CBSE Class 6 Hindi Chapter 2 Gol (गोल) Question Answers (Important) from Malhar Book
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सीबीएसई कक्षा 6 हिंदी मल्हार के पाठ 2 गोल प्रश्न उत्तर खोज रहे हैं? आगे कोई तलाश नहीं करें! महत्वपूर्ण प्रश्नों का हमारा व्यापक संकलन आपको अपने विषय ज्ञान को बढ़ाने में मदद करेगा। कक्षा 6 के हिंदी प्रश्न उत्तर का अभ्यास करने से परीक्षा में आपके प्रदर्शन में काफी सुधार हो सकता है। हमारे समाधान इस बारे में एक स्पष्ट विचार प्रदान करते हैं कि उत्तरों को प्रभावी ढंग से कैसे लिखा जाए। हमारे गोल प्रश्न उत्तरों को अभी एक्सप्लोर करें उच्च अंक प्राप्त करने के अवसरों में सुधार करें।
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Gol Chapter 2 NCERT Solutions
मेरी समझ से
(क) नीचे दिए गए प्रश्नों का सटीक उत्तर कौन-सा है? उसके सामने तारा (★) बनाइए-
प्रश्न 1 – “दोस्त, खेल में इतना गुस्सा अच्छा नहीं। मैंने तो अपना बदला ले ही लिया है। अगर तुम मुझे हॉकी नहीं मारते तो शायद मैं तुम्हें दो ही गोल से हराता।” मेजर ध्यानचंद की इस बात से उनके बारे में क्या पता चलता है?
• वे अत्यंत क्रोधी थे।
• वे अच्छे ढंग से बदला लेते थे।
• उन्हें हॉकी से मारने पर वे अधिक गोल करते थे।
• वे जानते थे कि खेल को सही भावना से खेलना चाहिए।(★)
उत्तर – • वे जानते थे कि खेल को सही भावना से खेलना चाहिए।
प्रश्न 2 – लोगों ने मेजर ध्यानचंद को ‘हॉकी का जादूगर’ कहना क्यों शुरू कर दिया?
• उनके हॉकी खेलने के विशेष कौशल के कारण (★)
• उनकी हॉकी स्टिक की अनोखी विशेषताओं के कारण
• हॉकी के लिए उनके विशेष लगाव के कारण
• उनकी खेल भावना के कारण
उत्तर – • उनके हॉकी खेलने के विशेष कौशल के कारण
(ख) अब अपने मित्रों के साथ चर्चा कीजिए कि आपने ये उत्तर ही क्यों चुने?
उत्तर – विद्यार्थी अपनी समझ के अनुसार स्वयं करें।
मिलकर करें मिलान
पाठ में से चुनकर कुछ शब्द नीचे दिए गए हैं। अपने समूह में इन पर चर्चा कीजिए और इन्हें इनके सही अर्थों या संदर्भों से मिलाइए। इसके लिए आप शब्दकोश, इंटरनेट या अपने शिक्षकों की सहायता ले सकते हैं।
| शब्द | अर्थ या संदर्भ |
| 1. लांस नायक | 1. स्वतंत्रता से पहले सूबेदार भारतीय सैन्य अधिकारियों का दूसरा सबसे बड़ा पद था। |
| 2. बर्लिन ओलंपिक | 2. भारतीय सेना का एक पद (रैंक) है। |
| 3. पंजाब रेजिमेंट | 3. सैनिकों के रहने का क्षेत्र। |
| 4. सैंपर्स एंड माइनर्स टीम | 4. वर्ष 1936 में जर्मनी के बर्लिन शहर में आयोजित ओलंपिक खेल प्रति-योगिता, जिसमें 49 देशों ने भाग लिया था। |
| 5. सूबेदार | 5. स्वतंत्रता से पहले अंग्रेजों की भारतीय सेना का एक दल । |
| 6. छावनी | 6. अंग्रेजों के समय का एक हॉकी दल । |
उत्तर-
| शब्द | अर्थ या संदर्भ |
| 1. लांस नायक | 2. भारतीय सेना का एक पद (रैंक) है। |
| 2. बर्लिन ओलंपिक | 4. वर्ष 1936 में जर्मनी के बर्लिन शहर में आयोजित ओलंपिक खेल प्रति-योगिता, जिसमें 49 देशों ने भाग लिया था। |
| 3. पंजाब रेजिमेंट | 5. स्वतंत्रता से पहले अंग्रेजों की भारतीय सेना का एक दल । |
