गिरिधर कविराय की कुंडलिया पाठ सार

 

CBSE Class 7 Hindi Chapter 6 “Girdhar Kavirai Ki Kundaliya”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Malhar Book

 

गिरिधर कविराय की कुंडलिया सार – Here is the CBSE Class 7 Hindi Malhar Chapter 6 Girdhar Kavirai Ki Kundaliya Summary with detailed explanation of the lesson ‘Girdhar Kavirai Ki Kundaliya’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary

 

इस पोस्ट में हम आपके लिए सीबीएसई कक्षा 7 हिंदी मल्हार के पाठ 6 गिरिधर कविराय की कुंडलिया पाठ सार, पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप  इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 7 गिरिधर कविराय की कुंडलिया पाठ के बारे में जानते हैं।

 

Girdhar Kavirai Ki Kundaliya (गिरिधर कविराय की कुंडलिया)

 

गिरिधर कविराय हमें सभी काम सोच-विचार करने की सीख दे रहे हैं क्योंकि जल्दबाज़ी में या बिना सोचे-समझे काम करने पर हम अपने ही काम बिगाड़ देते हैं, जिससे हमारे मन को भी शांति नहीं मिलती और बिना सोचे विचारे किए गए कार्य का दुःख व्यक्ति के हृदय में पछतावा बनकर घर कर जाता है। गिरिधर कविराय हमें बीती घटनाओं को भूलकर आगे बढ़ने को कहते हैं। हमें जो बात बीत चुकी है, उसे भूलकर आगे आने वाले सुख के बारे में सोचना चाहिए।

 

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गिरिधर कविराय की कुंडलिया पाठ सार Girdhar Kavirai Ki Kundaliya Summary

 

गिरिधर कविराय अपनी प्रस्तुत कुंडलियों में बताना चाहते हैं कि हमें सभी काम सोच-विचार करके ही करने चाहिए। जल्दबाज़ी में या बिना सोचे-समझे काम करने पर हम अपने ही काम बिगाड़ देते हैं, जिसके परिणाम स्वरूप संसार में हमें हँसी का पात्र बनना पड़ता है। जिससे हमारे मन को भी शांति नहीं मिलती और बिना सोचे विचारे किए गए कार्य का दुःख व्यक्ति के हृदय में पछतावा बनकर घर कर जाता है। उसकी पीड़ा से छुटकारा पाना मुश्किल होता है। अतः हमें कोई भी काम बहुत सोच-विचारकर ही करना चाहिए। गिरिधर कविराय कहते हैं कि जो भी बातें या घटनाएँ घटित हो चुकी हैं या बीत चुकी हैं, उन्हें भूलकर हमें आगे बढ़ना चाहिए। जो कार्य सहज और सरल तरीके से हो सकें, उसी में मन लगाना चाहिए। ऐसा करने पर हम किसी दुष्ट व्यक्ति की हँसी का पात्र बनने से बच जाएंगे और हमारे मन में कोई पछतावा भी नहीं रहेगा। गिरिधर कविराय कहते हैं कि जो मन को सही लगे वही काम करो और आगे जो होने वाला है उसी में अपना सुख देखो। हमें जो बात बीत चुकी है, उसे भूलकर आगे आने वाले सुख के बारे में सोचना चाहिए।

 

गिरिधर कविराय की कुंडलिया पाठ व्याख्या  Girdhar Kavirai Ki Kundaliya Explanation

 

1 –
बिना बिचारे जो करै, सो पाछे पछिताय।
काम बिगारै आपनो, जग में होत हंसाय॥
जग में होत हंसाय, चित्त में चैन न पावै।
खान पान सन्मान, राग रंग मनहिं न भावै॥
कह ‘गिरिधर कविराय, दु:ख कछु टरत न टारे।
खटकत है जिय मांहि, कियो जो बिना बिचारे॥

शब्दार्थ –
बिचारे – विचार किए
करै – करता है
सो – वह
पाछे – पीछे, बाद में
पछिताय – पछताना
बिगारै – बिगाड़ना
जग – संसार
होत – होना
हंसाय – मज़ाक
चित्त – मन, हृदय
सन्मान – सम्मान
राग – गीत-संगीत
कछु – कुछ
टरत न टारे – टलाने पर भी न टलना
खटकत – खटकता या चुभता रहना
जिय – हृदय

