स्वदेश पाठ सार
CBSE Class 8 Hindi Chapter 1 “Swadesh”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Malhar Book
स्वदेश सार – Here is the CBSE Class 8 Hindi Malhar Chapter 1 Swadesh with detailed explanation of the lesson ‘Swadesh’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary
इस पोस्ट में हम आपके लिए सीबीएसई कक्षा 8 हिंदी मल्हार के पाठ 1 स्वदेश पाठ सार, पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 8 स्वदेश पाठ के बारे में जानते हैं।
Swadesh (स्वदेश)
प्रस्तुत कविता हमारे मल्हार पाठ्य-पुस्तक के पहले अध्याय ‘स्वदेश’ में सम्मिलित है। जिसके रचनाकार प्रसिद्ध कवि गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही’ हैं। इस कविता के माध्यम से कवि ने देशप्रेम, आत्मगौरव, सामाजिक उत्तरदायित्व और बलिदान की भावना को जाग्रत करने का कार्य किया है।
कवि का मानना है कि जिस हृदय में अपने देश के प्रति सच्चा प्रेम नहीं है, वह हृदय नहीं, पत्थर के समान है। कविता में यह संदेश स्पष्ट रूप से दिया गया है कि देश के लिए प्रेम, कर्तव्य और साहस ही व्यक्ति के जीवन को सार्थक बनाते हैं।
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स्वदेश पाठ सार Swadesh Summary
इस कविता में कवि ने बताया है कि जिस व्यक्ति के हृदय में अपने देश के लिए प्रेम नहीं है, वह हृदय नहीं बल्कि एक पत्थर है। यानी ऐसा व्यक्ति निरर्थक है, जिसके जीवन में कोई भावनाएँ नहीं हैं। कवि के अनुसार, अगर किसी के जीवन में जोश, उत्साह और देशभक्ति का भाव नहीं है, तो उसका जीवन व्यर्थ है। ऐसा इंसान जो अपने देश, समाज और समय के साथ नहीं चलता, वह समाज में अपना कोई स्थान नहीं बना सकता। बिना साहस के कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं कर सकता। इसलिए डरकर या पीछे हटकर जीने का कोई अर्थ नहीं है।
कविता के अगले भाग में कवि कहते हैं कि जो व्यक्ति अपनी जाति या समाज का भला नहीं कर सका, वह खुद भी तरक्की नहीं कर सकता। ऐसे लोग सिर्फ अपने लिए जीते हैं, जिनका जीवन न तो समाज के लिए उपयोगी होता है और न ही देश के लिए। जिस हृदय में भावनाएँ नहीं हैं, जो भीतर से खाली है, वह भी पत्थर के समान है। और जिस दिल में अपने देश के लिए प्यार नहीं है, वह हृदय कहलाने लायक नहीं।
फिर कवि भारत देश की सुंदरता, महानता और समृद्धि का गुणगान करते हुए कहते हैं कि यही वह भूमि है जहाँ हम जन्मे, पले-बढ़े और जहाँ से हमें अन्न-पानी मिला। यही भूमि हमारे माता-पिता और अपने संबंधियों की भूमि है। इस देश ने हमें केवल जीवन ही नहीं दिया, बल्कि समृद्ध संस्कृति, ज्ञान के रत्न, महान परंपराएँ और गौरवशाली इतिहास भी दिया है। यहाँ की मिट्टी में अपार संपदा और आध्यात्मिक शक्ति है, जिसे दुनिया भर के ज्ञानी भी मानते हैं। ऐसी महान धरती के लिए प्रेम न होना, वास्तव में एक अपराध जैसा है।
अंत में कवि बहुत ही मार्मिक भाव से कहते हैं कि मृत्यु तो एक दिन सभी को आनी ही है, लेकिन अगर हम अपने जीवन को देश के लिए समर्पित करें तो वह मृत्यु भी अमर हो जाती है। जैसे दीपक की लौ में परवाना जलकर अमर हो जाता है, वैसे ही देश के लिए बलिदान देने वाले लोग इतिहास में अमर हो जाते हैं। हमारे पास साहस है, शक्ति है, शस्त्र हैं—फिर हमें क्यों डरना चाहिए? हमें अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए अपने देश के लिए जीना और मरना चाहिए। और अगर फिर भी किसी के दिल में स्वदेश के लिए प्रेम नहीं है, तो वह हृदय नहीं पत्थर है।
इस प्रकार यह पूरी कविता देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत है, जो पाठकों को प्रेरणा देती है कि वे न केवल अपने देश से प्रेम करें बल्कि उसके लिए कुछ कर दिखाने का संकल्प भी लें। यह कविता हमें सिखाती है कि एक सच्चा नागरिक वही है, जो अपने देश के उत्थान के लिए तन, मन और जीवन से समर्पित रहता है।
स्वदेश पाठ व्याख्या Swadesh Explanation
पद्यांश 1
वह हृदय नहीं है पत्थर है,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।
जो जीवित जोश जगा न सका,
उस जीवन में कुछ सार नहीं।
जो चल न सका संसार-संग,
उसका होता संसार नहीं॥
जिसने साहस को छोड़ दिया,
वह पहुँच सकेगा पार नहीं।
शब्दार्थ-
हृदय– दिल, मन
स्वदेश– अपना देश
सार– महत्व, मूल्य
साहस- हिम्मत, बहादुरी
पार- सफलता तक पहुँचना, मंज़िल तक पहुँचना
व्याख्या– प्रस्तुत पँक्तियों में कवि कहते हैं कि जिस हृदय में अपने देश के लिए प्रेम नहीं है, वह पत्थर के समान है, यानी उसमें कोई भावना नहीं है। ऐसा जीवन जिसमें कोई उत्साह और जोश नहीं है, वह व्यर्थ है, अर्थात् ऐसा व्यक्ति जिसके हृदय में देशभक्ति के लिए जोश नहीं है उसका जीवन व्यर्थ है।
कवि आगे कहता है कि जो व्यक्ति दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर नहीं चलता, वह समाज में अपना स्थान नहीं बना सकता। जो लोग साहस छोड़ देते हैं, वे अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँच सकते अर्थात् जो व्यक्ति हार मान लेते हैं वे जीवन में आगे नहीं बढ़ पाते।