| 4. सैंपर्स एंड माइनर्स टीम | 6. अंग्रेजों के समय का एक हॉकी दल । |
| 5. सूबेदार | 1. स्वतंत्रता से पहले सूबेदार भारतीय सैन्य अधिकारियों का दूसरा सबसे बड़ा पद था। |
| 6. छावनी | 3. सैनिकों के रहने का क्षेत्र। |
पंक्तियों पर चर्चा
पाठ में से चुनकर कुछ पंक्तियाँ नीचे दी गई हैं। इन्हें ध्यान से पढ़िए और इन पर विचार कीजिए । आपको इनका क्या अर्थ समझ में आया? अपने विचार कक्षा में अपने समूह में साझा कीजिए और अपनी लेखन पुस्तिका में लिखिए।
(क) “बुरा काम करने वाला आदमी हर समय इस बात से डरता रहता है कि उसके साथ भी बुराई की जाएगी।”
उत्तर – यदि कोई व्यक्ति किसी के साथ कुछ भी गलत करता है, किसी के साथ गलत व्यवहार करता है या किसी को किसी भी प्रकार से चोट पहुँचाता है, तो कहीं न कहीं उसे भी पता होता है कि उसने गलत किया है। उसे ऐसा लगता है कि जिसके साथ भी उसने बुरा किया है, वह भी किसी-न-किसी रूप में उससे बदला जरूर लेगा। इसी वजह से वह हर दम डर के साथ जीता है। उदाहरण के लिए – ध्यानचंद जब ‘पंजाब रेजिमेंट’ की ओर से ‘सैंपर्स एंड माइनर्स’ टीम के साथ खेल रहे थे तो उनसे मुकाबला न कर पाने पर एक खिलाड़ी ने गस्सा होकर उनके सिर पर हॉकी स्टिक दे मारी थी। लेकिन थोड़ी देर के बाद जब मेजर ध्यानचंद सिर पर पट्टी बाँधकर फिर से खेलने आ गए और उस खिलाड़ी से बदला लेने की बात कही तो वह मन-ही-मन डरने लगा।
(ख) “मेरी तो हमेशा यह कोशिश रहती कि मैं गेंद को गोल के पास ले जाकर अपने किसी साथी खिलाड़ी को दे दूँ ताकि उसे गोल करने का श्रेय मिल जाए। अपनी इसी खेल भावना के कारण मैंने दुनिया के खेल प्रेमियों का दिल जीत लिया।”
उत्तर – इन पंक्तियों में ध्यानचंद के सच्चे व्यक्तित्व और खेल के प्रति उनकी शुद्ध भावना उजागर होती है। वे अपनी टीम में अपने साथियों का भी पूरा सम्मान करते थे। वे टीम की जीत का श्रेय केवल स्वयं न लेकर पूरी टीम को उसका भागीदार मानते थे। इसी कारण गोल के पास ले जाकर गेंद अपने किसी साथी खिलाड़ी को दे देते थे ताकि वह भी गोल कर सके। उनकी इसी खेल भावना के कारण लोग उन्हें पसंद करने लगे थे और उन्हें ‘हॉकी का जादूगर’ भी कहने लगे थे। ध्यानचंद इस बात को हमेशा ध्यान रखते थे कि उनकी हार या जीत केवल उनकी नहीं होगी, बल्कि पूरे देश की होगी।
सोच-विचार के लिए
संस्मरण को एक बार फिर से पढ़िए और निम्नलिखित के बारे में पता लगाकर अपनी लेखन पुस्तिका में लिखिए-
(क) ध्यानचंद की सफलता का क्या रहस्य था?
उत्तर – ध्यानचंद से जब भी कोई पूछता था कि उनकी सफलता का क्या रहस्य है, तो वे हमेशा कहते थे कि उनकी खेल के प्रति सच्ची लगन, साधना और खेल भावना ही उनकी सफलता का राज है। उन्होंने जब हॉकी खेलना शुरू किया तो वे बिल्कुल नौसिखिए खिलाड़ी थे और उन्हें हॉकी खेलने में भी कोई रूचि नहीं थी। परन्तु धीरे-धीरे अभ्यास से उनके खेल में निखार आता गया और उनको तरक्की भी मिलती गई। 1936 में वे बर्लिन ओलंपिक टीम के कप्तान बने और अपने हॉकी खेलने के ढंग से लोगों को इतना प्रभावित किया कि लोग उन्हें ‘हॉकी का जादूगर’ कहने लगे।
(ख) किन बातों से ऐसा लगता है कि ध्यानचंद स्वयं से पहले दूसरों को रखते थे?
