जाती। इतने में एक खिलाड़ी ने गुस्से में आकर हॉकी स्टिक मेरे सिर पर दे मारी। मुझे मैदान से बाहर ले जाया गया।

शब्दार्थ
नोंक-झोंक – चुभने वाली बात, छेड़छाड़, वाद-विवाद, झड़प
स्टिक – छड़ी, लकड़ी

व्याख्यामेज़र ध्यानचंद जी 1933 के एक मैच का जिक्र करते हुए कहते हैं कि खेल के मैदान में थोड़ी बहुत धक्का-मुक्की और वाद-विवाद की घटनाएँ अक्सर होती रहती हैं। यह सब खेल का एक हिस्सा ही है। अपने खेल के दौर के बारे में मेज़र ध्यानचंद बताते हैं कि यह सब धक्का-मुक्की और वाद-विवाद की घटनाएँ उनके दौर में भी चलती थी। सन् 1933 में, मेज़र ध्यानचंद पंजाब रेजिमेंट की ओर से खेला करते थे। एक दिन ‘पंजाब रेजिमेंट’ और ‘सैंपर्स एंड माइनर्स टीम’ के बीच जब मुकाबला हो रहा था, तब ‘माइनर्स टीम’ के खिलाड़ी मेज़र ध्यानचंद से गेंद छीनने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उनकी हर कोशिश बेकार जा रही थी। इससे एक खिलाड़ी इतने गुस्से में आ गया कि उसने हॉकी स्टिक मेज़र ध्यानचंद के सिर पर मार दी। जिसके कारण मेज़र ध्यानचंद को इतनी चोट लगी कि उन्हें मैदान से बाहर ले जाया गया था।

पाठ थोड़ी देर बाद मैं पट्टी बाँधकर फिर मैदान में आ पहुँचा। आते ही मैंने उस खिलाड़ी की पीठ पर हाथ रखकर कहा, “तुम चिंता मत करो, इसका बदला मैं जरूर लूँगा।” मेरे इतना कहते ही वह खिलाड़ी घबरा गया। अब हर समय मुझे ही देखता रहता कि मैं कब उसके सिर पर हॉकी स्टिक मारने वाला हूँ। मैंने एक के बाद एक झटपट छह गोल कर दिए। खेल खत्म होने के बाद मैंने फिर उस खिलाड़ी की पीठ थपथपाई और कहा, “दोस्त, खेल में इतना गुस्सा अच्छा नहीं। मैंने तो अपना बदला ले ही लिया है। अगर तुम मुझे हॉकी नहीं मारते तो शायद मैं तुम्हें दो ही गोल से हराता।” वह खिलाड़ी सचमुच बड़ा शर्मिदा हुआ। तो देखा आपने मेरा बदला लेने का ढंग? सच मानो, बुरा काम करने वाला आदमी हर समय इस बात से डरता रहता है उसके साथ भी बुराई की जाएगी।
आज मैं जहाँ भी जाता हूँ बच्चे व बूढ़े मुझे घेर लेते हैं और मुझसे मेरी सफलता का राज जानना चाहते हैं। मेरे पास सफलता का कोई गुरु-मंत्र तो है नहीं। हर किसी से यही कहता कि लगन, साधना और खेल भावना ही सफलता के सबसे बड़े मंत्र हैं।

शब्दार्थ –
झटपट – अति शीघ्र, तुरंत ही, बहुत जल्दी, तेज़ी से
पीठ थपथपाना –  प्रशंसा या तारीफ करना
शर्मिदा – लज्जित, शर्मसार, शरमाया हुआ
लगन – किसी काम में पूरी तरह से ध्यान लगाना, निष्ठा, धुन
साधना – एकाग्र तप, कठिन परिश्रम