व्याख्याप्रस्तुत पंक्तियाँ में कवि यह बताना चाहते हैं कि जो बिना सोचे-समझे किसी काम को करते हैं, बाद में उन्हें पछताना पड़ता है। कहने का आशय यह है कि हमें सभी काम सोच-विचार करके ही करने चाहिए। जल्दबाज़ी में या बिना सोचे-समझे काम करने पर हम अपने ही काम बिगाड़ देते हैं, जिसके परिणाम स्वरूप संसार में हमें हँसी का पात्र बनना पड़ता है। आगे कवि कहते हैं कि जब हम दूसरों की हँसी का कारण बनते हैं। तब हमारे मन को भी शांति नहीं मिलती और उसे किसी प्रकार के सुख की अनुभूति नहीं होती। खानपान, सम्मान, गीत-संगीत कोई भी चीज़ हमारे मन को नहीं भाती। गिरिधर कविराय जी कहते हैं कि बिना विचार किया गया कार्य हमें हर समय ऐसा दुख देता है, जिसे टाला भी नहीं जा सकता। और बिना सोचे विचारे किए गए कार्य का खेद हमारे हृदय में खटकता रहता है। कहने का आशय यह है कि बिना सोचे विचारे किए गए कार्य का दुःख व्यक्ति के हृदय में पछतावा बनकर घर कर जाता है। उसकी पीड़ा से छुटकारा पाना मुश्किल होता है। अतः हमें कोई भी काम बहुत सोच-विचारकर ही करना चाहिए।

Class 7 Malhar Book Ch-6 Picture1

2 –
बीती ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि लेइ।
जो बनि आवै सहज में, ताही में चित देइ॥
ताही में चित देइ, बात जोई बनि आवै।
दुर्जन हंसे न कोइ, चित्त मैं खता न पावै॥
कह ‘गिरिधर कविराय यहै करु मन परतीती।
आगे को सुख समुझि, होइ बीती सो बीती॥

शब्दार्थ –
बीती – बीत गई, घटित होना
ताहि – उसको
बिसारि दे – भुला दे
सुधि – समझ, ध्यान
सहज – सहजता या आसानी से
चित – मन
बनि आवै – बन सके
दुर्जन – दुष्ट
चित्त – मन, विचार
खता – पछतावा
करु – करो
परतीती – दृढ़ विश्वास
समुझि – समझकर

व्याख्याउपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि जो भी बातें या घटनाएँ घटित हो चुकी हैं या बीत चुकी हैं, उन्हें भूलकर हमें आगे बढ़ना चाहिए अर्थात हमें भूतकाल की सभी घटनाओं को भूल कर अपने वर्तमान को समझने की कोशिश करनी चाहिए और आगे आने वाले को सहजता से स्वीकार करना चाहिए। जो कार्य सहज और सरल तरीके से हो सकें, उसी में मन लगाना चाहिए। ऐसा करने पर हम किसी दुष्ट व्यक्ति की हँसी का पात्र बनने से बच जाएंगे और हमारे मन में कोई पछतावा भी नहीं रहेगा। गिरिधर कविराय कहते हैं कि जो मन को सही लगे वही काम करो और आगे जो होने वाला है उसी में अपना सुख देखो, जो पीछे चला गया है उसे बीत जाने दो। कहने का आशय यह है कि हमें जो बात बीत चुकी है, उसे भूलकर आगे आने वाले सुख के बारे में सोचना चाहिए।

Conclusion

 

गिरिधर कविराय हमें सभी काम सोच-विचार करने की सीख दे रहे हैं क्योंकि जल्दबाज़ी में या बिना सोचे-समझे काम करने पर हम अपने ही काम बिगाड़ देते हैं, जिससे हमारे मन को भी शांति नहीं मिलती और बिना सोचे विचारे किए गए कार्य का दुःख व्यक्ति के हृदय में पछतावा बनकर घर कर जाता है। गिरिधर कविराय हमें बीती घटनाओं को भूलकर आगे आने वाले सुख के बारे में सोचने की सीख दे रहे हैं। यह लेख विद्यार्थियों की परीक्षा में सहायक है क्योंकि इसमें शब्दार्थ सहित व्याख्या दिए गए हैं।