उत्तर – यह कथन बिलकुल सत्य है कि ध्यानचंद स्वयं से पहले दूसरों को रखते थे। क्योंकि खेल के मैदान में जब वे गेंद को गोल करने के लिए ले जाते थे तो अंतिम वार के लिए वे गेंद अपने साथियों के पास ले जाते थे ताकि वे गोल कर सकें। जीत का श्रेय केवल स्वयं न लेकर टीम को देना चाहते थे। ध्यानचंद सदा ध्यान रखते थे कि हार या जीत उनकी नहीं बल्कि पूरे देश की होगी। ये सब बातें दर्शाती हैं कि ध्यानचंद स्वयं से पहले दूसरों को रखते थे।
शब्दों के जोड़े, विभिन्न प्रकार के
(क) “जैसे-जैसे मेरे खेल में निखार आता गया, वैसे-वैसे मुझे तरक्की भी मिलती गई।”
इस वाक्य में ‘जैसे-जैसे’ और ‘वैसे-वैसे’ शब्दों के जोड़े हैं जिनमें एक ही शब्द दो बार उपयोग में लाया गया है। ऐसे जोड़ों को ‘शब्द-युग्म’ कहते हैं। शब्द-युग्म में दो शब्दों के बीच में छोटी-सी रेखा लगाई जाती है जिसे योजक चिह्न कहते हैं। योजक यानी जोड़ने वाला। आप भी ऐसे पाँच शब्द-युग्म लिखिए।
उत्तर:
(क) आज-कल
(ख) आना-जाना
(ग) खान-पीना
(ङ) टेढ़ी-मेढ़ी
(घ) चलना-फिरना
(ख) “खेल के मैदान में धक्का-मुक्की और नोंक-झोंक की घटनाएँ होती रहती हैं।”
इस वाक्य में भी आपको दो शब्द-युग्म दिखाई दे रहे हैं, लेकिन इन शब्द-युग्मों के दोनों शब्द भिन्न-भिन्न हैं, एक जैसे नहीं हैं। आप भी ऐसे पाँच शब्द-युग्म लिखिए जिनमें दोनों शब्द भिन्न-भिन्न हों।
उत्तर:
(क) ज्यों-त्यों
(ख) जब-तब
(ग) अतल-अतुल
(घ) अहम-अहम्
(ङ) शर-सर
(ग) “हार या जीत मेरी नहीं, बल्कि पूरे देश की है।”
“आज मैं जहाँ भी जाता हूँ बच्चे व बूढ़े मुझे घेर लेते हैं।”
इन वाक्यों में जिन शब्दों के नीचे रेखा खिंची है, उन्हें ध्यान से पढ़िए। हम इन शब्दों को योजक की सहायता से भी लिख सकते हैं, जैसे- हार-जीत, बच्चे-बूढ़े आदि ।
आप नीचे दिए गए शब्दों को योजक की सहायता से लिखिए—
• अच्छा या बुरा
उत्तर – अच्छा-बुरा
• छोटा या बड़ा
उत्तर – छोटा-बड़ा
• अमीर और गरीब
उत्तर – अमीर-गरीब
• उत्तर और दक्षिण
उत्तर – उत्तर – दक्षिण
• गुरु और शिष्य
उत्तर – गुरु-शिष्य
• अमृत या विष
उत्तर – अमृत-विष
बात पर बल देना
“मैंने तो अपना बदला ले ही लिया है। ”
“मैंने तो अपना बदला ले लिया है। ”
इन दोनों वाक्यों में क्या अंतर है? ध्यान दीजिए और बताइए। सही पहचाना ! दूसरे वाक्य में एक शब्द कम है। उस एक शब्द के न होने से वाक्य के अर्थ में भी थोड़ा अंतर आ गया है।
हम अपनी बात पर बल देने के लिए कुछ विशेष शब्दों का प्रयोग करते हैं जैसे— ‘ही’, ‘भी’, ‘तो’ आदि। पाठ में से इन शब्दों वाले वाक्यों को चुनकर लिखिए। ध्यान दीजिए कि यदि उन वाक्यों में ये शब्द न होते तो उनके अर्थ पर इसका क्या प्रभाव पड़ता।
उत्तर – बात पर बल देने वाले शब्द ‘निपात’ कहलाते हैं।
(क) मेरे इतना कहते ही खिलाड़ी घबरा गया।
(ख) अब हर समय मुझे ही देखता रहता।
(ग) अगर तुम मुझे हॉकी नहीं मारते तो शायद मैं तुम्हें दो ही गोल से हराता ।
(घ) तो देखा आपने मेरा बदला लेने का ढंग।
(ङ) उसके साथ भी बुराई की जाएगी।
(च) मैं जहाँ भी जाता हूँ बच्चे व बूढ़े मुझे घेर लेते हैं।
(छ) लगन, साधना और खेल भावना ही सफलता का सबसे बड़ा मूलमंत्र है।
यदि इन वाक्यों में ‘ही’ ‘भी’ ‘तो’ आदि शब्दों का प्रयोग न किया जाए तो ये वाक्य का सामान्य रूप लगते हैं और परन्तु ‘ही’ ‘भी’ ‘तो’ आदि शब्दों का प्रयोग वाक्य को और अधिक प्रभावशाली बनाते हैं।
Class 6 Hindi Gol– Extract Based Questions (गद्यांश पर आधारित प्रश्न)
1 –
खेल के मैदान में धक्का-मुक्की और नोंक-झोंक की घटनाएँ होती रहती हैं। खेल में तो यह सब चलता ही है। जिन दिनों हम खेला करते थे, उन दिनों भी यह सब चलता था। सन् 1933 की बात है। उन दिनों में, मैं पंजाब रेजिमेंट की ओर से खेला करता था। एक दिन ‘पंजाब रेजिमेंट’ और ‘सैंपर्स एंड माइनर्स टीम’ के बीच मुकाबला हो रहा था। ‘माइनर्स टीम’ के खिलाड़ी मुझसे गेंद छीनने की कोशिश करते, लेकिन उनकी हर कोशिश बेकार जाती। इतने में एक खिलाड़ी ने गुस्से में आकर हॉकी स्टिक मेरे सिर पर दे मारी। मुझे मैदान से बाहर ले जाया गया।
प्रश्न 1 – खेल में कौन सी घटनाएँ आम हैं?