व्याख्या – कुछ समय बाद मेज़र ध्यानचंद पट्टी बाँधकर फिर मैदान में आ पहुँचे। मैदान में पहुँचते ही उन्होंने उस खिलाड़ी की पीठ पर हाथ रखा जिसने उन्हें हॉकी की छड़ी से मारा था, और उन्होंने उससे कहा कि वह चिंता न करे, उसने उन्हें जो मारा है वह उसका बदला जरूर लेंगें। मेज़र ध्यानचंद के इतना कहते ही वह खिलाड़ी घबरा गया क्योंकि जो बुरा करता है उसे हर पल यही लगता है कि उसके साथ भी बुरा ही होगा। वह खिलाड़ी अब हर समय मेज़र ध्यानचंद को ही देखता रहता कि मेज़र ध्यानचंद कब उसके सिर पर हॉकी स्टिक मारने वाले हैं। मेज़र ध्यानचंद ने उस मैच में एक के बाद एक तुरंत ही छह गोल कर दिए। खेल खत्म होने के बाद उन्होंने फिर उस खिलाड़ी की प्रशंसा की और उससे कहा कि दोस्त, खेल में इतना गुस्सा करना अच्छा नहीं है। उन्होंने तो अपना बदला तुरंत ही छह गोल करके ले ही लिया है। अगर वह उन्हें हॉकी नहीं मारता तो शायद वे उस टीम को दो ही गोल से हराते। यह सुनकर वह खिलाड़ी सचमुच बड़ा लज्जित हुआ। यहाँ हमने मेज़र ध्यानचंद के बदला लेने के अनोखे ढंग को देखा। मेज़र ध्यानचंद मानते हैं कि, बुरा काम करने वाला आदमी हर समय इस बात से डरता रहता है उसके साथ भी बुराई की जाएगी। मेज़र ध्यानचंद जहाँ भी जाते थे बच्चे व बूढ़े उन्हें घेर लेते थेऔर उनसे उनकी सफलता का रहस्य जानना चाहते थे। मेज़र ध्यानचंद के अनुसार उनके पास सफलता का कोई गुरु-मंत्र तो था नहीं। इसलिए वे हर किसी से यही कहते थे कि किसी काम में पूरी तरह से ध्यान लगाना, कठिन परिश्रम करना और खेल को खेल भावना से खेलना ही सफलता के सबसे बड़े मंत्र हैं।

पाठ – मेरा जन्म सन् 1904 में प्रयाग में एक साधारण परिवार में हुआ। बाद में हम झाँसी आकर बस गए। 16 साल की उम्र में मैं ‘फर्स्ट ब्राह्मण रेजिमेंट’ में एक साधारण सिपाही के रूप में भर्ती हो गया। मेरी रेजिमेंट का हॉकी खेल में काफी नाम था। पर खेल में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी। उस समय हमारी रेजिमेंट के सूबेदार मेजर तिवारी थे। वे बार-बार मुझे हॉकी खेलने के लिए कहते। हमारी छावनी में हॉकी खेलने का कोई निश्चित समय नहीं था। सैनिक जब चाहे मैदान में पहुँच जाते और अभ्यास शुरू कर देते। उस समय तक मैं एक नौसिखिया खिलाड़ी था।Gol Summary Image 2

जैसे-जैसे मेरे खेल में निखार आता गया, वैसे-वैसे मुझे तरक्की भी मिलती गई। सन् 1936 में बर्लिन ओलंपिक में मुझे कप्तान बनाया गया। उस समय मैं सेना में लांस नायक था। बर्लिन ओलंपिक में लोग मेरे हॉकी खेलने के ढंग से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने मुझे ‘हॉकी का जादूगर’ कहना शुरू कर दिया। इसका यह मतलब नहीं कि सारे गोल मैं ही करता था। मेरी तो हमेशा यह कोशिश रहती कि मैं गेंद को गोल के पास ले जाकर अपने किसी साथी खिलाड़ी को दे दूँ ताकि उसे गोल करने का श्रेय मिल जाए। अपनी इसी खेल भावना के कारण मैंने दुनिया के खेल प्रेमियों का दिल जीत लिया। बर्लिन ओलंपिक में हमें स्वर्ण पदक मिला। खेलते समय मैं हमेशा इस बात का ध्यान रखता था हार या जीत मेरी नहीं, बल्कि पूरे देश की है।

