बिहारी के दोहे में हिंदी पाठ सार
JKBOSE Class 10 Hindi Chapter 2 “Bihari Ke Dohe”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Bhaskar Bhag 2 Book
बिहारी के दोहे सार – Here is the JKBOSE Class 10 Hindi Bhaskar Bhag 2 Book Chapter 2 Bihari Ke Dohe Summary with detailed explanation of the lesson ‘Bihari Ke Dohe’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary
इस पोस्ट में हम आपके लिए जम्मू और कश्मीर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड कक्षा 10 हिंदी भास्कर भाग 2 के पाठ 2 बिहारी के दोहे पाठ सार, पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 10 बिहारी के दोहे पाठ के बारे में जानते हैं।
Bihari Ke Dohe (बिहारी के दोहे)
मांजी,पौंछी,चमकाइ ,युत -प्रतिभा जतन अनेक।
दीरघ जीवन ,विविध सुख ,रची ‘सतसई ‘ एक।।
अर्थात मांज कर ,पौंछ कर और चमका कर अनेक प्रयास करने के बाद ऐसी प्रतिभा सामने आइ हैं ,लंबा जीवन, अनेक सुख वाले बिहारी ने एक ग्रंथ ‘बिहारी सतसई ‘की रचना की। ‘बिहारी सतसई ‘में सात सौ दोहे हैं। दोहा जैसे छोटे से छंद में गहरे अर्थों को कहने के कारण कहा जाता है कि बिहारी थोड़े शब्दों में बहुत कुछ कहने में माहिर थे। उनके दोहों के अर्थों की गंभीरता को देखकर कहा जाता है कि
सतसैया के दोहरे ,ज्यों नावक के तीर।
देखन में छोटे लगै ,घाव करें गंभीर।।
अर्थात सतसई के दोहे ऐसे हैं जैसे किसी मधुमक्खी का डंक ,जो देखने में तो छोटा लगता है लेकिन घाव बहुत गहरा देता है।
बिहारी की भाषा ब्रज भाषा है। सतसई में मुख्यतः प्रेम और भक्ति को दर्शाने वाले दोहे हैं। बिहारी मुख्य रूप से श्रृंगार रस के लिए जाने जाते हैं। इस पाठ में बिहारी के कुछ दोहे दिए जा रहे हैं। इन दोहों में श्रृंगार के साथ – साथ लोक – व्यवहार , नीति ज्ञान आदि विषयों का वर्णन भी किया गया है। इन दोहों से आपको भी ज्ञात होगा कि बिहारी कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक अर्थ भरने की कला भली भांति जानते हैं।
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बिहारी के दोहे पाठ सार Bihari ke Dohe Summary
प्रस्तुत दोहे कविवर बिहारी द्वारा रचित ग्रन्थ ‘बिहारी सतसई ‘से लिए गए हैं। इसमें कवि ने भक्ति ,नीति व् श्रृंगार भाव का सुन्दर मेल प्रस्तुत किया है। पहले दोहे में कवि कहते हैं कि श्री कृष्ण के नीलमणि रूपी साँवले शरीर पर पीले वस्त्र रूपी धूप अत्यधिक शोभित हो रही है। दूसरे दोहे में कवि भयंकर गर्मी का वर्णन करते हुए कहते हैं कि गर्मी के कारण जंगल तपोवन बन गया है जहाँ सभी जानवर आपसी द्वेष भुलाकर एक साथ बैठे हैं। तीसरे दोहे में कवि गोपियों की श्री कृष्ण के साथ बात करने की उत्सुकता को प्रकट करते हैं और कहते हैं कि गोपियों ने श्री कृष्ण की बाँसुरी को चुरा लिया है। चौथे दोहे में कवि नायक और नायिका द्वारा भीड़ में भी किस तरह आँखों ही आँखों में बात की जाती है इस बात का वर्णन करते हैं। पांचवें दोहे में कवि जून के महीने की भीषण गर्मी का वर्णन करते हुए कहते हैं कि गर्मी इतनी अधिक बढ़ गई है कि छाया भी छाया ढूंढ़ने के लिए घने जंगलों व घरों में छिप गई है। छठे दोहे में कवि कहते हैं कि नायिका नायक को सन्देश भेजना चाहती है परन्तु अपनी विरह दशा का वर्णन कागज़ पर नहीं कर पा रही है न ही किसी को बता पा रही है वह चाहती है कि नायक उसकी विरह दशा का अनुमान स्वयं लगाए। सातवे दोहे में कवि श्री कृष्ण से कहते हैं कि आप चन्द्रवंश में पैदा हुए हो और स्वयं ब्रज आये हो। कवि श्री कृष्ण की तुलना अपने पिता से कर रहे हैं और कहते हैं कि आप मेरे पिता के समान हैं ,अतः मेरे सारे कष्ट नष्ट कर दो। अन्तिम दोहे में कवि आडम्बर से बचने व ईश्वर की सच्ची भक्ति करने को कहते हैं और बताते हैं कि सच्ची भक्ति से ही ईश्वर प्रसन्न होते हैं।