(क) मार-पीट
(ख) धक्का-मुक्की और नोंक-झोंक
(ग) निचा दिखाना
(घ) बदला लेना
उत्तर – (ख) धक्का-मुक्की और नोंक-झोंक
प्रश्न 2 – प्रस्तुत गद्यांश में कौन अपनी आत्मकथा बता रहा है?
(क) मेजर कुलदीप
(ख) मिल्खा सिंह
(ग) मेजर ध्यानचंद
(घ) सूबेदार मेजर तिवारी
उत्तर – (ग) मेजर ध्यानचंद
प्रश्न 3 – मेजर ध्यानचंद किस खेल को खेलते थे?
(क) क्रिकट
(ख) फुटबॉल
(ग) कबड्ड़ी
(घ) हॉकी
उत्तर – (घ) हॉकी
प्रश्न 4 – विरोधी टीम के खिलाड़ी ने गुस्से में क्या किया?
(क) मेजर ध्यानचंद को सर पर स्टिक मार दी
(ख) मेजर ध्यानचंद को पैर पर स्टिक मार दी
(ग) मेजर ध्यानचंद को पीठ पर स्टिक मार दी
(घ) मेजर ध्यानचंद को स्टिक मार दी
उत्तर – (क) मेजर ध्यानचंद को सर पर स्टिक मार दी
प्रश्न 5 – मेजर ध्यानचंद किस टीम की ओर से खेलते थे?
(क) पंजाब रेंजिमेंट की ओर से
(ख) जाट रेजिमेंट की ओर से
(ग) सैपर्स एंड माइनर्स की ओर से
(घ) सिख रेजिमेंट की ओर से
उत्तर – (क) पंजाब रेंजिमेंट की ओर से
2 –
थोड़ी देर बाद मैं पट्टी बाँधकर फिर मैदान में आ पहुँचा। आते ही मैंने उस खिलाड़ी की पीठ पर हाथ रखकर कहा, “तुम चिंता मत करो, इसका बदला मैं जरूर लूँगा।” मेरे इतना कहते ही वह खिलाड़ी घबरा गया। अब हर समय मुझे ही देखता रहता कि मैं कब उसके सिर पर हॉकी स्टिक मारने वाला हूँ। मैंने एक के बाद एक झटपट छह गोल कर दिए। खेल खत्म होने के बाद मैंने फिर उस खिलाड़ी की पीठ थपथपाई और कहा, “दोस्त, खेल में इतना गुस्सा अच्छा नहीं। मैंने तो अपना बदला ले ही लिया है। अगर तुम मुझे हॉकी नहीं मारते तो शायद मैं तुम्हें दो ही गोल से हराता।” वह खिलाड़ी सचमुच बड़ा शर्मिदा हुआ। तो देखा आपने मेरा बदला लेने का ढंग? सच मानो, बुरा काम करने वाला आदमी हर समय इस बात से डरता रहता है उसके साथ भी बुराई की जाएगी। आज मैं जहाँ भी जाता हूँ बच्चे व बूढ़े मुझे घेर लेते हैं और मुझसे मेरी सफलता का राज जानना चाहते हैं। मेरे पास सफलता का कोई गुरु-मंत्र तो है नहीं। हर किसी से यही कहता कि लगन, साधना और खेल भावना ही सफलता के सबसे बड़े मंत्र हैं।
प्रश्न 1 – मेजर ध्यानचंद ने अपना बदला कैसे लिया?
(क) खिलाड़ी को वापिस स्टिक से मार कर
(ख) खिलाड़ी को मैदान से बाहर करके
(ग) खेल में एक के बाद एक छः गोल करके
(घ) खेल को बीच में ही रुकवा कर
उत्तर – (ग) खेल में एक के बाद एक छः गोल करके
प्रश्न 2 – मेजर ध्यानचंद पट्टी बाँधकर मैदान पर क्यों आया?
(क) मेजर ध्यानचंद के सिर पर विपक्षी टीम के एक खिलाड़ी ने हॉकी की स्टिक मार दी थी
(ख) मेजर ध्यानचंद मैदान में गिरकर घायल हो गया था
(ग) मेजर ध्यानचंद के सिर में बहुत दर्द था
(घ) मेजर ध्यानचंद सबसे अलग दिखना चाहते थे
उत्तर – (क) मेजर ध्यानचंद के सिर पर विपक्षी टीम के एक खिलाड़ी ने हॉकी की स्टिक मार दी थी
प्रश्न 3 – मैदान में पहुँचते ही मेज़र ध्यानचंद ने उस खिलाड़ी को क्या कहा जिसने उन्हें हॉकी की छड़ी से मारा था?
(क) वह चिंता न करे
(ख) वह चिंता न करे, वह उसका बदला जरूर लेंगें
(ग) वह उसका बदला जरूर लेंगें
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (ख) वह चिंता न करे, वह उसका बदला जरूर लेंगें
प्रश्न 4 – मेजर ध्यानचंद ने अपना बदला कैसे लिया?
