मेजर ध्यानचंद का चरित्र-चित्रण | Character Sketch of Major Dhyanchand from CBSE Class 6 Hindi Malhar Book Chapter 2 गोल
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मेजर ध्यानचंद का चरित्र-चित्रण Character Sketch of Major Dhyanchand
मेजर ध्यानचंद खेल में होने वाली घटनाओं को ज्यादा महत्त्व नहीं देते थे – मेजर ध्यानचंद मानते थे कि खेल के मैदान में थोड़ी बहुत धक्का-मुक्की और वाद-विवाद खेल का एक हिस्सा ही होते है। यही कारण था कि उनको जब एक मैच दौरान सिर पर हॉकी मारी गई तब भी उन्होंने उस खिलाड़ी को कुछ बुरा नहीं कहा।
- सकारात्मक व्यवहार – मेजर ध्यानचंद हमेशा सकारात्मक रहते थे। जब विरोधी खिलाड़ी ने गुस्से में उनके सिर पर वार किया था तब उन्होंने गुस्सा न दिखाकर, अपना बदला खेल में लगातार छः गोल करके लिया था।
- बेहतरीन खिलाड़ी – मेज़र ध्यानचंद बहुत बेहतरीन खिलाड़ी थे। एक दिन ‘पंजाब रेजिमेंट’ और ‘सैंपर्स एंड माइनर्स टीम’ के बीच जब मुकाबला हो रहा था, तब ‘माइनर्स टीम’ के एक खिलाड़ी ने गुस्से में हॉकी स्टिक मेज़र ध्यानचंद के सिर पर मार दी। कुछ समय बाद मेज़र ध्यानचंद पट्टी बाँधकर फिर मैदान में आ पहुँचे।
- विनम्र – मेज़र ध्यानचंद जानते थे कि अपने गुस्से को कैसे और कब सही दिशा देनी है। एक मैच में विरोधी टीम के एक खिलाड़ी ने गुस्से में हॉकी स्टिक मेज़र ध्यानचंद के सिर पर मार दी। कुछ समय बाद मेज़र ध्यानचंद पट्टी बाँधकर फिर मैदान में आ पहुँचे। मैदान में पहुँचते ही उन्होंने उस खिलाड़ी से कहा कि वह चिंता न करे, वह उसका बदला जरूर लेंगें। वह खिलाड़ी घबरा गया। क्योंकि जो बुरा करता है उसे हर पल यही लगता है कि उसके साथ भी बुरा ही होगा। मेज़र ध्यानचंद ने उस मैच में एक के बाद एक तुरंत ही छह गोल कर दिए। खेल खत्म होने के बाद उन्होंने उस खिलाड़ी को समझाया कि खेल में इतना गुस्सा करना अच्छा नहीं है।
- सही मार्गदर्शक – मेज़र ध्यानचंद जहाँ भी जाते थे बच्चे व बूढ़े उन्हें घेर लेते थे और उनसे उनकी सफलता का रहस्य जानना चाहते थे। वे हर किसी से यही कहते थे कि किसी काम में पूरी तरह से ध्यान लगाना, कठिन परिश्रम करना और खेल को खेल भावना से खेलना ही सफलता के सबसे बड़े मंत्र हैं।
- मेहनती – मेज़र ध्यानचंद 16 साल की उम्र में मेज़र ध्यानचंद ‘फर्स्ट ब्राह्मण रेजिमेंट’ में एक साधारण सिपाही के रूप में भर्ती हो गए थे। मेज़र ध्यानचंद की खेल में कोई दिलचस्पी नहीं थी। सूबेदार मेजर तिवारी, मेज़र ध्यानचंद को हॉकी खेलने के लिए कहते रहते थे। जैसे-जैसे उनके खेल अच्छा होता गया, वैसे-वैसे खेल में उनको उन्नति भी मिलती गई। सन् 1936 में बर्लिन ओलंपिक में उन्हें उनकी टीम का कप्तान बनाया गया।
- हॉकी का जादूगर – बर्लिन ओलंपिक में लोग मेज़र ध्यानचंद के हॉकी खेलने के ढंग से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने मेज़र ध्यानचंद को ‘हॉकी का जादूगर’ कहना शुरू कर दिया। मेज़र ध्यानचंद की हमेशा कोशिश रहती थी कि वे गेंद को गोल के पास ले जाकर अपने किसी साथी खिलाड़ी को दें, ताकि उसे गोल करने का श्रेय मिल जाए। उनकी इसी खेल भावना के कारण उन्होंने दुनिया के खेल प्रेमियों का दिल जीत लिया था।
- सच्चा देशभक्त – बर्लिन ओलंपिक में मेज़र ध्यानचंद की टीम को स्वर्ण पदक मिला था। खेलते समय मेज़र ध्यानचंद हमेशा इस बात का ध्यान रखते थे कि हार या जीत उनकी नहीं, बल्कि पूरे देश की है। इन सभी खूबियों के कारण वे एक महान खिलाड़ी माने जाते हैं।