शब्दार्थ –
छावनी – सैनिकों या पुलिस का निवासस्थान
नौसिखिया – नया-नया सीखने वाला या नया-नया सीखा हुआ
तरक्की – उन्नती

व्याख्यामेज़र ध्यानचंद का जन्म सन् 1904 में प्रयाग में एक साधारण से परिवार में हुआ था। बाद में उनका परिवार झाँसी आकर बस गए थे। 16 साल की उम्र में मेज़र ध्यानचंद ‘फर्स्ट ब्राह्मण रेजिमेंट’ में एक साधारण सिपाही के रूप में भर्ती हो गए थे। उनकी रेजिमेंट का पहले से ही हॉकी खेल में काफी नाम था। परन्तु उस समय मेज़र ध्यानचंद की खेल में कोई दिलचस्पी नहीं थी। उस समय उनकी रेजिमेंट के सूबेदार मेजर तिवारी थे। वे ही बार-बार मेज़र ध्यानचंद को  हॉकी खेलने के लिए कहते रहते थे। उनकी छावनी में हॉकी खेलने का कोई निश्चित समय नहीं था। सैनिक जब चाहे मैदान में पहुँच जाते थे और हॉकी का अभ्यास शुरू कर देते थे। उस समय तक मेज़र ध्यानचंद एक ऐसे खिलाड़ी थे जो नया-नया हॉकी खेलना सीख रहे थे। जैसे-जैसे उनके खेल अच्छा होता गया, वैसे-वैसे खेल में उनको उन्नति भी मिलती गई। सन् 1936 में बर्लिन ओलंपिक में उन्हें उनकी टीम का कप्तान बनाया गया। उस समय मेज़र ध्यानचंद सेना में लांस नायक था। बर्लिन ओलंपिक में लोग मेज़र ध्यानचंद के हॉकी खेलने के ढंग से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने मेज़र ध्यानचंद को ‘हॉकी का जादूगर’ कहना शुरू कर दिया। मेज़र ध्यानचंद इस पर कहते हैं कि ‘हॉकी का जादूगर’ कहने का यह मतलब नहीं था कि सारे गोल वही कर रहे थे। बल्कि उनकी तो हमेशा यह कोशिश रहती थी कि वे गेंद को गोल के पास ले जाकर अपने किसी साथी खिलाड़ी को दें, ताकि उसे गोल करने का श्रेय मिल जाए। उनकी इसी खेल भावना के कारण उन्होंने दुनिया के खेल प्रेमियों का दिल जीत लिया था। बर्लिन ओलंपिक में मेज़र ध्यानचंद की टीम को स्वर्ण पदक मिला था। खेलते समय मेज़र ध्यानचंद हमेशा इस बात का ध्यान रखते थे कि हार या जीत उनकी नहीं, बल्कि पूरे देश की है। इन सभी खूबियों के कारण वे एक महान खिलाड़ी माने जाते हैं।

 

Conclusion

इस पाठ का नाम है ‘गोल’ पढ़कर मन में कुछ गोल वस्तुओं के नाम या चित्र उभरते हैं जैसे – गोल गेंद, गोल रोटी, गोल चंद्रमा इत्यादि। लेकिन यह पाठ एक विशेष प्रकार के गोल और उस गोल को करने वाले खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद के बारे में है। यह पाठ उनके संम्मरण का एक भाग मात्र है। इस लेख में पाठ सार, व्याख्या दिए गए हैं। यह लेख विद्यार्थियों को पाठ को अच्छे से समझने में सहायक है। विद्यार्थी अपनी परीक्षा के लिए इस लेख की सहायता ले सकते हैं।