(क) खिलाड़ी को वापिस स्टिक से मार कर
(ख) खिलाड़ी को मैदान से बाहर करके
(ग) खेल में एक के बाद एक छः गोल करके
(घ) खेल को बीच में ही रुकवा कर
उत्तर – (ग) खेल में एक के बाद एक छः गोल करके
प्रश्न 5 – मेज़र ध्यानचंद अपनी सफलता का क्या रहस्य बताते थे?
(क) किसी काम में पूरी तरह से ध्यान लगाना
(ख) खेल को खेल भावना से खेलना
(ग) कठिन परिश्रम करना
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
3 –
मेरा जन्म सन् 1904 में प्रयाग में एक साधारण परिवार में हुआ। बाद में हम झाँसी आकर बस गए। 16 साल की उम्र में मैं ‘फर्स्ट ब्राह्मण रेजिमेंट’ में एक साधारण सिपाही के रूप में भर्ती हो गया। मेरी रेजिमेंट का हॉकी खेल में काफी नाम था। पर खेल में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी। उस समय हमारी रेजिमेंट के सूबेदार मेजर तिवारी थे। वे बार-बार मुझे हॉकी खेलने के लिए कहते। हमारी छावनी में हॉकी खेलने का कोई निश्चित समय नहीं था। सैनिक जब चाहे मैदान में पहुँच जाते और अभ्यास शुरू कर देते। उस समय तक मैं एक नौसिखिया खिलाड़ी था।
प्रश्न 1 – मेजर ध्यानचंद का जन्म किस सन् में हुआ ?
(क) 1904
(ख) 1905
(ग) 1906
(घ) 1907
उत्तर – (क) 1904
प्रश्न 2 – मेजर ध्यानचंद की किसमें दिलचस्पी नहीं थी?
(क) नौकरी करने में
(ख) सिपाही बनाने में
(ग) खेल खेलने में
(घ) फुटबॉल खेलने में
उत्तर – (ग) खेल खेलने में
प्रश्न 3 – मेजर ध्यानचंद कितने साल की उम्र में ‘फर्स्ट ब्राह्मण रेजिमेंट’ में सिपाही के रूप में भर्ती हुए?
(क) 15 साल की
(ख) 16 साल की
(ग) 17 साल की
(घ) 18 साल की
उत्तर – (ख) 16 साल की
प्रश्न 4 – ध्यानचंद की रेजिमेंट के सूबेदार मेजर कौन थे?
(क) मेजर तिवारी
(ख) मेजर त्रिपाठी
(ग) मेजर रविदास
(घ) मेजर गुप्ता
उत्तर – (क) मेजर तिवारी
प्रश्न 5 – प्रारंभ में ध्यानचंद कैसे खिलाड़ी थे?
(क) अवल
(ख) कुशल
(ग) जोशीला
(घ) नौसिखिया
उत्तर – (घ) नौसिखिया
4 –
जैसे-जैसे मेरे खेल में निखार आता गया, वैसे-वैसे मुझे तरक्की भी मिलती गई। सन् 1936 में बर्लिन ओलंपिक में मुझे कप्तान बनाया गया। उस समय मैं सेना में लांस नायक था। बर्लिन ओलंपिक में लोग मेरे हॉकी खेलने के ढंग से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने मुझे ‘हॉकी का जादूगर’ कहना शुरू कर दिया। इसका यह मतलब नहीं कि सारे गोल मैं ही करता था। मेरी तो हमेशा यह कोशिश रहती कि मैं गेंद को गोल के पास ले जाकर अपने किसी साथी खिलाड़ी को दे दूँ ताकि उसे गोल करने का श्रेय मिल जाए। अपनी इसी खेल भावना के कारण मैंने दुनिया के खेल प्रेमियों का दिल जीत लिया। बर्लिन ओलंपिक में हमें स्वर्ण पदक मिला। खेलते समय मैं हमेशा इस बात का ध्यान रखता था हार या जीत मेरी नहीं, बल्कि पूरे देश की है।
प्रश्न 1 – बर्लिन ओलंपिक कब हुए?
(क) 1935 में
(ख) 1936 में
(ग) 1938 में
(घ) 1940 में
उत्तर – (ख) 1936 में
प्रश्न 2 – बर्लिन ओलंपिक में कौन-सा पदक मिला ?
(क) रजत पदक
(ख) कांस्य पदक
(ग) स्वर्ण पदक
(घ) कोई नहीं
उत्तर – (ग) स्वर्ण पदक
प्रश्न 3 – बर्लिन ओलंपिक में लोगों ने ध्यानचंद की हॉकी खेलने के ढंग से प्रभावित होकर क्या नाम दिया?
(क) ‘हॉकी का जादूगर’
(ख) ‘हॉकी का मसीहा’
(ग) ‘हॉकी का कप्तान’
(घ) ‘खेल का जादूगर’
उत्तर – (क) ‘हॉकी का जादूगर’
प्रश्न 4 – ध्यानचंद ने दुनिया के खेल प्रेमियों का दिल कैसे जीत लिया?
