CBSE Class 10 Hindi (Course B) Sparsh Bhag 2 Book Chapter 1 Saakhi Question Answers from previous years question papers (2019-2025) with Solutions

 

Saakhi Previous Year Questions with Answers –  Question Answers from Previous years Question papers provide valuable insights into how chapters are typically presented in exams. They are essential for preparing for the CBSE Board Exams, serving as a valuable resource.They can reveal the types of questions commonly asked and highlight the key concepts that require more attention. In this post, we have shared Previous Year Questions for Class 10 Hindi (Course B) Sparsh Bhag 2 Book Chapter 1, “Saakhi”.

 

Questions from the Chapter in 2025 Board Exams

 

प्रश्न 1 – ‘कबीर’ की साखियों में कौन-कौन से जीवन-मूल्य उभरते हैं? (25-30 शब्दों में)

उत्तर – कबीर की साखियों में अहिंसा, सत्य, विनम्रता, सत्य के मार्ग पर चलने, दूसरों से प्रेम करने, सांसारिक मोह से दूर रहने और ईश्वर में लीन होने जैसे जीवन-मूल्य उभरते हैं। 

 

प्रश्न 2 – समाज में परिवर्तन या सुधार लाने की शुरुआत अपने घर से करनी चाहिए ‘ – कबीर की साखी के माध्यम से इस कथन को सिद्ध कीजिए । (25-30 शब्दों में)

उत्तर – कबीर की साखी “हम घर जाल्या आपणाँ…” में वे कहते हैं कि उन्होंने पहले अपने ही घर को जलाया, अर्थात् परिवर्तन की शुरुआत स्वयं से की, यहीं से सच्चा सुधार शुरू होता है।

 

प्रश्न 3 – कबीर के, निंदक को पास रखने वाले विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं और क्यों? (25-30 शब्दों में)

उत्तर – मैं कबीर के निंदक को पास रखने वाले विचार से पूर्णतः सहमत हूँ क्योंकि निंदक के द्वारा की गयी आलोचना हमें अपनी कमियों को समझने और सुधारने का अवसर देती है, जिससे व्यक्तित्व निखरता है।

Questions which came in 2023 Board Exam

 

प्रश्न 1 – ‘साखी’ पाठ के आधार पर ‘घर’ की प्रतीकात्मकता स्पष्ट करते हुए लिखिए कि कबीर अपने बताए मार्ग पर चलने वालों का घर क्यों जलाना चाहते हैं ?

उत्तर – ‘साखी’ पाठ के आधार पर कबीर जी ने मोह-माया को घर बताया है और कबीर जी अपने बताए मार्ग पर चलने वालों का यही मोह-माया रूपी घर जलाना चाहते हैं। कबीर जी कहते हैं कि उन्होंने अपने हाथों से अपना मोह-माया रूपी घर जला कर ज्ञान प्राप्त कर लिया है। अब उनके हाथों में जलती हुई मशाल (लकड़ी) है यानी ज्ञान है। अब वे उसका घर जलाएंगे जो उनके साथ चलना चाहता है अर्थात उसे भी मोह-माया से मुक्त होना होगा जो ज्ञान प्राप्त करना चाहता है।

 

प्रश्न 2 – कबीर के अनुसार ईश्वर कहाँ निवास करता है सांसारिक मनुष्यों द्वारा उसे न देख पाने का क्या कारण है, और उस तक कैसे पहुँचा जा सकता है ?

उत्तर – कवि कबीरदास जी के अनुसार संसार के लोग कस्तूरी हिरण की तरह हो गए है जिस तरह हिरण कस्तूरी प्राप्ति के लिए इधर उधर भटकता रहता है उसी तरह लोग भी ईश्वर प्राप्ति के लिए भटक रहे हैं। जिस प्रकार एक हिरण कस्तूरी की खुशबू को जंगल में ढूँढ़ता फिरता है जबकि वह सुगंध उसी की नाभि में विद्यमान होती है परन्तु वह इस बात से बेखबर होता है, उसी प्रकार संसार के कण कण में ईश्वर विद्यमान है और मनुष्य इस बात से बेखबर ईश्वर को देवालयों और तीर्थों में ढूँढ़ता है। कबीर जी के अनुसार अगर ईश्वर को ढूँढ़ना ही है तो अपने मन में ढूंढना चाहिए।

 