Bihari Dohe Class 10 Video Explanation
बिहारी के दोहे पाठ की व्याख्या Bihari ke Dohe Explanation
काव्यांश 1
सोहत ओढ़ैं पीतु पटु स्याम ,सलौनैं गात।
मनौ नीलमनि -सैल पर आतपु परयौ प्रभात।।
शब्दार्थ
सोहत – अच्छा लगना
ओढ़ैं – ओढ़ कर
पितु – पीला
पटु – कपड़ा
गात – शरीर
नीलमनि -सैल — नीलमणि का पर्वत
आतपु – धूप
प्रभात- सुबह
प्रसंग –: प्रस्तुत दोहा हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से लिया गया है। इसके कवि बिहारी हैं। यह दोहा उनकी रचना ‘बिहारी सतसई ‘ से लिया गया है। इसमें कवि ने श्री कृष्ण के रूप सौन्दर्य का वर्णन किया है।
व्याख्या –: इस दोहे में कवि ने श्री कृष्ण के साँवले शरीर की सुंदरता का बखान किया है। कवि कहते हैं कि श्री कृष्ण के साँवले शरीर पर पीले वस्त्र बहुत अच्छे लग रहे हैं। ऐसा लग रहा है जैसे नीलमणि पर्वत पर प्रातः काल की धूप पड़ रही हो। यहाँ पर श्री कृष्ण के साँवले शरीर को नीलमणि पर्वत तथा पीले वस्त्र ,सूर्य की धूप को कहा गया है।
काव्यांश 2
कहलाने एकत बसत अहि मयूर ,मृग बाघ।
जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ -दाघ निदाघ।।
शब्दार्थ
अहि – साँप
एकत – इकठ्ठे
बसत – रहते हैं
मृग – हिरण
तपोबन – वह वन जहाँ तपस्वी रहते हैं
दीरघ – दाघ — भयंकर गर्मी
निदाघ – ग्रीष्म
प्रसंग –: प्रस्तुत दोहा हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘से लिया गया है। इसके कवि बिहारी हैं। यह दोहा उनकी रचना ‘बिहारी सतसई ‘ से लिया गया है। इसमें कवि ग्रीष्म ऋतु का वर्णन कर रहा है।
व्याख्या –: इस दोहे में कवि कहते हैं कि भीषण गर्मी से बेहाल जानवर एक ही स्थान पर बैठे हैं। मोर और साँप एक साथ बैठे हैं,हिरण और शेर एक साथ बैठे हैं। कवि कहते हैं की गर्मी के कारण जंगल तपोवन की तरह हो गया है जैसे तपोवन में सारे लोग आपसी द्वेष भुला कर एक साथ रहते हैं उसी तरह गर्मी से बेहाल ये जानवर भी आपसी द्वेष को भुला कर एक साथ बैठे हैं।
काव्यांश 3
बतरस -लालच लाल की मुरली धरी लुकाइ।
सौंह करैं भौंहनु हँसै ,दैन कहैं नटि जाइ।।
शब्दार्थ
बतरस – बातचीत का आनंद
लाल – श्री कृष्ण
मुरली – बाँसुरी
लुकाइ – छुपाना
सौंह – शपथ
भौंहनु – भौंह से
नटि जाइ – मना कर देना
प्रसंग –: प्रस्तुत दोहा हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘से लिया गया है। इसके कवि बिहारी हैं। यह दोहा उनकी रचना ‘बिहारी सतसई ‘ से लिया गया है इसमें कवि कहते हैं कि गोपियों ने श्री कृष्ण से बात करने के लिए उनकी मुरली चुरा ली है।
व्याख्या –: इसमें कवि गोपियों द्वारा श्री कृष्ण की बाँसुरी चुराए जाने का वर्णन करते हैं। कवि कहते हैं कि गोपियों ने श्री कृष्ण से बात करने के लालच में उनकी बाँसुरी को चुरा लिया है। गोपियाँ कसम भी खाती हैं कि उन्होंने बाँसुरी नहीं चुराई है लेकिन बाद में भोंहे घुमाकर हंसने लगती हैं और बाँसुरी देने से मना कर रही हैं।
काव्यांश 4
कहत ,नटत ,रीझत ,खीझत ,मिलत ,खिलत ,लजियात।
भरे भौन मैं करत हैं नैननु ही सब बात।।
शब्दार्थ
कहत – कहना ,बात करना
नटत – इंकार करना
रीझत – मोहित होना
खीझत – बनावटी गुस्सा करना
मिलत – मिलना
खिलत – प्रसन्न होना
लजियात – शर्माना
भौन – भवन
नैननु – नेत्रों से
प्रसंग-: प्रस्तुत दोहा हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘से लिया गया है। इसके कवि बिहारी हैं। यह दोहा उनकी रचना ‘बिहारी सतसई ‘से लिया गया है। इसमें कवि ने नायक – नायिका की आँखों – आँखों में चलने वाली बातचीत का सुन्दर वर्णन किया है।