(क) करुणा दिखाने के कारण
(ख) त्याग भावना के कारण
(ग) दयालु होने के कारण
(घ) खेल भावना के कारण
उत्तर – (घ) खेल भावना के कारण
प्रश्न 5 – खेलते समय ध्यानचंद हमेशा किस बात का ध्यान रखते थे?
(क) हार या जीत उनकी नहीं, बल्कि पूरे देश की है
(ख) हार या जीत केवल उनकी है
(ग) हार या जीत केवल उनकी और उनकी टीम की है
(घ) हार या जीत कोई मायने नहीं रखती
उत्तर – (क) हार या जीत उनकी नहीं, बल्कि पूरे देश की है
Class 6 Hindi Malhar Lesson 2 Gol Multiple choice Questions (बहुविकल्पीय प्रश्न)
प्रश्न 1 – गोल पाठ में मेज़र ध्यानचंद जी किस मैच का जिक्र कर रहे हैं?
(क) 1930 के एक मैच का
(ख) 1932 के एक मैच का
(ग) 1931 के एक मैच का
(घ) 1933 के एक मैच का
उत्तर – (घ) 1933 के एक मैच का
प्रश्न 2 – सन् 1933 में, मेज़र ध्यानचंद ने किस टीम की ओर से खेला करते थे?
(क) हरियाणा रेजिमेंट
(ख) पंजाब रेजिमेंट
(ग) राजपूत रेजिमेंट
(घ) गोरखा रेजिमेंट
उत्तर – (ख) पंजाब रेजिमेंट
प्रश्न 3 – किस टीम के खिलाड़ी मेज़र ध्यानचंद से गेंद छीनने की कोशिश कर रहे थे?
(क) पंजाब रेजिमेंट
(ख) हरियाणा रेजिमेंट
(ग) मार्कर्स टीम
(घ) माइनर्स टीम
उत्तर – (घ) माइनर्स टीम
प्रश्न 4 – ‘माइनर्स टीम’ के खिलाड़ी ने गुस्से में किससे मेज़र ध्यानचंद के सिर पर मारा?
(क) गोल्फ स्टिक
(ख) हॉकी स्टिक
(ग) क्रिकेट स्टिक
(घ) हॉकी गेंद
उत्तर – (ख) हॉकी स्टिक
प्रश्न 5 – मैदान में पहुँचते ही मेज़र ध्यानचंद ने उस खिलाड़ी को क्या कहा जिसने उन्हें हॉकी की छड़ी से मारा था?
(क) वह चिंता न करे, वह उसका बदला जरूर लेंगे
(ख) वह चिंता न करे
(ग) वह उसका बदला जरूर लेंगे
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (क) वह चिंता न करे, वह उसका बदला जरूर लेंगे
प्रश्न 6 – मेज़र ध्यानचंद के बदला लेने की बात सुनकर खिलाड़ी की क्या प्रतिक्रिया थी?
(क) वह खेल छोड़ कर भाग गया
(ख) वह घबरा गया
(ग) वह और गुस्सा हो गया
(घ) वह शांत हो गया
उत्तर – (ख) वह घबरा गया
प्रश्न 7 – मेज़र ध्यानचंद ने मैच में एक के बाद एक तुरंत कितने गोल कर दिए?
(क) पाँच
(ख) आठ
(ग) सात
(घ) छः
उत्तर – (घ) छः
प्रश्न 8 – मेज़र ध्यानचंद अपनी सफलता का क्या रहस्य बताते थे?
(क) किसी काम में पूरी तरह से ध्यान लगाना
(ख) खेल को खेल भावना से खेलना
(ग) कठिन परिश्रम करना
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 9 – 16 साल की उम्र में मेज़र ध्यानचंद ‘फर्स्ट ब्राह्मण रेजिमेंट’ में किस रूप में भर्ती हो गए थे?
(क) साधारण सिपाही
(ख) साधारण खिलाड़ी
(ग) कप्तान
(घ) सूबेदार
उत्तर – (क) साधारण सिपाही
प्रश्न 10 – कौन बार-बार मेज़र ध्यानचंद को हॉकी खेलने के लिए कहते रहते थे?
(क) कप्तान मेजर तिवारी
(ख) सूबेदार ध्यानचंद तिवारी
(ग) सूबेदार मेजर शर्मा
(घ) सूबेदार मेजर तिवारी
उत्तर – (घ) सूबेदार मेजर तिवारी
प्रश्न 11 – सन् 1936 में कहाँ मेज़र ध्यानचंद को टीम का कप्तान बनाया गया?
(क) एशिया ओलंपिक
(ख) बर्लिन ओलंपिक
(ग) यूरोपीय ओलंपिक
(घ) रूस ओलंपिक
उत्तर – (ख) बर्लिन ओलंपिक
प्रश्न 12 – मेज़र ध्यानचंद की हमेशा क्या कोशिश रहती थी?