प्रश्न 3 – कबीर स्वयं को दुःखी और संसार को सुखी क्यों मानते हैं ? कारण स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – कबीर जी अज्ञान रूपी अंधकार में सोये हुए मनुष्यों को देखकर दुःखी हैं और रो रहे हैं। संसार के लोग अज्ञान रूपी अंधकार में डूबे हुए हैं अपनी मृत्यु आदि से भी अनजान सोये हुये हैं। ये सब देख कर कबीर दुखी हैं और वे रो रहे हैं। कबीर जी प्रभु को पाने की आशा में हमेशा चिंता में जागते रहते हैं। यही कारण है कि कबीर स्वयं को दुःखी और संसार को सुखी मानते हैं। 

 

प्रश्न 4 – ‘सुखिया सब संसार है, खायै अरु सोवै। दुखिया दास कबीर है, जागै अरु रौवै।’ – साखी के संदर्भ में कबीर के दुखी और जाग्रत होने का कारण लिखिए। क्या जागना भी दुख का कारण हो सकता है ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – इस साखी के कवि कबीरदास जी है। इसमें कबीर जी अज्ञान रूपी अंधकार में सोये हुए मनुष्यों को देखकर दुःखी हैं और रो रहे हैं। कबीर जी कहते हैं कि संसार के लोग अज्ञान रूपी अंधकार में डूबे हुए हैं अपनी मृत्यु आदि से भी अनजान सोये हुये हैं। ये सब देख कर कबीर दुखी हैं और वे रो रहे हैं। वे प्रभु को पाने की आशा में हमेशा चिंता में जागते रहते हैं। आशय यह है कि प्रभु को पाने की आशा कबीर जी को आराम से सोने नहीं दे रही है। इसी कारण जागना कबीर जी के दुःख का कारण बन गया है क्योंकि जागने के कारण भी उन्हें प्रभु के दर्शन नहीं हो पा रहे हैं। 

 

प्रश्न 5 – “अब घर जालौं तास का जे चले हमारे साथि” साखी के संदर्भ में ‘घर’ शब्द की प्रतीकात्मकता स्पष्ट करते हुए इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – “अब घर जालौं तास का जे चले हमारे साथि ” साखी के संदर्भ में कबीर जी ने मोह-माया को घर बताया है और कबीर जी अपने बताए मार्ग पर चलने वालों का यही मोह-माया रूपी घर जलाना चाहते हैं। आशय यह है कि कबीर जी ने अपने हाथों से अपना मोह-माया रूपी घर जला कर ज्ञान प्राप्त कर लिया है। अब उनके हाथों में जलती हुई मशाल ( लकड़ी ) है यानी ज्ञान है। अब वे उसका घर जलाएंगे जो उनके साथ चलना चाहता है अर्थात उसे भी मोह-माया से मुक्त होना होगा जो ज्ञान प्राप्त करना चाहता है।

 

प्रश्न 6 – पठित कविता के आधार पर वाणी के संबंध में कबीर के विचारों पर प्रकाश डालिए।

उत्तर – कबीर जी ने मीठी बोली बोलने और दूसरों को दुःख न देने की बात कही है। कबीरदास जी कहते हैं कि हमें अपने मन का अहंकार त्याग कर ऐसी भाषा का प्रयोग करना चाहिए जिसमें हमारा अपना तन मन भी स्वस्थ रहे और दूसरों को भी कोई कष्ट न हो अर्थात दूसरों को भी सुख प्राप्त हो। कबीर जी दूसरों को कष्ट पहुँचाने वाली बातों का समर्थन नहीं करते। 

 

प्रश्न 7 – ‘साखी’ शब्द का अर्थ स्पष्ट करते हुए अपने पाठ्यक्रम में संकलित कबीर की साखियों का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – ‘साखी’ शब्द ‘ साक्षी ’ शब्द का ही (तद्भव) बदला हुआ रूप है। साक्षी शब्द साक्ष्य से बना है। जिसका अर्थ होता है – प्रत्यक्ष ज्ञान अर्थात जो ज्ञान सबको स्पष्ट दिखाई दे। यह प्रत्यक्ष ज्ञान गुरु द्वारा शिष्य को प्रदान किया जाता है। पाठ्यक्रम में संकलित कबीर की साखियाँ ईश्वर प्रेम के महत्त्व को प्रस्तुत करती हैं। कबीर मीठी भाषा का प्रयोग करने की सलाह देते हैं ताकि दूसरों को सुख और अपने तन को शीतलता प्राप्त हो। ईश्वर को मंदिरों और तीर्थों में ढूंढ़ने के बजाये अपने मन में ढूंढ़ने की सलाह देते हैं तथा अहंकार और ईश्वर को एक दूसरे से विपरीत (उल्टा) बताया है। कबीर कहते हैं कि प्रभु को पाने की आशा उनको संसार के लोगो से अलग करती है। कबीर कहते हैं कि ईश्वर के वियोग में कोई व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता, अगर रहता भी है तो उसकी स्थिति पागलों जैसी हो जाती है। कबीर निंदा करने वालों को हमारे स्वभाव परिवर्तन में मुख्य मानते हैं। कबीर ईश्वर प्रेम के अक्षर को पढ़ने वाले व्यक्ति को पंडित बताते हैं और कबीर कहते हैं कि यदि ज्ञान प्राप्त करना है तो मोह-माया का त्याग करना पड़ेगा। पाठ्यक्रम में संकलित कबीर की साखियों का उद्देश्य सांसारिक मोह-माया से मनुष्यों को हटाना व् प्रभु की भक्ति की ओर लगाना है। 