पद्यांश 2
जिससे न जाति- उद्धार हुआ,
होगा उसका उद्धार नहीं॥
जो भरा नहीं है भावों से,
बहती जिसमें रस-धार नहीं।
वह हृदय नहीं है पत्थर है,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं ॥
शब्दार्थ-
जाति– समाज, समुदाय
उद्धार- भलाई, उन्नति, कल्याण
भावों- भावनाओं, संवेदनाओं
रस-धार– भावनाओं की मधुर धारा, प्रेम की लहर
व्याख्या- प्रस्तुत पँक्तियों में कवि कहते हैं कि जो व्यक्ति अपने समाज और जाति का उद्धार नहीं कर सका, उसका स्वयं का भी उद्धार नहीं हो सकता। अगर किसी व्यक्ति के हृदय में कोमल भावनाएँ और प्रेम नहीं है, तो वह जीवन व्यर्थ है। जिस हृदय में अपने देश के प्रति प्यार नहीं है, वह संवेदनहीन पत्थर के समान है।

पद्यांश 3
जिसकी मिट्टी में उगे बढ़े,
पाया जिसमें दाना-पानी।
हैं माता-पिता बंधु जिसमें,
हम हैं जिसके राजा-रानी॥
जिसने कि खजाने खोले हैं,
नव रत्न दिये हैं लासानी।
जिस पर ज्ञानी भी मरते हैं,
जिस पर है दुनिया दीवानी॥
शब्दार्थ-
दाना-पानी– भोजन और पानी, जीवन-निर्वाह के साधन
बंधु– भाई-बंधु, रिश्तेदार
खजाने– धन-सम्पत्ति
नव रत्न– नए और अनमोल रत्न
लासानी– अनोखे, बेजोड़, जिनकी कोई तुलना न हो
ज्ञानी- विद्वान व्यक्ति
व्याख्या- प्रस्तुत पँक्तियों में कवि उस भूमि की महिमा गाता है जहाँ हम जन्मे हैं, पले-बढ़े हैं और जिसने हमें अन्न-पानी दिया है। यही भूमि हमारे माता-पिता और संबंधियों की भूमि है। हम इसी देश के नागरिक हैं और यहीं राजा-रानी जैसे जीते हैं। इस देश ने हमें अनमोल खजाने और ज्ञान के रत्न दिए हैं। भारत की संस्कृति, ज्ञान और परंपरा इतनी महान है कि पूरी दुनिया इसे सराहती है।

पद्यांश 4
उस पर है नहीं पसीजा जो,
क्या है वह भू का भार नहीं।
निश्चित है निस्संशय निश्चित,
है जान एक दिन जाने को ।
है काल- दीप जलता हरदम,
जल जाना है परवानों को॥
सब कुछ है अपने हाथों में,
क्या तोप नहीं तलवार नहीं।
वह हृदय नहीं है, पत्थर है,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं ॥
शब्दार्थ-
पसीजा– दया आना, कोमल भावना जागी
भू- धरती, पृथ्वी
निश्चित- तय, पक्का
निस्संशय- बिना संदेह के, निश्चित रूप से
जान- प्राण, जीवन
काल-दीप– मृत्यु का प्रतीक दीपक, समय की जलती लौ
हरदम– हमेशा, निरंतर
परवानों– दीवाने, बलिदान देने वाले
तोप– युद्ध में प्रयोग होने वाला भारी हथियार
व्याख्या- प्रस्तुत पँक्तियों में कवि कहते हैं कि जिस व्यक्ति के ह्रदय में देश के प्रति करुणा और प्रेम का भाव नहीं है वह वास्तव में इस धरती पर एक बोझ है। कवि आगे कहते हैं कि यह तो सभी को पता है कि मृत्यु निश्चित है तो क्यों न देश की सेवा करें, ऐसा जीवन जिएं जो देश के काम आए। जैसे दीपक में परवाना जल जाता है, वैसे ही देशभक्त जीवन की आहुति देकर देश की सेवा करते हैं। हमारे पास सब कुछ है, हथियार, साहस और बलिदान की शक्ति। इसलिए अगर किसी के हृदय में देशप्रेम नहीं है, तो वह हृदय नहीं, पत्थर है।
–गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही‘
Conclusion
इस बार के पोस्ट में हमने ‘स्वदेश’ कविता का साराँश, पद्यांश व्याख्या और शब्दार्थ को जाना। यह कविता कक्षा 8 हिंदी के पाठ्यक्रम में मल्हार पाठ्य-पुस्तक से ली गयी है।
इस कविता के माध्यम से कवि गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही’ ने देशप्रेम, आत्मगौरव, सामाजिक उत्तरदायित्व और बलिदान की भावना को जाग्रत करने का कार्य किया है।
यह पोस्ट विद्यार्थियों को कविता को गहराई से समझने में मदद करेगा और परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देने में भी सहायक सिद्ध होगा।
navneetvadher@gmail.com
Very nice