(क) गेंद को गोल के पास ले जाकर अपने किसी साथी खिलाड़ी को देना
(ख) मैच को किसी भी हाल में जितना
(ग) विरोधी खिलाड़ी से अच्छा खेल खेलना
(घ) लोगों को अपने खेल से प्रभावित करना
उत्तर – (क) गेंद को गोल के पास ले जाकर अपने किसी साथी खिलाड़ी को देना
प्रश्न 13 – बर्लिन ओलंपिक में लोगों ने ध्यानचंद की हॉकी खेलने के ढंग से प्रभावित होकर क्या नाम दिया?
(क) ‘हॉकी का जादूगर’
(ख) ‘हॉकी का मसीहा’
(ग) ‘हॉकी का कप्तान’
(घ) ‘खेल का जादूगर’
उत्तर – (क) ‘हॉकी का जादूगर’
प्रश्न 14 – ध्यानचंद ने दुनिया के खेल प्रेमियों का दिल कैसे जीत लिया?
(क) करुणा दिखाने के कारण
(ख) त्याग भावना के कारण
(ग) दयालु होने के कारण
(घ) खेल भावना के कारण
उत्तर – (घ) खेल भावना के कारण
प्रश्न 15 – खेलते समय ध्यानचंद हमेशा किस बात का ध्यान रखते थे?
(क) हार या जीत उनकी नहीं, बल्कि पूरे देश की है
(ख) हार या जीत केवल उनकी है
(ग) हार या जीत केवल उनकी और उनकी टीम की है
(घ) हार या जीत कोई मायने नहीं रखती
उत्तर – (क) हार या जीत उनकी नहीं, बल्कि पूरे देश की है
प्रश्न 16 – लेखक का जन्म किस सन् में हुआ ?
(क) 1904
(ख) 1905
(ग) 1906
(घ) 1907
उत्तर – (क) 1904
प्रश्न 17 – मेजर ध्यानचंद के पट्टी बाँधकर मैदान पर आने का क्या कारण था?
(क) मेजर ध्यानचंद के सिर पर विपक्षी टीम के एक खिलाड़ी ने हॉकी की स्टिक मार दी थी
(ख) मेजर ध्यानचंद मैदान में गिरकर घायल हो गया थे
(ग) मेजर ध्यानचंद के सिर में तेज़ दर्द था
(घ) मेजर ध्यानचंद अपने सिर की रक्षा करना चाहते थे
उत्तर – (क) मेजर ध्यानचंद के सिर पर विपक्षी टीम के एक खिलाड़ी ने हॉकी की स्टिक मार दी थी
प्रश्न 18 – मेजर ध्यानचंद कितने साल की उम्र में ‘फर्स्ट ब्राह्मण रेजिमेंट’ में सिपाही के रूप में भर्ती हुए?
(क) 15 साल की
(ख) 16 साल की
(ग) 17 साल की
(घ) 18 साल की
उत्तर – (ख) 16 साल की
प्रश्न 19 – बर्लिन ओलंपिक कब हुए ?
(क) 1935 में
(ख) 1936 में
(ग) 1938 में
(घ) 1940 में
उत्तर – (ख) 1936 में
प्रश्न 20 – बर्लिन ओलंपिक में कौन-सा पदक मिला था?
(क) रजत पदक
(ख) स्वर्ण पदक
(ग) कांस्य पदक
(घ) कोई नहीं
उत्तर – (ख) स्वर्ण पदक
Gol Extra Question Answers (अतिरिक्त प्रश्न उत्तर)
प्रश्न 1 – मेज़र ध्यानचंद जी 1933 के मैच की किस घटना का जिक्र कर रहे हैं? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – मेज़र ध्यानचंद जी 1933 के एक मैच का जिक्र करते हुए कहते हैं कि खेल के मैदान में थोड़ी बहुत धक्का-मुक्की और वाद-विवाद की घटनाएँ अक्सर होती रहती हैं। यह सब खेल का एक हिस्सा ही है। अपने खेल के दौर के बारे में मेज़र ध्यानचंद बताते हैं कि यह सब धक्का-मुक्की और वाद-विवाद की घटनाएँ उनके दौर में भी चलती थी। सन् 1933 में, मेज़र ध्यानचंद पंजाब रेजिमेंट की ओर से खेला करते थे। एक दिन ‘पंजाब रेजिमेंट’ और ‘सैंपर्स एंड माइनर्स टीम’ के बीच जब मुकाबला हो रहा था, तब ‘माइनर्स टीम’ के खिलाड़ी मेज़र ध्यानचंद से गेंद छीनने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उनकी हर कोशिश बेकार जा रही थी। इससे एक खिलाड़ी इतने गुस्से में आ गया कि उसने हॉकी स्टिक मेज़र ध्यानचंद के सिर पर मार दी। जिसके कारण मेज़र ध्यानचंद को इतनी चोट लगी कि उन्हें मैदान से बाहर ले जाया गया था।
प्रश्न 2 – मेजर ध्यानचंद ने मैदान में आते ही क्या किया?