 

Questions from the Chapter in 2020 Board Exams

 

प्रश्न 1 – कबीर निंदक को अपने निकट रखने का परामर्श क्यों देते हैं?(लगभग 30-40 शब्दों में)

उत्तर – कबीर निंदक को अपने निकट रखने का परामर्श देते हैं क्योंकि उनका मानना है कि निंदक को अपने निकट रखने से हमारा स्वभाव निर्मल होता है, क्योंकि हमारी निंदा करने वाला ही हमारा सबसे बड़ा हितैषी है। इस संसार में हमारी झूठी प्रशंसा कर अपना स्वार्थ सिद्ध करने वाले तो अनेक व्यक्ति मिल सकते हैं परन्तु निंदा करने वाले विरले ही होते हैं। हमारे जीवन में निंदक बुराइयों को दूर कर सद्गुणों को अपनाने में सहायक सिद्ध होता है। निंदक की आलोचना को सुनकर अपना आत्मनिरीक्षण कर शुद्ध व निर्मल आचरण करने में सहायता मिलती है।

 

प्रश्न 2 – ‘साखी’ शब्द का क्या अर्थ है? कबीर ने अपनी साखियों के माध्यम से किन भावनाओं को व्यक्त किया है? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।(लगभग 30-40 शब्दों में)

उत्तर – साखी शब्द संस्कृत के ‘साक्षित्‌’ (साक्षी) शब्द का रूपांतर है। संस्कृत साहित्य में आँखों से प्रत्यक्ष देखने वाले के अर्थ में साक्षी का प्रयोग हुआ है। कबीर ने अपनी साखियों में ईश्वर प्रेम के महत्त्व को प्रस्तुत किया है। कबीर मीठी भाषा का प्रयोग करने की सलाह देते हैं ताकि दूसरों को सुख और और अपने तन को शीतलता प्राप्त हो। कबीर ईश्वर को मंदिरों और तीर्थों में ढूँढ़ने के बजाय अपने मन में ढूँढ़ने की सलाह देते हैं। कबीर ने अहंकार और ईश्वर को एक दूसरे से विपरीत (उल्टा ) बताया है। कबीर के अनुसार ईश्वर के वियोग में कोई व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता, अगर रहता भी है तो उसकी स्थिति पागलों जैसी हो जाती है। कबीर निंदा करने वालों को हमारे स्वभाव परिवर्तन में मुख्य मानते हैं। कबीर ईश्वर प्रेम के अक्षर को पढ़ने वाले व्यक्ति को पंडित बताते हैं और कबीर कहते हैं कि यदि ज्ञान प्राप्त करना है तो मोह-माया का त्याग करना पड़ेगा।

 

प्रश्न 3 – कबीर ने ‘ईश्वर प्रेम’ को किस प्रकार समझाया है?(लगभग 30-40 शब्दों में)

उत्तर – कबीर जी पुस्तक ज्ञान को महत्त्व न देकर ईश्वर-प्रेम को महत्त्व देते हैं। कबीर जी कहते है कि इस संसार में मोटी-मोटी पुस्तकें (किताबें) पढ़ कर कई मनुष्य मर गए परन्तु कोई भी मनुष्य पंडित अर्थात ज्ञानी नहीं बन सका। यदि किसी व्यक्ति ने ईश्वर प्रेम का एक भी अक्षर पढ़ लिया होता तो वह पंडित बन जाता अर्थात कबीर कहना चाहते हैं कि ईश्वर प्रेम ही एक सच है और इसे जानने वाला ही वास्तविक ज्ञानी कहा जा सकता है।

 

प्रश्न 4 – कबीर के दोहे के आधार पर कस्तूरी की उपमा को स्पष्ट कीजिए। मनुष्य को ईश्वर प्राप्ति के लिए क्या करना चाहिए? स्पष्ट कीजिए।(लगभग 80-100 शब्दों में)