व्याख्या –: इस दोहे में कवि कहते हैं कि नायक और नायिका एक दूसरे से आँखों ही आँखों में बातचीत करते हैं। नायक की बातों का उत्तर कभी नायिका इंकार से देती है,कभी उसकी बातों पर मोहित हो जाती है ,कभी बनावटी गुस्सा दिखाती है और जब उनकी आँखे फिर से मिलती हैं तो वे दोनों खुश हो जाते हैं और कभी – कभी शर्मा भी जाते हैं।कवि कहते हैं कि इस तरह वे भीड़ में भी एक दूसरे से बात करते हैं और किसी को ज्ञात भी नहीं होता।
काव्यांश 5
बैठि रही अति सघन बन ,पैठि सदन – तन माँह।
देखि दुपहरी जेठ की छाँहौं चाहति छाँह।।
शब्दार्थ
सघन – घना
बन – जंगल
पैठि – घुसना
सदन-तन — भवन में
जेठ – जून का महीना
छाँहौं – छाया भी
संग –: प्रस्तुत दोहा हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से लिया गया है। इसके कवि बिहारी हैं। यह दोहा उनकी रचना ‘बिहारी सतसई ‘से लिया गया है। इसमें कवि जून महीने की गर्मी का वर्णन कर रहे हैं।
व्याख्या –: कवि कहते हैं कि जून महीने की गर्मी इतनी अधिक हो रही है कि छाया भी छाया ढूँढ रही है अर्थात वह भी गर्मी से बचने के लिए जगह तलाश कर रही है। वह या तो किसी घने जंगल में मिलेगी या किसी घर के अंदर।
काव्यांश 6
कागद पर लिखत न बनत ,कहत सँदेसु लजात।
कहिहै सबु तेरौ हियौ ,मेरे हिय की बात।।
शब्दार्थ
कागद – कागज़
लिखत न बनत – लिखा नहीं जाता
सँदेसु – सन्देश
लजात – लज्जा आना
कहिहै – कह देगा
हिय – ह्रदय
प्रसंग –: प्रस्तुत दोहा हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से लिया गया है। इसके कवि बिहारी हैं। यह दोहा उनकी रचना ‘बिहारी सतसई ‘ से लिया गया है। इसमें कवि ने एक नायिका की विरह दशा का वर्णन किया है।
व्याख्या –: कवि कहते हैं कि नायिका अपनी विरह की पीड़ा को कागज़ पर नहीं लिख पा रही है और कह कर सन्देश भेजने में उसे शर्म आ रही है वह नायक से कहती है कि तुम आपने ह्रदय से पूछ लो वह मेरे हृदय की बात जनता है अर्थात तुम मेरी विरह दशा से भली भांति परिचित होंगे।
काव्यांश 7
प्रगट भय द्विजराज – कुल ,सुबस बसे ब्रज आइ।
मेरे हरौ कलेस सब ,केसव केसवराइ।।
शब्दार्थ
द्विजराज – 1 ) चन्द्रमा 2 )ब्राह्मण
सुबस – अपनी इच्छा से
केसव – श्री कृष्ण
केसवराइ – बिहारी कवि के पिता
प्रसंग-: प्रस्तुत दोहा हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श ‘ से लिया गया है। इसके कवि। वह दोहा उनकी रचना ‘बिहारी सतसई ‘से लिया गया है।इसमें कवि श्री कृष्ण से उनके कष्ट देय करने की प्रार्थना करते हैं।
व्याख्या –: कवि कहते हैं कि हे !श्री कृष्ण आपने चंद्र वंश में जन्म लिया और स्वयं ही ब्रज में आकर बस गए। बिहारी जी के पिता का नाम केशवराय है और श्री कृष्ण का एक नाम केशव है ,इसलिए कवि कहते हैं कि आप मेरे पिता के सामान हैं अतः मेरे सरे कष्टों का नाश कर दीजिये।
काव्यांश 8
जपमाला ,छापैं ,तिलक सरै न एकौ कामु।
मन – काँचै नाचै बृथा साँचै राँचै रामु।।
शब्दार्थ
जपमाला – जपने की माला
छापैं – छापा
सरै – पूरा होना
मन काँचै – कच्चा मन ,बिना सच्ची भक्ति वाला
नाचै – नाचना
बृथा – बेकार में
सांचै – सच्ची भक्ति वाला
रांचै – प्रसन्न होना
प्रसंग-: प्रस्तुत दोहा हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ से लिया गया है। इसके कवि बिहारी हैं। यह दोहा उनकी रचना ‘बिहारी सतसई ‘से लिया गया है। इसमें कवि ने बहरी ढोंग के स्थान पर सच्चे मन से ईश्वर भक्ति को महत्त्व दिया है।
व्याख्या –:कवि कहते हैं कि केवल ईश्वर के नाम की माला जपने से ,ईश्वर नाम लिख लेने से तथा तिलक करने से ईश्वर भक्ति का कार्य पूरा नहीं होता। यदि मन में ईश्वर के लिए विश्वास न हो तो उसकी भक्ति में नाचना भी व्यर्थ है। इसके विपरीत जो सच्चे मन से ईश्वर भक्ति करते हैं, ईश्वर उन्ही पर प्रसन्न होते हैं।