उत्तर – मेज़र ध्यानचंद पट्टी बाँधकर मैदान में आ पहुँचे। मैदान में पहुँचते ही उन्होंने उस खिलाड़ी की पीठ पर हाथ रखा जिसने उन्हें हॉकी की छड़ी से मारा था, और उन्होंने उससे कहा कि वह चिंता न करे, उसने उन्हें जो मारा है वह उसका बदला जरूर लेंगें।
प्रश्न 3 – बदला लेने की बात सुनकर विरोधी खिलाड़ी की क्या प्रतिक्रया थी? और क्यों?
उत्तर – मेज़र ध्यानचंद के इतना कहते ही कि वे मार का बदला जरूर लाएंगे, वह खिलाड़ी घबरा गया। क्योंकि जो बुरा करता है उसे हर पल यही लगता है कि उसके साथ भी बुरा ही होगा। वह खिलाड़ी अब हर समय मेज़र ध्यानचंद को ही देखता रहता कि मेज़र ध्यानचंद कब उसके सिर पर हॉकी स्टिक मारने वाले हैं। मेज़र ध्यानचंद ने उस मैच में एक के बाद एक तुरंत ही छह गोल कर दिए। खेल खत्म होने के बाद उन्होंने फिर उस खिलाड़ी की प्रशंसा की और उससे कहा कि दोस्त, खेल में इतना गुस्सा करना अच्छा नहीं है। उन्होंने तो अपना बदला तुरंत ही छह गोल करके ले ही लिया है। अगर वह उन्हें हॉकी नहीं मारता तो शायद वे उस टीम को दो ही गोल से हराते। यह सुनकर वह खिलाड़ी सचमुच बड़ा लज्जित हुआ।
प्रश्न 4 – मेज़र ध्यानचंद अपनी सफलता का क्या रहस्य बताते थे?
उत्तर – मेज़र ध्यानचंद जहाँ भी जाते थे बच्चे व बूढ़े उन्हें घेर लेते थे और उनसे उनकी सफलता का रहस्य जानना चाहते थे। मेज़र ध्यानचंद के अनुसार उनके पास सफलता का कोई गुरु-मंत्र तो था नहीं। इसलिए वे हर किसी से यही कहते थे कि किसी काम में पूरी तरह से ध्यान लगाना, कठिन परिश्रम करना और खेल को खेल भावना से खेलना ही सफलता के सबसे बड़े मंत्र हैं।
प्रश्न 5 – मेजर ध्यानचन्द के खेल का सफ़र कैसे शुरू हुआ?
उत्तर – मेज़र ध्यानचंद का जन्म सन् 1904 में प्रयाग में एक साधारण से परिवार में हुआ था। बाद में उनका परिवार झाँसी आकर बस गए थे। 16 साल की उम्र में मेज़र ध्यानचंद ‘फर्स्ट ब्राह्मण रेजिमेंट’ में एक साधारण सिपाही के रूप में भर्ती हो गए थे। उनकी रेजिमेंट का पहले से ही हॉकी खेल में काफी नाम था। परन्तु उस समय मेज़र ध्यानचंद की खेल में कोई दिलचस्पी नहीं थी। उस समय उनकी रेजिमेंट के सूबेदार मेजर तिवारी थे। वे ही बार-बार मेज़र ध्यानचंद को हॉकी खेलने के लिए कहते रहते थे। उनकी छावनी में हॉकी खेलने का कोई निश्चित समय नहीं था। सैनिक जब चाहे मैदान में पहुँच जाते थे और हॉकी का अभ्यास शुरू कर देते थे। उस समय तक मेज़र ध्यानचंद एक ऐसे खिलाड़ी थे जो नया-नया हॉकी खेलना सीख रहे थे। जैसे-जैसे उनके खेल अच्छा होता गया, वैसे-वैसे खेल में उनको उन्नति भी मिलती गई। सन् 1936 में बर्लिन ओलंपिक में उन्हें उनकी टीम का कप्तान बनाया गया।
प्रश्न 6 – मेज़र ध्यानचंद को ‘हॉकी का जादूगर’ किस कारण कहा गया?
उत्तर – बर्लिन ओलंपिक में लोग मेज़र ध्यानचंद के हॉकी खेलने के ढंग से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने मेज़र ध्यानचंद को ‘हॉकी का जादूगर’ कहना शुरू कर दिया। मेज़र ध्यानचंद इस पर कहते हैं कि ‘हॉकी का जादूगर’ कहने का यह मतलब नहीं था कि सारे गोल वही कर रहे थे। बल्कि उनकी तो हमेशा यह कोशिश रहती थी कि वे गेंद को गोल के पास ले जाकर अपने किसी साथी खिलाड़ी को दें, ताकि उसे गोल करने का श्रेय मिल जाए। उनकी इसी खेल भावना के कारण उन्होंने दुनिया के खेल प्रेमियों का दिल जीत लिया था। बर्लिन ओलंपिक में मेज़र ध्यानचंद की टीम को स्वर्ण पदक मिला था। खेलते समय मेज़र ध्यानचंद हमेशा इस बात का ध्यान रखते थे कि हार या जीत उनकी नहीं, बल्कि पूरे देश की है। इन सभी खूबियों के कारण वे एक महान खिलाड़ी माने जाते हैं।