उत्तर – ‘कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढे बन माँहि’ इस पद में कवि कहते हैं कि मृग की नाभि के अंदर कस्तूरी होता है जिसकी सुगंध चारों ओर फैली होती है। मृग इस बात से अनजान होता है और पूरे वन में कस्तूरी की खोज़ करता है। इस साखी में कबीर जी ने हिरण को उस मनुष्य के समान माना है जो ईश्वर की खोज में भटकता रहता है और कस्तूरी को उस मनुष्य के हृदय में रहने वाले ईश्वर के समान माना है। जिस प्रकार एक हिरण कस्तूरी की खुशबू को जंगल में ढूंढ़ता फिरता है जबकि वह सुगंध उसी की नाभि में विद्यमान होती है परन्तु वह इस बात से बेखबर होता है, उसी प्रकार संसार के कण कण में ईश्वर विद्यमान है और मनुष्य इस बात से बेखबर ईश्वर को देवालयों और तीर्थों में ढूंढ़ता है। कबीर जी कहते है कि अगर ईश्वर को ढूंढ़ना ही है तो अपने मन में ढूंढो। ईश्वर तो हम सबके हृदय में निवास करते हैं लेकिन हम ईश्वर की खोज में व्यर्थ धार्मिक स्थलों के चक्कर लगाते रहते हैं। मनुष्य को ईश्वर प्राप्ति के लिए अपने मन को नियंत्रित करके अपने व् अपने आस-पास ही ध्यान लगाकर ईश्वर को ढूंढ़ना चाहिए। 

 

2019 Exam Question and Answers from the chapter

 

प्रश्न 1 – कबीर की साखी के आधार पर लिखिए कि ईश्वर वस्तुत: कहाँ है। हम उसे क्यों नहीं देख पाते?

उत्तर – कवि कबीरदास जी के अनुसार संसार के लोग कस्तूरी हिरण की तरह हो गए है जिस तरह हिरण कस्तूरी प्राप्ति के लिए इधर उधर भटकता रहता है उसी तरह लोग भी ईश्वर प्राप्ति के लिए भटक रहे हैं। जिस प्रकार एक हिरण कस्तूरी की खुशबू को जंगल में ढूँढ़ता फिरता है जबकि वह सुगंध उसी की नाभि में विद्यमान होती है परन्तु वह इस बात से बेखबर होता है, उसी प्रकार संसार के कण कण में ईश्वर विद्यमान है और मनुष्य इस बात से बेखबर ईश्वर को देवालयों और तीर्थों में ढूँढ़ता है। कबीर जी के अनुसार अगर ईश्वर को ढूँढ़ना ही है तो अपने मन में ढूँढ़ना चाहिए। ईश्वर कण कण में व्याप्त है ,पर हम अपने अज्ञान के कारण उसे नहीं देख पाते क्योंकि हम ईश्वर को अपने मन में खोजने के बजाय मंदिरों और तीर्थों में खोजते हैं।

 

प्रश्न 2 – अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है?

उत्तर – अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने निंदा करने वाले व्यक्तिओं को अपने आस पास रखने का उपाय सुझाया है। उनके अनुसार निंदा करने वाला व्यक्ति जब आपकी गलतियां निकालेगा तो आप उस गलती को सुधार कर अपना स्वभाव निर्मल बना सकते हैं।

 

प्रश्न 3 – कबीर ने ईश्वर के कण-कण में बसे होने की बात कैसे समझाई है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – कबीर जी मनुष्य को संसार के उस सत्य से परिचित कराना चाहते हैं जिससे मनुष्य आजीवन अनजान रहता है। मनुष्य ईश्वर को पाने के लिए देवालय, तीर्थ – स्थान, गुफा – कंदराओं जैसे दुर्गम स्थानों पर खोज करता रहता है, परन्तु वह ईश्वर को कहीं ढूँढ़ नहीं पाता, क्योंकि वह ईश्वर को अपने मन में नहीं खोजता, जहाँ ईश्वर का सच्चा वास है। इसीलिए कबीर जी ने कहा है ‘ऐसैं घटि घटि राँम है’ अर्थात ईश्वर तो घट – घट पर, हर प्राणी में यहाँ तक कि संसार के कण – कण में व्याप्त है।

कबीर जी हिरण का उदाहरण देकर समझाते हैं कि जिस प्रकार एक हिरण कस्तूरी की खुशबू को जंगल में ढूँढ़ता फिरता है, जबकि वह सुगंध उसी की नाभि में विद्यमान होती है परन्तु वह इस बात से बेखबर होता है, उसी प्रकार संसार के कण कण में ईश्वर विद्यमान है और मनुष्य इस बात से बेखबर ईश्वर को देवालयों और तीर्थों में ढूंढ़ता है। कबीर जी कहते है कि अगर ईश्वर को ढूँढ़ना ही है तो अपने मन में ढूंढो।

 

 

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